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Shayari शायरी और गजल™

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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मिले वफ़ा मोहब्बत में अब वो दौर नहीं,
अब इश्क़ महज़ खेल है कुछ और नहीं।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ज़रूरी नहीं कि सिर्फ गहने ही चमकें,
ह़या की चादर भी चार चांद लगा देती है।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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कहीं रूह का होता है कहीं जिस्म का होता है,
इस जहाँ में इश्क भी दो किस्म का होता है।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ख़ुद-कुशी जुर्म भी है सब्र की तौहीन भी है,
इस लिए इश्क़ में मर मर के जिया जाता है।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ग़म-ऐ-इश्क़ रह गया है ग़म-ऐ-जुस्तजू में ढल कर।
वो नज़र से छुप गए हैं मेरी ज़िन्दगी बदल कर।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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हुदुदे इश्क़ की जांच के कोई...पैमाने नहीं होते,
जो मुख़लिस हों हर एक के वो दिवाने नहीं होते।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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मेरी ख़्वाहिश से क्यूँ है आसमानों में हलचल,
तुमको ही तो माँगा है ख़ुदा तो नहीं मांग लिया।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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जुर्म समझो तो नोच लो यह आँखें,
ख़्वाब में देखा है तुम्हें अपना होते हुए।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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हज़ार दर्द शब - ए - आरज़ू की राह में हैं,
कोई ठिकाना बताओं कि काफ़िला उतरे।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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तेरी अना नें फ़ासले बढ़ा दिए ऐ दोस्त,
वरना तमन्ना थी तेरे आग़ोश में फ़ना होते।।
 
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