अचानक शीला की नजर सुबोधकांत की गोल्डन केस वाली राडो घड़ी पर गई.. और ध्यान से देखते ही उसकी सांसें थम गई.. !!!
याद आते ही बेहद चोंक गई शीला.. अरे बाप रे... ये तो कॉकटेल है.. !! बिल्कुल यही घड़ी कॉकटेल ने भी पहन रखी थी.. ध्यान से देखने पर सुबोधकांत का शरीर, बोल-चाल सब कुछ कॉकटेल से मेल खा रहा था.. उसका लंड भी जाना-पहचाना सा क्यों लग रहा था वो अब पता चला शीला को.. सुबोधकांत के घर के गराज में एक बार चूस चुकी थी उनका लंड.. इसीलिए जब होटल में वह लंड दोबारा देखा तब हल्की सी भनक तो लगी थी पर याद नहीं आ रहा था.. !! शीला के पूरे बदन में झनझनाहट से छा गई.. हाँ, वो कॉकटेल ही था.. जिसका लंड मैंने और रेणुका दोनों ने दिल खोल कर चूसा था.. हे भगवान.. कहीं सुबोधकांत ने हमें पहचान तो नहीं लिया होगा.. !!!
मदन को वहीं बैठा छोड़कर शीला घबराकर घर वापिस आ गई..
घर पहुंचकर सब से पहला काम उसने रेणुका को फोन करने का किया
रेणुका: "हाँ बोल शीला.. !!"
शीला: "यार एक जबरदस्त भांडा फूटा है आज तो.. !!"
रेणुका: "यार शीला.. जब से तू मेरी ज़िंदगी में आई है तब से रोज कुछ न कुछ धमाकेदार हो रहा है मेरे साथ.. अब क्या हुआ, ये भी बता दे"
शीला: "यार वो कॉकटेल था ना.. होटल में तेरा पार्टनर.. !!"
रेणुका: "हाँ, वो मस्त मोटे लंड वाला.. पार्टनर मेरा था और सब से ज्यादा तूने ही उसका लंड चूसा था.. !!"
शीला: "पता है वो कौन था??? मौसम का बाप, सुबोधकांत.. !!!!"
रेणुका: "क्या............!!!!!! क्या बक रही है तू??? जानती हूँ की तुझे उनसे चुदवाने की बड़ी ही चूल थी.. सगाई वाले दिन भी तू फ्लर्ट कर रही थी उनसे.. पर उसका मतलब ये नहीं की तू उनका नाम ऐसे जोड़ दे.. !! कुछ भी मत बोल"
शीला: "देख रेणुका.. अभी मदन आता ही होगा.. इसलिए लंबी बात नहीं हो सकती.. ये तो चांस मिला इसलिए मैंने तुझे बता दिया.. !!"
रेणुका: "पर तुझे ये पता कैसे चला.. ये तो बता.. !!!!"
शीला: "यार, एक बेड न्यूज़ है.. तुझे बताना ही भूल गई.. मौसम के साथ तरुण ने सगाई तोड़ दी है.. मौसम बहोत डिस्टर्ब थी तो कुछ दिनों के लिए यहाँ कविता के घर रहने चली आई है"
रेणुका: "हाँ, मुझे राजेश ने कुछ देर पहले बताया... बहुत बुरा हुआ उस बेचारी के साथ"
शीला: "मौसम को छोड़ने उसके पापा सुबोधकांत आए थे.. और तभी मेरा ध्यान उनकी घड़ी पर गया.. याद है.. !! कॉकटेल ने वो महंगी वाली घड़ी पहन रखी थी.. !! गोल्डन चैन वाली.. !!"
रेणुका: "हाँ बड़े अच्छे से याद है.. !!"
शीला: "बस, वही घड़ी मैंने सुबोधकांत की कलाई पर देखी"
रेणुका: "पागलों जैसी बात मत कर.. ऐसी एक ही घड़ी थोड़ी नआ होगी पूरी दुनिया मैं.. !!"
शीला: "अरे पगली.. घड़ी तो सिर्फ कड़ी थी.. फिर मैंने उनके शरीर के दिलडॉल, त्वचा का रंग.. आवाज.. सब मिलाकर देखा.. सुबोधकांत ही कॉकटेल है.. मुझे तो पक्का यकीन है"
रेणुका: "ओके बाबा.. चल रखती हूँ फोन"
शीला: "ओके बाय.. !!"
फोन काटकर शीला किचन में प्लेटफ़ॉर्म के आगे अपनी चूत खुजाते हुए सुबोधकांत के लंड को याद करने लगी.. जैसे शरीर के अंगों से उन्हें पहचान लिया.. वैसे हो सकता है की सुबोधकांत ने भी उसे पहचान लिया हो.. !! और कुछ याद रहे न रहे.. पर एक बार जिसने शीला के खुले हुए बबले देखें हो.. मरते दम तक नहीं भूल सकता..!!
इस तरफ रेणुका, शीला का फोन काटते ही, गहरी सोच मे पड़ गई.. थोड़ा सा विचार करने के बाद उसने सीधा सुबोधकांत को फोन लगाया.. सगाई के दौरान उसने घर के बाहर गार्डन में बातें करते हुए उनका नंबर लिया था
रेणुका: "हैलो... पहचाना.. ??"
सुबोधकांत: "हम्म..म..म..म..म..म.. सॉरी.. आवाज सुनी सुनी सी लगती है.. पर याद नहीं आ रहा.. वैसे इतना कह सकता हूँ की बड़ी सुरीली आवाज है आपकी.. "
रेणुका शरमाकर बोली "ओह थेंकस.. रेणुका बोल रही हूँ.. मुझे पता चला की आप शहर में आए हुए हो.. मुझे आपसे अर्जेंट मिलना था.. सिर्फ दस मिनट के लिए"
सुबोधकांत: "दस मिनट क्यों.. !! पूरा दिन आपके साथ गुजारने के लिए तैयार हूँ.. बस आपको राजेश को संभालना होगा.. आप के साथ सिर्फ दस मिनट गुजारने पर थोड़े ही मेरा मन भरेगा.. !!"
रेणुका ने हंसकर कहा "क्या आप भी.. पहले दस मिनट के लिए तो मिलिये.. फिर पूरा दिन साथ बिताने की प्लानिंग करेंगे.. !!"
सुबोधकांत: "सिर्फ दस मिनट में कुछ मज़ा आएगा नहीं.. वैसे मैं आपकी ऑफिस वाली सड़क से ही गुजर रहा हूँ.. अगर मिलना हो तो अभी मिल सकते है"
रेणुका: "क्या सच में.. !! ओके.. एक काम कीजिए.. उसी सड़क पर आगे एक पेट्रोल-पंप है.. वहाँ से टर्न लेकर बगल वाली सड़क पर आप मेरा इंतज़ार कीजिए.. मैं वहाँ पहुँच रही हूँ.. वैसे मैं आप से पहले पहुँच जाऊँगी"
रेणुका ने फटाफट कपड़े बदले.. और कार की चाबी लेकर बाहर निकली.. तभी उसे अंदाजा हुआ की इस वक्त बहोत ट्राफिक होगा और उतना समय था नहीं.. इसलिए फिर वह अपना एक्टिवा लेकर निकल गई
पंप पर पहुंचकर वो एक्टिवा में पेट्रोल भरवा रही थी.. तभी सुबोधकांत अपनी लंबी गाड़ी लेकर वहाँ पहुंचे.. रेणुका ने एक्टिवा बगल वाले कॉम्प्लेक्स के बाहर पार्क कर दिया.. और चुपचाप गाड़ी में आकर बैठ गई..
सुबोधकांत ने गाड़ी भगा दी.. काले कांच वाली खिड़कियों से बाहर से कोई उन्हें देख नहीं सकता था.. रेणुका की नजर सब से पहले सुबोधकांत की कलाई पर बंधी गोल्डन राडो घड़ी पर गई.. अब उसे शीला की बात पर यकीन हो गया.. सुबोधकांत ही कॉकटेल था.. !!! उसे याद आ गया की किस तरह उसने और शीला ने मिलकर उसका लंड चूसा था.. और कॉकटेल ने उसके बबलों का दबा दबाकर कचूमर निकाल दिया था..
सुबोधकांत का ध्यान आगे सड़क पर था तब रेणुका ने अपने टॉप में हाथ डालकर.. स्तन बाहर निकाले और सुबोधकांत की और देखकर कहा "हैलो, मिस्टर कॉकटेल.. !!"
सुबोधकांत ने चकराकर रेणुका की और देखा और एकदम से ब्रेक मार दी.. पीछे आ रही गाड़ी वाले ने सुबोधकांत की माँ को संबोधित करते हुए एक गाली दी और फिर ओवरटेक करते हुए आगे चला गया..
सुबोधकांत को दिन में तारे नजर आने लगे.. बेचारे पहली गेंद पर ही क्लीन बोल्ड हो गए.. !! वो सोचने लगे.. उस होटल से पकड़े जाने पर.. अखबार में मेरा नाम क्या आ गया.. रेणुका को पता भी चल गया.. !! वो तो ठीक है पर उसे मेरा नकली नाम कैसे पता चला?? अखबार वालों ने वो तो नहीं छापा था..!!
असमंजस में डूबे हुए सुबोधकांत की सारी शंकाओं का समाधान कर दिया रेणुका ने..
"मुझे राजेश ने बताया.. की आप भी थे उस दिन पार्टी में.. मुझे और शीला को ऐसा सब पसंद नहीं है इसलिए मदन और राजेश किसी और को लेकर वहाँ आए थे.. और आप भी वहाँ थे.. दूसरे दिन राजेश ने मुझे बताया की उन्होंने वहाँ खूब मजे किए और आपने भी बहोत इन्जॉय किया था" अपनी हकीकत छुपाते हुए आधा सच बताया रेणुका ने
सुबोधकांत सोच रहे थे.. लगता है रेणुका को पुलिस की रैड के बारे में पता नहीं है शायद...!!
सुबोधकांत ने रेणुका की जांघ पर हाथ फेरते हुए कहा "रेणुका जी.. राजेश एक नंबर का बेवकूफ है.. घर पर ही इतनी नशीली आइटम हो तो फिर बाहर मुंह मारने की क्या जरूरत.. !! वैसे अगर आपको एतराज न हो तो क्या मैं आपको एक किस कर सकता हूँ??" रेणुका के मस्त स्तन की गुलाबी निप्पल को देखकर लार टपकाते हुए उसने कहा
रेणुका: "मुझे एतराज है.. मैं क्यों करने दु आपको किस??"
सुबोधकांत: "तो फिर मुझे मिलने क्यों बुलाया?? और यहाँ गाड़ी में इस तरह आपके बूब्स खोलकर बैठने का मैं क्या मतलब समझूँ???"
रेणुका: "मतलब?? जो भी आँखों के सामने नजर आए उन सारी चीजों पर आपका हक हो गया??" रेणुका भी सुबोधकांत के मजे ले रही थी
सुबोधकांत: "वो आप जो भी समझें.. आप कार में मेरे साथ इतनी नजदीक बैठी हो.. और आपका थोड़ा सा प्रसाद भी मुझे नसीब न हो तो कैसे चलेगा.. !! वैसे आपको बता दूँ.. मैंने मेरी लाइफ में किसी के साथ भी जबरदस्ती नहीं की है.. जरूरत ही नहीं पड़ी.. जो प्यार से नहीं मिला वो मैंने खरीद कर हासिल कर लिया है.. और पैसे देकर न मिले उसे मैंने गिफ्ट्स देकर मना लिया.. अब आप बताइए.. आपको कौन सा ट्रांजेक्शन ज्यादा पसंद है??"
सुबोधकांत की सीधी बात से रेणुका इंप्रेस हो गई.. वैसे औरत को हासिल करने के कितने सारे तरीके होते है.. !! प्यार से.. कीमत चुकाकर.. धोखा देकर.. तारिफ करके.. झूठी कसमें खाकर.. विश्वास जीतकर.. महंगी गिफ्ट देकर.. वगैरह वगैरह..
रेणुका की नजर अपनी गोल्डन घड़ी पर बार बार जाते हुए देख.. सुबोधकांत को गलतफहमी हुई.. उसने अपनी घड़ी उतारकर रेणुका को देते हुए कहा "लीजिए रेणुकाजी, मेरी तरफ से एक छोटी सी भेंट.. !!"
रेणुका की जांघ पर घड़ी रखते हुए सुबोधकांत ने जांघों को दबा दिया.. और फिर उनका हाथ दोनों जांघों के बीच घुसने लगा..
एक बार के लिए रेणुका सकते में पड़ गई.. बार बार घड़ी की तरफ तांकने का गलत मतलब समझे थे सुबोधकांत.. पर अभी वो किसी भी तरह की सफाई देने के मूड में नहीं थी
रेणुका: "मैं आपकी जेन्ट्स घड़ी क्यों पहनु? दे देकर आपने कैसी गिफ्ट दी एक महिला को?"
सुबोधकांत: "अगर मुझे पहले से पता होता तो बढ़िया सी गिफ्ट लेकर आता आपके लिए.. आपके जैसी सुंदर महिलाओ को गिफ्ट देना का मुझे बड़ा शौक है.. वैसे आप कब से मेरी घड़ी की तरफ देख रही थी तो मुझे लगा आपको पसंद आ गई होगी.. इसलिए.. अगर पसंद न हो तो आप रिजेक्ट कर सकती हो.. !!"
रेणुका: "नहीं नहीं.. गिफ्ट का अस्वीकार करके मैं आपका अपमान नहीं करूंगी.. मुझे आपकी भेंट कुबूल है.. " कहते हुए रेणुका ने शरारती अंदाज में उस घड़ी को अपने दोनों स्तनों के बीच की खाई में डाल दिया..
सुबोधकांत: "अगली बार जब मैं आपके लिए गिफ्ट ले कर आऊँगा.. तब आपकी इस खास जेब में अपने हाथों से गिफ्ट रखूँगा"
सुनकर रेणुका शरमा गई..
रेणुका: "जरूर.. मैं मना नहीं करूंगी"
सुबोधकांत: "कब से आप सिर्फ बूब्स के ही दर्शन करवा रही हो.. नीचे वाले खजाने को क्यों छुपा रखा है??"
रेणुका: "यहाँ खुली सड़क पर कपड़े उतारने में डर लग रहा है.. "
सुबोधकांत ने रेणुका की सीट के नीचे के लिवर को खींचा.. और पूरी सीट फ्लेट हो गई.. एकदम सीधी.. बिस्तर की तरह.. और सीट के साथ रेणुका भी अचानक से लेट गई..
सुबोधकांत: "अब कोई नहीं देखेगा.. "
रेणुका ने अपनी साड़ी और पेटीकोट जांघों तक उठा लिया.. और जानबूझकर भारी सांसें लेने लगी..
सुबोधकांत: "आह्ह.. जबरदस्त है आपके बूब्स.. और ये गोरी जांघें.. देखकर मज़ा आ गया.. जरा पेन्टी भी नीचे सरका दीजिए तो और मज़ा आएगा"
रेणुका: "अभी नहीं.. नेक्स्ट टाइम.. अभी तो किसिंग-प्रेसींग के अलावा और कुछ नहीं" कहते हुए रेणुका ने सीट का लीवर खींचकर सीट को पूर्ववत कर दिया.. और दोनों स्तनों को वापिस टॉप के अंदर डाल डीईए
सुबोधकांत: "यार, तड़पा क्यों रही है.. थोड़ी देर और देख लेने देती.. मैं हाथ भी नहीं लगाऊँगा"
रेणुका: "प्लीज सुबोधकांत जी.. फिर मैं अपना कंट्रोल खो बैठूँगी तो यहीं पर सबकुछ करना पड़ेगा.. और अभी ये पोसीबल नहीं है.. इसलिए मना कर रही हूँ.. वरना मेरी खुद भी बहोत इच्छा है"
सुबोधकांत ने रेणुका को कंधे से पकड़कर खींचा और उसके होंठों पर जोरदार किस कर दिया.. रेणुका का पूरा शरीर गरम हो गया
अचानक रेणुका का हाथ सुबोधकांत के लंड पर चला गया और वह अपनी हथेली से उसे दबाने लगी.. देखते ही देखते पेंट के अंदर लंड एकदम सख्त हो गया.. इतना सख्त की उसे पेंट के अंदर बंद रखना मुश्किल हो रहा था..
रेणुका: "ओह्ह.. कितना हार्ड हो गया ये तो.. एक बार बाहर तो निकालो इसे.. बेचारे का दम घूंट जाएगा अंदर!!"
बिना एक सेकंड गँवाए सुबोधकांत ने अपनी चैन खोलकर लंड बाहर निकाल दिया..
सुबोधकांत: "तसल्ली से देख लीजिए.. और बताइए.. कैसा लगा?? राजेश के लंड से तो मोटा ही है !!" रेणुका के कंधे से होते हुए उन्हों ने उसके स्तन को पकड़कर दबाना शुरू कर दिया.. स्तन को दबाते हुए उनका लंड झटके खाने लगा
रेणुका ने स्माइल देते हुए कहा "आप दबा यहाँ रहे हो और असर यहाँ हो रहा है"
सुबोधकांत: "यही तो है इसके सख्त होने का कारण.. !!"
रेणुका अब उत्तेजित हो गई थी.. उसने सामने से सुबोधकांत को चूमते हुए कहा "सुबोधकांत जी, अभी तो हम कार में है.. इसलिए ज्यादा कुछ करना मुमकिन नहीं होगा.. देर भी हो रही है.. आप मुझे वापिस पेट्रोल-पंप पर छोड़ दीजिए.. आपको मैं घर पर बुलाऊँगी जब राजेश टूर पर हो तब.. फिर तसल्ली से करेंगे दोनों.. !!"
सुबोधकांत: "वो तो ठीक है रेणु.. पर क्या तुम अभी मेरे लंड को एक किस भी नहीं दोगी?? जिस तरह मुझे समझा रही हो.. वैसे ही इसे भी समझा दो ताकि यह शांत होकर बैठ जाए.. और कब तक ये "आप-आप" कहती रहोगी??"
रेणुका ने झुककर सुबोधकांत के लंड के टोपे को चूम लिया.. सिर्फ चूमने से उसका दिल नहीं भरा.. सुने लंड को जड़ से पकड़कर एक झटके में.. मुंह के अंदर ले लिए.. उसका पूरा मुंह सुबोधकांत के तगड़े लंड से भर गया.. उस गरम लोडे को रेणुका ने तेजी से चूसना शुरू कर दिया..
सुबोधकांत सिसकने लगे "यार, तुम बिल्कुल उसी तरह चूसती हो जिस तरह उस पार्टी में मेरी पार्टनर चूस रही थी.. आह्ह... ओह्ह.. रेणु मेरी जान.. मस्त चूसती है यार तू" कहते हुए सुबोधकांत के लंड ने लस्सेदार वीर्य रेणुका के मुंह में छोड़ दिया.. उसका पूरा मुंह वीर्य से भर गया.. वीर्य का विचित्र स्वाद रेणुका को पसंद तो नहीं था.. पर नया लंड चूत के अंदर लेने का मौका मिलेगा इसी आशा में वह सारा वीर्य निगल गई.. और लंड को ऐसे चूसा की जब मुंह से बाहर निकाला तब उसे साफ करने की जरूरत ही न रही.. ऐसे साफ कर दिया चूस कर..
सुबोधकांत ने यू-टर्न लिया और वापिस पेट्रोल पंप के पास आकर गाड़ी रोक दी.. गाड़ी से उतरकर.. बगैर पीछे देखे.. रेणुका अपना एक्टिवा लेकर घर भागी.. घर पहुंचकर उसने सब से पहला काम.. सुबोधकांत की दी हुई घड़ी को छुपाने का किया.. और फिर बेडरूम मे जाकर लेट गई.. और बड़े ही आराम से, सुबोधकांत के तगड़े लंड को याद करते हुए.. उंगली करते करते झड़ गई.. !!
झड़ने के बाद रेणुका की धड़कनें कुछ शांत हुई.. उसने शीला को फोन लगाया और सारी बात बताई.. सिवाय उस घड़ी वाली गिफ्ट के.. शीला और रेणुका के बीच काफी घनिष्ठ मित्रता हो गई थी.. राजेश और मदन की तरह..