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Badiya update but thoda chota rahe gyaमौसम के घर से निकलकर अपने घर की ओर जाते हुए फाल्गुनी सोच रही थी.. इतने लंबे अंतराल के बाद आखिर राजेश अंकल ने क्यों फोन किया होगा.. !! कहीं उनके हाथ मेरे और अंकल के फ़ोटो-विडिओ तो नहीं लग गए.. !! अंकल के फोन में सब कुछ था ही और वो फोन राजेश अंकल के पास दो दिनों तक रहा था.. पर अगर ऐसा होता तो राजेश अंकल ने एक साल का इंतज़ार क्यों किया?? हो सकता है की सही समय का इंतज़ार कर रहे हो या फिर हिम्मत न जुटा पा रहे हो.. जो भी था.. उनसे बात करना जरूरी था.. और यह जानना भी की आखिर वो क्या क्या जानते है
रास्ते पर चलते चलते जा रही फाल्गुनी ने आखिरकार राजेश को फोन लगाया
राजेश: "मेरा फोन क्यों नहीं उठा रही थी फाल्गुनी??? नाराज है क्या मुझसे"
फाल्गुनी: "नहीं ऐसा कुछ नहीं है.. असल में जब भी आपका फोन आता तब कोई न कोई आसपास होता था.. इसलिए उठा नहीं सकी.. सॉरी.. कहिए कुछ अर्जेंट काम था?? पहले कभी नहीं और अब क्यों आप फोन पर फोन कर रहे है?" बिंदास होकर फाल्गुनी ने पूछ लिया.. अनुभव ने उसे सिखाया था की झाड़ू को गोल गोल घुमाने से कुछ नहीं होता.. सीधा मकड़ी पर ही झाड़ू मारने से काम होता है
राजेश: "देख फाल्गुनी.. मैं घुमा-फिराकर बात नहीं करूंगा.. मेरी बात का बुरा मत मानना.. पर सुबोधकांत के मोबाइल से मुझे तुम्हारे और उनके काफी आपत्तिजनक फोटोस और विडिओ मिले.. फाल्गुनी, तुझे तो मुझे थेंकस कहना चाहिए.. मैंने वो सब डिलीट कर दिया और किसी को इस बारे में नहीं बताया अब तक.. चाहता तो उसी वक्त तुम्हारा भंडाफोड़ कर सकता था.. पर वक्त की नजाकत को देखते हुए मैंने अब तक इंतज़ार करने में ही भलाई समझी.. पिछले एक साल से मुझे यही प्रश्न सता रहा है की तुझ जैसी सुंदर और जवान लड़की को उस बूढ़े में क्या नजर आ गया भला??"
फाल्गुनी: "माउंट आबू के टॉइलेट में जब वैशाली ने आपको अंदर खींच लिया था.. तब उसे आप के अंदर क्या नजर आ गया था?" बेवाक होकर फाल्गुनी ने कह दिया..
एक पल के लिए राजेश की बोलती बंद हो गई.. पर वो तुरंत पटरी पर आ गया
राजेश: "समझ गया तेरी बात.. अब मैं तुझसे जो भी कहूँगा.. आशा रखता हूँ की उसके बारे मैं तू खुले मन से सोचेगी और सही निर्णय लेगी.. मैं तेरे ऊपर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डाल रहा"
फाल्गुनी: "कहिए अंकल.. मैं सुन रही हूँ.."
राजेश: "वैशाली ने मेरे साथ आबू में जो कुछ भी किया उससे तुम यह बात तो मानेगी ही.. की मेरे अंदर भी वो सारी खूबियाँ होगी जो लड़कियों और औरतों को मेरी ओर आकर्षित करे"
फाल्गुनी: "जरूर होगी.. वरना इतनी सुंदर और सेक्सी वैशाली.. आपको घास क्यों डालती?? पार्टी में उस वक्त कई हेंडसम जवान लड़के थे.. सो आई बिलिव की आप मैं भी वो सारी खूबियाँ होंगी जिनके कारण मैं सुबोध अंकल के प्रति आकर्षित हुई थी.. "
राजेश: "देख फाल्गुनी.. तेरे वो सुबोध अंकल तो अब इस दुनिया में नहीं रहें.. और मैंने तेरे और उनके जो सारे विडिओ देखे है.. उससे यह साफ प्रतीत होता है की सेक्शुअल इच्छाएं काफी प्रबल है.. जिस तरह तू उनके साथ सेक्स कर रही थी उसे देखकर यही विचार आता है की अब तक तू बिना किसी के सहारे कैसे रह पाती होगी?? उंगली चलाने से लंड जैसा मज़ा तो आता नहीं होगा तुझे.. !!"
एक साल के बाद, फाल्गुनी किसी मर्द के मुंह से सेक्स जैसा शब्द सुन रही थी.. उस दौरान वो चलते चलते अपने घर तक पहुँच गई थी.. वो फटाफट अपने कमरे में घुस गई और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया
राजेश: "चुप क्यों हो गई?"
फाल्गुनी: "दरअसल मैं मौसम के घर से निकली और अभी अपने घर पहुंची.. ड्रॉइंगरूम में मम्मी थी इसलिए चुप हो गई थी.. अब बोलीये अंकल.. आपने ठीक कहा.. अंकल के साथ मैंने बहुत मजे किए है.. पर अब क्या हो सकता है.. !!"
राजेश: "तो शादी क्यों नहीं कर लेती तू?"
फाल्गुनी: "मेरे मम्मी-पापा काफी समय से मेरे लिए लड़के देख रहे है.. पर मेरा ही मन नहीं करता.. ऊपर से मौसम के साथ तरुण ने जो किया उसके बाद से शादी करने से जी घबरा रहा है"
राजेश: "सुबोधकांत के लिए तेरे मन में जो जज़्बात है उसे मैं समझ सकता हूँ.. पर कब तक उनकी याद में तड़पती रहेगी?? कभी न कभी तो तुझे उन्हें भूलना ही पड़ेगा और नई ज़िंदगी की शुरुआत करनी ही होगी"
फाल्गुनी: "वो तो है ही, अंकल.. पर भूलना कहाँ आसान है.. !! और किसी को याद करना या भूलना ये हमारे बस में तो होता नहीं है.. फिलहाल मैं और मौसम एक दूसरे के सहारे जी रहे है.. हम दोनों को नए साथी की तलाश है.. जो सुबोध अंकल की तरह समजदार हो.. मेच्योर हो.. आई मिस हीम वेरी मच.. उनके साथ बिताया एक एक पल मुझे हरदम याद आता है.. !!"
राजेश: "उनका टच भी तो याद आता होगा.. है ना.. !!"
अब ये एकदम पर्सनल सवाल था जिसका जवाब फाल्गुनी देना नहीं नहीं चाहती थी.. पर राजेश ने उसके और अंकल के चुदाई के विडिओ तो देख ही लिए थे.. इसलिए अब औपचारिकता दिखाने की कोई जरूरत नहीं थी..
बिंदास होकर फाल्गुनी ने जवाब दिया.. "ऑफ कोर्स.. याद क्यों नहीं आएगा.. !! उस मामले मे वो एकदम परफेक्ट थे.. उन्हें कभी कुछ कहना नहीं पड़ता था.. वो सब समझ जाते थे.. उनके पास से मुझे जो मिला.. वो अप्रतिम था.. मैं कभी भूल नहीं पाऊँगी" फाल्गुनी की आवाज और आँखें नम हो गई..
राजेश: "फाल्गुनी, अब मैं और क्या कहूँ? पर अगर तुझे या मौसम को मेरा कुछ भी काम हो तो बेझिझक बताना.. तुम दोनों मुझसे या रेणुका से बात कर सकती हो.. वैसे मैंने रेणुका को तुम्हारे और सुबोधकांत के संबंधों के बारे में कुछ नहीं बताया है इसलिए वो बात मत करना.. वैशाली और उसकी मम्मी भी है.. कविता और पीयूष वहाँ शिफ्ट हो गए उसका ये मतलब नहीं की हमें भूल जाओ.. याद है ना.. एक साल पहले हम सब माउंट आबू गए थे रेणुका के बर्थडे पर तब कितना मज़ा किया था??"
फाल्गुनी: "हाँ अंकल याद है.. पर ऐसा कोई फ़ंक्शन हो तो आ सकते है.. आप फिर से रेणुका भाभी का बर्थडे सेलिब्रेट करेंगे तो हम जरूर आएंगे"
राजेश: "वैसे मजे करने के लिए मौकों का इंतज़ार नहीं करते.. मौके बनाने पड़ते है.. तुझे साथ लेकर घुमाने के लिए सुबोधकांत बिजनेस मीटिंग का बहाना बनाते ही थे ना.. !!"
फाल्गुनी: "वैसे बिजनेस आपका भी है.. तो क्या आप भी मीटिंग के नाम पर ये सब करते हो?"
राजेश: "सिर्फ मैं ही नहीं.. मेरे जैसे काफी लोग ऐसा करते है.. अगर सुबोधकांत अपनी पत्नी से ये कहते की मैं फाल्गुनी के साथ सेक्स करने जा रहा हूँ, तो क्या वो उन्हें जाने देती??"
फाल्गुनी: "हम्म.. मैं समझ गई अंकल"
राजेश: "डॉन्ट वरी.. मैं कुछ जुगाड़ करता हूँ मिलने का"
फाल्गुनी: "मैं फोन रखती हूँ"
राजेश: "रखने से पहले मैं तुम्हें पूछना चाहता हूँ.. क्या आगे से मैं तुम्हें फोन कर सकता हूँ? और क्या तुम मेरा फोन उठाओगी?"
फाल्गुनी: "हाँ अंकल.. पर कॉल करने से पहले मेसेज कर देना.."
राजेश: "उससे बेहतर यही होगा की तू ही सामने से मुझे फोन करना... जब तू अकेली हो.. सुबह नौ बजे से लेकर रात के आठ बजे तक मैं ऑफिस में होता हूँ.. उस समय तुम मुझे फोन कर सकती हो"
फाल्गुनी: "ठीक है अंकल"
राजेश: "बाय डीयर.. !!"
राजेश ने फोन रख दिया और आगे की रणनीति के बारे में सोचने लगा..
फाल्गुनी ने तुरंत मौसम को फोन लगाया और राजेश के फोन के बारे में बता दिया..
वैसे फाल्गुनी को राजेश से बात करने के बाद बहुत अच्छा लगा.. अंकल के जाने के बाद जो खालीपन महसूस हो रहा था.. उसमें कहीं न कहीं राजेश फिट होता नजर आने लगा था
मौसम से बात करने के बाद.. फाल्गुनी ने शीला को फोन लगाया और उन्हें बताया की तरुण के लिए मौसम के दिल में अभी भी जज़्बात है.. और हो सकें तो वो एक बार तरुण से बात करें.. शीला भी अब गंभीरता से इस बारे में सोचने लगी थी
मौसम के घर में अब केवल वो और उसकी मम्मी ही बचे थे.. कविता और पीयूष नजदीक ही रहते थे और आते जाते रहते थे.. पर सुबोधकांत का इतना बड़ा कारोबार अकेले संभालते हुए पीयूष के नाक में दम हो जाता.. पीयूष अक्सर सोचता की इतना बड़ा बिजनेस संभालने के बाद भी ससुरजी को गुलछर्रे उड़ाने का समय कैसे मिल जाता था.. !!!
कविता के पास अब ढेर सारा पैसा था.. वो जैसे चाहती उड़ा सकती थी.. उसे काफी बार पिंटू की याद आ जाती.. और पीयूष जब बेहद व्यस्त होता तब पुराने दिन भी याद आ जाते जब पीयूष राजेश की ऑफिस मे सिर्फ एक मुलाजिम था.. कम से कम शाम के सात बजे घर तो आ जाता था.. दौलत तो बहोत आ गई थी पर पति का साथ नहीं मिल रहा था.. काफी समय हो गया था कविता और पीयूष की शादी को.. अनुमौसी की आँखें उनके संतान को देखने के लिए तरस रही थी.. कविता को भी अक्सर अपनी सुनी कोख सताती रहती थी..
ऐसी ही एक शाम को कविता उदास मन से.. बरामदे में झूले पर बैठकर सब्जी काट रही थी..
तभी मौसम वहाँ पहुंची..
मौसम: "मुंह लटकाकर क्यों बैठी हो दीदी? जीजू ने रात को ठीक से डोज़ नहीं दिया क्या?" पिछले एक साल में मौसम और फाल्गुनी, कविता के साथ काफी बिंदास हो गए थे.. और सारी बातें खुलकर करते थे.. कविता और मौसम बहनों की तरह नहीं पर सहेलियों की तरह बन गई थी
कविता: "तेरे जीजू को टाइम ही कहाँ है मुझ डोज़ देने का.. पहले तो पीयूष रोज रात को सेक्स करने के लिए मुझे इतना तंग करता था.. मैं तो यही सोचती की इन मर्दों को सेक्स के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं होगा क्या.. !! चौबीसों घंटे खड़ा ही रहता था उसका.. मौका मिलते ही बाहर निकालकर खड़ा हो जाता था वो.. शादी के शुरुआती समय में तो मैं ऐसा ही सोचती थी की लंड हमेशा सख्त ही रहता होगा क्योंकी नरम लंड मैंने कभी देखा ही नहीं था.. वही पीयूष आज बिजनेस में इतना डूब चुका है की मुझे कई बार ताज्जुब होता है.. इसे मेरी याद आती भी है या नहीं?"
मौसम: "दीदी... जीजू ने पापा का इतना बड़ा कारोबार इतने कम समय में संभाल लिया वही बहोत बड़ी बात है.. वरना सब कुछ बिखर जाता"
कविता: "वो सब तो ठीक है मौसम.. पर बिजनेस के चक्कर में घर-गृहस्थी बिखर जाएगी उसका क्या??"
मौसम किचन में पानी लेने चली गई इसलिए उसने सुना नहीं..
अपने दिल की भड़ास निकाल रही कविता पर पीयूष को फोन आया और उसने कहा की उसे देर हो जाएगी और खाना ऑफिस में ही खा लेगा..
कविता ने फोन रख दिया.. अभी अभी उसने फूलगोभी काटी थी सब्जी बनाने के लिए.. काटी हुई सब्जी की थाली उसने कंपाउंड के बाहर खड़े सांड के सामने उंडेल दी.. और उस विशालकाय सांड को खाते हुए देखती रही.. मन ही मन वो हंस रही थी.. पीयूष को फूलगोभी की सब्जी बहोत पसंद थी.. इसलिए मार्केट जाकर वो खास उसके लिए खरीद कर लाई थी.. पर पीयूष के पास समय ही कहाँ है.. !! फूलगोभी किसके लिए लाई थी और कौन खा रहा है.. !!
कहते है ना.. दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम.. !! फूलगोभी को चट करने के बाद वो सांड आभारवश कविता के सामने देख रहा था
"अरे दीदी.. ये क्या किया?? इतनी महंगी सब्जी आपने गाय को खिला दी?" मौसम ने बाहर आकर कहा
"वो गाय नहीं.. सांड है मौसम.. !!" कविता ने कहा
"अरे यार.. गाय हो या सांड.. क्या फरक पड़ता है?" मौसम का संकेत फूलगोभी की सब्जी की ओर था
"सांड सांड होता है और गाय गाय होती है.. फरक तू नहीं समझेगी.. जो काम सांड कर सकता है वो गाय कभी नहीं कर सकती.. !!" शादी-शुदा दीदी की अनुभवयुक्त वाणी सुनकर मौसम के गाल शर्म से लाल लाल हो गए.. दीदी के कहने का अर्थ भलीभाँति समझ रही थी मौसम
"हाँ दीदी.. मुझे कैसे समझ आएगा.. मैं ठहरी अनपढ़ और गंवार.. " दीदी की उदासी छटते देखकर मौसम ने मज़ाक जारी रखा
"मैंने कब कहा की तू अनपढ़ गंवार है.. !! हा सामाजिक तौर पर तुझ में अनुभव की कमी जरूर है.. पर आज कल की इंटरनेट जनरेशन बहोत जल्दी बड़ी हो जाती है.. अठारह की उम्र में ही लड़कियों को सारे अनुभव हो जाते है.. मेरी भी तो फ्रेंडशिप हो गई थी ना उस पिंटू के साथ"
मौसम ने कविता के कंधे से कंधा टकराते हुए शरारती अंदाज में कहा "तो क्या वो पिंटू के साथ भी तुमने अनुभव कर लिया था क्या?"
कविता: "मैं तो तैयार थी.. पर वो बेवकूफ ही नहीं माना.. !!"
मौसम: "अरे हाँ दीदी.. आपको बताना भूल गई.. मेरे खयाल से पिंटू अब वैशाली के साथ है.. और शायद वो दोनों जल्द ही शादी करने वाले है.. " मौसम ने बॉम्ब फोड़ दिया.. जिसने कविता के दिल के चींथड़े उड़ा दीये.. दिल बैठ गया उसका.. पर फिर उसे खयाल आया की उसके भरोसे पिंटू थोड़े ही पूरी ज़िंदगी कुंवारा बैठा रहेगा.. !!
कविता: "क्या सच मे?? मुझे तो पता ही नहीं था.. ये सब कब तय हुआ?? और तुझे किसने बताया?"
मौसम: "वो तो एक दिन वैशाली से बात करने के लिए फोन किया तो शीला भाभी ने उठाया.. बातों बातों में पता चला की वैशाली पिंटू के साथ घूमने गई हुई थी.. जिस साहजीकता से उन्होंने यह बात बताई उससे साफ जाहीर है की उनके संबंधों पर शीला भाभी और मदन भैया का ठप्पा लग चुका है"
कविता: "वो क्यों मना करेंगे भला.. पिंटू जैसा लड़का तो नसीब से ही मिलता है"
मौसम के गाल खींचकर कविता ने कहा "अब तेरी बारी है.. मैंने एक लड़का ढूंढ लिया है तेरे लिए"
मौसम ने थोड़े से गुस्से के साथ कहा "क्या दीदी आप भी.. मुझे नहीं करनी कोई शादी-वादी.. मैं तो जीजू से मिलने ऑफिस जा रही हूँ.. बहोत दिन हो गए उनसे मिले हुए.. जाकर पूछती हूँ.. की उन्हें अपनी ये सुंदर साली याद भी है या भूल गए?? तुम चलोगी?"
कविता: "नहीं यार.. तू जा.. शायद तुझे देखकर उसे अपनी मर्दानगी की याद आ जाए"
मौसम ठहाका मारकर हंसने लगी.. "क्या दीदी तुम भी.. !! अगर जीजू को अपनी मर्दानगी की याद आ गई तो ऑफिस में मेरा क्या हाल करेंगे?" स्कूटी स्टार्ट करके मौसम निकल गई.. कविता उसे पीछे से देखती रही.. सुंदर गुड़िया जैसी मौसम.. ऐसे रूप के खजाने को तरुण ने छोड़ दिया..
मौसम के जाने के बाद कविता घर के अंदर आई और शीला को फोन लगाया
शीला: "ओह्ह कविता.. साली भेनचोद... कहाँ है तू??" अपने खास अंदाज में शीला ने कहा.. शीला की आवाज सुनते ही कविता की सारी उदासी एक पल में गायब हो गई..
कविता: "क्या भाभी.. मैं तो यहीं हूँ.. आप ही मुझे भूल गई हो.. !!"
शीला: "हम्म.. मैं तो भूल गई हूँ तुझे.. पर वो बेचारा रसिक बहोत याद करता है"
कविता: "तो यहाँ का पता देकर भेज दो उसे मेरे पास.. मुझे वैसे भी बहोत जरूरत है"
शीला: "क्यों?? वो पीयूष विदेश चला गया क्या मेरे मदन की तरह??"
कविता: "जिसका पति विदेश हो उसे ही सर्विस देता है क्या रसिक?? तो मैं भी भेज देती हूँ पीयूष को विदेश.. पीयूष यहीं है लेकिन उसके पास बिजनेस से फुरसत ही नहीं है मेरे लिए.. इसलिए कह रही हूँ.. रसिक को भेज दो यहाँ.. हा हा हा हा हा ... !!"
शीला: "भूल जा.. रसिक को बर्दाश्त करना, तेरे बस की बात नहीं है"
कविता: "क्यों भला??"
शीला: "क्योंकि उसका सामान बहोत भारी है.. मुझ जैसी बड़ी सूटकेस भी उसके सामान को संभाल नहीं पाती.. तो तेरा क्या हाल करेगा?? रसिक से एक बार करवाने के बाद.. नीचे एक हफ्ते तक ताला लग जाता है.. ताकि उसके दीये हुए घाव ठीक हो सके.. तू बोल.. अचानक रसिक की इतनी जरूरत क्यों आन पड़ी?? और फोन भी इसीलिए किया था क्या?" कविता के शरीर को पाने के लिए रसिक कितना उत्सुक था वो शीला जानती थी.. और कविता भी तो जानती थी
कविता: "नहीं भाभी.. वो देसी पट्ठा मुझे तोड़-मरोड़कर रख देगा.. मेरे लिए तो पीयूष ही ठीक है.. रसिक आपको मुबारक.. !!"
शीला: "हाँ कविता.. उसे झेलना तेरे बस का नहीं है.. और मुझ जैसी को उसके अलावा और कोई राज नहीं आता.. मदन भी आठ महीनों के लिए विदेश गया था.. एक प्रोजेक्ट के सिलसिले मे.. तब रसिक से ही मेरा गुजारा चलता था.. मैं तो कहती हूँ की अच्छा हुआ जो तूने उसे अब तक चखा नहीं.. वरना और कोई पसंद ही न आता.. !!"
कविता: "इतना स्वादिष्ट है क्या रसिक?? फिर तो एक बार चखना पड़ेगा.. !!"
शीला: "तो आजा इधर एक दिन.. कर देती हूँ सेटिंग.. वो तो कब से तेरे पीछे पड़ा है.. तुझे तो पता ही होगा.. !!"
सुनकर कविता चोंक गई.. शीला को इस बारे में कैसे पता चला.. !! कहीं रसिक ने तो उस रात के बारे में शीला को बता तो नहीं दिया.. !!
कविता: "कितना भी मन क्यों न हो.. पर आने का मौका ही कहाँ मिलता है भाभी.. !! अक्सर मैं पुराने समय के बारे में सोचती हूँ.. आपके साथ थी तब जो मज़ा आता था.. वो सब तो गायब ही हो गया ज़िंदगी से"
हकीकत में कविता ने बड़े मजे कीये थे शीला के साथ.. दिन भर शीला भाभी की सेक्सी बातें.. नॉन-वेज जोक्स.. कामुक छेड़खानियाँ.. और एक दो बार का वो लेस्बियन सेक्स.. शीला भाभी के साथ रहकर कविता इतनी उत्तेजित हो जाती की वो इंतज़ार करती.. कब पीयूष आए और कब उससे लिपट कर चुदवाऊँ.. !! और पीयूष तो शीला भाभी को देखकर ऐसे उत्तेजित हो जाता जैसे अभी अभी वायग्रा की गोली खाई हो
कविता: "यहाँ और सब कुछ है भाभी.. सिर्फ आप नहीं हो.. बहोत मिस करती हूँ आपको"
शीला: "तो मैं भी यहाँ पर अकेली ही हूँ.. आप सब को याद करके कई बार रोना आ जाता है मुझे.. !!"
कविता: "एकाद बार आप क्यों नहीं आ जाती यहाँ?? उसी बहाने मेरा घर भी देख लोगी.. इतना बड़ा घर है मेरा.. आप और मदन भैया अलग अलग कमरे में सो सकते हो.. !!"
शीला: "आऊँगी.. जरूर आऊँगी.. और जब भी आऊँगी.. तेरे और पीयूष के बीच में सोऊँगी.. हा हा हा हा हा.. !! और बता.. सब ठीक चल रहा है बाकी सब?"
कविता: "दरअसल एक काम था इसलिए फोन किया था.. आप तरुण का नंबर नोट कीजिए.. उससे बात कीजिए और किसी भी तरह जानने की कोशिश कीजिए की उसने आखिर सगाई तोड़ क्यों दी थी.. !! बात बात में ये भी बताना है की मौसम अब भी बिन-ब्याही है.. और अगर उसकी इच्छा हो तो फिर से एक बार सोच लें इस बारे में"
शीला सोचने लगी.. पिछले दिन फाल्गुनी का इसी काम के लिए फोन आया था.. अब कविता भी वही बात कह रही है.. जो रिश्ता तरुण एक साले पहले तोड़ चुका था.. उससे फिर से जोड़ने के लिए कैसे कहें?? समाज क्या कहेगा? और अभी सगाई तोड़ने की असली वजह का तो पता भी नहीं है
शीला: "तू चिंता मत कर कविता.. मैं और मदन कुछ करेंगे इस बारे में"
शीला भाभी के आत्मीयता भरे आश्वासन से कविता का दिल भर आया.. पीयूष के बीजी होने से जो असंतोष था वो सब शीला भाभी को बताना चाहती थी.. पर तभी अचानक मदन आ गया और शीला ने फोन रख दिया..
मदन कपड़े बदलने लगा.. शायद कहीं जाने की तैयारी कर रहा था.. मदन को नंगा देखकर शीला के दिल के अरमान जाग उठे.. शीला अपनी कमर मटकाती हुई बेडरूम के अंदर आई.. तब मदन वॉर्डरोब से कपड़े निकाल रहा था..
मदन सुबोधकांत के निधन के बाद, एक प्रोजेक्ट के लिए कन्सल्टन्ट के तौर पर आठ महीनों के लिए फिर विदेश चला गया था.. वापिस लौटने के बाद भी शीला ने अपना गुस्सा नहीं छोड़ा था.. वो अब भी उस रात की बात निकालकर मदन को ताने मारती रहती थी.. अब भी मदन के साथ संबंध उसने सामान्य होने ही नहीं दीये थे.. तो मदन ने भी गुस्से में आकर शीला के साथ सेक्स करना बंद कर दिया था.. उसे बराबर पता था की बिना सेक्स के शीला ज्यादा दिन रह नहीं पाएगी और लँड लेने के चक्कर में उसके पास सामने से चलकर आएगी
अपनी आदत के अनुसार.. शीला को रोज रात चुदाई की इच्छा होती.. पर मदन करवट लेकर सो जाता और वो मन ही मन भड़कती रहती.. तकलीफ तो मदन को भी बहोत हो रही थी.. ठंड का वक्त था.. और बगल में गरम तंदूर जैसी बीवी सो रही हो.. और बिना कुछ कीये रात बिताने में उसी भी बड़ी तकलीफ हो रही थी.. आखिर वो बाथरूम में जाकर मूठ लगाकर सो जाता.. जिस आग में मदन जल रहा था उस आग ने शीला का कई ज्यादा नुकसान कर दिया था..
बेडरूम में घुसते ही शीला ने अपना पल्लू गिरा दिया.. और मदन के बिल्कुल करीब खड़े रहकर ऐसा अभिनय करने लगी जैसे वो भी वॉर्डरोब में कुछ ढूंढ रही हो..
♩♫ प्यास भड़की है सरे शाम से जल रहा है बदन,
इश्क से कह दो की ले आए कहीं से सावन..♫
शीला ये गीत गुनगुना कर मदन को उकसा रही थी.. जिसे सुनकर मदन का दृढ़ निश्चय चकनाचूर हो रहा था.. मदन वहाँ से हटकर शीला से दूर जाना चाहता था पर कमबख्त पेंट ही नहीं मिल रहा था.. उसने तिरछी नज़रों से कपड़े ढूंढ रही शीला की काँखों से नजर आ रहे खरबूजे जैसे स्तनों को देखा.. इतनी ठंड में भी शीला के जिस्म पर पसीना आ रहा था.. गोरी गर्दन से पसीने की धारा उसकी क्लीवेज के बीच जा रहा था.. वही क्लीवेज जिसमें कई मर्दों की मर्दानगी दफन पड़ी थी..
♫पिया तू... अब तो आजा..
शोला सा मन भड़के.. आ के बुझा जा..
तन की ज्वाला ठंडी हो जाए.. ऐसे गले लगा जा ♬
शीला ने दूसरा गीत गाकर आग में पेट्रोल डालने का काम कर दिया..!!!
शीला के गूँदाज बबलों को देखकर मदन मन ही मन आहें भर रहा था.. सोच रहा था.. भेनचोद.. ये मेरे ही है.. बाकायदा ब्याह किया है मैंने.. फिर भी दबाने के लिए तरस रहा हूँ?? शीला की भव्य कमर और गहरी सेक्सी नाभि को देखता रहा मदन.. शीला के रूप.. और उसके गानों ने मदन के मन मे हवस की आग को हवा तो दे ही दी थी.. ऊपर से अकेलेपन ने आग में घी का काम किया.. और काम-यज्ञ शुरू हो गया.. मदन का सारा अहंकार एक ही पल में भांप बनकर उड़ गया..
आखिर आग और घी के मिलने से जो होता है वही हुआ
"मादरचोद.. कितने महीने हो गए.. साली तू तो सामने भी नहीं देखती?? बहोत चर्बी चढ़ी है तुझे रंडी.. आजा, आज तुझे दिखाता हूँ" कहते हुए मदन ने शीला को अपनी बाहों में जकड़ लिया
मन ही मन अपने विजय पर खुश हो रही शीला ने चेहरे पर अब भी क्रोध के भाव धारण कर रखे थे.. वो मदन की पकड़ से छूटने की नाकाम कोशिश करती रही.. वैसे वो छूटना चाहती ही नहीं थी.. सिर्फ नाटक कर रही थी..
"नालायक, भड़वे.. छोड़ मुझे.. राँडों को लेकर चोदने गया था तब मेरी याद नहीं आई तुझे.. साले हिजड़े.. !!" शीला की ये स्टाइल थी.. मदन की मर्दानगी को ललकारने पर वो बेकाबू हो जाता.. शीला के पुष्ट पयोधर स्तन मदन की छाती से दबकर चपटे हो गए थे.. शीला के गोरे गुलाबी गालों पर मदन ने उत्तेजनावश काट लिया..
"आह्ह छोड़ मुझे.. मर गई.. छोड़ दे मुझे भेनचोद.. जा उस बार्बी और सुनंदा को पकड़.. मुझे छोड़.." जैसे जैसे शीला नखरे करती गई वैसे वैसे मदन और हिंसक होता गया.. वो एक साल से भूखा था.. आज वो ऐसे गुर्रा रहा था जैसे लाल कपड़ा देखकर कोई सांड भड़क रहा हो.. उसने एक झटके में शीला का ब्लाउज फाड़ दिया.. कपड़ा फटते ही उसमें कैद मोटे खरगोश जैसे स्तन बाहर झूलने लगे.. उन्मुक्त मदन बेपरवाह होकर शीला के जिस्म पर हमले कर रहा था.. शीला को मदन का यह रूप बेहद पसंद था.. कभी कभी तो वो मदन को सामने से जोर-जबरदस्ती करने के लिए कहती.. इस तरह संभोग का पिशाची आनंद लेने में शीला को बहोत मज़ा आता.. आज कितने महीनों के बाद उसे मदन का यह रूप देखने मिला था.. अगर वो सहयोग देने लगती.. तो जोर-जबरदस्ती का सिलसिला रुक जाता.. जो वो नहीं चाहती थी.. वो तो चाहती थी की मदन ज्यादा से ज्यादा आक्रामक हो.. हिंसक हो.. और इसके लिए यह बेरुखी का नाटक जारी रखना बेहद जरूरी था.. ताकि मदन उसे काबू में करने के लिए और जोर आजमाए.. !!
मदन की राक्षसी पकड़ से शीला जैसे तैसे छूट तो गई.. पर भाग कर जाती कहाँ.. !! वैसे वो कहीं भागकर जाना चाहती भी नहीं थी.. दूसरे ही पल मदन ने झपट्टा मारकर उसे पकड़ लिया और शीला को बिस्तर पर गिराकर.. उसके ऊपर चढ़ गया.. !!! जबरदस्त उत्तेजित था मदन.. पूरे एक साल की सारी कसर वो आज शीला पर निकालना चाहता था.. शीला का फटा हुआ ब्लाउज.. जांघों तक ऊपर चढ़ चुका पेटीकोट.. शीला के जिस्म को रति जैसा सौन्दर्य प्रदान कर रहे थे.. शीला के पेट पर सवार होकर दोनों हाथों से स्तन पकड़कर मदन ने मसलते हुए चूस लिए..
मदन की जीभ का स्पर्श निप्पल पर महसूस होते ही शीला का विरोध पचास प्रतिशत कम हो गया.. उसकी ताकत कमजोर हो गई और एक जबरदस्त सिसकी के साथ उसने काम-यज्ञ में आहुति देने का कार्य शुरू किया.. शीला खुद ही बड़ी उत्तेजना से मदन के लंड को जांघिये के ऊपर से ही पकड़ लिया.. इस खेल में.. कौन जीता, कौन हारा.. उसका फैसला करने के लिए मदन ने शीला की तरफ एक नजर देखा.. पर शीला ने मदन को सर के बालों से पकड़कर अपनी ओर खींचा और वासना सभर चुंबनों से पिछला तमाम हिसाब चुका दिया.. !!
पति-पत्नी के सामान्य झगड़ों और मन-मुटाव का अंत हमेशा कुछ ऐसा ही होता है.. और ऐसा ही अंत होना भी चाहिए..!! दो जिस्म जब एक हो जाए, फिर किसी भी गीले-शिकवे की कोई गुंजाइश नहीं बचती.. जरूरत होती है पहल करने की.. और छोटी-मोटी अनबनों को हद से ज्यादा न खींचने की..
शीला के गरम तंदूर जैसे भोसड़े से, मदन के प्रति प्रेम के कारण, बहोत ही जल्दी गीलापन रिसने लगा था.. केवल जाँघिया पहनकर शीला के शरीर पर सवार मदन के लंड को उकसाने का काम शीला ने शुरू कर दिया था.. जब उसे तसल्ली हो गई की उसका लंड पूरी तरह तनकर टाइट हो चुका था.. तब उसने जाँघिया सरकाकर लंड को बाहर निकाला..
"आह्हहहह...!!" शीला के मुख से.. मदन के लंड को देखकर ही आह निकल गई.. लंबा सख्त लोडा देखकर शीला को अनायास ही सुबोधकांत और राजेश के मोटे तगड़े लंड की याद आ गई.. उसे अब इतना मज़ा आ रहा था की उसने पलटी मारकर मदन को लिटा दिया और वो खुद उस पर सवार हो गई.. बिना किसी झिझक या शर्म के शीला ने मदन का लंड पकड़ा और अपने चूत के होंठों की बीच टिकाकर.. जिस्म का पूरा वज़न डालते हुए बैठ गई.. !!
बड़े ही आराम से मदन के लंड को अपने भोसड़े में छुपाकर वह अपने विशाल स्तनों से मदन के मुंह को दबाते हुए बोली
"साले भड़वे.. तू क्या मुझे चोदेगा.. !! देख मैं तुझे कैसे चोदती हूँ अब.." कहते हुए वो गुर्राकर मदन के लंड पर उछलने लगी
दोनों एक दूसरे में इतने मशरूफ़ थे की भूल ही गए.. मुख्य दरवाजा लॉक नहीं किया था.. और जब वैशाली ऑफिस से आई और इन दोनों की काम-क्रीडा में लिप्त देखा तब उसके पैर जमीन से जैसे चिपक से गए.. !! वो सोच रही थी.. की अगर ५५ की उम्र में भी मम्मी इतनी कामुक और हवसखोर ही की दरवाजा बंद करना भूल गई.. तो अपने जवानी के दिनों में वो क्या क्या नहीं करती होगी.. !! जिस पोजीशन में चुदाई चल रही थी.. वह वैशाली की पसंदीदा सेक्स पोजीशन थी.. स्त्री ऊपर और मर्द नीचे.. !! वो बेडरूम के दरवाजे के पीछे छुप गई.. मम्मी-पापा का सेशन खतम होने के बाद ही वो अपनी मौजूदगी जताना चाहती थी.. पर इस दौरान अगर कोई और घर के अंदर आ गया तो.. ?? दरवाजा तो अभी भी खुला था क्योंकि अब अगर वो बंद करने जाती तो उसकी आवाज से शीला और मदन को पता लग जाता और उनकी चुदाई के बीच बाधा पड़ती..
वैशाली चाहती थी की किसी तरह मम्मी और पापा को सचेत किया जाए.. पर ऐसा करने मे उसकी मौजूदगी जाहीर हो जाने का खतरा था.. तभी वैशाली के फोन पर पिंटू का फोन आया.. रिंगटोन सुनते ही शीला मदन के शरीर से छलांग मारकर बेड से उतर गई और पास पड़ी साड़ी से अपने तन को ढँक लिया.. मदन अपनी नग्नता को छुपाने के लिए दौड़कर बाथरूम में घुस गया.. गनीमत थी की फोन की रिंग बजते ही वैशाली उनके बेडरूम के दरवाजे से हटकर तुरंत ड्रॉइंगरूम में चली गई.. इसलिए शीला और मदन को किसी शर्मनाक परिस्थिति का सामना न करना पड़ा..
शीला ने फटाफट कपड़े पहने और बाहर आई.. उसने देखा की बेखबर होकर वैशाली सोफ़े पर बैठकर फोन पर बात कर रही थी.. शीला ने चैन की सांस ली.. उसने अंदर बेडरूम मे जाकर मदन का पेंट उठाया.. और बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक देकर.. मदन को थमा दिया..
शीला वापिस ड्रॉइंग रूम में आई उससे पहले वैशाली अपने कमरे में जा चुकी थी.. बेड पर आँखें बंद कर लेटी हुई वैशाली की आँखों के सामने से वह द्रश्य हट ही नहीं रहा था जो उसने कुछ पलों पहले देखा था.. मम्मी के उछलते हुए स्तन... उनके भारी भरकम चूतड़.. बिखरे हुए बाल.. और नीचे पुचूक पुचूक कर रहा पापा का लंड.. आह्ह.. !! वैशाली को न चाहते हुए भी अपनी उंगली पेन्टी में डालनी पड़ी.. जब मम्मी पापा के लंड के ऊपर से छलांग लगाकर उठी तब पापा के लंड की जो हालत थी वो बार बार याद आ रही थी वैशाली को.. !!! क्यों की उनका पूरा लंड मम्मी की योनि के स्खलन-जल से लिप्त होकर चमक रहा था.. और अपने आप ऊपर नीचे हो रहा था.. वैशाली सोच रही थी की ऐसा तो क्या हो गया होगा जो वो लोग दरवाजा खुला छोड़कर ही शुरू हो गए?? नए कुँवारे जोड़ों के साथ ऐसा होना मुमकिन था.. पर शादी के तीस साल बीता चुके जोड़ों का संभोग पूरे प्लैनिंग के साथ होता है.. वक्त का सही चयन और परिस्थिति के पूर्ण आकलन के बाद ही अनुभवी विवाहित जोड़ें संभोग में रत होते है..
पेन्टी के अंदर अपनी उंगली से भगोष्ठ को रगड़ते हुए वैशाली सोच रही थी.. पिंटू के साथ ऐसा सुख मुझे न जाने कब मिलेगा.. !!! वैशाली का जिस्म अब पुरुष का भोग मांग रहा था.. शारीरिक भूख अब उसकी बर्दाश्त के बाहर होती जा रही थी