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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

Ajju Landwalia

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तीनों लड़कियां शांत होकर.. एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर सो गई..

सोने की कोशिश कर रही मौसम की आँखों के सामने बार बार सुबोधकांत का लंड आ जाता था.. उसका मन कर रहा था की फाल्गुनी को जागा कर उससे विडिओ दिखाने को कहें.. विडिओ में पापा को पूरा नंगा देख पाती.. और वो कैसे चोदते है वो भी पता चलता.. पूरे नंगे पापा कैसे लगते होंगे?? वो तो सब ठीक.. पर आज तो पापा ने ही उसे पूरी की पूरी नंगी देख ली थी.. वैशाली मेरी चूत चाट रही थी वो भी पापा ने देख लिया होगा क्या?? क्या सोच रहे होंगे वो मेरे बारे में?? हो सकता है की वो जीजू ही हो.. हो सकता है की वैशाली की पहचानने में गलती हुई हो?? सुबह उठकर वैशाली से पूछूँगी.. जानना तो पड़ेगा.. !! पापा भी बड़े शातिर खिलाड़ी निकलें.. वैशाली और फाल्गुनी दोनों को साथ में चोदते है.. पापा ने आज तक कितनी औरतों और लड़कियों को चोदा होगा??

लंड का स्वाद चखते ही.. मौसम को अपने बाप के लंड के बारे में अजीब अजीब खयाल आने लगे थे.. और उसे इस बात से कोई गिल्ट भी महसूस नहीं हो रहा था.. जवानी की दहलीज पर खड़ी लड़की को अगर संयम का पाठ न पढ़ाया जाए तो वो किसी भी हद तक जा सकती है.. उम्र ही ऐसी होती है.. वासना, संवेदना और उत्तेजना की उछलती हुई लहरों में जो खुद पर अंकुश न रख पाएं.. वह निश्चित तौर पर बर्बादी के रास्ते चल पड़ता है..

जो मौसम, फाल्गुनी और अपने पापा के काम संबंधों को घृणा की नज़रों से देखती आई थी.. वही मौसम अब सेक्स और सहवास को लेकर कुछ भी सोचने से कतराती नहीं थी.. उसे सिर्फ लंड चाहिए था.. जीजू का लंड जब चूत के अंदर बाहर हुआ और तब जो सुख मिला.. उसे सिर्फ याद करते हुए भी वो बेकाबू हो जाती थी.. और उसे बार बार पुरुष के संग सहवास की इच्छा हो रही थी.. यहाँ तक की वो अपने बाप के बारे में गंदे से गंदा विचार करने पर भी अपने मन को रोक नहीं पा रही थी.. फाल्गुनी को लेकर उसके मन में अब सहानुभूति हो रही थी.. वो भी बेचारी इसी तड़प के मारे बार बार पापा से चुदवा रही होगी.. अनगिनत सवालों के घेरे में फंसी मौसम जब सुबह उठी तब उसका सर दर्द कर रहा था.. सिर्फ दो घंटों की नींद ही नसीब हुई थी.. !! देर तक जागने के कारण नींद पूरी नहीं हुई थी.. अरे देर तक क्या.. लगभग पूरी रात ही जागकर गुजार दी थी..

मौसम फटाफट तैयार हो गई और सगाई के मुहूरत की राह देखते हुए ऊपर बने गेस्टरूम में इंतज़ार करने लगी.. दुल्हन की तरह सजधज कर तैयार हुई थी मौसम.. इतनी सुंदर लग रही थी की देखने वाला बस देखता ही रह जाए.. !!

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हाथ की महंदी का एकदम गाढ़ा रंग आ गया था.. गोरे चिकने हाथ पर कुहनी तक लगी महंदी उसके सौन्दर्य पर चार चाँद लगा रही थी.. ताजे खिले गुलाब जैसा उसका चेहरा.. चमकती आँखें.. अपने भविष्य के रंगीन सपने सँजोये बैठी थी.. तरुण के साथ अब तक कुछ ज्यादा बातचीत का मौका नहीं मिला था उसे.. पर अब तक जितनी भी बातें हुई उससे ये तो साफ हो गया था की वो बड़ा ही शांत और समझदार होनहार लड़का था.. जमाने का रंग उस पर चढ़ा नहीं था..

तभी पीयूष उस कमरे में दाखिल हुआ.. मौसम का ये सुंदर रूप वो बस देखता ही रहा.. मेकअप में और भी खूबसूरत लग रही थी मौसम.. !!

"अरे जीजू आप?? आइए आइए.. कैसी लग रही हूँ मैं?" कोयल जैसी मधुर आवाज में मौसम ने कहा

पीयूष अपनी नज़रों से मौसम की खूबसूरती के जाम पीते हुए उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला "ब्यूटीफुल यार.. बेहद खूबसूरत लग रही है तू.. !!"

"थेंक यू जीजू.. जरा ठीक से बैठिए.. कोई देख लेगा.. दरवाजा खुला है" मौसम ने थोड़ी घबराहट से कहा

पीयूष खड़ा हुआ और वो दरवाजा बंद करने ही वाला था तब उसने फाल्गुनी को ऊपर आते हुए देखा.. पीयूष को दरवाजा बंद करते देख.. फाल्गुनी वहीं से मुड़ गई..

दरवाजा बंद करने के बाद, पीयूष मौसम के लबों को चूमना चाहता था.. पर चूमने से लिपस्टिक खराब हो जाती इसलिए कुछ हो नहीं पाया..

"जीजू, आज मैंने आपकी दी हुई ब्रा पहनी है.. "

"क्या बात है.. !! कंफर्टेबल तो है ना..?? चलो मेरी कोई चीज तो तेरे सुंदर बूब्स के करीब है.. "

"अच्छा.. तो फिर साथ में पेन्टी भी गिफ्ट करनी थी.. !!" मौसम ने कहा

हंसकर पीयूष ने कहा "यार वो मुझे याद नहीं आया.. वरना जरूर ले आता.. पर अगर तेरी चूत के करीब कोई चीज रखने का चांस मिलें तो मैं पेन्टी को हरगिज वो मौका नहीं दूंगा.. !!" पीयूष क्या कहना चाहता था वो मौसम समझ रही थी

"आपको कल मज़ा आया जीजू?"

"हाँ यार.. बहोत मज़ा आया.. थोड़ा सा टाइम कम पड़ गया.. पूरी रात मिली होती तो अब तक तीन चार बार तो कर ही लेता.. !!"

"जो मिलें उसमे ही संतोष करना चाहिए.. वरना ये भी नसीब कहाँ होने वाला था.. !! पिछली बार मैंने आपको फोन करके बुलाया और मैं खुद ही बीमार हो गई.. उस बात का बहोत अफसोस है मुझे"

"वो तो है.. पर कल रात तूने ठीक से इन्जॉय तो किया था ना.. !! तेरी कोई इच्छा अधूरी तो नहीं रह गई?? अगर ऐसा हो तो अभी बता दे.. !"

"मुझे तो बहोत मज़ा आया था.. जिंदगी में पहली बार इतना मज़ा आया.. बार बार करने को मन करने लगा है.. एक बार से जैसे मन ही नहीं भरा.. करने के बाद शरीर इतना हल्का हल्का महसूस हो रहा था.. !!!जीजू, पता नहीं.. तरुण के साथ भी ऐसा ही मज़ा मिलेगा या नहीं"

पीयूष: "अगर तेरा बहोत मन कर रहा हो तो.. चल अभी एक राउंड हो जाए.. मैं तैयार हूँ.. मेहमान भी अभी आए नहीं है.. पापा और मदन भैया लंच ऑर्डर करने गए है.. अभी निपटा लेते है.. और हाँ.. शादी के बाद अगर तरुण के साथ मज़ा न आए तो मुझे बुला लेना.. !!"

मौसम: "जीजू, अभी तो मैं उस बारे में ज्यादा सोचना नहीं चाहती"

पीयूष: "ओह मौसम.. पूरी रात मुझे सपने में तेरे बूब्स ही नजर आ रहे थे.. सच कहूँ तो अभी मैं तेरे दबाने के लिए ही आया हूँ.. मुझे एक बार तसल्ली से देख लेने दे.. दबा लेने दे.. चूस लेने दे.. !!" कहते हुए उसने मौसम के गालों को सहला दिया..

मौसम ने कोई विरोध नहीं किया बल्कि पीयूष का हाथ पकड़कर चूम लिया.. और अपने गोरे गालों पर पीयूष का हाथ रगड़ते हुए बोली

मौसम: "ओह्ह जीजू.. प्लीज.. ऐसा मत कीजिए.. मुझे वापिस कुछ कुछ होने लगा है.. मन तो मेरा भी बहोत है.. पर ये कपड़े और मेकअप खराब हो जाने का डर है"

पीयूष: "कुछ भी खराब नहीं होगा.. क्या यार तू भी नखरे कर रही है.. !! देख.. ये मेरा कैसे तैयार होकर खड़ा है.. अकेले मौका मिला है तो मजे कर लेते है यार..!!"

मौसम: "नहीं जीजू.. मुझे बहोत डर लग रहा है.. कोई आ गया तो हंगामा हो जाएगा" मौसम ने मना किया पर फिर भी पीयूष का हाथ नहीं छोड़ा

पीयूष: "तो फिर मैं जाऊँ नीचे? वक्त बर्बाद करने का क्या मतलब!!" नाराज होकर पीयूष ने कहा

मौसम से पीयूष की नाराजगी देखी नहीं गई..

"जीजू प्लीज.. समझने की कोशिश कीजिए.. मन तो मेरा भी.. !!" मौसम ने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया

पीयूष: "तेरा भी मन क्या करने को कर रहा है??"

मौसम: "कुछ नहीं.. आप जाइए यहाँ से.. !!" मौसम ने परेशान होकर आँखें बंद कर दी और अपने दोनों हाथों से सर पकड़ लिया

पीयूष: "अरे रुक क्यों गई? बोल दे जो भी कहना हो.. गेटआउट कह दे मुझे.. मैं चला जाऊंगा " अब भी नाराज था पीयूष

मौसम: "जीजू प्लीज यार.. ऐसा नहीं है.. !! मुझे भी आपका देखने का बड़ा ही मन है" आखिर उसके मुंह से सच निकल ही गया

कोल्डप्ले की टिकट की वैटिंग लिस्ट में नंबर आ जाने पर जो खुशी होती है वही खुशी पीयूष के चेहरे पर भी छा गई..

पीयूष: "ओह, तो उसमें कौन सी बड़ी बात है.. !! ले देख ले.. पर देख के करेगी क्या? खाने को देखने से पेट थोड़े ही भर जाता है.. !! उसके लिए तो निवाला लेकर मुंह में डालना पड़ता है.. !!"

साढ़े छह इंच का एकदम मस्त कडक लोडा बाहर निकालकर मौसम के सामने पेश कर दिया पीयूष ने..

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मौसम के दिल की धड़कने चार गुना तेज हो गई "ओह माय गॉड जीजू.. कितना मस्त लग रहा है यार.. !!"

पीयूष ने लंड को मुठ्ठी में पकड़कर चमड़ी को पीछे सरकाते ही.. उसका छोटे टमाटर जैसे लाल सुपाड़ा दिखने लगा.. वो चमड़ी को आगे पीछे करते हुए हिलाने लगा.. और सुपाड़े की दिखने-छुपने की कवायत शुरू हो गई.. मौसम अपने जीजू का लंड टकटकी लगाए देख रही थी..

मौसम एकदम से खड़ी हो गई.. यह सुनिश्चित करने के लिए की आसपास कोई था या नहीं.. उसने दरवाजा खोलकर देखा.. सीढ़ियों पर फाल्गुनी खड़ी थी.. मौसम को देखते ही उसने अपना अंगूठा दिखाकर थम्स-अप का इशारा करते हुए ये कह दिया की वो निगरानी रखे हुए है.. किसी को ऊपर नहीं आने देगी.. और अगर कोई आ गया तो उसे अलर्ट कर देगी.. मौसम को अब इत्मीनान हो गया

मौसम ने दरवाजा बंद कर लिया और पीयूष का लंड अपने महंदी लगे हाथों से पकड़ लिया.. आह्ह.. लंड की गर्मी का एहसास अपनी कोमल हथेलियों पर होते ही मौसम की आँखें बंद हो गई.. हीना लगे हाथों में कडक लंड का होना.. ये दुनिया के सबसे हसीन द्रश्य में से एक होता है.. उससे सुंदर और कामुक सीन ढूँढना वाकई में मुश्किल है..

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मौसम के हाथ अपने जीजू के लंड को सहला रहे थे और पीयूष उसके बदन से इस तरह खेल रहा था जिससे की उसका मेकअप और ड्रेसिंग खराब न हो जाएँ..

पीयूष: "किस करने का बड़ा मन कर रहा है मौसम.. आह्ह.. एक बार चुनरी हटाकर अपने बूब्स तो दिखा.. मैंने दी हुई ब्रा कैसे लग रही है.. एक बार मैं भी तो देखूँ.. !!"

मौसम: "आह्ह जीजू.. मैं भी काफी एक्साइट हो गई हो और मेरी भी बड़ी इच्छा हो रही है.. पर क्या करूँ.. !! हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है.. इसलिए ऊपर ऊपर से करके ही संतोष करना पड़ेगा.. आप मुझे ज्यादा छूना मत वरना मेकअप खराब हो जाएगा.. !!"

पीयूष: "ओह मौसम.. तेरे इस रूप को देखने के बाद अपने आप को रोक पाना बड़ा ही मुश्किल है.. मुझे अब रोक मत यार.. मुझसे रहा नहीं जाता" पीयूष मौसम को अपनी बाहों में भरने गया..

मौसम: "जीजू प्लीज.. मत करो.. आपकी दूसरी कोई भी इच्छा मैं पूरी कर दूँगी.. मेरे कपड़े खराब हो जाएंगे"

मौसम पीयूष का लंड बड़ी उत्तेजना से मसल रही थी..

पीयूष: "फिर तो एक ही चीज बचती है.. तू मेरा मुंह में लेकर चूस ले.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. कुछ नहीं होगा.. बड़ा मज़ा आएगा.. अगर ना पसंद आए तो निकाल देना.. कल रात को ही मेरा बड़ा मन था तेरे मुंह में देने का.. पर तुझे अच्छा नहीं लगेगा सोचकर मैंने कहा नहीं.. !!"

मौसम: "पर जीजू.. मेरी लिपस्टिक खराब हो जाएगी उसका क्या?? और मुझे आता भी नहीं है चूसना.. " परोक्ष रूप से मौसम ने जता दिया की उसे चूसने में कोई हर्ज नहीं है.. सिर्फ लिपस्टिक खराब हो जाने का डर है

पीयूष: "यार, लिपस्टिक तुम फिर से लगा लेना.. कौन सी बड़ी बात है.. मैं लगा दूंगा तुझे.. और तुझे कहाँ अपने होंठ रगड़ने है.. !! सिर्फ मुंह के अंदर ही तो लेना है.. ले जल्दी.. और चूसना शुरू कर"

पिछली रात से मौसम खुद जीजू का लंड मुंह में लेना चाहती थी.. वो इच्छा अभी पूरी होने वाली थी.. कपड़ों के कारण घुटनों के बल बैठना मुमकिन नहीं था.. और बेड पर बैठे बैठे कैसे चूसती?? आखिर पीयूष कोने में पड़ी कुर्सी ले आया.. और उस पर खड़ा हो गया.. अपना लंड सीधा मौसम के मुंह के सामने धर दिया.. मौसम की हालत देखने जैसी हो गई.. एक तरफ उसकी चूत बगावत पर उतर आई थी.. दूसरी तरफ इतना मस्त लोडा सामने होने के बावजूद वो अंदर ले नहीं पा रही थी उस बात का मलाल था..

नीचे के कमरों से हल्के हल्के शोर-शराबे की आवाज़ें आने लगी थी

"लगता है की मेहमान आ गए है जीजू.. !!"

पीयूष: "कोई बात नहीं.. वो सीधा ऊपर थोड़ी चले आएंगे.. !! तू जल्दी कर यार.. !!" मौका हाथ से जाते हुए देख पीयूष भी बेचैन हो गया और मौसम को ललचाने के लिए उसके गालों पर अपना लंड रगड़ने लगा.. जब तक मौसम अपना मुंह नहीं खोलती.. तब तक अंदर डालना संभव नहीं था.. उसकी लिपस्टिक के कारण.. वरना पीयूष इतना उत्तेजित था की मौसम के होंठों पर जबरदस्ती दबाकर अपना लंड घुसेड़ देता..

आखिर मौसम ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर उसकी नोक पर अपनी जीभ का स्पर्श किया..

"ओह्ह मेरी जान.. !!" पीयूष कराह उठा..

मौसम का मुंह खुलते ही उसने हल्का सा धकेल दिया अपना लंड.. और मौसम का सुंदर मुखड़ा अपने मजबूत लोड़े से भर दिया.. मौसम को तो पता ही नहीं था की मुंह में डालने के बाद आगे क्या करना था.. मुंह के अंदर विचित्र स्वाद की अनुभूति हो रही थी.. कुछ मज़ा नहीं आ रहा था लेकिन अरुचि भी नहीं हो रही थी..

"अब गुड़िया की तरह बैठी क्या है?? अंदर बाहर करना शुरू कर.. !! मुंह में भरकर नहीं रखना है इसे.. चूसना है" पीयूष इस नासमझी से परेशान होकर बोला..

पीयूष की निर्देशानुसार मौसम ने लंड को मुंह के अंदर आगे पीछे करना शुरू किया.. और चूसने लगी.. अब उसे धीरे धीरे अंदाजा लगने लगा था की चूसते कैसे है.. चूसने में आसानी हो इसलिए मौसम ने लंड को जड़ से मजबूती से दबाकर पकड़ रखा था.. दबाने के कारण पीयूष का सुपाड़ा मौसम के मुंह के अंदर एकदम फुल गया.. मस्त टाइट लोड़े को चूसने में अब मौसम को भी मज़ा आ रहा था..

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दोनों इस आनंददायक प्रक्रिया में लीन थे तभी मौसम के मोबाइल पर एक मिस-कॉल आकर चला गया.. लंड चूसते चूसते ही मौसम ने नोटीफिकेशन खोलकर देखा तो फाल्गुनी का मिस-कॉल था.. मतलब खतरे की घंटी.. !!

मौसम ने तुरंत लंड को मुंह से बाहर निकालते हुए कहा.. "जीजू, फाल्गुनी का कॉल था.. आप नीचे जाइए.. !! थोड़ी देर में सगाई की रसम शुरू हो जाएगी"

पीयूष बेचैन होकर बोला "यार, अब इस खड़े लंड का क्या करूँ?? ये तो अब ढीला होने से रहा.. एक काम कर.. तू उल्टा लेट जा.. मैं पीछे से डाल देता हूँ.. तेरा ड्रेस खराब नहीं होगा"

मौसम: "नहीं जीजू.. अब कुछ नहीं हो सकता.. आप जाइए प्लीज.. कोई आ गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे"

तभी तरुण का कॉल आया और मिस-कॉल हो गया.. अपनी होने वाली मंगेतर को वो याद कर रहा था.. पर उसे कहाँ पता था की मौसम तो अपने जीजू के संग जीवन के सर्वोच्च आनंद को प्राप्त करने में मशरूफ़ थी..

"जीजू, तरुण का भी मिस-कॉल आ गया.. प्लीज अब आप जाइए और इसे कैसे भी करके अंदर पेंट में डाल दीजिए.. " बेहद उत्तेजित मौसम ने एक बार और लंड को चूस लिया..

तरुण का नाम सुनते ही पीयूष का दिमाग खराब हो गया.. साला तरुण भेनचोद.. !! इसी तरुण ने उस दिन फोन पर मुझे अपमानित किया था.. उससे तो बराबर बदला लूँगा मैं.. करते रहने दो उसे इंतज़ार.. मौसम जब अस्पताल में थी और पीयूष ने फोन किया था तब तरुण ने फोन उठाया था और ये कहकर मौसम को फोन नहीं दिया था की उसकी चिंता करने के लिए वो बैठा था.. इस बात का बहोत बुरा लगा था पीयूष को.. साला कल का लौंडा मुझे सीखा रहा था.. आज उसे हिसाब बराबर करने का मौका मिल गया था

पीयूष ने आखिरी दांव आजमाते हुए कहा "मौसम, हो सकता है की इस तरह हम आखिरी बार मिल रहे हो.. ऐसा मौका दोबारा कभी नसीब नहीं होगा.. तू जल्दी जल्दी उल्टा होकर लेट जा.. मैं पीछे से डालकर फटाफट चोद दूंगा.. मज़ा आ जाएगा.. ये देख यार.. कितना मस्त टाइट हो गया है.. बातों में टाइम वेस्ट मत कर मेरी जान.. तेरे कपड़े खराब नहीं होंगे और तेरे नीचे की आग भी बुझ जाएगी.. " कहते हुए पीयूष ने उसकी चुनरी हटाकर टाइट चोली के ऊपर से ही उसके दोनों स्तन दबा दीये..

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मौसम: "जिद मत कीजिए जीजू.. प्लीज.. !! आप जाइए.. मुझे नहीं करवाना"

पीयूष: "चल छोड़.. अंदर ना लेना हो तो कोई बात नहीं.. मुझे एक बार तेरी चाट लेने दे.. तेरी चूत की मस्त गंध मैं अपने दिल में हमेशा के लिए बसाकर रखना चाहता हूँ.. मौसम, आई लव यू यार.. मेरा दिल मत तोड़ प्लीज.. एक आखिरी बार तेरी चूत चाटने दे"

चूत चटाई का नाम सुनकर, मौसम के दिल की अरमान उछलने लगे.. उसका विरोध लगभग गायब सा हो गया.. बस अब थोड़ी बहोत शर्म बची थी.. परिस्थिति भयानक थी.. फाल्गुनी ने इशारा कर दिया था.. मेहमान आ चुके थे.. तरुण नीचे से कॉल पर कॉल किए जा रहा था.. कोई भी कभी भी ऊपर आ सकता था.. पर चूत चटवाने की लालच ने मौसम के दिल-ओ-दिमाग पर कब्जा कर लिया था..!!!

मौसम: "जीजू आपने तो मुझे भी गरम कर दिया.. यार आप समझते क्यों नहीं? फाल्गुनी ने पहले ही कॉल करके बता दिया है.. तरुण के फोन पर फोन आ रहा है.. इस स्थति में अगर कोई ऊपर आ गया तो क्या होगा?? आप तो मर्द हो.. निकल जाओगे.. फंसना तो मुझे ही है ना.. !!"

अवैद्य संबंधों की सब से बड़ी तकलीफ और हकीकत.. पकड़े जाने पर ज्यादातर बदनामी लड़की/स्त्री की ही होती है.. !!

पीयूष: "अब चुप भी कर.. ये सब उपदेश बाद में देना.. अभी उसके लिए टाइम नहीं है.. "

पीयूष ने मौसम को बेड के ऊपर खड़ा कर दिया.. वो जानता था की मौसम सिर्फ दिखाने के लिए विरोध कर रही थी.. मन तो उसका भी बड़ा हो रहा था.. पर अब वो मना नहीं कर पाएगी.. लोहा गरम हो चुका था.. !!

पीछे से मौसम का घाघरा उठा दिया पीयूष ने .. गुलाबी रंग की पेन्टी में गोरे जवान कूल्हों को देखकर पीयूष मदहोश हो गया.. उसका लंड उत्तेजना से इतना फुल चुका था की उसे डर लग रहा था की कहीं लंड की नसें फट न जाएँ.. उसने चूत चाटने के लिए मौसम की पेन्टी को एक साइड पर किया और खड़े होकर वो मौसम को पीछे खड़ा हो गया.. पेन्टी को सरकाकर अपने टाइट लंड को कूल्हों से रगड़ने के बाद.. टोपे को मौसम के गरम सुराख पर घिस दिया..

"ऊई माँ.. मर गई.. क्या कर रहे हो जीजू??" मौसम अपनी गांड को लंड के ऊपर गोल गोल घुमाने लगी

पीयूष ने मौसम की कमसिन बुर की फाँकों के बीच अपना सुपाड़ा फँसाकर लंड को थोड़ा सा अंदर डाल ही दिया..

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मौसम: "नहीं जीजू.. मत करो ऐसा.. ऊईईई माँ.. !!" आनंद भरी कराहों से सिसकने लगी मौसम.. उसके विरोध में भी अब कुछ दम नहीं था.. बस थोड़ी सी स्त्री-सहज आनाकानी थी.. पर आज तो पीयूष इतना उत्तेजित था की मौसम सच में विरोध करती तो भी वो सुनने वाला नहीं था.. तरुण के अपमान का बदला लेने का इससे बेहतर मौका कहाँ मिलता.. !! सूत समेत हिसाब बराबर करने का अवसर था.. मौसम के भव्य कूल्हों को दोनों हथेलियों से सपोर्ट देते हुए उसका डेढ़ इंच जितना लंड चूत के अंदर घुस चुका था..

"नहीं जीजू प्लीज.. अब बर्दाश्त नहीं होगा मुझसे.. फिर कभी करेंगे.. आज नहीं.. ओह्ह ओह्ह.. !!" इतनी उत्तेजित हो गई की अपने कपड़ों की परवाह किए बगैर ही चोली के ऊपर से अपने स्तनों को मसलने लगी वो.. और बोली "आप ने तो चाटने की बात की थी.. और डालने लगे.. प्लीज यार.. थोड़ी सी जीभ तो फेर दो एक बार.. !!"

पीयूष भी शातिर खिलाड़ी था.. मौसम की बात को इग्नोर करते हुए उसने एक जोर का धक्का लगाया और अपना पूरा लंड उसकी चूत में बच्चेदानी तक घुसेड़ दिया..


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और कुछ पल तक ऐसे ही खड़ा रहा.. उसके लंड ने मौसम की चूत की दीवारों को चीरते हुए अपना स्थान अंदर बना लिया था.. मौसम की चूत से अब रस टपक रहा था.. और उसके छींटें नीचे बिस्तर पर पड़ रहे थे.. इतना मज़ा आ रहा था मौसम को की उसने अब किसी भी प्रकार का विरोध करना बंद कर दिया.. पर उसी वक्त पीयूष ने झटके से लंड को बाहर निकाल दिया.. और मौसम की चुनरी से अपना लंड पोंछ लिया..

"ओह्ह जीजू.. अब ये क्या?? आपने बाहर क्यों निकाल दिया?? प्लीज अंदर डाल दीजिए वापिस.."

मौसम की बात को अनसुनी कर पीयूष नीचे झुककर मौसम की चूत चाटने लगा.. जैसे ही फाँकों पर जीभ का स्पर्श हुआ, मौसम सिहरने लगी.. लंड के अभाव से छटपटती रही उसकी मुनिया जीभ छूते ही एकदम मदहोश हो गई..

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पर मोटा लंड जब चूत की दीवारों को खिसकाकर अंदर घुसकर जो मजे देता है.. वो मज़ा अब मौसम को चाहिए था.. शेर ने अब खून चख लिया था..

"नहीं जीजू प्लीज.. अब अंदर ही डाल दो.. मुझे नहीं चटवानी.. अंदर डालने से ही मज़ा आएगा"

पीयूष ने उसकी एक न सुनी.. और चूत चाटता ही रहा.. एक पल पहले ही लंड के घर्षण का मज़ा ले चुकी मौसम अब बेचैनी से तरस रही थी.. मौसम लंड अंदर लेना चाहती थी और पीयूष चूत चाट रहा था.. तभी मौसम के मोबाइल की रिंग बजी.. फोन उठाना जरूरी था.. नहीं उठाती तो देखने के लिए कोई न कोई ऊपर चला आता..

सुबोधकांत का फोन था.. मौसम ने उठाया और कहा "हाँ पापा.. !!" जीजा चूत चाट रहा था और साली अपने बाप से बात कर रही थी.. बड़ा ही एरोटिक सीन था.. !!

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"तैयार हो गई बेटा?? और कितनी देर?? मेहमान इंतज़ार कर रहें है.. थोड़ी देर में पंडित आ जाएगा और विधि शुरू कर देगा.. जल्दी कर बेटा"

पीयूष के मुंह पर अपनी चूत दबाते हुए.. और अपने कूल्हें रगड़ते हुए मौसम ने कहा "जी पापा.. मैं तैयार ही हूँ.. बस मेकअप का टचिंग कर रही हूँ.. "

"जो भी कर रही हो, जरा जल्दी करना बेटा.. !! कहीं मुहूरत का समय न निकल जाए" सुबोधकांत ने फोन रख दिया

बगल में खड़ी शीला ने हसंकर कहा "मैंने कहा था ना आप से.. लड़कियों को कितना भी वक्त दो.. उनकी तैयारी कभी खत्म ही नहीं होगी.. " बड़े ही नशीले अंदाज मे आँख मटकाते हुए उसने कहा

सुबोधकांत: "सारी लड़कियां ऐसी नहीं होती.. कुछ तो बहोत जल्दी तैयार हो जाती है" आँख मारकर सुबोधकांत ने भी सिक्सर लगा दिया..

ऊपर के कमरे में पीयूष.. मौसम की चूत की गुलाबी फाँकों को उंगलियों से अलग करते हुए अंदर के लाल हिस्से को जीभ डालकर चाटे जा रहा था.. पीयूष की इस अदा पर मौसम फ़ीदा हो गई.. चूत से रस ऐसे टपक रहा था जैसे बिन बादल बरसात की बूंदें गिर रही हो.. और अब उसकी चूत, चुदाई मांग रही थी.. अब लंड बिना उसका उद्धार नहीं था.. पीयूष अपने खड़े लंड को मुठ्ठी में पकड़कर खुद ही हिलाते सहलाते.. जैसे लोरी सुनाकर मना रहा था..

दोनों तब चोंक उठे जब नीचे से रमिलाबहन की आवाज सुनी "अरे फाल्गुनी.. बेटा मौसम को बोल, की जल्दी से नीचे आ जाएँ.. पण्डितजी भी आ चुके है.. मुहूरत का समय निकला जा रहा है"

मौसम जबरदस्त उत्तेजित थी और लंड लेने के लिए बेबस थी.. उसकी चूत अपना रस उँड़ेलने के लिए मचल रही थी.. पर अपनी माँ की आवाज सुनते ही उसके सारे मूड पर पानी फिर गया.. लेकिन पीयूष खुद को और मौसम को मझधार में छोड़ना नहीं चाहता था.. उसका दृढ़ता से मानना था की जो पुरुष अपनी हमबिस्तर स्त्री को बीच रास्ते, बिना संतुष्ट किए छोड़ देता है.. वह स्त्री भी उसे, जीवन की मझधार में छोड़कर चली जाएगी.. और जल्द ही खुद के लिए नया रास्ता ढूंढ लेगी..

मौसम ने अपनी चूत चाट रहे पीयूष से कहा "बस जीजू.. टाइम खत्म.. छोड़ो मुझे.. अब तो हमें नीचे जाना ही होगा.. पहले मैं नीचे जाती हूँ.. और आप थोड़ी देर बाद आना.. ताकि किसीको शक न हो.. !!"

लेकिन पीयूष इन आखिरी क्षणों का पूर्ण इस्तेमाल कर लेना चाहता था.. अपनी चूत चटाई की तमाम कला को एक साथ काम पर लगाकर उसने मौसम को लाल-गरम कर दिया..


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"ओह्ह जीजू.. ये क्या किया आपने.. !! उफ्फ़.. अब तो मुझसे भी रहा नहीं जाता.. जरा और दबाकर चाटों.. हाय.. ऊई माँ.. !!" मौसम भी चटाई के आखिरी पड़ाव पर थी.. और जाने से पहले झड़ जाना चाहती थी.. तभी.. !!

अचानक फाल्गुनी दरवाजा खोलकर अंदर आ गई.. और खड़ी हुई मौसम के घाघरे में घुसकर चूत चाट रहे पीयूष को देखकर वो जोर जोर से हंसने लगी.. उसे कोई ताज्जुब तो नहीं हुआ था क्यों की अंदर क्या चल रहा होगा, उसका उसे पहले से ही अंदाजा था..

मौसम को भी कोई खास झिझक नहीं हुई.. पर पीयूष बेचारा सकपका गया.. लेकिन मौसम के एक ही वाक्य ने पीयूष के संकोच और शर्म को आश्चर्य में तब्दील कर दिया

"देख लो मम्मी.. एक बार मैंने तुम्हें करते हुए देख लिया था.. आज तुमने मुझे देख लिया.. हिसाब बराबर" हँसते हुए मौसम ने कहा.. फाल्गुनी और मौसम के आपस में सारे पत्ते खुल चुके थे इसलिए दोनों में से किसी को भी एक दूसरे का कोई डर नहीं तहा..

"अरे बाप रे.. जीजू.. आप मेरी बेटी के साथ, ये क्या कर रहे है??" फाल्गुनी ने शरारत करते हुए कहा

पीयूष बेचारे को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.. की ये मौसम और फाल्गुनी एक दूसरे को आपस में मम्मी-बेटी कहकर क्यों बुला रहे थे.. !! वो कुछ पूछता उससे पहले मौसम ने झुककर पीयूष के लंड को अपने मुख तक ला दिया और बोली "फाल्गुनी, तू हम दोनों का विडिओ बना.. इस यादगार पल को रिकॉर्ड कर हम इसे और भी रोमांचक बना देते है.. और जल्दी कर.. नीचे जाना पड़ेगा" मौसम के इस रूप को देखकर पीयूष के तो होश ही उड़ गए.. मौसम ने पीयूष का लंड चूसना शुरू कर दिया और फाल्गुनी अपने मोबाइल से विडिओ बनाने लगी..

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अब मौसम को लिपस्टिक बिगड़ जाने का डर नहीं था.. फाल्गुनी जो आ चुकी थी.. वो उसका मेकअप ठीक करने में मदद करेगी

थोड़ी देर तक लंड चूसकर मौसम खड़ी हो गई और फाल्गुनी से कहा.. "मम्मी, जीजू को अंदर डालकर चोदने की बड़ी ही तीव्र इच्छा है.. मन तो मेरा भी है.. पर ये कपड़े खराब हो जाने का डर है.. अगर हम चोद ले तो क्या तू मेरा ड्रेस ठीक कर पाएगी? नहीं तो फिर तू ही घोड़ी बन जा, जीजू के लिए"

फाल्गुनी ये सुनकर शर्मा गई "क्या यार मौसम.. कुछ भी बोलती है.. चिंता मत कर.. करवा ले जो मन करें.. पर दो मिनट के अंदर.. नहीं तो नीचे से सब लोग ऊपर आ जाएंगे.. !!!"

मौसम ने पेन्टी घुटनों तक उतार दी.. अपना घाघरा ऊपर कर घोड़ी बनकर.. बेशर्मी से अपनी खुली गांड पीयूष को दिखाते हुए बोली "फाल्गुनी से डरने की कोई जरूरत नहीं है जीजू.. आप डाल दो अंदर.. इतनी देर हो ही गई है तो थोड़ी ओर सही.. मैं तो पहले से ही मना कर रही थी.. पर आपने एक न सुनी.. और मुझे गरम करते ही गए.. मन में इच्छा जागृत करवाते हो और आखिर मेरे ही मुंह से सब बुलवाते हो.. !!"

एक तरफ जीजू की जिद, एक तरफ चूत की खुजली और एक तरफ सगाई का मुहूरत.. दुविधाओं के त्रिवेणी संगम के बीच फंस चुकी थी मौसम

"देख क्या रहे हो जीजू.. डाल दो अंदर.. हो जाने दो थोड़ी देर.. निकल जाने दो मुहूरत का समय.. पर हाँ.. जरा कस के धक्के लगाना.. ऐसा ना हो की मुर्गे की जान भी जाए और खाने वाले को मज़ा भी न आए.."

फाल्गुनी की उपस्थिति की परवाह कीये बगैर पीयूष ने मौसम की दोनों जांघों के संगम पर अपने लोडे को टीका दिया और धक्के पर धक्के लगाने लगा.. उसके प्रत्येक धक्के से मौसम की चूत के साथ.. फाल्गुनी की चूत में भी सुरसुरी हो रही थी.. पीयूष के जोरदार लंड को अंदर बाहर होता देख फाल्गुनी का गला सूख रहा था..

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मदहोश होकर फाल्गुनी भी सुबोधकांत की घनघोर चुदाई को याद करते हुए विडिओ बना रही थी.. उसका ऐसा मन कर रहा था की मौसम को धक्का देकर वो खुद घोड़ी बन जाए और जीजू का लंड अंदर ले ले.. डॉगी स्टाइल सुबोधकांत और फाल्गुनी की सबसे पसंदीदा पोजीशन थी.. अलग अलग आसनों में चुदाई के बाद.. फाल्गुनी और सुबोधकांत का मन तब ही भरता था जब वो लोग डॉगी स्टाइल में चुदाई करते थे.. शुरू शुरू में फाल्गुनी इन सारी बातों में अनाड़ी थी.. उसे बड़ा ही विचित्र लगा था पहली बार इस तरह चुदवाने में.. फिर धीरे धीरे मौसम के पापा ने चुदाई के सारे पाठ सीखा दीये.. और वो सिख गई की हर आसान में कैसे लुत्फ उठाया जा सकता है.. अब वो चुदाई की ऐसी आदि हो चुकी थी की सुबोधकांत को किसी भी चीज के लिए मना न करती..

मौसम के दोनों गोरे चूतड़ों को पकड़कर, बीच की दरार में धनाधन लंड डालकर चोदते पीयूष को देखकर, फाल्गुनी का अनायास ही अपनी चूत पर चला गया.. मोबाइल पर जीजू-साली की मस्त चुदाई को शूट करते करते फाल्गुनी खुद अपनी चूत को खुजाने लगी..

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मौसम इतनी उत्तेजित हो गई थी की अपनी गांड को गोल गोल घुमाते हुए पीयूष के लंड का घर्षण अपनी चूत के सभी हिस्सों पर, अधिक से अधिक महसूस कर रही थी.. कामुक घोड़ी की तरह चुदवा रही मौसम को देखकर भला कौन कह सकता था की नीचे उस लड़की की सगाई की तैयारियां चल रही थी.. !!

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"आह्ह जीजू.. फक मी हार्ड.. ओहह गॉड.. बहोत मज़ा आ रहा है.. यस.. उफ्फ़.. हाँ वही स्पॉट है.. उसी जगह धक्के मारो.. उफ्फ़ उफ्फ़ उफ्फ़.. !!" मौसम सातवे आसमान में उड़ रही थी.. बढ़िया सी रिधम में जीजू के बेरहम धक्कों से हिल रहे उसके गोरे कूल्हें.. फाल्गुनी ज़ूम इन ज़ूम आउट करके शूट कर रही थी..

लगातार तीस-पैंतीस धक्के लगाने के बाद पीयूष ने अपना लंड मौसम की पुच्ची से बाहर खींच निकाला और फर्श पर अपने लंड के गाढ़े सफेद वीर्य से रंगोली बना दी..

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पिछली रात के संभोग के दौरान.. अपने जीजू के लंड से छूटे फव्वारे को देखकर मौसम पागल हो गई थी.. पर आज वो यह नजारा देख नहीं पाई थी.. क्योंकि पीयूष उसके पीछे था.. आँख बंद कर.. बड़ी मुसीबत से प्राप्त हुए.. अनमोल ऑर्गजम के मजे ले रही थी..

मौसम तो नहीं देख पाई.. पर फाल्गुनी ने मौसम की चूत रस से सराबोर, पीयूष के वीर्य टपकाते लंड को रूबरू देखा.. उतना ही नहीं.. उसने ज़ूम करके लंड के क्लोजअप शॉट्स भी लिए.. शूटिंग में मशरूफ़ फाल्गुनी का दुपट्टा सरक जाने के कारण उसका एक उरोज गाड़ी की हेडलाइट की तरह चमक रहा था.. जीजू के विकराल लंड को आखिरी क्षणों में ठुमकते देखकर फाल्गुनी की जवानी, लंड का स्वाद चखने को बेताब हो गई थी.. फटी आँखों से लंड और चूत के भीषण युद्ध के बाद हांफ रहे सैनिक जैसे पीयूष के लंड को वो देखती ही रही.. पीयूष आँखें बंद कर उस दिव्य स्खलन के आनंद को महसूस कर रहा था..

आधी मिनट के अंतराल के बाद, मौसम को वास्तविकता का ज्ञान हुआ.. वो खड़ी हुई.. अपनी पेन्टी पहनी.. और घाघरा नीचे कर दिया.. उसने खुद ही अपना मेकअप ठीक किया और लिपस्टिक का टच-अप कर लिया.. पीयूष ने मौसम के साइलन्ट पर रखे मोबाइल के स्क्रीन को देखा.. तरुण की उन्नीस मिस-कॉल आ चुके थे.. मन ही मन वो बहोत खुश हुआ..

फाल्गुनी: "बस यार, अब तो हद ही हो गई है.. नीचे चलें?? आप लोगों ने तो मुझे भी गरम कर दिया यार" पीयूष की नज़रों के सामने ही फाल्गुनी अपनी चूत खुजाते हुए बोली "अब मुझे भी किसी को ऊपर लेकर आना पड़ेगा" और फिर पीयूष के सामने देखकर आँख मारी

पीयूष: "अगर ऐसा है, तो फिर मैं ऊपर ही रहता हूँ.. अभी और एकाध चूत को तो ये शांत कर ही देगा.. !!" मौसम की मस्त चूत को चोदकर.. चुदाई के नशे में झूल रहे लंड को दिखाते हुए पीयूष ने कहा

"एक नंबर के बेशर्म है आप जीजू.. अब हटिए.. मुझे मौसम को लेकर नीचे जाना होगा" कृत्रिम क्रोध के साथ फाल्गुनी ने कहा "और हाँ.. आप यहीं रहिए.. मैं मौसम को लेकर नीचे पहुँच जाऊँ उसके पाँच मिनट बाद आप नीचे आना" फिर मौसम की ओर देखकर बोली "चलो बेटा.. अब नीचे चलें?"


पीयूष पूछना चाहता था की वो दोनों आपस में माँ-बेटी का सम्बोधन क्यों कर रही थी.. !! पर अभी कसी भी बात करने का वक्त नहीं था.. वो जा रही मौसम की पीठ को देख रहा था.. मौसम हमेशा के लिए उससे दूर जा रही थी.. वो उसकी छोटी हो रही परछाई से साफ प्रतीत हो रहा था..


Wah vakharia Bhai,

Kya gazab ki update post ki he..........uttejna ke charam par pahucha diya..................

Too Hottttttttttt Bhai..................

Maja hi aa gaya............
 

Napster

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प्रिय वाचक मित्रों..

पेश है आज का मेगा अपडेट... धमाकेदार लेस्बियन थ्रीसम के साथ.. !! आनंद लीजिए और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिए..



नीचे के कमरे में.. रमिलाबहन के सो जाते ही.. कविता सरककर किचन से सटे स्टोररूम का दरवाजा अंदर से बंद कर.. पिंटू से बातें करने में व्यस्त थी.. उसे कहाँ अंदाजा था की ऊपर के मजले पर उसका पति पीयूष.. उसकी कुंवारी बहन को सेक्स के पाठ पढ़ा चुका था.. उसे तो ये भी पता नहीं था की उसके पापा, वैशाली और फाल्गुनी बाहर गए हुए थे.. वो तो यही सोच रही थी की पीयूष उसके पापा के साथ एक कमरे में है.. और दूसरे कमरे में मौसम के साथ वैशाली और फाल्गुनी बैठे है.. !!

जैसे ही सुबोधकांत की गाड़ी घर पहुंची.. गाड़ी की आवाज सुनकर पीयूष खड़ा हुआ और चुपचाप दूसरे कमरे में जाकर लेट गया.. मौसम ने अपने कपड़े ठीक किए और बेड के चादर की सिलवटें भी साफ कर दी.. चुदाई के सारे सबूत मिटा दीये उसने..

महंदी वाली लड़की ने मौसम के हाथों पर अपना काम शुरू कर दिया और वैशाली उन दोनों को मदद कर रही थी.. तब फाल्गुनी धीरे से सरककर बाहर आई और लॉबी में सुबोधकान्त के साथ रोमांस करने लगी.. थोड़ी देर के बाद मौसम ने फाल्गुनी को न देखकर वैशाली से पूछा "फाल्गुनी कहाँ गई??" तब वैशाली ने आँखें मटकाते हुए कहा "वो किसी खास काम से गई है"..

मौसम समझ गई की वो खास काम क्या था.. !! वैशाली की बात सुनकर उसके रोंगटे खड़े हो गए.. वैशाली भी कुछ कम नहीं थी.. "मैं अभी आती हूँ" कहकर.. मौसम को महंदी वाली लड़की के साथ छोड़.. वो भी कमरे से बाहर निकल गई.. लॉबी में खड़े फाल्गुनी और सुबोधकांत की नज़रों के सामने ही.. वैशाली पीयूष के कमरे में घुस गई.. !!

अपने दामाद के कमरे मे जा रही वैशाली को देखकर सुबोधकांत का लंड जबरदस्त कडक हो गया.. लॉबी में घनघोर अंधेरा था.. और उसी अंधेरे का फायदा उठाते हुए फाल्गुनी घुटनों के बल बैठ गई और अपनी हवस को मिटाने के प्रयास में लग गई.. जितना कुछ उसने सुबोधकांत से सीखा था.. आज सब कुछ आजमा लिया उसने.. अब तो उसे मौसम का भी कोई डर नहीं था.. अब तक तो वो मौसम को धोखा देने के अपराधभाव से पीड़ित थी.. पर मौसम ने भी अपने जीजू के साथ सेक्स किया था जिसका उसे पता था इसलिए अब "तेरी भी चुप.. मेरी भी चुप" वाला मामला था.. अब पीयूष या मौसम उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते थे..

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चारों तरफ नीरव शांति के बीच सेक्स का मज़ा लेने का फाल्गुनी का प्रथम अनुभव था.. महंदी लगा रही लड़की.. इन सारी बातों से बेखबर.. मौसम के हाथों पर महीन डिजाइन बनाने में व्यस्त थी.. मौसम को ये तो पता था की फाल्गुनी क्या करने गई थी.. पर वह ये जानना चाहती थी की वैशाली आखिर कहाँ चली गई.. !! वह चाहती थी की खड़ी होकर चेक करें.. पर महंदी अधूरी छोड़कर वो खड़ी नहीं हो सकती थी..

थोड़ी देर में ही महंदी लगाने का काम पूरा हो गया.. वो लड़की मौसम से पूछा "दीदी, मुझे घर कौन छोड़ने आएगा??"

मौसम: "मेरे पापा तुझे छोड़ देंगे.. रुक, मैं पापा को बोलती हूँ"

मौसम के कमरे से बातचीत की आवाज़ें आते ही.. सुबोधकांत सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चले गए.. वैशाली पीयूष के कमरे से बाहर निकलकर फाल्गुनी के साथ खड़ी हो गई..

मौसम ने बाहर निकलकर देखा.. वैशाली और फाल्गुनी साथ खड़े थे..

मौसम के पूछने से पहले ही फाल्गुनी ने कहा "हम दोनों यहाँ बातें कर रहे थे.. हो गया महंदी लगाने का काम पूरा.. ??"

मौसम: "हाँ महंदी तो लग चुकी है.. अब इसे ड्रॉप करने जाना है.. पापा कहाँ है? सो गए क्या?"

सुबोधकांत: "मैं यहीं हूँ बेटा.. मुझे भला नींद कहाँ आएगी!!" सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर आते आते उन्हों ने कहा "मैं इस लड़की को घर छोड़ आता हूँ" तब तक पीयूष आँखें मलते हुए कमरे से बाहर निकला.. "मुझे भी नींद नहीं आ रही.. मैं भी साथ चलता हूँ" फाल्गुनी और सुबोधकांत का चेहरा उतर गया.. पर वो मना भी कैसे करते.. !! तीनों साथ में उस लड़की को छोड़ने गए..

वैशाली और मौसम उसके कमरे में अकेले बैठे थे.. मौसम के हाथ पर लगी महंदी को देखते हुए वैशाली ने कहा "मौसम.. कल से तो तू तरुण की मंगेतर बन जाएगी.. अब तुझे फ्लर्ट करना बंद करना होगा.. और पीयूष की बनकर ही रहना होगा" सुनकर मौसम शरमा गई

मौसम: "वैशाली.. कुछ लोग तो शादी-शुदा होने के बावजूद भी गुलछर्रे उड़ाते है.. फिर मेरी तो अभी सिर्फ सगाई ही तो हो रही है..!!"

वैशाली: "हम्म.. तेरी बात तो सही है.. पर वो सब तेरी हिम्मत और साहस पर निर्भर करेगा.. जितना ज्यादा साहस करेगी.. उतना ही ज्यादा मज़ा मिलेगा.. "

मौसम: "हाँ.. मुझे भी तेरी तरह साहस करना सीखना ही होगा"

"मतलब??" चोंक उठी वैशाली

"कुछ नहीं.. मैं तो बस ऐसे ही कह रही थी" मौसम ने बात को वहीं रोक दिया

वैशाली सोच में पड़ गई.. मौसम ने ऐसा क्यों कहा.. !! उसका इशारा उसके पापा के संबंधों के ओर नहीं हो सकता.. क्योंकी उस बारे में तो वो पहले से ही जानती थी.. दोनों साथ ही तो गए थे सुबोधकांत की ऑफिस पर साथ में रैड मारने.. और फिर फाल्गुनी के साथ वो भी शामिल हो गई थी.. दोनों साथ में सुबोधकांत से चुदी थी.. और इस बात का मौसम को पहले से ही पता था.. फिर आज उसने ये बात किस संदर्भ में कही होगी?? कहीं उसे उसके और पीयूष के संबंधों के बारे में तो नहीं पता चल गया.. !!

वैशाली उठकर मौसम के बगल में बैठ गई.. उसकी महंदी खराब न हो इस तरह उसने मौसम के टीशर्ट में हाथ डाला और उसके दोनों संतरों के साथ खेलने लगी.. "आह्ह वैशाली.. ये तू.. !!" मौसम कराह उठी.. अभी कुछ देर पहले ही पीयूष ने मसल मसलकर उसकी चूचियों की हालत खराब कर दी थी.. वैशाली के छुते ही फिर से थोड़ा सा दर्द होने लगा.. पर वह स्पर्श अच्छा भी लगा..

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"जरा सोच मौसम.. अगर मेरे पास अभी लंड होता तो तेरी क्या हालत की होती मैंने??" मौसम की निप्पल को मरोड़ते हुए वैशाली ने कहा.. वैशाली की बातें सुनकर मौसम को बहोत मज़ा आ रहा था

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वैशाली: "फाल्गुनी को आने दे.. फिर हम साथ में शुरू करते है.. वरना हम दोनों ठंडी हो गई तो वो दिमाग खराब कर देगी"

मौसम: "ठीक कहा वैशाली.. वैसे अगर पीयूष जीजू साथ नहीं गए होते.. तो फाल्गुनी खुद ही ठंडी होकर आती.. !!"

वैशाली मौसम की जांघों पर सर रखकर लेट गई.. मौसम का टीशर्ट हटाकर उसके दोनों स्तनों को खोल दीये वैशाली ने.. निप्पल और उसके करीब के हिस्सों पर पीयूष के काटने के निशान साफ नजर आने लगे.. !! वैशाली के स्तन दबाते ही मौसम के मुंह से दर्द भरी कराह निकल गई.. वैशाली के विशाल स्तनों को अपनी कुहनी से दबाते हुए मौसम ने कहा "पापा और उसके बीच २५ वर्ष का अंतर है.. पता नहीं कैसे एड़जस्ट किया होगा उसने.. "

वैशाली: "तेरे पापा की पर्सनलिटी इतनी गजब की है की उम्र का फ़र्क मायने ही नहीं रखता.. बहोत ही हॉट और एक्टिव है तेरे पापा.. !!"

मौसम: "हाँ अब तुझे तो पता ही होगा कितने एक्टिव है वो.. और कहाँ पर"

वैशाली: "देख मौसम.. अब तुझसे कुछ छिपा हुआ तो है नहीं.. तू सब कुछ जानती है.. उस दिन जब हमने फाल्गुनी को तेरे पापा के साथ सेक्स करते हुए देखा तब मुझसे रहा नहीं गया.. कितना मस्त लंड है उनका यार.. !! और हाँ.. तुझे ये भी बता दूँ.. की जब तू अपने जीजू के साथ ज़िंदगी के पहले संभोग के मजे लूट रही थी.. तब तेरे पापा मेरे बॉल चूस रहे थे.. और जिस वक्त तूने फाल्गुनी को मेसेज किया तब मैं उनका लंड चूस रही थी.. उफ्फ़.. क्या गजब का लंड है यार.. मेरे तो नीचे खुजली होनी शुरू हो गई"

मौसम का पेपर भी लीक हो गया..!!!! मौसम इतनी हतप्रभ हो गई थी की कुछ बोल ही नहीं पाई.. !! उसे डर था की वैशाली कहीं उसकी दीदी को ये सब बता न दें..

वैशाली ने मौसम की निप्पल चूसते हुए कहा "तू जरा भी चिंता मत कर मौसम.. तेरा राज मेरे दिल में सुरक्षित रहेगा.. और पीयूष तो मुझे भी बहोत पसंद है.. मैं भी उसके लंड का स्वाद चख चुकी हूँ.. मेरे बूब्स पर तेरे जीजू फिदा है.. उसे इनकी साइज़ बहोत पसंद है"

मौसम को इस सदमे से उभरने में थोड़ा सा वक्त लगा.. पर जल्द ही उसके मन ने सारी सच्चाई स्वीकार ली.. अब तो वो भी दूध से धुली हुई नहीं थी.. राज तो उसके भी थे..

मौसम ने तकिये के नीचे छुपाई हुई ब्रा बाहर निकाली "ये देख.. जीजू ने मुझे फर्स्ट सेक्स की गिफ्ट दी है"

वैशाली ने ब्रा देखी और मुसकुराते हुए बोली "एक नंबर का मादरचोद है तेरा जीजू.. !!"

मौसम: "क्यों?? क्या हुआ.. ??"

वैशाली: "कल मैं अपने लिए ब्रा लेने गई तब पीयूष मेरे साथ ही था.. मैंने अपने लिए और कविता के लिए ब्रा खरीदी फिर भी उसने मुझे भनक तक नहीं लगने दी की कब उसने तेरे लिए ये ब्रा खरीद ली.. !! मुझे आश्चर्य हो रहा है.. मैं पूरा वक्त उसके साथ ही थी.. तो उसने ये ब्रा खरीदी कब?? लगता है जब मैं ट्रायल रूम में गई तब उसने खरीदी होगी.. साला बड़ा ही शातिर है.. !!"

मौसम: "तू जीजू के साथ ऑफिस काम करने जाती है या ये सब करने?? जीजू को अपने साथ ब्रा लेने ले गई?? कमाल है तू.. !!"

वैशाली: "अरे सुन तो सही.. तेरे घर आना था इसलिए मुझे अपने लिए खरीदनी थी.. शाम को ऑफिस से घर लौटते वक्त मैंने उसे दुकान के बाहर खड़े रहने को कहा.. पर किसी मर्द के बाहर खड़े रहने से उस दुकान वाले का धंधा खराब हो रहा था.. कोई भी लड़की या औरत ऐसी जगह ब्रा-पेन्टी खरीदने नहीं जाएगी जहां बाहर कोई मर्द खड़ा होकर आती जाती लड़कियों को ताड़ रहा हो.. इसलिए उस दुकान वाले ने तेरे जीजू को अंदर भेज दिया.. फिर मैं क्या करती?? पता है.. मैंने आज तेरे जीजू के पसंद की ब्रा ही पहनी हुई है.. "

मौसम: "वाऊ.. तब तो हम दोनों की पसंद एक जैसी ही निकली वैशाली.. एक बात बता.. संजय के अलावा तू कितनों के संग चूद चुकी है? और सब से ज्यादा मज़ा किसके साथ आया था??" वैशाली की कामुक बातें सुनकर मौसम की चूत नए सिरे से गीली होने लगी थी..

वैशाली मौसम की गोद से खड़ी हुई.. उसने मौसम के हाथों और सर से सरकाते हुए उसका टीशर्ट उतार दिया.. अब महंदी सुख चुकी थी इसलिए उतारने में कोई परेशानी नहीं हुई.. उसके मस्त कडक संतरें जैसे स्तनों को सहलाते हुए वैशाली देखती रही.. अपने स्तनों को ऐसे घूर रही वैशाली को मौसम ने कहा "क्या देख रही है वैशाली? मेरे मुकाबले तो तेरे कई गुना ज्यादा बड़े है"

वैशाली: "बड़ा होना ही सब कुछ नहीं होता मौसम.. मर्दों को स्तनों की सख्ती और कड़ापन बहोत पसंद होता है.. शादी से पहले मेरे बूब्स भी ऐसे टाइट ही थे.. शादी के बाद लचक गए.. तेरे बूब्स देखकर सोच रही हूँ.. कितने बढ़िया शैप में है ये.. !! पर जैसे ही तरुण का हाथ लगेगा.. वो इन्हें मसल मसलकर ढीले कर देगा.. !!"

मौसम: "वैशाली.. मेरी शॉर्ट्स भी निकाल दे यार.. और नीचे जरा खुजा दे यार.. बहोत जोरों की खुजली हो रही है नीचे.. ये महंदी जब तक पूरी सूख नहीं जाती तब तक तुझे ही मदद करनी पड़ेगी.. फाल्गुनी भी जल्दी आ जाएँ तो अच्छा है.. "

वैशाली ने मौसम को खड़ा किया और एक झटके में उसकी शॉर्ट्स और पेन्टी साथ उतार दी.. बिल्कुल निर्वस्त्र अवस्था में .. महंदी लगे दोनों हाथों को सीधा रखकर.. अपनी टांगें खोलकर मौसम बिस्तर पर बैठ गई.. वैशाली ने भी आनन-फानन में अपनी टीशर्ट और ब्रा उतारी.. और मौसम के शरीर के ऊपर छा गई.. दोनों के स्तन एकाकार हो गए.. अद्भुत लेस्बियन सेक्स की शुरुआत होने वाली थी..


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मौसम सिसकते हुए बोली "आह्ह वैशाली.. नीचे.. नीचे छेद पर.. जल्दी कुछ कर यार.. मैं मर जाऊँगी इस खुजली से.. अगर मेरा हाथ वहाँ चला गया तो सारी महंदी खराब हो जाएगी"

वैशाली ने मौसम को ओर बोलने ही नहीं दिया.. और उसके गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रखकर चूसने लगी.. मौसम उस किस का जवाब देते हुए वैशाली की नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली "वैशाली.. तू भी अपनी शॉर्ट्स उतार दे.. मज़ा आएगा"

"ओह मेरी जान.. तुझे जो चीज चाहिए.. वो शॉर्ट्स के अंदर है नहीं.. उसके लिए तो तुझे अपने जीजू को ही अपने ऊपर चढ़ाना पड़ेगा.. और सारे कपड़े अभी उतार दीये.. तो नीचे दरवाजा खोलने कौंन जाएगा?? यूं नंगी तो नहीं जा सकती ना.. १!"

"हाँ यार.. वो बात भी सही है तेरी.. "

तभी कार का हॉर्न बजा.. वैशाली ने तुरंत अपनी टीशर्ट पहन ली.. और मौसम को चादर से लपेट दिया.. तब तक तो सुबोधकांत ने अपनी चाबी से दरवाजा खोल दिया था और तीनों ऊपर आ चुके थे.. फाल्गुनी ने दरवाजे पर दस्तक दी और वैशाली ने दरवाजा खोला.. फाल्गुनी के साथ साथ पीयूष भी अंदर आ गया.. !! चादर के नीचे नंगी बैठी मौसम कांप उठी.. कहीं जीजू ने चादर खींच ली तो?? वैशाली भी थोड़ी सी झिझक के साथ खड़ी रही.. ये पीयूष बे-वक्त क्यों टपक पड़ा यहाँ??

मौसम बेहद संकोच महसूस कर रही थी..

"अरे वाह.. बहोत ही बढ़िया महंदी लगाई है" पीयूष ने कहा

मौसम: "थेंकस जीजू.. अच्छा हुआ जो आप उस लड़की को छोड़ आए.. वरना इतनी रात गए उस बेचारी को यही सो जाना पड़ता.. !!"

वैशाली: "वैसे वो महंदी वाली थी बड़ी हॉट.. !!"

पीयूष मौसम के बगल में बैठा था और उसकी टांग मौसम की जांघ को छु रही थी.. इतने से स्पर्श से भी मौसम अपने जिस्म मे गर्माहट महसूस कर रही थी.. थोड़ी देर पहले ही मौसम ने पीयूष के संग जवानी का पहला लंड-चूत घर्षण का अनुभव किया था.. ऊपर से वैशाली के संग लेस्बियन हरकतें करते हुए उसका पूरा बदन सिहर रहा था.. अब पीयूष का स्पर्श मिलते ही वो अपना आपा खो रही थी..

मौसम की निप्पल इस उत्तेजना के कारण एकदम कडक हो गई.. और चादर के पतले कपड़े से उभरकर अपना आकर दिखाने लगी थी.. जाहीर सी बात थी की पीयूष की नजर हर थोड़ी देर में मौसम के स्तनों पर चली जाती थी.. मौसम के सख्त उरोजों की गोलाई चादर के नीचे से भी अपना खुमार दिखा रही थी..


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"हम सब यहाँ अब बातें करेंगे.. तुझे बड़ी नींद आ रही है.. पर मैं तुझे सोने नहीं दूँगी" कहते हुए फाल्गुनी ने मौसम की चादर खींच ली.. चोंक गई मौसम इस अचानक हमले से.. अपनी महंदी की परवाह किए बगैर ही उसने अपनी हथेलियों से दोनों स्तन ढँक दीये..

"ये क्या किया तूने फाल्गुनी.. मादरचो.... ???"

मौसम को नंगी देखकर पीयूष को इतना ताज्जुब नहीं हुआ जितना उसके मुंह से गाली सुनकर हुआ..

बेचारी फाल्गुनी को कहाँ पता था की मौसम चादर के नीचे बिल्कुल नंगी बैठी थी.. खींची हुई चादर उसने फिर से मौसम को ओढा दी.. पर तब तक पीयूष और वैशाली दोनों ने मौसम की नग्नता का पूरा लुत्फ उठा लिया था..

वैशाली: "अब अपने जीजू से क्यों शर्मा रही है मौसम.. ?? अभी थोड़ी देर पहले तो गांड उछाल उछालकर उनके लंड से अपनी चूत की खुजली शांत कर रही थी.. हाँ.. अगर हमारी मौजूदगी के कारण तुझे शर्म आ रही हो तो हम चले जाते है.. तेरे पापा के रूम में.. और तू पीयूष के साथ अपना हनीमून मना ले.. सगाई से पहले ही.. !!"

"बोलने में थोड़ा ध्यान रख वैशाली.. !! और जीजू आप क्यों अब भी यहाँ बैठे हो बेशरमों की तरह.. !!! जाइए अपने कमरे में.. प्लीज.." मौसम की शक्ल रोने जैसी हो गई

पीयूष: "अरे यार.. साली तो आधी घरवाली होती है.. अब तुझे भला मुझसे शर्माने की क्या जरूरत है.. !!"

वैशाली: "पीयूष, तुझे मौसम के कौनसे हिस्से में ज्यादा दिलचस्पी है?? कमर के ऊपर वाले या नीचे वाले?? बाकी का हिस्सा मैं ढँक देती हूँ ताकि मौसम को शर्म न आए.. !!"

फाल्गुनी को पीयूष और मौसम के संबंधों के बारे में तो पहले से ही पता था.. पर वैशाली को यूं खुल्लमखुला पीयूष से बातें करते हुए देख वो सोच में पड़ गई.. जरूर इन दोनों के बीच भी काफी कुछ हो रखा है..

मौसम गुस्सा हो गई "अब तू चुप बैठ वैशाली.. जल्दी से मुझे ठीक से ढँक दे.. और आधी घरवाली बनने का बहोत शौक हो तो तू ही चली जा जीजू के साथ.. आधी क्या.. पूरी घरवाली बन जा.. वैसे भी जीजू के साथ ब्रा खरीदने जाने में तो तुझे कोई झिझक नहीं होती"

फाल्गुनी ये सुनकर चोंक गई "बाप रे.. क्या बात कर रही है मौसम.. !! वैशाली जीजू के साथ ब्रा खरीदने गई थी??"

गरमागरम बातों के बीच पीयूष मौसम के पैरों के गोरे गोरे तलवों को सहला रहा था.. इस बात से बाकी दोनों लड़कियां बेखबर थी.. मौसम जीजू के इस स्पर्श को महसूस करते हुए जोर जोर से सांसें ले रही थी.. उसके स्तन हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे.. हाथ से ढंके होने के बावजूद स्तन का चालीस प्रतिशत हिस्सा बाहर दिख ही रहा था.. मौसम ने अपनी जांघों को सख्ती से भींच रखा था.. पर जिसके पूरे शरीर में ही सेक्स, खून बनकर दौड़ रहा हो.. ऐसी २४ वर्ष की यौवना.. सिर्फ दो हथेलियों से अपने रूप का ताजमहल कैसे और कितना ढँक पाएगी.. !!

मज़ाक मस्ती अपनी पराकाष्ठा पर थी.. साथ में नग्नता का मिश्रण भी हो रखा था.. पीयूष कमरे से बाहर जाने के लिए मान नहीं रहा था.. मौसम के संगेमरमरी बदन को देखकर सोच रहा था.. ओह्ह यह रूप का महासागर अभी एक घंटे पहले मेरी बाहों में था.. !!

फाल्गुनी शर्म के मारे कुछ बोल नहीं पा रही थी.. और वैशाली तो सब के मजे ले रही थी.. आखिर मौसम ने हिम्मत की और खड़ी होकर पीयूष को धक्के मारकर कमरे से बाहर कर दिया.. पीयूष नग्न मौसम के हिलोरे लेते जवान स्तनों को छूने गया.. पर मौसम ने झट से दरवाजा बंद कर दिया.. और पीयूष के उस प्रयास को निष्फल बना दिया.. जीजू गए या नहीं.. ये देखने के लिए मौसम ने हल्का सा दरवाजा खोला.. और पीयूष ने झपटकर हाथ डालकर मौसम के स्तनों को दबा लिया.. मौसम ने दरवाजा बंद करने की बहोत कोशिश की पर बीच में पीयूष का हाथ फंसा हुआ था और पीयूष भी उस तरफ से दरवाजे को धक्का दे रहा था..

वैशाली: "अरे.. बेचारे जीजू को थोड़ी देर दबाने देती.. !!"

पीयूष का हाथ धकेलकर दरवाजा बंद किया और बेड पर आकर बैठ गई

मौसम: "अब चुप भी कर.. अगर जीजू की इतनी दया आ रही हो तो अपने खोलकर दे दें उनको दबाने के लिए.. मुझ से तो तेरे काफी बड़े है.. मज़ा आएगा जीजू को.. और तुझे भी"

वैशाली: "आय हाय.. मैं तो कब से हूँ रेडी तैयार..पटा लें सैयाँ मिस-कॉल से.. !!" करीना की तरह कमर मटकाते हुए अपने बड़े बड़े स्तन दिखाकर वैशाली ने कहा

मौसम: "हम तेरा ही इंतज़ार कर रहे थे फाल्गुनी.. ताकि हम अपना खेल शुरू कर सकें.. जीजू ने आकर सारा प्लान चौपट कर दिया.. चलो वैशाली.. शुरू करते है.. तू हमारी सीनियर है.. इसलिए शुरुआत भी तुझे ही करनी होगी"

फाल्गुनी: "हाँ और हम सब से ज्यादा अनुभवी भी है.. वैसे तो हम तीनों को अनुभव है.. पर वैशाली का सब से ज्यादा है"

फाल्गुनी के कूल्हें पर चपत लगाते हुए वैशाली ने कहा "मादरचोद तूने इतनी बार तो अंकल का टांगें फैलाकर लिया है.. दिन रात चुदवाती है.. तू तो कुंवारी दुल्हन है अंकल की.. वैसे उस रिश्ते से तो तू मौसम की मम्मी हुई.. मौसम, अब से तू फाल्गुनी को मम्मी कहकर ही बुलाना.. तुम दोनों को नया रिश्ता मुबारक हो" हँसते हँसते वैशाली ने कहा

फाल्गुनी: "आह्ह.. ले बेटा.. मम्मी के बॉल दबा" मौसम की तरफ देखकर फाल्गुनी ने मसखरे अंदाज में कहा.. मौसम के हाथों पर महंदी लगी हुई थी इसलिए वो कर नहीं सकती थी

मौसम: 'मैं क्या करूँ.. !! जैसे पुलिस के हाथ कानून से बंधे होते है वैसे ही मेरे हाथ आज महंदी से बंधे हुए है"

फाल्गुनी और वैशाली मौसम के करीब आए.. और दोनों ने मौसम का एक-एक स्तन आपस में बाँट लिया.. और चूसना शुरू कर दिया..

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चूसते चूसते वैशाली ने मौसम की निप्पल एक पल के लिए बाहर निकाली और कहा "घोर कलियुग है.. !!"

मौसम: "क्यों, क्या हुआ??"

वैशाली: "आज तक बेटी को माँ की निप्पल चूसते देखा था.. आज पहली बार देखा की माँ ही बेटी की निप्पल चूस रही है.. उलटी गंगा बह रही है"

फाल्गुनी ने वैशाली के लटकते हुए विशाल चर्बी के गोलों को दबाते हुए कहा "मौसम बेटा.. तेरे इतने बड़े क्यों नहीं है?"

मौसम: "ओह्ह मम्मी.. अब क्या कहूँ.. !! मैं तो अभी कुंवारी हूँ ना.. !! कोई दबाने वाला होता तो ये भी इस तरह बड़े हो जाते.. मम्मी, तुम मेरे लिए कोई लंबे लंड वाला लड़का ढूंढ दो.. फिर मैं भी दबवा दबवाकर बड़े करवा लूँगी"

गरमागरम उत्तेजक बातों के बीच कमरे का महोल रंगीन हो चुका था.. धीरे धीरे उत्तेजना से भरी सिसकियों कमरा गूंजने लगा..

फाल्गुनी के होंठ चूसते हुए वैशाली ने कहा "फाल्गुनी, ये तेरी बेटी पूछना चाहती है की इतनी जवान होने के बावजूद, बूढ़े अंकल के प्यार में कैसे पड़ी? चाहती तो एक से एक जवान लंड मिल जाते तुझे.. !!"

मौसम की चूत पर हाथ सहलाते हुए फाल्गुनी ने कहा "सब कुछ अचानक हो गया.. शुरू शुरू में तो मुझे भी पसंद नहीं था.. तुझे याद है मौसम.. बीच में मैंने तेरे घर पर आना काफी कम कर दिया था.. !! वो इसी कारण.. एक दिन मैं तेरे घर आई.. तेरी मम्मी सब्जी लेने मार्केट गई थी.. और तू भी घर पर नहीं थी.. तब अंकल ने मुझे पकड़ लिया.. मैं तो बहोत डर गई थी.. "

एक दूसरे के जिस्म से खेलते हुए वैशाली फाल्गुनी का नार्को-टेस्ट ले रही थी.. अपनी चूत की खुजली मिटाने के लिए इन दोनों पर निर्भर मौसम.. चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी.. उसे भी जानना था की पापा और फाल्गुनी के बीच सब कुछ कैसे शुरू हुआ.. !!

वैशाली ने स्वाभाविक प्रश्न पूछा "तो फिर तू चिल्लाई क्यों नहीं??"

"पता नहीं यार.. शायद मेरी हिम्मत नहीं हुई या चिल्लाना ठीक नहीं लगा" फाल्गुनी ने किसी राजनीतिज्ञ की तरह जवाब दिया..

वैशाली: तू इसलिए नहीं चिल्लाई थी क्योंकि तुझे मज़ा आने लगा था..और तू सामने से चलकर ही उनके पास गई थी.. चूत चटाने के लिए.. क्यों सही कहा ना मैंने.. !!"

वैशाली की गरमागरम बातें और फाल्गुनी की खामोशी.. सब बेहद उत्तेजक था.. मौसम की चूत में अब जबरदस्त खुजली हो रही थी..

"प्लीज वैशाली.. मुझे कुछ कर यार.. अंदर चींटियाँ रेंग रही है.. " वैशाली के गदराए उरोजों से अपने चेहरे को रगड़ते हुए मौसम ने कहा..

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पर वैशाली और फाल्गुनी.. दोनों में से किसी का भी ध्यान मौसम की तरफ नहीं था..

फाल्गुनी ने वैशाली की टी-शर्ट उतारकर उसके स्तन-युग्मों को नंगा कर दिया.. वैशाली ने भी फाल्गुनी की शॉर्ट्स उतार दी.. फाल्गुनी की चूत पर हाथ फेरते हुए वैशाली को चिपचिपाहट का एहसास हुआ..

उस चिपचिपे रस लगे हाथ को नाक के पास ले जाकर सूंघते हुए वैशाली ने कहा "अंकल के क्रीम की गंध आ रही है नालायक.. चुदवाने के बाद पोंछ तो लेती.. !!"

मौसम ने नजरें ऊपर कर देखा.. वैशाली के शब्द सुनकर उसके पूरे जिस्म में झनझनाहट सी होने लगी.. वैशाली ने अपना हाथ मौसम को सूंघा दिया और बोली "तेरी चूत में.. तेरे जीजू का क्रीम है.. और फाल्गुनी की चूत में अंकल का.. !!"

फाल्गुनी ने वैशाली की बुर की फांक पर उंगली फेरते हुए कहा "हरामजादी तेरी चूत में तो उन दोनों का क्रीम है..!!"

वैशाली ने फाल्गुनी को बाहों में मजबूती से दबा दिया और कहा "चल आजा.. उन दोनों के क्रीम की ताकत तुझे दिखाती हूँ" कहते हुए उसने फाल्गुनी के पूरे शरीर को मसलकर रख दिया

फाल्गुनी को दबाए रखकर वैशाली ने पूछा "ये बता.. अंकल का इतना मोटा पहली बार लिया था तब तुझे दर्द नहीं हुआ था क्या? खून भी निकला होगा.. !!"

"आह्ह.. ईशशशश..!!" अपने पापा के लंड का जिक्र सुनकर मौसम सिहर उठी

"अरे यार.. चार पाँच दिनों तक तो ठीक से चल भी नहीं पाई थी.. पर अपना दुखड़ा किसको बताती??" फाल्गुनी ने कहा

मौसम के कूल्हों को सहलाते हुए फाल्गुनी ने कहा "बेटा.. सच में.. तेरे पापा का बहोत मोटा है"

यह सुनकर तो अब मौसम मदहोशी के आलम में पहुँच गई

वैशाली: "मौसम, तूने जीजू का लिया तब ब्लीडिंग हुआ था क्या?"

मौसम: "नहीं यार.. पहली बार अंदर घुसा तब दर्द तो बहोत हुआ पर खून नहीं निकला था"

फाल्गुनी: "वैशाली, तू ने तो दोनों के देख रखे है.. किसका ज्यादा अच्छा है?"

वैशाली: 'ऑफकोर्स अंकल का.." बिना किसी झिझक के वैशाली ने सुबोधकांत के लंड को अवॉर्ड दे दिया

फाल्गुनी ने मौसम की तरफ देखा "मौसम, तेरे जीजू का कैसा है? और हाँ.. अगर तुझे अंकल का देखना हो तो.. मेरे मोबाइल में बहोत सारे फ़ोटोज़ है.. कुछ विडिओ भी है.. देखना है तुझे??"

"ओह्ह फाल्गुनी प्लीज.. " बिस्तर के सिरहाने अपनी चूत रगड़ने लगी मौसम.. क्यों की दोनों में से कोई भी उसकी आग बुझाने में मदद नहीं कर रही थी.. उल्टा उस आग को और भड़का रही थी.. तंग आकर मौसम ने पास पड़े गोल तकिये का सहारा लिया.. उस पर सवारी करते हुए वो अपनी मुनिया को रगड़कर शांत करने की कोशिश करने लगी.. तकिये पर कूदने के कारण उसके स्तन मस्त उछल रहे थे.. इस स्थिति में अब उसे फाल्गुनी और वैशाली की उत्तेजक बातें सुनने में ओर मज़ा आने लगा

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फाल्गुनी ने मौसम की ओर इशारा करते हुए वैशाली से कहा "अरे वाह देख तो.. मेरी बेटी कैसे घुड़सवारी कर रही है.. !! लंड लेने की इसकी भूख तो देख जरा.. अभी एक बार ही लिया है जीजू का लंड.. एक ही बार मैं ऐसा हाल हो गया.. बांवरी हो गई ये तो.. !!"

वैशाली: "फाल्गुनी, तू ब्लूटूथ से सारे फ़ोटोज़ और क्लिप भेज दे मुझे.. रात को उंगली करने में काम आएंगे मुझे"

फाल्गुनी: "अरे एक से बढ़कर एक तस्वीरें और विडिओ है.. पूरी रात उंगली करती रहेगी तो भी सब खतम नहीं होगा.. "

मन तो मौसम का भी कर रहा था की वो फाल्गुनी से कहें.. की उसके मोबाइल पर भी भेज दें.. पर हिम्मत नहीं हुई.. पर वो बेहद उत्तेजित और रोमांचित हो गई थी.. विडिओ क्लिप.. वो भी फाल्गुनी और पापा की चुदाई की..!! मौसम के स्तनों में गजब का कसाव आ गया.. तकिये पर अपनी पुच्ची रगड़ते हुए और इन दोनों की बातें सुनते ही वो बहोत ज्यादा गरम हो चुकी थी.. वो कैसे भी करके एक बार वो क्लिप देखना चाहती थी.. पर वो किस मुंह से फाल्गुनी से कहती?? वो एक बार अपने पापा का लंड ज़ूम करके देखना चाहती थी.. मौसम की नादानी अब हवा बनकर उड़ चुकी थी

रात के दो बज चुके थे पर तीनों में से एक की भी आँखों में नींद नहीं थी.. थी तो सिर्फ सेक्स की लालसा.. सेक्स का खुमार.. ज़िंदगी को पूरा जी लेने की तमन्ना.. !!

फाल्गुनी ने अपने मोबाइल में.. सुबोधकांत के लंड की फ़ोटो खोली.. और मोबाइल वैशाली को दिया.. मौसम के सामने ही अपनी चूत खुजाते हुए वैशाली ने कहा "यार.. कितना मस्त मोटा है.. !! देखकर ही नीचे चूल उठने लगी.. कम से कम तेरी कलाई जितना मोटा है मौसम.. उस दिन जब हम ऑफिस में छुपकर देख रहे थे तब उनका ये मूसल लंड देखकर मेरे मुंह और चूत दोनों में एक साथ पानी आ गया था.. "

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फाल्गुनी: "वैशाली.. मैंने पहली बार जब अंकल का देखा तो बहोत डर गई थी.. एक महीने तक तो सिर्फ उसे पकड़ती और खेलती रहती.. कभी बहोत मन करें तो अपनी चूत पर रगड़ लेटी.. फिर एक बार अंकल के कहने पर हिम्मत की.. और आगे का गोल लाल हिस्सा अंदर डालने की कोशिश की तब इतना दर्द हुआ की बाहर निकाल लेना पड़ा था"

वैशाली: "अच्छा.. !! पर अभी तो बड़े आराम से दलवा लेती है पूरा.. !!"

फाल्गुनी: "फिर अंकल ने मुझे समझाया.. की पहली बार तो दर्द होगा ही होगा.. जान निकल जाएगी.. पर एक बार अंदर ले लिया.. फिर मजे ही मजे होंगे.. और सच में.. पहले दो तीन बार तो ऐसा ही लगा जैसे अंकल मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे है.. मैं रो पड़ती.. चिढ़ जाती.. गुस्सा करती.. पर फिर धीरे धीरे ऐसी आदत लग गई.. की अब तो रोज लेने का मन करता है मुझे.. अब क्या कहूँ तुझे वैशाली.. कहने में भी शर्म आती है.. पिरियड्स के दिनों में तो इतना मन करता है की एक बार तो मैंने सामने से अंकल को फोन किया था.. की अंकल प्लीज, कुछ सेटिंग कीजिए.. बहोत मन कर रहा है"

"साली रंडी मम्मी.. !!" मौसम ने सिर्फ उतना ही कहा.. दोनों का ध्यान अब मौसम की तरफ गया

फाल्गुनी: "बेटा.. तू तकिये से अपनी मुनिया रगड़ना जारी रख.. फिलहाल तुझे लोडा लेने की इजाजत नहीं है.. हाँ फ़ोटो देखनी हो तो देख ले.. ये ले देख.. इसी से तो तू पैदा हुई थी" कहते हुए फाल्गुनी ने वैशाली के हाथ से मोबाइल लेकर मौसम के सामने फेंका.. मौसम का दिल बड़े जोर से धकधक करने लगा.. स्क्रीन पर लंबा तगड़ा लंड देखने की अपेक्षा थी.. पर हाय रे किस्मत.. !! मोबाइल बेड पर उलटे मुंह पड़ा..

बेहद उत्तेजना और उत्कंठा से मौसम उलटे पड़े मोबाइल के सामने देखती रही.. पर निराशा के सिवा कुछ हाथ न लगा..

ये देखकर फाल्गुनी हंसी और मौसम के करीब आकर उसके होंठ चूसकर संतरें दबा दीये.. मौसम का हाथ ऊपर कर उसकी काँख को चाटते हुए फाल्गुनी ने कहा "मौसम बेटा.. मुझे पता है.. तू अपने पापा का लंड देखने के लिए आतुर है.. ले देख ले अपने बाप का लंड.. कैसा है.. !!" कहते हुए फाल्गुनी वैशाली के पास जाकर बैठ गई..

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कांपते हाथों से मौसम ने मोबाइल उठाया और स्क्रीन ऑन कर दी.. काफी देर तक वो स्क्रीन पर दिख रहे सुबोधकांत के लंड को देखती ही रही.. जैसे उसने खुद अपने बाप का लंड हाथ में पकड़ रखा हो..

थोड़ी देर देखकर वो बोली "फ़ोटो में तो जबरदस्त लग रहा है.. जीजू से भी लंबा और मोटा है.. " मौसम की चूत में ४४० वॉल्ट के झटके लगने शुरू ह ओ गए थे..

वैशाली: "लंबा और मोटा तो है ही.. साथ ही उनका स्टेमीना भी गजब का है"

मौसम ने उन दोनों की तरफ देखा.. फाल्गुनी और वैशाली पैर चौड़े कर बेड पर एक साथ लेट गए थे.. एक हाथ से एक दूसरे के स्तन दबा रहे थे.. जब की दूसरे हाथ की उंगली एक दूसरे की चूत में अंदर बाहर हो रही थी..

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एक दूजे के अंगों से खेलते हुए वैशाली फाल्गुनी से और जानकारी प्राप्त करने में जुट गई..

वैशाली: "फाल्गुनी, तो फिर जब हमारे बीच लंड की बातें हो रही थी तब तू इतना डरती क्यों थी? तेरे शरीर को पहली बार जब मैंने छु लिया था तब भी तू घबरा गई थी.."

फाल्गुनी ने एक दीर्घ सांस लेकर बात की शुरुआत की.. पर उससे पहले उसने वैशाली का हाथ पकड़कर अपनी चूत पर रख दिया.. वैशाली समझ गई की फाल्गुनी की चूत इन बातों से उत्तेजित हो जाने वाली है.. इसलिए उसने पहले से ही इंतेजाम कर लिया.. वैशाली ने अपनी दो उँगलियाँ फाल्गुनी की मुनिया के अंदर तक उतार दी..

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एक गहरी सिसकी लेते हुए फाल्गुनी ने कहा "यार एक दिन.. शाम के पाँच बजे.. मैं मौसम के घर गई.. मौसम नोट्स की फोटोकॉपी करवाने गई थी.. और घर पर सिर्फ रमिला आंटी ही थे.. आंटी ने मुझे एक कपड़ों से भरा बेग देते हुए कहा.. की मैं इसे अंकल की ऑफिस पर देकर आऊँ.. अंकल को अर्जेंट शहर से बाहर जाना था इसलिए.. मैं तैयार हो गई.. और बेग लेकर अंकल की ऑफिस पहुँच गई.. मुझे देखकर अंकल ने कहा "अरे फाल्गुनी.. तू क्यों देने आई? मौसम आने वाली थी".. मैंने जवाब दिया की "हाँ अंकल.. पर आपको अर्जेंट जाना था.. और मौसम कहीं बाहर थी.. इसलिए आंटी ने मुझे कहा इसे आप तक पहुंचाने को.. आप कहीं शहर से बाहर जा रहे है?"

फिर उन्हों ने कहा की.. हाँ.. एक अर्जेंट मीटिंग निकल आई है.. " कहते हुए वो मुझे अपनी चेम्बर में ले गए.. और चपरासी को कॉफी लाने के लिए कहा.. उस पल तक मेरे मन में अंकल के लिए मेरे पापा जितनी इज्जत थी.. मैं निःसंकोच उनके साथ कैबिन में अकेले बैठी थी.. जरा भी डर नहीं था.. पर कॉफी पीते पीते उन्हों ने मुझे फँसाने की हरकतें शुरू कर दी.. मुझे लगा.. मैं तो उनकी बेटी जैसी हूँ.. भला मुझसे ऐसी बातें क्यों कर रहे होंगे अंकल.. !!"

मौसम: "मतलब किस तरह की बातें कर रहे थे पापा??"

फाल्गुनी: "अब क्या कहूँ यार.. थोड़ी डबल मीनिंग वाली बातें कर रहे थे.. घुमाया फिराकर.. पर मतलब वही था "

वैशाली: "मतलब किस तरह की बातें?"

फाल्गुनी: "हम्म.. जैसे की.. फाल्गुनी.. अब तू जवान हो गई है.. तेरे पापा से बात करके लड़का ढूँढना पड़ेगा तेरे लिए.. जवानी की इच्छाएं बड़ी ही प्रबल होती है.. देखना कहीं पैर फिसल न जाएँ तेरा.. ये सब कहते हुए मेरे पीछे खड़े हो गए और कंधों पर हाथ रख दिया.. फिर भी मुझे कुछ भी अटपटा सा या विचित्र नहीं लगा"

मौसम: "फिर क्या हुआ??"

फाल्गुनी: "फिर उन्हों ने मुझसे पूछा.. तुझे कोई लड़का पसंद है क्या? या तेरा किसी के साथ कोई चक्कर है?? मैंने मना किया.. "

मौसम और वैशाली एकटक फाल्गुनी की तरफ नजरें जमाए थी..

फाल्गुनी: "तो मैंने कह दिया की नहीं अंकल.. ऐसा कुछ भी नहीं है.. तो उन्हों ने कहा की तू झूठ बोल रही है.. आज कल की जवान लड़कियों को लड़कों के लिए आकर्षण होना आम बात है.. और ऐसा पोसीबल ही नहीं है की तू किसी लड़के के साथ नहीं होगी.. तेरे शरीर का विकास देखकर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की तूने किसी न किसी के साथ जरूर इन्जॉय किया होगा.. मौसम.. वो पहली बार था की तेरे पापा की बातों से मैं गरम होने लगी.. खास कर जब उन्हों ने "शरीर के विकास" वाली बात कही तब.. मैंने भोली बनकर कहा.. इन्जॉय मतलब?? मैं समझी नहीं अंकल.. तब उन्हों ने बम फोड़ दिया और कहा.. बेटा तुझे सेक्स करने का तो मन करता होगा ना.. !!! मैं इतना शर्मा गई.. मैंने कोई जवाब नहीं दिया.. अंकल ने बोलना जारी रखा.. तुझे भी मन करता होगा किसी पुरुष के साथ कमर में हाथ डालकर दूर तक वॉक पर जाना.. बारिश में किसी हेंडसम पुरुष के साथ एक छाते में भीगते हुए जाना.. अंकल ने शुरू शुरू में तो प्रेम और रोमांस की बात की.. फिर धीरे धीरे फ्लर्ट करते हुए सेक्स तक बात पहुँच गई.. पहले तो सेक्स की बातें मेरे पल्ले नहीं पड़ी.. पर उनकी बातें मुझे इतनी अच्छी लग रही थी की मन कर रहा था.. वो बातें करते रहें और मैं सुनती रहूँ.. मौसम.. क्या तुझे पता है की तेरे पापा सिगरेट पीते है??"

मौसम: "नहीं.. मैंने तो उन्हें कभी स्मोक करते हुए नहीं देखा है"

फाल्गुनी: "उस दिन मुझसे बातें करते हुए उन्हों ने सिगरेट जलाई और कहा.. फाल्गुनी तू यंग है और मैं अनुभवी हूँ.. तुझे अपनी इच्छाओं को काबू में रखने में परेशानी होती होगी.. और तेरी आंटी से मैं जरा भी खुश नहीं हूँ.. यूं ही समझ की शारीरिक रूप से वो रिटायर्ड हो चुकी है.. तो क्या हम दोनों अच्छे दोस्त बन सकते है.. ??"

वैशाली: "अरे दिमाग से पैदल लड़की.. जब उन्हों ने साफ साफ कह दिया की आंटी शारीरिक रूप से रिटायर्ड हो चुकी है.. तो जाहीर से बात है की वो तुझसे शारीरिक सपोर्ट की उम्मीद लगाएं बैठे थे.."

फाल्गुनी: "अरे यार.. मुझे उस वक्त कुछ समझ में नहीं आ रहा था.. उस दिन तो उन्हों ने मुझे बिना कोई छेड़छाड़ कीये जाने दिया.. पर उस रात को डेढ़ बजे उन्हों ने मुझे व्हाट्सप्प पर नॉन-वेज जोक भेजा.. जो मैंने सुबह पढ़ा.. पढ़कर ही मैं इतना शर्मा गई की क्या बताऊँ"

मौसम ने उत्सुकतापूर्वक पूछा "कौन सा जोक था?"

फाल्गुनी: "अब वो तो मुझे कुछ याद नहीं है.. पर उस जोक में लंड और चूत जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया था.. इतनी सुबह अंकल को कॉल करना मुझे ठीक नहीं लगा.. इसलिए जब मम्मी और पापा दोनों ऑफिस चले गए तब तक मैं इंतज़ार किया.. बार बार मैं उस मेसेज को पढ़ती रहती.. लंड और चूत जैसे शब्द पढ़कर मुझे नीचे कुछ कुछ हो रहा था.. अनजाने में ही मेरा हाथ नीचे चला गया.. मैंने वो मेसेज पढ़ते पढ़ते उंगली फेरना शुरू कर दिया.. इतना मज़ा आया था यार.. पहली बार अंदर से पानी भी निकला था.. मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया पर मज़ा बहोत आया था.. मेरा पानी निकला और तभी अंकल का कॉल आया.. मैंने नाराजगी से उन्हें उस मेसेज के बारे में कहा तो अंकल ने सॉरी कहा और बोले की आज के बाद ऐसे मेसेज नहीं भेजेंगे.. मैंने फोन रख दिया.. पर उस दिन के बाद अंकल के तरफ देखने का मेरा नजरिया बदल गया.. मैं तेरे घर आती तो उन्हें देखते ही मेरी धड़कनें तेज हो जाती.. पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो जाता"

फाल्गुनी नॉन-स्टॉप बोलें जा रही थी.. वैशाली और मौसम एक दूसरे के स्तनों को छेड़ते हुए बड़े ही इन्टरेस्ट से उसकी बातें सुन रहे थे

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फाल्गुनी: "फिर काफी दिनों तक कुछ नहीं हुआ.. एक दिन तेरे घर आई तब अंकल घर पर अकेले बैठे थे.. उन्हों ने मुझे कहा की मुझसे एक बात करनी है पर मैं प्रोमिस करूँ की किसीको बताऊँगी नहीं.. मैंने प्रोमिस किया पर मुझे अंदाजा तो लग ही चुका था की अंकल क्या कहने वाले थे.. मेरे बूब्स को देखते हुए अंकल ने कहा की.. फाल्गुनी.. तू मौसम की हमउम्र है पर बहोत ही सुंदर है.. उस दिन तेरे साथ ऑफिस में कॉफी पीने के बाद तू मेरे दिल और दिमाग पर छा गई है.. मुझे ऐसा कहना तो नहीं चाहिए पर अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ.. मैंने कहा.. अंकल मुझे जाना चाहिए.. मैं बाद में आऊँगी.. उन्हों ने मुझे रोका नहीं.. और कहा की ठीक है.. रात को तुझे एक-दो मेसेज भेजूँगा.. पढ़कर डिलीट कर देना.. और प्लीज मेरी बात का बुरा मानकर यहाँ आना बंद मत कर देना.. मैं तो तुझे सिर्फ देखकर भी खुश हो जाऊंगा.. ये खुश मुझसे छीन मत लेना.. !!!"

फाल्गुनी सांस लेने के लिए एक सेकंड रुकी और फिर बात आगे बढ़ाई

फाल्गुनी: "मैं भागकर घर पहुंची.. मेरा दिन ज़ोरों से धकधक कर रहा था.. ताज्जुब की बात तो यह थी की मैं पूरी रात अंकल के मेसेज का इंतज़ार करती रही पर उन्हों ने मेसेज ही नहीं किया.. !! फिर मुझे अपने ही पागलपन पर हंसी आने लगी.. की मैं क्यों भला उनके मेसेज का वैट कर रही थी.. पर मुझे उस सवाल का जवाब नहीं मिला.. दूसरे दिन जब तेरे घर आई तब अंकल ने मुझे आँख मारी.. मेरा दिल कर रहा था की उनसे पूछूँ.. रात को मेसेज क्यों नहीं किया?? पर तब तेरी और आंटी की मौजूदगी के कारण मैं पूछ नहीं पाई.. दिन-ब-दिन अंकल की शरारतें बढ़ती गई.. तब तक तो मैं भी उनके साथ सिर्फ फ्लर्ट कर रही थी.. "

मौसम: "साली रांड.. तुझे फ्लर्ट करने के लिए मेरा ही बाप मिला.. !! अपने बाप के साथ कर लेती फ्लर्ट.. !!"

फाल्गुनी हंस पड़ी और बोली: "अबे साली.. मेरा बाप अपनी बेटी की उम्र की लड़कियों को आँख नहीं मारता.. और ना ही उन्हें आधी रात को गंदे जोक्स भेजता है.. क्या कभी मेरे पापा ने तेरे बूब्स को घूर घूर कर देखा है?? नहीं ना.. !! सारी चूल तेरे बाप के लंड में है.. मेरे पापा तो एकदम जेन्टलमेन है.. समझी.. !! और सुन.. मैंने अंकल को खुद से दूर रखने की बहोत कोशिश की.. अभी मेरी पूरी बात तू सुन..तो पता चलेंगे तेरे बाप के कारनामे.. फिर तुझे जो बोलना हो बोल लेना.. !!"

वैशाली: "अरे यार मौसम, तू बीच में टोंक मत.. हम्म आगे बता फाल्गुनी"

फाल्गुनी: "जिस दिन उन्हों ने मुझे आँख मारी थी.. उस दिन जब मैं कॉलेज से घर पहुंची तब उनका फोन आया.. ना हैलो कहा और न और कुछ.. सिर्फ इतना बोलें की मुझे तेरी बहोत याद आ रही है यार.. अकेला बैठा हूँ.. तू आ जा.. इतना कहकर उन्हों ने फोन रख दिया.. मुझे एक पल के लिए तो समझ में नहीं आया.. मैंने सामने से फोन करके पूछा की अंकल आपने मुझे फोन किया था?? उन्हों ने जवाब दिया की.. ओह तुझे फोन लग गया था.. मैंने तो किसी ओर को लगाया था.. खैर.. अगर तू फ्री है तो ऑफिस आजा.. साथ बैठकर कॉफी पियेंगे और गप्पे मारेंगे.. ईमानदारी से कहूँ तो उस दिन मुझे अंकल को मना कर देना था.. पर मना नहीं कर पाई.. पता नहीं क्यों.. !! और उसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक जारी है.. अब मैं उनके बगैर जी नहीं सकती.. !!"

सुनकर एक पल के लिए मौसम चोंक गई और बोली "मतलब??? तू पापा से प्यार करती है??"

वैशाली: "अरे वो सब छोड़.. ये बता.. फिर तू जब उनकी ऑफिस गई.. तब उन्हों ने तुझे चोद दिया था?"

फाल्गुनी: "नहीं बाबा नहीं.. उन्हों ने बड़ी ही होशियारी से मुझे ऐसे उत्तेजित किया की मैं ही अपना कंट्रोल खो बैठी.. क्या कहूँ यार.. बहोत ही लंबी कहानी है.. जाने भी दो.. जो बीत गई सो बात गई.. !!"

गहरी सांस लेकर फाल्गुनी ने आगे बोलना शुरू किया

फाल्गुनी: "मैं उनका निमंत्रण ठुकरा नहीं सकी.. और मैंने कहा की.. हाँ अंकल.. मैं आपकी ऑफिस आती हूँ.. वैसे भी बोर हो रही थी.. मौसम भी मेरे कॉल का जवाब नहीं दे रही है"

मौसम: "साली रंडी.. बाप की रखैल.. मैंने कब तेरा फोन नहीं उठाया??"

फाल्गुनी: "अरे यार मैंने झूठ-मुट बोल दिया था.. बल्कि उस दिन तो तूने मुझे सेंकड़ों बार फोन किया था पर मैंने ही नहीं उठाया था.. !! और फिर मैंने बहाना बनाया था की फोन घर भूल गई थी.. असल में मैं अंकल के साथ थी.. इसलिए तेरा फोन नहीं उठा रही थी.. !!"

मौसम: "अच्छा तो ये बात थी.. मैं इसे कितनी भोली समझती थी वैशाली.. पर एक नंबर की छिनार निकली"

फाल्गुनी: "अब सुन भी ले आगे की कहानी"

मौसम: "हाँ.. बक.. !!"

फाल्गुनी: "उस दिन मैं स्किन-टाइट टीशर्ट और ब्लू जीन्स पहनकर गई उनके ऑफिस.. मुझे देखते ही अंकल घायल हो गया ऐसा मुझे लगा.. टाइट टी-शर्ट से उनकी नजर आरपार होते मैं महसूस कर पा रही थी.. इतनी खतरनाक नजर से वो मेरे बूब्स को देख रहे थे.. ऐसा लग रहा था कि जैसे वहीं टेबल पर लिटाकर मुझे कच्चा चबा जाएंगे.. मैं ऑफिस पहुंची तब सारा स्टाफ जा चुका था.. उनकी कैबिन में ले जाकर अंकल ने मुझे वहाँ सोफ़े पर बिठाया.. और वो भी पास बैठ गए.. उन्हों ने मेरा हाथ छोड़ा ही नहीं.. फिर धीरे से उनका हाथ मेरे कंधों पर रख दिया.. मैं इतनी रोमांचित हो गई की क्या बताऊँ.. !!"

मौसम और वैशाली स्तब्ध होकर फाल्गुनी के कौमार्यभंग की काम-काथा सुन रहे थे.. कैसे एक कुंवारी शर्मीली लड़की सामने से चलकर अपने शरीर को.. खुद से दोगुनी उम्र के मर्द के हाथों में सौंप दिया..

फाल्गुनी: "चार दीवारों के बीच जब मर्द और लड़की अकेले होते है.. तब उम्र मायने नहीं रखती.. एकांत बड़ा ही भड़काने वाला होता है ये मुझे उस दिन पता चला.. अंकल का हाथ मेरे कंधे पर पड़ते ही मेरी चूत में आग सी लग गई.. "

मौसम: "मेरे समझ में ये नहीं आ रहा की तुम दोनों ऑफिस में अकेले कैसे मिले? वो चपरासी राजू तो हमेशा ऑफिस रहता है.. और वही तो ऑफिस बंद करता है"

फाल्गुनी: "मेरे वहाँ पहुंचते ही.. अंकल ने उसे कुछ लाने के लिए मार्केट भेज दिया था.. और मेरी प्यारी बेटी मौसम.. अब तक तो तुझे पता चल ही गया होगा की पुरुष के साथ एकांत में बैठने में कितना मज़ा आता है.. !! अब तो तूने भी अच्छे से सारे अनुभव कर लिए है"

मौसम: "हाँ मम्मी.. अंदर कुछ कुछ होने लगता है.. और वहीं तो सारे फसाद की जड़ है.. !!"

वैशाली: "ये कमाल पुरुष की मौजूदगी के कारण नहीं.. पर लंड और चूत के करीब आने से होता है"

फाल्गुनी: "सही कहा तूने वैशाली.. अंकल ने मुझे यहाँ वहाँ छूकर बहोत ही एक्साइट कर दिया.. आह्ह.. उनकी बातें सुनकर तो मैं पानी पानी हो रही थी.. !!"

तकिये से अपनी चूत घिसते हुए मौसम ने कहा "बताओ ना मम्मी.. क्या क्या बातें की थी पापा ने??"

अब वैशाली भी अपनी उंगलियों से फाल्गुनी की चूत छेड़ने लगी.. जैसे उसके सुराख में कुछ ढूंढ रही हो.. !! तीनों लड़कियां बेहद उत्तेजित हो गई थी.. सिर्फ एक मस्त लंड की कमी थी.. उस कमी को वो तीनों बातों से पूरा करने की भरसक कोशिशें कर रही थी..

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वैशाली की निप्पल को दबाते हुए फाल्गुनी ने सवाल किया "वैशाली.. क्या ऐसा कभी हो सकता है.. की दूर बैठ कोई व्यक्ति.. बिना कुछ कहें.. बिना हाथ लगाएं.. सिर्फ अपने हाव भाव और हरकतों से ही ऑर्गजम दे सकें?"

वैशाली: "बहोत मुश्किल है.. हाँ फोन पर सेक्स चैट करते हुए ये हो सकता है.. पर बिना कुछ कहें ये हो पाना संभव नहीं है"

मौसम: "हाँ यार.. ऐसा तो कैसे मुमकिन हो सकता है??"

फाल्गुनी: "मुमकिन हुआ था.. तेरे पापा ने कर दिखाया था उस दिन.. जब उन्हों ने मेरे बूब्स की तारीफ की.. मेरी जांघों की तारीफ की.. तब मुझे इतना अच्छा लग रहा था.. मैंने पूछा की आपको और क्या क्या अच्छा लगता है मेरे शरीर में?? वैसे वो मुझे बातों से उत्तेजित करते गए.. उस दिन मुझे पता चला की मर्दों को हमारा शरीर इतना पसंद होता है.. !!"

मौसम: "मम्मी, ये बात तो सच कही.. मर्द हमें अपनी बातों से बड़ा एक्साइट कर देते है.. जीजू ने भी अपनी बातों के जादू से ही माउंट आबू में मुझे मोह लिया था.. उन लोगों को हमारे शरीर के हर अंग में दिलचस्पी होती है"

वैशाली: "हाँ यार.. संजय को मेरे पैर बहोत पसंद थे.. वो पहले तो मेरे पैरों से अपना लंड रगड़ता रहता.. कई बार तो वो बीच चुदाई में चूत से लंड बाहर निकालता.. मेरे दोनों पैरों को जोड़कर चूत का आकर बनाकर अंदर पेल देता..

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और मेरे पैरों को उसने कितनी बार चाटा होगा.. हजारों बार मेरे पैरों पर वीर्य डिस्चार्ज किया है.. मुझे ताज्जुब होता था.. मर्दों को स्तन, चूत और गांड के लिए पागल होता देख समझ में आता है.. पर पैरों को कौन चोदता है यार.. !! पहली बार तो मैं चकित रह गई थी.. और उनकी दूसरी जानलेवा हरकत होती है उनकी किस.. आहाहाहा.. इतना मज़ा आता है जब वो किस करते है तब.. !!"

फाल्गुनी: "एक बात जरूर कहूँगी.. अंकल ने कभी भी मेरे साथ जबरदस्ती नहीं की.. पर उन्हों ने पूरा माहोल ही ऐसा बना दिया जहां हम एक के बाद एक कदम आगे बढ़ते गए और आखिर मुझे उनसे प्यार हो गया.. "

मौसम: "हम्म.. मतलब बातचीत कैसे शुरू हुई ये तो पता चल गया.. अब आगे कैसे बढ़ें वो भी बता दे"

वैशाली अब फाल्गुनी की चूत में उंगली करते हुए इतनी उत्तेजित हो गई की उसके शरीर के ऊपर पुरुष की तरह चढ़ गई.. और उसकी चूत से चूत रगड़ते हुए.. अपने बबलों को फाल्गुनी के संतरों पर घिसने लगी..


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इस सुंदर नज़ारे को देखकर फाल्गुनी ने दोनों हाथों से वैशाली के नारियल जैसे स्तनों को थाम लिया और अपना चेहरा ऊपर कर वैशाली को किस करने के लिए आमंत्रित करने लगी.. बड़ी ही जबरदस्त कामुकता के साथ वैशाली ने अपने होंठ फाल्गुनी को सौंप दीये.. फाल्गुनी उसके होंठों को चूमने और चाटने लगी..


वैशाली को अपनी मनमानी करने दे रही थी फाल्गुनी.. उसी अवस्था में उसने बात आगे बढ़ाई..

फाल्गुनी: "अब मैं अंकल के साथ काफी खुल चुकी थी.. उनकी आँखों में आँखें डालकर कुछ भी बोल देने में मुझे शर्म नहीं आती थी.. अंकल ने मुझसे प्रोमिस ले लिया था की हमारी मीटिंग के बारे में मैं किसी को न बताऊँ.. यह बात तुझसे छुपाने का आज तक अफसोस है मुझे मौसम.. पर मैं चाहकर भी ये बात तुझे बता नहीं पाई.. !! फिर उस दिन अंकल ने मुझे बहोत सारे नॉन-वेज जोक्स कहे.. और मेरी बची कूची शर्म को निकाल दिया.. पर अभी भी वो मेरे सामने लंड और चूत जैसे शब्द इस्तेमाल नहीं कर रहे थे.. बात बात में मैंने कहा की अंकल एक बार मैंने आप को फोन पर किसी को गाली देते हुए सुना था.. तो क्या आप को गाली बोलने में शर्म नहीं आई?? तो उन्हों ने कहा.. अरे.. चूतिया भी कोई गाली होती है.. फिर वो मेरे सामने ही भेनचोद और मादरचोद बोले.. और कहा की गालियों से शर्माने की कोई जरूरत नहीं है"

वैशाली: "अरे बाप रे.. !!"

मौसम: "हाँ ये बात तो सही है मम्मी.. मेरे पापा को फोन पर गालियां देते हुए तो मैंने भी बहोत बार सुना है.. कई बार तो गुस्से में मेरी मम्मी को भी गाली दे देते है.. "

वैशाली: "चोदते वक्त संजय भी बहोत गाली-गलोच करता था यार.. इतनी गंदी गंदी गालियां.. सुनकर ही घिन आ जाए.. खास कर मेरी मम्मी को लेकर इतना गंदा गंदा बोलता था वो.. !!"

फाल्गुनी: "मतलब? क्या बोलता था वो?"

वैशाली: "मेरे बूब्स दबाते हुए वो मेरी मम्मी के बूब्स की तारीफ करता था.. और जब मैं उसका लंड चुस्ती थी तब बोलता था की तेरी मम्मी भी पापा का लंड ऐसे ही चूसती होगी.. पर उस वक्त मैं इतनी गरम हो चुकी होती थी की उसकी बातों से मुझे कोई फरक न पड़ता.. !!"

मौसम: "मतलब संजय तेरी मम्मी को गालियां देता और तुझे कोई ऐतराज नहीं होता था, ये कहना चाहती है तू?? कमाल है यार.. कोई हमारी माँ को गाली दे और तब भी आपको सुनकर बुरा न लगे.. मानने में नहीं आ रहा"

वैशाली: "यार उस वक्त तो नीचे ऐसी चुनचुनी मची होती है की मन करता है.. उसे जो बोलना हो बोलें.. बस नीचे लंड डालता रहें.. एक बात बता.. जब अंकल के मुंह से पहली बार गाली सुनी थी.. तब तेरी चूत में भी कुछ कुछ हुआ था ना.. !!"

फाल्गुनी: "हाँ यार.. उन्हों ने तो फिर मेरे मुंह से भी गालियां बुलवाई.. फिर उन्हों ने कहा.. फाल्गुनी, अब हम दोनों दोस्त है.. तो एक दोस्त होने के नाते तू मुझे क्या क्या करने देगी.. ये बता दे ताकि मैं अपनी लिमिट क्रॉस न करूँ.. तो मैंने कहा.. अंकल ये सब में मुझे कुछ पता नहीं चलता.. मुझे किसी भी प्रकार की बातचीत से ऐतराज नहीं है.. इन्जॉय तो मैं भी करना चाहती हूँ.. बाकी आप इतने अनुभवी और समझदार हो.. मुझे यकीन है की आप ऐसा कोई काम नहीं करोगे जिससे मुझे या आपको कोई नुकसान हो.. अंकल ने मेरी बात मान ली और कहा की.. मेरे बॉल बहुत ही मस्त कडक है.. मेरी साइज़ पूछी उन्हों ने.. कैबिन के अंदर रूम फ्रेशनर और सिगरेट के धुएं की मिश्र गंध मुझे पागल बना रही थी.. मुझे उनके पूछने से बहोत मज़ा आ रहा था.. एक पल के लिए तो मन किया की वहीं अंकल से लिपट जाऊँ.. बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोका.. फिर अंकल ने मुझ से पूछा.. बेटा, तेरी निप्पल का रंग कैसा है??"

फाल्गुनी की गरमागरम बातें सुनकर मौसम के मुंह से उत्तेजना भरी कराह निकल गई.. ऊँहहहहह.. !!

वैशाली और फाल्गुनी ने मौसम की तरफ देखा.. वो बेकाबू होकर अपनी चूत को तकिये से पागलों की तरह रगड़े जा रही थी.. बेहद उत्तेजना का खुमार उसके सुंदर चेहरे को ओर निखार रहा था.. उसके उरोजों की गोलाई जबरदस्त दिख रही थी.. पसीने से तरबतर मौसम की निप्पल से पसीने की बूंदें टपक रही थी.. उसने आँखें बंद कर सिसकते हुए कहा "जल्दी बोल.. फिर पापा ने आगे क्या कहा.. ??" मौसम ने गहरी आवाज में पूछा

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फाल्गुनी: "वही की.. फाल्गुनी बेटा.. तेरा बदन मुझे जबरदस्त आकर्षित कर रहा है.. और तुझे देखते ही मेरे सारे शरीर में उत्तेजना फैल जाती है.. और मैं तुम्हारे जिस्म को नजदीक से देखना चाहता हो अगर तेरी इजाजत हो तो.. उनकी ये बात सुनकर मैं एकदम स्तब्ध हो गई.. थोड़ा डर भी लगा.. मैंने कहा.. अंकल मुझे ऐसा करने में डर लग रहा है.. हमने तय किया था की हम सिर्फ बातों से मजे लेंगे.. मैं शर्मा भी रही थी.. अंकल ने कहा.. मैंने सिर्फ देखने की बात कही है.. मैं तुझे हाथ भी नहीं लगाऊँगा.. अगर बिना छूए हम एक दूसरे को सिर्फ देखकर संतुष्ट कर सकते है तो उसमें बुराई क्या है??"

मौसम हांफते हुए बोली "यार मुझे तो पता नहीं चल रहा है की तूने मेरे बाप को फँसाया था या मेरे बाप ने तुझे.. !!"

वैशाली: "तू चुप बैठ.. और तकिये को गीला करना चालू रख.. हाँ फाल्गुनी, आगे क्या हुआ?"

फाल्गुनी: "और क्या होना था.. !! मुझे भी मज़ा आ रहा था इसलिए थोड़ी सी आनाकानी के बाद मैं मान गई.. पर ये कहकर की मैं लिमिट क्रॉस नहीं करूंगी"

मौसम: "बहोत सही कहा.. तू ठहरी सति-सावित्री.. तू भला कैसे लिमिट क्रॉस कर सकती है.. !!" उत्तेजना से चूत रगड़ते हुए भी मौसम ने ताना मारने का मौका नहीं छोड़ा

फाल्गुनी: "फिर मैंने अंकल से कहा.. आप क्या देखना चाहते हो.. और मैं कैसे दिखाऊँ?? मुझे कुछ पता नहीं चलता.. आप ही बताइए.. फिर अंकल ने मुझे झुककर अपने बूब्स के बीच की क्लीवेज दिखाने को कहा.. सच कहूँ तो मुझे वो दिखाने में ज्यादा हर्ज नहीं हुआ.. जाने अनजाने में हम दिन भर वैसे भी सब को दिखाते रहते है.. पर रोजमर्रा की हरकत और आज के दिन में फरक तो था.. वो मुझे अंकल की सिसकियाँ सुनकर पता चला.. मुझे बहोत शर्म आई.. वी-नेक टीशर्ट में से मैंने अपने बूब्स का ऊपरी हिस्सा झुककर अंकल को दिखाया.. देखकर थोड़ी देर तक वो कुछ नहीं बोलें.. फिर उन्होंने कहा.. भेनचोद, क्या बवाल बबले है तेरे.. !! मेरा लंड तो इन्हें देखते ही खड़ा हो गया.. अगर तूने मुझे करने की छूट दे दी होती तो मैं आज तुझे नोच कर खा ही जाता.. आह.. !! यार वैशाली, उस वक्त अंकल के चेहरे के भाव देखकर मैं तो डर ही गई.. मेरी सांसें तेज चलने लगी और साँसों के साथ मेरे बूब्स भी ऊपर नीचे होने लगे.. अंकल ने पेंट के ऊपर से ही अपने लंड का उभार मसलना शुरू कर दिया और मेरे सामने आकर खड़े हो गए.. उस उभरे हिस्से को दिखाते हुए कहा.. फाल्गुनी, तुझे पता है ना इसके अंदर क्या है? और इसका ऐसा हाल तेरे दोनों बूब्स के बीच की लकीर को देखकर हुआ है.. मैंने कहा.. मुझे पता है अंकल.. इसके अंदर आपका पेनीस है.. अंकल ने कहा.. पेनीस नहीं बेटा.. उसे लंड कहते है.. फाल्गुनी, तूने आज से पहले कभी लंड देखा है?? मैंने कहा.. नहीं देखा.. अंकल ने कहा.. तुझे देखना है?? मैंने भी कह दिया की मुझे नहीं देखना.. और मैं घर जाना चाहती हूँ.. मैं समझ गई थी की अब मैं अगर नहीं रुकी तो अंकल मुझे छोड़ेंगे नहीं.. अंकल ने कहा.. तू बेकार घबरा रही है.. ये थोड़ी बाहर निकलकर तुझे काटेगा.. !! तुझे देखना हो तो बोल.. अभी दिखाता हूँ.. वरना मैं चैन बंद कर दूंगा और ये मौका तेरे हाथ से निकल जाएगा.. !! सच कहूँ तो मेरा इतना मन था की हाँ कह दूँ.. पर शर्म के मारे बोल नहीं पाई.. !!"

वैशाली: "तेरी जगह अगर मैं होती ना.. तो अंकल को इतना तड़पने नहीं देती.. " फाल्गुनी की चूत पर जीभ फेरते हुए वैशाली ने कहा..

ये देखकर मौसम चिल्लाई "कोई मेरी चूत भी तो चाट लो.. मुझे तो एकदम अकेली कर दिया है तुम दोनों ने.. कब से आपस में ही लगी हो"

नाराज मौसम को देखकर वैशाली हँसते हँसते उसके करीब गई और मौसम के सुंदर स्तनों की निप्पल को मुंह में लेकर चूसते हुए दूसरे हाथ से दूसरा स्तन सहलाने लगी.. और बोली "अरे मेरी जान.. मेरी तो इच्छा है की तुझे एक बार रेणुका मैडम के लंड से चोदने की.. "

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मौसम: "रेणुका जी का लंड??? मतलब तू राजेश सर की बात कर रही है?? माय गॉड.. तूने उनका लंड भी चख रखा है??"

फाल्गुनी की कहानी की लिंक टूट गई.. और बात दूसरी और मुड़ गई..

वैशाली ने मौसम को बालों से पकड़ कर उसका मुंह अपनी चूत पर रख दिया.. मौसम चुपचाप वैशाली की मुनिया का रस चाटने लगी..

वैशाली: "ओह्ह यस.. आह्ह यार.. चूत चटवाने का मज़ा ही कुछ ओर है.. आह्ह जोर से चाट मेरी.. ऊई माँ.. हाँ मौसम.. हाँ वहीं पर.. अंदर तक डाल अपनी जीभ.. हाय मैं मर गई.. !! दो-तीन उँगलियाँ साथ में अंदर बाहर कर.. तो मेरा जल्दी निपट जाए.. आह्ह अब रहा नहीं जाता.. !!!"

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मौसम ने सिर्फ दो मिनट में वैशाली की चूत रस की टंकी खाली कर दी.. पर उन दो मिनटों के दौरान जो युद्ध हुआ था वो बड़ा ही खतरनाक था.. फाल्गुनी फटी आँखों से देखते हुए अपनी पुच्ची सहला रही थी और मौसम तथा वैशाली के इस गजबनाक चूत चटाई के द्रश्य को देख रही थी.. ठंडी होते ही वैशाली एक तरफ ढल गई.. फाल्गुनी तुरंत मौसम के पास आई और जांघें चौड़ी कर अपनी चूत पेश कर दी.. मौसम ने वैशाली की चूत को छोड़कर फाल्गुनी के गुलाबी पंखुड़ीनुमा चूत के होंठों को चूसना शुरू कर दिया.. चाटते हुए उसने अपने दोनों होंठों के बीच फाल्गुनी का छोटा गुलाबी दाना (क्लिटोरिस) को दबा दिया

"मर गई.. मर गई मैं तो.. हाय ये क्या कर दिया मौसम तूने.. !! उफ्फ़फफ.. क्या गजब का चूसती है रे तू.. मन करता है की पूरी ज़िंदगी तुझे अपनी चूत से चिपकाकर रखू.. आह्ह.. " अपनी निप्पलों को उंगलियों से मरोड़ते हुए फाल्गुनी सिसक रही थी..

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फाल्गुनी ने बेशर्म होकर कहा "यार, मन तो कर रहा है की बगल के कमरे से अंकल को बुला लूँ और तसल्ली से चूदवाऊँ.. आह्ह.. अब तो लंड लिए बगैर चैन नहीं मिलेगा मुझे.. !!"

चूत चाटते चाटते मौसम रुक गई और बोली "तूने कहानी अधूरी ही छोड़ दी.. ये तो बता.. की आखिर तूने पापा का लंड कब और कैसे देखा?"

फाल्गुनी: "उसके बाद की कहानी तो बड़ी उत्तेजक है मौसम.. मेरे मना करने के बावजूद अंकल समझ गए थे की मैं देखना तो चाहती थी.. उन्हों ने खोलकर तभी दिखा दिया.. सिर्फ 2 फुट दूर खड़े थे अंकल.. क्या बताऊँ यार.. !! मेरी जो हालत हुई थी उनका देखकर.. !! विकराल डरावना आकार और उत्तेजना से ऊपर नीचे हलचल कर रहे उनके लंड को देखकर मेरा तो मुंह सूख गया.. और नीचे सब गीला हो गया.. ये मेरी पुच्ची के रस की गंध पूरी ऑफिस में फैल गई थी.. लाइफ में पहली बार मैंने सख्त वयस्क लंड को देखा था.. और मेरी चूत में ऐसी खलबली मैच गई थी की अंकल के सामने ही मैंने अपनी चूत खुजाना शुरू कर दिया.. मुझे लगा की एक बार खुजाने से खुजाल शांत हो जाएगी.. मगर ये तो और बढ़ गई.. मुझसे तो बर्दाश्त ही नहीं हो रहा था वैशाली.. ऐसा लग रहा था की अगर अभी कुछ नहीं किया तो मेरी रूह जिस्म से निकल जाएगी"

फाल्गुनी की चूत चाटना भूलकर मौसम एकटक अपने पापा के लंड की कहानी सुन रही थी..

फाल्गुनी: "अरे यार.. तूने चाटना क्यों बंद कर दिया?? सारा मज़ा किरकिरा हो गया.. !!"

वैशाली: "तू भी अपनी बात चालू रख.. बीच बीच में रुक जाती है तो हमारा मज़ा भी किरकिरा हो जाता है"

फाल्गुनी: "अंकल के सामने ही मैंने चूत खुजाना शुरू कर दिया ये देखकर अंकल ने कहा.. बेटा अब मुझे भी तू अपना एक बॉल खोलकर दिखा दे.. जरा सा टीशर्ट ऊपर कर दे तो आराम से दिख जाएगा.. पहली बार उन्हों ने नरमी छोड़कर.. आदेश के सुर में कहा.. मैं चूत की खुजली और उत्तेजना के कारण इतनी बेबस हो चुकी थी की मैंने चुपचाप अपना टीशर्ट ऊपर किया और ब्रा में कैद दोनों स्तनों को दिखा दिया.. उन्हों ने कहा.. ऐसे नहीं बेटा.. मैं ठीक से देख नहीं पा रहा हूँ.. बीच में ब्रा आ रही है.. सब कुछ दिखाओ.. मैं भी तो देखूँ.. फाल्गुनी की चोली के पीछे क्या है!! मौसम.. तेरे पापा का एक एक शब्द जैसे मुझे अपना ग़ुलाम बना रहा था.. चाहकर भी मैं उन्हें किसी बात के लिए मना नहीं कर पा रही थी.. मैंने ब्रा ऊपर कर दी और जीवन में पहली बार किसी को अपनी नंगी चूचियाँ दिखाई.. !!"

वैशाली: "तेरे ये कडक अमरूद देखकर अंकल के लंड की तो हालत खराब हो गई होगी.. !!

फाल्गुनी: "उनके लंड को छोड़.. हालत तो मेरी चूत की खराब हो गई.. वैशाली.. मुझे समझ ही नहीं आ रहा था की नीचे छेद में इतनी तेज खुजली क्यों हो रही है.. और क्यों खुजाने पर भी शांत नहीं हो रही है.. !! मैं जितना उसे सहलाती उतना ही और भड़कती.. आखिर मुझे अंकल से कहना पड़ा.. अंकल.. मुझे नीचे कुछ हो रहा है.. और मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. उन्हों ने मुझसे कहा.. बेटा तू अपनी पेन्टी उतार दे.. और अपनी बीच वाली उंगली को छेद के अंदर तेजी से अंदर बाहर कर.. उस दौरान अपनी चूचियों को भी दबाते रहना.. तेरी खुजली शांत हो जाएगी.. !!"

वैशाली: "अच्छा.. !! मतलब तुझे चोदने से पहले अंकल तुझे मास्टरबेट करते हुए देखना चाहते थे.. !!"

फाल्गुनी: "हाँ वैशाली.. खुजली से परेशान होकर मैंने तुरंत अपनी चड्डी उतार फेंकी और सोफ़े पर बैठकर फिंगरिंग शुरू कर दिया.. जो मज़ा आया था.. उतना मज़ा की बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है.. "

मौसम: "फिर?? पापा के डंडे का क्या हुआ?"

वैशाली: "इसे तो बस अपने पापा के लंड में ही दिलचस्पी है.. !!"

फाल्गुनी: "मुझे उंगली करते देख.. उन्हों ने भी अपना लंड हिलाना शुरू किया.. और थोड़ी देर हिलाने पर उनकी पिचकारी निकल गई.. मेरे पैरों के पास बूंदें आकर गिरी.. और वो हांफते हुए कुर्सी पर बैठ गए.. मेरा भी पानी निकल गया.. और उनका भी.. !!"

फाल्गुनी ने कहानी के एक अध्याय का समापन किया तभी वैशाली को कुछ याद आया

वैशाली: "अरे यार.. मेरे पास एक गजब की आइटम आई है" फाल्गुनी और मौसम को लंड लेने के लिए फुदकते देख वैशाली ने आखिर बता दिया

फाल्गुनी: "कौनसी आइटम?"

वैशाली ने फाल्गुनी की कलाई पकड़कर मोटाई दिखाते हुए कहा "इससे भी मोटा रबर का डिल्डो.. कहाँ से लाई ये मत पूछना"

मौसम: "डिल्डो? वो क्या होता है?"

वैशाली: "अभी तूने जो जीजू को अंदर लिया था न.. बस वही होता है डिल्डो.. दिखने में सैम टू सैम.. पर रबर का बना होता है.. देख.. अभी हम तीनों मजे तो कर रहे है पर बिना लंड के हमारे छेदों को तृप्त करना मुमकिन नहीं है, यह तो हम सब भी जानते है.. ये डिल्डो में बेल्ट लगा हुआ है.. उसे पेन्टी की तरह पहनते है.. पहनते ही लंड तैयार.. मोटा तगड़ा.. इतना जबरदस्त है यार.. !!"

मौसम: "ओह्ह अच्छा.. याद आया.. और कहाँ मिलता है ये भी मुझे पता है" मौसम को माउंट आबू की सेक्स-शॉप की मुलाकात याद आ गई

फाल्गुनी: "अब तुझे ये सब कैसे पता? तू भी कम नहीं है मौसम.. !!"

मौसम: "तुझे तो जब चाहे असली लंड मिल जाता है इसलिए तुझे जरूरत नहीं पड़ती.. पर मुझे तो ऐसे जुगाड़ से ही काम चलाना पड़ता है"

वैशाली: "मौसम, अब तो तेरे पास दो-दो असली लंड है.. इसलिए तुझे भला रबर के लंड की क्या जरूरत? जरूरत तो मुझे है.. अड्रेस बता.. मैं लेकर आऊँगी.. नया वाला"

मौसम: "तू मेरी चूत चाट.. तभी अड्रेस बताऊँगी"

वैशाली: "हरामखोर, रबर के लंड के लिए ब्लैकमेल कर रही है.. अगर असली लंड शेर करना होता तो पता नहीं और क्या क्या मांग लेती मुझसे.. !!"

फाल्गुनी: "असली लंड के बदले में, मौसम तुझसे अपनी गांड चटवाएगी.. !!"

वैशाली: "अगर असली लोडा मिलने वाला हो तो मैं वो करने के लिए भी तैयार हूँ"

वैशाली ने मौसम पर तरस खाकर उसे बेड पर लिटा दिया और उसके पैर खोलकर चूत को चाटना शुरू कर दिया.. पिछले एक घंटे से तड़प रही मौसम की चूत को थोड़ा चैन मिला.. गांड ऊंचक्कर उसने अपनी चूत वैशाली के चेहरे से दबा दी.. और चूत पर वैशाली की जीभ की गर्मी महसूस करने लगी.. फाल्गुनी भी मौसम के बगल में लेट गई.. और उसके एक स्तन को पकड़कर निप्पल चूसने लगी..

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"ओह माय गॉड.. फाल्गुनी, तू तो बिल्कुल जीजू की तरह चूसती है.. आह्ह.. जरा निप्पल पर बाइट कर.. और जोर से दबा.. मसल दे यार.. ओह्ह"

फाल्गुनी मौसम के स्तन पर और वैशाली उसकी चूत पर जबरदस्त प्रहार कर रहें थे.. दो-तरफा आनंद से उत्तेजित होकर वो स्खलन की ओर बड़ी ही जल्दी से पहुँच गई..

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"ओह्ह यस.. फाल्गुनी.. चूस यार मेरी निप्पल.. काट ले उसे.. ऊई माँ.. वैशाली और अंदर डाल अपनी जीभ.. मेरे दाने को चबा जा.. ऊँह.. आह्ह.. जल्दी.. जल्दी.. दो उँगलियाँ डाल.. एकदम फास्ट अंदर बाहर कर यार.. ओह्ह आह्ह.. मज़ा आ रहा है" हवस अब मौसम के सर चढ़ कर बोल रही थी.. वैशाली उसकी क्लिटोरिस को खुरदरी जीभ से कुरेदते हुए अपनी दो उँगलियाँ तेजी से अंदर बाहर कर रही थी.. आँखें बंद कर मौसम अपने जीजू के साथ किए हुए सेक्स को याद करते हुए.. फाल्गुनी के हाथ को अपने स्तन पर मजबूती से दबाकर.. थरथराते हुए झड गई.. !!!!

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हल्की सी खुली हुई खिड़की से सुबोधकांत.. इन तीनों सुंदरियों की शारीरिक छटपटाहट अपनी आँखों से भोग रहे थे.. मौसम को नंगी देखकर उनके जिस्म में एक विचित्र सा रोमांच हो रहा था.. उनका हाथ अपने लंड पर पहुँच गया.. तीन अलग अलग साइज़ और आकार के स्तनों के बीच.. रूप के समंदर को निहारते हुए सुबोधकांत जैसे रंगीन मिजाज इंसान के मन में जो होना चाहिए वो सब हो रहा था..

अचानक मौसम की नजर, हल्की सी खुली हुई खिड़की पर पड़ी.. खिड़की के उस तरफ एक साया नजर आ रहा था.. जो लगातार किसी कारणवश हिल रहा था.. मौसम को समझने में देर नहीं लगी की कोई उनकी काम-लीला को देख चुका था और अंधेरे में लंड हिला रहा था.. मौसम को लगा की वो पक्का पीयूष जीजू ही होंगे..

मौसम के ऊपर चढ़कर उसके स्तन चूस रही वैशाली को धीरे से उसने कहा "वैशाली.. वहाँ खिड़की के पीछे से कोई हमें देखकर हिला रहा है.. मुझे लगता है की जीजू ही होंगे"

वैशाली ने चुपके से कनखियों से देखकर कहा "हाँ यार.. कोई तो खड़ा है वहाँ..!!" फिर उसने तसल्ली से खिड़की की तरफ देखा और कहा "मौसम, वो तेरे जीजू नहीं बल्कि तेरे पापा है"

"क्या.. !!!!! क्या बात कर रही है यार?? पापा ने मुझे ऐसे देख लिया.. !!" तुरंत चादर खींचकर अपना नंगा जिस्म छिपा लिया मौसम ने.. तब तक तो सुबोधकांत ने अपनी बेटी के नग्न सौन्दर्य को देखते हुए पिचकारी भी मार दी थी.. और अब वो वहाँ ज्यादा देर रुकना नहीं चाहते थे.. अपने झड़ चुके लंड को फिर से पैक करके वो वहाँ से निकल गए और अपने कमरे में जाकर सो गए

मौसम की चूत, सगाई की अगली रात ही दो बार झड़ कर शांत हो चुकी थी.. फाल्गुनी और वैशाली भी एक एक बार झड़ गए थे.. थोड़ा सा नॉर्मल होने के बाद फाल्गुनी ने वैशाली को उस रबर के लंड के बारे में पूछा.. वैशाली ने अनुभवी शिक्षिका की तरह उसको सारे जवाब दीये..

जब फाल्गुनी और वैशाली ने बार बार मौसम से पूछा तब मौसम ने बताया की तब उसने बताया की रेणुका के लिए गिफ्ट लेने गए थे तब उसने और जीजू ने सेक्स शॉप में ये सब देखा था..

तीनों लड़कियां शांत होकर.. एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर सो गई..
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
क्या इससे भी खतरनाक कामुक और उत्तेजक हो सकता हैं ?
जबरदस्त अपडेट
 

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Supreme
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मौसम दरवाजे से बाहर गई तब तक पीयूष उसे पीछे से देखता रहा.. आँखें नम हो गई.. और सब धुंधला दिखाई देने लगा.. थोड़ी देर पहले का कामुक वातावरण अब विषादपूर्ण हो चुका था.. जुदाई हमेशा गम साथ लेकर आती है.. चुपचाप धीरे धीरे जा रही मौसम को वो ऐसे देख रहा तहा जैसे वो वर्तमान को त्यागकर भविष्य की ओर चल पड़ी हो.. !! उसके हर कदम पर पीयूष का दिल बैठा जा रहा था..

जाने से पहले वो पलट कर एक बार मेरी तरफ देखेगी?? एक आखिरी बार उसके हसीन चेहरे को दिल भरकर देखना चाहता हूँ.. पर शायद नहीं पलटेगी..

या पलटेगी.. !!

नहीं पलटेगी शायद.. !!

क्यों पलटेगी भला.. पलटना भी नहीं चाहिए.. !! मैं तो अब उसके लिए गुजरा हुआ वक्त हूँ.. !! असह्य कश्मकश से गुज़रता हुआ पीयूष सांस रोके खड़ा था.. आँखों के रास्ते रूह निकल जाए उतनी आतुरता से वो मौसम के पलटने का.. बिना पलक झपकाए इंतज़ार कर रहा था..

ब्याह कर ससुराल जाती लड़कियां.. अपने मायके की कितनी हसीन यादें अपने दिल में दफन कर जाती है.. औरतों को ये कला कुदरत ने बक्शी होगी?? दरवाजे तक पहुँच चुकी मौसम के अंदर.. अभी भी अपनी प्रेमिका को तलाश रहा था पीयूष.. दो कदम और आगे जाते ही वो लक्ष्मण-रेखा के उस पार पहुँच जाएगी.. जहां पहुँचकर वो उसे भी भूल जाएगी.. धड़कते दिल के साथ पीयूष उसे देखता ही रहा..

दरवाजे से बाहर निकलकर मुड़ने से पहले.. मौसम ने आखिर पलटकर देखा.. दोनों की उदास नजरें एक हुई.. एक फीकी सी मुस्कान के साथ मौसम की और देख रहे पीयूष की आँखों से एक आँसू टपक पड़ा..

कुछ दिन पहले पीयूष को पिंटू ने एक शेर सुनाया था, वो याद आ गया उसे..

.. वो पलट कर जो देखेगी, तो ज़माना थम जाएगा,
मिलेंगे फिर कभी, पर वो पहली मोहब्बत सा ना हो पाएगा।।

मौसम की आँखों मे एक अजीब सा सुकून ढूँढने लगा पीयूष.. उसकी सांसें अब धीमी पड़ रही थी.. पर उस आखिरी बार पलट कर देखने से पीयूष इतना खुश हुआ की इतना खुश तो वो मौसम को पाकर भी नहीं हुआ था.. मौसम के कांपते गोरे होंठ.. गोरे गुलाबी गाल... लाल अधर.. हिरनी जैसी गर्दन.. पीयूष बिना पलक झपकाए उसे देखता ही रहा

जीजू को एक आखिरी बार देखते हुए मौसम को याद आया.. जीजू उसे कितनी बेकरारी से किस करना चाहते थे.. !! पर लिपस्टिक खराब हो जाने के डर से उसने किस नहीं कर दिया.. फाल्गुनी का हाथ छुड़ाकर वो भागकर पीयूष की तरफ आई और उसे गले लगाकर.. बिना लिपस्टिक की परवाह किए.. उसे चूमने लगी.. चूमते चूमते रो पड़ी..

"आई लव यू जीजू.. "

"मौसम, चाहें थोड़ा सा ही करना.. पर याद जरूर करना मुझे" पीयूष भी बस इतना ही बोल पाया

"अलविदा जीजू... आप के साथ बिताया एक एक पल, मैं ज़िंदगी भर नहीं भूल पाऊँगी.. आई विल लव यू फोरेवर.. गुड बाय जीजू" मौसम ने कहा

फाल्गुनी ने तुरंत मौसम के कपड़े और लिपस्टिक ठीक कर दीये और दोनों नीचे चले गए

फाल्गुनी और मौसम सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आ रही थी.. बिल्कुल उसी वक्त... पिंटू के साथ काफी देर से बात कर रही वैशाली ने कहा "मुझे अपने जीवन में तुम्हारे जैसे ही फ्रेंड और फिलोसॉफर की तलाश थी.. क्या तुम मेरे हमसफ़र बनोगे??"

कविता मौसम के करीब जाकर खड़ी हो गई.. एकदम खुश लग रही कविता के सामने देखकर पिंटू सोच रहा था की वैशाली की बात का क्या जवाब दिया जाए..

काफी सोचने के बाद पिंटू ने कहा "वैशाली, आप के साथ जो कुछ भी घटा है.. इसके लिए मेरे दिल में बहोत हमदर्दी है.. आप जब चाहे मुझे किसी भी काम के लिए.. किसी भी वक्त.. दोस्त समझकर कॉल कर सकती है.. !!" इतना कहकर पिंटू ने वैशाली से हाथ मिलाया.. और पानी पीने जाने के बहाने उठकर खड़ा हो गया.. वैशाली ने इतने खुलकर ऑफर करने के बाद भी.. पिंटू एकदम जेन्टलमेन की तरह पेश आया.. यह देखकर.. वैशाली की आँखों में पिंटू की इज्जत ओर बढ़ गई.. !!

मौसम के जाने के बाद.. पीयूष सोफ़े पर बैठे बैठे बहोत रोया.. !! प्यार या प्रेम, सुख देता है.. ये मानने वाले महा-मूर्ख होते है.. हकीकत में, प्रेम की झोली में सुख की भिक्षा मिलती ही नहीं है.. जिसके पास जो चीज होती है.. वही दे पाता है.. इतनी सामान्य सी बात न समझने वाले, ऐसे लोगों के सामने प्रेम की अपेक्षा से झोली फैलाए बैठे रहते है.. जिनके पास देने के लिए गम, धोखा, दर्द और निराशा के अलावा ओर कुछ नहीं होता..

सृष्टि के सर्जन से लेकर आज तक.. ऐसे कौनसे इंसान को आपने देखा जो प्यार में पड़ने के बावजूद हमेशा खुश हो.. !! यही तो इस बात का सब से बड़ा प्रमाण है.. यह सब कुछ जानने के बावजूद लोग प्यार में पड़ते है.. और हँसते हँसते सारे गम, पीड़ा और निराशा को गले लगा लेते है.. क्योंकी शुरुआत में प्रेम आपको सुख का भ्रम दिखाकर इतनी जबरदस्त रोमांचक पलों की भेंट देता है की प्यार करने वाला, अपनी बाकी की ज़िंदगी, उन्हीं पलों को फिर से पाने की उम्मीद लगाए, अपनी बाकी ज़िंदगी हँसते हँसते दर्द में काट लेता है.. और वो हसीन पल, फिर कभी लौटकर नहीं आते.. !!

पीयूष के लिए.. मौसम की जुदाई बर्दाश्त करना बहोत मुश्किल था.. काफी प्रयत्नों के बाद वो खड़ा हुआ और वॉश-बेज़ीन के पास जाकर आईने में अपने चेहरे को देखने लगा.. और खुद से बातें करने लगा.. ये क्या हाल बना रखा है? तू मौसम की मंगनी में आया है या मैयत में?

रो रो कर उसकी आँखें सूजी हुई और लाल हो गई थी... चेहरे पर उदासी के बादल छाए हुए थे.. हथेली में ठंडा पानी लेकर चेहरे को धोने के बाद.. उसे थोड़ी ताजगी का एहसास हुआ.. ठंडे पानी ने चमत्कारिक औषधि जैसा काम किया..

कितनी ताकत होती है पानी में.. !! कैसी भी उदासी हो, एक पल के अंदर ताजगी में परिवर्तित करने का गुण होता है पानी में.. नींद से उठे हुए आदमी को, हकीकत में जगाने का काम पानी ही तो करता है.. दुख और उदासी जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाएँ.. तब उन्हें हल्का करने का काम भी पानी ही करता है.. आँखों से बहकर.. दिल का बोझ हल्का करने का अमोघ शस्त्र.. रुदन.. ये भी तो पानी बहाकर ही होता है.. !!

कमरे से बाहर आकर.. पीयूष ने नीचे का नजारा देखा.. सारे मेहमान गोल बनाकर बैठे थे.. बीच में तरुण और मौसम एक एक आसन पर बैठे हुए थे.. पण्डितजी बैठकर कुछ विधि कर रहे थे.. तरुण ने सुंदर से रिमलेस चश्मे पहन रखे थे.. और उसके कारण उसका चेहरा थोड़ा सा गंभीर और मेच्योर लग रहा था.. कोई भी पहली नजर में देखकर कह सकता था की यह लड़का पढ़ाई में अव्वल होगा.. तरुण और मौसम की जोड़ी.. "मेईड फॉर इच अधर" जैसी दिख रही थी.. तरुण को मौसम के करीब बैठे देखकर.. पीयूष ईर्ष्या की आग में जलने लगा.. तरुण की बगल में बैठी सहमी सी मौसम को वो काफी देर तक देखता रहा.. देखकर कौन अंदाजा लगा पाता.. की शालीन और संस्कारी होकर बैठी यह लड़की.. आधे घंटे पहले अपने बहनोई के लंड से चुदकर बैठी थी.. !! कीसे पता चलता की अभी थोड़ी देर पहले वो झुककर अपने जीजू के लंड को चूस रही थी.. !!

सब की तरफ देख रहे पीयूष की नजर कोने में बैठे पिंटू, वैशाली और कविता पर गई.. और वही स्थिर हो गई.. ऊपर खड़े पीयूष को दिख रहा था की कविता की छातियों की नोक.. पिंटू के कंधों को छु रही थी.. लेकिन भीड़भाड़ वाली जगह पर तो ऐसा अक्सर होता है.. इसलिए पीयूष ने उस बात को ज्यादा दिल पर नहीं लिया.. कमरे के दूसरे कोने मे शीला, मदन, राजेश सर, रेणुका और सुबोधकांत बड़ी ही सौजन्यशील मुद्रा में खड़े हुए थे.. तमाम लोगों के बीच.. एक मात्र शीला ऐसी थी.. जो अपने हुस्न के जलवों से पूरे कमरे को रोशन कर रही थी.. मेहमानों में जो पुरुष थे वह सारे.. बार बार.. किसी न किसी बहाने.. शीला को नजरें भरकर देख रहे थे..

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पीयूष नीचे उतरकर कमरे में आया.. और तरुण तथा मौसम के पीछे खड़ा हो गया

कमरे के कोने में खड़ी शीला ने रेणुका का हाथ पकड़ते हुए कहा "चल बाहर चलते है.. यहाँ कितनी गर्मी हो रही है.. बाहर आराम से बातें करेंगे"

दोनों हाथ पकड़कर बाहर आए.. और घर के बागीचे में कुर्सी पर बैठे बैठे बातें करने लगे

रेणुका: "सुबोधकांत ने घर तो बड़ा ही शानदार बनाया है.. रंगों का कॉम्बीनेशन भी गजब का है"

शीला: "वो खुद भी इतने ही रंगीन है.. मकान तो रंगीन होगा ही"

रेणुका: "हा हा हा.. लगता है.. सुबोधकांत के रंगों का लाभ तूने भी ले लिया है"

शीला: "तो उसमें गलत क्या है?? अब ये मत पूछना की कैसे.. तू भी सयानी बन रही है.. पर अभी वो आकर अपना लंड दिखा देंगे तो तू यहाँ ही चूसने बैठ जाएगी.. मैं तो सीधी बात करती हूँ हमेशा.. !!"

रेणुका: "अरे, मैंने कब कहा की कुछ गलत है.. पर लगता है की मदन भैया के आने के बाद तेरे गुलछर्रे बंद हो गए है"

शीला: "हाँ यार.. उस लाइफ को तो मैं भी बड़ा मिस कर रही हूँ"

रेणुका: "मुझे तेरी भूख का अंदाजा है.. तो अब गुजारा कैसे चलता है तेरा??"

शीला: " कुछ नहीं यार.. फिलहाल मदन से काम चला रही हूँ.. बाहर की बिरियानी अब नसीब नहीं होती.. और जगह भी तो नहीं है कोई.. अब तो वैशाली भी हमारे साथ ही रहेगी.. इसलिए मुझे अब वो पुरानी वाली सारी आजादी हमेशा के लिए भूल जानी पड़ेगी"

रेणुका: "क्यों भूल जानी पड़ेगी.. !! तेरे घर मुमकिन नहीं है तो क्या हुआ.. !! मेरा घर अक्सर खाली रहता है.. राजेश जब भी शहर से बाहर जाता है तब घर पर अकेले बैठे बोर होती रहती हूँ.. तुझे जब मौका मिलें तब मेरे घर चली आना"

शीला: "वो तो ठीक है.. पर तेरे घर आकर क्या करूँ?? हम दोनों साथ बैठकर क्या भजन करेंगे?"

रेणुका: "अरे यार.. भजन नहीं.. भोजन करेंगे.. तुझे जिसे लेकर आना हो, चली आना.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है.. और मैं तुझसे हिस्सा भी नहीं मांगूँगी"

शीला: "यार रेणुका... मुझे हिस्सा देने में भी कोई हर्ज नहीं है.. भूखा मरने से तो बेहतर है की हमारे पास जो हो वो सब मिल बांटकर खाएं.. कभी मेरे पास कुछ नहीं होगा तब तुझसे मांग लूँगी.. संसार ऐसे लेन-देन से ही तो चलता है"

रेणुका: "हम्म.. तो अभी किस के साथ मजे कर रही है?"

शीला: "किसी के साथ नहीं यार.. मदन हमेशा आसपास होता है.. कुछ भी कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता"

रेणुका: "पर कोई तो होगा.. जिसे लेकर तू मेरे घर आ सके"

शीला: "वैसे नमूने तो बहोत सारे है.. खासकर मेरा दूधवाला रसिक.. बेचारा बहोत तड़प रहा है मेरे बगैर.. आशिक हो गया है मेरा.. मन तो मेरा भी बहोत करता है पर क्या करूँ!! जब वो दूध देने आता है तब मदन अंदर के कमरे में सो रहा होता है.. फिर भी वो कभी बबले दबा देता है तो कभी अपना खोलकर हाथ में थमा देता है.. साले का इतना मस्त मोटा गधे जैसा लंड है यार.. !! उसके दो दोस्त है.. रघु और जीवा.. उन दोनों के फोन नंबर है मेरे पास.. पर साले एक नंबर के नशेड़ी है.. दारू पीकर उन्हें खुद होश नहीं रहता की कौनसे छेद में डालना है.. और उन्हें बुलाना हो तो पहले से प्लैनिंग जरूरी है.. वक्त भी ज्यादा चाहिए"

रेणुका: "अरे हाँ याद आया.. वो तेरा दूधवाला.. जिसकी बीवी पेट से थी.. !!"

शीला: "हाँ वही.. अब तो उसका बच्चा भी हो गया.. साला जोरदार है रसिक.. बस एक बार चुदवा लो तो ज़िंदगी भर याद रह जाए"

रेणुका: "शीला, यार मेरे घर उसका सेटिंग कर दे.. मैं भी तो एक बार तेरे दूध वाले को चख कर देखूँ"

शीला: "हाँ करती हूँ कुछ.. अभी तो यहाँ मेरी नजर सुबोधकांत पर है.. पिछली बार जब हम वैशाली को लेने के लिए आए थे.. तब यहाँ गराज में ही उन्होंने मुझे झुकाकर जो शॉट लगाए थे.. आहाहाहा.. आज भी मेरी चूत उस चुदाई को याद कर डकार मार लेती है.. पर अभी इतने सारे मेहमान है.. चांस मिलना मुश्किल है"

तभी सुबोधकांत.. दो कामुक चूतों की गंध परखते हुए बाहर बागीचे में आ गए और बोले "सगाई की विधि खत्म हो गई.. चलिए खाना खाने चलते है"

"आपने घर बहोत बढ़िया बनाया है" रंगीन सुबोधकांत के साथ परिचय बढ़ाने के इरादे से रेणुका ने कहा

"थेंकस.. वैसे आप जैसों की मौजूदगी से मेरे गार्डेन की शोभा बढ़ गई.." शीला के भव्य स्तनों को देखते हुए सुबोधकांत ने कहा.. "बागीचे के फूलों की कोई तुलना ही नहीं है.. आपकी सुंदरता के सामने"

शीला: "अच्छा.. !! आप को कैसे फूल देखना पसंद है"

रेणुका: "अरे शीला.. इतना भी नहीं समझती..?? भँवरा हमेशा उसी फूल के पास जाता जिसमें रस ज्यादा हो.. "

शीला: "ओह्ह.. मुझे ये समझ नहीं आता की पुरुषों की तुलना हमेशा भँवरे से ही क्यों की जाती है?"

सुबोधकांत: "इसलिए क्योंकी फूलों की सच्ची कदर सिर्फ भँवरा ही कर सकता है.. अगर भँवरा न हो तो फूल किस काम का?? और एक बात बता दूँ आपकी जानकारी के लिए.. पुरुषों की तुलना सिर्फ भँवरे के साथ ही नहीं की जाती.. सांड और घोड़े के साथ भी की जाती है.. अलग अलग मामलों में उनकी ताकत और प्रदर्शन के अनुसार उनकी तुलना अलग अलग प्राणियों से की जाती है.. " सुबोधकांत ने द्विअर्थी संवादों का दौर जारी रखा और साथ ही साथ अपनी चोदने की शक्ति का प्रदर्शन भी कर दिया

"बात तो आपकी सही है.. पर फिलहाल हम भँवरे की जो उपमा देते है.. उसकी बात कर रहे है.. भँवरा अपनी पसंद के फूल पर ही मंडराता है ये तो समझ में आता है.. पर अगर फूल को कोई भँवरा पसंद आ जाएँ तो??" शीला ने सिक्सर लगा दी..

सिर्फ थोड़ी देर के लिए एकांत मिला था.. उसमें जीतने हो सकें उतने दांव खेल लेने के लिए शीला तैयार थी.. उसे पता था की रेणुका की मौजूदगी के कारण सुबोधकांत कुछ कह या कर नहीं पा रहें.. वरना पिछली बार की गराज की मुलाकात की यादें ताज़ा करने का अच्छा मौका था.. अगर थोड़ी देर के लिए भी रेणुका चली जाए.. तो अभी सुबोधकांत को कोने में ले जाकर, अपने दोनों स्तनों के बीच की खाई में गायब कर दूँ.. !!

सुबोधकांत: "उसका भी उपाय है.. अगर फूल को कोई भँवरा पसंद आ जाएँ.. तो उस भँवरे का मोबाइल नंबर ले लेना चाहिए.. और मौका मिलने पर उसका इस्तेमाल करना चाहिए... सिम्पल.. !!

सुबोधकांत भी शीला जीतने ही बेकरार थे.. कल से वो शीला की आँखों के हावभाव में छुपे हुए आमंत्रण को देख पा रहे थे.. सुबोधकांत के उत्तर से शीला रोमांचित हो गई.. सुबोधकांत की बात को आगे बढ़ाने की स्पीड काबिल-ए-तारीफ थी.. जरा भी वक्त नहीं गंवाया उन्हों ने.. अगर इसी गति से बात आगे बढ़ी तो शाम तक कुछ सेटिंग होने की गुंजाइश थी..

सुबोधकांत: "बाय ध वे.. आप दोनों के पास मेरा मोबाइल नंबर तो होगा ही.. अगर नहीं है तो मुझसे ले लेना.. और अगर आपको मेरा न लेना हो.. तो आप मुझे आप दोनों का नंबर दे देना.. कुछ अनमोल पुष्प अगर बागीचे में ना हो तो कोई बात नहीं.. पर उनका नंबर पास होना चाहिए.. कम से कम मोबाइल पर बात करके तो उनकी खुशबू का आनंद लिया जा सके"

रेणुका को सुबोधकांत ने अपना लेटेस्ट आईफोन १६ मोबाइल अनलॉक करके दे दिया.. रेणुका को समझ नहीं आया की क्या करना था.. पर शीला समझ गई.. की सुबोधकांत उनका नंबर मांग रहा था.. रेणुका के हाथ से मोबाइल लेकर शीला ने अपना नंबर डायल किया.. और रिंग बजते ही कट कर दिया..

तभी वहाँ रमिलाबहन आ पहुंची "अरे, तुम लोग यहाँ गप्पे लड़ा रहे हो.. !! सारे मेहमान राह देख रहे है.. अंदर चलिए" सुबोधकांत का हाथ पकड़कर खींचते हुए वो उन्हें अंदर ले गई

रेणुका: "तू हमेशा सब बातों में एक कदम आगे ही रहती है.. अब मैं अपना नंबर उनको कैसे भेजूँ? कुछ जुगाड़ लगाना पड़ेगा.. वैसे आदमी है बड़ा ही दिलचस्प" दोनों हँसते हँसते अंदर गए..

"प्लीज, आप लोग पहले खाना खा लीजिए.. बातें तो होती रहेगी" शीला और रेणुका को बातें करते देख सुबोधकांत ने करीब आकर कहा

शीला और रेणुका ने प्लेट ले ली.. दोनों खाना खाने लगे.. सुबोधकांत भी उनके साथ ही खड़े थे..

रेणुका: "अरे शीला.. पता नहीं मैंने अपना मोबाइल कहाँ रख दिया.. !! जरा मुझे मिस-कॉल करना तो.. !!"

शीला: "देख नहीं रही तुम.. खाना खा रही हूँ.. हाथ गंदे है मेरे"

सुबोधकांत: "अरे कोई बात नहीं.. मैं हूँ ना.. !! आप नंबर बताइए.. !!"

रेणुका ने अपना नंबर कहा.. सुबोधकांत ने डायल करते ही रेणुका के पर्स में ही रिंग बजी.. रेणुका ने शीला की तरफ देखकर आँख मारी

रेणुका: "अरे, ये तो मेरे पर्स में ही था.. मैं भी भूल गई थी.. खामखा आपको तकलीफ दी.. !!"

सुबोधकांत: "अरे इसमें तकलीफ की क्या बात है!!" रेणुका का नंबर सेव करते करते उन्हों ने कहा
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पिंटू के विचारों से वैशाली धीरे धीरे प्रभावित हो रही थी.. दोस्ती अक्सर पौधे जैसी होती है.. कभी कभी मिट्टी, खाद और पानी.. सब कुछ ठीक होने पर भी पौधा नहीं खिलता.. और कभी कभी सड़क के किनारे.. बिना किसी देखभाल के भी खिल उठता है.. पिंटू की मित्रता भी कुछ ऐसी ही थी.. ना वैशाली ने कुछ प्रयत्न किया था.. और ना ही पिंटू ने.. सामान्य बातचीत से शुरू हुआ उनका व्यवहार कब दोस्ती में पलट गया.. दोनों को पता ही नहीं चला.. वैशाली अब निःसंकोच पिंटू से बातें करती थी.. ऊपर से, अब वो उनके ऑफिस भी नियमित रूप से जाने लगी थी.. संजय नाम का पन्ना अब उसकी ज़िंदगी की किताब से धीरे धीरे पलट रहा था और जो नया पन्ना खुला था उस पर हल्का हल्का पिंटू का नाम लिखा हुआ नजर आ रहा था..

कविता, फाल्गुनी, पीयूष और पिंटू.. सब खाना खाने में व्यस्त थे.. वैशाली भी उनके साथ जुड़ गई.. मज़ाक मस्ती.. हंसी-ठिठोली के बीच.. मौसम की मंगनी बड़े ही आराम से पूर्ण हो गई.. शहर में रहते मेहमान भी चले गए थे.. अब बाकी सारे लोगों की वापिस लौटने की बारी थी

रेणुका: "शीला, एक काम करते है.. एक गाड़ी बच्चों को दे देते है.. और दूसरी गाड़ी में हम सब साथ चलते है.. वो सब आराम से बातें करेंगे और हमें भी मज़ा आएगा"

राजेश: "बिल्कुल सही कह रही है रेणुका.. पीयूष, ये लो मेरी इनोवा की चाबी.. आप सब साथ चले जाओ.. हम लोग मदन भैया की गाड़ी में आएंगे"

दोनों ही गाड़ियां चल पड़ी.. फाल्गुनी और मौसम, फिर से अकेले रह गए

एक रात में कितना कुछ घट गया.. !! शादी की रात दुल्हन के लिए यादगार होती है.. पर मौसम के लिए तो सगाई की पिछली रात हमेशा ही याद रहने वाली बन गई थी..

सुबोधकांत: "ये ले बेटा फाल्गुनी.. ये टिफिन अंदर गाड़ी में रख दे.. हमारे ऑफिस के प्युन को देकर आते है.. !!" सुबोधकांत ने एक साथ.. ऑफिस के प्युन, फाल्गुनी की चूत और अपने लंड.. तीनों की भूख मिटाने का बंदोबस्त कर दिया

फाल्गुनी मौसम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. पर मौसम ने ताना मारने का मौका नहीं छोड़ा "पापा का लंड एकदम मस्ती से चूसना.. वैसे भी जीजू का देखकर, तू कभी से गरम हो चुकी है"

नजरें झुकाकर मुसकुराते हुए फाल्गुनी सुबोधकांत की कार में बैठ गई.. उसकी चूत में.. पीयूष का लंड देखकर.. और मौसम को घोड़ी बनकर चुदते देखकर.. गजब की अफरातफरी और खलबली मची हुई थी.. उसे शांत करने का समय आ गया था.. जाते जाते उसकी और मौसम की नजरें चार हुई... मौसम ने उसे आँख मारी.. और फाल्गुनी शरमाकर मुस्कुराई.. सारे मेहमानों को विदा करके सुबोधकांत की कार उनकी ऑफिस की दिशा में चल पड़ी

जैसे ही गाड़ी सोसायटी से बाहर निकली, सुबोधकांत ने फाल्गुनी के दोनों स्तनों को मसलकर रख दीये.. "गजब की सुंदर लग रही है इस ड्रेस में तू.. मन तो कर रहा था की सब के सामने से तुझे उठाकर ऑफिस ले जाऊँ और पटककर चोद दूँ.. !!"

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सुनते ही फाल्गुनी बहोत गरम हो गई..उसने कहा "अंकल, आप भी सूट में बड़े हेंडसम लग रहे थे.. मेरा भी बहोत मन कर रहा था.. नीचे तो जैसे बुखार सा चढ़ गया है..!!"

बीस मिनट के ड्राइविंग के बाद दोनों ऑफिस पहुंचे.. ऑफिस पर चपरासी के अलावा और कोई नहीं था.. सुबोधकांत ने उसे टिफिन दिया.. और एक अड्रेस देते हुए कहा की.. वहाँ जाकर पार्टी से चेक लेना है.. उसके जाते ही.. फाल्गुनी कूदकर सुबोधकांत की गोद में बैठ गई.. और उनके मर्दाना होंठों को चूसने लगी..

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फाल्गुनी को आज पहली बार सुबोधकांत ने इतना गरम होते हुए देखा था.. पर उन्हों ने उस बारे में पूछताछ करने के बजाए.. उसकी और अपनी गर्मी को ठंडा करने पर ध्यान केंद्रित किया.. फटाफट उन्हों ने फाल्गुनी को उसके वस्त्रों की कैद से आजाद कर दिया और उसके हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया..


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फाल्गुनी की दिमाग में अभी भी पीयूष के लंड की यादें ताज़ा थी.. हाँ, अंकल के लंड से साइज़ में पतला और थोड़ा छोटा जरूर था.. पर एक स्त्री के लिए, लंड आखिर लंड होता है.. उसे तो बस अपनी चूत की आग ठंडा करने से ही मतलब होता है..

फाल्गुनी और सुबोधकांत की लंबी किस अब भी चल रही थी उस दुरान मौसम का फोन आया.. पर्स के अंदर पड़ा हुआ मोबाइल वो उठाती उससे पहले ही मिस-कॉल हो गया.. "शायद मेरे घर से फोन होगा.. एक मिनट अंकल.. !!" पर्स से मोबाइल निकालकर उसने देखा और मौसम को फोन लगाया.. ज्यादा बात करना मुमकिन नहीं था क्योंकी अंकल को ये पता नहीं चलना चाहिए की उनके गुलछरों के बारे में मौसम जानती थी..

फाल्गुनी ने एकदम फटाफट कॉल खत्म किया.. सुबोधकांत उसे पूछने ही वाले थे की किसका फोन था.. उससे पहले ही फाल्गुनी ने उनका लंड पकड़कर खेलना शुरू कर दिया.. और सुबोधकांत के मन के सारे प्रश्न, भांप बनकर उड़ गए..

फाल्गुनी की छोटी सी गुलाबी निप्पल को मसलते हुए अपना तंग लोडा उसे दिखाकर सुबोधकांत ने पूछा "मैं तो हेंडसम लग रहा था.. अब इसे देख.. ये कैसा लग रहा है? " अपने सुपाड़े को उजागर करते हुए उन्होंने फाल्गुनी से पूछा

"ये तो इसे पता.. " अपनी चूत की ओर इशारा करते हुए फाल्गुनी ने कहा.. शीला और रेणुका के मदमस्त स्तनों को याद करते हुए सुबोधकांत टूट पड़े फाल्गुनी के ऊपर.. आज फाल्गुनी को अंकल की आक्रामकता कई गुना ज्यादा महसूस हुई

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"मम्मी, तरुण का कॉल है.. मैं बात करके आती हूँ" कान पर मोबाइल चिपकाकर मौसम ऊपर अपने बेडरूम मे चली आई.. और दरवाजा बंद कर दिया..

फाल्गुनी और पापा की काम लीला की आवाज़ें सुनने के लिए वो बेकरार थी.. इसलिए उसने फाल्गुनी को फोन किया था.. और फोन पर सिर्फ इतना ही कहा की.. कॉल को चालू रख और फोन साइड में रख दे.. मौसम उन दोनों की चुदाई लीला को सुनते हुए अपनी चूत में उंगली करना चाहती थी.. फाल्गुनी भी समझ गई.. जीजू के लंड का स्वाद चखकर अब मौसम की भूख जाग चुकी थी.. और अब वो हर पल चुदाई के खयालों में ही खोई रहती थी.. फाल्गुनी ने बड़ी ही चालाकी से कॉल चालू रखकर उसे सोफ़े पर रख दिया और उसे अपने दुपट्टे से ढँक दिया..

अपना स्कर्ट उठाकर पेन्टी के अंदर हाथ डालकर.. टांगें फैलाकर बिस्तर पर लेट गई.. फाल्गुनी और पापा की बातें सुनते हुए वो अपने दाने को रगड़ने लगी..

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फाल्गुनी को पता था की मौसम उनकी बातें सुन रही थी.. इसलिए वो बहोत कम बोल रही थी.. और अंकल को ज्यादा बोलने दे रही थी..

सुबोधकांत: "फाल्गुनी बेटा.. कहीं मौसम को हमारे संबंधों के बारे में कुछ भनक तो नहीं लग गई??"

फाल्गुनी: "नहीं नहीं अंकल.. उसे तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं है"

सुबोधकांत: "आज जिस तरह वो हम दोनों को साथ जाते देखकर मुस्कुरा रही थी.. ये देखकर मुझे तो शक हो रहा है.. !!"

फाल्गुनी: "ऐसा कुछ भी नहीं है.. अगर उसे कुछ भी भनक लग गई होती तो वो मुझसे बात ही क्यों करती?? आह्ह.. अंकल, मुझे नीचे बड़ी मीठी सी खुजली हो रही है.. जरा चाट दीजिए ना.. !!"

मौसम अपने मोबाइल को कान से चिपकाकर बड़ी उत्तेजना से फाल्गुनी औ पापा की कामुक बातें सुन रही थी.. उसे सुनकर ताज्जुब हो रहा था की क इस बेशर्मी से फाल्गुनी उसके पापा को चूत चाटने के लिए कह रही थी..

सुबोधकान्त: "ओह्ह.. तुझे चूत चटवाने की इतनी जल्दी है.. !!! चल चाट देता हूँ"


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मौसम को चूत चटाई की आवाज़ें और फाल्गुनी की सिसकियाँ, दोनों सुनाई दे रही थी.. एक मीठी सी झनझनाहट उसके सारे बदन को सरसराने लगी.. फिर और थोड़ी गंदी गंदी बातें करने के बाद.. सुबोधकान्त ने अपना लंड फाल्गुनी के चेहरे के सामने धर दिया

सुबोधकान्त: "ले बेटा... इसे ठीक से चूस.. बराबर चूसना.. चूस चूसकर तू ऐसी एक्सपर्ट बन जा की शादी के बाद तेरे पति को मज़ा आ जाए.. तू किस्मत वाली है.. की शादी से पहले ही ये सब कुछ सिख पा रही है.. पता नहीं, मौसम को ऐसा सब आता भी होगा या नहीं.. !!"

सुबोधकान्त के खड़े लंड को अपनी कोमल हथेलियों में भरकर हिलाते हुए फाल्गुनी ने कहा "मौसम को भला कौन सिखाएगा?? अगर आप मुझे ये सब न सिखाते तो मुझे भी कैसे पता चलता??"

सुबोधकान्त अब फाल्गुनी के नंगे बदन पर छा गए.. अपने नग्न शरीर से फाल्गुनी के शरीर को ढँक दिया.. और अपनी बालों वाली छाती को उसके स्तनों को रगड़ते हुए बोलें "तुझे तो जब पहली बार देखा था तब से मन बना लिया था चोदने का, मेरी जान.. !! तेरी जवानी.. और खासकर तेरे ये स्तन.. जब देखें तब तय कर लिया था मैंने, की तुझे तो मैं रगड़कर रख दूंगा.. !!"

फाल्गुनी: "मेरे बूब्स?? आपने कब देखें थे मेरे बूब्स अंकल??"

सुबोधकान्त: "एक बार जब तू मेरे हाथों में चाय का कप देने के लिए झुकी थी.. तब तेरे ड्रेस के अंदर, कच्चे अमरूद जैसी चूचियों को देखकर.. मुझे बाथरूम में जाकर मूठ मारनी पड़ी थी.. उस दिन से मैंने मन बना लिया था की तुझे छोड़ूँगा नहीं.. !!"

फाल्गुनी ने झुककर सुबोधकान्त के लोड़े के टोपे पर चुंबन रसीद करते हुए कहा "अच्छा तब देख लिए थे आपने... !!"

"आह्ह.. !!" सुबोधकांत के मुँह से उत्तेजना भरी कराह निकल गई.. "पूरा मुंह में ले ले बेटा.. जड़ तक अंदर लेकर चूस.. बहोत मस्त चूसती है तू.. मौसम को भी तेरी तरह चूसना सीखा दें.. ताकि वो भी शादी के बाद तरुण को मजे दे सकें.. पति को मुठ्ठी में रखने के लिए इस कला का सीखना बहोत आवश्यक होता है बेटा.. !!" कहते हुए सुबोधकान्त ने फाल्गुनी की कोमल क्लिटोरिस को सहलाते हुए उसकी चूत में दो उँगलियाँ सरका दी..

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लंड चूसते हुए भी फाल्गुनी की सिसकियाँ निकल रही थी.. चूत में उंगलियों के अंदर बाहर होने की वजह से..

लंड चुसाई की बातों में अपने नाम का उल्लेख सुनकर मौसम का पूरा शरीर कांपने लगा.. वो बेड पर लेट गई.. उसकी और फाल्गुनी की सिसकियाँ अब एक ताल में साथ साथ निकल रही थी.. अपनी चूत में उंगली डालकर मौसम झड़ गई.. पर उसने फोन कट नहीं किया.. मौसम को ये जानने में दिलचस्पी थी की पापा और फाल्गुनी के जिस्मानी संबंध कितना आगे बढ़ चुके थे.. और अन्य कई बातें भी सुनी उसने..

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सुबोधकान्त: "फाल्गुनी, एक बार तुझे विदेश ले जाना चाहता हूँ मैं.. पर कैसे सेटिंग करूँ कुछ समझ नहीं आता.. तू अपने घर से दस दिनों के लिए निकल सकती है?? कुछ बहाना बना कर??"

फाल्गुनी: "घर पर क्या बताऊँ अंकल?? रात को आधा घंटा लेट हो जाता है तो भी मम्मी कितना सुनाती है मुझे"

सुबोधकान्त: "समझ सकता हूँ.. पर अगर तेरी कोई फ्रेंड भी साथ हो तो शायद तेरे मम्मी-पापा इजाजत दे देंगे"

फाल्गुनी: "मौसम के अलावा मेरी और कोई फ्रेंड नहीं है.. और अगर मान लो मैं किसी फ्रेंड को लेकर आपके साथ आ भी गई.. तो मुझे तो रात को उसके साथ ही रहना पड़ेगा ना.. !! मैं आपके साथ कैसे रह पाऊँगी??"

सुबोधकान्त: "तू कुछ भी कर बेटा.. कोई तरकीब सोच... तेरी शादी से पहले मैं अपनी कुछ इच्छाएं पूरी करना चाहता हूँ जिसके लिए तुझे बहार ले जाना जरूरी है.. यहाँ उसे पूरा नहीं कर पाऊँगा"

फाल्गुनी: "पर अंकल, एक दिन भी बाहर रहना मुमकिन नहीं है.. आप तो दस दिनों की बात कर रहें है"

सुबोधकान्त: "फाल्गुनी, मेरी कुछ खास गुप्त इच्छाएं है.. जिन्हें तृप्त करने की आस लिए मैं अब तक जी रहा हूँ.. और अगर तेरे साथ उन इच्छाओं को पूरी न कर पाया.. तो फिर इस जीवन में उनकी पूरे होने की कोई संभावना नहीं है.. और तू मेरे पास रहेगी भी कितने समय तक?? एकाध साल में तो तेरी भी शादी हो जाएगी.. !!"

फाल्गुनी: "आह्ह अंकल.. ये सारी बातें कर मुझे दुखी मत कीजिए.. मैं अभी यहाँ खुश होने आई हूँ.. तो मुझे खुश कीजिए.. ओह्ह.. मैं अभी बहोत एक्साइटेड हूँ.. ऊँहहह..मुझे चोद दीजिए.. आपके इस (लंड पकड़ते हुए) को तो मैं शादी के बाद भी याद रखूंगी.. और मौका मिलने पर इसे खुश भी करती रहूँगी.. !!" बेशर्म होकर फाल्गुनी ने कहा

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मौसम फोन पर फाल्गुनी की आनंद से भरी किलकारीयों को दर्द भरी सिसकियों को.. साथ में लंड चुसाई के पुचूक-पुचूक आवाजों को सुनकर मदहोश हो गई थी.. झड़ने के बाद उंगलियों पर लगे चूत रस को सुनते हुए उसने फोन पर फ़च-फ़च की आवाज़ें सुनी.. वो समझ गई की फाल्गुनी की बुर में पापा का लंड घुस चुका था और घमासान चुदाई का दौर शुरू हो गया था.. आह्ह.. !! कितना मज़ा आ रहा होगा फाल्गुनी को.. !!

अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए, क्लिटोरिस पर लगे प्रवाही को अपनी निप्पल पर लगाते हुए वो फाल्गुनी की दर्द भरी कराहों को... उत्तेजना मिश्रित सिसकियों को.. लंड और चूत के घर्षण की आवाजों को.. पापा और फाल्गुनी की जांघों के टकराने की ध्वनि को... सुन रही थी.. और सुनते सुनते उसकी चूत एक बार फिर से झड़ गई.. !! इतने कम समय में दो दो ऑर्गजम.. !! मौसम को आश्चर्य हुआ.. दूसरी बार झड़ने के बाद, उसके शरीर की सारी ऊर्जा खर्च हो चुकी थी

मौसम ने फोन कट किया और लाश की तरह सुस्त होकर बेड पर पड़ी रही.. पाँच मिनट के अंतर में उसकी चूत, दो बार ठंडी करते हुए मौसम ने आज नया विक्रम स्थापित कर लिया था.. वो भी बिना लंड के.. !! सिर्फ आवाज़ें सुनकर.. अगर सुनने में इतना मज़ा आया तो फाल्गुनी को कितना मज़ा आ रहा होगा.. !! ये सोचते हुए मौसम को ये विचार आया की पापा अपनी कौन सी गुप्त इच्छाओं के बारे में बात कर रहे थे.. !! सोचते सोचते उसने अपनी जांघें आपस में दबा दी और आँखें बंद कर ली.. !!

करीब एक घंटे बाद मौसम की तब आँख खुली जब फाल्गुनी ने उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी.. कपड़े पहनकर उसने दरवाजा खोला और फाल्गुनी भी अंदर आ गई.. दोनों सहेलियाँ बातें करते करते थोड़ी देर के लिए सो गई.. आधे घंटे के बाद फाल्गुनी उठी.. मुंह धोकर फ्रेश हो कर घर चली गई.. मौसम किचन में मम्मी की मदद करने लग गई.. रमिला बहन भी बहोत थक चुकी थी.. मौसम की सगाई बिना किसी तकलीफ के निपट जाने का संतोष उनके चेहरे पर नजर आ रहा था..
 

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मौसम दरवाजे से बाहर गई तब तक पीयूष उसे पीछे से देखता रहा.. आँखें नम हो गई.. और सब धुंधला दिखाई देने लगा.. थोड़ी देर पहले का कामुक वातावरण अब विषादपूर्ण हो चुका था.. जुदाई हमेशा गम साथ लेकर आती है.. चुपचाप धीरे धीरे जा रही मौसम को वो ऐसे देख रहा तहा जैसे वो वर्तमान को त्यागकर भविष्य की ओर चल पड़ी हो.. !! उसके हर कदम पर पीयूष का दिल बैठा जा रहा था..

जाने से पहले वो पलट कर एक बार मेरी तरफ देखेगी?? एक आखिरी बार उसके हसीन चेहरे को दिल भरकर देखना चाहता हूँ.. पर शायद नहीं पलटेगी..

या पलटेगी.. !!

नहीं पलटेगी शायद.. !!

क्यों पलटेगी भला.. पलटना भी नहीं चाहिए.. !! मैं तो अब उसके लिए गुजरा हुआ वक्त हूँ.. !! असह्य कश्मकश से गुज़रता हुआ पीयूष सांस रोके खड़ा था.. आँखों के रास्ते रूह निकल जाए उतनी आतुरता से वो मौसम के पलटने का.. बिना पलक झपकाए इंतज़ार कर रहा था..

ब्याह कर ससुराल जाती लड़कियां.. अपने मायके की कितनी हसीन यादें अपने दिल में दफन कर जाती है.. औरतों को ये कला कुदरत ने बक्शी होगी?? दरवाजे तक पहुँच चुकी मौसम के अंदर.. अभी भी अपनी प्रेमिका को तलाश रहा था पीयूष.. दो कदम और आगे जाते ही वो लक्ष्मण-रेखा के उस पार पहुँच जाएगी.. जहां पहुँचकर वो उसे भी भूल जाएगी.. धड़कते दिल के साथ पीयूष उसे देखता ही रहा..

दरवाजे से बाहर निकलकर मुड़ने से पहले.. मौसम ने आखिर पलटकर देखा.. दोनों की उदास नजरें एक हुई.. एक फीकी सी मुस्कान के साथ मौसम की और देख रहे पीयूष की आँखों से एक आँसू टपक पड़ा..

कुछ दिन पहले पीयूष को पिंटू ने एक शेर सुनाया था, वो याद आ गया उसे..

.. वो पलट कर जो देखेगी, तो ज़माना थम जाएगा,
मिलेंगे फिर कभी, पर वो पहली मोहब्बत सा ना हो पाएगा।।

मौसम की आँखों मे एक अजीब सा सुकून ढूँढने लगा पीयूष.. उसकी सांसें अब धीमी पड़ रही थी.. पर उस आखिरी बार पलट कर देखने से पीयूष इतना खुश हुआ की इतना खुश तो वो मौसम को पाकर भी नहीं हुआ था.. मौसम के कांपते गोरे होंठ.. गोरे गुलाबी गाल... लाल अधर.. हिरनी जैसी गर्दन.. पीयूष बिना पलक झपकाए उसे देखता ही रहा

जीजू को एक आखिरी बार देखते हुए मौसम को याद आया.. जीजू उसे कितनी बेकरारी से किस करना चाहते थे.. !! पर लिपस्टिक खराब हो जाने के डर से उसने किस नहीं कर दिया.. फाल्गुनी का हाथ छुड़ाकर वो भागकर पीयूष की तरफ आई और उसे गले लगाकर.. बिना लिपस्टिक की परवाह किए.. उसे चूमने लगी.. चूमते चूमते रो पड़ी..

"आई लव यू जीजू.. "

"मौसम, चाहें थोड़ा सा ही करना.. पर याद जरूर करना मुझे" पीयूष भी बस इतना ही बोल पाया

"अलविदा जीजू... आप के साथ बिताया एक एक पल, मैं ज़िंदगी भर नहीं भूल पाऊँगी.. आई विल लव यू फोरेवर.. गुड बाय जीजू" मौसम ने कहा

फाल्गुनी ने तुरंत मौसम के कपड़े और लिपस्टिक ठीक कर दीये और दोनों नीचे चले गए

फाल्गुनी और मौसम सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आ रही थी.. बिल्कुल उसी वक्त... पिंटू के साथ काफी देर से बात कर रही वैशाली ने कहा "मुझे अपने जीवन में तुम्हारे जैसे ही फ्रेंड और फिलोसॉफर की तलाश थी.. क्या तुम मेरे हमसफ़र बनोगे??"

कविता मौसम के करीब जाकर खड़ी हो गई.. एकदम खुश लग रही कविता के सामने देखकर पिंटू सोच रहा था की वैशाली की बात का क्या जवाब दिया जाए..

काफी सोचने के बाद पिंटू ने कहा "वैशाली, आप के साथ जो कुछ भी घटा है.. इसके लिए मेरे दिल में बहोत हमदर्दी है.. आप जब चाहे मुझे किसी भी काम के लिए.. किसी भी वक्त.. दोस्त समझकर कॉल कर सकती है.. !!" इतना कहकर पिंटू ने वैशाली से हाथ मिलाया.. और पानी पीने जाने के बहाने उठकर खड़ा हो गया.. वैशाली ने इतने खुलकर ऑफर करने के बाद भी.. पिंटू एकदम जेन्टलमेन की तरह पेश आया.. यह देखकर.. वैशाली की आँखों में पिंटू की इज्जत ओर बढ़ गई.. !!

मौसम के जाने के बाद.. पीयूष सोफ़े पर बैठे बैठे बहोत रोया.. !! प्यार या प्रेम, सुख देता है.. ये मानने वाले महा-मूर्ख होते है.. हकीकत में, प्रेम की झोली में सुख की भिक्षा मिलती ही नहीं है.. जिसके पास जो चीज होती है.. वही दे पाता है.. इतनी सामान्य सी बात न समझने वाले, ऐसे लोगों के सामने प्रेम की अपेक्षा से झोली फैलाए बैठे रहते है.. जिनके पास देने के लिए गम, धोखा, दर्द और निराशा के अलावा ओर कुछ नहीं होता..

सृष्टि के सर्जन से लेकर आज तक.. ऐसे कौनसे इंसान को आपने देखा जो प्यार में पड़ने के बावजूद हमेशा खुश हो.. !! यही तो इस बात का सब से बड़ा प्रमाण है.. यह सब कुछ जानने के बावजूद लोग प्यार में पड़ते है.. और हँसते हँसते सारे गम, पीड़ा और निराशा को गले लगा लेते है.. क्योंकी शुरुआत में प्रेम आपको सुख का भ्रम दिखाकर इतनी जबरदस्त रोमांचक पलों की भेंट देता है की प्यार करने वाला, अपनी बाकी की ज़िंदगी, उन्हीं पलों को फिर से पाने की उम्मीद लगाए, अपनी बाकी ज़िंदगी हँसते हँसते दर्द में काट लेता है.. और वो हसीन पल, फिर कभी लौटकर नहीं आते.. !!

पीयूष के लिए.. मौसम की जुदाई बर्दाश्त करना बहोत मुश्किल था.. काफी प्रयत्नों के बाद वो खड़ा हुआ और वॉश-बेज़ीन के पास जाकर आईने में अपने चेहरे को देखने लगा.. और खुद से बातें करने लगा.. ये क्या हाल बना रखा है? तू मौसम की मंगनी में आया है या मैयत में?

रो रो कर उसकी आँखें सूजी हुई और लाल हो गई थी... चेहरे पर उदासी के बादल छाए हुए थे.. हथेली में ठंडा पानी लेकर चेहरे को धोने के बाद.. उसे थोड़ी ताजगी का एहसास हुआ.. ठंडे पानी ने चमत्कारिक औषधि जैसा काम किया..

कितनी ताकत होती है पानी में.. !! कैसी भी उदासी हो, एक पल के अंदर ताजगी में परिवर्तित करने का गुण होता है पानी में.. नींद से उठे हुए आदमी को, हकीकत में जगाने का काम पानी ही तो करता है.. दुख और उदासी जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाएँ.. तब उन्हें हल्का करने का काम भी पानी ही करता है.. आँखों से बहकर.. दिल का बोझ हल्का करने का अमोघ शस्त्र.. रुदन.. ये भी तो पानी बहाकर ही होता है.. !!

कमरे से बाहर आकर.. पीयूष ने नीचे का नजारा देखा.. सारे मेहमान गोल बनाकर बैठे थे.. बीच में तरुण और मौसम एक एक आसन पर बैठे हुए थे.. पण्डितजी बैठकर कुछ विधि कर रहे थे.. तरुण ने सुंदर से रिमलेस चश्मे पहन रखे थे.. और उसके कारण उसका चेहरा थोड़ा सा गंभीर और मेच्योर लग रहा था.. कोई भी पहली नजर में देखकर कह सकता था की यह लड़का पढ़ाई में अव्वल होगा.. तरुण और मौसम की जोड़ी.. "मेईड फॉर इच अधर" जैसी दिख रही थी.. तरुण को मौसम के करीब बैठे देखकर.. पीयूष ईर्ष्या की आग में जलने लगा.. तरुण की बगल में बैठी सहमी सी मौसम को वो काफी देर तक देखता रहा.. देखकर कौन अंदाजा लगा पाता.. की शालीन और संस्कारी होकर बैठी यह लड़की.. आधे घंटे पहले अपने बहनोई के लंड से चुदकर बैठी थी.. !! कीसे पता चलता की अभी थोड़ी देर पहले वो झुककर अपने जीजू के लंड को चूस रही थी.. !!

सब की तरफ देख रहे पीयूष की नजर कोने में बैठे पिंटू, वैशाली और कविता पर गई.. और वही स्थिर हो गई.. ऊपर खड़े पीयूष को दिख रहा था की कविता की छातियों की नोक.. पिंटू के कंधों को छु रही थी.. लेकिन भीड़भाड़ वाली जगह पर तो ऐसा अक्सर होता है.. इसलिए पीयूष ने उस बात को ज्यादा दिल पर नहीं लिया.. कमरे के दूसरे कोने मे शीला, मदन, राजेश सर, रेणुका और सुबोधकांत बड़ी ही सौजन्यशील मुद्रा में खड़े हुए थे.. तमाम लोगों के बीच.. एक मात्र शीला ऐसी थी.. जो अपने हुस्न के जलवों से पूरे कमरे को रोशन कर रही थी.. मेहमानों में जो पुरुष थे वह सारे.. बार बार.. किसी न किसी बहाने.. शीला को नजरें भरकर देख रहे थे..

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पीयूष नीचे उतरकर कमरे में आया.. और तरुण तथा मौसम के पीछे खड़ा हो गया

कमरे के कोने में खड़ी शीला ने रेणुका का हाथ पकड़ते हुए कहा "चल बाहर चलते है.. यहाँ कितनी गर्मी हो रही है.. बाहर आराम से बातें करेंगे"

दोनों हाथ पकड़कर बाहर आए.. और घर के बागीचे में कुर्सी पर बैठे बैठे बातें करने लगे

रेणुका: "सुबोधकांत ने घर तो बड़ा ही शानदार बनाया है.. रंगों का कॉम्बीनेशन भी गजब का है"

शीला: "वो खुद भी इतने ही रंगीन है.. मकान तो रंगीन होगा ही"

रेणुका: "हा हा हा.. लगता है.. सुबोधकांत के रंगों का लाभ तूने भी ले लिया है"

शीला: "तो उसमें गलत क्या है?? अब ये मत पूछना की कैसे.. तू भी सयानी बन रही है.. पर अभी वो आकर अपना लंड दिखा देंगे तो तू यहाँ ही चूसने बैठ जाएगी.. मैं तो सीधी बात करती हूँ हमेशा.. !!"

रेणुका: "अरे, मैंने कब कहा की कुछ गलत है.. पर लगता है की मदन भैया के आने के बाद तेरे गुलछर्रे बंद हो गए है"

शीला: "हाँ यार.. उस लाइफ को तो मैं भी बड़ा मिस कर रही हूँ"

रेणुका: "मुझे तेरी भूख का अंदाजा है.. तो अब गुजारा कैसे चलता है तेरा??"

शीला: " कुछ नहीं यार.. फिलहाल मदन से काम चला रही हूँ.. बाहर की बिरियानी अब नसीब नहीं होती.. और जगह भी तो नहीं है कोई.. अब तो वैशाली भी हमारे साथ ही रहेगी.. इसलिए मुझे अब वो पुरानी वाली सारी आजादी हमेशा के लिए भूल जानी पड़ेगी"

रेणुका: "क्यों भूल जानी पड़ेगी.. !! तेरे घर मुमकिन नहीं है तो क्या हुआ.. !! मेरा घर अक्सर खाली रहता है.. राजेश जब भी शहर से बाहर जाता है तब घर पर अकेले बैठे बोर होती रहती हूँ.. तुझे जब मौका मिलें तब मेरे घर चली आना"

शीला: "वो तो ठीक है.. पर तेरे घर आकर क्या करूँ?? हम दोनों साथ बैठकर क्या भजन करेंगे?"

रेणुका: "अरे यार.. भजन नहीं.. भोजन करेंगे.. तुझे जिसे लेकर आना हो, चली आना.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है.. और मैं तुझसे हिस्सा भी नहीं मांगूँगी"

शीला: "यार रेणुका... मुझे हिस्सा देने में भी कोई हर्ज नहीं है.. भूखा मरने से तो बेहतर है की हमारे पास जो हो वो सब मिल बांटकर खाएं.. कभी मेरे पास कुछ नहीं होगा तब तुझसे मांग लूँगी.. संसार ऐसे लेन-देन से ही तो चलता है"

रेणुका: "हम्म.. तो अभी किस के साथ मजे कर रही है?"

शीला: "किसी के साथ नहीं यार.. मदन हमेशा आसपास होता है.. कुछ भी कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता"

रेणुका: "पर कोई तो होगा.. जिसे लेकर तू मेरे घर आ सके"

शीला: "वैसे नमूने तो बहोत सारे है.. खासकर मेरा दूधवाला रसिक.. बेचारा बहोत तड़प रहा है मेरे बगैर.. आशिक हो गया है मेरा.. मन तो मेरा भी बहोत करता है पर क्या करूँ!! जब वो दूध देने आता है तब मदन अंदर के कमरे में सो रहा होता है.. फिर भी वो कभी बबले दबा देता है तो कभी अपना खोलकर हाथ में थमा देता है.. साले का इतना मस्त मोटा गधे जैसा लंड है यार.. !! उसके दो दोस्त है.. रघु और जीवा.. उन दोनों के फोन नंबर है मेरे पास.. पर साले एक नंबर के नशेड़ी है.. दारू पीकर उन्हें खुद होश नहीं रहता की कौनसे छेद में डालना है.. और उन्हें बुलाना हो तो पहले से प्लैनिंग जरूरी है.. वक्त भी ज्यादा चाहिए"

रेणुका: "अरे हाँ याद आया.. वो तेरा दूधवाला.. जिसकी बीवी पेट से थी.. !!"

शीला: "हाँ वही.. अब तो उसका बच्चा भी हो गया.. साला जोरदार है रसिक.. बस एक बार चुदवा लो तो ज़िंदगी भर याद रह जाए"

रेणुका: "शीला, यार मेरे घर उसका सेटिंग कर दे.. मैं भी तो एक बार तेरे दूध वाले को चख कर देखूँ"

शीला: "हाँ करती हूँ कुछ.. अभी तो यहाँ मेरी नजर सुबोधकांत पर है.. पिछली बार जब हम वैशाली को लेने के लिए आए थे.. तब यहाँ गराज में ही उन्होंने मुझे झुकाकर जो शॉट लगाए थे.. आहाहाहा.. आज भी मेरी चूत उस चुदाई को याद कर डकार मार लेती है.. पर अभी इतने सारे मेहमान है.. चांस मिलना मुश्किल है"

तभी सुबोधकांत.. दो कामुक चूतों की गंध परखते हुए बाहर बागीचे में आ गए और बोले "सगाई की विधि खत्म हो गई.. चलिए खाना खाने चलते है"

"आपने घर बहोत बढ़िया बनाया है" रंगीन सुबोधकांत के साथ परिचय बढ़ाने के इरादे से रेणुका ने कहा

"थेंकस.. वैसे आप जैसों की मौजूदगी से मेरे गार्डेन की शोभा बढ़ गई.." शीला के भव्य स्तनों को देखते हुए सुबोधकांत ने कहा.. "बागीचे के फूलों की कोई तुलना ही नहीं है.. आपकी सुंदरता के सामने"

शीला: "अच्छा.. !! आप को कैसे फूल देखना पसंद है"

रेणुका: "अरे शीला.. इतना भी नहीं समझती..?? भँवरा हमेशा उसी फूल के पास जाता जिसमें रस ज्यादा हो.. "

शीला: "ओह्ह.. मुझे ये समझ नहीं आता की पुरुषों की तुलना हमेशा भँवरे से ही क्यों की जाती है?"

सुबोधकांत: "इसलिए क्योंकी फूलों की सच्ची कदर सिर्फ भँवरा ही कर सकता है.. अगर भँवरा न हो तो फूल किस काम का?? और एक बात बता दूँ आपकी जानकारी के लिए.. पुरुषों की तुलना सिर्फ भँवरे के साथ ही नहीं की जाती.. सांड और घोड़े के साथ भी की जाती है.. अलग अलग मामलों में उनकी ताकत और प्रदर्शन के अनुसार उनकी तुलना अलग अलग प्राणियों से की जाती है.. " सुबोधकांत ने द्विअर्थी संवादों का दौर जारी रखा और साथ ही साथ अपनी चोदने की शक्ति का प्रदर्शन भी कर दिया

"बात तो आपकी सही है.. पर फिलहाल हम भँवरे की जो उपमा देते है.. उसकी बात कर रहे है.. भँवरा अपनी पसंद के फूल पर ही मंडराता है ये तो समझ में आता है.. पर अगर फूल को कोई भँवरा पसंद आ जाएँ तो??" शीला ने सिक्सर लगा दी..

सिर्फ थोड़ी देर के लिए एकांत मिला था.. उसमें जीतने हो सकें उतने दांव खेल लेने के लिए शीला तैयार थी.. उसे पता था की रेणुका की मौजूदगी के कारण सुबोधकांत कुछ कह या कर नहीं पा रहें.. वरना पिछली बार की गराज की मुलाकात की यादें ताज़ा करने का अच्छा मौका था.. अगर थोड़ी देर के लिए भी रेणुका चली जाए.. तो अभी सुबोधकांत को कोने में ले जाकर, अपने दोनों स्तनों के बीच की खाई में गायब कर दूँ.. !!

सुबोधकांत: "उसका भी उपाय है.. अगर फूल को कोई भँवरा पसंद आ जाएँ.. तो उस भँवरे का मोबाइल नंबर ले लेना चाहिए.. और मौका मिलने पर उसका इस्तेमाल करना चाहिए... सिम्पल.. !!

सुबोधकांत भी शीला जीतने ही बेकरार थे.. कल से वो शीला की आँखों के हावभाव में छुपे हुए आमंत्रण को देख पा रहे थे.. सुबोधकांत के उत्तर से शीला रोमांचित हो गई.. सुबोधकांत की बात को आगे बढ़ाने की स्पीड काबिल-ए-तारीफ थी.. जरा भी वक्त नहीं गंवाया उन्हों ने.. अगर इसी गति से बात आगे बढ़ी तो शाम तक कुछ सेटिंग होने की गुंजाइश थी..

सुबोधकांत: "बाय ध वे.. आप दोनों के पास मेरा मोबाइल नंबर तो होगा ही.. अगर नहीं है तो मुझसे ले लेना.. और अगर आपको मेरा न लेना हो.. तो आप मुझे आप दोनों का नंबर दे देना.. कुछ अनमोल पुष्प अगर बागीचे में ना हो तो कोई बात नहीं.. पर उनका नंबर पास होना चाहिए.. कम से कम मोबाइल पर बात करके तो उनकी खुशबू का आनंद लिया जा सके"

रेणुका को सुबोधकांत ने अपना लेटेस्ट आईफोन १६ मोबाइल अनलॉक करके दे दिया.. रेणुका को समझ नहीं आया की क्या करना था.. पर शीला समझ गई.. की सुबोधकांत उनका नंबर मांग रहा था.. रेणुका के हाथ से मोबाइल लेकर शीला ने अपना नंबर डायल किया.. और रिंग बजते ही कट कर दिया..

तभी वहाँ रमिलाबहन आ पहुंची "अरे, तुम लोग यहाँ गप्पे लड़ा रहे हो.. !! सारे मेहमान राह देख रहे है.. अंदर चलिए" सुबोधकांत का हाथ पकड़कर खींचते हुए वो उन्हें अंदर ले गई

रेणुका: "तू हमेशा सब बातों में एक कदम आगे ही रहती है.. अब मैं अपना नंबर उनको कैसे भेजूँ? कुछ जुगाड़ लगाना पड़ेगा.. वैसे आदमी है बड़ा ही दिलचस्प" दोनों हँसते हँसते अंदर गए..

"प्लीज, आप लोग पहले खाना खा लीजिए.. बातें तो होती रहेगी" शीला और रेणुका को बातें करते देख सुबोधकांत ने करीब आकर कहा

शीला और रेणुका ने प्लेट ले ली.. दोनों खाना खाने लगे.. सुबोधकांत भी उनके साथ ही खड़े थे..

रेणुका: "अरे शीला.. पता नहीं मैंने अपना मोबाइल कहाँ रख दिया.. !! जरा मुझे मिस-कॉल करना तो.. !!"

शीला: "देख नहीं रही तुम.. खाना खा रही हूँ.. हाथ गंदे है मेरे"

सुबोधकांत: "अरे कोई बात नहीं.. मैं हूँ ना.. !! आप नंबर बताइए.. !!"

रेणुका ने अपना नंबर कहा.. सुबोधकांत ने डायल करते ही रेणुका के पर्स में ही रिंग बजी.. रेणुका ने शीला की तरफ देखकर आँख मारी

रेणुका: "अरे, ये तो मेरे पर्स में ही था.. मैं भी भूल गई थी.. खामखा आपको तकलीफ दी.. !!"

सुबोधकांत: "अरे इसमें तकलीफ की क्या बात है!!" रेणुका का नंबर सेव करते करते उन्हों ने कहा
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पिंटू के विचारों से वैशाली धीरे धीरे प्रभावित हो रही थी.. दोस्ती अक्सर पौधे जैसी होती है.. कभी कभी मिट्टी, खाद और पानी.. सब कुछ ठीक होने पर भी पौधा नहीं खिलता.. और कभी कभी सड़क के किनारे.. बिना किसी देखभाल के भी खिल उठता है.. पिंटू की मित्रता भी कुछ ऐसी ही थी.. ना वैशाली ने कुछ प्रयत्न किया था.. और ना ही पिंटू ने.. सामान्य बातचीत से शुरू हुआ उनका व्यवहार कब दोस्ती में पलट गया.. दोनों को पता ही नहीं चला.. वैशाली अब निःसंकोच पिंटू से बातें करती थी.. ऊपर से, अब वो उनके ऑफिस भी नियमित रूप से जाने लगी थी.. संजय नाम का पन्ना अब उसकी ज़िंदगी की किताब से धीरे धीरे पलट रहा था और जो नया पन्ना खुला था उस पर हल्का हल्का पिंटू का नाम लिखा हुआ नजर आ रहा था..

कविता, फाल्गुनी, पीयूष और पिंटू.. सब खाना खाने में व्यस्त थे.. वैशाली भी उनके साथ जुड़ गई.. मज़ाक मस्ती.. हंसी-ठिठोली के बीच.. मौसम की मंगनी बड़े ही आराम से पूर्ण हो गई.. शहर में रहते मेहमान भी चले गए थे.. अब बाकी सारे लोगों की वापिस लौटने की बारी थी

रेणुका: "शीला, एक काम करते है.. एक गाड़ी बच्चों को दे देते है.. और दूसरी गाड़ी में हम सब साथ चलते है.. वो सब आराम से बातें करेंगे और हमें भी मज़ा आएगा"

राजेश: "बिल्कुल सही कह रही है रेणुका.. पीयूष, ये लो मेरी इनोवा की चाबी.. आप सब साथ चले जाओ.. हम लोग मदन भैया की गाड़ी में आएंगे"

दोनों ही गाड़ियां चल पड़ी.. फाल्गुनी और मौसम, फिर से अकेले रह गए

एक रात में कितना कुछ घट गया.. !! शादी की रात दुल्हन के लिए यादगार होती है.. पर मौसम के लिए तो सगाई की पिछली रात हमेशा ही याद रहने वाली बन गई थी..

सुबोधकांत: "ये ले बेटा फाल्गुनी.. ये टिफिन अंदर गाड़ी में रख दे.. हमारे ऑफिस के प्युन को देकर आते है.. !!" सुबोधकांत ने एक साथ.. ऑफिस के प्युन, फाल्गुनी की चूत और अपने लंड.. तीनों की भूख मिटाने का बंदोबस्त कर दिया

फाल्गुनी मौसम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. पर मौसम ने ताना मारने का मौका नहीं छोड़ा "पापा का लंड एकदम मस्ती से चूसना.. वैसे भी जीजू का देखकर, तू कभी से गरम हो चुकी है"

नजरें झुकाकर मुसकुराते हुए फाल्गुनी सुबोधकांत की कार में बैठ गई.. उसकी चूत में.. पीयूष का लंड देखकर.. और मौसम को घोड़ी बनकर चुदते देखकर.. गजब की अफरातफरी और खलबली मची हुई थी.. उसे शांत करने का समय आ गया था.. जाते जाते उसकी और मौसम की नजरें चार हुई... मौसम ने उसे आँख मारी.. और फाल्गुनी शरमाकर मुस्कुराई.. सारे मेहमानों को विदा करके सुबोधकांत की कार उनकी ऑफिस की दिशा में चल पड़ी

जैसे ही गाड़ी सोसायटी से बाहर निकली, सुबोधकांत ने फाल्गुनी के दोनों स्तनों को मसलकर रख दीये.. "गजब की सुंदर लग रही है इस ड्रेस में तू.. मन तो कर रहा था की सब के सामने से तुझे उठाकर ऑफिस ले जाऊँ और पटककर चोद दूँ.. !!"

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सुनते ही फाल्गुनी बहोत गरम हो गई..उसने कहा "अंकल, आप भी सूट में बड़े हेंडसम लग रहे थे.. मेरा भी बहोत मन कर रहा था.. नीचे तो जैसे बुखार सा चढ़ गया है..!!"

बीस मिनट के ड्राइविंग के बाद दोनों ऑफिस पहुंचे.. ऑफिस पर चपरासी के अलावा और कोई नहीं था.. सुबोधकांत ने उसे टिफिन दिया.. और एक अड्रेस देते हुए कहा की.. वहाँ जाकर पार्टी से चेक लेना है.. उसके जाते ही.. फाल्गुनी कूदकर सुबोधकांत की गोद में बैठ गई.. और उनके मर्दाना होंठों को चूसने लगी..

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फाल्गुनी को आज पहली बार सुबोधकांत ने इतना गरम होते हुए देखा था.. पर उन्हों ने उस बारे में पूछताछ करने के बजाए.. उसकी और अपनी गर्मी को ठंडा करने पर ध्यान केंद्रित किया.. फटाफट उन्हों ने फाल्गुनी को उसके वस्त्रों की कैद से आजाद कर दिया और उसके हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया..


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फाल्गुनी की दिमाग में अभी भी पीयूष के लंड की यादें ताज़ा थी.. हाँ, अंकल के लंड से साइज़ में पतला और थोड़ा छोटा जरूर था.. पर एक स्त्री के लिए, लंड आखिर लंड होता है.. उसे तो बस अपनी चूत की आग ठंडा करने से ही मतलब होता है..

फाल्गुनी और सुबोधकांत की लंबी किस अब भी चल रही थी उस दुरान मौसम का फोन आया.. पर्स के अंदर पड़ा हुआ मोबाइल वो उठाती उससे पहले ही मिस-कॉल हो गया.. "शायद मेरे घर से फोन होगा.. एक मिनट अंकल.. !!" पर्स से मोबाइल निकालकर उसने देखा और मौसम को फोन लगाया.. ज्यादा बात करना मुमकिन नहीं था क्योंकी अंकल को ये पता नहीं चलना चाहिए की उनके गुलछरों के बारे में मौसम जानती थी..

फाल्गुनी ने एकदम फटाफट कॉल खत्म किया.. सुबोधकांत उसे पूछने ही वाले थे की किसका फोन था.. उससे पहले ही फाल्गुनी ने उनका लंड पकड़कर खेलना शुरू कर दिया.. और सुबोधकांत के मन के सारे प्रश्न, भांप बनकर उड़ गए..

फाल्गुनी की छोटी सी गुलाबी निप्पल को मसलते हुए अपना तंग लोडा उसे दिखाकर सुबोधकांत ने पूछा "मैं तो हेंडसम लग रहा था.. अब इसे देख.. ये कैसा लग रहा है? " अपने सुपाड़े को उजागर करते हुए उन्होंने फाल्गुनी से पूछा

"ये तो इसे पता.. " अपनी चूत की ओर इशारा करते हुए फाल्गुनी ने कहा.. शीला और रेणुका के मदमस्त स्तनों को याद करते हुए सुबोधकांत टूट पड़े फाल्गुनी के ऊपर.. आज फाल्गुनी को अंकल की आक्रामकता कई गुना ज्यादा महसूस हुई

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"मम्मी, तरुण का कॉल है.. मैं बात करके आती हूँ" कान पर मोबाइल चिपकाकर मौसम ऊपर अपने बेडरूम मे चली आई.. और दरवाजा बंद कर दिया..

फाल्गुनी और पापा की काम लीला की आवाज़ें सुनने के लिए वो बेकरार थी.. इसलिए उसने फाल्गुनी को फोन किया था.. और फोन पर सिर्फ इतना ही कहा की.. कॉल को चालू रख और फोन साइड में रख दे.. मौसम उन दोनों की चुदाई लीला को सुनते हुए अपनी चूत में उंगली करना चाहती थी.. फाल्गुनी भी समझ गई.. जीजू के लंड का स्वाद चखकर अब मौसम की भूख जाग चुकी थी.. और अब वो हर पल चुदाई के खयालों में ही खोई रहती थी.. फाल्गुनी ने बड़ी ही चालाकी से कॉल चालू रखकर उसे सोफ़े पर रख दिया और उसे अपने दुपट्टे से ढँक दिया..

अपना स्कर्ट उठाकर पेन्टी के अंदर हाथ डालकर.. टांगें फैलाकर बिस्तर पर लेट गई.. फाल्गुनी और पापा की बातें सुनते हुए वो अपने दाने को रगड़ने लगी..

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फाल्गुनी को पता था की मौसम उनकी बातें सुन रही थी.. इसलिए वो बहोत कम बोल रही थी.. और अंकल को ज्यादा बोलने दे रही थी..

सुबोधकांत: "फाल्गुनी बेटा.. कहीं मौसम को हमारे संबंधों के बारे में कुछ भनक तो नहीं लग गई??"

फाल्गुनी: "नहीं नहीं अंकल.. उसे तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं है"

सुबोधकांत: "आज जिस तरह वो हम दोनों को साथ जाते देखकर मुस्कुरा रही थी.. ये देखकर मुझे तो शक हो रहा है.. !!"

फाल्गुनी: "ऐसा कुछ भी नहीं है.. अगर उसे कुछ भी भनक लग गई होती तो वो मुझसे बात ही क्यों करती?? आह्ह.. अंकल, मुझे नीचे बड़ी मीठी सी खुजली हो रही है.. जरा चाट दीजिए ना.. !!"

मौसम अपने मोबाइल को कान से चिपकाकर बड़ी उत्तेजना से फाल्गुनी औ पापा की कामुक बातें सुन रही थी.. उसे सुनकर ताज्जुब हो रहा था की क इस बेशर्मी से फाल्गुनी उसके पापा को चूत चाटने के लिए कह रही थी..

सुबोधकान्त: "ओह्ह.. तुझे चूत चटवाने की इतनी जल्दी है.. !!! चल चाट देता हूँ"


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मौसम को चूत चटाई की आवाज़ें और फाल्गुनी की सिसकियाँ, दोनों सुनाई दे रही थी.. एक मीठी सी झनझनाहट उसके सारे बदन को सरसराने लगी.. फिर और थोड़ी गंदी गंदी बातें करने के बाद.. सुबोधकान्त ने अपना लंड फाल्गुनी के चेहरे के सामने धर दिया

सुबोधकान्त: "ले बेटा... इसे ठीक से चूस.. बराबर चूसना.. चूस चूसकर तू ऐसी एक्सपर्ट बन जा की शादी के बाद तेरे पति को मज़ा आ जाए.. तू किस्मत वाली है.. की शादी से पहले ही ये सब कुछ सिख पा रही है.. पता नहीं, मौसम को ऐसा सब आता भी होगा या नहीं.. !!"

सुबोधकान्त के खड़े लंड को अपनी कोमल हथेलियों में भरकर हिलाते हुए फाल्गुनी ने कहा "मौसम को भला कौन सिखाएगा?? अगर आप मुझे ये सब न सिखाते तो मुझे भी कैसे पता चलता??"

सुबोधकान्त अब फाल्गुनी के नंगे बदन पर छा गए.. अपने नग्न शरीर से फाल्गुनी के शरीर को ढँक दिया.. और अपनी बालों वाली छाती को उसके स्तनों को रगड़ते हुए बोलें "तुझे तो जब पहली बार देखा था तब से मन बना लिया था चोदने का, मेरी जान.. !! तेरी जवानी.. और खासकर तेरे ये स्तन.. जब देखें तब तय कर लिया था मैंने, की तुझे तो मैं रगड़कर रख दूंगा.. !!"

फाल्गुनी: "मेरे बूब्स?? आपने कब देखें थे मेरे बूब्स अंकल??"

सुबोधकान्त: "एक बार जब तू मेरे हाथों में चाय का कप देने के लिए झुकी थी.. तब तेरे ड्रेस के अंदर, कच्चे अमरूद जैसी चूचियों को देखकर.. मुझे बाथरूम में जाकर मूठ मारनी पड़ी थी.. उस दिन से मैंने मन बना लिया था की तुझे छोड़ूँगा नहीं.. !!"

फाल्गुनी ने झुककर सुबोधकान्त के लोड़े के टोपे पर चुंबन रसीद करते हुए कहा "अच्छा तब देख लिए थे आपने... !!"

"आह्ह.. !!" सुबोधकांत के मुँह से उत्तेजना भरी कराह निकल गई.. "पूरा मुंह में ले ले बेटा.. जड़ तक अंदर लेकर चूस.. बहोत मस्त चूसती है तू.. मौसम को भी तेरी तरह चूसना सीखा दें.. ताकि वो भी शादी के बाद तरुण को मजे दे सकें.. पति को मुठ्ठी में रखने के लिए इस कला का सीखना बहोत आवश्यक होता है बेटा.. !!" कहते हुए सुबोधकान्त ने फाल्गुनी की कोमल क्लिटोरिस को सहलाते हुए उसकी चूत में दो उँगलियाँ सरका दी..

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लंड चूसते हुए भी फाल्गुनी की सिसकियाँ निकल रही थी.. चूत में उंगलियों के अंदर बाहर होने की वजह से..

लंड चुसाई की बातों में अपने नाम का उल्लेख सुनकर मौसम का पूरा शरीर कांपने लगा.. वो बेड पर लेट गई.. उसकी और फाल्गुनी की सिसकियाँ अब एक ताल में साथ साथ निकल रही थी.. अपनी चूत में उंगली डालकर मौसम झड़ गई.. पर उसने फोन कट नहीं किया.. मौसम को ये जानने में दिलचस्पी थी की पापा और फाल्गुनी के जिस्मानी संबंध कितना आगे बढ़ चुके थे.. और अन्य कई बातें भी सुनी उसने..

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सुबोधकान्त: "फाल्गुनी, एक बार तुझे विदेश ले जाना चाहता हूँ मैं.. पर कैसे सेटिंग करूँ कुछ समझ नहीं आता.. तू अपने घर से दस दिनों के लिए निकल सकती है?? कुछ बहाना बना कर??"

फाल्गुनी: "घर पर क्या बताऊँ अंकल?? रात को आधा घंटा लेट हो जाता है तो भी मम्मी कितना सुनाती है मुझे"

सुबोधकान्त: "समझ सकता हूँ.. पर अगर तेरी कोई फ्रेंड भी साथ हो तो शायद तेरे मम्मी-पापा इजाजत दे देंगे"

फाल्गुनी: "मौसम के अलावा मेरी और कोई फ्रेंड नहीं है.. और अगर मान लो मैं किसी फ्रेंड को लेकर आपके साथ आ भी गई.. तो मुझे तो रात को उसके साथ ही रहना पड़ेगा ना.. !! मैं आपके साथ कैसे रह पाऊँगी??"

सुबोधकान्त: "तू कुछ भी कर बेटा.. कोई तरकीब सोच... तेरी शादी से पहले मैं अपनी कुछ इच्छाएं पूरी करना चाहता हूँ जिसके लिए तुझे बहार ले जाना जरूरी है.. यहाँ उसे पूरा नहीं कर पाऊँगा"

फाल्गुनी: "पर अंकल, एक दिन भी बाहर रहना मुमकिन नहीं है.. आप तो दस दिनों की बात कर रहें है"

सुबोधकान्त: "फाल्गुनी, मेरी कुछ खास गुप्त इच्छाएं है.. जिन्हें तृप्त करने की आस लिए मैं अब तक जी रहा हूँ.. और अगर तेरे साथ उन इच्छाओं को पूरी न कर पाया.. तो फिर इस जीवन में उनकी पूरे होने की कोई संभावना नहीं है.. और तू मेरे पास रहेगी भी कितने समय तक?? एकाध साल में तो तेरी भी शादी हो जाएगी.. !!"

फाल्गुनी: "आह्ह अंकल.. ये सारी बातें कर मुझे दुखी मत कीजिए.. मैं अभी यहाँ खुश होने आई हूँ.. तो मुझे खुश कीजिए.. ओह्ह.. मैं अभी बहोत एक्साइटेड हूँ.. ऊँहहह..मुझे चोद दीजिए.. आपके इस (लंड पकड़ते हुए) को तो मैं शादी के बाद भी याद रखूंगी.. और मौका मिलने पर इसे खुश भी करती रहूँगी.. !!" बेशर्म होकर फाल्गुनी ने कहा

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मौसम फोन पर फाल्गुनी की आनंद से भरी किलकारीयों को दर्द भरी सिसकियों को.. साथ में लंड चुसाई के पुचूक-पुचूक आवाजों को सुनकर मदहोश हो गई थी.. झड़ने के बाद उंगलियों पर लगे चूत रस को सुनते हुए उसने फोन पर फ़च-फ़च की आवाज़ें सुनी.. वो समझ गई की फाल्गुनी की बुर में पापा का लंड घुस चुका था और घमासान चुदाई का दौर शुरू हो गया था.. आह्ह.. !! कितना मज़ा आ रहा होगा फाल्गुनी को.. !!

अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए, क्लिटोरिस पर लगे प्रवाही को अपनी निप्पल पर लगाते हुए वो फाल्गुनी की दर्द भरी कराहों को... उत्तेजना मिश्रित सिसकियों को.. लंड और चूत के घर्षण की आवाजों को.. पापा और फाल्गुनी की जांघों के टकराने की ध्वनि को... सुन रही थी.. और सुनते सुनते उसकी चूत एक बार फिर से झड़ गई.. !! इतने कम समय में दो दो ऑर्गजम.. !! मौसम को आश्चर्य हुआ.. दूसरी बार झड़ने के बाद, उसके शरीर की सारी ऊर्जा खर्च हो चुकी थी

मौसम ने फोन कट किया और लाश की तरह सुस्त होकर बेड पर पड़ी रही.. पाँच मिनट के अंतर में उसकी चूत, दो बार ठंडी करते हुए मौसम ने आज नया विक्रम स्थापित कर लिया था.. वो भी बिना लंड के.. !! सिर्फ आवाज़ें सुनकर.. अगर सुनने में इतना मज़ा आया तो फाल्गुनी को कितना मज़ा आ रहा होगा.. !! ये सोचते हुए मौसम को ये विचार आया की पापा अपनी कौन सी गुप्त इच्छाओं के बारे में बात कर रहे थे.. !! सोचते सोचते उसने अपनी जांघें आपस में दबा दी और आँखें बंद कर ली.. !!


करीब एक घंटे बाद मौसम की तब आँख खुली जब फाल्गुनी ने उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी.. कपड़े पहनकर उसने दरवाजा खोला और फाल्गुनी भी अंदर आ गई.. दोनों सहेलियाँ बातें करते करते थोड़ी देर के लिए सो गई.. आधे घंटे के बाद फाल्गुनी उठी.. मुंह धोकर फ्रेश हो कर घर चली गई.. मौसम किचन में मम्मी की मदद करने लग गई.. रमिला बहन भी बहोत थक चुकी थी.. मौसम की सगाई बिना किसी तकलीफ के निपट जाने का संतोष उनके चेहरे पर नजर आ रहा था..
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Lgta videsh me kuchh khhas chudai hogi
 

Ajju Landwalia

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मौसम दरवाजे से बाहर गई तब तक पीयूष उसे पीछे से देखता रहा.. आँखें नम हो गई.. और सब धुंधला दिखाई देने लगा.. थोड़ी देर पहले का कामुक वातावरण अब विषादपूर्ण हो चुका था.. जुदाई हमेशा गम साथ लेकर आती है.. चुपचाप धीरे धीरे जा रही मौसम को वो ऐसे देख रहा तहा जैसे वो वर्तमान को त्यागकर भविष्य की ओर चल पड़ी हो.. !! उसके हर कदम पर पीयूष का दिल बैठा जा रहा था..

जाने से पहले वो पलट कर एक बार मेरी तरफ देखेगी?? एक आखिरी बार उसके हसीन चेहरे को दिल भरकर देखना चाहता हूँ.. पर शायद नहीं पलटेगी..

या पलटेगी.. !!

नहीं पलटेगी शायद.. !!

क्यों पलटेगी भला.. पलटना भी नहीं चाहिए.. !! मैं तो अब उसके लिए गुजरा हुआ वक्त हूँ.. !! असह्य कश्मकश से गुज़रता हुआ पीयूष सांस रोके खड़ा था.. आँखों के रास्ते रूह निकल जाए उतनी आतुरता से वो मौसम के पलटने का.. बिना पलक झपकाए इंतज़ार कर रहा था..

ब्याह कर ससुराल जाती लड़कियां.. अपने मायके की कितनी हसीन यादें अपने दिल में दफन कर जाती है.. औरतों को ये कला कुदरत ने बक्शी होगी?? दरवाजे तक पहुँच चुकी मौसम के अंदर.. अभी भी अपनी प्रेमिका को तलाश रहा था पीयूष.. दो कदम और आगे जाते ही वो लक्ष्मण-रेखा के उस पार पहुँच जाएगी.. जहां पहुँचकर वो उसे भी भूल जाएगी.. धड़कते दिल के साथ पीयूष उसे देखता ही रहा..

दरवाजे से बाहर निकलकर मुड़ने से पहले.. मौसम ने आखिर पलटकर देखा.. दोनों की उदास नजरें एक हुई.. एक फीकी सी मुस्कान के साथ मौसम की और देख रहे पीयूष की आँखों से एक आँसू टपक पड़ा..

कुछ दिन पहले पीयूष को पिंटू ने एक शेर सुनाया था, वो याद आ गया उसे..

.. वो पलट कर जो देखेगी, तो ज़माना थम जाएगा,
मिलेंगे फिर कभी, पर वो पहली मोहब्बत सा ना हो पाएगा।।

मौसम की आँखों मे एक अजीब सा सुकून ढूँढने लगा पीयूष.. उसकी सांसें अब धीमी पड़ रही थी.. पर उस आखिरी बार पलट कर देखने से पीयूष इतना खुश हुआ की इतना खुश तो वो मौसम को पाकर भी नहीं हुआ था.. मौसम के कांपते गोरे होंठ.. गोरे गुलाबी गाल... लाल अधर.. हिरनी जैसी गर्दन.. पीयूष बिना पलक झपकाए उसे देखता ही रहा

जीजू को एक आखिरी बार देखते हुए मौसम को याद आया.. जीजू उसे कितनी बेकरारी से किस करना चाहते थे.. !! पर लिपस्टिक खराब हो जाने के डर से उसने किस नहीं कर दिया.. फाल्गुनी का हाथ छुड़ाकर वो भागकर पीयूष की तरफ आई और उसे गले लगाकर.. बिना लिपस्टिक की परवाह किए.. उसे चूमने लगी.. चूमते चूमते रो पड़ी..

"आई लव यू जीजू.. "

"मौसम, चाहें थोड़ा सा ही करना.. पर याद जरूर करना मुझे" पीयूष भी बस इतना ही बोल पाया

"अलविदा जीजू... आप के साथ बिताया एक एक पल, मैं ज़िंदगी भर नहीं भूल पाऊँगी.. आई विल लव यू फोरेवर.. गुड बाय जीजू" मौसम ने कहा

फाल्गुनी ने तुरंत मौसम के कपड़े और लिपस्टिक ठीक कर दीये और दोनों नीचे चले गए

फाल्गुनी और मौसम सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आ रही थी.. बिल्कुल उसी वक्त... पिंटू के साथ काफी देर से बात कर रही वैशाली ने कहा "मुझे अपने जीवन में तुम्हारे जैसे ही फ्रेंड और फिलोसॉफर की तलाश थी.. क्या तुम मेरे हमसफ़र बनोगे??"

कविता मौसम के करीब जाकर खड़ी हो गई.. एकदम खुश लग रही कविता के सामने देखकर पिंटू सोच रहा था की वैशाली की बात का क्या जवाब दिया जाए..

काफी सोचने के बाद पिंटू ने कहा "वैशाली, आप के साथ जो कुछ भी घटा है.. इसके लिए मेरे दिल में बहोत हमदर्दी है.. आप जब चाहे मुझे किसी भी काम के लिए.. किसी भी वक्त.. दोस्त समझकर कॉल कर सकती है.. !!" इतना कहकर पिंटू ने वैशाली से हाथ मिलाया.. और पानी पीने जाने के बहाने उठकर खड़ा हो गया.. वैशाली ने इतने खुलकर ऑफर करने के बाद भी.. पिंटू एकदम जेन्टलमेन की तरह पेश आया.. यह देखकर.. वैशाली की आँखों में पिंटू की इज्जत ओर बढ़ गई.. !!

मौसम के जाने के बाद.. पीयूष सोफ़े पर बैठे बैठे बहोत रोया.. !! प्यार या प्रेम, सुख देता है.. ये मानने वाले महा-मूर्ख होते है.. हकीकत में, प्रेम की झोली में सुख की भिक्षा मिलती ही नहीं है.. जिसके पास जो चीज होती है.. वही दे पाता है.. इतनी सामान्य सी बात न समझने वाले, ऐसे लोगों के सामने प्रेम की अपेक्षा से झोली फैलाए बैठे रहते है.. जिनके पास देने के लिए गम, धोखा, दर्द और निराशा के अलावा ओर कुछ नहीं होता..

सृष्टि के सर्जन से लेकर आज तक.. ऐसे कौनसे इंसान को आपने देखा जो प्यार में पड़ने के बावजूद हमेशा खुश हो.. !! यही तो इस बात का सब से बड़ा प्रमाण है.. यह सब कुछ जानने के बावजूद लोग प्यार में पड़ते है.. और हँसते हँसते सारे गम, पीड़ा और निराशा को गले लगा लेते है.. क्योंकी शुरुआत में प्रेम आपको सुख का भ्रम दिखाकर इतनी जबरदस्त रोमांचक पलों की भेंट देता है की प्यार करने वाला, अपनी बाकी की ज़िंदगी, उन्हीं पलों को फिर से पाने की उम्मीद लगाए, अपनी बाकी ज़िंदगी हँसते हँसते दर्द में काट लेता है.. और वो हसीन पल, फिर कभी लौटकर नहीं आते.. !!

पीयूष के लिए.. मौसम की जुदाई बर्दाश्त करना बहोत मुश्किल था.. काफी प्रयत्नों के बाद वो खड़ा हुआ और वॉश-बेज़ीन के पास जाकर आईने में अपने चेहरे को देखने लगा.. और खुद से बातें करने लगा.. ये क्या हाल बना रखा है? तू मौसम की मंगनी में आया है या मैयत में?

रो रो कर उसकी आँखें सूजी हुई और लाल हो गई थी... चेहरे पर उदासी के बादल छाए हुए थे.. हथेली में ठंडा पानी लेकर चेहरे को धोने के बाद.. उसे थोड़ी ताजगी का एहसास हुआ.. ठंडे पानी ने चमत्कारिक औषधि जैसा काम किया..

कितनी ताकत होती है पानी में.. !! कैसी भी उदासी हो, एक पल के अंदर ताजगी में परिवर्तित करने का गुण होता है पानी में.. नींद से उठे हुए आदमी को, हकीकत में जगाने का काम पानी ही तो करता है.. दुख और उदासी जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाएँ.. तब उन्हें हल्का करने का काम भी पानी ही करता है.. आँखों से बहकर.. दिल का बोझ हल्का करने का अमोघ शस्त्र.. रुदन.. ये भी तो पानी बहाकर ही होता है.. !!

कमरे से बाहर आकर.. पीयूष ने नीचे का नजारा देखा.. सारे मेहमान गोल बनाकर बैठे थे.. बीच में तरुण और मौसम एक एक आसन पर बैठे हुए थे.. पण्डितजी बैठकर कुछ विधि कर रहे थे.. तरुण ने सुंदर से रिमलेस चश्मे पहन रखे थे.. और उसके कारण उसका चेहरा थोड़ा सा गंभीर और मेच्योर लग रहा था.. कोई भी पहली नजर में देखकर कह सकता था की यह लड़का पढ़ाई में अव्वल होगा.. तरुण और मौसम की जोड़ी.. "मेईड फॉर इच अधर" जैसी दिख रही थी.. तरुण को मौसम के करीब बैठे देखकर.. पीयूष ईर्ष्या की आग में जलने लगा.. तरुण की बगल में बैठी सहमी सी मौसम को वो काफी देर तक देखता रहा.. देखकर कौन अंदाजा लगा पाता.. की शालीन और संस्कारी होकर बैठी यह लड़की.. आधे घंटे पहले अपने बहनोई के लंड से चुदकर बैठी थी.. !! कीसे पता चलता की अभी थोड़ी देर पहले वो झुककर अपने जीजू के लंड को चूस रही थी.. !!

सब की तरफ देख रहे पीयूष की नजर कोने में बैठे पिंटू, वैशाली और कविता पर गई.. और वही स्थिर हो गई.. ऊपर खड़े पीयूष को दिख रहा था की कविता की छातियों की नोक.. पिंटू के कंधों को छु रही थी.. लेकिन भीड़भाड़ वाली जगह पर तो ऐसा अक्सर होता है.. इसलिए पीयूष ने उस बात को ज्यादा दिल पर नहीं लिया.. कमरे के दूसरे कोने मे शीला, मदन, राजेश सर, रेणुका और सुबोधकांत बड़ी ही सौजन्यशील मुद्रा में खड़े हुए थे.. तमाम लोगों के बीच.. एक मात्र शीला ऐसी थी.. जो अपने हुस्न के जलवों से पूरे कमरे को रोशन कर रही थी.. मेहमानों में जो पुरुष थे वह सारे.. बार बार.. किसी न किसी बहाने.. शीला को नजरें भरकर देख रहे थे..

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पीयूष नीचे उतरकर कमरे में आया.. और तरुण तथा मौसम के पीछे खड़ा हो गया

कमरे के कोने में खड़ी शीला ने रेणुका का हाथ पकड़ते हुए कहा "चल बाहर चलते है.. यहाँ कितनी गर्मी हो रही है.. बाहर आराम से बातें करेंगे"

दोनों हाथ पकड़कर बाहर आए.. और घर के बागीचे में कुर्सी पर बैठे बैठे बातें करने लगे

रेणुका: "सुबोधकांत ने घर तो बड़ा ही शानदार बनाया है.. रंगों का कॉम्बीनेशन भी गजब का है"

शीला: "वो खुद भी इतने ही रंगीन है.. मकान तो रंगीन होगा ही"

रेणुका: "हा हा हा.. लगता है.. सुबोधकांत के रंगों का लाभ तूने भी ले लिया है"

शीला: "तो उसमें गलत क्या है?? अब ये मत पूछना की कैसे.. तू भी सयानी बन रही है.. पर अभी वो आकर अपना लंड दिखा देंगे तो तू यहाँ ही चूसने बैठ जाएगी.. मैं तो सीधी बात करती हूँ हमेशा.. !!"

रेणुका: "अरे, मैंने कब कहा की कुछ गलत है.. पर लगता है की मदन भैया के आने के बाद तेरे गुलछर्रे बंद हो गए है"

शीला: "हाँ यार.. उस लाइफ को तो मैं भी बड़ा मिस कर रही हूँ"

रेणुका: "मुझे तेरी भूख का अंदाजा है.. तो अब गुजारा कैसे चलता है तेरा??"

शीला: " कुछ नहीं यार.. फिलहाल मदन से काम चला रही हूँ.. बाहर की बिरियानी अब नसीब नहीं होती.. और जगह भी तो नहीं है कोई.. अब तो वैशाली भी हमारे साथ ही रहेगी.. इसलिए मुझे अब वो पुरानी वाली सारी आजादी हमेशा के लिए भूल जानी पड़ेगी"

रेणुका: "क्यों भूल जानी पड़ेगी.. !! तेरे घर मुमकिन नहीं है तो क्या हुआ.. !! मेरा घर अक्सर खाली रहता है.. राजेश जब भी शहर से बाहर जाता है तब घर पर अकेले बैठे बोर होती रहती हूँ.. तुझे जब मौका मिलें तब मेरे घर चली आना"

शीला: "वो तो ठीक है.. पर तेरे घर आकर क्या करूँ?? हम दोनों साथ बैठकर क्या भजन करेंगे?"

रेणुका: "अरे यार.. भजन नहीं.. भोजन करेंगे.. तुझे जिसे लेकर आना हो, चली आना.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है.. और मैं तुझसे हिस्सा भी नहीं मांगूँगी"

शीला: "यार रेणुका... मुझे हिस्सा देने में भी कोई हर्ज नहीं है.. भूखा मरने से तो बेहतर है की हमारे पास जो हो वो सब मिल बांटकर खाएं.. कभी मेरे पास कुछ नहीं होगा तब तुझसे मांग लूँगी.. संसार ऐसे लेन-देन से ही तो चलता है"

रेणुका: "हम्म.. तो अभी किस के साथ मजे कर रही है?"

शीला: "किसी के साथ नहीं यार.. मदन हमेशा आसपास होता है.. कुछ भी कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता"

रेणुका: "पर कोई तो होगा.. जिसे लेकर तू मेरे घर आ सके"

शीला: "वैसे नमूने तो बहोत सारे है.. खासकर मेरा दूधवाला रसिक.. बेचारा बहोत तड़प रहा है मेरे बगैर.. आशिक हो गया है मेरा.. मन तो मेरा भी बहोत करता है पर क्या करूँ!! जब वो दूध देने आता है तब मदन अंदर के कमरे में सो रहा होता है.. फिर भी वो कभी बबले दबा देता है तो कभी अपना खोलकर हाथ में थमा देता है.. साले का इतना मस्त मोटा गधे जैसा लंड है यार.. !! उसके दो दोस्त है.. रघु और जीवा.. उन दोनों के फोन नंबर है मेरे पास.. पर साले एक नंबर के नशेड़ी है.. दारू पीकर उन्हें खुद होश नहीं रहता की कौनसे छेद में डालना है.. और उन्हें बुलाना हो तो पहले से प्लैनिंग जरूरी है.. वक्त भी ज्यादा चाहिए"

रेणुका: "अरे हाँ याद आया.. वो तेरा दूधवाला.. जिसकी बीवी पेट से थी.. !!"

शीला: "हाँ वही.. अब तो उसका बच्चा भी हो गया.. साला जोरदार है रसिक.. बस एक बार चुदवा लो तो ज़िंदगी भर याद रह जाए"

रेणुका: "शीला, यार मेरे घर उसका सेटिंग कर दे.. मैं भी तो एक बार तेरे दूध वाले को चख कर देखूँ"

शीला: "हाँ करती हूँ कुछ.. अभी तो यहाँ मेरी नजर सुबोधकांत पर है.. पिछली बार जब हम वैशाली को लेने के लिए आए थे.. तब यहाँ गराज में ही उन्होंने मुझे झुकाकर जो शॉट लगाए थे.. आहाहाहा.. आज भी मेरी चूत उस चुदाई को याद कर डकार मार लेती है.. पर अभी इतने सारे मेहमान है.. चांस मिलना मुश्किल है"

तभी सुबोधकांत.. दो कामुक चूतों की गंध परखते हुए बाहर बागीचे में आ गए और बोले "सगाई की विधि खत्म हो गई.. चलिए खाना खाने चलते है"

"आपने घर बहोत बढ़िया बनाया है" रंगीन सुबोधकांत के साथ परिचय बढ़ाने के इरादे से रेणुका ने कहा

"थेंकस.. वैसे आप जैसों की मौजूदगी से मेरे गार्डेन की शोभा बढ़ गई.." शीला के भव्य स्तनों को देखते हुए सुबोधकांत ने कहा.. "बागीचे के फूलों की कोई तुलना ही नहीं है.. आपकी सुंदरता के सामने"

शीला: "अच्छा.. !! आप को कैसे फूल देखना पसंद है"

रेणुका: "अरे शीला.. इतना भी नहीं समझती..?? भँवरा हमेशा उसी फूल के पास जाता जिसमें रस ज्यादा हो.. "

शीला: "ओह्ह.. मुझे ये समझ नहीं आता की पुरुषों की तुलना हमेशा भँवरे से ही क्यों की जाती है?"

सुबोधकांत: "इसलिए क्योंकी फूलों की सच्ची कदर सिर्फ भँवरा ही कर सकता है.. अगर भँवरा न हो तो फूल किस काम का?? और एक बात बता दूँ आपकी जानकारी के लिए.. पुरुषों की तुलना सिर्फ भँवरे के साथ ही नहीं की जाती.. सांड और घोड़े के साथ भी की जाती है.. अलग अलग मामलों में उनकी ताकत और प्रदर्शन के अनुसार उनकी तुलना अलग अलग प्राणियों से की जाती है.. " सुबोधकांत ने द्विअर्थी संवादों का दौर जारी रखा और साथ ही साथ अपनी चोदने की शक्ति का प्रदर्शन भी कर दिया

"बात तो आपकी सही है.. पर फिलहाल हम भँवरे की जो उपमा देते है.. उसकी बात कर रहे है.. भँवरा अपनी पसंद के फूल पर ही मंडराता है ये तो समझ में आता है.. पर अगर फूल को कोई भँवरा पसंद आ जाएँ तो??" शीला ने सिक्सर लगा दी..

सिर्फ थोड़ी देर के लिए एकांत मिला था.. उसमें जीतने हो सकें उतने दांव खेल लेने के लिए शीला तैयार थी.. उसे पता था की रेणुका की मौजूदगी के कारण सुबोधकांत कुछ कह या कर नहीं पा रहें.. वरना पिछली बार की गराज की मुलाकात की यादें ताज़ा करने का अच्छा मौका था.. अगर थोड़ी देर के लिए भी रेणुका चली जाए.. तो अभी सुबोधकांत को कोने में ले जाकर, अपने दोनों स्तनों के बीच की खाई में गायब कर दूँ.. !!

सुबोधकांत: "उसका भी उपाय है.. अगर फूल को कोई भँवरा पसंद आ जाएँ.. तो उस भँवरे का मोबाइल नंबर ले लेना चाहिए.. और मौका मिलने पर उसका इस्तेमाल करना चाहिए... सिम्पल.. !!

सुबोधकांत भी शीला जीतने ही बेकरार थे.. कल से वो शीला की आँखों के हावभाव में छुपे हुए आमंत्रण को देख पा रहे थे.. सुबोधकांत के उत्तर से शीला रोमांचित हो गई.. सुबोधकांत की बात को आगे बढ़ाने की स्पीड काबिल-ए-तारीफ थी.. जरा भी वक्त नहीं गंवाया उन्हों ने.. अगर इसी गति से बात आगे बढ़ी तो शाम तक कुछ सेटिंग होने की गुंजाइश थी..

सुबोधकांत: "बाय ध वे.. आप दोनों के पास मेरा मोबाइल नंबर तो होगा ही.. अगर नहीं है तो मुझसे ले लेना.. और अगर आपको मेरा न लेना हो.. तो आप मुझे आप दोनों का नंबर दे देना.. कुछ अनमोल पुष्प अगर बागीचे में ना हो तो कोई बात नहीं.. पर उनका नंबर पास होना चाहिए.. कम से कम मोबाइल पर बात करके तो उनकी खुशबू का आनंद लिया जा सके"

रेणुका को सुबोधकांत ने अपना लेटेस्ट आईफोन १६ मोबाइल अनलॉक करके दे दिया.. रेणुका को समझ नहीं आया की क्या करना था.. पर शीला समझ गई.. की सुबोधकांत उनका नंबर मांग रहा था.. रेणुका के हाथ से मोबाइल लेकर शीला ने अपना नंबर डायल किया.. और रिंग बजते ही कट कर दिया..

तभी वहाँ रमिलाबहन आ पहुंची "अरे, तुम लोग यहाँ गप्पे लड़ा रहे हो.. !! सारे मेहमान राह देख रहे है.. अंदर चलिए" सुबोधकांत का हाथ पकड़कर खींचते हुए वो उन्हें अंदर ले गई

रेणुका: "तू हमेशा सब बातों में एक कदम आगे ही रहती है.. अब मैं अपना नंबर उनको कैसे भेजूँ? कुछ जुगाड़ लगाना पड़ेगा.. वैसे आदमी है बड़ा ही दिलचस्प" दोनों हँसते हँसते अंदर गए..

"प्लीज, आप लोग पहले खाना खा लीजिए.. बातें तो होती रहेगी" शीला और रेणुका को बातें करते देख सुबोधकांत ने करीब आकर कहा

शीला और रेणुका ने प्लेट ले ली.. दोनों खाना खाने लगे.. सुबोधकांत भी उनके साथ ही खड़े थे..

रेणुका: "अरे शीला.. पता नहीं मैंने अपना मोबाइल कहाँ रख दिया.. !! जरा मुझे मिस-कॉल करना तो.. !!"

शीला: "देख नहीं रही तुम.. खाना खा रही हूँ.. हाथ गंदे है मेरे"

सुबोधकांत: "अरे कोई बात नहीं.. मैं हूँ ना.. !! आप नंबर बताइए.. !!"

रेणुका ने अपना नंबर कहा.. सुबोधकांत ने डायल करते ही रेणुका के पर्स में ही रिंग बजी.. रेणुका ने शीला की तरफ देखकर आँख मारी

रेणुका: "अरे, ये तो मेरे पर्स में ही था.. मैं भी भूल गई थी.. खामखा आपको तकलीफ दी.. !!"

सुबोधकांत: "अरे इसमें तकलीफ की क्या बात है!!" रेणुका का नंबर सेव करते करते उन्हों ने कहा
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पिंटू के विचारों से वैशाली धीरे धीरे प्रभावित हो रही थी.. दोस्ती अक्सर पौधे जैसी होती है.. कभी कभी मिट्टी, खाद और पानी.. सब कुछ ठीक होने पर भी पौधा नहीं खिलता.. और कभी कभी सड़क के किनारे.. बिना किसी देखभाल के भी खिल उठता है.. पिंटू की मित्रता भी कुछ ऐसी ही थी.. ना वैशाली ने कुछ प्रयत्न किया था.. और ना ही पिंटू ने.. सामान्य बातचीत से शुरू हुआ उनका व्यवहार कब दोस्ती में पलट गया.. दोनों को पता ही नहीं चला.. वैशाली अब निःसंकोच पिंटू से बातें करती थी.. ऊपर से, अब वो उनके ऑफिस भी नियमित रूप से जाने लगी थी.. संजय नाम का पन्ना अब उसकी ज़िंदगी की किताब से धीरे धीरे पलट रहा था और जो नया पन्ना खुला था उस पर हल्का हल्का पिंटू का नाम लिखा हुआ नजर आ रहा था..

कविता, फाल्गुनी, पीयूष और पिंटू.. सब खाना खाने में व्यस्त थे.. वैशाली भी उनके साथ जुड़ गई.. मज़ाक मस्ती.. हंसी-ठिठोली के बीच.. मौसम की मंगनी बड़े ही आराम से पूर्ण हो गई.. शहर में रहते मेहमान भी चले गए थे.. अब बाकी सारे लोगों की वापिस लौटने की बारी थी

रेणुका: "शीला, एक काम करते है.. एक गाड़ी बच्चों को दे देते है.. और दूसरी गाड़ी में हम सब साथ चलते है.. वो सब आराम से बातें करेंगे और हमें भी मज़ा आएगा"

राजेश: "बिल्कुल सही कह रही है रेणुका.. पीयूष, ये लो मेरी इनोवा की चाबी.. आप सब साथ चले जाओ.. हम लोग मदन भैया की गाड़ी में आएंगे"

दोनों ही गाड़ियां चल पड़ी.. फाल्गुनी और मौसम, फिर से अकेले रह गए

एक रात में कितना कुछ घट गया.. !! शादी की रात दुल्हन के लिए यादगार होती है.. पर मौसम के लिए तो सगाई की पिछली रात हमेशा ही याद रहने वाली बन गई थी..

सुबोधकांत: "ये ले बेटा फाल्गुनी.. ये टिफिन अंदर गाड़ी में रख दे.. हमारे ऑफिस के प्युन को देकर आते है.. !!" सुबोधकांत ने एक साथ.. ऑफिस के प्युन, फाल्गुनी की चूत और अपने लंड.. तीनों की भूख मिटाने का बंदोबस्त कर दिया

फाल्गुनी मौसम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. पर मौसम ने ताना मारने का मौका नहीं छोड़ा "पापा का लंड एकदम मस्ती से चूसना.. वैसे भी जीजू का देखकर, तू कभी से गरम हो चुकी है"

नजरें झुकाकर मुसकुराते हुए फाल्गुनी सुबोधकांत की कार में बैठ गई.. उसकी चूत में.. पीयूष का लंड देखकर.. और मौसम को घोड़ी बनकर चुदते देखकर.. गजब की अफरातफरी और खलबली मची हुई थी.. उसे शांत करने का समय आ गया था.. जाते जाते उसकी और मौसम की नजरें चार हुई... मौसम ने उसे आँख मारी.. और फाल्गुनी शरमाकर मुस्कुराई.. सारे मेहमानों को विदा करके सुबोधकांत की कार उनकी ऑफिस की दिशा में चल पड़ी

जैसे ही गाड़ी सोसायटी से बाहर निकली, सुबोधकांत ने फाल्गुनी के दोनों स्तनों को मसलकर रख दीये.. "गजब की सुंदर लग रही है इस ड्रेस में तू.. मन तो कर रहा था की सब के सामने से तुझे उठाकर ऑफिस ले जाऊँ और पटककर चोद दूँ.. !!"

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सुनते ही फाल्गुनी बहोत गरम हो गई..उसने कहा "अंकल, आप भी सूट में बड़े हेंडसम लग रहे थे.. मेरा भी बहोत मन कर रहा था.. नीचे तो जैसे बुखार सा चढ़ गया है..!!"

बीस मिनट के ड्राइविंग के बाद दोनों ऑफिस पहुंचे.. ऑफिस पर चपरासी के अलावा और कोई नहीं था.. सुबोधकांत ने उसे टिफिन दिया.. और एक अड्रेस देते हुए कहा की.. वहाँ जाकर पार्टी से चेक लेना है.. उसके जाते ही.. फाल्गुनी कूदकर सुबोधकांत की गोद में बैठ गई.. और उनके मर्दाना होंठों को चूसने लगी..

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फाल्गुनी को आज पहली बार सुबोधकांत ने इतना गरम होते हुए देखा था.. पर उन्हों ने उस बारे में पूछताछ करने के बजाए.. उसकी और अपनी गर्मी को ठंडा करने पर ध्यान केंद्रित किया.. फटाफट उन्हों ने फाल्गुनी को उसके वस्त्रों की कैद से आजाद कर दिया और उसके हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया..


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फाल्गुनी की दिमाग में अभी भी पीयूष के लंड की यादें ताज़ा थी.. हाँ, अंकल के लंड से साइज़ में पतला और थोड़ा छोटा जरूर था.. पर एक स्त्री के लिए, लंड आखिर लंड होता है.. उसे तो बस अपनी चूत की आग ठंडा करने से ही मतलब होता है..

फाल्गुनी और सुबोधकांत की लंबी किस अब भी चल रही थी उस दुरान मौसम का फोन आया.. पर्स के अंदर पड़ा हुआ मोबाइल वो उठाती उससे पहले ही मिस-कॉल हो गया.. "शायद मेरे घर से फोन होगा.. एक मिनट अंकल.. !!" पर्स से मोबाइल निकालकर उसने देखा और मौसम को फोन लगाया.. ज्यादा बात करना मुमकिन नहीं था क्योंकी अंकल को ये पता नहीं चलना चाहिए की उनके गुलछरों के बारे में मौसम जानती थी..

फाल्गुनी ने एकदम फटाफट कॉल खत्म किया.. सुबोधकांत उसे पूछने ही वाले थे की किसका फोन था.. उससे पहले ही फाल्गुनी ने उनका लंड पकड़कर खेलना शुरू कर दिया.. और सुबोधकांत के मन के सारे प्रश्न, भांप बनकर उड़ गए..

फाल्गुनी की छोटी सी गुलाबी निप्पल को मसलते हुए अपना तंग लोडा उसे दिखाकर सुबोधकांत ने पूछा "मैं तो हेंडसम लग रहा था.. अब इसे देख.. ये कैसा लग रहा है? " अपने सुपाड़े को उजागर करते हुए उन्होंने फाल्गुनी से पूछा

"ये तो इसे पता.. " अपनी चूत की ओर इशारा करते हुए फाल्गुनी ने कहा.. शीला और रेणुका के मदमस्त स्तनों को याद करते हुए सुबोधकांत टूट पड़े फाल्गुनी के ऊपर.. आज फाल्गुनी को अंकल की आक्रामकता कई गुना ज्यादा महसूस हुई

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"मम्मी, तरुण का कॉल है.. मैं बात करके आती हूँ" कान पर मोबाइल चिपकाकर मौसम ऊपर अपने बेडरूम मे चली आई.. और दरवाजा बंद कर दिया..

फाल्गुनी और पापा की काम लीला की आवाज़ें सुनने के लिए वो बेकरार थी.. इसलिए उसने फाल्गुनी को फोन किया था.. और फोन पर सिर्फ इतना ही कहा की.. कॉल को चालू रख और फोन साइड में रख दे.. मौसम उन दोनों की चुदाई लीला को सुनते हुए अपनी चूत में उंगली करना चाहती थी.. फाल्गुनी भी समझ गई.. जीजू के लंड का स्वाद चखकर अब मौसम की भूख जाग चुकी थी.. और अब वो हर पल चुदाई के खयालों में ही खोई रहती थी.. फाल्गुनी ने बड़ी ही चालाकी से कॉल चालू रखकर उसे सोफ़े पर रख दिया और उसे अपने दुपट्टे से ढँक दिया..

अपना स्कर्ट उठाकर पेन्टी के अंदर हाथ डालकर.. टांगें फैलाकर बिस्तर पर लेट गई.. फाल्गुनी और पापा की बातें सुनते हुए वो अपने दाने को रगड़ने लगी..

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फाल्गुनी को पता था की मौसम उनकी बातें सुन रही थी.. इसलिए वो बहोत कम बोल रही थी.. और अंकल को ज्यादा बोलने दे रही थी..

सुबोधकांत: "फाल्गुनी बेटा.. कहीं मौसम को हमारे संबंधों के बारे में कुछ भनक तो नहीं लग गई??"

फाल्गुनी: "नहीं नहीं अंकल.. उसे तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं है"

सुबोधकांत: "आज जिस तरह वो हम दोनों को साथ जाते देखकर मुस्कुरा रही थी.. ये देखकर मुझे तो शक हो रहा है.. !!"

फाल्गुनी: "ऐसा कुछ भी नहीं है.. अगर उसे कुछ भी भनक लग गई होती तो वो मुझसे बात ही क्यों करती?? आह्ह.. अंकल, मुझे नीचे बड़ी मीठी सी खुजली हो रही है.. जरा चाट दीजिए ना.. !!"

मौसम अपने मोबाइल को कान से चिपकाकर बड़ी उत्तेजना से फाल्गुनी औ पापा की कामुक बातें सुन रही थी.. उसे सुनकर ताज्जुब हो रहा था की क इस बेशर्मी से फाल्गुनी उसके पापा को चूत चाटने के लिए कह रही थी..

सुबोधकान्त: "ओह्ह.. तुझे चूत चटवाने की इतनी जल्दी है.. !!! चल चाट देता हूँ"


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मौसम को चूत चटाई की आवाज़ें और फाल्गुनी की सिसकियाँ, दोनों सुनाई दे रही थी.. एक मीठी सी झनझनाहट उसके सारे बदन को सरसराने लगी.. फिर और थोड़ी गंदी गंदी बातें करने के बाद.. सुबोधकान्त ने अपना लंड फाल्गुनी के चेहरे के सामने धर दिया

सुबोधकान्त: "ले बेटा... इसे ठीक से चूस.. बराबर चूसना.. चूस चूसकर तू ऐसी एक्सपर्ट बन जा की शादी के बाद तेरे पति को मज़ा आ जाए.. तू किस्मत वाली है.. की शादी से पहले ही ये सब कुछ सिख पा रही है.. पता नहीं, मौसम को ऐसा सब आता भी होगा या नहीं.. !!"

सुबोधकान्त के खड़े लंड को अपनी कोमल हथेलियों में भरकर हिलाते हुए फाल्गुनी ने कहा "मौसम को भला कौन सिखाएगा?? अगर आप मुझे ये सब न सिखाते तो मुझे भी कैसे पता चलता??"

सुबोधकान्त अब फाल्गुनी के नंगे बदन पर छा गए.. अपने नग्न शरीर से फाल्गुनी के शरीर को ढँक दिया.. और अपनी बालों वाली छाती को उसके स्तनों को रगड़ते हुए बोलें "तुझे तो जब पहली बार देखा था तब से मन बना लिया था चोदने का, मेरी जान.. !! तेरी जवानी.. और खासकर तेरे ये स्तन.. जब देखें तब तय कर लिया था मैंने, की तुझे तो मैं रगड़कर रख दूंगा.. !!"

फाल्गुनी: "मेरे बूब्स?? आपने कब देखें थे मेरे बूब्स अंकल??"

सुबोधकान्त: "एक बार जब तू मेरे हाथों में चाय का कप देने के लिए झुकी थी.. तब तेरे ड्रेस के अंदर, कच्चे अमरूद जैसी चूचियों को देखकर.. मुझे बाथरूम में जाकर मूठ मारनी पड़ी थी.. उस दिन से मैंने मन बना लिया था की तुझे छोड़ूँगा नहीं.. !!"

फाल्गुनी ने झुककर सुबोधकान्त के लोड़े के टोपे पर चुंबन रसीद करते हुए कहा "अच्छा तब देख लिए थे आपने... !!"

"आह्ह.. !!" सुबोधकांत के मुँह से उत्तेजना भरी कराह निकल गई.. "पूरा मुंह में ले ले बेटा.. जड़ तक अंदर लेकर चूस.. बहोत मस्त चूसती है तू.. मौसम को भी तेरी तरह चूसना सीखा दें.. ताकि वो भी शादी के बाद तरुण को मजे दे सकें.. पति को मुठ्ठी में रखने के लिए इस कला का सीखना बहोत आवश्यक होता है बेटा.. !!" कहते हुए सुबोधकान्त ने फाल्गुनी की कोमल क्लिटोरिस को सहलाते हुए उसकी चूत में दो उँगलियाँ सरका दी..

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लंड चूसते हुए भी फाल्गुनी की सिसकियाँ निकल रही थी.. चूत में उंगलियों के अंदर बाहर होने की वजह से..

लंड चुसाई की बातों में अपने नाम का उल्लेख सुनकर मौसम का पूरा शरीर कांपने लगा.. वो बेड पर लेट गई.. उसकी और फाल्गुनी की सिसकियाँ अब एक ताल में साथ साथ निकल रही थी.. अपनी चूत में उंगली डालकर मौसम झड़ गई.. पर उसने फोन कट नहीं किया.. मौसम को ये जानने में दिलचस्पी थी की पापा और फाल्गुनी के जिस्मानी संबंध कितना आगे बढ़ चुके थे.. और अन्य कई बातें भी सुनी उसने..

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सुबोधकान्त: "फाल्गुनी, एक बार तुझे विदेश ले जाना चाहता हूँ मैं.. पर कैसे सेटिंग करूँ कुछ समझ नहीं आता.. तू अपने घर से दस दिनों के लिए निकल सकती है?? कुछ बहाना बना कर??"

फाल्गुनी: "घर पर क्या बताऊँ अंकल?? रात को आधा घंटा लेट हो जाता है तो भी मम्मी कितना सुनाती है मुझे"

सुबोधकान्त: "समझ सकता हूँ.. पर अगर तेरी कोई फ्रेंड भी साथ हो तो शायद तेरे मम्मी-पापा इजाजत दे देंगे"

फाल्गुनी: "मौसम के अलावा मेरी और कोई फ्रेंड नहीं है.. और अगर मान लो मैं किसी फ्रेंड को लेकर आपके साथ आ भी गई.. तो मुझे तो रात को उसके साथ ही रहना पड़ेगा ना.. !! मैं आपके साथ कैसे रह पाऊँगी??"

सुबोधकान्त: "तू कुछ भी कर बेटा.. कोई तरकीब सोच... तेरी शादी से पहले मैं अपनी कुछ इच्छाएं पूरी करना चाहता हूँ जिसके लिए तुझे बहार ले जाना जरूरी है.. यहाँ उसे पूरा नहीं कर पाऊँगा"

फाल्गुनी: "पर अंकल, एक दिन भी बाहर रहना मुमकिन नहीं है.. आप तो दस दिनों की बात कर रहें है"

सुबोधकान्त: "फाल्गुनी, मेरी कुछ खास गुप्त इच्छाएं है.. जिन्हें तृप्त करने की आस लिए मैं अब तक जी रहा हूँ.. और अगर तेरे साथ उन इच्छाओं को पूरी न कर पाया.. तो फिर इस जीवन में उनकी पूरे होने की कोई संभावना नहीं है.. और तू मेरे पास रहेगी भी कितने समय तक?? एकाध साल में तो तेरी भी शादी हो जाएगी.. !!"

फाल्गुनी: "आह्ह अंकल.. ये सारी बातें कर मुझे दुखी मत कीजिए.. मैं अभी यहाँ खुश होने आई हूँ.. तो मुझे खुश कीजिए.. ओह्ह.. मैं अभी बहोत एक्साइटेड हूँ.. ऊँहहह..मुझे चोद दीजिए.. आपके इस (लंड पकड़ते हुए) को तो मैं शादी के बाद भी याद रखूंगी.. और मौका मिलने पर इसे खुश भी करती रहूँगी.. !!" बेशर्म होकर फाल्गुनी ने कहा

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मौसम फोन पर फाल्गुनी की आनंद से भरी किलकारीयों को दर्द भरी सिसकियों को.. साथ में लंड चुसाई के पुचूक-पुचूक आवाजों को सुनकर मदहोश हो गई थी.. झड़ने के बाद उंगलियों पर लगे चूत रस को सुनते हुए उसने फोन पर फ़च-फ़च की आवाज़ें सुनी.. वो समझ गई की फाल्गुनी की बुर में पापा का लंड घुस चुका था और घमासान चुदाई का दौर शुरू हो गया था.. आह्ह.. !! कितना मज़ा आ रहा होगा फाल्गुनी को.. !!

अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए, क्लिटोरिस पर लगे प्रवाही को अपनी निप्पल पर लगाते हुए वो फाल्गुनी की दर्द भरी कराहों को... उत्तेजना मिश्रित सिसकियों को.. लंड और चूत के घर्षण की आवाजों को.. पापा और फाल्गुनी की जांघों के टकराने की ध्वनि को... सुन रही थी.. और सुनते सुनते उसकी चूत एक बार फिर से झड़ गई.. !! इतने कम समय में दो दो ऑर्गजम.. !! मौसम को आश्चर्य हुआ.. दूसरी बार झड़ने के बाद, उसके शरीर की सारी ऊर्जा खर्च हो चुकी थी

मौसम ने फोन कट किया और लाश की तरह सुस्त होकर बेड पर पड़ी रही.. पाँच मिनट के अंतर में उसकी चूत, दो बार ठंडी करते हुए मौसम ने आज नया विक्रम स्थापित कर लिया था.. वो भी बिना लंड के.. !! सिर्फ आवाज़ें सुनकर.. अगर सुनने में इतना मज़ा आया तो फाल्गुनी को कितना मज़ा आ रहा होगा.. !! ये सोचते हुए मौसम को ये विचार आया की पापा अपनी कौन सी गुप्त इच्छाओं के बारे में बात कर रहे थे.. !! सोचते सोचते उसने अपनी जांघें आपस में दबा दी और आँखें बंद कर ली.. !!


करीब एक घंटे बाद मौसम की तब आँख खुली जब फाल्गुनी ने उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी.. कपड़े पहनकर उसने दरवाजा खोला और फाल्गुनी भी अंदर आ गई.. दोनों सहेलियाँ बातें करते करते थोड़ी देर के लिए सो गई.. आधे घंटे के बाद फाल्गुनी उठी.. मुंह धोकर फ्रेश हो कर घर चली गई.. मौसम किचन में मम्मी की मदद करने लग गई.. रमिला बहन भी बहोत थक चुकी थी.. मौसम की सगाई बिना किसी तकलीफ के निपट जाने का संतोष उनके चेहरे पर नजर आ रहा था..

Behad shandar update he vakharia Bhai,

Mausam se bichadne ka dard piyush ko bada sata raha he.........

Renuka aur Sheela dono ko hi subodhkant ne pata liya he.............jab kabhi bhi mauka milega vo dono ko jarur chodega

Falguni ke sath subodhkant kuch apni secrete fantasy puri karna chahta he.............lekin yaha nahi videsh me...........

Keep rocking Bhai
 

Napster

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तीनों लड़कियां शांत होकर.. एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर सो गई..

सोने की कोशिश कर रही मौसम की आँखों के सामने बार बार सुबोधकांत का लंड आ जाता था.. उसका मन कर रहा था की फाल्गुनी को जागा कर उससे विडिओ दिखाने को कहें.. विडिओ में पापा को पूरा नंगा देख पाती.. और वो कैसे चोदते है वो भी पता चलता.. पूरे नंगे पापा कैसे लगते होंगे?? वो तो सब ठीक.. पर आज तो पापा ने ही उसे पूरी की पूरी नंगी देख ली थी.. वैशाली मेरी चूत चाट रही थी वो भी पापा ने देख लिया होगा क्या?? क्या सोच रहे होंगे वो मेरे बारे में?? हो सकता है की वो जीजू ही हो.. हो सकता है की वैशाली की पहचानने में गलती हुई हो?? सुबह उठकर वैशाली से पूछूँगी.. जानना तो पड़ेगा.. !! पापा भी बड़े शातिर खिलाड़ी निकलें.. वैशाली और फाल्गुनी दोनों को साथ में चोदते है.. पापा ने आज तक कितनी औरतों और लड़कियों को चोदा होगा??

लंड का स्वाद चखते ही.. मौसम को अपने बाप के लंड के बारे में अजीब अजीब खयाल आने लगे थे.. और उसे इस बात से कोई गिल्ट भी महसूस नहीं हो रहा था.. जवानी की दहलीज पर खड़ी लड़की को अगर संयम का पाठ न पढ़ाया जाए तो वो किसी भी हद तक जा सकती है.. उम्र ही ऐसी होती है.. वासना, संवेदना और उत्तेजना की उछलती हुई लहरों में जो खुद पर अंकुश न रख पाएं.. वह निश्चित तौर पर बर्बादी के रास्ते चल पड़ता है..

जो मौसम, फाल्गुनी और अपने पापा के काम संबंधों को घृणा की नज़रों से देखती आई थी.. वही मौसम अब सेक्स और सहवास को लेकर कुछ भी सोचने से कतराती नहीं थी.. उसे सिर्फ लंड चाहिए था.. जीजू का लंड जब चूत के अंदर बाहर हुआ और तब जो सुख मिला.. उसे सिर्फ याद करते हुए भी वो बेकाबू हो जाती थी.. और उसे बार बार पुरुष के संग सहवास की इच्छा हो रही थी.. यहाँ तक की वो अपने बाप के बारे में गंदे से गंदा विचार करने पर भी अपने मन को रोक नहीं पा रही थी.. फाल्गुनी को लेकर उसके मन में अब सहानुभूति हो रही थी.. वो भी बेचारी इसी तड़प के मारे बार बार पापा से चुदवा रही होगी.. अनगिनत सवालों के घेरे में फंसी मौसम जब सुबह उठी तब उसका सर दर्द कर रहा था.. सिर्फ दो घंटों की नींद ही नसीब हुई थी.. !! देर तक जागने के कारण नींद पूरी नहीं हुई थी.. अरे देर तक क्या.. लगभग पूरी रात ही जागकर गुजार दी थी..

मौसम फटाफट तैयार हो गई और सगाई के मुहूरत की राह देखते हुए ऊपर बने गेस्टरूम में इंतज़ार करने लगी.. दुल्हन की तरह सजधज कर तैयार हुई थी मौसम.. इतनी सुंदर लग रही थी की देखने वाला बस देखता ही रह जाए.. !!

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हाथ की महंदी का एकदम गाढ़ा रंग आ गया था.. गोरे चिकने हाथ पर कुहनी तक लगी महंदी उसके सौन्दर्य पर चार चाँद लगा रही थी.. ताजे खिले गुलाब जैसा उसका चेहरा.. चमकती आँखें.. अपने भविष्य के रंगीन सपने सँजोये बैठी थी.. तरुण के साथ अब तक कुछ ज्यादा बातचीत का मौका नहीं मिला था उसे.. पर अब तक जितनी भी बातें हुई उससे ये तो साफ हो गया था की वो बड़ा ही शांत और समझदार होनहार लड़का था.. जमाने का रंग उस पर चढ़ा नहीं था..

तभी पीयूष उस कमरे में दाखिल हुआ.. मौसम का ये सुंदर रूप वो बस देखता ही रहा.. मेकअप में और भी खूबसूरत लग रही थी मौसम.. !!

"अरे जीजू आप?? आइए आइए.. कैसी लग रही हूँ मैं?" कोयल जैसी मधुर आवाज में मौसम ने कहा

पीयूष अपनी नज़रों से मौसम की खूबसूरती के जाम पीते हुए उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला "ब्यूटीफुल यार.. बेहद खूबसूरत लग रही है तू.. !!"

"थेंक यू जीजू.. जरा ठीक से बैठिए.. कोई देख लेगा.. दरवाजा खुला है" मौसम ने थोड़ी घबराहट से कहा

पीयूष खड़ा हुआ और वो दरवाजा बंद करने ही वाला था तब उसने फाल्गुनी को ऊपर आते हुए देखा.. पीयूष को दरवाजा बंद करते देख.. फाल्गुनी वहीं से मुड़ गई..

दरवाजा बंद करने के बाद, पीयूष मौसम के लबों को चूमना चाहता था.. पर चूमने से लिपस्टिक खराब हो जाती इसलिए कुछ हो नहीं पाया..

"जीजू, आज मैंने आपकी दी हुई ब्रा पहनी है.. "

"क्या बात है.. !! कंफर्टेबल तो है ना..?? चलो मेरी कोई चीज तो तेरे सुंदर बूब्स के करीब है.. "

"अच्छा.. तो फिर साथ में पेन्टी भी गिफ्ट करनी थी.. !!" मौसम ने कहा

हंसकर पीयूष ने कहा "यार वो मुझे याद नहीं आया.. वरना जरूर ले आता.. पर अगर तेरी चूत के करीब कोई चीज रखने का चांस मिलें तो मैं पेन्टी को हरगिज वो मौका नहीं दूंगा.. !!" पीयूष क्या कहना चाहता था वो मौसम समझ रही थी

"आपको कल मज़ा आया जीजू?"

"हाँ यार.. बहोत मज़ा आया.. थोड़ा सा टाइम कम पड़ गया.. पूरी रात मिली होती तो अब तक तीन चार बार तो कर ही लेता.. !!"

"जो मिलें उसमे ही संतोष करना चाहिए.. वरना ये भी नसीब कहाँ होने वाला था.. !! पिछली बार मैंने आपको फोन करके बुलाया और मैं खुद ही बीमार हो गई.. उस बात का बहोत अफसोस है मुझे"

"वो तो है.. पर कल रात तूने ठीक से इन्जॉय तो किया था ना.. !! तेरी कोई इच्छा अधूरी तो नहीं रह गई?? अगर ऐसा हो तो अभी बता दे.. !"

"मुझे तो बहोत मज़ा आया था.. जिंदगी में पहली बार इतना मज़ा आया.. बार बार करने को मन करने लगा है.. एक बार से जैसे मन ही नहीं भरा.. करने के बाद शरीर इतना हल्का हल्का महसूस हो रहा था.. !!!जीजू, पता नहीं.. तरुण के साथ भी ऐसा ही मज़ा मिलेगा या नहीं"

पीयूष: "अगर तेरा बहोत मन कर रहा हो तो.. चल अभी एक राउंड हो जाए.. मैं तैयार हूँ.. मेहमान भी अभी आए नहीं है.. पापा और मदन भैया लंच ऑर्डर करने गए है.. अभी निपटा लेते है.. और हाँ.. शादी के बाद अगर तरुण के साथ मज़ा न आए तो मुझे बुला लेना.. !!"

मौसम: "जीजू, अभी तो मैं उस बारे में ज्यादा सोचना नहीं चाहती"

पीयूष: "ओह मौसम.. पूरी रात मुझे सपने में तेरे बूब्स ही नजर आ रहे थे.. सच कहूँ तो अभी मैं तेरे दबाने के लिए ही आया हूँ.. मुझे एक बार तसल्ली से देख लेने दे.. दबा लेने दे.. चूस लेने दे.. !!" कहते हुए उसने मौसम के गालों को सहला दिया..

मौसम ने कोई विरोध नहीं किया बल्कि पीयूष का हाथ पकड़कर चूम लिया.. और अपने गोरे गालों पर पीयूष का हाथ रगड़ते हुए बोली

मौसम: "ओह्ह जीजू.. प्लीज.. ऐसा मत कीजिए.. मुझे वापिस कुछ कुछ होने लगा है.. मन तो मेरा भी बहोत है.. पर ये कपड़े और मेकअप खराब हो जाने का डर है"

पीयूष: "कुछ भी खराब नहीं होगा.. क्या यार तू भी नखरे कर रही है.. !! देख.. ये मेरा कैसे तैयार होकर खड़ा है.. अकेले मौका मिला है तो मजे कर लेते है यार..!!"

मौसम: "नहीं जीजू.. मुझे बहोत डर लग रहा है.. कोई आ गया तो हंगामा हो जाएगा" मौसम ने मना किया पर फिर भी पीयूष का हाथ नहीं छोड़ा

पीयूष: "तो फिर मैं जाऊँ नीचे? वक्त बर्बाद करने का क्या मतलब!!" नाराज होकर पीयूष ने कहा

मौसम से पीयूष की नाराजगी देखी नहीं गई..

"जीजू प्लीज.. समझने की कोशिश कीजिए.. मन तो मेरा भी.. !!" मौसम ने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया

पीयूष: "तेरा भी मन क्या करने को कर रहा है??"

मौसम: "कुछ नहीं.. आप जाइए यहाँ से.. !!" मौसम ने परेशान होकर आँखें बंद कर दी और अपने दोनों हाथों से सर पकड़ लिया

पीयूष: "अरे रुक क्यों गई? बोल दे जो भी कहना हो.. गेटआउट कह दे मुझे.. मैं चला जाऊंगा " अब भी नाराज था पीयूष

मौसम: "जीजू प्लीज यार.. ऐसा नहीं है.. !! मुझे भी आपका देखने का बड़ा ही मन है" आखिर उसके मुंह से सच निकल ही गया

कोल्डप्ले की टिकट की वैटिंग लिस्ट में नंबर आ जाने पर जो खुशी होती है वही खुशी पीयूष के चेहरे पर भी छा गई..

पीयूष: "ओह, तो उसमें कौन सी बड़ी बात है.. !! ले देख ले.. पर देख के करेगी क्या? खाने को देखने से पेट थोड़े ही भर जाता है.. !! उसके लिए तो निवाला लेकर मुंह में डालना पड़ता है.. !!"

साढ़े छह इंच का एकदम मस्त कडक लोडा बाहर निकालकर मौसम के सामने पेश कर दिया पीयूष ने..

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मौसम के दिल की धड़कने चार गुना तेज हो गई "ओह माय गॉड जीजू.. कितना मस्त लग रहा है यार.. !!"

पीयूष ने लंड को मुठ्ठी में पकड़कर चमड़ी को पीछे सरकाते ही.. उसका छोटे टमाटर जैसे लाल सुपाड़ा दिखने लगा.. वो चमड़ी को आगे पीछे करते हुए हिलाने लगा.. और सुपाड़े की दिखने-छुपने की कवायत शुरू हो गई.. मौसम अपने जीजू का लंड टकटकी लगाए देख रही थी..

मौसम एकदम से खड़ी हो गई.. यह सुनिश्चित करने के लिए की आसपास कोई था या नहीं.. उसने दरवाजा खोलकर देखा.. सीढ़ियों पर फाल्गुनी खड़ी थी.. मौसम को देखते ही उसने अपना अंगूठा दिखाकर थम्स-अप का इशारा करते हुए ये कह दिया की वो निगरानी रखे हुए है.. किसी को ऊपर नहीं आने देगी.. और अगर कोई आ गया तो उसे अलर्ट कर देगी.. मौसम को अब इत्मीनान हो गया

मौसम ने दरवाजा बंद कर लिया और पीयूष का लंड अपने महंदी लगे हाथों से पकड़ लिया.. आह्ह.. लंड की गर्मी का एहसास अपनी कोमल हथेलियों पर होते ही मौसम की आँखें बंद हो गई.. हीना लगे हाथों में कडक लंड का होना.. ये दुनिया के सबसे हसीन द्रश्य में से एक होता है.. उससे सुंदर और कामुक सीन ढूँढना वाकई में मुश्किल है..

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मौसम के हाथ अपने जीजू के लंड को सहला रहे थे और पीयूष उसके बदन से इस तरह खेल रहा था जिससे की उसका मेकअप और ड्रेसिंग खराब न हो जाएँ..

पीयूष: "किस करने का बड़ा मन कर रहा है मौसम.. आह्ह.. एक बार चुनरी हटाकर अपने बूब्स तो दिखा.. मैंने दी हुई ब्रा कैसे लग रही है.. एक बार मैं भी तो देखूँ.. !!"

मौसम: "आह्ह जीजू.. मैं भी काफी एक्साइट हो गई हो और मेरी भी बड़ी इच्छा हो रही है.. पर क्या करूँ.. !! हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है.. इसलिए ऊपर ऊपर से करके ही संतोष करना पड़ेगा.. आप मुझे ज्यादा छूना मत वरना मेकअप खराब हो जाएगा.. !!"

पीयूष: "ओह मौसम.. तेरे इस रूप को देखने के बाद अपने आप को रोक पाना बड़ा ही मुश्किल है.. मुझे अब रोक मत यार.. मुझसे रहा नहीं जाता" पीयूष मौसम को अपनी बाहों में भरने गया..

मौसम: "जीजू प्लीज.. मत करो.. आपकी दूसरी कोई भी इच्छा मैं पूरी कर दूँगी.. मेरे कपड़े खराब हो जाएंगे"

मौसम पीयूष का लंड बड़ी उत्तेजना से मसल रही थी..

पीयूष: "फिर तो एक ही चीज बचती है.. तू मेरा मुंह में लेकर चूस ले.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. कुछ नहीं होगा.. बड़ा मज़ा आएगा.. अगर ना पसंद आए तो निकाल देना.. कल रात को ही मेरा बड़ा मन था तेरे मुंह में देने का.. पर तुझे अच्छा नहीं लगेगा सोचकर मैंने कहा नहीं.. !!"

मौसम: "पर जीजू.. मेरी लिपस्टिक खराब हो जाएगी उसका क्या?? और मुझे आता भी नहीं है चूसना.. " परोक्ष रूप से मौसम ने जता दिया की उसे चूसने में कोई हर्ज नहीं है.. सिर्फ लिपस्टिक खराब हो जाने का डर है

पीयूष: "यार, लिपस्टिक तुम फिर से लगा लेना.. कौन सी बड़ी बात है.. मैं लगा दूंगा तुझे.. और तुझे कहाँ अपने होंठ रगड़ने है.. !! सिर्फ मुंह के अंदर ही तो लेना है.. ले जल्दी.. और चूसना शुरू कर"

पिछली रात से मौसम खुद जीजू का लंड मुंह में लेना चाहती थी.. वो इच्छा अभी पूरी होने वाली थी.. कपड़ों के कारण घुटनों के बल बैठना मुमकिन नहीं था.. और बेड पर बैठे बैठे कैसे चूसती?? आखिर पीयूष कोने में पड़ी कुर्सी ले आया.. और उस पर खड़ा हो गया.. अपना लंड सीधा मौसम के मुंह के सामने धर दिया.. मौसम की हालत देखने जैसी हो गई.. एक तरफ उसकी चूत बगावत पर उतर आई थी.. दूसरी तरफ इतना मस्त लोडा सामने होने के बावजूद वो अंदर ले नहीं पा रही थी उस बात का मलाल था..

नीचे के कमरों से हल्के हल्के शोर-शराबे की आवाज़ें आने लगी थी

"लगता है की मेहमान आ गए है जीजू.. !!"

पीयूष: "कोई बात नहीं.. वो सीधा ऊपर थोड़ी चले आएंगे.. !! तू जल्दी कर यार.. !!" मौका हाथ से जाते हुए देख पीयूष भी बेचैन हो गया और मौसम को ललचाने के लिए उसके गालों पर अपना लंड रगड़ने लगा.. जब तक मौसम अपना मुंह नहीं खोलती.. तब तक अंदर डालना संभव नहीं था.. उसकी लिपस्टिक के कारण.. वरना पीयूष इतना उत्तेजित था की मौसम के होंठों पर जबरदस्ती दबाकर अपना लंड घुसेड़ देता..

आखिर मौसम ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर उसकी नोक पर अपनी जीभ का स्पर्श किया..

"ओह्ह मेरी जान.. !!" पीयूष कराह उठा..

मौसम का मुंह खुलते ही उसने हल्का सा धकेल दिया अपना लंड.. और मौसम का सुंदर मुखड़ा अपने मजबूत लोड़े से भर दिया.. मौसम को तो पता ही नहीं था की मुंह में डालने के बाद आगे क्या करना था.. मुंह के अंदर विचित्र स्वाद की अनुभूति हो रही थी.. कुछ मज़ा नहीं आ रहा था लेकिन अरुचि भी नहीं हो रही थी..

"अब गुड़िया की तरह बैठी क्या है?? अंदर बाहर करना शुरू कर.. !! मुंह में भरकर नहीं रखना है इसे.. चूसना है" पीयूष इस नासमझी से परेशान होकर बोला..

पीयूष की निर्देशानुसार मौसम ने लंड को मुंह के अंदर आगे पीछे करना शुरू किया.. और चूसने लगी.. अब उसे धीरे धीरे अंदाजा लगने लगा था की चूसते कैसे है.. चूसने में आसानी हो इसलिए मौसम ने लंड को जड़ से मजबूती से दबाकर पकड़ रखा था.. दबाने के कारण पीयूष का सुपाड़ा मौसम के मुंह के अंदर एकदम फुल गया.. मस्त टाइट लोड़े को चूसने में अब मौसम को भी मज़ा आ रहा था..

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दोनों इस आनंददायक प्रक्रिया में लीन थे तभी मौसम के मोबाइल पर एक मिस-कॉल आकर चला गया.. लंड चूसते चूसते ही मौसम ने नोटीफिकेशन खोलकर देखा तो फाल्गुनी का मिस-कॉल था.. मतलब खतरे की घंटी.. !!

मौसम ने तुरंत लंड को मुंह से बाहर निकालते हुए कहा.. "जीजू, फाल्गुनी का कॉल था.. आप नीचे जाइए.. !! थोड़ी देर में सगाई की रसम शुरू हो जाएगी"

पीयूष बेचैन होकर बोला "यार, अब इस खड़े लंड का क्या करूँ?? ये तो अब ढीला होने से रहा.. एक काम कर.. तू उल्टा लेट जा.. मैं पीछे से डाल देता हूँ.. तेरा ड्रेस खराब नहीं होगा"

मौसम: "नहीं जीजू.. अब कुछ नहीं हो सकता.. आप जाइए प्लीज.. कोई आ गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे"

तभी तरुण का कॉल आया और मिस-कॉल हो गया.. अपनी होने वाली मंगेतर को वो याद कर रहा था.. पर उसे कहाँ पता था की मौसम तो अपने जीजू के संग जीवन के सर्वोच्च आनंद को प्राप्त करने में मशरूफ़ थी..

"जीजू, तरुण का भी मिस-कॉल आ गया.. प्लीज अब आप जाइए और इसे कैसे भी करके अंदर पेंट में डाल दीजिए.. " बेहद उत्तेजित मौसम ने एक बार और लंड को चूस लिया..

तरुण का नाम सुनते ही पीयूष का दिमाग खराब हो गया.. साला तरुण भेनचोद.. !! इसी तरुण ने उस दिन फोन पर मुझे अपमानित किया था.. उससे तो बराबर बदला लूँगा मैं.. करते रहने दो उसे इंतज़ार.. मौसम जब अस्पताल में थी और पीयूष ने फोन किया था तब तरुण ने फोन उठाया था और ये कहकर मौसम को फोन नहीं दिया था की उसकी चिंता करने के लिए वो बैठा था.. इस बात का बहोत बुरा लगा था पीयूष को.. साला कल का लौंडा मुझे सीखा रहा था.. आज उसे हिसाब बराबर करने का मौका मिल गया था

पीयूष ने आखिरी दांव आजमाते हुए कहा "मौसम, हो सकता है की इस तरह हम आखिरी बार मिल रहे हो.. ऐसा मौका दोबारा कभी नसीब नहीं होगा.. तू जल्दी जल्दी उल्टा होकर लेट जा.. मैं पीछे से डालकर फटाफट चोद दूंगा.. मज़ा आ जाएगा.. ये देख यार.. कितना मस्त टाइट हो गया है.. बातों में टाइम वेस्ट मत कर मेरी जान.. तेरे कपड़े खराब नहीं होंगे और तेरे नीचे की आग भी बुझ जाएगी.. " कहते हुए पीयूष ने उसकी चुनरी हटाकर टाइट चोली के ऊपर से ही उसके दोनों स्तन दबा दीये..

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मौसम: "जिद मत कीजिए जीजू.. प्लीज.. !! आप जाइए.. मुझे नहीं करवाना"

पीयूष: "चल छोड़.. अंदर ना लेना हो तो कोई बात नहीं.. मुझे एक बार तेरी चाट लेने दे.. तेरी चूत की मस्त गंध मैं अपने दिल में हमेशा के लिए बसाकर रखना चाहता हूँ.. मौसम, आई लव यू यार.. मेरा दिल मत तोड़ प्लीज.. एक आखिरी बार तेरी चूत चाटने दे"

चूत चटाई का नाम सुनकर, मौसम के दिल की अरमान उछलने लगे.. उसका विरोध लगभग गायब सा हो गया.. बस अब थोड़ी बहोत शर्म बची थी.. परिस्थिति भयानक थी.. फाल्गुनी ने इशारा कर दिया था.. मेहमान आ चुके थे.. तरुण नीचे से कॉल पर कॉल किए जा रहा था.. कोई भी कभी भी ऊपर आ सकता था.. पर चूत चटवाने की लालच ने मौसम के दिल-ओ-दिमाग पर कब्जा कर लिया था..!!!

मौसम: "जीजू आपने तो मुझे भी गरम कर दिया.. यार आप समझते क्यों नहीं? फाल्गुनी ने पहले ही कॉल करके बता दिया है.. तरुण के फोन पर फोन आ रहा है.. इस स्थति में अगर कोई ऊपर आ गया तो क्या होगा?? आप तो मर्द हो.. निकल जाओगे.. फंसना तो मुझे ही है ना.. !!"

अवैद्य संबंधों की सब से बड़ी तकलीफ और हकीकत.. पकड़े जाने पर ज्यादातर बदनामी लड़की/स्त्री की ही होती है.. !!

पीयूष: "अब चुप भी कर.. ये सब उपदेश बाद में देना.. अभी उसके लिए टाइम नहीं है.. "

पीयूष ने मौसम को बेड के ऊपर खड़ा कर दिया.. वो जानता था की मौसम सिर्फ दिखाने के लिए विरोध कर रही थी.. मन तो उसका भी बड़ा हो रहा था.. पर अब वो मना नहीं कर पाएगी.. लोहा गरम हो चुका था.. !!

पीछे से मौसम का घाघरा उठा दिया पीयूष ने .. गुलाबी रंग की पेन्टी में गोरे जवान कूल्हों को देखकर पीयूष मदहोश हो गया.. उसका लंड उत्तेजना से इतना फुल चुका था की उसे डर लग रहा था की कहीं लंड की नसें फट न जाएँ.. उसने चूत चाटने के लिए मौसम की पेन्टी को एक साइड पर किया और खड़े होकर वो मौसम को पीछे खड़ा हो गया.. पेन्टी को सरकाकर अपने टाइट लंड को कूल्हों से रगड़ने के बाद.. टोपे को मौसम के गरम सुराख पर घिस दिया..

"ऊई माँ.. मर गई.. क्या कर रहे हो जीजू??" मौसम अपनी गांड को लंड के ऊपर गोल गोल घुमाने लगी

पीयूष ने मौसम की कमसिन बुर की फाँकों के बीच अपना सुपाड़ा फँसाकर लंड को थोड़ा सा अंदर डाल ही दिया..

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मौसम: "नहीं जीजू.. मत करो ऐसा.. ऊईईई माँ.. !!" आनंद भरी कराहों से सिसकने लगी मौसम.. उसके विरोध में भी अब कुछ दम नहीं था.. बस थोड़ी सी स्त्री-सहज आनाकानी थी.. पर आज तो पीयूष इतना उत्तेजित था की मौसम सच में विरोध करती तो भी वो सुनने वाला नहीं था.. तरुण के अपमान का बदला लेने का इससे बेहतर मौका कहाँ मिलता.. !! सूत समेत हिसाब बराबर करने का अवसर था.. मौसम के भव्य कूल्हों को दोनों हथेलियों से सपोर्ट देते हुए उसका डेढ़ इंच जितना लंड चूत के अंदर घुस चुका था..

"नहीं जीजू प्लीज.. अब बर्दाश्त नहीं होगा मुझसे.. फिर कभी करेंगे.. आज नहीं.. ओह्ह ओह्ह.. !!" इतनी उत्तेजित हो गई की अपने कपड़ों की परवाह किए बगैर ही चोली के ऊपर से अपने स्तनों को मसलने लगी वो.. और बोली "आप ने तो चाटने की बात की थी.. और डालने लगे.. प्लीज यार.. थोड़ी सी जीभ तो फेर दो एक बार.. !!"

पीयूष भी शातिर खिलाड़ी था.. मौसम की बात को इग्नोर करते हुए उसने एक जोर का धक्का लगाया और अपना पूरा लंड उसकी चूत में बच्चेदानी तक घुसेड़ दिया..


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और कुछ पल तक ऐसे ही खड़ा रहा.. उसके लंड ने मौसम की चूत की दीवारों को चीरते हुए अपना स्थान अंदर बना लिया था.. मौसम की चूत से अब रस टपक रहा था.. और उसके छींटें नीचे बिस्तर पर पड़ रहे थे.. इतना मज़ा आ रहा था मौसम को की उसने अब किसी भी प्रकार का विरोध करना बंद कर दिया.. पर उसी वक्त पीयूष ने झटके से लंड को बाहर निकाल दिया.. और मौसम की चुनरी से अपना लंड पोंछ लिया..

"ओह्ह जीजू.. अब ये क्या?? आपने बाहर क्यों निकाल दिया?? प्लीज अंदर डाल दीजिए वापिस.."

मौसम की बात को अनसुनी कर पीयूष नीचे झुककर मौसम की चूत चाटने लगा.. जैसे ही फाँकों पर जीभ का स्पर्श हुआ, मौसम सिहरने लगी.. लंड के अभाव से छटपटती रही उसकी मुनिया जीभ छूते ही एकदम मदहोश हो गई..

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पर मोटा लंड जब चूत की दीवारों को खिसकाकर अंदर घुसकर जो मजे देता है.. वो मज़ा अब मौसम को चाहिए था.. शेर ने अब खून चख लिया था..

"नहीं जीजू प्लीज.. अब अंदर ही डाल दो.. मुझे नहीं चटवानी.. अंदर डालने से ही मज़ा आएगा"

पीयूष ने उसकी एक न सुनी.. और चूत चाटता ही रहा.. एक पल पहले ही लंड के घर्षण का मज़ा ले चुकी मौसम अब बेचैनी से तरस रही थी.. मौसम लंड अंदर लेना चाहती थी और पीयूष चूत चाट रहा था.. तभी मौसम के मोबाइल की रिंग बजी.. फोन उठाना जरूरी था.. नहीं उठाती तो देखने के लिए कोई न कोई ऊपर चला आता..

सुबोधकांत का फोन था.. मौसम ने उठाया और कहा "हाँ पापा.. !!" जीजा चूत चाट रहा था और साली अपने बाप से बात कर रही थी.. बड़ा ही एरोटिक सीन था.. !!

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"तैयार हो गई बेटा?? और कितनी देर?? मेहमान इंतज़ार कर रहें है.. थोड़ी देर में पंडित आ जाएगा और विधि शुरू कर देगा.. जल्दी कर बेटा"

पीयूष के मुंह पर अपनी चूत दबाते हुए.. और अपने कूल्हें रगड़ते हुए मौसम ने कहा "जी पापा.. मैं तैयार ही हूँ.. बस मेकअप का टचिंग कर रही हूँ.. "

"जो भी कर रही हो, जरा जल्दी करना बेटा.. !! कहीं मुहूरत का समय न निकल जाए" सुबोधकांत ने फोन रख दिया

बगल में खड़ी शीला ने हसंकर कहा "मैंने कहा था ना आप से.. लड़कियों को कितना भी वक्त दो.. उनकी तैयारी कभी खत्म ही नहीं होगी.. " बड़े ही नशीले अंदाज मे आँख मटकाते हुए उसने कहा

सुबोधकांत: "सारी लड़कियां ऐसी नहीं होती.. कुछ तो बहोत जल्दी तैयार हो जाती है" आँख मारकर सुबोधकांत ने भी सिक्सर लगा दिया..

ऊपर के कमरे में पीयूष.. मौसम की चूत की गुलाबी फाँकों को उंगलियों से अलग करते हुए अंदर के लाल हिस्से को जीभ डालकर चाटे जा रहा था.. पीयूष की इस अदा पर मौसम फ़ीदा हो गई.. चूत से रस ऐसे टपक रहा था जैसे बिन बादल बरसात की बूंदें गिर रही हो.. और अब उसकी चूत, चुदाई मांग रही थी.. अब लंड बिना उसका उद्धार नहीं था.. पीयूष अपने खड़े लंड को मुठ्ठी में पकड़कर खुद ही हिलाते सहलाते.. जैसे लोरी सुनाकर मना रहा था..

दोनों तब चोंक उठे जब नीचे से रमिलाबहन की आवाज सुनी "अरे फाल्गुनी.. बेटा मौसम को बोल, की जल्दी से नीचे आ जाएँ.. पण्डितजी भी आ चुके है.. मुहूरत का समय निकला जा रहा है"

मौसम जबरदस्त उत्तेजित थी और लंड लेने के लिए बेबस थी.. उसकी चूत अपना रस उँड़ेलने के लिए मचल रही थी.. पर अपनी माँ की आवाज सुनते ही उसके सारे मूड पर पानी फिर गया.. लेकिन पीयूष खुद को और मौसम को मझधार में छोड़ना नहीं चाहता था.. उसका दृढ़ता से मानना था की जो पुरुष अपनी हमबिस्तर स्त्री को बीच रास्ते, बिना संतुष्ट किए छोड़ देता है.. वह स्त्री भी उसे, जीवन की मझधार में छोड़कर चली जाएगी.. और जल्द ही खुद के लिए नया रास्ता ढूंढ लेगी..

मौसम ने अपनी चूत चाट रहे पीयूष से कहा "बस जीजू.. टाइम खत्म.. छोड़ो मुझे.. अब तो हमें नीचे जाना ही होगा.. पहले मैं नीचे जाती हूँ.. और आप थोड़ी देर बाद आना.. ताकि किसीको शक न हो.. !!"

लेकिन पीयूष इन आखिरी क्षणों का पूर्ण इस्तेमाल कर लेना चाहता था.. अपनी चूत चटाई की तमाम कला को एक साथ काम पर लगाकर उसने मौसम को लाल-गरम कर दिया..


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"ओह्ह जीजू.. ये क्या किया आपने.. !! उफ्फ़.. अब तो मुझसे भी रहा नहीं जाता.. जरा और दबाकर चाटों.. हाय.. ऊई माँ.. !!" मौसम भी चटाई के आखिरी पड़ाव पर थी.. और जाने से पहले झड़ जाना चाहती थी.. तभी.. !!

अचानक फाल्गुनी दरवाजा खोलकर अंदर आ गई.. और खड़ी हुई मौसम के घाघरे में घुसकर चूत चाट रहे पीयूष को देखकर वो जोर जोर से हंसने लगी.. उसे कोई ताज्जुब तो नहीं हुआ था क्यों की अंदर क्या चल रहा होगा, उसका उसे पहले से ही अंदाजा था..

मौसम को भी कोई खास झिझक नहीं हुई.. पर पीयूष बेचारा सकपका गया.. लेकिन मौसम के एक ही वाक्य ने पीयूष के संकोच और शर्म को आश्चर्य में तब्दील कर दिया

"देख लो मम्मी.. एक बार मैंने तुम्हें करते हुए देख लिया था.. आज तुमने मुझे देख लिया.. हिसाब बराबर" हँसते हुए मौसम ने कहा.. फाल्गुनी और मौसम के आपस में सारे पत्ते खुल चुके थे इसलिए दोनों में से किसी को भी एक दूसरे का कोई डर नहीं तहा..

"अरे बाप रे.. जीजू.. आप मेरी बेटी के साथ, ये क्या कर रहे है??" फाल्गुनी ने शरारत करते हुए कहा

पीयूष बेचारे को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.. की ये मौसम और फाल्गुनी एक दूसरे को आपस में मम्मी-बेटी कहकर क्यों बुला रहे थे.. !! वो कुछ पूछता उससे पहले मौसम ने झुककर पीयूष के लंड को अपने मुख तक ला दिया और बोली "फाल्गुनी, तू हम दोनों का विडिओ बना.. इस यादगार पल को रिकॉर्ड कर हम इसे और भी रोमांचक बना देते है.. और जल्दी कर.. नीचे जाना पड़ेगा" मौसम के इस रूप को देखकर पीयूष के तो होश ही उड़ गए.. मौसम ने पीयूष का लंड चूसना शुरू कर दिया और फाल्गुनी अपने मोबाइल से विडिओ बनाने लगी..

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अब मौसम को लिपस्टिक बिगड़ जाने का डर नहीं था.. फाल्गुनी जो आ चुकी थी.. वो उसका मेकअप ठीक करने में मदद करेगी

थोड़ी देर तक लंड चूसकर मौसम खड़ी हो गई और फाल्गुनी से कहा.. "मम्मी, जीजू को अंदर डालकर चोदने की बड़ी ही तीव्र इच्छा है.. मन तो मेरा भी है.. पर ये कपड़े खराब हो जाने का डर है.. अगर हम चोद ले तो क्या तू मेरा ड्रेस ठीक कर पाएगी? नहीं तो फिर तू ही घोड़ी बन जा, जीजू के लिए"

फाल्गुनी ये सुनकर शर्मा गई "क्या यार मौसम.. कुछ भी बोलती है.. चिंता मत कर.. करवा ले जो मन करें.. पर दो मिनट के अंदर.. नहीं तो नीचे से सब लोग ऊपर आ जाएंगे.. !!!"

मौसम ने पेन्टी घुटनों तक उतार दी.. अपना घाघरा ऊपर कर घोड़ी बनकर.. बेशर्मी से अपनी खुली गांड पीयूष को दिखाते हुए बोली "फाल्गुनी से डरने की कोई जरूरत नहीं है जीजू.. आप डाल दो अंदर.. इतनी देर हो ही गई है तो थोड़ी ओर सही.. मैं तो पहले से ही मना कर रही थी.. पर आपने एक न सुनी.. और मुझे गरम करते ही गए.. मन में इच्छा जागृत करवाते हो और आखिर मेरे ही मुंह से सब बुलवाते हो.. !!"

एक तरफ जीजू की जिद, एक तरफ चूत की खुजली और एक तरफ सगाई का मुहूरत.. दुविधाओं के त्रिवेणी संगम के बीच फंस चुकी थी मौसम

"देख क्या रहे हो जीजू.. डाल दो अंदर.. हो जाने दो थोड़ी देर.. निकल जाने दो मुहूरत का समय.. पर हाँ.. जरा कस के धक्के लगाना.. ऐसा ना हो की मुर्गे की जान भी जाए और खाने वाले को मज़ा भी न आए.."

फाल्गुनी की उपस्थिति की परवाह कीये बगैर पीयूष ने मौसम की दोनों जांघों के संगम पर अपने लोडे को टीका दिया और धक्के पर धक्के लगाने लगा.. उसके प्रत्येक धक्के से मौसम की चूत के साथ.. फाल्गुनी की चूत में भी सुरसुरी हो रही थी.. पीयूष के जोरदार लंड को अंदर बाहर होता देख फाल्गुनी का गला सूख रहा था..

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मदहोश होकर फाल्गुनी भी सुबोधकांत की घनघोर चुदाई को याद करते हुए विडिओ बना रही थी.. उसका ऐसा मन कर रहा था की मौसम को धक्का देकर वो खुद घोड़ी बन जाए और जीजू का लंड अंदर ले ले.. डॉगी स्टाइल सुबोधकांत और फाल्गुनी की सबसे पसंदीदा पोजीशन थी.. अलग अलग आसनों में चुदाई के बाद.. फाल्गुनी और सुबोधकांत का मन तब ही भरता था जब वो लोग डॉगी स्टाइल में चुदाई करते थे.. शुरू शुरू में फाल्गुनी इन सारी बातों में अनाड़ी थी.. उसे बड़ा ही विचित्र लगा था पहली बार इस तरह चुदवाने में.. फिर धीरे धीरे मौसम के पापा ने चुदाई के सारे पाठ सीखा दीये.. और वो सिख गई की हर आसान में कैसे लुत्फ उठाया जा सकता है.. अब वो चुदाई की ऐसी आदि हो चुकी थी की सुबोधकांत को किसी भी चीज के लिए मना न करती..

मौसम के दोनों गोरे चूतड़ों को पकड़कर, बीच की दरार में धनाधन लंड डालकर चोदते पीयूष को देखकर, फाल्गुनी का अनायास ही अपनी चूत पर चला गया.. मोबाइल पर जीजू-साली की मस्त चुदाई को शूट करते करते फाल्गुनी खुद अपनी चूत को खुजाने लगी..

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मौसम इतनी उत्तेजित हो गई थी की अपनी गांड को गोल गोल घुमाते हुए पीयूष के लंड का घर्षण अपनी चूत के सभी हिस्सों पर, अधिक से अधिक महसूस कर रही थी.. कामुक घोड़ी की तरह चुदवा रही मौसम को देखकर भला कौन कह सकता था की नीचे उस लड़की की सगाई की तैयारियां चल रही थी.. !!

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"आह्ह जीजू.. फक मी हार्ड.. ओहह गॉड.. बहोत मज़ा आ रहा है.. यस.. उफ्फ़.. हाँ वही स्पॉट है.. उसी जगह धक्के मारो.. उफ्फ़ उफ्फ़ उफ्फ़.. !!" मौसम सातवे आसमान में उड़ रही थी.. बढ़िया सी रिधम में जीजू के बेरहम धक्कों से हिल रहे उसके गोरे कूल्हें.. फाल्गुनी ज़ूम इन ज़ूम आउट करके शूट कर रही थी..

लगातार तीस-पैंतीस धक्के लगाने के बाद पीयूष ने अपना लंड मौसम की पुच्ची से बाहर खींच निकाला और फर्श पर अपने लंड के गाढ़े सफेद वीर्य से रंगोली बना दी..

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पिछली रात के संभोग के दौरान.. अपने जीजू के लंड से छूटे फव्वारे को देखकर मौसम पागल हो गई थी.. पर आज वो यह नजारा देख नहीं पाई थी.. क्योंकि पीयूष उसके पीछे था.. आँख बंद कर.. बड़ी मुसीबत से प्राप्त हुए.. अनमोल ऑर्गजम के मजे ले रही थी..

मौसम तो नहीं देख पाई.. पर फाल्गुनी ने मौसम की चूत रस से सराबोर, पीयूष के वीर्य टपकाते लंड को रूबरू देखा.. उतना ही नहीं.. उसने ज़ूम करके लंड के क्लोजअप शॉट्स भी लिए.. शूटिंग में मशरूफ़ फाल्गुनी का दुपट्टा सरक जाने के कारण उसका एक उरोज गाड़ी की हेडलाइट की तरह चमक रहा था.. जीजू के विकराल लंड को आखिरी क्षणों में ठुमकते देखकर फाल्गुनी की जवानी, लंड का स्वाद चखने को बेताब हो गई थी.. फटी आँखों से लंड और चूत के भीषण युद्ध के बाद हांफ रहे सैनिक जैसे पीयूष के लंड को वो देखती ही रही.. पीयूष आँखें बंद कर उस दिव्य स्खलन के आनंद को महसूस कर रहा था..

आधी मिनट के अंतराल के बाद, मौसम को वास्तविकता का ज्ञान हुआ.. वो खड़ी हुई.. अपनी पेन्टी पहनी.. और घाघरा नीचे कर दिया.. उसने खुद ही अपना मेकअप ठीक किया और लिपस्टिक का टच-अप कर लिया.. पीयूष ने मौसम के साइलन्ट पर रखे मोबाइल के स्क्रीन को देखा.. तरुण की उन्नीस मिस-कॉल आ चुके थे.. मन ही मन वो बहोत खुश हुआ..

फाल्गुनी: "बस यार, अब तो हद ही हो गई है.. नीचे चलें?? आप लोगों ने तो मुझे भी गरम कर दिया यार" पीयूष की नज़रों के सामने ही फाल्गुनी अपनी चूत खुजाते हुए बोली "अब मुझे भी किसी को ऊपर लेकर आना पड़ेगा" और फिर पीयूष के सामने देखकर आँख मारी

पीयूष: "अगर ऐसा है, तो फिर मैं ऊपर ही रहता हूँ.. अभी और एकाध चूत को तो ये शांत कर ही देगा.. !!" मौसम की मस्त चूत को चोदकर.. चुदाई के नशे में झूल रहे लंड को दिखाते हुए पीयूष ने कहा

"एक नंबर के बेशर्म है आप जीजू.. अब हटिए.. मुझे मौसम को लेकर नीचे जाना होगा" कृत्रिम क्रोध के साथ फाल्गुनी ने कहा "और हाँ.. आप यहीं रहिए.. मैं मौसम को लेकर नीचे पहुँच जाऊँ उसके पाँच मिनट बाद आप नीचे आना" फिर मौसम की ओर देखकर बोली "चलो बेटा.. अब नीचे चलें?"

पीयूष पूछना चाहता था की वो दोनों आपस में माँ-बेटी का सम्बोधन क्यों कर रही थी.. !! पर अभी कसी भी बात करने का वक्त नहीं था.. वो जा रही मौसम की पीठ को देख रहा था.. मौसम हमेशा के लिए उससे दूर जा रही थी.. वो उसकी छोटी हो रही परछाई से साफ प्रतीत हो रहा था..
वाह भई वाह क्या गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है मजा आ गया
पियुष ने सगाई के लिये सजी धजी मौसम को सगाई की रस्म होने के कुछ ही देर पहले फाल्गुनी के साक्षी में चोद कर तृप्त कर दिया
 

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मौसम दरवाजे से बाहर गई तब तक पीयूष उसे पीछे से देखता रहा.. आँखें नम हो गई.. और सब धुंधला दिखाई देने लगा.. थोड़ी देर पहले का कामुक वातावरण अब विषादपूर्ण हो चुका था.. जुदाई हमेशा गम साथ लेकर आती है.. चुपचाप धीरे धीरे जा रही मौसम को वो ऐसे देख रहा तहा जैसे वो वर्तमान को त्यागकर भविष्य की ओर चल पड़ी हो.. !! उसके हर कदम पर पीयूष का दिल बैठा जा रहा था..

जाने से पहले वो पलट कर एक बार मेरी तरफ देखेगी?? एक आखिरी बार उसके हसीन चेहरे को दिल भरकर देखना चाहता हूँ.. पर शायद नहीं पलटेगी..

या पलटेगी.. !!

नहीं पलटेगी शायद.. !!

क्यों पलटेगी भला.. पलटना भी नहीं चाहिए.. !! मैं तो अब उसके लिए गुजरा हुआ वक्त हूँ.. !! असह्य कश्मकश से गुज़रता हुआ पीयूष सांस रोके खड़ा था.. आँखों के रास्ते रूह निकल जाए उतनी आतुरता से वो मौसम के पलटने का.. बिना पलक झपकाए इंतज़ार कर रहा था..

ब्याह कर ससुराल जाती लड़कियां.. अपने मायके की कितनी हसीन यादें अपने दिल में दफन कर जाती है.. औरतों को ये कला कुदरत ने बक्शी होगी?? दरवाजे तक पहुँच चुकी मौसम के अंदर.. अभी भी अपनी प्रेमिका को तलाश रहा था पीयूष.. दो कदम और आगे जाते ही वो लक्ष्मण-रेखा के उस पार पहुँच जाएगी.. जहां पहुँचकर वो उसे भी भूल जाएगी.. धड़कते दिल के साथ पीयूष उसे देखता ही रहा..

दरवाजे से बाहर निकलकर मुड़ने से पहले.. मौसम ने आखिर पलटकर देखा.. दोनों की उदास नजरें एक हुई.. एक फीकी सी मुस्कान के साथ मौसम की और देख रहे पीयूष की आँखों से एक आँसू टपक पड़ा..

कुछ दिन पहले पीयूष को पिंटू ने एक शेर सुनाया था, वो याद आ गया उसे..

.. वो पलट कर जो देखेगी, तो ज़माना थम जाएगा,
मिलेंगे फिर कभी, पर वो पहली मोहब्बत सा ना हो पाएगा।।

मौसम की आँखों मे एक अजीब सा सुकून ढूँढने लगा पीयूष.. उसकी सांसें अब धीमी पड़ रही थी.. पर उस आखिरी बार पलट कर देखने से पीयूष इतना खुश हुआ की इतना खुश तो वो मौसम को पाकर भी नहीं हुआ था.. मौसम के कांपते गोरे होंठ.. गोरे गुलाबी गाल... लाल अधर.. हिरनी जैसी गर्दन.. पीयूष बिना पलक झपकाए उसे देखता ही रहा

जीजू को एक आखिरी बार देखते हुए मौसम को याद आया.. जीजू उसे कितनी बेकरारी से किस करना चाहते थे.. !! पर लिपस्टिक खराब हो जाने के डर से उसने किस नहीं कर दिया.. फाल्गुनी का हाथ छुड़ाकर वो भागकर पीयूष की तरफ आई और उसे गले लगाकर.. बिना लिपस्टिक की परवाह किए.. उसे चूमने लगी.. चूमते चूमते रो पड़ी..

"आई लव यू जीजू.. "

"मौसम, चाहें थोड़ा सा ही करना.. पर याद जरूर करना मुझे" पीयूष भी बस इतना ही बोल पाया

"अलविदा जीजू... आप के साथ बिताया एक एक पल, मैं ज़िंदगी भर नहीं भूल पाऊँगी.. आई विल लव यू फोरेवर.. गुड बाय जीजू" मौसम ने कहा

फाल्गुनी ने तुरंत मौसम के कपड़े और लिपस्टिक ठीक कर दीये और दोनों नीचे चले गए

फाल्गुनी और मौसम सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आ रही थी.. बिल्कुल उसी वक्त... पिंटू के साथ काफी देर से बात कर रही वैशाली ने कहा "मुझे अपने जीवन में तुम्हारे जैसे ही फ्रेंड और फिलोसॉफर की तलाश थी.. क्या तुम मेरे हमसफ़र बनोगे??"

कविता मौसम के करीब जाकर खड़ी हो गई.. एकदम खुश लग रही कविता के सामने देखकर पिंटू सोच रहा था की वैशाली की बात का क्या जवाब दिया जाए..

काफी सोचने के बाद पिंटू ने कहा "वैशाली, आप के साथ जो कुछ भी घटा है.. इसके लिए मेरे दिल में बहोत हमदर्दी है.. आप जब चाहे मुझे किसी भी काम के लिए.. किसी भी वक्त.. दोस्त समझकर कॉल कर सकती है.. !!" इतना कहकर पिंटू ने वैशाली से हाथ मिलाया.. और पानी पीने जाने के बहाने उठकर खड़ा हो गया.. वैशाली ने इतने खुलकर ऑफर करने के बाद भी.. पिंटू एकदम जेन्टलमेन की तरह पेश आया.. यह देखकर.. वैशाली की आँखों में पिंटू की इज्जत ओर बढ़ गई.. !!

मौसम के जाने के बाद.. पीयूष सोफ़े पर बैठे बैठे बहोत रोया.. !! प्यार या प्रेम, सुख देता है.. ये मानने वाले महा-मूर्ख होते है.. हकीकत में, प्रेम की झोली में सुख की भिक्षा मिलती ही नहीं है.. जिसके पास जो चीज होती है.. वही दे पाता है.. इतनी सामान्य सी बात न समझने वाले, ऐसे लोगों के सामने प्रेम की अपेक्षा से झोली फैलाए बैठे रहते है.. जिनके पास देने के लिए गम, धोखा, दर्द और निराशा के अलावा ओर कुछ नहीं होता..

सृष्टि के सर्जन से लेकर आज तक.. ऐसे कौनसे इंसान को आपने देखा जो प्यार में पड़ने के बावजूद हमेशा खुश हो.. !! यही तो इस बात का सब से बड़ा प्रमाण है.. यह सब कुछ जानने के बावजूद लोग प्यार में पड़ते है.. और हँसते हँसते सारे गम, पीड़ा और निराशा को गले लगा लेते है.. क्योंकी शुरुआत में प्रेम आपको सुख का भ्रम दिखाकर इतनी जबरदस्त रोमांचक पलों की भेंट देता है की प्यार करने वाला, अपनी बाकी की ज़िंदगी, उन्हीं पलों को फिर से पाने की उम्मीद लगाए, अपनी बाकी ज़िंदगी हँसते हँसते दर्द में काट लेता है.. और वो हसीन पल, फिर कभी लौटकर नहीं आते.. !!

पीयूष के लिए.. मौसम की जुदाई बर्दाश्त करना बहोत मुश्किल था.. काफी प्रयत्नों के बाद वो खड़ा हुआ और वॉश-बेज़ीन के पास जाकर आईने में अपने चेहरे को देखने लगा.. और खुद से बातें करने लगा.. ये क्या हाल बना रखा है? तू मौसम की मंगनी में आया है या मैयत में?

रो रो कर उसकी आँखें सूजी हुई और लाल हो गई थी... चेहरे पर उदासी के बादल छाए हुए थे.. हथेली में ठंडा पानी लेकर चेहरे को धोने के बाद.. उसे थोड़ी ताजगी का एहसास हुआ.. ठंडे पानी ने चमत्कारिक औषधि जैसा काम किया..

कितनी ताकत होती है पानी में.. !! कैसी भी उदासी हो, एक पल के अंदर ताजगी में परिवर्तित करने का गुण होता है पानी में.. नींद से उठे हुए आदमी को, हकीकत में जगाने का काम पानी ही तो करता है.. दुख और उदासी जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाएँ.. तब उन्हें हल्का करने का काम भी पानी ही करता है.. आँखों से बहकर.. दिल का बोझ हल्का करने का अमोघ शस्त्र.. रुदन.. ये भी तो पानी बहाकर ही होता है.. !!

कमरे से बाहर आकर.. पीयूष ने नीचे का नजारा देखा.. सारे मेहमान गोल बनाकर बैठे थे.. बीच में तरुण और मौसम एक एक आसन पर बैठे हुए थे.. पण्डितजी बैठकर कुछ विधि कर रहे थे.. तरुण ने सुंदर से रिमलेस चश्मे पहन रखे थे.. और उसके कारण उसका चेहरा थोड़ा सा गंभीर और मेच्योर लग रहा था.. कोई भी पहली नजर में देखकर कह सकता था की यह लड़का पढ़ाई में अव्वल होगा.. तरुण और मौसम की जोड़ी.. "मेईड फॉर इच अधर" जैसी दिख रही थी.. तरुण को मौसम के करीब बैठे देखकर.. पीयूष ईर्ष्या की आग में जलने लगा.. तरुण की बगल में बैठी सहमी सी मौसम को वो काफी देर तक देखता रहा.. देखकर कौन अंदाजा लगा पाता.. की शालीन और संस्कारी होकर बैठी यह लड़की.. आधे घंटे पहले अपने बहनोई के लंड से चुदकर बैठी थी.. !! कीसे पता चलता की अभी थोड़ी देर पहले वो झुककर अपने जीजू के लंड को चूस रही थी.. !!

सब की तरफ देख रहे पीयूष की नजर कोने में बैठे पिंटू, वैशाली और कविता पर गई.. और वही स्थिर हो गई.. ऊपर खड़े पीयूष को दिख रहा था की कविता की छातियों की नोक.. पिंटू के कंधों को छु रही थी.. लेकिन भीड़भाड़ वाली जगह पर तो ऐसा अक्सर होता है.. इसलिए पीयूष ने उस बात को ज्यादा दिल पर नहीं लिया.. कमरे के दूसरे कोने मे शीला, मदन, राजेश सर, रेणुका और सुबोधकांत बड़ी ही सौजन्यशील मुद्रा में खड़े हुए थे.. तमाम लोगों के बीच.. एक मात्र शीला ऐसी थी.. जो अपने हुस्न के जलवों से पूरे कमरे को रोशन कर रही थी.. मेहमानों में जो पुरुष थे वह सारे.. बार बार.. किसी न किसी बहाने.. शीला को नजरें भरकर देख रहे थे..

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पीयूष नीचे उतरकर कमरे में आया.. और तरुण तथा मौसम के पीछे खड़ा हो गया

कमरे के कोने में खड़ी शीला ने रेणुका का हाथ पकड़ते हुए कहा "चल बाहर चलते है.. यहाँ कितनी गर्मी हो रही है.. बाहर आराम से बातें करेंगे"

दोनों हाथ पकड़कर बाहर आए.. और घर के बागीचे में कुर्सी पर बैठे बैठे बातें करने लगे

रेणुका: "सुबोधकांत ने घर तो बड़ा ही शानदार बनाया है.. रंगों का कॉम्बीनेशन भी गजब का है"

शीला: "वो खुद भी इतने ही रंगीन है.. मकान तो रंगीन होगा ही"

रेणुका: "हा हा हा.. लगता है.. सुबोधकांत के रंगों का लाभ तूने भी ले लिया है"

शीला: "तो उसमें गलत क्या है?? अब ये मत पूछना की कैसे.. तू भी सयानी बन रही है.. पर अभी वो आकर अपना लंड दिखा देंगे तो तू यहाँ ही चूसने बैठ जाएगी.. मैं तो सीधी बात करती हूँ हमेशा.. !!"

रेणुका: "अरे, मैंने कब कहा की कुछ गलत है.. पर लगता है की मदन भैया के आने के बाद तेरे गुलछर्रे बंद हो गए है"

शीला: "हाँ यार.. उस लाइफ को तो मैं भी बड़ा मिस कर रही हूँ"

रेणुका: "मुझे तेरी भूख का अंदाजा है.. तो अब गुजारा कैसे चलता है तेरा??"

शीला: " कुछ नहीं यार.. फिलहाल मदन से काम चला रही हूँ.. बाहर की बिरियानी अब नसीब नहीं होती.. और जगह भी तो नहीं है कोई.. अब तो वैशाली भी हमारे साथ ही रहेगी.. इसलिए मुझे अब वो पुरानी वाली सारी आजादी हमेशा के लिए भूल जानी पड़ेगी"

रेणुका: "क्यों भूल जानी पड़ेगी.. !! तेरे घर मुमकिन नहीं है तो क्या हुआ.. !! मेरा घर अक्सर खाली रहता है.. राजेश जब भी शहर से बाहर जाता है तब घर पर अकेले बैठे बोर होती रहती हूँ.. तुझे जब मौका मिलें तब मेरे घर चली आना"

शीला: "वो तो ठीक है.. पर तेरे घर आकर क्या करूँ?? हम दोनों साथ बैठकर क्या भजन करेंगे?"

रेणुका: "अरे यार.. भजन नहीं.. भोजन करेंगे.. तुझे जिसे लेकर आना हो, चली आना.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है.. और मैं तुझसे हिस्सा भी नहीं मांगूँगी"

शीला: "यार रेणुका... मुझे हिस्सा देने में भी कोई हर्ज नहीं है.. भूखा मरने से तो बेहतर है की हमारे पास जो हो वो सब मिल बांटकर खाएं.. कभी मेरे पास कुछ नहीं होगा तब तुझसे मांग लूँगी.. संसार ऐसे लेन-देन से ही तो चलता है"

रेणुका: "हम्म.. तो अभी किस के साथ मजे कर रही है?"

शीला: "किसी के साथ नहीं यार.. मदन हमेशा आसपास होता है.. कुछ भी कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता"

रेणुका: "पर कोई तो होगा.. जिसे लेकर तू मेरे घर आ सके"

शीला: "वैसे नमूने तो बहोत सारे है.. खासकर मेरा दूधवाला रसिक.. बेचारा बहोत तड़प रहा है मेरे बगैर.. आशिक हो गया है मेरा.. मन तो मेरा भी बहोत करता है पर क्या करूँ!! जब वो दूध देने आता है तब मदन अंदर के कमरे में सो रहा होता है.. फिर भी वो कभी बबले दबा देता है तो कभी अपना खोलकर हाथ में थमा देता है.. साले का इतना मस्त मोटा गधे जैसा लंड है यार.. !! उसके दो दोस्त है.. रघु और जीवा.. उन दोनों के फोन नंबर है मेरे पास.. पर साले एक नंबर के नशेड़ी है.. दारू पीकर उन्हें खुद होश नहीं रहता की कौनसे छेद में डालना है.. और उन्हें बुलाना हो तो पहले से प्लैनिंग जरूरी है.. वक्त भी ज्यादा चाहिए"

रेणुका: "अरे हाँ याद आया.. वो तेरा दूधवाला.. जिसकी बीवी पेट से थी.. !!"

शीला: "हाँ वही.. अब तो उसका बच्चा भी हो गया.. साला जोरदार है रसिक.. बस एक बार चुदवा लो तो ज़िंदगी भर याद रह जाए"

रेणुका: "शीला, यार मेरे घर उसका सेटिंग कर दे.. मैं भी तो एक बार तेरे दूध वाले को चख कर देखूँ"

शीला: "हाँ करती हूँ कुछ.. अभी तो यहाँ मेरी नजर सुबोधकांत पर है.. पिछली बार जब हम वैशाली को लेने के लिए आए थे.. तब यहाँ गराज में ही उन्होंने मुझे झुकाकर जो शॉट लगाए थे.. आहाहाहा.. आज भी मेरी चूत उस चुदाई को याद कर डकार मार लेती है.. पर अभी इतने सारे मेहमान है.. चांस मिलना मुश्किल है"

तभी सुबोधकांत.. दो कामुक चूतों की गंध परखते हुए बाहर बागीचे में आ गए और बोले "सगाई की विधि खत्म हो गई.. चलिए खाना खाने चलते है"

"आपने घर बहोत बढ़िया बनाया है" रंगीन सुबोधकांत के साथ परिचय बढ़ाने के इरादे से रेणुका ने कहा

"थेंकस.. वैसे आप जैसों की मौजूदगी से मेरे गार्डेन की शोभा बढ़ गई.." शीला के भव्य स्तनों को देखते हुए सुबोधकांत ने कहा.. "बागीचे के फूलों की कोई तुलना ही नहीं है.. आपकी सुंदरता के सामने"

शीला: "अच्छा.. !! आप को कैसे फूल देखना पसंद है"

रेणुका: "अरे शीला.. इतना भी नहीं समझती..?? भँवरा हमेशा उसी फूल के पास जाता जिसमें रस ज्यादा हो.. "

शीला: "ओह्ह.. मुझे ये समझ नहीं आता की पुरुषों की तुलना हमेशा भँवरे से ही क्यों की जाती है?"

सुबोधकांत: "इसलिए क्योंकी फूलों की सच्ची कदर सिर्फ भँवरा ही कर सकता है.. अगर भँवरा न हो तो फूल किस काम का?? और एक बात बता दूँ आपकी जानकारी के लिए.. पुरुषों की तुलना सिर्फ भँवरे के साथ ही नहीं की जाती.. सांड और घोड़े के साथ भी की जाती है.. अलग अलग मामलों में उनकी ताकत और प्रदर्शन के अनुसार उनकी तुलना अलग अलग प्राणियों से की जाती है.. " सुबोधकांत ने द्विअर्थी संवादों का दौर जारी रखा और साथ ही साथ अपनी चोदने की शक्ति का प्रदर्शन भी कर दिया

"बात तो आपकी सही है.. पर फिलहाल हम भँवरे की जो उपमा देते है.. उसकी बात कर रहे है.. भँवरा अपनी पसंद के फूल पर ही मंडराता है ये तो समझ में आता है.. पर अगर फूल को कोई भँवरा पसंद आ जाएँ तो??" शीला ने सिक्सर लगा दी..

सिर्फ थोड़ी देर के लिए एकांत मिला था.. उसमें जीतने हो सकें उतने दांव खेल लेने के लिए शीला तैयार थी.. उसे पता था की रेणुका की मौजूदगी के कारण सुबोधकांत कुछ कह या कर नहीं पा रहें.. वरना पिछली बार की गराज की मुलाकात की यादें ताज़ा करने का अच्छा मौका था.. अगर थोड़ी देर के लिए भी रेणुका चली जाए.. तो अभी सुबोधकांत को कोने में ले जाकर, अपने दोनों स्तनों के बीच की खाई में गायब कर दूँ.. !!

सुबोधकांत: "उसका भी उपाय है.. अगर फूल को कोई भँवरा पसंद आ जाएँ.. तो उस भँवरे का मोबाइल नंबर ले लेना चाहिए.. और मौका मिलने पर उसका इस्तेमाल करना चाहिए... सिम्पल.. !!

सुबोधकांत भी शीला जीतने ही बेकरार थे.. कल से वो शीला की आँखों के हावभाव में छुपे हुए आमंत्रण को देख पा रहे थे.. सुबोधकांत के उत्तर से शीला रोमांचित हो गई.. सुबोधकांत की बात को आगे बढ़ाने की स्पीड काबिल-ए-तारीफ थी.. जरा भी वक्त नहीं गंवाया उन्हों ने.. अगर इसी गति से बात आगे बढ़ी तो शाम तक कुछ सेटिंग होने की गुंजाइश थी..

सुबोधकांत: "बाय ध वे.. आप दोनों के पास मेरा मोबाइल नंबर तो होगा ही.. अगर नहीं है तो मुझसे ले लेना.. और अगर आपको मेरा न लेना हो.. तो आप मुझे आप दोनों का नंबर दे देना.. कुछ अनमोल पुष्प अगर बागीचे में ना हो तो कोई बात नहीं.. पर उनका नंबर पास होना चाहिए.. कम से कम मोबाइल पर बात करके तो उनकी खुशबू का आनंद लिया जा सके"

रेणुका को सुबोधकांत ने अपना लेटेस्ट आईफोन १६ मोबाइल अनलॉक करके दे दिया.. रेणुका को समझ नहीं आया की क्या करना था.. पर शीला समझ गई.. की सुबोधकांत उनका नंबर मांग रहा था.. रेणुका के हाथ से मोबाइल लेकर शीला ने अपना नंबर डायल किया.. और रिंग बजते ही कट कर दिया..

तभी वहाँ रमिलाबहन आ पहुंची "अरे, तुम लोग यहाँ गप्पे लड़ा रहे हो.. !! सारे मेहमान राह देख रहे है.. अंदर चलिए" सुबोधकांत का हाथ पकड़कर खींचते हुए वो उन्हें अंदर ले गई

रेणुका: "तू हमेशा सब बातों में एक कदम आगे ही रहती है.. अब मैं अपना नंबर उनको कैसे भेजूँ? कुछ जुगाड़ लगाना पड़ेगा.. वैसे आदमी है बड़ा ही दिलचस्प" दोनों हँसते हँसते अंदर गए..

"प्लीज, आप लोग पहले खाना खा लीजिए.. बातें तो होती रहेगी" शीला और रेणुका को बातें करते देख सुबोधकांत ने करीब आकर कहा

शीला और रेणुका ने प्लेट ले ली.. दोनों खाना खाने लगे.. सुबोधकांत भी उनके साथ ही खड़े थे..

रेणुका: "अरे शीला.. पता नहीं मैंने अपना मोबाइल कहाँ रख दिया.. !! जरा मुझे मिस-कॉल करना तो.. !!"

शीला: "देख नहीं रही तुम.. खाना खा रही हूँ.. हाथ गंदे है मेरे"

सुबोधकांत: "अरे कोई बात नहीं.. मैं हूँ ना.. !! आप नंबर बताइए.. !!"

रेणुका ने अपना नंबर कहा.. सुबोधकांत ने डायल करते ही रेणुका के पर्स में ही रिंग बजी.. रेणुका ने शीला की तरफ देखकर आँख मारी

रेणुका: "अरे, ये तो मेरे पर्स में ही था.. मैं भी भूल गई थी.. खामखा आपको तकलीफ दी.. !!"

सुबोधकांत: "अरे इसमें तकलीफ की क्या बात है!!" रेणुका का नंबर सेव करते करते उन्हों ने कहा
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पिंटू के विचारों से वैशाली धीरे धीरे प्रभावित हो रही थी.. दोस्ती अक्सर पौधे जैसी होती है.. कभी कभी मिट्टी, खाद और पानी.. सब कुछ ठीक होने पर भी पौधा नहीं खिलता.. और कभी कभी सड़क के किनारे.. बिना किसी देखभाल के भी खिल उठता है.. पिंटू की मित्रता भी कुछ ऐसी ही थी.. ना वैशाली ने कुछ प्रयत्न किया था.. और ना ही पिंटू ने.. सामान्य बातचीत से शुरू हुआ उनका व्यवहार कब दोस्ती में पलट गया.. दोनों को पता ही नहीं चला.. वैशाली अब निःसंकोच पिंटू से बातें करती थी.. ऊपर से, अब वो उनके ऑफिस भी नियमित रूप से जाने लगी थी.. संजय नाम का पन्ना अब उसकी ज़िंदगी की किताब से धीरे धीरे पलट रहा था और जो नया पन्ना खुला था उस पर हल्का हल्का पिंटू का नाम लिखा हुआ नजर आ रहा था..

कविता, फाल्गुनी, पीयूष और पिंटू.. सब खाना खाने में व्यस्त थे.. वैशाली भी उनके साथ जुड़ गई.. मज़ाक मस्ती.. हंसी-ठिठोली के बीच.. मौसम की मंगनी बड़े ही आराम से पूर्ण हो गई.. शहर में रहते मेहमान भी चले गए थे.. अब बाकी सारे लोगों की वापिस लौटने की बारी थी

रेणुका: "शीला, एक काम करते है.. एक गाड़ी बच्चों को दे देते है.. और दूसरी गाड़ी में हम सब साथ चलते है.. वो सब आराम से बातें करेंगे और हमें भी मज़ा आएगा"

राजेश: "बिल्कुल सही कह रही है रेणुका.. पीयूष, ये लो मेरी इनोवा की चाबी.. आप सब साथ चले जाओ.. हम लोग मदन भैया की गाड़ी में आएंगे"

दोनों ही गाड़ियां चल पड़ी.. फाल्गुनी और मौसम, फिर से अकेले रह गए

एक रात में कितना कुछ घट गया.. !! शादी की रात दुल्हन के लिए यादगार होती है.. पर मौसम के लिए तो सगाई की पिछली रात हमेशा ही याद रहने वाली बन गई थी..

सुबोधकांत: "ये ले बेटा फाल्गुनी.. ये टिफिन अंदर गाड़ी में रख दे.. हमारे ऑफिस के प्युन को देकर आते है.. !!" सुबोधकांत ने एक साथ.. ऑफिस के प्युन, फाल्गुनी की चूत और अपने लंड.. तीनों की भूख मिटाने का बंदोबस्त कर दिया

फाल्गुनी मौसम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. पर मौसम ने ताना मारने का मौका नहीं छोड़ा "पापा का लंड एकदम मस्ती से चूसना.. वैसे भी जीजू का देखकर, तू कभी से गरम हो चुकी है"

नजरें झुकाकर मुसकुराते हुए फाल्गुनी सुबोधकांत की कार में बैठ गई.. उसकी चूत में.. पीयूष का लंड देखकर.. और मौसम को घोड़ी बनकर चुदते देखकर.. गजब की अफरातफरी और खलबली मची हुई थी.. उसे शांत करने का समय आ गया था.. जाते जाते उसकी और मौसम की नजरें चार हुई... मौसम ने उसे आँख मारी.. और फाल्गुनी शरमाकर मुस्कुराई.. सारे मेहमानों को विदा करके सुबोधकांत की कार उनकी ऑफिस की दिशा में चल पड़ी

जैसे ही गाड़ी सोसायटी से बाहर निकली, सुबोधकांत ने फाल्गुनी के दोनों स्तनों को मसलकर रख दीये.. "गजब की सुंदर लग रही है इस ड्रेस में तू.. मन तो कर रहा था की सब के सामने से तुझे उठाकर ऑफिस ले जाऊँ और पटककर चोद दूँ.. !!"

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सुनते ही फाल्गुनी बहोत गरम हो गई..उसने कहा "अंकल, आप भी सूट में बड़े हेंडसम लग रहे थे.. मेरा भी बहोत मन कर रहा था.. नीचे तो जैसे बुखार सा चढ़ गया है..!!"

बीस मिनट के ड्राइविंग के बाद दोनों ऑफिस पहुंचे.. ऑफिस पर चपरासी के अलावा और कोई नहीं था.. सुबोधकांत ने उसे टिफिन दिया.. और एक अड्रेस देते हुए कहा की.. वहाँ जाकर पार्टी से चेक लेना है.. उसके जाते ही.. फाल्गुनी कूदकर सुबोधकांत की गोद में बैठ गई.. और उनके मर्दाना होंठों को चूसने लगी..

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फाल्गुनी को आज पहली बार सुबोधकांत ने इतना गरम होते हुए देखा था.. पर उन्हों ने उस बारे में पूछताछ करने के बजाए.. उसकी और अपनी गर्मी को ठंडा करने पर ध्यान केंद्रित किया.. फटाफट उन्हों ने फाल्गुनी को उसके वस्त्रों की कैद से आजाद कर दिया और उसके हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया..


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फाल्गुनी की दिमाग में अभी भी पीयूष के लंड की यादें ताज़ा थी.. हाँ, अंकल के लंड से साइज़ में पतला और थोड़ा छोटा जरूर था.. पर एक स्त्री के लिए, लंड आखिर लंड होता है.. उसे तो बस अपनी चूत की आग ठंडा करने से ही मतलब होता है..

फाल्गुनी और सुबोधकांत की लंबी किस अब भी चल रही थी उस दुरान मौसम का फोन आया.. पर्स के अंदर पड़ा हुआ मोबाइल वो उठाती उससे पहले ही मिस-कॉल हो गया.. "शायद मेरे घर से फोन होगा.. एक मिनट अंकल.. !!" पर्स से मोबाइल निकालकर उसने देखा और मौसम को फोन लगाया.. ज्यादा बात करना मुमकिन नहीं था क्योंकी अंकल को ये पता नहीं चलना चाहिए की उनके गुलछरों के बारे में मौसम जानती थी..

फाल्गुनी ने एकदम फटाफट कॉल खत्म किया.. सुबोधकांत उसे पूछने ही वाले थे की किसका फोन था.. उससे पहले ही फाल्गुनी ने उनका लंड पकड़कर खेलना शुरू कर दिया.. और सुबोधकांत के मन के सारे प्रश्न, भांप बनकर उड़ गए..

फाल्गुनी की छोटी सी गुलाबी निप्पल को मसलते हुए अपना तंग लोडा उसे दिखाकर सुबोधकांत ने पूछा "मैं तो हेंडसम लग रहा था.. अब इसे देख.. ये कैसा लग रहा है? " अपने सुपाड़े को उजागर करते हुए उन्होंने फाल्गुनी से पूछा

"ये तो इसे पता.. " अपनी चूत की ओर इशारा करते हुए फाल्गुनी ने कहा.. शीला और रेणुका के मदमस्त स्तनों को याद करते हुए सुबोधकांत टूट पड़े फाल्गुनी के ऊपर.. आज फाल्गुनी को अंकल की आक्रामकता कई गुना ज्यादा महसूस हुई

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"मम्मी, तरुण का कॉल है.. मैं बात करके आती हूँ" कान पर मोबाइल चिपकाकर मौसम ऊपर अपने बेडरूम मे चली आई.. और दरवाजा बंद कर दिया..

फाल्गुनी और पापा की काम लीला की आवाज़ें सुनने के लिए वो बेकरार थी.. इसलिए उसने फाल्गुनी को फोन किया था.. और फोन पर सिर्फ इतना ही कहा की.. कॉल को चालू रख और फोन साइड में रख दे.. मौसम उन दोनों की चुदाई लीला को सुनते हुए अपनी चूत में उंगली करना चाहती थी.. फाल्गुनी भी समझ गई.. जीजू के लंड का स्वाद चखकर अब मौसम की भूख जाग चुकी थी.. और अब वो हर पल चुदाई के खयालों में ही खोई रहती थी.. फाल्गुनी ने बड़ी ही चालाकी से कॉल चालू रखकर उसे सोफ़े पर रख दिया और उसे अपने दुपट्टे से ढँक दिया..

अपना स्कर्ट उठाकर पेन्टी के अंदर हाथ डालकर.. टांगें फैलाकर बिस्तर पर लेट गई.. फाल्गुनी और पापा की बातें सुनते हुए वो अपने दाने को रगड़ने लगी..

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फाल्गुनी को पता था की मौसम उनकी बातें सुन रही थी.. इसलिए वो बहोत कम बोल रही थी.. और अंकल को ज्यादा बोलने दे रही थी..

सुबोधकांत: "फाल्गुनी बेटा.. कहीं मौसम को हमारे संबंधों के बारे में कुछ भनक तो नहीं लग गई??"

फाल्गुनी: "नहीं नहीं अंकल.. उसे तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं है"

सुबोधकांत: "आज जिस तरह वो हम दोनों को साथ जाते देखकर मुस्कुरा रही थी.. ये देखकर मुझे तो शक हो रहा है.. !!"

फाल्गुनी: "ऐसा कुछ भी नहीं है.. अगर उसे कुछ भी भनक लग गई होती तो वो मुझसे बात ही क्यों करती?? आह्ह.. अंकल, मुझे नीचे बड़ी मीठी सी खुजली हो रही है.. जरा चाट दीजिए ना.. !!"

मौसम अपने मोबाइल को कान से चिपकाकर बड़ी उत्तेजना से फाल्गुनी औ पापा की कामुक बातें सुन रही थी.. उसे सुनकर ताज्जुब हो रहा था की क इस बेशर्मी से फाल्गुनी उसके पापा को चूत चाटने के लिए कह रही थी..

सुबोधकान्त: "ओह्ह.. तुझे चूत चटवाने की इतनी जल्दी है.. !!! चल चाट देता हूँ"


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मौसम को चूत चटाई की आवाज़ें और फाल्गुनी की सिसकियाँ, दोनों सुनाई दे रही थी.. एक मीठी सी झनझनाहट उसके सारे बदन को सरसराने लगी.. फिर और थोड़ी गंदी गंदी बातें करने के बाद.. सुबोधकान्त ने अपना लंड फाल्गुनी के चेहरे के सामने धर दिया

सुबोधकान्त: "ले बेटा... इसे ठीक से चूस.. बराबर चूसना.. चूस चूसकर तू ऐसी एक्सपर्ट बन जा की शादी के बाद तेरे पति को मज़ा आ जाए.. तू किस्मत वाली है.. की शादी से पहले ही ये सब कुछ सिख पा रही है.. पता नहीं, मौसम को ऐसा सब आता भी होगा या नहीं.. !!"

सुबोधकान्त के खड़े लंड को अपनी कोमल हथेलियों में भरकर हिलाते हुए फाल्गुनी ने कहा "मौसम को भला कौन सिखाएगा?? अगर आप मुझे ये सब न सिखाते तो मुझे भी कैसे पता चलता??"

सुबोधकान्त अब फाल्गुनी के नंगे बदन पर छा गए.. अपने नग्न शरीर से फाल्गुनी के शरीर को ढँक दिया.. और अपनी बालों वाली छाती को उसके स्तनों को रगड़ते हुए बोलें "तुझे तो जब पहली बार देखा था तब से मन बना लिया था चोदने का, मेरी जान.. !! तेरी जवानी.. और खासकर तेरे ये स्तन.. जब देखें तब तय कर लिया था मैंने, की तुझे तो मैं रगड़कर रख दूंगा.. !!"

फाल्गुनी: "मेरे बूब्स?? आपने कब देखें थे मेरे बूब्स अंकल??"

सुबोधकान्त: "एक बार जब तू मेरे हाथों में चाय का कप देने के लिए झुकी थी.. तब तेरे ड्रेस के अंदर, कच्चे अमरूद जैसी चूचियों को देखकर.. मुझे बाथरूम में जाकर मूठ मारनी पड़ी थी.. उस दिन से मैंने मन बना लिया था की तुझे छोड़ूँगा नहीं.. !!"

फाल्गुनी ने झुककर सुबोधकान्त के लोड़े के टोपे पर चुंबन रसीद करते हुए कहा "अच्छा तब देख लिए थे आपने... !!"

"आह्ह.. !!" सुबोधकांत के मुँह से उत्तेजना भरी कराह निकल गई.. "पूरा मुंह में ले ले बेटा.. जड़ तक अंदर लेकर चूस.. बहोत मस्त चूसती है तू.. मौसम को भी तेरी तरह चूसना सीखा दें.. ताकि वो भी शादी के बाद तरुण को मजे दे सकें.. पति को मुठ्ठी में रखने के लिए इस कला का सीखना बहोत आवश्यक होता है बेटा.. !!" कहते हुए सुबोधकान्त ने फाल्गुनी की कोमल क्लिटोरिस को सहलाते हुए उसकी चूत में दो उँगलियाँ सरका दी..

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लंड चूसते हुए भी फाल्गुनी की सिसकियाँ निकल रही थी.. चूत में उंगलियों के अंदर बाहर होने की वजह से..

लंड चुसाई की बातों में अपने नाम का उल्लेख सुनकर मौसम का पूरा शरीर कांपने लगा.. वो बेड पर लेट गई.. उसकी और फाल्गुनी की सिसकियाँ अब एक ताल में साथ साथ निकल रही थी.. अपनी चूत में उंगली डालकर मौसम झड़ गई.. पर उसने फोन कट नहीं किया.. मौसम को ये जानने में दिलचस्पी थी की पापा और फाल्गुनी के जिस्मानी संबंध कितना आगे बढ़ चुके थे.. और अन्य कई बातें भी सुनी उसने..

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सुबोधकान्त: "फाल्गुनी, एक बार तुझे विदेश ले जाना चाहता हूँ मैं.. पर कैसे सेटिंग करूँ कुछ समझ नहीं आता.. तू अपने घर से दस दिनों के लिए निकल सकती है?? कुछ बहाना बना कर??"

फाल्गुनी: "घर पर क्या बताऊँ अंकल?? रात को आधा घंटा लेट हो जाता है तो भी मम्मी कितना सुनाती है मुझे"

सुबोधकान्त: "समझ सकता हूँ.. पर अगर तेरी कोई फ्रेंड भी साथ हो तो शायद तेरे मम्मी-पापा इजाजत दे देंगे"

फाल्गुनी: "मौसम के अलावा मेरी और कोई फ्रेंड नहीं है.. और अगर मान लो मैं किसी फ्रेंड को लेकर आपके साथ आ भी गई.. तो मुझे तो रात को उसके साथ ही रहना पड़ेगा ना.. !! मैं आपके साथ कैसे रह पाऊँगी??"

सुबोधकान्त: "तू कुछ भी कर बेटा.. कोई तरकीब सोच... तेरी शादी से पहले मैं अपनी कुछ इच्छाएं पूरी करना चाहता हूँ जिसके लिए तुझे बहार ले जाना जरूरी है.. यहाँ उसे पूरा नहीं कर पाऊँगा"

फाल्गुनी: "पर अंकल, एक दिन भी बाहर रहना मुमकिन नहीं है.. आप तो दस दिनों की बात कर रहें है"

सुबोधकान्त: "फाल्गुनी, मेरी कुछ खास गुप्त इच्छाएं है.. जिन्हें तृप्त करने की आस लिए मैं अब तक जी रहा हूँ.. और अगर तेरे साथ उन इच्छाओं को पूरी न कर पाया.. तो फिर इस जीवन में उनकी पूरे होने की कोई संभावना नहीं है.. और तू मेरे पास रहेगी भी कितने समय तक?? एकाध साल में तो तेरी भी शादी हो जाएगी.. !!"

फाल्गुनी: "आह्ह अंकल.. ये सारी बातें कर मुझे दुखी मत कीजिए.. मैं अभी यहाँ खुश होने आई हूँ.. तो मुझे खुश कीजिए.. ओह्ह.. मैं अभी बहोत एक्साइटेड हूँ.. ऊँहहह..मुझे चोद दीजिए.. आपके इस (लंड पकड़ते हुए) को तो मैं शादी के बाद भी याद रखूंगी.. और मौका मिलने पर इसे खुश भी करती रहूँगी.. !!" बेशर्म होकर फाल्गुनी ने कहा

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मौसम फोन पर फाल्गुनी की आनंद से भरी किलकारीयों को दर्द भरी सिसकियों को.. साथ में लंड चुसाई के पुचूक-पुचूक आवाजों को सुनकर मदहोश हो गई थी.. झड़ने के बाद उंगलियों पर लगे चूत रस को सुनते हुए उसने फोन पर फ़च-फ़च की आवाज़ें सुनी.. वो समझ गई की फाल्गुनी की बुर में पापा का लंड घुस चुका था और घमासान चुदाई का दौर शुरू हो गया था.. आह्ह.. !! कितना मज़ा आ रहा होगा फाल्गुनी को.. !!

अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए, क्लिटोरिस पर लगे प्रवाही को अपनी निप्पल पर लगाते हुए वो फाल्गुनी की दर्द भरी कराहों को... उत्तेजना मिश्रित सिसकियों को.. लंड और चूत के घर्षण की आवाजों को.. पापा और फाल्गुनी की जांघों के टकराने की ध्वनि को... सुन रही थी.. और सुनते सुनते उसकी चूत एक बार फिर से झड़ गई.. !! इतने कम समय में दो दो ऑर्गजम.. !! मौसम को आश्चर्य हुआ.. दूसरी बार झड़ने के बाद, उसके शरीर की सारी ऊर्जा खर्च हो चुकी थी

मौसम ने फोन कट किया और लाश की तरह सुस्त होकर बेड पर पड़ी रही.. पाँच मिनट के अंतर में उसकी चूत, दो बार ठंडी करते हुए मौसम ने आज नया विक्रम स्थापित कर लिया था.. वो भी बिना लंड के.. !! सिर्फ आवाज़ें सुनकर.. अगर सुनने में इतना मज़ा आया तो फाल्गुनी को कितना मज़ा आ रहा होगा.. !! ये सोचते हुए मौसम को ये विचार आया की पापा अपनी कौन सी गुप्त इच्छाओं के बारे में बात कर रहे थे.. !! सोचते सोचते उसने अपनी जांघें आपस में दबा दी और आँखें बंद कर ली.. !!


करीब एक घंटे बाद मौसम की तब आँख खुली जब फाल्गुनी ने उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी.. कपड़े पहनकर उसने दरवाजा खोला और फाल्गुनी भी अंदर आ गई.. दोनों सहेलियाँ बातें करते करते थोड़ी देर के लिए सो गई.. आधे घंटे के बाद फाल्गुनी उठी.. मुंह धोकर फ्रेश हो कर घर चली गई.. मौसम किचन में मम्मी की मदद करने लग गई.. रमिला बहन भी बहोत थक चुकी थी.. मौसम की सगाई बिना किसी तकलीफ के निपट जाने का संतोष उनके चेहरे पर नजर आ रहा था..
कामुक update
 
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