• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

pussylover1

Milf lover.
1,156
1,525
143
मदन तुरंत जाग गया.. दोनों ने कपड़े पहने और बगल वाले कमरे में देखने गए.. वो कमरा खुला था और अंदर कोई नहीं था.. मतलब साफ था.. दोनों निकल चुकी थी.. उदास होकर सामान लेकर दोनों रीसेप्शन पर पहुंचे.. चेक-आउट कर दोनों बाहर निकलें.. गाड़ी में बैठकर दोनों की सांसें तब तक पूर्ववत नहीं हुई जब तक की वो शहर से बाहर नहीं निकल गए..

उस दौरान, रेणुका और शीला, बड़े ही आराम से मस्ती करते हुए गाड़ी में अपने शहर की ओर जा रहे थे.. देखते ही देखते दोनों रेणुका के घर पहुँच गए.. शीला ऑटो लेकर घर पहुंची.. तब वैशाली ऑफिस जा चुकी थी.. रेणुका और शीला के बीच.. गाड़ी में जो गुफ्तगू हुई, वो जबरदस्त थी..!!

सुबह के दस बज गए थे.. पिछली रात के संस्मरणों के बारे में सोचते हुए शीला रोजमर्रा के काम में मशरूफ़ हो गई...

दोपहर तीन बजे के करीब मदन घर पहुंचा.. उसका चेहरा इतना उदास था, जैसे कोई उसके गोटे चुराकर भाग गया हो.. !! शीला ने उसका ऐसे स्वागत किया जैसे कल रात कुछ हुआ ही न हो.. एकदम स्वाभाविक व्यवहार दिखाया उसने.. !!

मदन धीरे धीरे चलते हुए सोफ़े पर जा बैठा.. शीला उसके लिए पानी का ग्लास लेकर आई..

यहाँ आने से पहले मन ही मन मदन सोच रहा था की घर पहुंचते ही शीला उसकी बैंड बजा देगी.. पर ये तो बिल्कुल उल्टा ही हो रहा था.. !! हाथ में ग्लास थमाकर शीला कोई गीत गुनगुनाते हुए किचन में चली गई.. थोड़ी देर के बाद अदरख की खुश्बू से पता चला की अंदर मस्त मसालेदार चाय बन रही थी..

हाथ में दो बड़े चाय से भरे मग लेकर शीला बाहर आई.. एक मग मदन को दिया और मदन के करीब सोफ़े पर बैठ गई..

मदन की हालत इतनी खस्ता थी की खिड़की के बाहर अपने बरामदे में झुककर झाड़ू लगा रही कविता के लटकते बबले देखने का भी मन नहीं हो रहा था उसे..

अपनी आँखें मटकाते हुए बड़े ही शरारती अंदाज में शीला ने मदन से पूछा "कैसी रही मीटिंग?"

मदन ने जवाब नहीं दिया..

मदन को इस स्थिति में देखकर शीला बेहद खुश हुई.. सशक्त और प्रभावशाली महिलाएं अपनी शक्ति और प्रभाव को पुरुषों पर हमेशा स्थापित करना चाहती हैं.. ऐसी महिलाएं अपनी स्थिति और अधिकार को तब महसूस करती हैं, जब वे अपने पुरुषों को कमजोर या उनके दायित्वों के तले दबा हुआ देखती हैं.. ऐसे सूरत में, महिलाएं आम तौर पर पुरुषों को नियंत्रण में रखने का आनंद महसूस करती हैं, और यह शक्ति का असमान वितरण उनके आत्म-सम्मान और संतुष्टि का हिस्सा बन जाता है..!!

मदन को ओर उंगली करने के लिए उसने उसे कुहनी मारकर कविता की तरफ इशारा करते हुए कहा "वो देख.. कविता के भी उस बार्बी जैसे ही है.. बुला ले उसे आज रात को.. !! तो क्या है, की तुझे झूठ बोलकर दोबारा इतने दूर जाना नहीं पड़ेगा"

मदन: "प्लीज यार शीला.. कविता के लिए ऐसा मत बोल.. उसमें उस बेचारी का क्या दोष?"

शीला: "बात तो तेरी सही है मदन.. पर क्या करूँ?? घूम फिरकर वही सारी बातें याद आ जाती है.. कल जब रेणुका तेरा लंड चूस रही थी.. तब तेरी उत्तेजना जबरदस्त बढ़ गई थी.. मैंने अपनी आँखों से देखा है इसलिए मुकर मत जाना.. वरना मर गया आज तो.. !!"

रेणुका की बात छेड़कर शीला क्या कहना चाह रही थी इसके बारे में मदन सोचता उससे पहले शीला ने और एक बाउंड्री मार दी..

शीला: "बिना मुझ से पूछे.. तुम दोनों ने आपस में ही बीवियाँ बदलने का तय कैसे कर लिया????"

मदन: "अरे यार.. तू ही तो कहती थी.. की तुझे ग्रुप सेक्स करना है.. बी.पी. देखते हुए तू कितनी गरम हो जाती थी और ऐसी बातें किया करती थी.. !! भूल गई क्या??"

शीला: "मदन, चल अंदर चलकर बात करते है"

मदन: "नहीं.. यही पर ही ठीक है.. " मदन जानता था की अंदर बेडरूम में ले जाने का बाद शीला कुछ भी कर सकती थी.. उसे वो जोखिम लेना ही नहीं था..

चाय खत्म हो गई.. पर दोनों की गरमागरम बातें खत्म नहीं हुई.. बड़ी मुश्किल से मदन ने शीला से अपनी जान छुड़ाते हुए कहा

मदन: "मैं थोड़ी देर बाहर जाकर आता हूँ"

शीला ने उसे रोका नहीं.. और वो चला गया.. शीला सोफ़े पर बैठे बैठे आगे की रणनीति सोच रही थी तभी मदन के फोन की रिंग बजी.. जल्दबाजी में मदन फोन ले जाना ही भूल गया था.. !!

शीला ने फोन हाथ में लिया.. स्क्रीन पर रेणुका का नाम नजर आ रहा था.. शीला ने फोन उठाया और कुछ बात की.. फोन काटकर उसने राजेश को फोन लगाया..

राजेश: "हैलो भाभी जी, कैसी है आप?" बड़ी ही विनम्रता से राजेश ने कहा

शीला: "अरे वाह.. कितने भोले बन रहे हो.. इतने भोले राजेश से मुझे कोई बात नहीं करनी.. रखती हूँ" बड़ी शातिर थी शीला

राजेश: "अरे नहीं नहीं भाभी.. कहिए, क्या काम था? वो तो.. कल रात के बाद.. आप से बात करने में थोड़ा संकोच हो रहा था इसलिए.. वरना आप के सामने भला कौन भोला बनकर रहना चाहेगा.. !!"

शीला ने मुस्कुराकर कहा "अच्छा.. !!! मैं तो समझ रही थी की मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ"

राजेश: "भाभी जी, शराब जितनी पुरानी हो उतना ही ज्यादा मज़ा देती है"

शीला: "तो क्या मैं शराब हूँ? तब तो मुझ पर भी सरकार को रोक लगा देनी चाहिए"

राजेश: "खुलेआम मजे लेने पर तो वैसे भी रोक ही है ना.. फिर वो शराब हो या आप.. !! पर चुपके चुपके क्या कुछ नहीं हो सकता.. !! कल रात को ही आपने सारे नज़ारे देख लिए है"

शीला: "राजेश, एक बात कहूँ.. पर किसी को बताना मत"

राजेश: "हाँ कहिए भाभी.. "

शीला: "नहीं ऐसे नहीं.. पहले वादा करो को आप किसी को नहीं बाताओगे.. रेणुका को भी नहीं.. यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए"

राजेश: "बात क्या है भाभी? कुछ सीक्रेट है क्या? वैसे सीक्रेट बात हो या काम.. दोनों में ही मज़ा आता है.. जल्दी कहिए"

शीला: "पहले वादा करो किसी को नहीं बताओगे"

राजेश: "ठीक है, वादा करता हूँ"

शीला: "कैसे कहूँ... मुझे तो शर्म आती है.. राजेश.. कल तुम बहोत ही हार्ड थे.. तुम्हारा वो... उसकी तस्वीर मेरी आँखों के सामने से हट ही नहीं रही है"

सुनते ही राजेश का लंड ऐसे खड़ा हो गया जैसे अभी अभी वियाग्रा के साथ रेड-बुल के दो टीन पी लिए हो.. !! ऐसी उत्तेजना का अनुभव उसने इससे पहले सिर्फ एक ही बार किया था.. माउंट आबू में बियर पीने के बाद जब टॉइलेट में वैशाली ने उसे अंदर खींचकर उसका लंड पकड़ लिया था..!!

शीला: "राजेश, आप मेरे बारे में कुछ बुरा मत सोचिएगा.. आप दोनों जो अंदर अंदर स्वैपिंग करने की बात कर रहे थे.. उसके लिए रेणुका तैयार हो जाती.. शायद मैं भी तैयार हो जाती.. पर मदन कभी भी तैयार नहीं होगा.. मुझसे इतनी मोहब्बत करता है वो.. मुझे किसी और की बाहों में वो देख ही नहीं पाएगा.. !!"

राजेश: "अरे भाभी.. वो सब बातें तो हम सिर्फ मज़ाक मज़ाक में कर रहे थे.. आप उसे सिरियसली मत लीजिए.. चाहे आप हो या रेणुका.. अपने पति के दोस्त के साथ ऐसा करने की कौन भला सोचेगा??"

शीला: "सोच तो कोई भी सकता है.. कुछ भी नामुमकिन नहीं होता.. पति की जानकारी में ये करना जरूर मुश्किल है.. पर उससे छुपाकर तो हो ही सकता है"

सुनकर राजेश के होश उड़ गए "आप क्या कह रही हो भाभी????"

शीला: "प्लीज राजेश.. ये तो अच्छा हुआ की मदन अपना फोन भूल गया तो मैं उसके फोन से ये बात कह रही हूँ.. वरना मेरी ये इच्छा अधूरी ही रह जाती.. सामने से तो ऐसा कहने की मेरी हिम्मत कभी नहीं होती.. पर आज जब मौका मिल ही गया तो मैं उसे छोड़ना भी नहीं चाहती.. मुझे कहने दीजिए.. जब से मैंने तुमको इतना हार्ड होते हुए देखा है.. तब से मेरे रोम रोम में बस तुम्हारी ही याद बसी हुई है.. जो हरदम मुझे मजबूर कर रही है की उस हार्डनेस का अनुभव किए बगैर मैं रह नहीं पाऊँगी.. सिर्फ एक बार.. प्लीज मुझे चांस दो.. आई लव यू राजेश"

स्तब्ध हो गया राजेश.. !! ये क्या खेल खेल रही थी शीला उसके साथ.. !! शीला ने आई लव यु तक बोल दीया?? कोई इतनी जल्दी कैसे किसी से प्रेम कर सकता है?? शीला जबरदस्त गरम औरत थी उसमें कोई दो राय नहीं थी.. पर जैसे भी थी.. थी तो वो उसके दोस्त की बीवी.. मदन के साथ ऐसा धोखा मैं कैसे कर सकता हूँ??

धोखा..!! यह शब्द याद आते ही राजेश के दिल ने उसे एक मजबूत लात लगाकर मैदान के बाहर फेंक दिया.. धोखा देने में अब बाकी ही क्या बचा था?? और मदन भी तो रेणुका की चूत चाट ही चुका था.. !! वो भी मेरे नज़रों के सामने.. !! तो अब धोखे वाली बात के बारे में सोचने का कोई मतलब ही नहीं था.. और मैं कहाँ शीला पर कोई जबरदस्ती कर रहा हूँ?? या उसे फुसला रहा हूँ? ना ही मैं उसे कोई धोखा दे रहा हूँ.. जब वो ही सामने से चलकर आ रही है तो... !!

शीला: "क्या सोच रहे हो राजेश?? यही ना.. की मैं कितनी गिरी हुई और घटिया किस्म की औरत हूँ.. !!"

राजेश चुप ही रहा

शीला: "अब तुम मुझे घटिया समझो या गिरी हुई समझो.. पर मैं अपनी इच्छा को अधूरी छोड़ने वालों में से नहीं हूँ.. मुझे तो कल रात को ही तुम्हारा हार्ड पेनीस देखकर, उसे अंदर लेने का मन कर रहा था.. पर सच कहूँ तो मदन की मौजूदगी में.. मैं खुलकर मज़ा न ले पाती.. मुझे एकांत चाहिए.. सिर्फ तुम और मैं अकेले.. दुनिया का कोई एक ऐसा कोना जहां पर हम दोनों के अलावा और कोई न हो.. ऐसे माहोल में.. मैं मुक्त होकर तुम्हारे साथ इन्जॉय करना चाहती हूँ.. प्लीज मुझे निराश मत करना.. मैं मर रही हूँ तुम्हारी सख्ती को अपने अंदर महसूस करने के लिए.. !!"

राजेश के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे.. शीला ने तो उसे प्रपोज ही कर दिया.. !! अब क्या जवाब दें.. !!

फोन पर बात करते हुए राजेश गाड़ी ड्राइव कर रहा था.. अपने घर की ओर.. वो घर पहुंचकर रेणुका के साथ अपने संबंधों को वापिस दुरस्त करना चाहता था.. दूध फट तो चुका था.. अब उससे जितना जल्दी पनीर बना लिया जाए उतना अच्छा.. !! और इसी बीच शीला का फोन आ गया.. गाड़ी चलाते हुए उसका लंड खड़ा हो गया था.. शीला की बातों ने उसके लंड को फिर बैठने ही नहीं दिया.. ऐसा हाल हो गया की गाड़ी चलाते चलाते ही उसने अपना लंड बाहर निकाला और मूठ लगाने लगा..

राजेश: "ओह्ह भाभी.. अपना तो मेरा हाल कल रात जैसा कर दिया.."

शीला: "तो फिर आ जाओ.. मदन बाहर गया है.. घर पर कोई नहीं है"

राजेश: "और कहीं वो आ गया तो?"

शीला: "एक काम करती हूँ.. उसे फोन करके पूछ लेती हूँ.. की कब लौटने वाला है"

राजेश: "पर कैसे पूछोगी? फोन तो उसका घर पर ही है"

शीला: "जाने दो.. लगता है तुम्हारी हिम्मत नहीं हो रही है"

राजेश: "ऐसा नहीं है भाभी... पर.. !!!"

शीला ने नाराज होकर कहा "मदन लौट आया है" और उसने फोन काट दिया

फोन रखने के बाद शीला को अफसोस हो रहा था की आखिर वासना की बाढ़ में बहकर उसने राजेश से ऐसी बात की ही क्यों?? अब वो क्या सोचेगा मेरे बारे में??

शीला की बातों से बेहद उत्तेजित होकर.. राजेश ने रोड के किनारे गाड़ी पार्क कर दी.. और मूठ लगाते हुए अपने रुमाल में पिचकारी मार ली.. और फिर घर की ओर निकल गया

घर के गंभीर वातावरण को देखते हुए अब वहाँ किसी उत्तेजक घटना के घटने की कोई संभावना नहीं थी.. जैसा राजेश ने सोचा था.. रेणुका मुंह फुलाकर बैठी हुई थी.. और उससे बात करने के मूड में नहीं थी.. और वो स्वाभाविक भी था.. इसलिए राजेश को कोई ताज्जुब नहीं हुआ..

उस रात उन दोनों के बीच कुछ खास नहीं हुआ.. पर बगल में सो रहे दोनों के दिमाग में पिछली रात की घटनाएं घूम रही थी.. रेणुका मदन के लंड को याद कर रही थी.. जब की राजेश के दिमाग में शीला ने आज दोपहर को कही हुई बातें बार बार आ रही थी..

इस तरफ मदन और शीला के हाल भी कुछ ऐसे ही थे.. शीला पार्टी के सारे लंड याद कर रही थी.. जब की मदन के दिमाग में रेणुका का छरहरा बदन घूम रहा था..

राजेश सोते सोते सोच रहा था.. आह्ह.. आज शीला भाभी ने मेरे लंड की तारीफ की.. मुझे खुला निमंत्रण तक दे दिया.. !! याद करते ही राजेश के मुंह से एक सिसकी निकल गई.. जो बगल में लेटकर उत्तेजना से झुलस रही रेणुका ने स्पष्ट रूप से सुना.. पर वह कुछ बोली नहीं.. वो मन ही मन सोच रही थी की अगर कल रात पुलिस की रैड न पड़ी होती.. तो वो और शीला अपनी पहचान अंत तक छुपाने में कामयाब रहते.. और रात का पूरा लुत्फ उठा पाते.. खैर फिर जो हुआ वो कल्पनातीत था.. भला हो शीला का.. जिसने अपनी सही पहचान बताकर सबको बचा लिया.. वरना आज सब के सब जैल की सलाखों के पीछे होते.. बाप रे.. !! समाज में क्या इज्जत रह जाती.. !! हाथ में नाम और पता लिखा हुआ बोर्ड थमाकर पुलिस वाले तस्वीर खींचते और अखबार वाले उसे पहले पन्ने पर छाप देते.. !!!

इस तरफ शीला करवट लेकर अपनी निप्पल को मसल रही थी.. उससे अब यह उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. हेमंत के जवान ताजे लंड ने उसे जो मजे दीये थे.. उसे याद करते हुए वह बहोत गर्म हो गई.. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका पूरा बदन बुखार से तप रहा हो.. ऊपर से, राजेश को लंड को चूसने पर जो शानदार किक मिली थी वो स्खलित होने के लिए काफी थी.. राजेश के लंड की याद आते ही शीला के भोसड़े में हवस की आग लग गई.. कुछ भी हो जाए.. एक बार तो वो लंड अंदर लेना ही है.. !! पर वो साला एक नंबर का डरपोक है.. क्या किया जाए?? मदन शहर से कहीं बाहर चला जाएँ तो फिर बढ़िया मौके का सेटिंग हो सकता है.. पर वैशाली तो घर पर ही होगी.. उसका क्या करें?? राजेश के घर पर रेणुका हर वक्त रहती थी.. ऑफिस मे पीयूष और पिंटू दोनों उसे पहचानते थे.. और यहाँ घर पर वैशाली और मदन का टेंशन.. ऊपर से.. कविता और अनुमौसी के नज़रों से बचाकर कुछ भी करना नामुमकिन सा था..

सोचते सोचते शीला अपनी चूत को कुरेदती रही.. और ऐसा सोचती रही की जैसे राजेश का लंड अंदर घुस रहा हो.. थोड़ी देर में ही उसकी चूत ने शहद टपका दिया.. और वो सो गई..

दूसरी सुबह, लगभग ग्यारह बजे के आसपास.. मदन पर राजेश का फोन आया.. दोनों ने काफी देर तक लंबी बातचीत की.. शीला बगल मे ही बैठी थी.. पर उस रात की घटना के बाद मदन की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो खड़ा होकर, शीला से दूर जाकर बात करें.. उस रात के बारे में अब तक शीला और मदन के बीच खुल कर बात हुई भी नहीं थी.. !! आखिर मदन ने "बाद में बात करते है" कहते हुए फोन रख दिया..

शीला ने कुछ पूछा नहीं.. उसने उठकर डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया.. मदन ने भी चुपचाप पालतू कुत्ते की तरह खाना खा लिया.. और शीला को बिना कुछ बताएं बाहर चला गया.. वो जितना हो सकें.. शीला के वाक्य-बाणों से दूर रहना चाहता था..

मदन ने बाहर निकलते ही राजेश को फोन किया.. और सीधा उसकी ऑफिस पहुँच गया.. पापा को देखकर वैशाली बहुत ही खुश हो गई.. काफी देर तक मदन और वैशाली की बातें चली.. बड़े ही उत्साह से वैशाली ने अपने काम के बारे मे बताया..

मदन ने राजेश की चेम्बर में प्रवेश किया.. राजेश ने बेल बजाकर प्युन को बुलाया और दो कप कॉफी मँगवाई.. और दोनों बातों में मशरूफ़ हो गए

राजेश: "मदन यार.. घर पर सब कैसा है?? मेरी तो वाट लगी पड़ी है.. !!"

मदन: "मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही है.. तेरी भाभी तो मुझसे सीधे मुंह बात भी नहीं करती.. अपने ही घर में बेघर की तरह जी रहा हूँ.. बस खाना खाकर कोने में पड़ा रहता हूँ.. एक रात के मजे की इतनी बड़ी किंमत चुकानी पड़ेगी ये अंदाजा नहीं था.. बहोत बड़ी गलती हो गई.. तुझे क्या लगता है?"

राजेश: "बिल्कुल सच कहा तूने यार.. पर सोच.. अगर वहाँ हमारी बीवियाँ और पुलिस न आए होते तो कितना मज़ा आता.. !!"

मदन: "वो सब तो ठीक है यार.. पर ये सोच.. हो सकता है पुलिस को अपने सूत्रों से खबर मिली हो और उन्हों ने रैड कर दी.. पर मेरा दिमाग तो यह सोचकर खराब हुआ जा रहा है की हमारी बीवियों को इस बारे में कैसे और कहाँ से पता चला?? और वो दोनों वहाँ पहुंची कैसे??"

राजेश: "तुझे क्या लगता है मदन.. हम जो कुछ भी करते है.. उसका हमारी पत्नियों को पता नहीं चलता.. !! सब पता चलता है.. अगर हम न भी बताएं तो वो हमारी हरकतों से भांप लेती है की कहीं कुछ गलत हो रहा है.. उसे ही तो औरतों की छठी इंद्रिय कहा गया है.. असल मे.. वह लोग बहुत कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते है.. "

मदन: "नहीं यार.. मैं नहीं मानता.. !!"

राजेश: "ऐसा ही होता है मदन.. तू माने या ना मानें.. हकीकत यही है.. जब तक औरतों को अपनी सलामती या इज्जत पर कोई आंच आती न दिखे.. तब तक वो सब कुछ सह लेती है.. पर उन्हें जरा सा भी शक हुआ या डर लगा की मामला बिगड़ रहा है.. वह तुरंत ही सक्रिय हो जाती है.. और फिर वो किस हद तक जा सकती है, वो तो हम दोनों ने अपनी आँखों से देख ही लिया है"

मदन: "हाँ यार.. पर ताज्जुब इस बात का है.. की वो दोनों पुलिस से भी पहले पहुँच चुके थे.. उस हिसाब से उनका नेटवर्क तो पुलिस से भी ज्यादा मजबूत हुआ.. !!"

दोनों बातें कर रहे थे उस वक्त वैशाली कॉफी के तीन कप लेकर चेम्बर के अंदर आई.. राजेश और मदन ने बड़ी ही सफाई से अपनी बात बदल दी और क्रिकेट के बारे में बातें करने लगे..

टेबल पर तीनों कप रखकर वैशाली बैठ गई.. राजेश, मदन की मौजूदगी में ही वैशाली के विशाल तंदूरस्त स्तन-युग्म को देख रहा था.. जिस तरह से वो चलकर अंदर आई.. टाइट टी-शर्ट के अंदर दबी हुई चूचियाँ तालबद्ध लय में ऊपर नीचे हो रही थी.. एक पल के लिए मदन का इमान भी डोल गया पर उसने उस घृणास्पद विचार को रोक लिया..

वैशाली: "सॉरी पापा.. मैं आप लोगों को डिस्टर्ब कर रही हूँ.. पर मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी है.. !!"

मदन: "हाँ बोल न बेटा.. !!"

बाप-बेटी की बातचीत बड़े ध्यान से सुनते हुए राजेश अब भी वैशाली के कटीले बबलों को ताड़ रहा था

वैशाली: "दरअसल अभी मौसम का फोन आया था.. उसने मुझे और कविता को अर्जेंट उसके घर बुलाया है.. दो दिनों के लिए.. वो फोन पर बहोत ही रो रही थी.. !!"

राजेश: "तब तो बात जरूर बहोत गंभीर होगी.. !!"

मदन: "उसने कारण बताया या नहीं?? कुछ ज्यादा गंभीर बात हो तो हम भी चलें तुम लोगों के साथ"

वैशाली: "और तो कुछ नहीं बताया पर इतना बोली की उसके मंगेतर तरुण के बीच बहोत बड़ा प्रॉब्लेम हुआ है.. और तरुण सगाई तोड़ना चाहता है"

यह सुनकर राजेश और मदन दोनों चोंक गए

राजेश: "क्या?? ऐसे कैसे सगाई तोड़ सकता है?? कोई मज़ाक है क्या?? पर कुछ तो हुआ होगा उन दोनों के बीच... कुछ बताया मौसम ने?"

वैशाली: "वो फोन पर कुछ भी बताने को राजी नहीं है.. अब तो वहाँ जाकर ही कुछ पता चलेगा की मामले आखिर क्या है.. !!"

मदन: "ये आजकल के बच्चे भी ना.. सगाई-शादी जैसे गंभीर संबंधों को भी गुड्डे-गुड्डियों का खेल ही समझते है.. जब मर्जी की तब कर लिया.. और मन भर गया तो फेंक कर खड़े हो गए.. अरे भाई.. ऐसे थोड़े ही होता है.. !!"

राजेश: "बिल्कुल सही कहा तूने, मदन.. !! सच में.. मुझे तो अब अभी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा"

मदन: "वैशाली बेटा.. तुझे जाना ही चाहिए.. मौसम की इस स्थिति को सहेलियाँ ही बेहतर समझ सकेगी और अच्छे से हेंडल भी कर सकेगी.. माँ-बाप इसमें ज्यादा कुछ कर नहीं सकते.. उन बेचारों पर तो आसमान टूट पड़ा होगा यह सुनकर... !!"

वैशाली: "ठीक है पापा.. मैं अभी घर को निकलती हूँ.. कविता से भी बात करनी होगी.."

मदन: "ठीक है बेटा.. "

वैशाली ने राजेश की ओर मुड़कर कहा "सर, आज का काम तो मैंने खतम कर दिया है.. अब वापिस आने में एक दो दिन लग सकते है.. तो क्या मैं जा सकती हूँ?"

राजेश: "अरे वैशाली.. यह भी कोई पूछने की बात है?? तू ऑफिस की चिंता मत कर और जा.." राजेश ने ड्रॉअर खोलकर पाँच सौ के दस नोट निकालकर वैशाली को दीये और कहा "ये साथ में रखना.. काम आएंगे"

मदन: "अरे राजेश, क्या कर रहा है यार तू.. उसे जरूरत होगी तो मुझसे ले लेगी.. तू क्यों दे रहा है??"

राजेश: "मुझे पता है की तू उसे दे ही सकता है.. पर अब एक बात समझ ले.. वैशाली को अपने पैरों पर खड़े होना होगा.. और उसमें हम सब उसकी मदद करेंगे.. वो अपनी तनख्वाह से खुद के खर्चे संभालेगी.. हाँ, उसे कभी कुछ भी ज्यादा जरूरत हुई तो हम सब है ना.. !! बाकी उसे अपने हिस्साब से ही जीने दे.. उससे उसका मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ेगा... वैशाली, तुम निकलो.. वहाँ जाकर इस प्रॉब्लेम का सही कारण ढूँढने की कोशिश करना.. और पता चले तो अपने पापा को तुरंत बताना.. हो सकता है हम लोग इसमें कुछ मदद कर सकें.. "

वैशाली: "ओके सर.. थेंकस..!!" कहते हुए वैशाली उठकर चली गई.. मुड़कर जाती हुई वैशाली के मटकते नितंब देखकर राजेश की दिल मे जबरदस्त सुरसुरी सी होने लगी..

वैशाली ने बाहर निकलकर ऑटो पकड़ी और तुरंत घर पहुँच गई.. ऑटो में बैठे बैठे उसने पिंटू को सारी बात फोन पर बता दी.. धीरे धीरे पिंटू अब.. किसी और की हो चुकी कविता से ज्यादा वैशाली के प्रति अपना ध्यान केंद्रित कर रहा था.. पिंटू का टूटा हुआ दिल.. और वैशाली का बर्बाद हो चुका वैवाहिक जीवन.. दोनों एक दूजे के लिए आदर्श विकल्प थे.. पर जब जब पिंटू के दिमाग में कविता का विचार आता.. तब उसे लगता की वो कविता का स्थान और किसी को भी नहीं दे पाएगा.. यही सोचकर वो वैशाली से पर्याप्त दूरी बनाए रखता था.. एक बार तो उसे दिमाग में भी आया.. की वो भी वैशाली के साथ जाएँ.. उसी बहाने वह घर भी जा सकेगा और वैशाली के साथ कुछ समय बिताने का मौका भी मिल जाएगा.. पर जैसे ही उसे पता चला की वैशाली तो कविता के साथ जा रही है.. उसने वो प्लान केन्सल कर दिया.. !!

वैशाली घर पहुंची.. शीला घर पर अकेली थी.. वैशाली को इतना जल्दी घर आया देख उसे ताज्जुब हुआ..

शीला: "क्या हुआ बेटा?? तबीयत तो ठीक है ना तेरी??"

वैशाली: "मम्मी, मुझे कुछ नहीं हुआ है.. तुम कविता को यहाँ बुलाओ.. मुझे काम है उसका.."

शीला: "अरे पर हुआ क्या? क्या काम है उसका? तू ही क्यों नहीं चली जाती उसके घर? सब ठीक तो है ना??"

वैशाली: "कुछ भी ठीक नहीं है मम्मी.. मौसम का फोन था.. तरुण सगाई तोड़ना चाहता है.. बहुत रो रही थी बेचारी.. मुझे और कविता को वहाँ बुला रही है"

शीला स्तब्ध होकर बोली "क्या??? ऐसा कैसे हो सकता है? अभी पंद्रह दिन ही तो हुए है सगाई को.. !!"

वैशाली: "पता नहीं मम्मी.. शायद कविता को कुछ पता हो इसके बारे में.. मौसम ने इतना ही कहा की मैं उसकी दीदी को लेकर तुरंत वहाँ आ जाऊ"

शीला गहरी सोच में पड़ गई.. ऐसा तो क्या हो गया अचानक??

शीला ने फोन करके कविता को बुलाया.. कविता तुरंत आ गई.. उसे तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था.. वो तो बेचारी सुनकर ही फुट फुटकर रोने लगी..

शीला और वैशाली ने बड़ी मुश्किल से उसे शांत किया और पानी पिलाया

शीला: "हिम्मत रख कविता.. जो होना था सो हो गया.. अच्छा हुआ की शादी से पहली ही हो गया.. वरना मौसम का हाल भी मेरी वैशाली जैसा हो जाता.. !!" और फिर अचानक शीला को याद आया और उसने वैशाली की ओर मुड़ कर देखा और कहा "अरे हाँ बेटा.. देख ये नोटिस आई है.. २५ तारीख को कोर्ट में सुनवाई है.. तुझे अपने पापा के साथ जाना है.. उससे पहले एक बार देसाई अंकल से मिल लेना"

वैशाली: "२५ तारीख को अभी बहोत देर है मम्मी.. फिलहाल मौसम को संभालना बहोत जरूरी है.. मैं सोच रही हूँ की मैं और कविता वहाँ चले जाते है"

शीला: "मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है बेटा.. पर तुम दोनों अकेले कैसे जाओगी?"

वैशाली: "क्या मम्मी तुम भी!! दकियानूसी बातें कर रही हो.. हम अपने आप को संभाल सकती है.. "

शीला: "एक बार पापा से पूछ ले"

वैशाली: "मैंने उनसे पूछ लिया है.. वो ऑफिस पर ही थे.. उनसे भी पूछ लिया और राजेश सर की भी पर्मिशन ले ली है.. दोनों ने कहा की मुझे जाना चाहिए"

अब शीला के पास और कोई बहाना नहीं था.. वो बोली "ठीक है.. पर संभाल कर जाना.. ज़माना बहोत खराब है"

कविता उदास होकर घर चली गई.. जब वो आई तब उछलती हुई आई थी.. और जब जा रही थी तब उसके पैरों में से जान ही निकल गई थी

कविता ने घर आकर रोते हुए सारी बात अनुमौसी को बताई.. सुनकर मौसी का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया

अनुमौसी: "उस नालायक में हमारी मौसम को संभालने की ताकत ही नहीं होगी.. वरना क्या कमी है मौसम में?? वही लायक नहीं था मौसम के.."

शाम को पीयूष घर लौटा.. वो पूरा दिन ऑफिस के काम के सिलसिले में बाहर था इसलिए उसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था.. जब कविता ने उसे सारी बात बताई तब वो भी बेहद चोंक गया.. एक पल के लिए तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ..

थोड़ी देर सोचकर पीयूष ने कहा "कल हम दोनों तेरे घर चलते है.. मैं तरुण को समझाऊँगा.. वो पढ़ा लिखा है.. शायद मेरी बात मान जाए.. वैसे मौसम ने तुझे कब बताया इस बारे में? फोन किया था उसने तुझे?"

कविता: "मुझे नहीं.. वैशाली को फोन किया था"

पीयूष: "वैशाली को क्यों फोन किया?? तुझे नहीं कर सकती थी?"

अनुमौसी: "अरे बेटा.. वैशाली को फोन किया हो या कविता को.. क्या फरक पड़ता है?? शायद वो बेचारी कविता को सदमा पहुंचाना न चाहती हो इसलिए वैशाली को फोन किया होगा.. अब तू और कविता वहाँ जाओ.. और हो सके तो उस गधे के बच्चे को समझाओ.. और ना समझे तो कान पकड़कर मेरे पास लेकर आना.. दो चपेड़ लगाकर सीधा कर दूँगी उसे.. !!"

उस रात को बेडरूम में कविता और पीयूष के बीच तरुण और मौसम को लेकर काफी चर्चा हुई.. पीयूष ने मौसम को फोन भी लगाया पर वो बात करने की स्थिति में नहीं थी.. मौसम की माँ, रमिला बहन ने रोते रोते बस इतना ही कहा.. की मौसम ने खाना पीना सब छोड़ दिया है.. बस पूरा दिन रोती रहती है..

वैशाली, कविता और पीयूष दूसरी सुबह बस से मौसम के घर पहुँच गए.. कविता को देखते ही मौसम उसके गले मिलकर बहोत रोई.. पीयूष भी मौसम को गले लगकर सांत्वना देना चाहता था पर माहोल की गंभीरता देखते हुए उसे ऐसा करना योग्य नहीं लगा.. एकाध घंटे के बाद.. सब रोना धोना खत्म करके सब नॉर्मल हुआ.. कविता ने अपनी माँ और मौसम को हिम्मत देकर शांत किया..

शाम को पाँच बजे पीयूष चाय पीने के बहाने बाहर निकला.. तब वैशाली, मौसम और फाल्गुनी, कमरे में बैठकर बातें कर रही थी.. पीयूष का दिल कर रहा था की वो मौसम को भी बाहर ले जाए और प्यारे से सब पूछे.. पर ये मुमकिन न था..

चाय की टपरी पर बैठे बैठे पीयूष बड़ी ही गंभीरता से सोच रहा था.. ऐसा तो क्या हुआ होगा तरुण और मौसम के बीच?? मौसम को पाकर तो तरुण धन्य हो जाना चाहिए था.. कुछ तो कारण होगा.. और उस कारण को जानना बेहद ही जरूरी था..

चाय पीने के बाद सोचते सोचते चलता हुआ पीयूष.. बस अड्डे पर पहुँच गया.. सामने ही बस पड़ी थी.. जिस पर उस शहर का नाम लिखा था जहां तरुण रहता था.. थोड़ा सा सोचकर पीयूष उस बस में चढ़ गया.. !!!

बस की सीट पर बैठते ही पीयूष ने कविता को फोन लगाया

पीयूष: "मैं तरुण से मिलने जा रहा हूँ.. किसी को बताना मत.. कोई मेरे बारे में पूछे तो बताना की कंपनी का अर्जेंट काम निकल गया इसलिए गया है और कल तक लौट आएगा.. वैसे मौसम ने कुछ बताया?? "

कविता: "नहीं यार.. वो तो उस बारे में कुछ बोल ही नहीं रही.. एक ही रट लगाए बैठी है.. की उन दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है.. अरे, दोनों के बीच परसों आधी रात तक बात भी हुई थी.. और फिर अचानक क्या हो गया.. दूसरे दिन सुबह दस बजे फोन करके उसने रिश्ता तोड़ दिया"

पीयूष: "ठीक है.. मैं जाकर खुद पूछता हूँ.. तब तक तुम दोनों मौसम और मम्मी जी को संभालना"

कविता: "ओके.. संभलकर जाना"

पीयूष ने फोन रख दिया.. 2 घंटे के सफर के बाद पीयूष तरुण के शहर पहुंचा.. उसने तरुण को फोन लगाया.. तरुण को उसके फोन से कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. उसने पीयूष को एक रेस्टोरेंट का पता दिया और वहाँ पहुँचने के लिए कहा

ढूंढते ढूंढते एक घंटे के बाद पीयूष उस बताए हुए पते पर पहुंचा..

वहाँ एक टेबल पर बैठे तरुण को देखते ही वो उसके पास पहुंचा.. और खड़े खड़े ही सवाल जवाब शुरू कर दीये

पीयूष: "तरुण, ये मैं क्या सुन रहा हूँ?" पीयूष की आवाज में आश्चर्य, मायूसी और क्रोध का मिश्रण था

तरुण ने जवाब नहीं दिया..

पीयूष: "देख तरुण.. तो इतना पढ़ा लिखा है.. मैं ना तो तुझे कोई सलाह या मशवरा दूंगा या फिर ना ही तुझे अपना निर्णय बदलने के लिए फोर्स करूंगा.. अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद से करने का तुझे पूरा हक है.. मैं तो बस सगाई तोड़ने का कारण जानने के लिए आया हूँ.."

तरुण: "पीयूष भैया.. कुछ बातें ऐसी होती है जिसकी चर्चा करने से केवल नफरत और घृणा ही बढ़ती है.. और मैं नहीं चाहता की मैं आप से ऐसी कोई बात करूँ जिसे किसी की ज़िंदगी तबाह हो जाए.. "

पीयूष: "तू मुझे खुलकर बता सकता है.. यकीन मान.. तू जो भी बताएगा वह बात सिर्फ मुझ तक ही रहेगी.. अगर तेरी इच्छा न हो तो असली कारण में किसी को नहीं बताऊँगा.. कोई और ही कारण बताकर सब को मना लूँगा.. सिर्फ यही जानने के लिए मैं इतनी दूर आया हूँ.. इतना तो मुझे जानने का हक है ना.. !!"

तरुण: "अब अगर आप सुनना ही चाहते है तो सुनिए.. !! आपके ससुराल के सभी पात्र चारित्रहीन है.. !!"

सुनकर पीयूष के पैरों तले से धरती खिसक गई.. कहीं ऐसे मेरे और मौसम के संबंधों के बारे में तो नहीं पता चल गया.. !! अपने चेहरे के डर को बड़ी मुश्किल से छुपाते हुए पीयूष ने चकित होने के भाव धारण करते हुए कहा

पीयूष: "क्या बात कर रहा है तू तरुण?? मेरी शादी को इतना समय हो गया पर मुझे तो कभी कुछ ऐसा महसूस नहीं हुआ.. !!"

तरुण: "अब मुझे जो जानने मिला है.. उसे बताने के लिए मेरी जुबान नहीं चलेगी.. इसलिए सारी बातें मैं इस कागज पर लिखकर लाया हूँ" कहते हुए तरुण ने एक फोल्ड किया हुआ कागज पीयूष के हाथ में थमा दिया..

खोलकर पढ़ते ही पीयूष के होश उड गए.. !!!!! अब आगे कुछ भी बोलने-पूछने की आवश्यकता नहीं थी.. वो तरुण से हाथ मिलाकर खड़ा हो गया.. तरुण ने काफी आग्रह किया की वो कुछ खाकर जाए.. पर अब पीयूष के गले से एक निवाला तक उतरना मुमकिन नही था..

जाते जाते पीयूष ने तरुण के कंधे पर हाथ रखकर कहा "तरुण, तेरी और मौसम की जोड़ी बहोत प्यारी लगती है.. किसी और के गुनाह की सजा तू मौसम को दे, ये किस हद तक लाज़मी है?? जो कुछ तुझे जानने को मिला है वह सच ही होगा ऐसा मैं मानता हूँ.. पर इसमें मौसम बेचारी की क्या गलती??"

तरुण: "पीयूष भैया.. परिवार में कुछ भी ऊपर-नीचे या उल्टा-सुलटा हो तो उसका असर सारे सदस्यों पर पड़ता ही है.. ये तो आप भी मानेंगे.. मौसम का दोष सिर्फ इतना ही है की वो ऐसे परिवार की सदस्य है.. आप से हाथ जोड़कर विनती है की मुझे मनाने की कोशिश बिल्कुल मत करना.. मेरे मम्मी-पापा और परिवार के बाकी लोग अब इस रिश्ते के खिलाफ है.. और उन सब को नाराज कर मैं भी सुखी नहीं रह पाऊँगा.. मेरी और से आप मौसम से माफी मांग लेना.. और कहना की तरुण ने तुझे आगे की ज़िंदगी के लिए "ऑल ध बेस्ट" क यहा है.. और अब तरुण तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं है और न कभी होगा.. शायद मौसम मेरी किस्मत में ही नहीं थी.. अब इस बारे में, मैं और बात नहीं करना चाहता भैया.. प्लीज..!!" कहते हुए नम आँखों के साथ तरुण खड़ा होकर रेस्टोरेंट से चला गया.. !!!!

पीयूष स्तब्ध होकर तरुण को जाते हुए देखता रहा.. मायूस होकर वह ऑटो से बस स्टेशन पहुंचा.. अगली बस रात के दस बजे थी.. डॉ घंटों की देरी थी.. अब अनजान शहर मे इतना वक्त खाली बैठे क्या करेगा.. !! बहुत जोरों की भूख लगी थी.. केंटीन में बैठकर उसने भरपेट खाना खाया और फिर बुक-स्टॉल से एक अखबार और एक बुक खरीदकर बैठे बैठे बस का इंतज़ार करने लगा

तभी कविता का फोन आया

फोन उठाकर पीयूष ने कहा "हाँ कविता.. मैं वापिस आ रहा हूँ"

कविता: "मिल भी लिया और बात भी हो गई??"

पीयूष: "हाँ मिल लिया मैंने तरुण से"

कविता: "पाज़िटिव या नेगटिव?" कविता ने इशारे से पूछा

पीयूष ने गहरी सांस छोड़कर कहा "नेगटिव" सच कहने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. आज नहीं तो कल सच सामने आने ही वाला था.. फिर उससे मुंह छुपाकर क्या फायदा.. !!

कविता का मुंह लटक गया.. वो देखकर ही वैशाली समझ गई की पीयूष की मुलाकात का नतीजा क्या निकला होगा.. आदमी का चेहरा ही सब से बेहतरीन आईना होता है.. खुशी, नफरत, गुस्सा, प्रेम या गंभीरता.. इंसान के अंदर के भावों को निष्कर्ष बड़ी खूबी से बता देता है चेहरा.. !! अच्छा हुआ उस वक्त मौसम या उसकी माँ वहाँ मौजूद नहीं थे..

कविता ने आगे कुछ पूछा नहीं और कहा "बस स्टेंड पर उतरकर मुझे फोन करना.. मैं पापा को लेने भेज दूँगी.. आधी रात को तुझे ऑटो नहीं मिलेगा"

पीयूष: "मुझे एक बज जाएगा पहुंचते पहुंचते.. !!"

कविता: "हाँ ठीक है.. तूने खाना खाया?"

पीयूष: "हाँ खा लिया है.. तू मेरी चिंता मत कर..!!"

बस का समय होते ही पीयूष बैठ गया.. और पूरे दिन की थकान के कारण सो गया.. आँख खुली तो स्टेशन आ गया था.. रात का एक बजा था.. और पीयूष कविता को डिस्टर्ब करना नहीं चाहता था.. घर जाकर मौसम को कैसे सांझाए यह सोचते सोचते वो कविता के घर की तरफ चल दिया.. जिस तरुण के लेकर पीयूष के मन में बेहद ईर्ष्या थी.. उसी तरुण पर आज उसे सहानुभूति हो रही थी.. !!

मन की भावनाएं बड़ी विचित्र होती है... कब किसी के लिए कौनसे जज़्बात पैदा हो जाए.. कहा नहीं जा सकता.. फिर वो एक तरफा प्रेम हो.. या नफरत.. ईर्ष्या हो या क्रोध.. !!

सोचते सोचते आधे घंटे बाद वो घर पहुँच गया.. उसने डोरबेल बजाई.. थोड़ी देर के बाद कविता ने दरवाजा खोला.. घर पर सब सो चुके थे

कविता: "तूने फोन क्यों नहीं किया?"

पीयूष: "बेकार में सबके नींद खराब होती.. और वैसे स्टेशन उतना दूर भी नहीं है.. चलते चलते पहुँच गया"

पानी पीने के बाद पीयूष ने कविता को बताया की तरुण का पूरा परिवार अब इस रिश्ते को रखना नहीं चाहता था.. प्रॉब्लेम सिर्फ तरुण और मौसम के बीच होता तो शायद सुलझ भी जाता.. पर बात अब बहोत आगे बढ़ चुकी थी

चोंक उठी कविता ने कहा "अरे पर अचानक बात यहाँ तक कैसे पहुँच गई? दो दिन पहले तक तो सब ठीक था.. वजह बताई की नहीं तरुण ने?"

पीयूष: "हम्म.. न.. नहीं.. कुछ नही बताया" इतने समय से साथ रह रही कविता समझ गई की पीयूष सच नहीं बोल रहा था.. या शायद बोल नहीं पा रहा था.. हो सकता है की पीयूष अभी न बताना चाहता हो.. पर जब दोनों अकेले बेडरूम में होंगे तब वह सच बता ही देगा.. अभी फिलहाल उस पर जबरदस्ती करने का कोई मतलब नहीं था..

कविता: "जो हो गया सो हो गया.. अभी बात करने से हकीकत बदल तो नहीं जाएगी.. !! तू थक गया होगा.. हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जा.. मैं खाना लगाती हूँ.. !!

पीयूष डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.. कविता ने खाने की थाली लगा दी.. और अंदर रोटियाँ बेलने लगी.. तभी मौसम ऊपर से उतरकर नीचे आई और पीयूष के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई..

जंग में हारे हुए योद्धा जैसा पीयूष.. मौसम से नजरें नहीं मिला पा रहा था.. बात को बदलने के इरादे से पीयूष ने कहा

पीयूष: "ओ हाय बेबी.. अभी भी जाग रही? नींद नहीं आ रही?"

मौसम ने उदास होकर कहा "कैसी नींद जीजू.. !!"

रोटी का गरम फुल्का लेकर कविता ने पीयूष की प्लेट में रखते हुए कहा " देख मौसम.. तू कितनी भी चिंता कर ले.. कितना भी जाग ले.. इस समस्या का हल अभी तो मिलने नहीं वाला.. चिंता होना जायज है पर चिंता किसी भी प्रॉब्लेम का हल नहीं है.. और मान ले की यह रिश्ता सच में हमेशा के लिए टूट जाता है.. तो इससे तेरी ज़िंदगी रुक थोड़ी न जाएगी??"

पीयूष: "मौसम.. किसी प्रॉब्लेम का जब हल न हो तो उसे वास्तविकता समझ कर स्वीकार लेना चाहिए.. तुझे यह मान लेना होगा की तरुण अब तेरे जीवन का हिस्सा नहीं है.. सदमा लगना स्वाभाविक है.. यह मैं समझ सकता हूँ.. पर अब तुझे ही तय करना है की इस बात को पकड़कर तू हमेशा के लिए दुखी रहना चाहती है या सब कुछ भूलकर आगे बढ़ना चाहती है.. !!"

मौसम: "जीजू.. मैंने तो हकीकत का स्वीकार कर ही लिया है.. की तरुण अब मेरा नहीं है.. मुझे तो सिर्फ यह जानना है की उसे ऐसा कदम आखिर क्यों उठाना पड़ा?? मैं क्या इतनी गई-गुजरी हुई जो वो मुझे बिना कोई वजह बताएं ही रिश्ता तोड़ दें??"

कविता: "वक्त आने पर सब पता चलेगा मौसम.. तू चिंता मत कर.. सच हमेशा सामने आ ही जाता है.. हो सकता है.. तरुण के साथ ही कोई प्रॉब्लेम हुई हो.. जो वो तुझे बता न पा रहा हो"

सुनकर मौसम का गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ.. उसे बस यही जानना था की तरुण के इस कदम के पीछे असली कारण क्या था

मौसम: "जीजू.. मैं यहाँ के वातावरण से तंग आ गई हूँ.. मैं कुछ दिन आपके यहाँ आकर रहना चाहती हूँ.. ताकि मेरे दिमाग से तरुण के विचारों को हटा सकूँ.. यहाँ रहूँगी तो पूरा दिन उसी के बारे में सोचती रहूँगी.. ऊपर से मम्मी का उदास चेहरा मुझसे देखा नहीं जाता.. प्लीज दीदी.. कल हम जितना हो सकें उतना जल्दी निकल जाते है यहाँ से.. !!"

पीयूष: "हाँ हाँ.. क्यों नहीं.. वैसा ही करेंगे.. दरअसल मैं सामने से तुझे यह कहने ही वाला था.. तू हमारे साथ चल.. सब ठीक हो जाएगा.. हम सब है ना तेरे साथ.. फिर किस बात की फिक्र.. !!"

मौसम: "ओके जीजू.. थेंकस.. गुड नाइट"

इतना कहते ही मौसम को फिर से रोना आ गया.. और वो भागकर अपने कमरे की और चली गई.. जाते जाते उसके रोने की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी..

कविता: "पीयूष, अब मुझे तो बता.. !! तरुण ने आखिर सगाई क्यों तोड़ दी??" सीधा सवाल किया कविता ने

पीयूष सोच में पड़ गया.. अब क्या बताएं कविता को?

पीयूष: "कविता, जब किसी बात को निकालने पर काफी सारे लोगों का अहित होना हो.. तब उसे न निकालना ही बेहतर होगा.. चल.. कल जल्दी उठना है.. सो जाते है.. सुबह ६ बजे की बस से निकल जाएंगे"

थोड़े घंटों की नींद लेने के बाद.. कविता, वैशाली, मौसम और पीयूष जाने के लिए तैयार हो गए.. सुबोधकांत उन्हें बस स्टेशन तक छोड़ने आए.. पहली बस मे काफी भीड़ थी.. इसलिए दूसरी बस की राह देखने लगी.. दूसरी बस का भी वही हाल था.. आखिर सुबोधकांत ने सब को अपनी गाड़ी में ही छोड़ आने का फैसला किया

कार तेजी से सड़क पर चल रही थी और उतनी ही तेजी से कविता और मौसम के दिमाग में विचार भी चल रहे थे.. गाड़ी चलाते हुए सुबोधकांत एकदम खामोश थे..

२ घंटों के सफर के बाद वो लोग पहुँच गए.. घर के अंदर घुसते ही मौसम अनुमौसी से गले मिलकर रोने लगी.. अनुमौसी ने अपने अनुभवयुक्त शब्दों से उसे सांत्वना दी..

मौसम कविता की मदद करने किचन में गई.. उस दौरान कविता ने उसे तरुण के बारे में.. उनके संबंधों के बारे में काफी कुछ पूछा.. पर उसे ऐसी कोई हिंट न मिली जिससे की वो किसी बात का अंदाजा लगा पाती

दोपहर के बाद पीयूष ऑफिस चला गया.. काम भी देखना जरूरी था..

थोड़ी देर के बाद, शीला और मदन भी मौसी के घर आ गए.. सुबोधकांत से मिलकर दोनों उनके साथ बैठे.. सुबोधकांत ने मौसम और तरुण की सगाई टूटने के बारे में बताया.. जिसके बारे में वह दोनों पहले से ही जानते थे.. थोड़ी देर की बातों के बाद.. सब एकदम चुपचाप बैठे थे

कविता और मौसम चाय लेकर आए..

चाय एक घूंट में खत्म करते ही.. सुबोधकांत ने अपनी घड़ी की ओर देखकर कहा "अब मुझे निकलना चाहिए"

कविता: "पापा, दोपहर तो हो ही चुकी है.. आप खाना खाकर ही जाइए"

सुबोधकांत: "नहीं बेटा.. अचानक यहाँ आना हुआ इसलिए मेरे कई काम रुकें पड़े है.. मुझे जाना ही होगा.. " बार बार अपनी घड़ी की ओर देख रहें सुबोधकांत तो कविता ने और नहीं रोका

अचानक शीला की नजर सुबोधकांत की गोल्डन केस वाली राडो घड़ी पर गई.. और ध्यान से देखते ही उसकी सांसें थम गई.. !!!

याद आते ही बेहद चोंक गई शीला.. अरे बाप रे... ये तो कॉकटेल है.. !! बिल्कुल यही घड़ी कॉकटेल ने भी पहन रखी थी.. ध्यान से देखने पर सुबोधकांत का शरीर, बोल-चाल सब कुछ कॉकटेल से मेल खा रहा था.. उसका लंड भी जाना-पहचाना सा क्यों लग रहा था वो अब पता चला शीला को.. सुबोधकांत के घर के गराज में एक बार चूस चुकी थी उनका लंड.. इसीलिए जब होटल में वह लंड दोबारा देखा तब हल्की सी भनक तो लगी थी पर याद नहीं आ रहा था.. !! शीला के पूरे बदन में झनझनाहट से छा गई.. हाँ, वो कॉकटेल ही था.. जिसका लंड मैंने और रेणुका दोनों ने दिल खोल कर चूसा था.. हे भगवान.. कहीं सुबोधकांत ने हमें पहचान तो नहीं लिया होगा.. !!!


मदन को वहीं बैठा छोड़कर शीला घबराकर घर वापिस आ गई..
Suspense full update shandaar
 

Random2022

Active Member
535
1,254
123
मौसम ने तुरंत ही फाल्गुनी के मासूम स्तनों को दोनों हाथों से दबाते हुए उसके गाल पर पप्पी कर दी.. और एक बार उसके गाल को चाट भी लिया.. गाल पर मौसम की जीभ का स्पर्श होते ही फाल्गुनी उत्तेजना से कराहने लगी.. तभी अचानक वो सामने दिख रहे कपल ने अपनी खिड़की बंद कर दी

फाल्गुनी निराश हो गई "खेल खतम और पैसा हजम"

मौसम ने कहा "अरे यार बहोत जल्दी बंद कर दी खिड़की.. थोड़ी देर और खुली रखी होती तो कितना मज़ा आता देखने का.. !!"

वैशाली: "कोई बात नही मौसम.. खिड़की बंद हो गई तो क्या हुआ.. हम तीनों तो एक दूसरे को मजे दे ही सकते है.. चलो बेड पर.. मैं सिखाऊँगी.. बहोत मज़ा आएगा.. " दोनों को कमरे के अंदर लेते हुए वैशाली ने बालकनी का दरवाजा बंद कर दिया.. बिना किसी शर्म या संकोच के वैशाली ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और नंगी होकर बिस्तर पर लेट गई.. और फाल्गुनी से कहा "कम ऑन बेबी.. तू भी अपने कपड़े उतार और मेरे बगल में लेट जा.. चल जल्दी"

फाल्गुनी बहोत शरमा गई और बोली "नही यार.. तू भी क्या कर रही है.. शर्म नाम की कोई चीज है की नही? नंगी होकर लेट गई.. !!"

वैशाली: "अरे ओ डेढ़-सयानी..तेरे बबले तो कब से खुले लटक रहे है.. अब सिर्फ नीचे की लकीर ही तो दिखानी है.. उसमें क्या इतना शर्माना!! चल अब नाटक बंद कर और आजा मेरे पास"

"नही, पहले लाइट बंद करो.. तभी मैं आऊँगी" फाल्गुनी ने आधी सहमति दे दी

मौसम ने तुरंत ही लाइट ऑफ कर दी और उसका रास्ता आसान कर दिया.. अब अंधेरे में भला क्या शर्म?? मौसम और फाल्गुनी अंधेरे का सहारा लेकर पूरी नंगी हो गई और बेड पर वैशाली के साथ लेट गई.. वैशाली अब दोनों कुंवारी चूतों को चुदाई के पाठ सिखाने लगी..

3l

वैशाली की एक तरफ मौसम और दूसरी तरफ फाल्गुनी लेटी हुई थी और वैशाली कभी मौसम की चूत को तो कभी फाल्गुनी के स्तनों को सहलाते हुए अपनी उत्तेजना सांझा कर रही थी.. फाल्गुनी की चूत पर हाथ फेरते वैशाली को लगा की वो कच्ची कुंवारी तो नही थी.. भले ही वो सेक्स की बात करते हुए डरती हो और ऐसी बातों से दूर ही रहती हो.. पर उसकी चूत का ढीलापन इस बात की गँवाही दे रहा था फाल्गुनी कुंवारी तो नहीं थी..

अचानक वैशाली ने बेड के साइड में पड़ा टेबल-लैम्प ऑन कर दिया.. पूरे कमरे में उजाला छा गया.. अब तक तो अंधेरे में एक दूसरे से नजर बचाते हुए अपनी शर्म को छुपा रहे थे.. पर लाइट चालू होते ही तीनों की नग्नता एक दूसरे के सामने उजागर हो जाने पर मौसम और फाल्गुनी थोड़ी सी सहम गई.. संकोच थोड़ा सा ही हुआ.. क्योंकि थोड़ी देर पहले देखे द्रश्य और वैशाली की हरकतों के कारण फाल्गुनी और मौसम पहले से ही काफी उत्तेजित थी..

कुछ पलों के संकोच के बाद तीनों स्वाभाविक और सामान्य हो गई..

वैशाली ने फाल्गुनी की चूत में अपनी दो उँगलियाँ डालकर अंदर बाहर करते हुए देखा की फाल्गुनी ने न कोई विरोध किया और ना ही कोई पीड़ा का एहसास दिखाया

lf

वैशाली ने फाल्गुनी से कहा "तू माने या न माने.. जितनी तू लगती है उतनी मासूम तू है नही.. मेरा अंदाजा तो यह कहता है की तू लंड का स्वाद पहले ही चख चुकी है.. "

मौसम तो ये सुनते ही स्तब्ध हो गई "माय गॉड.. वैशाली.. क्या बात कर रही है यार!! फाल्गुनी और सेक्स?? ये लड़की तो किताब में सेक्स शब्द पढ़कर भी थरथर कांपने लगती है.. और तेरा कहना है की उसने सेक्स किया हुआ है?" मौसम ने अपनी सहेली का पक्ष लेते हुए कहा.. आखिर वो उसकी दस साल पुरानी सहेली थी.. दोनों साथ खेल कर बड़ी हुई थी.. एक दूसरे की सभी बातें शेर करती थी.. इसलिए स्वाभाविक था की मौसम फाल्गुनी की साइड लेती

"अरे यार मौसम, तू आजकल की लड़कियों को जानती नही है.. मेरे ससुराल के पड़ोस में एक फॅमिली रहता है.. अठारह साल की उनकी लड़की के सेक्स संबंध उसके सगे बाप के साथ है.. और पिछले आठ साल से दोनों के बीच ये चल रहा है.. खुद वो लड़की ने ही मुझे ये बताया..!!"

वैशाली की बात सुनकर मौसम और फाल्गुनी दोनों बुरी तरह चोंक गए.. "क्या बात कर रही है वैशाली? ऐसा भी कभी होता है क्या? "

वैशाली: "तुम यकीन नही करोगी पर ये हकीकत है.. अभी इतनी रात न हुई होती तो मैं मोबाइल पर तुम दोनों की बात करवाती उस लड़की के साथ" वैशाली ने फाल्गुनी की चूत में उंगली डालते हुए कहा "मुझे भी शोक लगा था जब पहली बार उसके मुंह से ये बात सुनी थी.. और जब मैंने उसकी ये बात को नही माना.. तब उस लड़की ने मुझे रूबरू उन दोनों का सेक्स दिखाया.. !! फिर तो मेरे पास यकीन करने के अलावा और कोई रास्ता ही नही था.. पहले तो उसने अपने बाप के साथ सेक्स करते वक्त वॉइस-रेकॉर्डिंग करके मुझे सुनाया था.. पर उनकी बंगाली भाषा में मुझे कुछ समझ में नही आया.. इसलिए मैंने विश्वास नही किया.. फिर उसने मुझे उन दोनों की चुदाई दिखाई.. तब से मैं ये मानने लगी हूँ की सेक्स में कुछ भी मुमकिन हो सकता है.. ऐसा कभी नही समझना चाहिए की सेक्स में कोई सीमा-रेखा होती है.. मैं फाल्गुनी पर कोई आरोप लगाना नही चाहती पर.. तू खुद ही देख मेरी चुदी हुई चूत को.. !!"

कहते ही वैशाली ने अपने दोनों पैर खोल दिए और अपनी बिना झांटों वाली क्लीन शेव चूत दिखाई..

"ठीक से दिखाई नही दे रहा है.. मैं ट्यूबलाइट ऑन करती हूँ" मौसम ने बड़ी लाइट ऑन कर दी.. पूरा कमरा रोशनी से झगमगा उठा.. और उसके साथ ही तीनों नंगे जिस्मों की उत्तेजना दोगुनी हो गई

वैशाली के मुंह से गंदी और कामुक बातें सुनकर फाल्गुनी ने अपनी गांड ऊपर उठाते हुए एक सिसकी भर ली..

मौसम: "वैशाली, तेरी छातियाँ तो कितनी बड़ी है.. तुझे इसका वज़न नही लगता? कितने बड़े है यार.. !! कम से कम ४० का साइज़ होगा"

हँसते हुए वैशाली ने फाल्गुनी की चूत से उंगली निकाली.. और उंगली पर लगे चूत के गिलेपन को अपने स्तन पर रगड़ दिया.. और अपनी निप्पल खींचते हुए बोली "खुद के ही जिस्म के हिस्सों का वज़न थोड़े ही लगता है कभी!!"

मौसम: "अरे फाल्गुनी.. कुछ दिन पहले कॉलेज से आते हुए याद है हमने क्या देखा था?"

फाल्गुनी: "कब की बात कर रही है? मुझे तो कुछ याद नही आ रहा" वैशाली की उंगली चूत से बाहर निकल जाने की वजह से थोड़ी सी अप्रसन्न थी फाल्गुनी जो उसकी आवाज से साफ झलक रहा था

मौसम: "अरे भूल गई.. !! उस दिन जब हम घर लौट रहे थे तब रोड पर गधा खड़ा था जिसका बड़ा सा पेनिस बाहर लटक रहा था.. !!!"

फाल्गुनी: "हाँ हाँ.. याद आया.. बाप रे.. कितना मोटा और लंबा था !! आते जाते सारे लोग उसे देख रहे थे.. "

मौसम: "उस दिन मैं यही सोच रही थी.. इतना बड़ा पेनिस.. ??"

वैशाली ने मौसम की चूत पर हल्की सी चपत लगाते हुए उसकी बात आधी काट दी और बोली "भेनचोद.. क्या कब से पेनिस पेनिस लगा रखा है!! उसे लंड बोल.. लोडा बोल.. पूरी नंगी होकर मेरे सामने पड़ी है फिर भी बोलने में शरमा रही है.. चल बोलकर दिखा.. "लंड.. !!"

मौसम: "तू जा न यार.. मुझे ये बुलवाकर तुझे क्या काम है?"

फाल्गुनी अब खुद ही अपनी चूत को मसल रही थी.. उसने कहा "मौसम, एक बार बोल ना.. मुझे भी तेरे मुंह से वो शब्द सुनना है.. एक बार तू बोलकर दिखा फिर मैं भी बोलूँगी"

मौसम: "अरे यार तुम दोनों तो बस पीछे ही पड़ गई.. चलो बोल ही देती हूँ.. लंड.. अब खुश?" और फिर शरमाते हुए मौसम ने अपने दोनों हाथों से पूनम के चाँद जैसा सुंदर मुखड़ा छुपा लिया

वैशाली: "अरी मादरचोद.. अपना चेहरा नही.. चूत को ढँक.. चेहरा दिखे तो शर्म की बात नही होती.. पर खुलेआम इस तरह चूत का प्रदर्शन करना ये तो बड़ी शर्मिंदगी वाली बात है.. " मौसम को छेड़ते हुए वैशाली ने उसके स्तन पर चिमटी काट ली और कहा "आज तो तू लंड शब्द बोलने में भी शरमा रही है.. पर एक बार तेरी शादी हो जाएगी और अपने पति के साथ हनीमून पर जाएगी तब इसी लंड को एक सेकंड के लिए भी अपने हाथ से जाने नही देगी.. चल फाल्गुनी.. तेरी बारी.. अब तू बोलकर दिखा"

फाल्गुनी ने तुरंत ही बोल दिया "लंड.. !!" पर बोलते वक्त उसका चेहरा ऐसा हो गया मानों सच में उसके हाथ में असली लंड आ गया हो

शाबाश.. !! हाँ फाल्गुनी.. तू क्या कह रही थी.. गधे के लंड के बारे में??"

फाल्गुनी: "मौसम ने भी उस दिन मुझसे यही सवाल किया था.. इतने बड़े लंड का वज़न नही लगता होगा उसे !! और आज तुम्हारी छातियों के बारे में भी उसने यही बात कही"

"मौसम, तू सिख फाल्गुनी से.. देख कितने आराम से लंड बोल रही है.. !!" वैशाली ने हँसते हुए कहा

मौसम: "वो सब बातें छोड़.. तू अभी यहाँ क्या दिखा रही थी? " मौसम ने वैशाली की चूत की ओर इशारा करते हुए कहा

वैशाली: "ईसे चूत कहते है.. भोस भी कहते है.. बहोत ढीला, बड़ा या ज्यादा चुदा हुआ हो तो भोसड़ा कहते है.. समझी!!" और एक नया पाठ सिखाया वैशाली ने

मौसम: "हाँ बाबा.. चूत.. तो तू क्या दिखा रही थी अपनी चूत में?" अब मौसम ने भी वैशाली के आग्रह से खुली भाषा का स्वीकार कर लिया

वैशाली: "हाँ.. तो मैं ये कहना चाहती थी की चुदी हुई चूत और कच्ची कुंवारी चूत में कितना अंतर होता है तू खुद ही देख.. कितना फरक है तेरी और मेरी चूत में मौसम.. !! और अब फाल्गुनी की चूत देख.. !!"

नंगी उत्तेजक बातें और बीभत्स भाषा के प्रयोग से वैशाली ने मौसम और फाल्गुनी की वासना को इस हद तक भड़का दिया था की दोनों नादान लड़कियां अपनी उत्तेजना को दबाने में असमर्थ हो गई थी.. अपने स्तनों पर वैशाली के हाथों का सुहाना दबाव महसूस करते हुए मौसम बेबस होकर बोली "तू बड़ा मस्त दबाती है वैशाली.. मैं खुद दबाती हूँ तब इतना मज़ा नही आता.. ऐसा क्यों?"

वैशाली: "मुझे क्या पता.. !! पर मुझे लगता है की किसी और का हाथ पड़े तब ज्यादा मज़ा आता है.. अब तू मेरे दबा कर देख.. देखती हूँ कैसा मज़ा आता है" वैशाली जान बूझकर ये खेल खेल रही थी इन लड़कियों के साथ ताकि वह दोनों एकदम खुल जाएँ

वैशाली के पपीते जैसे स्तन मौसम के मुंह के आगे आ गए.. दो घड़ी के लिए मौसम वैशाली के इन तंदूरस्त उरोजों को देखती ही रही और सोच रही थी "बाप रे.. कितने बड़े बड़े है !!"

"देख क्या रही है? दबा ना.. !!" वैशाली ने मौसम को कहा और अपने स्तन को उसके मुंह पर दबा दिया.. "ले.. दबाने का मन ना हो तो चूस ले.. छोटी थी तब अपनी मम्मी की निप्पल चूसती थी ना.. !! वैसे ही चूस.. सच कहूँ मौसम.. जब एक मर्द आपकी निप्पल चूसें तब जो आनंद आता है वो मैं बयान भी नही कर सकती.. उनके स्पर्श में ऐसा जादू होता है.. हम खुद कितना भी मसले या रगड़ें.. पर मर्द के हाथों जैसा मज़ा तो आता ही नही है"

मौसम से पहले फाल्गुनी ने वैशाली का एक स्तन पकड़ लिया और उसके नरम हिस्से को चूम लिया.. फिर वैशाली की गुलाबी निप्पल पर अपनी जीभ फेरी.. और चाटकर बोली "कुछ स्वाद नही आता यार.. ईसे चूसकर क्या फायदा? अगर दूध आता होता तो मज़ा आता"

lsnlsn2


वैशाली हंस पड़ी और फाल्गुनी की चूत को सहलाते हुए बोली "मेरी जान.. उसके लिए तो पहले इस चूत में लंड डालकर अच्छे से ठुकवाना पड़ता है.. कितनी रातों तक पैर चौड़े करके अंदर शॉट लगवाने पड़ते है.. मर्द के वीर्य से अपनी चूत भिगोनी पड़ती है.. तब जाकर इन चूचियों में दूध भरता है.. समझी.. !! उँगलियाँ डालने से कुछ नही होता.. असली लंड अंदर घुसता है तब इतना मज़ा आता है की मैं क्या बताऊँ.. मुझे तो अभी अंदर डलवाने का इतना मन हो रहा है की अभी कोई अनजान आदमी भी आकर खड़ा हो जाएँ तो मैं खुशी खुशी अपनी टांगें चौड़ी कर के नीचे लेट जाऊँ"

मौसम भी अब फाल्गुनी की तरह वैशाली का एक स्तन दबाकर चाट रही थी.. और दूसरे स्तन को चूस रही फाल्गुनी के गालों को सहला रही थी.. दोनों लड़कियों को कोई अनुभव नही था.. चुदाई के मामले में उन्हे ट्रेन करने के लिए वैशाली अलग अलग नुस्खे आजमा रही थी.. और ऐसा करने में उसे मज़ा आ रहा था वो अलग..

उसका स्तन चूस रही फाल्गुनी के बालों में हाथ फेरते हुए वैशाली ने पूछा "तुझे लिप किस करना आता है?"

मुंह से निप्पल निकालकर फाल्गुनी ने ऊपर देखा और बोली "थोड़ा थोड़ा आता है"

"ठीक है.. तो अब तू मौसम के होंठों पर किस कर के दिखा.. फिर मैं तुम दोनों को सिखाऊँगी.. ऐसा सिखाऊँगी की तुम्हारे होने वाले पति ऐसा ही समझेंगे की तुम दोनों अनुभवी हो"

"ना बाबा ना.. मुझे नही सीखना.. शादी की शुरुआत में ही हमारे पति हम पर शक करने लगे.. ऐसा नही सीखना मुझे" मौसम घबरा गई

वैशाली: "अरे बेवकूफ.. शादी के पहले मैं अपने मायके में ही चुदकर ससुराल गई थी फिर भी आजतक संजय को पता नही चला.. तू सिर्फ किस करने से घबरा रही है.. !! मर्दों के पास ऐसा कोई मीटर या सेंसर थोड़ी न होता है जिससे उसे पता चलें की शादी के पहले तुमने क्या क्या किया है!! पति को पता ना चले इसलिए कैसे नखरे करने है वो मैं तुम दोनों को सिखाती हूँ"

फाल्गुनी ने आश्चर्य से पूछा "मतलब?? क्या करना है?"

वैशाली ने अब फाल्गुनी की तरफ ध्यान केंद्रित करते हुए कहा "मैं तुझे क्यों सिखाऊँ? तू अपनी निजी बातें मुझे बता नही रही.. फिर मैं तुझे क्यों सिखाऊँ?"

मौसम: "हाँ वैशाली.. सही बात है.. ये कमीनी बहोत कुछ छुपाती है"

फाल्गुनी: "अरे यार.. ऐसा कुछ नही है.. मैंने कब तुझसे कुछ छुपाय है?"

वैशाली: "तो फिर अभी के अभी बता.. तूने किससे चुदवाया है और कितनी बार?"

"सात से आठ बार" आँखें झुकाकर फाल्गुनी ने कहा और फिर खामोश हो गई

सुनते ही मौसम के मुंह से वैशाली की निप्पल छूट गई और वो चोंक कर खड़ी हो गई.. "सात आठ बार?? किसके साथ? कहाँ? मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा.. आज तक मुझे पता कैसे नही चला?? पूरा टाइम या तो तू मेरे साथ कॉलेज होती है या फिर अपने घर पर.."

वैशाली: "मैंने कहा था ना.. फाल्गुनी कुंवारी नही है वो तो मैं उसकी चूत देखकर ही समझ गई थी.. जितनी आसानी से उसकी चूत में मेरी दोनों उँगलियाँ चली गई.. कुंवारी होती तो कितना चिल्लाई होती.. तभी मुझे शक हो गया था.. दो दो उँगलियाँ लेकर भी हमे कहती थी की मैं कुंवारी हूँ.. "

मौसम की गीली हो चुकी चूत में एक उंगली डालते हुए वैशाली ने कहा "मौसम, तू ही बता.. एक उंगली अंदर बाहर करने में भी तुझे दर्द होता है ना.. सोच पूरा का पूरा लोडा अंदर घुस जाएँ तो क्या हाल होगा? औसतन इतना मोटा होता है लंड" ड्रेसिंग टेबल पर पड़े हेंडब्रश का हैन्डल दिखाते हुए वैशाली ने कहा

मौसम: "बाप रे.. इतना मोटा.. मैं तो मर ही जाऊँ अगर कोई इतना बड़ा मेरे छेद में डालेगा तो.. मैंने सिर्फ एक बार पतली सी मोमबत्ती अंदर डालने की कोशिश की थी पर इतना दर्द हुआ था की वापिस निकाल लिया.. वैशाली, तू अपनी चूत में आराम से लंड ले पाती है?"

वैशाली: "हाँ हाँ.. क्यों नही.. अरे इस हैन्डल से भी मोटा है मेरे पति का.. और लंबा भी"

मौसम बार बार उस ब्रश के हैन्डल को देखकर कल्पना करते हुए घबरा रही थी.. वो बिस्तर से खड़ी हुई और हेंडब्रश ले आई.. हाथ में उसका हैन्डल पकड़ते हुए बोली "इससे भी मोटा?? मुझे तो यकीन नही होता.. तुझे डलवाते हुए दर्द नही होता??"

"वो बात बाद में.. पहले तू इस मादरचोद रांड से पूछ.. की किसका लोडा ले रही है? हम दोनों भी उससे चुदवाएंगे.. वैसे भी मुझे लंड की सख्त जरूरत है.. तुझे तो पता है.. मेरे और संजय के बीच की अनबन के बारे में.. "

फाल्गुनी बोल उठी "प्लीज यार.. नाम जानने की जिद ना ही करो तो अच्छा है.. मैं नाम नही बता पाऊँगी.. अगर बता दिया तो बड़ा भूकंप आ जाएगा मेरे जीवन में"

मौसम के हाथ से हेंडब्रश लेकर वैशाली ने उसे फाल्गुनी के स्तन पर हल्के से मारते हुए कहा "क्यों?? नाम बताने में क्या प्रॉब्लेम है तुझे? कहीं कोई बड़ा कांड तो नही कर रही तू? सच सच बता.. मुझे तो कोई बड़ा गंभीर लोचा लगता है.. तू लगती है उतनी भोली और मासूम तू है नही!!"

मौसम: "हाँ हाँ.. बता भी दे हरामखोर.. अब तो नाम जाने बगैर हम तुझे छोड़ेंगे नही.. चल वैशाली.. इस रांड पर टूट पड़ते है.. " मौसम फाल्गुनी के ऊपर लेट गई और उसे अपने शरीर के वज़न तले दबाते हुए उसके दोनों स्तन को मसल दिया.. मौसम और फाल्गुनी दोनों की चूत के हिस्से एक दूसरे से छु रहे थे..

lsls2

वैशाली ने अपने होंठ फाल्गुनी के होंठों पर रखकर उन्हें चूसना शुरू कर दिया.. दो दो शरीरों के कामुक स्पर्श से फाल्गुनी बेहद उत्तेजित हो गई.. और वैशाली को किस कने में सहयोग देते हुए मौसम की नंगी पीठ को अपने नाखूनों से कुरेदने लगी

मौसम और फाल्गुनी एक दूसरे को बाहों में भरकर रोमांस कर रहे थे और वैशाली फाल्गुनी के होंठ गीले करने के काम में जुटी हुई थी.. फाल्गुनी अब दोनों को अच्छे से रिस्पॉन्स दे रही थी.. वैसे लिप किस करने के मामले में वो अनाड़ी थी पर फिर भी उस बेचारी को जितना आता था उतना कर रही थी..

वैशाली जब झुककर किस कर रही थी तब उसके स्तन मौसम के कंधों से टकरा रहे थे.. तीनों लड़कियां कामदेव के जादू तले बराबर आ चुकी थी.. वैशाली के होंठ चूसने के कारण फाल्गुनी मौसम से भी अधिक उत्तेजित थी.. और वो अपने ऊपर चढ़ी मौसम की पीठ पर नाखून से वार करती जा रही थी.. मौसम के मन में लगातार एक ही प्रश्न मंडरा रहा था.. सात-आठ बार फाल्गुनी ने किससे करवाया होगा? सुबह से लेकर दोपहर तक कॉलेज में वो मेरे साथ होती है.. घर जाने के बाद तीं बजे हम ट्यूशन जाते है और ७ बजे लौटकर घर जाते है.. तो फाल्गुनी ने किस वक्त ये सब करवाया होगा?? बड़ी शातिर है फाल्गुनी..

मौसम को अपनी चूत पर अनोखे गीले स्पर्श का एहसास हुआ और वो नीचे देखने लगी.. अरे बाप रे.. !! वैशाली उसकी चूत चाटने लगी थी.. ओह नो.. वैशाली ये क्या कर दिया तूने? ऐसा तो मुझे कभी महसूस नही हुआ पहले.. आह्ह आह्ह आह्ह.. मौसम फाल्गुनी की ऊपर चढ़ी हुई थी और उसी अवस्था में कमर ऊपर नीचे करते हुए बोली "माय गॉड.. वैशाली.. चाट यार.. अपनी जीभ डाल अंदर.. बहोत मज़ा आ रहा है यार.. इतना मज़ा पहले कभी नही आया मुझे.. ओह्ह!!"


lp2

मौसम की कुंवारी.. थोड़ी सी झांटों वाली चूत काम रस से गीली होकर रिस रही थी.. वैशाली को भी आज लेस्बियन सेक्स में बहोत मज़ा आ रहा था.. दो दो कुंवारी चूत उसकी पक्कड़ में आ चुकी थी.. मौसम और फाल्गुनी दोनों वैशाली की एक एक हरकत पर आफ़रीन हो रही थी.. उसकी हर बात को आदेश के तौर पर मान रही थी वो दोनों..

तीनों लड़कियां एक दूसरे के साथ बिल्कुल ही खुल गई थी.. वैसे वैशाली की कविता के साथ भी गहरी दोस्ती थी लेकिन उनका संबंध जिस्मानी नही था.. जब की इन दोनों लड़कियों ने इस मामले में कविता को भी पीछे छोड़ दिया था.. जो कुछ भी हो रहा था वो संयोग से ही हो रहा था.. मौसम दोपहर को अपने जीजू के साथ हुए रोमांस को याद करते हुए जबरदस्त उत्तेजना महसूस कर रही थी.. और अब फाल्गुनी और वैशाली के साथ उस उत्तेजना को अपने अंजाम तक पहुंचाने वाली थी..

वैशाली मौसम की चूत चाटने में इतनी मशरूफ़ थी की मौसम की सिसकियों को नजरअंदाज करते हुए वह उसकी गांड के नीचे दोनों हाथ डालकर उसके कडक कूल्हों को अपने अंगूठों से चौड़ा करते हुए अपनी जीभ अंदर तक डाल रही थी.. मौसम के लिए ये प्रथम अनुभव था.. पेशाब करने और पिरियड्स निकालने के छेद में इतना मज़ा छुपा हुआ होगा उसका उसे अंदाजा ही नही था.. मौसम को इस बात का ताज्जुब था की चूत शब्द बोलते ही क्यों उसके चूत में झटके लगने लगते थे !! अब तक रास्ते पर चलते.. पान की या चाय की टपरी पर बैठे लोफ़रों के मुंह से यह गंदा शब्द काफी बार सुना था और तब उसे इस शब्द से ही नफरत थी.. आज उसी शब्द को सुनकर उसे बहोत मज़ा आ रहा था..

lele3


फाल्गुनी के स्तनों को दबाते हुए उसने उसके कानों में कहा "मज़ा आ रहा है ना फाल्गुनी?"

"हाँ यार.. मुझे तो बहोत मज़ा आ रहा है.. और तुझे?"

"अरे मुझे तो इतना मज़ा आ रहा है वैशाली के चाटने से की क्या बताऊँ.. !! तूने कभी अपनी चूत चटवाई है फाल्गुनी?"

ये सुनते ही फाल्गुनी की मुनिया में आग लग गई.. "मौसम प्लीज.. तू भी मेरी चूत में अपनी जीभ डाल यार.. !!" फाल्गुनी उत्तेजना से मौसम के कोमल नाजुक बदन को मसलते हुए बोली

मौसम: "नही यार.. मुझे ये सब नही आता.. मैंने कभी किया भी नही है ऐसा.. " दोनों की बातें सुनते हुए वैशाली मौसम की पुच्ची को चाट रही थी

मौसम: "तूने मेरी बात का जवाब नही दिया फाल्गुनी?"

फाल्गुनी: "कौनसी बात का?"

मौसम: "इससे पहले तूने कभी अपनी चूत चटवाई है?"

फाल्गुनी खामोश रही.. बदले में उसने मौसम के गाल को चूसा और अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी और मौसम की चूत को सहलाने लगी.. सहलाते हुए कभी उसकी उंगली वैशाली की जीभ का स्पर्श करती तो वैशाली उसकी उंगली को भी चाट लेती.. फाल्गुनी की उंगली को गीला करके वैशाली ने उस उंगली को मौसम की चूत के अंदर डाल दिया

"आह्ह.. " फाल्गुनी की उंगली अंदर घुसते ही मौसम की सिसकी निकल गई..

"कितनी गरम गरम है तेरी चूत तो यार.. !!" फाल्गुनी ने कहा.. और तेजी से अपनी उंगली अंदर बाहर करने लगी..

"आह्ह.. मर गई.. ऊईई.. माँ" मौसम चिल्लाई.. फाल्गुनी ने तुरंत अपने होंठ उसके होंठों पर दबाकर और उसके स्खलित होने से निकली चीख को रोक दिया.. मौसम का पूरा शरीर अकड़ कर बिस्तर से ऊपर उठ गया.. दो सेकंड के लिए उसी अवस्था में थरथराने के बाद वह धम्म से बिस्तर पर गिरी.. तेज सांसें भरते हुए.. ए.सी. कमरे में भी उसे पसीने छूट गए.. फाल्गुनी की उंगली और वैशाली की जीभ, दोनों ने मिलकर मौसम की मुनिया को एक जानदार ऑर्गजम दिया था..

अब वैशाली ने अपनी जीभ से फाल्गुनी की चूत पर हमला कर दिया.. उसकी चूत को चाटते हुए वैशाली एक पल के लिए रुकी और उसने मौसम से कहा "मौसम, अब तेरी बारी.. चल मेरी चूत चाट जल्दी से.. "

अपनी साँसों को नियंत्रित करते हुए मौसम ने कहा "यार, मुझसे नही होगा ये.. !!"

"क्यों? मादरचोद.. चटवाते वक्त तो तुझसे सब कुछ हो रहा था.. अब चाटने की बारी आई तो नखरे कर रही है? चुपचाप चाटना शुरू कर वरना ये हेरब्रश का हेंडल तेरी चूत में घुसेड़कर गुफा बना दूँगी" वैशाली ने गुर्रा कर कहा

"यार, मैंने पहले कभी चाटी नही है वैशाली"

"साली रंडी.. आजा.. तुझे सब सीखा दूँगी.. " कहते हुए वैशाली अपने विशाल स्तनों को खुद ही दबाते हुए खड़ी हुई और मौसम को धक्का देकर बेड पर लिटा दिया.. वैशाली मौसम के स्तनों पर सवार हो गई और अपनी गुलाबों को दोनों होंठ उंगलियों से चौड़े करके मौसम के होंठों पर रगड़ने लगी.. न चाहते हुए भी मौसम उसकी चुत पर जीभ फेरने के लिए मजबूर हो गई.. यह देख उत्तेजित होकर फाल्गुनी अपनी चूत पर हेरब्रश तेजी से घिसने लगी..

lfr2hh

वैशाली की बेकाबू जवानी हिलोरे ले रही थी.. अनुभवहीन मौसम की जीभ को ट्रेन करते हुए उसने मौसम के सर के नीचे दोनों हाथ डालकर उसे कानों से पकड़ते हुए अपनी चूत से दबाए रखा था.. और अपनी चूत चटवाएं जा रही थी.. मौसम को शुरू शुरू में चूत और उसके पानी की गंध बड़ी ही विचित्र लगी.. पर वैशाली ने उसे ऐसे पकड़ रखा था की छूटना मुश्किल था.. आखिर अपने हथियार डालकर उसने अपनी जीभ को वैशाली के सुराख के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.. थोड़ी ही देर में वह सीख गई.. वैशाली चुत चटवाते हुए अपनी गदराई गांड मौसम के स्तनों पर रगड़ रही थी.. जिससे मौसम नए सिरे से सिहर रही थी.. वैशाली ने मौसम के स्तनों पर घोड़े की तरह सवारी करते हुए अपनी लय प्राप्त कर रही थी.. आगे पीछे हो रही वैशाली के दोनों खरबूजे बड़ी ही अद्भुत तरीके से हिल रहे थे.. दोनों के नरम नरम अंग एक दूसरे से रगड़ खा रहे थे..

lhlh2

मौसम की चूत में फिर से खुजली होने लगी.. वो अभी थोड़ी देर पहले ही झड़ी थी.. पर वैशाली की चूत की मादक गंध और बबलों की मजबूत रगड़ाई के कारण उसकी चुनमुनिया फुदकने लगी.. तीन चार मिनट तक चाटते रहने के बाद अब मौसम को भी वैशाली की पनियाई चूत के अंदर जीभ डालने में मज़ा आने लगा था.. उसकी रसीली कामुक चिपचिपी चूत के वर्टिकल होंठ और क्लिटोरिस को अपने मुंह में भरकर वो मस्ती से चूस रही थी.. बगल में लेटी फाल्गुनी हेरब्रश के हेंडल को अपनी चूत पर रगड़े जा रही थी..

तीनों लड़कियां अपनी हवस शांत करने के लिए अलग अलग क्रियाएं करने में व्यस्त थी.. लेकिन उनकी वासना शांत होने के बदले और भड़क रही थी.. रात के डेढ़ बजे का समय हो रहा था.. पर तीनों में से किसी की भी आँखों में नींद का नामोनिशान नही था.. थी तो बस नारी की हवस..

ll2
Very hot update
 
Top