इतनी थकान के बाद पीयूष को नींद आ जानी चाहिए थी.. पर बगल में पड़ा लैपटॉप.. और उसके अंदर की स्फोटक सामग्री ने उसकी नींद उड़ा दी थी.. पर मदन भैया और उनका परिवार कभी भी आ सकते थे.. ऐसी स्थिति में ज्यादा पड़ताल करने में खतरा था.. पीयूष बेड से उठा.. लैपटॉप को टेबल पर रखकर उसका चार्जर लगाया.. फिर शट डाउन करने से पहले उसने ध्यान से देख लिया की वो क्लिप कहाँ पर सेव थी.. लैपटॉप को ज्यों का त्यों रखकर वो सो गया..
सुबह रोज के मुकाबले आज कविता की नींद काफी जल्दी उड़ गई.. पाँच भी नहीं बजे थे और दूध भी नहीं आया था.. वो उठकर उसी अवस्था में बाथरूम जाकर आई.. अभी थोड़ी देर में रसिक आएगा.. वापिस सो गई तो जागने में कठिनाई होगी.. इससे अच्छा तो घर की थोड़ी सफाई कर लूँ.. और पीने का पानी भी भर लूँ.. आज तो वो लोग आ ही जाएंगे..
नग्न अवस्था में कविता किचन गई और झाड़ू लगाने लगी.. उसके दिमाग मे अब भी कल रात वाली क्लिप चल रही थी.. मदन भैया का उस स्त्री के साथ क्या संबंध होगा?? क्या मस्त चोद रहे थे भैया.. इतने जबरदस्त धक्के तो पीयूष ने भी कभी नहीं लगाए.. मदन भैया की उम्र भले ही बड़ी हो.. पर जोर बहोत है.. लंड भी कितना मस्त है.. !! उस औरत को चुदने में कितना मज़ा आ रहा था.. !! झुककर झाड़ू लगा रही कविता के लटक रहे बबलों के हिलने से उसे गुदगुदी सी हो रही थी.. आज पहली बार वो नंगे बदन झाड़ू लगा रही थी..
तभी उसने रसिक की साइकिल की घंटी सुनी.. और वो समझ गई की वो दूध लेकर आया था.. वो जल्दी से बेडरूम में गई और गाउन पहनकर बाहर आई.. पीयूष की नींद खराब न हो इसलिए वो डोरबेल बजने से पहले ही दरवाजा खोलकर खड़ी हो गई.. पर रसिक बाहर नजर ही नहीं आया.. !! सोच में पड़ गई कविता.. जो घंटी उसने सुनी वो रसिक की साइकिल की ही थी.. वो रोज सुनती थी इसलिए उसे पक्का यकीन था.. फिर ये रसिक गया कहाँ??
दरवाजे से बाहर बरामदे में आकर वो रसिक को ढूँढने लगी.. बाहर घनघोर अंधेरा था.. स्ट्रीट लाइट की रोशनी सिर्फ सड़क पर पड़ रही थी.. बरामदे में थोड़ा सा ही आगे आते ही उसे रसिक नजर आया.. वो उसे आवाज देने ही वाली थी की तभी.. उसकी आँखों ने धुंधली रोशनी में जो देखा.. वो अचंभित हो गई.. ये मैं क्या देख रही हूँ?? मम्मी जी और रसिक?? अरे बाप रे.. !! अंधेरे में साफ साफ तो दिख नहीं रहा था पर जीतने करीब वो दोनों खड़े थे.. सामान्यतः कोई भी औरत किसी अनजान के इतने करीब नहीं खड़ी रहती..
कविता ने सब से पहले तो दरवाजा बाहर से बंद कर दिया ताकि पीयूष के बाहर आने का रिस्क न हो.. फिर वो झुककर.. धीरे धीरे दुबक कर चलते हुए.. शीला भाभी और उनके घर के बीच की दीवार तक पहुँच गई.. दीवार की उस तरफ मौसी और रसिक बात कर रहे थे.. कविता झुकी हुई थी इसलिए वो उनके बेहद करीब होने के बावजूद उन्हें नजर नहीं आ रही थी..
मौसी ने धीमी आवाज में कहा "जरा धीरे बोल.. मेरा पति अंदर सो रहा है.. "
कविता को पता चल गया की कुछ खास बातें हो रही थी.. वरना इतनी सुबह सुबह मम्मी जी रसिक को आहिस्ता बोलने के लिए क्यों कहेगी.. !!
कविता दुबककर दीवार के पीछे छुपकर बैठी हुई थी.. कविता और उन दोनों के बीच अब ४ फिट से ज्यादा अंतर नहीं था..
मौसी: "पकड़ने तो दे रसिक.. !! बाहर निकाल.. और कुछ नहीं कर सकती पर देख तो सकती हूँ ना.. !! थोड़ा सहला लेने दे मुझे.. मदन के लौट आने के बाद शीला भी तो ऐसे ही करती थी ना तेरे साथ.. !!"
रसिक: "नहीं मौसी.. आज मेरा मन नहीं है.. !!"
मौसी: "मैं सब समझती हूँ की क्यों तेरा आज मन नहीं है.. मैंने कल कविता को लेकर मना किया इसलिए तू बुरा मान गया है.. पर तू सोच जरा.. सास होकर मैं अपनी बहु को ऐसी बात के लिए कैसे तैयार करूँ? मुझे तो बात करने की भी हिम्मत नहीं होती.. तू भी कमाल है रसिक..एक तो मुझे इसकी आदत लगा दी.. और अब मुंह फेर रहा है.. ये ठीक नहीं है.. मुझ पर थोड़ा सा तो तरस खा.. !!"
रसिक: "आप की सारी बात समझता हूँ.. पर आप भी समझिए.. जब से आपकी बहु दो देखा है, मेरा मन डॉल गया है.. आप ने तो सीधे मुंह मना कर दिया.. बुरा तो मुझे लगता है.. और वैसे आपकी बहुरानी भी कोई सती सावित्री नहीं है.. ससुराल में आकर भी अपने मायके के दोस्तों को बुलाती है.. मुझे और कुछ नहीं बस सिर्फ उसकी छातियाँ ही दबानी है.. उसको चोदना भी नहीं है.. सिर्फ हाथ भी फेरने नहीं देगी? इतना तो आप कर सकती हो मेरे लिए.. "
मौसी सोच में पड़ गई.. ये क्या बोल गया रसिक? कविता सती सावित्री नहीं है.. मतलब? क्या उसका कोई राज रसिक को पता है?? या फिर उसे लपेटने के लिए झूठ बोल रहा है.. !! कविता को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता की वो कुछ उल्टा सीधा कर सकती है..
मौसी: "सुन रसिक.. कविता के लिए उल्टा सीधा बोलेगा तो मैं सुनूँगी नहीं तेरी.. तुझे मेरे साथ न करना हो तो मत कर.. पर मेरी फूल जैसी बहु को बदनाम करेगा तो छोड़ूँगी नहीं तुझे"
रसिक: "आपकी उस फूल जैसी बहु को मैंने पिछली गली में.. खंभे के पास घाघरा उठाकर खड़ा हुआ देखा था.. और पीछे से एक भँवरा उसका रस चूस रहा था.. ये तो आप से जान पहचान है इसलिए आज तक मैं कुछ बोला नहीं.. आप को तो मालूम है मौसी.. मुझे बस किसी जवान मॉडर्न लड़की की छातियाँ दबानी है बस.. एक बार खोलकर देखनी है की कैसी होती है.. अगर एक बार आप अपनी बहु की छातियाँ देख लेने देंगे तो मैं आप के लिए सब कुछ करने के लिए राजी हूँ.." सुनते ही कविता की पैरों तले से धरती खिसक गई..!! बाप रे.. उस रात जब गली के पिछवाड़े पिंटू से चुदवा रही थी तब रसिक ने देख लिया था.. !!
अनुमौसी सोच में पड़ गई.. रसिक के तंदूरस्त शरीर को देखते ही उनकी दबी हुई इच्छा स्प्रिंग की तरह उछलकर जाग गई थी.. उसके पाजामे पर रखा हुआ उनका हाथ.. रसिक के हथियार को पकड़ने के लिए बेकरार था.. पर जब तक वो रसिक की मांग का स्वीकार न करें तब तक रसिक उसका लंड बाहर नहीं निकालने वाला था.. लंड के उभार को छूने के बाद अनुमौसी बेचैन हो गए थे उसे पकड़ने के लिए.. छूने के लिए.. उसकी सख्ती को अनुभवित करने के लिए..
मौसी: "तू क्यों जिद कर रहा है रसिक.. !! अब देख.. तू कविता को अपने हिसाब से पटाने की कोशिश कर.. मैं बीच में नहीं आऊँगी.. बस?"
रसिक को ये आधी जीत मंजूर नहीं थी.. वो तो चाहता था की मौसी खुद कविता को मनाएं.. पर इसके लिए मौसी को तगड़ी रिश्वत देने की जरूरत थी.. ऐसी रिश्वत की जिसको देखते ही अनुमौसी कविता को खोलकर उसके सामने पेश कर दे..
रसिक ने मौसी को अपनी ओर खींचकर बाहों में जकड़ कर जो कहा वो सुनकर कविता को ४४० वॉल्ट का झटका लगा..
"ओह्ह मौसी.. आप एक बार कविता को मना तो लीजिए.. बाकी सब मैं संभाल लूँगा.. अगर आपकी बहु भी हमारे खेल में शामिल हो जाती है.. तो ये बात राज ही रहेगी.. " मौसी के स्तनों को उत्तेजना पूर्वक मसलते हुए रसिक ने कहा.. रोज सुबह कविता की पतली लचकदार कमर को देखकर रसिक सोचता.. इसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़कर इसकी संकरी चूत के अंदर पूरा लंड घुसा दूँ तो कितना मज़ा आएगा.. !! उसका लंड चूत को चीरते हुए अंदर घुस जाएगा.. कविता तो चीख चीख कर मर जाएगी.. इतनी नाजुक है.. मेरे एक धक्के में तो लोडा उसके गले तक पहुँच जाएगा..
मौसी के घाघरे में हाथ डालकर उनकी क्लिटोरिस को मसलते हुए उन्हें जवानी के दिनों की याद दिला दी..
मौसी: "आह्ह रसिक.. कविता के साथ तुझे जो करना है कर.. उहह!!"
"अरे मौसी, आप की मदद के बगैर मैं कैसे उस तक पहुँच पाऊँगा?? आपकी बहु तो मुझे हाथ भी नहीं लगाने देगी.. आप एक बार उस कविता को तैयार कर दो बस.. फिर देखो मेरा जलवा.. आप दोनों के मर्द तो काम पर चले जाते है.. पूरा दिन सास-बहु घर पर अकेले रहती हो.. दोनों को बराबर मज़ा दूंगा.. जरा सोचिए मौसी, ऐसे अंधेरे में करने में क्या मज़ा?? उससे अच्छा तो मैं आपको दिन के उजाले में.. बिस्तर पर लेटाकर.. आपकी टांगें उठाकर धनाधन चोदूँगा तो कितना मज़ा आएगा.. !! रोज आकर चोदूँगा.. "
अपनी सास को ऐसी बातें करते हुए सुनकर कविता के अचरज का कोई ठिकाना न रहा.. पूरा दिन भजन गाती उसकी सास का ये नया स्वरूप देखकर कविता को आश्चर्य भी हुआ और दुख भी.. उसकी सास एक मामूली से दूधवाले से उसका सौदा कर रही थी??? एक पल के लिए उसे इतना गुस्सा आया की अभी बाहर निकले और झाड़ू से रसिक को धो डाले.. नफरत हो गई उसे रसिक से.. वो अब धीरे से वहाँ से सरक ही रही थी की तब उसने सुना..
मौसी: "हाय रसिक.. कितना मोटा है रे तेरा.. एकदम मूसल जैसा.. बल्कि उससे भी बड़ा है ये तो.. अगर कविता के साथ तेरी सेटिंग हो जाए तो तेल लगाकर डालना.. वरना बेचारी की लहूलुहान हो जाएगी.. मुझ जैसी अनुभवी को भी पेट में दर्द होने लगा था..इतना बड़ा है तेरा.. हाय, कब इसे फिर से अंदर डलवाने का मौका मिलेगा.. !! अभी मेरे पति अंदर सोये न होते तो मस्त मौका था.. कविता और पीयूष तो मदन के घर सो रहे है.. "
"उनकी जगह आप सोने गई होती तो अभी सेटिंग हो जाता ना.. " मौसी की हवस को हवा देते हुए रसिक उनकी भोस में चार चार उँगलियाँ अंदर बाहर करते हुए बोला
अपने शरीर का पूरा भार रसिक के कंधों पर डालकर.. फिंगर-फकिंग का मज़ा लेते हुए रसिक का लंड दबा रही थी "आह्ह रसिक.. बाहर तो निकाल.. एक बार देखने तो दे.. !!"
"आप ही हाथ डालकर बाहर निकाल लो.. मेरी उँगलियाँ तो आपके अंदर घुसी हुई है.. मैं निकालने जाऊंगा तो आपका मज़ा किरकिरा हो जाएगा"
"सही कहा तूने.. तू अपना काम जारी रख.. मैं खुद ही बाहर निकाल लेती हूँ.. " रसिक भोसड़े से उँगलियाँ बाहर निकाल ले ये मौसी को गँवारा नहीं था.. उसकी खुरदरी उँगलियाँ लंड का काम कर रही थी.. मौसी ने थोड़ी सी मेहनत करके बड़ी मुश्किल से रसिक का लंड बाहर निकाला.. लंड से खेलते हुए वो सिसकियाँ भरने लगी..
"मौसी, आपकी सिसकियों की आवाज जरा कम कीजिए.. कहीं आपके पति जाग गए तो इस उम्र में तलाक दे देंगे आपको"
"वो क्या मुझे तलाक देंगे? मैं खुद ही उनसे अलग हो जाऊँगी रसिक.. जो मज़ा तूने मुझे दिया है.. इतने सालों में वो नहीं दे पाए है.. मेरी जवानी धरी की धरी रह गई.. कितने अरमान थे मेरे.. सब अधूरे रह गए.. अच्छा हुआ जो तू मुझे मिल गया.. वरना मेरी ज़िंदगी तो ऐसे ही पूरी हो जाती.. "
मौसी को और मजबूर करने के लिए रसिक नीचे घुटनों के बल बैठ गया और मौसी के घाघरे के अंदर घुस कर.. मौसे के भोसड़े पर सीधा प्रहार करने लगा.. ये एक ऐसी हरकत थी.. जिससे मौसी ही नहीं.. पर कोई भी औरत अपना अंकुश खो बैठती.. मौसी ने अपने घाघरे से रसिक को अंदर छुपा दिया.. और रसिक का सिर पकड़कर अपनी भोस से दबा दिया.. रसिक की जीभ मौसी की भोस पर फिरती रही और अनुमौसी कराहती रही..
कविता को कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा था.. पर देखने की जरूरत भी क्या थी?? बातचीत और सिसकियों को सुनकर साफ पता चल रहा था की दीवार की उस ओर क्या चल रहा होगा.. !! कविता का पूरा शरीर गुस्से, नफरत और घृणा के कारण तपने लगा था
इस तरफ मौसी को अद्भुत सुख मिल रहा था.. चाट चाटकर रसिक ने मौसी के भोसड़े का रस निकाल दिया.. और उन्हें शांत कर दिया.. झड़ते ही मौसी रसिक को लेकर बेहद जज्बाती हो गई.. जिस युद्ध को जीतने में चिमनलाल शस्त्र के साथ भी कामयाब नहीं हो पाए थे.. उस युद्ध को बिना हथियार के ही रसिक ने जीत लिया था.. भोसड़े की आग शांत होते ही मौसी का पूरा शरीर ढीला होकर रसिक के कंधों पर झुक गया.. रसिक तुरंत घाघरे के नीचे से बाहर निकल गया.. और मौसी को अपनी मजबूत भुजाओं में दबा दिया.. रसिक की चौड़ी छाती मौसी को बेहद आरामदायक लग रही थी.. उसकी छाती को अनायास ही चूम लिया मौसी ने
"मौसी.. अब मेरे इस सख्त लोड़े का कुछ कीजिए.. ये नरम हो जाए तो मैं दूध बांटने निकलूँ.. "
अब मौसी रसिक की बाहों से अलग होकर उसके सख्त लोड़े को मुठियाने लगी.. रसिक के लंड का वर्णन सुनकर कविता का हाथ अनायास ही उसकी चूत तक पहुँच गया.. कविता जैसे जैसे रसिक और मौसी की बातें सुनती गई.. वैसे वैसे उसकी वासना का पारा चढ़ता गया..
अनुमौसी को रसिक ने जोरदार प्लान बताया.. कविता को पटाने के लिए.. रसिक के प्लान को सारे दृष्टिकोण से जाँचने लगी मौसी.. इस प्लान के तहत.. मौसी को कहीं भी कविता का प्रत्यक्ष सामना नहीं करना था.. ऐसा जबरदस्त प्लान बनाया था रसिक ने.. मौसी सोचने लगी.. कविता को कभी पता नहीं चलेगा की मैंने ही रसिक के साथ मिलकर ये प्लान बनाया है.. फिर क्या प्रॉब्लेम? मुझे जो बुढ़ापे में जाकर नसीब हुआ वो उस बेचारी को जवानी में ही मिल जाएँ तो क्या बुराई है.. और वैसे भी कविता दूध की धुली तो है नहीं.. मेरी जानकारी के बाहर न जाने क्या क्या करती होगी.. !!
घर में सती सावित्री जैसी पवित्र होने का ढोंग करती औरतें क्या क्या गुल खिलाती है.. !! स्त्री के चेहरे को देखकर ऐसा कोई नहीं कह सकता की उसका चरित्र कैसा होगा.. रात के साढ़े नौ बजे प्रेमी से चुदवाकर आई स्त्री.. दस बजे अपने पति के बगल में आराम से सो जाती है.. पति को घंटा भी पता नहीं चलता की उसकी पत्नी की चूत प्रेमी के वीर्य से सराबोर है.. और गलती से अगर पति को इस चिपचिपाहट का पता लग भी जाएँ तो चालाक औरतें बड़ी ही सफाई से उसे उत्तेजना के कारण गिलेपन का नाम दे देती है.. पति बेचारा खुश हो जाता है की वो अब भी अपनी पत्नी को इतना उत्तेजित कर सकता है की जिससे उसकी चूत इतनी चिपचिपी हो जाए..
"रसिक, तू जो भी करना.. बहोत ही सोच समझकर.. और संभालकर करना.. मैं कविता की नज़रों से गिर जाऊँ ऐसा न हो.. " रसिक के लंड की चमड़ी को आगे पीछे करते हुए.. उसके टमाटर जैसे सुपाड़े को अहोभाव से देखते हुए मौसी सोच रही थी.. रसिक के लंड का वज़न कितना होगा!!
"आप टेंशन मत लीजिए मौसी, आपका नाम कहीं नहीं आएगा.. और अगर कुछ हुआ भी तो मेरे पास उसका इलाज है.. चिंता मत कीजिए.. कविता आप से कुछ नहीं कहेगी.. इस बात की मेरी गारंटी है.. !!"
"रसिक, अब तो तू मुझे रोज मिलेगा ना.. !! जब जब बुलाऊँ तब आएगा न तू.. !!"
"हाँ हाँ मौसी.. पर आप भी भूलना मत.. जैसा मैंने कहा है सब याद रखना.. शनिवार को फायनल समजिए.. अब थोड़ा सा मुंह में ले लीजिए तो मेरा छुटकारा हो.. ये तो बैठ ही नहीं रहा.. मुठ्ठी हिलाने से इसका भला नहीं होने वाला" कहते हुए रसिक ने मौसी के गाल को काटते हुए उनकी निप्पल खींच ली.. एक एक हरकत में मौसी को मज़ा आ रहा था
"ठीक है रसिक.. पर मुझे डर लग रहा है.. कोई देख लेगा तो"
"अरे कुछ नहीं होगा मौसी.. भरोसा रखिए.. और मुंह में ले लीजिए.. "
"बाप रे रसिक.. ये गधे जैसा लंड तूने मेरी अंदर घुसेड़ दिया था.. इतना बड़ा मुँह में कैसे लूँ?"
"ले लीजिए.. चला जाएगा.. भोसड़े में घुस गया था तो मुंह में तो घुसेगा ही ही.. उस दिन लिया तो था मुंह में.. !!"
"वो तो तूने जबरदस्ती डाल दिया था.. फिर मेरी क्या हालत हुई थी, भूल गया? आज ऐसे जबरदस्ती मत करना.. जान निकल जाती है मेरी"
"नहीं करूंगा.. अब आप बातें बंद कीजिए और मुंह में लीजिए फटाफट.. !!"
"आह मौसी.. मज़ा आ रहा है" अनुमौसी ने नीचे बैठकर लंड को चूमा.. जिसकी आवाज कविता को साफ सुनाई दी.. उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया.. मेरी सास एक लफंगे दूधवाले का लंड चूस रही है.. !!
"ओह्ह मौसीईईईईई.. आह्ह कविताआआआआआ.. " उत्तेजित रसिक कराहते हुए बोला.. रसिक के मुंह से अपना नाम सुनकर घबरा गई कविता.. अब उसका बचना असंभव था.. रसिक के वीर्य स्त्राव होने की आखिरी क्षणों में मौसी भी कविता का नाम सुनकर चोंक गई.. और कविता को सदमा सा लग गया.. उसे ऐसा लगने लगा जैसे उसकी सास के मुंह में नहीं पर अपने मुंह में रसिक ने लंड दे रखा हो.. वहाँ से चुपचाप सरक गई कविता.. अब खड़ा रहने का कोई अर्थ नहीं था.. वो चुपके से घर के अंदर आकर बेड पर सो गई.. जैसे ही वो लेटी.. पीयूष ने करवट बदलते हुए उसे बाहों में भर लिया और फिर से खर्राटे लेने लगा.. इस तरह सोने की पीयूष की आदत थी.. शादी की पहली रात से ही पीयूष ऐसे सोता था.. उसके उरोज पीयूष की छाती से दब जाते और पीयूष का लंड उसे "गुड मॉर्निंग" कहता..
पीयूष तो निश्चिंत होकर खर्राटे ले रहा था पर कविता की आँखों से नींद गायब थी.. उसका दिमाग खराब हुआ पड़ा था.. रसिक ने मुझे पिंटू के साथ कैसे देख लिया?? उस रात जब वो पिंटू से गली के छोर पर मिली तब वहाँ कितना अंधेरा था और आसपास कोई था भी नहीं.. !! हे भगवान.. अब मैं क्या करूँ?
तभी घर की डोरबेल बजी.. वो यंत्रवत खड़ी हुई और दरवाजा खोलने लगी.. उसे पता था की रसिक ही होगा.. दरवाजा खुलते ही रसिक प्रकट हुआ.. उसके विकराल शरीर ने आधे से ज्यादा दरवाजे को रोक रखा था.. न चाहते हुए भी कविता की नजर रसिक के.. कविता का मन कर रहा था की वो भागकर अंदर चली जाए
"कैसी हो भाभी? कल मौसी यहाँ थी और आज आपकी बारी आ गई?" रसिक निर्दोष होने का नाटक कर रहा था
कविता ने मुंह बिगाड़ते हुए पतीली आगे कर दी.. गुस्सा तो इतना आ रहा था उसे की अभी उसकी पोल खोल दे.. वो जो कुछ भी उसकी सास के साथ कर आया था उस बारे में.. पर वो चुप ही रही
कविता को इस बात की फिक्र थी की कहीं रसिक उसका राज और लोगों के सामने न खोल दे.. रसिक से संबंध अच्छे रखना जरूरी था
"आज बड़ी देर कर दी आपने आने में.. !! साइकिल की घंटी तो मैंने आधे घंटे पहले ही सुनी थी.. तब से जाग रही हूँ.. " कहते हुए कविता ने अंगड़ाई ली.. उसके पतले वस्त्रों से छातियाँ उभरकर बाहर आ गई.. पतीली में दूध डाल रहे रसिक देखता ही रह गया.. रसिक के नजर कविता के स्तनों पर थी.. कब पतीली भर गई और दूध बाहर गिरने लगा उसका उसे पता ही नहीं चला
"अरे अरे.. क्या कर रहे हो रसिक? दूध गिरा दिया.. "
"कोई बात नहीं.. आप हो ही ऐसी.. देखते देखते दूध छलक गया.. " अपनी तारीफ सुनकर कविता को अच्छा लगा
"ठीक है.. पर काम करते वक्त ध्यान वहाँ होना चाहिए.. आसपास नजरें जरा कम मारनी चाहिए"
"अरे भाभी.. दूध तो और मिल जाएगा.. पर आसपास नजरें मारने पर जो नज़ारे देखने को मिलते है.. क्या बताऊँ आपको.. !!"
रसिक के काले विकराल बदन को देखकर कविता सोच रही थी.. इससे तो बात करने में भी घिन आ रही है.. अगर ये मुझे छु ले तो क्या होगा!!!
"आज इतनी देर क्यों लग गई तुम्हें?" रसिक क्या बहाना बनाता है वो देखना चाहती थी कविता
"पहले आपके घर दूध देने गया था.. "
"क्यों पहले मेरे घर?? रोज तो आप शीला भाभी को पहले दूध देते है ना.. !!"
"आपकी सास से मुझे थोड़ा काम था ई सलिए वहाँ पहले गया था.. !!"
"अच्छा.. तो काम हो गया क्या?? ऐसा क्या काम था सुबह सुबह?"
"वो मैं आपको नहीं बता सकता भाभी.. फिर कभी बताऊँगा.. वैसे शीला भाभी कब आने वाली है? काफी दिन गुजर गए उनको गए हुए.. " रसिक ने चालाकी से बात को टाल दिया
अब कविता और पूछताछ करती तो रसिक को शक हो जाता.. ईसलिए वो चुप हो गई.. वो सोच रही थी.. मम्मी जी और रसिक ने शनिवार का प्लान बनाया है ना.. क्यों न शनिवार को मैं पीयूष को लेकर पापा के घर चली जाऊँ.. !!
नीचे गिरा दूध साफ कर रसिक ने कविता की तरफ देखा.. पर कविता ने नजर फेर ली.. पर जिस तरह रसिक के लंड ने अभी भी उभार बना रखा था.. देखकर ही लग रहा था की उसका घोडा बड़ा ही शरारती है.. मम्मी जी की सिसकियाँ और लंड की साइज़ को लेकर जो बातें की थी वो याद आते ही कविता की नजर उस उभार पर चली गई.. रसिक पतीला कविता के हाथ में देने गया पर कविता की नजर उसके लोड़े को नाप रही थी.. ईसलिए पतीली फिर से छलक गई और दूध फिर से नीचे गिरा..
"भाभी.. अभी आप ही कह रही थी की काम में ध्यान रखना चाहिए.. अब आप का ध्यान कहाँ था?" लंड को देख रही कविता.. अपनी चोरी पकड़ी जाने पर शर्म से पानी पानी हो गई.. रसिक के हाथ से पतीला लेकर वो किचन में घुस गई.. और रसिक भी हँसते हँसते चला गया..
कविता को अपने आप पर गुस्सा आ रहा था.. साला वो दो कौड़ी का दूधवाला मुझे सुना गया.. क्या जरूरत थी उसके लंड को देखने की?? रसिक के हाथों रंगेहाथ पकड़े जाने की शर्म ज्यादा हो रही थी उसे.. खुली सड़क पर मुझे अपने प्रेमी से चुदते हुए देखकर ही रसिक को मेरे बारे में ऐसा विचार आया होगा.. अब जो हो गया सो हो गया.. अगली बार से ध्यान रखना पड़ेगा.. अपनी सास और रसिक के शनिवार के प्लान को निष्फल बनाने की योजना में जुट गई कविता.. उसे पूरा भरोसा था की वो उन दोनों की जाल से बच जाएगी
दूध गरम कर फ्रिज में रखकर कविता ने पीयूष को जगाया.. दोनों ने थोड़ी बातें की और शीला का घर बंद कर अपने घर चले गए..
अब कविता का अपनी सास के प्रति दृष्टिकोण बदल चुका था.. अब तक मम्मी जी मम्मी जी कहते हुए वो थकती नहीं थी.. पर आज उसका दिल ही नहीं किया उन्हें बुलाने का.. पर पुरुषों के मुकाबले.. औरतें अपने मन के भाव को छुपाने में एक्सपर्ट होती है.. स्त्री सिर्फ भय या डर का भाव छुपा नहीं सकती.. बाकी सारे जज़्बातों को वो अपने अंदर कैद रख सकती है.. कविता ने बड़ी कोशिश करके अपनी सास के प्रति घृणा को छुपाते हुए रोजमर्रा के कामों को निपटाने लगी.. पीयूष भी तैयार होकर ऑफिस चला गया..
सुबह के साढ़े दस बज रहे थे.. कविता अभी भी गहन विचार में डूबी हुई थी.. अंदर के कमरे में बैठी अनुमौसी भी सोच रही थी.. रसिक के प्लान के मुताबिक कविता को किस तरह बात करूँ?? उसने मना कर दिया तो?
आखिर हिम्मत करते हुए मौसी ने कहा "कविता, शनिवार को हम दोनों आदिपुर चलें? बड़े दिन हो गए वहाँ गए हुए.. दोपहर को बस से चले जाएंगे और रात वहीं रहेंगे.. फिर दूसरे दिन रविवार को वापिस"
कविता ने जैसा सोचा था बिल्कुल वैसा ही हुआ.. सासुमाँ ने ऐसा मास्टर-स्ट्रोक लगाया था की उसके पास मना करने का कोई कारण ही नहीं था.. मौसी और रसिक ने सोच समझकर इस दूर जगह का सोचा था की जहां से चिमनलाल या पीयूष.. कविता के विरोध को और मौसी की सिसकियों को सुन न सके
कविता के मन में भी प्लान पहले से तैयार था "मम्मी जी.. शनिवार को तो मैं और पीयूष मेरे पापा के घर जाने वाले है.. मौसम की शादी की तैयारी भी तो करनी है.. पापा और मम्मी को हम दोनों की जरूरत पड़ेगी.. ऐसा करते है.. हम इस शनिवार को नहीं पर उसके बाद वाले शनिवार को जाएंगे"
सुनकर मौसी का मुंह लटक गया.. कविता ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ.. बिना पीयूष से पूछे.. जवाब दे दिया..
मौसी को और कुछ सुझा नहीं और जल्दबाजी में बोल दिया "ठीक है, उसके बाद वाले शनिवार को चले जाएंगे"
मन ही मन मौसी खुश हो गई.. सोचने लगी.. चलो.. इस शनिवार को नहीं पर अगले शनिवार का प्रोग्राम तो सेट हो गया.. मुझे तो डर था कहीं कविता मना न कर दे.. रसिक को बता दूँगी.. की अब प्लान अगले शनिवार को होगा.. वो मना नहीं करेगा.. जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है.. पीयूष के पापा भी अगले शनिवार बाहर जाने वाले है.. इसलिए खाना पकाने की चिंता भी नहीं है.. पीयूष तो कहीं बाहर होटल में खा लेगा.. और तब तक तो शीला भी वापिस आ चुकी होगी.. फिर तो कोई प्रॉब्लेम ही नहीं.. !!
अनुमौसी के मन मे लड्डू फूटने लगे.. जो काम उन्हें बड़ा ही मुश्किल लगता था वो आसानी से निपट गया और उनके सर से एक बड़ा बोझ उतर गया.. वो अपने कमरे में गई और कविता आसपास न हो तब रसिक को कॉल करने का इंतज़ार करने लगी.. वैसे पूरा दिन पड़ा था रसिक को बताने के लिए इसलिए वह निश्चिंत थी.. अभी कॉल नहीं कर पाई तो शाम को मंदिर जाते वक्त फोन कर सकती थी.. मन ही मन खुश होते हुए अनुमौसी अपने कमरे में बैठकर कपड़ों को इस्तरी करने लगी..
किचन में सब्जियां काटते हुए कविता ये सोच रही थी की पीयूष को अभी के अभी कॉल करके मायके जाने के लिए मनाना होगा.. उसे कैसे मनाए.. !! वो छत पर सूख रहे कपड़े लेने के बहाने ऊपर गई और पीयूष को कॉल किया
पीयूष: "हैलो मेरी जान.. " रोमेन्टीक स्वर में पीयूष ने कहा
कविता: "पूरा दिन जान जान कहता रहता है.. पर कभी ये नहीं पूछता की तेरी जान को क्या चाहिए?"
पीयूष: "आप हुक्म कीजिए महारानी.. बंदा अपनी जान हाजिर कर देगा" नाटकीय अंदाज में पीयूष ने कहा
कविता: "कुछ नहीं यार.. मेरी इच्छा थी की इस शनिवार को हम पापा के घर चले.. मौसम की शादी की तैयारी में मम्मी की मदद के लिए.. वो बेचारी अकेली क्या क्या करेगी?"
मौसम.. !!! ये नाम सुनते ही पीयूष का रोम रोम पुलकित हो गया.. मौसम से उस खास मुलाकात करने का ये अच्छा मौका था.. छोड़ना नहीं चाहिए.. सामने से कुदरत ने ऐसे संजोग खड़े कर दीये थे..
पीयूष: 'बस इतनी सी बात.. !! हम कल सुबह तेरे घर जाने निकलेंगे.. अब खुश.. !! इतनी सी बात के लिए तू अपना सुंदर मुखड़ा लटकाकर बैठी थी.. !! सुन कविता.. अभी मैं थोड़ा बीजी हूँ.. इसलिए फोन रखता हूँ.. हम कल सुबह निकलेंगे ये तय रहा.. पर हाँ.. किसी भी हाल में हमें रविवार रात तक वापिस लौटना होगा.. सोमवार को मेरी एक इम्पॉर्टन्ट मीटिंग है.. तू सामान पेक कर.. ओके.. बाय!!"
कविता: 'बाय डार्लिंग.. जल्दी आना.. देर मत करना.. आज तूने मुझे खुश किया है.. इसलिए रात को मैं तुझे खुश कर दूँगी.. ऐसा मज़ा कराऊँगी की तू याद रखेगा"
पीयूष इतनी आसानी से मान जाएगा ये कविता ने सोचा न था.. खुश होते हुए वो सूखे कपड़े लेकर सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी तब उसने देखा की अनुमौसी किसी के साथ चुपके से फोन पर बात कर रही थी.. और कविता को देखते ही उन्हों ने फोन काट दिया.. उसे शक तो हुआ पर अब वो खुद ही शहर से बाहर जाने वाली थी.. इसलिए उसे कोई चिंता न थी.. अपनी सास को नजरंदाज करते हुए वो किचन में चली गई
बाकी का दिन बिना किसी खास गतिविधियों को बीत गया
कविता अपने हिसाब से खुश थी और अनुमौसी अपनी तरह से..
मौसम से मिलने के ख्वाब देखते हुए खुश हो रहा पीयूष.. किसी गीत की धुन गुनगुनाते हुए काम कर रहा था.. नए प्रेमी जैसी चमक थी उसके चेहरे पर.. कविता का फोन खतम होते ही पीयूष ने तुरंत मौसम को फोन किया.. और बताया की वो लॉग वहाँ आ रहे थे.. और उसे उसके प्रोमिस की भी याद दिलाई.. तब मौसम ने कहा
मौसम: "मुझे सब याद है जीजू.. पापा दो दिन के लिए शहर से बाहर जाने वाले है.. हम उनकी ऑफिस पर मिलेंगे.. आप निश्चिंत होकर आइए"
ये सुनकर पीयूष इतना जोश में आ गया.. की दो दिन का काम उसने आधे दिन में खतम कर दिया
शाम को वो घर पहुंचा तब कविता बहोत खुश थी.. सब ने मिलकर खाना खाया.. और फिर कविता और पीयूष.. छत पर जाकर बैठ गए.. रोज की तरह.. रात के नौ बज रहे थे और काफी अंधेरा था.. दोनों बातें कर रहे थे तभी.. पीयूष के मोबाइल पर एक मेसेज आया.. जिसे देखकर पीयूष की तो नैया डूब गई.. ये क्या हो गया यार?? उसे अपना सर पीटने का मन कर रहा था पर कविता के रहते ये मुमकिन न था..
मौसम का मेसेज था "जीजू, मेरी तबीयत खराब हो गई है.. आप अभी आएंगे तो हम मिल नहीं पाएंगे.. इसलिए अब तीन चार दिनों के बाद ही आना.. "
कविता बातें कर रही थी पर पीयूष की ध्यान उन बातों पर नहीं था.. उसे पता नहीं चल रहा था की वो क्या करें.. !! कल सुबह तो निकलना था तब ये प्रॉब्लेम आ खड़ी हुई.. !! अगर अब उसने केन्सल करने की बात की तो कविता उसकी जान ले लेगी.. ये मौसम भी न यार.. एन मौके पर इतना खतरनाक मेसेज कर दिया..!! कुछ तरकीब निकालनी पड़ेगी..
पीयूष ने पहले तो अपना मोबाइल साइलेंट मोड पर कर दिया.. और जैसे फोन पर बात कर रहा हो वैसे थोड़ा सा दूर जाकर बात करने का अभिनय करने लगा.. वो इतना करीब तो था ही की कविता उसकी बातें सुन सके
"ओके ओके सर.. समझ गया.. ये तो बहोत अच्छी बात है की आप ऑर्डर हमारी कंपनी को दे रहे है.. पर इसके बारे में हम सोमवार को ही बात कर सकते है.. नहीं नहीं सर.. कल पोसीबल नहीं होगा.. मैं छुट्टी पर हूँ और एक सोशीयल काम से बाहर जा रहा हूँ.. सर.. मैं समझ सकता हूँ की ये बहोत इम्पॉर्टन्ट है.. पर मैं भी मजबूर हूँ"
कविता समझ गई की कोई जरूरी काम आ गया है और उसकी वजह से जाना केन्सल होने वाला है.. वो गुस्से से तिलमिलाने लगी.. बस पीयूष का फोन खतम होने की देर थी.. बाघिन की तरह झपट कर फाड़ देने वाली थी पीयूष को.. कविता का क्रोधित चेहरे को देखकर पीयूष भी हिल गया था
"समझने की कोशिश कीजिए सर.. आप हमारे खास कस्टमर है ये मैं भी समझता हूँ.. नहीं सर.. आप चाहे तो राजेश सर से बात कर सकते है.. इस बात के लिए मैं नौकरी छोड़ने को तैयार हूँ.. पर मैं अपनी छुट्टी केन्सल नहीं करने वाला.. आखिर मेरी भी पर्सनल लाइफ है.. !!" पीयूष जबरदस्त खेल खेल रहा था
नौकरी छोड़ने की बात सुनकर कविता घबरा गई.. बाप रे.. !! मेरी मायके जाने की जिद पूरी करने के लिए पीयूष नौकरी को ठोकर मारने के लिए तैयार हो गया.. !! कितनी मुश्किल से मिली थी ये नौकरी.. और तनख्वाह भी अच्छी थी.. पीयूष अच्छी तरह सेट भी हो गया था.. मायके थोड़े दिन बाद चले जाएंगे.. कौन सी बड़ी बात थी.. !!
कविता ने पीयूष का हाथ खींचकर उसे चुपके से कहा "हम कल नहीं जाएंगे.. तू अपने कस्टमर से मिल ले.. इतनी छोटी सी बात के लिए कोई नौकरी छोड़ता है भला.. ??"
पीयूष ने कविता की बात सुनते ही फोन पर कह दिया.. "ओके सर.. मेरी वाइफ मान गई है.. इसलिए मैं अपना प्रोग्राम केन्सल कर रहा हूँ.. हम कल ऑफिस में मिलते है.. जी सर.. नहीं सर.. पर मेरी भी हालत आप समझिए.. ये तो अच्छा है की मेरी वाइफ काफी समझदार है इसलिए मान गई.. जी सर.. कल मिलते है" कहते हुए उसने फोन काटने का नाटक किया
"थेंक यू कविता.. आई एम प्राउड ऑफ यू.. मुझे तो लगा मैं फंस गया इस बार.. पर तेरी समझदारी की कारण आज मैं बच गया.. वरना आज तो मैं नौकरी छोड़ देने के मूड में था.. पर तुझे मैं नाराज नहीं होने देता" पीयूष के ये कहते ही कविता उसके गले लग गई..
दोनों छत से नीचे उतरे और बेडरूम में चले गए.. बिस्तर पर लैटते ही कविता को खयाल आया.. हे भगवान.. ये प्रोग्राम तो मैंने सासु माँ और रसिक के प्रोग्राम को फ्लॉप करने के लिए बनाया था.. अब तो हमारा जाना ही केन्सल हो गया.. अब मैं क्या करूँ?? अब क्या सासु माँ के साथ आदिपुर जाना पड़ेगा?? रसिक का काला विकराल शरीर याद आते ही कविता को घिन आ गई.. पीयूष तो आराम से सो गया पर कविता की नींद हराम हो गई..
इस तरफ अनुमौसी ने रसिक को सारी बात कर दी थी.. बता दिया था की अब वो अगले रविवार को जाएंगे क्योंकी इस रविवार को कविता अपने मायके जाने वाली थी.. आज अनुमौसी ने शीला के घर सोने का सेटिंग कर दिया.. सिर्फ औपचारिकता के लिए उसने चिमनलाल को साथ चलने के लिए कहा.. पर उन्होंने मना कर दिया.. जब बेटिंग करनी ही न हो तब पिच पर जाकर क्या फायदा.. !! मौसी को उससे कोई फरक नहीं पड़ा.. वो तो उल्टा खुश हो गई.. अब आराम से वो रसिक के साथ अपनी मर्जी से जो चाहे कर सकती थी.. वैसे अगर चिमनलाल साथ आए होते तो भी उसे दिक्कत नहीं थी.. वो जानती थी की चिमनलाल की नींद इतनी गहरी थी की अगर वो उनके बगल में लेट कर रसिक से चुदवा भी लेती तो भी उन्हेंं पता न चलता..
रसिक के लिए सुबह जल्दी उठना था इसलिए मौसी निश्चिंत होकर सो गई..
Thanks a lot Premkumar65 bhaiInteresting story.
Super Bhaiदूसरे दिन वैशाली बड़ी जल्दी जाग गई.. ये देख शीला चोंक गई.. वैशाली को देर तक सोना बेहद पसंद था.. तो आज ये जल्दी क्यों उठ गई होगी?
"गुड मॉर्निंग" कहते हुए मुंह में ब्रश डालकर वैशाली सीधे छत पर चली गई... सुबह के साढ़े छह बजे थे.. बाहर कोई खास चहल पहल नहीं थी.. थोड़ी सी ठंड थी और बड़ा आह्लादक वातावरण था.. निप्पल पर ठंडी हवा का स्पर्श होते ही वैशाली को झुरझुरी सी होने लगी.. सामने की छत पर पीयूष गुलाब के पौधों को पानी दे रहा था.. जिस काम के लिए वो जल्दी जागी थी वो मिशन सफल हो गया.. जो जागत है वो पावत है
वैशाली को देखते ही पीयूष के मन का मोर ताताथैया करने लगा.. उसने हाथ से इशारा करके वैशाली को गुड मॉर्निंग कहा.. वैशाली ने भी हाथ से इशारा किया.. वैशाली के नाइट ड्रेस से उभरकर नजर आ रहे बड़े बड़े स्तन देखकर पीयूष के लंड में झटका लगा.. क्या माल लग रही है यार !! पहले तो इतनी सुंदर नहीं थी ये.. शादी के बाद लंड के धक्के खा खा कर इसका रूप ही निखर गया है.. कविता भी चुद चुद कर कैसी खिल गई है.. जिस दिन ना चोदो उस दिन मुरझाई सी रहती है.. स्त्री का सबसे बेस्ट मेकअप है लंड.. रोज लंड मिले तो हर स्त्री सुंदर और खिली खिली ही रहेगी.. पीयूष वैशाली को ऐसे तांक रहा था जैसे वो नंगी खड़ी हो..
इन दोनों का नैन-मटक्का चल रहा था तभी कविता भी छत पर आई.. पीयूष की पतंग आसमान में उड़ने से पहले ही कट गई.. वैशाली भी ऐसे अस्वस्थ हो गई जैसे रंगेहाथों पकड़ी गई हो.. कविता की तरफ देखे बगैर ही वो सीढ़ियाँ उतर गई..
"आज तो बड़ी देर लगा दी तूने.. बहोत पानी पीला दिया क्या पौधों को?" कविता ने एसीपी प्रधयुमन की तरह पूछताछ शुरू की
"मैं.. नहीं वो.. वो तो जरा.. बात दरअसल ये है की.. " पीयूष बॉखला गया "तू समझ रही है ऐसा कुछ भी नहीं है.. मैं तो पौधों को पानी दे रहा था" पीयूष के शब्दों में सिमेन्ट कम और रेत ज्यादा थी..
कविता: "पर मैंने कब कहा की तू वैशाली को देख रहा था???? पर अच्छा हुआ जो तेरे दिल में था वो होंठों पर आ ही गया.. कर ले एक बार वैशाली के साथ.. तुझे भी चैन मिलेगा और वैशाली को भी !!" पीयूष की कमर पर चिमटी काटते हुए हंस रही थी कविता
"क्या सच में? क्या बात कर रही है तू?" पीयूष को समझ नहीं आया की वह क्या बोले.. बोलने के बाद उसे एहसास हुआ की "क्या सच में?" बोलकर उसने कितनी बड़ी गलती कर दी थी.. वो कविता को धमकाने लगा
"क्या तू भी.. कुछ भी बोलती रहती है.. तुझे तो मुझ पर विश्वास ही नहीं है.. जब देखों तब शक करती रहती है" मर्दों का ये हथियार है.. जब भी वो गलत हो तब पत्नी को धमका कर चुप करा देना.. !!
कविता भी कुछ कम नहीं थी.. उसे इस बात का गुस्सा आया की रंगे हाथों पकड़े जाने के बावजूद पीयूष उसे धमका रहा था
"अब रहने भी दे पीयूष.. ज्यादा शरीफ मत बन समझा.. सालों पहले तूने और वैशाली ने क्या गुल खिलाए थे मुझे सब पता है"
अरे बाप रे.. पीयूष की गांड ऐसे फटी की सिलवाने के लिए दर्जी भी काम न आए
"क्या कुछ भी बकवास कर रही है.. कोई काम-धाम है नहीं बस पूरे दिन बातें करा लो.. मुझे ऑफिस जाने में देर हो रही है.. टिफिन तैयार किया या नहीं? बड़ी मुश्किल से मिली है ये नौकरी.. तू ये भी छुड़वा देगी " गुस्से से पैर पटकते हुए पीयूष ने कहा.. कविता को लगा की आज के लिए इतना डोज़ काफी था.. पर जाते जाते उसने सिक्सर लगा दी
"हाँ हाँ टिफिन तो कब से तैयार है.. ये तो तुझे आने में इतनी देर हुई इसलिए मैं ऊपर देखने चली आई.. तुम्हें डिस्टर्ब करने का मेरा कोई इरादा नहीं था.. तुम शांति से पौधों को जितना मर्जी पानी पिलाते रहो.. सारे पौधे तृप्त हो जाए बाद में नीचे चले आना" कविता गुस्से से सीढ़ियाँ उतर गई
"ये कविता साली मुझे आराम से देखने भी नहीं देती.. तो चोदने कैसे देगी? भेनचोद ये पत्नीयों को कैसे समझाए? पति थोड़ा बहुत फ्लर्ट करें तो इसमें कौनसा पहाड़ टूट पड़ता है ये समझ नहीं आता.. कोई कदर ही नहीं है कविता को मेरी.. बहोत गुस्सा आया उसे कविता पर.. लेकिन देश के अन्य मर्दों की तरह वो भी अपनी पत्नी के सामने लाचार था.. जीरो पर आउट होकर पेवेलियन में जिस तरह बेट्समेन नीची मुंडी करके लौटता है वैसे ही पीयूष सिर नीचे झुकाकर सीढ़ियाँ उतारने लगा
कविता को आज पीयूष की फिरकी लेने का मस्त मौका मिला था.. और कोई भी पत्नी ऐसे मौके को छोड़ती नहीं है। पीयूष को सीढ़ियाँ उतरते देख कविता ने कहा "नीचे ध्यान से देखकर उतरना.. कहीं गिर गया तो तेरी देखभाल करने कोई पड़ोसन नहीं आएगी.. वो तो मुझे ही करना होगा इतना याद रखना तुम"
पीयूष चुपचाप टिफिन लेकर ऑफिस के लिए रवाना हो गया.. वो गली के नुक्कड़ तक पहुंचा ही था की तभी उसने रिक्शा में बैठी वैशाली को देखा.. रोता हुआ बच्चा चॉकलेट को देखकर जैसे चुप हो जाता है.. वैसे ही वैशाली को देखकर पीयूष के मन का सारा गुस्सा भांप बनकर उड़ गया..वैशाली ने पीयूष को ऑटो में बैठने को कहा और ऑटोवाले से बोली की यहाँ से निकलकर ऑटो को आगे खड़ा करें.. ताकि इस इलाके से बाहर निकालकर आगे की योजना के बारे में सोच सकें।
"अब बता पीयूष.. किस तरफ लेने के लिए कहू?" वैशाली ने सीधे सीधे पूछ लिया.. पीयूष ने अपनी ऑफिस का पता बताया
"ऑफिस की बात नहीं कर रही.. अरे बेवकूफ तुझे नादान और नासमझ नहीं बनना है?? " वैशाली ने आँखें नचाते हुए नटखट आवाज में कहा
पीयूष हक्का बक्का रह गया.. अपनी माँ पर ही गई है ये लड़की.. बात को घुमाये बगैर सीधा सीधा बोलने की आदत दोनों को है.. पीयूष को ऑफिस में आज बेहद जरूरी काम था.. दूसरी तरफ वैशाली नाम का जेकपोट हाथ में आया था उसे भी जाने नहीं दे सकता था.. पीयूष उलझन में पड़ गया
स्किनटाइट जीन्स और व्हाइट केप्रि पहने बैठी वैशाली ने अपना एक हाथ पीयूष के कंधे पर रख दिया.. उसी के साथ वैशाली का एक तरफ के स्तन की झलक पीयूष को दिख गई.. ओह्ह। वैशाली ने एक ही पल में पीयूष के दिमाग को एक ही पल में बंद कर दिया
"अब जल्दी भोंक.. कहाँ जाना है?? ऑटोवाले भैया कब से पूछ रहे है"
"मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है वैशाली.. तू ही बता "
वैशाली को थोड़ा गुस्सा आया.. साथ ही साथ पीयूष के भोलेपन पर हंसी भी आई.. अभी भी ये पहले जैसा ही है.. लड़की को लेकर कहाँ जाते है वो तक पता नहीं है इसे..
"भैया.. अम्बर सिनेमा पर ऑटो ले लीजिए.. " ऑटो उस तरफ चलने लगी
"नहीं नहीं.. वहाँ नहीं.. उस सिनेमा की बिल्कुल बगल में मेरे दोस्त का घर है.. उसने देख लिया तो आफत आ जाएगी.. "
"तो फिर? कहाँ जाएंगे?" वैशाली सोचने लगी
"साहब, अगर आप लोगों को कोई सुमसान जगह की तलाश है तो मैं आपको ले जा सकता हूँ " ऑटो वाले ने कहा
"कहाँ पर?" वैशाली और पीयूष दोनों एक साथ बोले
"शहर के बाहर मेरा घर बन रहा है.. वहाँ कोई नहीं होता.. काम भी बंद है अभी.. मुझे जो ऊपर का खुशी से देना चाहते हो देना.. मेरी बीवी बीमार है.. मेरी भी थोड़ी मदद हो जाएगी.. " ऑटो वाले ने कहा
"ठीक है.. वहीं पर ले लो.. " वैशाली ने तुरंत फैसला सुना दिया..
लगभग पंद्रह मिनट में रिक्शा एक सुमसान खंडहर जैसी जगह पर आकर रुकी.. दीवारें थी पर प्लास्टर बाकी था.. अंदर कोई नहीं था.. आजूबाजू भी दूर दूर तक किसी का नामोनिशान नहीं नजर आ रहा था..
"आप वापिस कैसे जाओगे साहब? यहाँ ऑटो नहीं मिलेगी आपको.. "
"तुम दो घंटे बाद हमें लेने वापिस आना.. " वैशाली ने कहा
"मेरा नंबर सेव कर लीजिए.. फोन करेंगे तो १० मिनट में पहुँच जाऊंगा" ऑटो स्टार्ट कर वो निकल गया
वैशाली और पीयूष खंडहर के अंदर गए.. रेत के एक बड़े से ढेर पर वैशाली बैठ गई.. बिना अपने कपड़ों की परवाह कीये.. थोड़े संकोच के साथ पीयूष भी वैशाली के पास बैठ गया
काफी देर तक दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। थक कर आखिर वैशाली ने शुरुआत की
"पीयूष, २० मिनट से ज्यादा गुजर चुके है.. ऐसा ना हो की मुझे तुझ से जबरदस्ती करनी पड़े"
सुनते ही पीयूष ठहाका मारकर हंसने लगा.. "क्या यार वैशाली.. कुछ भी बोलती है... छोटी थी तब भी तू ऐसी ही नटखट थी"
"छोटी थी तब की बात है वो.. अब मैं बड़ी हो चुकी हूँ पीयूष.. मेरी पसंद.. मेरा टेस्ट अब बदल चुका है"
"मतलब?? " पीयूष को समझ नहीं आया
रेत के ढेर पर बैठे पीयूष को धक्का देकर सुला दिया वैशाली ने.. और उसके होंठों पर अपने होंठ लगाते हुए उसके लंड को पेंट के ऊपर से दबाने लगी और बोली "छोटी थी तब मुझे लोलिपोप चूसना बहुत पसंद था.. अब मुझे ये चूसना पसंद है"
माय गॉड.. वैशाली के इस कामुक रूप को देखकर पीयूष हक्का बक्का रह गया.. ये लड़की तो एटमबॉम्ब से भी ज्यादा स्फोटक है.. !!
इतना कहते ही वैशाली, पीयूष के लाल होंठों को चूमते हुए उसके लंड को मुठ्ठी में मसलने लगी..
"बड़ा भी हुआ है या उतना ही है जितना आखिरी बार देखा था??" कहते हुए वैशाली ने पेंट की चैन खोलकर अन्डरवेर में से लंड पकड़कर बाहर निकाला.. लंड की साइज़ देखकर उसने "वाऊ.. " कहा..
"पीयूष.. अब ज्यादा वक्त बर्बाद मत कर.. ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.. आज तुझे कलकत्ता का माल मिला है मजे करने के लिए.. ये देख मेरी रत्नागिरी आफुस.." भारी स्तनों वाली छाती को उभारते हुए दिखाकर वैशाली ने पीयूष को पागल बना दिया.. पीयूष बावरा होकर वैशाली के स्तनों को दबाने लगा.. "ओह्ह वैशाली.. पता है उस दिन जब हम होटल गए थे.. ये तेरे बड़े बड़े बबलों में ही मेरी जान अटक कर रह गई थी उस दिन.. जब हमने साथ में पहली बार किया तब तेरे कितने छोटे छोटे थे.. और जब बड़े हुए तब तू चली गई.. तुझे वो सब बातें याद भी है या भूल गई?"
"पीयूष, कोई भी लड़की अपना पहला किस कभी भूल नहीं सकती.. मुझे सब कुछ याद है.. तू बहोत पसंद था मुझे.. पर तू उस पिंकी के साथ ज्यादा खेलता था तब बड़ा गुस्सा आता था मुझे.. "
"कौन सी पिंकी यार??"
"एक नंबर का भुलक्कड़ है तू.. पीछे वाली गली में रहती थी.. रमणकाका की बेटी"
"अरे हाँ.. वो.. वो तो मुझे जरा भी पसंद नहीं थी.. पता नहीं यार तुझे उस समय क्यों ऐसा लगा की पिंकी मुझे पसंद थी.. मैं उस समय भी तुझसे बहोत प्यार करता था.. " दोनों बातें करते हुए एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे.. थोड़ी थोड़ी देर पर वैशाली घड़ी पर नजर डाल लेती थी..
वैशाली किसी परपुरुष के साथ ऐसा कभी न करती.. पर जब से उसे संजय के अवैध संबंधों के बारे में पता चला.. उसका दिमाग फट रहा था.. वो मादरचोद वहाँ मस्ती करे और मैं यहाँ गांड मराऊ ?? मैं भी बेशरम बन सकती हूँ.. और संजय के ऊपर आए गुस्से के कारण ही आज वो पीयूष का लंड पकड़कर रेत में लेटी थी..
"पीयूष.. ऐसे धीरे धीरे नहीं.. जरा जोर से दबा.. " वैशाली ने बड़ी ही धीमी कामुक आवाज में कहा। पीयूष वैशाली के गाल, गर्दन और कान को चूमते हुए उसके विशाल स्तनों को दबा रहा था.. वैशाली के टाइट टीशर्ट के ऊपर के बटन निकालकर उसने खजाना खोल दिया.. ब्रा के अंदर कैद दो खरबूजों के बीच की गोरी चीट्टी खाई.. आहहाहहाहहा.. ब्रा के ऊपर से उभर कर आए स्तनों के ऊपरी हिस्सों को वो चूमते हुए वैशाली के पेंट की चैन को खोलने लगा.. वैशाली की पेन्टी.. चुत का रस रिसने से पूरी तरह भीग चुकी थी
"ओह पीयूष.. बहुत खुजली हो रही है यार अंदर.. अपने हाथ से थोड़ा सहला उसे.. " लंड के ऊपर अपनी पकड़ को मजबूत करते हुए वैशाली ने कहा.. इतनी मजबूती से कभी कविता ने भी नहीं पकड़ा था पीयूष का.. कविता से हजार गुना ज्यादा हवस थी वैशाली में ..
"ओह्ह वैशाली.. मुझे एक बार तेरे ये दोनों बबले खोल कर देखने है यार.. " वैशाली ने टीशर्ट के बाकी बटन खोल दिए.. और ब्रा की कटोरियों में से दोनों मांस के पिंड को बाहर निकाला.. दूध जैसे गोरे भारी भरकम स्तनों को देखकर पीयूष कि आँखें फटी की फटी ही रह गई..
"कितने मस्त है यार तेरे बबले.. " दोनों लचकते स्तनों को हाथ में पकड़कर पीयूष दबाने मसलने लगा..
"तेरा स्पर्श मुझे पागल बना रहा है पीयूष.. मज़ा आ रहा है.. जोर से दबा.. क्रश इट.. ओ येह.. ओ गॉड.. आह्ह" अपने पति की बेवफाई का बदला लेने के लिए वैशाली पीयूष के शरीर फिर हाथ फेर रही थी.. वैशाली के खिले हुए गुलाब जैसे जिस्म को पीयूष रौंदने लगा..
"वैशाली.. तुझे कैसा लगा मेरा.. ??" अपने लंड की ओर इशारा करते हुए पीयूष ने वैशाली की जीन्स केप्रि को खींच कर उसके घुटनों तक ला दिया
"मस्त है तेरा पीयूष.. मज़ा आएगा"
"तेरे पति से बड़ा है ना !!!" संजय का जिक्र होते ही वैशाली के दिमाग के कुकर की सीटी बज गई..
"तू नाम मत ले उस भड़वे का.. मेरा मूड खराब हो जाएगा" वैशाली ने नीचे झुक कर पीयूष का पूरा लंड मुंह में लिया और चूसने लगी.. और बड़ी ही तीव्र गति से चूसने लगी..
"आह्ह वैशाली.. जरा धीरे धीरे.. निकल जाएगा मेरा" पीयूष के आँड़ों से खेलते हुए वैशाली बड़ी मस्ती से चूस रही थी
वैशाली की टाइट केप्रि को बार बार खींचने पर भी जब नहीं निकाल पाया पीयूष तब उसने परेशान होकर वैशाली से कहा
"अरे यार.. ये तेरी चुत के चारों तरफ जो किलेबंदी है उसे हटा.. मुझसे तो निकल ही नहीं रहा है.. कितना टाइट पहनती है तू?"
"मेरे पीयूष राजा.. ऐसे टाइट पेंट में ही हिप्स उभर कर बाहर दिखते है.. और में हॉट लगती हूँ.. समझा.. !!" वैशाली ने आँख मारते हुए कहा
"वो तो ठीक है मेरी रानी.. पर इसे खोलने में कितना वक्त बर्बाद होता है!! इससे तो देसी घाघरा ही अच्छा.. जो पहनने के भी काम आए और वक्त आने पर बिछाने के भी.. अब नखरे छोड़ और उतार ये तेरी केप्रि" अपने ठुमकते लोड़े को काबू में करने के लिए पीयूष ने उसे हाथ से पकड़ कर रखा था..
वैशाली रेत के ढेर से खड़ी हुई.. उसकी पीठ पर रेत लग गई थी.. वैशाली ने केप्रि और साथ में अपनी पेन्टी भी उतार दी.. और कमर से नीचे पूरी नंगी हो गई..
वैशाली की मोटी मोटी जांघें देख पीयूष उत्तेजित होकर उन्हे चूमने लगा.. हल्के झांटों वाली चुत पर हाथ फेरते हुए उसने चुत का प्रवेश द्वार ढूंढ निकाला.. और अपनी उंगलियों से उसकी क्लिटोरिस से जैसे ही उसने खेलना शुरू किया.. वैशाली सिहर उठी.. उसने पीयूष के सिर को पकड़ कर अपनी दो जांघों के बीच में दबा दिया.. सिसकियाँ लेते हुए वो अपने पैरों से पीयूष के लंड को रगड़ने लगी..
"ओह पीयूष.. चाट मेरी यार.. " तड़प रही थी वैशाली.. उसके स्तन फूल कर सख्त हो गए थे.. निप्पल उभर आई थी.. अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था उससे.. वो अपनी झांटों वाली चुत को पीयूष के चेहरे पर रगड़ने लगी.. लेकिन पीयूष अब भी सिर्फ चूम ही रहा था.. अपनी जीभ उसने वैशाली की चुत में नहीं डाली थी
चुत की खुजली से परेशान वैशाली ने पीयूष को धक्का देकर रेत के ढेर पर गिरा दिया.. और उसके चेहरे पर सवार हो गई.. दोनों तरफ अपने पैर जमाकर मदमस्त होकर अपनी चूचियाँ मसलते हुए वो आगे पीछे होने लगी.. वैशाली के जिस्म का वज़न आ जाने से पीयूष का चेहरा रेत में धंस गया.. उसने वैशाली की चुत की परतों के बीच अपनी जीभ फेरनी शुरू कर दी.. दोनों उत्तेजनावश वासना के महासागर में गोते खाने लगे.. हवस की आग में झुलस रही वैशाली पीयूष के सर के बाल पकड़कर अपनी चुत का दबाव बनाने लगी.. पीयूष ने अपने नाखून वैशाली के कोमल चूतड़ों में गाड़ दिए.. चुत का रस पीयूष के पूरे चेहरे पर सना हुआ था..
एक घंटा हो गया.. इन दोनों का फोरपले अब भी चल रहा था.. वैशाली पीयूष के स्पर्श की एक एक पल बड़े मजे से महसूस कर रही थी.. पीयूष की जीभ.. चुत के अंदर तक घुस चुकी थी और वैशाली को स्वर्ग की सैर करवा रही थी.. पीयूष ने अपने लंड को मुठ्ठी में पकड़कर हिलाना शुरू कर दिया.. उसे लंड हिलाता देख वैशाली ने उसका हाथ छुड़ाकर खुद हिलाना शुरू कर दिया
"हाये पीयूष.. ये तेरा खुरदरा लंड जब मेरी चुत की दीवारों पर घिसेगा तब कितना मज़ा आएगा यार.. !!" अब वैशाली को लंड लेने की इच्छा होने लगी.. वैशाली ने अपनी कमर को थोड़ा सा उठाया.. पीयूष अब रिसती हुई चुत को साफ देख पाया.. उसने अपनी जीभ को वैशाली के गांड के छेद से लेकर क्लिटोरिस तक चाटा.. और अंगूठे से क्लिटोरिस को कुरेदने लगा..
दो दो संवेदनशील जगहों पर जीभ का स्पर्श होते ही वैशाली बेहद उत्तेजित हुई.. और वो खुद झड़ जाए उससे पहले पीयूष के लंड के ऊपर बैठ गई.. जिस प्रकार से लंड घिसकर अंदर गया उससे वैशाली को यकीन हो गया की हिम्मत के लंड के मुकाबले पीयूष के लंड में ज्यादा मज़ा आएगा..
"आह्ह पीयूष.. ओह माँ.. फक मी.. येस.. ओह गॉड.. फक मी हार्ड.. " कराह रही थी वैशाली.. पीयूष भी नीचे से दमदार धक्के लगाए जा रहा था..
"ओह्ह वैशाली.. मेरा निकलने की तैयारी में है.. !! कितनी टाइट है तेरी चुत.. आह्ह.. !! लगता है काफी दिनों से बिना चुदे कोरी पड़ी है तेरी चुत.. "
"ओह्ह.. जोर से धक्के मार पीयूष.. स्पीड बढ़ा.. फाड़ दे मेरी चुत को.. बहुत भूखी हूँ.. ओह ओह्ह.. " पागलों की तरह कूद रही थी वैशाली.. खंडहर की दीवारों के बीच "फ़च फ़च" की आवाज़ें गूंज रही थी.. "पीयूष.. पानी अंदर मत निकालना.. नहीं तो भसड़ हो जाएगी.. पिछले एक साल से उस कमीने के साथ मैंने कुछ नहीं किया है"
"ओह्ह पीयूष.. आह्ह.. उईई माँ.. बहोत मस्त चोद रहा है यार.. आह्ह मैं गईईईई" कहते हुए वैशाली थरथराने लगी और झड़ गई.. झड़ते ही वो उसी अवस्था में पीयूष की छाती के ऊपर लेट गई.. पीयूष ने अपना लंड बाहर निकाल और वैशाली की गांड के इर्दगिर्द अपनी पिचकारी दे मारी.. गांड के छेद पर गरम गरम वीर्य का स्पर्श होती है वैशाली ने कहा "कितना गरम है यार.. पीछे जलने लगा मुझे.. "
वैशाली पीयूष के शरीर से उतर गई.. और बेफिक्र होकर उसके बगल में रेत पर लेट गई.. दोनों पसीने से सन चुके थे.. और पूरे शरीर पर रेत लग गई थी.. वासना का तूफान शांत हो गया था.. और दोनों धीरे धीरे वास्तविकता की दुनिया में कदम रख रहे थे.. पीयूष अब भी लेटे लेटे वैशाली के स्तनों को दबा रहा था
वैशाली: "तुझे इतने पसंद है मेरे स्तन?"
पीयूष: "हाँ डार्लिंग.. इन्हे देखते ही मैं बेकाबू हो जाता हूँ"
वैशाली: "मुझे भी तेरे साथ इत्मीनान से करवाने का बड़ा ही मन था.. इतना मज़ा आया है मुझे आज की क्या कहूँ.. आई वॉन्ट टू फ़ील दिस अगैन..वापिस कब मिलेगा मुझे?"
"तू यहाँ और कितने दिनों के लिए है?"
"कम से कम एक हफ्ते के लिए.. " पीयूष के नरम लंड से खेलते हुए वैशाली ने कहा
पीयूष: "तेरे शरीर इतना आकर्षक है की अगर दिन रात करता रहु तो भी मेरा मन नहीं भरेगा.. अगर तू तैयार हो तो अभी एक और बार करते है"
वैशाली मुस्कुराई और बोली "यहाँ इस अनजान जगह में खुले में करने में जो मज़ा आया.. मेरा भी दिल कर रहा है एक बार और करने के लिए... पर जल्दी करना पड़ेगा.. वक्त बहुत ही काम है.. और कल वापिस तू कुछ सेटिंग करना.. जहां बुलाएगा मैं आ जाऊँगी.. बहोत सह लिया संजय के साथ.. अब मैं ज़िंदगी का पूरा मज़ा लूँगी"
पीयूष ने करवट लेकर पास लेटी वैशाली के स्तन की निप्पल को चूसना शुरू किया.. इसी के साथ वैशाली की चुत में करंट दौड़ने लगा.. पीयूष का लंड भी जागृत हो गया.. वैशाली पीयूष के लंड पर अपनी छातियाँ रगड़कर उसे और सख्त करने लगी.. स्तनों के गरम नरम स्पर्श से लंड का सुपाड़ा खिल उठा..
पीयूष ने वैशाली को लंड से दूर किया और उसे रेत में उल्टा लेटा दिया.. और उसपर सवार होकर अपने लंड को उसके चूतड़ों पर चाबुक की तरह मारने लगा.. गोरे कूल्हे लाल लाल हो गए.. रेत के अंदर वैशाली के चुचे अंदर धंस गए.. गीली रेत की ठंडक अपने स्तनों पर महसूस कर रही थी वैशाली।
बगल में साइलेंट मोड पर रखा हुआ पीयूष का मोबाइल अविरत बजे जा रहा था.. उसके बॉस राजेश और सेक्रेटरी पिंटू के अनगिनत मिसकॉल थे स्क्रीन पर.. उतना ही नहीं.. कविता और शीला के भी मिसकॉल आए थे.. पर इस हवस के सागर में डूबे हुए जोड़े को दुनिया की परवाह न थी
वैशाली के भव्य चूतड़ों को चौड़ा कर पीयूष ने गांड के छेद पर अपनी जीभ फेरकर वैशाली को झकझोर दिया.. "माय गॉड पीयूष.. कहाँ जीभ फेर दी तूने.. तुझे घिन नहीं आई?"
"तुझे नहीं पसंद तो नहीं करूंगा डीयर.. "
"पसंद नापसंद की बात नहीं है यार.. नीचे जीभ से कोई चाटे तो मज़ा तो आता ही है.. मेरे कहने का ये मतलब था की ऐसी गंदी जगह तू कैसे चाट सकता है!!" वैशाली को जरा भी अंदाजा नहीं था की इस जगह भी कितना आनंद छुपा हो सकता है
"पीयूष प्लीज.. चाटना बंद कर.. मैं मर जाऊँगी.. "वैशाली से बर्दाश्त नहीं हो रहा था.. पीयूष चाट पीछे रहा था और आग लग रही थी वैशाली की चुत में.. जब रहा नहीं गया तब वैशाली ने रेत के ढेर में हाथ डालकर खुद ही अपनी चुत को ढूंढ निकाला.. और क्लिटोरिस को पकड़कर दबा दिया.. तब उसे चैन आया.. चुत की खुजली थोड़ी शांत होने पर अब वह आराम से गांड चटाई का मज़ा ले पा रही थी
पीयूष अब उठा और दोनों हाथों से वैशाली को जांघों से पकड़कर खिंचकार थोड़ा सा ऊपर कर दिया.. और अपने सुपाड़े को गांड के छेद पर रख दिया.. वैशाली को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके छेद पर किसी ने कोयले का अंगारा रख दिया हो.. इतना गरम लग रहा था पर मज़ा भी आ रहा था.. गर्मी का एहसास होते ही उसकी गांड का वाल्व सिकुड़कर बंद हो गया। पर पीयूष बेहद उत्तेजित था.. या यूं कहो की निरंकुश सा हो चुका था.. उसने अपने लंड को जोर से अंदर धकेला.. वैशाली तो यही सोच रही थी की पीयूष उसकी गांड के साथ बस छेड़छाड़ कर रहा था.. लेकिन उस अत्यंत कोमल और संकरी गांड के मुकाबले काफी बड़े सुपाड़े के अंदर घुसते ही उसकी चीख निकल गई
"ओओईईई माँ.. मर गई मैं.. नालायक.. क्या किया तूने? निकाल बाहर.. " पीयूष वैशाली की चीखो को अनसुना करते हुए अंदर धकेलता गया. उसका आधा लंड अंदर घुस गया.. वैशाली को चक्कर आने लगे.. आँखों के सामने अंधेरा छा गया.. पीयूष की पकड़ से छूटने के लिए वो उछलने लगी.. पर जरा सी भी हलचल करने पर उसे तीव्र पीड़ा हो रही थी.. इसलिए उसने प्रतिकार या विरोध करना बंद कर दिया
टाइट गांड के अंदर पीयूष के लंड की चमड़ी भी छील गई थी.. उसे भी जल रहा था.. बहोत टाइट था वैशाली की गयंद का छिद्र
थोड़ी देर तक बिना हिलेडुले पीयूष स्थिर पड़ा रहा.. वैशाली की जान में जान आई "प्लीज पीयूष.. बाहर निकाल दे यार.. किसी और दिन ट्राय करेंगे.. अभी मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ.. " दर्द से कराहते हुए वैशाली ने कहा
पीयूष ने बड़े ही प्यार से वैशाली की गर्दन को चूमते हुए कहा "वैशाली.. "
उसने जवाब नहीं दिया
पीयूष ने फिर से कहा "सुन रही हो डीयर??"
"हाँ बॉल.. क्या है?"
"तूने पहले कभी पीछे करवाया है? मतलब किसी गांड मरवाई है क्या कभी?"
"नहीं.. कभी नहीं.. बहोत दर्द होता है.. तू कभी अंदर लेगा तो पता चलेगा तुझे"
"मैं क्या होमो लगता हूँ तुझे.. जो किसी की अंदर लूँगा??" गुस्से से पीयूष ने लंड को फिर से दबाया.. वैशाली के कंठ से दबी हुई चीख निकल गई.. "बस कर यार.. मुझसे अब बर्दाश्त नहीं होता"
पीयूष: "वैशाली.. जीवन में हर तरह के अनुभव करने चाहिए.. ये अनुभव भी जरूरी है"
"भेनचोद.. चूल मची है चुत में.. और तू गांड के पीछे पड़ा है?" वैशाली अब गुस्सा हो गई.. भोसड़े की खुजली बर्दाश्त नहीं हो रही थी उससे.. पीयूष ने लंड को बाहर खींचा.. वैशाली को राहत मिली.. "गुड बॉय.. अब मैं घूम जाती हूँ.. फक मी इन द फ्रंट"
पीयूष ने फिर लंड को दबाया.. "उईई माँ.. क्या कर रहा है तू? मुझे बहोत दर्द हो रहा है यार.. कब से बॉल रही हूँ समझता क्यों नहीं?"
पीयूष ने धीरे से लंड बाहर निकाल लिया... गांड आजाद होते ही वैशाली की जान में जान आई.. वो पलट गई और बोली "बहोत वक्त जाया किया है तूने.. अब जल्दी कर.. " वैशाली ने पीयूष का लंड पकड़कर खुद ही अपनी चुत में डाल दिया.. और अपनी कमर उठा ली.. शताब्दी एक्स्प्रेस की गति से पीयूष ने चुत चुदाई शुरू कर दी.. वैशाली भी चूतड़ उछालकर उसके धक्कों का माकूल जवाब दे रही थी
कुछ ही मिनटों की चुदाई के बाद वैशाली झड़ गई.. पीयूष ने भी लंड बाहर निकालकर वैशाली के गद्देदार पेट पर वीर्य की पिचकारी छोड़ दी.. दोनों अब शांत हो गए.. वैशाली पूरी तरह से तृप्त हो चुकी थी.. रेत से घिसकर उसने अपने पेट पर लगा वीर्या साफ कर लिया.. दोनों इतने गंदे हो चुके थे जैसे मजदूरी करके वापिस लौटे हो.. वैशाली की चुत तो शांत हो गई पर उस मादरचोद ने जो गांड में लंड डाला था.. वहाँ जलन हो रही थी और दर्द भी..
"ये कपड़े तो देख और हमारा हाल देख.. ऐसे कैसे घर जाएंगे हम दोनों??" वैशाली को चिंता होने लगी..
पीयूष भी सोच में पड़ गया.. कहीं थोड़ा पानी मिल जाएँ तो सफाई हो सकती है.. पीयूष ढूँढने लगा.. मकान का काम चल रहा था मतलब कहीं न कहीं टंकी जरूर होगी.. पीछे की तरफ टंकी नजर आई.. पर उसमें बहोत दिने से भरा हुआ गंदा पानी था..
"ऐसे गंदे पानी में मैं अपने पैर नहीं साफ करूंगी" वैशाली ने मना कर दिया
"कोई बात नहीं महारानी.. अभी तेरे पापा विदेश से मिनरल वॉटर भेजेंगे.. उससे साफ कर लेना.. ठीक है !! नखरे छोड़ और साफ कर" वैशाली ने जैसे तैसे अपने कपड़े साफ किए और शरीर पर लगी रेत को झटक दिया
"अब जल्दी करते है पीयूष.. एक घंटे के लिए सहेली को मिलने के बहाने निकली थी.. घर से निकले हुए साढ़े तीन घंटे हो गए है.. मम्मी चिंता कर रही होगी.. अब भागना पड़ेगा"
अब पीयूष की भी फटी.. ऑफिस का काम छोड़कर आया था.. कितनी जरूरी डिलीवरी करनी थी आज.. राजेश सर क्या सोचेंगे.. बिना कहे ही छूटी मार दी!! पर कोई फोन ही कहाँ आया है किसी का.. फिर तो कोई टेंशन नहीं है..
तभी अचानक उसे याद आया की चुदाई शुरू करने से पहले उसने फोन को साइलन्ट मोड पर रख दिया था.. रेत के ढेर से थोड़े दूर उसने मोबाइल रखा हुआ था.. फोन हाथ में लेते ही उसके होश उड़ गए.. उसके चेहरे पर शिकन आ गई
"क्या हुआ??" चिंतित पीयूष को देखकर वैशाली ने पूछा
"अरे यार.. मेरे बॉस के दस मिसकॉल आ गए है.. घर से कविता के और तेरी मम्मी के मिसकॉल भी है.. कहीं बॉस ने घर पर तो फोन नहीं किया होगा?? घर पर फोन किया होगा तो कविता ने तो यही कहा होगा की मैं ऑफिस के लिए निकल चुका हूँ!! बाप रे !!"
वैशाली को भी याद आया.. उसका फोन भी पर्स के अंदर था.. पर्स से फोन निकालकर उसने देखा तो मम्मी के बीस मिसकॉल थे और संजय के भी काफी कॉल आकर चले गए थे.. इस मादरचोद को भी आज ही मेरी याद आनी थी!! जैसे इतना काफी नहीं था.. वैशाली को कविता का मेसेज भी आया था "कहाँ है तू? कहीं पीयूष के साथ तो नहीं है.. प्लीज कॉल अरजेंट" इसका मतलब तो ये हुआ की दोनों के घर पर प आता चल चुका था.. कोई भी समस्या हो कविता सब से पहले शीला को बताती थी ये बात पीयूष को पता थी
दोनों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी.. वैशाली खड़ी हुई और बोली "कुछ भी हो जाएँ पीयूष.. पर हमें इसी बात पर अड़े रहना है की हम साथ नहीं थे.. हम दोनों को साथ जाते हुए किसी ने देखा तो नहीं होगा ना??"
पीयूष के पास इसका कोई जवाब नहीं था.. दोनों सिर पकड़कर खड़े रहे.. "बुला लूँ ऑटो वाले को?" पीयूष ने कहा
"नहीं.. मुझे सोचने दे कुछ.. अब जो भी होगा देखा जाएगा.. " वैशाली ने कहा
"हम जब सोसायटी के नुक्कड़ से ऑटो में बैठे तब किसी न किसी ने हमे देखा ही होगा.. " पीयूष की गांड फट कर फ्लावर हो गई
"अब मजे किए है तो थोड़ा भुगतना भी पड़ेगा.. हम ये कहेंगे की हम ऑटो में साथ निकले औ मैंने तुम्हें बस स्टेंड पर छोड़ दिया था" वैशाली का दिमाग काम पर लग गया
"मैं बॉस को फोन करता हूँ.. पर क्या कहूँगा उनसे?"
"अरे यार.. बोल देना की रास्ते में एक बाइक वाले का एक्सीडेंट हुआ था तो तू उसे लेकर अस्पताल गया था.. इसलिए ऑफिस नहीं आ सका"180
"यार तू कितनी आसानी से जूठ बोल सकती है.. मुझसे तो बोला ही नहीं जाता.. एक काम कर.. तू ही बात कर ले मेरे बॉस से"
"ठीक है.. फोन लगाकर दे.. मैं बात करती हूँ"
पीयूष ने राजेश सर को फोन लगाकर वैशाली को दिया। राजेश बहोत गुस्से में था.. पर सामने पीयूष के बजाए किसी लड़की की आवाज सुन कर वो भी ठंडा हो गया.. वैशाली ने पट्टी पढ़ाकर राजेश को चोदू बना दिया..
"हो गया प्रॉब्लेम सॉल्व? अब तू कविता को फोन लगा" वैशाली ने पीयूष से कहा
"कविता को? पर क्यों?"
"तुझे जो कहा वो कर.. लगा फोन" वैशाली ने कहा
"अरे पर फोन मिलाकर क्या बात करू?"
"अभी तेरे बॉस को एक्सीडेंट वाला बहाना दिया ना हमने.. तो घर पर भी वही कहना है.. इतना भी नहीं समजता तू बेवकूफ?"
पीयूष ने कविता को फोन किया और जो बात वैशाली ने राजेश से कही थी वही बात उसने कविता को बोल दी.. फिर रिक्शा वाले को फोन करके बुलाया.. और ऑटो में अपने घर के एरिया तक पहुँच गए.. वैशाली ने अपने पर्स से 500 का एक नोट निकालकर ऑटो वाले को दे दिया... वो खुश होकर चला गया
"तू भी यार.. इतने पैसे भी कोई देता है क्या??" पीयूष को ५०० रुपये बहोत ज्यादा लगे.. उसके हिसाब २००-२५० में काम बन जाता
वैशाली: "यार.. तूने आज मुझे जो ऑर्गजम दिए है.. उसके सामने ५०० रुपये की कोई कीमत नहीं है.. और देख.. जब गैरकानूनी हरकतें कर रहे हो तब रिश्वत देने में कभी कंजूसी नहीं करनी चाहिए.. " गुरुमंत्र दिया पीयूष को वैशाली ने
"तू फिर कब मिलेगा मुझे??" वैशाली ने पूछा
"तू मुझे मोबाइल कर देना.. जहां कहेगी मैं आ जाऊंगा.. " ऐसे व्यभिचारी मामलों में जगह की व्यवस्था करना पुरुष की जिम्मेदारी होती है.. पीयूष में इतनी हिम्मत नहीं थी इसलिए परोक्ष रूप से उसने वैशाली पर ही वो जिम्मेदारी डाल दी
वैशाली: "ठीक है.. लेकिन जब बुलाऊ.. जहां बुलाऊ.. पहुँच जाना वरना तू जहां भी होगा पहुँच जाऊँगी और वहीं खड़े खड़े चोद दूँगी.. समझा!!"
इतनी रंगीन धमकी सुनकर पीयूष पानी पानी हो गया.. उसने चुपके से वैशाली के हाथ को दबा दिया.. और दोनों अलग अलग रास्ते चल निकले
पीयूष के लिए तुरंत घर जाना मुमकिन नहीं था.. अगर दोनों एक साथ ही सोसायटी में प्रवेश करते तो जिस बात का सब को शक था वो यकीन में बदल जाता..
शीला अपने घर चिंता से पागल हुई जा रही थी.. जवान लड़की देर तक घर ना लौटे.. फोन पर कॉन्टेक्ट न हो पाए.. कोई अता-पता न हो.. तो कोई भी माँ का चिंतित होना काफी स्वाभाविक है..
वैशाली को देखते ही शीला मशीनगन की तरह फायरिंग करने लगी "कहाँ थी तू? एक घंटे का बोलकर गई थी अभी चार चार घंटे हो गए और तेरा कुछ पता ही नहीं.. !! एक फोन तक नहीं कर सकती थी?? कितनी चिंता हो रही थी मुझे.. कहाँ गई थी तू?"
वैशाली: "मेरी बात तो सुनो मम्मी.. वो मेरी फ्रेंड है ना.. सुमन.. ?? उसके घर गई थी.. उसके घर मेहमान आए हुए थे.. और वो बेचारी अकेली थी.. सब के लिए खाना बनाना था तो मैं उसे मदद कर रही थी.. अब उसे भला कैसे मना करती? थोड़ी देर में काम खतम कर के निकल जाऊँगी ऐसा सोचते सोचते इतना टाइम निकल गया.. फोन मेरा पर्स के अंदर था.. और वो मेहमान ऊंची आवाज पर टीवी देख रहे थे इसलिए मैं फोन की रिंग सुन नहीं पाई.. तूने खाना खाया की नहीं?"
शीला: "मैंने तो खाना कहा लिया.. पर तेरे कपड़ों पर इतनी रेत क्यों लगी है?" शीला की शातिर आँखों से कुछ भी बच नहीं सकता
"मम्मी.. ऑटो से उतरकर मैं चलते चलते सुमन के घर की तरफ जा रही थी.. तभी मेरे आगे एक रेत से भरा ट्रेक्टर जा रहा था.. आगे एक खड्डा आया और ट्रेक्टर से रेत उछल कर आजू बाजू चल रहे सब के ऊपर गिरी.. मैं नहाने जाती हूँ" शीला ओर कोई प्रश्न पूछती उससे पहले वैशाली भागकर बाथरूम में घुस गई.. शावर लेने के बाद उसे एहसास हुआ की साफ कपड़े तो लेना भूल ही गई थी.. अपने स्तनों को ऊपर तोलिया बांधकर वो बाहर निकली और बेडरूम के अंदर अपने कपड़े लेने के लिए उसने दरवाजा खोलने की कोशिश की..
दरवाजा अंदर से लोक था.. वैशाली ने शीला को आवाज दी.. "मम्मी.. ये बेडरूम को लोक क्यों लगाया है?? मुझे मेरे कपड़े लेने है"
शीला भागकर आई और अपने होंठ पर उंगली रखते हुए वैशाली को चुप रहने के लिए कहा "अंदर संजयकुमार सो रहे है.. धीरे से बोल वरना जाग जाएंगे.. बहोत थक कर आए है.. मुझे कह रहे थे की कोई उन्हे डिस्टर्ब न करे.. इसलिए मैंने बाहर से दरवाजा लोक कर दिया... थोड़ी देर पहले वो कविता और मौसी ने आकर भूचाल मचा दिया था.. "
वैशाली: "क्यों? कविता और मौसी को क्या हुआ?"
शीला: "अरे हुआ कुछ नहीं.. पीयूष ऑफिस जाने के लिए निकला और समय पर पहुंचा नहीं.. उसके बॉस ने कविता को फोन किया इसलिए सब चिंता करने लगे.. मौसी ने तो ५ दिए जलाने की मन्नत भी मांग ली.. अब पीयूष कोई छोटा बच्चा है जो कहीं खो जाएगा !!! मैंने उसे समझाया की थोड़ी देर शांति रखें.. पीयूष का पता चल ही जाएगा.. और पीयूष कितना सुशील और संस्कारी लड़का है !! वो बिना बताए या घर वालों से छुपाकर कहीं जाने वालों में से नहीं है.. उलझ गया होगा बेचारा किसी काम में.. पर मेरी बात सुनता कौन!! तभी फोन आया की पीयूष का पता चल गया.. मौसी की जान में जान आई.. कविता तो रोने ही लग गई.. मैंने उनसे कहा की वो खोया ही नहीं था.. तुम लोग बेकार में टेंशन ले रहे थे.. अब इन सब शोर-शराबे से संजय की नींद खराब न हो इसलिए मैंने ही बाहर से ताला लगा दिया.. ये ले चाबी.. अंदर जाकर कपड़े बदल ले.. और हाँ.. वापिस वो अधनंगे कपड़े मत पहनना.. दामाद जी को बुरा लगेगा.. वो सोचेंगे की मायके में आकर तू आउट ऑफ कंट्रोल हो गई है.. जा अंदर.. और ब्लू कलर की साड़ी पहन कर आना.. मैंने तुझे दी थी न वो वाली.. बहुत जचेगी तुझ पर.. !!"
संजय का नाम सुनते ही वैशाली के मूड का सत्यानाश हो गया.. पीयूष के संग की चुदाई का जो भी नशा था वो एक ही पल में उतर गया.. संजय से वो अब नफरत करती थी.. आखिर एक औरत कब तक बर्दाश्त करेगी? मुंह बिगाड़कर वैशाली ने कहा "उसे जो सोचना हो सोचे.. मुझे कोई फरक नहीं पड़ता.. उसने मेरे कौन सी चिंता की है जो मैं उसकी परवाह करू? भाड़ में जाए संजय.. मैं तो आज मेरी पसंद के कपड़े ही पहनूँगी.. "
Super bhabhi
Thanks bhainicely woven story.