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Incest शहजादी सलमा

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विक्रम के राजतिलक में राज दरबार खचाखच भरा हुआ था और चारो और विक्रम की जय जयकार के नारे गूंज रहे थे! महल को चारो ओर से लोगो की भीड़ ने घेर रखा था और सभी के चेहरे पर खुशी साफ दिखाई दे रही थी जो इस बात का सुबूत थी कि मंत्री गण ने विक्रम को राजा बनाकर कोई गलती नही की थी!

राज गद्दी पर बैठे हुए विक्रम के माथे पर एक तेज था और उसकी आंखो में आत्म विश्वास साफ तौर पर झलक रहा था और जैसे ही प्रजा जोर जोर से उसकी जय जयकार करने लगी तो विक्रम खड़ा हुआ और हाथ से सभी को शांत रहने का इशारा किया तो पूरा राज दरबार में बिलकुल शांति हो गई और विक्रम बोला:"

" आज आप सबने मुझे राजा नही बल्कि अपना गुलाम बना लिया हैं! मुझे सौगंध हैं खून की हर उस बूंद की जो उदयगढ़ वालो के जिस्म से बही हैं मैं जब तक जब्बार और पिंडारियो को शमशान नही पहुंचा दूंगा तब तक चैन की सांस नही लूंगा!

सभी ने एक बार फिर से विक्रम की जय जयकार करी और उसके बाद धीरे धीरे प्रजा महल से बाहर निकलने लगी! मेनका के चेहरे पर भी आज एक अलग ही खुशी दमक रही थी क्योंकि अजय के जाने के बाद उसकी खुशियां ही उखड़ गई थी और अब विक्रम के आ जाने से उसकी दुनिया फिर से न केवल आबाद हो गई थी बल्कि उसका पुत्र अब उदयगढ़ के सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान था!

मेनका अपनी सीट से खड़ी हुई और बोली:" अच्छा महराज मुझे अब जाने की आज्ञा दीजिए!

विक्रम ने हैरानी से अपनी माता को देखा और बोला:" नही महाराज नही आपके लिए तो मैं सदैव आपका पुत्र ही रहूंगा माता!

मेनका:" बेशक आप मेरे पुत्र हो लेकिन आप अभी महराज के पद पर विराजमान हो तो पूरी प्रजा के साथ साथ मेरा भी कर्तव्य बनता हैं कि मैं भी राज धर्म का पालन करू!

विक्रम कुछ नही बोला और मेनका इतना कहकर बाहर की तरफ चल पड़ी और विक्रम उसको जाते हुए देखता रहा! तभी मंत्री गण के बीच आपस में आंखो ही आंखो में कुछ बात हुई और भीमा सिंह बोले:"

" वैसे तो महाराज आप हैं लेकिन अगर आपकी इजाजत हो तो हम सभी मंत्री दल के लोग आपके बड़े बुजुर्ग होने के नाते एक निर्णय और लेना चाहते हैं!

विक्रम:" आप सब मुझे उम्र में बड़े हैं और निसंदेह आप सभी उदयगढ़ के शुभ चिंतक हैं तो मेरी तरफ से आपको पूरी आजाद हैं और आपका ये फैसला भी मेरे लिए मान्य होगा!

भीमा सिंह:" ठीक हैं महाराज फिर हम सब लोगो ने मिलकर ये फैसला किया है कि आपका माताश्री मेनका देवी की राजमाता का पद दिया जाए!

विक्रम ने हैरानी से सबकी तरफ देखा और दरवाजे का पास पहुंच चुकी मेनका के भी बढ़ते कदम रुक गए और विक्रम बोला:"

" लेकिन क्या ऐसा करना उचित होगा क्योंकि मेरे बारे में तो राजमाता ने भी फैसला लिया था लेकिन मेरी माता को राजमाता का पद देना क्या नियमो का उल्लंघन नही हैं ?

सतपाल सिंह:" कोई उल्लंघन नही हैं महराज क्योंकि महराज की माता ही राजमाता होती हैं और इस समय महराज आप हैं और यही उदयगढ़ का विधान हैं! इसमें कुछ भी गलत नही है!

मेनका: लेकिन मैं खुद को इस पद के लायक नही समझती हु और मेरी महराज से विनती है कि इस आदेश को तुरंत निरस्त करने का कष्ट करे!

विक्रम के समझ नही आ रहा था तो क्या फैसला करे तो भीमा सिंह बीच में ही बोला:"

" महाराज तो अब अपने वचन से बंधे हुए हैं और चाहकर भी इस फैसले को चुनौती नही दे सकते! हम सभी उदयगढ़ के शुभ चिंतक और आपके बुजुर्ग हैं! आप हमारे फैसले के विरुद्ध जाकर हम सबके अपमान का दोषी बन रही हैं !

मेनका के चेहरे पर उदासी दिखी और बोली:" ऐसा न कहे क्योंकि मैं सपने में ऐसा नहीं सोच सकती! आप सभी मेरे लिए आदरणीय हैं लेकिन राजमाता का पद स्वीकार न करना मेरी अपनी मजबूरी हैं!

सतपाल सिंह:" क्या आप उदयगढ़ के विधान में विश्वास रखती है और एक सच्ची और वफादार हैं ?

मेनका:" निश्चित रूप से मैं विधान में विश्वास रखती हूं और अपनी अंतिम सांस तक उदयगढ़ की नीतियों और परंपरा के लिए दृढ़ संकल्प रखती हु!

भीमा सिंह:" फिर महाराज की माता को राजमाता का दर्जा जाना भी तो उदयगढ़ का विधान और परंपरा है तो आप इससे कैसे इनकार कर सकती हो ?

मेनका कुछ नही बोली और विक्रम की तरफ नजरे खड़ाकर देखा मानो महाराज की अनुमति मांग रही हो और विक्रम बोला:"

" मेरी इच्छा तो यही थी कि मेरे माता को राजमाता का पद न मिले लेकिन आप सबके विरुद्ध और विधान और परंपरा के खिलाफ जाना भी अनुचित होगा इसलिए आप सबकी सहमति मे ही मेरी भी सहमति हैं!

देखते ही देखते भीमा ने मेनका को राजमाता की गद्दी ग्रहण कराई और मेनका की आंखो से आंसू छलक पड़े जिन्हे बड़ी मुश्किल से वो रोक पाई! दोहपर का समय होने के कारण सभी लोग निकल गए और विक्रम के साथ साथ मेनका भी विश्राम गृह की और प्रवेश कर गई और उसके पीछे दासियों की एक लंबी कतार लग गई थी और मेनका हैरानी से चलती हुई विश्राम कक्ष में आ गई तो एक दासी जिसका नाम बिंदिया था बोली:"

" राजमाता आपके स्नान के लिए सब तैयार हैं! आप चाहे तो स्नान कर सकती हैं!

मेनका को भला क्या आपत्ति होती तो दासिया उसे लेकर स्नानगृह की और चल पड़ी और देखते ही देखते वो स्नानगृह पहुंच गए और एक एक करके सभी दासिया रुक गई और बिंदिया बोली:"

" आप स्नान कीजिए! तब तक मैं बाहर आपकी प्रतीक्षा करूंगी!

इतना कहकर बिंदिया भी बाहर निकल गई और मेनका धीरे धीरे अन्दर आ गई और देखा कि अब उसके आस पास कोई नही था तो मेनका ने स्नानग्रह पर एक भरपूर नजर डाली और उसकी आंखो में चमक उभर आई क्योंकि स्नानगढ के जल से उठती हुई सुगंध उसके तन मन को तरंगित कर गई थी और स्नानगृह के पानी में हल्दी दूध और चंदन के साथ केसर का मिश्रण था! पानी में तैरती हुई गुलाब की पत्तियां उसकी शोभा को और बढ़ा रही थी जिसे देखकर मेनका का मन मयूर नाच उठा! मेनका धीरे से चलती हुई इठलाती हुई जैसे ही पानी के अंदर पांव डाली तो उसके तन बदन में सिरहन सी दौड़ गई और देखते ही देखते मेनका पानी के अंदर खुश गई और पानी अब उसके पेट आ रहा था और मेनका उसमे खुशी खुशी अठखेलियां कर रही थी! कभी वो पानी को हाथ में भरती तो कभी गुलाब की पत्तियों की सुगंध का आनंद लेती! खुशी और उत्तेजना के मारे मेनका की सांसे तेज हो गई थी और मेनका ने गुलाब के एक फूल को हाथ में ले लिया और उसकी अद्भुत सुगंध का आनंद लेने लगी! जैसे ही केसर और चंदन से युक्त गुलाब की पत्तियों की मादक सुगंध मेनका की सांसों में घुली तो मेनका ने अपने होंठो से जीभ को बाहर निकाला और उसकी जीभ गुलाब की पत्तियों को चूमने लगी और मेनका की आंखे उस अद्भुत एहसास से बंद हो गई और मेनका ने गुलाब की पत्तियों को अपने मुंह में भर लिया और चूस चूस कर खाने लगी! मेनका अब पूरी तरह से मदहोश हो गई थी और अब वो बिल्कुल स्नानगृह के बीच में आ गई थी जिससे पानी अब उसकी गर्दन तक आ रहा था और मेनका दोनो गोल मटोल भारी भरकम चूंचियां पानी में समा गई थी! मेनका ने जब गुलाब का पूरा फूल खा लिया तब ही उसे सुकून मिला और उसकी सांसे अब सुगंधित होकर महक उठी थी!

मेनका चूंकि आज पहली ही बार स्नानगृह में नहा रही थी तो उसने अपने कपड़े उतारना सही नही समझा और मेनका ने अब पानी के अंदर एक डुबकी लगाई तो मन में खुशी ही लहर दौड़ गई और देखते ही वो पानी में किसी छोटी बच्ची की तरह डुबकियां लगाने लगी जिससे उसकी सांसे अब काफी तेज हो गई थी और उसकी चुचियों में अब उछाल आ रहा था और मेनका ने अब इधर उधर देखा और जब थोड़ा निश्चित हुई कि आस पास कोई नही देखा रहा हैं तो उसने अपनी ब्रा में हाथ डालकर दोनो चुचियों को अच्छे से पानी से रगड़ रगड़ कर साफ किया जिससे उसकी चुचियों के चुचुक अकड़ कर तन गए और मेनका के बदन में अब उत्तेजना ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था और उसकी आंखे सुर्ख लाल हो गई थी! मेनका ने पानी में करीब आधे घंटे तक स्नान किया और उसके बाद उसने बिंदिया को आवाज लगाई तो बिंदिया उसके लिए वस्त्र लिए आ गई और फिर वापसी चली गई! मेनका ने देखा कि ये एक सफेद साड़ी थी जो उसे विधवा होने कारण दी गई थी और राजमाता भी खुद ऐसे ही कपड़े पहनती थी!

मेनका ने साड़ी को अपने जिस्म पर लपेट लिया और उसके बाद वो अपने कक्ष की और चल पड़ी! मेनका ने कक्ष में जाकर कक्ष का निरीक्षण किया और कक्ष की सुंदरता देखकर वो मंद मंद मुस्कुरा उठी! मेनका ने कक्ष की एक दीवार पर टंगे हुए परदे। को हटाया तो उसे हैरानी हुई कि कक्ष की एक दीवार का पर्दा हटाते ही पूरी शीशे की दीवार आ गई और जिसमे मेनका सिर से लेकर पांव तक अपना अक्श देख सकती थी! मेनका अभी देख ही रही थी तभी बिंदिया की आवाज आई

" राजमाता महाराज भोजन के लिए आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं!

मेनका बिना वक्त गंवाए बाहर आ गई और देखा कि एक बड़ी सी सुंदर टेबल और एक से बढ़कर एक पकवान और मेवे के साथ साथ ताजे रसीले फल रखे हुए थे और मेनका ने देखा कि विक्रम बैठे हुए थे और बोले:"

" बड़ा वक्त लगाया आपने राजमाता आने में ? हम कबसे आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे?

मेनका ने अपने बेटे के मुंह से राजमाता सुना तो वो खुद भी सम्मानपूर्वक बोली:"

" हम नहाने के लिए चले गए थे! चूंकि हमारा राजमहल में आज पहला ही दिन हैं तो इसलिए देर हो गई इसलिए हम आपसे क्षमा चाहते हैं!

विक्रम:" नही राजमाता क्षमा मांगकर आप हमे लज्जित मत कीजिए! धीरे धीरे आप राजमहल के बारे में सब कुछ जान जायेगी!

मेनका:" जी महराज ! निसंदेह जल्दी ही महल देख लेंगे और सारे तौर तरीके भी सीख लेंगे!

विक्रम ने देखा कि मेनका के चेहरे पर एक तेज था और उसकी आंखो की चमक उसकी खुशी के साथ साथ आत्म विश्वास को भी बयान कर रही थीं और बोला:"

" हमे आप पर पूरा विश्वास है राजमाता! चलिए अब भोजन ग्रहण करते हैं क्योंकि हमें बहुत जोरो से भूख लगी है!

उसके बाद दोनो मा बेटे ने भोजन ग्रहण किया और मेनका ने एक फल उठाया और बोली:"

" ये कौन सा फल है महाराज ? हमने पहले कभी नहीं देखा!

विक्रम:" ये मालभोग है और इसे पहाड़ी इलाकों से सिर्फ राज परिवार के लिए ही मंगाया जाता हैं! इसके साथ साथ आप और भी कुछ अद्भुत फलों के साथ मेवे का भी आनंद लेंगी!

मेनका:" ये तो सचमुच बड़े ही सौभाग्य की बात है महराज जो हमे आपके साथ रहकर ऐसे अद्भुत फलों और मेंवो का आनंद लेने का सौभाग्य प्राप्त होगा!

इतना कहकर मेनका ने उस फल को आधा मुंह में लिया और जैसे ही दांतो से हल्का सा दबाया तो मधुर मीठे रस की धार बह निकली और सीधे विक्रम के मुंह पर पड़ी तो मेनका शर्म से दोहरी हो गई तो विक्रम अपनी जगह से खड़े हुए और मेनका के पास आकर बोले:"

" रुकिए राजमाता ये माल भोग को खाने का सही तरीका नही हैं क्योंकि अत्यधिक रसीला होने के कारण ये आपके सभी कपड़े खराब कर देगा!

इतना सुनकर मेनका ने माल भोग को मुंह से बाहर निकाला और विक्रम की तरफ बढ़ा दिया! विक्रम ने माल भोग को हाथ में लिया और फिर तेज धारदार चाकू से उसके छोटे छोटे टुकड़े किए और टुकड़े को अपने मुंह से रखा और धीरे धीरे खाते हुए बोला:" ऐसे धीरे धीरे चबाते हुए इस फल का आनंद लिया जाता हैं राजमाता!

मेनका ने भी धीरे से एक टुकड़ा उठाया और धीरे धीरे खाने लगी तो सच में उसे बेहद स्वादिष्ट लगा और बोली:" महराज ये तो सच मे बेहद स्वादिष्ट हैं!

विक्रम:" बिलकुल राजमाता! इसे खाने के बाद आप अच्छे से पल्लू धक कर जाना और अपने कपड़े बदल लेना नही तो दासिया पता नही क्या क्या बाते करेंगी!

मेनका:" सच में आप हमारा कितना ध्यान रख रहे हैं! मैं तो आपके जैसा पुत्र पाकर धन्य हो गई महाराज! मन करता है कि अपनी सारा ममता आप पर लूटा दू मैं !

इतना कहकर मेनका ने अपनी बांहों को फैलाया तो विक्रम भी उसके सीने से आ लगा और मेनका ने अपने महाराज पुत्र को अपने आगोश मे समेट लिया तो विक्रम बोला:"

" मैं तो आपकी ममता के लिए तरसा हू माता! सच में आपके आंचल में कितना सुकून हैं!

मेनका ने उसे और ज़ोर से कस लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोली:" अब और नही तरसने दूंगी आपको पुत्र ! मेरे ये जीवन आज से आपको समर्पित है!

मेनका के गले से लगे हुए विक्रम को मेनका के बदन से उठती हुई चंदन केसर और गुलाब की सुगंध बेहद लुभावनी लग रही थी और और विक्रम ने अपनी मजबूत शक्तिशाली भुजाओं का दबाव डाला तो मेनका कसमसाते हुए बोली:" ओहो महाराज मेरे पुत्र मुझ पर इतनी जोर आजमाइश मत कीजिए! मेरी इतनी हिम्मत नहीं कि आपकी शक्तिशाली भुजाओं का दबाव सह सकू!

विक्रम को अब अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी बांहों का दबाव कम करते हुए बोला:"

" क्षमा कीजिए माताश्री! दरअसल हम आपकी ममतामई भावनाओ में बह गए थे!

मेनका:" क्षमा मांगकर हमें शर्मिंदा न करे महराज! बस इतने भी भावनाओ में मत बह जाना कि हमारे नाजुक बदन की हड्डियां ही तोड़ डालो आप!

विक्रम:" ऐसा कभी नही होगा राजमाता क्योंकि आपकी सुरक्षा हमारा फर्ज है एक महराज होने के नाते भी और एक पुत्र होने के नाते भी!

मेनका ने एक बार फिर से उसका माथा चूम लिया और बोली:"

" हमे आप पर पूर्ण विश्वास है महाराज मेरे वीर पुत्र! अच्छा मैं अब चलती हु!

इतना कहकर मेनका ने अपने पल्लू को ठीक किया और अपने कक्ष की और बढ़ गई तो वही विक्रम भी अपने कक्ष की और बढ़ गया!

शाम धीरे धीरे गहराने लगी और विश्राम के बाद मेनका करीब छह बजे उठ गई और फिर से कक्ष की सुंदरता को निहारने लगी जो अपने आप में अदभुत थी! उसके कदमों की आहत सुनकर बिंदिया ने दरवाजे पर दस्तक दी तो मेनका ने उसे अंदर आने के लिए कहा तो बिंदिया गेट पर से ही बोली:"

" राजमाता हम दासियों को कक्ष के अंदर आने की इजाजत नही होती! इसलिए मुझे क्षमा कीजिए लेकिन आप जो भी आदेश करेगी मैं बाहर से ही उसे पूर्ण करूंगी!

मेनका को आश्चर्य हुआ कि साए की साथ रहने वाली और हर एक सुविधा का ध्यान रखने वाली बिंदिया को अंदर आने की इजाजत क्यों नही हैं तो वो बोली:"

" बिंदिया ये राज आदेश हैं कि आप अभी अंदर आइए!

इतना सुनकर घबराती हुई बिंदिया दरवाजे पर आ खड़ी हुई लेकिन अंदर आने की हिम्मत नही हुई और बोली

" क्षमा चाहती हू राजमाता लेकिन मेरे अंदर इतनी हिम्मत नही हैं कि अंदर आ सकू और दुख भी हैं कि आपका आदेश नही मान पा रही हूं!

मेनका खुद चलती हुई दरवाजे पर आई और परदे को हटाकर बिंदिया का हाथ पकड़ कर उसे अंदर खीच लिया और बिंदिया बिना कुछ बोले अंदर आ गई और मेनका बोली:"

" बिंदिया तुम मेरे लिए छोटी बहन जैसी हो इसलिए मेरी बात मान लिया करो! समझी कुछ ?

बिंदिया ने बस हां में गर्दन को हिला दिया और बोली:" जैसी आपकी आज्ञा राजमाता! आपके लिए खाने में क्या बनाऊं आज ?

मेनका को समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे इसलिए कुछ सोचते हुए बोली:"

" इसके लिए एक बार महराज से बात कर लीजिए! जो उन्हे पसंद हो वही आप बना लीजिए!

बिंदिया ने सहमति में सिर हिलाया और नजरे नीचे रखे हुए ही बाहर निकल गई! बिंदिया के अंदर कक्ष का निरीक्षण करने की भी हिम्मत नहीं थी और उसकी नजरे नीचे ही झुकी रही लेकिन नीचे से कक्ष की सुंदरता देखकर वो समझ गई थी सच में बेहद खूबसूरत कक्ष था!

विक्रम को अब सलमा की याद आ रही थीं और उसने सुल्तानपुर जाने का फैसला किया लेकिन उसके सामने समस्या थी कि अंदर कैसे प्रवेश किया जाए! कुछ योजनाएं थी लेकिन काफी कठिन थी और खतरो से भरी हुई और महाराज नही चाहते थे कि वो अपने साथ साथ सैनिकों को खतरे में डाले! विक्रम ने इसलिए अकेले ही जाने का निश्चय किया क्योंकि वो सलमा से प्यार करते है ये बात अभी से सबको पता चल जाए ये भी सही नही था!

विक्रम ने जाने से पहले एक बात सुलतान से मिलने का निश्चय किया और सुलतान से मिलने पहुंचे तो सुलतान उन्हे देखते हुए खुश हुए और बोले:"

" राजतिलक मुबारक हो महाराज आपको! मेरी दुवाएं आपके साथ हमेशा रहेगी!

विक्रम ने सुलतान का हाथ पकड़ लिया और अपने सिर पर रखते हुए बोले:" आप बड़ो का प्यार और आशीर्वाद हमेशा साथ रहना ही चाहिए! अभी आप काफी बेहतर हो गए हैं पहले से!

सुलतान:" हान महाराज, अब अब तो मेरे हाथ तलवार उठाने के लिए मचल रहे हैं !

विक्रम:" बस थोड़ा सा और धीरज रखिए! अच्छा मैं कुछ जरूरी काम के लिए सुल्तानपुर जाना चाहता हु! क्या कोई मदद कर सकते हैं आप क्योंकि पहरा आजकल बहुत ज्यादा बढ़ गया हैं सीमा पर !

सुलतान ने थोड़ी देर सोचा और बोले:" सीनी नदी के किनारे सड़क गई हैं! उस सड़क पर आगे जाकर एक खंडहर मिलेगा जिसमे एक कुआं हैं जो ढका हुआ है, पत्थर हटाकर उसमे धीरे से उतर जाना और गुफा से होते हुए सीधे आप राजमहल के अंदर ही निकलोगे ! लेकिन ध्यान रहे मेरे लिए इस रास्ते का सिर्फ आपको पता होगा! मेरे परिवार के लोग भी इस रास्ते को नही जानते हैं! आप सलमा और रजिया दोनो को भी इस रास्ते के बारे मे बता देना ताकि जरूरत पड़ने पर वो बच सके!

विक्रम:" आप मुझे पर भरोसा रखिए! मैं इसका कभी गलत इस्तेमाल नही करूंगा! अच्छा आप अपना ध्यान रखिए और मुझे अभी राज महल में कुछ काम होगा!

इतना कहकर विक्रम आ गया और खाने के लिए आया तो देखा कि मेनका पहले से ही बैठी हुई थी और बोली:"

" हम आपकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे पुत्र! बड़ी जोर से भूख भी लगी है हमे!

विक्रम:" क्षमा कीजिए थोड़ा कार्य था जिसके चलते विलंब हुआ! चलिए अब भोजन शुरू करते हैं!

दोनो के उसके बाद पेटभर कर खाना खाया और उसके बाद मेनका बोली:"

" पुत्र कभी कभी लगता हैं कि ऐसे हम जिस ऐश्वर्य में जी रहे हैं उसके लिए उपयुक्त नही हैं और हमे ये सब त्याग देना चाहिए!

विक्रम:" माता आप ठीक कहते हैं लेकिन एक बात हमे ध्यान रखना चाहिए कि ये हमे जिम्मेदारी मिली हैं और इसे निभाना हमारा कर्तव्य है! बस इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमे आगे बढ़ना होगा!

मेनका:" आपकी बात से सहमत हु लेकिन फिर भी मेरा दिल नही मानता हैं पुत्र!

विक्रम:" आप सोचिए कि पूरे राज्य में से सिर्फ हमको ही क्यों चुना गया क्योंकि हमने राज्य के लिए ढेर सारे बलिदान दिए हैं! इतना कुछ खोने के बाद किसी वारिस के ना होने के बाद हमे जो मिला हैं उसका उपयोग करना चाहिए! क्या आपको लगता है कि हमारे परिवार से ज्यादा किसी ने बलिदान दिया हैं आज तक ?

मेनका:" नही किसी ने नही दिया हैं ! मैं आपकी बात से सहमत हु!

विक्रम:" फिर हो कुछ हो रहा है वो सब भाग्य के भरोसे छोड़ दीजिए और जो मिला हैं उसका भोग कीजिए! मैं थोड़ी देर आपको महल के बगीचे में घुमा कर लाऊंगा!


इतना कहकर विक्रम निकल गया और मेनका ने एक सुंदर सफेद रंग की साड़ी पहनी और ऊपर से पल्लू को ठीक करने के बाद विक्रम के पास आ गई और दोनो धीरे धीरे चलते हुए बगीचे में आ गए और मेनका बगीचे की खूबसूरती देखते ही खुशी से झूम उठी और बोली:"

" सच में शाही बगीचा तो बेहद खूबसूरत हैं और रंग बिरंगे फूल इसकी शोभा बढ़ा रहे हैं!

विक्रम:" सच में ये खूबसूरत हैं माता! आप चाहे तो सुबह शाम दोनो समय इस घूमने के लिए आ सकती हैं!

मेनका:" मुझे फूल बेहद पसंद हैं महाराज और खासतौर से गुलाब के लाल सुर्ख फूलो में तो मेरी जान बसती हैं!

विक्रम:" ये तो आपने बड़ी अच्छी बात बताई! मैं कल माली को बोलकर पूरे बगीचे को गुलाब के लाल सुर्ख पौधो के भरवा दूंगा! और क्या क्या पसंद हैं आपको ?

मेनका उसकी बात सुनकर मुस्कुराई और बोली:" फूलो पर मंडराती हुई खूबसूरत तितलियां और उड़ते हुए आजाद पंछी ये सब मुझे बेहद आकर्षक लगते हैं महाराज!

विक्रम:" आप जो भी कहेगी आपकी वही इच्छा आपका पुत्र पूरी करेगा! बस आप बोलती रहिए!

मेनका धीरे धीरे पार्क में घूम रही थी और बोली:"

" धन्यवाद पुत्र आपका! वैसे आपको क्या क्या पसंद हैं ?

विक्रम:" मुझे तो सब कुछ अच्छा लगता हैं! बस आप खुश रहे इसमें ही मेरी खुशी हैं!

मेनका उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी और आगे बढ़ गई और देखा कि बेहद खूबसूरत गुलाब के लाल सुर्ख फूल खिलकर महक रहे थे तो मेनका खुद को नही रोक पाई और फूल तोड़ने के लिए झुक गई लेकिन जैसे ही आगे झुकी तो उसकी साड़ी का पल्लू कांटो में फंस गया और जैसे वो फूल तोड़कर पीछे हुई तो उसका पल्लू खीच गया और पूरी तरह से कांटो में फंस गया और मेनका भी छातियां की गहरी रेखा खुलकर विक्रम के सामने आ गई और मेनका शर्म से दोहरी हो उठी और जल्दी से अपने पल्लू को खींचा लेकिन पल्लू जैसे फंस सा गया था और मेनका ने जैसे ही जोर लगाया तो उसका पल्लू बीच में से फट गया और मेनका का मुंह शर्म से लाल होकर झुक गया !


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मेनका के गोरे गोरे कंधे नुमाया हो उठे और उसकी भारी भरकम चूंचियां अपना आकार साफ दिखा रही थी जिन्हे देखकर विक्रम की आंखे खुली की खुली रह गई! विक्रम ने अब से पहले सलमा की चुचियों को देखा था और उनका आनंद लिया था लेकिन उसे मेनका की चुचियों की गहरी खाई इस बात का प्रमाण थी कि उसकी चूचियां सलमा से कई गुना बेहतर है! विक्रम थोड़ा सा आगे बढ़ा और बोला:" अगर आपको फूल ही चाहिए था तो मुझे बोल देती ! चलिए अभी तो जो होना था हो गया!

मेनका शर्म से पानी पानी हो रही थी और धीरे से बोली:" मुझे पता नहीं था कि ये पल्लू फंसकर फट जायेगा!

विक्रम:" शाही बगीचे में गुलाब के पौधो में कांटे ज्यादा बड़े होते हैं इस कारण आपकी साड़ी फटी है! आप फिक्र मत कीजिए यहां कोई नही आएगा!

मेनका ने मन ही मन सोचा कि क्यों नही आयेगा तो ठीक हैं लेकिन आप भी तो एक मर्द है और आपके सामने ऐसी हालत में रखना मुझे शर्मशार कर रहा हैं! विक्रम मेनका की हालत समझ गया और सोचने लगा कि क्या ये ही वह मेनका हैं जिसे मैंने उसे दिन अजय के साथ देखा था! फिर विक्रम ने अपनी पगड़ी को खोला और उसमे से कपड़ा निकाल कर मेनका को दिया तो मेनका ने उसे अपनी छाती पर ढक लिया और बिना कुछ बोले तेजी से अपने विश्राम कक्ष की और बढ़ गई! मेनका के कदमों की गति बता रही थी कि उसकी क्या हालत हैं और कितनी ज्यादा वो पानी पानी हो गई थी!
 
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विक्रम के राजतिलक में राज दरबार खचाखच भरा हुआ था और चारो और विक्रम की जय जयकार के नारे गूंज रहे थे! महल को चारो ओर से लोगो की भीड़ ने घेर रखा था और सभी के चेहरे पर खुशी साफ दिखाई दे रही थी जो इस बात का सुबूत थी कि मंत्री गण ने विक्रम को राजा बनाकर कोई गलती नही की थी!

राज गद्दी पर बैठे हुए विक्रम के माथे पर एक तेज था और उसकी आंखो में आत्म विश्वास साफ तौर पर झलक रहा था और जैसे ही प्रजा जोर जोर से उसकी जय जयकार करने लगी तो विक्रम खड़ा हुआ और हाथ से सभी को शांत रहने का इशारा किया तो पूरा राज दरबार में बिलकुल शांति हो गई और विक्रम बोला:"

" आज आप सबने मुझे राजा नही बल्कि अपना गुलाम बना लिया हैं! मुझे सौगंध हैं खून की हर उस बूंद की जो उदयगढ़ वालो के जिस्म से बही हैं मैं जब तक जब्बार और पिंडारियो को शमशान नही पहुंचा दूंगा तब तक चैन की सांस नही लूंगा!

सभी ने एक बार फिर से विक्रम की जय जयकार करी और उसके बाद धीरे धीरे प्रजा महल से बाहर निकलने लगी! मेनका के चेहरे पर भी आज एक अलग ही खुशी दमक रही थी क्योंकि अजय के जाने के बाद उसकी खुशियां ही उखड़ गई थी और अब विक्रम के आ जाने से उसकी दुनिया फिर से न केवल आबाद हो गई थी बल्कि उसका पुत्र अब उदयगढ़ के सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान था!

मेनका अपनी सीट से खड़ी हुई और बोली:" अच्छा महराज मुझे अब जाने की आज्ञा दीजिए!

विक्रम ने हैरानी से अपनी माता को देखा और बोला:" नही महाराज नही आपके लिए तो मैं सदैव आपका पुत्र ही रहूंगा माता!

मेनका:" बेशक आप मेरे पुत्र हो लेकिन आप अभी महराज के पद पर विराजमान हो तो पूरी प्रजा के साथ साथ मेरा भी कर्तव्य बनता हैं कि मैं भी राज धर्म का पालन करू!

विक्रम कुछ नही बोला और मेनका इतना कहकर बाहर की तरफ चल पड़ी और विक्रम उसको जाते हुए देखता रहा! तभी मंत्री गण के बीच आपस में आंखो ही आंखो में कुछ बात हुई और भीमा सिंह बोले:"

" वैसे तो महाराज आप हैं लेकिन अगर आपकी इजाजत हो तो हम सभी मंत्री दल के लोग आपके बड़े बुजुर्ग होने के नाते एक निर्णय और लेना चाहते हैं!

विक्रम:" आप सब मुझे उम्र में बड़े हैं और निसंदेह आप सभी उदयगढ़ के शुभ चिंतक हैं तो मेरी तरफ से आपको पूरी आजाद हैं और आपका ये फैसला भी मेरे लिए मान्य होगा!

भीमा सिंह:" ठीक हैं महाराज फिर हम सब लोगो ने मिलकर ये फैसला किया है कि आपका माताश्री मेनका देवी की राजमाता का पद दिया जाए!

विक्रम ने हैरानी से सबकी तरफ देखा और दरवाजे का पास पहुंच चुकी मेनका के भी बढ़ते कदम रुक गए और विक्रम बोला:"

" लेकिन क्या ऐसा करना उचित होगा क्योंकि मेरे बारे में तो राजमाता ने भी फैसला लिया था लेकिन मेरी माता को राजमाता का पद देना क्या नियमो का उल्लंघन नही हैं ?

सतपाल सिंह:" कोई उल्लंघन नही हैं महराज क्योंकि महराज की माता ही राजमाता होती हैं और इस समय महराज आप हैं और यही उदयगढ़ का विधान हैं! इसमें कुछ भी गलत नही है!

मेनका: लेकिन मैं खुद को इस पद के लायक नही समझती हु और मेरी महराज से विनती है कि इस आदेश को तुरंत निरस्त करने का कष्ट करे!

विक्रम के समझ नही आ रहा था तो क्या फैसला करे तो भीमा सिंह बीच में ही बोला:"

" महाराज तो अब अपने वचन से बंधे हुए हैं और चाहकर भी इस फैसले को चुनौती नही दे सकते! हम सभी उदयगढ़ के शुभ चिंतक और आपके बुजुर्ग हैं! आप हमारे फैसले के विरुद्ध जाकर हम सबके अपमान का दोषी बन रही हैं !

मेनका के चेहरे पर उदासी दिखी और बोली:" ऐसा न कहे क्योंकि मैं सपने में ऐसा नहीं सोच सकती! आप सभी मेरे लिए आदरणीय हैं लेकिन राजमाता का पद स्वीकार न करना मेरी अपनी मजबूरी हैं!

सतपाल सिंह:" क्या आप उदयगढ़ के विधान में विश्वास रखती है और एक सच्ची और वफादार हैं ?

मेनका:" निश्चित रूप से मैं विधान में विश्वास रखती हूं और अपनी अंतिम सांस तक उदयगढ़ की नीतियों और परंपरा के लिए दृढ़ संकल्प रखती हु!

भीमा सिंह:" फिर महाराज की माता को राजमाता का दर्जा जाना भी तो उदयगढ़ का विधान और परंपरा है तो आप इससे कैसे इनकार कर सकती हो ?

मेनका कुछ नही बोली और विक्रम की तरफ नजरे खड़ाकर देखा मानो महाराज की अनुमति मांग रही हो और विक्रम बोला:"

" मेरी इच्छा तो यही थी कि मेरे माता को राजमाता का पद न मिले लेकिन आप सबके विरुद्ध और विधान और परंपरा के खिलाफ जाना भी अनुचित होगा इसलिए आप सबकी सहमति मे ही मेरी भी सहमति हैं!

देखते ही देखते भीमा ने मेनका को राजमाता की गद्दी ग्रहण कराई और मेनका की आंखो से आंसू छलक पड़े जिन्हे बड़ी मुश्किल से वो रोक पाई! दोहपर का समय होने के कारण सभी लोग निकल गए और विक्रम के साथ साथ मेनका भी विश्राम गृह की और प्रवेश कर गई और उसके पीछे दासियों की एक लंबी कतार लग गई थी और मेनका हैरानी से चलती हुई विश्राम कक्ष में आ गई तो एक दासी जिसका नाम बिंदिया था बोली:"

" राजमाता आपके स्नान के लिए सब तैयार हैं! आप चाहे तो स्नान कर सकती हैं!

मेनका को भला क्या आपत्ति होती तो दासिया उसे लेकर स्नानगृह की और चल पड़ी और देखते ही देखते वो स्नानगृह पहुंच गए और एक एक करके सभी दासिया रुक गई और बिंदिया बोली:"

" आप स्नान कीजिए! तब तक मैं बाहर आपकी प्रतीक्षा करूंगी!

इतना कहकर बिंदिया भी बाहर निकल गई और मेनका धीरे धीरे अन्दर आ गई और देखा कि अब उसके आस पास कोई नही था तो मेनका ने स्नानग्रह पर एक भरपूर नजर डाली और उसकी आंखो में चमक उभर आई क्योंकि स्नानगढ के जल से उठती हुई सुगंध उसके तन मन को तरंगित कर गई थी और स्नानगृह के पानी में हल्दी दूध और चंदन के साथ केसर का मिश्रण था! पानी में तैरती हुई गुलाब की पत्तियां उसकी शोभा को और बढ़ा रही थी जिसे देखकर मेनका का मन मयूर नाच उठा! मेनका धीरे से चलती हुई इठलाती हुई जैसे ही पानी के अंदर पांव डाली तो उसके तन बदन में सिरहन सी दौड़ गई और देखते ही देखते मेनका पानी के अंदर खुश गई और पानी अब उसके पेट आ रहा था और मेनका उसमे खुशी खुशी अठखेलियां कर रही थी! कभी वो पानी को हाथ में भरती तो कभी गुलाब की पत्तियों की सुगंध का आनंद लेती! खुशी और उत्तेजना के मारे मेनका की सांसे तेज हो गई थी और मेनका ने गुलाब के एक फूल को हाथ में ले लिया और उसकी अद्भुत सुगंध का आनंद लेने लगी! जैसे ही केसर और चंदन से युक्त गुलाब की पत्तियों की मादक सुगंध मेनका की सांसों में घुली तो मेनका ने अपने होंठो से जीभ को बाहर निकाला और उसकी जीभ गुलाब की पत्तियों को चूमने लगी और मेनका की आंखे उस अद्भुत एहसास से बंद हो गई और मेनका ने गुलाब की पत्तियों को अपने मुंह में भर लिया और चूस चूस कर खाने लगी! मेनका अब पूरी तरह से मदहोश हो गई थी और अब वो बिल्कुल स्नानगृह के बीच में आ गई थी जिससे पानी अब उसकी गर्दन तक आ रहा था और मेनका दोनो गोल मटोल भारी भरकम चूंचियां पानी में समा गई थी! मेनका ने जब गुलाब का पूरा फूल खा लिया तब ही उसे सुकून मिला और उसकी सांसे अब सुगंधित होकर महक उठी थी!

मेनका चूंकि आज पहली ही बार स्नानगृह में नहा रही थी तो उसने अपने कपड़े उतारना सही नही समझा और मेनका ने अब पानी के अंदर एक डुबकी लगाई तो मन में खुशी ही लहर दौड़ गई और देखते ही वो पानी में किसी छोटी बच्ची की तरह डुबकियां लगाने लगी जिससे उसकी सांसे अब काफी तेज हो गई थी और उसकी चुचियों में अब उछाल आ रहा था और मेनका ने अब इधर उधर देखा और जब थोड़ा निश्चित हुई कि आस पास कोई नही देखा रहा हैं तो उसने अपनी ब्रा में हाथ डालकर दोनो चुचियों को अच्छे से पानी से रगड़ रगड़ कर साफ किया जिससे उसकी चुचियों के चुचुक अकड़ कर तन गए और मेनका के बदन में अब उत्तेजना ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था और उसकी आंखे सुर्ख लाल हो गई थी! मेनका ने पानी में करीब आधे घंटे तक स्नान किया और उसके बाद उसने बिंदिया को आवाज लगाई तो बिंदिया उसके लिए वस्त्र लिए आ गई और फिर वापसी चली गई! मेनका ने देखा कि ये एक सफेद साड़ी थी जो उसे विधवा होने कारण दी गई थी और राजमाता भी खुद ऐसे ही कपड़े पहनती थी!

मेनका ने साड़ी को अपने जिस्म पर लपेट लिया और उसके बाद वो अपने कक्ष की और चल पड़ी! मेनका ने कक्ष में जाकर कक्ष का निरीक्षण किया और कक्ष की सुंदरता देखकर वो मंद मंद मुस्कुरा उठी! मेनका ने कक्ष की एक दीवार पर टंगे हुए परदे। को हटाया तो उसे हैरानी हुई कि कक्ष की एक दीवार का पर्दा हटाते ही पूरी शीशे की दीवार आ गई और जिसमे मेनका सिर से लेकर पांव तक अपना अक्श देख सकती थी! मेनका अभी देख ही रही थी तभी बिंदिया की आवाज आई

" राजमाता महाराज भोजन के लिए आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं!

मेनका बिना वक्त गंवाए बाहर आ गई और देखा कि एक बड़ी सी सुंदर टेबल और एक से बढ़कर एक पकवान और मेवे के साथ साथ ताजे रसीले फल रखे हुए थे और मेनका ने देखा कि विक्रम बैठे हुए थे और बोले:"

" बड़ा वक्त लगाया आपने राजमाता आने में ? हम कबसे आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे?

मेनका ने अपने बेटे के मुंह से राजमाता सुना तो वो खुद भी सम्मानपूर्वक बोली:"

" हम नहाने के लिए चले गए थे! चूंकि हमारा राजमहल में आज पहला ही दिन हैं तो इसलिए देर हो गई इसलिए हम आपसे क्षमा चाहते हैं!

विक्रम:" नही राजमाता क्षमा मांगकर आप हमे लज्जित मत कीजिए! धीरे धीरे आप राजमहल के बारे में सब कुछ जान जायेगी!

मेनका:" जी महराज ! निसंदेह जल्दी ही महल देख लेंगे और सारे तौर तरीके भी सीख लेंगे!

विक्रम ने देखा कि मेनका के चेहरे पर एक तेज था और उसकी आंखो की चमक उसकी खुशी के साथ साथ आत्म विश्वास को भी बयान कर रही थीं और बोला:"

" हमे आप पर पूरा विश्वास है राजमाता! चलिए अब भोजन ग्रहण करते हैं क्योंकि हमें बहुत जोरो से भूख लगी है!

उसके बाद दोनो मा बेटे ने भोजन ग्रहण किया और मेनका ने एक फल उठाया और बोली:"

" ये कौन सा फल है महाराज ? हमने पहले कभी नहीं देखा!

विक्रम:" ये मालभोग है और इसे पहाड़ी इलाकों से सिर्फ राज परिवार के लिए ही मंगाया जाता हैं! इसके साथ साथ आप और भी कुछ अद्भुत फलों के साथ मेवे का भी आनंद लेंगी!

मेनका:" ये तो सचमुच बड़े ही सौभाग्य की बात है महराज जो हमे आपके साथ रहकर ऐसे अद्भुत फलों और मेंवो का आनंद लेने का सौभाग्य प्राप्त होगा!

इतना कहकर मेनका ने उस फल को आधा मुंह में लिया और जैसे ही दांतो से हल्का सा दबाया तो मधुर मीठे रस की धार बह निकली और सीधे विक्रम के मुंह पर पड़ी तो मेनका शर्म से दोहरी हो गई तो विक्रम अपनी जगह से खड़े हुए और मेनका के पास आकर बोले:"

" रुकिए राजमाता ये माल भोग को खाने का सही तरीका नही हैं क्योंकि अत्यधिक रसीला होने के कारण ये आपके सभी कपड़े खराब कर देगा!

इतना सुनकर मेनका ने माल भोग को मुंह से बाहर निकाला और विक्रम की तरफ बढ़ा दिया! विक्रम ने माल भोग को हाथ में लिया और फिर तेज धारदार चाकू से उसके छोटे छोटे टुकड़े किए और टुकड़े को अपने मुंह से रखा और धीरे धीरे खाते हुए बोला:" ऐसे धीरे धीरे चबाते हुए इस फल का आनंद लिया जाता हैं राजमाता!

मेनका ने भी धीरे से एक टुकड़ा उठाया और धीरे धीरे खाने लगी तो सच में उसे बेहद स्वादिष्ट लगा और बोली:" महराज ये तो सच मे बेहद स्वादिष्ट हैं!

विक्रम:" बिलकुल राजमाता! इसे खाने के बाद आप अच्छे से पल्लू धक कर जाना और अपने कपड़े बदल लेना नही तो दासिया पता नही क्या क्या बाते करेंगी!

मेनका:" सच में आप हमारा कितना ध्यान रख रहे हैं! मैं तो आपके जैसा पुत्र पाकर धन्य हो गई महाराज! मन करता है कि अपनी सारा ममता आप पर लूटा दू मैं !

इतना कहकर मेनका ने अपनी बांहों को फैलाया तो विक्रम भी उसके सीने से आ लगा और मेनका ने अपने महाराज पुत्र को अपने आगोश मे समेट लिया तो विक्रम बोला:"

" मैं तो आपकी ममता के लिए तरसा हू माता! सच में आपके आंचल में कितना सुकून हैं!

मेनका ने उसे और ज़ोर से कस लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोली:" अब और नही तरसने दूंगी आपको पुत्र ! मेरे ये जीवन आज से आपको समर्पित है!

मेनका के गले से लगे हुए विक्रम को मेनका के बदन से उठती हुई चंदन केसर और गुलाब की सुगंध बेहद लुभावनी लग रही थी और और विक्रम ने अपनी मजबूत शक्तिशाली भुजाओं का दबाव डाला तो मेनका कसमसाते हुए बोली:" ओहो महाराज मेरे पुत्र मुझ पर इतनी जोर आजमाइश मत कीजिए! मेरी इतनी हिम्मत नहीं कि आपकी शक्तिशाली भुजाओं का दबाव सह सकू!

विक्रम को अब अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी बांहों का दबाव कम करते हुए बोला:"

" क्षमा कीजिए माताश्री! दरअसल हम आपकी ममतामई भावनाओ में बह गए थे!

मेनका:" क्षमा मांगकर हमें शर्मिंदा न करे महराज! बस इतने भी भावनाओ में मत बह जाना कि हमारे नाजुक बदन की हड्डियां ही तोड़ डालो आप!

विक्रम:" ऐसा कभी नही होगा राजमाता क्योंकि आपकी सुरक्षा हमारा फर्ज है एक महराज होने के नाते भी और एक पुत्र होने के नाते भी!

मेनका ने एक बार फिर से उसका माथा चूम लिया और बोली:"

" हमे आप पर पूर्ण विश्वास है महाराज मेरे वीर पुत्र! अच्छा मैं अब चलती हु!

इतना कहकर मेनका ने अपने पल्लू को ठीक किया और अपने कक्ष की और बढ़ गई तो वही विक्रम भी अपने कक्ष की और बढ़ गया!

शाम धीरे धीरे गहराने लगी और विश्राम के बाद मेनका करीब छह बजे उठ गई और फिर से कक्ष की सुंदरता को निहारने लगी जो अपने आप में अदभुत थी! उसके कदमों की आहत सुनकर बिंदिया ने दरवाजे पर दस्तक दी तो मेनका ने उसे अंदर आने के लिए कहा तो बिंदिया गेट पर से ही बोली:"

" राजमाता हम दासियों को कक्ष के अंदर आने की इजाजत नही होती! इसलिए मुझे क्षमा कीजिए लेकिन आप जो भी आदेश करेगी मैं बाहर से ही उसे पूर्ण करूंगी!

मेनका को आश्चर्य हुआ कि साए की साथ रहने वाली और हर एक सुविधा का ध्यान रखने वाली बिंदिया को अंदर आने की इजाजत क्यों नही हैं तो वो बोली:"

" बिंदिया ये राज आदेश हैं कि आप अभी अंदर आइए!

इतना सुनकर घबराती हुई बिंदिया दरवाजे पर आ खड़ी हुई लेकिन अंदर आने की हिम्मत नही हुई और बोली

" क्षमा चाहती हू राजमाता लेकिन मेरे अंदर इतनी हिम्मत नही हैं कि अंदर आ सकू और दुख भी हैं कि आपका आदेश नही मान पा रही हूं!

मेनका खुद चलती हुई दरवाजे पर आई और परदे को हटाकर बिंदिया का हाथ पकड़ कर उसे अंदर खीच लिया और बिंदिया बिना कुछ बोले अंदर आ गई और मेनका बोली:"

" बिंदिया तुम मेरे लिए छोटी बहन जैसी हो इसलिए मेरी बात मान लिया करो! समझी कुछ ?

बिंदिया ने बस हां में गर्दन को हिला दिया और बोली:" जैसी आपकी आज्ञा राजमाता! आपके लिए खाने में क्या बनाऊं आज ?

मेनका को समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे इसलिए कुछ सोचते हुए बोली:"

" इसके लिए एक बार महराज से बात कर लीजिए! जो उन्हे पसंद हो वही आप बना लीजिए!

बिंदिया ने सहमति में सिर हिलाया और नजरे नीचे रखे हुए ही बाहर निकल गई! बिंदिया के अंदर कक्ष का निरीक्षण करने की भी हिम्मत नहीं थी और उसकी नजरे नीचे ही झुकी रही लेकिन नीचे से कक्ष की सुंदरता देखकर वो समझ गई थी सच में बेहद खूबसूरत कक्ष था!

विक्रम को अब सलमा की याद आ रही थीं और उसने सुल्तानपुर जाने का फैसला किया लेकिन उसके सामने समस्या थी कि अंदर कैसे प्रवेश किया जाए! कुछ योजनाएं थी लेकिन काफी कठिन थी और खतरो से भरी हुई और महाराज नही चाहते थे कि वो अपने साथ साथ सैनिकों को खतरे में डाले! विक्रम ने इसलिए अकेले ही जाने का निश्चय किया क्योंकि वो सलमा से प्यार करते है ये बात अभी से सबको पता चल जाए ये भी सही नही था!

विक्रम ने जाने से पहले एक बात सुलतान से मिलने का निश्चय किया और सुलतान से मिलने पहुंचे तो सुलतान उन्हे देखते हुए खुश हुए और बोले:"

" राजतिलक मुबारक हो महाराज आपको! मेरी दुवाएं आपके साथ हमेशा रहेगी!

विक्रम ने सुलतान का हाथ पकड़ लिया और अपने सिर पर रखते हुए बोले:" आप बड़ो का प्यार और आशीर्वाद हमेशा साथ रहना ही चाहिए! अभी आप काफी बेहतर हो गए हैं पहले से!

सुलतान:" हान महाराज, अब अब तो मेरे हाथ तलवार उठाने के लिए मचल रहे हैं !

विक्रम:" बस थोड़ा सा और धीरज रखिए! अच्छा मैं कुछ जरूरी काम के लिए सुल्तानपुर जाना चाहता हु! क्या कोई मदद कर सकते हैं आप क्योंकि पहरा आजकल बहुत ज्यादा बढ़ गया हैं सीमा पर !

सुलतान ने थोड़ी देर सोचा और बोले:" सीनी नदी के किनारे सड़क गई हैं! उस सड़क पर आगे जाकर एक खंडहर मिलेगा जिसमे एक कुआं हैं जो ढका हुआ है, पत्थर हटाकर उसमे धीरे से उतर जाना और गुफा से होते हुए सीधे आप राजमहल के अंदर ही निकलोगे ! लेकिन ध्यान रहे मेरे लिए इस रास्ते का सिर्फ आपको पता होगा! मेरे परिवार के लोग भी इस रास्ते को नही जानते हैं! आप सलमा और रजिया दोनो को भी इस रास्ते के बारे मे बता देना ताकि जरूरत पड़ने पर वो बच सके!

विक्रम:" आप मुझे पर भरोसा रखिए! मैं इसका कभी गलत इस्तेमाल नही करूंगा! अच्छा आप अपना ध्यान रखिए और मुझे अभी राज महल में कुछ काम होगा!

इतना कहकर विक्रम आ गया और खाने के लिए आया तो देखा कि मेनका पहले से ही बैठी हुई थी और बोली:"

" हम आपकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे पुत्र! बड़ी जोर से भूख भी लगी है हमे!

विक्रम:" क्षमा कीजिए थोड़ा कार्य था जिसके चलते विलंब हुआ! चलिए अब भोजन शुरू करते हैं!

दोनो के उसके बाद पेटभर कर खाना खाया और उसके बाद मेनका बोली:"

" पुत्र कभी कभी लगता हैं कि ऐसे हम जिस ऐश्वर्य में जी रहे हैं उसके लिए उपयुक्त नही हैं और हमे ये सब त्याग देना चाहिए!

विक्रम:" माता आप ठीक कहते हैं लेकिन एक बात हमे ध्यान रखना चाहिए कि ये हमे जिम्मेदारी मिली हैं और इसे निभाना हमारा कर्तव्य है! बस इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमे आगे बढ़ना होगा!

मेनका:" आपकी बात से सहमत हु लेकिन फिर भी मेरा दिल नही मानता हैं पुत्र!

विक्रम:" आप सोचिए कि पूरे राज्य में से सिर्फ हमको ही क्यों चुना गया क्योंकि हमने राज्य के लिए ढेर सारे बलिदान दिए हैं! इतना कुछ खोने के बाद किसी वारिस के ना होने के बाद हमे जो मिला हैं उसका उपयोग करना चाहिए! क्या आपको लगता है कि हमारे परिवार से ज्यादा किसी ने बलिदान दिया हैं आज तक ?

मेनका:" नही किसी ने नही दिया हैं ! मैं आपकी बात से सहमत हु!

विक्रम:" फिर हो कुछ हो रहा है वो सब भाग्य के भरोसे छोड़ दीजिए और जो मिला हैं उसका भोग कीजिए! मैं थोड़ी देर आपको महल के बगीचे में घुमा कर लाऊंगा!


इतना कहकर विक्रम निकल गया और मेनका ने एक सुंदर सफेद रंग की साड़ी पहनी और ऊपर से पल्लू को ठीक करने के बाद विक्रम के पास आ गई और दोनो धीरे धीरे चलते हुए बगीचे में आ गए और मेनका बगीचे की खूबसूरती देखते ही खुशी से झूम उठी और बोली:"

" सच में शाही बगीचा तो बेहद खूबसूरत हैं और रंग बिरंगे फूल इसकी शोभा बढ़ा रहे हैं!

विक्रम:" सच में ये खूबसूरत हैं माता! आप चाहे तो सुबह शाम दोनो समय इस घूमने के लिए आ सकती हैं!

मेनका:" मुझे फूल बेहद पसंद हैं महाराज और खासतौर से गुलाब के लाल सुर्ख फूलो में तो मेरी जान बसती हैं!

विक्रम:" ये तो आपने बड़ी अच्छी बात बताई! मैं कल माली को बोलकर पूरे बगीचे को गुलाब के लाल सुर्ख पौधो के भरवा दूंगा! और क्या क्या पसंद हैं आपको ?

मेनका उसकी बात सुनकर मुस्कुराई और बोली:" फूलो पर मंडराती हुई खूबसूरत तितलियां और उड़ते हुए आजाद पंछी ये सब मुझे बेहद आकर्षक लगते हैं महाराज!

विक्रम:" आप जो भी कहेगी आपकी वही इच्छा आपका पुत्र पूरी करेगा! बस आप बोलती रहिए!

मेनका धीरे धीरे पार्क में घूम रही थी और बोली:"

" धन्यवाद पुत्र आपका! वैसे आपको क्या क्या पसंद हैं ?

विक्रम:" मुझे तो सब कुछ अच्छा लगता हैं! बस आप खुश रहे इसमें ही मेरी खुशी हैं!

मेनका उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी और आगे बढ़ गई और देखा कि बेहद खूबसूरत गुलाब के लाल सुर्ख फूल खिलकर महक रहे थे तो मेनका खुद को नही रोक पाई और फूल तोड़ने के लिए झुक गई लेकिन जैसे ही आगे झुकी तो उसकी साड़ी का पल्लू कांटो में फंस गया और जैसे वो फूल तोड़कर पीछे हुई तो उसका पल्लू खीच गया और पूरी तरह से कांटो में फंस गया और मेनका भी छातियां की गहरी रेखा खुलकर विक्रम के सामने आ गई और मेनका शर्म से दोहरी हो उठी और जल्दी से अपने पल्लू को खींचा लेकिन पल्लू जैसे फंस सा गया था और मेनका ने जैसे ही जोर लगाया तो उसका पल्लू बीच में से फट गया और मेनका का मुंह शर्म से लाल होकर झुक गया !


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मेनका के गोरे गोरे कंधे नुमाया हो उठे और उसकी भारी भरकम चूंचियां अपना आकार साफ दिखा रही थी जिन्हे देखकर विक्रम की आंखे खुली की खुली रह गई! विक्रम ने अब से पहले सलमा की चुचियों को देखा था और उनका आनंद लिया था लेकिन उसे मेनका की चुचियों की गहरी खाई इस बात का प्रमाण थी कि उसकी चूचियां सलमा से कई गुना बेहतर है! विक्रम थोड़ा सा आगे बढ़ा और बोला:" अगर आपको फूल ही चाहिए था तो मुझे बोल देती ! चलिए अभी तो जो होना था हो गया!

मेनका शर्म से पानी पानी हो रही थी और धीरे से बोली:" मुझे पता नहीं था कि ये पल्लू फंसकर फट जायेगा!

विक्रम:" शाही बगीचे में गुलाब के पौधो में कांटे ज्यादा बड़े होते हैं इस कारण आपकी साड़ी फटी है! आप फिक्र मत कीजिए यहां कोई नही आएगा!

मेनका ने मन ही मन सोचा कि क्यों नही आयेगा तो ठीक हैं लेकिन आप भी तो एक मर्द है और आपके सामने ऐसी हालत में रखना मुझे शर्मशार कर रहा हैं! विक्रम मेनका की हालत समझ गया और सोचने लगा कि क्या ये ही वह मेनका हैं जिसे मैंने उसे दिन अजय के साथ देखा था! फिर विक्रम ने अपनी पगड़ी को खोला और उसमे से कपड़ा निकाल कर मेनका को दिया तो मेनका ने उसे अपनी छाती पर ढक लिया और बिना कुछ बोले तेजी से अपने विश्राम कक्ष की और बढ़ गई! मेनका के कदमों की गति बता रही थी कि उसकी क्या हालत हैं और कितनी ज्यादा वो पानी पानी हो गई थी!
awesome update bro.plz ab is story ko poora kariega aur usme gifs bhi daliega menka aur vikram ke beeche khoob saare gifs romance sex sabke
 

Pk8566

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विक्रम के राजतिलक में राज दरबार खचाखच भरा हुआ था और चारो और विक्रम की जय जयकार के नारे गूंज रहे थे! महल को चारो ओर से लोगो की भीड़ ने घेर रखा था और सभी के चेहरे पर खुशी साफ दिखाई दे रही थी जो इस बात का सुबूत थी कि मंत्री गण ने विक्रम को राजा बनाकर कोई गलती नही की थी!

राज गद्दी पर बैठे हुए विक्रम के माथे पर एक तेज था और उसकी आंखो में आत्म विश्वास साफ तौर पर झलक रहा था और जैसे ही प्रजा जोर जोर से उसकी जय जयकार करने लगी तो विक्रम खड़ा हुआ और हाथ से सभी को शांत रहने का इशारा किया तो पूरा राज दरबार में बिलकुल शांति हो गई और विक्रम बोला:"

" आज आप सबने मुझे राजा नही बल्कि अपना गुलाम बना लिया हैं! मुझे सौगंध हैं खून की हर उस बूंद की जो उदयगढ़ वालो के जिस्म से बही हैं मैं जब तक जब्बार और पिंडारियो को शमशान नही पहुंचा दूंगा तब तक चैन की सांस नही लूंगा!

सभी ने एक बार फिर से विक्रम की जय जयकार करी और उसके बाद धीरे धीरे प्रजा महल से बाहर निकलने लगी! मेनका के चेहरे पर भी आज एक अलग ही खुशी दमक रही थी क्योंकि अजय के जाने के बाद उसकी खुशियां ही उखड़ गई थी और अब विक्रम के आ जाने से उसकी दुनिया फिर से न केवल आबाद हो गई थी बल्कि उसका पुत्र अब उदयगढ़ के सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान था!

मेनका अपनी सीट से खड़ी हुई और बोली:" अच्छा महराज मुझे अब जाने की आज्ञा दीजिए!

विक्रम ने हैरानी से अपनी माता को देखा और बोला:" नही महाराज नही आपके लिए तो मैं सदैव आपका पुत्र ही रहूंगा माता!

मेनका:" बेशक आप मेरे पुत्र हो लेकिन आप अभी महराज के पद पर विराजमान हो तो पूरी प्रजा के साथ साथ मेरा भी कर्तव्य बनता हैं कि मैं भी राज धर्म का पालन करू!

विक्रम कुछ नही बोला और मेनका इतना कहकर बाहर की तरफ चल पड़ी और विक्रम उसको जाते हुए देखता रहा! तभी मंत्री गण के बीच आपस में आंखो ही आंखो में कुछ बात हुई और भीमा सिंह बोले:"

" वैसे तो महाराज आप हैं लेकिन अगर आपकी इजाजत हो तो हम सभी मंत्री दल के लोग आपके बड़े बुजुर्ग होने के नाते एक निर्णय और लेना चाहते हैं!

विक्रम:" आप सब मुझे उम्र में बड़े हैं और निसंदेह आप सभी उदयगढ़ के शुभ चिंतक हैं तो मेरी तरफ से आपको पूरी आजाद हैं और आपका ये फैसला भी मेरे लिए मान्य होगा!

भीमा सिंह:" ठीक हैं महाराज फिर हम सब लोगो ने मिलकर ये फैसला किया है कि आपका माताश्री मेनका देवी की राजमाता का पद दिया जाए!

विक्रम ने हैरानी से सबकी तरफ देखा और दरवाजे का पास पहुंच चुकी मेनका के भी बढ़ते कदम रुक गए और विक्रम बोला:"

" लेकिन क्या ऐसा करना उचित होगा क्योंकि मेरे बारे में तो राजमाता ने भी फैसला लिया था लेकिन मेरी माता को राजमाता का पद देना क्या नियमो का उल्लंघन नही हैं ?

सतपाल सिंह:" कोई उल्लंघन नही हैं महराज क्योंकि महराज की माता ही राजमाता होती हैं और इस समय महराज आप हैं और यही उदयगढ़ का विधान हैं! इसमें कुछ भी गलत नही है!

मेनका: लेकिन मैं खुद को इस पद के लायक नही समझती हु और मेरी महराज से विनती है कि इस आदेश को तुरंत निरस्त करने का कष्ट करे!

विक्रम के समझ नही आ रहा था तो क्या फैसला करे तो भीमा सिंह बीच में ही बोला:"

" महाराज तो अब अपने वचन से बंधे हुए हैं और चाहकर भी इस फैसले को चुनौती नही दे सकते! हम सभी उदयगढ़ के शुभ चिंतक और आपके बुजुर्ग हैं! आप हमारे फैसले के विरुद्ध जाकर हम सबके अपमान का दोषी बन रही हैं !

मेनका के चेहरे पर उदासी दिखी और बोली:" ऐसा न कहे क्योंकि मैं सपने में ऐसा नहीं सोच सकती! आप सभी मेरे लिए आदरणीय हैं लेकिन राजमाता का पद स्वीकार न करना मेरी अपनी मजबूरी हैं!

सतपाल सिंह:" क्या आप उदयगढ़ के विधान में विश्वास रखती है और एक सच्ची और वफादार हैं ?

मेनका:" निश्चित रूप से मैं विधान में विश्वास रखती हूं और अपनी अंतिम सांस तक उदयगढ़ की नीतियों और परंपरा के लिए दृढ़ संकल्प रखती हु!

भीमा सिंह:" फिर महाराज की माता को राजमाता का दर्जा जाना भी तो उदयगढ़ का विधान और परंपरा है तो आप इससे कैसे इनकार कर सकती हो ?

मेनका कुछ नही बोली और विक्रम की तरफ नजरे खड़ाकर देखा मानो महाराज की अनुमति मांग रही हो और विक्रम बोला:"

" मेरी इच्छा तो यही थी कि मेरे माता को राजमाता का पद न मिले लेकिन आप सबके विरुद्ध और विधान और परंपरा के खिलाफ जाना भी अनुचित होगा इसलिए आप सबकी सहमति मे ही मेरी भी सहमति हैं!

देखते ही देखते भीमा ने मेनका को राजमाता की गद्दी ग्रहण कराई और मेनका की आंखो से आंसू छलक पड़े जिन्हे बड़ी मुश्किल से वो रोक पाई! दोहपर का समय होने के कारण सभी लोग निकल गए और विक्रम के साथ साथ मेनका भी विश्राम गृह की और प्रवेश कर गई और उसके पीछे दासियों की एक लंबी कतार लग गई थी और मेनका हैरानी से चलती हुई विश्राम कक्ष में आ गई तो एक दासी जिसका नाम बिंदिया था बोली:"

" राजमाता आपके स्नान के लिए सब तैयार हैं! आप चाहे तो स्नान कर सकती हैं!

मेनका को भला क्या आपत्ति होती तो दासिया उसे लेकर स्नानगृह की और चल पड़ी और देखते ही देखते वो स्नानगृह पहुंच गए और एक एक करके सभी दासिया रुक गई और बिंदिया बोली:"

" आप स्नान कीजिए! तब तक मैं बाहर आपकी प्रतीक्षा करूंगी!

इतना कहकर बिंदिया भी बाहर निकल गई और मेनका धीरे धीरे अन्दर आ गई और देखा कि अब उसके आस पास कोई नही था तो मेनका ने स्नानग्रह पर एक भरपूर नजर डाली और उसकी आंखो में चमक उभर आई क्योंकि स्नानगढ के जल से उठती हुई सुगंध उसके तन मन को तरंगित कर गई थी और स्नानगृह के पानी में हल्दी दूध और चंदन के साथ केसर का मिश्रण था! पानी में तैरती हुई गुलाब की पत्तियां उसकी शोभा को और बढ़ा रही थी जिसे देखकर मेनका का मन मयूर नाच उठा! मेनका धीरे से चलती हुई इठलाती हुई जैसे ही पानी के अंदर पांव डाली तो उसके तन बदन में सिरहन सी दौड़ गई और देखते ही देखते मेनका पानी के अंदर खुश गई और पानी अब उसके पेट आ रहा था और मेनका उसमे खुशी खुशी अठखेलियां कर रही थी! कभी वो पानी को हाथ में भरती तो कभी गुलाब की पत्तियों की सुगंध का आनंद लेती! खुशी और उत्तेजना के मारे मेनका की सांसे तेज हो गई थी और मेनका ने गुलाब के एक फूल को हाथ में ले लिया और उसकी अद्भुत सुगंध का आनंद लेने लगी! जैसे ही केसर और चंदन से युक्त गुलाब की पत्तियों की मादक सुगंध मेनका की सांसों में घुली तो मेनका ने अपने होंठो से जीभ को बाहर निकाला और उसकी जीभ गुलाब की पत्तियों को चूमने लगी और मेनका की आंखे उस अद्भुत एहसास से बंद हो गई और मेनका ने गुलाब की पत्तियों को अपने मुंह में भर लिया और चूस चूस कर खाने लगी! मेनका अब पूरी तरह से मदहोश हो गई थी और अब वो बिल्कुल स्नानगृह के बीच में आ गई थी जिससे पानी अब उसकी गर्दन तक आ रहा था और मेनका दोनो गोल मटोल भारी भरकम चूंचियां पानी में समा गई थी! मेनका ने जब गुलाब का पूरा फूल खा लिया तब ही उसे सुकून मिला और उसकी सांसे अब सुगंधित होकर महक उठी थी!

मेनका चूंकि आज पहली ही बार स्नानगृह में नहा रही थी तो उसने अपने कपड़े उतारना सही नही समझा और मेनका ने अब पानी के अंदर एक डुबकी लगाई तो मन में खुशी ही लहर दौड़ गई और देखते ही वो पानी में किसी छोटी बच्ची की तरह डुबकियां लगाने लगी जिससे उसकी सांसे अब काफी तेज हो गई थी और उसकी चुचियों में अब उछाल आ रहा था और मेनका ने अब इधर उधर देखा और जब थोड़ा निश्चित हुई कि आस पास कोई नही देखा रहा हैं तो उसने अपनी ब्रा में हाथ डालकर दोनो चुचियों को अच्छे से पानी से रगड़ रगड़ कर साफ किया जिससे उसकी चुचियों के चुचुक अकड़ कर तन गए और मेनका के बदन में अब उत्तेजना ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था और उसकी आंखे सुर्ख लाल हो गई थी! मेनका ने पानी में करीब आधे घंटे तक स्नान किया और उसके बाद उसने बिंदिया को आवाज लगाई तो बिंदिया उसके लिए वस्त्र लिए आ गई और फिर वापसी चली गई! मेनका ने देखा कि ये एक सफेद साड़ी थी जो उसे विधवा होने कारण दी गई थी और राजमाता भी खुद ऐसे ही कपड़े पहनती थी!

मेनका ने साड़ी को अपने जिस्म पर लपेट लिया और उसके बाद वो अपने कक्ष की और चल पड़ी! मेनका ने कक्ष में जाकर कक्ष का निरीक्षण किया और कक्ष की सुंदरता देखकर वो मंद मंद मुस्कुरा उठी! मेनका ने कक्ष की एक दीवार पर टंगे हुए परदे। को हटाया तो उसे हैरानी हुई कि कक्ष की एक दीवार का पर्दा हटाते ही पूरी शीशे की दीवार आ गई और जिसमे मेनका सिर से लेकर पांव तक अपना अक्श देख सकती थी! मेनका अभी देख ही रही थी तभी बिंदिया की आवाज आई

" राजमाता महाराज भोजन के लिए आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं!

मेनका बिना वक्त गंवाए बाहर आ गई और देखा कि एक बड़ी सी सुंदर टेबल और एक से बढ़कर एक पकवान और मेवे के साथ साथ ताजे रसीले फल रखे हुए थे और मेनका ने देखा कि विक्रम बैठे हुए थे और बोले:"

" बड़ा वक्त लगाया आपने राजमाता आने में ? हम कबसे आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे?

मेनका ने अपने बेटे के मुंह से राजमाता सुना तो वो खुद भी सम्मानपूर्वक बोली:"

" हम नहाने के लिए चले गए थे! चूंकि हमारा राजमहल में आज पहला ही दिन हैं तो इसलिए देर हो गई इसलिए हम आपसे क्षमा चाहते हैं!

विक्रम:" नही राजमाता क्षमा मांगकर आप हमे लज्जित मत कीजिए! धीरे धीरे आप राजमहल के बारे में सब कुछ जान जायेगी!

मेनका:" जी महराज ! निसंदेह जल्दी ही महल देख लेंगे और सारे तौर तरीके भी सीख लेंगे!

विक्रम ने देखा कि मेनका के चेहरे पर एक तेज था और उसकी आंखो की चमक उसकी खुशी के साथ साथ आत्म विश्वास को भी बयान कर रही थीं और बोला:"

" हमे आप पर पूरा विश्वास है राजमाता! चलिए अब भोजन ग्रहण करते हैं क्योंकि हमें बहुत जोरो से भूख लगी है!

उसके बाद दोनो मा बेटे ने भोजन ग्रहण किया और मेनका ने एक फल उठाया और बोली:"

" ये कौन सा फल है महाराज ? हमने पहले कभी नहीं देखा!

विक्रम:" ये मालभोग है और इसे पहाड़ी इलाकों से सिर्फ राज परिवार के लिए ही मंगाया जाता हैं! इसके साथ साथ आप और भी कुछ अद्भुत फलों के साथ मेवे का भी आनंद लेंगी!

मेनका:" ये तो सचमुच बड़े ही सौभाग्य की बात है महराज जो हमे आपके साथ रहकर ऐसे अद्भुत फलों और मेंवो का आनंद लेने का सौभाग्य प्राप्त होगा!

इतना कहकर मेनका ने उस फल को आधा मुंह में लिया और जैसे ही दांतो से हल्का सा दबाया तो मधुर मीठे रस की धार बह निकली और सीधे विक्रम के मुंह पर पड़ी तो मेनका शर्म से दोहरी हो गई तो विक्रम अपनी जगह से खड़े हुए और मेनका के पास आकर बोले:"

" रुकिए राजमाता ये माल भोग को खाने का सही तरीका नही हैं क्योंकि अत्यधिक रसीला होने के कारण ये आपके सभी कपड़े खराब कर देगा!

इतना सुनकर मेनका ने माल भोग को मुंह से बाहर निकाला और विक्रम की तरफ बढ़ा दिया! विक्रम ने माल भोग को हाथ में लिया और फिर तेज धारदार चाकू से उसके छोटे छोटे टुकड़े किए और टुकड़े को अपने मुंह से रखा और धीरे धीरे खाते हुए बोला:" ऐसे धीरे धीरे चबाते हुए इस फल का आनंद लिया जाता हैं राजमाता!

मेनका ने भी धीरे से एक टुकड़ा उठाया और धीरे धीरे खाने लगी तो सच में उसे बेहद स्वादिष्ट लगा और बोली:" महराज ये तो सच मे बेहद स्वादिष्ट हैं!

विक्रम:" बिलकुल राजमाता! इसे खाने के बाद आप अच्छे से पल्लू धक कर जाना और अपने कपड़े बदल लेना नही तो दासिया पता नही क्या क्या बाते करेंगी!

मेनका:" सच में आप हमारा कितना ध्यान रख रहे हैं! मैं तो आपके जैसा पुत्र पाकर धन्य हो गई महाराज! मन करता है कि अपनी सारा ममता आप पर लूटा दू मैं !

इतना कहकर मेनका ने अपनी बांहों को फैलाया तो विक्रम भी उसके सीने से आ लगा और मेनका ने अपने महाराज पुत्र को अपने आगोश मे समेट लिया तो विक्रम बोला:"

" मैं तो आपकी ममता के लिए तरसा हू माता! सच में आपके आंचल में कितना सुकून हैं!

मेनका ने उसे और ज़ोर से कस लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोली:" अब और नही तरसने दूंगी आपको पुत्र ! मेरे ये जीवन आज से आपको समर्पित है!

मेनका के गले से लगे हुए विक्रम को मेनका के बदन से उठती हुई चंदन केसर और गुलाब की सुगंध बेहद लुभावनी लग रही थी और और विक्रम ने अपनी मजबूत शक्तिशाली भुजाओं का दबाव डाला तो मेनका कसमसाते हुए बोली:" ओहो महाराज मेरे पुत्र मुझ पर इतनी जोर आजमाइश मत कीजिए! मेरी इतनी हिम्मत नहीं कि आपकी शक्तिशाली भुजाओं का दबाव सह सकू!

विक्रम को अब अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी बांहों का दबाव कम करते हुए बोला:"

" क्षमा कीजिए माताश्री! दरअसल हम आपकी ममतामई भावनाओ में बह गए थे!

मेनका:" क्षमा मांगकर हमें शर्मिंदा न करे महराज! बस इतने भी भावनाओ में मत बह जाना कि हमारे नाजुक बदन की हड्डियां ही तोड़ डालो आप!

विक्रम:" ऐसा कभी नही होगा राजमाता क्योंकि आपकी सुरक्षा हमारा फर्ज है एक महराज होने के नाते भी और एक पुत्र होने के नाते भी!

मेनका ने एक बार फिर से उसका माथा चूम लिया और बोली:"

" हमे आप पर पूर्ण विश्वास है महाराज मेरे वीर पुत्र! अच्छा मैं अब चलती हु!

इतना कहकर मेनका ने अपने पल्लू को ठीक किया और अपने कक्ष की और बढ़ गई तो वही विक्रम भी अपने कक्ष की और बढ़ गया!

शाम धीरे धीरे गहराने लगी और विश्राम के बाद मेनका करीब छह बजे उठ गई और फिर से कक्ष की सुंदरता को निहारने लगी जो अपने आप में अदभुत थी! उसके कदमों की आहत सुनकर बिंदिया ने दरवाजे पर दस्तक दी तो मेनका ने उसे अंदर आने के लिए कहा तो बिंदिया गेट पर से ही बोली:"

" राजमाता हम दासियों को कक्ष के अंदर आने की इजाजत नही होती! इसलिए मुझे क्षमा कीजिए लेकिन आप जो भी आदेश करेगी मैं बाहर से ही उसे पूर्ण करूंगी!

मेनका को आश्चर्य हुआ कि साए की साथ रहने वाली और हर एक सुविधा का ध्यान रखने वाली बिंदिया को अंदर आने की इजाजत क्यों नही हैं तो वो बोली:"

" बिंदिया ये राज आदेश हैं कि आप अभी अंदर आइए!

इतना सुनकर घबराती हुई बिंदिया दरवाजे पर आ खड़ी हुई लेकिन अंदर आने की हिम्मत नही हुई और बोली

" क्षमा चाहती हू राजमाता लेकिन मेरे अंदर इतनी हिम्मत नही हैं कि अंदर आ सकू और दुख भी हैं कि आपका आदेश नही मान पा रही हूं!

मेनका खुद चलती हुई दरवाजे पर आई और परदे को हटाकर बिंदिया का हाथ पकड़ कर उसे अंदर खीच लिया और बिंदिया बिना कुछ बोले अंदर आ गई और मेनका बोली:"

" बिंदिया तुम मेरे लिए छोटी बहन जैसी हो इसलिए मेरी बात मान लिया करो! समझी कुछ ?

बिंदिया ने बस हां में गर्दन को हिला दिया और बोली:" जैसी आपकी आज्ञा राजमाता! आपके लिए खाने में क्या बनाऊं आज ?

मेनका को समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे इसलिए कुछ सोचते हुए बोली:"

" इसके लिए एक बार महराज से बात कर लीजिए! जो उन्हे पसंद हो वही आप बना लीजिए!

बिंदिया ने सहमति में सिर हिलाया और नजरे नीचे रखे हुए ही बाहर निकल गई! बिंदिया के अंदर कक्ष का निरीक्षण करने की भी हिम्मत नहीं थी और उसकी नजरे नीचे ही झुकी रही लेकिन नीचे से कक्ष की सुंदरता देखकर वो समझ गई थी सच में बेहद खूबसूरत कक्ष था!

विक्रम को अब सलमा की याद आ रही थीं और उसने सुल्तानपुर जाने का फैसला किया लेकिन उसके सामने समस्या थी कि अंदर कैसे प्रवेश किया जाए! कुछ योजनाएं थी लेकिन काफी कठिन थी और खतरो से भरी हुई और महाराज नही चाहते थे कि वो अपने साथ साथ सैनिकों को खतरे में डाले! विक्रम ने इसलिए अकेले ही जाने का निश्चय किया क्योंकि वो सलमा से प्यार करते है ये बात अभी से सबको पता चल जाए ये भी सही नही था!

विक्रम ने जाने से पहले एक बात सुलतान से मिलने का निश्चय किया और सुलतान से मिलने पहुंचे तो सुलतान उन्हे देखते हुए खुश हुए और बोले:"

" राजतिलक मुबारक हो महाराज आपको! मेरी दुवाएं आपके साथ हमेशा रहेगी!

विक्रम ने सुलतान का हाथ पकड़ लिया और अपने सिर पर रखते हुए बोले:" आप बड़ो का प्यार और आशीर्वाद हमेशा साथ रहना ही चाहिए! अभी आप काफी बेहतर हो गए हैं पहले से!

सुलतान:" हान महाराज, अब अब तो मेरे हाथ तलवार उठाने के लिए मचल रहे हैं !

विक्रम:" बस थोड़ा सा और धीरज रखिए! अच्छा मैं कुछ जरूरी काम के लिए सुल्तानपुर जाना चाहता हु! क्या कोई मदद कर सकते हैं आप क्योंकि पहरा आजकल बहुत ज्यादा बढ़ गया हैं सीमा पर !

सुलतान ने थोड़ी देर सोचा और बोले:" सीनी नदी के किनारे सड़क गई हैं! उस सड़क पर आगे जाकर एक खंडहर मिलेगा जिसमे एक कुआं हैं जो ढका हुआ है, पत्थर हटाकर उसमे धीरे से उतर जाना और गुफा से होते हुए सीधे आप राजमहल के अंदर ही निकलोगे ! लेकिन ध्यान रहे मेरे लिए इस रास्ते का सिर्फ आपको पता होगा! मेरे परिवार के लोग भी इस रास्ते को नही जानते हैं! आप सलमा और रजिया दोनो को भी इस रास्ते के बारे मे बता देना ताकि जरूरत पड़ने पर वो बच सके!

विक्रम:" आप मुझे पर भरोसा रखिए! मैं इसका कभी गलत इस्तेमाल नही करूंगा! अच्छा आप अपना ध्यान रखिए और मुझे अभी राज महल में कुछ काम होगा!

इतना कहकर विक्रम आ गया और खाने के लिए आया तो देखा कि मेनका पहले से ही बैठी हुई थी और बोली:"

" हम आपकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे पुत्र! बड़ी जोर से भूख भी लगी है हमे!

विक्रम:" क्षमा कीजिए थोड़ा कार्य था जिसके चलते विलंब हुआ! चलिए अब भोजन शुरू करते हैं!

दोनो के उसके बाद पेटभर कर खाना खाया और उसके बाद मेनका बोली:"

" पुत्र कभी कभी लगता हैं कि ऐसे हम जिस ऐश्वर्य में जी रहे हैं उसके लिए उपयुक्त नही हैं और हमे ये सब त्याग देना चाहिए!

विक्रम:" माता आप ठीक कहते हैं लेकिन एक बात हमे ध्यान रखना चाहिए कि ये हमे जिम्मेदारी मिली हैं और इसे निभाना हमारा कर्तव्य है! बस इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमे आगे बढ़ना होगा!

मेनका:" आपकी बात से सहमत हु लेकिन फिर भी मेरा दिल नही मानता हैं पुत्र!

विक्रम:" आप सोचिए कि पूरे राज्य में से सिर्फ हमको ही क्यों चुना गया क्योंकि हमने राज्य के लिए ढेर सारे बलिदान दिए हैं! इतना कुछ खोने के बाद किसी वारिस के ना होने के बाद हमे जो मिला हैं उसका उपयोग करना चाहिए! क्या आपको लगता है कि हमारे परिवार से ज्यादा किसी ने बलिदान दिया हैं आज तक ?

मेनका:" नही किसी ने नही दिया हैं ! मैं आपकी बात से सहमत हु!

विक्रम:" फिर हो कुछ हो रहा है वो सब भाग्य के भरोसे छोड़ दीजिए और जो मिला हैं उसका भोग कीजिए! मैं थोड़ी देर आपको महल के बगीचे में घुमा कर लाऊंगा!


इतना कहकर विक्रम निकल गया और मेनका ने एक सुंदर सफेद रंग की साड़ी पहनी और ऊपर से पल्लू को ठीक करने के बाद विक्रम के पास आ गई और दोनो धीरे धीरे चलते हुए बगीचे में आ गए और मेनका बगीचे की खूबसूरती देखते ही खुशी से झूम उठी और बोली:"

" सच में शाही बगीचा तो बेहद खूबसूरत हैं और रंग बिरंगे फूल इसकी शोभा बढ़ा रहे हैं!

विक्रम:" सच में ये खूबसूरत हैं माता! आप चाहे तो सुबह शाम दोनो समय इस घूमने के लिए आ सकती हैं!

मेनका:" मुझे फूल बेहद पसंद हैं महाराज और खासतौर से गुलाब के लाल सुर्ख फूलो में तो मेरी जान बसती हैं!

विक्रम:" ये तो आपने बड़ी अच्छी बात बताई! मैं कल माली को बोलकर पूरे बगीचे को गुलाब के लाल सुर्ख पौधो के भरवा दूंगा! और क्या क्या पसंद हैं आपको ?

मेनका उसकी बात सुनकर मुस्कुराई और बोली:" फूलो पर मंडराती हुई खूबसूरत तितलियां और उड़ते हुए आजाद पंछी ये सब मुझे बेहद आकर्षक लगते हैं महाराज!

विक्रम:" आप जो भी कहेगी आपकी वही इच्छा आपका पुत्र पूरी करेगा! बस आप बोलती रहिए!

मेनका धीरे धीरे पार्क में घूम रही थी और बोली:"

" धन्यवाद पुत्र आपका! वैसे आपको क्या क्या पसंद हैं ?

विक्रम:" मुझे तो सब कुछ अच्छा लगता हैं! बस आप खुश रहे इसमें ही मेरी खुशी हैं!

मेनका उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी और आगे बढ़ गई और देखा कि बेहद खूबसूरत गुलाब के लाल सुर्ख फूल खिलकर महक रहे थे तो मेनका खुद को नही रोक पाई और फूल तोड़ने के लिए झुक गई लेकिन जैसे ही आगे झुकी तो उसकी साड़ी का पल्लू कांटो में फंस गया और जैसे वो फूल तोड़कर पीछे हुई तो उसका पल्लू खीच गया और पूरी तरह से कांटो में फंस गया और मेनका भी छातियां की गहरी रेखा खुलकर विक्रम के सामने आ गई और मेनका शर्म से दोहरी हो उठी और जल्दी से अपने पल्लू को खींचा लेकिन पल्लू जैसे फंस सा गया था और मेनका ने जैसे ही जोर लगाया तो उसका पल्लू बीच में से फट गया और मेनका का मुंह शर्म से लाल होकर झुक गया !


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मेनका के गोरे गोरे कंधे नुमाया हो उठे और उसकी भारी भरकम चूंचियां अपना आकार साफ दिखा रही थी जिन्हे देखकर विक्रम की आंखे खुली की खुली रह गई! विक्रम ने अब से पहले सलमा की चुचियों को देखा था और उनका आनंद लिया था लेकिन उसे मेनका की चुचियों की गहरी खाई इस बात का प्रमाण थी कि उसकी चूचियां सलमा से कई गुना बेहतर है! विक्रम थोड़ा सा आगे बढ़ा और बोला:" अगर आपको फूल ही चाहिए था तो मुझे बोल देती ! चलिए अभी तो जो होना था हो गया!

मेनका शर्म से पानी पानी हो रही थी और धीरे से बोली:" मुझे पता नहीं था कि ये पल्लू फंसकर फट जायेगा!

विक्रम:" शाही बगीचे में गुलाब के पौधो में कांटे ज्यादा बड़े होते हैं इस कारण आपकी साड़ी फटी है! आप फिक्र मत कीजिए यहां कोई नही आएगा!

मेनका ने मन ही मन सोचा कि क्यों नही आयेगा तो ठीक हैं लेकिन आप भी तो एक मर्द है और आपके सामने ऐसी हालत में रखना मुझे शर्मशार कर रहा हैं! विक्रम मेनका की हालत समझ गया और सोचने लगा कि क्या ये ही वह मेनका हैं जिसे मैंने उसे दिन अजय के साथ देखा था! फिर विक्रम ने अपनी पगड़ी को खोला और उसमे से कपड़ा निकाल कर मेनका को दिया तो मेनका ने उसे अपनी छाती पर ढक लिया और बिना कुछ बोले तेजी से अपने विश्राम कक्ष की और बढ़ गई! मेनका के कदमों की गति बता रही थी कि उसकी क्या हालत हैं और कितनी ज्यादा वो पानी पानी हो गई थी!
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विक्रम के राजतिलक में राज दरबार खचाखच भरा हुआ था और चारो और विक्रम की जय जयकार के नारे गूंज रहे थे! महल को चारो ओर से लोगो की भीड़ ने घेर रखा था और सभी के चेहरे पर खुशी साफ दिखाई दे रही थी जो इस बात का सुबूत थी कि मंत्री गण ने विक्रम को राजा बनाकर कोई गलती नही की थी!

राज गद्दी पर बैठे हुए विक्रम के माथे पर एक तेज था और उसकी आंखो में आत्म विश्वास साफ तौर पर झलक रहा था और जैसे ही प्रजा जोर जोर से उसकी जय जयकार करने लगी तो विक्रम खड़ा हुआ और हाथ से सभी को शांत रहने का इशारा किया तो पूरा राज दरबार में बिलकुल शांति हो गई और विक्रम बोला:"

" आज आप सबने मुझे राजा नही बल्कि अपना गुलाम बना लिया हैं! मुझे सौगंध हैं खून की हर उस बूंद की जो उदयगढ़ वालो के जिस्म से बही हैं मैं जब तक जब्बार और पिंडारियो को शमशान नही पहुंचा दूंगा तब तक चैन की सांस नही लूंगा!

सभी ने एक बार फिर से विक्रम की जय जयकार करी और उसके बाद धीरे धीरे प्रजा महल से बाहर निकलने लगी! मेनका के चेहरे पर भी आज एक अलग ही खुशी दमक रही थी क्योंकि अजय के जाने के बाद उसकी खुशियां ही उखड़ गई थी और अब विक्रम के आ जाने से उसकी दुनिया फिर से न केवल आबाद हो गई थी बल्कि उसका पुत्र अब उदयगढ़ के सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान था!

मेनका अपनी सीट से खड़ी हुई और बोली:" अच्छा महराज मुझे अब जाने की आज्ञा दीजिए!

विक्रम ने हैरानी से अपनी माता को देखा और बोला:" नही महाराज नही आपके लिए तो मैं सदैव आपका पुत्र ही रहूंगा माता!

मेनका:" बेशक आप मेरे पुत्र हो लेकिन आप अभी महराज के पद पर विराजमान हो तो पूरी प्रजा के साथ साथ मेरा भी कर्तव्य बनता हैं कि मैं भी राज धर्म का पालन करू!

विक्रम कुछ नही बोला और मेनका इतना कहकर बाहर की तरफ चल पड़ी और विक्रम उसको जाते हुए देखता रहा! तभी मंत्री गण के बीच आपस में आंखो ही आंखो में कुछ बात हुई और भीमा सिंह बोले:"

" वैसे तो महाराज आप हैं लेकिन अगर आपकी इजाजत हो तो हम सभी मंत्री दल के लोग आपके बड़े बुजुर्ग होने के नाते एक निर्णय और लेना चाहते हैं!

विक्रम:" आप सब मुझे उम्र में बड़े हैं और निसंदेह आप सभी उदयगढ़ के शुभ चिंतक हैं तो मेरी तरफ से आपको पूरी आजाद हैं और आपका ये फैसला भी मेरे लिए मान्य होगा!

भीमा सिंह:" ठीक हैं महाराज फिर हम सब लोगो ने मिलकर ये फैसला किया है कि आपका माताश्री मेनका देवी की राजमाता का पद दिया जाए!

विक्रम ने हैरानी से सबकी तरफ देखा और दरवाजे का पास पहुंच चुकी मेनका के भी बढ़ते कदम रुक गए और विक्रम बोला:"

" लेकिन क्या ऐसा करना उचित होगा क्योंकि मेरे बारे में तो राजमाता ने भी फैसला लिया था लेकिन मेरी माता को राजमाता का पद देना क्या नियमो का उल्लंघन नही हैं ?

सतपाल सिंह:" कोई उल्लंघन नही हैं महराज क्योंकि महराज की माता ही राजमाता होती हैं और इस समय महराज आप हैं और यही उदयगढ़ का विधान हैं! इसमें कुछ भी गलत नही है!

मेनका: लेकिन मैं खुद को इस पद के लायक नही समझती हु और मेरी महराज से विनती है कि इस आदेश को तुरंत निरस्त करने का कष्ट करे!

विक्रम के समझ नही आ रहा था तो क्या फैसला करे तो भीमा सिंह बीच में ही बोला:"

" महाराज तो अब अपने वचन से बंधे हुए हैं और चाहकर भी इस फैसले को चुनौती नही दे सकते! हम सभी उदयगढ़ के शुभ चिंतक और आपके बुजुर्ग हैं! आप हमारे फैसले के विरुद्ध जाकर हम सबके अपमान का दोषी बन रही हैं !

मेनका के चेहरे पर उदासी दिखी और बोली:" ऐसा न कहे क्योंकि मैं सपने में ऐसा नहीं सोच सकती! आप सभी मेरे लिए आदरणीय हैं लेकिन राजमाता का पद स्वीकार न करना मेरी अपनी मजबूरी हैं!

सतपाल सिंह:" क्या आप उदयगढ़ के विधान में विश्वास रखती है और एक सच्ची और वफादार हैं ?

मेनका:" निश्चित रूप से मैं विधान में विश्वास रखती हूं और अपनी अंतिम सांस तक उदयगढ़ की नीतियों और परंपरा के लिए दृढ़ संकल्प रखती हु!

भीमा सिंह:" फिर महाराज की माता को राजमाता का दर्जा जाना भी तो उदयगढ़ का विधान और परंपरा है तो आप इससे कैसे इनकार कर सकती हो ?

मेनका कुछ नही बोली और विक्रम की तरफ नजरे खड़ाकर देखा मानो महाराज की अनुमति मांग रही हो और विक्रम बोला:"

" मेरी इच्छा तो यही थी कि मेरे माता को राजमाता का पद न मिले लेकिन आप सबके विरुद्ध और विधान और परंपरा के खिलाफ जाना भी अनुचित होगा इसलिए आप सबकी सहमति मे ही मेरी भी सहमति हैं!

देखते ही देखते भीमा ने मेनका को राजमाता की गद्दी ग्रहण कराई और मेनका की आंखो से आंसू छलक पड़े जिन्हे बड़ी मुश्किल से वो रोक पाई! दोहपर का समय होने के कारण सभी लोग निकल गए और विक्रम के साथ साथ मेनका भी विश्राम गृह की और प्रवेश कर गई और उसके पीछे दासियों की एक लंबी कतार लग गई थी और मेनका हैरानी से चलती हुई विश्राम कक्ष में आ गई तो एक दासी जिसका नाम बिंदिया था बोली:"

" राजमाता आपके स्नान के लिए सब तैयार हैं! आप चाहे तो स्नान कर सकती हैं!

मेनका को भला क्या आपत्ति होती तो दासिया उसे लेकर स्नानगृह की और चल पड़ी और देखते ही देखते वो स्नानगृह पहुंच गए और एक एक करके सभी दासिया रुक गई और बिंदिया बोली:"

" आप स्नान कीजिए! तब तक मैं बाहर आपकी प्रतीक्षा करूंगी!

इतना कहकर बिंदिया भी बाहर निकल गई और मेनका धीरे धीरे अन्दर आ गई और देखा कि अब उसके आस पास कोई नही था तो मेनका ने स्नानग्रह पर एक भरपूर नजर डाली और उसकी आंखो में चमक उभर आई क्योंकि स्नानगढ के जल से उठती हुई सुगंध उसके तन मन को तरंगित कर गई थी और स्नानगृह के पानी में हल्दी दूध और चंदन के साथ केसर का मिश्रण था! पानी में तैरती हुई गुलाब की पत्तियां उसकी शोभा को और बढ़ा रही थी जिसे देखकर मेनका का मन मयूर नाच उठा! मेनका धीरे से चलती हुई इठलाती हुई जैसे ही पानी के अंदर पांव डाली तो उसके तन बदन में सिरहन सी दौड़ गई और देखते ही देखते मेनका पानी के अंदर खुश गई और पानी अब उसके पेट आ रहा था और मेनका उसमे खुशी खुशी अठखेलियां कर रही थी! कभी वो पानी को हाथ में भरती तो कभी गुलाब की पत्तियों की सुगंध का आनंद लेती! खुशी और उत्तेजना के मारे मेनका की सांसे तेज हो गई थी और मेनका ने गुलाब के एक फूल को हाथ में ले लिया और उसकी अद्भुत सुगंध का आनंद लेने लगी! जैसे ही केसर और चंदन से युक्त गुलाब की पत्तियों की मादक सुगंध मेनका की सांसों में घुली तो मेनका ने अपने होंठो से जीभ को बाहर निकाला और उसकी जीभ गुलाब की पत्तियों को चूमने लगी और मेनका की आंखे उस अद्भुत एहसास से बंद हो गई और मेनका ने गुलाब की पत्तियों को अपने मुंह में भर लिया और चूस चूस कर खाने लगी! मेनका अब पूरी तरह से मदहोश हो गई थी और अब वो बिल्कुल स्नानगृह के बीच में आ गई थी जिससे पानी अब उसकी गर्दन तक आ रहा था और मेनका दोनो गोल मटोल भारी भरकम चूंचियां पानी में समा गई थी! मेनका ने जब गुलाब का पूरा फूल खा लिया तब ही उसे सुकून मिला और उसकी सांसे अब सुगंधित होकर महक उठी थी!

मेनका चूंकि आज पहली ही बार स्नानगृह में नहा रही थी तो उसने अपने कपड़े उतारना सही नही समझा और मेनका ने अब पानी के अंदर एक डुबकी लगाई तो मन में खुशी ही लहर दौड़ गई और देखते ही वो पानी में किसी छोटी बच्ची की तरह डुबकियां लगाने लगी जिससे उसकी सांसे अब काफी तेज हो गई थी और उसकी चुचियों में अब उछाल आ रहा था और मेनका ने अब इधर उधर देखा और जब थोड़ा निश्चित हुई कि आस पास कोई नही देखा रहा हैं तो उसने अपनी ब्रा में हाथ डालकर दोनो चुचियों को अच्छे से पानी से रगड़ रगड़ कर साफ किया जिससे उसकी चुचियों के चुचुक अकड़ कर तन गए और मेनका के बदन में अब उत्तेजना ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था और उसकी आंखे सुर्ख लाल हो गई थी! मेनका ने पानी में करीब आधे घंटे तक स्नान किया और उसके बाद उसने बिंदिया को आवाज लगाई तो बिंदिया उसके लिए वस्त्र लिए आ गई और फिर वापसी चली गई! मेनका ने देखा कि ये एक सफेद साड़ी थी जो उसे विधवा होने कारण दी गई थी और राजमाता भी खुद ऐसे ही कपड़े पहनती थी!

मेनका ने साड़ी को अपने जिस्म पर लपेट लिया और उसके बाद वो अपने कक्ष की और चल पड़ी! मेनका ने कक्ष में जाकर कक्ष का निरीक्षण किया और कक्ष की सुंदरता देखकर वो मंद मंद मुस्कुरा उठी! मेनका ने कक्ष की एक दीवार पर टंगे हुए परदे। को हटाया तो उसे हैरानी हुई कि कक्ष की एक दीवार का पर्दा हटाते ही पूरी शीशे की दीवार आ गई और जिसमे मेनका सिर से लेकर पांव तक अपना अक्श देख सकती थी! मेनका अभी देख ही रही थी तभी बिंदिया की आवाज आई

" राजमाता महाराज भोजन के लिए आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं!

मेनका बिना वक्त गंवाए बाहर आ गई और देखा कि एक बड़ी सी सुंदर टेबल और एक से बढ़कर एक पकवान और मेवे के साथ साथ ताजे रसीले फल रखे हुए थे और मेनका ने देखा कि विक्रम बैठे हुए थे और बोले:"

" बड़ा वक्त लगाया आपने राजमाता आने में ? हम कबसे आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे?

मेनका ने अपने बेटे के मुंह से राजमाता सुना तो वो खुद भी सम्मानपूर्वक बोली:"

" हम नहाने के लिए चले गए थे! चूंकि हमारा राजमहल में आज पहला ही दिन हैं तो इसलिए देर हो गई इसलिए हम आपसे क्षमा चाहते हैं!

विक्रम:" नही राजमाता क्षमा मांगकर आप हमे लज्जित मत कीजिए! धीरे धीरे आप राजमहल के बारे में सब कुछ जान जायेगी!

मेनका:" जी महराज ! निसंदेह जल्दी ही महल देख लेंगे और सारे तौर तरीके भी सीख लेंगे!

विक्रम ने देखा कि मेनका के चेहरे पर एक तेज था और उसकी आंखो की चमक उसकी खुशी के साथ साथ आत्म विश्वास को भी बयान कर रही थीं और बोला:"

" हमे आप पर पूरा विश्वास है राजमाता! चलिए अब भोजन ग्रहण करते हैं क्योंकि हमें बहुत जोरो से भूख लगी है!

उसके बाद दोनो मा बेटे ने भोजन ग्रहण किया और मेनका ने एक फल उठाया और बोली:"

" ये कौन सा फल है महाराज ? हमने पहले कभी नहीं देखा!

विक्रम:" ये मालभोग है और इसे पहाड़ी इलाकों से सिर्फ राज परिवार के लिए ही मंगाया जाता हैं! इसके साथ साथ आप और भी कुछ अद्भुत फलों के साथ मेवे का भी आनंद लेंगी!

मेनका:" ये तो सचमुच बड़े ही सौभाग्य की बात है महराज जो हमे आपके साथ रहकर ऐसे अद्भुत फलों और मेंवो का आनंद लेने का सौभाग्य प्राप्त होगा!

इतना कहकर मेनका ने उस फल को आधा मुंह में लिया और जैसे ही दांतो से हल्का सा दबाया तो मधुर मीठे रस की धार बह निकली और सीधे विक्रम के मुंह पर पड़ी तो मेनका शर्म से दोहरी हो गई तो विक्रम अपनी जगह से खड़े हुए और मेनका के पास आकर बोले:"

" रुकिए राजमाता ये माल भोग को खाने का सही तरीका नही हैं क्योंकि अत्यधिक रसीला होने के कारण ये आपके सभी कपड़े खराब कर देगा!

इतना सुनकर मेनका ने माल भोग को मुंह से बाहर निकाला और विक्रम की तरफ बढ़ा दिया! विक्रम ने माल भोग को हाथ में लिया और फिर तेज धारदार चाकू से उसके छोटे छोटे टुकड़े किए और टुकड़े को अपने मुंह से रखा और धीरे धीरे खाते हुए बोला:" ऐसे धीरे धीरे चबाते हुए इस फल का आनंद लिया जाता हैं राजमाता!

मेनका ने भी धीरे से एक टुकड़ा उठाया और धीरे धीरे खाने लगी तो सच में उसे बेहद स्वादिष्ट लगा और बोली:" महराज ये तो सच मे बेहद स्वादिष्ट हैं!

विक्रम:" बिलकुल राजमाता! इसे खाने के बाद आप अच्छे से पल्लू धक कर जाना और अपने कपड़े बदल लेना नही तो दासिया पता नही क्या क्या बाते करेंगी!

मेनका:" सच में आप हमारा कितना ध्यान रख रहे हैं! मैं तो आपके जैसा पुत्र पाकर धन्य हो गई महाराज! मन करता है कि अपनी सारा ममता आप पर लूटा दू मैं !

इतना कहकर मेनका ने अपनी बांहों को फैलाया तो विक्रम भी उसके सीने से आ लगा और मेनका ने अपने महाराज पुत्र को अपने आगोश मे समेट लिया तो विक्रम बोला:"

" मैं तो आपकी ममता के लिए तरसा हू माता! सच में आपके आंचल में कितना सुकून हैं!

मेनका ने उसे और ज़ोर से कस लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोली:" अब और नही तरसने दूंगी आपको पुत्र ! मेरे ये जीवन आज से आपको समर्पित है!

मेनका के गले से लगे हुए विक्रम को मेनका के बदन से उठती हुई चंदन केसर और गुलाब की सुगंध बेहद लुभावनी लग रही थी और और विक्रम ने अपनी मजबूत शक्तिशाली भुजाओं का दबाव डाला तो मेनका कसमसाते हुए बोली:" ओहो महाराज मेरे पुत्र मुझ पर इतनी जोर आजमाइश मत कीजिए! मेरी इतनी हिम्मत नहीं कि आपकी शक्तिशाली भुजाओं का दबाव सह सकू!

विक्रम को अब अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी बांहों का दबाव कम करते हुए बोला:"

" क्षमा कीजिए माताश्री! दरअसल हम आपकी ममतामई भावनाओ में बह गए थे!

मेनका:" क्षमा मांगकर हमें शर्मिंदा न करे महराज! बस इतने भी भावनाओ में मत बह जाना कि हमारे नाजुक बदन की हड्डियां ही तोड़ डालो आप!

विक्रम:" ऐसा कभी नही होगा राजमाता क्योंकि आपकी सुरक्षा हमारा फर्ज है एक महराज होने के नाते भी और एक पुत्र होने के नाते भी!

मेनका ने एक बार फिर से उसका माथा चूम लिया और बोली:"

" हमे आप पर पूर्ण विश्वास है महाराज मेरे वीर पुत्र! अच्छा मैं अब चलती हु!

इतना कहकर मेनका ने अपने पल्लू को ठीक किया और अपने कक्ष की और बढ़ गई तो वही विक्रम भी अपने कक्ष की और बढ़ गया!

शाम धीरे धीरे गहराने लगी और विश्राम के बाद मेनका करीब छह बजे उठ गई और फिर से कक्ष की सुंदरता को निहारने लगी जो अपने आप में अदभुत थी! उसके कदमों की आहत सुनकर बिंदिया ने दरवाजे पर दस्तक दी तो मेनका ने उसे अंदर आने के लिए कहा तो बिंदिया गेट पर से ही बोली:"

" राजमाता हम दासियों को कक्ष के अंदर आने की इजाजत नही होती! इसलिए मुझे क्षमा कीजिए लेकिन आप जो भी आदेश करेगी मैं बाहर से ही उसे पूर्ण करूंगी!

मेनका को आश्चर्य हुआ कि साए की साथ रहने वाली और हर एक सुविधा का ध्यान रखने वाली बिंदिया को अंदर आने की इजाजत क्यों नही हैं तो वो बोली:"

" बिंदिया ये राज आदेश हैं कि आप अभी अंदर आइए!

इतना सुनकर घबराती हुई बिंदिया दरवाजे पर आ खड़ी हुई लेकिन अंदर आने की हिम्मत नही हुई और बोली

" क्षमा चाहती हू राजमाता लेकिन मेरे अंदर इतनी हिम्मत नही हैं कि अंदर आ सकू और दुख भी हैं कि आपका आदेश नही मान पा रही हूं!

मेनका खुद चलती हुई दरवाजे पर आई और परदे को हटाकर बिंदिया का हाथ पकड़ कर उसे अंदर खीच लिया और बिंदिया बिना कुछ बोले अंदर आ गई और मेनका बोली:"

" बिंदिया तुम मेरे लिए छोटी बहन जैसी हो इसलिए मेरी बात मान लिया करो! समझी कुछ ?

बिंदिया ने बस हां में गर्दन को हिला दिया और बोली:" जैसी आपकी आज्ञा राजमाता! आपके लिए खाने में क्या बनाऊं आज ?

मेनका को समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे इसलिए कुछ सोचते हुए बोली:"

" इसके लिए एक बार महराज से बात कर लीजिए! जो उन्हे पसंद हो वही आप बना लीजिए!

बिंदिया ने सहमति में सिर हिलाया और नजरे नीचे रखे हुए ही बाहर निकल गई! बिंदिया के अंदर कक्ष का निरीक्षण करने की भी हिम्मत नहीं थी और उसकी नजरे नीचे ही झुकी रही लेकिन नीचे से कक्ष की सुंदरता देखकर वो समझ गई थी सच में बेहद खूबसूरत कक्ष था!

विक्रम को अब सलमा की याद आ रही थीं और उसने सुल्तानपुर जाने का फैसला किया लेकिन उसके सामने समस्या थी कि अंदर कैसे प्रवेश किया जाए! कुछ योजनाएं थी लेकिन काफी कठिन थी और खतरो से भरी हुई और महाराज नही चाहते थे कि वो अपने साथ साथ सैनिकों को खतरे में डाले! विक्रम ने इसलिए अकेले ही जाने का निश्चय किया क्योंकि वो सलमा से प्यार करते है ये बात अभी से सबको पता चल जाए ये भी सही नही था!

विक्रम ने जाने से पहले एक बात सुलतान से मिलने का निश्चय किया और सुलतान से मिलने पहुंचे तो सुलतान उन्हे देखते हुए खुश हुए और बोले:"

" राजतिलक मुबारक हो महाराज आपको! मेरी दुवाएं आपके साथ हमेशा रहेगी!

विक्रम ने सुलतान का हाथ पकड़ लिया और अपने सिर पर रखते हुए बोले:" आप बड़ो का प्यार और आशीर्वाद हमेशा साथ रहना ही चाहिए! अभी आप काफी बेहतर हो गए हैं पहले से!

सुलतान:" हान महाराज, अब अब तो मेरे हाथ तलवार उठाने के लिए मचल रहे हैं !

विक्रम:" बस थोड़ा सा और धीरज रखिए! अच्छा मैं कुछ जरूरी काम के लिए सुल्तानपुर जाना चाहता हु! क्या कोई मदद कर सकते हैं आप क्योंकि पहरा आजकल बहुत ज्यादा बढ़ गया हैं सीमा पर !

सुलतान ने थोड़ी देर सोचा और बोले:" सीनी नदी के किनारे सड़क गई हैं! उस सड़क पर आगे जाकर एक खंडहर मिलेगा जिसमे एक कुआं हैं जो ढका हुआ है, पत्थर हटाकर उसमे धीरे से उतर जाना और गुफा से होते हुए सीधे आप राजमहल के अंदर ही निकलोगे ! लेकिन ध्यान रहे मेरे लिए इस रास्ते का सिर्फ आपको पता होगा! मेरे परिवार के लोग भी इस रास्ते को नही जानते हैं! आप सलमा और रजिया दोनो को भी इस रास्ते के बारे मे बता देना ताकि जरूरत पड़ने पर वो बच सके!

विक्रम:" आप मुझे पर भरोसा रखिए! मैं इसका कभी गलत इस्तेमाल नही करूंगा! अच्छा आप अपना ध्यान रखिए और मुझे अभी राज महल में कुछ काम होगा!

इतना कहकर विक्रम आ गया और खाने के लिए आया तो देखा कि मेनका पहले से ही बैठी हुई थी और बोली:"

" हम आपकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे पुत्र! बड़ी जोर से भूख भी लगी है हमे!

विक्रम:" क्षमा कीजिए थोड़ा कार्य था जिसके चलते विलंब हुआ! चलिए अब भोजन शुरू करते हैं!

दोनो के उसके बाद पेटभर कर खाना खाया और उसके बाद मेनका बोली:"

" पुत्र कभी कभी लगता हैं कि ऐसे हम जिस ऐश्वर्य में जी रहे हैं उसके लिए उपयुक्त नही हैं और हमे ये सब त्याग देना चाहिए!

विक्रम:" माता आप ठीक कहते हैं लेकिन एक बात हमे ध्यान रखना चाहिए कि ये हमे जिम्मेदारी मिली हैं और इसे निभाना हमारा कर्तव्य है! बस इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमे आगे बढ़ना होगा!

मेनका:" आपकी बात से सहमत हु लेकिन फिर भी मेरा दिल नही मानता हैं पुत्र!

विक्रम:" आप सोचिए कि पूरे राज्य में से सिर्फ हमको ही क्यों चुना गया क्योंकि हमने राज्य के लिए ढेर सारे बलिदान दिए हैं! इतना कुछ खोने के बाद किसी वारिस के ना होने के बाद हमे जो मिला हैं उसका उपयोग करना चाहिए! क्या आपको लगता है कि हमारे परिवार से ज्यादा किसी ने बलिदान दिया हैं आज तक ?

मेनका:" नही किसी ने नही दिया हैं ! मैं आपकी बात से सहमत हु!

विक्रम:" फिर हो कुछ हो रहा है वो सब भाग्य के भरोसे छोड़ दीजिए और जो मिला हैं उसका भोग कीजिए! मैं थोड़ी देर आपको महल के बगीचे में घुमा कर लाऊंगा!


इतना कहकर विक्रम निकल गया और मेनका ने एक सुंदर सफेद रंग की साड़ी पहनी और ऊपर से पल्लू को ठीक करने के बाद विक्रम के पास आ गई और दोनो धीरे धीरे चलते हुए बगीचे में आ गए और मेनका बगीचे की खूबसूरती देखते ही खुशी से झूम उठी और बोली:"

" सच में शाही बगीचा तो बेहद खूबसूरत हैं और रंग बिरंगे फूल इसकी शोभा बढ़ा रहे हैं!

विक्रम:" सच में ये खूबसूरत हैं माता! आप चाहे तो सुबह शाम दोनो समय इस घूमने के लिए आ सकती हैं!

मेनका:" मुझे फूल बेहद पसंद हैं महाराज और खासतौर से गुलाब के लाल सुर्ख फूलो में तो मेरी जान बसती हैं!

विक्रम:" ये तो आपने बड़ी अच्छी बात बताई! मैं कल माली को बोलकर पूरे बगीचे को गुलाब के लाल सुर्ख पौधो के भरवा दूंगा! और क्या क्या पसंद हैं आपको ?

मेनका उसकी बात सुनकर मुस्कुराई और बोली:" फूलो पर मंडराती हुई खूबसूरत तितलियां और उड़ते हुए आजाद पंछी ये सब मुझे बेहद आकर्षक लगते हैं महाराज!

विक्रम:" आप जो भी कहेगी आपकी वही इच्छा आपका पुत्र पूरी करेगा! बस आप बोलती रहिए!

मेनका धीरे धीरे पार्क में घूम रही थी और बोली:"

" धन्यवाद पुत्र आपका! वैसे आपको क्या क्या पसंद हैं ?

विक्रम:" मुझे तो सब कुछ अच्छा लगता हैं! बस आप खुश रहे इसमें ही मेरी खुशी हैं!

मेनका उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी और आगे बढ़ गई और देखा कि बेहद खूबसूरत गुलाब के लाल सुर्ख फूल खिलकर महक रहे थे तो मेनका खुद को नही रोक पाई और फूल तोड़ने के लिए झुक गई लेकिन जैसे ही आगे झुकी तो उसकी साड़ी का पल्लू कांटो में फंस गया और जैसे वो फूल तोड़कर पीछे हुई तो उसका पल्लू खीच गया और पूरी तरह से कांटो में फंस गया और मेनका भी छातियां की गहरी रेखा खुलकर विक्रम के सामने आ गई और मेनका शर्म से दोहरी हो उठी और जल्दी से अपने पल्लू को खींचा लेकिन पल्लू जैसे फंस सा गया था और मेनका ने जैसे ही जोर लगाया तो उसका पल्लू बीच में से फट गया और मेनका का मुंह शर्म से लाल होकर झुक गया !


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मेनका के गोरे गोरे कंधे नुमाया हो उठे और उसकी भारी भरकम चूंचियां अपना आकार साफ दिखा रही थी जिन्हे देखकर विक्रम की आंखे खुली की खुली रह गई! विक्रम ने अब से पहले सलमा की चुचियों को देखा था और उनका आनंद लिया था लेकिन उसे मेनका की चुचियों की गहरी खाई इस बात का प्रमाण थी कि उसकी चूचियां सलमा से कई गुना बेहतर है! विक्रम थोड़ा सा आगे बढ़ा और बोला:" अगर आपको फूल ही चाहिए था तो मुझे बोल देती ! चलिए अभी तो जो होना था हो गया!

मेनका शर्म से पानी पानी हो रही थी और धीरे से बोली:" मुझे पता नहीं था कि ये पल्लू फंसकर फट जायेगा!

विक्रम:" शाही बगीचे में गुलाब के पौधो में कांटे ज्यादा बड़े होते हैं इस कारण आपकी साड़ी फटी है! आप फिक्र मत कीजिए यहां कोई नही आएगा!

मेनका ने मन ही मन सोचा कि क्यों नही आयेगा तो ठीक हैं लेकिन आप भी तो एक मर्द है और आपके सामने ऐसी हालत में रखना मुझे शर्मशार कर रहा हैं! विक्रम मेनका की हालत समझ गया और सोचने लगा कि क्या ये ही वह मेनका हैं जिसे मैंने उसे दिन अजय के साथ देखा था! फिर विक्रम ने अपनी पगड़ी को खोला और उसमे से कपड़ा निकाल कर मेनका को दिया तो मेनका ने उसे अपनी छाती पर ढक लिया और बिना कुछ बोले तेजी से अपने विश्राम कक्ष की और बढ़ गई! मेनका के कदमों की गति बता रही थी कि उसकी क्या हालत हैं और कितनी ज्यादा वो पानी पानी हो गई थी!
Shandaar update
 
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