रेणुका: "आप शांति से खाना खाइए.. मैं अभी आती हूँ" कहते हुए रेणुका भागकर अनुमौसी के घर पहुंची.. और पीयूष के कमरे में गई.. पीयूष कागज बिछाकर फ़ाइल कर रहा था.. रेणुका ने कमरे का दरवाजा बंद किया और ब्लाउस के दो हुक खोलकर अपना बायाँ स्तन बाहर निकालकर बोली
"जल्दी कर पीयूष.. वो तीनों खाना खा रहे है इसलिए बड़ी मुश्किल से बचकर आई हूँ.. मैंने तुझे वादा किया था इसलिए पूरा कर रही हूँ.. जल्दी जल्दी कर.. उनके आने से पहले मुझे भागना पड़ेगा.. "
पीयूष स्तब्ध होकर रेणुका के पुष्ट पयोधर स्तनों के सौन्दर्य को देखता ही रहा.. क्या अद्भुत रूप था उन चूचियों का.. आहाहाहा.. स्त्री के स्तनों में ऐसा कौनसा जादू होता है.. जो देखता है बस देखता ही रह जाता है.. "
"देख क्या रहा है.. जल्दी कर.. मुझे वापिस जाना है"
"भाभी.. आप क्या मस्त लग रही हो.. पर एक ही क्यों खोला? मुझे दोनों स्तन एक साथ नंगे देखने है"
"क्या मुसीबत है यार.. पीयूष तू समझता क्यों नहीं.. अभी तेरी ममी या कविता आ गए तो आफत आ जाएगी.. जिद मत कर.. पूरा भोजन करने की जिद में प्रसाद भी हाथ से जाएगा.. इसलिए बोल रही हूँ.. जल्दी से चूस ले" कहते हुए रेणुका ने अपने स्तन को पीयूष के मुंह के आगे कर दिया..
पीयूष ने पहले अपने हाथ से स्तन को छुआ.. गोरे गोरे मस्त पपीते जैसे.. नरम नरम स्तन.. उसने हल्के से दबाया..
"क्या कर रहा है पागल? ये कोई सुहागरात है जो धीरे धीरे कर रहा है?? जल्दी खतम कर" रेणुका पीयूष से तंग आ गई। उसने पीयूष का सिर पकड़कर अपने बॉल पर दबा दिया.. पीयूष भी असली खिलाड़ी था.. उसने निप्पल को छोड़कर.. आसपास के गोलाकार पर जीभ फेरने लगा.. रेणुका इंतज़ार में थी की कब वो निप्पल को मुंह में लेकर चूसे.. पर ये तो निप्पल के इर्दगिर्द चाटता ही जा रहा था.. निप्पल को नजरअंदाज करते हुए
रेणुका इंतज़ार करते हुए थक गई और ब्लाउस का हुक बंद करने गई.. तब पीयूष ने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया.. जैसे हाथ में अंगारा पकड़ लिया हो वैसे रेणुका ने अपना हाथ झटके से खींच लिया
"दिमाग खराब हो गया है क्या तेरा !! कबसे समझा रही हूँ पर तू समझता ही नहीं है !!" कहते हुए उसने पीयूष को अपने स्तन से दूर किया.. बड़ी मुश्किल से उस टाइट स्तन को ब्लाउस के अंदर दबोचा और हुक बंद कर दिए। पीयूष उसे देखता ही रह गया रेणुका की इस हरकत को
"भाभी.. आपने चूसने ही नहीं दिया.. मैंने अभी ठीक से देखा तक नहीं है.. पता नहीं फिर कब मौका मिले" कहते हुए नाराज होने की एक्टिंग करने लगा पीयूष
रेणुका ने उसे बाहों में भरकर चूम लिया "कितना क्यूट है रे तू!! ऐसे बातें करेगा तो मुझे प्यार हो जाएगा.. चल अब मुझे जाने दे.. बहोत देर हो गई है.. और हाँ कल टाइम पर राजेश की ऑफिस पहुँच जाना.. मैं राजेश से बात कर लूँगी.. ये मेरा मोबाइल नंबर नोट कर ले.. और जब मर्जी आए तब फोन मत करना.. वरना मेरे पति को शक हो गया तो तेरी नौकरी का एबॉर्शन हो जाएगा.. समझा.. !!"
पीयूष ने अपने नंबर से रेणुका को मिसकॉल किया "मेरा नंबर भी सेव कर लेना भाभी"
"हाँ कर लूँगी.. अब चलती हूँ.. बाय" पीयूष उसे जाते हुए देखता ही रहा
रेणुका जब मौसी के घर से बाहर निकल रही थी तभी मौसी अंदर घुस रहे थे.. दोनों की नजरें मिली.. और रेणुका मुस्कुराकर चली गई। मौसी को कुछ शक तो हुआ पर तब तक रेणुका जा चुकी थी। शीला के घर कुछ देर रुक कर वो अपने घर वापिस लौट गई।
रेणुका के जाते ही शीला फिर से अकेली हो गई.. कितनी चंचल थी रेणुका!! उसकी उपस्थिति से पूरा घर जीवंत लगता था.. उसके जाते ही सब सुना सुना लगने लगा.. शीला को अपनी बेटी वैशाली की याद आ गई.. काफी दिनों से उसके साथ बात नहीं हुई थी.. शीला ने मोबाइल उठाकर तुरंत उसे फोन लगाया
"कैसी हो बेटा ?? तू तो कभी फोन ही नहीं करती मुझे? तेरे पापा भी घर नहीं है.. कम से कम मेरा हाल जानने के लिए तो फोन किया कर !! कितना अकेलापन महसूस कर रही हूँ.. पता है तुझे !!" बेटी के आगे शीला ने अपनी भड़ास निकाली
"मम्मी, मैं काफी दिनों से आपको याद कर रही थी.. पर टाइम ही नहीं मिला.. कैसी हो तुम? पता है.. हम अगले हफ्ते आने वाले है तुमसे मिलने.. !!"
"क्या बात है?" शीला उछल पड़ी
"हाँ मम्मी.. उनको ऑफिस का कुछ काम है तो मुझे भी साथ चलने को कहा.. चार पाँच दिन का काम है.. वो अपना काम निपटाएंगे और हम माँ बेटी साथ में ऐश करेंगे.. "
"बहोत अच्छा.. जल्दी जल्दी आ जा.. मैं अकेले अकेल बोर हो रही हूँ.. तेरे पापा थे तब सब दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलना होता था.. अब तो सब फोन पर ही हाल चाल पूछ लेते है.. कोई मिलने भी नहीं आता.. "
"बस मम्मी.. अब मैं आ जाऊँगी तो तेरा दिल लगा रहेगा.. अगले हफ्ते आएंगे.. आने से पहले मैं फोन करूंगी"
"ओके बेटा.. अपना खयाल रखना.. और संजय कुमार को मेरी याद देना"
"ठीक है मम्मी.. रखती हूँ"
शीला भावुक हो गई.. बेटी को विदा करने के बाद उनका घर सुना हो गया था.. उस दिन कितना रोए थे मैं और मदन?? मदन तो रात में नींद से जागकर वैशाली को याद करते हुए रोता था..
शीला ने केलेंडर में देखा.. अभी डेढ़ महीने की देरी थी मदन के लौटने में.. अब की बार तो मैं उसे वापिस जाने ही नहीं दूँगी.. क्या रखा है परदेश में? यहाँ पत्नी बिस्तर पर करवटें ले रही हो और पति परदेश में मजदूरी कर रहा हो.. ये भी भला कोई ज़िंदगी है !! शीला को बड़ी ही तीव्रता से मदन की याद आने लगी.. आज रात उसका फोन आना चाहिए.. जल्दी आजाओ मदन..
छत पर खड़े खड़े किसी से फोन पर बातें करते हुए पीयूष को बगल के घर में शीला भाभी अपने कमरे के सोफ़े पर बैठी हुई नजर आ रही थी.. उसकी नजर शीला से मिलते ही दोनों की आँखें चमक उठी.. शीला के उभारों को देखते हुए पीयूष को रेणुका के बबलों की याद आ गई.. शीला भाभी के बॉल बड़े थे पर रेणुका के स्तन कसे हुए थे.. पर अगर शीला भाभी को एक बार भोगने के लीये मिल जाएँ तो मैं रेणुका भाभी की तरफ देखूँ भी नहीं.. आह्ह.. पीयूष के लंड में एक झटका लगा.. यार.. ये शीला भाभी की नाभि कितनी सेक्सी है !! बिल्कुल कयामत सी.. एक बार चांस मिल जाएँ तो उनकी नाभि को चोदना है.. इतनी मस्त गहरी नाभि है की आधा लंड समा जाएँ अंदर..
पीयूष के दिमाग से शीला भाभी हट ही नहीं रही थी.. ज्यादातर रूप और कामुकता एक साथ एक व्यक्ति में कम ही नजर आते है.. शीला भाभी के पास उन दोनों का जादुई मिश्रण था.. कातिल हुस्न.. आलीशान व्यक्तित्व.. और चुंबकीय स्वभाव.. पीयूष दीवाना हो चुका था उनका.. दूसरी तरफ कविता ऐसा महसूस कर रही थी की पीयूष का उसके तरफ ध्यान कम होता जा रहा था.. वो सोच रही थी की शायद मैं पिंटू की तरफ ढलती जा रही हूँ उस वजह से तो शायद ऐसा लग रहा हो.. कविता ये जानती थी की शादी के बाद उसे पिंटू से नाता तोड़ लेना चाहिए था.. पर कमबख्त दिल का क्या करें.. कितनी कोशिशों के बाद भी वह अपने पहले प्रेम को दिल से निकाल नहीं पा रही थी
दूसरे दिन पीयूष फोन करके राजेश की ऑफिस पहुँच गया.. राजेश ने इंटरव्यू लेकर उसे एक हफ्ते के लिए अपॉइन्ट किया.. और उसे अपनी ऑफिस के मेनेजर महेंद्र के नीचे नियुक्त कर दिया.. पीयूष ने बाहर निकलकर सब से पहले रेणुका भाभी को फोन कर ये समाचार दिए.. बाद में कविता को और अंत में शीला भाभी को फोन किया और अपनी नौकरी लगने की खुशखबरी दी.. राजेश ने पीयूष को एक हफ्ते के लिए उसका काम देखकर नौकरी पक्की करने और तनख्वाह तय करने का वादा किया.. अपनी योग्यता और मेहनत पर पीयूष को पूरा भरोसा था. उसने तय किया की वह पूरे दिल से मेहनत करेगा और राजेश को शिकायत का एक भी मौका नहीं देगा..
पीयूष की नौकरी शुरू हो गई.. तीसरे ही दिन.. मेनेजर महेंद्र ने पीयूष के हाथों में एक बंद कवर रखा और कहा की ये कवर वो अपनी पत्नी को दें.. ये पीयूष की पत्नी के लिए था.. पीयूष अचंभित होकर सोचता रहा की कवर में ऐसा क्या था !!
शाम को घर आकार उसने कविता के हाथ में कवर रख दिया
कविता: "क्या है ये?"
पीयूष: "कवर तेरे हाथों में ही.. तू ही खोलकर बता.. मेरी ऑफिस से दिया है.. और कहा है की तेरे लिए है"
कविता: "मुझे भला कोई क्यूँ कवर भेजेगा तेरी ऑफिस से? नौकरी मैं कर रही हूँ या तुम?"
पीयूष: "अरे यार.. तू वो सब छोड़.. और कवर खोल.. मुझसे अब और इंतज़ार नहीं हो रहा"
कविता ने कवर खोला.. एक एग्रीमेन्ट था जिसमें पीयूष की नौकरी को स्थायी कर दिया गया था और साथ ही उसकी तनख्वाह २५००० तय की गई थी.. और साथ में एक चिट्ठी थी जिसमें लिखा था
"प्रिय पीयूष,
तुम्हें मेरी कंपनी में पर्मनन्ट नौकरी देते हुए मुझे खुशी हो रही है.. मेरी कंपनी को तुम्हारे जैसे होनहार कर्मचारी की जरूरत थी। एक हफ्ते के काम को तीन ही दिन में खतम कर तुमने अपनी योग्यता सिद्ध कर दी है.. मैं अपने स्टाफ को कभी नौकर नहीं समझता.. अपने परिवार का हिस्सा ही समझता हूँ.. इसलिए शनिवार रात को तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को मेरे साथ डिनर पर आने का न्योता दे रहा हूँ.. मेरे परिवार में तुम्हारा स्वागत है.. धन्यवाद और अभिनंदन.. शनिवार शाम को ७:४५ को तुम्हें अपनी पत्नी के साथ होटल मनमन्दिर में आना है.. हमारी ऑफिस का अन्य स्टाफ भी साथ डिनर करेगा.. हर महीने के आखिरी शनिवार को हमारी कंपनी डिनर के लिए मिलते है ताकि पूरा स्टाफ और उनके परिवारजन आपस में मिल सकें.. स्टाफ के साथ पहचान बढ़ाने का तुम्हारे लिए ये अच्छा अवसर रहेगा..
शुभेच्छा सह
राजेश"
ये पढ़कर कविता उछल पड़ी और पीयूष से लिपट गई.. पीयूष और कविता दोनों ही बेहद खुश थे.. पीयूष ने भी कविता के स्तनों को दबाते हुए उसे चूम लिया.. दोनों बेडरूम के अंदर ही थे.. पति और पत्नी एक दूसरे को उत्तेजना प्रदान करने लगे.. और साथ ही साथ एक दूसरे के वस्त्रों को भी उतारने लगे.. दोनों जिस्म नंगे होते ही पीयूष भूखे भेड़िये की तरह कविता पर टूट पड़ा.. कविता भी पीयूष के लंड को मुट्ठी में दबाते हुए अपने संतरों जैसे स्तनों को पीयूष की छाती से रगड़ने लगी.. पीयूष का शरीर उत्तेजना से तप रहा था.. उसका लंड कविता के हाथों में ठुमक रहा था.. पीयूष ने ऊपर उठकर अपना लंड कविता के मुंह में दे दिया.. कविता बड़े प्यार से पीयूष के सुपाड़े को चूसते हुए उसके आँड़ों को सहलाने लगी.. पीछे की तरफ झुककर पीयूष ने कविता की छोटी सी क्लिटोरिस को मसलकर उसे उत्तेजना से पागल कर दिया..
"आह्ह कविता.. और जोर से चूस.. बहोत मज़ा आ रहा है यार.. " पीयूष तेजी से कविता की क्लिटोरिस को रगड़ रहा था। दूसरे हाथ से उसने कविता के एक स्तन को मरोड़ दिया.. पीयूष ने अपना लंड अब कविता के मुंह से बाहर निकाला और वो कविता की प्यारी पुच्ची को चाटने लगा.. सिहर रही कविता आँखें बंद कर ये सोच रही थी की ऑफिस से आए खत में जो लिखाई थी.. वो पिंटू से काफी मिलती झूलती क्यों लग रही थी? स्कूल में वो पिंटू को पास बैठकर ही पढ़ती थी इसलिए उसकी लिखाई से वो परिचित थी..
दिमाग में पिंटू का खयाल आते ही कविता में एक अनोखा जोश आ गया.. अपनी चुत चाट रहे पीयूष को बिस्तर पर पटक कर वो उस पर सवार हो गई.. उंगलियों के बीच उसके लंड को पकड़कर अपनी चुत के छेद को उसपर रख दिया और धीरे धीरे बैठ गई.. लंड अंदर घुसते ही उसने बेतहाशा कूदना शुरू कर दिया.. पीयूष लाचार होकर कविता के प्रहारों को लेटे लेटे झेल रहा था.. उछलते हुए कविता ने अपने बाल खोल दिए.. और मदहोश होकर आँखें बंद कर ऊपर नीचे करती ही रही.. खुले हुए बाल.. जंगली जानवर जैसी उत्तेजना..लाल चेहरा.. बंद आँखें.. पीयूष एक पल के लिए उसे देखकर डर सा गया.. बेरहमी से कविता पीयूष पर कूदती ही रही.. उसके कड़े स्तन.. और उत्तेजना के कारण बंदूक की तरह तनी हुई उसकी निप्पलें.. पीयूष ने मसलना शुरू कर दिया.. पागलों की तरह कूद रही कविता जैसे ही अपनी मंजिल पर पहुंची तब "ओह माय गॉड" कहते हुए लंड से उतार गई और बिस्तर पर लेटकर हांफने लगी..
अब बारी पीयूष की थी.. उसने हांफ रही कविता की जांघें चौड़ी की.. और उसकी गीली मुनिया में एक ही झटके में अपना लंड घुसेड़ दिया.. उसके हर धक्के के साथ कविता कराह रही थी.. कुछ ही धक्कों के बाद पीयूष ने अपना व्हाइट ज्यूस कविता की तंग चुत में दे मारा.. और उसकी छाती पर गिर गया.. लंड को चुत की अंदर ही रखे हुए.. वो दोनों गहरी नींद में.. उसी अवस्था में सो गए..
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