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Incest शहजादी सलमा

Naik

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आप सभी का मेरी कहानी पर फिर से स्वागत है! आप सबका प्यार मुझे फिर से आप सबके बीच ले आया हैं और जरूरी बदलाव के बाद कहानी फिर से आप सबके बीच वापिस लौट आई हैं!! सभी लेखकों और पाठको को नियमो का सम्मान करना चाहिए क्योंकि नियम साइट को बेहतर बनाने के लिए ही बनाए गए हैं! मेरे द्वारा कुछ शब्दों का इस्तेमाल किया गया था जो कि साइट के अनुसार सही नहीं है! हालांकि मैंने किसी जाति या धर्म को नीचा दिखाने के लिए नही बल्कि कहानी की मांग के अनुसार किया था लेकिन नियमो के अनुसार ऐसा करना सही नहीं था!

खैर ये सब बाते छोड़िए और फिर से आप कहानी का आनंद लेने के लिए तैयार हो जाए!!
Intijar rahega bhai
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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आप सभी का मेरी कहानी पर फिर से स्वागत है! आप सबका प्यार मुझे फिर से आप सबके बीच ले आया हैं और जरूरी बदलाव के बाद कहानी फिर से आप सबके बीच वापिस लौट आई हैं!! सभी लेखकों और पाठको को नियमो का सम्मान करना चाहिए क्योंकि नियम साइट को बेहतर बनाने के लिए ही बनाए गए हैं! मेरे द्वारा कुछ शब्दों का इस्तेमाल किया गया था जो कि साइट के अनुसार सही नहीं है! हालांकि मैंने किसी जाति या धर्म को नीचा दिखाने के लिए नही बल्कि कहानी की मांग के अनुसार किया था लेकिन नियमो के अनुसार ऐसा करना सही नहीं था!

खैर ये सब बाते छोड़िए और फिर से आप कहानी का आनंद लेने के लिए तैयार हो जाए!!
Welcome back Unique star Bhai 😎 😁... Please update the story... You are a very good writer...
 

Unique star

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अगले दिन सुबह एक तरफ विक्रम को राज्य का सर्वेसर्वा बनाने की तैयारी जोर शोर से चल रही थी वहीं दूसरी तरफ मेनका विक्रम से मिलने के लिए महल पहुंच गई! दरबान ने विक्रम के सूचना दी तो मेनका अंदर चली गई और मेनका को देखते ही विक्रम खुशी से बोला:"

" आइए अच्छा किया आपने जो आज सुबह सुबह ही आप राजमहल चली आई! अब आप पूरे कार्यक्रम तक यही रहना!

मेनका बड़े प्यार से उसका चेहरा देख रही थी मानो आज उस जी भरकर देखना चाहती हो! मेनका के मुंह से शब्द नही निकल पा रहे थे और विक्रम हैरान था कि आखिर मेनका को हो गया हैं और बोला:"

" आपकी तबियत तो ठीक है? ऐसे मुझे क्यों देख रही हो आप?

मेनका के होंठ कुछ बोलते हुए भी कांप रहे थे और धीरे से बोली:"

" विक्रम मैं ठीक हु!

मेनका ने बड़ी मुश्किल से कहा और विक्रम ने उसका हाथ पकड़कर प्यार से बेड पर बिठाया और बोला:" आप शायद कुछ कहना चाहती है लेकिन बोल नही पा रही है! आप बिलकुल निश्चित होकर बोलिए!

मेनका की आंखो में आंसू आ गए और भरे गले के साथ विक्रम का हाथ पकड़ कर बोली:"

" आ अ आप जानना चाहते थे कि हमारी खानदानी तलवार आपने कैसे उठा ली थी !

विक्रम की आंखो में चमक आ गई और बोला:" बिलकुल जानना चाहता हूं क्योंकि मैं खुद उस दिन के बाद से चैन से नही सो पा रहा हु एक पल के लिए भी!

मेनका के बोलने से पहले ही उसकी आंखे भर आई और आंसू छलक पड़े और रुंधे हुए गले से बड़ी मुश्किल से कह पाई

" आप आप मेरे पुत्र हो ! मेरा अपना खून हो!

मेनका ने बड़ी मुश्किल से अपनी बात कही और विक्रम से लिपटकर रोने लगी और उसका मुंह चूमने लगी! विक्रम के दिमाग में धमाका सा हुआ और रोती हुई मेनका को संभालते हुए उसके आंसू साफ करते हुए बोला:"

" क्या क्या आप मेरी मां माता हैं ? हे भगवान!! आपको कैसे पता चला ?

मेनका जोर से सुबक पड़ी और बोली:" हान पुत्र! कल रात दाई माता आई थी और उन्होंने मुझे सारी बाते बताई!

उसके बाद मेनका ने सब कुछ विक्रम को बताया तो विक्रम की भी आंखे छलक उठी और वो भी कसकर मेनका से लिपट गया! दोनो मां बेटे एक दूसरे से लिपटकर रोते रहे और एक दूसरे को संभालते रहे! आखिरकार विक्रम ने जैसे तैसे खुद को संभाला और अपनी माता मेनका के आंसुओं को साफ करते हुए बोला:"

" मुझे आप मिल गई तो सब कुछ मिल गया! थोड़ी देर बाद राज्य सभा लगेगी तो मैं सबके बीच में सारी सच्चाई बता दूंगा!

मेनका को भला क्या आपत्ति होती तो वो बोली:"

" मुझे आप मिल गए पुत्र तो मुझे अब इससे ज्यादा कुछ नही चाहिए!

थोड़ी देर बाद जैसे ही राज्य सभा लगा और सभी मंत्री दल की बैठक शुरू हुई तो विक्रम के कुछ बोलने से पहले ही दाई माता आ गई और उन्होंने सभा को सब कुछ बताया तो हर कोई हैरान हो गया और विक्रम ने दाई माता को बात को बल देने के लिए सबके बीच में मेनका की खानदानी तलवार उठाकर दाई माता की बात को सही साबित किया और बोला:"

" चूंकि सबके सामने साबित हो ही गया है कि मैं राज पुत्र नही बल्कि मेनका पुत्र हु तो ऐसे हालत में मेरे राज्याभिषेक का कोई औचित्य ही नही रहा! मैं अब आप सबकी तरह उदयगढ़ का एक आम सेवक हु और मेरे लिए ये बेहद फख्र की बात हैं कि मैं राज्य के सबसे ईमानदार और ऐसे बलिदानी परिवार से हु जिसने उदयगढ़ की तरह उठने वाले हर तीर को अपने सीने पर खाया हैं!

विक्रम इतना बोलकर राजगद्दी से उतरा और नीचे आकर सभा में बैठ गया तो सारे मंत्री गण अपनी सीटों से खड़े हो गए क्योंकि उन्हे समझ नही आ रहा था कि आखिर ये सब क्या हो रहा है!

आखिर में हिम्मत करके मानसिंह बोला:"

" बेशक आप राज परिवार से नही हो लेकिन राज्य के लिए राजमाता ने आपको ही चुना था और उस हिसाब से आपको राज माता की आज्ञा का पालन करते हुए गद्दी को ग्रहण करना चाहिए!

विक्रम:" जब राजमाता ने ये निर्णय लिया था तो उस समय उन्हें सच्चाई का ज्ञान नहीं था लेकिन चूंकि अब सच्चाई सामने आ गई है तो उस निर्णय का कोई मतलब ही नही रह जाता !

मंगल सिंह:" लेकिन युवराज राजमाता का अंतिम निर्णय यही था और हमे इसका सम्मान करना चाहिए!

विक्रम:" राजमाता मेरे लिए हमेशा से पूजनीय रही हैं लेकिन किसी और के अधिकार को सब सच्चाई जानते हुए अपनाने के लिए मेरा स्वाभिमान मुझे रोक रहा है!

भीमा सिंह:" मेरे ख्याल से हमें सब को आपस मे मिलकर इसका समाधान निकालना चाहिए!

विक्रम:" मैं आप की बात से सहमत हु! आप जैसे आदेश करेंगे मेरे किए सर्वोपरी होगा!

भीमा सिंह:" ठीक हैं फिर आप अपने कक्ष में जाकर आराम कीजिए और मंत्री दल की आज की बैठक में फैसला लिया जाएगा कि आगे राज्य की बागडौर किसके हाथ में देनी चाहिए!

विक्रम बिना कुछ कहे अपनी सीट से उठा और चला गया और उसके साथ ही मेनका भी चली गई! विक्रम राज कक्ष में न जाकर सीधे अपने घर मेनका के साथ आ गया!

घर आकर विक्रम और मेनका आपस मे बात करने लगे और मेनका बोली:"

" आपने सही किया पुत्र जो महाराज का पद ठुकरा दिया! हमारे पूर्वजों ने तो राज्य की सेवा करने के लिए वचन दिया था न कि राज करने के लिए !

विक्रम:" सत्य वचन माता! मुझे किसी राज पाठ की अभिलाषा नही है! सच कहूं तो पहली बार आपके गले से लगकर एहसास हुआ कि माता का प्रेम क्या हैं ! जिंदगी में पहली बार ऐसा अद्भुत एहसास हुआ हैं!

मेनका उसकी बात सुनकर प्रेम भाव से भर गई और फिर से अपनी बांहे फैलाई और बोली:"

" सच में विक्रम तो फिर से आओ और अपनी माता के गले लग जाओ मेरे पुत्र!

विक्रम एक बार फिर से मेनका की बांहों में समा गया और मेनका ने भी उसे अपने आगोश में ले लिया और भावुक होते हुए बोली:"

" बस पुत्र अब मुझे छोड़कर मत जाना! आपके सिवा अब मेरा कोई और नहीं हैं इस दुनिया में! मैं अपनी सारी ममता आप पर लूटा दूंगी!

विक्रम भी उससे कसकर लिपट गया और बोला:" कभी नहीं कभी नही माता! आपका भी तो मेरे सिवा कोई नही हैं! मैं हमेशा आपकी परछाई बनकर आपके साथ रहूंगा!

मेनका ने खुशी खुशी विक्रम का मुंह चूम लिया और बोली:"

" आप बैठो मैं आपके लिए कुछ खाने को लाती हूं!

इतना कहकर मेनका अंदर चली गई और वहीं दूसरी तरफ राज दरबार लगा हुआ था और ऐसा पहली बार हो रहा था कि राज गद्दी पर कोई नही बैठा हुआ था!


भीमा सिंह:" राज गद्दी का खाली रहना अपशकुन माना जाता हैं! मेरे विचार से हमे जल्दी ही राज गद्दी के लिए राजा देखना चाहिए!

मानसिंह:" बिलकुल सही बात लेकिन सवाल यही हैं कि राज गद्दी किसे दी जाए? राजमाता ने तो विक्रम को राजा बनाने का फैसला किया था लेकिन विक्रम तो साफ मना करके चले गए!

सतपाल सिंह:" मेरे विचार से तो विक्रम ही इस गद्दी के लिए उपयुक्त हैं क्यूंकि राज महल में बड़े होने के कारण वो राज पाठ चलाने के सारे तरीके आते हैं और फिर दूसरी बात उन्हे राजा बनाना भी तो राजमाता का ही फैसला था!

भीमा:* लेकिन उस समय पर राजमाता को सच्चाई नही पता थी और दूसरी सबसे बड़ी बात विक्रम खुद राजा बनने से मना कर चुके हैं!

सतपाल:" विक्रम एक ऐसे परिवार परिवार से हैं जिसमे आत्म सम्मान कूट कूट कर भरा हुआ है फिर ऐसी हालत में जब उन्हें पता हैं कि वो राज परिवार से नही हैं तो वो किसी भी दशा में राज गद्दी स्वीकार नही करेंगे!

मानसिंह:" विक्रम नही तो फिर किसे राजा बनाया जाए ? किसी के पास कोई नाम हो तो बताए?

जसवंत सिंह:" मेरे खयाल से राज्य में अभी विक्रम से बड़ा योद्धा की नही हैं और फिर राजमाता भी यही चाहती थी कि विक्रम को ही राजा बनाए तो मुझे विक्रम के नाम पर कोई आपत्ति नही हैं! अगर नही तो विक्रम से बहादुर और शक्तिशाली कौन है उसका नाम बताया जाए ?

थोड़ी देर शांति रही और सब एक दूसरे का मुंह देखते रहे! किसी को कोई नाम समझ नही आ रहा था तो अंततः भीमा सिंह बोला:"

" मेरे ख्याल से हमें विक्रम को ही राजगद्दी देनी चाहिए! जब हम सब मिलकर फैसला लेंगे तो विक्रम को वो मानना ही पड़ेगा क्योंकि विक्रम कभी भी राज्य के अहित के बारे में नही सोच सकते!

भीमा की बात का सबने समर्थन किया और अंत में फैसला लिया गया कि विक्रम को ही राजा बनाया जायेगा!

भीमा:" जब हम सबने तय कर लिया है तो फिर आज ही विक्रम को राजा बनाना चाहिए क्योंकि आज का शुभ मुहूर्त राजमाता ने निकलवाया था!

भीमा की इस बात से सभी सहमत थे और थोड़ी देर बाद ही भीमा अपने साथ सतपाल और मानसिंह के लेकर विक्रम के घर पहुंचे और बोले:"

" विक्रम बेटा हमने सबकी सहमति से ये फैसला किया हैं कि आपको ही राजा बनाया जाए क्योंकि आपमें एक राजा के सारे गुण हैं!

विक्रम :" लेकिन मैं तो आप सबको अपना फैसला बता चुका हु कि मैं ऐसे खानदान से हु जो राज्य की सेवा के लिए वचनबद्ध हैं ना कि राज करने के लिए!

भीमा:" हम आपकी भावनाओं की कद्र करते हैं युवराज! लेकिन आपको समझना चाहिए कि आपके पिता श्री ने ही आपको महाराज की गोद में दिया था ताकि आप बड़े होकर उदयगढ़ को सही दिशा में ले सके! अब आप अपने पिता और स्वर्गीय महराज के फैसले के खिलाफ तो नही जा सकते और फिर राजमाता का अंतिम फैसला ही यही था!

विक्रम:* ठीक है लेकिन फिर भी मैं..........

विक्रम की बात खत्म होने से पहले ही सतपाल बोला:" राजा बनकर आप अपने पिता और महाराज के वचन को पूरा करेंगे तो निश्चित रूप से उनकी आत्मा आपको आशीर्वाद देंगी!

विक्रम ने हैरानी भरी नजरो से मेनका की तरफ देखा तो मेनका ने हालात को समझते हुए स्वीकृति में आपनी गर्दन को झुका दिया और विक्रम ने भी अपनी माता की आज्ञा का पालन किया! शाम होते होते विक्रम का राज तिलक किया गया और पूरे राज्य की बागडोर उसके हाथ में दे दी गई!
 

Premkumar65

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रात के करीब 9 बजे तक मेनका ने खाना तैयार कर दिया और उसके बदन में अजीब सी गुदगुदी हो रही थीं क्योंकि जबसे उसने वो लाल सुर्ख रंग की साड़ी और कांच की चूड़ियां देखी थी उसका मन मयूर नाच रहा था कि इनमे मे कितनी सुंदर लगूंगी!

अजय भी राज्य के सभी जरूरी काम निपटा कर और सुलतान की सुरक्षा व्यवस्था की सारी तैयारी देखने के बाद अपने घर की तरफ रवाना हो गया! अजय भी आज घर जाते हुए काफी खुश रहा था क्योंकि वो जानता था कि आज की रात उसकी जिंदगी की सबसे खूबसूरत रात होगी!

मेनका ने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ अजय का स्वागत किया और बोली:"

" बड़ी देर लगा दी आपने ! कहां थे पुत्र ?

अजय ने भी अपनी मां की मुस्कान का जवाब मुस्कान के साथ दिया और बोला:"

" बस राज्य के कामों में ही लगा हुआ था और सुलतान की सुरक्षा की जिम्मेदारी देख रहा था क्योंकि उन की सुरक्षा अभी सर्वोपरी हैं!

मेनका ने खाना टेबल पर लगा दिया था और बोली:" सुलतान के चक्कर मे अपनी माता को मत भूल जाना मेरे पुत्र!

अजय भी अपनी मां के पास बैठ गया और दोनो ने खाना खाना शुरू किया और बीच बीच में दोनो एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते रहे और मेनका के मुख मंडल पर शर्म की लाली छाई हुई थी!

खाना खाने के बाद मेनका ने बर्तन उठाए और धोने के लिए किचन में जाने लगी तो अजय भी उसके साथ ही कुछ बर्तन उठाकर किचन में आ गई तो मेनका हल्की सी हंसते हुए बोली

" योद्धाओं के हाथ में बर्तन नही तलवार शोभा देती हैं!

अजय भी मुस्कान का जवाब मुस्कान से देते हुए बोला:"सहमत हु माताश्री लेकिन एक सुंदर माता की घर के कार्यों में सहायता करना भी तो पुत्र का परम कर्त्तव्य होता हैं!

मेनका उसकी बात सुनकर अपने रूप सौंदर्य पर अभिमान करते हुए बोली:" चलो मान भी लिया मैं सुंदर लेकिन आपकी माताश्री हू पुत्र फिर आपका मेरे रूप सौंदर्य की ऐसी प्रशंसा करना अनुचित हो सकता है!

अजय मेनका के रूप सौंदर्य को निगाहे जमाकर देखते हुए बोला:"आप ईश्वर की बनाई हुई अदभुत अकल्पनीय सुंदरता की काम देवी हो माता! अब ऐसी सुंदरता की प्रसंशा न करना तो नियति के विरुद्ध होगा!

बर्तन धूल गए थे और मेनका उसकी बात सुनकर हल्की सी शर्मा गई और उसके गाल पकड़ कर खींचती हुई बोली:"

" लगता है आप कुछ ज्यादा ही शरारती हो गए हो! आपके लिए एक सुंदर कन्या देखनी पड़ेगी!

इतना कहकर मेनका किचन से बाहर की तरफ आई तो अजय भी उसका हाथ पकड़कर साथ में धीरे चलने लगा और बोला:"

" लेकिन मुझे बिल्कुल आपके जैसी रूप सौंदर्य वाली कन्या ही चाहिए! बिलकुल आपके जैसी कामदेव की रति!

मेनका उसकी बात सुनकर शर्म से लाल हो गई और आंखे चुराते हुए चलती हुई रुक सी गई और बोली:" बस पुत्र बस, एक माता की सुंदरता की ऐसी प्रसंशा करना पुत्र को शोभा नहीं देता! ये अनैतिक और मर्यादा के खिलाफ हैं!

अजय:" मेरे लिए तो आप सुंदरता की अद्वितीय मूर्ति हो माता! कितना ही रोकू लेकिन जब आप रंगीन वस्त्र धारण करके श्रंगार करती हो तो मर्यादा की लकीरें तार तार करने को मन करता है!

इतना कहकर अजय ने आज पहली बार हिम्मत करके उसके गाल को चूम लिया तो मेनका का समूचा वजूद कांप उठा और अपने आप में सिमटती चली गई और बोली:"

" अपने मन को वश में रखने का प्रयत्न कीजिए ना! किसी ने देख लिया तो कहीं मुंह दिखाने के काबिल नही रहूंगी मैं!

पहले से ही काम वासना से विह्ल हो रहे अजय पर मेनका की किसी ने देख लिया वाली बात ने उसकी काम वासना को और प्रचंड कर दिया क्योंकि वो समझ गया कि अगर सुरक्षित रूप से मिलन हो तो मेनका ज्यादा विरोध नही करेंगी और अजय ने अपने दोनो हाथों को उसकी कमर पर पूरी ताकत से कसते हुए उसकी गर्दन पर अपनी जीभ हल्की सी फेरते हुए धीरे से बुदबुदाया:"

" और अगर कोई न देखे तो फिर क्या होगा !!

मेनका अजय की इस हरकत से तड़प उठी और अजय से अपना हाथ छुड़ा कर तेजी से अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगी तो अजय ने फुर्ती से उसे पीछे से अपनी बांहों में कस लिया और उसका तना मजबूत लंड मेनका के चौड़े मजबूत पिछवाड़े के बीच में घुस गया तो मेनका के मुंह से आह निकल गई और बोली

" आह्ह्ह्ह्ह पुत्र छोड़ दीजिए मुझे!

मेनका के मुंह से निकली कामुक आह से अजय समझ गया कि आज की रात मेनका को आपत्ति नही हैं बस नखरे कर रही है तो उसके पेट पर एक हाथ रखकर उसे जोर से अपनी तरफ खींच लिया और उसकी गर्दन चूमते हुए बोला:" बताए ना मेरी अद्भुत कामुक माताश्री कोई ना देखे तो क्या होगी!

मेनका अब पूरी तरह से सुलग उठी थी और उसकी बांहों में कसमसाते हुए सिसकी:"

" अह्ह्ह्ह पुत्र! ऐसी कोई जगह नही जहां कोई न देखे!

अजय ने अपनी जीभ से उसकी गर्दन पर चाट लिया और एक हाथ को उसकी कम्पन कर रही छातियों पर रख दिया और अपने लंड का जोर उसकी गांड़ की गोलाईयों पर देते हुए कामुक अंदाज में फुसफुसाया:"

" हमारे तहखाने में कोई नही देखेगा! अब बताए ना क्या होगा अगर कोई न देखे तो !

इतना कहकर उसने मेनका की छातियों को हल्का सा मसल दिया और मेनका एक झटके के साथ पलटी और उसके होंठ चूमकर अपने कक्ष में में घुस गई जीभ चिढ़ा कर बोली:"

" मुझे नही पता क्या होगा आज रात तहखाने में!

इतना कहकर उसने दरवाजा बंद कर लिया और अजय तड़पते जोर से हुए बोला:"

" आज रात तहखाने में अपनी माता की अद्भुत रूप सौंदर्य का पूर्ण नंग दीदार करूंगा, जी भरकर प्यार करूंगा!

मेनका उसकी बात सुनकर शर्म से पानी पानी हो गई और कुछ नही बोली और अजय बेचैनी से उधर उधर घूमता रहा और करीब आधे घंटे के बाद मेनका बाहर निकली तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गई क्योंकि लाल रंग की साड़ी में लिपटी हुई किसी दुल्हन की तरह लग रही थी और अजय ने आगे बढ़कर उसे बिना कुछ बोले अपनी गोद में उठा लिया तो मेनका उसकी छाती में मुक्के बरसाती हुई कसमसाई:"

" अह्ह्ह्ह क्या करते हो पुत्र!नीचे उतारिए हमे!

अजय ने उसके रसीले होंठों क्या हल्का सा चुम्बन लिया और उसकी आंखो में देखते हुए बोला:" नीचे ही तो उतारूंगा पूरी रात आपको लेकिन जमीन पर नही अपने मजबूत बदन के नीचे मेरी जान मेनका!

उसकी बात सुनकर मेनका शर्म के मारे उसकी गर्दन में अपनी दोनो बांहे डालकर उससे लिपट गई और अजय ने जैसे ही तहखाने का दरवाजा खोला तो मेनका की चूत के होंठ फड़फड़ा उठे और कसकर अजय से लिपट गई! अजय ने मेनका को बेड के करीब अपनी गोद से उतार दिया तो और उसकी आंखो में देखा तो मेनका शर्म से लाल हो गई और अजय ने आगे बढ़कर उसके होंठो पर अपने होंठो को रखा दिया और दोनो मदहोश होकर एक दूसरे के होंठो को चूसने लगे! अजय का एक हाथ उसके कंधे पर आया और जैसे ही मेनका की साड़ी की स्ट्रिप खुली तो मेनका की साड़ी खुलती चली गई और अब वो कांपती हुई ब्लाउस में उससे कसकर लिपट गई और अजय ने बेताबी दिखाते हुए उसकी उसकी साड़ी को पूरा खोल दिया तो मेनका की साड़ी उसके बदन से पूरी तरह से अलग हो गई और मेनका ने काम वासना से पागल होते अपनी जीभ को अजय के मुंह में सरका दिया और अजय मस्ती से उसकी जीभ को चूसने लगा और दूसरे हाथ से उसके ब्लाउस को खोल दिया और मेनका की पीठ अन्दर ब्रा ना होने के कारण पूरी नंगी होती चली गई! मेनका के मुंह से मस्ती भरी आह निकल पड़ी और अजय ने जैसे ही उसकी नंगी कमर को छुआ तो मेनका मछली की तरह फुदकती हुई उसकी बांहों में पलट गई और जैसे कमरे मे आग लग गई क्योंकि मेनका के पलटते ही उसकी गोल मटोल गद्देदार पपीते के आकार की बड़ी बड़ी मस्तानी चूचियां अजय के हाथ में आ गई और दोनो की आंखे एक साथ मस्ती से बंद हो गई और तभी एक एक जोरदार आवाज से दोनो की आंखे खुली तो आंखे फटी की फटी रह गई

" वाह अजय वाह तो ये हैं आपका और आपकी माता का असली चरित्र!

सामने युवराज विक्रम सिंह को देखकर दोनो मां बेटे की आंखे शर्म से झुक गई और अजय ने साड़ी को उठाकर मेनका के जिस्म पर ढक दिया और दोनो एक साथ विक्रम के पैरो में गिर पड़े और बोले:"

" हमे माफ कर दीजिए युवराज! अगर किसी को ये बात पता चली तो हम जी नही पायेंगे!

युवराज बिना कुछ बोले गुस्से से वापिस जाने लगा तो अजय उसके पैर पकड़ कर बोला:"

" हमे माफ कर दीजिए युवराज! सच में हमने न क्षमा करने वाला अपराध किया हैं! लेकिन इसमें सिर्फ मेरी गलती हैं मेरी माता निर्दोष हैं!

युवराज गुस्से से:" मैने आपको पूरे राज्य और महल की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी और आप वो सब भूलकर यहां अपनी माता के साथ राते रंगीन कर रहे हो!

अजय की आंखो से आंसू छलक पड़े और रोते हुए बोला:" मुझसे अपराध हुआ हैं युवराज! आप चाहे तो सजा दीजिए मुझे स्वीकार होगी!

युवराज दोनो के आंसुओं को देखकर हलका सा पिघला और बोला:" आपकी इस लापरवाही की वजह से राजमाता नही मिल रही है! शायद उन्हें कोई उसके कक्ष से उठाके ले गया हैं!

अजय एक झटके के साथ खड़ा हुआ और बोला:" ऐसा न कहे युवराज! जिसने भी ऐसी हरकत करी है उसकी गर्दन उसके सिर से उड़ा दूंगा मैं!

युवराज:" नही अजय! मुझे अब तुम्हारी कोई जरूरत नहीं! मेरी लड़ाई मुझे खुद लड़नी पड़ेगी!

मेनका पहली बार हिम्मत करके बोली:" युवराज आप हमे हमारे कर्मो की जो चाहे सजा देना लेकिन अजय को उसका कर्तव्य निभाने से मत रोकिए! इतना कहकर मेनका ने उसके सामने हाथ जोड़ दिए और मेनका को युवराज ने ध्यान से देखा तो विषम परिस्थितियों में भी मन ही मन उसके सजे धजे रूप सौंदर्य की प्रशंसा किए बिना न रह सका और बोला:"

" ठीक हैं आपके परिवार के बलिदान और त्याग को देखते हुए अजय को ये मौका देता हू लेकिन ये मत समझना कि मैने आप दोनो को माफ कर दिया है!

इतना कहकर युवराज बाहर निकला तो अजय भी उसके साथ साथ निकल गया और दोनो की आंखो से अब गुस्से की चिंगारिया निकल रही थी!!
KLPD kar di yuvraj ne.
 
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उदयगढ़ में आपातकालीन सभा लगा हुई थी और राज्य के सभी छोटे बड़े अधिकारी मौजूद थे!

विक्रम:" राजमाता का राज्य से अचानक गायब हो जाना किसी बड़े खतरे का संकेत है! हमे किसी भी हालत में उन्हे ढूंढकर वापिस लाना ही होगा! मुख्य द्वार के पहरे पर कौन होता हैं ?

एक सिपाही आगे आता हैं और सिर झुकाकर बोला:" महाराज मैं ही था लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ तो संदेह वाला हो!

विक्रम ने उसे घूरकर देखा और जाने का इशारा किया और सभी से बोला:" जाइए और पूरा राज्य ढूंढ निकालिए! आधे घण्टे के अंदर हमे राजमाता वापिस चाहिए!

अजय सावधानी से इधर उधर देख रहा था और उसके दिमाग में एक विचार आया और सभी लोग जा रहे थे तो अजय ने धीरे से विक्रम को कहा:"

" युवराज सारे मंत्री और अधिकारी यहां हैं लेकिन शक्ति सिंह नही हैं!

अजय की बात सुनकर विक्रम ने नजर उठाकर देखा और उसे भी शक्ति सिंह कहीं नजर नहीं आया तो उसने उस सिपाही को वापिस बुलाया और पूछा:"

" कल जब तुम पहरे पर थे क्या शक्ति सिंह वहां से गया था ?

सिपाही:" हान महाराज गया था और देर रात तक भी वापिस नही लौटा था!

विक्रम:" क्या तुमने उसके बग्गी को चेक किया था?

सिपाही की नजरे शर्म से झुक गई और इधर उधर देखते हुए थूक गटकने लगा तो विक्रम ने एक थप्पड़ उसे जड़ दिया तो सिपाही चींखता हुआ दूर गिरा और उसके मुंह से खून आने लगा!

विक्रम ने अपना सिर पकड़ लिया क्योंकि वो समझ गया था कि राजमाता किसी बहुत बड़ी मुश्किल में फंस गई है!अजय ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला:" आप फिक्र न करें युवराज सब ठीक होगा! राजमाता भी कुशलता पूर्वक वापिस आयेगी और शक्ति सिंह को उसकी गद्दारी की सजा भी मिलेगी!

विक्रम की आंखे सुलग रही थी और जबड़े भींचते चले गए और बोला:" हम शक्ति सिंह को जिंदा नही छोड़ेंगे !! जाओ सभी और ढूंढो उस गद्दार को!

सभी लोग सारे राज्य, जंगल और उसके आस पास के इलाके मे ढूंढते रहे लेकिन कोई सुराग नही मिला पाया तो किसी तरह रात कटी और अगले दिन सुबह फिर से ढूंढ मच गई लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात!

जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था युवराज का दिल बैठता जा रहा था! तभी एक सैनिक दौड़ते हुए आया जिसके हाथ में एक लिफाफा था और बोला:"

" युवराज एक अजनबी घुड़सवार आपके लिए छोड़ कर भाग गया!

विक्रम ने बेताबी से उसे फाड़ा और पढ़ने लगा:"

" राजमाता हमारे कब्जे में है और और उनकी जिंदगी चाहते हो तो चुप चाप काली पहाड़ी पर बने पुराने किले पर अजय के साथ आ जाओ रात 9 बजे!

विक्रम ने गुस्से से खत को बंद किया तो अजय जो कि पत्र पढ़ चुका था कठोर लहजे में बोला:"

" आप फिक्र नहीं करे युवराज! चलने की तैयारी कीजिए! हम दोनो जी पूरी सेना पर भारी है!

दोनो ने अपने आपको हथियारों से सुसज्जित किया और उसके बाद बिना देर किए दोनो घोड़ों पर सवार होकर काली पहाड़ी की तरफ निकल गए! अजय पूरी तरह से आश्वस्त था कि वो आराम से राजमाता को बचाकर वापिस ले आयेंगे क्योंकि जब तक उसके पास वो खानदानी तलवार हैं दुनिया में को उसका कुछ बिगाड़ सकता!

करीब 9 बजे दोनो काली पहाड़ी पर पहुंच गए और देखते ही देखते दोनो की चारो से हथियार बंद सैनिकों ने घेर लिया और सामने ही राजमाता किले की दीवार पर बंधी नजर आई और नजर आया शक्ति सिंह जो कुटिल मुस्कान के साथ बोला:"

" आओ युवराज आओ! सच में आपकी मूर्खता की दाद देनी पड़ेगी जो दोनो यहां मरने के लिए चले आए!

अजय:" किसकी मौत आई है ये तो तुझे थोड़ी देर बाद पता चल ही जाएगा गद्दार! लेकिन तेरी अंदर इतनी हिम्मत कहां से आ गई जो तू राजमाता को उठा लाया!

तभी दीवार के पीछे से जब्बार और पिंडाला निकाल आए और देखते ही देखते करीब 100 से ज्यादा पिंडारियो ने उन्हे घेर लिया और जब्बार बोला:"

"आओ युवराज और अजय तुम दोनो का मौत के मुंह में स्वागत है आज!

युवराज ने अपनी तलवार को बाहर निकाला और बोला:"

" किसकी मौत आयेगी ये तो तेरी गर्दन कटने के बाद ही तुझे समझ आएगा जब्बार!!

राजमाता सामने दीवार पर बंधी हुई थी और उसके मुंह में कपड़े ठूंसा हुआ था जिस कारण कुछ बोल नहीं पा रही थी! विक्रम और अजय दोनो राजमाता की ये दुर्दशा देखकर गुस्से से दुश्मनों पर टूट पड़े और देखते ही देखते जंग का मैदान बन गई काली पहाड़ी! तलवारों के टकराने की आवाजे गूंज रही थी और मरते हुए सैनिक चींख रहे थे! लेकिन अजय मानो आज सारी दुनिया की ताकत अपने अंदर समेटे हुए था और उसकी तलवार बिजली की तरह चमक रही थी और पिंडारियो को गाजर मूली की तरह काट रही थी! ये देखकर जब्बार बौखला गया और बोला:"

" जल्दी से अपनी योजना को अंजाम दो नही तो हम सबकी लाशे पड़ी होगी यहां!

पिंडाला ने भी खतरे को महसूस किया और देखते ही देखते पिंडाला, शक्ति सिंह और जब्बार तीनों ने एक साथ विक्रम पर वार करना शुरू कर दिया और विक्रम बेहद बहादुरी से सबका मुकाबला कर रहा था! अजय ने एक नजर युवराज को देखा जो चारो तरफ से घिरा हुआ था और उसने लड़ते हुए युवराज की तरफ बढ़ना शुरू किया ! युवराज लगातार चारो तरफ से हो रहे हमलों का जवाब देते हुए थोड़ा पीछे हटता गया और जब्बार की आंखो में चमक आने लगी! अजय पूरी ताकत से अपनी तलवार चला रहा था और दुश्मनों के सिर कटकर गिर रहे थे लेकिन युवराज अभी भी उससे बहुत दूर था!

पिंडाला ने तेजी से तलवार के वार किए और विक्रम बचाव करते हुए जैसे ही पीछे हटा तो पहले से बनाए हुए गड्ढे में उसका पैर आया और जैसे ही वो लड़खड़ाया तो जब्बार के एक शक्तिशाली वार पीछे से किया और युवराज के हाथ से तलवार छूट कर गिर पड़ी और शक्ति सिंह ने बिना देर किए अगला वार किया और युवराज के कंधे से खून निकल आया! पिंडाला ने अगला वार किया और युवराज ने उसकी तलवार को पकड़ लिया और दोनो एक दूसरे से उलझ पड़े! इसी बीच अजय जो सैनिकों से घिरा हुआ था चाहकर भी कुछ मदद नही कर पा रहा था और शक्ति सिंह और जब्बार कभी युवराज के पैर पर तो कभी उसके हाथो पर वार कर रहे थे और युवराज उनकी चाल को समझ गया था कि वो क्यों उसे मार नही रहे तो वो दर्द से कराहते हुए चिल्लाया:"

" अजय अपनी तलवार मत छोड़ना, ये मुझे नही मार सकते!

लेकिन युद्ध में टकराती हुई तलवारों के शोर के आगे उसकी आवाज सब सी गई और युवराज के जिस्म से बहते खून को देखकर अजय अंधे की तरह तलवार चलाते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अब अपने जीवन की भी कोई परवाह नही थी क्योंकि युवराज का जीवन ही उसके लिए सर्वोपरि था!

देखते ही कई घाव अजय के जिस्म पर हो गए थे लेकिन वो पीछे हटने के बजाय आगे ही बढ़ता जा रहा था और तभी शक्ति सिंह ने अपनी तलवार से पूरी फुर्ती से युवराज विक्रम की गर्दन पर वार किया और यही अजय से चूक हो गई क्योंकि उसने अपनी तलवार से निशाना बनाते हुए शक्ति सिंह के हाथ पर वार करते हुए अपनी तलवार को हवा मे फेंक दिया और तलवार शक्ति के हाथ पर लगी और उसका हाथ कटकर दूर जा गिरा और अगले ही कई सारी तलवार निहत्थे अजय पर टूट पड़ी और अजय का जिस्म कई जगह से कट गया और अजय तड़पते हुए आगे बढ़ा और पिंडारी को गले से पकड़ लिया और देखते ही देखते उस पिंडारी का दम घुटने लगा और पीछे से एक के बाद एक ताबड़तोड़ वार अजय पर होने लगे लेकिन उसकी पकड़ ढीली नही हुई और अंत में दोनो एक साथ जमीन पर गिर पड़े!

वहीं दूसरी तरफ विक्रम ये सब देखकर पागल सा हो गया और एक तेज झटका हवा में खाते हुए गड्ढे से बाहर निकल कर अजय की तरफ लपका लेकिन तब तक अजय विक्रम की तरफ देखते हुए दम तोड चुका था!

अजय की मौत से विक्रम अपना मानसिक संतुलन खो बैठा और विक्रम ने अब बिना खौफ के पिंडारियो पर हमला कर दिया और इसी बीच कई घाव विक्रम के जिस्म पर हुए और काफी खून बहने लगा!

पीछे से पिंडाला ने एक वार उसकी कमर पर किया और दर्द से तड़प कर युवराज जमीन पर गिर पड़ा और उसे चारो और से घेर लिया! जब्बार ने उसे एक जोरदार लात मारी और बोला:"

" आखिरकार तुम हमारे जाल ही फंस ही गए युवराज!

पिंडाला हंसते हुए बोला:" फंसता कैसे बाजी नही क्योंकि हमने इसी चाल के दम पर तो इन दोनो के पिता को खत्म किया था!

जब्बार:" बस हमें उस जादुई तलवार से खतरा था तो अजय के मरने के बाद उस उसकी की भी कहानी खत्म!

विक्रम दर्द से कराह रहा था और चारो और से उसके ऊपर लात घूंसे बरस रहे थे और विक्रम दर्द से बेहाल होकर बोला:"

" राजमाता को आजाद कर दो जब्बार, चाहे तो मेरी जान ले लो!

पिंडाला जोर जोर से हंसने लगा और बोला:" राजमाता तो कब की आजाद हो गई है युवराज लेकिन हमारी कैद से नही बल्कि जिंदगी की कैद से मुक्त हो गई है वो!

विक्रम को लगा मानो उसके जिस्म से जान निकल गई हो और उसने खड़े होने की कोशिश करी तो पिंडाला ने उसे एक जोरदार धक्का दिया और विक्रम दूर जाकर गिरा और जब्बार अपने सैनिकों से बोला:"

" खत्म कर दो इसे भी जाओ! मेरा मुंह क्या देखते हो !!

सभी सैनिक एक सात आगे बढ़े और विक्रम ने मदद के लिए उधर इधर देखा लेकिन कोई मौजूद नही था! तभी उसकी नजर एक तलवार पर पड़ी लेकिन अगले ही पल उसकी आंखो में निराशा छा गई क्योंकि ये तो अजय की वही खानदानी तलवार थी जिसे सिर्फ उसके परिवार के लोग ही उठा सकते थे और बाकी कोई उठाए तो हाथ लगाते ही मौत निश्चित थी! एक सैनिक ने विक्रम पर तलवार का वार किया और मरता क्या न करता वाली बात विक्रम पर पर लागू हुई और उसने तेजी से हाथ आगे बढाया और अजय की तलवार को हाथ में उठा लिया और अगले ही तलवार चली और सैनिक की गर्दन दूर जा गिरी! विक्रम को यकीन नही हो रहा था कि उसके हाथ में अजय की खानदानी तलवार हैं लेकिन ये समय यकीन करने का नही बल्कि युद्ध करने का था और वही विक्रम ने किया और देखते ही देखते सैनिकों के सिर कट कर जमीन पर गिरने लगे और काली पहाड़ी पर आतंक मच गया क्योंकि सैनिकों के पांव उखड़ने लगा! विक्रम को छूना तो दूर की बात कोई उस पर वार भी नही कर रहा था और देखते ही देखते सैनिक जान बचाकर भाग खड़े और पिंडाला, जब्बार और शक्ति सिंह हैरानी से ये सब देख रहे थे मानो उन्हे अपनी आंखो पर यकीन नही हो रहा था!

जब्बार थोड़ा घबराते हुए बोला:" भागो अगर अपनी जान बचानी हैं तो यहां से!

इतना कहकर जब्बार भाग खड़ा हुआ और उसके पीछे ही देखते देखते पिंडाला भी भाग खड़ा हुआ और शक्ति सिंह भी भागने लगा लेकिन उसकी गति घायल होने के कारण उतनी नही थी और विक्रम ने शेर की तरह उछलते हुए उसे पकड़ लिया और शक्ति सिंह विक्रम के पैरो में गिर पड़ा और माफी मांगने लगा

" मुझे माफ कर दीजिए युवराज!

विक्रम ने शक्ति सिंह के दूसरे हाथ को भी काट दिया और उसके बाद विक्रम ने अजय और राजमाता के शव उठाए और शक्ति सिंह को घोड़े के पीछे पैरो से बांध कर खींचते हुए राज्य की तरफ बढ़ गया!

विक्रम के दिमाग में तूफान मचा हुआ था और उसकी आंखो से आंसू बह रहे थे! उसने सपने में भी नही सोचा था कि अजय उसे ऐसे छोड़कर जायेगा! विक्रम उनकी सारी चाल समझ गया था और उसने अजय को समझाया भी लेकिन अजय ने उसकी जान बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी ये सब सोच सोच विक्रम का दिल रो रहा था और साथ ही साथ उसे एक बात और हैरान कर रही थीं कि वो अजय के परिवार की जादुई तलवार कैसे उठा सकता हैं जबकि वो परिवार तो सिर्फ उसके ही परिवार के लोग उठा सकते हैं! उनके अलावा कोई और छुए तो मौत निश्चित हैं! इन्ही सब दुविधाओ में घिरा हुआ वो उदयगढ़ की सीमा में घुस गया और थोड़ी ही देर में पूरे राज्य में राजमाता गायत्री देवी और अजय की मौत की खबर फैल गई और जनता बाहर महल के चारो तरफ इकट्ठा हो गई और सभी गायत्री देवी और अजय की मौत का शोक मानने लगे और जनता बार बार चिल्लाकर चिल्ला कर शक्ति सिंह को उसके हवाले करने की बात कर रही थी!

मेनका के जैसे ही अजय के शहीद होने की खबर मिली तो वो बेहोश हो गई और काफी कोशिश के बाद उसे होश आया तो दहाड़े मार मार कर रोने लगी और विक्रम उसे बार बार दिलाशा देता रहा लेकिन मां की ममता भला कैसे अपने आपको रोक पाती और मेनका बार बार बेहोश होती रही! अगले दिन सुबह तक ये बात आस पास के राज्य में पहुंच गई और जैसे ही सीमा और सलमा को पता चला तो दोनो रो पड़ी और जैसे तैसे करके सलमा ने सीमा को संभाला और सीमा के लिए उदयगढ़ जाने का प्रबंध किया! सलमा का भी बड़ा मन था लेकिन जब्बार के पहले और बंदिशों के चलते वो मजबूर थी लेकिन सीमा उदयगढ़ पहुंच गई थी! करीब 11 बजे के आस पास अजय और गायत्री देवी की लाश को अग्नि दी गई और अग्नि से ज्यादा लोगो की आंखे गुस्से से जल रही थी और उनमें से ही दो आंखे सीमा की भी थी जिनके आंसू अब सूख गए थे और उनमें से सुर्ख चिंगारी निकल रही थी! उसने कसम खाई कि जब तक वो अजय के हत्यारों को मौत की नींद नही सुला देगी चैन से नहीं बैठेगी!!
Action packed update.
 
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राजमाता और अजय की मौत के दुख में उदयगढ़ में चूल्हे नही चढ़े और प्रजा गुस्से से भरी हुई थी और शक्ति सिंह को नगर के बीचों बीच फांसी देने की मांग कर रही थी और विक्रम ने उनकी मांग को पूरा किया और अगले ही दिन शक्ति सिंह को नगर के बीच चौराहे पर फांसी दे दी गई! शक्ति सिंह की विधवा बीवी और बच्चो ने उसका शव लेने से मना कर दिया और उसकी लाश को पहाड़ी पर से लावारिश की तरह ही फेंक दिया गया!

करीब एक हफ्ते तक राजकीय शोक चलता रहा और आखिर में उदयगढ़ के सलाहकार ने विक्रम को सलाह दी :"

" युवराज क्षमा करना लेकिन ये शोक का समय नही हैं! राजमाता और अजय की मौत का सारे राज्य की बेहद दुख हैं लेकिन हमे हर हाल में खुद को संभाल कर उनकी मौत का बदला लेना ही होगा!

विक्रम ने अपने आंसू साफ किए और बोला:" मैने तो अपना सब कुछ ही खो दिया है और मुझे अब मौत की कोई परवाह नही है! जब तक मैं राजमाता और अजय की मौत का बदला नही लूंगा चैन से नही बैठने वाला!

सलाहकार:" ठीक हैं महाराज! आप कल से राज्य सभा और मंत्री दल की बैठक में सारी योजना बनायेगें!

इतना कहकर सलाहकार चला गया और विक्रम ने अजय के घर जाने का फैसला किया ताकि वो उसकी माता मेनका को हिम्मत दे सके! विक्रम मेनका के घर पर पहुंचा तो घर का दरवाजा खुला हुआ मिला और मेनका वही पास में ही फर्श पर पड़ी हुई मिली जिसकी आंखे आंसुओं से भीगी हुई थी! विक्रम के कदमों की आहत सुनकर वो खड़ी हो गई और उसकी आंखो से आंसू बहते रहे तो विक्रम को उस पर दया आई और बोला:"

" देखिए मैं आपका दुख समझ सकता हु लेकिन आपको फख्र होना चाहिए कि आप एक वीर और बहादुर बेटे की मां हो जिस पर पूरा राज्य अभिमान कर रहा हैं!

मेनका की रुलाई फुट गई और दोनो हाथों से अपना चेहरा ढककर रोने लगी तो विक्रम ने हिम्मत करके उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया और बोला:"

" एक वीर योद्धा की माता की आंखो में आंसू शोभा नही देते! हमने भी तो अपनी माता गायत्री देवी को खोया हैं लेकिन हमारी आंखों में आंसू नहीं बल्कि दिल में प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही है और ये ज्वाला उसी दिन ठंडी शांत जब हम अजय की हत्या का बदला ले लेंगे! आप एक वीरांगना हैं और वीरांगना के हाथो में तलवार होती हैं आंखो में आंसू तो बिलकुल भी नहीं !

विक्रम की बात सुनकर मेनका को याद आया कि उसने भी तो अपनी मां को खो दिया है तो उसके दिल में सहानुभूति उमड़ आई और अपने आंसू साफ करते हुए बोली:" हम आपका दुख समझ सकते हैं युवराज क्योंकि आप और मैं दोनो एक जैसी ही स्थिति का सामना कर रहे हैं! लेकिन मुझे एक बात समझ नही आ रही है कि तलवार होने के बाद भी अजय को कैसे मार दिया गया ?

विक्रम ने लंबी आह भरी और दुखी स्वर के साथ बोला:" हम लोग एक षडयंत्र का शिकार हुए! राजमाता बचाने के लिए हम लड़े और जान बूझकर जब्बार और पिंडारियो ने मुझ पर हमला किया और पहले से ही बनाए गए गड्डे में मेरा पैरा फंसा और मेरे हाथ से तलवार गिर पड़ी तो मैं ढाल से लड़ता रहा और उनकी सारी चाल समझ गया और अजय को बताए कि तलवार अपने हाथ मे रखे लेकिन मुझे मुश्किल में जानकर अजय मेरी तरफ मुझे बचाने के लिए बढ़ा और अंत मे उसने मेरी मौत निश्चित जानकर मेरी तरफ तलवार का वार करने वाले को अपनी तलवार फेंक कर मार डाला और उसके बाद सब ने निहत्थे अजय पर वार किया और मैं लाख कोशिश करने के बाद भी उसे नही बचा सका!

इतना कहकर विक्रम की आंखो में आंसू आ गए और मेनका भी रुंधे गले के साथ बोली:"

" मेरे बेटे ने भी अपने अपने पिता की तरह अपने राज धर्म का पालन करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया!

थोड़ी देर चुप्पी छाई रही और दोनो ही अपने अपने आंसू रोकने का प्रयास करते रहे और मेरी विक्रम बोला:"

" मैने तो मान ही लिया था कि आज मेरी भी मृत्यु निश्चित हैं और मेरा शरीर जख्मी हो गया था लेकिन फिर जो हुआ वो अविश्वसनीय था!

मेनका ने उसकी तरफ देखा और बोली:" ऐसा क्या हुआ युवराज?

विक्रम:" मृत्यु को निश्चित जानकर मैने अपने पास पड़ी हुई अजय की तलवार को हाथ में उठा लिया और सब दुश्मनों पर टूट पड़ा!

मेनका का मुंह खुला का खुला रह गया और उसकी आंखे आश्चर्य से फैल गई और बोली:" असंभव, ऐसा होना नामुकिन हैं क्योंकि हाथ लगाते ही मौत निश्चित है!

विक्रम ने अपने हाथ को अपनी कमर के पीछे किया और अब उसके हाथ में वही अजय की जादुई तलवार थी और मेनका को दिखाते हुए बोला:"

" ये देखिए आप! यही वो आपकी तलवार हैं और मुझे खुद यकीन नही हो रहा है कि मैं इसे कैसे उठा सकता हूं ?

मेनका ने उसकी हाथ में थमी हुई तलवार को देखा और उसकी आंखो में सारी दुनिया का आश्चर्य था और ध्यान से तलवार को देखती हुई बोली:"

" सचमुच ये तो हमारी ही तलवार हैं लेकिन आपके हाथ मे कैसे आ सकती हैं मुझे खुद समझ नही आ रहा है!

विक्रम ने तलवार को चूम लिया और बोला:" आज इसी तलवार की वजह से मैं जिंदा हु क्योंकि अगर ये तलवार नही होती तो मेरी मृत्यु निश्चित थी!

" ईश्वर का धन्यवाद जो आप जिंदा है नही तो प्रजा बेचारी अनाथ हो जाती! ईश्वर आपको हमेशा खुश रखे!

मेनका के स्वर में अब थोड़ी बैचैनी आ गई थी और उसे पता नही क्यों विक्रम बिलकुल अपने जैसा ही लग रहा था और उसके दिल से उसके लिए करोड़ों दुआएं निकल रही थी!

विक्रम:" आप अपना ध्यान रखिए और किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे बताएगा!

मेनका कुछ नही बोली और चुपचाप अपना सिर हिला दिया तो विक्रम बोला:"

" अच्छा ये अपनी अमानत आप रख लीजिए!

इतना कहकर विक्रम ने तलवार को मेनका की तरफ बढ़ाया तो मेनका ने तलवार को हाथ में लिया और फिर से उसे वापिस विक्रम को देती हुई हुई:"

" आज से आप ही इसके वारिस हैं युवराज! आपका कर्तव्य होगा कि आप पूरे राज्य और नागरिकों की रक्षा करे!

इतना कहकर पता नहीं किस भवावेश में आकर मेनका ने विक्रम का माथा चूम लिया और विक्रम ने तलवार को हाथ में लिया और बोला:"

" आपकी सौगंध खाता हु बहुत जल्दी ही जब्बार और पिंडाला की लाशे आपके कदमों में पड़ी हुई मिलेगी या फिर मेरी लाश!

विक्रम की बात सुनकर मेनका का दिल भर आया और उसके होंठो पर हाथ रखकर बोली:

" ऐसे अशुभ बाते मुंह से नही निकालते युवराज! ईश्वर आपको मेरी भी उम्र प्रदान करे!

विक्रम के दिल में भी मेनका के लिए हमदर्दी आ गई थी और बोला:" अच्छा मैं अब चलता हु मुझे कुछ दूसरे काम भी पूरे करने हैं! मैं बीच बीच में आता रहूंगा! किसी भी चीज की जरूरत हो तो आप निसंकोच मुझे कहिएगा!

इतना कहकर विक्रम चला गया और मेनका उसे जाते हुए देखती रही! मेनका को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि विक्रम उनकी तलवार को कैसे उठा सकता था! क्या ये कोई करिश्मा है या कुछ ऐसी घटना जो उससे छुपाई गई हो! मेनका ने सोच लिया था कि वो जरूर इस सच्चाई का पता लगाकर रहेगी!

दूसरी तरफ मेनका से मिलने के बाद विक्रम सुलतान के हाल चाल पूछने उनके पास गया और जैसे ही अजय और राजमाता की मौत की खबर मिली तो उन्हे बेहक अफसोस हुआ और बोले:"

" ये सब शायद मेरी वजह से हुआ है विक्रम! ना आप मुझे बचाकर लाते और ना ही वो आपसे बदला लेने के लिए ऐसा करते!

विक्रम ने सुलतान का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला:" आप इसके खुद को दोष मत दीजिए! ईश्वर की इच्छा के आगे किसी की नही चलती! एक पूरी खबर है कि पूरी तरह से सुल्तानपुर पर जब्बार का कब्जा हो गया है!

सुलतान थोड़ा चिंतित दिखाए दिए और बोले:" जब्बार को तो मैं ऐसी मौत मारूंगा कि उसकी रूह भी कांप उठेगी बस एक बार मैं पूरी तरह से ठीक हो जाऊ!

विक्रम की आंखे हो गई और गुस्से से बोला:" आप मुझे वचन दीजिए कि आप जब्बार को नही मारेंगे! वो अब मेरा शिकार हैं !

सुलतान ने सहमति में सिर हिलाया और बोला:" सल्तनत मे अभी भी मेरे कई सारे वफादार है और मेरे जिंदा होने की खबर से ही सारी प्रजा मेरे साथ आ जायेगी! किसी तरह हम सलीम को सही दिशा में लाना होगा!

विक्रम: आप फिक्र मत कीजिए! मैं जल्दी ही खुद सुल्तानपुर जाऊंगा और एक फिर हालात का अच्छे से जायजा लूंगा और आपको सब बाते बताऊंगा! तब तक आप आराम कीजिए और अपना ख्याल रखिएगा! मैं फिर से आऊंगा!

इतना कहकर विक्रम बाहर निकल आया और वैद्य जी से मिला और बोला:"

" वैद्य जी सुलतान आपके घर में हैं ये बात आप और मैं जानते हैं! किसी तीसरे आदमी को पता चला तो आप इसका परिणाम खुद सोच लेना!

वैद्य:" आप निश्चित रहे युवराज! मरने के बाद भी मेरी जुबान बंद ही रहेगी!

विक्रम ने वैद्य का कंधा थपथपाया और फिर बाहर निकल गया और महल में पहुंच कर देखा कि कबूतर शहजादी सलमा का खत लिए हुए था और युवराज ने उसे पढ़ा"

" मेरे प्रियतम विक्रम"

अजय और राजमाता की मौत ने मुझे बुरी तरह से अंदर से झकझोर दिया है और मैं अंदाजा लगा सकती हू कि आप पर इस समय क्या बीत रही होगी! यहां सुल्तानपुर में भी हालत बेहद खराब हैं और जब्बार ने पूरी तरह से मेरे और अम्मी के बाहर निकलने पर रोक लगा दी है तो मैं चाह कर भी आपसे नही मिल पा रही हूं! आप इस मुश्किल समय में खुद को संभालिए! मेरे अब्बा सुलतान का भी ख्याल रखिएगा!

मैं कल से रोज रात में 12 बजे गुप्त द्वार के अंतिम छोर पर 5 मिनट आपकी प्रतीक्षा किया करूंगी! आशा है आप जल्दी ही मौका देखकर मुझसे मिलने आयेंगे!

" आपकी शहजादी सलमा"

खत पढ़कर विक्रम को एहसास हुआ कि पिछले कुछ दिनो में वो शहजादी को तो पूरी तरह से भूल ही गया था! विक्रम ने मन ही मन फैसला किया कि वो जल्दी ही अच्छा देखकर एक बार सुलतानपुर जायेगा!


वहीं दूसरी तरफ पिंडाला और जब्बार दोनो बैठे हुए थे और जब्बार बोला:"

" हमारी सारी बनी बनाई योजना पर पानी फिर गया! साला एक बात समझ नही आई कि अजय के परिवार की तलवार विक्रम ने कैसे उठा ली?

पिंडाला उसे घूरते हुए बोला:" तुम चुप ही रहो! सब तुम्हारी योजना थी और मेरे कई आदमी मारे गए उसका क्या!

जब्बार:" मुझे भी बेहद अफसोस हैं और सबसे बड़ी बात हमारा सबसे बड़ा मोहरा शक्ति सिंह भी मारा गया!

पिंडाला:" उसकी मौत तो वैसे भी निश्चित थी क्योंकि वो बच भी जाता तो मेरे हाथ मारा जाता क्योंकि गद्दार कभी विश्वास के लायक नही होते!

जब्बार:" ये बात भी ठीक है क्योंकि हमने उसे राजा बनाने का सिर्फ लालच दिया था कोई सच में थोड़े ही बनाने वाले थे! लेकिन मुझे वही बात हैरान कर रही है कि विक्रम ने तलवार कैसे उठा ली नही तो उस दिन ही सब काम एक साथ खत्म हो जाते!

पिंडाला:" अबे सीधी सी बात है कि जरूर उसका अजय के परिवार से कोई रिश्ता रहा होगा! ये बात अगर सच है तो खतरा निश्चित रूप से बड़ा रूप लेगा!

जब्बार:" मैं भी वही सोच रहा हूं और जल्दी ही हमे इससे मुक्ति पानी होगी क्योंकि सुलतान कभी भी सामने आ सकता है और उसे देखकर प्रजा बगावत कर सकती हैं जो हमारे लिए ठीक नहीं होगा!


पिंडाला:" चल वो सब बाद में देखेंगे! रात के लिए लड़की का इंतजाम कब तक होगा! मुझे अब सब्र नहीं हो रहा है!

जब्बार:" सैनिक गए हुए हैं और आने ही वाले होंगे!

दोनो की बाते चलती रही और करीब 15 मिनट बाद पिंडाला के कमरे में एक लड़की को भेज दिया और पिंडाला ने बड़ी बेदर्दी से उसे पूरी रात जानवर की तरह रौंदा और बेचारी मासूम लड़की ने तड़प तड़प कर दम तोड दिया!
Good going.
 
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विक्रम ने सुल्तानपुर जाने का विचार किया और अपनी योजना बनाने लगा! वो जानता था कि इस समय सुल्तानपुर जाना मौत के खेलने के समान है लेकिन सुल्तानपुर के वर्तमान हालात का जायजा लेना और सीमा को सांत्वना देने के साथ साथ सलमा से मिलना भी उसके लिए बेहद अहम था! विक्रम ने अपने राज्य के विश्वास पात्र एक व्यापारी को बुलाया जो कि एक कुशल योद्धा भी था जिसका नाम अब्दुल रशीद था! अब्दुल विक्रम के सामने हाजिर हुआ और बोला:"

" मेरा सौभाग्य युवराज आपने मुझे याद किया!

विक्रम:" अब्दुल आप और आपका परिवार हमेशा से राज परिवार के वफादार रहे हैं और आज हमे आपकी सहायता की सख्त जरूरत आन पड़ी है!

अब्दुल की आंखे चमक उठी और बोली:" आप हुक्म कीजिए आपके एक इशारे पर जान भी हाजिर है!

विक्रम:" आप एक व्यापारी के रूप में सुल्तानपुर जायेंगे और मैं आपके साथ आपके नौकर के रूप में जाऊंगा! मुझे वहां कुछ बेहद जरूरी काम है!

अब्दुल:" बिलकुल जाऊंगा युवराज! लेकिन क्षमा कीजिए आप मेरे साथ नौकर नही बल्कि एक व्यापारी के ही रूप में चलिए!

विक्रम:" नही अब्दुल, नौकर पर कोई आसानी से शक भी नहीं करता है और दूसरी बात मैं अंदर जाने तक सिर्फ आपके साथ रहूंगा और उसके बाद सुबह ही आपके पास आऊंगा तो इसके लिए नौकर ही ठीक हैं!

अब्दुल:" जैसे आप ठीक समझे! लेकिन मेरी एक सलाह हैं कि हम अपने साथ राज्य के कुछ चुनिंदा योद्धा लेकर जाएंगे ताकि मुश्किल समय में सामना कर सके!

विक्रम को उसकी बात ठीक लगी और सहमति मे सिर हिलाते हुए बोला:" मैं आपकी बात से सहमत हु लेकिन ध्यान देना कि ये बात अगर खुल गई तो हम सबका जिंदा आना मुश्किल होगा!

अब्दुल:" आप मेरी तरफ से निश्चित रहे क्योंकि मैं आखिरी सांस तक आपका और इस महान राज्य का वफादार रहूंगा!

विक्रम:" ठीक हैं फिर आप जाने की तैयारी कीजिए! आज शाम को ही हम प्रस्थान करेंगे!

उसके बाद अब्दुल चला गया और कुछ जरूरी सामान लेकर जाने को तैयारी में जुट गया! दूसरी तरफ विक्रम ने आज मंत्री दल की बैठक बुलाई हुई थी और आगे की रणनीति पर विचार चल रहा था कि कैसे सुलतान और पिंडारियो को खत्म किया जाए!

विक्रम:" सबसे पहले हमे आधुकिन हथियार और तकनीकी रूप से सक्षम सैनिक चाहिए जिनके दिल में आखिरी सांस तक लड़ने और मरने का जज्बा हो!

मंत्री वीर बहादुर:" आप सत्य कहते हो युवराज! हमे अपने प्राणों की आहुति देकर भी खून का बदला खून से लेना ही होगा!

सतपाल सिंह:" युवराज हमे सबसे पहले सैना में नव युवकों की भर्ती करनी होगी ताकि कुछ दिनो में युवा सेना तैयार कर सके!

विक्रम:" वीर बहादुर जी आपके हाथ में अभी अजय जाने के बाद सेना की जिम्मेदारी होगी और मुझे ऐसा एक युवक चाहिए जिसे मैं अजय की जगह रख सकू और मेरे लिए हर कठिन स्थिति में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहे!

एक मिनट के लिए शांति छाई रही तो एक नवयुवक खड़ा हुआ जिसकी उम्र करीब 22 साल थी और सेना में अभी टुकड़ी दल का नेतृत्व करता था बोला:"

" युवराज मैं अकरम खान आपके लिए मरने मिटने के लिए हमेशा तैयार रहूंगा मेरी आपसे गुजारिश है कि मुझे ये मौका प्रदान करे ताकि मैं अपने प्राणों की आहुति देकर भी अपनी मातृभूमि का कर्ज उतार सकू!

विक्रम उसकी बहादुरी और जज़्बात से काफी हुए और बोले:"

" मुझे आप पर फख्र हैं अकरम! क्या सभी मंत्री दल इस बात के लिए सहमत हैं कि अकरम को मैं ये अहम जिम्मेदारी दे सकू!

वीर बहादुर सिंह:" युवराज सच कहूं तो आज हमें ऐसे ही युवाओं की जरूरत हैं जो खुद आगे आकर अपना कर्तव्य समझे और मेरे हिसाब से अकरम को ये मौका देना चाहिए

सतपाल:" मेरी भी सहमति हैं युवराज! हमे अब युवाओं पर भी भरोसा करना होगा!

सभी मंत्री दल ने सहमति में अपना सिर हिलाया और विक्रम बोला:" ठीक हैं आज से अकरम हमारी रक्षक सेना टुकड़ी का सरदार होगा!


मुख्य सलाहकार:" युवराज राजमाता के जाने के बाद अब पूरे राज्य की जिम्मेदारी आपके मजबूत कंधो पर आ गई है और उम्मीद हैं कि आप हमेशा उदयपुर की जनता के विश्वास पर खरे उतरेंगे ! लेकिन हमारे राज्य की एक परंपरा है कि राज्य की बागडोर पूरी तरह से हाथ में लेने के लिए पूजा होनी चाहिए!

सभी मंत्री ने सलाहकार की बात का पुरजोर समर्थन किया तो विक्रम बोला:"

" जैसे आप सबको उचित लगे! आप सब मेरे बड़े और राज्य के शुभ चिंतक हैं तो आपकी बात मैं कैसे टाल सकता हु!

सलाहाकर:" ठीक हैं फिर परसो आपके हाथ में विधिवत पूरे राज्य की बागडोर दे दी जायेगी! वैसे तो पूजा में माता पिता का अहम स्थान होता है लेकिन विशेष परिस्थिति में मां के न होने पर जन्म दिलाने वाले दाई मां को मां का स्थान पूजा के दिन ग्रहण करके विधियां संपन्न कराई जाती है युवराज !

राजमाता के न होने की बात पर विक्रम की आंखे भर आई और बोला:" जैसे आप उचित समझे ! पूजा की सभी जिम्मेदारी आप अपने हाथ में लीजिए ताकि सब कुछ सही से विधि संपन्न पूरा हो सके !

मुख्य सलाहकार:" जैसी आपकी आज्ञा युवराज!

उसके बाद राज्य सभी समाप्त हुई और धीरे धीरे शाम होने लगी तो विक्रम ने सुल्तानपुर जाने की तैयारी करनी शुरू कर दी और अकरम उसके साथ ही था!

विक्रम:" अकरम आप हम तुम्हे एक ऐसे काम के लिए चुन रहे हैं जहां मौत भी हो सकती हैं!

अकरम:" आपके लिए मरना भी मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी! आप हुक्म कीजिए !

विक्रम" आज रात आप मेरे साथ सुल्तानपुर जायेंगे!

अकरम की आंखे खुशी से चमक उठी और बोला:" सुल्तानपुर वालो से बदला लेने के लिए तो मेरे सीने में ज्वाला भड़क रही हैं युवराज!

विक्रम:" इस ज्वाला को अभी और भड़काओ! आज मैं सिर्फ हालत का जायजा लेने के लिए जायेंगे !

अकरम:" जैसी आपकी आज्ञा युवराज!

उसके बाद विक्रम ने उसे सारी योजना बनाई और अब्दुल के आने के बाद सभी लोग एक व्यापारी के रूप में सुल्तानपुर की तरफ निकल पड़े! विक्रम एक बेहद कुरूप काला नौकर बना हुआ था बिलकुल किसी हबशी गुलाम के जैसा!

जैसे ही विक्रम का काफिला सुल्तानपुर के दरवाजे पर पहुंचा तो दरबानों ने उसे घेर लिया और बोले:"

" ऐ कौन हो तुम ? क्यों राज्य में घुसे आ रहे हो?

अब्दुल:" मैं एक बाहरी व्यापारी हु और व्यापार के सिलसिले में सुल्तानपुर आया हू!

सैनिक जोर से चिल्लाया:" क्या तुम्हे पता नही हैं कि राज्य में बाहर से किसी के भी आने पर सख्त पाबंदी लगी हुई हैं!

अब्दुल:" मुझे कैसे पता होगा मैं तो मीलों का रास्ता चलकर आया हू! बड़ा नाम सुना था सुल्तानपुर का और जब्बार साहब का ?

सैनिक अपने राज्य की तारीफ सुनकर खुश हुआ और बोला:"

" अच्छा क्या सुना था जरा हम भी तो जाने!

अब्दुल:" यही कि सुल्तानपुर में व्यापारियों का बेहद सम्मान होता हैं और पूरी तरह से संपन्न राज्य हैं! जब्बार साहब एक नेक दिल और व्यापार पसंद है!

सैनिक: बिलकुल सही सुना हैं! लेकिन आजकल सुरक्षा की वजह से ऐसा हो गया हैं कि किसी के भी अंदर आने की सख्त पाबंदी हो गई है!

अब्दुल:" मुझे पता होता तो नही आता खैर अब जाना ही पड़ेगा लेकिन जाने से पहले आपको अपनी तरफ से खुश तोहफा देकर जाना चाहता हूं!

इतना कहकर उसने कुछ सोने की मोहरे देकर एक नौकर को आगे भेजा और उसने वो मोहरे सैनिक के हाथ में रख दी तो सैनिक उनकी चमक देखकर पिघल गया और बोला:"

" ठीक ठीक हैं! मैं सबको जाने दूंगा लेकिन पूरी तरह से तलाशी लेने के बाद! लेकिन जब तक आप लोग राज्य में रहोगे मेरे सैनिक आपके साथ हर समय रहेंगे!

अब्दुल:" बेशक आप महान हो! जितना मैने सुना था आप उससे कहीं ज्यादा रहम दिल हो! सच में सुल्तानपुर के सभी लोग अपने आप में सुलतान हैं!

सैनिक:" बस बस बहुत हो गया! आओ और सबसे पहले हमे तलाशी लेने दो!

उसके बाद सैनिकों ने पूरे काफिले की तलाशी ली और अंदर जाने दिया! विक्रम की आंखो में चमक थी क्योंकि वो जानता था कि सबसे मुश्किल काम हो गया था और आगे उसके लिए आसानी थी! काफिला अंदर घुस गया और एक घर में उन्हे रहने के लिए जगह दे दी गई और व्यापार प्रमुख को सूचना दे दी और वो आया और अब्दुल से मिलकर बेहद खुश हुआ और बोला:"

" आप बिलकुल सही समय पर आए हैं! हमे कुछ चीजों की जरूरत हैं!

उसने एक सूची अब्दुल के हाथ में थमा दी और अब्दुल ने वो देखा और बोला:"

" एक महीने के अंदर ये सारा सामान मैं आपको दूंगा! अभी तो मेरे पास बेहतरीन रेशम हैं जो बेहद कीमती और आकर्षक हैं!

प्रमुख:" ठीक हैं! अभी रात हो गई है! आप आराम कीजिए! कल दिन में बात होगी!

इतना कहकर वो चला गया तो सारे लोगो ने साथ में खाना खाया और रात को करीब 11:30 के आज पास निकला और उसने अब अपने चेहरे को साफ कर दिया था लेकिन भेष को पूरी तरह से बदला हुआ था ताकि कोई पहचान न सके! अकरम ने सैनिकों को बातो में उलझाया और विक्रम धीरे से पीछे से निकल आया और आते ही सड़क पर धीरे धीरे राजमहल की तरफ बढ़ गया! रात के अंधेरे में वो सैनिकों से बचते हुए महल के पीछे की तरफ पहुंच गया और दलदल को पर करने के बाद वो महल के गुप्त दरवाजे पर पहुंच गया और अंदर दाखिल हो गया!

अंदर जाकर को गुफा के अंतिम छोर पर खड़ा हो गया और बाहर से किसी प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा! थोड़ी देर बाद ही बाहर से किसी के गुनगुनाने की आवाज आई तो विक्रम समझ गया कि सलमा बाहर आ गई और विक्रम ने धीरे से गुफा पर हाथ मारा तो सलमा ने भी खुशी खुशी में हाथ मार कर जवाब दिया और विक्रम ने ताकत से गुफा का दरवाजा खोल दिया तो सलमा तेजी से अंदर गुफा में घुस गई और विक्रम से किसी अमरबेल की तरह लिपटती हुई चली गई और विक्रम ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया! बिना कुछ बोले दोनो एक दूसरे को अपने सीने से लगाए हुए एक दूसरे की धड़कन सुनते रहे और कुछ पल ऐसे ही बीत गए तो सलमा धीरे से बोली:"

" कैसे हो युवराज आप? मैं तो आपके बिना पल पल तड़प रही थी! यकीन मानो आप मिले तो मुझे जैसे नया जीवन मिल गया है आज!

विक्रम: मैं भी आपसे मिलने के लिए बेकरार था शहजादी!

सलमा ने अब सीना उसकी छाती में छुपा लिया और उदास स्वर में बोली:" युवराज हमे अजय का बेहद दुख हैं! आपके होते ये सब कैसे हो गया!

विक्रम का भी दिल उदास हो गया और अपनी पकड़ सलमा पर ढीले करते हुए बोला:"

" मेरे वश में होता तो उसे कभी मरने नही देता! लेकिन अजय उनकी चाल को समझ नही पाया!

सलमा:" अरे मैं भी कितनी बुद्धू हो गई हु! यहीं सारी बात कर लेना चाहती हूं! आप मेरे साथ मेरे कक्ष में चलिए युवराज!

इतना कहकर सलमा उसका हाथ पकड़कर इधर उधर देखती हुई सावधानी पूर्वक आगे बढ़ गई और जैसा ही कक्ष खोला तो अंदर दोनो घुसे तो सामने ही बेड पर पड़ी हुई सीमा मिल गई जो विक्रम को देखते ही रोती हुई दौड़कर उसके गले लग गई और बोली:" ये सब क्या हो गया है युवराज! काश अजय की अजय मैं मर गई होती!

विक्रम ने बड़े भाई की तरह प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फिराया और बोला:"

" अपने आपको संभालो सीमा! ये समय रोने का नही बल्कि बदला लेने का हैं!

सलमा: लेकिन अजय की तलवार के होते भी ऐसा कैसा हो सकता है आखिर?

उसके बाद विक्रम ने उन्हें शुरू से लेकर अंत तक सारी बातें बताई और जब्बार का नाम आते ही सीमा और सलमा चौक पड़ी और बोली:" मुझे लग रहा था जरूर इसमें जब्बार का ही हाथ रखा होगा क्योंकि वो कमीना किसी भी हद तक गिर सकता हैं! भला जिसने अभी बीवी तक को पिंडाला के हवाले कर दिया हो उससे और उम्मीद ही क्या की जा सकती है!

सीमा:" मैं जब्बार को अपने इन्ही हाथो से मारूंगी! खून पी जाऊंगी उसका!

सलमा:" लेकिन एक बात समझ नही आ रही है कि आखिर जब्बार ने आप और अजय पर हमला क्यों किया ?

विक्रम:" यही तो मुझे पता करना है कि आखिर उसने किस बात का बदला हमसे लिया है?

सलमा:" कहीं मेरे पिता को आजाद करने का बदला तो नही लिया! हो सकता हैं कि उसे पता चल गया हो कि आप दोनो ने ही पिंडलगढ़ से सुलतान को आजाद किया हैं!

विक्रम के दिमाग में धमाका सा हुआ और बोला:"

" इस बात तो मेरा ध्यान कभी गया ही नहीं! अब सवाल ये कि उसे आखिर कैसे पता चला होगा?

सीमा दोनो का मुंह देख रही थी और उनकी बाते सुन रही थी और बोली:" मैं जरूरी पता लगाकर रहूंगी क्योंकि मेरी जिंदगी का मकसद ही अब जब्बार की बरबादी है!

विक्रम:" जब तक आपका भाई जिंदा है तब तक तुम कुछ मत करो! मैं हू न सब कुछ ठीक करने के लिए! मुझ पर भरोसा रखो!

सीमा कुछ नहीं बोली! थोड़ी देर चुप्पी छाई रही तो सलमा बोली:"

" मेरे पिता कैसे हैं युवराज ?

विक्रम:" पहले से बहुत बेहतर है और जल्दी ही पूरी तरह से स्वस्थ हो जायेंगे!

सलमा:" अरे मैं तो भूल ही गई आप पहले ये तो बताओ कि आप इतने सख्त पहरे के बाद अंदर कैसे आए ?

विक्रम ने उसे सारी बात बताई तो सलमा बोली:"

" फिर तो आपको बहुत ज्यादा भूख लगी होगी! आप बैठ कर सीमा से बात करो, मैं कुछ खाने का इंतजाम करती हू आपके लिए!

सलमा जाने लगी तो सीमा ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली:" आप युवराज से बैठकर बात कीजिए! मैं खाने का इंतजाम खुद कर लूंगी!

इतना कहकर सीमा बाहर निकल गई और दरवाजे को बंद कर दिया तो उसके जाते ही सलमा फिर से दौड़कर युवराज के गले लग गई और उसके मुंह को चूमने लगी तो विक्रम ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया और बोला:"

" सलमा मुझे किसी भी कीमत पर अजय की मौत का बदला लेना है चाहे इसके लिए मेरी जान ही क्यों न चली जाए!

सलमा ने उसके होंठो पर उंगली रख दी और बोली:" मरे आपके दुश्मन युवराज! जब्बार को मारने में मैं आपका साथ दूंगी!

विक्रम ने सलमा को गोद में उठाया और बेड पर लेकर आ गया तो सलमा उसके मजबूत कंधे पर अपना सिर टिकाकर लेट गई और बोली:"

" आप बड़े परेशान लग रहे हैं युवराज! आखिर क्या बात हैं जो आप इतने सोच में गुम हो?

विक्रम:" आपको पता हैं शहजादी कि मैं युद्ध में उस दिन बच गया क्योंकि मैंने अजय की तलवार को उठा लिया और दुश्मनों पर हमला किया!

सलमा ने उसकी बात को गौर से सुना और समझा तो बोली:"

" लेकिन आप अजय की तलवार कैसे उठा सकते हो ? उसे तो उसके परिवार के सिवा कोई और नहीं उठा सकता!

विक्रम:" यही तो बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है ये देखो!

इतना कहकर विक्रम ने अपनी कमर में छुपी हुई तलवार को बाहर निकाल लिया और शहजादी को दिखाया तो सलमा हैरान से बोली:"

" या मेरे रब ये कैसा अजीब करिश्मा हैं! क्या मैं सपना देख रही हूं या हकीकत ?

विक्रम:" यही हकीकत हैं सलमा! मुझे समझ नही आया कि आखिर मैं ये तलवार कैसे उठा सकता हूं? आखिर क्या मेरा अजय के परिवार से कुछ रिश्ता हैं ? हैं तो कैसे और क्या? मैं उलझन में फंस गया हूं शहजादी!

सलमा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोली:"

" आप सब कुछ समय पर छोड़ दो! और हां अगर आप सच में युवराज नही हुए तो भी मैं आपकी ही अमानत रहूंगी!

विक्रम ने उसका माथा चूम लिया और बोला:" मेरे लिए अभी सबसे ज्यादा जरूरी अपनी खुद की सच्चाई जानना हैं!

इसी बीच सीमा खाना लेकर आ गई और सभी ने साथ में खाना खाया और उसके बाद सीमा सोने के लिए अलग कक्ष में जाने लगी तो विक्रम ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास ही बैठा लिया और तीनों सुल्तानपुर के हालात पर चर्चा करते रहे!

अगले कुछ सुबह होने से पहले ही विक्रम निकल गया और अब्दुल ने सुल्तानपुर के व्यापारियों से कुछ सामान खरीदा और आखिर में शाम के समय सभी लोग सुरक्षित अपने राज्य पहुंच गए!

राज्य में आने के बाद विक्रम ने सबसे पहले मेनका से मिलने का निश्चय किया और उसके घर जा पहुंचा! मेनका पूरी तरह से उदास थी आज भी और सोफे पर पड़ी हुई थी! विक्रम को देखकर वो खड़ी हो गईं और बोली:"

" युवराज आपने आने का कष्ट क्यों किया ? मुझे बुला लिया होता !

विक्रम उसकी बात सुनकर दुखी हुआ और बोला:" मैं सारी दुनिया के लिए युवराज हु लेकिन आपके लिए बिल्कुल आपके बेटे जैसा हु इसलिए आप मुझे युवराज न कहे!

मेनका:" बेशक आप मेरे बेटे जैसे हो लेकिन राज परंपरा मैं कैसे भूल सकती हू ?

विक्रम थोड़ी देर चुप रहा और बोला:" कैसी हो आप ?

मेनका थोड़ी देर शून्य में घूरती हुई खड़ी और फिर बोली:"

" बस जिंदा हु!

विक्रम उसकी हालत देखकर मन ही मन तड़प उठा और सोचने लगा कि क्या वो सच में यही मेनका हैं जिसे मैंने उस रात अजय की बांहों में देखा था! मेनका का चेहरा हल्का पीला पड़ गया था और उसकी आंखे रोने के कारण लाल हो गई थी!

विक्रम ने हिम्मत करके उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला:"

" संभालिए आप अपने आपको! जब आपका उदास चेहरा देखता हु तो मेरा दिल फट पड़ने को होता हैं! ऐसा लगता हैं कि जैसे मैं किसी अपने को दर्द में तड़पते हुए देख रहा हूं! पता नही क्या रिश्ता है मेरा आपसे कि आपकी उदासी मेरी जान निकल रही हैं!

इतना कहकर विक्रम की आंखे छलक पड़ी और उसने अपने सिर को मेनका के कंधे पर टिका दिया और उसकी आंखो से निकलते हुए आंसू मेनका का दामन भिगोने लगी तो मेनका ने अपने आंचल से उसके आंसू साफ किए और प्यार से उसके आंसू साफ करती हुई बोली:"

" बहादुर योद्धाओं की आंखो में आंसू शोभा नही देते युवराज!

विक्रम मेनका का अपनत्व देखकर किसी छोटे बच्चे की तरह बिलख पड़ा और बोला:"

" आपकी उदासी मुझे पागल कर रही है! मन करता है कि सारी दुनिया की खुशियां लाकर आपके दामन में डाल दू! आप बताए ना मैं क्या करू कि आपकी हंसी फिर से वापिस ला सकू?

मेनका थोड़ी देर चुप रही और रोते हुए विक्रम को तसल्ली देती रही और फिर बोली:"

" मुझे अजय के हत्यारे मेरे कदमों में चाहिए युवराज! उससे पहले न मेरी जिस्म को शांति मिलगी और न ही मेरी आत्मा को सुकून!

विक्रम मेनका के चरणों में बैठ गया और उसके पैरो को हाथ लगाते हुए बोला:" आपके इन्ही चरणों की सौगंध मैं जब तक अजय के हत्यारों को आपके कदमों में नही डाल दूंगा राज गद्दी पर नही बैठूंगा!

मेनका ने उसे ऊपर उठाया और उसके आंसुओं से भीग गए चेहरे को साफ करती हुई बोली:"

" आज के बाद मुझे आपको आंखो में आंसू नहीं बल्कि ज्वाला दिखनी चाहिए! ऐसी ज्वाला जिसमे सब शत्रु जलकर भस्म हो जाए!

मेनका ने विक्रम का पूरा चेहरा साफ कर दिया तो विक्रम की आंखे अब लाल सुर्ख होकर दहक रही थीं और बोला:"

" ठीक हैं लेकिन आपको भी एक वादा करना होगा कि आज के बाद आप अपना ख्याल रखेगी! रोएंगी बिलकुल नही क्योंकि आपकी आंखों के आंसू मुझे कमजोर करते हैं! पता नही आपसे मेरा क्या रिश्ता हैं लेकिन आपका दुख मैं नही देख सकता!

मेनका भी उसकी बाते सुनकर थोड़ा भावुक हो गईं और विक्रम से उसे अपनापन महसूस हो रहा था इसलिए न चाहते हुए भी उसकी आंखो से आंसू छलक पड़ा तो विक्रम ने मेनका के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए उसके आंसू को साफ किया तो मेनका उसका प्यार अपनत्व देखकर पिघल गई और पहली बार न चाहते हुए भी उसके गले लग गई! विक्रम ने भी उसे अपने गले से लगा लिया और दोनो ऐसे ही चिपके हुए खड़े रहे! बिलकुल शुद्ध और निश्चल प्रेम!

विक्रम प्यार से उसकी पीठ थपथपाते हुए बोला:"

" आपने खाना खाया या नहीं!!

मेनका कुछ नही बोली तो विक्रम समझ गया कि आज भी उसने खाना नही खाया है तो विक्रम उससे अलग होते हुए बोला:"

" मुझे भी बहुत जोर की भूख लगी है! आज आपके हाथो से खाना खाकर ही जाऊंगा!

मेनका ये सुनकर दौड़ी दौड़ी रसोई में गई और आनन फानन में ही स्वादिष्ट भोजन तैयार किया और दोनो ने एक साथ खाना खाया और उसके बाद विक्रम जाने लगा तो पता नहीं क्यों लेकिन मेनका का दिल भर आया और बोली:"

" युवराज आप आते हैं तो अच्छा लगता है! पता नहीं क्या रिश्ता है आपसे कि आपको देखकर दुख दर्द सब दूर हो जाते है!

विक्रम:" मुझे भी आपसे बिलकुल अपनापन ही लगता हैं! आप अपना ध्यान रखिए और हान कल मैं आपको लेने के लिए आऊंगा! कल पूजा है तो कल विधिपूर्वक सारे राज्य की सभी जिम्मेदारी मुझे दे दी जायेगी! आप रहेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा!

मेनका:" मैं जरूर आऊंगी युवराज!

विक्रम:" अच्छा मैं अब चलता हु! आप अपना ध्यान रखिए और किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे अपना बेटा समझकर बोल दीजिए आप!

बेटा शब्द सुनकर मेनका के अंदर ममता का सागर उमड़ और एक बार फिर से भावुक होकर विक्रम के गले लग गई और बोली:"

" बिलकुल मेरे लिए तो आप बिल्कुल मेरे बेटे जैसे ही हो युवराज! ईश्वर आपको हर बुरी नजर से बचाए!

उसके बाद विक्रम मेनका के घर से निकल कर राजमहल में आ गया और उसके दिल का बोझ थोड़ा हल्का हो गया था! अजय के मरने के बाद वो अभी तक अपने आपको दोषी मान रहा था और उसे खुद का तलवार उठा लेना इस बात का सुबूत था कि जरूर उसका मेनका के परिवार से कुछ गहरा रिश्ता तो हैं!

रात के करीब 12 बज चुके थे और मेनका बिस्तर पर पड़ी हुई सोने का प्रयास कर रही थी लेकिन नींद उसकी आंखो से कोसो दूर थी! उसके दिल का दर्द पीड़ा बनकर चेहरे से उमड़ रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो मेनका ने भारी कदमों से उठकर दरवाजा खोला तो सामने दाई माता को देखकर उसकी आंखे हैरानी से फैल गई और बोली:" दाई माता आप इतनी रात गए कैसे? आइए अंदर आइए आप!

दाई माता एक करीब 75 साल की कमजोर सी दिखने वाली वृद्ध महिला थी जिसकी कमर अब बुढापे के कारण बीच में से मूड गई थीं और वो धीरे धीरे चलती हुई अंदर आई और बिस्तर पर बैठ गई तो मेनका उसके पास ही जमीन में बैठ गई!

मेनका:" दाई माता आपने इस उम्र में आने का कष्ट क्यों किया मुझे ही बुला लिया होता!

दाई माता धीरे से कमजोर शब्दो में बोली:" मेनका बेटी अगर आज भी नही आ पाती तो शायद कभी सच बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती मैं!

मेनका का दिल तेजी से धड़क उठा और मेनका बेचैन होते हुए बोली:" सच कैसा सच दाई माता? मैं कुछ समझ नहीं पाई!

दाई माता:" एक ऐसा पाप जो मैंने आज से 22 साल पहले किया था ईनाम के लालच में आज उसके प्रायश्चित करने का समय आ गया है!

मेनका अब पूरी से बेचैन होते हुए बोली:" साफ साफ बताए ना दाई माता? मुझे सब्र नहीं हो पा रहा ?

दाई माता:" सच ये है कि युवराज विक्रम आपका बेटा है मेनका!

दाई माता की बात सुनकर मेनका को लगा कि उसका दिल उछलकर उसकी छाती से बाहर निकल आयेगा और उसके होंठ खुशी से कंपकपा उठे

" क क क्या दाई माता!!

दाई माता ने उसके सिर पर हाथ रखा और बोली:" हान बेटी विक्रम आपका ही बेटा हैं! सबसे बड़ा बेटा! दरअसल आपको और महारानी को एक ही दिन प्रसव पीड़ा हुई थी तो महारानी को मरे हुए बच्चे पैदा होते थे! लेकिन महराज ने घोषणा करी थी कि अगर मैने उनके बच्चे को जीवित पैदा करा दिया तो वो मुझे सोने हीरे जवाहरात देंगे और अगर मरा हुआ बच्चा हुआ तो मुझे मार डालेंगे क्योंकि महाराज को लगता था कि दाई की वजह से इनके बच्चे मरते हैं इसलिए वो कई दाई को मरवा चुके थे! मेरे हर कोशिश करने के बाद भी उनको मरा हुआ ही बच्चा पैदा हुआ! आप दो बेटे पैदा हुए आप उस समय दर्द की अधिकता से पूरी तरह से बेहोश थी! बस इसी का फायदा उठाकर मैने एक बच्चे को महारानी के बच्चे से बदल दिया और बाद में सबको बताया कि आपका एक बेटा मर गया है!

मेनका की आंखो से आंसू बह चले और वो दाई माता एक दामन झिंझोड़ते हुए बोली:"

" क्यों किया आपने मेरे साथ ऐसा! चंद गहनों के लालच के चलते आपने मेरी ममता का गला घोट दिया! बोलिए दाई माता

दाई माता थोड़ी देर चुप रही और फिर मेनका के सामने हाथ जोड़ कर बोली:" मुझे क्षमा कर दो मेनका, मैं सचमुच लालच में अंधी हो गई थी और फिर अपनी जान बचाने का मेरे पास कोई उपाय भी नही था!

मेनका थोड़ा शांत हुई और बोली:" आज आखिर इतने दिनों के बाद आपको ये राज बताने की क्या जरुआत आन पड़ी?

दाई माता:" कल युवराज विक्रम को पूजा के बाद राज्य की सभी जिम्मेदारी दे दी जायेगी और ये पूजा कराने की जिम्मेदारी मुझे मिली हैं जबकि असली मां के जिंदा रहते ऐसा करना अपशकुन होगा! एक गलती मैं पहले ही कर चुकी हूं तो अब दूसरी गलती करने की मेरे अंदर हिम्मत नहीं बची हैं!

मेनका:" लेकिन आप सबके सामने ये बात रखेंगी तो जनता आपको बुरा भला कहेगी और आपको फांसी भी हो सकती हैं! बेहतर होगा कि ये राज आप राज ही रहने दो !

दाई माता:" मुझे मेरे अंजाम की अब कोई परवाह नही हैं! मरना तो वैसे भी हैं ही लेकिन प्रायश्चित करके मरूंगी तो आत्मा को थोड़ी शांति तो रहेगी! अच्छा मैं चलती हु! बेटी मैं क्षमा के लायक तो नही हु लेकिन हो सके तो मुझे क्षमा कर देना!

इतना कहकर वो मेनका के पैरो में गिर पड़ी तो मेनका ने उसे ऊपर उठाया और बोली:"

" बड़े छोटे से क्षमा मांगते हुए अच्छे नही लगते! भले ही देर से ही सही लेकिन आपने मुझे आज फिर से जीने की एक नई वजह दे दी है!

दाई माता वहां से चली तो मेनका की आंखे एक बार फिर खुशी से उछल उठी और ये अब एहसास हुआ कि आखिर क्यों विक्रम ने उसकी खानदानी तलवार उठा ली थी क्योंकि वो उसका ही अपना खून हैं और इसी वजह से उसे विक्रम से इतना ज्यादा अपनापन महसूस हो रहा था!

थोड़ी देर तक मेनका खुशी से बिस्तर पर करवट बदलती रही और आखिर में उसे नींद आ गई! आज कई दिनों के बाद वो सुकून की नींद मे सोई थी!
Nice twist to the story.
 
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Premkumar65

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अगले दिन सुबह एक तरफ विक्रम को राज्य का सर्वेसर्वा बनाने की तैयारी जोर शोर से चल रही थी वहीं दूसरी तरफ मेनका विक्रम से मिलने के लिए महल पहुंच गई! दरबान ने विक्रम के सूचना दी तो मेनका अंदर चली गई और मेनका को देखते ही विक्रम खुशी से बोला:"

" आइए अच्छा किया आपने जो आज सुबह सुबह ही आप राजमहल चली आई! अब आप पूरे कार्यक्रम तक यही रहना!

मेनका बड़े प्यार से उसका चेहरा देख रही थी मानो आज उस जी भरकर देखना चाहती हो! मेनका के मुंह से शब्द नही निकल पा रहे थे और विक्रम हैरान था कि आखिर मेनका को हो गया हैं और बोला:"

" आपकी तबियत तो ठीक है? ऐसे मुझे क्यों देख रही हो आप?

मेनका के होंठ कुछ बोलते हुए भी कांप रहे थे और धीरे से बोली:"

" विक्रम मैं ठीक हु!

मेनका ने बड़ी मुश्किल से कहा और विक्रम ने उसका हाथ पकड़कर प्यार से बेड पर बिठाया और बोला:" आप शायद कुछ कहना चाहती है लेकिन बोल नही पा रही है! आप बिलकुल निश्चित होकर बोलिए!

मेनका की आंखो में आंसू आ गए और भरे गले के साथ विक्रम का हाथ पकड़ कर बोली:"

" आ अ आप जानना चाहते थे कि हमारी खानदानी तलवार आपने कैसे उठा ली थी !

विक्रम की आंखो में चमक आ गई और बोला:" बिलकुल जानना चाहता हूं क्योंकि मैं खुद उस दिन के बाद से चैन से नही सो पा रहा हु एक पल के लिए भी!

मेनका के बोलने से पहले ही उसकी आंखे भर आई और आंसू छलक पड़े और रुंधे हुए गले से बड़ी मुश्किल से कह पाई

" आप आप मेरे पुत्र हो ! मेरा अपना खून हो!

मेनका ने बड़ी मुश्किल से अपनी बात कही और विक्रम से लिपटकर रोने लगी और उसका मुंह चूमने लगी! विक्रम के दिमाग में धमाका सा हुआ और रोती हुई मेनका को संभालते हुए उसके आंसू साफ करते हुए बोला:"

" क्या क्या आप मेरी मां माता हैं ? हे भगवान!! आपको कैसे पता चला ?

मेनका जोर से सुबक पड़ी और बोली:" हान पुत्र! कल रात दाई माता आई थी और उन्होंने मुझे सारी बाते बताई!

उसके बाद मेनका ने सब कुछ विक्रम को बताया तो विक्रम की भी आंखे छलक उठी और वो भी कसकर मेनका से लिपट गया! दोनो मां बेटे एक दूसरे से लिपटकर रोते रहे और एक दूसरे को संभालते रहे! आखिरकार विक्रम ने जैसे तैसे खुद को संभाला और अपनी माता मेनका के आंसुओं को साफ करते हुए बोला:"

" मुझे आप मिल गई तो सब कुछ मिल गया! थोड़ी देर बाद राज्य सभा लगेगी तो मैं सबके बीच में सारी सच्चाई बता दूंगा!

मेनका को भला क्या आपत्ति होती तो वो बोली:"

" मुझे आप मिल गए पुत्र तो मुझे अब इससे ज्यादा कुछ नही चाहिए!

थोड़ी देर बाद जैसे ही राज्य सभा लगा और सभी मंत्री दल की बैठक शुरू हुई तो विक्रम के कुछ बोलने से पहले ही दाई माता आ गई और उन्होंने सभा को सब कुछ बताया तो हर कोई हैरान हो गया और विक्रम ने दाई माता को बात को बल देने के लिए सबके बीच में मेनका की खानदानी तलवार उठाकर दाई माता की बात को सही साबित किया और बोला:"

" चूंकि सबके सामने साबित हो ही गया है कि मैं राज पुत्र नही बल्कि मेनका पुत्र हु तो ऐसे हालत में मेरे राज्याभिषेक का कोई औचित्य ही नही रहा! मैं अब आप सबकी तरह उदयगढ़ का एक आम सेवक हु और मेरे लिए ये बेहद फख्र की बात हैं कि मैं राज्य के सबसे ईमानदार और ऐसे बलिदानी परिवार से हु जिसने उदयगढ़ की तरह उठने वाले हर तीर को अपने सीने पर खाया हैं!

विक्रम इतना बोलकर राजगद्दी से उतरा और नीचे आकर सभा में बैठ गया तो सारे मंत्री गण अपनी सीटों से खड़े हो गए क्योंकि उन्हे समझ नही आ रहा था कि आखिर ये सब क्या हो रहा है!

आखिर में हिम्मत करके मानसिंह बोला:"

" बेशक आप राज परिवार से नही हो लेकिन राज्य के लिए राजमाता ने आपको ही चुना था और उस हिसाब से आपको राज माता की आज्ञा का पालन करते हुए गद्दी को ग्रहण करना चाहिए!

विक्रम:" जब राजमाता ने ये निर्णय लिया था तो उस समय उन्हें सच्चाई का ज्ञान नहीं था लेकिन चूंकि अब सच्चाई सामने आ गई है तो उस निर्णय का कोई मतलब ही नही रह जाता !

मंगल सिंह:" लेकिन युवराज राजमाता का अंतिम निर्णय यही था और हमे इसका सम्मान करना चाहिए!

विक्रम:" राजमाता मेरे लिए हमेशा से पूजनीय रही हैं लेकिन किसी और के अधिकार को सब सच्चाई जानते हुए अपनाने के लिए मेरा स्वाभिमान मुझे रोक रहा है!

भीमा सिंह:" मेरे ख्याल से हमें सब को आपस मे मिलकर इसका समाधान निकालना चाहिए!

विक्रम:" मैं आप की बात से सहमत हु! आप जैसे आदेश करेंगे मेरे किए सर्वोपरी होगा!

भीमा सिंह:" ठीक हैं फिर आप अपने कक्ष में जाकर आराम कीजिए और मंत्री दल की आज की बैठक में फैसला लिया जाएगा कि आगे राज्य की बागडौर किसके हाथ में देनी चाहिए!

विक्रम बिना कुछ कहे अपनी सीट से उठा और चला गया और उसके साथ ही मेनका भी चली गई! विक्रम राज कक्ष में न जाकर सीधे अपने घर मेनका के साथ आ गया!

घर आकर विक्रम और मेनका आपस मे बात करने लगे और मेनका बोली:"

" आपने सही किया पुत्र जो महाराज का पद ठुकरा दिया! हमारे पूर्वजों ने तो राज्य की सेवा करने के लिए वचन दिया था न कि राज करने के लिए !

विक्रम:" सत्य वचन माता! मुझे किसी राज पाठ की अभिलाषा नही है! सच कहूं तो पहली बार आपके गले से लगकर एहसास हुआ कि माता का प्रेम क्या हैं ! जिंदगी में पहली बार ऐसा अद्भुत एहसास हुआ हैं!

मेनका उसकी बात सुनकर प्रेम भाव से भर गई और फिर से अपनी बांहे फैलाई और बोली:"

" सच में विक्रम तो फिर से आओ और अपनी माता के गले लग जाओ मेरे पुत्र!

विक्रम एक बार फिर से मेनका की बांहों में समा गया और मेनका ने भी उसे अपने आगोश में ले लिया और भावुक होते हुए बोली:"

" बस पुत्र अब मुझे छोड़कर मत जाना! आपके सिवा अब मेरा कोई और नहीं हैं इस दुनिया में! मैं अपनी सारी ममता आप पर लूटा दूंगी!

विक्रम भी उससे कसकर लिपट गया और बोला:" कभी नहीं कभी नही माता! आपका भी तो मेरे सिवा कोई नही हैं! मैं हमेशा आपकी परछाई बनकर आपके साथ रहूंगा!

मेनका ने खुशी खुशी विक्रम का मुंह चूम लिया और बोली:"

" आप बैठो मैं आपके लिए कुछ खाने को लाती हूं!

इतना कहकर मेनका अंदर चली गई और वहीं दूसरी तरफ राज दरबार लगा हुआ था और ऐसा पहली बार हो रहा था कि राज गद्दी पर कोई नही बैठा हुआ था!


भीमा सिंह:" राज गद्दी का खाली रहना अपशकुन माना जाता हैं! मेरे विचार से हमे जल्दी ही राज गद्दी के लिए राजा देखना चाहिए!

मानसिंह:" बिलकुल सही बात लेकिन सवाल यही हैं कि राज गद्दी किसे दी जाए? राजमाता ने तो विक्रम को राजा बनाने का फैसला किया था लेकिन विक्रम तो साफ मना करके चले गए!

सतपाल सिंह:" मेरे विचार से तो विक्रम ही इस गद्दी के लिए उपयुक्त हैं क्यूंकि राज महल में बड़े होने के कारण वो राज पाठ चलाने के सारे तरीके आते हैं और फिर दूसरी बात उन्हे राजा बनाना भी तो राजमाता का ही फैसला था!

भीमा:* लेकिन उस समय पर राजमाता को सच्चाई नही पता थी और दूसरी सबसे बड़ी बात विक्रम खुद राजा बनने से मना कर चुके हैं!

सतपाल:" विक्रम एक ऐसे परिवार परिवार से हैं जिसमे आत्म सम्मान कूट कूट कर भरा हुआ है फिर ऐसी हालत में जब उन्हें पता हैं कि वो राज परिवार से नही हैं तो वो किसी भी दशा में राज गद्दी स्वीकार नही करेंगे!

मानसिंह:" विक्रम नही तो फिर किसे राजा बनाया जाए ? किसी के पास कोई नाम हो तो बताए?

जसवंत सिंह:" मेरे खयाल से राज्य में अभी विक्रम से बड़ा योद्धा की नही हैं और फिर राजमाता भी यही चाहती थी कि विक्रम को ही राजा बनाए तो मुझे विक्रम के नाम पर कोई आपत्ति नही हैं! अगर नही तो विक्रम से बहादुर और शक्तिशाली कौन है उसका नाम बताया जाए ?

थोड़ी देर शांति रही और सब एक दूसरे का मुंह देखते रहे! किसी को कोई नाम समझ नही आ रहा था तो अंततः भीमा सिंह बोला:"

" मेरे ख्याल से हमें विक्रम को ही राजगद्दी देनी चाहिए! जब हम सब मिलकर फैसला लेंगे तो विक्रम को वो मानना ही पड़ेगा क्योंकि विक्रम कभी भी राज्य के अहित के बारे में नही सोच सकते!

भीमा की बात का सबने समर्थन किया और अंत में फैसला लिया गया कि विक्रम को ही राजा बनाया जायेगा!

भीमा:" जब हम सबने तय कर लिया है तो फिर आज ही विक्रम को राजा बनाना चाहिए क्योंकि आज का शुभ मुहूर्त राजमाता ने निकलवाया था!

भीमा की इस बात से सभी सहमत थे और थोड़ी देर बाद ही भीमा अपने साथ सतपाल और मानसिंह के लेकर विक्रम के घर पहुंचे और बोले:"

" विक्रम बेटा हमने सबकी सहमति से ये फैसला किया हैं कि आपको ही राजा बनाया जाए क्योंकि आपमें एक राजा के सारे गुण हैं!

विक्रम :" लेकिन मैं तो आप सबको अपना फैसला बता चुका हु कि मैं ऐसे खानदान से हु जो राज्य की सेवा के लिए वचनबद्ध हैं ना कि राज करने के लिए!

भीमा:" हम आपकी भावनाओं की कद्र करते हैं युवराज! लेकिन आपको समझना चाहिए कि आपके पिता श्री ने ही आपको महाराज की गोद में दिया था ताकि आप बड़े होकर उदयगढ़ को सही दिशा में ले सके! अब आप अपने पिता और स्वर्गीय महराज के फैसले के खिलाफ तो नही जा सकते और फिर राजमाता का अंतिम फैसला ही यही था!

विक्रम:* ठीक है लेकिन फिर भी मैं..........

विक्रम की बात खत्म होने से पहले ही सतपाल बोला:" राजा बनकर आप अपने पिता और महाराज के वचन को पूरा करेंगे तो निश्चित रूप से उनकी आत्मा आपको आशीर्वाद देंगी!

विक्रम ने हैरानी भरी नजरो से मेनका की तरफ देखा तो मेनका ने हालात को समझते हुए स्वीकृति में आपनी गर्दन को झुका दिया और विक्रम ने भी अपनी माता की आज्ञा का पालन किया! शाम होते होते विक्रम का राज तिलक किया गया और पूरे राज्य की बागडोर उसके हाथ में दे दी गई!
Finally Vikram Raja ban gaya.
 
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