इतनी थकान के बाद पीयूष को नींद आ जानी चाहिए थी.. पर बगल में पड़ा लैपटॉप.. और उसके अंदर की स्फोटक सामग्री ने उसकी नींद उड़ा दी थी.. पर मदन भैया और उनका परिवार कभी भी आ सकते थे.. ऐसी स्थिति में ज्यादा पड़ताल करने में खतरा था.. पीयूष बेड से उठा.. लैपटॉप को टेबल पर रखकर उसका चार्जर लगाया.. फिर शट डाउन करने से पहले उसने ध्यान से देख लिया की वो क्लिप कहाँ पर सेव थी.. लैपटॉप को ज्यों का त्यों रखकर वो सो गया..
सुबह रोज के मुकाबले आज कविता की नींद काफी जल्दी उड़ गई.. पाँच भी नहीं बजे थे और दूध भी नहीं आया था.. वो उठकर उसी अवस्था में बाथरूम जाकर आई.. अभी थोड़ी देर में रसिक आएगा.. वापिस सो गई तो जागने में कठिनाई होगी.. इससे अच्छा तो घर की थोड़ी सफाई कर लूँ.. और पीने का पानी भी भर लूँ.. आज तो वो लोग आ ही जाएंगे..
नग्न अवस्था में कविता किचन गई और झाड़ू लगाने लगी.. उसके दिमाग मे अब भी कल रात वाली क्लिप चल रही थी.. मदन भैया का उस स्त्री के साथ क्या संबंध होगा?? क्या मस्त चोद रहे थे भैया.. इतने जबरदस्त धक्के तो पीयूष ने भी कभी नहीं लगाए.. मदन भैया की उम्र भले ही बड़ी हो.. पर जोर बहोत है.. लंड भी कितना मस्त है.. !! उस औरत को चुदने में कितना मज़ा आ रहा था.. !! झुककर झाड़ू लगा रही कविता के लटक रहे बबलों के हिलने से उसे गुदगुदी सी हो रही थी.. आज पहली बार वो नंगे बदन झाड़ू लगा रही थी..
तभी उसने रसिक की साइकिल की घंटी सुनी.. और वो समझ गई की वो दूध लेकर आया था.. वो जल्दी से बेडरूम में गई और गाउन पहनकर बाहर आई.. पीयूष की नींद खराब न हो इसलिए वो डोरबेल बजने से पहले ही दरवाजा खोलकर खड़ी हो गई.. पर रसिक बाहर नजर ही नहीं आया.. !! सोच में पड़ गई कविता.. जो घंटी उसने सुनी वो रसिक की साइकिल की ही थी.. वो रोज सुनती थी इसलिए उसे पक्का यकीन था.. फिर ये रसिक गया कहाँ??
दरवाजे से बाहर बरामदे में आकर वो रसिक को ढूँढने लगी.. बाहर घनघोर अंधेरा था.. स्ट्रीट लाइट की रोशनी सिर्फ सड़क पर पड़ रही थी.. बरामदे में थोड़ा सा ही आगे आते ही उसे रसिक नजर आया.. वो उसे आवाज देने ही वाली थी की तभी.. उसकी आँखों ने धुंधली रोशनी में जो देखा.. वो अचंभित हो गई.. ये मैं क्या देख रही हूँ?? मम्मी जी और रसिक?? अरे बाप रे.. !! अंधेरे में साफ साफ तो दिख नहीं रहा था पर जीतने करीब वो दोनों खड़े थे.. सामान्यतः कोई भी औरत किसी अनजान के इतने करीब नहीं खड़ी रहती..
कविता ने सब से पहले तो दरवाजा बाहर से बंद कर दिया ताकि पीयूष के बाहर आने का रिस्क न हो.. फिर वो झुककर.. धीरे धीरे दुबक कर चलते हुए.. शीला भाभी और उनके घर के बीच की दीवार तक पहुँच गई.. दीवार की उस तरफ मौसी और रसिक बात कर रहे थे.. कविता झुकी हुई थी इसलिए वो उनके बेहद करीब होने के बावजूद उन्हें नजर नहीं आ रही थी..
मौसी ने धीमी आवाज में कहा "जरा धीरे बोल.. मेरा पति अंदर सो रहा है.. "
कविता को पता चल गया की कुछ खास बातें हो रही थी.. वरना इतनी सुबह सुबह मम्मी जी रसिक को आहिस्ता बोलने के लिए क्यों कहेगी.. !!
कविता दुबककर दीवार के पीछे छुपकर बैठी हुई थी.. कविता और उन दोनों के बीच अब ४ फिट से ज्यादा अंतर नहीं था..
मौसी: "पकड़ने तो दे रसिक.. !! बाहर निकाल.. और कुछ नहीं कर सकती पर देख तो सकती हूँ ना.. !! थोड़ा सहला लेने दे मुझे.. मदन के लौट आने के बाद शीला भी तो ऐसे ही करती थी ना तेरे साथ.. !!"
रसिक: "नहीं मौसी.. आज मेरा मन नहीं है.. !!"
मौसी: "मैं सब समझती हूँ की क्यों तेरा आज मन नहीं है.. मैंने कल कविता को लेकर मना किया इसलिए तू बुरा मान गया है.. पर तू सोच जरा.. सास होकर मैं अपनी बहु को ऐसी बात के लिए कैसे तैयार करूँ? मुझे तो बात करने की भी हिम्मत नहीं होती.. तू भी कमाल है रसिक..एक तो मुझे इसकी आदत लगा दी.. और अब मुंह फेर रहा है.. ये ठीक नहीं है.. मुझ पर थोड़ा सा तो तरस खा.. !!"
रसिक: "आप की सारी बात समझता हूँ.. पर आप भी समझिए.. जब से आपकी बहु दो देखा है, मेरा मन डॉल गया है.. आप ने तो सीधे मुंह मना कर दिया.. बुरा तो मुझे लगता है.. और वैसे आपकी बहुरानी भी कोई सती सावित्री नहीं है.. ससुराल में आकर भी अपने मायके के दोस्तों को बुलाती है.. मुझे और कुछ नहीं बस सिर्फ उसकी छातियाँ ही दबानी है.. उसको चोदना भी नहीं है.. सिर्फ हाथ भी फेरने नहीं देगी? इतना तो आप कर सकती हो मेरे लिए.. "
मौसी सोच में पड़ गई.. ये क्या बोल गया रसिक? कविता सती सावित्री नहीं है.. मतलब? क्या उसका कोई राज रसिक को पता है?? या फिर उसे लपेटने के लिए झूठ बोल रहा है.. !! कविता को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता की वो कुछ उल्टा सीधा कर सकती है..
मौसी: "सुन रसिक.. कविता के लिए उल्टा सीधा बोलेगा तो मैं सुनूँगी नहीं तेरी.. तुझे मेरे साथ न करना हो तो मत कर.. पर मेरी फूल जैसी बहु को बदनाम करेगा तो छोड़ूँगी नहीं तुझे"
रसिक: "आपकी उस फूल जैसी बहु को मैंने पिछली गली में.. खंभे के पास घाघरा उठाकर खड़ा हुआ देखा था.. और पीछे से एक भँवरा उसका रस चूस रहा था.. ये तो आप से जान पहचान है इसलिए आज तक मैं कुछ बोला नहीं.. आप को तो मालूम है मौसी.. मुझे बस किसी जवान मॉडर्न लड़की की छातियाँ दबानी है बस.. एक बार खोलकर देखनी है की कैसी होती है.. अगर एक बार आप अपनी बहु की छातियाँ देख लेने देंगे तो मैं आप के लिए सब कुछ करने के लिए राजी हूँ.." सुनते ही कविता की पैरों तले से धरती खिसक गई..!! बाप रे.. उस रात जब गली के पिछवाड़े पिंटू से चुदवा रही थी तब रसिक ने देख लिया था.. !!
अनुमौसी सोच में पड़ गई.. रसिक के तंदूरस्त शरीर को देखते ही उनकी दबी हुई इच्छा स्प्रिंग की तरह उछलकर जाग गई थी.. उसके पाजामे पर रखा हुआ उनका हाथ.. रसिक के हथियार को पकड़ने के लिए बेकरार था.. पर जब तक वो रसिक की मांग का स्वीकार न करें तब तक रसिक उसका लंड बाहर नहीं निकालने वाला था.. लंड के उभार को छूने के बाद अनुमौसी बेचैन हो गए थे उसे पकड़ने के लिए.. छूने के लिए.. उसकी सख्ती को अनुभवित करने के लिए..
मौसी: "तू क्यों जिद कर रहा है रसिक.. !! अब देख.. तू कविता को अपने हिसाब से पटाने की कोशिश कर.. मैं बीच में नहीं आऊँगी.. बस?"
रसिक को ये आधी जीत मंजूर नहीं थी.. वो तो चाहता था की मौसी खुद कविता को मनाएं.. पर इसके लिए मौसी को तगड़ी रिश्वत देने की जरूरत थी.. ऐसी रिश्वत की जिसको देखते ही अनुमौसी कविता को खोलकर उसके सामने पेश कर दे..
रसिक ने मौसी को अपनी ओर खींचकर बाहों में जकड़ कर जो कहा वो सुनकर कविता को ४४० वॉल्ट का झटका लगा..
"ओह्ह मौसी.. आप एक बार कविता को मना तो लीजिए.. बाकी सब मैं संभाल लूँगा.. अगर आपकी बहु भी हमारे खेल में शामिल हो जाती है.. तो ये बात राज ही रहेगी.. " मौसी के स्तनों को उत्तेजना पूर्वक मसलते हुए रसिक ने कहा.. रोज सुबह कविता की पतली लचकदार कमर को देखकर रसिक सोचता.. इसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़कर इसकी संकरी चूत के अंदर पूरा लंड घुसा दूँ तो कितना मज़ा आएगा.. !! उसका लंड चूत को चीरते हुए अंदर घुस जाएगा.. कविता तो चीख चीख कर मर जाएगी.. इतनी नाजुक है.. मेरे एक धक्के में तो लोडा उसके गले तक पहुँच जाएगा..
मौसी के घाघरे में हाथ डालकर उनकी क्लिटोरिस को मसलते हुए उन्हें जवानी के दिनों की याद दिला दी..
मौसी: "आह्ह रसिक.. कविता के साथ तुझे जो करना है कर.. उहह!!"
"अरे मौसी, आप की मदद के बगैर मैं कैसे उस तक पहुँच पाऊँगा?? आपकी बहु तो मुझे हाथ भी नहीं लगाने देगी.. आप एक बार उस कविता को तैयार कर दो बस.. फिर देखो मेरा जलवा.. आप दोनों के मर्द तो काम पर चले जाते है.. पूरा दिन सास-बहु घर पर अकेले रहती हो.. दोनों को बराबर मज़ा दूंगा.. जरा सोचिए मौसी, ऐसे अंधेरे में करने में क्या मज़ा?? उससे अच्छा तो मैं आपको दिन के उजाले में.. बिस्तर पर लेटाकर.. आपकी टांगें उठाकर धनाधन चोदूँगा तो कितना मज़ा आएगा.. !! रोज आकर चोदूँगा.. "
अपनी सास को ऐसी बातें करते हुए सुनकर कविता के अचरज का कोई ठिकाना न रहा.. पूरा दिन भजन गाती उसकी सास का ये नया स्वरूप देखकर कविता को आश्चर्य भी हुआ और दुख भी.. उसकी सास एक मामूली से दूधवाले से उसका सौदा कर रही थी??? एक पल के लिए उसे इतना गुस्सा आया की अभी बाहर निकले और झाड़ू से रसिक को धो डाले.. नफरत हो गई उसे रसिक से.. वो अब धीरे से वहाँ से सरक ही रही थी की तब उसने सुना..
मौसी: "हाय रसिक.. कितना मोटा है रे तेरा.. एकदम मूसल जैसा.. बल्कि उससे भी बड़ा है ये तो.. अगर कविता के साथ तेरी सेटिंग हो जाए तो तेल लगाकर डालना.. वरना बेचारी की लहूलुहान हो जाएगी.. मुझ जैसी अनुभवी को भी पेट में दर्द होने लगा था..इतना बड़ा है तेरा.. हाय, कब इसे फिर से अंदर डलवाने का मौका मिलेगा.. !! अभी मेरे पति अंदर सोये न होते तो मस्त मौका था.. कविता और पीयूष तो मदन के घर सो रहे है.. "
"उनकी जगह आप सोने गई होती तो अभी सेटिंग हो जाता ना.. " मौसी की हवस को हवा देते हुए रसिक उनकी भोस में चार चार उँगलियाँ अंदर बाहर करते हुए बोला
अपने शरीर का पूरा भार रसिक के कंधों पर डालकर.. फिंगर-फकिंग का मज़ा लेते हुए रसिक का लंड दबा रही थी "आह्ह रसिक.. बाहर तो निकाल.. एक बार देखने तो दे.. !!"
"आप ही हाथ डालकर बाहर निकाल लो.. मेरी उँगलियाँ तो आपके अंदर घुसी हुई है.. मैं निकालने जाऊंगा तो आपका मज़ा किरकिरा हो जाएगा"
"सही कहा तूने.. तू अपना काम जारी रख.. मैं खुद ही बाहर निकाल लेती हूँ.. " रसिक भोसड़े से उँगलियाँ बाहर निकाल ले ये मौसी को गँवारा नहीं था.. उसकी खुरदरी उँगलियाँ लंड का काम कर रही थी.. मौसी ने थोड़ी सी मेहनत करके बड़ी मुश्किल से रसिक का लंड बाहर निकाला.. लंड से खेलते हुए वो सिसकियाँ भरने लगी..
"मौसी, आपकी सिसकियों की आवाज जरा कम कीजिए.. कहीं आपके पति जाग गए तो इस उम्र में तलाक दे देंगे आपको"
"वो क्या मुझे तलाक देंगे? मैं खुद ही उनसे अलग हो जाऊँगी रसिक.. जो मज़ा तूने मुझे दिया है.. इतने सालों में वो नहीं दे पाए है.. मेरी जवानी धरी की धरी रह गई.. कितने अरमान थे मेरे.. सब अधूरे रह गए.. अच्छा हुआ जो तू मुझे मिल गया.. वरना मेरी ज़िंदगी तो ऐसे ही पूरी हो जाती.. "
मौसी को और मजबूर करने के लिए रसिक नीचे घुटनों के बल बैठ गया और मौसी के घाघरे के अंदर घुस कर.. मौसे के भोसड़े पर सीधा प्रहार करने लगा.. ये एक ऐसी हरकत थी.. जिससे मौसी ही नहीं.. पर कोई भी औरत अपना अंकुश खो बैठती.. मौसी ने अपने घाघरे से रसिक को अंदर छुपा दिया.. और रसिक का सिर पकड़कर अपनी भोस से दबा दिया.. रसिक की जीभ मौसी की भोस पर फिरती रही और अनुमौसी कराहती रही..
कविता को कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा था.. पर देखने की जरूरत भी क्या थी?? बातचीत और सिसकियों को सुनकर साफ पता चल रहा था की दीवार की उस ओर क्या चल रहा होगा.. !! कविता का पूरा शरीर गुस्से, नफरत और घृणा के कारण तपने लगा था
इस तरफ मौसी को अद्भुत सुख मिल रहा था.. चाट चाटकर रसिक ने मौसी के भोसड़े का रस निकाल दिया.. और उन्हें शांत कर दिया.. झड़ते ही मौसी रसिक को लेकर बेहद जज्बाती हो गई.. जिस युद्ध को जीतने में चिमनलाल शस्त्र के साथ भी कामयाब नहीं हो पाए थे.. उस युद्ध को बिना हथियार के ही रसिक ने जीत लिया था.. भोसड़े की आग शांत होते ही मौसी का पूरा शरीर ढीला होकर रसिक के कंधों पर झुक गया.. रसिक तुरंत घाघरे के नीचे से बाहर निकल गया.. और मौसी को अपनी मजबूत भुजाओं में दबा दिया.. रसिक की चौड़ी छाती मौसी को बेहद आरामदायक लग रही थी.. उसकी छाती को अनायास ही चूम लिया मौसी ने
"मौसी.. अब मेरे इस सख्त लोड़े का कुछ कीजिए.. ये नरम हो जाए तो मैं दूध बांटने निकलूँ.. "
अब मौसी रसिक की बाहों से अलग होकर उसके सख्त लोड़े को मुठियाने लगी.. रसिक के लंड का वर्णन सुनकर कविता का हाथ अनायास ही उसकी चूत तक पहुँच गया.. कविता जैसे जैसे रसिक और मौसी की बातें सुनती गई.. वैसे वैसे उसकी वासना का पारा चढ़ता गया..
अनुमौसी को रसिक ने जोरदार प्लान बताया.. कविता को पटाने के लिए.. रसिक के प्लान को सारे दृष्टिकोण से जाँचने लगी मौसी.. इस प्लान के तहत.. मौसी को कहीं भी कविता का प्रत्यक्ष सामना नहीं करना था.. ऐसा जबरदस्त प्लान बनाया था रसिक ने.. मौसी सोचने लगी.. कविता को कभी पता नहीं चलेगा की मैंने ही रसिक के साथ मिलकर ये प्लान बनाया है.. फिर क्या प्रॉब्लेम? मुझे जो बुढ़ापे में जाकर नसीब हुआ वो उस बेचारी को जवानी में ही मिल जाएँ तो क्या बुराई है.. और वैसे भी कविता दूध की धुली तो है नहीं.. मेरी जानकारी के बाहर न जाने क्या क्या करती होगी.. !!
घर में सती सावित्री जैसी पवित्र होने का ढोंग करती औरतें क्या क्या गुल खिलाती है.. !! स्त्री के चेहरे को देखकर ऐसा कोई नहीं कह सकता की उसका चरित्र कैसा होगा.. रात के साढ़े नौ बजे प्रेमी से चुदवाकर आई स्त्री.. दस बजे अपने पति के बगल में आराम से सो जाती है.. पति को घंटा भी पता नहीं चलता की उसकी पत्नी की चूत प्रेमी के वीर्य से सराबोर है.. और गलती से अगर पति को इस चिपचिपाहट का पता लग भी जाएँ तो चालाक औरतें बड़ी ही सफाई से उसे उत्तेजना के कारण गिलेपन का नाम दे देती है.. पति बेचारा खुश हो जाता है की वो अब भी अपनी पत्नी को इतना उत्तेजित कर सकता है की जिससे उसकी चूत इतनी चिपचिपी हो जाए..
"रसिक, तू जो भी करना.. बहोत ही सोच समझकर.. और संभालकर करना.. मैं कविता की नज़रों से गिर जाऊँ ऐसा न हो.. " रसिक के लंड की चमड़ी को आगे पीछे करते हुए.. उसके टमाटर जैसे सुपाड़े को अहोभाव से देखते हुए मौसी सोच रही थी.. रसिक के लंड का वज़न कितना होगा!!
"आप टेंशन मत लीजिए मौसी, आपका नाम कहीं नहीं आएगा.. और अगर कुछ हुआ भी तो मेरे पास उसका इलाज है.. चिंता मत कीजिए.. कविता आप से कुछ नहीं कहेगी.. इस बात की मेरी गारंटी है.. !!"
"रसिक, अब तो तू मुझे रोज मिलेगा ना.. !! जब जब बुलाऊँ तब आएगा न तू.. !!"
"हाँ हाँ मौसी.. पर आप भी भूलना मत.. जैसा मैंने कहा है सब याद रखना.. शनिवार को फायनल समजिए.. अब थोड़ा सा मुंह में ले लीजिए तो मेरा छुटकारा हो.. ये तो बैठ ही नहीं रहा.. मुठ्ठी हिलाने से इसका भला नहीं होने वाला" कहते हुए रसिक ने मौसी के गाल को काटते हुए उनकी निप्पल खींच ली.. एक एक हरकत में मौसी को मज़ा आ रहा था
"ठीक है रसिक.. पर मुझे डर लग रहा है.. कोई देख लेगा तो"
"अरे कुछ नहीं होगा मौसी.. भरोसा रखिए.. और मुंह में ले लीजिए.. "
"बाप रे रसिक.. ये गधे जैसा लंड तूने मेरी अंदर घुसेड़ दिया था.. इतना बड़ा मुँह में कैसे लूँ?"
"ले लीजिए.. चला जाएगा.. भोसड़े में घुस गया था तो मुंह में तो घुसेगा ही ही.. उस दिन लिया तो था मुंह में.. !!"
"वो तो तूने जबरदस्ती डाल दिया था.. फिर मेरी क्या हालत हुई थी, भूल गया? आज ऐसे जबरदस्ती मत करना.. जान निकल जाती है मेरी"
"नहीं करूंगा.. अब आप बातें बंद कीजिए और मुंह में लीजिए फटाफट.. !!"
"आह मौसी.. मज़ा आ रहा है" अनुमौसी ने नीचे बैठकर लंड को चूमा.. जिसकी आवाज कविता को साफ सुनाई दी.. उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया.. मेरी सास एक लफंगे दूधवाले का लंड चूस रही है.. !!
"ओह्ह मौसीईईईईई.. आह्ह कविताआआआआआ.. " उत्तेजित रसिक कराहते हुए बोला.. रसिक के मुंह से अपना नाम सुनकर घबरा गई कविता.. अब उसका बचना असंभव था.. रसिक के वीर्य स्त्राव होने की आखिरी क्षणों में मौसी भी कविता का नाम सुनकर चोंक गई.. और कविता को सदमा सा लग गया.. उसे ऐसा लगने लगा जैसे उसकी सास के मुंह में नहीं पर अपने मुंह में रसिक ने लंड दे रखा हो.. वहाँ से चुपचाप सरक गई कविता.. अब खड़ा रहने का कोई अर्थ नहीं था.. वो चुपके से घर के अंदर आकर बेड पर सो गई.. जैसे ही वो लेटी.. पीयूष ने करवट बदलते हुए उसे बाहों में भर लिया और फिर से खर्राटे लेने लगा.. इस तरह सोने की पीयूष की आदत थी.. शादी की पहली रात से ही पीयूष ऐसे सोता था.. उसके उरोज पीयूष की छाती से दब जाते और पीयूष का लंड उसे "गुड मॉर्निंग" कहता..
पीयूष तो निश्चिंत होकर खर्राटे ले रहा था पर कविता की आँखों से नींद गायब थी.. उसका दिमाग खराब हुआ पड़ा था.. रसिक ने मुझे पिंटू के साथ कैसे देख लिया?? उस रात जब वो पिंटू से गली के छोर पर मिली तब वहाँ कितना अंधेरा था और आसपास कोई था भी नहीं.. !! हे भगवान.. अब मैं क्या करूँ?
तभी घर की डोरबेल बजी.. वो यंत्रवत खड़ी हुई और दरवाजा खोलने लगी.. उसे पता था की रसिक ही होगा.. दरवाजा खुलते ही रसिक प्रकट हुआ.. उसके विकराल शरीर ने आधे से ज्यादा दरवाजे को रोक रखा था.. न चाहते हुए भी कविता की नजर रसिक के.. कविता का मन कर रहा था की वो भागकर अंदर चली जाए
"कैसी हो भाभी? कल मौसी यहाँ थी और आज आपकी बारी आ गई?" रसिक निर्दोष होने का नाटक कर रहा था
कविता ने मुंह बिगाड़ते हुए पतीली आगे कर दी.. गुस्सा तो इतना आ रहा था उसे की अभी उसकी पोल खोल दे.. वो जो कुछ भी उसकी सास के साथ कर आया था उस बारे में.. पर वो चुप ही रही
कविता को इस बात की फिक्र थी की कहीं रसिक उसका राज और लोगों के सामने न खोल दे.. रसिक से संबंध अच्छे रखना जरूरी था
"आज बड़ी देर कर दी आपने आने में.. !! साइकिल की घंटी तो मैंने आधे घंटे पहले ही सुनी थी.. तब से जाग रही हूँ.. " कहते हुए कविता ने अंगड़ाई ली.. उसके पतले वस्त्रों से छातियाँ उभरकर बाहर आ गई.. पतीली में दूध डाल रहे रसिक देखता ही रह गया.. रसिक के नजर कविता के स्तनों पर थी.. कब पतीली भर गई और दूध बाहर गिरने लगा उसका उसे पता ही नहीं चला
"अरे अरे.. क्या कर रहे हो रसिक? दूध गिरा दिया.. "
"कोई बात नहीं.. आप हो ही ऐसी.. देखते देखते दूध छलक गया.. " अपनी तारीफ सुनकर कविता को अच्छा लगा
"ठीक है.. पर काम करते वक्त ध्यान वहाँ होना चाहिए.. आसपास नजरें जरा कम मारनी चाहिए"
"अरे भाभी.. दूध तो और मिल जाएगा.. पर आसपास नजरें मारने पर जो नज़ारे देखने को मिलते है.. क्या बताऊँ आपको.. !!"
रसिक के काले विकराल बदन को देखकर कविता सोच रही थी.. इससे तो बात करने में भी घिन आ रही है.. अगर ये मुझे छु ले तो क्या होगा!!!
"आज इतनी देर क्यों लग गई तुम्हें?" रसिक क्या बहाना बनाता है वो देखना चाहती थी कविता
"पहले आपके घर दूध देने गया था.. "
"क्यों पहले मेरे घर?? रोज तो आप शीला भाभी को पहले दूध देते है ना.. !!"
"आपकी सास से मुझे थोड़ा काम था ई सलिए वहाँ पहले गया था.. !!"
"अच्छा.. तो काम हो गया क्या?? ऐसा क्या काम था सुबह सुबह?"
"वो मैं आपको नहीं बता सकता भाभी.. फिर कभी बताऊँगा.. वैसे शीला भाभी कब आने वाली है? काफी दिन गुजर गए उनको गए हुए.. " रसिक ने चालाकी से बात को टाल दिया
अब कविता और पूछताछ करती तो रसिक को शक हो जाता.. ईसलिए वो चुप हो गई.. वो सोच रही थी.. मम्मी जी और रसिक ने शनिवार का प्लान बनाया है ना.. क्यों न शनिवार को मैं पीयूष को लेकर पापा के घर चली जाऊँ.. !!
नीचे गिरा दूध साफ कर रसिक ने कविता की तरफ देखा.. पर कविता ने नजर फेर ली.. पर जिस तरह रसिक के लंड ने अभी भी उभार बना रखा था.. देखकर ही लग रहा था की उसका घोडा बड़ा ही शरारती है.. मम्मी जी की सिसकियाँ और लंड की साइज़ को लेकर जो बातें की थी वो याद आते ही कविता की नजर उस उभार पर चली गई.. रसिक पतीला कविता के हाथ में देने गया पर कविता की नजर उसके लोड़े को नाप रही थी.. ईसलिए पतीली फिर से छलक गई और दूध फिर से नीचे गिरा..
"भाभी.. अभी आप ही कह रही थी की काम में ध्यान रखना चाहिए.. अब आप का ध्यान कहाँ था?" लंड को देख रही कविता.. अपनी चोरी पकड़ी जाने पर शर्म से पानी पानी हो गई.. रसिक के हाथ से पतीला लेकर वो किचन में घुस गई.. और रसिक भी हँसते हँसते चला गया..
कविता को अपने आप पर गुस्सा आ रहा था.. साला वो दो कौड़ी का दूधवाला मुझे सुना गया.. क्या जरूरत थी उसके लंड को देखने की?? रसिक के हाथों रंगेहाथ पकड़े जाने की शर्म ज्यादा हो रही थी उसे.. खुली सड़क पर मुझे अपने प्रेमी से चुदते हुए देखकर ही रसिक को मेरे बारे में ऐसा विचार आया होगा.. अब जो हो गया सो हो गया.. अगली बार से ध्यान रखना पड़ेगा.. अपनी सास और रसिक के शनिवार के प्लान को निष्फल बनाने की योजना में जुट गई कविता.. उसे पूरा भरोसा था की वो उन दोनों की जाल से बच जाएगी
दूध गरम कर फ्रिज में रखकर कविता ने पीयूष को जगाया.. दोनों ने थोड़ी बातें की और शीला का घर बंद कर अपने घर चले गए..
अब कविता का अपनी सास के प्रति दृष्टिकोण बदल चुका था.. अब तक मम्मी जी मम्मी जी कहते हुए वो थकती नहीं थी.. पर आज उसका दिल ही नहीं किया उन्हें बुलाने का.. पर पुरुषों के मुकाबले.. औरतें अपने मन के भाव को छुपाने में एक्सपर्ट होती है.. स्त्री सिर्फ भय या डर का भाव छुपा नहीं सकती.. बाकी सारे जज़्बातों को वो अपने अंदर कैद रख सकती है.. कविता ने बड़ी कोशिश करके अपनी सास के प्रति घृणा को छुपाते हुए रोजमर्रा के कामों को निपटाने लगी.. पीयूष भी तैयार होकर ऑफिस चला गया..
सुबह के साढ़े दस बज रहे थे.. कविता अभी भी गहन विचार में डूबी हुई थी.. अंदर के कमरे में बैठी अनुमौसी भी सोच रही थी.. रसिक के प्लान के मुताबिक कविता को किस तरह बात करूँ?? उसने मना कर दिया तो?
आखिर हिम्मत करते हुए मौसी ने कहा "कविता, शनिवार को हम दोनों आदिपुर चलें? बड़े दिन हो गए वहाँ गए हुए.. दोपहर को बस से चले जाएंगे और रात वहीं रहेंगे.. फिर दूसरे दिन रविवार को वापिस"
कविता ने जैसा सोचा था बिल्कुल वैसा ही हुआ.. सासुमाँ ने ऐसा मास्टर-स्ट्रोक लगाया था की उसके पास मना करने का कोई कारण ही नहीं था.. मौसी और रसिक ने सोच समझकर इस दूर जगह का सोचा था की जहां से चिमनलाल या पीयूष.. कविता के विरोध को और मौसी की सिसकियों को सुन न सके
कविता के मन में भी प्लान पहले से तैयार था "मम्मी जी.. शनिवार को तो मैं और पीयूष मेरे पापा के घर जाने वाले है.. मौसम की शादी की तैयारी भी तो करनी है.. पापा और मम्मी को हम दोनों की जरूरत पड़ेगी.. ऐसा करते है.. हम इस शनिवार को नहीं पर उसके बाद वाले शनिवार को जाएंगे"
सुनकर मौसी का मुंह लटक गया.. कविता ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ.. बिना पीयूष से पूछे.. जवाब दे दिया..
मौसी को और कुछ सुझा नहीं और जल्दबाजी में बोल दिया "ठीक है, उसके बाद वाले शनिवार को चले जाएंगे"
मन ही मन मौसी खुश हो गई.. सोचने लगी.. चलो.. इस शनिवार को नहीं पर अगले शनिवार का प्रोग्राम तो सेट हो गया.. मुझे तो डर था कहीं कविता मना न कर दे.. रसिक को बता दूँगी.. की अब प्लान अगले शनिवार को होगा.. वो मना नहीं करेगा.. जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है.. पीयूष के पापा भी अगले शनिवार बाहर जाने वाले है.. इसलिए खाना पकाने की चिंता भी नहीं है.. पीयूष तो कहीं बाहर होटल में खा लेगा.. और तब तक तो शीला भी वापिस आ चुकी होगी.. फिर तो कोई प्रॉब्लेम ही नहीं.. !!
अनुमौसी के मन मे लड्डू फूटने लगे.. जो काम उन्हें बड़ा ही मुश्किल लगता था वो आसानी से निपट गया और उनके सर से एक बड़ा बोझ उतर गया.. वो अपने कमरे में गई और कविता आसपास न हो तब रसिक को कॉल करने का इंतज़ार करने लगी.. वैसे पूरा दिन पड़ा था रसिक को बताने के लिए इसलिए वह निश्चिंत थी.. अभी कॉल नहीं कर पाई तो शाम को मंदिर जाते वक्त फोन कर सकती थी.. मन ही मन खुश होते हुए अनुमौसी अपने कमरे में बैठकर कपड़ों को इस्तरी करने लगी..
किचन में सब्जियां काटते हुए कविता ये सोच रही थी की पीयूष को अभी के अभी कॉल करके मायके जाने के लिए मनाना होगा.. उसे कैसे मनाए.. !! वो छत पर सूख रहे कपड़े लेने के बहाने ऊपर गई और पीयूष को कॉल किया
पीयूष: "हैलो मेरी जान.. " रोमेन्टीक स्वर में पीयूष ने कहा
कविता: "पूरा दिन जान जान कहता रहता है.. पर कभी ये नहीं पूछता की तेरी जान को क्या चाहिए?"
पीयूष: "आप हुक्म कीजिए महारानी.. बंदा अपनी जान हाजिर कर देगा" नाटकीय अंदाज में पीयूष ने कहा
कविता: "कुछ नहीं यार.. मेरी इच्छा थी की इस शनिवार को हम पापा के घर चले.. मौसम की शादी की तैयारी में मम्मी की मदद के लिए.. वो बेचारी अकेली क्या क्या करेगी?"
मौसम.. !!! ये नाम सुनते ही पीयूष का रोम रोम पुलकित हो गया.. मौसम से उस खास मुलाकात करने का ये अच्छा मौका था.. छोड़ना नहीं चाहिए.. सामने से कुदरत ने ऐसे संजोग खड़े कर दीये थे..
पीयूष: 'बस इतनी सी बात.. !! हम कल सुबह तेरे घर जाने निकलेंगे.. अब खुश.. !! इतनी सी बात के लिए तू अपना सुंदर मुखड़ा लटकाकर बैठी थी.. !! सुन कविता.. अभी मैं थोड़ा बीजी हूँ.. इसलिए फोन रखता हूँ.. हम कल सुबह निकलेंगे ये तय रहा.. पर हाँ.. किसी भी हाल में हमें रविवार रात तक वापिस लौटना होगा.. सोमवार को मेरी एक इम्पॉर्टन्ट मीटिंग है.. तू सामान पेक कर.. ओके.. बाय!!"
कविता: 'बाय डार्लिंग.. जल्दी आना.. देर मत करना.. आज तूने मुझे खुश किया है.. इसलिए रात को मैं तुझे खुश कर दूँगी.. ऐसा मज़ा कराऊँगी की तू याद रखेगा"
पीयूष इतनी आसानी से मान जाएगा ये कविता ने सोचा न था.. खुश होते हुए वो सूखे कपड़े लेकर सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी तब उसने देखा की अनुमौसी किसी के साथ चुपके से फोन पर बात कर रही थी.. और कविता को देखते ही उन्हों ने फोन काट दिया.. उसे शक तो हुआ पर अब वो खुद ही शहर से बाहर जाने वाली थी.. इसलिए उसे कोई चिंता न थी.. अपनी सास को नजरंदाज करते हुए वो किचन में चली गई
बाकी का दिन बिना किसी खास गतिविधियों को बीत गया
कविता अपने हिसाब से खुश थी और अनुमौसी अपनी तरह से..
मौसम से मिलने के ख्वाब देखते हुए खुश हो रहा पीयूष.. किसी गीत की धुन गुनगुनाते हुए काम कर रहा था.. नए प्रेमी जैसी चमक थी उसके चेहरे पर.. कविता का फोन खतम होते ही पीयूष ने तुरंत मौसम को फोन किया.. और बताया की वो लॉग वहाँ आ रहे थे.. और उसे उसके प्रोमिस की भी याद दिलाई.. तब मौसम ने कहा
मौसम: "मुझे सब याद है जीजू.. पापा दो दिन के लिए शहर से बाहर जाने वाले है.. हम उनकी ऑफिस पर मिलेंगे.. आप निश्चिंत होकर आइए"
ये सुनकर पीयूष इतना जोश में आ गया.. की दो दिन का काम उसने आधे दिन में खतम कर दिया
शाम को वो घर पहुंचा तब कविता बहोत खुश थी.. सब ने मिलकर खाना खाया.. और फिर कविता और पीयूष.. छत पर जाकर बैठ गए.. रोज की तरह.. रात के नौ बज रहे थे और काफी अंधेरा था.. दोनों बातें कर रहे थे तभी.. पीयूष के मोबाइल पर एक मेसेज आया.. जिसे देखकर पीयूष की तो नैया डूब गई.. ये क्या हो गया यार?? उसे अपना सर पीटने का मन कर रहा था पर कविता के रहते ये मुमकिन न था..
मौसम का मेसेज था "जीजू, मेरी तबीयत खराब हो गई है.. आप अभी आएंगे तो हम मिल नहीं पाएंगे.. इसलिए अब तीन चार दिनों के बाद ही आना.. "
कविता बातें कर रही थी पर पीयूष की ध्यान उन बातों पर नहीं था.. उसे पता नहीं चल रहा था की वो क्या करें.. !! कल सुबह तो निकलना था तब ये प्रॉब्लेम आ खड़ी हुई.. !! अगर अब उसने केन्सल करने की बात की तो कविता उसकी जान ले लेगी.. ये मौसम भी न यार.. एन मौके पर इतना खतरनाक मेसेज कर दिया..!! कुछ तरकीब निकालनी पड़ेगी..
पीयूष ने पहले तो अपना मोबाइल साइलेंट मोड पर कर दिया.. और जैसे फोन पर बात कर रहा हो वैसे थोड़ा सा दूर जाकर बात करने का अभिनय करने लगा.. वो इतना करीब तो था ही की कविता उसकी बातें सुन सके
"ओके ओके सर.. समझ गया.. ये तो बहोत अच्छी बात है की आप ऑर्डर हमारी कंपनी को दे रहे है.. पर इसके बारे में हम सोमवार को ही बात कर सकते है.. नहीं नहीं सर.. कल पोसीबल नहीं होगा.. मैं छुट्टी पर हूँ और एक सोशीयल काम से बाहर जा रहा हूँ.. सर.. मैं समझ सकता हूँ की ये बहोत इम्पॉर्टन्ट है.. पर मैं भी मजबूर हूँ"
कविता समझ गई की कोई जरूरी काम आ गया है और उसकी वजह से जाना केन्सल होने वाला है.. वो गुस्से से तिलमिलाने लगी.. बस पीयूष का फोन खतम होने की देर थी.. बाघिन की तरह झपट कर फाड़ देने वाली थी पीयूष को.. कविता का क्रोधित चेहरे को देखकर पीयूष भी हिल गया था
"समझने की कोशिश कीजिए सर.. आप हमारे खास कस्टमर है ये मैं भी समझता हूँ.. नहीं सर.. आप चाहे तो राजेश सर से बात कर सकते है.. इस बात के लिए मैं नौकरी छोड़ने को तैयार हूँ.. पर मैं अपनी छुट्टी केन्सल नहीं करने वाला.. आखिर मेरी भी पर्सनल लाइफ है.. !!" पीयूष जबरदस्त खेल खेल रहा था
नौकरी छोड़ने की बात सुनकर कविता घबरा गई.. बाप रे.. !! मेरी मायके जाने की जिद पूरी करने के लिए पीयूष नौकरी को ठोकर मारने के लिए तैयार हो गया.. !! कितनी मुश्किल से मिली थी ये नौकरी.. और तनख्वाह भी अच्छी थी.. पीयूष अच्छी तरह सेट भी हो गया था.. मायके थोड़े दिन बाद चले जाएंगे.. कौन सी बड़ी बात थी.. !!
कविता ने पीयूष का हाथ खींचकर उसे चुपके से कहा "हम कल नहीं जाएंगे.. तू अपने कस्टमर से मिल ले.. इतनी छोटी सी बात के लिए कोई नौकरी छोड़ता है भला.. ??"
पीयूष ने कविता की बात सुनते ही फोन पर कह दिया.. "ओके सर.. मेरी वाइफ मान गई है.. इसलिए मैं अपना प्रोग्राम केन्सल कर रहा हूँ.. हम कल ऑफिस में मिलते है.. जी सर.. नहीं सर.. पर मेरी भी हालत आप समझिए.. ये तो अच्छा है की मेरी वाइफ काफी समझदार है इसलिए मान गई.. जी सर.. कल मिलते है" कहते हुए उसने फोन काटने का नाटक किया
"थेंक यू कविता.. आई एम प्राउड ऑफ यू.. मुझे तो लगा मैं फंस गया इस बार.. पर तेरी समझदारी की कारण आज मैं बच गया.. वरना आज तो मैं नौकरी छोड़ देने के मूड में था.. पर तुझे मैं नाराज नहीं होने देता" पीयूष के ये कहते ही कविता उसके गले लग गई..
दोनों छत से नीचे उतरे और बेडरूम में चले गए.. बिस्तर पर लैटते ही कविता को खयाल आया.. हे भगवान.. ये प्रोग्राम तो मैंने सासु माँ और रसिक के प्रोग्राम को फ्लॉप करने के लिए बनाया था.. अब तो हमारा जाना ही केन्सल हो गया.. अब मैं क्या करूँ?? अब क्या सासु माँ के साथ आदिपुर जाना पड़ेगा?? रसिक का काला विकराल शरीर याद आते ही कविता को घिन आ गई.. पीयूष तो आराम से सो गया पर कविता की नींद हराम हो गई..
इस तरफ अनुमौसी ने रसिक को सारी बात कर दी थी.. बता दिया था की अब वो अगले रविवार को जाएंगे क्योंकी इस रविवार को कविता अपने मायके जाने वाली थी.. आज अनुमौसी ने शीला के घर सोने का सेटिंग कर दिया.. सिर्फ औपचारिकता के लिए उसने चिमनलाल को साथ चलने के लिए कहा.. पर उन्होंने मना कर दिया.. जब बेटिंग करनी ही न हो तब पिच पर जाकर क्या फायदा.. !! मौसी को उससे कोई फरक नहीं पड़ा.. वो तो उल्टा खुश हो गई.. अब आराम से वो रसिक के साथ अपनी मर्जी से जो चाहे कर सकती थी.. वैसे अगर चिमनलाल साथ आए होते तो भी उसे दिक्कत नहीं थी.. वो जानती थी की चिमनलाल की नींद इतनी गहरी थी की अगर वो उनके बगल में लेट कर रसिक से चुदवा भी लेती तो भी उन्हेंं पता न चलता..
रसिक के लिए सुबह जल्दी उठना था इसलिए मौसी निश्चिंत होकर सो गई..