विक्रम ने सुल्तानपुर जाने का विचार किया और अपनी योजना बनाने लगा! वो जानता था कि इस समय सुल्तानपुर जाना मौत के खेलने के समान है लेकिन सुल्तानपुर के वर्तमान हालात का जायजा लेना और सीमा को सांत्वना देने के साथ साथ सलमा से मिलना भी उसके लिए बेहद अहम था! विक्रम ने अपने राज्य के विश्वास पात्र एक व्यापारी को बुलाया जो कि एक कुशल योद्धा भी था जिसका नाम अब्दुल रशीद था! अब्दुल विक्रम के सामने हाजिर हुआ और बोला:"
" मेरा सौभाग्य युवराज आपने मुझे याद किया!
विक्रम:" अब्दुल आप और आपका परिवार हमेशा से राज परिवार के वफादार रहे हैं और आज हमे आपकी सहायता की सख्त जरूरत आन पड़ी है!
अब्दुल की आंखे चमक उठी और बोली:" आप हुक्म कीजिए आपके एक इशारे पर जान भी हाजिर है!
विक्रम:" आप एक व्यापारी के रूप में सुल्तानपुर जायेंगे और मैं आपके साथ आपके नौकर के रूप में जाऊंगा! मुझे वहां कुछ बेहद जरूरी काम है!
अब्दुल:" बिलकुल जाऊंगा युवराज! लेकिन क्षमा कीजिए आप मेरे साथ नौकर नही बल्कि एक व्यापारी के ही रूप में चलिए!
विक्रम:" नही अब्दुल, नौकर पर कोई आसानी से शक भी नहीं करता है और दूसरी बात मैं अंदर जाने तक सिर्फ आपके साथ रहूंगा और उसके बाद सुबह ही आपके पास आऊंगा तो इसके लिए नौकर ही ठीक हैं!
अब्दुल:" जैसे आप ठीक समझे! लेकिन मेरी एक सलाह हैं कि हम अपने साथ राज्य के कुछ चुनिंदा योद्धा लेकर जाएंगे ताकि मुश्किल समय में सामना कर सके!
विक्रम को उसकी बात ठीक लगी और सहमति मे सिर हिलाते हुए बोला:" मैं आपकी बात से सहमत हु लेकिन ध्यान देना कि ये बात अगर खुल गई तो हम सबका जिंदा आना मुश्किल होगा!
अब्दुल:" आप मेरी तरफ से निश्चित रहे क्योंकि मैं आखिरी सांस तक आपका और इस महान राज्य का वफादार रहूंगा!
विक्रम:" ठीक हैं फिर आप जाने की तैयारी कीजिए! आज शाम को ही हम प्रस्थान करेंगे!
उसके बाद अब्दुल चला गया और कुछ जरूरी सामान लेकर जाने को तैयारी में जुट गया! दूसरी तरफ विक्रम ने आज मंत्री दल की बैठक बुलाई हुई थी और आगे की रणनीति पर विचार चल रहा था कि कैसे सुलतान और पिंडारियो को खत्म किया जाए!
विक्रम:" सबसे पहले हमे आधुकिन हथियार और तकनीकी रूप से सक्षम सैनिक चाहिए जिनके दिल में आखिरी सांस तक लड़ने और मरने का जज्बा हो!
मंत्री वीर बहादुर:" आप सत्य कहते हो युवराज! हमे अपने प्राणों की आहुति देकर भी खून का बदला खून से लेना ही होगा!
सतपाल सिंह:" युवराज हमे सबसे पहले सैना में नव युवकों की भर्ती करनी होगी ताकि कुछ दिनो में युवा सेना तैयार कर सके!
विक्रम:" वीर बहादुर जी आपके हाथ में अभी अजय जाने के बाद सेना की जिम्मेदारी होगी और मुझे ऐसा एक युवक चाहिए जिसे मैं अजय की जगह रख सकू और मेरे लिए हर कठिन स्थिति में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहे!
एक मिनट के लिए शांति छाई रही तो एक नवयुवक खड़ा हुआ जिसकी उम्र करीब 22 साल थी और सेना में अभी टुकड़ी दल का नेतृत्व करता था बोला:"
" युवराज मैं अकरम खान आपके लिए मरने मिटने के लिए हमेशा तैयार रहूंगा मेरी आपसे गुजारिश है कि मुझे ये मौका प्रदान करे ताकि मैं अपने प्राणों की आहुति देकर भी अपनी मातृभूमि का कर्ज उतार सकू!
विक्रम उसकी बहादुरी और जज़्बात से काफी हुए और बोले:"
" मुझे आप पर फख्र हैं अकरम! क्या सभी मंत्री दल इस बात के लिए सहमत हैं कि अकरम को मैं ये अहम जिम्मेदारी दे सकू!
वीर बहादुर सिंह:" युवराज सच कहूं तो आज हमें ऐसे ही युवाओं की जरूरत हैं जो खुद आगे आकर अपना कर्तव्य समझे और मेरे हिसाब से अकरम को ये मौका देना चाहिए
सतपाल:" मेरी भी सहमति हैं युवराज! हमे अब युवाओं पर भी भरोसा करना होगा!
सभी मंत्री दल ने सहमति में अपना सिर हिलाया और विक्रम बोला:" ठीक हैं आज से अकरम हमारी रक्षक सेना टुकड़ी का सरदार होगा!
मुख्य सलाहकार:" युवराज राजमाता के जाने के बाद अब पूरे राज्य की जिम्मेदारी आपके मजबूत कंधो पर आ गई है और उम्मीद हैं कि आप हमेशा उदयपुर की जनता के विश्वास पर खरे उतरेंगे ! लेकिन हमारे राज्य की एक परंपरा है कि राज्य की बागडोर पूरी तरह से हाथ में लेने के लिए पूजा होनी चाहिए!
सभी मंत्री ने सलाहकार की बात का पुरजोर समर्थन किया तो विक्रम बोला:"
" जैसे आप सबको उचित लगे! आप सब मेरे बड़े और राज्य के शुभ चिंतक हैं तो आपकी बात मैं कैसे टाल सकता हु!
सलाहाकर:" ठीक हैं फिर परसो आपके हाथ में विधिवत पूरे राज्य की बागडोर दे दी जायेगी! वैसे तो पूजा में माता पिता का अहम स्थान होता है लेकिन विशेष परिस्थिति में मां के न होने पर जन्म दिलाने वाले दाई मां को मां का स्थान पूजा के दिन ग्रहण करके विधियां संपन्न कराई जाती है युवराज !
राजमाता के न होने की बात पर विक्रम की आंखे भर आई और बोला:" जैसे आप उचित समझे ! पूजा की सभी जिम्मेदारी आप अपने हाथ में लीजिए ताकि सब कुछ सही से विधि संपन्न पूरा हो सके !
मुख्य सलाहकार:" जैसी आपकी आज्ञा युवराज!
उसके बाद राज्य सभी समाप्त हुई और धीरे धीरे शाम होने लगी तो विक्रम ने सुल्तानपुर जाने की तैयारी करनी शुरू कर दी और अकरम उसके साथ ही था!
विक्रम:" अकरम आप हम तुम्हे एक ऐसे काम के लिए चुन रहे हैं जहां मौत भी हो सकती हैं!
अकरम:" आपके लिए मरना भी मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी! आप हुक्म कीजिए !
विक्रम" आज रात आप मेरे साथ सुल्तानपुर जायेंगे!
अकरम की आंखे खुशी से चमक उठी और बोला:" सुल्तानपुर वालो से बदला लेने के लिए तो मेरे सीने में ज्वाला भड़क रही हैं युवराज!
विक्रम:" इस ज्वाला को अभी और भड़काओ! आज मैं सिर्फ हालत का जायजा लेने के लिए जायेंगे !
अकरम:" जैसी आपकी आज्ञा युवराज!
उसके बाद विक्रम ने उसे सारी योजना बनाई और अब्दुल के आने के बाद सभी लोग एक व्यापारी के रूप में सुल्तानपुर की तरफ निकल पड़े! विक्रम एक बेहद कुरूप काला नौकर बना हुआ था बिलकुल किसी हबशी गुलाम के जैसा!
जैसे ही विक्रम का काफिला सुल्तानपुर के दरवाजे पर पहुंचा तो दरबानों ने उसे घेर लिया और बोले:"
" ऐ कौन हो तुम ? क्यों राज्य में घुसे आ रहे हो?
अब्दुल:" मैं एक बाहरी व्यापारी हु और व्यापार के सिलसिले में सुल्तानपुर आया हू!
सैनिक जोर से चिल्लाया:" क्या तुम्हे पता नही हैं कि राज्य में बाहर से किसी के भी आने पर सख्त पाबंदी लगी हुई हैं!
अब्दुल:" मुझे कैसे पता होगा मैं तो मीलों का रास्ता चलकर आया हू! बड़ा नाम सुना था सुल्तानपुर का और जब्बार साहब का ?
सैनिक अपने राज्य की तारीफ सुनकर खुश हुआ और बोला:"
" अच्छा क्या सुना था जरा हम भी तो जाने!
अब्दुल:" यही कि सुल्तानपुर में व्यापारियों का बेहद सम्मान होता हैं और पूरी तरह से संपन्न राज्य हैं! जब्बार साहब एक नेक दिल और व्यापार पसंद है!
सैनिक: बिलकुल सही सुना हैं! लेकिन आजकल सुरक्षा की वजह से ऐसा हो गया हैं कि किसी के भी अंदर आने की सख्त पाबंदी हो गई है!
अब्दुल:" मुझे पता होता तो नही आता खैर अब जाना ही पड़ेगा लेकिन जाने से पहले आपको अपनी तरफ से खुश तोहफा देकर जाना चाहता हूं!
इतना कहकर उसने कुछ सोने की मोहरे देकर एक नौकर को आगे भेजा और उसने वो मोहरे सैनिक के हाथ में रख दी तो सैनिक उनकी चमक देखकर पिघल गया और बोला:"
" ठीक ठीक हैं! मैं सबको जाने दूंगा लेकिन पूरी तरह से तलाशी लेने के बाद! लेकिन जब तक आप लोग राज्य में रहोगे मेरे सैनिक आपके साथ हर समय रहेंगे!
अब्दुल:" बेशक आप महान हो! जितना मैने सुना था आप उससे कहीं ज्यादा रहम दिल हो! सच में सुल्तानपुर के सभी लोग अपने आप में सुलतान हैं!
सैनिक:" बस बस बहुत हो गया! आओ और सबसे पहले हमे तलाशी लेने दो!
उसके बाद सैनिकों ने पूरे काफिले की तलाशी ली और अंदर जाने दिया! विक्रम की आंखो में चमक थी क्योंकि वो जानता था कि सबसे मुश्किल काम हो गया था और आगे उसके लिए आसानी थी! काफिला अंदर घुस गया और एक घर में उन्हे रहने के लिए जगह दे दी गई और व्यापार प्रमुख को सूचना दे दी और वो आया और अब्दुल से मिलकर बेहद खुश हुआ और बोला:"
" आप बिलकुल सही समय पर आए हैं! हमे कुछ चीजों की जरूरत हैं!
उसने एक सूची अब्दुल के हाथ में थमा दी और अब्दुल ने वो देखा और बोला:"
" एक महीने के अंदर ये सारा सामान मैं आपको दूंगा! अभी तो मेरे पास बेहतरीन रेशम हैं जो बेहद कीमती और आकर्षक हैं!
प्रमुख:" ठीक हैं! अभी रात हो गई है! आप आराम कीजिए! कल दिन में बात होगी!
इतना कहकर वो चला गया तो सारे लोगो ने साथ में खाना खाया और रात को करीब 11:30 के आज पास निकला और उसने अब अपने चेहरे को साफ कर दिया था लेकिन भेष को पूरी तरह से बदला हुआ था ताकि कोई पहचान न सके! अकरम ने सैनिकों को बातो में उलझाया और विक्रम धीरे से पीछे से निकल आया और आते ही सड़क पर धीरे धीरे राजमहल की तरफ बढ़ गया! रात के अंधेरे में वो सैनिकों से बचते हुए महल के पीछे की तरफ पहुंच गया और दलदल को पर करने के बाद वो महल के गुप्त दरवाजे पर पहुंच गया और अंदर दाखिल हो गया!
अंदर जाकर को गुफा के अंतिम छोर पर खड़ा हो गया और बाहर से किसी प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा! थोड़ी देर बाद ही बाहर से किसी के गुनगुनाने की आवाज आई तो विक्रम समझ गया कि सलमा बाहर आ गई और विक्रम ने धीरे से गुफा पर हाथ मारा तो सलमा ने भी खुशी खुशी में हाथ मार कर जवाब दिया और विक्रम ने ताकत से गुफा का दरवाजा खोल दिया तो सलमा तेजी से अंदर गुफा में घुस गई और विक्रम से किसी अमरबेल की तरह लिपटती हुई चली गई और विक्रम ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया! बिना कुछ बोले दोनो एक दूसरे को अपने सीने से लगाए हुए एक दूसरे की धड़कन सुनते रहे और कुछ पल ऐसे ही बीत गए तो सलमा धीरे से बोली:"
" कैसे हो युवराज आप? मैं तो आपके बिना पल पल तड़प रही थी! यकीन मानो आप मिले तो मुझे जैसे नया जीवन मिल गया है आज!
विक्रम: मैं भी आपसे मिलने के लिए बेकरार था शहजादी!
सलमा ने अब सीना उसकी छाती में छुपा लिया और उदास स्वर में बोली:" युवराज हमे अजय का बेहद दुख हैं! आपके होते ये सब कैसे हो गया!
विक्रम का भी दिल उदास हो गया और अपनी पकड़ सलमा पर ढीले करते हुए बोला:"
" मेरे वश में होता तो उसे कभी मरने नही देता! लेकिन अजय उनकी चाल को समझ नही पाया!
सलमा:" अरे मैं भी कितनी बुद्धू हो गई हु! यहीं सारी बात कर लेना चाहती हूं! आप मेरे साथ मेरे कक्ष में चलिए युवराज!
इतना कहकर सलमा उसका हाथ पकड़कर इधर उधर देखती हुई सावधानी पूर्वक आगे बढ़ गई और जैसा ही कक्ष खोला तो अंदर दोनो घुसे तो सामने ही बेड पर पड़ी हुई सीमा मिल गई जो विक्रम को देखते ही रोती हुई दौड़कर उसके गले लग गई और बोली:" ये सब क्या हो गया है युवराज! काश अजय की अजय मैं मर गई होती!
विक्रम ने बड़े भाई की तरह प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फिराया और बोला:"
" अपने आपको संभालो सीमा! ये समय रोने का नही बल्कि बदला लेने का हैं!
सलमा: लेकिन अजय की तलवार के होते भी ऐसा कैसा हो सकता है आखिर?
उसके बाद विक्रम ने उन्हें शुरू से लेकर अंत तक सारी बातें बताई और जब्बार का नाम आते ही सीमा और सलमा चौक पड़ी और बोली:" मुझे लग रहा था जरूर इसमें जब्बार का ही हाथ रखा होगा क्योंकि वो कमीना किसी भी हद तक गिर सकता हैं! भला जिसने अभी बीवी तक को पिंडाला के हवाले कर दिया हो उससे और उम्मीद ही क्या की जा सकती है!
सीमा:" मैं जब्बार को अपने इन्ही हाथो से मारूंगी! खून पी जाऊंगी उसका!
सलमा:" लेकिन एक बात समझ नही आ रही है कि आखिर जब्बार ने आप और अजय पर हमला क्यों किया ?
विक्रम:" यही तो मुझे पता करना है कि आखिर उसने किस बात का बदला हमसे लिया है?
सलमा:" कहीं मेरे पिता को आजाद करने का बदला तो नही लिया! हो सकता हैं कि उसे पता चल गया हो कि आप दोनो ने ही पिंडलगढ़ से सुलतान को आजाद किया हैं!
विक्रम के दिमाग में धमाका सा हुआ और बोला:"
" इस बात तो मेरा ध्यान कभी गया ही नहीं! अब सवाल ये कि उसे आखिर कैसे पता चला होगा?
सीमा दोनो का मुंह देख रही थी और उनकी बाते सुन रही थी और बोली:" मैं जरूरी पता लगाकर रहूंगी क्योंकि मेरी जिंदगी का मकसद ही अब जब्बार की बरबादी है!
विक्रम:" जब तक आपका भाई जिंदा है तब तक तुम कुछ मत करो! मैं हू न सब कुछ ठीक करने के लिए! मुझ पर भरोसा रखो!
सीमा कुछ नहीं बोली! थोड़ी देर चुप्पी छाई रही तो सलमा बोली:"
" मेरे पिता कैसे हैं युवराज ?
विक्रम:" पहले से बहुत बेहतर है और जल्दी ही पूरी तरह से स्वस्थ हो जायेंगे!
सलमा:" अरे मैं तो भूल ही गई आप पहले ये तो बताओ कि आप इतने सख्त पहरे के बाद अंदर कैसे आए ?
विक्रम ने उसे सारी बात बताई तो सलमा बोली:"
" फिर तो आपको बहुत ज्यादा भूख लगी होगी! आप बैठ कर सीमा से बात करो, मैं कुछ खाने का इंतजाम करती हू आपके लिए!
सलमा जाने लगी तो सीमा ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली:" आप युवराज से बैठकर बात कीजिए! मैं खाने का इंतजाम खुद कर लूंगी!
इतना कहकर सीमा बाहर निकल गई और दरवाजे को बंद कर दिया तो उसके जाते ही सलमा फिर से दौड़कर युवराज के गले लग गई और उसके मुंह को चूमने लगी तो विक्रम ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया और बोला:"
" सलमा मुझे किसी भी कीमत पर अजय की मौत का बदला लेना है चाहे इसके लिए मेरी जान ही क्यों न चली जाए!
सलमा ने उसके होंठो पर उंगली रख दी और बोली:" मरे आपके दुश्मन युवराज! जब्बार को मारने में मैं आपका साथ दूंगी!
विक्रम ने सलमा को गोद में उठाया और बेड पर लेकर आ गया तो सलमा उसके मजबूत कंधे पर अपना सिर टिकाकर लेट गई और बोली:"
" आप बड़े परेशान लग रहे हैं युवराज! आखिर क्या बात हैं जो आप इतने सोच में गुम हो?
विक्रम:" आपको पता हैं शहजादी कि मैं युद्ध में उस दिन बच गया क्योंकि मैंने अजय की तलवार को उठा लिया और दुश्मनों पर हमला किया!
सलमा ने उसकी बात को गौर से सुना और समझा तो बोली:"
" लेकिन आप अजय की तलवार कैसे उठा सकते हो ? उसे तो उसके परिवार के सिवा कोई और नहीं उठा सकता!
विक्रम:" यही तो बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है ये देखो!
इतना कहकर विक्रम ने अपनी कमर में छुपी हुई तलवार को बाहर निकाल लिया और शहजादी को दिखाया तो सलमा हैरान से बोली:"
" या मेरे रब ये कैसा अजीब करिश्मा हैं! क्या मैं सपना देख रही हूं या हकीकत ?
विक्रम:" यही हकीकत हैं सलमा! मुझे समझ नही आया कि आखिर मैं ये तलवार कैसे उठा सकता हूं? आखिर क्या मेरा अजय के परिवार से कुछ रिश्ता हैं ? हैं तो कैसे और क्या? मैं उलझन में फंस गया हूं शहजादी!
सलमा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोली:"
" आप सब कुछ समय पर छोड़ दो! और हां अगर आप सच में युवराज नही हुए तो भी मैं आपकी ही अमानत रहूंगी!
विक्रम ने उसका माथा चूम लिया और बोला:" मेरे लिए अभी सबसे ज्यादा जरूरी अपनी खुद की सच्चाई जानना हैं!
इसी बीच सीमा खाना लेकर आ गई और सभी ने साथ में खाना खाया और उसके बाद सीमा सोने के लिए अलग कक्ष में जाने लगी तो विक्रम ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास ही बैठा लिया और तीनों सुल्तानपुर के हालात पर चर्चा करते रहे!
अगले कुछ सुबह होने से पहले ही विक्रम निकल गया और अब्दुल ने सुल्तानपुर के व्यापारियों से कुछ सामान खरीदा और आखिर में शाम के समय सभी लोग सुरक्षित अपने राज्य पहुंच गए!
राज्य में आने के बाद विक्रम ने सबसे पहले मेनका से मिलने का निश्चय किया और उसके घर जा पहुंचा! मेनका पूरी तरह से उदास थी आज भी और सोफे पर पड़ी हुई थी! विक्रम को देखकर वो खड़ी हो गईं और बोली:"
" युवराज आपने आने का कष्ट क्यों किया ? मुझे बुला लिया होता !
विक्रम उसकी बात सुनकर दुखी हुआ और बोला:" मैं सारी दुनिया के लिए युवराज हु लेकिन आपके लिए बिल्कुल आपके बेटे जैसा हु इसलिए आप मुझे युवराज न कहे!
मेनका:" बेशक आप मेरे बेटे जैसे हो लेकिन राज परंपरा मैं कैसे भूल सकती हू ?
विक्रम थोड़ी देर चुप रहा और बोला:" कैसी हो आप ?
मेनका थोड़ी देर शून्य में घूरती हुई खड़ी और फिर बोली:"
" बस जिंदा हु!
विक्रम उसकी हालत देखकर मन ही मन तड़प उठा और सोचने लगा कि क्या वो सच में यही मेनका हैं जिसे मैंने उस रात अजय की बांहों में देखा था! मेनका का चेहरा हल्का पीला पड़ गया था और उसकी आंखे रोने के कारण लाल हो गई थी!
विक्रम ने हिम्मत करके उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला:"
" संभालिए आप अपने आपको! जब आपका उदास चेहरा देखता हु तो मेरा दिल फट पड़ने को होता हैं! ऐसा लगता हैं कि जैसे मैं किसी अपने को दर्द में तड़पते हुए देख रहा हूं! पता नही क्या रिश्ता है मेरा आपसे कि आपकी उदासी मेरी जान निकल रही हैं!
इतना कहकर विक्रम की आंखे छलक पड़ी और उसने अपने सिर को मेनका के कंधे पर टिका दिया और उसकी आंखो से निकलते हुए आंसू मेनका का दामन भिगोने लगी तो मेनका ने अपने आंचल से उसके आंसू साफ किए और प्यार से उसके आंसू साफ करती हुई बोली:"
" बहादुर योद्धाओं की आंखो में आंसू शोभा नही देते युवराज!
विक्रम मेनका का अपनत्व देखकर किसी छोटे बच्चे की तरह बिलख पड़ा और बोला:"
" आपकी उदासी मुझे पागल कर रही है! मन करता है कि सारी दुनिया की खुशियां लाकर आपके दामन में डाल दू! आप बताए ना मैं क्या करू कि आपकी हंसी फिर से वापिस ला सकू?
मेनका थोड़ी देर चुप रही और रोते हुए विक्रम को तसल्ली देती रही और फिर बोली:"
" मुझे अजय के हत्यारे मेरे कदमों में चाहिए युवराज! उससे पहले न मेरी जिस्म को शांति मिलगी और न ही मेरी आत्मा को सुकून!
विक्रम मेनका के चरणों में बैठ गया और उसके पैरो को हाथ लगाते हुए बोला:" आपके इन्ही चरणों की सौगंध मैं जब तक अजय के हत्यारों को आपके कदमों में नही डाल दूंगा राज गद्दी पर नही बैठूंगा!
मेनका ने उसे ऊपर उठाया और उसके आंसुओं से भीग गए चेहरे को साफ करती हुई बोली:"
" आज के बाद मुझे आपको आंखो में आंसू नहीं बल्कि ज्वाला दिखनी चाहिए! ऐसी ज्वाला जिसमे सब शत्रु जलकर भस्म हो जाए!
मेनका ने विक्रम का पूरा चेहरा साफ कर दिया तो विक्रम की आंखे अब लाल सुर्ख होकर दहक रही थीं और बोला:"
" ठीक हैं लेकिन आपको भी एक वादा करना होगा कि आज के बाद आप अपना ख्याल रखेगी! रोएंगी बिलकुल नही क्योंकि आपकी आंखों के आंसू मुझे कमजोर करते हैं! पता नही आपसे मेरा क्या रिश्ता हैं लेकिन आपका दुख मैं नही देख सकता!
मेनका भी उसकी बाते सुनकर थोड़ा भावुक हो गईं और विक्रम से उसे अपनापन महसूस हो रहा था इसलिए न चाहते हुए भी उसकी आंखो से आंसू छलक पड़ा तो विक्रम ने मेनका के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए उसके आंसू को साफ किया तो मेनका उसका प्यार अपनत्व देखकर पिघल गई और पहली बार न चाहते हुए भी उसके गले लग गई! विक्रम ने भी उसे अपने गले से लगा लिया और दोनो ऐसे ही चिपके हुए खड़े रहे! बिलकुल शुद्ध और निश्चल प्रेम!
विक्रम प्यार से उसकी पीठ थपथपाते हुए बोला:"
" आपने खाना खाया या नहीं!!
मेनका कुछ नही बोली तो विक्रम समझ गया कि आज भी उसने खाना नही खाया है तो विक्रम उससे अलग होते हुए बोला:"
" मुझे भी बहुत जोर की भूख लगी है! आज आपके हाथो से खाना खाकर ही जाऊंगा!
मेनका ये सुनकर दौड़ी दौड़ी रसोई में गई और आनन फानन में ही स्वादिष्ट भोजन तैयार किया और दोनो ने एक साथ खाना खाया और उसके बाद विक्रम जाने लगा तो पता नहीं क्यों लेकिन मेनका का दिल भर आया और बोली:"
" युवराज आप आते हैं तो अच्छा लगता है! पता नहीं क्या रिश्ता है आपसे कि आपको देखकर दुख दर्द सब दूर हो जाते है!
विक्रम:" मुझे भी आपसे बिलकुल अपनापन ही लगता हैं! आप अपना ध्यान रखिए और हान कल मैं आपको लेने के लिए आऊंगा! कल पूजा है तो कल विधिपूर्वक सारे राज्य की सभी जिम्मेदारी मुझे दे दी जायेगी! आप रहेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा!
मेनका:" मैं जरूर आऊंगी युवराज!
विक्रम:" अच्छा मैं अब चलता हु! आप अपना ध्यान रखिए और किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे अपना बेटा समझकर बोल दीजिए आप!
बेटा शब्द सुनकर मेनका के अंदर ममता का सागर उमड़ और एक बार फिर से भावुक होकर विक्रम के गले लग गई और बोली:"
" बिलकुल मेरे लिए तो आप बिल्कुल मेरे बेटे जैसे ही हो युवराज! ईश्वर आपको हर बुरी नजर से बचाए!
उसके बाद विक्रम मेनका के घर से निकल कर राजमहल में आ गया और उसके दिल का बोझ थोड़ा हल्का हो गया था! अजय के मरने के बाद वो अभी तक अपने आपको दोषी मान रहा था और उसे खुद का तलवार उठा लेना इस बात का सुबूत था कि जरूर उसका मेनका के परिवार से कुछ गहरा रिश्ता तो हैं!
रात के करीब 12 बज चुके थे और मेनका बिस्तर पर पड़ी हुई सोने का प्रयास कर रही थी लेकिन नींद उसकी आंखो से कोसो दूर थी! उसके दिल का दर्द पीड़ा बनकर चेहरे से उमड़ रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो मेनका ने भारी कदमों से उठकर दरवाजा खोला तो सामने दाई माता को देखकर उसकी आंखे हैरानी से फैल गई और बोली:" दाई माता आप इतनी रात गए कैसे? आइए अंदर आइए आप!
दाई माता एक करीब 75 साल की कमजोर सी दिखने वाली वृद्ध महिला थी जिसकी कमर अब बुढापे के कारण बीच में से मूड गई थीं और वो धीरे धीरे चलती हुई अंदर आई और बिस्तर पर बैठ गई तो मेनका उसके पास ही जमीन में बैठ गई!
मेनका:" दाई माता आपने इस उम्र में आने का कष्ट क्यों किया मुझे ही बुला लिया होता!
दाई माता धीरे से कमजोर शब्दो में बोली:" मेनका बेटी अगर आज भी नही आ पाती तो शायद कभी सच बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती मैं!
मेनका का दिल तेजी से धड़क उठा और मेनका बेचैन होते हुए बोली:" सच कैसा सच दाई माता? मैं कुछ समझ नहीं पाई!
दाई माता:" एक ऐसा पाप जो मैंने आज से 22 साल पहले किया था ईनाम के लालच में आज उसके प्रायश्चित करने का समय आ गया है!
मेनका अब पूरी से बेचैन होते हुए बोली:" साफ साफ बताए ना दाई माता? मुझे सब्र नहीं हो पा रहा ?
दाई माता:" सच ये है कि युवराज विक्रम आपका बेटा है मेनका!
दाई माता की बात सुनकर मेनका को लगा कि उसका दिल उछलकर उसकी छाती से बाहर निकल आयेगा और उसके होंठ खुशी से कंपकपा उठे
" क क क्या दाई माता!!
दाई माता ने उसके सिर पर हाथ रखा और बोली:" हान बेटी विक्रम आपका ही बेटा हैं! सबसे बड़ा बेटा! दरअसल आपको और महारानी को एक ही दिन प्रसव पीड़ा हुई थी तो महारानी को मरे हुए बच्चे पैदा होते थे! लेकिन महराज ने घोषणा करी थी कि अगर मैने उनके बच्चे को जीवित पैदा करा दिया तो वो मुझे सोने हीरे जवाहरात देंगे और अगर मरा हुआ बच्चा हुआ तो मुझे मार डालेंगे क्योंकि महाराज को लगता था कि दाई की वजह से इनके बच्चे मरते हैं इसलिए वो कई दाई को मरवा चुके थे! मेरे हर कोशिश करने के बाद भी उनको मरा हुआ ही बच्चा पैदा हुआ! आप दो बेटे पैदा हुए आप उस समय दर्द की अधिकता से पूरी तरह से बेहोश थी! बस इसी का फायदा उठाकर मैने एक बच्चे को महारानी के बच्चे से बदल दिया और बाद में सबको बताया कि आपका एक बेटा मर गया है!
मेनका की आंखो से आंसू बह चले और वो दाई माता एक दामन झिंझोड़ते हुए बोली:"
" क्यों किया आपने मेरे साथ ऐसा! चंद गहनों के लालच के चलते आपने मेरी ममता का गला घोट दिया! बोलिए दाई माता
दाई माता थोड़ी देर चुप रही और फिर मेनका के सामने हाथ जोड़ कर बोली:" मुझे क्षमा कर दो मेनका, मैं सचमुच लालच में अंधी हो गई थी और फिर अपनी जान बचाने का मेरे पास कोई उपाय भी नही था!
मेनका थोड़ा शांत हुई और बोली:" आज आखिर इतने दिनों के बाद आपको ये राज बताने की क्या जरुआत आन पड़ी?
दाई माता:" कल युवराज विक्रम को पूजा के बाद राज्य की सभी जिम्मेदारी दे दी जायेगी और ये पूजा कराने की जिम्मेदारी मुझे मिली हैं जबकि असली मां के जिंदा रहते ऐसा करना अपशकुन होगा! एक गलती मैं पहले ही कर चुकी हूं तो अब दूसरी गलती करने की मेरे अंदर हिम्मत नहीं बची हैं!
मेनका:" लेकिन आप सबके सामने ये बात रखेंगी तो जनता आपको बुरा भला कहेगी और आपको फांसी भी हो सकती हैं! बेहतर होगा कि ये राज आप राज ही रहने दो !
दाई माता:" मुझे मेरे अंजाम की अब कोई परवाह नही हैं! मरना तो वैसे भी हैं ही लेकिन प्रायश्चित करके मरूंगी तो आत्मा को थोड़ी शांति तो रहेगी! अच्छा मैं चलती हु! बेटी मैं क्षमा के लायक तो नही हु लेकिन हो सके तो मुझे क्षमा कर देना!
इतना कहकर वो मेनका के पैरो में गिर पड़ी तो मेनका ने उसे ऊपर उठाया और बोली:"
" बड़े छोटे से क्षमा मांगते हुए अच्छे नही लगते! भले ही देर से ही सही लेकिन आपने मुझे आज फिर से जीने की एक नई वजह दे दी है!
दाई माता वहां से चली तो मेनका की आंखे एक बार फिर खुशी से उछल उठी और ये अब एहसास हुआ कि आखिर क्यों विक्रम ने उसकी खानदानी तलवार उठा ली थी क्योंकि वो उसका ही अपना खून हैं और इसी वजह से उसे विक्रम से इतना ज्यादा अपनापन महसूस हो रहा था!
थोड़ी देर तक मेनका खुशी से बिस्तर पर करवट बदलती रही और आखिर में उसे नींद आ गई! आज कई दिनों के बाद वो सुकून की नींद मे सोई थी!