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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

vakharia

Supreme
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Wah vakharia Bhai Wah

Kya mast update post ki he............

Sheela ki aag dekhkar sanjay ki to gaand hi fat ke char ho gayi............ek aurat me itni bhi havas ho sakti he..........ye sanjay ko aaj pata chala

Upar se sheela ne apna ras sunghate huye puch liya..............ke kaisi smell he vaishali jaisi ya chetna jaisi...............Gazab Bhai

Keep rocking Bro
Thanks bhai :heart:
 

Sanju@

Well-Known Member
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दोनों होटल पर पहुंचे.. और सीधे राजेश के रूम की तरफ गए.. रूम का दरवाजा सिर्फ अटकाया हुआ था पर लोक नहीं था.. हल्का सा धक्का देने पर दरवाजा खुल गया.. कमरे में सन्नाटा था और कोई था भी नही अंदर.. पर बाथरूम से कुछ आवाज़ें आ रही थी.. बाथरूम का दरवाजा भी हल्का सा खुला हुआ था.. शायद राजेश बंद करना भूल गया था

होंठों पर उंगली रखकर पीयूष ने मौसम का "शशशशश" का इशारा किया.. अंदर हो रही बातें बाहर सुनाई दे रही थी

राजेश की सिसकियाँ सुनकर मौसम कमरे से बाहर जाने लगी तो पीयूष ने उसका हाथ पकड़ लिया.. और उसके होंठों को फिर से चूमकर मौसम के कान में कहा "मैडम और सर का प्रोग्राम चल रहा है अंदर.. अभी ये लोग बाहर नही निकलेंगे थोड़ी देर.. ध्यान से सुनना.. "

मौसम डर के मारे कांपने लगी.. अंदर से आ रही कामुक कराहों से ये स्पष्ट पता चल रहा था की रेणुका राजेश का लंड चूस रही थी.. क्योंकि राजेश की आवाज तो आ रही थी पर रेणुका की नही..

"ओह्ह रेणु.. सक ईट.. आह्ह.. ओह गॉड.. बहोत मज़ा आ रहा है.. और जोर से चूस मेरी जान.. पूरा अंदर ले तो ओर मज़ा आएगा.. जितना चुसेगी इतना कडक होगा और तुझे ज्यादा मज़ा देगा अंदर.. आह्ह.. कैसा लग रहा है मेरा लोडा चूसने में जान? आह्ह चूस.. जल्दी जल्दी.. यार तेरे बबले बड़े कमाल के है यार.. आह्ह आह्ह रेणु.. मेरा निकालने ही वाला है तेरे मुंह में.. सारा माल चूस लेना.. बर्थडे केक का क्रीम समझकर.. "

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गीले लंड के चूसने का "बच बच" आवाज सुनाई पड़ रहा था.. अब तो मौसम भी समझ गई की अंदर क्या हो रहा था.. आज जीवन में पहली बार उस एडल्ट शॉप में चित्र-विचित्र वस्तुएं देख ली.. फिर तीन बार पीयूष ने उसे किस किया.. स्तन भी दबा दिए.. और अब राजेश और रेणुका की काम लीला को सुनते हुए मौसम की कच्ची कुंवारी चुत में जबरदस्त खुजली होने लगी थी.. इस नई अनुभूति से वह अनजान थी.. इस खुजली को कैसे शांत किया जाए इसका कोई ज्ञान नही था.. वह केवल पीयूष को पकड़कर उससे लिपट गई.. इतनी जोर से तो कभी कविता ने भी गले नही लगाया था पीयूष को.. मौसम की पकड़ के जोर में उसकी हवस शामिल थी..

मौसम के सख्त स्तनों के दबने से पीयूष पागल सा हो गया.. मौसम ने पीयूष के होंठों पर अपने होंठ दबा दिए..और असह्य उत्तेजना से वह पीयूष के गालों को चाटने लगी.. मौके का फायदा उठाकर पीयूष ने मौसम के टीशर्ट के अंदर हाथ डालकर ब्रा के ऊपर से ही उसके स्तनों को मसल दिया.. मौसम को यह स्पर्श इतना अच्छा लगा की उसने पीयूष के हाथ को अपनी ब्रा के कटोरी के अंदर ही डाल दिया.. अब तक उसके स्तन और पीयूष के हाथों के बीच ब्रा का आवरण था.. पर अब.. आह्हह.. मौसम के नंगे उरोजों का प्रत्यक्ष स्पर्श करते हुए पीयूष की हथेलियाँ धन्य हो गई.. उसके स्तन नरम होते हुए भी सख्त थे.. ठंडे थे और गरम भी.. वाह.. !!! मौसम की निप्पल को हल्के से मसलते ही वह सिहर उठी.. पीयूष का लंड मौसम की दोनों जांघों के बीच टकरा रहा था.. दोनों अपने होश खो चुके थे.. मौसम अपनी चुत को कपड़े के ऊपर से पीयूष के लंड पर रगड़ रही थी.. उसे पता नही चल रहा था की ऐसा करना उसे किसने सिखाया.. पर उसे बहोत मज़ा आ रहा था.. थोड़ी ही देर में मौसम झड़ गई.. एक लंबी सिसकी लेकर वह शांत हो गई..


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उत्तेजना शांत होते ही दोनों को वास्तविकता का ज्ञान हुआ.. साथ ही साथ ये भी एहसास हुआ की वह दोनों किस जगह खड़े थे.. पीयूष तुरंत मौसम का हाथ पकड़कर उसे राजेश के रूम से बाहर ले गया.. मौसम को उसके कमरे में छोड़कर वो उसके और कविता के कमरे की तरफ आया.. दरवाजा बंद था.. काफी देर तक दस्तक देने के बाद कविता ने नींद से जागकर दरवाजा खोला.. उसके कपड़े और बाल अस्तव्यस्त थे.. देखकर पीयूष समझ गया की वह सो रही थी..

कविता ने उससे पूछा तक नही की वो अब तक कहाँ था... किसके साथ था.. क्या कर रहा था.. वह बस अपनी आँखें मलते हुए बिस्तर पर बैठी रही.. तभी उनके दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. पीयूष ने दरवाजा खोला.. सामने पिंटू खड़ा था.. पिंटू को देखते ही कविता का उतरा हुआ चेहरा खिल उठा

पिंटू: "पीयूष, राजेश सर ने कहा है की जो गिफ्ट तुम मैडम के लिए लाए हो वह अपने पास ही रखना.. रात की पार्टी में केक-कटिंग के बाद सर उन्हे देंगे.. वैसे सर ने आपको काफी बार फोन किया पर नो-रीप्लाई ही जा रहा था.. इसलिए मुझे यहाँ आना पड़ा.. अगर आप दोनों के रंग में भंग पड़ा हो तो आई एम सॉरी"

पीयूष: "अरे ऐसा कुछ नही है यार पिंटू.. कविता तो मुझसे रूठी हुई है.. इसलिए मेरे तो उपवास ही चल रहे है. "

पिंटू: "अरे ऐसा क्या हो गया?" पिंटू ने चिंता व्यक्त करते हुए पूछा "इतनी रंगीन जगह पर आने के बाद कोई रूठता है क्या भला!! यहाँ के नज़ारे तो देखो एक बार.. अनजान लोग भी दोस्त बन जाते है ऐसा माहोल है यहाँ.. और तुम दोनों पति पत्नी होकर झगड़ रहे हो.. !! अरे भाई, घर वापिस जाकर यही सब तो करना है.. अब इतनी बढ़िया जगह पर आए हो तो इसका पूरा आनंद लो.. "

पीयूष: "भाई, मैं तो ये सब जानता ही हूँ.. तू अपनी भाभी को समझा.. मैं तो थक गया हु इससे"

कविता बिस्तर पर खामोश ही बैठी रही.. उसके चेहरे से उदासी साफ नजर आ रही थी.. ऐसी हालत में भी पीयूष के चेहरे पर चमक थी.. क्यों न हो.. मौसम ने तो उसके दिल के मौसम को बाग बाग जो कर दिया था..

पिंटू: "अरे भाभी.. झगड़ा छोड़ दीजिए.. छोटी सी तो ज़िंदगी है चार पल की.. वो भी झगड़ने रूठने में बर्बाद कर दोगी तो फिर बचेगा क्या? गुस्सा थूक दीजिए और पीयूष को माफ कर दीजिए.. आप दोनों के बीच क्या हुआ है ये तो मुझे नही पता.. और मुझे जानना भी नही है.. पर जो कुछ भी हो.. अभी सुलझा दीजिए.. प्लीज"

"कितनी चिंता है मेरे पिंटू को मेरी" कविता सोच रही थी.. "मेरी उदासी दूर करने के लिए कितनी मिन्नते कर रहा है.. आई लव यू पिंटू" भावुक हो गई कविता और उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे

अपने आँसू पोंछ कर कविता ने पीयूष से कहा "पीयूष, मुझसे कोई गलती हुई हो तो मुझे माफ कर देना.. आई एम सॉरी"

कविता को जवाब दिए बगैर ही पीयूष कमरे के बाहर चला गया.. और जाते जाते पटककर दरवाजा बंद करता गया.. उसके दिमाग पर तो मौसम का सुरूर छाया हुआ था.. कविता और पिंटू स्तब्ध होकर उसे कमरे से जाता देखते ही रहे.. आखिर जब कविता माफी मांग रही थी तो ये पीयूष बेकार में क्यों इतना भाव खा रहा था ?? ऐसा तो कौन सा गुनाह कर दिया था कविता ने ? पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया..

बंद कमरे में कविता पिंटू से लिपट कर फुटफूट कर रोने लगी.. पिंटू डर गया.. अगर पीयूष वापिस लौटकर उन्हे इस स्थिति में देख लेगा तो गजब हो जाएगा.. पर अपनी रोती हुई प्रेमिका को दूर करने की हिम्मत नही थी उसमें.. जो होगा देखा जाएगा.. पिंटू कविता की पीठ सहलाकर उसे शांत करने लगा.. तब तक करता रहा जब तक की उसका रोना बंद नही हुआ.. अपने प्रेमी की बाहों में गजब की शांति मिली कविता को.. वो रीलैक्स हो गई.. पिंटू से अलग होकर वह बोली "थेंक यू पिंटू.. "
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"संजयकुमार.. आप मुझे बताएंगे भी की कहाँ लेकर जा रहे है?" शीला परेशान होकर बार बार पूछ रही थी संजय से.. पर संजय बता ही नही रहा था.. शीला चुपछाप अपनी बेग में कपड़े भर रही थी.. उसकी ओर देखकर संजय मुस्कुरा रहा था.. झुककर कपड़े भर रही शीला के गोलमटोल चूतड़ों को देखकर संजय के लंड में झटका लग गया.. सासुमाँ के उन मस्त कूल्हों को दबाने की तीव्र इच्छा को बड़ी मुश्किल से रोका उसने

थोड़ी ही देर में इनोवा गाड़ी शीला के घर के बाहर खड़ी हो गई.. शीला ने घर को ताला लगाया और संजय के साथ पीछे की सीट पर बैठ गई.. ड्राइवर ने सामान गाड़ी में रख दिया.. शीला को घबराहट हो रही थी.. पर अब पीछे हटने का कोई रास्ता ही नही था.. चलो जो होगा देखा जाएगा.. घबराहट के कारण शीला पसीने से तर हो गई थी.. उसके पसीने की मादक गंध सूंघते हुए संजय ने कहा

संजय: "हम गोवा जा रहे है मम्मी जी.. मज़ा आएगा.. मेरी कंपनी की मीटिंग है वहाँ.. मैं मीटिंग अटेन्ड करूंगा तब तक आप आराम से घूमना.. गोवा का माहोल बड़ा ही मस्त होता है..आपको बहोत मज़ा आएगा"

गोवा का नाम सुनकर शीला के जिस्म में एक सरसराहट सी होने लगी.. वो एक बार मदन के साथ गोवा जा चुकी थी.. वहाँ बीच पर अधनंगी लड़कियों को देखकर वह शर्म से पानी पानी हो गई थी.. पर तब तो साथ में पति था तो ठीक था.. अभी तो ये दामाद के साथ.... क्या होगा वहाँ जाकर?? दामाद के साथ भला कौन गोवा जाता है? वो भी अकेले?? पर अब क्या हो सकता था.. कुछ भी नही !!

गाड़ी ने १२० की स्पीड पकड़ ली थी.. शहर से बाहर निकलते ही संजय ने ड्राइवर से एलसीडी ऑन करने को कहा..

संजय: "कोई मस्त मूवी लगा दे.. !!" इनोवा की छत पर लगा एलसीडी खुलकर सामने आ गया.. शीला की नजर स्क्रीन पर थी पर उसका दिमाग काम नही कर रहा था.. संजय ने सिगरेट जलाई.. धुएं की गंध से शीला को रघु और जीवा के साथ की हुई चुदाई याद आ गई.. पता नही क्यों पर आज शीला को भी सिगरेट फूंकने की इच्छा हो रही थी.. स्वतंत्रता बहोत बुरी चीज है.. इंसान को बुरी से बुरी हरकत करने पर मजबूर कर देती है..

पीछे के सीट पर दो लोगों के लिए काफी जगह थी.. पर साथ में शीला बैठी हो तब संजय कहाँ शांत रहने वाला था.. !!!!

संजय: "मम्मी जी.. यू आर लूकिंग वेरी ब्यूटीफुल" शुरुआत हो गई थी

शीला ने संकोच के साथ कहा "थेंक यू बेटा.. "

संजय ने अपनी टांगें इस तरह चौड़ी कर दी की उसकी जांघ शीला की जांघों से स्पर्श करें.. ज्यादा नही.. पर जरा सा.. छूते ही शीला को पिछली रात बागीचे में हुए स्पर्श की याद ताज़ा हो गई.. यह स्पर्श भी बिल्कुल वैसा ही था.. नही रे नही.. केवल स्पर्श से कैसे किसी इंसान को पहचाना जा सकता है!! तीरछी नज़रों से शीला ने संजय के पेंट में बने उभार को देख लिया.. अब शीला कोई कच्ची कुंवारी या नादान तो थी नही जो उसे पता न चले की वो उभार किस वजह से था !!! साले ये कमीने संजय को अभी किस बात का इरेक्शन हुआ है!! मेरा पैर हल्का सा छु गया इसलिए.. छी छी छी.. मैं भी क्या गंदा गंदा सोच रही हूँ.. मर्दों को तो किसी भी वक्त इरेक्शन हो सकता है.. कभी कभी जोर की पेशाब लगने पर भी ऐसा होता है..

शीला.. शीला.. शीला.. ये तू क्या सोच रही है.. !! अपने दामाद के लंड के बारे में भी भला कोई सास सोचती है कभी!!! अपना ध्यान बँटाने के लिए वो स्क्रीन पर देखने लगी.. अगर कोई ऐसा सॉफ्टवेर होता जिससे किसी व्यक्ति के विचारों का पता लग सके तो क्या होता.. !! शादी की पहली रात को अपने पति का लंड पकड़कर हिला रही लड़की, अपने प्रेमी को याद कर रही हो और अगर उसके पति को अपनी बीवी के विचारों की भनक लग जाए तो कैसा गजब होगा !!! बाथरूम में नहाने गए जवान लड़के को कोने में पड़ी अपनी माँ या बहन की ब्रा और पेन्टी देखकर जो विचार आते है.. उन विचारों के बारे में बाहर बैठी उसकी माँ या बहन को पता चल जाएँ तो!!!

माय गॉड.. शीला.. तेरा दिमाग क्या क्या सोच रहा है.. पर अगर ऐसा सॉफ्टवेयर मिल जाएँ तो तू किस पर इस्तेमाल करेगी? ऑफ कोर्स मदन पर.. उसके दिमाग में झांककर देखती की वहाँ विदेश में उसने कितनी गोरी रंडियों के भोसड़े गरम कीये है.. और वही सॉफ्टवेयर अगर मदन को मिल जाए तो क्या होगा.. !!! रसिक, रूखी, उसका ससुर, जीवा, रघु, पीयूष, पिंटू, चेतना, रेणुका, अनुमौसी, कविता.. बाप रे बाप.. मेरी तो शामत ही आ जाए.. और मदन बेचारा हार्ट अटेक से मर जाए.. अपनी सोच पर खुद ही हंसने लगी शीला

शीला को हँसते हुए देखकर संजय ने पूछा "किस बात पर हंस रही हो मम्मीजी?"

शीला: ऐसे ही.. कोई पुराना जोक याद आ गया था मुझे"

संजय: "मुझे भी तो सुनाओ वो जोक"

शीला: "तुम्हें सुनाने लायक नही है"

संजय शेतानी मुस्कान के साथ बोला "हम्म.. समझ गया मैं"

अभी १०० किलोमीटर का सफर भी तय नही हुआ था और संजय खुल के बात करने लगा था.. कमबख्त उस ड्राइवर ने भी कोई मलयालम गानों की डीवीडी लगाई थी.. भरे भरे स्तनों वाली एक साँवली अधनंगी हिरोइन उत्तेजक डांस कर रही थी.. उसका गदराया जिस्म देखकर शीला के भोसड़े में आग लग गई.. संजय एकटक उस हीरोइन के बॉल देख रहा था.. शीला ने एक बार मदन को शिकायत भी की थी.. की उनके दामाद की नजर ठीक नही थी.. जब भी आता था शीला की छाती को ही टकटकी लगाकर देखता रहता था.. तब बेशर्म मदन ने क्या कहा था वो शीला को आज भी याद था.. मदन ने कहा था.. अरे जानेमन, तेरे बबले है ही इतने कमाल के.. मुझे पक्का यकीन है.. संजय सिर्फ देखता ही नही है.. उन्हे याद करते हुए मूठ भी लगाता होगा

मदन की वो बात याद आते ही शीला शरमा गई.. क्या संजय अभी भी उसी नजर से देखता होगा मुझे? अब तो मेरी उम्र भी हो चली है.. और वैशाली के भी काफी बड़े बड़े है.. शायद इसलिए अब संजय को पहले जितनी दिलचस्पी न रही हो मेरी छातियों में.. उसे दिलचस्पी हो या न हो.. मुझे उससे क्या? मैं क्यों यह सब बेकार की बातों के बारे में सोचकर दिमाग खराब कर रही हूँ?

झुककर अपनी क्लीवेज दिखाते हुए नाच रही उस साउथ की हीरोइन के मदमस्त उरोजों को देखकर संजय की सिसकी निकल गई.. जो शीला ने भी सुनी.. अभी भी ये बेवकूफ पराई औरतों की छातियों में ही उलझा हुआ है.. मुझे भी मेरी छातियों को संभालकर रखना होगा.. कहीं ये चूतिया मौका देखकर दबा न दे.. इन सारे विचारों से शीला की पेन्टी गीली हो रही थी


शीला के मन मस्तिष्क और जिस्म पर हवस का सुरूर चढ़ रहा था लेकिन दामाद के साथ होने से कंट्रोल रखना भी जरूरी था.. संजय के अंदर शीला को दामाद नही.. पर एक जवान लंड नजर आने लगा.. वैसे भी संजय दामाद की तरह कहाँ पेश आ रहा था.. उसके हाव भाव और बोलने से तो यही लग रहा था जैसे वो शीला को चोदने के लिए गोवा ले जा रहा हो..
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है पीयूष और कच्ची कली मौसम के बीच धीरे धीरे बहुत कुछ हो रहा है वही संजय अपनी सास शीला को घुमाने गोवा ले जा रहा है लगता है शीला गोवा में संजय से जरूर चुदने वाली है
 

Sanju@

Well-Known Member
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शीला के मन मस्तिष्क और जिस्म पर हवस का सुरूर चढ़ रहा था लेकिन दामाद के साथ होने से कंट्रोल रखना भी जरूरी था.. संजय के अंदर, शीला को दामाद नही.. पर एक जवान लंड नजर आने लगा.. वैसे भी संजय दामाद की तरह कहाँ पेश आ रहा था.. उसके हाव भाव और बोलने से तो यही लग रहा था जैसे वो शीला को चोदने के लिए गोवा ले जा रहा हो..

संजय के पेंट में लंड वाला हिस्सा फूलकर कचौड़ी जैसा हो गया था.. जिस पर शीला की नजर बार बार चली जाती थी.. पेंट और अंडरवेर के आरपार शीला ने संजय के तने हुए सख्त लंड की मन में कल्पना भी कर ली थी..

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शीला की हवस अब तूफान का स्वरूप धारण कर चुकी थी.. एलसीडी के छोटे से स्क्रीन पर चल रहे द्रश्य इस तूफान को ओर हवा दे रहे थे.. और इस तूफान में, सास और दामाद के संबंधों की पवित्रता धीरे धीरे हवा बनकर उड़ जा रही थी.. जोर जोर से भारी सांसें लेने के कारण सील की छातियाँ ऊपर नीचे हो रही थी.. संजय की नजरें स्तनों की हलचल का रसपान कर रहे थे और अपने दामाद की कामुक नज़रों से शीला के संयम का बांध टूटता जा रहा था..

संजय ने धीरे से शीला की जांघ पर हाथ रख दिया.. शीला कांप गई.. ये जो कुछ भी हो रहा था वो गलत था ये जानते हुए भी शीला उसे रोक नही पाई.. वासना ने उसके हाथ बांध दिए थे.. उसका मन तो कर रहा था की संजय का हाथ हटा दे और गाड़ी से उतर जाए पर उसका शरीर उसे ऐसा करने से रोक रहा था..

थोड़ी देर तक जांघ पर हाथ रखने पर भी जब शीला ने कोई विरोध नही किया तब संजय को जैसे ग्रीन सिग्नल मिल गया.. हिम्मत करके उसने शीला का हाथ पकड़ लिया और उसे चूम लिया.. शीला के पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई.. बेबस होकर वो संजय की हरकतों को देखती ही रही.. शीला की छोटी उंगली को संजय अपने मुंह में लेकर चूसने लगा.. उसकी जीभ के गरम स्पर्श से शीला ने कामुक होकर अपनी आँखें बंद कर दी.. और बंद आँखों में उसे आगे होने वाले द्रश्य दिखाई देने लगे..

काफी देर तक संजय शीला के हाथों से खेलता रहा.. कोई जल्दी तो थी नही क्योंकि सफर लंबा था.. शीला की गोरी नाजुक कोमल हथेली के बीच अपनी जीभ ऐसे फेरने लगा जैसे शीला का भोसड़ा चाट रहा हो.. शीला मन ही मन सोच रही थी.. ये आदमी कितना खतरनाक है.. कितनी कामुक हरकतें कर रहा है.. !! कोई भी औरत चाहे कितनी भी चारित्रवान क्यों न हो.. ऐसे स्पर्श का आगे कितनी देर तक संयम रख सकती थी.. !! शीला की चुत में जबरदस्त झटके लग रहे थे.. सिर्फ उसकी हथेली से खेलते हुए संजय ने उसे बेहद गरम कर दिया था.. शीला तब चोंक गई जब संजय ने उसकी हथेली अपने लंड पर रख दी..

शीला के शरीर में हाहाकार मच गया.. दोनों के बीच जो पतली सी रेखा बची थी वो भी जैसे मिट चुकी थी.. शीला का पल्लू अपनेआप सरक कर नीचे गिर गया.. क्या उत्तेजना के कारण पल्लू गिर गया? शीला के स्तन इतने कडक हो गए की उसे डर लगने लगा.. कहीं ब्रा के हुक टूट न जाए.. !! शीला के अंग अंग में उत्तेजना का जहर फैलने लगा था.. अपने सगे दामाद के लंड पर रखा हुआ हाथ.. पेंट के अंदर छुपे हुए उस विकराल लंड के झटकों के साथ ऊपर नीचे हो रहा था.. लंड की गर्मी शीला की हथेली से होते हुए उसकी चूत तक पहुँच रही थी..

हथेली में महसूस हो रही गर्मी को अपनी भोस के वर्टीकल होंठों के अंदर अनुभवित करने के लिए ऊपर नीचे हो रही थी शीला.. अनजाने में उसने संजय के लंड के उभार को दबा दिया.. संजय की आँखों में जोरदार चमक आ गई.. पल्लू सरकने के बाद, हिमालय के उत्तुंग शिखरों जैसे उसके बड़े बड़े स्तनों की गोलाइओ को छूने का बड़ा मन कर रहा था संजय को.. लेकिन वह जल्दबाजी करना नही चाहता था.. इस तरफ शीला सोच रही थी की लंड पकड़ लिया है.. पर अब तक संजय उसके स्तनों को क्यों नही छु रहा है !!

संजय के लंड पर शीला की पकड़ धीरे धीरे मजबूत होती जा रही थी.. शरीर की आग इतनी भड़क गई की शीला ने खुद ही संजय का हाथ पकड़कर अपने स्तनों पर रख दिया.. पुरुष के हाथों का स्पर्श.. स्तनों पर कितना अच्छा लगता है यह केवल स्त्री ही जानती है..

फट.. एक आवाज हुई और शीला के ब्लाउस का एक हुक टूट गया.. टाइट स्तनों के कारण ही हुक टूट गया था.. हुक टूट जाने से स्तनों पर दबाव थोड़ा सा कम हो गया.. संजय ने शीला की ओर देखा.. और वो शरमा गई.. शर्म आनी स्वाभाविक भी थी.. सास का हाथ दामाद के लंड पर हो और उसका हाथ सास के स्तनों पर.. संजय थोड़ा सा करीब आ गया शीला के.. ड्राइवर और पेसेन्जर के बीच एक काला पर्दा था.. जो संजय ने खींचकर आधा बंद कर दिया

पर्दा थोड़ा सा बंद होते ही पता नही शीला को क्या हो गया.. उसने संजय के लंड को अपनी मुठ्ठी में मसल दिया.. और उतने ही जोर से संजय ने शीला के स्तनों को ब्लाउस के ऊपर से दबा दिया.. दोनों सीट के कोने में, परदे के पीछे ऐसे सट गए थे की ड्राइवर को कुछ भी नजर न आए.. संजय ने शीला के चेहरे को पकड़कर अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए.. शीला संजय से भी अधिक आक्रामक होकर उसे चूमने लगी..

संजय: "मम्मी जी, प्लीज जल्दी जल्दी अपने ब्लाउस के हुक खोलकर आपके स्तन बाहर निकालो.. कितने सालों से अपने मन में ही उन्हे नंगे देख रहा हूँ.. आज मेरा वो सपना साकार कर ही दो.. प्लीज.. !!"

शीला: "यहाँ नही.. ड्राइवर देख लेगा तो ??"

संजय: "अरे मम्मी जी.. ड्राइवर रोड देखेगा या पीछे देखेगा..!! जल्दी करो मम्मीजी.. मुझसे रहा नही जा रहा" कहते हुए संजय ने बेरहमी से शीला की चूचियाँ मसल दी.. शीला के कंठ से धीमी चीख निकल गई..

शीला: "क्या कर रहे हो? मुझे दर्द होने लगा.. ऐसे भी कोई करता है क्या !!!"

संजय: "मम्मी जी प्लीज.. अभी के अभी अगर आपने हुक नही खोले तो मेरी जान निकल जाएगी.. मैं अब एक पल के लिए भी सब्र नही कर सकता.. "

उस दौरान शीला ने पेंट की चैन खोलकर अंदर हाथ डाल दिया था.. पेंट की मोटी परत दूर होते ही शीला बस एक कदम दूर थी उस नंगे लंड को अपने हाथों में पकड़ने के.. संजय ने फिर से शीला को खींचकर उसके होंठों को चूस लिया.. जवाबी हमले में शीला ने संजय के अंडरवेर में हाथ डालकर उसका लंड पकड़ लिया और बोली "आह्ह संजय बेटा.. कितना टाइट हो गया है !!"

दोनों उत्तेजना की नई सीमाएं पार करते जा रहे थे.. संजय ने शीला के ब्लाउस के दो हुक जबरदस्त खुलवा दिए.. उसके दूध जैसे गोरे मदमस्त स्तन की आधे से ज्यादा गोलाई बाहर झलकने लगी.. ऐसा लग रहा था जैसे बादलों से चाँद बाहर झांक रहा हो.. संजय के लंड पर शीला की पकड़ मजबूत होती जा रही थी.. शीला की सारी शर्म, वासना की आग में जलकर खाक हो चुकी थी..

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शीला के आदर्श भारतीय नारी के चोले के नीचे एक अति कामुक और थोड़ी सी विकृत स्त्री छुपी हुई थी.. जो बेहद वासना युक्त.. बार बार उत्तेजित होने वाली निम्फोमैनीऐक थी.. हमेशा चुदने के लिए तैयार.. दिन में न जाने कितनी बार उसकी चूत उत्तेजित हो जाती थी.. वासना के कारण शीला को इतने गंदे गंदे विचार आते थे की बात ही मत पूछो

संजय के कठोर लंड को बाहर निकालकर शीला ने मन भरकर देखा.. गोरा गुलाबी लंड था उसके दामाद का.. लाल लाल सुपाड़ा और लंड पर उभरी हुई मोटी नसें.. शीला के हाथों में थिरक रहा था संजय का लंड.. रसिक या जीवा के मुकाबले कद में छोटा पर अच्छा खासा मोटा था उसका लंड.. ऐसे कड़े लंड को देखते ही शीला बेकाबू हो गई.. मुठ्ठी में पकड़कर उत्तेजनापूर्वक वह लंड की त्वचा को आगे पीछे करने लगी.. और ड्राइवर न सुन सके ऐसी धीमी आवाज में संजय के कान में बोली.. "देखने के बाद अब रहा नही जा रहा.. चूसने का मन कर रहा है बेटा"

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"तो देर किस बात की है मम्मी जी.. ले लीजिए मुंह में और मेरी बरसों की तमन्ना को आज पूरा कर दीजिए.. वैसे कैसा लगा ये आपको?"

"अरे मस्त है बेटा.. थोड़ा सा छोटा है पर मोटा है.. मज़ा आएगा.. अभी इतनी छोटी सी जगह में चूसने में मज़ा नही आएगा.. फिर मौका मिलें तब देखेंगे"

आधे बाहर लटक रहे स्तनों को संजय पूरी उत्तेजना से मसल रहा था.. शीला की छाती.. उफ्फ़ उसके मदमस्त चूचियाँ.. कितना तड़प रहा था वो इन्हे नंगा देखने के लिए.. सासुमाँ के नग्न स्तनों को देखने के लिए उसने एक बार बाथरूम में झाँकने की कोशिश की थी पर वैशाली ने उसे पकड़ लिया था.. उसके बाद कितने दिनों तक वैशाली ने उससे बात तक नही की थी..

शीला: "संजय बेटा.. तेरा हाथ बहोत गरम लग रहा है मुझे.. उफ्फ़.. मुझे कुछ कुछ हो रहा है.. आह्ह !!"

संजय: "मम्मी जी, आप बहोत मस्त हो.. आपको देखकर मेरा लंड झटके खा रहा है.. आपके हाथ में ये जितना सख्त हो गया है उतना तो आज से पहले कभी नही हुआ.. क्या कयामत है आपकी चूचियाँ.. वाह !!! दिल करता है की पूरा दिन बस इनसे खेलता ही रहूँ.. उफ्फ़ मम्मी जी.. मुझे इन्हें चूसने का बहोत मन कर रहा है.. आप पूरे बाहर निकाल दीजिए.. दोनों बाहर न निकले तो न सही.. एक तरफ का ही निकाल दो.. मैं एक को चूस लूँगा.. बस थोड़ी ही देर के लिए मम्मीजी.. प्लीज.. !!"

शीला: "ओह्ह संजय बेटा.. खुले रोड पर ऐसा करना खतरनाक हो सकता है.. कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी"

संजय: "इतनी तेज चल रही है कार.. कौन देख लेगा.. चलती हुई गाड़ी में ऐसा करने में बहोत मज़ा आएगा आपको भी.. देखो तो मेरा लंड पागल सा हो रहा है.. एक तरफ मुझे बेटा बेटा कहकर बुलाती हो.. और आपका दूध तो चूसने नही दे रही.. ऐसा कैसे चलेगा!!" शीला के स्तनों को दोनों हाथों से दबाते हुए संजय ने कहा

शीला ने चारों तरफ देखकर सब-सलामत की तसल्ली कर ली.. और ब्लाउस की एक तरफ की कटोरी को ऊंचा कर के.. अपनी ४८ के साइज़ की एक चुची बाहर निकाली.. पूर्णिमा के चाँद जैसा उसका स्तन चमकने लगा.. संजय के दिल की धड़कने जैसे रुक सी गई.. थोड़ी देर के लिए वह शीला के अनमोल स्तन को देखता ही रह गया.. शीला और मजबूती से संजय का लंड हिलाने लगी..

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"ओह्ह बेटा.. अब ईसे देखता ही रहेगा या कुछ करेगा भी.. !!! देख ना.. मेरी निप्पल कितनी सख्त हो गई है.. चूस ले जल्दी जल्दी"

शीला के इतना कहते ही "ओह्ह मम्मी जी" कहते हुए संजय ने अपने वीर्य की पिचकारी छोड़ दी.. उसकी उत्तेजना देखकर हतप्रभ हो गई शीला.. बिना चूसे या चूत में घुसे ही लंड पिचकारी छोड़ देगा ऐसा अंदाजा नहीं था शीला को.. अपने लंड की इस हरकत से संजय शरमाकर रह गया.. जैसे उसकी मर्दानगी पर दाग लग गया हो.. वो भी क्या करता.. शीला के नंगे चुचे का जादू ही कुछ ऐसा था.. अच्छे अच्छों का देखते ही पानी निकाल दे !!


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शीला संजय की परिस्थिति समझ रही थी.. उसने संजय का हाथ अपने खुले स्तन पर रखते हुए कहा "संजय, तेरे लंड में कितना वीर्य भरा हुआ है?? अभी से छलकने लगा "

संजय झुककर शीला की गोद में सर रखकर लेट गया.. और छोटे बच्चे की तरह बच-बच आवाज करते हुए शीला की निप्पल चूसने लगा.. जितना वो चूसता गया उतना उसका लंड खड़ा होता गया.. जैसे वो शीला की निप्पल से एनर्जी ड्रिंक चूस रहा हो.. लंड फिर से खड़ा हो गया.. नए सिरे से सख्त हुए लंड को देखकर शीला के भोसड़े को चुदने की आशा जगी..

फिर से टाइट होकर उछल रहे लंड को पकड़ कर शीला झुकी और एक किस कर दिया उसने लाल टोपे पर.. शीला के होंठों का स्पर्श होते ही संजय का लंड ओर खिल उठा.. और ज्यादा सख्त होकर अप-डाउन करने लगा.. शीला के स्तन भी टाइट होकर लाल हो चुके थे.. वह झुककर लंड को चूस रही थी और उसका बाहर लटक रहा स्तन संजय की जांघ पर रगड़ रहा था.. नरम नरम स्तन को अपनी जांघ पर घिसता देख संजय सातवे आसमान पर उड़ने लगा.. हाथ नीचे डालकर वह शीला के स्तन को मींजने लगा॥

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शीला आँखें बंद कर अपने दामाद का लंड कुल्फी की तरह चूस रही थी.. मुंह से ढेर सारी लार निकालते हुए जब काफी देर तक चूसने के बाद उसने लंड को मुंह से बाहर निकाला तब उसका गोरा लंड ऐसा लग रहा था जैसे अभी नहाकर बच्चा बाथरूम से बाहर भीगा हुआ निकला हो.. इतना सुंदर लग रहा था वह टाइट लंड.. शीला को देखते ही प्यार आ गया.. वह फिर से चूसने लगी.. आधा घंटा होने को आया लेकिन शीला लंड को छोड़ने का नाम ही नही ले रही थी.. संजय बड़े ही ताज्जुब से अपनी सास की हवस को देखता रहा.. उसे आश्चर्य हो रहा था.. कितनी देर से मम्मी जी लंड चूस रही है? थक ही नही रही.. !!! गज़क की पागल है ये तो मेरे लोडे के लिए.. बाकी सारी लड़कियां और औरतें तो एक मिनट के लिए मुंह में लेने में भी कितने नखरे करती है!!! पर ये तो बिना कहे बस चूसती ही जा रही है..

आखिर शीला थक गई पर फिर भी उसने लंड मुंह से बाहर नही निकला.. मुंह में लंड रखकर ही वह पड़ी रही.. थोड़ी मिनटों के लिए रीलैक्स होकर वह वापिस चूसना चालू कर देती.. दोनों में से कोई कुछ भी नही बोल रहा था.. क्या बोलते? और क्यों बोलते? जब लंड और चूत बात कर रहे हो तब शब्दों की जरूरत ही कहाँ पड़ती है.. !!

अपनी उत्तेजना को किसी भी किंमत पर शांत करने के मनसूबे से शीला लंड को थन की तरह चूस रही थी.. संजय नीचे हाथ डालकर शीला के बाएं स्तन को जोर जोर से दबा रहा था.. शीला अपनी जीभ का ऐसा कमाल दिखा रही थी की संजय कराह उठता और जोर से शीला का स्तन दबा देता.. संजय को आश्चर्य इस बात का था की इतनी जोर जोर से चुची दबाने पर भी शीला के मुंह से एक उफ्फ़ तक नही निकलती थी.. क्या मम्मी जी को दर्द नही होता??

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शीला को दर्द हो रहा हो या ना हो.. पर संजय का लंड अब दुखने लगा था.. एक बार झड़ने के बाद फिर से सख्त हुए लंड को अब ४५ मिनट से शीला चूसे जा रही थी.. थकने का नाम ही नहीं ले रही थी.. संजय अब तक शीला की चूत तक पहुँच नही पाया था.. उसने एक दो बार घाघरे में हाथ डालने की कोशिश तो की थी पर शीला ने उसे रोकते हुए समझाया था की अभी फिलहाल गाड़ी के अंदर वह उसका लंड चूत में नही ले पाएगी.. शीला इसलिए भी मना कर रही थी क्योंकि उसे पता था की एक बार अगर संजय ने उसके भोसड़े को छु लिया.. फिर वह आपे से बाहर हो जाएगी..

शीला को इतनी कामुकता से लंड चूसते देखकर संजय हतप्रभ था.. कौन किसको इस्तेमाल कर रहा है इसका पता ही नही चल रहा था.. सामान्यतः पुरुष ही स्त्री को अपनी इच्छा अनुसार भोगता है.. पर यहाँ तो शीला ही संजय के लंड के भोग का मज़ा ले रही थी.. मस्ती में चूस रही शीला कभी कभी इतनी उत्तेजित हो जाती की अपने दांतों से संजय के सुपाड़े को हल्के से काट लेती.. संजय डर गया.. कहीं हवस के मारे वह उसका लंड खा न जाए.. अगर ऐसा हुआ तो अखबार में कैसी हेडलाइन्स छपेगी.. !! "हवस में अंध सास ने अपने दामाद का ही गुप्तांग काट खाया"

संजय: "मम्मी जी, प्लीज.. अब बस भी कीजिए.. मेरा फिर से निकल जाएगा॥" पर संजय की यह बात शीला के कानों पर जैसे पड़ी ही नही थी.. उसने संजय की तरफ देखा तक नही.. ऊपर से अपनी मुठ्ठी में आँड़ों को ऐसे दबा दिया की संजय दर्द के मारे सीट के ऊपर १ फुट उछल गया.. संजय के ऊपर होते ही शीला ने एक हाथ नीचे डाला और संजय की गांड में अपना अंगूठा घोंप दिया..

"मम्मी जी.. ओह्ह गॉड.. " कहते हुए संजय के लंड से गरम चिपचिपा वीर्य शीला के मुंह में रिसने लगा.. शीला इतनी जोश में थी की पिचकारी निकलते ही पी जाती.. लंड ने तीन से चार पिचकारियाँ छोड़ी और शीला ने एक बूंद भी नही छोड़ी.. लाल टोपे को चाट चाट कर शीला ने साफ कर दिया.. बिना मुंह बिगाड़े या किसी घिन के वीर्य को चाट रही अपनी सास को देखकर संजय हक्का-बक्का रह गया.. उसने आज तक कितनी लड़कियों और औरतों के साथ बिस्तर गरम किया था.. लेकिन इतनी कामुक औरत का सामना आज तक उसे कभी नही हुआ था..

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आखिर जब शीला ने लंड को मुंह से निकाला तब वह बेजान मुर्दे की तरह गिर गया.. शीला के चेहरे पर विजय की मुस्कान थी.. और संजय के चेहरे पर तृप्तता के भाव थे.. दोनों कुछ देर तक वैसे ही बैठे रहे.. शीला का बायाँ स्तन अभी भी बाहर था.. और संजय का लंड बेजान होकर सो रहा था.. शीला ने झुककर एक आखिरी बार उस निर्जीव लंड को चूमा.. और उसे पेंट के अंदर डालकर चैन बंद कर दी.. संजय ने अपने शर्ट के बटन बंद कीये और अपने बाल भी ठीक कर लिये.. शीला ने भी अपना घाघरा ठीक करते हुए अपनी चुत को सहलाया.. कामरस से गीली चुत में दो उँगलियाँ डालकर वह उँगलियाँ संजय के नाक के पास ले गई.. अपने भोसड़े की गंध सुँघाते हुए वह धीमे से बोली "सूंघ कर बताओ बेटा.. किसके जैसी गंध आ रही है? वैशाली जैसी या फिर.... चेतना जैसी ???"

चेतना का नाम सुनते ही संजय के होश उड़ गए.. साला ये NEET की तरह मेरा पेपर किसने लीक कर दिया? जरूर चेतना ने ही बताया होगा.. संजय को सोच में पड़ा हुआ देख.. शीला ने अपनी गीली उंगलियों को संजय के गालों पर और होंठों पर रगड़कर उसके मुंह में डाल दिया.. और बोली "अभी तुम चाट तो नही पाओगे.. पर स्वाद तो चख लो.. "

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बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है शीला गोवा की बाते याद करके गरम हो गई और संजय के पहल करने पर उसको मना नहीं कर पाई और दोनो में चूदाई की शुरुआत हो गई है संजय शीला ही हवस देखकर हैरान हो गया
 

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शीला के इस अद्भुत और पागल कर देने वाले मुखमैथुन से पूर्ण संतुष्ट होकर संजय आराम से बैठा था

अपने खुले स्तन को दबाकर ब्लाउस के अंदर घुसाते हुए शीला ने कहा "तुम्हें मज़ा आया बेटा??"

संजय: "क्या कहूँ मम्मीजी.. !! मेरे पास बयान करने के लिए शब्द नही है.. आपने तो मुझे पागल बना दिया.. वैशाली को हाथ जोड़कर विनती करता हूँ तब कहीं जाकर एकाध मिनट के लिए मुंह में लेती है.. और वो भी इतनी घिन के साथ की चुसाई का कोई मज़ा ही नही आता.. पर जिस उत्तेजना से आपने आज चूसा.. भई वाह.. !! मज़ा ही आ गया.. !!"

संजय की जांघ पर हाथ फेरते हुए शीला ने कहा "बेटा.. मैं अपने साथी को आनंद देने के लिए नही चूसती.. बल्कि इसलिए चूसती हूँ क्योंकि मुझे मज़ा आता है.. चूसना मुझे बेहद पसंद है.. खड़ा लंड देखने के बाद मैं अपने आप को रोक ही नही पाती.. तुम्हारा लंड चूसने में मुझे बहोत मज़ा आया.. गोरा लंड काफी कम देखने को मिलता है.. तुम्हारे पापा जी का भी काला है.. ब्लू फिल्मों में जब मैं गोरा लंड देखती हूँ तब इतना मन करता था की कभी ऐसा लंड चुसूँ.. आज मेरी दिली तमन्ना पूरी हो गई.. "

संजय: "मम्मी जी, जैसे आपको मेरे लंड का रंग पसंद है.. वैसे ही मुझे आपकी मदमस्त छातियाँ पागल बनाती है.. आप जब दबाकर अपना स्तन ब्लाउस में डाल रही थी तब मेरे लंड में फिर से झटका लग गया.. मेरी एक रीक्वेस्ट है आप से.. मानोगी?"

शीला: "हाँ हाँ.. बोलो ना बेटा.. "

संजय: "अब हम इतने खुल ही चुके है.. तो मैं चाहता हूँ की आप अपना एक स्तन बाहर खुला ही रखिए.. ताकि मैं जब चाहूँ आपकी गुलाबी निप्पल को चूस सकु और स्तन को दबा सकूँ.. आपके नंगे स्तन की त्वचा को छूना बहोत अच्छा लगता है.. जैसे आपको मेरा गोरा लंड चूसने की इच्छा होती है वैसे ही मैं आपके स्तन को घंटों तक चूसना चाहता हूँ.. मैं जब कहूँ आप अपने स्तन के दर्शन खोलकर करवाना मुझे.. प्लीज.. अभी हमारे पास मौका है.. घर जाकर तो पता नही कब ऐसा मौका फिर मिलेगा.. !!!

अपने दामाद के मुंह से स्तनों की तारीफ सुनकर खुश हो गई शीला.. वैसे अपने स्तनों की तारीफ सुनना उसके लिए कोई नई बात नही थी.. जिस किसी ने भी उसके स्तन खुले देखे थे वह उसका दीवाना हो गया था..

शीला: "तुम चिंता मत करो.. वो सब मैं मेनेज कर लूँगी.. तुम्हें तुम्हारी पसंदीदा चीज के लिए तड़पना नही पड़ेगा ये वादा है मेरा.. पर मुझे भी जब मेरी पसंदीदा चीज को देखने या चूसने का मन करें तब तुम्हें भी मेरा खयाल रखना पड़ेगा"

संजय: "आप निश्चिंत रहिए मम्मी जी.. आप जब कहोगी मैं लंड खोलकर दे दूंगा आपको.. "

जवाब में शीला ने संजय के कंधे पर हाथ रख दिया और उसके शर्ट का पहला बटन खोलकर अपना हाथ अंदर डाल दिया.. बालों वाली छाती पर हाथ फेरते हुए उसने दूसरा बटन भी खोल दिया.. इसके साथ ही संजय की आधी छाती खुली हो गई.. उसकी मजबूत छाती देखकर शीला की सिसकी निकल गई.. उस मर्दाना छाती पर शीला ने अपना सर रख दिया.. जैसे प्रेमिका अपने प्रेमी की छाती पर रखती है.. अपने कोमल गालों को संजय की छाती के बालों पर रगड़ते हुए उसने संजय की निप्पल पर अपनी जीभ फेर दी.. एक ही सेकंड में संजय उत्तेजित हो गया..

संजय: "ओह्ह मम्मी जी, ये क्या कर दिया आपने?"

शीला अब संजय की छाती पर जगह जगह चाटने लगी.. संजय ने भी अपना हाथ शीला की क्लीवेज में डाल दिया और उसके स्तनों को दबाने लगा.. दबाते दबाते उसने शीला के ब्लाउस के दो बटन खोल दिए.. और हाथ को और अंदर धकेलने गया पर वहाँ पर ब्रा की किलेबंदी थी.. हाथ अंदर डालने का प्रयास निष्फल हो गया.. बस उंगलियों से ब्रा के ऊपर से स्तनों को दबाते हुए संजय को देख शीला को हंसी आ गई.. उसने खुद ही एक स्तन को ब्रा से बाहर निकालकर संजय के सामने पेश कर दिया..

अद्भुत कलाबाज थी शीला.. उसकी एक एक हरकत में मर्द को पागाल बना देने की क्षमता थी.. दोनों मस्ती में मस्त थे तभी ड्राइवर ने रंग में भंग डाल दिया.. परदे के पीछे से उसने कहा "साहब, चाय पानी के लिए आगे गाड़ी रोकनी पड़ेगी.."

संजय: "ठीक है.. कोई अच्छी सी होटल देखकर गाड़ी रोक देना.. मुझे भी फ्रेश होना है " शीला के सामने देखकर उसने आँख मारी.. शीला शरमा गई..

एक होटल के बाहर इनोवा खड़ी हो गई.. संजय और शीला नीचे उतरे.. आसमानी रंग की पारदर्शक पतली साड़ी का पल्लू शीला ने ठीक किया.. अपने बाल और ब्लाउस भी ठीक कीये.. अपने दोनों उरोजों को पल्लू से ढँक दिया..

संजय: "मम्मी जी, एक तरफ की कटोरी तो खुली रखो.. यहाँ हमारी जान पहचान का तो कोई है नही.. !!"

शीला: "पागल.. ये कोई सबको दिखाने वाली चीज थोड़े ही है.. सिर्फ चुनिंदा लोगों को ही इसके दर्शन मिलते है" हँसते हुए उसने कहा

संजय: "पर मेरे लिए तो खुले रखिए.. प्लीज मम्मी जी.. मुझे ऐसे ब्लाउस के ऊपर से देखने में भी बहोत मज़ा आता है"

शीला: "जिद मत करो बेटा.. यहाँ कितने सारे लोग है.. वो क्या सोचेंगे? कार में बैठकर फिर तुम्हें खेलने दूँगी.. ठीक है !!!"

संजय: "नही मम्मी जी.. मुझे खुलेआम दिखाइए.. ऊपर ऊपर से.. ऐसा मौका हमें दोबारा नही मिलने वाला.. "

ड्राइवर गाड़ी से उतरकर चला गया था.. संजय और शीला अकेले थे.. कार की आड़ में संजय ने शीला का पल्लू हटाकर एक स्तन खुला कर दिया.. हालांकि स्तन ब्लाउस के तो अंदर ही था.. "बस ऐसे ही रहने दीजिए.. जबरदस्त लग रहा है" संजय ने कहा

शाम के साढ़े छह बज रहे थे.. होटल में २०-२५ के करीब लोग बैठे थे.. सब अपनी मस्ती में मस्त थे.. पर शीला ने जैसे ही होटल में एंट्री ली.. नाश्ता कर रहे लोगों का निवाला गले में अटक गया.. पारदर्शक साड़ी पहनी हुई शीला का गोरा मांसल पेट और उसके बीचोंबीच गहरी सेक्सी नाभि.. आह्ह.. देखने वालों के होश उड़ाने के लिए काफी थे.. उस गोल नाभि को देखकर किसी का भी मन कर जाएँ अंदर लंड डालने को.. सब की नजर शीला के गोलाईदार जिस्म पर चिपक गई थी.. जब तक शीला कुर्सी पर बैठ न गई तब तक सारे देखने वाले उसके शरीर को अपनी आँखों से चोदते रहे.. जानते हुए भी अनजान होकर शीला बड़ी ही बेफिक्री से अपने दामाद के हाथों में हाथ डालकर मस्ती से बैठी थी..

शीला यह जानती थी की पल्लू हटने के बाद नजर आ रही एक तरफ की ब्लाउस की कटोरी को ही तांक रहे थे सारे लोग.. पर अपने दामाद की खुशी के लिए उसने उस हिस्से को ढंका नही.. सब दंग हो गए थे शीला की खूबसूरती को देखकर.. शीला संजय की हथेली को अपने हाथ में लेकर सहला रही थी.. और झुककर उसे अपनी क्लीवेज के दर्शन भी दे रही थी.. उनके अगल बगल के टेबल खाली थे इसलिए उनकी बात किसी को भी सुनाई नही दे रही थी

संजय: "मम्मी जी, आपने जबरदस्त ओरल सेक्स किया आज तो.. अभी तक लंड दर्द कर रहा है.. बिना लंड चुत में डाले दो बार ठंडा कर दिया आपने.. ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ है"

शीला मुसकुराती रही.. और अपनी तारीफ सुनती रही.. वेटर आकर बिस्किट और चाय रखकर चला गया.. एक कप संजय को देते हुए शीला ने पूछा "कितने बजे पहुंचेंगे हम? देर रात तक पहुँच जाएंगे?"

संजय: "नही मम्मी जी, रात तो हमें किसी होटल में ही गुज़ारनी होगी.. कल दोपहर से पहले पहुँच जाएंगे.. एक रात गोवा में रुकेंगे.. फिर निकल जाएंगे.. वैशाली के लौटने से पहले हम घर पहुँच चुके होंगे" अपने दामाद की प्लैनिंग पर गर्व हुआ शीला को

दोनों चाय की चुसकियाँ लेते रहे.. संजय की नजर शीला की गोल चुची पर अब भी चिपकी हुई थी "आहह मम्मी जी, दिल करता है की यहीं खोलकर चूस लूँ.. "

शीला हँसते हुए चाय पीती रही और बोली "तुम इसकी झलक तो देख पा रहे हो.. मेरे नसीब में तो अभी वो भी नही है.. अभी अगर मुझे तेरा गोरा गोरा देखने का मन हो तो मैं क्या करू?"

संजय: "मम्मी जी, कार में खोलकर दे दूंगा आपको.. जितना मर्जी खेल लेना.. "

शीला ने टेबल के नीचे से अपना पैर उठाकर संजय के लंड पर रख दिया.. पैर के अंगूठे से लंड की खबर लेकर शीला ने कहा "ये तो फिर से तैयार हो गया.. !!! क्या बात है बेटा !! इतने समय में ही तीसरी बार........!!!!!"

संजय: "मम्मी जी.. मैं तो आखिर मर्द हूँ.. आप के साथ अगर कोई किन्नर भी होता तो उसे भी उत्तेजित कर देती आप.. "

शीला ने अपने पैरों से ही संजय का लंड दबा दिया..

शीला: "जल्दी जल्दी चाय पी ली बेटा.. अब मुझे ईसे चूसना ही पड़ेगा.. और नही रुक सकती मैं.. " चाय खतम कर शीला खड़ी हो गई.. और कार की तरफ चलने लगी.. आखिरी घूंट खतम कर संजय भी तुरंत शीला के पीछे भागा
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अपनी प्रेमिका कविता की पीठ पर हाथ सहलाते हुए उसे शांत कर रहा था पिंटू.. पीयूष के ऐसे बर्ताव से कविता के दिल को गहरी ठेस पहुंची थी.. ..पिंटू जल्दी से जल्दी बाहर निकल जाना चाहता था क्यों की उसे डर था किसी के आ जाने का.. लेकिन कविता ने उसे रोक लिया और अपने बाहुपाश में जकड़ कर किस कर लिया.. और बोली "पिंटू.. पीयूष मेरे साथ हमेशा ऐसा ही बर्ताव करते हुए मेरा दिल तोड़ देता है.. मुझे पता नही चल रहा की मैं क्या करू? इस कठिन समय में तू मेरे साथ रहना.. प्लीज!!"

पिंटू: "तू चिंता मत कर कविता.. मैं उसे समझाऊँगा.. ठीक है !! " कविता को अपनी बाहों में कसकर पकड़ते हुए उसने कहा "कविता.. मेरा यहाँ ज्यादा देर तक रुकना ठीक नही होगा.. पीयूष को अगर जरा सी भी भनक लग गई तो गजब हो जाएगा.. मैं जा रहा हूँ.. पर तुम तैयार होकर रात की पार्टी में जरूर आना.. मैं इंतज़ार करूंगा तेरा.. ऐसे तैयार होकर आना की देखने वाले देखते ही रह जाएँ.. !! दूर से ही सही.. मैं तुझे देख तो पाऊँगा.. " कविता को एक आखिरी किस करके पिंटू बिस्तर से खड़ा हो गया.. और कमरे से बाहर निकल गया

बालकनी में खड़ी हुई वैशाली ने देखा की पीयूष और मौसम हाथ में गिफ्ट लिए हुए आ रहे थे.. मौसम के साथ पीयूष को इतना खुश देखकर वैशाली के दिल पर आरी चल गई.. बहोत गुस्सा आया उसे मौसम पर.. पूरा दिन जीजू जीजू करती रहती है कमीनी.. पीयूष भी अपनी साली पर लट्टू हो कर उसके आगे पीछे घूमता रहता है.. क्या कहें इन मर्दों को?? इन सब से अच्छा तो मेरा हिम्मत है.. किसी को आँख उठाकर भी नही देखता.. मौसम और पीयूष के बीच कैसे संबंध होंगे? साली और जीजा के संबंधों के बारे में तो बहोत कुछ कहा गया है.. आज कल की लड़कियों को अपने चारित्र से उतना लगाव होता नही है.. वो शादी से पहले के सेक्स को नेट-प्रेक्टिस मानती है.. वैशाली को अपनी कॉलेज की सहेली मोनिका की याद आ गई.. वैशाली और उनकी सारी सहेलियाँ मोनिका के एन्गैज्मन्ट पर गई थी.. उसके बाद जब भी वो मिलती तब सारी लड़कियां उसे घेर लेती.. ये पूछने के लिए की उसका होने वाला पति.. जतिन.. उसका कैसा खयाल रखता है? कितनी बार फोन करता है? और खास कर ये की.. उसके साथ अकेले में क्या क्या करता है.. !!!! दो ही महीनों में उनकी सगाई टूट गई.. उसे पूछने पर यह पता चला की.. इतनी बार मिलने के बावजूद जतिन उसके साथ कुछ करता ही नही था.. सिर्फ बातें करता था.. मौसम भी वैसी लड़कियों जैसी ही लगती थी वैशाली को.. मुझे यकीन है की मौसम अपने स्तन तो किसी न किसी से दबवाती ही होगी.. वरना बगैर किसी के दबाए.. उसके स्तन इतने मस्त कैसे हो सकते है?? जरा से भी ढीले-ढाले नही है.. जिस तरह से वो और पीयूष हंस हंस कर बात करते है.. मुझे पक्का दाल में कुछ काला लग रहा है..

कितना शंकाशील होता है स्त्री का मन.. !!! पीयूष के संग अपनी जिस्म की आग ठंडी करने की आशा से वैशाली यहाँ आई थी पर अब उसे लगने लगा था की कविता और मौसम दोनों के रहते हुए उसका पीयूष से मिलन नामुमकिन सा था.. पीयूष और मौसम को वह जाते हुए देखती ही रही.. उसके विचारों में भंग तब पड़ा जब किसी ने पीछे से उसकी आँखों पर हथेलियाँ दबा दी.. और उसकी गर्दन को चूम लिया.. इतनी हिम्मत कौन कर सकता है?? पीयूष का स्पर्श तो वो जानती थी.. और वैसे भी उसने अभी अभी पीयूष को मौसम के साथ जाते हुए देखा था.. फिर यह कौन था ??

"कौन है??" कहते हुए वैशाली ने अपनी आँखों से हाथ हटाने की कोशिश की पर पीयूष ने एक हाथ उसकी आँख पर दबा रखा था और दूसरे हाथों से वह उसकी चूचियाँ रगड़ने लगा.. मर्द के स्पर्श के लिए तड़प रही वैशाली.. स्तनों पर स्पर्श होते ही बेचारी चुप हो गई.. पीयूष ने उसकी आँखों से हाथ हटा लिया.. वैशाली पीयूष की ओर मुड़ी.. उसे देखते ही वैशाली के चेहरे की चाँदनी खिल उठी.. दो मिनट पहले मौसम के साथ देखकर पीयूष को वो गालियां दे रही थी.. पर पीयूष का एक स्पर्श होते ही उसका सारा गुस्सा मोम की तरह पिघल गया..

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वैशाली: "नालायक.. कुछ शर्म नाम की चीज है की नही!!! ऐसे खुले में मेरे बॉल दबा रहा है.. अगर तेरी कविता ने देख लिया तो यहाँ माउंट आबू में ही तुझे तलाक दे देगी.. " उसने पीयूष को झाड दिया.. बात भी सही थी.. होटल की गॅलरी में कोई भी देख लेता.. पर गनीमत थी की किसी ने देखा नही था..

पीयूष: "ये बात है!!! तब तो मैं जरूर करूंगा.. " कहते हुए पीयूष ने वैशाली को बाहों में भरते हुए किस कर लिया.. उतना ही नहीं.. वैशाली के टीशर्ट में हाथ डालकर उसके दोनों बेचैन बबलों को जोर से मसल दिए.. निप्पलों पर मर्दाना स्पर्श होते ही वैशाली की चुत ने विद्रोह कर दिया.. वह पीयूष का हाथ पकड़कर अपने कमरे में ले गई और खिड़की का पर्दा बंद करके पीयूष के गले लग गई.. पीयूष की गर्दन पकड़कर अपनी ओर खींचते हुए वह उसके होंठों को चूसती ही रही.. हतप्रभ होकर पीयूष वैशाली के इस आक्रमण का आनंद ले रहा था.. वैशाली ने खुद ही अपना टीशर्ट ऊपर कर लिया और साथ में ब्रा भी.. मक्खन के गोलों जैसी चूचियाँ खुली हो गई.. गोलमटोल मस्त चूचियों को देखते ही पीयूष का लंड ९० डिग्री का कोण बनाते हुए खड़ा हो गया.. उसने झुककर एक स्तन की निप्पल मुंह में भर ली.. ऐसे चूसने लगा जैसे सदियों से भूखा हो.. दूसरे खाली हाथ से वह उस तरफ के स्तन को पकड़कर उसकी निप्पल को मरोड़ता रहा.. कभी वह इस स्तन को चूसता तो कभी उस स्तन को..

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पीयूष जब बबले चूस रहा था तब वैशाली.. अनुभवी चुदक्कड़ की तरह पीयूष के पेंट में हाथ डालकर लंड की सख्ती नाप रही थी.. और चेक कर रही थी की क्या वह उसकी चूत में घुसने के लिए तैयार था या नही !!! मौसम बाथरूम में जीजू के स्पर्श को याद करते हुए अपनी क्लिटोरिस को रगड़ रही थी.. वह झड़कर पार्टी में जाने के लिए तैयार होना चाहती थी
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पीयूष को सबक सिखाने के लिए और पिंटू को खुश करने के लिए.. कविता ने जबरदस्त ड्रेस पहन लिया था.. नीले कलर के पतले से कपड़े से बना टॉप और नीचे एकदम छोटी सी टाइट शॉर्ट्स.. वेक्स करवाए हुए गोरे दूध जैसे उसके पैर और जांघें देखकर अच्छे अच्छों का पानी निकल जाएँ.. एक तो वो एकदम स्लिम थी.. रंग गोरा था.. चेहरे एकदम क्यूट था.. और उसके पतले बदन के मुकाबले स्तन थोड़े से बड़े थे.. पिंटू ने गिफ्ट किया हुआ महंगा परफ्यूम छिड़क कर वह महकने लगी.. परफ्यूम की खुशबू से उसे ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे पिंटू उसके आसपास ही था..



अभी एक घंटे की देर थी पार्टी शुरू होने में.. कविता ने नीला टॉप उतार दिया.. और पिंटू का पसंदीदा गुलाबी स्लीवलेस टॉप पहनने के लिए बाहर निकाला.. अभी वह केवल ब्रा और शॉर्ट्स पहने हुए थी.. इसी अवस्था में कविता झुककर पुराने कपड़े बेग में रख रही थी तभी उसके कमरे का दरवाजा खुला.. !!! और राजेश ने अंदर प्रवेश किया.. !!! पिंटू के जाने के बाद दरवाजा बंद करना याद ही नही आया था कविता को.. !!! एक पल के लिए तो कविता को पता नहीं चला की क्या छुपायें.. पर राजेश ने उसकी परेशानी समझते ही "ओह्ह आई एम सॉरी.. मैं पीयूष से मिलने आया था" कहते हुए मुड़ गया और कमरे से बाहर निकल गया.. किसी पराए मर्द के सामने अपने जिस्म की नुमाइश होने से कविता अपसेट हो गई..

उसने वापिस अपने ड्रेसिंग पर ध्यान देने का सोचा.. पिंटू की अपेक्षा पर खरा उतरना चाहती थी वो.. अपना हाथ पीछे ले जाते हुए उसने ब्रा के हुक खोले.. और सोचती रही.. ऐसा क्या पहनूँ जिससे सब के होश उड़ जाएँ?? आज तो सारे बंधन तोड़कर ऐसे तैयार होना है की सब चोंक जाएँ.. ससुराल में तो ढेर सारी पाबंदियाँ रहती है.. पर यहाँ वो खुलकर जीना चाहती थी.. वह आज पिंटू को खुश कर देना चाहती थी.. ज्यादा उत्तेजक कपड़े पहनने पर पीयूष को बुरा लग सकता था.. पर पीयूष के बारे में वे ज्यादा सोचना नही चाहती थी.. जब से आया तब से किसी न किसी के अंदर घुसा ही रहता था वो.. कविता के सामने देखने का वक्त ही कहाँ था उसके पास.. !! कविता सोचने लगी.. मैं वहीं पहनूँगी जो मुझे पसंद आए और खासकर पिंटू को पसंद आयें.. बेचारा कितना खयाल रखता है मेरा.. पीयूष को मेरी कदर ही नही है.. घर की मुर्गी दाल बराबर.. !! उदास हो गई कविता.. पर पिंटू की याद आते ही वह फिर से आईने में अपने नग्न सौन्दर्य को देखकर आहें भरने लगी.. काश मेरी शादी पिंटू से हुई होती!!!

कविता आज पीयूष को सबक सिखाना चाहती थी.. उसने एक क्रान्तिकारी निर्णय लिया.. बिना ब्रा पहने ही उसने पिंटू का पसंदीदा गुलाबी टॉप चढ़ा लिया.. माय गॉड.. बिना ब्रा के टॉप पहनकर वह खुद ही शरमा रही थी.. उसकी इस हरकत पर सबका ध्यान जाने वाला था ये तो तय था.. नही नही कविता.. इस तरह लोगों के सामने नही जा सकते.. कविता वापिस टॉप उतारकर ब्रा पहनने ही वाली थी तब वापिस पीयूष की याद आ गई.. उस कड़वाहट ने उसे बिना ब्रा के ही टॉप पहनने के लिए राजी कर लिया..

पतले कपड़े वाले टॉप से उसके उरोज दबाकर देखे.. पत्थर जैसी सख्त चूचियाँ थी.. कुछ दिनों से उनका कोई उपयोग भी तो नही हुआ था.. !! कविता ने अपने बाल सँवारे.. और बालों की एक लट को कान के पीछे दबा दिया.. कातिल लग रही थी कविता.. बिना ब्रा के उसके स्तन.. ज्यादा बड़े नही.. और छोटे भी नही.. गुलाबी टॉप में बेहद सुंदर लग रहे थे.. कविता ने कमरे के अंदर चलकर देखा.. की कैसा लग रहा है.. अपने स्तनों को थिरकते देख वह खुद ही शरमा गई.. आज तो देखने वालों के होश ही उड़ जाने वाले थे.. पेंट की चैन टूट जाएगी सब की..

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कविता तैयार होकर मौसम और फाल्गुनी के कमरे की तरफ जाने लगी..

दूसरी तरफ पीयूष का लंड घुटनों के बल बैठकर चूस रही थी वैशाली.. थोड़ी देर चूसते ही सख्त गन्ने जैसा हो गया पीयूष का लंड..

"मस्त हो गया है पीयूष.. चल डाल दे अंदर.. !!" कहते हुए वैशाली मुड़कर झुक गई.. पीयूष ने उसका स्कर्ट ऊपर किया और पेन्टी को घुटनों तक सरका दिया.. उसके गोरे कूल्हों पर एक थप्पड़ लगाकर वह अपनी उंगलियों से चूत का छेद ढूँढने लगा.. छेद पर सुपाड़ा रखकर उसने एक धक्के में ही पूरा लंड अंदर डाल दिया.. वैशाली के मुंह से आनंद भरी चीखी निकल गई..

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"ओह्ह.. मर गई पीयूष.. आह्ह.. जल्दी जल्दी कर.. " पीयूष फूल स्पीड में धक्के लगाने लगा.. वैशाली की कमर को कसकर पकड़कर वो धक्के लगाए जा रहा था.. ए.सी. ऑन था फिर भी दोनों पसीने से तरबतर हो गए.. थोड़ी ही देर में वैशाली चुदकर ठंडी हो गई और पीयूष ने बेज़ीन में अपना वीर्य गिरा दिया.. वैशाली ने तुरंत कपड़े पहने और पीयूष को बाहर धकेला ताकि कोई देख न ले.. अपना काम हो गया अब तू जल्दी से निकल

"पार्टी मे मिलते है.. बाय" पीयूष चला गया..

पीयूष अब मौसम और फाल्गुनी के कमरे में गया.. मौसम नहा रही थी और फाल्गुनी कोई इंग्लिश मूवी देख रही थी.. फाल्गुनी की जांघ पर हल्की सी चपत लगाते हुए उसने पूछा "मौसम कहाँ है ?"

"वो नहा रही है जीजू.. पता नही बहोत देर लगा दी आज उसने.. " तभी फाल्गुनी की नजर पीयूष के लंड वाले हिस्से पर गई "जीजू, आप की पोस्ट ऑफिस खुली हुई है" कहते हुए वह हंसने लगी.. पीयूष को पता नही चला की वो क्या कहना चाहती थी

"क्या पागलों की तरह हंस रही है?" पीयूष ने कहा.. तभी फाल्गुनी ने उंगली से पेंट की तरफ इशारा किया.. हड़बड़ाहट में चैन बंद करना भूल गया था पीयूष.. उसका लंड अब भी थोड़ा सख्त था इसलिए अंदर उभार भी नजर आ रहा था.. पीयूष ने शरमाकर अपनी चैन बंद करने की कोशिश की.. पर लंड सख्त होने की वजह से बंद करने में दिक्कत आ रही थी.. अभी थोड़ी देर पहले ही वैशाली की चूत से बाहर निकला था.. उसका नशा उतरा नही था लंड का.. आधी चैन बंद करके ही पीयूष को संतोष लेना पड़ा.. फाल्गुनी की नजर बार बार उसके उभार पर जा कर अटक जाती थी.. पीयूष का वो उभरा हुआ हिस्सा फाल्गुनी के नादान मन मे अजीब सी गुदगुदी पैदा कर रहा था..

तभी टीवी पर चल रहे मूवी मे हीरो और हीरोइन एक दूसरे को किस करने लगे.. फाल्गुनी शरमा गई और चैनल बदलने के लिए रीमोट ढूँढने लगी.. वैसे उसने इंग्लिश मूवी लगाई ही इसलिए थी ताकि ऐसे सीन देख सके वरना वो आस्था चैनल न लगाती!!! पर किसी पुरुष के सामने ये सीन चल जाने पर वह शर्म से पानी पानी हो गई.. आधे घंटे से मूवी मे कोई सीन नही आया.. और पीयूष की हाजरी मे ही सब शुरू हो गया.. मौसम की बात अलग थी.. वो पीयूष की साली थी.. लेकिन पीयूष के सामने फाल्गुनी अपनी मर्यादा मे ही रहती.. जब मौसम और पीयूष किसी नॉनवेज जोक पर हँसते तब फाल्गुनी शरमाकर चुप ही रहती.. मौसम हमेशा उसे टोकती की वह सब के साथ ज्यादा बात नही करती.. पर पता नही क्यों.. सेक्स को लेकर कोई बात आते ही फाल्गुनी के पसीने छूट जाते.. और वो थरथर कांपने लगती.. सेक्स के प्रति इस अभिगम के बारे मे मौसम ने कई बार फाल्गुनी से पूछा पर उसने कभी कुछ बताया नही.. मौसम को ऐसा लगता था जैसे फाल्गुनी कुछ कहना तो चाहती थी पर कह नही पाती थी

पीयूष बेफिक्र होकर सोफ़े पर बैठकर टीवी देखने लगा.. अभी अभी खतम हुए किसिंग सीन को लेकर फाल्गुनी काफी अपसेट थी.. पर पीयूष को इससे कोई फरक नही पड़ा.. वो तो बस मौसम को देखने आया था.. उस कच्ची कली को नंगी करके उसका सील तोड़ने का मौका मिल जाए तो पूरा जीवन सफल हो जाएँ.. टीवी देखते देखते ये सोच रहा था पीयूष.. अभी मौका था.. आबू के मदमस्त वातावरण मे साली को गरम कर दिया हो तो वापिस घर जाकर कोई न कोई मौका जरूर मिल जाएगा.. ऐसा कुछ करना था यहाँ की मौसम पूरा दिन उसी के नाम की माला जपती रहे.. जो भी करना था यहीं करना था.. एक बार घर चले गए फिर घंटा कुछ होना था.. !!! माउंट आबू में सिर्फ प्रोजेक्ट मौसम की प्राथमिकता रहेगी.. प्रोजेक्ट रेणुका, प्रोजेक्ट वैशाली और प्रोजेक्ट शीला को घर जाकर देख लेंगे..

इन सारी बातों से बेखबर मौसम बाथरूम के अंदर साबुन के झाग को अपने स्तनों पर रगड़ते हुए.. जीजू के साथ आज दोपहर को जो हुआ था.. उसे याद कर रही थी.. मदहोश कर देने वाली किस.. और स्तन मर्दन.. आह्ह.. मौसम ने बेसिन से टूथब्रश उठाया और अपनी चूत पर रगड़ दिया.. आह्ह.. शावर से गिर रहा गरम पानी.. उस गर्माहट की याद दिलाने लगा जो उसने तब महसूस की थी जब पीयूष ने उसके स्तन दबा दिए थे.. आज से पहले कभी भी मौसम इतना उत्तेजित नही हुई थी.. वो अपने मनपसंद हीरो को याद कर अपनी चूत मे उंगली तो पहले भी करती थी.. पर आज प्रत्यक्ष अनुभवों को याद करते हुए वह हस्तमैथुन कर रही थी.. और उसे बड़ा ही अनोखा मज़ा मिल रहा था.. पीयूष ने जिस तरह उसकी निप्पल को मसला था.. ओह्ह.. कितना मज़ा आया था यार.. !!! हाययय.. मौसम का मन कर रहा था की ऐसे ही नंगी होकर वो बाहर निकले और पीयूष से लिपट जाए.. पीयूष को याद करते हुए उसने आधा टूथब्रश अपनी चूत मे डाल दिया.. अब असली लंड को अंदर घुसाने का समय आ चुका था

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लंड की याद में आज पहली बार ऑर्गजम मिला था मौसम को.. अद्भुत.. अवर्णनीय सुख का अनुभव हुआ उसे.. सारा जिस्म हल्का हल्का सा महसूस हो रहा था.. जवानी की दहलीज पर खड़ी लड़की तभी खिलती है जब किसी प्रेमी का स्पर्श होता है..

ब्रा के हुक बंद करते हुए.. मौसम अपने जीजू के साथ संसर्ग से खिल उठे अपने स्तनों को संभालकर ब्रा में फिट करते हुए हंस पड़ी.. जैसे किसी महत्वपूर्ण डॉक्यूमेन्ट को लॉकर में रख रही हो उतना संभालकर उसने अपने स्तनों को ब्रा के अंदर बांध लिया.. पेन्टी पहनकर उसने तौलिया छाती पर लपेट लिया और बाहर निकली.. भीगे बाल.. अर्धनग्न जिस्म पर तौलिया लपेटा हुआ जवान जिस्म.. मौसम का रूप किसी एटम-बॉम्ब से कम नही था.. और इस बॉम्ब की झपेट में जो सबसे पहले आया.. वो था पीयूष.. !!

मौसम का यह रूप देखकर पीयूष चोंक उठाया.. मौसम को भी यह कल्पना नही थी की जीजू अभी उसके कमरे में ही उपस्थित होंगे.. वो तो आराम से बाथरूम के बाहर निकली.. पर सामने सोफ़े पर पीयूष को बैठा देखकर शरमा गई.. और बेड पर पड़े अपने कपड़े लेकर तुरंत बाथरूम में चली गई.. जाते हुए पीछे से उसकी गीली पीठ और घुटनों को देखकर पीयूष का लंड उसकी पतलून के अंदर ही भारत-नाट्यम करने लगा..

बाथरूम का दरवाजा बंद करते वक्त मौसम ने पीयूष की तरफ देखा.. दोनों की नजर एक हुई.. और पीयूष उस कातिल नज़रों से घायल हो गया.. इस पूरे तमाशे को फाल्गुनी देख रही थी.. पर उसके चेहरे के हावभाव में कोई बदलाव नही आया.. छेड़छाड़.. रोमांस.. शारीरिक आकर्षण.. यह सारे विषय उसके लिए सिलेबस में फिलहाल कहीं मौजूद ही नही थे..

करीब दस मिनटों के बाद मौसम कपड़े पहनकर बाहर आई.. कमरे में सन्नाटा था.. मौसम का हुस्न इतना कातिल था की ट्यूबलाइट की रोशनी भी उसके सामने फीकी लग रही थी.. जैसे ही मौसम बाहर निकली.. फाल्गुनी अपने कपड़े लेकर अंदर नहाने के लिए चली गई.. पीयूष और मौसम कमरे में अकेले थे.. एकांत मिलते ही पीयूष के अंदर का बंदर उछलकूद करने लगा.. उसने मौसम को आँख मारी.. मौसम शरमा गई.. वो अब आईने मेइन देखकर मेकअप करते हुए बार बार पीयूष को कनखियों से देख रही थी.. पीयूष पीछे से उसके कूल्हें देखकर अपने लंड को बार बार सहला रहा था..

पीयूष से अब ओर रहा नही गया.. इस मौके का फायदा उठाने के इरादे से वह खड़ा होकर मौसम के पास गया और उसे बाहों में भर लिया.. फाल्गुनी बाथरूम में थी इसलिए मौसम ने विरोध नही किया.. पीयूष ने झुककर उसकी गर्दन के पिछले हिस्से को चूम लिया.. अपने जीजू की इस प्रेमभरी हरकत से मौसम को इतना मज़ा आया की उसकी आँखें बंद हो गई..

अपना हाथ पीछे ले जाकर वो पीयूष के बालों में अपनी उँगलियाँ फेरने लगी.. हाथ ऊपर होते ही उसके दोनों स्तन उभरकर बाहर आ गए.. आईने में उन स्तनों का प्रतिबिंब देखकर पीयूष बावरा होकर उनपर टूट पड़ा.. कच्ची कुंवारी छाती पर मर्द का स्पर्श अनुभवित कर मौसम मस्त होकर जैसे स्वर्ग में पहुँच गई.. पीयूष का खड़ा लंड उत्तेजना पूर्वक मौसम की पीठ पर वार कर रहा था.. मौसम को पीयूष का लंड अपनी पीठ पर चुभता हुआ महसूस हो रहा था.. अनजाने में ही वह अपनी पीठ को उनके लंड पर रगड़ने लगी..

पीयूष ने अपना हाथ मौसम के ड्रेस के अंदर डालकर उसकी चूचियों को दबोच लीया.. मौसम ने अपना चेहरा घुमाया और दोनों के होंठ एक हो गए.. कामाग्नि से दोनों के बदन तपने लगे.. एक दूसरे के जिस्म को भोगने की चाह तीव्र होने लगी.. पर मौसम को ये मालूम नही था की इस भूख को जितना तृप्त करो उतना ही बढ़ती जाती है.. !! अपने जिस्म पर पीयूष के स्पर्श से बेकाबू हो रही मौसम को ये भी अंदाजा नही रहा की जिसके साथ वो ये खतरनाक खेल खेल रही है.. वह उसकी बड़ी बहन का सुहाग था.. वाकई वासना इंसान को अंधा बना देती है

"मौसम, आई वॉन्ट टू सक यॉर निप्पल.. !!!" पीयूष ने मौसम के कान में कहा

मौसम इस प्रपोज़ल को सुनकर कामुक हो उठी.. लेकिन औरत कितनी भी उत्तेजित क्यों न हो.. अपने आसपास की परिस्थितियों का पूरा ध्यान रखती है..

"जीजू, फाल्गुनी किसी भी वक्त बाहर आ सकती है.. अभी नही, प्लीज.. अब आप जाइए, वो थोड़ी ही देर में बाहर निकलेगी.. " मौसम ने समझाया

"नही मौसम.. मुझसे रहा नही जाता.. कुछ भी कर.. मुझे तेरा बॉल चूसना है अभी.. प्लीज"

"ओह्ह जीजू.. आप समझते क्यों नही.. अभी ये पॉसिबल नही है.. प्लीज ट्राय टू अन्डर्स्टैन्ड.. !!"

"आई लव यू, मौसम" पीयूष उसके कान में फुसफुसाया और उसके दोनों स्तनों को मसल दिए.. मौसम ने भी अपनी पीठ से पीयूष के लंड को दबा दिया..

पीयूष के मुंह से "आई लव यू" सुनकर मौसम को बहोत अच्छा लगा.. वह अपने जीजू से बार बार यह सुनना चाहती थी.. पर ऐसा करने से उसकी बहन के संसार को बड़ा खतरा था ये अब ज्ञात हुआ मौसम को.. वैसे वो कुछ बोले या न बोले उससे क्या फरक पड़ता था? वो जो कुछ भी कर रही थी वह अपने जीजू के प्रेम का स्वीकार नही था तो और क्या था? मौसम पीयूष की बाहों में समा गई.. जीजू की बाहों में उसे अद्भुत सलामती और प्रेम की संवेदना महसूस होती थी.. उसने पीयूष को चूमा.. पीयूष ने उसकी जीभ चूस ली.. मौसम भी अब बेहद उत्तेजित हो चुकी थी..

मौसम के वी-नेक गले वाले ड्रेस के अंदर हाथ डालकर पीयूष ने उसका एक स्तन बाहर खींचने की कोशिश की.. पर ड्रेस इतना टाइट था की वह उसे बाहर निकाल नही पाया.. लेकिन स्तन का ५० प्रतिशत हिस्सा बाहर निकल गया था.. उस आधे दिख रहे स्तन की गोरी गोलाई को उसे चूमकर ही संतोष लेना पड़ा.. आक्रामक होकर उसने अपने दांत गाड़ते हुए उसके स्तन को काट लिया.. अपने उभार को वापस ब्रा के अंदर डालते हुए मौसम ने देखा की पीयूष के काटने से उसके स्तन पर लाल निशान बन गया था.. मौसम के जीवन का प्रथम लव-बाइट.. !!


तभी बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई.. दोनों एकदम से अलग हो गए.. और पीयूष कमरे से बाहर चला गया
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है पीयूष अपनी साली के साथ मजे करके एक बार वैशाली की भी चूदाई कर ली मौसम जल्दी ही पीयूष से चुदने वाली है
 

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मौसम ने तुरंत ही फाल्गुनी के मासूम स्तनों को दोनों हाथों से दबाते हुए उसके गाल पर पप्पी कर दी.. और एक बार उसके गाल को चाट भी लिया.. गाल पर मौसम की जीभ का स्पर्श होते ही फाल्गुनी उत्तेजना से कराहने लगी.. तभी अचानक वो सामने दिख रहे कपल ने अपनी खिड़की बंद कर दी

फाल्गुनी निराश हो गई "खेल खतम और पैसा हजम"

मौसम ने कहा "अरे यार बहोत जल्दी बंद कर दी खिड़की.. थोड़ी देर और खुली रखी होती तो कितना मज़ा आता देखने का.. !!"

वैशाली: "कोई बात नही मौसम.. खिड़की बंद हो गई तो क्या हुआ.. हम तीनों तो एक दूसरे को मजे दे ही सकते है.. चलो बेड पर.. मैं सिखाऊँगी.. बहोत मज़ा आएगा.. " दोनों को कमरे के अंदर लेते हुए वैशाली ने बालकनी का दरवाजा बंद कर दिया.. बिना किसी शर्म या संकोच के वैशाली ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और नंगी होकर बिस्तर पर लेट गई.. और फाल्गुनी से कहा "कम ऑन बेबी.. तू भी अपने कपड़े उतार और मेरे बगल में लेट जा.. चल जल्दी"

फाल्गुनी बहोत शरमा गई और बोली "नही यार.. तू भी क्या कर रही है.. शर्म नाम की कोई चीज है की नही? नंगी होकर लेट गई.. !!"

वैशाली: "अरे ओ डेढ़-सयानी..तेरे बबले तो कब से खुले लटक रहे है.. अब सिर्फ नीचे की लकीर ही तो दिखानी है.. उसमें क्या इतना शर्माना!! चल अब नाटक बंद कर और आजा मेरे पास"

"नही, पहले लाइट बंद करो.. तभी मैं आऊँगी" फाल्गुनी ने आधी सहमति दे दी

मौसम ने तुरंत ही लाइट ऑफ कर दी और उसका रास्ता आसान कर दिया.. अब अंधेरे में भला क्या शर्म?? मौसम और फाल्गुनी अंधेरे का सहारा लेकर पूरी नंगी हो गई और बेड पर वैशाली के साथ लेट गई.. वैशाली अब दोनों कुंवारी चूतों को चुदाई के पाठ सिखाने लगी..

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वैशाली की एक तरफ मौसम और दूसरी तरफ फाल्गुनी लेटी हुई थी और वैशाली कभी मौसम की चूत को तो कभी फाल्गुनी के स्तनों को सहलाते हुए अपनी उत्तेजना सांझा कर रही थी.. फाल्गुनी की चूत पर हाथ फेरते वैशाली को लगा की वो कच्ची कुंवारी तो नही थी.. भले ही वो सेक्स की बात करते हुए डरती हो और ऐसी बातों से दूर ही रहती हो.. पर उसकी चूत का ढीलापन इस बात की गँवाही दे रहा था फाल्गुनी कुंवारी तो नहीं थी..

अचानक वैशाली ने बेड के साइड में पड़ा टेबल-लैम्प ऑन कर दिया.. पूरे कमरे में उजाला छा गया.. अब तक तो अंधेरे में एक दूसरे से नजर बचाते हुए अपनी शर्म को छुपा रहे थे.. पर लाइट चालू होते ही तीनों की नग्नता एक दूसरे के सामने उजागर हो जाने पर मौसम और फाल्गुनी थोड़ी सी सहम गई.. संकोच थोड़ा सा ही हुआ.. क्योंकि थोड़ी देर पहले देखे द्रश्य और वैशाली की हरकतों के कारण फाल्गुनी और मौसम पहले से ही काफी उत्तेजित थी..

कुछ पलों के संकोच के बाद तीनों स्वाभाविक और सामान्य हो गई..

वैशाली ने फाल्गुनी की चूत में अपनी दो उँगलियाँ डालकर अंदर बाहर करते हुए देखा की फाल्गुनी ने न कोई विरोध किया और ना ही कोई पीड़ा का एहसास दिखाया

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वैशाली ने फाल्गुनी से कहा "तू माने या न माने.. जितनी तू लगती है उतनी मासूम तू है नही.. मेरा अंदाजा तो यह कहता है की तू लंड का स्वाद पहले ही चख चुकी है.. "

मौसम तो ये सुनते ही स्तब्ध हो गई "माय गॉड.. वैशाली.. क्या बात कर रही है यार!! फाल्गुनी और सेक्स?? ये लड़की तो किताब में सेक्स शब्द पढ़कर भी थरथर कांपने लगती है.. और तेरा कहना है की उसने सेक्स किया हुआ है?" मौसम ने अपनी सहेली का पक्ष लेते हुए कहा.. आखिर वो उसकी दस साल पुरानी सहेली थी.. दोनों साथ खेल कर बड़ी हुई थी.. एक दूसरे की सभी बातें शेर करती थी.. इसलिए स्वाभाविक था की मौसम फाल्गुनी की साइड लेती

"अरे यार मौसम, तू आजकल की लड़कियों को जानती नही है.. मेरे ससुराल के पड़ोस में एक फॅमिली रहता है.. अठारह साल की उनकी लड़की के सेक्स संबंध उसके सगे बाप के साथ है.. और पिछले आठ साल से दोनों के बीच ये चल रहा है.. खुद वो लड़की ने ही मुझे ये बताया..!!"

वैशाली की बात सुनकर मौसम और फाल्गुनी दोनों बुरी तरह चोंक गए.. "क्या बात कर रही है वैशाली? ऐसा भी कभी होता है क्या? "

वैशाली: "तुम यकीन नही करोगी पर ये हकीकत है.. अभी इतनी रात न हुई होती तो मैं मोबाइल पर तुम दोनों की बात करवाती उस लड़की के साथ" वैशाली ने फाल्गुनी की चूत में उंगली डालते हुए कहा "मुझे भी शोक लगा था जब पहली बार उसके मुंह से ये बात सुनी थी.. और जब मैंने उसकी ये बात को नही माना.. तब उस लड़की ने मुझे रूबरू उन दोनों का सेक्स दिखाया.. !! फिर तो मेरे पास यकीन करने के अलावा और कोई रास्ता ही नही था.. पहले तो उसने अपने बाप के साथ सेक्स करते वक्त वॉइस-रेकॉर्डिंग करके मुझे सुनाया था.. पर उनकी बंगाली भाषा में मुझे कुछ समझ में नही आया.. इसलिए मैंने विश्वास नही किया.. फिर उसने मुझे उन दोनों की चुदाई दिखाई.. तब से मैं ये मानने लगी हूँ की सेक्स में कुछ भी मुमकिन हो सकता है.. ऐसा कभी नही समझना चाहिए की सेक्स में कोई सीमा-रेखा होती है.. मैं फाल्गुनी पर कोई आरोप लगाना नही चाहती पर.. तू खुद ही देख मेरी चुदी हुई चूत को.. !!"

कहते ही वैशाली ने अपने दोनों पैर खोल दिए और अपनी बिना झांटों वाली क्लीन शेव चूत दिखाई..

"ठीक से दिखाई नही दे रहा है.. मैं ट्यूबलाइट ऑन करती हूँ" मौसम ने बड़ी लाइट ऑन कर दी.. पूरा कमरा रोशनी से झगमगा उठा.. और उसके साथ ही तीनों नंगे जिस्मों की उत्तेजना दोगुनी हो गई

वैशाली के मुंह से गंदी और कामुक बातें सुनकर फाल्गुनी ने अपनी गांड ऊपर उठाते हुए एक सिसकी भर ली..

मौसम: "वैशाली, तेरी छातियाँ तो कितनी बड़ी है.. तुझे इसका वज़न नही लगता? कितने बड़े है यार.. !! कम से कम ४० का साइज़ होगा"

हँसते हुए वैशाली ने फाल्गुनी की चूत से उंगली निकाली.. और उंगली पर लगे चूत के गिलेपन को अपने स्तन पर रगड़ दिया.. और अपनी निप्पल खींचते हुए बोली "खुद के ही जिस्म के हिस्सों का वज़न थोड़े ही लगता है कभी!!"

मौसम: "अरे फाल्गुनी.. कुछ दिन पहले कॉलेज से आते हुए याद है हमने क्या देखा था?"

फाल्गुनी: "कब की बात कर रही है? मुझे तो कुछ याद नही आ रहा" वैशाली की उंगली चूत से बाहर निकल जाने की वजह से थोड़ी सी अप्रसन्न थी फाल्गुनी जो उसकी आवाज से साफ झलक रहा था

मौसम: "अरे भूल गई.. !! उस दिन जब हम घर लौट रहे थे तब रोड पर गधा खड़ा था जिसका बड़ा सा पेनिस बाहर लटक रहा था.. !!!"

फाल्गुनी: "हाँ हाँ.. याद आया.. बाप रे.. कितना मोटा और लंबा था !! आते जाते सारे लोग उसे देख रहे थे.. "

मौसम: "उस दिन मैं यही सोच रही थी.. इतना बड़ा पेनिस.. ??"

वैशाली ने मौसम की चूत पर हल्की सी चपत लगाते हुए उसकी बात आधी काट दी और बोली "भेनचोद.. क्या कब से पेनिस पेनिस लगा रखा है!! उसे लंड बोल.. लोडा बोल.. पूरी नंगी होकर मेरे सामने पड़ी है फिर भी बोलने में शरमा रही है.. चल बोलकर दिखा.. "लंड.. !!"

मौसम: "तू जा न यार.. मुझे ये बुलवाकर तुझे क्या काम है?"

फाल्गुनी अब खुद ही अपनी चूत को मसल रही थी.. उसने कहा "मौसम, एक बार बोल ना.. मुझे भी तेरे मुंह से वो शब्द सुनना है.. एक बार तू बोलकर दिखा फिर मैं भी बोलूँगी"

मौसम: "अरे यार तुम दोनों तो बस पीछे ही पड़ गई.. चलो बोल ही देती हूँ.. लंड.. अब खुश?" और फिर शरमाते हुए मौसम ने अपने दोनों हाथों से पूनम के चाँद जैसा सुंदर मुखड़ा छुपा लिया

वैशाली: "अरी मादरचोद.. अपना चेहरा नही.. चूत को ढँक.. चेहरा दिखे तो शर्म की बात नही होती.. पर खुलेआम इस तरह चूत का प्रदर्शन करना ये तो बड़ी शर्मिंदगी वाली बात है.. " मौसम को छेड़ते हुए वैशाली ने उसके स्तन पर चिमटी काट ली और कहा "आज तो तू लंड शब्द बोलने में भी शरमा रही है.. पर एक बार तेरी शादी हो जाएगी और अपने पति के साथ हनीमून पर जाएगी तब इसी लंड को एक सेकंड के लिए भी अपने हाथ से जाने नही देगी.. चल फाल्गुनी.. तेरी बारी.. अब तू बोलकर दिखा"

फाल्गुनी ने तुरंत ही बोल दिया "लंड.. !!" पर बोलते वक्त उसका चेहरा ऐसा हो गया मानों सच में उसके हाथ में असली लंड आ गया हो

शाबाश.. !! हाँ फाल्गुनी.. तू क्या कह रही थी.. गधे के लंड के बारे में??"

फाल्गुनी: "मौसम ने भी उस दिन मुझसे यही सवाल किया था.. इतने बड़े लंड का वज़न नही लगता होगा उसे !! और आज तुम्हारी छातियों के बारे में भी उसने यही बात कही"

"मौसम, तू सिख फाल्गुनी से.. देख कितने आराम से लंड बोल रही है.. !!" वैशाली ने हँसते हुए कहा

मौसम: "वो सब बातें छोड़.. तू अभी यहाँ क्या दिखा रही थी? " मौसम ने वैशाली की चूत की ओर इशारा करते हुए कहा

वैशाली: "ईसे चूत कहते है.. भोस भी कहते है.. बहोत ढीला, बड़ा या ज्यादा चुदा हुआ हो तो भोसड़ा कहते है.. समझी!!" और एक नया पाठ सिखाया वैशाली ने

मौसम: "हाँ बाबा.. चूत.. तो तू क्या दिखा रही थी अपनी चूत में?" अब मौसम ने भी वैशाली के आग्रह से खुली भाषा का स्वीकार कर लिया

वैशाली: "हाँ.. तो मैं ये कहना चाहती थी की चुदी हुई चूत और कच्ची कुंवारी चूत में कितना अंतर होता है तू खुद ही देख.. कितना फरक है तेरी और मेरी चूत में मौसम.. !! और अब फाल्गुनी की चूत देख.. !!"

नंगी उत्तेजक बातें और बीभत्स भाषा के प्रयोग से वैशाली ने मौसम और फाल्गुनी की वासना को इस हद तक भड़का दिया था की दोनों नादान लड़कियां अपनी उत्तेजना को दबाने में असमर्थ हो गई थी.. अपने स्तनों पर वैशाली के हाथों का सुहाना दबाव महसूस करते हुए मौसम बेबस होकर बोली "तू बड़ा मस्त दबाती है वैशाली.. मैं खुद दबाती हूँ तब इतना मज़ा नही आता.. ऐसा क्यों?"

वैशाली: "मुझे क्या पता.. !! पर मुझे लगता है की किसी और का हाथ पड़े तब ज्यादा मज़ा आता है.. अब तू मेरे दबा कर देख.. देखती हूँ कैसा मज़ा आता है" वैशाली जान बूझकर ये खेल खेल रही थी इन लड़कियों के साथ ताकि वह दोनों एकदम खुल जाएँ

वैशाली के पपीते जैसे स्तन मौसम के मुंह के आगे आ गए.. दो घड़ी के लिए मौसम वैशाली के इन तंदूरस्त उरोजों को देखती ही रही और सोच रही थी "बाप रे.. कितने बड़े बड़े है !!"

"देख क्या रही है? दबा ना.. !!" वैशाली ने मौसम को कहा और अपने स्तन को उसके मुंह पर दबा दिया.. "ले.. दबाने का मन ना हो तो चूस ले.. छोटी थी तब अपनी मम्मी की निप्पल चूसती थी ना.. !! वैसे ही चूस.. सच कहूँ मौसम.. जब एक मर्द आपकी निप्पल चूसें तब जो आनंद आता है वो मैं बयान भी नही कर सकती.. उनके स्पर्श में ऐसा जादू होता है.. हम खुद कितना भी मसले या रगड़ें.. पर मर्द के हाथों जैसा मज़ा तो आता ही नही है"

मौसम से पहले फाल्गुनी ने वैशाली का एक स्तन पकड़ लिया और उसके नरम हिस्से को चूम लिया.. फिर वैशाली की गुलाबी निप्पल पर अपनी जीभ फेरी.. और चाटकर बोली "कुछ स्वाद नही आता यार.. ईसे चूसकर क्या फायदा? अगर दूध आता होता तो मज़ा आता"

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वैशाली हंस पड़ी और फाल्गुनी की चूत को सहलाते हुए बोली "मेरी जान.. उसके लिए तो पहले इस चूत में लंड डालकर अच्छे से ठुकवाना पड़ता है.. कितनी रातों तक पैर चौड़े करके अंदर शॉट लगवाने पड़ते है.. मर्द के वीर्य से अपनी चूत भिगोनी पड़ती है.. तब जाकर इन चूचियों में दूध भरता है.. समझी.. !! उँगलियाँ डालने से कुछ नही होता.. असली लंड अंदर घुसता है तब इतना मज़ा आता है की मैं क्या बताऊँ.. मुझे तो अभी अंदर डलवाने का इतना मन हो रहा है की अभी कोई अनजान आदमी भी आकर खड़ा हो जाएँ तो मैं खुशी खुशी अपनी टांगें चौड़ी कर के नीचे लेट जाऊँ"

मौसम भी अब फाल्गुनी की तरह वैशाली का एक स्तन दबाकर चाट रही थी.. और दूसरे स्तन को चूस रही फाल्गुनी के गालों को सहला रही थी.. दोनों लड़कियों को कोई अनुभव नही था.. चुदाई के मामले में उन्हे ट्रेन करने के लिए वैशाली अलग अलग नुस्खे आजमा रही थी.. और ऐसा करने में उसे मज़ा आ रहा था वो अलग..

उसका स्तन चूस रही फाल्गुनी के बालों में हाथ फेरते हुए वैशाली ने पूछा "तुझे लिप किस करना आता है?"

मुंह से निप्पल निकालकर फाल्गुनी ने ऊपर देखा और बोली "थोड़ा थोड़ा आता है"

"ठीक है.. तो अब तू मौसम के होंठों पर किस कर के दिखा.. फिर मैं तुम दोनों को सिखाऊँगी.. ऐसा सिखाऊँगी की तुम्हारे होने वाले पति ऐसा ही समझेंगे की तुम दोनों अनुभवी हो"

"ना बाबा ना.. मुझे नही सीखना.. शादी की शुरुआत में ही हमारे पति हम पर शक करने लगे.. ऐसा नही सीखना मुझे" मौसम घबरा गई

वैशाली: "अरे बेवकूफ.. शादी के पहले मैं अपने मायके में ही चुदकर ससुराल गई थी फिर भी आजतक संजय को पता नही चला.. तू सिर्फ किस करने से घबरा रही है.. !! मर्दों के पास ऐसा कोई मीटर या सेंसर थोड़ी न होता है जिससे उसे पता चलें की शादी के पहले तुमने क्या क्या किया है!! पति को पता ना चले इसलिए कैसे नखरे करने है वो मैं तुम दोनों को सिखाती हूँ"

फाल्गुनी ने आश्चर्य से पूछा "मतलब?? क्या करना है?"

वैशाली ने अब फाल्गुनी की तरफ ध्यान केंद्रित करते हुए कहा "मैं तुझे क्यों सिखाऊँ? तू अपनी निजी बातें मुझे बता नही रही.. फिर मैं तुझे क्यों सिखाऊँ?"

मौसम: "हाँ वैशाली.. सही बात है.. ये कमीनी बहोत कुछ छुपाती है"

फाल्गुनी: "अरे यार.. ऐसा कुछ नही है.. मैंने कब तुझसे कुछ छुपाय है?"

वैशाली: "तो फिर अभी के अभी बता.. तूने किससे चुदवाया है और कितनी बार?"

"सात से आठ बार" आँखें झुकाकर फाल्गुनी ने कहा और फिर खामोश हो गई

सुनते ही मौसम के मुंह से वैशाली की निप्पल छूट गई और वो चोंक कर खड़ी हो गई.. "सात आठ बार?? किसके साथ? कहाँ? मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा.. आज तक मुझे पता कैसे नही चला?? पूरा टाइम या तो तू मेरे साथ कॉलेज होती है या फिर अपने घर पर.."

वैशाली: "मैंने कहा था ना.. फाल्गुनी कुंवारी नही है वो तो मैं उसकी चूत देखकर ही समझ गई थी.. जितनी आसानी से उसकी चूत में मेरी दोनों उँगलियाँ चली गई.. कुंवारी होती तो कितना चिल्लाई होती.. तभी मुझे शक हो गया था.. दो दो उँगलियाँ लेकर भी हमे कहती थी की मैं कुंवारी हूँ.. "

मौसम की गीली हो चुकी चूत में एक उंगली डालते हुए वैशाली ने कहा "मौसम, तू ही बता.. एक उंगली अंदर बाहर करने में भी तुझे दर्द होता है ना.. सोच पूरा का पूरा लोडा अंदर घुस जाएँ तो क्या हाल होगा? औसतन इतना मोटा होता है लंड" ड्रेसिंग टेबल पर पड़े हेंडब्रश का हैन्डल दिखाते हुए वैशाली ने कहा

मौसम: "बाप रे.. इतना मोटा.. मैं तो मर ही जाऊँ अगर कोई इतना बड़ा मेरे छेद में डालेगा तो.. मैंने सिर्फ एक बार पतली सी मोमबत्ती अंदर डालने की कोशिश की थी पर इतना दर्द हुआ था की वापिस निकाल लिया.. वैशाली, तू अपनी चूत में आराम से लंड ले पाती है?"

वैशाली: "हाँ हाँ.. क्यों नही.. अरे इस हैन्डल से भी मोटा है मेरे पति का.. और लंबा भी"

मौसम बार बार उस ब्रश के हैन्डल को देखकर कल्पना करते हुए घबरा रही थी.. वो बिस्तर से खड़ी हुई और हेंडब्रश ले आई.. हाथ में उसका हैन्डल पकड़ते हुए बोली "इससे भी मोटा?? मुझे तो यकीन नही होता.. तुझे डलवाते हुए दर्द नही होता??"

"वो बात बाद में.. पहले तू इस मादरचोद रांड से पूछ.. की किसका लोडा ले रही है? हम दोनों भी उससे चुदवाएंगे.. वैसे भी मुझे लंड की सख्त जरूरत है.. तुझे तो पता है.. मेरे और संजय के बीच की अनबन के बारे में.. "

फाल्गुनी बोल उठी "प्लीज यार.. नाम जानने की जिद ना ही करो तो अच्छा है.. मैं नाम नही बता पाऊँगी.. अगर बता दिया तो बड़ा भूकंप आ जाएगा मेरे जीवन में"

मौसम के हाथ से हेंडब्रश लेकर वैशाली ने उसे फाल्गुनी के स्तन पर हल्के से मारते हुए कहा "क्यों?? नाम बताने में क्या प्रॉब्लेम है तुझे? कहीं कोई बड़ा कांड तो नही कर रही तू? सच सच बता.. मुझे तो कोई बड़ा गंभीर लोचा लगता है.. तू लगती है उतनी भोली और मासूम तू है नही!!"

मौसम: "हाँ हाँ.. बता भी दे हरामखोर.. अब तो नाम जाने बगैर हम तुझे छोड़ेंगे नही.. चल वैशाली.. इस रांड पर टूट पड़ते है.. " मौसम फाल्गुनी के ऊपर लेट गई और उसे अपने शरीर के वज़न तले दबाते हुए उसके दोनों स्तन को मसल दिया.. मौसम और फाल्गुनी दोनों की चूत के हिस्से एक दूसरे से छु रहे थे..

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वैशाली ने अपने होंठ फाल्गुनी के होंठों पर रखकर उन्हें चूसना शुरू कर दिया.. दो दो शरीरों के कामुक स्पर्श से फाल्गुनी बेहद उत्तेजित हो गई.. और वैशाली को किस कने में सहयोग देते हुए मौसम की नंगी पीठ को अपने नाखूनों से कुरेदने लगी

मौसम और फाल्गुनी एक दूसरे को बाहों में भरकर रोमांस कर रहे थे और वैशाली फाल्गुनी के होंठ गीले करने के काम में जुटी हुई थी.. फाल्गुनी अब दोनों को अच्छे से रिस्पॉन्स दे रही थी.. वैसे लिप किस करने के मामले में वो अनाड़ी थी पर फिर भी उस बेचारी को जितना आता था उतना कर रही थी..

वैशाली जब झुककर किस कर रही थी तब उसके स्तन मौसम के कंधों से टकरा रहे थे.. तीनों लड़कियां कामदेव के जादू तले बराबर आ चुकी थी.. वैशाली के होंठ चूसने के कारण फाल्गुनी मौसम से भी अधिक उत्तेजित थी.. और वो अपने ऊपर चढ़ी मौसम की पीठ पर नाखून से वार करती जा रही थी.. मौसम के मन में लगातार एक ही प्रश्न मंडरा रहा था.. सात-आठ बार फाल्गुनी ने किससे करवाया होगा? सुबह से लेकर दोपहर तक कॉलेज में वो मेरे साथ होती है.. घर जाने के बाद तीं बजे हम ट्यूशन जाते है और ७ बजे लौटकर घर जाते है.. तो फाल्गुनी ने किस वक्त ये सब करवाया होगा?? बड़ी शातिर है फाल्गुनी..

मौसम को अपनी चूत पर अनोखे गीले स्पर्श का एहसास हुआ और वो नीचे देखने लगी.. अरे बाप रे.. !! वैशाली उसकी चूत चाटने लगी थी.. ओह नो.. वैशाली ये क्या कर दिया तूने? ऐसा तो मुझे कभी महसूस नही हुआ पहले.. आह्ह आह्ह आह्ह.. मौसम फाल्गुनी की ऊपर चढ़ी हुई थी और उसी अवस्था में कमर ऊपर नीचे करते हुए बोली "माय गॉड.. वैशाली.. चाट यार.. अपनी जीभ डाल अंदर.. बहोत मज़ा आ रहा है यार.. इतना मज़ा पहले कभी नही आया मुझे.. ओह्ह!!"


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मौसम की कुंवारी.. थोड़ी सी झांटों वाली चूत काम रस से गीली होकर रिस रही थी.. वैशाली को भी आज लेस्बियन सेक्स में बहोत मज़ा आ रहा था.. दो दो कुंवारी चूत उसकी पक्कड़ में आ चुकी थी.. मौसम और फाल्गुनी दोनों वैशाली की एक एक हरकत पर आफ़रीन हो रही थी.. उसकी हर बात को आदेश के तौर पर मान रही थी वो दोनों..

तीनों लड़कियां एक दूसरे के साथ बिल्कुल ही खुल गई थी.. वैसे वैशाली की कविता के साथ भी गहरी दोस्ती थी लेकिन उनका संबंध जिस्मानी नही था.. जब की इन दोनों लड़कियों ने इस मामले में कविता को भी पीछे छोड़ दिया था.. जो कुछ भी हो रहा था वो संयोग से ही हो रहा था.. मौसम दोपहर को अपने जीजू के साथ हुए रोमांस को याद करते हुए जबरदस्त उत्तेजना महसूस कर रही थी.. और अब फाल्गुनी और वैशाली के साथ उस उत्तेजना को अपने अंजाम तक पहुंचाने वाली थी..

वैशाली मौसम की चूत चाटने में इतनी मशरूफ़ थी की मौसम की सिसकियों को नजरअंदाज करते हुए वह उसकी गांड के नीचे दोनों हाथ डालकर उसके कडक कूल्हों को अपने अंगूठों से चौड़ा करते हुए अपनी जीभ अंदर तक डाल रही थी.. मौसम के लिए ये प्रथम अनुभव था.. पेशाब करने और पिरियड्स निकालने के छेद में इतना मज़ा छुपा हुआ होगा उसका उसे अंदाजा ही नही था.. मौसम को इस बात का ताज्जुब था की चूत शब्द बोलते ही क्यों उसके चूत में झटके लगने लगते थे !! अब तक रास्ते पर चलते.. पान की या चाय की टपरी पर बैठे लोफ़रों के मुंह से यह गंदा शब्द काफी बार सुना था और तब उसे इस शब्द से ही नफरत थी.. आज उसी शब्द को सुनकर उसे बहोत मज़ा आ रहा था..

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फाल्गुनी के स्तनों को दबाते हुए उसने उसके कानों में कहा "मज़ा आ रहा है ना फाल्गुनी?"

"हाँ यार.. मुझे तो बहोत मज़ा आ रहा है.. और तुझे?"

"अरे मुझे तो इतना मज़ा आ रहा है वैशाली के चाटने से की क्या बताऊँ.. !! तूने कभी अपनी चूत चटवाई है फाल्गुनी?"

ये सुनते ही फाल्गुनी की मुनिया में आग लग गई.. "मौसम प्लीज.. तू भी मेरी चूत में अपनी जीभ डाल यार.. !!" फाल्गुनी उत्तेजना से मौसम के कोमल नाजुक बदन को मसलते हुए बोली

मौसम: "नही यार.. मुझे ये सब नही आता.. मैंने कभी किया भी नही है ऐसा.. " दोनों की बातें सुनते हुए वैशाली मौसम की पुच्ची को चाट रही थी

मौसम: "तूने मेरी बात का जवाब नही दिया फाल्गुनी?"

फाल्गुनी: "कौनसी बात का?"

मौसम: "इससे पहले तूने कभी अपनी चूत चटवाई है?"

फाल्गुनी खामोश रही.. बदले में उसने मौसम के गाल को चूसा और अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी और मौसम की चूत को सहलाने लगी.. सहलाते हुए कभी उसकी उंगली वैशाली की जीभ का स्पर्श करती तो वैशाली उसकी उंगली को भी चाट लेती.. फाल्गुनी की उंगली को गीला करके वैशाली ने उस उंगली को मौसम की चूत के अंदर डाल दिया

"आह्ह.. " फाल्गुनी की उंगली अंदर घुसते ही मौसम की सिसकी निकल गई..

"कितनी गरम गरम है तेरी चूत तो यार.. !!" फाल्गुनी ने कहा.. और तेजी से अपनी उंगली अंदर बाहर करने लगी..

"आह्ह.. मर गई.. ऊईई.. माँ" मौसम चिल्लाई.. फाल्गुनी ने तुरंत अपने होंठ उसके होंठों पर दबाकर और उसके स्खलित होने से निकली चीख को रोक दिया.. मौसम का पूरा शरीर अकड़ कर बिस्तर से ऊपर उठ गया.. दो सेकंड के लिए उसी अवस्था में थरथराने के बाद वह धम्म से बिस्तर पर गिरी.. तेज सांसें भरते हुए.. ए.सी. कमरे में भी उसे पसीने छूट गए.. फाल्गुनी की उंगली और वैशाली की जीभ, दोनों ने मिलकर मौसम की मुनिया को एक जानदार ऑर्गजम दिया था..

अब वैशाली ने अपनी जीभ से फाल्गुनी की चूत पर हमला कर दिया.. उसकी चूत को चाटते हुए वैशाली एक पल के लिए रुकी और उसने मौसम से कहा "मौसम, अब तेरी बारी.. चल मेरी चूत चाट जल्दी से.. "

अपनी साँसों को नियंत्रित करते हुए मौसम ने कहा "यार, मुझसे नही होगा ये.. !!"

"क्यों? मादरचोद.. चटवाते वक्त तो तुझसे सब कुछ हो रहा था.. अब चाटने की बारी आई तो नखरे कर रही है? चुपचाप चाटना शुरू कर वरना ये हेरब्रश का हेंडल तेरी चूत में घुसेड़कर गुफा बना दूँगी" वैशाली ने गुर्रा कर कहा

"यार, मैंने पहले कभी चाटी नही है वैशाली"

"साली रंडी.. आजा.. तुझे सब सीखा दूँगी.. " कहते हुए वैशाली अपने विशाल स्तनों को खुद ही दबाते हुए खड़ी हुई और मौसम को धक्का देकर बेड पर लिटा दिया.. वैशाली मौसम के स्तनों पर सवार हो गई और अपनी गुलाबों को दोनों होंठ उंगलियों से चौड़े करके मौसम के होंठों पर रगड़ने लगी.. न चाहते हुए भी मौसम उसकी चुत पर जीभ फेरने के लिए मजबूर हो गई.. यह देख उत्तेजित होकर फाल्गुनी अपनी चूत पर हेरब्रश तेजी से घिसने लगी..

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वैशाली की बेकाबू जवानी हिलोरे ले रही थी.. अनुभवहीन मौसम की जीभ को ट्रेन करते हुए उसने मौसम के सर के नीचे दोनों हाथ डालकर उसे कानों से पकड़ते हुए अपनी चूत से दबाए रखा था.. और अपनी चूत चटवाएं जा रही थी.. मौसम को शुरू शुरू में चूत और उसके पानी की गंध बड़ी ही विचित्र लगी.. पर वैशाली ने उसे ऐसे पकड़ रखा था की छूटना मुश्किल था.. आखिर अपने हथियार डालकर उसने अपनी जीभ को वैशाली के सुराख के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.. थोड़ी ही देर में वह सीख गई.. वैशाली चुत चटवाते हुए अपनी गदराई गांड मौसम के स्तनों पर रगड़ रही थी.. जिससे मौसम नए सिरे से सिहर रही थी.. वैशाली ने मौसम के स्तनों पर घोड़े की तरह सवारी करते हुए अपनी लय प्राप्त कर रही थी.. आगे पीछे हो रही वैशाली के दोनों खरबूजे बड़ी ही अद्भुत तरीके से हिल रहे थे.. दोनों के नरम नरम अंग एक दूसरे से रगड़ खा रहे थे..

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मौसम की चूत में फिर से खुजली होने लगी.. वो अभी थोड़ी देर पहले ही झड़ी थी.. पर वैशाली की चूत की मादक गंध और बबलों की मजबूत रगड़ाई के कारण उसकी चुनमुनिया फुदकने लगी.. तीन चार मिनट तक चाटते रहने के बाद अब मौसम को भी वैशाली की पनियाई चूत के अंदर जीभ डालने में मज़ा आने लगा था.. उसकी रसीली कामुक चिपचिपी चूत के वर्टिकल होंठ और क्लिटोरिस को अपने मुंह में भरकर वो मस्ती से चूस रही थी.. बगल में लेटी फाल्गुनी हेरब्रश के हेंडल को अपनी चूत पर रगड़े जा रही थी..

तीनों लड़कियां अपनी हवस शांत करने के लिए अलग अलग क्रियाएं करने में व्यस्त थी.. लेकिन उनकी वासना शांत होने के बदले और भड़क रही थी.. रात के डेढ़ बजे का समय हो रहा था.. पर तीनों में से किसी की भी आँखों में नींद का नामोनिशान नही था.. थी तो बस नारी की हवस..

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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
ये वैशाली मौसम और फाल्गुनी की सेक्स सिखाने वाली टिचर बन कर उन्हे चुदाई का पाठ पढा रही हैं
ये फाल्गुनी को कितने चोदा ये नहीं बता रही और कह रही हैं की उसके जीवन में भुकंप आ जायेगा तो कहीं वो घर में ही किसी से चुद तो नहीं रही हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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vakharia

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Sanjay bhi ready hai apni satsuma par chadhne ke liye.
Thanks 💖💕💖
 

Sanju@

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पौने आठ बज चुके थे.. और आठ बजे तो सबको डाइनिंग रूम में इकठ्ठा होना था.. सब से पहले मौसम और फाल्गुनी पहुँच गए.. मौसम के चेहरे पर उत्तेजना का नशा अब भी दिख रहा था.. एक के बाद एक.. सब समय पर डाइनिंग हॉल में आने लगे..कविता और पीयूष भी अलग अलग आए थे.. कविता का ड्रेसिंग देखकर सबकी सांस गले में ही अटक गई..

सबसे पहले रेणुका ने कविता की तारीफ की "Wow..!! Kavita, you are looking absolutely gorgeous..!!कितनी जवान और खूबसूरत लग रही है तू इस ड्रेस में.. कौन कहेगा की तू शादी शुदा है !! अठारह से ऊपर एक साल की नही लग रही तू.. " उसकी कमर पर चिमटी काटते हुए उसने कहा .. अपनी तारीफ सुनकर कविता खुश हो गई

मौसम और फाल्गुनी भी कविता का ड्रेसिंग देखकर चकित रह गए "दीदी, गजब लग रही हो आप इस ड्रेस में.. एकदम कयामत!!" फाल्गुनी ने शरमाते हुए कहा "दीदी आप तो नोरा फतेही से भी ज्यादा हॉट लग रही हो!!" फिर नजदीक जाकर फाल्गुनी ने कविता के कान में कहा "अरे दीदी, आपने ब्रा क्यों नही पहनी?? आप जब चलती हो तो सब उछलता है"

फाल्गुनी की बात सुनकर कविता ने हँसकर उसे प्यार से गाल पर हल्की चपत लगाई और कहा "उछलने दे.. उछलने से क्या होता है.. !! बाहर तो नही निकल रहे है ना.. !!" कहते हुए वह बिंदास पीयूष के पास जाकर खड़ी हो गई.. पीयूष वैशाली के साथ बातों में उलझा हुआ था.. कविता को देखकर वैशाली के होश उड़ गए.. पीयूष ने एक नजर कविता की तरफ देखा.. और उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कविता ने ऐसे कपड़े पहनकर खानदान की इज्जत की माँ चोद दी हो..

गुस्से में पीयूष ने कहा "इससे अच्छा तो तू बिना कपड़ों के ही चली आती.. !!! लोगों को दिखाने का शौक हो तो पूरा ही दिखा दे एक बार में .. !! इतना भी छुपाकर क्यों रखा? मेरी इज्जत को डुबोने बैठी है तू.. !!"

"कोई कपड़ों से अपनी इज्जत की धज्जियां उड़ाता है तो कोई अपने बर्ताव से.. !!" कविता ने बेफिक्री से जवाब दिया..

लंबे डाइनिंग टेबल पर सब बैठने लगे.. कविता के साथ बैठने के बजाए पीयूष, पिंटू के साथ जाकर बैठा.. यह बात राजेश ने नोटिस की.. राजेश भी कविता के पिंक टॉप में से बिना ब्रा की दिख रही गोलाइयों को ताड़ रहा था.. सिर्फ राजेश ही नही.. हॉल में बैठे सभी मर्दों की नजर बार बार कविता पर चली जाती थी.. गुलाबी रंग के स्लीवलेस पतले टॉप के अंदर परफेक्ट साइज़ के स्तनों ने हाहाकार मचा दिया था..

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खाना परोसा जाने लगा.. एक के बाद एक नई नई डिश आने लगी.. कविता तीरछी नज़रों से पीयूष का निरीक्षण कर रही थी.. की वो कितनी बार वैशाली की तरफ देखता है..

सब के सामने राजेश ने पीयूष से कहा "पीयूष, तेरे जितना मूर्ख आदमी इस पार्टी में और कोई नही है"

"क्यों? क्या हुआ सर?"

राजेश: "अरे भई, इतनी सुंदर.. मोम की पुतली जैसी पत्नी को छोड़कर तू पिंटू के साथ बैठ गया.. !!! ये तो अच्छा हुआ की कविता के बगल में मौसम बैठी है.. वरना उसके पास बैठने वालों की लाइन लग जाती.. "

कविता गर्व से पीयूष की ओर देख रही थी.. पीयूष नीचे देखने लगा.. मन ही मन वो कविता को.. इस स्थिति के लिए कोस रहा था..

राजेश: "जाओ पीयूष.. अपनी पत्नी के पास जाकर बैठो"

पीयूष: "नहीं.. मैं यहीं ठीक हूँ.. " राजेश की राय को ठुकराते हुए उसने कहा

"कोई बात नही सर.. अगर वो मेरे पास आकर नही बैठता.. तो मैं ही उसके पास चली जाती हूँ" कहते हुए कविता खड़ी हुई.. हाई हील के सैन्डल पहनकर अपने स्तनों को मटकाते हुए वो पिंटू और पीयूष के पास आई और बोली "पिंटू सर.. आप प्लीज जरा बगल वाली कुर्सी में शिफ्ट हो जाएंगे.. ??

पिंटू की तो जैसे लॉटरी ही लग गई.. "स्योर मैडम.. " कहते हुए एक कुर्सी छोड़कर बैठ गया.. और कविता, पीयूष और पिंटू के बीच में बैठ गई.. कविता के मन की मुराद भी पूरी हो गई.. एक तरफ पति था और दूसरी तरफ उसका प्रेमी.. बीच में कविता.. बैठते वक्त उसने पीयूष के पैरों पर जान बूझकर लात मारी और सब सुन सके ऐसी आवाज में कहा "हाई पीयूष.. कैसे हो? "जैसे वह किसी अनजान से बात कर रही हो.. हद तो तब हुई जब कविता ने बाउल से सब से पहले पिंटू की थाली में परोसा और फिर बची कूची सब्जी पीयूष के प्लेट में डाली.. पीयूष की इज्जत का कचरा कर दिया कविता ने.. डाइनिंग टेबल पर बैठे सब को यकीन हो गया की कविता और पीयूष के बीच कुछ अनबन थी..

मौसम को कविता का पीयूष के प्रति ये कठोर बर्ताव बिल्कुल अच्छा नही लगा.. पीयूष के लिए उसे बुरा लग रहा था.. पर वो कुछ कर नही सकती थी..इसलिए उसने अपना ध्यान खाना खाने पर केंद्रित किया.. सिल्क की भारी साड़ी में सजी हुई रेणुका खाना खाते हुए बार बार पीयूष की ओर देख रही थी और सोच रही थी की आखिर कविता ऐसा क्यों कर रही है ?? कविता ने खुद ही उसे अपने और पिंटू के प्रेम प्रकरण के बारे में बताया था.. अपने प्रेमी के संग डिनर कर रही कविता को देखकर रेणुका को भी पीयूष के साथ बैठने का दिल करने लगा था..

काफी देर तक डिनर चलता रहा.. उसके बाद राजेश अपने स्थान से उठा और सबको संबोधित करते हुए कहा

राजेश: "सबका डिनर हो चुका है.. हम सब एक घंटे के लिए रीलैक्स होंगे और फिर ग्रांड पार्टी के लिए दस बजे यहीं मिलेंगे.. आप सभी के रेणुका मैडम की बर्थडे मनाने.. !!" सब ने तालियों से इस बात का स्वागत किया.. धीरे धीरे सब खड़े होकर अपने कमरे की ओर जाने लगे.. मौसम और फाल्गुनी कोने में बैठकर बातें कर रही थी.. रेणुका और वैशाली.. पीयूष की दोनों प्रेमिकाएं आपस में कुछ गुफ्तगू कर रही थी.. पीयूष मौसम के खयालों में खोया हुआ था.. कविता और पिंटू बातें कर रहे थे.. राजेश ने जाते जाते कविता के पिंक टॉप से दिख रही गोलाइयों पर एक कामुक नजर डाली..

संबंधों की जटिलता बड़ी ही संकीर्ण होती है.. माउंट आबू की एक वैभवशाली आलीशान होटल के तीसरे माले पर बने विशाल डाइनिंग हॉल में खड़े पच्चीस लोग अपने दिल और दिमाग से सोच रहे थे.. वैशाली को अपने पति संजय की याद नही आ रही थी और पीयूष कविता को भूल चुका था.. सब को दूसरे की थाली में घी ज्यादा नजर आ रहा था.. कविता पिंटू में अपने जीवन का सुख ढूंढ रही थी.. और रेणुका पीयूष में.. ऐसा क्यों होता है की अपने सुख के लिए इंसान हमेशा दूसरों पर ही निर्भर होता है?? क्या हम अकेले ही सुखी नही हो सकते??.. जवाब है.. नही हो सकते.. हकीकत में इंसान अकेले रहने के लिए बना ही नही है.. उसका सुख और दुख.. दूसरे इंसानों की बदौलत ही होता है.. यही सब से बड़ी मुसीबत है..

अपनी तरफ देख रहे राजेश सर की ओर कविता ने पहली बार ध्यान से देखा.. राजेश की आँखों की हवस को उसने परख लिया.. राजेश रेणुका से बात करते हुए बार बार कविता की छातियों की ओर देख रहा था.. लेकिन कविता को इस बात का जरा भी बुरा नही लग रहा था.. उल्टा वो तो इस बात से खुश हो रही थी

पीयूष मौसम को पटाने और चोदने की तरकीबें सोच रहा था.. पर फाल्गुनी हमेशा मौसम के साथ ही होती थी.. ऐसी सूरत में मौसम से अकेले मिल पाना मुमकिन नही था.. अनजाने में ही फाल्गुनी कबाब में हड्डी बनी हुई थी.. शायद इसीलिए यह अंग्रेजी कहावत बनी होगी Two is a company but three is a crowd...

डेढ़ घंटे पहले पीयूष के साथ शॉर्ट इनिंग्स खेलकर फ्रेश हो चुकी वैशाली अकेले बैठी थी फिर भी उसके चेहरे पर अनोखा नूर था.. चुदाई की तृप्तता की चमक थी.. पीयूष की किस्मत बड़ी ही तगड़ी थी.. उसके पीछे वैशाली, रेणुका और मौसम.. तीन तीन चूतें पड़ी हुई थी.. और कविता पिंटू के पीछे पड़ी हुई थी.. कविता ये सोच रही थी की पीयूष के साथ ऐसा कब तक चलेगा? छोटी सी बात का उसने बतंगड बना दिया..?? क्या कभी समझौता होगा? पिंटू की तरफ देखकर उसने एक भारी सांस ली.. वो चलकर पिंटू के पास आई और बोली "क्यों अकेला खड़ा है? क्या सोच रहा है?"

"अकेला हूँ इसलिए अकेला खड़ा हूँ.. सब कपल में हैं और में सिंगल हूँ.. बिना कंपनी के बोर हो रहा हूँ.. और तुझे तो पता है.. मुझे भीड़भाड़ ज्यादा पसंद नही है.. वैसे इस ड्रेस में तू ग़ज़ब लग रही है कविता.. यार.. ऐसे दिखा दिखाकर क्यों तड़पा रही है!! मेरा हाल उस भक्त जैसा है जो भगवान को चढ़ाएं प्रसाद को सिर्फ देख सकता है.. चख नही सकता.. " पीयूष ने कहा

"तो चख ले ना.. रोक कौन रहा है तुझे.. और ये मंदिर का प्रसाद नही है.. तेरी थाली में परोसे जाने के लिए तैयार भोजन है" कविता ने झुककर अपने स्तनों के बीच की खाई दिखाकर पिंटू को उकसाया की इस खाई में कूदकर अपनी जान दे दें.. "पिंटू, तुझे मेरे स्तन बहोत पसंद है ना.. इसीलिए तो मैंने ऐसे कपड़े पहने है.. और खास तेरा पसंदीदा पिंक टॉप भी इसीलिए पहना आज.. आई लव यू पिंटू.. " पिंटू के कान में फुसफुसाई कविता

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"आई लव यू टू कवि.. सच कहा तूने तेरे बबले मुझे बहोत पसंद है.. देखकर ही उन्हे मसलने का मन कर रहा है मुझे.. पिछली बार जब हम मिले थे तब याद है तुझे.. कितने दबाए थे मैंने!!!"

"हाँ यार.. मुझे भी अपनी आखिरी मीटिंग बहोत याद आ रही है.. यार पिंटू.. ऐसी जगह पर हम दोनों अकेले आए तो कितना मज़ा आएगा.. हैं ना.. !!" कविता खुली आँखों से सपना देख रही थी..

प्रेमिओ की दुनिया सपने में ही जन्म लेती है और सपनों में ही बिखर जाती है..

"कविता, हम दोनों नदी के दो किनारे है.. जो साथ साथ हजारों किलोमीटर तक सफर करते है.. सदियों तक साथ रहते है.. पर कभी एक नही हो सकते.. तू तेरे ससुराल में पीयूष के साथ खुश हो तो मैं तुझे देखकर ही खुश हो जाऊंगा.. मैं तो बस दूर बैठे तुझे देखता रहूँगा.. और तेरा ध्यान रखूँगा.. मरते दम तक.. !!" पिंटू भावुक हो गया

"उदास मत हो यार.. मैं शीला भाभी को बोलूँगी तो वो हम दोनों का यहाँ अकेले आने का कुछ न कुछ सेटिंग जरूर कर देगी.. शीला भाभी पर मुझे पूरा भरोसा है.. वो कोई तरकीब लगाकर हमारी ये ख्वाहिश पूरी करेगी.. शीला भाभी कुछ भी कर सकती है.. तुझे याद है न पिंटू.. कितनी चालाकी से उन्होंने उस दिन मूवी देखते वक्त हम दोनों का सेटिंग करवाया था??" कविता ने कहा

"हाँ कविता.. वो भी पीयूष की मौजूदगी में.. " उस यादगार लम्हे को याद करते हुए पिंटू खुश हो गया.. उसका उदास चेहरा खिल उठा..

अपने प्रेमी को खुश देखकर कविता धीमे से बोली "देख पिंटू.. आशा अमर है.. निराश मत हो.. अभी हम आबू में ही है.. तू पीयूष से मिलकर बात कर.. वो कहीं बाहर जाने वाला हो.. तो हम मिल सकते है.. मुझसे तो वो बात करता नही है.. पर मैं भी अपनी तरफ से कोशिश करती हूँ.. "

"लेकिन में पीयूष को ऐसा कैसे पूछूँ की वो कहाँ जाने वाला है और क्या करने वाला है?? उसे शक नही होगा?" पिंटू ने कहा

"देख पिंटू.. तुझे अगर मेरे बॉल दबाने है तो जोखिम उठाना पड़ेगा.. " कविता ने पिंटू के अंदर के मर्द को जगाने की कोशिश की

"ठीक है.. मैं कुछ करता हूँ.. " पिंटू वहाँ से चला गया..

कविता भी चलते चलते राजेश सर और रेणुका मैडम के पास गई..

मौसम से बात कर रहे पीयूष ने कहा "मौसम, देख तो.. कविता कैसे अपनी ब्रेस्ट सब को दिखाती फिर रही है??"

मौसम: "सब को दिखाने के लिए नही जीजू.. आपको दिखाने के लिए दीदी ने ऐसा ड्रेस पहना है.. नजदीक जाकर देखिए तो सही!!"

पीयूष: "मुझे उस में कुछ नही देखना.. मुझे जो देखना है वो तो मैं देख ही रहा हूँ.. " मौसम के उन्नत स्तनों की तरफ देखते हुए पीयूष बोला.. मौसम शरमाकर नीचे देखने लगी..

पीयूष: "जब तू शरमाती है तब और भी सेक्सी लगती है "

फाल्गुनी: "मर्दों को तो हर स्त्री या लड़की सेक्सी ही लगती है.. " फाल्गुनी ने पीयूष की पतंग हाथ में ही काट दी..

पीयूष: "ऐसा नही है फाल्गुनी.. सब का देखने का नजरिया अलग अलग लगता है.. पर हाँ.. वैसे तू भी मुझे बड़ी सेक्सी लगती है" पीयूष ने फाल्गुनी को भी दाने डाले

"जीजू, आपको मैं सेक्सी लगती हूँ या मौसम?" फाल्गुनी ने पूछा

"मुझे तो दोनों सेक्सी लगती हो" पीयूष ने कहा

मौसम: "ज्यादा सेक्सी कौन लगता है?" कठिन सवाल था पीयूष के लिए.. पीयूष उलझ गया

"मुझे तो दोनों सेक्सी लगती हो.. ज्यादा कम का मुझे पता नही है.. आप दोनों ऐसे सवाल करके मुझे कन्फ्यूज़ मत करो.. फाल्गुनी, तू मेरे साथ डेट पर चलेगी?" पीयूष ने सीधे सीधे पूछ लिया..

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पीयूष के इस अचानक सवाल से एक पल के लिए तो स्तब्ध रह गई फाल्गुनी.. "आप पागल हो गए हो क्या, जीजू? मैं आपके साथ डेट पर गई तो कविता दीदी जान से मार देगी मुझे.. कितना प्यार करती है वो आपसे.. पता है!!"

फाल्गुनी ने अनजाने में कहे इस वाक्य ने मौसम के अंदर से हिला कर रख दिया.. कांप उठी मौसम.. मन ही मन वो सोच रही थी की ऐसा क्या कारण था जो उसे पीयूष की ओर खींचा जा रहा था?? मौसम के चेहरे का नूर उड़ गया.. अकथ्य पीड़ा से उसका मुख मुरझा गया.. कहीं उसके इस आकर्षण का पता कविता दीदी को चल गया तो क्या होगा.. इस बात की कल्पना करने से भी डर रही थी मौसम.. उसने निश्चय किया.. कुछ भी हो जाए.. अब जीजू से ज्यादा क्लोज नही होना है.. अपनी पसंदीदा व्यक्ति से दूर भागने की कोशिश करनी थी उसे.. पर प्रेम और आकर्षण ऐसी चीज है जो कभी किसी को चैन से जीने ही नही देती

पीयूष: "अरे, मैं तो मज़ाक कर रहा था फाल्गुनी.. चलो मैं चलता हूँ अपने दोस्तों के पास.. बाद में पार्टी में मिलेंगे" कहते हुए पीयूष ने मौसम की पीठ को सहलाया और चल दिया

अब मौसम और फाल्गुनी अकेले थे.. फाल्गुनी मौसम को चिढ़ने लगी

"मौसम, देख न.. दीदी ने आज कैसी ड्रेस पहनी है.. कितनी मस्त लग रही है वो!! मैं तो कहती हूँ तू भी ऐसा ड्रेस ट्राय कर एक बार"

मौसम: "क्या तू भी.. मैं ऐसा ड्रेस पहनूँगी तो सब टूट पड़ेंगे मेरे ऊपर.. रेप हो जाएगा मेरा!!"

फाल्गुनी: "बकवास मत कर.. ऐसे कोई कैसे रेप कर देगा.. !! पर हाँ.. कविता दीदी का ड्रेस कुछ ज्यादा ही एक्सपोज कर रहा है.. शायद जीजू को भी ये बात पसंद नही आई"

मौसम: "हाँ थोड़ा बोल्ड तो जरूर है.. पर दीदी बेचारी घर पर ऐसा ड्रेस पहन नही सकती.. ऐसे मौकों पर ही ट्राय कर सकती है.. लेकिन तेरे बात से मैं सहमत हूँ.. ड्रेस में से कुछ ज्यादा ही नजर आ रहा है.. फाल्गुनी, तूने एक बात नोटिस की? राजेश सर बार बार दीदी की छाती को ही देख रहे थे.. उनकी पत्नी बगल में खड़ी थी फिर भी वह देखते ही जा रहे थे.. उनको शर्म नही आती होगी ऐसा देखने में ?? अपनी पत्नी की मौजूदगी में कोई कैसे किसी ओर को गंदी नजर से देख सकता है!!"


फाल्गुनी: "सही बात है तेरी.. इन सारे मर्दों को बस एक ही चीज में इन्टरेस्ट होता है"
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पीयूष अपने कमरे में आया और कपड़े बदलकर वापस ऊपर कान्फ्रन्स रूम में पहुँच गया.. सब लोगों अलग अलग तीन-चार के ग्रुप में खड़े खड़े गप्पे लड़ा रहे थे.. हॉल में शराब, सिगरेट और महंगे परफ्यूम के मिश्रण की गंध फैली हुई थी..

गुलाबी स्लीवलेस टॉप में अपनी तंदूरस्त जवानी को उछालते हुए कविता बातें कीये जा रही थी.. और सब का ध्यान अपनी ओर खींच रही थी.. वो बार बार अलग ग्रुप में जाकर बातें कर रही थी.. अनजाने लोगों से भी हाई-हैलो कर रही थी.. वो जिस ग्रुप की ओर जाती उस ग्रुप के सारे मर्द उसे आते देख चुप हो जाते.. बस उसकी उन्नत छातियों को ताड़ते रहते.. सागर की लहरों की तरह उछल रहे उसके स्तनों की गोलाई, पतले से टॉप में इतनी आसानी से नजर आ रही थी की सब की नजर वहीं चिपकी रहती.. कोन्फ्रन्स हॉल का एसी थोड़ा सा तेज था.. वातावरण में फैली ठंडक के कारण कविता की निप्पल सख्त होकर टॉप के कपड़ों में अपना आकार बना रही थी.. एक दो पुरुष तो कविता को देखते ही अपना लंड ऐडजस्ट करने लगे.. कुछ मर्द टॉइलेट जाने का बहाना बनाकर अपना लंड हिलाकर लौटे..

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राजेश सर कोने में किसी के साथ फोन पर बात कर रहे थे.. उन्हें भी जाकर हाई बोलकर आई कविता.. फिर वो चलते चलते रेणुका और वैशाली के पास आकर खड़ी हो गई..

"हाय मैडम, हैप्पी बर्थडे.. ढेर सारी शुभकामनाएं और विशिज.. ईश्वर आपको लंबी उम्र दे"

"ओह शुक्रिया कविता.. वैसे तू आज कमाल लग रही है.. क्या गजब का बोल्ड ड्रेस है तेरा.. राजेश तुझे देखने के बाद आज मेरी हालत खराब कर देगा!!"

सब कुछ जानते हुए भी कविता ने पूछा "अरे ऐसी भी क्या बात है रेणुका?"

रेणुका: "अरे, तेरे इस गरमागरम डिस्प्ले को देखकर राजेश मुझे बोल रहा था की चल रूम में चलते है"

कविता: "हाँ तो दिक्कत क्या है!!! जाकर आइए.. हम सब आपका वेइट करेंगे.. " हँसते हुए उसने कहा

वैशाली: "नही रे नही.. ऐसा थोड़े ही चलता है!! हम यहाँ बाहर खड़े खड़े तड़पे और आप अंदर मजे करो.. मैं नही जाने दूँगी आपको" मज़ाक करते हुए वैशाली ने कहा

रेणुका: "तो तू भी चल मेरे साथ अंदर.. मुझे कोई दिक्कत नही है.. राजेश हम दोनों को एक साथ बिस्तर में संभालने के लिए काफी है.. हा हा हा हा हा.. !!"

वैशाली: "नही रे बाबा.. मैं कबाब में हड्डी बनना नही चाहती.. आप कविता को ले जाइए अगर उसकी इच्छा हो तो.." तभी मौसम ने वैशाली को आवाज दी.. "मैं अभी आती हूँ.. एक्स्क्यूज़ मी" कहते हुए वैशाली मौसम और फाल्गुनी की ओर चल पड़ी

रेणुका ने आँख मारते हुए कविता से कहा "क्यों कविता.. क्या खयाल है? चलना है अंदर मेरे साथ?"

कविता: "ना बाबा ना.. ऑफकोर्स मेरी इच्छा तो है पर वो आपके पति के साथ नही.. मेरी पसंद के पुरुष के साथ"

रेणुका: "तो बोल न.. तेरी पसंद के साथी के साथ मजे करने हो तो मैं अभी कुछ मेनेज कर दूँगी.. कौन पसंद है तुझे बता मुझे.. पर राजेश को छोड़कर"

कविता: "मेरी पसंद तो तुम्हें पता है ही.. दरअसल मैं तुम से वही कहने आई थी.. माउंट आबू के इस रोमेन्टीक माहोल में मैं पिंटू के साथ थोड़ा वक्त बिताने की बहोत इच्छा हो रही है.. पर चांस ही नही मिलता.. !! क्या करू? तुम मेरी कुछ मदद करो ना प्लीज!!"

रेणुका सोचने लगी.. फिर उसने कहा "चिंता मत कर.. मैं कुछ करती हूँ.. मेरे बर्थडे के दिन कोई उदास हो, ऐसा कैसे हो सकता है !!"

कविता: "पर ध्यान रखना.. पीयूष को पता नही लगना चाहिए.. वरना लेने के देने पड़ जाएंगे"

रेणुका: "डॉन्ट वरी.. मैं जब तुझे फोन करू तब तू आ जाना.. " कविता को आश्वासन देते हुए उसने कहा

अपने प्रेमी को अकेले में मिलने को बेकरार कविता के दिल को ठंडक मिली.. "और हाँ.. वैशाली को भी कुछ मत बताना.." वैशाली को अपनी ओर आते देख कविता ने रेणुका से कहा

रेणुका: "ओके बेबी डन.. और कविता.. हमारी ऑफिस में कंप्युटर ऑपरेटर की नौकरी के लिए तेरा नाम तय है.. बोल कब से जॉइन करेगी?" जबरदस्त आत्मविश्वास के साथ रेणुका ने कहा.. उसका कहने का मतलब साफ था.. अगर कविता पिंटू से अकेले मिलना चाहती हो तो उसे रेणुका की बात माननी होगी..

कविता: "मुझे एक बार पीयूष से इस बारे में बात करनी होगी.. बाकी मुझे आप की कंपनी में जॉब करने में कोई आपत्ति नही है"

रेणुका: "वो सब तू मुझ पर छोड़ दे.. पीयूष को मैं मना लूँगी.. " तब तक वैशाली उनके करीब आ चुकी थी और रेणुका का आखिरी वाक्य उसने सुन लिया था.. उस वाक्य का दूसरा अर्थ भी निकलता था जो वैशाली समझ गई.. पर फिलहाल वो कुछ नही बोली.. समय आने पर ही बोलने में विश्वास रखती थी वैशाली..

नौकरी की ऑफर के बारे में गंभीरता से सोच रही थी कविता.. अगर वो हाँ कर दे तो पिंटू के साथ रहने का मौका मिल जाएगा.. वो रोज उसे कम से कम आठ घंटों के लिए देख पाएगी.. मिल पाएगी.. बात कर पाएगी.. और कंपनी का मालिक और उनकी पत्नी के साथ अब घर जैसे संबंध बन चुके थे.. कविता के दिल में.. उसके स्तन के साइज़ के लड्डू फूटने लगे.. समस्या बस एक ही थी.. पीयूष और अपने सास ससुर से नौकरी करने के लिए इजाजत लेनी थी.. अगर वह नही माने तो उसका सपना एक पल में चूर हो जाने वाला था.. कविता सोच रही थी की इस समस्या का समाधान कैसे करे.. !!

जब भी कविता का दिमाग काम करना बंद करे तब उसे शीला भाभी की याद आ जाती थी.. शीला के पास सारी समस्याओं का हल मिल जाता था.. घर जाते ही शीला भाभी को इस के बारे में बताती हूँ.. वो कुछ न कुछ तरीका ढूंढ निकालेगी.. मन में गांठ मार ली कविता ने

सब धीरे धीरे कोन्फ्रन्स रूम में इकठ्ठा होने लगे थे.. मौसम और फाल्गुनी.. दोनों चिड़िया की तरह चहचहा रही थी.. सब का ध्यान बार बार उनकी ओर चला जाता था.. चंचल परवाने जैसी मौसम और शांत गंभीर फाल्गुनी.. दोनों दिखने में बेहद सुंदर और आकर्षक..

"लेडिज एंड जेन्टलमेन.. माउंट आबू की इन हसीन वादियों में मेरी प्रियतमा पत्नी के ३५वे जन्मदिन की पार्टी में.. मैं और रेणुका आप सब का स्वागत करते है.. " माइक पर बोल रहे राजेश की आवाज पूरे हॉल में गूंज उठी.. सब ने तालियों से सराहा.. शराब के नशे में काफी लोग मस्त थे.. मुक्त और मस्त वातावरण था.. और इस वातावरण का असर मौसम और फाल्गुनी पर भी धीरे धीरे होता जा रहा था

रेणुका केक काटने ही वाली थी तब राजेश ने उसे एक मिनट के लिए रोक लिया.. और पीयूष को आवाज लगाई..

"यस सर.. " पीयूष राजेश के करीब आया.. राजेश ने पीयूष के कान में गिफ्ट के बारे में पूछा.. "वो तो मेरे कमरे में है" पीयूष ने कहा

"अरे भई.. तो लेकर आओ जल्दी.. " राजेश ने कहा.. पीयूष अपने कमरे की ओर भागा

तभी रेणुका ने पिंटू को अपने पास बुलाया और उसके कान में कुछ कहा.. पिंटू ने जवाब में "स्योर मैडम" कहा और वो भी हॉल के बाहर चला गया.. अब रेणुका ने कविता को बुलाया.. और सब सुन सके उस तरह कहा "अरे कविता.. मेरा पर्स रूम पर भूल आई हूँ.. जरा लेकर आएगी प्लीज.. टेबल पर ही पड़ा है"

"अभी लेकर आती हूँ" अपने बॉल उछालते हुए कविता रेणुका के कमरे की तरफ दौड़ी

जाते जाते कविता को याद आया की वह कमरे की चाबी लेना तो भूल ही गई थी.. पर तब तक वो कमरे तक पहुँच गई थी.. उसने देखा की कमरा तो पहले से ही खुला हुआ था.. दरवाजा खोलकर उसने प्रवेश किया.. बेग के अंदर कुछ ढूंढ रहे पिंटू की पीठ देखकर वह चोंक उठी.. तभी कविता के मोबाइल की रिंग बजी.. पिंटू ने घबराकर पीछे देखा और आश्चर्य से पूछा "अरे कविता? तुम यहाँ? क्या बात है?"

पिंटू को बोलने से रोकने के लिए कविता ने अपने होंठ पर उंगली रखते हुए इशारा किया और फोन रिसीव किया "हैलो.. !!"

"ओके मैडम" एक ही सेकंड में उसने फोन काट दिया

कविता ने दरवाजा अंदर से लॉक कर दिया और पिंटू को अपनी बाहों में भरकर.. रेणुका-राजेश के बिस्तर पर गिरा दिया

पिंटू घबरा गया "ये क्या कर रही है पगली??" उसने कविता को धक्का देकर अपने आप को उससे दूर किया

"अरे पिंटू मेरी जान.. रेणुका मैडम ने जान बूझकर हम दोनों को यहाँ भेजा है.. अभी उनका ही फोन था.. डरने की कोई बात नही है.. हम एकदम सेफ है यहाँ.. आई लव यू पिंटू" कहते हुए वह पिंटू से लिपट पड़ी..

उसी वक्त.. पूरे माउंट आबू में एक साथ लाइट चली गई.. कहीं किसी ट्रैन्स्फॉर्मर में एक जबरदस्त धमाके की आवाज सब ने सुनी.. अंधेरा होते ही पीयूष का हाथ कविता के पतले टॉप के अंदर घुस गया और वह उसके दसहरी आम का रस निकालने लगा.. कविता के अद्भुत कामुक स्तनों को वो मसलने लगा.. कविता का हाथ सीधा पीयूष के लंड पर पहुँच गया.. पेंट के ऊपर से लंड को मालते हुए उसने अपने लिपस्टिक लगे होंठ पीयूष के होंठों पर रख दिए..

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कविता के बिना ब्रा वाले स्तनों को हाथ में पकड़ते ही पिंटू की आह निकल गई.. कविता ने तुरंत अपना टॉप ऊपर कर लिया और पिंटू का चेहरा अपने दोनों स्तनों पर दबा दिया.. दोनों एक दूसरे में ऐसे खो गए.. जैसे धरती पर वो दो आखिरी इंसान हो.. पिंटू से ज्यादा भूख कविता की थी इसलिए वह काफी आक्रामक थी.. पीयूष की अवहेलना से परेशान कविता अपने प्रेमी के आगोश में आते ही उत्तेजित हो गई.. उसका जिस्म किसी मर्द को चाहता था.. क्योंकि पिछले काफी दिनों से पीयूष ने उसे हाथ भी नही लगाया था.. ऊपर से माउंट आबू आने के बाद उसकी इच्छाएं और उछलने लगी थी.. पिछले दो घंटों में.. अनगिनत मर्दों की भूखी नज़रों को अपने स्तन पर पड़ती हुई महसूस कर वह तड़पने लगी थी..

पिंटू भी अपने पहले प्यार को पा कर खुश हो गया था.. कविता के स्तनों की गर्माहट का मज़ा लेते हुए वह उसकी जांघों को सहलाने लगा.. जैसे जैसे पिंटू का हाथ उसकी जांघों पर आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे कविता अपनी टांगें चौड़ी करते हुए अपना राजद्वार खोल रही थी..पिंटू के हाथ के स्पर्श से वह सिहरते हुए उसने अपनी आँखें बंद कर ली.. चिकनी जांघों को सहलाते हुए पिंटू को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे संगेमरमर पर हाथ फेर रहा हो.. कविता का सहकार भी ऐसा मिल रहा था की कुछ ही सेकंड में पिंटू का हाथ उसकी चूत तक पहुँच गया..

पता नही.. ऐसा कौनसा जादू होता है स्त्री की योनि में..जिसे देखते ही पुरुष बेकाबु होकर जानवर की तरह टूट पड़ता है.. कविता ने अब पेंट की अंदर हाथ डालकर पिंटू का लंड पकड़ लिया था..

"कितना सख्त हो गया है यार" कविता को उसके लंड की गर्मी अपनी हथेली पर महसूस हो रही थी

"तुझे इस तरह देखने के बाद.. किसी का भी सख्त हो जाए.. क्या लग रही है तू कविता.. आह्ह.. " कविता की छाती को चूम चाटकर मदहोश कर दिया उसे पिंटू ने ..

उत्तेजनावश पिंटू के लंड पर कविता के हाथों की पकड़ और सख्त हो गई.. अपने स्तनों को और सख्ती से दबा दिया पिंटू के मुंह पर..

"अब मुझसे रहा नहीं जाता पिंटू.. कुछ कर ना जल्दी.. "

"ओह्ह कविता.. मेरी जान.. " कहते हुए पिंटू ने अपने पेंट की चैन खोलकर लंड बाहर निकाल लिया.. कविता बेचैन होकर पिंटू के लंड के टोपे को चूसने लगी.. कविता की इस हरकत से पिंटू भी अपना आपा खो बैठा.. कभी वो कविता की नंगी पीठ को सहलाता.. कभी उसके बालों में उँगलियाँ फेरता.. तो कभी उसके स्तन को दबाता

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"जल्दी करना होगा कविता.. सब हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे.. तू जल्दी उलटी लेट जा.. हमारी फेवरिट पोजीशन में करेंगे.. " पिंटू ने कहा

"नही यार.. मेरी बिना चाटे मैं तुझे छोड़ने वाली नही हूँ आज.. कितना वक्त हो गया.. आखिरी बार जब मेरे घर के पीछे की अंधेरी गली में मिले थे तब तूने चाटी थी मेरी.. वो रात मुझे बहोत याद आती है.. तेरी जीभ जब अंदर गई थी तब.. आह्ह इतना मज़ा आया था की क्या बताऊ.. प्लीज यार.. आज अपनी जीभ अंदर तक घुसेड़कर चाट दे एक बार"

"जो भी करवाना है जरा जल्दी कर यार" पिंटू ने कहा..

कविता ने तुरंत अपनी छोटी सी शॉर्ट्स और पेन्टी एक साथ उतार फेंकी.. पिंटू कविता की जांघों को चाटने लगा.. वो भी गरम हो चुका था.. कविता ने उसका सर पकड़ा और उसके मुंह को अपनी चिपचिपी बुर पर लगा दिया.. पिंटू की जीभ का अपनी चूत पर स्पर्श प्राप्त होते ही कविता स्वर्ग में पहुँच गई.. पिंटू के कामुक चुंबनों का असर इतनी तीव्रता से हुआ की एक ही पल में उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया.. उसके स्तन सख्त हो गए और निप्पल बंदूक की गोली जैसी टाइट हो गई.. पिंटू जैसे जैसे चाटता गया.. कविता की सिसकियों का वॉल्यूम बढ़ता गया.. अपने पसंदीदा पात्र के साथ संभोग करने से बेहतर मज़ा ओर कोई नही है..

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पिंटू की जीभ ने कविता को उसके सारे गम भुला दिए.. कमर को उचक उचक कर वह अपनी चूत को पिंटू के मुंह से घिस रही थी.. कराहते हुए कविता का जिस्म एकदम सख्त और सीधा हो गया.. वह थरथराने लगी.. और एक छोटी सी चीख के साथ पिंटू के मुंह में झड़ गई.. स्खलित होते ही कविता का जिस्म एकदम हल्का हो गया.. दिमाग शांत हो गया.. मन तृप्त हो गया.. अपना काम खतम होते ही उसे वास्तविकता का ज्ञान हुआ..

अब लाइट भी आ चुकी थी

"अब हमे चलना चाहिए पिंटू.. बहोत देर हो गई" कविता ने कहा

"अच्छा?? तो फिर इस सख्त लोडे का क्या करू? ये अब ढीला होने नही वाला.. अब ईसे वापिस पेंट में डालना भी मुमकिन नही है.. क्या करू? तू बता" पिंटू ने थोड़े गुस्से से कहा..

कविता उठकर पिंटू के लंड को तेज गति से हिलाने लग गई.. पिंटू कविता के बॉल को पागलों की तरह दबाने लगा.. पिंटू को बिस्तर पर सुलाते हुए कविता उसके ऊपर चढ़ बैठी.. और अपने हाथ को नीचे ले गई.. पिंटू के कड़े लंड को अपनी चूत के सेंटर पर रखकर उसने दबाया.. पर लंड अंदर गया नही.. कविता ने अपनी हथेली पर थोड़ा सा थूक लेकर नीचे लंड पर लगाया.. और ऊपर वज़न देने लगी..

"उफ्फ़ पिंटू.. तेरा ज्यादा मोटा हो गया है क्या.. !! अंदर जा ही नही रहा.. दर्द हो रहा है मुझे.. ऊईई माँ.. !!" धीरे धीरे कविता की चूत लंड निगलती रही.. अपने प्रेमी को खुश करने के लिए कविता ऊपर नीचे होते हुए धक्के लगाने लगी..

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अपना ऑर्गजम हो जाने के बावजूद.. अपने प्रेमी को खुश करने के लिए.. अपनी कामुक अदाओं से वह पिंटू को रिझाने लगी.. कविता की चूत के एकदम टाइट वर्टिकल होंठों की पकड़ इतनी मजबूत थी की पिंटू नीचे लैटे लैटे स्वर्ग का आनंद ले रहा था.. ऊपर नीचे करते हुए लय बनाकर कविता अपने स्तनों को उछाल रही थी.. अपनी चूत की गहराई में अंदर तक उसे लंड की गर्माहट का एहसास हो रहा था.. गति बढ़ाते हुए कविता चाहती थी पिंटू जल्दी से जल्दी झड़ जाए..

अपने स्तनों पर पिंटू की टाइट पकड़ महसूस करते हुए कविता को पता चल गया की पिंटू अब झड़ने के करीब था.. उसने अपनी उछलने की गति दोगुनी कर दी..

"ओह्ह गॉड.. फक मी.. लव यू मेरी जान.. बहोत मज़ा आ रहा है मुझे.. कितनी टाइट है तेरी चूत.. पीयूष डालता भी है या नही अंदर.. ओह्ह ओह!!" कविता की कमर पकड़कर उसे धक्के लगाने में मदद कर रहा था पिंटू

लंड के घर्षण से अभी अभी स्खलित हुई कविता फिर से गरम होने लगी.. अपनी चूत की मांसपेशियों को उसने इतना टाइट कर दिया जैसे पिंटू के लंड का गला घोंट देना चाहती हो.. लंड और चूत की लड़ाई में हम मानते है की आखिर में लंड जीता या चूत जीती.. पर हकीकत में चूत कभी हारती नही.. हार हमेशा लंड की ही होती है.. कभी चूत से बाहर निकले लंड के हाल देखें है!!! कोल्हू से निकले हुए गन्ने जैसी हालत होती है लंड की..

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लंड पर दबाव बढ़ते ही पिंटू के लंड ने पिचकारी मार दी.. दोनों प्रेमी एक दूसरे से लिपट गए..

कुछ सेकंडों तक लिपटे रहने के बाद रीलैक्स होकर पिंटू के होंठों को चूमते हुए कविता ने कहा.. "अब मुझे जाना होगा पिंटू.. जाने का मन तो नही है पर क्या करें.. !! काश हम दोनों को साथ में एक रात गुजारने का मौका मिल जाएँ "

"फिलहाल तो ऐसा मौका मिलना मुमकिन नही है.. तू अब कुंवारी नही है.. पीयूष की पत्नी है तू.. चल अब तू जल्दी जा.. मैं थोड़ी देर में आता हूँ वरना किसी को शक हो जाएगा"

"नही.. तू पहले निकल.. मैं यह बेड की चादर और मेरा मेकअप ठीक करके आती हूँ" पिंटू का चेहरा उसने अपने रुमाल से पोंछ कर उसके बाल ठीक कर दिए और उसे एक आखिर किस देकर जाने दिया.. उसके जाने के बाद कविता ने आईने में देखकर अपना मेकअप ठीक किया.. लिपस्टिक फिर से लगाई.. ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी रेणुका की डार्क ब्राउन शेड की लिपस्टिक होंठों पर लगाते हुए उसे पिंटू के सुपाड़े की याद आ गई.. कविता हंस पड़ी.. सोचने लगी.. दुनिया की सर्वश्रेष्ठ लिपस्टिक तो लंड ही है.. उससे होंठ गीले करने में जो मज़ा है वो बेजान लिपस्टिक में कहाँ!!! शायद इसी कारण सारी कंपनियां लिपस्टिक को लंड के आकार की ही बनाते है..


कविता ने फटाफट अपने बाल ठीक कीये.. बेड की चादर की सिलवटें दूर की.. और सब कुछ एक आखिरी बार चेक करते हुए रूम से बाहर निकली। हॉल में पहुंचते ही उसने देखा की सब पार्टी इन्जॉय कर रहे थे.. कविता के उछलते स्तनों की गैरमौजूदगी में सारा वातावरण शांत सा था.. पर जैसे आंधी आते ही सब अस्तव्यस्त हो जाता है.. वैसे ही कविता की पायलों की झंकार सुनते ही सब अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए उसे देखने लगे.. अपने हाथ के ग्लास में पड़ी दारू को भूलकर कविता के जोबन को पीने लगे.. मर्द तो मर्द.. सारी औरतें भी कविता के स्तन युग्म को देखती ही रह गई.. सब कविता को देख रहे थे.. एक पीयूष को छोड़कर.. पीयूष नाम का भँवरा.. मौसम नाम के ताजे खिले फूल का रस चूसने के लिए यहाँ वहाँ मंडरा रहा था..
बहुत ही शानदार अपडेट था पीयूष कविता को छोड़ कर मौसम की पीछे पड़ा हुआ है मौसम को तो चोदने का मोका नही मिला लेकिन कविता ने पिंटू से चुदने का मौका ढूंढ कर पिंटू के साथ मजे कर लिए
 
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