• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest शहजादी सलमा

Napster

Well-Known Member
5,152
14,069
188
विक्रम ने सुल्तानपुर जाने का विचार किया और अपनी योजना बनाने लगा! वो जानता था कि इस समय सुल्तानपुर जाना मौत के खेलने के समान है लेकिन सुल्तानपुर के वर्तमान हालात का जायजा लेना और सीमा को सांत्वना देने के साथ साथ सलमा से मिलना भी उसके लिए बेहद अहम था! विक्रम ने अपने राज्य के विश्वास पात्र एक व्यापारी को बुलाया जो कि एक कुशल योद्धा भी था जिसका नाम अब्दुल रशीद था! अब्दुल विक्रम के सामने हाजिर हुआ और बोला:"

" मेरा सौभाग्य युवराज आपने मुझे याद किया!

विक्रम:" अब्दुल आप और आपका परिवार हमेशा से राज परिवार के वफादार रहे हैं और आज हमे आपकी सहायता की सख्त जरूरत आन पड़ी है!

अब्दुल की आंखे चमक उठी और बोली:" आप हुक्म कीजिए आपके एक इशारे पर जान भी हाजिर है!

विक्रम:" आप एक व्यापारी के रूप में सुल्तानपुर जायेंगे और मैं आपके साथ आपके नौकर के रूप में जाऊंगा! मुझे वहां कुछ बेहद जरूरी काम है!

अब्दुल:" बिलकुल जाऊंगा युवराज! लेकिन क्षमा कीजिए आप मेरे साथ नौकर नही बल्कि एक व्यापारी के ही रूप में चलिए!

विक्रम:" नही अब्दुल, नौकर पर कोई आसानी से शक भी नहीं करता है और दूसरी बात मैं अंदर जाने तक सिर्फ आपके साथ रहूंगा और उसके बाद सुबह ही आपके पास आऊंगा तो इसके लिए नौकर ही ठीक हैं!

अब्दुल:" जैसे आप ठीक समझे! लेकिन मेरी एक सलाह हैं कि हम अपने साथ राज्य के कुछ चुनिंदा योद्धा लेकर जाएंगे ताकि मुश्किल समय में सामना कर सके!

विक्रम को उसकी बात ठीक लगी और सहमति मे सिर हिलाते हुए बोला:" मैं आपकी बात से सहमत हु लेकिन ध्यान देना कि ये बात अगर खुल गई तो हम सबका जिंदा आना मुश्किल होगा!

अब्दुल:" आप मेरी तरफ से निश्चित रहे क्योंकि मैं आखिरी सांस तक आपका और इस महान राज्य का वफादार रहूंगा!

विक्रम:" ठीक हैं फिर आप जाने की तैयारी कीजिए! आज शाम को ही हम प्रस्थान करेंगे!

उसके बाद अब्दुल चला गया और कुछ जरूरी सामान लेकर जाने को तैयारी में जुट गया! दूसरी तरफ विक्रम ने आज मंत्री दल की बैठक बुलाई हुई थी और आगे की रणनीति पर विचार चल रहा था कि कैसे सुलतान और पिंडारियो को खत्म किया जाए!

विक्रम:" सबसे पहले हमे आधुकिन हथियार और तकनीकी रूप से सक्षम सैनिक चाहिए जिनके दिल में आखिरी सांस तक लड़ने और मरने का जज्बा हो!

मंत्री वीर बहादुर:" आप सत्य कहते हो युवराज! हमे अपने प्राणों की आहुति देकर भी खून का बदला खून से लेना ही होगा!

सतपाल सिंह:" युवराज हमे सबसे पहले सैना में नव युवकों की भर्ती करनी होगी ताकि कुछ दिनो में युवा सेना तैयार कर सके!

विक्रम:" वीर बहादुर जी आपके हाथ में अभी अजय जाने के बाद सेना की जिम्मेदारी होगी और मुझे ऐसा एक युवक चाहिए जिसे मैं अजय की जगह रख सकू और मेरे लिए हर कठिन स्थिति में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहे!

एक मिनट के लिए शांति छाई रही तो एक नवयुवक खड़ा हुआ जिसकी उम्र करीब 22 साल थी और सेना में अभी टुकड़ी दल का नेतृत्व करता था बोला:"

" युवराज मैं अकरम खान आपके लिए मरने मिटने के लिए हमेशा तैयार रहूंगा मेरी आपसे गुजारिश है कि मुझे ये मौका प्रदान करे ताकि मैं अपने प्राणों की आहुति देकर भी अपनी मातृभूमि का कर्ज उतार सकू!

विक्रम उसकी बहादुरी और जज़्बात से काफी हुए और बोले:"

" मुझे आप पर फख्र हैं अकरम! क्या सभी मंत्री दल इस बात के लिए सहमत हैं कि अकरम को मैं ये अहम जिम्मेदारी दे सकू!

वीर बहादुर सिंह:" युवराज सच कहूं तो आज हमें ऐसे ही युवाओं की जरूरत हैं जो खुद आगे आकर अपना कर्तव्य समझे और मेरे हिसाब से अकरम को ये मौका देना चाहिए

सतपाल:" मेरी भी सहमति हैं युवराज! हमे अब युवाओं पर भी भरोसा करना होगा!

सभी मंत्री दल ने सहमति में अपना सिर हिलाया और विक्रम बोला:" ठीक हैं आज से अकरम हमारी रक्षक सेना टुकड़ी का सरदार होगा!


मुख्य सलाहकार:" युवराज राजमाता के जाने के बाद अब पूरे राज्य की जिम्मेदारी आपके मजबूत कंधो पर आ गई है और उम्मीद हैं कि आप हमेशा उदयपुर की जनता के विश्वास पर खरे उतरेंगे ! लेकिन हमारे राज्य की एक परंपरा है कि राज्य की बागडोर पूरी तरह से हाथ में लेने के लिए पूजा होनी चाहिए!

सभी मंत्री ने सलाहकार की बात का पुरजोर समर्थन किया तो विक्रम बोला:"

" जैसे आप सबको उचित लगे! आप सब मेरे बड़े और राज्य के शुभ चिंतक हैं तो आपकी बात मैं कैसे टाल सकता हु!

सलाहाकर:" ठीक हैं फिर परसो आपके हाथ में विधिवत पूरे राज्य की बागडोर दे दी जायेगी! वैसे तो पूजा में माता पिता का अहम स्थान होता है लेकिन विशेष परिस्थिति में मां के न होने पर जन्म दिलाने वाले दाई मां को मां का स्थान पूजा के दिन ग्रहण करके विधियां संपन्न कराई जाती है युवराज !

राजमाता के न होने की बात पर विक्रम की आंखे भर आई और बोला:" जैसे आप उचित समझे ! पूजा की सभी जिम्मेदारी आप अपने हाथ में लीजिए ताकि सब कुछ सही से विधि संपन्न पूरा हो सके !

मुख्य सलाहकार:" जैसी आपकी आज्ञा युवराज!

उसके बाद राज्य सभी समाप्त हुई और धीरे धीरे शाम होने लगी तो विक्रम ने सुल्तानपुर जाने की तैयारी करनी शुरू कर दी और अकरम उसके साथ ही था!

विक्रम:" अकरम आप हम तुम्हे एक ऐसे काम के लिए चुन रहे हैं जहां मौत भी हो सकती हैं!

अकरम:" आपके लिए मरना भी मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी! आप हुक्म कीजिए !

विक्रम" आज रात आप मेरे साथ सुल्तानपुर जायेंगे!

अकरम की आंखे खुशी से चमक उठी और बोला:" सुल्तानपुर वालो से बदला लेने के लिए तो मेरे सीने में ज्वाला भड़क रही हैं युवराज!

विक्रम:" इस ज्वाला को अभी और भड़काओ! आज मैं सिर्फ हालत का जायजा लेने के लिए जायेंगे !

अकरम:" जैसी आपकी आज्ञा युवराज!

उसके बाद विक्रम ने उसे सारी योजना बनाई और अब्दुल के आने के बाद सभी लोग एक व्यापारी के रूप में सुल्तानपुर की तरफ निकल पड़े! विक्रम एक बेहद कुरूप काला नौकर बना हुआ था बिलकुल किसी हबशी गुलाम के जैसा!

जैसे ही विक्रम का काफिला सुल्तानपुर के दरवाजे पर पहुंचा तो दरबानों ने उसे घेर लिया और बोले:"

" ऐ कौन हो तुम ? क्यों राज्य में घुसे आ रहे हो?

अब्दुल:" मैं एक बाहरी व्यापारी हु और व्यापार के सिलसिले में सुल्तानपुर आया हू!

सैनिक जोर से चिल्लाया:" क्या तुम्हे पता नही हैं कि राज्य में बाहर से किसी के भी आने पर सख्त पाबंदी लगी हुई हैं!

अब्दुल:" मुझे कैसे पता होगा मैं तो मीलों का रास्ता चलकर आया हू! बड़ा नाम सुना था सुल्तानपुर का और जब्बार साहब का ?

सैनिक अपने राज्य की तारीफ सुनकर खुश हुआ और बोला:"

" अच्छा क्या सुना था जरा हम भी तो जाने!

अब्दुल:" यही कि सुल्तानपुर में व्यापारियों का बेहद सम्मान होता हैं और पूरी तरह से संपन्न राज्य हैं! जब्बार साहब एक नेक दिल और व्यापार पसंद है!

सैनिक: बिलकुल सही सुना हैं! लेकिन आजकल सुरक्षा की वजह से ऐसा हो गया हैं कि किसी के भी अंदर आने की सख्त पाबंदी हो गई है!

अब्दुल:" मुझे पता होता तो नही आता खैर अब जाना ही पड़ेगा लेकिन जाने से पहले आपको अपनी तरफ से खुश तोहफा देकर जाना चाहता हूं!

इतना कहकर उसने कुछ सोने की मोहरे देकर एक नौकर को आगे भेजा और उसने वो मोहरे सैनिक के हाथ में रख दी तो सैनिक उनकी चमक देखकर पिघल गया और बोला:"

" ठीक ठीक हैं! मैं सबको जाने दूंगा लेकिन पूरी तरह से तलाशी लेने के बाद! लेकिन जब तक आप लोग राज्य में रहोगे मेरे सैनिक आपके साथ हर समय रहेंगे!

अब्दुल:" बेशक आप महान हो! जितना मैने सुना था आप उससे कहीं ज्यादा रहम दिल हो! सच में सुल्तानपुर के सभी लोग अपने आप में सुलतान हैं!

सैनिक:" बस बस बहुत हो गया! आओ और सबसे पहले हमे तलाशी लेने दो!

उसके बाद सैनिकों ने पूरे काफिले की तलाशी ली और अंदर जाने दिया! विक्रम की आंखो में चमक थी क्योंकि वो जानता था कि सबसे मुश्किल काम हो गया था और आगे उसके लिए आसानी थी! काफिला अंदर घुस गया और एक घर में उन्हे रहने के लिए जगह दे दी गई और व्यापार प्रमुख को सूचना दे दी और वो आया और अब्दुल से मिलकर बेहद खुश हुआ और बोला:"

" आप बिलकुल सही समय पर आए हैं! हमे कुछ चीजों की जरूरत हैं!

उसने एक सूची अब्दुल के हाथ में थमा दी और अब्दुल ने वो देखा और बोला:"

" एक महीने के अंदर ये सारा सामान मैं आपको दूंगा! अभी तो मेरे पास बेहतरीन रेशम हैं जो बेहद कीमती और आकर्षक हैं!

प्रमुख:" ठीक हैं! अभी रात हो गई है! आप आराम कीजिए! कल दिन में बात होगी!

इतना कहकर वो चला गया तो सारे लोगो ने साथ में खाना खाया और रात को करीब 11:30 के आज पास निकला और उसने अब अपने चेहरे को साफ कर दिया था लेकिन भेष को पूरी तरह से बदला हुआ था ताकि कोई पहचान न सके! अकरम ने सैनिकों को बातो में उलझाया और विक्रम धीरे से पीछे से निकल आया और आते ही सड़क पर धीरे धीरे राजमहल की तरफ बढ़ गया! रात के अंधेरे में वो सैनिकों से बचते हुए महल के पीछे की तरफ पहुंच गया और दलदल को पर करने के बाद वो महल के गुप्त दरवाजे पर पहुंच गया और अंदर दाखिल हो गया!

अंदर जाकर को गुफा के अंतिम छोर पर खड़ा हो गया और बाहर से किसी प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा! थोड़ी देर बाद ही बाहर से किसी के गुनगुनाने की आवाज आई तो विक्रम समझ गया कि सलमा बाहर आ गई और विक्रम ने धीरे से गुफा पर हाथ मारा तो सलमा ने भी खुशी खुशी में हाथ मार कर जवाब दिया और विक्रम ने ताकत से गुफा का दरवाजा खोल दिया तो सलमा तेजी से अंदर गुफा में घुस गई और विक्रम से किसी अमरबेल की तरह लिपटती हुई चली गई और विक्रम ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया! बिना कुछ बोले दोनो एक दूसरे को अपने सीने से लगाए हुए एक दूसरे की धड़कन सुनते रहे और कुछ पल ऐसे ही बीत गए तो सलमा धीरे से बोली:"

" कैसे हो युवराज आप? मैं तो आपके बिना पल पल तड़प रही थी! यकीन मानो आप मिले तो मुझे जैसे नया जीवन मिल गया है आज!

विक्रम: मैं भी आपसे मिलने के लिए बेकरार था शहजादी!

सलमा ने अब सीना उसकी छाती में छुपा लिया और उदास स्वर में बोली:" युवराज हमे अजय का बेहद दुख हैं! आपके होते ये सब कैसे हो गया!

विक्रम का भी दिल उदास हो गया और अपनी पकड़ सलमा पर ढीले करते हुए बोला:"

" मेरे वश में होता तो उसे कभी मरने नही देता! लेकिन अजय उनकी चाल को समझ नही पाया!

सलमा:" अरे मैं भी कितनी बुद्धू हो गई हु! यहीं सारी बात कर लेना चाहती हूं! आप मेरे साथ मेरे कक्ष में चलिए युवराज!

इतना कहकर सलमा उसका हाथ पकड़कर इधर उधर देखती हुई सावधानी पूर्वक आगे बढ़ गई और जैसा ही कक्ष खोला तो अंदर दोनो घुसे तो सामने ही बेड पर पड़ी हुई सीमा मिल गई जो विक्रम को देखते ही रोती हुई दौड़कर उसके गले लग गई और बोली:" ये सब क्या हो गया है युवराज! काश अजय की अजय मैं मर गई होती!

विक्रम ने बड़े भाई की तरह प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फिराया और बोला:"

" अपने आपको संभालो सीमा! ये समय रोने का नही बल्कि बदला लेने का हैं!

सलमा: लेकिन अजय की तलवार के होते भी ऐसा कैसा हो सकता है आखिर?

उसके बाद विक्रम ने उन्हें शुरू से लेकर अंत तक सारी बातें बताई और जब्बार का नाम आते ही सीमा और सलमा चौक पड़ी और बोली:" मुझे लग रहा था जरूर इसमें जब्बार का ही हाथ रखा होगा क्योंकि वो कमीना किसी भी हद तक गिर सकता हैं! भला जिसने अभी बीवी तक को पिंडाला के हवाले कर दिया हो उससे और उम्मीद ही क्या की जा सकती है!

सीमा:" मैं जब्बार को अपने इन्ही हाथो से मारूंगी! खून पी जाऊंगी उसका!

सलमा:" लेकिन एक बात समझ नही आ रही है कि आखिर जब्बार ने आप और अजय पर हमला क्यों किया ?

विक्रम:" यही तो मुझे पता करना है कि आखिर उसने किस बात का बदला हमसे लिया है?

सलमा:" कहीं मेरे पिता को आजाद करने का बदला तो नही लिया! हो सकता हैं कि उसे पता चल गया हो कि आप दोनो ने ही पिंडलगढ़ से सुलतान को आजाद किया हैं!

विक्रम के दिमाग में धमाका सा हुआ और बोला:"

" इस बात तो मेरा ध्यान कभी गया ही नहीं! अब सवाल ये कि उसे आखिर कैसे पता चला होगा?

सीमा दोनो का मुंह देख रही थी और उनकी बाते सुन रही थी और बोली:" मैं जरूरी पता लगाकर रहूंगी क्योंकि मेरी जिंदगी का मकसद ही अब जब्बार की बरबादी है!

विक्रम:" जब तक आपका भाई जिंदा है तब तक तुम कुछ मत करो! मैं हू न सब कुछ ठीक करने के लिए! मुझ पर भरोसा रखो!

सीमा कुछ नहीं बोली! थोड़ी देर चुप्पी छाई रही तो सलमा बोली:"

" मेरे पिता कैसे हैं युवराज ?

विक्रम:" पहले से बहुत बेहतर है और जल्दी ही पूरी तरह से स्वस्थ हो जायेंगे!

सलमा:" अरे मैं तो भूल ही गई आप पहले ये तो बताओ कि आप इतने सख्त पहरे के बाद अंदर कैसे आए ?

विक्रम ने उसे सारी बात बताई तो सलमा बोली:"

" फिर तो आपको बहुत ज्यादा भूख लगी होगी! आप बैठ कर सीमा से बात करो, मैं कुछ खाने का इंतजाम करती हू आपके लिए!

सलमा जाने लगी तो सीमा ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली:" आप युवराज से बैठकर बात कीजिए! मैं खाने का इंतजाम खुद कर लूंगी!

इतना कहकर सीमा बाहर निकल गई और दरवाजे को बंद कर दिया तो उसके जाते ही सलमा फिर से दौड़कर युवराज के गले लग गई और उसके मुंह को चूमने लगी तो विक्रम ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया और बोला:"

" सलमा मुझे किसी भी कीमत पर अजय की मौत का बदला लेना है चाहे इसके लिए मेरी जान ही क्यों न चली जाए!

सलमा ने उसके होंठो पर उंगली रख दी और बोली:" मरे आपके दुश्मन युवराज! जब्बार को मारने में मैं आपका साथ दूंगी!

विक्रम ने सलमा को गोद में उठाया और बेड पर लेकर आ गया तो सलमा उसके मजबूत कंधे पर अपना सिर टिकाकर लेट गई और बोली:"

" आप बड़े परेशान लग रहे हैं युवराज! आखिर क्या बात हैं जो आप इतने सोच में गुम हो?

विक्रम:" आपको पता हैं शहजादी कि मैं युद्ध में उस दिन बच गया क्योंकि मैंने अजय की तलवार को उठा लिया और दुश्मनों पर हमला किया!

सलमा ने उसकी बात को गौर से सुना और समझा तो बोली:"

" लेकिन आप अजय की तलवार कैसे उठा सकते हो ? उसे तो उसके परिवार के सिवा कोई और नहीं उठा सकता!

विक्रम:" यही तो बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है ये देखो!

इतना कहकर विक्रम ने अपनी कमर में छुपी हुई तलवार को बाहर निकाल लिया और शहजादी को दिखाया तो सलमा हैरान से बोली:"

" या मेरे रब ये कैसा अजीब करिश्मा हैं! क्या मैं सपना देख रही हूं या हकीकत ?

विक्रम:" यही हकीकत हैं सलमा! मुझे समझ नही आया कि आखिर मैं ये तलवार कैसे उठा सकता हूं? आखिर क्या मेरा अजय के परिवार से कुछ रिश्ता हैं ? हैं तो कैसे और क्या? मैं उलझन में फंस गया हूं शहजादी!

सलमा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोली:"

" आप सब कुछ समय पर छोड़ दो! और हां अगर आप सच में युवराज नही हुए तो भी मैं आपकी ही अमानत रहूंगी!

विक्रम ने उसका माथा चूम लिया और बोला:" मेरे लिए अभी सबसे ज्यादा जरूरी अपनी खुद की सच्चाई जानना हैं!

इसी बीच सीमा खाना लेकर आ गई और सभी ने साथ में खाना खाया और उसके बाद सीमा सोने के लिए अलग कक्ष में जाने लगी तो विक्रम ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास ही बैठा लिया और तीनों सुल्तानपुर के हालात पर चर्चा करते रहे!

अगले कुछ सुबह होने से पहले ही विक्रम निकल गया और अब्दुल ने सुल्तानपुर के व्यापारियों से कुछ सामान खरीदा और आखिर में शाम के समय सभी लोग सुरक्षित अपने राज्य पहुंच गए!

राज्य में आने के बाद विक्रम ने सबसे पहले मेनका से मिलने का निश्चय किया और उसके घर जा पहुंचा! मेनका पूरी तरह से उदास थी आज भी और सोफे पर पड़ी हुई थी! विक्रम को देखकर वो खड़ी हो गईं और बोली:"

" युवराज आपने आने का कष्ट क्यों किया ? मुझे बुला लिया होता !

विक्रम उसकी बात सुनकर दुखी हुआ और बोला:" मैं सारी दुनिया के लिए युवराज हु लेकिन आपके लिए बिल्कुल आपके बेटे जैसा हु इसलिए आप मुझे युवराज न कहे!

मेनका:" बेशक आप मेरे बेटे जैसे हो लेकिन राज परंपरा मैं कैसे भूल सकती हू ?

विक्रम थोड़ी देर चुप रहा और बोला:" कैसी हो आप ?

मेनका थोड़ी देर शून्य में घूरती हुई खड़ी और फिर बोली:"

" बस जिंदा हु!

विक्रम उसकी हालत देखकर मन ही मन तड़प उठा और सोचने लगा कि क्या वो सच में यही मेनका हैं जिसे मैंने उस रात अजय की बांहों में देखा था! मेनका का चेहरा हल्का पीला पड़ गया था और उसकी आंखे रोने के कारण लाल हो गई थी!

विक्रम ने हिम्मत करके उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला:"

" संभालिए आप अपने आपको! जब आपका उदास चेहरा देखता हु तो मेरा दिल फट पड़ने को होता हैं! ऐसा लगता हैं कि जैसे मैं किसी अपने को दर्द में तड़पते हुए देख रहा हूं! पता नही क्या रिश्ता है मेरा आपसे कि आपकी उदासी मेरी जान निकल रही हैं!

इतना कहकर विक्रम की आंखे छलक पड़ी और उसने अपने सिर को मेनका के कंधे पर टिका दिया और उसकी आंखो से निकलते हुए आंसू मेनका का दामन भिगोने लगी तो मेनका ने अपने आंचल से उसके आंसू साफ किए और प्यार से उसके आंसू साफ करती हुई बोली:"

" बहादुर योद्धाओं की आंखो में आंसू शोभा नही देते युवराज!

विक्रम मेनका का अपनत्व देखकर किसी छोटे बच्चे की तरह बिलख पड़ा और बोला:"

" आपकी उदासी मुझे पागल कर रही है! मन करता है कि सारी दुनिया की खुशियां लाकर आपके दामन में डाल दू! आप बताए ना मैं क्या करू कि आपकी हंसी फिर से वापिस ला सकू?

मेनका थोड़ी देर चुप रही और रोते हुए विक्रम को तसल्ली देती रही और फिर बोली:"

" मुझे अजय के हत्यारे मेरे कदमों में चाहिए युवराज! उससे पहले न मेरी जिस्म को शांति मिलगी और न ही मेरी आत्मा को सुकून!

विक्रम मेनका के चरणों में बैठ गया और उसके पैरो को हाथ लगाते हुए बोला:" आपके इन्ही चरणों की सौगंध मैं जब तक अजय के हत्यारों को आपके कदमों में नही डाल दूंगा राज गद्दी पर नही बैठूंगा!

मेनका ने उसे ऊपर उठाया और उसके आंसुओं से भीग गए चेहरे को साफ करती हुई बोली:"

" आज के बाद मुझे आपको आंखो में आंसू नहीं बल्कि ज्वाला दिखनी चाहिए! ऐसी ज्वाला जिसमे सब शत्रु जलकर भस्म हो जाए!

मेनका ने विक्रम का पूरा चेहरा साफ कर दिया तो विक्रम की आंखे अब लाल सुर्ख होकर दहक रही थीं और बोला:"

" ठीक हैं लेकिन आपको भी एक वादा करना होगा कि आज के बाद आप अपना ख्याल रखेगी! रोएंगी बिलकुल नही क्योंकि आपकी आंखों के आंसू मुझे कमजोर करते हैं! पता नही आपसे मेरा क्या रिश्ता हैं लेकिन आपका दुख मैं नही देख सकता!

मेनका भी उसकी बाते सुनकर थोड़ा भावुक हो गईं और विक्रम से उसे अपनापन महसूस हो रहा था इसलिए न चाहते हुए भी उसकी आंखो से आंसू छलक पड़ा तो विक्रम ने मेनका के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए उसके आंसू को साफ किया तो मेनका उसका प्यार अपनत्व देखकर पिघल गई और पहली बार न चाहते हुए भी उसके गले लग गई! विक्रम ने भी उसे अपने गले से लगा लिया और दोनो ऐसे ही चिपके हुए खड़े रहे! बिलकुल शुद्ध और निश्चल प्रेम!

विक्रम प्यार से उसकी पीठ थपथपाते हुए बोला:"

" आपने खाना खाया या नहीं!!

मेनका कुछ नही बोली तो विक्रम समझ गया कि आज भी उसने खाना नही खाया है तो विक्रम उससे अलग होते हुए बोला:"

" मुझे भी बहुत जोर की भूख लगी है! आज आपके हाथो से खाना खाकर ही जाऊंगा!

मेनका ये सुनकर दौड़ी दौड़ी रसोई में गई और आनन फानन में ही स्वादिष्ट भोजन तैयार किया और दोनो ने एक साथ खाना खाया और उसके बाद विक्रम जाने लगा तो पता नहीं क्यों लेकिन मेनका का दिल भर आया और बोली:"

" युवराज आप आते हैं तो अच्छा लगता है! पता नहीं क्या रिश्ता है आपसे कि आपको देखकर दुख दर्द सब दूर हो जाते है!

विक्रम:" मुझे भी आपसे बिलकुल अपनापन ही लगता हैं! आप अपना ध्यान रखिए और हान कल मैं आपको लेने के लिए आऊंगा! कल पूजा है तो कल विधिपूर्वक सारे राज्य की सभी जिम्मेदारी मुझे दे दी जायेगी! आप रहेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा!

मेनका:" मैं जरूर आऊंगी युवराज!

विक्रम:" अच्छा मैं अब चलता हु! आप अपना ध्यान रखिए और किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे अपना बेटा समझकर बोल दीजिए आप!

बेटा शब्द सुनकर मेनका के अंदर ममता का सागर उमड़ और एक बार फिर से भावुक होकर विक्रम के गले लग गई और बोली:"

" बिलकुल मेरे लिए तो आप बिल्कुल मेरे बेटे जैसे ही हो युवराज! ईश्वर आपको हर बुरी नजर से बचाए!

उसके बाद विक्रम मेनका के घर से निकल कर राजमहल में आ गया और उसके दिल का बोझ थोड़ा हल्का हो गया था! अजय के मरने के बाद वो अभी तक अपने आपको दोषी मान रहा था और उसे खुद का तलवार उठा लेना इस बात का सुबूत था कि जरूर उसका मेनका के परिवार से कुछ गहरा रिश्ता तो हैं!

रात के करीब 12 बज चुके थे और मेनका बिस्तर पर पड़ी हुई सोने का प्रयास कर रही थी लेकिन नींद उसकी आंखो से कोसो दूर थी! उसके दिल का दर्द पीड़ा बनकर चेहरे से उमड़ रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो मेनका ने भारी कदमों से उठकर दरवाजा खोला तो सामने दाई माता को देखकर उसकी आंखे हैरानी से फैल गई और बोली:" दाई माता आप इतनी रात गए कैसे? आइए अंदर आइए आप!

दाई माता एक करीब 75 साल की कमजोर सी दिखने वाली वृद्ध महिला थी जिसकी कमर अब बुढापे के कारण बीच में से मूड गई थीं और वो धीरे धीरे चलती हुई अंदर आई और बिस्तर पर बैठ गई तो मेनका उसके पास ही जमीन में बैठ गई!

मेनका:" दाई माता आपने इस उम्र में आने का कष्ट क्यों किया मुझे ही बुला लिया होता!

दाई माता धीरे से कमजोर शब्दो में बोली:" मेनका बेटी अगर आज भी नही आ पाती तो शायद कभी सच बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती मैं!

मेनका का दिल तेजी से धड़क उठा और मेनका बेचैन होते हुए बोली:" सच कैसा सच दाई माता? मैं कुछ समझ नहीं पाई!

दाई माता:" एक ऐसा पाप जो मैंने आज से 22 साल पहले किया था ईनाम के लालच में आज उसके प्रायश्चित करने का समय आ गया है!

मेनका अब पूरी से बेचैन होते हुए बोली:" साफ साफ बताए ना दाई माता? मुझे सब्र नहीं हो पा रहा ?

दाई माता:" सच ये है कि युवराज विक्रम आपका बेटा है मेनका!

दाई माता की बात सुनकर मेनका को लगा कि उसका दिल उछलकर उसकी छाती से बाहर निकल आयेगा और उसके होंठ खुशी से कंपकपा उठे

" क क क्या दाई माता!!

दाई माता ने उसके सिर पर हाथ रखा और बोली:" हान बेटी विक्रम आपका ही बेटा हैं! सबसे बड़ा बेटा! दरअसल आपको और महारानी को एक ही दिन प्रसव पीड़ा हुई थी तो महारानी को मरे हुए बच्चे पैदा होते थे! लेकिन महराज ने घोषणा करी थी कि अगर मैने उनके बच्चे को जीवित पैदा करा दिया तो वो मुझे सोने हीरे जवाहरात देंगे और अगर मरा हुआ बच्चा हुआ तो मुझे मार डालेंगे क्योंकि महाराज को लगता था कि दाई की वजह से इनके बच्चे मरते हैं इसलिए वो कई दाई को मरवा चुके थे! मेरे हर कोशिश करने के बाद भी उनको मरा हुआ ही बच्चा पैदा हुआ! आप दो बेटे पैदा हुए आप उस समय दर्द की अधिकता से पूरी तरह से बेहोश थी! बस इसी का फायदा उठाकर मैने एक बच्चे को महारानी के बच्चे से बदल दिया और बाद में सबको बताया कि आपका एक बेटा मर गया है!

मेनका की आंखो से आंसू बह चले और वो दाई माता एक दामन झिंझोड़ते हुए बोली:"

" क्यों किया आपने मेरे साथ ऐसा! चंद गहनों के लालच के चलते आपने मेरी ममता का गला घोट दिया! बोलिए दाई माता

दाई माता थोड़ी देर चुप रही और फिर मेनका के सामने हाथ जोड़ कर बोली:" मुझे क्षमा कर दो मेनका, मैं सचमुच लालच में अंधी हो गई थी और फिर अपनी जान बचाने का मेरे पास कोई उपाय भी नही था!

मेनका थोड़ा शांत हुई और बोली:" आज आखिर इतने दिनों के बाद आपको ये राज बताने की क्या जरुआत आन पड़ी?

दाई माता:" कल युवराज विक्रम को पूजा के बाद राज्य की सभी जिम्मेदारी दे दी जायेगी और ये पूजा कराने की जिम्मेदारी मुझे मिली हैं जबकि असली मां के जिंदा रहते ऐसा करना अपशकुन होगा! एक गलती मैं पहले ही कर चुकी हूं तो अब दूसरी गलती करने की मेरे अंदर हिम्मत नहीं बची हैं!

मेनका:" लेकिन आप सबके सामने ये बात रखेंगी तो जनता आपको बुरा भला कहेगी और आपको फांसी भी हो सकती हैं! बेहतर होगा कि ये राज आप राज ही रहने दो !

दाई माता:" मुझे मेरे अंजाम की अब कोई परवाह नही हैं! मरना तो वैसे भी हैं ही लेकिन प्रायश्चित करके मरूंगी तो आत्मा को थोड़ी शांति तो रहेगी! अच्छा मैं चलती हु! बेटी मैं क्षमा के लायक तो नही हु लेकिन हो सके तो मुझे क्षमा कर देना!

इतना कहकर वो मेनका के पैरो में गिर पड़ी तो मेनका ने उसे ऊपर उठाया और बोली:"

" बड़े छोटे से क्षमा मांगते हुए अच्छे नही लगते! भले ही देर से ही सही लेकिन आपने मुझे आज फिर से जीने की एक नई वजह दे दी है!

दाई माता वहां से चली तो मेनका की आंखे एक बार फिर खुशी से उछल उठी और ये अब एहसास हुआ कि आखिर क्यों विक्रम ने उसकी खानदानी तलवार उठा ली थी क्योंकि वो उसका ही अपना खून हैं और इसी वजह से उसे विक्रम से इतना ज्यादा अपनापन महसूस हो रहा था!

थोड़ी देर तक मेनका खुशी से बिस्तर पर करवट बदलती रही और आखिर में उसे नींद आ गई! आज कई दिनों के बाद वो सुकून की नींद मे सोई थी!
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
 

Napster

Well-Known Member
5,152
14,069
188
अगले दिन सुबह एक तरफ विक्रम को राज्य का सर्वेसर्वा बनाने की तैयारी जोर शोर से चल रही थी वहीं दूसरी तरफ मेनका विक्रम से मिलने के लिए महल पहुंच गई! दरबान ने विक्रम के सूचना दी तो मेनका अंदर चली गई और मेनका को देखते ही विक्रम खुशी से बोला:"

" आइए अच्छा किया आपने जो आज सुबह सुबह ही आप राजमहल चली आई! अब आप पूरे कार्यक्रम तक यही रहना!

मेनका बड़े प्यार से उसका चेहरा देख रही थी मानो आज उस जी भरकर देखना चाहती हो! मेनका के मुंह से शब्द नही निकल पा रहे थे और विक्रम हैरान था कि आखिर मेनका को हो गया हैं और बोला:"

" आपकी तबियत तो ठीक है? ऐसे मुझे क्यों देख रही हो आप?

मेनका के होंठ कुछ बोलते हुए भी कांप रहे थे और धीरे से बोली:"

" विक्रम मैं ठीक हु!

मेनका ने बड़ी मुश्किल से कहा और विक्रम ने उसका हाथ पकड़कर प्यार से बेड पर बिठाया और बोला:" आप शायद कुछ कहना चाहती है लेकिन बोल नही पा रही है! आप बिलकुल निश्चित होकर बोलिए!

मेनका की आंखो में आंसू आ गए और भरे गले के साथ विक्रम का हाथ पकड़ कर बोली:"

" आ अ आप जानना चाहते थे कि हमारी खानदानी तलवार आपने कैसे उठा ली थी !

विक्रम की आंखो में चमक आ गई और बोला:" बिलकुल जानना चाहता हूं क्योंकि मैं खुद उस दिन के बाद से चैन से नही सो पा रहा हु एक पल के लिए भी!

मेनका के बोलने से पहले ही उसकी आंखे भर आई और आंसू छलक पड़े और रुंधे हुए गले से बड़ी मुश्किल से कह पाई

" आप आप मेरे पुत्र हो ! मेरा अपना खून हो!

मेनका ने बड़ी मुश्किल से अपनी बात कही और विक्रम से लिपटकर रोने लगी और उसका मुंह चूमने लगी! विक्रम के दिमाग में धमाका सा हुआ और रोती हुई मेनका को संभालते हुए उसके आंसू साफ करते हुए बोला:"

" क्या क्या आप मेरी मां माता हैं ? हे भगवान!! आपको कैसे पता चला ?

मेनका जोर से सुबक पड़ी और बोली:" हान पुत्र! कल रात दाई माता आई थी और उन्होंने मुझे सारी बाते बताई!

उसके बाद मेनका ने सब कुछ विक्रम को बताया तो विक्रम की भी आंखे छलक उठी और वो भी कसकर मेनका से लिपट गया! दोनो मां बेटे एक दूसरे से लिपटकर रोते रहे और एक दूसरे को संभालते रहे! आखिरकार विक्रम ने जैसे तैसे खुद को संभाला और अपनी माता मेनका के आंसुओं को साफ करते हुए बोला:"

" मुझे आप मिल गई तो सब कुछ मिल गया! थोड़ी देर बाद राज्य सभा लगेगी तो मैं सबके बीच में सारी सच्चाई बता दूंगा!

मेनका को भला क्या आपत्ति होती तो वो बोली:"

" मुझे आप मिल गए पुत्र तो मुझे अब इससे ज्यादा कुछ नही चाहिए!

थोड़ी देर बाद जैसे ही राज्य सभा लगा और सभी मंत्री दल की बैठक शुरू हुई तो विक्रम के कुछ बोलने से पहले ही दाई माता आ गई और उन्होंने सभा को सब कुछ बताया तो हर कोई हैरान हो गया और विक्रम ने दाई माता को बात को बल देने के लिए सबके बीच में मेनका की खानदानी तलवार उठाकर दाई माता की बात को सही साबित किया और बोला:"

" चूंकि सबके सामने साबित हो ही गया है कि मैं राज पुत्र नही बल्कि मेनका पुत्र हु तो ऐसे हालत में मेरे राज्याभिषेक का कोई औचित्य ही नही रहा! मैं अब आप सबकी तरह उदयगढ़ का एक आम सेवक हु और मेरे लिए ये बेहद फख्र की बात हैं कि मैं राज्य के सबसे ईमानदार और ऐसे बलिदानी परिवार से हु जिसने उदयगढ़ की तरह उठने वाले हर तीर को अपने सीने पर खाया हैं!

विक्रम इतना बोलकर राजगद्दी से उतरा और नीचे आकर सभा में बैठ गया तो सारे मंत्री गण अपनी सीटों से खड़े हो गए क्योंकि उन्हे समझ नही आ रहा था कि आखिर ये सब क्या हो रहा है!

आखिर में हिम्मत करके मानसिंह बोला:"

" बेशक आप राज परिवार से नही हो लेकिन राज्य के लिए राजमाता ने आपको ही चुना था और उस हिसाब से आपको राज माता की आज्ञा का पालन करते हुए गद्दी को ग्रहण करना चाहिए!

विक्रम:" जब राजमाता ने ये निर्णय लिया था तो उस समय उन्हें सच्चाई का ज्ञान नहीं था लेकिन चूंकि अब सच्चाई सामने आ गई है तो उस निर्णय का कोई मतलब ही नही रह जाता !

मंगल सिंह:" लेकिन युवराज राजमाता का अंतिम निर्णय यही था और हमे इसका सम्मान करना चाहिए!

विक्रम:" राजमाता मेरे लिए हमेशा से पूजनीय रही हैं लेकिन किसी और के अधिकार को सब सच्चाई जानते हुए अपनाने के लिए मेरा स्वाभिमान मुझे रोक रहा है!

भीमा सिंह:" मेरे ख्याल से हमें सब को आपस मे मिलकर इसका समाधान निकालना चाहिए!

विक्रम:" मैं आप की बात से सहमत हु! आप जैसे आदेश करेंगे मेरे किए सर्वोपरी होगा!

भीमा सिंह:" ठीक हैं फिर आप अपने कक्ष में जाकर आराम कीजिए और मंत्री दल की आज की बैठक में फैसला लिया जाएगा कि आगे राज्य की बागडौर किसके हाथ में देनी चाहिए!

विक्रम बिना कुछ कहे अपनी सीट से उठा और चला गया और उसके साथ ही मेनका भी चली गई! विक्रम राज कक्ष में न जाकर सीधे अपने घर मेनका के साथ आ गया!

घर आकर विक्रम और मेनका आपस मे बात करने लगे और मेनका बोली:"

" आपने सही किया पुत्र जो महाराज का पद ठुकरा दिया! हमारे पूर्वजों ने तो राज्य की सेवा करने के लिए वचन दिया था न कि राज करने के लिए !

विक्रम:" सत्य वचन माता! मुझे किसी राज पाठ की अभिलाषा नही है! सच कहूं तो पहली बार आपके गले से लगकर एहसास हुआ कि माता का प्रेम क्या हैं ! जिंदगी में पहली बार ऐसा अद्भुत एहसास हुआ हैं!

मेनका उसकी बात सुनकर प्रेम भाव से भर गई और फिर से अपनी बांहे फैलाई और बोली:"

" सच में विक्रम तो फिर से आओ और अपनी माता के गले लग जाओ मेरे पुत्र!

विक्रम एक बार फिर से मेनका की बांहों में समा गया और मेनका ने भी उसे अपने आगोश में ले लिया और भावुक होते हुए बोली:"

" बस पुत्र अब मुझे छोड़कर मत जाना! आपके सिवा अब मेरा कोई और नहीं हैं इस दुनिया में! मैं अपनी सारी ममता आप पर लूटा दूंगी!

विक्रम भी उससे कसकर लिपट गया और बोला:" कभी नहीं कभी नही माता! आपका भी तो मेरे सिवा कोई नही हैं! मैं हमेशा आपकी परछाई बनकर आपके साथ रहूंगा!

मेनका ने खुशी खुशी विक्रम का मुंह चूम लिया और बोली:"

" आप बैठो मैं आपके लिए कुछ खाने को लाती हूं!

इतना कहकर मेनका अंदर चली गई और वहीं दूसरी तरफ राज दरबार लगा हुआ था और ऐसा पहली बार हो रहा था कि राज गद्दी पर कोई नही बैठा हुआ था!


भीमा सिंह:" राज गद्दी का खाली रहना अपशकुन माना जाता हैं! मेरे विचार से हमे जल्दी ही राज गद्दी के लिए राजा देखना चाहिए!

मानसिंह:" बिलकुल सही बात लेकिन सवाल यही हैं कि राज गद्दी किसे दी जाए? राजमाता ने तो विक्रम को राजा बनाने का फैसला किया था लेकिन विक्रम तो साफ मना करके चले गए!

सतपाल सिंह:" मेरे विचार से तो विक्रम ही इस गद्दी के लिए उपयुक्त हैं क्यूंकि राज महल में बड़े होने के कारण वो राज पाठ चलाने के सारे तरीके आते हैं और फिर दूसरी बात उन्हे राजा बनाना भी तो राजमाता का ही फैसला था!

भीमा:* लेकिन उस समय पर राजमाता को सच्चाई नही पता थी और दूसरी सबसे बड़ी बात विक्रम खुद राजा बनने से मना कर चुके हैं!

सतपाल:" विक्रम एक ऐसे परिवार परिवार से हैं जिसमे आत्म सम्मान कूट कूट कर भरा हुआ है फिर ऐसी हालत में जब उन्हें पता हैं कि वो राज परिवार से नही हैं तो वो किसी भी दशा में राज गद्दी स्वीकार नही करेंगे!

मानसिंह:" विक्रम नही तो फिर किसे राजा बनाया जाए ? किसी के पास कोई नाम हो तो बताए?

जसवंत सिंह:" मेरे खयाल से राज्य में अभी विक्रम से बड़ा योद्धा की नही हैं और फिर राजमाता भी यही चाहती थी कि विक्रम को ही राजा बनाए तो मुझे विक्रम के नाम पर कोई आपत्ति नही हैं! अगर नही तो विक्रम से बहादुर और शक्तिशाली कौन है उसका नाम बताया जाए ?

थोड़ी देर शांति रही और सब एक दूसरे का मुंह देखते रहे! किसी को कोई नाम समझ नही आ रहा था तो अंततः भीमा सिंह बोला:"

" मेरे ख्याल से हमें विक्रम को ही राजगद्दी देनी चाहिए! जब हम सब मिलकर फैसला लेंगे तो विक्रम को वो मानना ही पड़ेगा क्योंकि विक्रम कभी भी राज्य के अहित के बारे में नही सोच सकते!

भीमा की बात का सबने समर्थन किया और अंत में फैसला लिया गया कि विक्रम को ही राजा बनाया जायेगा!

भीमा:" जब हम सबने तय कर लिया है तो फिर आज ही विक्रम को राजा बनाना चाहिए क्योंकि आज का शुभ मुहूर्त राजमाता ने निकलवाया था!

भीमा की इस बात से सभी सहमत थे और थोड़ी देर बाद ही भीमा अपने साथ सतपाल और मानसिंह के लेकर विक्रम के घर पहुंचे और बोले:"

" विक्रम बेटा हमने सबकी सहमति से ये फैसला किया हैं कि आपको ही राजा बनाया जाए क्योंकि आपमें एक राजा के सारे गुण हैं!

विक्रम :" लेकिन मैं तो आप सबको अपना फैसला बता चुका हु कि मैं ऐसे खानदान से हु जो राज्य की सेवा के लिए वचनबद्ध हैं ना कि राज करने के लिए!

भीमा:" हम आपकी भावनाओं की कद्र करते हैं युवराज! लेकिन आपको समझना चाहिए कि आपके पिता श्री ने ही आपको महाराज की गोद में दिया था ताकि आप बड़े होकर उदयगढ़ को सही दिशा में ले सके! अब आप अपने पिता और स्वर्गीय महराज के फैसले के खिलाफ तो नही जा सकते और फिर राजमाता का अंतिम फैसला ही यही था!

विक्रम:* ठीक है लेकिन फिर भी मैं..........

विक्रम की बात खत्म होने से पहले ही सतपाल बोला:" राजा बनकर आप अपने पिता और महाराज के वचन को पूरा करेंगे तो निश्चित रूप से उनकी आत्मा आपको आशीर्वाद देंगी!

विक्रम ने हैरानी भरी नजरो से मेनका की तरफ देखा तो मेनका ने हालात को समझते हुए स्वीकृति में आपनी गर्दन को झुका दिया और विक्रम ने भी अपनी माता की आज्ञा का पालन किया! शाम होते होते विक्रम का राज तिलक किया गया और पूरे राज्य की बागडोर उसके हाथ में दे दी गई!
बहुत ही मस्त लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 

Unique star

Active Member
880
10,684
139
सीमा अजय की हत्या के बाद बेहद टूट गई थी और किसी भी तरह से वो उसकी मौत का बदला लेना चाहती थीं! राधिका उसकी छोटी बहन ने उसकी इस हालत पर जरा भी ध्यान नहीं दिया तो उसे बेहद बुरा लगा! वहीं राधिका का महंगे वस्त्र और आभूषण पहनना भी उसे अखर रहा था और उसे लग रहा था कि कहीं न कहीं जरूर उसकी बहन कुछ तो अमर्यादित कर्म कर रही है और परिवार की इज्जत के लिए मुझे इस पर ध्यान देना ही होगा! राधिका के हाव भाव और उसका घर में चोरी छिपे घुसना सीमा को अखर रहा था और उसने राधिका को अपने निशाने पर लिया और जैसे ही राधिका घर से बाहर निकल गई तो सीमा ने उसके कमरे में जाने का फैसला किया और सीमा उसके कमरे में घुस गई और देखने लगी कि उसके कमरे का तो नक्शा ही बदल हुआ था! कमरे में परदे के पीछे छुपी हुई काफी महंगी वस्तुएं, वस्त्र और आभूषण देखकर सीमा को हैरानी हुई और उसने राधिका की एक अलमारी को खोला तो उसमें से सुल्तानपुर के शाही परिवार के वस्त्र दिखाई दिए जो राधिका के हाथ कैसे लगे उसे समझ नही आ रहा था!

सीमा ने अलमारी को नीचे से खोला तो उसकी आंखे खुली की खुली रह गई क्योंकि ये तो विक्रम की अंगूठी थी और ये राधिका के पास कैसे आई उसे समझ नही आ रहा था!

जरूर राधिका ने इसे मेरे कमरे से चुरा लिया होगा ऐसा सोचकर सीमा ने खुद को तसल्ली दी और अपने कमरे में आ गई लेकिन अब राधिका उसके निशाने पर आ गई थी!

सीमा थोड़ी देर बाद सलमा से मिलने गई और बोली

" राधिका के पास शाही वस्त्र कहां से आए ये मेरे समझ में नही आ रहा है!

सलमा:" बीच में कुछ दिन वो मेरे आई थी काम के लिए तो गलती से ले गई होगी!

सीमा:" नही शहजादी ! सिर्फ आपके ही वस्त्र होते तो और बात थी! लेकिन उसके कमरे में तो और भी कई रंगीन और महंगे वस्त्र होने के साथ साथ कीमती आभूषण भी थे!

सलमा:" इसका मतलब साफ है कि या तो सीमा चोरी कर रही है और फिर किसी से उसके संबंध है जो उसे ये सब चीज दे रहा है!

सीमा:" बिलकुल सही आपने लेकिन जहां तक मैं उसे जानती हु वो चोरी नही कर सकती! फिर सवाल ये हैं कि आखिर कौन उसे इतने कीमती गहने और वस्त्र दे रहा है और क्यों ? सबसे बड़ी बात उसके पास युवराज विक्रम की अंगूठी कैसे आई ये समझ से बाहर हैं!

सलमा:" एक ही रास्ता है कि थोड़े दिन उस नजर रखो सब कुछ अपने आप साफ हो जाएगा!

सीमा:" हान मैंने भी यही सोचा हैं ताकि सच्चाई का पता किया जा सके कि आखिर कौन हैं उसके पीछे !

सलमा:" बिलकुल हमे जानना चाहिए क्योंकि आने वाले दिनों में आर पार की लड़ाई होने जा रही है तो हमे एक बात का ध्यान रखना ही पड़ेगा!

उसके बाद सीमा चली गई और सीमा के जाने के बाद रजिया और सलमा दोनो बैठी हुई थी और रजिया बोली:"


" सलमा हमे सबसे पहले राज वफादारों को एक साथ इकट्ठा करना होगा ताकि युद्ध में वो हमे अंदर से सहायता दे सके!

सलमा:" वही मैं भी सोच रही अम्मी क्योंकि वफादारों और गद्दारों की पहचान करना बेहद जरूरी है युद्ध से पहले ताकि हमें अपनी शक्ति का एहसास हो सके!

रजिया:" बेटा मेरी बात मानकर तूने जो विक्रम को अपने प्रेम जाल में फंसाया हैं उसका फायदा हमे आने वाले युद्ध में मिलेगा और हम उसके बलबूते अपना राज्य फिर से वापिस कर लेंगे!

सलमा के होंठो पर विजयी मुस्कान आ गई और बोली:"

" मैं कोई भी चाल गलत नही चलती! लेकिन हमारे अब्बू सुलतान में उसको महल के उन गुप्त रास्तों के बारे मे बता दिया है जो हम भी नहीं जानते थे और ऐसा न हो कि आगे चलकर वो इनका फायदा उठा ले!

रजिया:" चिंता मत करो बेटी! एक बार जब्बार खत्म हो फिर तो सारे रास्ते ही बंद कर दिए जाएंगे!

सलमा:" हान ये भी ठीक रहेगा फिर हमे कोई खतरा नहीं होगा! मैं भी शस्त्र अभ्यास शुरू कर देती हु ताकि जरूरत पड़ने पर युद्ध में उतर सकू!

रजिया:" ठीक हैं मैं अहमद शाह को बोलकर सब व्यवस्था करा दूंगी! अच्छा अब मैं चलती हु मुझे कुछ काम होगा!

इतना कहकर रजिया चली गई तो सलमा अपनी योजना बनाने लगी! सलमा जानती थी कि कुछ भी करके सलीम को रास्ते पर लाना ही होगा ताकि वो भी युद्ध में हिस्सा ले सके और इसके लिए उसका एक बार सुलतान से मिलना जरूरी था ताकि उसे जब्बार की सच्चाई पता चल सके तो सलमा सलीम के कक्ष में गई तो देखा कि वो मदिरा का सेवन किए हुआ था और मात्र एक चादर आपने जिस्म पर लपेट कर बिस्तर में उल्टा पड़े हुए बेड में धक्के लगा रहा था मानो चुदाई कर रहा हो तो सलमा उसकी हालत देखकर मन ही मन मुस्कुरा उठी और बोली:"

" कैसे हो मेरे प्यारे भाई जान आप ?

सलीम ने जैसे ही सलमा की आवाज सुनी तो वो डर के मारे एक झटके से पलट गया और चादर उसके जिस्म से हट गई जिससे सलीम नंगा हो गया और सलमा ने उसके लंड को देखने के बाद अपना मुंह फेर लिया और बोली:"

" हाय भाई आपको शर्म नही आती क्या ऐसे ?

सलीम का लंड एक अच्छे आकार का लंड था जो सामान्य लंड के मुकाबले थोड़ा बड़ा जरूर था लेकिन विक्रम के लंड के मुकाबले कुछ भी नही था ऐसा सलमा ने महसूस किया और सलीम सलमा को अपने सामने पाकर हैरान हो गया और चादर ठीक करते हुए बोला:"

" माफ कीजिए हमे उम्मीद थी कि हमारे कक्ष में कोई नही आयेगा बस इसलिए गलती हो गई हमसे! आप चाहे तो पलट सकती हैं क्योंकि हमने अपने कपड़े ठीक कर लिए हैं!

सलमा धीरे से पलट गई और बोली:" अब हमे समझा आ रहा है कि आप इतने कमजोर क्यो होते जा रहे हो क्योंकि बंद कमरे में अकेले इतनी मेहनत जो कर रहे हो भाई जान!

पहले से ही शराब के नशे में चूर सलीम को सलमा की बात बेहद बुरी लगी और बोला:"

" अकेले नही हो क्या आपके साथ मेहनत करू मेरी प्यारी आपी ?

सलमा उसकी बात सुनकर गुस्सा हो गई और बोली:" मर्यादा के दायरे में बात कीजिए हमसे! हम आपकी सही बड़ी बहन हैं!

सलीम भी गुस्सा हो गया और बोला:" ये तो आपको मेरे मजाक बनाने से पहले सोचना चाहिए था अब खुद की बारी आई तो मर्यादा बीच में आ गई?

सलमा:" तुमसे बहस करने के लिए नही हु! मेरा बोलने का मतलब था कि अम्मी को बोलकर आपकी शादी कारा देनी चाहिए ताकि आप अपनी बीवी के साथ मिलकर मेहनत कर सको!

सलीम ने सामना को गुस्से से देखा और बोला:" अपने काम से मतलब रखो , जिस काम के लिए आई हो वो बोलो आप !

सलमा:" हम आपको कुछ दिखाना चाहते हैं लेकिन उसके लिए आपको हमारे साथ चलना होगा कहीं बाहर!

सलीम:" आज तो मेरे पास समय नहीं है! कल हम जरूर चलेंगे!

सलमा:" सोच लो ऐसा कुछ है कि होश उड़ जायेंगे!

सलीम ने हैरानी से उसकी तरफ देखा और बोला:" क्या खबूसूरत लड़की दिखाने वाली हो क्या शादी के लिए ?

सलमा जानती थी कि सलीम लड़की के चक्कर में आसानी से उसके साथ चल देगा तो मुस्कुरा कर बोली:" वो तो देखने के बाद ही आपको पता चलेगा लेकिन अगर खुश ना हुए तो मेरे नाम सलमा नही !

सलीम:" ठीक हैं फिर! बताओ किस समय चलना होगा मैं चलने का प्रबंध कर देता हूं!

सलमा:" उसकी चिन्ता मत करो! हम बिना किसी को बताए चुपचाप जायेंगे! हम सब कुछ तैयारी कर ली हैं!

सलीम:" ठीक हैं फिर! किस समय चलना होगा?


सलमा:" रात के खाने के बाद हम दोनो साथ चलेंगे और आपको एक दूसरा रहस्य भी बताएंगे महल का हम! लेकिन ध्यान रहे कि हम दोनो कहीं जा रहे हैं ये बात किसी को भी पता नहीं चलनी चाहिए अन्यथा परिणाम बेहद जानलेवा साबित हो सकते हैं!

सलीम:" ये एक शहजादे का वादा हैं सलमा! हम इस बात को राज ही रखेंगे! आखिर हम भी तो जाने कि आखिर महल में ऐसा कौन सा रहस्य है जो हमे नही पता है!

उसके बाद सलमा अपने कक्ष में आ गई और विश्राम करने लगी! वहीं दूसरी तरफ राज कार्यों से मुक्त होने के बाद विक्रम बाजार की तरफ निकल गया और अपना भेष बदलकर उसने मेनका के लिए कुछ रंगीन वस्त्र और सच्चे मोतियों से बनी हुई एक नथ खरीदी जो बेहद कीमती और आकर्षक थी!

रात को खाने पर सलमा विक्रम और मेनका ने साथ में खाना खाया और दोनो ही बेहद खुश लग रहे थे!

मेनका:" महाराज ये बिंदिया भोजन बाद स्वादिष्ट तैयार करती हैं! मुझे लगता हैं कि हमे इसके वेतन मे बढ़ावा करना चाहिए!

विक्रम:" जैसे आपको ठीक लगे राजमाता! आखिर महल के अंदर भोजन और वस्त्र के साथ आभूषण ये सब की देखभाल आपका कर्तव्य हैं!

बिंदिया:" राजमाता आपके आने से महल में खुशियां आ गई है, महाराज फिर से मुस्कुरा उठे हैं और जीना सीख गए हैं बस यही मेरे लिए बहुत हैं!

मेनका:" बाते बनाना तो कोई तुमसे सीखे! आज से आपका वेतन दोगुना हो गया है और सिर्फ आपका ही नही बल्कि रसोई में काम करने वाले सभी लोगो का भी !

बिंदिया ने राजमाता के सामने हाथ जोड़ दिए और बोली:"

" राजमाता की जय हो!

सभी रसोई के कर्मचारी जोर से बोले:" जय हो जय हो!

मेनका मुस्कुराते हुए उन्हे शांत होने का इशारा कर रही थी तो धीरे धीरे वो लोग शांत हुए और खाना खाने के बाद विक्रम भी मेनका के साथ ही चल पड़ा तो मेनका बोली:

" आजकल महल में कुछ काम नही हैं जो क्या मेरे आगे पीछे घूमते रहते हो पुत्र!

विक्रम:" काम तो बहुत हैं माता लेकिन आपका साथ मुझे बेहद अच्छा लगता हैं!

मेनका हल्की सी हंसती हुई बोली:" मेरे चक्कर में अपनी प्रजा और आपके कर्तव्य को मत भूलना महराज,!

विक्रम:" आपकी खुशी का ध्यान रखना और आपकी हर इच्छा पूरी करना भी तो महाराज होने के नाते हमारा कर्तव्य हैं! वैसे हम आपके लिए कुछ लेकर आए थे आज दिन में !

मेनका जानती थी कि विक्रम उसके लिए क्या लेकर आया हैं और बोली:" हम जानती है पुत्र कि आप हमारा लिए क्या लेकर आए है लेकिन हमे रंगीन वस्त्रों में अब कोई रुचि नहीं हैं!

विक्रम जानता था कि मेनका उससे मजाक कर रही है तो सोचते हुए बोला:"

" ठीक हैं फिर मैं एक काम करता हु किसी को दान में दे दूंगा

मेनका का दिल उत्तर गया ये बात सुनकर और जल्दी से बोली:" जब आप ले ही आए हैं तो अब रख दीजिए! लेकिन हम पहनने वाले नही हैं!

चलते चलते दोनो मेनका के कक्ष के सामने आ गए थे और विक्रम बोला:" हमने पहले ही आपके शयन कक्ष मे रख दिए हैं माता क्योंकि हम जानते हैं कि आप चाहकर भी खुद को रोक नहीं पायेगी!

मेनका ने उसकी बात सुनकर उसे आंखे दिखाई और बोली:"

" इतने ज्यादा भी कमजोर नही है हम कि अपने ऊपर काबू न रख सके पुत्र!

बाहर अंधेरा फैल गया था और मशालो की रोशनी में महल जगमगा रहा था! विक्रम ने अपनी जेब में हाथ डाला और सच्चे मोतियों वाली नथ निकाली और मेनका को दिखाते हुए बोला:

" ये देखिए राजमाता ये कैसी लग रही है! हमने किसी के लिए कुछ खरीदा है आज!

मेनका ने नथ को देखा और देखते ही मचल कर बोली:"

" सच में पुत्र ये तो बेहद खूबसूरत और कीमती लग रही है! एक बार हमे छूकर देखने दीजिए ना!

विक्रम ने अपनी हथेली में नथ को बंद कर लिया और बोले:"

" आपने देख तो लिया न राजमाता! वैसे भी ये किसी और के लिए हैं!

मेनका उसकी तरफ बढ़ी और उसका हाथ खोलने की कोशिश करते हुए बोली:"

" हमे और मत सताइए पुत्र! हमे छूकर देखने दीजिए ना!

विक्रम जानता था कि जिस जगह को खड़े हैं वहां किसी की भी नजर पड़ सकती है इसलिए थोड़ा पीछे हटकर दीवार की तरफ हो गया और मेनका को छेड़ते हुए कहा:"

" जिद मत कीजिए माता! देखने के बाद आप फिर पहनने के लिए जिद करोगी!

मेनका समझ गई कि विक्रम उसे जान बूझकर परेशान कर रहा है और उसकी मुट्ठी खोलने की कोशिश करते हुए बोली:"

" हान हम पहन भी सकते हैं क्योंकि राजमाता होने के नाते हमें अधिकार हैं पुत्र!

विक्रम ने मेनका को कंधे से पकड़ लिया और बोला:"

" लेकिन ये हम किसी और के लिए लाए हैं राजमाता! इस पर आपका कोई अधिकार नहीं है!

मेनका जानती थी कि विक्रम उसे जान बूझकर परेशान कर रहा है तो उसने उसकी मुट्ठी छोड़कर अपने हाथो हाथ विक्रम के गले में डाल दिए और उसके होंठो को चूसने लगीं! विक्रम को कक्ष से बाहर मेनका से ऐसी उम्मीद नहीं थी और विक्रम ने ध्यान से उधर उधर देखा और वो भी मेनका के होंठो को चूसने लगा! जैसे ही विक्रम के उसके होंठो को चूसना शुरु किया तो मेनका ने मस्त होते हुए अपने मुंह को खोल दिया और विक्रम की जीभ उसके मुंह में घुस गई और जैसे ही मेनका की लसलसी रसीली जीभ विक्रम की जीभ से टकराई तो विक्रम ने दोनो हाथों से मेनका को कस लिया और यहीं विक्रम से चूक हो गई क्यूंकि दोनो हाथों के खुलते ही नथ नीचे गिर पड़ी और मेनका एक झटके के साथ उसकी बांहों से निकली और नथ को उठाकर अपने कक्ष में घुस गई तो विक्रम को जैसे होश आया और बोला:"

" ये तो धोखा हुआ माता! वो नथ हमे वापिस दीजिए!

मेनका अपनी जीत पर खुश होते हुए बोली:" हम जानते थे कि आप हमारे लिए लाए हैं! आपने प्यार से नही दिया तो हमने अपने तरीके से हासिल किया!

विक्रम उसके कक्ष की तरफ बढ़ा तो मेनका ने दरवाजा बंद कर दिया तो विक्रम बोला:"

" हमे पहन कर दिखाए न राजमाता! हम देखना चाहते हैं कि मेरी माता इसमें कितनी प्यारी लगेगी?

मेनका:" सपने मत देखो पुत्र! आपने प्यार से दिया होता तो जरूर दिखाते! अब तो हमारी मर्जी है हम दिखाए या नहीं!

विक्रम:" हम जानते है कि आप जरूरी हमे दिखायेगी! मेरी एक विनती है राजमाता! रात में रंगीन वस्त्र धारण करना और अपना दरवाजा बंद मत करना! हम आपके आपकी नथ देखने के लिए आधी आज रात आपके शयन कक्ष में माता!

मेनका उसकी बात सुनकर मन ही मन मुस्कुरा उठी और तन बदन में सिरहन सी दौड़ गई और बोली:"

" हम कोई रंगीन वस्त्र धारण नही करेंगे! आप आराम करना क्योंकि हमारा कक्ष आज बंद ही रहेगा पुत्र! जाओ अब अपने काम देखिए आप!

विक्रम राज्य में घूमने के लिए निकल गया और वहीं दूसरी तरफ सलमा सलीम को अपने साथ लेकर जैसी ही गुप्त रास्ते में घुसी तो सलीम की आंखे फटी की फटी रह गई और बोला:"

" आपी महल में ऐसे रहस्य भी है हमे आज पता चला है!

सलमा:" आगे इससे भी बड़े रहस्य आपको देखने के लिए मिलने वाले हैं आज!

सलमा और सलीम दोनो गुफा में चलते रहे और अंत में दोनो उदयगढ़ की सीमा में बाहर निकल आए तो सलीम बोला:"

" ये तो सुल्तानपुर की सीमा हैं शहजादी! क्या आप नही जानते कि वो शत्रु राज्य हैं! हमारे अब्बू के हत्यारे हैं वो!

सलमा:" सच्चाई वो नही होती जो हमे दिखाई जाती है बल्कि हमे कुछ सच देखना पड़ता हैं! और आज तुम अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा सच देखोगे!

सलीम:" जिंदा बच गया तो जरूर देखूंगा!

सलमा और सलीम दोनो चलते हुए राज्य के अंदर घुस गए क्योंकि दोनों ने अलग रूप धारण किया हुआ था तो कोई दिक्कत नहीं हुई और सलमा वैद्य जी यहां पहुंच गई और बोली:" सलीम तुम यहीं रुको मैं अभी आती हु!

सलीम वही रुक गया और सलमा अंदर चली गई! वैद्य जी ने उसे देखा और सलमा बोली:"

" हम अपने पिता से मिलना चाहते हैं!

वैद्य :" आपको उससे पहले महराज विक्रम से आज्ञा लेनी होगी!

सलमा:" आप कैसी बाते कर रहे हैं? हम पहले भी आ चुके हैं और आप सब जानते हैं!

वैद्य;" क्षमा कीजिए शहजादी लेकिन बिना राज आज्ञा के आप नही मिल सकती है!

सलमा:" तो ठीक हैं फिर! हमारा सन्देश अपने महाराज तक पहुंचा दीजिए!

वैद्य:" ठीक हैं! तब तक आप विश्राम कीजिए मैं आपके लिए जल पान की व्यवस्था करता हु!

थोड़ी ही देर बाद विक्रम वैद्य जी के यहां आ गए तो सलमा को देखकर बेहद खुश हुए सलीम की तरफ देखते हुए बोले:"

" आप शहजादे सलीम हो ना!

सलीम ने विक्रम की तरफ देखा और बोला:" हान लेकिन आप कौन हैं अपना परिचय दीजिए!

विक्रम:" हम उदयगढ़ के महराज विक्रम सिंह हैं!

सलीम ने गुस्से से उसकी तरफ देखा और बोला:"

" तो आप हैं महराज विक्रम सिंह! उस वंश के आखिरी चिराग जिसने हमारे अब्बू को हमसे छीन लिया था!

सलमा:" बिना सच्चाई जाने किसी पर इल्जाम मत लगाओ सलीम! आओ हम आपको सच्चाई दिखाते हैं!

इतना कहकर सलमा उसका हाथ पकड़कर उसे अंदर ले गई और सुलतान को जिंदा देखते ही सलीम खुशी के मारे चींख उठा और बोला:"

" अब्बू आप जिंदा हैं! मेरे खुदा तेरा करिश्मा! हम ये क्या जलवा देख रहे हैं!

इतना कहकर सलीम दौड़कर अपने बाप के गले लग गया और सुलतान बोला:"

" बेटा हम जिंदा है और इसके लिए आपको महराज विक्रम का शुक्रगुजार होना चाहिए जो मौत के मुंह से अपनी जान पर खेलकर हमे बचाकर लाए हैं!

सलीम ने इज्जत और प्यार के साथ विक्रम की तरफ देखा और सलमा बोली:"

" सच्चाई सामने आ ही गई है कि कौन बचाने वाला हैं और कौन मारने वाला! अब्बू सलीम को सब कुछ बताए आप जब तक आती हु!

इतना कहकर सलमा बाहर निकल और विक्रम से बोली:"

" क्षमा कीजिए मुझे प्रियतम मैं आपकी आज्ञा के बिना सलीम को यहां लेकर आई हु ताकि वो भी सच्चाई जानकर हम लोगो का साथ दे सके!

विक्रम:" क्षमा मत मांगिए! आखिर एक पुत्र को भी अपने पिता से मिलने का अधिकार हैं!

सलमा ने वैद्य जी की तरफ देखा और बोली:" महाराज ये वैद्य ही हमे हमारे अब्बू से मिलने से रोक रहे थे! इन्हे आदेश दीजिए कि आगे से उदयगढ़ की होने वाली महारानी की शान में ऐसी गुस्ताखी न करें!

विक्रम ने सलमा की तरफ देखा और उसे खुशी हुई कि सलमा वैद्य जी के सामने भी अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत रखती हैं और बोले:"

" आप निश्चित रहे! आगे से वैद्य जी आपको मना नही करेंगे!

सलमा ने वैद्य जी की तरफ देखा तो उन्होंने स्वीकृति में अपनी गर्दन को हिला दिया और उसके बाद सलमा विक्रम के साथ अंदर चली गई जहां अब तक सुलतान सलीम को सब समझा चुका था और उसे समझ आ गया था कि असली दुश्मन विक्रम नही बल्कि जब्बार हैं जो सारे राज्य पर कब्जा करके बैठा हुआ है!

उसके बाद सलमा सलीम को साथ लेकर वापिस अपने राज्य की तरफ लौट पड़ी और विक्रम भी जाने लगा तो वैद्य जी बोले:"

" महराज आपकी और शहजादी की बातो से हमे समझा आ गया है कि आप दोनो एक दूसरे के प्रेम में हो और शादी करना चाहते हो!

विक्रम:" आपने बिलकुल ठीक समझा वैद्य जी!

वैद्य:" मुझे आपसे ऐसी बाते करनी तो नही चाहिए लेकिन एक वैद्य होने के नाते मेरा धर्म हैं!

इतना कहकर वैद्य जी ने विक्रम को एक शीशी दी और बोले:"

" महाराज ये वो दवाई हैं जो सदियों पुरानी दुर्लभ जड़ी बूटियों से मेरे पूर्वजों ने बनाई थी! इसके सेवन का अधिकार सिर्फ राज परिवार और हमारे परिवार को होता है! ये शरीर में ऐसी अद्भुत शक्तियां भर देती है कि हम इतने वृद्ध होने के बाद भी अपनी जवान पुत्रवधु की चींखे निकलवा देते है! ये शीशी का सेवन करने के बाद आपका जिस्म फौलाद बन जायेगा और मुझे पूरा विश्वास है कि बिस्तर पर उदयगढ़ सुल्तानपुर पर बहुत भारी पड़ेगा!

विक्रम वैद्य जी की बात सुनकर मुस्कुरा दिए और बोले:"

" ये अद्भुत स्वास्थ्यवर्धक शीशी हमे देने के लिए आपका धन्यवाद! लेकिन इसके सेवन की क्या विधि हैं ?

वैद्य जी:" आप एक बार में इसे पूरी पी लीजिए और कुछ घंटों बाद ही इसका असर होगा जो मरते तक आपके शरीर में बना रहेगा महाराज!

विक्रम ने शीशी को खोला और एक ही घूंट में खाली कर दिया और उसके बाद वो अपने महल की तरफ लौट चला!

रात के करीब 12 बजने वाले थे और मेनका विक्रम का इंतजार करती रही कि वो आए और दोनो साथ में शाही बगीचे मे घूमकर आए लेकिन विक्रम का को अता पता नहीं था! मेनका जानती थी कि विक्रम जरूर किसी काम में फंस गए होंगे नही तो कभी के आ गए होते! मेनका अब अपने शयन कक्ष में लेटी हुई थी और उसने लाल रंग की एक बेहद खूबसूरत साड़ी को धारण किया हुआ था और अच्छे से मेकअप करने के बाद वो आभूषणों से सजी हुई बेहद खूबसूरत लग रही थी और उसकी नाक में सच्चे मोतियों की नथ उसकी सुंदरता को और बढ़ा रही थी! मेनका ने जान बूझकर अपने दरवाजे को खुला हुआ छोड़ा था ताकि विक्रम आराम से अंदर आ सके! मेनका बिलकुल किसी दुल्हन की तरह सजी हुई थी और उसके रसीले होंठ आजकल लाल रंग रंग की लिपिस्टिक से बेहद आकर्षक और रसीले लग रहे थे! मेनका बार बार अपने आपको शीशे में निहार रही थी और अपनी सुन्दरता पर मनमुग्ध हुई जा रही थी! मेनका कभी अपनी गहरी गोल गोल बड़ी बड़ी काली आंखो को देखती तो कभी अपने नाजुक कांपते हुए रसीले होंठों को निहारती हुई सोच रही थी कि कैसे मेरे पुत्र के आने से पहले की कांप रहे हैं! मेनका बिस्तर पर पड़ी हुई अंगड़ाइयां ले रही थी! मेनका शीशे में देखते हुए किसी दुल्हन की तरह अपने पल्लू के घूंघट को धीरे धीरे सरकाती तो अपने बिस्तर पर अपनी मदमस्त उंगलियों को फेर रही थी! मेनका ने अपने हाथ को घुमाते हुए अपने चेहरे पर टिका दिया और अपने खूबसूरत गाल उसे बेहद गर्म महसूस हुए मानो वो उसके पुत्र के लिए जले जा रहे थे और मेनका के तन बदन में खुमारी बढ़ती ही जा रही थी!


मेनका ने एक बार घड़ी की तरफ देखा तो पाया कि रात के करीब 12:30 हो गए थे और उसका पुत्र अभी तक नहीं आया था तो मेनका को शक हुआ कि कहीं वो गलती से दरवाजा तो बंद नहीं करके आ गई है तो बेताबी में वो बेड से उठ खड़ी हुई और दरवाजे की तरफ चल पड़ी! मेनका को उसकी चाल में आज अजब की मस्ती महसूस हो रही थी और मेनका ने दरवाजे को देखा तो वो खुला हुआ ही था ! बस हल्का सा बंद दरवाजा छूते ही खुल गया और मेनका ने उधर इधर देखा लेकिन विक्रम कहीं नजर नहीं आया तो उसका दिल उदास हो गया और वो फिर से वापिस अपने शयन कक्ष में आ गई! मेनका को अब यकीन हो गया था कि कल रात का थका हुआ विक्रम गहरी नींद में होने के कारण अब नहीं आएगा और वो सीधे अलमारी में से एक बॉटल निकाल लाई जिसे कल उसने विक्रम के साथ लिया था! मेनका ने तीन चार बड़े घूंट लिए और उसके बाद शीशे में खुद को निहारने लगी! मेनका की साडी का पल्लू सरक गया और उसने उसने ठीक करने की जरूरत नहीं समझी और मेनका शीशे में खड़ी होकर खुद को सिर से लेकर पांव तक निहारने लगी! मेनका की नजर अपनी चुचियों पर गई जिनके बीच की गहरी लकीर साबित कर रही थी मेनका के पास बेहद खूबसूरत गोल गोल मटोल पपीते के लिए की कसी हुई सख्त चूचियां हैं और सुंदर गोरा सपाट पेट गहरी कामुक नाभि के साथ बेहद कामुक लग रहा था! मेनका पलट गई और अपनी गांड़ पर उसकी नजर पड़ी तो उसका दिल जोरो से धड़क उठा और मेनका ने सम्मोहित सा होते हुए अपने दोनो हाथों को अपनी गांड़ पर रखकर हल्का सा दबाव दिया तो उसके मुंह से आह निकल पड़ी लेकिन वो मजा नही आया जो कल विक्रम के छूने के बाद उसे महसूस हुआ था! कांपती हुई मचलती हुई मेनका के पैर जवाब देने लगे तो वो बेड की तरफ चल पड़ी और बेड के गद्दे को देखते ही मदहोश मेनका को शरारत सूझी और पूरी ताकत से वो बिस्तर पर कूद पड़ी और देखते ही देखते मेनका का जिस्म ऊपर नीचे होने लगा मानो वो चुद रही हो,! मेनका की सांसे उखड़ गई थी और उसके हाथ उसकी चूचियों तक आ गए और हल्का हल्का सहलाने लगे थे जिससे मेनका के जिस्म पर कामवासना पूरी तरह से हावी होने लगी थी! मदहोश मेनका ने एक शीशे को हाथ में लिया और एक बार फिर से खुद को निहारने लगी! कभी वो अपने गर्म पिघलते हुए गाल को छू रही थीं तो कभी अपनी मोतियों से सज्जित नथ को देखते हुए मदहोश हुई जा रही थी!


मेनका की चुचियों में तनाव आना शुरू हो गया जिससे उसके सीने में मीठा मीठा दर्द हो रहा था! चुचियों की मासपेशियों में कम्पन गर्मी इस बात का सुबूत थी कि मेनका के सिर अब उत्तेजना चढ़कर बोल रही थी! मेनका ने धीरे से अपनी साड़ी को हटा लिया और सीना आगे से पूरी तरह से खुल गया! ब्लाउस में कसी हुई उसकी चुचियों गजब ढा रही थी और मेनका ने अपने होंठो पर जीभ फेरते हुए ब्लाउस को भी खोल दिया और उसकी चूचियां पूरी तरह से नंगी हो गई तो मेनका के मुंह से आह निकल पड़ी और मेनका बिस्तर पर उल्टी होकर लेट गई और अपनी चुचियों को जोर जोर से बिस्तर में रगड़ने लगी जिससे उसकी चूत में गीलापन बढ़ गया था और मेनका के बिस्तर पर हिलने से उसकी साड़ी उसकी पीठ पर से भी खुल गई और मेनका अब पूरी तरह से बिलकुल मादरजात नंगी बिस्तर पर पड़ी हुई अपनी चुचियों को बिस्तर से रगड़ रही जिससे उसकी गांड़ उछल उछल पड़ रही थीं और बेहद कामुक लग रही थी!

विक्रम रात के एक बजे महल में आ गया और दवाई पीने के बाद उसके शरीर में अदभुत ताकत आ गई थी और लंड तो मानो किसी लोहे की रॉड की तरह सख्त हो गया था! विक्रम जानता था कि मेनका रंगीन वस्त्र धारण किए हुए उसका इंतजार कर रही होगी तो वो दबे पांव इधर उधर देखते हुए गुप्त दरवाजे से सीधा मेनका के शयन कक्ष के बाहर निकला और जैसे ही उसने धीरे से दरवाजे को हल्का सा खोला तो वो बिना आवाज किए चुपचाप खुलता चला गया और धड़कते हुए दिल के साथ विक्रम आगे बढ़ गया और मेनका की हल्की आवाज में गूंजती हुई मधुर आवाजे सुनकर विक्रम ने धीरे से पर्दो को हटाया और जैसे ही उसकी नजर नंगी लेटी हुई मेनका पर पड़ी तो विक्रम की आंखे फटी की फटी रह गई! मेनका की गुदाज मांसल मजबूत भरी हुई कमर और चौड़ी उभरी हुई गोल मटोल गांड़ के गोरे चिकने उभार देखकर न चाहते हुए भी विक्रम के मुंह से आह निकल पड़ी और मेनका ने जैसे ही विक्रम को अपने कक्ष में देखा तो वो शर्म से पानी पानी हो गई और एक लाल वस्त्र उठाते हुए भागकर पर्दे के पीछे छिप गई और अपने जिस्म को छुपाने की कोशिश करने लगी लेकिन एक छोटा सा वस्त्र नाकाफी साबित हो रहा था!

विक्रम मेनका के करीब पहुंच गया और धीरे से बोला:

" हम तो आपकी नथ देखने आए थे माता लेकिन तो आप साक्षात स्वर्ग की मेनका बनी हुई है!

मेनका उसकी बात लंबी लंबी सांसे लेते हुए खामोश खड़ी रही जबकि उसकी चुचिया उछल उछल कर अपनी बेचैनी दिखा रही थीऔर विक्रम ने जैसे ही परदे को हटाना चाहा तो मेनका ने एक हाथ से परदे को थाम लिया और मचलते हुए बोली:"

" हाय पुत्र! मत देखिए हमे!

विक्रम पर्दे को जोर से हटाने की कोशिश करते हुए बोला

" हमारी नाथ हम नही देखेंगे तो भला और कौन देखेगा! हम जानते हैं कि आपने हमे दिखाने के ही पहनी है और अपना दरवाजा भी हमारे लिए ही खुला छोड़ा था!!

मेनका जानती थी कि विक्रम उसे छोड़ने वाला नही है तो बहाने बनाते हुए परदे को कसते हुए बोली,:"

" हाय पुत्र गलती से खुला ग्रह गया होगा!

विक्रम ने एक जोरदार झटके के साथ परदे को खींचा और मेनका ने अपनी तरफ खींचा नतीजा पर्दा फट गया और मेनका अब पूरी तरह से खुलकर विक्रम के सामने आ गई और शर्म के मारे उसकी आंखे बंद हो गई और हाथ हवा में उठते चले गए!
1000196508


विक्रम की आंखे खुली की खुली रह गई क्योंकि उसकी आंखो के आगे दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा था और विक्रम ने भरपूर नजर उसकी चुचियों पर डाली और आज उसे यकीन हो गया था कि उसकी माता की चुचियों से अच्छी दुनिया में किसी की भी चूचियां हो ही सकती! विक्रम को याद आया कि वो तो मेनका की नथ देखने आया था तो उसने एक नजर उसकी नथ पर डाली और उसकी छोटी सी सुंदर नाक में नथ बेहद आकर्षक लगी और विक्रम आगे बढ़ते हुए मेनका के बेहद करीब हो गया और उसकी नथ को चूम लिया तो मुंह बंद करके सिसक उठी! विक्रम ने उसकी नथ को उंगली से छूने के बाद उसके गर्म जलते हुए गाल को छुआ तो मेनका का बदन जल उठा और जैसे ही विक्रम की उंगलियां नीचे आती हुई उसके पिघलते हुए लाल सुर्ख होंठो से टकराई तो मेनका की चूचियां उछल पड़ी और विक्रम ने जान बूझकर उंगली को नीचे लाते हुए उसकी एक चूची पर ऊपर से नीचे तक पूरे आकार में घुमाया तो मेनका की चूत से रस टपक पड़ा और मेनका आंखे बंद किए हुए ही धीरे से बोली:"

" कैसी लगी पुत्र आपको ?

विक्रम मन ही मन मेनका की हिम्मत की दाद दे उठा और फिर से एक भरपूर नजर उसकी चुचियों पर मारते हुए बोला:"..

" कसी हुई गोल गोल गुम्बद जैसी पपीते के आकार की बिलकुल सख्त!

विक्रम के मुंह से अपनी चुचियों की प्रशंसा सुनते ही मेनका की चूचियां जोर से उछल पड़ी और मेनका एक झटके के साथ पलटती ही बोली:

" निर्लज कहीं के! हम तो अपनी नथ के बारे में पूछ रहे थे! जाइए हम आपसे बात नहीं करती!

इतना कहकर मेनका पलट गई और जोर जोर से सांसे लेने लगी!

1000196487




मेनका के पलटने से जैसे कयामत आ गई और शरीर एक तरफ से आधे से ज्यादा खुल जिससे जिससे उसकी चाची आधी नजर आने लगी और उसके नंगे कंधे पर हाथ रखते हुए बोला:"

" अपने पुत्र के साथ आज मदिरा सेवन नही करोगी क्या माता!

मेनका ने नजरे खोलकर विक्रम को अपनी तरफ घूरते हुए पाया तो अपनी आधी चूची को पूरा ढकते हुए बोली:"

" नही पुत्र! बिलकुल नहीं क्योंकि मदिरा पीने के बाद आपको होश नहीं रहता और मैने पहले ही थोड़ा पी हुई है!

विक्रम ने उसके कंधे को सहला दिया और पीछे खड़े होकर बोला:" नथ की खुशी में मेरा साथ दीजिए ना माता!

मेनका अब इनकार नही कर सकी और मटकती बलखाती हुई अलमारी की तरफ बढ़ गई और विक्रम उसकी मटकती हुई गांड़ देखकर अपने लंड में पूरा तनाव महसूस कर रहा था! मेनका चलती हुई अलमारी के करीब पहुंच गई और बैठते हुए बॉटल और ग्लास निकालने लगी! जैसे ही मेनका आगे को झुकी तो वस्त्र उसके जिस्म पर से एक तरफ खिसक गया और मेनका की पूरी नंगी कमर विक्रम की आंखो के सामने आ गई और उसकी भरी हुई गुदाज कमर और कूल्हों की चौड़ाई और मजबूती देखकर विक्रम उसकी खूबसूरती पर झूम उठा!


IMG-20250119-232241


मेनका आगे झुकने के लिए हल्का सा ऊपर को उठी और एक पल के लिए उसकी गांड़ पूरी तरह से नंगी हो गई और विक्रम के मुंह से भी आह निकल गई! विक्रम ने अच्छा मौका देखते ही अपने वस्त्रों को ढीला किया ताकि थोड़ा सा कोशिश करने पर आराम से नीचे सरक जाए ! मेनका ने बॉटल को निकाला और विक्रम की तरफ पलट आई और दोनो बेड की तरफ बढ़ गए!

बेड पर आने के बाद मेनका ने कांपते हुए हाथो से दोनो ग्लास को भरा और एक विक्रम की तरफ बढ़ा दिया तो विक्रम ने मेनका की आंखो में देखते हुए एक घूंट भरा और पहले से ही मदहोश मेनका भी एक बार फिर से पीने लगी! आधा ग्लास पीने के बाद मेनका ने जैसे ही ग्लास मुंह से लगाया तो वो उसके हाथ से छूट गया और मेनका के वस्त्र को पूरी तरह से भिगोता चला गया और मेनका अब शर्म के मारे जमीन में गड़ी जा रही थी क्योंकि गीले कपड़े का होना ना होना एक बराबर हो गया था और मेनका ने शर्म के मारे बेड पर एक हाथ टिकाते हुए अपनी आंखे बंद कर ली जिससे उसकी चूचियां पूरी तरह से उभर कर विक्रम के सामने आ गई!


1000196503


विक्रम ने मेनका की चुचियों के आकार को अच्छे से देखा और उसके चुचियों के तने हुए निप्पल दर्शा रहे थे कि मेनका पूरी तरह से वासना में डूबी हुई है और विक्रम ने अपने ग्लास को एक झटके में खाली कर दिया और बोला:"

" हाय मेरी माता! आपके गोल गोल पपीते पूरी तरह से पककर पेड़ से टपकने को तैयार हैं!

पहले से ही काम वासना में डूबी हुई मेनका ने जैसे जी विक्रम के मुंह से अपनी चुचियों के लिए पपीते शब्द सुना तो उसकी चूत से रस बह चला और आंखे खोलते हुए विक्रम की आंखो में देखते हुए अपने होंठो पर जीभ फेरते हुए बोली:"



1000196693
st patrick center


" डरो मत पुत्र! इतने कमजोर नही हैं मेरे पपीते जो इतनी आसानी से गिर जाएं!

इतना कहकर मेनका ने एक जोरदार सांस लेते हुए अपनी चुचियों को उभार दिया तो विक्रम ने मेनका की आंखो में देखते हुए उसकी तरफ बॉटल को बढ़ा दिया और उसकी जांघ पर हाथ फेरते हुए बोला:"

" अह्ह्ह्ह्ह मेरी माता! गिरने दीजिए ना अपने पपीते मेरे ऊपर! हाय कितने ज्यादा रसीले लग रहे हैं आपके पपीते!

मेनका ने ग्लास को भरा और विक्रम के करीब आते हुए उसके ऊपर झुक गई और अपनी चुचियों को पूरी तरह से उभारते हुए उसके होठों से ग्लास लगाते हुए बोली:"

" पपीते छोड़िए ना महाराज! लीजिए आपकी माता के हाथो से मदिरा का सेवन कीजिए पुत्र!

विक्रम ने एक जोरदार घूंट भरी और मेनका की आंखो में देखा जो पूरी तरह से उसके ऊपर झुकी थी अपनी चुचियों से उसे रिझाती हुई उसकी आंखो में देख रही थी! चुचियों के तने हुए निप्पल कपड़े में से उभर आए थे और विक्रम बोला

:" उफ्फ मेरी मेनका ! ऐसे मस्त पपीते एक बार पकड़ने के बाद कोई क्यों छोड़ेगा!

मेनका की चूचियां विक्रम के हाथो में जाने के लिए मचल उठी! मेनका ने विक्रम की आंखो में देखते हुए जान बूझकर अपने हाथ को फिसला दिया!मेनका फिसल कर विक्रम की छाती पर गिर पड़ी और उसकी चूचियां विक्रम के सीने से टकरा गई तो मेनका मस्ती से कराह उठी

" अह्ह्ह्ह्ह क्षमा कीजिए मुझे हमारा हाथ फिसल गया था! आपके कपड़े गीले हो गए!


दारू का ग्लास विक्रम के उपर गिर पड़ा था तो उसने मौके का फायदा उठाते हुए अपने उपरी वस्त्रो को उतार फैंका और बोला:"

" हाय मेरी माता! गिरने ना आप बार बार गिरिए ना! आपके पपीते भींच तो नही गए ना ?

कामुक मेनका विक्रम की चौड़ी छाती देखकर उसके छूने का लालच कर बैठी और फिर से उसके ऊपर आई और उसके छाती पर एक हाथ टिकाते हुए कान खींचती हुई बोली:"

" बड़े बदमाश हो गए हो पुत्र आप!

विक्रम ने जवाब में उसकी नथ को चूम लिया तो मेनका जैसे ही उसकी छाती सहला कर उपर हुई तो उसके वस्त्र का एक हिस्सा विक्रम के नीचे दब गया और मेनका की एक चूची आधी से ज्यादा निप्पल सहित बाहर निकल आई और विक्रम ने पहली बार मेनका की नग्न चूची को देखा और मेनका के कंधे को सहलाते हुए कान में बोला:

" माता आपके पपीते बाहर आने को बेताब हो रहे हैं!

मेनका ने अपनी चूची की तरफ देखा तो उसकी चूत में चिंगारी ही उठ गई और उसने वस्त्र को एक तरफ खींच कर चूची को ढका तो उसकी दूसरी नंगी हो गई! मेनका का कपड़ा छोटा पड़ रहा था! एक चूची को ढकती तो दूसरी बाहर निकल पड़ती


IMG-20250120-004146 IMG-20250120-004106



विक्रम मेनका की आधी नंगी चूचियों को देखकर को देखकर होश खो बैठा और उसके करीब होते हुए उसने आंखे बंद किए हुए कांप रही मेनका के वासनामय खूबसूरत चेहरे को देखा तो उसे मेनका के कांपते लरजते हुए रसीले होंठ दिखाई दिए और विक्रम ने आगे झुककर मेनका के कंधे को पकड़ते हुए एक बार फिर से उसकी नथ को चूम लिया और बोला:"

" मेनका मेरी माता आपकी नथ मुझे बहका रही है! उफ्फ देखो ना कैसे आपके रसीले होंठो को छू रही है !!

मेनका की सांसे पूरी से उखड़ गई थी और चूचियां उछल उछल पड़ रही थी जिससे मेनका का अंतिम वस्त्र जोर जोर से हिल रहा था और जैसे ही विक्रम के मेनका की नथ को चूमते हुए उसके होंठो को अपने होंठो से हल्का सा छुआ तो मेनका का पूरा बदन जोर से कांप उठा और वस्त्र मेनका की छाती के बीच में आ गया और उसकी दोनो चूचियां एक साथ पूरी नंगी हो गई जिसका आंखे बंद किए हुए मचल रही मेनका को जरा भी अंदाजा नही था!



1000196488
विक्रम ने मेनका की कसी हुई चुचियों को जी भरकर देखा और एहसास हुआ कि मेनका की चूचियां एक दम सख्त और कसी हुई है! आकार में इतनी बड़ी होने के बावजूद किसी पर्वत की चोटी की तरह उठी हुई और चुचियों के शिखर पर विराजमान चुचक अपनी अलग ही छटा बिखेर रहे थे! मेनका की तेज तेज सांसों के साथ उसकी उछलती हुई चुचियां विक्रम को अपनी तरफ उकसा रही थी और विक्रम का सब्र टूट गया और उसने मेनका के उपर आते हुए उसकी नथ को फिर से एक बार चूम लिया और अपनी मजबूत शक्तिशाली चौड़ी छाती को मेनका की नंगी चूचियों से रगड़ दिया तो मेनका मस्ती से सिसक उठी! मेनका को अपनी नंगी चुचियों का एहसास हुआ और विक्रम को एक जोरदार धक्का देते हुए कामुक तरीके से उसकी आंखो मे देखते हुए अपनी चुचियों को हाथ से ढक लिया !!






1000196506



विक्रम से अब बर्दाश्त नहीं हुआ और और उसने आगे बढ़ कर मेनका के दोनो हाथो को उसकी चुचियों पर से हटा दिया और उसके गर्दन पर अपनी जीभ फेरते हुए बोला:"

" जब आपके पपीते खुद ही बाहर आ रहे हैं तो उन्हें ढकना कैसा माता!


मेनका को एक झटके के साथ बेड पर गिरा दिया और उसके उपर चढ़ते हुए अपने हाथों में उसकी दोनो चूचियों को भर लिया तो मेनका जोर से सिसकते हुए बोली

" अह्ह्ह्ह पुत्र! ये क्या अनर्थ करते हो हम आपकी माता हैं!

विक्रम ने जोर से उसकी चुचियों को दबाया तो मेनका ने मुंह से एक दर्द भरी आह निकल पड़ी और विक्रम उसके गाल चूमते हुए बोला:"

"वही जो आप चाहती हो मेरी कामुक माता मेनका!

मेनका को विक्रम का खड़ा लंड अपनी चूत पर महसूस हुआ तो मेनका जोर से सिसक उठी और अपनी चुचियों उसके हाथो में उभारते हुए बोली:

" आआआह्ह्ह हमे जाने दीजिए पुत्र! हमे तो बस रंगीन वस्त्र पहनने अच्छा लगता हैं!

विक्रम ने लंड का जोरदार धक्का उसकी टांगों के बीच में जड़ दिया तो मेनका की आंखे खुली की खुली रह गई और विक्रम उसकी आंखो में देखते हुए उसकी चुचियों को जोर से मसल कर बोला:"..

" और हमे रंगीन वस्त्र पहने हुई मेनका को प्यार करना अच्छा लगता हैं!


विक्रम ने बिना देर किए अपने होंठो को उसके होंठो से चिपका दिया और जोर जोर से उसकी चूचियां मसलने लगा! मेनका की दर्द और मस्ती भरी सीत्कार विक्रम के मुंह में फूटने लगी! वस्त्र मेनका के ऊपर से पूरी तरह से हट गया था और वो अब पूरी नंगी थी और जोर जोर से सिसक रही थी! विक्रम ने एक हाथ नीचे ले जाते हुए धीरे से अपने नीचे के वस्त्र भी खोल दिए और सिसकती हुई मेनका जोर जोर से उछल रही थी जिससे गद्दा बार बार ऊपर नीचे हो रहा था! जैसे ही विक्रम वस्त्र पूरी तरह से सरका तो विक्रम का नंगा लंड मेनका की टांगो में घुस गया और मेनका की आंखे खुलती चली गई और उसने ताकत से अपनी जांघो को कस लिया और विक्रम ने अब उसकी एक चूची को अपने मुंह में भर लिया और जैसे ही जोर से चूसा तो मस्ती से मेनका के मुंह से आह निकल पड़ी और उसकी टांगे खुलती चली गई ! जैसे ही मेनका की टांगे खुली तो लंड उसकी चूत से छू गया और लंड की असली लंबाई मोटाई महसूस करके मेनका की आंखो के आगे तारे नाच उठे और जैसे ही विक्रम की गांड़ ऊपर उठी तो मेनका ने जोर से सिसक कर अपने एक हाथ को अपनी चूत पर रख दिया और जैसे ही लंड नीचे आया तो एक जोरदार धक्का उसकी हथेली पर पड़ा और मेनका दर्द के कारण सिसक उठी

" आआआह्हह्ह्ह मार डाला मुझे पुत्र!

विक्रम मेनका की चूची चूसते हुए उसकी चूत में धक्के जड़े जा रहा था जिसे मेनका किसी तरह अपनी हथेली पर रोक रही थी और विक्रम ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए उसके दोनो हाथो को अपने हाथो में कस लिया और उसकी टांगो को अपनी टांगो में फांसते हुए मेनका की आंखो में देखा तो मेनका इंकार में सिर हिला उठी और उसके होंठो को चूम कर बोली:"


" आह्ह्ह्ह्ह पुत्र आज नही!

विक्रम ने मेनका का हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया तो मेनका ने उसके लंड की समूची लंबाई और चौड़ाई का अंदाजा किया और उसकी चूत डर के मारे सिकुड़ गई और और मेनका बोली:"

" हमारी कल्पना से कहीं ज्यादा विशाल और भयंकर हैं ये!

विक्रम अपने लंड की प्रशंसा सुनकर मेनका का मुंह चूम लिया और उसकी चुचियों को रगड़ते हुए बोला:"

" आप भी तो इतनी कमजोर नही हो माता! हमे पूरा यकीन है कि आप हमे झेल पाएगी!

मेनका ने उसके लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और अपनी चूत पर सुपाड़ा रगड़ते हुए उसके कानो में बोली:"

" हमारे छेद से दोगुना आकार हैं पुत्र! हम अभी मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं!

विक्रम ने हल्की नाराजगी के साथ उसकी चूचियों को जोर जोर से मसलना शुरू कर दिया और मेनका दर्द से कराहने लगी और अपनी टांगो को पूरा कसते हुए अपने हाथों के नाखून विक्रम की कमर में चुभाने लगी तो विक्रम ने उसकी कसी हुई टांगो में लंड के धक्के लगाने शुरु कर दिए और मेनका दर्द से कराह उठी! मेनका ने पूरी ताकत से अपनी टांगो को बंद कर लिया और विक्रम उसकी चुचियों को मसलते हुए उसकी टांगो को चोदने लगा! मेनका दर्द से तड़प रही थी और उसे लंड उसकी जांघो पर चोट मार रहा था और मेनका ने हिम्मत करके विक्रम का सिर अपनी चूची पर झुका दिया तो विक्रम ने उसकी चूची ने दांत गडा दिए और मेनका फिर से दर्द से कराह उठी और उसकी चूत पानी पानी हुई जा रही थी!

" अअह्ह्ह्ह्ह नैइई हिईआ पुत्र! मर जाऊंगी अअह्ह्ह्

विक्रम ने मेनका के निप्पल को जोर से चूसा तो मेनका मस्ती से सिसक उठी और ऊपर उठते हुए विक्रम के माथे को चूम लिया तो विक्रम ने उसकी को बारी बारी से चूसना शुरू कर दिया जिससे मेनका की चूत में कम्पन होना शुरू हो गया और विक्रम के धक्के अब तूफानी रफ्तार पकड़ चुके थे! मेनका मस्ती से अपनी उंगलियां थोड़ा सा खोल देती जिससे हर जोरदार धक्के पर लंड का सुपाड़ा चूत से टकराता और अंदर जाने की कोशिश करता लेकिन मेनका उसे रोक देती! विक्रम पिछले एक घंटे से मेनका को धक्के मार रहा था और उसकी गति पल पल बढ़ती जा रही थी! मेनका की चूत पूरी तरह से रसीली और जिस्मपसीने पसीने हो गया था और बुरी तरह से सिसक रही थी!

विक्रम के लंड में उबाल आने आने लगा तो उसके धक्के की शक्ति इतनी ज्यादा बढ़ गई कि मेनका ने अपनी उंगलियों को बंद कर लिया और कसकर अपनी जांघो को खींच लिया! मेनका की चूत में भी तेज सनसनाहट मच गई थी और उसने दोनो हाथों को विक्रम की कमर पर लपेट दिया तो विक्रम उसके होंठो को चूसते हुए पूरी ताकत से धक्के लगा रहा था और मेनका भी मस्ती में अपनी जांघों को बंद किए हुए ही अपनी गांड़ उछाल रही थी जिससे विक्रम पूरे जोश में आ गया और उसकी चुचियों को मसलते हुए सिसका

" अह्ह्ह्ह मेरी मेनका! हम जानते है आप भी संभोग के लिए मचल रही है!

मेनका की चूत की दीवारें कांप उठी और उसने विक्रम को पूरी ताकत से कस लिया और सब शर्म लिहाज छोड़कर जोर से उसके होंठो को चूसती हुई बोली:"

" सीईईईईई यूआई हान पुत्र! हम भी संभोग क्रिया करना चाहते हैं अपने महाराज के साथ!

विक्रम ने मेनका के मुंह से संभोग क्रिया सुनकर उसकी चुचियों के निप्पल को जोर से मसल दिया और लंड को उसकी जांघों से पूरा बाहर निकाल कर फिर से पूरी ताकत से घुसा दिया और उसकी आंखो में देखते हुए बोला

" अपने महराज पुत्र से संभोग को क्या आपका नाजुक जिस्म झेल पाएगा मेरी माता?

मेनका एक साथ दोहरे दर्द से कराह उठी और लेकिन विक्रम ने उसके नारित्त्व को ललकारा था तो अपने होंठो को काटते हुए दर्द सहन हुए सिसक उठी:"

" अह्ह्ह्ह यूईईईआई मां! हम सब झेल जायेंगे! इतने भी कमजोर नही है पुत्र जितना आप हमे सोचते हो!

विक्रम को लगा कि उसकी सारी शक्ति उसके लंड में आ गई है और उसने मेनका की एक चूची को मुंह में भर कर पूरी शक्ति समेटते हुए लंड का आखिरी जोरदार धक्का मेनका की जांघो के बीच लगाया और न चाहते हुए भी मेनका की मजबूत जांघें हल्की सी खुलती चली गई और लंड का आधा मोटा सुपाड़ा मेनका की चूत के मुंह में घुसकर उसकी चूत की दीवारों को खोलते हुए अंदर उतर गया और मेनका के मुंह से एक जोरदार दर्द भरी आह निकल पड़ी और एक झटके के साथ दोनो एक दूसरे को कसते हुए अपने स्खलन को प्राप्त करने लगे!

विक्रम ने मेनका के होंठो को एक बार फिर से अपने मुंह में भर लिया और मेनका दर्द से कराहती हुई, सिसकती हुई उससे लिपटी रही और लंड चूत दोनो एक दुसरे को अपने रस से रंगीन करते रहे!

जैसे ही स्खलन खत्म हुआ तो विक्रम मेनका के ऊपर से उतर गया और उसके होंठो को चूमते हुए बोला:"

" मेनका मेरी माता मेरी प्रियतमा हम आपसे बेहद प्रेम करते हैं!

मेनका ने भी थोड़ा उचकते हुए विक्रम का गाल चूम लिया और उसकी छाती से लगते हुए बोली:"

" हम भी आपसे बेहद प्रेम करते हैं मेरे पुत्र मेरे महाराज!

विक्रम:" अब आप आराम कीजिए! रात का तीसरा पहर शुरू हो गया है!

इतना कहकर विक्रम बेड से उतरकर जाने लगा तो मेनका नंगी ही बेड से उतर गई और उसका हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया और उसकी छाती से चिपक कर बोली:"

" हम आपकी बांहों में सोना चाहते हैं महराज! हमे छोड़कर मत जाइए!

विक्रम ने मेनका को गोद में उठा लिया और बेड पर लिटा दिया! दोनो एक दूसरे से लिपट कर नंगे ही सो गए!
 
Last edited:
Top