मौसम दरवाजे से बाहर गई तब तक पीयूष उसे पीछे से देखता रहा.. आँखें नम हो गई.. और सब धुंधला दिखाई देने लगा.. थोड़ी देर पहले का कामुक वातावरण अब विषादपूर्ण हो चुका था.. जुदाई हमेशा गम साथ लेकर आती है.. चुपचाप धीरे धीरे जा रही मौसम को वो ऐसे देख रहा तहा जैसे वो वर्तमान को त्यागकर भविष्य की ओर चल पड़ी हो.. !! उसके हर कदम पर पीयूष का दिल बैठा जा रहा था..
जाने से पहले वो पलट कर एक बार मेरी तरफ देखेगी?? एक आखिरी बार उसके हसीन चेहरे को दिल भरकर देखना चाहता हूँ.. पर शायद नहीं पलटेगी..
या पलटेगी.. !!
नहीं पलटेगी शायद.. !!
क्यों पलटेगी भला.. पलटना भी नहीं चाहिए.. !! मैं तो अब उसके लिए गुजरा हुआ वक्त हूँ.. !! असह्य कश्मकश से गुज़रता हुआ पीयूष सांस रोके खड़ा था.. आँखों के रास्ते रूह निकल जाए उतनी आतुरता से वो मौसम के पलटने का.. बिना पलक झपकाए इंतज़ार कर रहा था..
ब्याह कर ससुराल जाती लड़कियां.. अपने मायके की कितनी हसीन यादें अपने दिल में दफन कर जाती है.. औरतों को ये कला कुदरत ने बक्शी होगी?? दरवाजे तक पहुँच चुकी मौसम के अंदर.. अभी भी अपनी प्रेमिका को तलाश रहा था पीयूष.. दो कदम और आगे जाते ही वो लक्ष्मण-रेखा के उस पार पहुँच जाएगी.. जहां पहुँचकर वो उसे भी भूल जाएगी.. धड़कते दिल के साथ पीयूष उसे देखता ही रहा..
दरवाजे से बाहर निकलकर मुड़ने से पहले.. मौसम ने आखिर पलटकर देखा.. दोनों की उदास नजरें एक हुई.. एक फीकी सी मुस्कान के साथ मौसम की और देख रहे पीयूष की आँखों से एक आँसू टपक पड़ा..
कुछ दिन पहले पीयूष को पिंटू ने एक शेर सुनाया था, वो याद आ गया उसे..
.. वो पलट कर जो देखेगी, तो ज़माना थम जाएगा,
मिलेंगे फिर कभी, पर वो पहली मोहब्बत सा ना हो पाएगा।।
मौसम की आँखों मे एक अजीब सा सुकून ढूँढने लगा पीयूष.. उसकी सांसें अब धीमी पड़ रही थी.. पर उस आखिरी बार पलट कर देखने से पीयूष इतना खुश हुआ की इतना खुश तो वो मौसम को पाकर भी नहीं हुआ था.. मौसम के कांपते गोरे होंठ.. गोरे गुलाबी गाल... लाल अधर.. हिरनी जैसी गर्दन.. पीयूष बिना पलक झपकाए उसे देखता ही रहा
जीजू को एक आखिरी बार देखते हुए मौसम को याद आया.. जीजू उसे कितनी बेकरारी से किस करना चाहते थे.. !! पर लिपस्टिक खराब हो जाने के डर से उसने किस नहीं कर दिया.. फाल्गुनी का हाथ छुड़ाकर वो भागकर पीयूष की तरफ आई और उसे गले लगाकर.. बिना लिपस्टिक की परवाह किए.. उसे चूमने लगी.. चूमते चूमते रो पड़ी..
"आई लव यू जीजू.. "
"मौसम, चाहें थोड़ा सा ही करना.. पर याद जरूर करना मुझे" पीयूष भी बस इतना ही बोल पाया
"अलविदा जीजू... आप के साथ बिताया एक एक पल, मैं ज़िंदगी भर नहीं भूल पाऊँगी.. आई विल लव यू फोरेवर.. गुड बाय जीजू" मौसम ने कहा
फाल्गुनी ने तुरंत मौसम के कपड़े और लिपस्टिक ठीक कर दीये और दोनों नीचे चले गए
फाल्गुनी और मौसम सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आ रही थी.. बिल्कुल उसी वक्त... पिंटू के साथ काफी देर से बात कर रही वैशाली ने कहा "मुझे अपने जीवन में तुम्हारे जैसे ही फ्रेंड और फिलोसॉफर की तलाश थी.. क्या तुम मेरे हमसफ़र बनोगे??"
कविता मौसम के करीब जाकर खड़ी हो गई.. एकदम खुश लग रही कविता के सामने देखकर पिंटू सोच रहा था की वैशाली की बात का क्या जवाब दिया जाए..
काफी सोचने के बाद पिंटू ने कहा "वैशाली, आप के साथ जो कुछ भी घटा है.. इसके लिए मेरे दिल में बहोत हमदर्दी है.. आप जब चाहे मुझे किसी भी काम के लिए.. किसी भी वक्त.. दोस्त समझकर कॉल कर सकती है.. !!" इतना कहकर पिंटू ने वैशाली से हाथ मिलाया.. और पानी पीने जाने के बहाने उठकर खड़ा हो गया.. वैशाली ने इतने खुलकर ऑफर करने के बाद भी.. पिंटू एकदम जेन्टलमेन की तरह पेश आया.. यह देखकर.. वैशाली की आँखों में पिंटू की इज्जत ओर बढ़ गई.. !!
मौसम के जाने के बाद.. पीयूष सोफ़े पर बैठे बैठे बहोत रोया.. !! प्यार या प्रेम, सुख देता है.. ये मानने वाले महा-मूर्ख होते है.. हकीकत में, प्रेम की झोली में सुख की भिक्षा मिलती ही नहीं है.. जिसके पास जो चीज होती है.. वही दे पाता है.. इतनी सामान्य सी बात न समझने वाले, ऐसे लोगों के सामने प्रेम की अपेक्षा से झोली फैलाए बैठे रहते है.. जिनके पास देने के लिए गम, धोखा, दर्द और निराशा के अलावा ओर कुछ नहीं होता..
सृष्टि के सर्जन से लेकर आज तक.. ऐसे कौनसे इंसान को आपने देखा जो प्यार में पड़ने के बावजूद हमेशा खुश हो.. !! यही तो इस बात का सब से बड़ा प्रमाण है.. यह सब कुछ जानने के बावजूद लोग प्यार में पड़ते है.. और हँसते हँसते सारे गम, पीड़ा और निराशा को गले लगा लेते है.. क्योंकी शुरुआत में प्रेम आपको सुख का भ्रम दिखाकर इतनी जबरदस्त रोमांचक पलों की भेंट देता है की प्यार करने वाला, अपनी बाकी की ज़िंदगी, उन्हीं पलों को फिर से पाने की उम्मीद लगाए, अपनी बाकी ज़िंदगी हँसते हँसते दर्द में काट लेता है.. और वो हसीन पल, फिर कभी लौटकर नहीं आते.. !!
पीयूष के लिए.. मौसम की जुदाई बर्दाश्त करना बहोत मुश्किल था.. काफी प्रयत्नों के बाद वो खड़ा हुआ और वॉश-बेज़ीन के पास जाकर आईने में अपने चेहरे को देखने लगा.. और खुद से बातें करने लगा.. ये क्या हाल बना रखा है? तू मौसम की मंगनी में आया है या मैयत में?
रो रो कर उसकी आँखें सूजी हुई और लाल हो गई थी... चेहरे पर उदासी के बादल छाए हुए थे.. हथेली में ठंडा पानी लेकर चेहरे को धोने के बाद.. उसे थोड़ी ताजगी का एहसास हुआ.. ठंडे पानी ने चमत्कारिक औषधि जैसा काम किया..
कितनी ताकत होती है पानी में.. !! कैसी भी उदासी हो, एक पल के अंदर ताजगी में परिवर्तित करने का गुण होता है पानी में.. नींद से उठे हुए आदमी को, हकीकत में जगाने का काम पानी ही तो करता है.. दुख और उदासी जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाएँ.. तब उन्हें हल्का करने का काम भी पानी ही करता है.. आँखों से बहकर.. दिल का बोझ हल्का करने का अमोघ शस्त्र.. रुदन.. ये भी तो पानी बहाकर ही होता है.. !!
कमरे से बाहर आकर.. पीयूष ने नीचे का नजारा देखा.. सारे मेहमान गोल बनाकर बैठे थे.. बीच में तरुण और मौसम एक एक आसन पर बैठे हुए थे.. पण्डितजी बैठकर कुछ विधि कर रहे थे.. तरुण ने सुंदर से रिमलेस चश्मे पहन रखे थे.. और उसके कारण उसका चेहरा थोड़ा सा गंभीर और मेच्योर लग रहा था.. कोई भी पहली नजर में देखकर कह सकता था की यह लड़का पढ़ाई में अव्वल होगा.. तरुण और मौसम की जोड़ी.. "मेईड फॉर इच अधर" जैसी दिख रही थी.. तरुण को मौसम के करीब बैठे देखकर.. पीयूष ईर्ष्या की आग में जलने लगा.. तरुण की बगल में बैठी सहमी सी मौसम को वो काफी देर तक देखता रहा.. देखकर कौन अंदाजा लगा पाता.. की शालीन और संस्कारी होकर बैठी यह लड़की.. आधे घंटे पहले अपने बहनोई के लंड से चुदकर बैठी थी.. !! कीसे पता चलता की अभी थोड़ी देर पहले वो झुककर अपने जीजू के लंड को चूस रही थी.. !!
सब की तरफ देख रहे पीयूष की नजर कोने में बैठे पिंटू, वैशाली और कविता पर गई.. और वही स्थिर हो गई.. ऊपर खड़े पीयूष को दिख रहा था की कविता की छातियों की नोक.. पिंटू के कंधों को छु रही थी.. लेकिन भीड़भाड़ वाली जगह पर तो ऐसा अक्सर होता है.. इसलिए पीयूष ने उस बात को ज्यादा दिल पर नहीं लिया.. कमरे के दूसरे कोने मे शीला, मदन, राजेश सर, रेणुका और सुबोधकांत बड़ी ही सौजन्यशील मुद्रा में खड़े हुए थे.. तमाम लोगों के बीच.. एक मात्र शीला ऐसी थी.. जो अपने हुस्न के जलवों से पूरे कमरे को रोशन कर रही थी.. मेहमानों में जो पुरुष थे वह सारे.. बार बार.. किसी न किसी बहाने.. शीला को नजरें भरकर देख रहे थे..
पीयूष नीचे उतरकर कमरे में आया.. और तरुण तथा मौसम के पीछे खड़ा हो गया
कमरे के कोने में खड़ी शीला ने रेणुका का हाथ पकड़ते हुए कहा "चल बाहर चलते है.. यहाँ कितनी गर्मी हो रही है.. बाहर आराम से बातें करेंगे"
दोनों हाथ पकड़कर बाहर आए.. और घर के बागीचे में कुर्सी पर बैठे बैठे बातें करने लगे
रेणुका: "सुबोधकांत ने घर तो बड़ा ही शानदार बनाया है.. रंगों का कॉम्बीनेशन भी गजब का है"
शीला: "वो खुद भी इतने ही रंगीन है.. मकान तो रंगीन होगा ही"
रेणुका: "हा हा हा.. लगता है.. सुबोधकांत के रंगों का लाभ तूने भी ले लिया है"
शीला: "तो उसमें गलत क्या है?? अब ये मत पूछना की कैसे.. तू भी सयानी बन रही है.. पर अभी वो आकर अपना लंड दिखा देंगे तो तू यहाँ ही चूसने बैठ जाएगी.. मैं तो सीधी बात करती हूँ हमेशा.. !!"
रेणुका: "अरे, मैंने कब कहा की कुछ गलत है.. पर लगता है की मदन भैया के आने के बाद तेरे गुलछर्रे बंद हो गए है"
शीला: "हाँ यार.. उस लाइफ को तो मैं भी बड़ा मिस कर रही हूँ"
रेणुका: "मुझे तेरी भूख का अंदाजा है.. तो अब गुजारा कैसे चलता है तेरा??"
शीला: " कुछ नहीं यार.. फिलहाल मदन से काम चला रही हूँ.. बाहर की बिरियानी अब नसीब नहीं होती.. और जगह भी तो नहीं है कोई.. अब तो वैशाली भी हमारे साथ ही रहेगी.. इसलिए मुझे अब वो पुरानी वाली सारी आजादी हमेशा के लिए भूल जानी पड़ेगी"
रेणुका: "क्यों भूल जानी पड़ेगी.. !! तेरे घर मुमकिन नहीं है तो क्या हुआ.. !! मेरा घर अक्सर खाली रहता है.. राजेश जब भी शहर से बाहर जाता है तब घर पर अकेले बैठे बोर होती रहती हूँ.. तुझे जब मौका मिलें तब मेरे घर चली आना"
शीला: "वो तो ठीक है.. पर तेरे घर आकर क्या करूँ?? हम दोनों साथ बैठकर क्या भजन करेंगे?"
रेणुका: "अरे यार.. भजन नहीं.. भोजन करेंगे.. तुझे जिसे लेकर आना हो, चली आना.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है.. और मैं तुझसे हिस्सा भी नहीं मांगूँगी"
शीला: "यार रेणुका... मुझे हिस्सा देने में भी कोई हर्ज नहीं है.. भूखा मरने से तो बेहतर है की हमारे पास जो हो वो सब मिल बांटकर खाएं.. कभी मेरे पास कुछ नहीं होगा तब तुझसे मांग लूँगी.. संसार ऐसे लेन-देन से ही तो चलता है"
रेणुका: "हम्म.. तो अभी किस के साथ मजे कर रही है?"
शीला: "किसी के साथ नहीं यार.. मदन हमेशा आसपास होता है.. कुछ भी कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता"
रेणुका: "पर कोई तो होगा.. जिसे लेकर तू मेरे घर आ सके"
शीला: "वैसे नमूने तो बहोत सारे है.. खासकर मेरा दूधवाला रसिक.. बेचारा बहोत तड़प रहा है मेरे बगैर.. आशिक हो गया है मेरा.. मन तो मेरा भी बहोत करता है पर क्या करूँ!! जब वो दूध देने आता है तब मदन अंदर के कमरे में सो रहा होता है.. फिर भी वो कभी बबले दबा देता है तो कभी अपना खोलकर हाथ में थमा देता है.. साले का इतना मस्त मोटा गधे जैसा लंड है यार.. !! उसके दो दोस्त है.. रघु और जीवा.. उन दोनों के फोन नंबर है मेरे पास.. पर साले एक नंबर के नशेड़ी है.. दारू पीकर उन्हें खुद होश नहीं रहता की कौनसे छेद में डालना है.. और उन्हें बुलाना हो तो पहले से प्लैनिंग जरूरी है.. वक्त भी ज्यादा चाहिए"
रेणुका: "अरे हाँ याद आया.. वो तेरा दूधवाला.. जिसकी बीवी पेट से थी.. !!"
शीला: "हाँ वही.. अब तो उसका बच्चा भी हो गया.. साला जोरदार है रसिक.. बस एक बार चुदवा लो तो ज़िंदगी भर याद रह जाए"
रेणुका: "शीला, यार मेरे घर उसका सेटिंग कर दे.. मैं भी तो एक बार तेरे दूध वाले को चख कर देखूँ"
शीला: "हाँ करती हूँ कुछ.. अभी तो यहाँ मेरी नजर सुबोधकांत पर है.. पिछली बार जब हम वैशाली को लेने के लिए आए थे.. तब यहाँ गराज में ही उन्होंने मुझे झुकाकर जो शॉट लगाए थे.. आहाहाहा.. आज भी मेरी चूत उस चुदाई को याद कर डकार मार लेती है.. पर अभी इतने सारे मेहमान है.. चांस मिलना मुश्किल है"
तभी सुबोधकांत.. दो कामुक चूतों की गंध परखते हुए बाहर बागीचे में आ गए और बोले "सगाई की विधि खत्म हो गई.. चलिए खाना खाने चलते है"
"आपने घर बहोत बढ़िया बनाया है" रंगीन सुबोधकांत के साथ परिचय बढ़ाने के इरादे से रेणुका ने कहा
"थेंकस.. वैसे आप जैसों की मौजूदगी से मेरे गार्डेन की शोभा बढ़ गई.." शीला के भव्य स्तनों को देखते हुए सुबोधकांत ने कहा.. "बागीचे के फूलों की कोई तुलना ही नहीं है.. आपकी सुंदरता के सामने"
शीला: "अच्छा.. !! आप को कैसे फूल देखना पसंद है"
रेणुका: "अरे शीला.. इतना भी नहीं समझती..?? भँवरा हमेशा उसी फूल के पास जाता जिसमें रस ज्यादा हो.. "
शीला: "ओह्ह.. मुझे ये समझ नहीं आता की पुरुषों की तुलना हमेशा भँवरे से ही क्यों की जाती है?"
सुबोधकांत: "इसलिए क्योंकी फूलों की सच्ची कदर सिर्फ भँवरा ही कर सकता है.. अगर भँवरा न हो तो फूल किस काम का?? और एक बात बता दूँ आपकी जानकारी के लिए.. पुरुषों की तुलना सिर्फ भँवरे के साथ ही नहीं की जाती.. सांड और घोड़े के साथ भी की जाती है.. अलग अलग मामलों में उनकी ताकत और प्रदर्शन के अनुसार उनकी तुलना अलग अलग प्राणियों से की जाती है.. " सुबोधकांत ने द्विअर्थी संवादों का दौर जारी रखा और साथ ही साथ अपनी चोदने की शक्ति का प्रदर्शन भी कर दिया
"बात तो आपकी सही है.. पर फिलहाल हम भँवरे की जो उपमा देते है.. उसकी बात कर रहे है.. भँवरा अपनी पसंद के फूल पर ही मंडराता है ये तो समझ में आता है.. पर अगर फूल को कोई भँवरा पसंद आ जाएँ तो??" शीला ने सिक्सर लगा दी..
सिर्फ थोड़ी देर के लिए एकांत मिला था.. उसमें जीतने हो सकें उतने दांव खेल लेने के लिए शीला तैयार थी.. उसे पता था की रेणुका की मौजूदगी के कारण सुबोधकांत कुछ कह या कर नहीं पा रहें.. वरना पिछली बार की गराज की मुलाकात की यादें ताज़ा करने का अच्छा मौका था.. अगर थोड़ी देर के लिए भी रेणुका चली जाए.. तो अभी सुबोधकांत को कोने में ले जाकर, अपने दोनों स्तनों के बीच की खाई में गायब कर दूँ.. !!
सुबोधकांत: "उसका भी उपाय है.. अगर फूल को कोई भँवरा पसंद आ जाएँ.. तो उस भँवरे का मोबाइल नंबर ले लेना चाहिए.. और मौका मिलने पर उसका इस्तेमाल करना चाहिए... सिम्पल.. !!
सुबोधकांत भी शीला जीतने ही बेकरार थे.. कल से वो शीला की आँखों के हावभाव में छुपे हुए आमंत्रण को देख पा रहे थे.. सुबोधकांत के उत्तर से शीला रोमांचित हो गई.. सुबोधकांत की बात को आगे बढ़ाने की स्पीड काबिल-ए-तारीफ थी.. जरा भी वक्त नहीं गंवाया उन्हों ने.. अगर इसी गति से बात आगे बढ़ी तो शाम तक कुछ सेटिंग होने की गुंजाइश थी..
सुबोधकांत: "बाय ध वे.. आप दोनों के पास मेरा मोबाइल नंबर तो होगा ही.. अगर नहीं है तो मुझसे ले लेना.. और अगर आपको मेरा न लेना हो.. तो आप मुझे आप दोनों का नंबर दे देना.. कुछ अनमोल पुष्प अगर बागीचे में ना हो तो कोई बात नहीं.. पर उनका नंबर पास होना चाहिए.. कम से कम मोबाइल पर बात करके तो उनकी खुशबू का आनंद लिया जा सके"
रेणुका को सुबोधकांत ने अपना लेटेस्ट आईफोन १६ मोबाइल अनलॉक करके दे दिया.. रेणुका को समझ नहीं आया की क्या करना था.. पर शीला समझ गई.. की सुबोधकांत उनका नंबर मांग रहा था.. रेणुका के हाथ से मोबाइल लेकर शीला ने अपना नंबर डायल किया.. और रिंग बजते ही कट कर दिया..
तभी वहाँ रमिलाबहन आ पहुंची "अरे, तुम लोग यहाँ गप्पे लड़ा रहे हो.. !! सारे मेहमान राह देख रहे है.. अंदर चलिए" सुबोधकांत का हाथ पकड़कर खींचते हुए वो उन्हें अंदर ले गई
रेणुका: "तू हमेशा सब बातों में एक कदम आगे ही रहती है.. अब मैं अपना नंबर उनको कैसे भेजूँ? कुछ जुगाड़ लगाना पड़ेगा.. वैसे आदमी है बड़ा ही दिलचस्प" दोनों हँसते हँसते अंदर गए..
"प्लीज, आप लोग पहले खाना खा लीजिए.. बातें तो होती रहेगी" शीला और रेणुका को बातें करते देख सुबोधकांत ने करीब आकर कहा
शीला और रेणुका ने प्लेट ले ली.. दोनों खाना खाने लगे.. सुबोधकांत भी उनके साथ ही खड़े थे..
रेणुका: "अरे शीला.. पता नहीं मैंने अपना मोबाइल कहाँ रख दिया.. !! जरा मुझे मिस-कॉल करना तो.. !!"
शीला: "देख नहीं रही तुम.. खाना खा रही हूँ.. हाथ गंदे है मेरे"
सुबोधकांत: "अरे कोई बात नहीं.. मैं हूँ ना.. !! आप नंबर बताइए.. !!"
रेणुका ने अपना नंबर कहा.. सुबोधकांत ने डायल करते ही रेणुका के पर्स में ही रिंग बजी.. रेणुका ने शीला की तरफ देखकर आँख मारी
रेणुका: "अरे, ये तो मेरे पर्स में ही था.. मैं भी भूल गई थी.. खामखा आपको तकलीफ दी.. !!"
सुबोधकांत: "अरे इसमें तकलीफ की क्या बात है!!" रेणुका का नंबर सेव करते करते उन्हों ने कहा
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पिंटू के विचारों से वैशाली धीरे धीरे प्रभावित हो रही थी.. दोस्ती अक्सर पौधे जैसी होती है.. कभी कभी मिट्टी, खाद और पानी.. सब कुछ ठीक होने पर भी पौधा नहीं खिलता.. और कभी कभी सड़क के किनारे.. बिना किसी देखभाल के भी खिल उठता है.. पिंटू की मित्रता भी कुछ ऐसी ही थी.. ना वैशाली ने कुछ प्रयत्न किया था.. और ना ही पिंटू ने.. सामान्य बातचीत से शुरू हुआ उनका व्यवहार कब दोस्ती में पलट गया.. दोनों को पता ही नहीं चला.. वैशाली अब निःसंकोच पिंटू से बातें करती थी.. ऊपर से, अब वो उनके ऑफिस भी नियमित रूप से जाने लगी थी.. संजय नाम का पन्ना अब उसकी ज़िंदगी की किताब से धीरे धीरे पलट रहा था और जो नया पन्ना खुला था उस पर हल्का हल्का पिंटू का नाम लिखा हुआ नजर आ रहा था..
कविता, फाल्गुनी, पीयूष और पिंटू.. सब खाना खाने में व्यस्त थे.. वैशाली भी उनके साथ जुड़ गई.. मज़ाक मस्ती.. हंसी-ठिठोली के बीच.. मौसम की मंगनी बड़े ही आराम से पूर्ण हो गई.. शहर में रहते मेहमान भी चले गए थे.. अब बाकी सारे लोगों की वापिस लौटने की बारी थी
रेणुका: "शीला, एक काम करते है.. एक गाड़ी बच्चों को दे देते है.. और दूसरी गाड़ी में हम सब साथ चलते है.. वो सब आराम से बातें करेंगे और हमें भी मज़ा आएगा"
राजेश: "बिल्कुल सही कह रही है रेणुका.. पीयूष, ये लो मेरी इनोवा की चाबी.. आप सब साथ चले जाओ.. हम लोग मदन भैया की गाड़ी में आएंगे"
दोनों ही गाड़ियां चल पड़ी.. फाल्गुनी और मौसम, फिर से अकेले रह गए
एक रात में कितना कुछ घट गया.. !! शादी की रात दुल्हन के लिए यादगार होती है.. पर मौसम के लिए तो सगाई की पिछली रात हमेशा ही याद रहने वाली बन गई थी..
सुबोधकांत: "ये ले बेटा फाल्गुनी.. ये टिफिन अंदर गाड़ी में रख दे.. हमारे ऑफिस के प्युन को देकर आते है.. !!" सुबोधकांत ने एक साथ.. ऑफिस के प्युन, फाल्गुनी की चूत और अपने लंड.. तीनों की भूख मिटाने का बंदोबस्त कर दिया
फाल्गुनी मौसम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. पर मौसम ने ताना मारने का मौका नहीं छोड़ा "पापा का लंड एकदम मस्ती से चूसना.. वैसे भी जीजू का देखकर, तू कभी से गरम हो चुकी है"
नजरें झुकाकर मुसकुराते हुए फाल्गुनी सुबोधकांत की कार में बैठ गई.. उसकी चूत में.. पीयूष का लंड देखकर.. और मौसम को घोड़ी बनकर चुदते देखकर.. गजब की अफरातफरी और खलबली मची हुई थी.. उसे शांत करने का समय आ गया था.. जाते जाते उसकी और मौसम की नजरें चार हुई... मौसम ने उसे आँख मारी.. और फाल्गुनी शरमाकर मुस्कुराई.. सारे मेहमानों को विदा करके सुबोधकांत की कार उनकी ऑफिस की दिशा में चल पड़ी
जैसे ही गाड़ी सोसायटी से बाहर निकली, सुबोधकांत ने फाल्गुनी के दोनों स्तनों को मसलकर रख दीये.. "गजब की सुंदर लग रही है इस ड्रेस में तू.. मन तो कर रहा था की सब के सामने से तुझे उठाकर ऑफिस ले जाऊँ और पटककर चोद दूँ.. !!"
सुनते ही फाल्गुनी बहोत गरम हो गई..उसने कहा "अंकल, आप भी सूट में बड़े हेंडसम लग रहे थे.. मेरा भी बहोत मन कर रहा था.. नीचे तो जैसे बुखार सा चढ़ गया है..!!"
बीस मिनट के ड्राइविंग के बाद दोनों ऑफिस पहुंचे.. ऑफिस पर चपरासी के अलावा और कोई नहीं था.. सुबोधकांत ने उसे टिफिन दिया.. और एक अड्रेस देते हुए कहा की.. वहाँ जाकर पार्टी से चेक लेना है.. उसके जाते ही.. फाल्गुनी कूदकर सुबोधकांत की गोद में बैठ गई.. और उनके मर्दाना होंठों को चूसने लगी..
फाल्गुनी को आज पहली बार सुबोधकांत ने इतना गरम होते हुए देखा था.. पर उन्हों ने उस बारे में पूछताछ करने के बजाए.. उसकी और अपनी गर्मी को ठंडा करने पर ध्यान केंद्रित किया.. फटाफट उन्हों ने फाल्गुनी को उसके वस्त्रों की कैद से आजाद कर दिया और उसके हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया..
फाल्गुनी की दिमाग में अभी भी पीयूष के लंड की यादें ताज़ा थी.. हाँ, अंकल के लंड से साइज़ में पतला और थोड़ा छोटा जरूर था.. पर एक स्त्री के लिए, लंड आखिर लंड होता है.. उसे तो बस अपनी चूत की आग ठंडा करने से ही मतलब होता है..
फाल्गुनी और सुबोधकांत की लंबी किस अब भी चल रही थी उस दुरान मौसम का फोन आया.. पर्स के अंदर पड़ा हुआ मोबाइल वो उठाती उससे पहले ही मिस-कॉल हो गया.. "शायद मेरे घर से फोन होगा.. एक मिनट अंकल.. !!" पर्स से मोबाइल निकालकर उसने देखा और मौसम को फोन लगाया.. ज्यादा बात करना मुमकिन नहीं था क्योंकी अंकल को ये पता नहीं चलना चाहिए की उनके गुलछरों के बारे में मौसम जानती थी..
फाल्गुनी ने एकदम फटाफट कॉल खत्म किया.. सुबोधकांत उसे पूछने ही वाले थे की किसका फोन था.. उससे पहले ही फाल्गुनी ने उनका लंड पकड़कर खेलना शुरू कर दिया.. और सुबोधकांत के मन के सारे प्रश्न, भांप बनकर उड़ गए..
फाल्गुनी की छोटी सी गुलाबी निप्पल को मसलते हुए अपना तंग लोडा उसे दिखाकर सुबोधकांत ने पूछा "मैं तो हेंडसम लग रहा था.. अब इसे देख.. ये कैसा लग रहा है? " अपने सुपाड़े को उजागर करते हुए उन्होंने फाल्गुनी से पूछा
"ये तो इसे पता.. " अपनी चूत की ओर इशारा करते हुए फाल्गुनी ने कहा.. शीला और रेणुका के मदमस्त स्तनों को याद करते हुए सुबोधकांत टूट पड़े फाल्गुनी के ऊपर.. आज फाल्गुनी को अंकल की आक्रामकता कई गुना ज्यादा महसूस हुई
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"मम्मी, तरुण का कॉल है.. मैं बात करके आती हूँ" कान पर मोबाइल चिपकाकर मौसम ऊपर अपने बेडरूम मे चली आई.. और दरवाजा बंद कर दिया..
फाल्गुनी और पापा की काम लीला की आवाज़ें सुनने के लिए वो बेकरार थी.. इसलिए उसने फाल्गुनी को फोन किया था.. और फोन पर सिर्फ इतना ही कहा की.. कॉल को चालू रख और फोन साइड में रख दे.. मौसम उन दोनों की चुदाई लीला को सुनते हुए अपनी चूत में उंगली करना चाहती थी.. फाल्गुनी भी समझ गई.. जीजू के लंड का स्वाद चखकर अब मौसम की भूख जाग चुकी थी.. और अब वो हर पल चुदाई के खयालों में ही खोई रहती थी.. फाल्गुनी ने बड़ी ही चालाकी से कॉल चालू रखकर उसे सोफ़े पर रख दिया और उसे अपने दुपट्टे से ढँक दिया..
अपना स्कर्ट उठाकर पेन्टी के अंदर हाथ डालकर.. टांगें फैलाकर बिस्तर पर लेट गई.. फाल्गुनी और पापा की बातें सुनते हुए वो अपने दाने को रगड़ने लगी..
फाल्गुनी को पता था की मौसम उनकी बातें सुन रही थी.. इसलिए वो बहोत कम बोल रही थी.. और अंकल को ज्यादा बोलने दे रही थी..
सुबोधकांत: "फाल्गुनी बेटा.. कहीं मौसम को हमारे संबंधों के बारे में कुछ भनक तो नहीं लग गई??"
फाल्गुनी: "नहीं नहीं अंकल.. उसे तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं है"
सुबोधकांत: "आज जिस तरह वो हम दोनों को साथ जाते देखकर मुस्कुरा रही थी.. ये देखकर मुझे तो शक हो रहा है.. !!"
फाल्गुनी: "ऐसा कुछ भी नहीं है.. अगर उसे कुछ भी भनक लग गई होती तो वो मुझसे बात ही क्यों करती?? आह्ह.. अंकल, मुझे नीचे बड़ी मीठी सी खुजली हो रही है.. जरा चाट दीजिए ना.. !!"
मौसम अपने मोबाइल को कान से चिपकाकर बड़ी उत्तेजना से फाल्गुनी औ पापा की कामुक बातें सुन रही थी.. उसे सुनकर ताज्जुब हो रहा था की क इस बेशर्मी से फाल्गुनी उसके पापा को चूत चाटने के लिए कह रही थी..
सुबोधकान्त: "ओह्ह.. तुझे चूत चटवाने की इतनी जल्दी है.. !!! चल चाट देता हूँ"
मौसम को चूत चटाई की आवाज़ें और फाल्गुनी की सिसकियाँ, दोनों सुनाई दे रही थी.. एक मीठी सी झनझनाहट उसके सारे बदन को सरसराने लगी.. फिर और थोड़ी गंदी गंदी बातें करने के बाद.. सुबोधकान्त ने अपना लंड फाल्गुनी के चेहरे के सामने धर दिया
सुबोधकान्त: "ले बेटा... इसे ठीक से चूस.. बराबर चूसना.. चूस चूसकर तू ऐसी एक्सपर्ट बन जा की शादी के बाद तेरे पति को मज़ा आ जाए.. तू किस्मत वाली है.. की शादी से पहले ही ये सब कुछ सिख पा रही है.. पता नहीं, मौसम को ऐसा सब आता भी होगा या नहीं.. !!"
सुबोधकान्त के खड़े लंड को अपनी कोमल हथेलियों में भरकर हिलाते हुए फाल्गुनी ने कहा "मौसम को भला कौन सिखाएगा?? अगर आप मुझे ये सब न सिखाते तो मुझे भी कैसे पता चलता??"
सुबोधकान्त अब फाल्गुनी के नंगे बदन पर छा गए.. अपने नग्न शरीर से फाल्गुनी के शरीर को ढँक दिया.. और अपनी बालों वाली छाती को उसके स्तनों को रगड़ते हुए बोलें "तुझे तो जब पहली बार देखा था तब से मन बना लिया था चोदने का, मेरी जान.. !! तेरी जवानी.. और खासकर तेरे ये स्तन.. जब देखें तब तय कर लिया था मैंने, की तुझे तो मैं रगड़कर रख दूंगा.. !!"
फाल्गुनी: "मेरे बूब्स?? आपने कब देखें थे मेरे बूब्स अंकल??"
सुबोधकान्त: "एक बार जब तू मेरे हाथों में चाय का कप देने के लिए झुकी थी.. तब तेरे ड्रेस के अंदर, कच्चे अमरूद जैसी चूचियों को देखकर.. मुझे बाथरूम में जाकर मूठ मारनी पड़ी थी.. उस दिन से मैंने मन बना लिया था की तुझे छोड़ूँगा नहीं.. !!"
फाल्गुनी ने झुककर सुबोधकान्त के लोड़े के टोपे पर चुंबन रसीद करते हुए कहा "अच्छा तब देख लिए थे आपने... !!"
"आह्ह.. !!" सुबोधकांत के मुँह से उत्तेजना भरी कराह निकल गई.. "पूरा मुंह में ले ले बेटा.. जड़ तक अंदर लेकर चूस.. बहोत मस्त चूसती है तू.. मौसम को भी तेरी तरह चूसना सीखा दें.. ताकि वो भी शादी के बाद तरुण को मजे दे सकें.. पति को मुठ्ठी में रखने के लिए इस कला का सीखना बहोत आवश्यक होता है बेटा.. !!" कहते हुए सुबोधकान्त ने फाल्गुनी की कोमल क्लिटोरिस को सहलाते हुए उसकी चूत में दो उँगलियाँ सरका दी..
लंड चूसते हुए भी फाल्गुनी की सिसकियाँ निकल रही थी.. चूत में उंगलियों के अंदर बाहर होने की वजह से..
लंड चुसाई की बातों में अपने नाम का उल्लेख सुनकर मौसम का पूरा शरीर कांपने लगा.. वो बेड पर लेट गई.. उसकी और फाल्गुनी की सिसकियाँ अब एक ताल में साथ साथ निकल रही थी.. अपनी चूत में उंगली डालकर मौसम झड़ गई.. पर उसने फोन कट नहीं किया.. मौसम को ये जानने में दिलचस्पी थी की पापा और फाल्गुनी के जिस्मानी संबंध कितना आगे बढ़ चुके थे.. और अन्य कई बातें भी सुनी उसने..
सुबोधकान्त: "फाल्गुनी, एक बार तुझे विदेश ले जाना चाहता हूँ मैं.. पर कैसे सेटिंग करूँ कुछ समझ नहीं आता.. तू अपने घर से दस दिनों के लिए निकल सकती है?? कुछ बहाना बना कर??"
फाल्गुनी: "घर पर क्या बताऊँ अंकल?? रात को आधा घंटा लेट हो जाता है तो भी मम्मी कितना सुनाती है मुझे"
सुबोधकान्त: "समझ सकता हूँ.. पर अगर तेरी कोई फ्रेंड भी साथ हो तो शायद तेरे मम्मी-पापा इजाजत दे देंगे"
फाल्गुनी: "मौसम के अलावा मेरी और कोई फ्रेंड नहीं है.. और अगर मान लो मैं किसी फ्रेंड को लेकर आपके साथ आ भी गई.. तो मुझे तो रात को उसके साथ ही रहना पड़ेगा ना.. !! मैं आपके साथ कैसे रह पाऊँगी??"
सुबोधकान्त: "तू कुछ भी कर बेटा.. कोई तरकीब सोच... तेरी शादी से पहले मैं अपनी कुछ इच्छाएं पूरी करना चाहता हूँ जिसके लिए तुझे बहार ले जाना जरूरी है.. यहाँ उसे पूरा नहीं कर पाऊँगा"
फाल्गुनी: "पर अंकल, एक दिन भी बाहर रहना मुमकिन नहीं है.. आप तो दस दिनों की बात कर रहें है"
सुबोधकान्त: "फाल्गुनी, मेरी कुछ खास गुप्त इच्छाएं है.. जिन्हें तृप्त करने की आस लिए मैं अब तक जी रहा हूँ.. और अगर तेरे साथ उन इच्छाओं को पूरी न कर पाया.. तो फिर इस जीवन में उनकी पूरे होने की कोई संभावना नहीं है.. और तू मेरे पास रहेगी भी कितने समय तक?? एकाध साल में तो तेरी भी शादी हो जाएगी.. !!"
फाल्गुनी: "आह्ह अंकल.. ये सारी बातें कर मुझे दुखी मत कीजिए.. मैं अभी यहाँ खुश होने आई हूँ.. तो मुझे खुश कीजिए.. ओह्ह.. मैं अभी बहोत एक्साइटेड हूँ.. ऊँहहह..मुझे चोद दीजिए.. आपके इस (लंड पकड़ते हुए) को तो मैं शादी के बाद भी याद रखूंगी.. और मौका मिलने पर इसे खुश भी करती रहूँगी.. !!" बेशर्म होकर फाल्गुनी ने कहा
मौसम फोन पर फाल्गुनी की आनंद से भरी किलकारीयों को दर्द भरी सिसकियों को.. साथ में लंड चुसाई के पुचूक-पुचूक आवाजों को सुनकर मदहोश हो गई थी.. झड़ने के बाद उंगलियों पर लगे चूत रस को सुनते हुए उसने फोन पर फ़च-फ़च की आवाज़ें सुनी.. वो समझ गई की फाल्गुनी की बुर में पापा का लंड घुस चुका था और घमासान चुदाई का दौर शुरू हो गया था.. आह्ह.. !! कितना मज़ा आ रहा होगा फाल्गुनी को.. !!
अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए, क्लिटोरिस पर लगे प्रवाही को अपनी निप्पल पर लगाते हुए वो फाल्गुनी की दर्द भरी कराहों को... उत्तेजना मिश्रित सिसकियों को.. लंड और चूत के घर्षण की आवाजों को.. पापा और फाल्गुनी की जांघों के टकराने की ध्वनि को... सुन रही थी.. और सुनते सुनते उसकी चूत एक बार फिर से झड़ गई.. !! इतने कम समय में दो दो ऑर्गजम.. !! मौसम को आश्चर्य हुआ.. दूसरी बार झड़ने के बाद, उसके शरीर की सारी ऊर्जा खर्च हो चुकी थी
मौसम ने फोन कट किया और लाश की तरह सुस्त होकर बेड पर पड़ी रही.. पाँच मिनट के अंतर में उसकी चूत, दो बार ठंडी करते हुए मौसम ने आज नया विक्रम स्थापित कर लिया था.. वो भी बिना लंड के.. !! सिर्फ आवाज़ें सुनकर.. अगर सुनने में इतना मज़ा आया तो फाल्गुनी को कितना मज़ा आ रहा होगा.. !! ये सोचते हुए मौसम को ये विचार आया की पापा अपनी कौन सी गुप्त इच्छाओं के बारे में बात कर रहे थे.. !! सोचते सोचते उसने अपनी जांघें आपस में दबा दी और आँखें बंद कर ली.. !!
करीब एक घंटे बाद मौसम की तब आँख खुली जब फाल्गुनी ने उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी.. कपड़े पहनकर उसने दरवाजा खोला और फाल्गुनी भी अंदर आ गई.. दोनों सहेलियाँ बातें करते करते थोड़ी देर के लिए सो गई.. आधे घंटे के बाद फाल्गुनी उठी.. मुंह धोकर फ्रेश हो कर घर चली गई.. मौसम किचन में मम्मी की मदद करने लग गई.. रमिला बहन भी बहोत थक चुकी थी.. मौसम की सगाई बिना किसी तकलीफ के निपट जाने का संतोष उनके चेहरे पर नजर आ रहा था..