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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

sunoanuj

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vakharia ji..बहुत बढ़िया और लाजवाब अपडेट. ये कहानी भी दिन प्रतिदिन आपकी लेखन कला के कौशल को दिखा रही है। मेरी समझ के आधार पर नीचे कुछ टिप्पणियाँ दी गई हैं..

हवस का नशा सबसे ज्यादा घातक होता है सीधा दिमाग पर वार करता है। सोचने समझने की इंद्रियों को अपने वश में कर के सिर्फ एक ही मंजिल नजर आने देता है…चरमसुख. चरमसुख का एहसास और चरमसुख तक पहुंच ने में काफी कुछ झेलना पड़ता है। लंबे तगड़े लंड के जोर के झटके खाने पड़ते हैं. बिन लाज शर्म के चरमसुख का एहसास होना मुश्किल है.

कम्मोतेजना के ज्वार में डूबी एक महिला के कामुकता को सिर्फ वो मर्द समझ सकता है जो उससे प्यार ना करता हो।
क्योंकि जब आप प्यार करते हैं तो कठोर नही हो सकते। और ये दोनों बातें वैशाली और रसिक पर बेखूबी लागू होती हैं। वैशाली काम वासना से तड़पती हुई एक औरत और रसिक एक भोरया हुआ सांड जिसको सिर्फ औरत की अपने दमदार लिंग से चुदाई करने से मतलब है। प्रेम का एक मात्र भी कतरा नहीं.

अगर अब कविता की बात करें तो उसके मन की दुविधा बड़ी विचित्र है. एक तरफ घर वालों का प्यार इज्जत उसके कदम रोक रही है और दूसरी तरफ उसके बदन की गर्मी उसे सब बंधनों को तोड़ भी देना चाहती है. जब एक लड़की को संभोग की प्यास लगती है, तो जब तक वो तृप्त ना हो उसे खत्म कर पाना ना मुमकिन है!

एक बार एक पुरुष अपने मन को मार सकता है पर एक स्त्री अपने अंदर आए वेग को रोक नहीं सकती! जो औरत मर्द के आगे झुकती है वो ही ज्यादा चरमसुख प्राप्त कर पाती है।जिस औरत में अकड़ होती हैं वो कभी चरमसुख की भोगी नही होती है। कविता शायद रसिक के लिंग का साइज देख कर थोड़ा गड़बड़ रही है. पर उसे समझना होगा की हम औरतें कितनी भी कोमल क्यों ना हो अगर हम घोड़ी बन जाती है तो तगड़े से तगड़े मर्द को भी अपने ऊपर चढ़ा लेती है. फिर उनके झटके कीतने भी तगड़े और जोरदार क्यों ना हो...उन्हे तब तक सहन करती रहती है जब तक वो मर्द थक कर पानी नही फेंक देता. रसिक तो एक अनपढ़ और गंवार दूधवाला है लेकिन काम क्रीड़ा का एक चतुर खिलाड़ी भी है। उसे मालूम है की संभोग के लिए अगर महिला को पूर्ण रूप से उत्तेजित किया जाए तो महिला ख़ुद आगे बढ़कर पुरुष का लिंग पकड़कर अपनी योनि की दरारों में प्रवेश कर देती है जिससे उत्तेजना उच्चतम स्तर तक पहुंच जाती है ओर संभोग बहुत ही आनन्दमय हो जाता है..!!!
कामवासना में पुरुष अक्सर कमजोर हीं होते हैं, वो सबकुछ एकबार मे हीं ले लेना चाहते हैं। जबकि पुरुष स्वभाव के विपरीत स्त्री धीरवान होती है, वो हर आलिंगन का सिख धीरे धीरे लेकर सिसकना चाहती है .मेरे ख्याल से वैशाली से ज्यादा वो कविता को भोगने में दिलचस्पी है। कविता को दोबारा से इस स्थिति में लाना शायद मुश्किल हो। बेहतर होता है कि अपना लिंग रगड़ते रगड़ते वो अंदर घुसा देता है। एक बार अंदर घुस जाने पर कविता का विरोध भी कम हो जाता है और शारीरिक संतुष्टि भी मिल जाती है और भविष्य के लिए भी रास्ता खुल जाता है
Bahut jabardast feedback diya hai aapne!
Or stree or purush ki kamukta ka bahut hee satik vishleshan kiya hai aapne !
 

vakharia

Supreme
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फ्लाइट के बिजनेस क्लास में मस्ती

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komaalrani

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कविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"

कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता


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रसिक की मोटी जांघों की दोनों ओर अपने पैर फैलाकर बैठते हुए.. नीचे हाथ डालकर.. अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस पर रगड़ रही थी वैशाली.. स्त्री के शरीर के सब से संवेदनशील हिस्से पर मर्द के जीवंत पौरुष-सभर अंग का गरमागरम स्पर्श होते ही, वैशाली का बदन लहराने लगा..


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उसके बदन मे कसाव आने लगा और साथ ही साथ उत्तेजना बढ़ने लगी.. उसका साहस भी अब एक कदम आगे बढ़ने लगा था.. उत्तेजना इंसान को साहसिक बना देती है.. वैशाली ने रसिक का खंभे जैसा लंड अपनी बुर मे लेने के लिए कमर कस ली थी.. अपनी योनि के सुराख पर रसिक का लाल टमाटर जैसा सुपाड़ा टिकाते हुए उसने हल्के हल्के शरीर का दबाव बनाना शुरू किया.. योनिमार्ग के शुरुआती प्रतिरोध के बाद.. रसिक का सुपाड़ा अंदर धीरे धीरे घुस गया.. वैशाली उस विकराल लंड को बड़ी मुश्किल से आधा ही ले पाई अंदर.. वैशाली अब स्थिर हो गई.. शरीर का पूरा वज़न डालने के बावजूद लोडा ज्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.. उसकी चूत अपने महत्तम परिघ तक फैल चुकी थी.. इससे ज्यादा चौड़ी होना मुमकिन नहीं था..


ps

वैशाली के चेहरे पर असह्य पीड़ा के भाव दिख रहे थे.. इतनी सर्द रात मे भी उसका बदन पसीने से तर हो रहा था..

"क्या हो रहा है तुझे वैशाली? बाहर निकाल देना है...??" वैशाली को इस हाल मे देखकर.. घबराते हुए कविता ने कहा..

वैशाली ने टूटती हुई आवाज मे कहा.. "न.. नहीं.. इस दर्द को सहने के लिए.. तो मैं.. आह्ह.. तड़प रही थी.. मर जाने दे मुझे.. पर मैं इसे अब बाहर नहीं निकालूँगी.. ओह्ह.. मज़ा आएगा अब तो.. कविता.. ओह माय गॉड.. क्या मस्त लंड है यार.. प्लीज.. जरा नीचे देखकर बता मुझे.. कितना अंदर गया और कितना बाकी है.. !!"

कविता खटिया के पास, रसिक की जांघों के बीच बैठ गई और देखने की कोशिश करने लगी.. पर अंधेरे मे घंटा कुछ नजर नहीं आ रहा था..

कविता: "कुछ दिख नहीं रहा है वैशाली.. !!"

"एक मिनट भाभी.. " रसिक ने कहा.. और वैशाली को कमर से पकड़कर वो खटिया से खड़ा हो गया.. ऐसा करने से वैशाली की चूत और फैल गई और लंड का अधिक हिस्सा अंदर घुस गया.. वैशाली की चीख निकल गई... !!!!!

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"ऊईईईईईई माँ.... !!!!!! मर गईई मम्मी.. रसिक बहोत दुख रहा है मुझे... आह उतार दे मुझे" वैशाली की आँखों से आँसू बहने लगे

रसिक ने वैशाली के चूतड़ों को अपने हाथों से सहारा देकर.. अपना लंड उसकी चूत से हल्का सा बाहर निकालकर वैशाली को थोड़ी सी राहत दी.. वैशाली की जान मे जान आई..

रसिक: "लीजिए भाभी... अब आपको दिखेगा.. " फूल की तरह उठा रखा था वैशाली को रसिक ने

कविता ने नीचे झुककर देखा.. अब लिंग-योनि की महायुति अब स्पष्ट नजर आ रही थी.. कविता ने वैशाली के चूतड़ों को जितना हो सकता था.. अपने हाथों से फैलाकर देखा.. देखकर कविता की जुबान उसके हलक मे उतर गई... वैशाली की चूत के अंदर रसिक का लंड बुरी तरह फंसा हुआ था.. वीर्य से भरे अंडकोश इतने मोटे मोटे नजर आ रहे थे.. वैशाली की द्रवित हो रही चूत के रस से सराबोर होकर.. आग की रोशनी मे कंचे की तरह चमक रहे थे..

"अभी तो आधा ही अंदर गया है वैशाली.. आधा बाहर है" कविता ने रसिक के अंडकोशों पर हाथ फेर लिया.. और लंड के बाहर वाले हिस्से की मोटाई को हाथ लगाकर नापते हुए... घबराकर कहा "ओ बाप रे.. पूरा तो अंदर जाएगा ही नहीं.. फट जाएगी तेरी.. !!"

अपने राक्षसी हाथों मे वैशाली को उठाकर आग की प्रदक्षिणा करते हुए हल्के हल्के चोदने लगा रसिक.. उसके हर नाजुक धक्के के साथ वैशाली की सिसकियाँ और दर्द भरी कराहें निकलकर.. रात के अंधेरे मे ओजल हो रही थी.. बड़ा खतरनाक साहस कर दिया था वैशाली ने.. अपनी हवस को संतुष्ट करने के लिए इंसान बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को तैयार हो जाता है.. यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण था..

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कविता खटिया पर बैठे बैठे.. दोनों के कठिन और कामुक मिलन को विस्मय भरी नज़रों से देख रही थी.. गदराए बदन वाली वैशाली को उचककर घूम रहे रसिक के हाथ के डोले फूल गए थे.. वैशाली ने रसिक की गर्दन मे अपने दोनों हाथ पिरोते हुए अपना सारा वज़न उसके शरीर पर डाल दिया था.. रसिक और वैशाली के होंठ बस चार-पाँच इंच के अंतर पर थे.. वैशाली के मुलायम गुलाबी होंठों को अपना बनाने के इरादे से रसिक ने अपने खुरदरे काले होंठों से उसे चूम लिया.. और अनुभवहीनता से चूसने लगा.. वो ऐसे चूम रहा था जैसे पुंगी बजा रहा हो..

रसिक के चूमने के इस तरीके पर वैशाली को हंसी आ गई.. पर वो हंसी ज्यादा देर तक टिकी नहीं.. क्योंकि रसिक को किस करना आता नहीं था और वो खुद भी यह जानता था.. अब तक उसने उस क्षेत्र मे ज्यादा संशोधन किया नहीं था.. जरूरत भी नहीं पड़ी थी.. जितनी औरतों से उसका पाला पड़ा था उन्हें चूमने से ज्यादा उसके लंड से चुदने में ज्यादा दिलचस्पी थी.. उसने एक विशेष इरादे से वैशाली को किस किया था.. जो वैशाली को जल्दी ही समझ आने वाला था..

वैशाली की चूत के बाहर जो आधा लंड घुसना बाकी था.. उसे एक जबरदस्त धक्का देते हुए अंदर डालने के बाद.. वैशाली जोर से चीख न सकें इसलिए रसिक ने उसके मुंह को पकड़कर.. वैशाली के चूतड़ों के नीचे सपोर्ट देने के लिए रखे अपने दोनों हाथों को छोड़ दिया.. वैशाली के भारी शरीर का वज़न लंड पर पड़ते ही.. लंड का चार से पाँच इंच हिस्सा अंदर घुस गया.. !!!!!

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वैशाली ऐसे फड़फड़ाते हुए तड़पने लगी जैसे मछली पानी से बाहर निकल ने पर फड़फड़ाती है.. रसिक की बाहों से छूटने के लिए जद्दोजहत करने लगी.. पर चूत के अंदर लंड.. नश्तर की तरह घुसे हुए उसे बहुत दर्द दे रहा था.. असह्य पीड़ा से कराहते हुए वैशली जरा सी भी हलचल करती तो उसका दर्द और बढ़ रहा था.. इसलिए अब वो हिल भी नहीं पा रही थी.. इसलिए वैशाली ने रसिक के बालों को ताकत पूर्वक पकड़कर लीप किस तोड़ दी और रसिक के कंधे पर सिर रखकर.. फुटफुटकर रोने लगी.. !!!

"ओह्ह... रसिक... मैं मर जाऊँगी..मुझे नहीं कराना.. प्लीज.. बाहर निकाल.. बहोत दर्द हो रहा है.. कविता यार.. जरा समझा रसिक को.. !!"

कविता खटिया पर बैठे बैठे एक लकड़ी की मदद से आग के अंदर लकड़ियों को सही कर रही थी.. बड़े ही आराम से उसने कहा "तुझे ही बड़ा शौक था उसका लेने का.. अब अपनी सारी तमन्ना पूरी कर.. !!"

"नहीं नहीं.. रसिक, आज नहीं.. फिर कभी जरूर करेंगे.. आज मुझे माफ कर.. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. फट गई है मेरी.. मेरे शरीर के बीच से दो टुकड़े हो जाएंगे ऐसा लग रहा है मुझे.. प्लीज" वैशाली ने दर्द भरी विनती से रसिक और उत्तेजित हो गया.. उसने वैशाली को कविता के बगल मे.. खटिया पर लेटा दिया.. और उसकी दोनों टांगों को फैलाकर कविता के स्तनों को दबाने लगा और बोला "भाभी, आप इसकी दोनों टांगों को चौड़ा पकड़ रखिए.. आज तो वैशाली को पूरा मज़ा देकर ही दम लूँगा.. "


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बड़ी ही स्फूर्ति से कविता खड़ी हो गई और वैशाली की दोनों टांगों को पकड़कर चौड़ा कर दिया.. पर ऐसा करते वक्त जांघों के बीच झूल रहे मस्त लंड को पकड़कर अपने मन की मुराद पूरा करना भूली नहीं.. वो भले ही चूत मे लेने के लिए समर्थ नहीं थी.. पर इस मन-लुभावन लंड को पसंद तो करने लगी थी.. कविता का हाथ लंड को छूते ही.. जैसे नेवले को देखकर सांप सचेत हो जाता है.. वैसे ही रसिक का लंड ऊपर होकर आसपास देखने लगा

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"ओह् भेनचोद... भाभी, तेरे हाथ मे पता नहीं कौन सा जादू है.. हाथ लगते ही मेरा उछलने लगता है.. आह्ह भाभी, थोड़ा सहलाओ इसे.. आह आह मज़ा आ रहा है.. थोड़ा सा चूस भी ले मेरी रानी.. !!" आज पहली बार रसिक ने उसे "आप" के बदले "तू" कहकर संबोधित किया था.. कविता की प्यारी सी चूत मे जबरदस्त खुजली होने लगी..

तभी रसिक ने कविता को धक्का देकर वैशाली के बगल मे सुला दिया.. और रसिक उन दोनों के बदन पर छा गया.. भले ही अब तक एक भी चूत मे लंड घुस नहीं सका था.. पर रसिक के विशाल शरीर के तले दोनों लड़कियां ढँक गई थी.. वैशाली और कविता के स्तनों की हालत दयनीय थी.. मसल मसलकर रसिक ने स्तनों के आकार बदल दिया था.. उनके कोमल बदनो को कुचलते हुए.. अपने शरीर का तमाम वज़न उसने इन दोनों पर डाल दिया..

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बारी बारी से दोनों के गालों को चूम रहा था रसिक.. वो दोनों के स्तनों को चूस रहा था.. जब वैशाली के स्तन को चूसता तब कविता के स्तन को मसलता.. उसके मर्दाना स्पर्श से दोनों कामुक सिसकियाँ निकालने लगी.. लंड बाहर निकल जाने से वैशाली का दर्द भी गायब हो चुका था.. अब वो नए दर्द के लिए तड़पने लगी थी

घनघोर अंधेरा.. कड़ाके की सर्दी... सुमसान खेत.. बीच मे जल रही आग.. पास पड़ी खटिया पर लेटी हुई.. दो अति सुंदर नग्न सुंदरियाँ.. और उनके ऊपर मंडरा रहा हेवान जैसा रसिक.. बड़ी ही अद्भुत रात थी ये कविता और वैशाली के लिए.. दोनों सहेलियाँ इतनी कामुक हो गई थी अब उन्हें रसिक के छूने से कोई संकोच नहीं हो रहा था.. जो कविता रसिक से नफरत करती थी वो उसकी मर्दानगी को सलाम करने लगी थी..

रसिक का खड़ा लंड कविता के पेट और नाभि पर चुभ रहा था.. और उसे बेहद मज़ा आ रहा था.. वैशाली इतनी उत्तेजित थी की रसिक के शरीर को कविता के ऊपर से खींचकर अपने ऊपर लेने की कोशिश कर रही थी.. रसिक के स्वागत के लिए उसने अपनी जांघें खोल रखी थी.. वैशाली का आमंत्रण समझ गया रसिक.. और कविता के ऊपर से सरककर वैशाली के शरीर के ऊपर छा गया..

वैशाली की दोनों जांघों के बीच बैठकर.. रसिक का लोडा वैशाली की चूत ढूंढकर.. बड़े ही आराम से आधा अंदर उतर गया.. वैशाली की आँखों मे मोटे लंड-प्रवेश का जबरदस्त सुरूर छाने लगा था.. रसिक के काले चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए वो उसके कंधों पर काटने लगी



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बगल मे लेटी कविता खुद ही अपनी चूत सहलाते हुए रसिक के कूल्हे और पीठ पर हाथ सहला रही थी.. और आश्चर्य भरी नज़रों से वैशाली के इस अप्रतिम साहस को देख रही थी.. एक पल के लिए उसे ऐसा मन हुआ की वो वैशाली को हटाकर खुद रसिक के नीचे लेट जाए.. जो होगा फिर देखा जाएगा.. पर दूसरे ही पल.. वैशाली की दर्द-सभर चीखें याद आ गई और उसका हौसला पस्त हो गया.. !!

थोड़ी देर पहले रसिक ने जितना लंड वैशाली की चूत मे डाला था, उतना तो इस बार आसानी से चला गया.. पर लंड का बाकी हिस्सा अंदर घुसने का नाम ही नहीं ले रहा था.. रसिक ने अब बाकी का लंड, किसी भी सूरत मे, अंदर डालने का मन बनाकर कविता से कहा "तुम इसका मुंह बंद दबाकर रखो.. मैं आखरी शॉट मारने जा रहा हूँ"

सुनते ही वैशाली की शक्ल रोने जैसी हो गई, वो बोली "नहीं रसिक.. मेरी फट जाएगी.. खून निकल जाएगा.. पूरा अंदर नहीं जाएगा.. बस जितना अंदर गया है उतना ही अंदर बाहर करते है ना.. !!! दोनों को मज़ा आएगा" अपना मुंह दबाने करीब आ रही कविता को दूर धकेलते हुए वैशाली ने कहा

कविता: "हाँ रसिक.. उसको जिस तरह करवाना हो वैसे ही करो.. जो करने मे उसे मज़ा न आए और दर्द हो.. ऐसा करने मे क्या फायदा??"

रसिक: "ठीक है भाभी.. जैसा तुम कहो.. !!"

इतना कहते हुए रसिक ने कविता का हाथ पकड़कर.. चूत से बाहर लंड के हिस्से पर रखते हुए कहा "इस आधे लंड को तुम पकड़कर रखो.. ताकि इससे ज्यादा अंदर जाए नहीं.. मैं धक्के मारना शुरू कर रहा हूँ.. वैशाली, अगर दर्द ज्यादा हो तो बता देना.. मैं पूरा बाहर निकाल दूंगा.. ठीक है.. !!"

वैशाली की चूत मे आधे घुसे लंड के बाद जो हिस्सा बाहर रह गया था, उसे मुठ्ठी मे पकड़ लिया कविता ने.. लंड के परिघ को नापते हुए कविता के रोंगटे खड़े हो गए.. इतना मोटा था की कविता अपनी हथेली से उसे पूरी तरह पकड़ भी नहीं पा रही थी..

वैशाई के भारी भरकम स्तनों को मसलते हुए.. पहले लोकल ट्रेन की गति से.. और फिर राजधानी की स्पीड से.. रसिक पेलने लगा..!! वैशाली आनंद से सराबोर हो गई.. उसके शरीर मे.. रसिक के लंड के घर्षण से एक तरह की ऐसी ऊर्जा उत्पन्न हुई की इतने भारी रसिक के नीचे दबे होने के बावजूद वो अपने चूतड़ उठाकर उछल रही थी.. रसिक को भी बहोत मज़ा आ रहा था.. बड़ी उम्र की.. फैले हुए भोसड़ों वाली औरतों के मुकाबले.. वैशाली की चूत तो काफी टाइट थी.. वो सिसकते हुए वैशाली की जवानी को रौंदने लगा..

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रसिक ने धक्के लगाने की गति को और तेज कर दिया.. उसके हेवानी धक्कों की वजह से हुआ यह की.. कविता का हाथ उसके लंड से छूट गया.. जो स्टापर का काम कर रहा था.. चूत के अंदर जाने का जो तय नाप था.. वो अब नहीं रहा.. और लंड पूरा अंदर घुस गया.. और वैशाली की फिर से चीख निकल गई..

पर अब रसिक रुकने वाला नहीं था.. लगभग पाँच मिनट की जंगली चुदाई के बाद वैशाली का शरीर ढीला पड़ गया और वो रसिक के बदन से लिपट पड़ी.. "आह आह रसिक.. आह्ह आह्ह ओह्ह मैं गई अब... ऊँहह.. आह्ह.. !!!" कहते हुए वैशाली की चूत का रस झड़ गया.. इस अनोखे स्खलन को कविता बड़े ही करीब से देख रही थी

रसिक के लंड को पता चल गया की इस युद्ध मे उसकी भव्य विजय हुई है.. अब बिना एक पल का इंतज़ार कीये रसिक ने वैशाली की चूत से लंड बाहर निकाला और उसके शरीर के ऊपर से खड़ा हो गया.. हल्का सा सरककर वो कविता के ऊपर चढ़ गया.. उससे पहले की कविता को सोच या समझ पाती.. रसिक ने अपने हाथ से लंड के सुपाड़े को कविता की फुलझड़ी पर रगड़ना शुरू कर दिया.. रसिक की इस हरकत को देखकर ही कविता कांप उठी.. उसने हाथ जोड़ दीये

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कविता: "नहीं नहीं रसिक.. वैशाली की बात अलग है.. मेरे अंदर डालने की कोशिश भी की तो मेरी जान निकल जाएगी"

रसिक: "तुम चिंता मत करो भाभी.. अंदर नहीं डालूँगा.. मुझे पता है की अंदर जाएगा ही नहीं.. इतनी संकरी है आपकी फुद्दी.. जहां मेरी उंगली भी मुश्किल से घुस पाती हो वहाँ ये डंडा तो जाने से रहा.. मैं तो बस ऊपर ऊपर से रगड़कर आपको मज़ा देना चाहता हूँ.. देखना अभी कितना मज़ा आता है" कहते हुए रसिक कविता के गाल को चूमता हुआ उसके होंठों को चूसकर.. कविता की क्लिटोरिस को अपने खूंखार सुपाड़े से घिसने लगा.. आनंद से फड़फड़ाने लगी कविता..

बेहद उत्तेजित होकर कविता ने कहा "बहुत मज़ा आ रहा है रसिक.. एक बार मेरी चाटो ना.. !!"

रसिक बड़ी ही सावधानी से एक एक कदम आगे बढ़ रहा था.. वो ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता थी जिससे कविता नाराज हो.. वो खड़ा हो गया.. कविता के पूरे शरीर को सहलाते हुए पलट गया.. कविता के मुख की तरफ अपना लंड सेट करके वो उसके ऊपर लेट गया.. कविता के चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर खिलौने की तरह ऊपर उठाते हुए वो चूत चाटने लगा

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"आह्ह रसिक.. ओह ओह्ह.. " कविता ने सिसकने के लिए अपना मुंह खोला और तभी रसिक ने अपना लंड उसके होंठों के बीच दबाकर उसका मुंह बंद कर दिया.. बिना किसी घिन के रसिक का लंड पकड़कर बड़े ही प्रेम से चूसते हुए कविता ने अपना पूरा शरीर रसिक को सौंप दिया..

रसिक ने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था कविता भाभी उसका लंड चुसेगी.. अपने बबले दबाने देगी.. गुलाब की पंखुड़ियों जैसी उसकी चूत चाटने देगी..!!

वैशाली रसिक को कविता की चूत का रस चाटते हुए देखती रही और मन ही मन सोचने लगी "मम्मी या अनुमौसी की कोई गलती नहीं है.. रसिक है ही ऐसा की कोई भी औरत उसके नीचे सोने के लिए बेताब हो जाए.. जैसे मैं और कविता सुबह सुबह दूध लेते वक्त रसिक के साथ मस्ती कर रहे थे वैसे मम्मी भी करती ही होगी.. !! और कविता का कहना था की उसने मम्मी को रसिक के साथ यह सब करते हुए काफी बार देखा है.. !! इसका मतलब यह हुआ की मम्मी अभी भी रसिक के साथ ये सब करती होगी...?? जरूर करती होगी.. ऐसे लंड को भला कौन छोड़ेगा.. !!

कविता अपनी उत्तेजना के आखरी पड़ाव पर पहुँच चुकी थी.. और इस वक्त वो इतनी बेकाबू हो गई थी की रसिक के लंड को मुंह मे आधा लेकर वो पॉर्न फिल्मों की राँडों की तरह चूसने लगी.. रसिक भी सिसकियाँ भरते हुए कविता के मुंह से अपने लंड को निकालकर उसी अवस्था मे मुठ्ठी से पकड़कर जबरदस्त स्पीड से हिलाने लगा.. फांसी की सजा हुए कैदी की जैसे आखिरी इच्छा पूरी की जाती है वैसे रसिक अपने लंड को अंतिम सत्य के लिए लयबद्ध तरीके से हिला रहा था..

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वैशाली कभी उसके हाथ के डोलों को देखती.. तो कभी उसकी मुठ्ठी मे आगे पीछे होते सुपाड़े को.. !! रसिक के चौड़े कंधे और बड़ी लाल आँखें रात के अंधेरे मे बेहद डरावनी लग रही थी..

"आह्ह आह्ह भाभी... आह.. !!" झटके खाते हुए रसिक का लंड अपना मलाईदार वीर्य स्खलित करने लगा.. दो फुट दूर बैठी वैशाली के गूँदाज बबलों पर वीर्य की पिचकारी जा गिरी.. दो तीन और पिचकारियों ने कविता के सुंदर स्तनों को भी पावन कर दिया.. लस्सेदार वीर्य को अपनी छाती पर मलने के बाद कविता के स्तन, अंधेरी रात मे तारों की तरह चमक रहे थे..

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"वाह, यार रसिक, मज़ा आ गया.. तू सही मे असली वाला मर्द है.. तेरे बारे मे जितना कुछ सुना था.. उससे कई ज्यादा निकला.. दिल खुश हो गया.. कविता, अब हम चलें?" हांफते हुए वैशाली ने कविता को मदहोशी से होश मे लाने की कोशिश करते हुए कहा

कविता अब भी इस दमदार चूत चटाई के नशे मे ही थी.. उसकी ढली हुई आँखें, बड़ी मुश्किल से उठाते हुए उसने कहा " जाना ही पड़ेगा क्या.. !!"

थोड़ी देर के लिए दोनों रसिक की छाती को तकिया बनाकर लेटे रहे.. और आराम करने के बाद कपड़े पहनकर निकल गए..


रात के साढ़े बारह बज चुके थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!
बहुत ही कामोत्तेजक वर्णन

दो बातें इस प्रसंग में बहुत ही अच्छी लगीं। भाषा तो आपकी अलंकारिक है ही, अलंकार अपने नाम के अनुसार भाषा के आभूषण हैं, चमक दमक के साथ सौंदर्य श्री में वृद्धि करते हैं, पर आपकी उपमाएं एक तो प्रसंग के अनुकूल हैं दूसरे एकदम ताज़ी टटकी, किसी नए सिक्के की चमक और नई नोट की कड़क उनमे हैं।

उसके साथ ही कुछ वन लाइनर जैसे उत्तेजना इंसान को साहसिक बना देती है। या, अपनी हवस को संतुष्ट करने के लिए इंसान बड़ा से बड़ा जोखिम उठाने के लिए तैयार हो जाता है।

और उसके साथ ही मंज़रकशी, दृश्य का चित्र खींचने की कला भी अद्भुत है,घनघोर अंधेरा.. कड़ाके की सर्दी... सुमसान खेत.. बीच मे जल रही आग.. पास पड़ी खटिया पर लेटी हुई.. दो अति सुंदर नग्न सुंदरियाँ.. और उनके ऊपर मंडरा रहा हेवान जैसा रसिक..

बहुत ही बढ़िया पोस्ट

:applause: :applause:
 

vakharia

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बहुत ही कामोत्तेजक वर्णन

दो बातें इस प्रसंग में बहुत ही अच्छी लगीं। भाषा तो आपकी अलंकारिक है ही, अलंकार अपने नाम के अनुसार भाषा के आभूषण हैं, चमक दमक के साथ सौंदर्य श्री में वृद्धि करते हैं, पर आपकी उपमाएं एक तो प्रसंग के अनुकूल हैं दूसरे एकदम ताज़ी टटकी, किसी नए सिक्के की चमक और नई नोट की कड़क उनमे हैं।

उसके साथ ही कुछ वन लाइनर जैसे उत्तेजना इंसान को साहसिक बना देती है। या, अपनी हवस को संतुष्ट करने के लिए इंसान बड़ा से बड़ा जोखिम उठाने के लिए तैयार हो जाता है।

और उसके साथ ही मंज़रकशी, दृश्य का चित्र खींचने की कला भी अद्भुत है,घनघोर अंधेरा.. कड़ाके की सर्दी... सुमसान खेत.. बीच मे जल रही आग.. पास पड़ी खटिया पर लेटी हुई.. दो अति सुंदर नग्न सुंदरियाँ.. और उनके ऊपर मंडरा रहा हेवान जैसा रसिक..

बहुत ही बढ़िया पोस्ट

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komaalrani जी,

आपका इस प्रतिक्रिया का दिल से आभारी हूँ.. आपने मेरी कहानी को न केवल ध्यानपूर्वक पढ़ा, बल्कि उसकी विश्लेषणात्मक दृष्टि से सराहना की, जो मेरे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है.. आपके शब्दों में जो गहराई और सूक्ष्मता है, वह मुझे अपने लेखन में नित नए आयाम जोड़ने की प्रेरणा देती है..

आपने जिस तरह से मेरी अलंकारिक भाषा और उपमाओं की ताजगी को महसूस किया, वह मेरे लिए अत्यंत सम्मान की बात है.. साथ ही, आपके द्वारा उद्धृत वन लाइनर्स और दृश्य चित्रण पर जो ध्यान आकर्षित किया, वह मुझे एक लेखक के रूप में अपने प्रयासों की सार्थकता का एहसास कराता है.. हिन्दी मेरी मातृभाषा न होने के कारण, मैं आपके जितनी सहजता से काफी अलंकार और वाक्यांश का उपयोग करने में अब भी कठिनाइयों का सामना करता हूँ.. पर आपकी इस प्रतिक्रिया से, उस कला को थोड़ा ओर निखारने का यत्न जरूर करूंगा..

सच कहूँ तो, आपके सामने, मैं अभी भी लेखन की यात्रा के शुरुआती चरणों में ही हूँ.. आपकी इस समीक्षा ने मुझे आगे और बेहतर करने की उत्साहवर्धक दिशा दी है.. आपका यह ध्यान और प्रेम मेरी लेखनी के प्रति सबसे बड़ा स्नेह है..

सादर

वखारिया 🙏
 

komaalrani

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komaalrani जी,

आपका इस प्रतिक्रिया का दिल से आभारी हूँ.. आपने मेरी कहानी को न केवल ध्यानपूर्वक पढ़ा, बल्कि उसकी विश्लेषणात्मक दृष्टि से सराहना की, जो मेरे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है.. आपके शब्दों में जो गहराई और सूक्ष्मता है, वह मुझे अपने लेखन में नित नए आयाम जोड़ने की प्रेरणा देती है..

आपने जिस तरह से मेरी अलंकारिक भाषा और उपमाओं की ताजगी को महसूस किया, वह मेरे लिए अत्यंत सम्मान की बात है.. साथ ही, आपके द्वारा उद्धृत वन लाइनर्स और दृश्य चित्रण पर जो ध्यान आकर्षित किया, वह मुझे एक लेखक के रूप में अपने प्रयासों की सार्थकता का एहसास कराता है.. हिन्दी मेरी मातृभाषा न होने के कारण, मैं आपके जितनी सहजता से काफी अलंकार और वाक्यांश का उपयोग करने में अब भी कठिनाइयों का सामना करता हूँ.. पर आपकी इस प्रतिक्रिया से, उस कला को थोड़ा ओर निखारने का यत्न जरूर करूंगा..

सच कहूँ तो, आपके सामने, मैं अभी भी लेखन की यात्रा के शुरुआती चरणों में ही हूँ.. आपकी इस समीक्षा ने मुझे आगे और बेहतर करने की उत्साहवर्धक दिशा दी है.. आपका यह ध्यान और प्रेम मेरी लेखनी के प्रति सबसे बड़ा स्नेह है..

सादर


वखारिया 🙏
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vakharia

Supreme
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रात के साढ़े बारह बजे थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!

"बाप रे... मम्मी पापा घर आ गए.. अब क्या करेंगे कविता?" वैशाली के होश उड़ गए थे

पर कविता के चेहरे पर जरा सा भी टेंशन नहीं था

कविता: "डर क्यों रही है?? केह देंगे की मूवी देखने गए थे.. !!"

वैशाली को यह बहाना दिमाग मे सेट हो गया.. शीला-मदन को जगाना न पड़े, इसलिए वह दोनों कविता के पुराने घर मे ही, बाहों मे बाहें डालकर सो गए..

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सुबह पाँच बजे कविता की आँख खुल गई.. तभी उसने रसिक की सायकल की घंटी सुनी.. रोमांचित होते हुए उसने वैशाली की निप्पल पर हल्के से काटते हुए जगाया..

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वैशाली ने कहा "कविता, मुझे मम्मी और रसिक का रोमांस देखना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. !!"

कविता: "मैं क्या सेटिंग करूँ?? तेरी मम्मी को जाकर ये कहूँ की वैशाली को देखना है इसलिए आप रसिक का लंड चुसिए.. !! कैसी बातें कर रही है यार.. !!"

वैशाली: "अरे यार.. तू हर बार जहां खड़े रहकर उन्हें देखती थी.. वहाँ से तो मुझे उनकी लीला नजर आएगी ना.. !!"

कविता: "हाँ, वो हो सकता है.. तू बरामदे मे जाकर खड़ी हो जा.. लाइट बंद ही रखना.. और छुपकर देखेगी तो तेरे घर का दरवाजा साफ नजर आएगा.. पर संभालना.. ज्यादा उठ उठकर देखने की कोशिश मत करना.. वरना भाभी को पता चल जाएगा" कविता ने अपना फोन उठाया और किसी को फोन करने लगी

वैशाली: "इस वक्त कीसे फोन कर रही है ??"

कविता: "रसिक को.. उसे कहती हूँ की आज वो रोज के मुकाबले थोड़ा ज्यादा वक्त गुजारें भाभी के साथ.. ताकि हम दोनों को ठीक से देखने का मौका मिलें"

वैशाली: "अरे हाँ.. ये आइडिया अच्छा है.. मैं वहाँ जाकर खड़ी रहती हूँ.. तू भी जल्दी आ जाना.. !!"

वैशाली शॉल ओढ़कर बरामदे मे पहुँच गई और ऐसा एंगल सेट कर खड़ी रही जिससे की उसे अपने घर का दरवाजा नजर आए.. कविता भी उसके पीछे पीछे आकर खड़ी हो गई.. और वैशाली की शॉल मे घुसकर.. उसके जिस्म की गर्मी से सर्दी भगाने की कोशिश करते हुए, सामने नजर दिखने का इंतज़ार करने लगी

सर्दी उड़ाने के लिए.. और थोड़ी देर मे शुरू होने वाले पिक्चर की उत्तेजना मे.. वैशाली ने कविता के स्तनों को शॉल के अंदर मसलना शुरू कर दिया.. बीच बीच मे वह दोनों एक दूसरे के लिप्स भी चूम लेते.. नोबत यहाँ तक आ गई की दोनों एक दूसरे की शॉर्ट्स मे उँगलियाँ डालकर.. उनकी चूतों को उंगली भी करने लगी थी..

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तभी रसिक ने शीला के घर का लोहे का दरवाजा खोला और अंदर एंट्री मारी..

"देख देख वो आ गया.. यार, उसके डोलों पर तो मेरा दिल आ गया है.. !!" वैशाली ने सिसकियाँ भरते हुए कविता के शरीर को इसकी सजा दी

रसिक कोई गीत गुनगुनाते हुए डोरबेल बजाकर खड़ा था.. दरवाजा खुलने तक वो अपना लंड सहलाकर उसे भरोसा दिला रहा था की सुबह की पहली खुराक अब मिलने ही वाली है.. !! कविता और वैशाली, रसिक को उसका लंड मसलते हुए देखकर आहें भरती रही..!!

थोड़ी देर बार शीला ने दरवाजा खोला.. और इससे पहले की कोई कुछ भी सोच या समझ पाता.. उसने रसिक को गिरहबान से पकड़ा और उसे अंदर खींच लिया..

दरवाजा तो अब भी खुला ही था लेकिन रसिक की आगे पीछे हो रही गांड के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था.. यह देख कविता ने अंदाजा लगाया "लगता है भाभी उसका चूस रही है"

"यार, मम्मी तो नजर ही नहीं आ रही.. कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा" वैशाली ने जवाब दिया.. दोनों निराश हो गई..

कविता वैशाली के कान मे फुसफुसाई.. "रसिक को मैंने फोन किया था इसलिए वो कुछ न कुछ तो खेल करेगा ही, हमें दिखाने के लिए.. ये तो भाभी ने उसे अंदर खींच लिया इसलिए कुछ दिखा नहीं.. !!"

वैशाली: "पर क्या सच मे मम्मी ने उसका चूसा होगा?? मुझे तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कविता" अपनी माँ की वकालत करते हुए वैशाली ने कहा

दोनों की गुसपुस चल रही थी तभी कविता ने वैशाली को उसके घर की तरफ देखने का इशारा किया.. वैशाली ने वहाँ देखा और स्तब्ध हो गई.. रसिक शीला को अपनी बाहों मे जकड़कर खड़ा था और शीला उसकी छातियों पर मुक्के मारकर छूटने का प्रयत्न कर रही थी.. रसिक शीला को खींचकर बाहर तक ले आया.. तब तक शीला ने अपने आप को रसिक की गिरफ्त से छुड़ाया और घर के अंदर चली गई.. रसिक भी सायकल ले कर निकल गया

कविता और वैशाली बेडरूम मे आ गए.. कविता ने शॉल हटाकर बेड पर फेंकी.. थोड़ी देर पहले देखे द्रश्य के कारण वैसे भी वो गरम तो हो ही चुकी थी

वैशाली: "कविता, तूने अपनी सास को रसिक से चुदवाते अपनी आँखों से देखा था क्या.. ??"

कविता: "अरे, इसी बिस्तर पर मैं लेटी थी और मुझ से करीब दो फुट दूर ही रसिक ने मेरी सास को घोड़ी बनाकर पेल दिया था.. उससे पहले मम्मी जी ने बड़ी देर तक उसका लोडा चूसा भी था.. और वैशाली, रसिक का लंड लेते वक्त तुझे कितना दर्द हुआ था, पता है ना.. ! पर मेरी सास की गुफा मे रसिक का लंड ऐसे घुस रहा था जैसे मक्खन मे छुरी.. मम्मी जी तो रसिक के मूसल पर फिदा हो गई थी.. मैं सोने का नाटक करते हुए.. आधी खुली आँखों से रसिक के लंड को मम्मी जी की चूत मे गायब होते हुए देख रही थी.. इतना ताज्जुब हो रहा था मुझे.. !! इतनी आसानी से वो इतना बड़ा लंड ले पा रही थी..!!"

वैशाली: "जाहीर सी बात है कविता.. वो बूढ़ी है इसलिए उनकी चूत एकदम ढीली-ढाली हो गई होगी.. तभी आसानी से वो रसिक का ले पा रही थी"

दोनों बातें कर रहे थे.. तभी घर की डोरबेल बजी.. शीला दोनों के लिए चाय लेकर आई थी.. तीनों चाय पीते पीते बातें करने लगी

शीला: "कल कहाँ गई थी तुम दोनों??"

वैशाली: "हम दोनों अकेले बोर हो रही थी.. तो मूवी देखने चली गई थी" यह सुनकर कविता अपने चेहरे के डरे हुए भाव न दिखे इसलिए मुंह छुपा रही थी

शीला: "अच्छा किया.. वैसे कौनसी मूवी देखने गई थी?"

कविता और वैशाली दोनों एक दूसरे की तरफ देखने लगी..

वैशाली: "साउथ का मूवी था मम्मी.. !!"

शीला: "कैसा लगा? मज़ा आया?"

कविता: "हाँ भाभी.. मस्त मूवी था.. बहुत मज़ा आया"

शीला: "याद है कविता?? हम एक बार साथ मूवी देखने गए थे.. पीयूष के साथ.. तब भी कितना मज़ा किया था.. !!"

कविता शरमा गई.. उसने वैशाली को यह बात बताई हुई थी.. पर शीला अचानक यह बात निकालेगी उसका उसे अंदाजा नहीं था

कविता: "हाँ भाभी.. वो मूवी तो मैं कभी नहीं भूलूँगी"

वैशाली: "क्यों?? ऐसा क्या खास था मूवी मे?"

कविता: "मूवी तो ठीकठाक ही थी.. पर हमने बहोत मजे कीये थे.. हैं ना भाभी.. !!"

वैशाली समझ गई और आगे कुछ बोली नहीं.. सिर्फ कविता को कुहनी मारकर चिढ़ाया

शीला: "देख कविता.. तू हमारे बुलाने पर आई, वो बहोत अच्छा किया.. ऐसे ही वैशाली की शादी से पहले भी तू आ जाना.. और अब मौसम की शादी भी कोई अच्छा सा लड़का देखकर कर ही दो.. सुबोधकांत की अंतिम इच्छा भी पूरी हो जाए और एक जिम्मेदारी भी खत्म हो"

कविता: "अरे हाँ भाभी.. मैं बताना भूल गई.. मौसम की बात चलाई है हमने एक लड़के के साथ.. हमारी ऑफिस मे ही काम करता है.. बहुत ही होनहार लड़का है और मौसम को पसंद भी है.. बस लड़के वालों की हाँ आने की देर है"

वैशाली: "जवाब हाँ ही होगा.. मौसम को भला कौन मना करेगा?"

कविता: "वैशाली, मैं आज दोपहर को घर के लिए निकल जाऊँगी.. और तेरी शादी से पहले हम सब आ जाएंगे"

वैशाली: "वो तो आना ही पड़ेगा ना.. एक हफ्ते पहले से आ जाना.. सारा काम तुझे और अनुमौसी को ही संभालना होगा.. "

शीला: "चलो लड़कियों.. सात बज रहे है.. नहा-धो कर तैयार हो जाओ.. फिर हमें भी शॉपिंग करने निकलना है:

शीला और मदन तैयार होकर वैशाली की शादी की शॉपिंग करने निकल गए.. बाहर रोड पर जगह जगह "सिंघम अगैन" के पोस्टर्स लगे हुए थे..

यह देखकर शीला ने कहा "मदन, मुझे यह मूवी देखना है.. सिंघम के पहले वाले मूवीज भी बड़े मजेदार थे.. चलते है देखने"

मदन: "अरे यार, पहले बताना चाहिए था तुझे.. राजेश तो पिछले हफ्ते ही बोल रहा था की हम चारों यह वाला मूवी देखने चले.. पर ये शॉपिंग के चक्कर मे, मैं तुझे बताना ही भूल गया.. फिर मैंने सोचा, की अभी मूवी नई नई है, भीड़ बहुत ज्यादा होगी.. थोड़ा सा रश कम हो, फिर चलते है.. बता कब चलना है? राजेश को भी बोल देता हूँ"

शीला: "अरे मदन.. वो भूलभुलैया-3 भी तो आई है ना.. !! वो कौन से मल्टीप्लेक्स मे लगी है?"

मदन: "यार शीला.. तू अखबार पढ़ती भी है या नहीं?? वो नए कमिश्नर ने फायर सैफ्टी के चक्कर मे, सारे मल्टीप्लेक्स बंद कर रखे है.. बस ये एक वाला ही खुला है.. और उसमे सिंघम चल रहा है"

शीला के दिमाग मे घंटियाँ बजने लगी.. वैशाली और कविता तो बता रहे थे की कोई साउथ का मूवी देखकर आए..!!!! और यहाँ तो सिंघम अगैन चल रहा है.. !! उसका मतलब ये हुआ की दोनों झूठ बोल रही थी.. तो फिर इतनी रात गए दोनों कहाँ गई होगी?? रात के साढ़े बारह बजे तक दो जवान लड़कियां झूठ बोलकर बाहर अकेली घूम रही हो तो यह जरूर चिंता का विषय है.. दोनों ने जरूर कुछ न कुछ गुल खिलाए होंगे

पीयूष का फोन आ गया था.. वो बेंगलोर से लौट रहा था.. कविता घर वापिस लौटेने के लिए तैयार हो गई.. ब्लू कलर का स्किन-टाइट जीन्स और लाइट ग्रीन रंग का टॉप के ऊपर सन-ग्लास पहन कर वो अपनी गाड़ी लेकर निकल पड़ी.. दोपहर के दो बज रहे थे.. अंधेरा होने से पहले वो आराम से अपने शहर पहुँच जाएगी

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हाइवे के ऊपर ५० की स्पीड से चल रही गाड़ी.. एक चौराहे पर आकर अचानक रोक दी कविता ने... मैन रोड से अंदर कच्ची सड़क पर ले जाकर उसने गाड़ी एक जगह रोक दी.. और फिर चलते चलते अंदर की तरफ गई

"अरे भाभी... आप यहाँ? वो भी इस वक्त?" अचंभित होकर रसिक ने कविता को देखकर पूछा.. कविता के लिबास को देखकर.. स्तब्ध हो गया रसिक.. अप्रतिम सौन्दर्य से भरा हुआ कविता का गोरा जिस्म.. आँखें ही नहीं हट रही थी रसिक की

"तुम्हें मुझे फेशनेबल कपड़ों मे देखने की इच्छा थी ना.. इसलिए तुम्हें दिखाने आई हूँ... मैं अब घर ही जा रही थी.. देख लो मन भरकर..और आँखें सेंक लो" मुसकुराते हुए कविता ने कहा

रसिक: "ओह भाभी, कितने सुंदर लग रहे हो आप इन कपड़ों मे.. !!" टकटकी लगाकर, टाइट टॉप से दिख रहे उभारों को लार टपकाते हुए रसिक देख रहा था

कविता: "क्या देख रहे हो रसिक?? कल रात को इन्हें खोलकर तो देखा था तुमने"

रसिक: "अरे भाभी.. खुले से ज्यादा इन्हें फेशनेबल कपड़ों में ढंके हुए देखने का मज़ा ही अलग है.. आप खड़ी क्यों हो?? बैठिए ना.. !!"

कविता: "नहीं रसिक, मुझे देर हो रही है.. यहाँ से गुजर रही थी और ये चौराहे को देखा तो मुझे तुम्हारी याद आ गई.. सोचा मिलकर जाऊँ"

रसिक: "ये आपने बड़ा अच्छा किया.. वैसे रात को बहुत मज़ा आया था.. और बताइए, क्या सेवा करूँ आपकी?"

कविता: "किसी सेवा की जरूरत नहीं है.. रात को जो भी सेवा की थी तुमने वो काफी थी.. अब कुछ नहीं.. अब तुमने दिल भरकर देख लिया हो तो मैं चलूँ?"

रसिक: "भाभी, सिर्फ देखने की ही इजाजत है या छु भी सकता हूँ??"

कविता: "क्या रसिक तुम भी.. !! इन दोनों के पीछे ही पड़ गए हो.. मुझ से कई ज्यादा बड़े तो वैशाली के है.. वो यहीं पर है कुछ दिनों के लिए.. उसके ही छु लेना.. और वैसे शीला भाभी तो हमेशा के लिए यही पर रहेगी.. सुबह सुबह उनके पकड़ ही लिए थे न तुमने.. !!"

रसिक: "अरे वो तो आप दोनों को दिखाने के लिए मैं उन्हें पकड़कर बाहर लाया था.. आपने देखा था हम दोनों को?"

कविता: "हाँ थोड़ा थोड़ा.. जो देखना था वो तो घर के अंदर ही हुआ और वो हमें नहीं दिखा.. भाभी ने चूसा था ना तुम्हारा?"

रसिक: "वो तो हमारा रोज का है.. पर सच कहूँ तो.. आपने कल रात जैसे चूसा था ना.. आहाहाहाहा.. याद आते ही झुंझुनाहट सी होने लगती है"

कविता: "वैसे मैं पीयूष का भी ज्यादा चूसती नहीं हूँ कभी.. ये तो तुम्हें खुश करने के लिए चूस लिया था"

रसिक: "बहुत मज़ा आया था भाभी.. इतना मज़ा तो मुझे कभी किसी के साथ नहीं आया पहले"

कविता: "झूठी तारीफ़ें मत कर.. मुझे पता है.. मर्द जिनके आगोश मे होते है उनकी ऐसी ही तारीफ करते है.. सब पता है मुझे.. जब शीला भाभी पर चढ़ता होगा तुम उन्हें भी तू यही कहता होगा.. की आपके जैसा मज़ा किसी के साथ नहीं आता.. और मम्मीजी का गेम बजाते वक्त उन्हें कहता होगा की मौसी, आपके जितनी टाइट मैंने किसी की नहीं देखी.. !!"

रसिक: "ठीक कह रही हो भाभी.. पर सच्ची तारीफ और झूठी तारीफ मे कुछ तो फरक होता है..!! आप लोगों को तो सुनते ही पता चल जाता होगा.. आप जवान हो.. शीला भाभी और आपकी सास तो एक्स्पाइरी डेट का माल है.. हाँ शीला भाभी की बात अलग है.. उन्हों ने मुझे जो सुख दिया है.. वैसा तो मैं सपने मे भी नहीं सोच सकता.. लेकिन हाँ.. ये बता दूँ आपको.. आपकी सास को तो मैंने मजबूरी मे ही चोदा था.. आप तक पहुँचने के लिए.. उन्हों ने ही यह शर्त रखी थी.. फिर मैं क्या करता?? मैं तो कैसे भी आप तक पहुंचना चाहता था.. वो कहते है ना.. भूख न देखे झूठी बात.. नींद न देखें मुर्दे की खाट.. बस वही हाल था मेरा.. आपको पाने के लिए मैं उस बुढ़िया की फटी हुई गांड भी चाट गया था.. सुनिए ना भाभी... थोड़ा करीब तो आइए.. इतने दूर क्यों खड़े हो?"

कविता धीरे धीरे रसिक के करीब आकर खड़ी हो गई.. फटी आँखों से रसिक उसकी कडक जवानी को देख रहा था.. किसी पराये मर्द की हवस भरी नजर अपने जिस्म पर पड़ती देख कविता शरमा गई...

"क्या देख रहे हो रसिक?? ऐसे देख रहे हो जैसे मुझे पहली बार देखा हो" कविता ने कहा

रसिक: "भाभी, एक बार बबलें दबा लूँ.. !! सिर्फ एक बार.. ज्यादा नहीं दबाऊँगा.. इतने करीब से देखने के बाद.. मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा है.. और पता नहीं, फिर इस तरह हम कब मिल पाएंगे.. !!"

कविता: "फिर कभी देखने तो मिल जाएंगे.. हाँ, दबाने शायद ना मिलें.. !!"

रसिक: "इसीलिए तो कह रहा हूँ भाभी.. दबा लेने दीजिए प्लीज"

कविता: "कोई देख लेगा तो??"

रसिक: "अरे यहाँ कोई नहीं आता.. इतनी देर मे तो मैंने दबा भी लिए होते"

कविता: "जल्दी कर लो.. मुझे देर हो रही है"

कविता रसिक के एकदम नजदीक खड़ी हो गई.. और अपने सन-ग्लास उतारकर बोली "दबा ले रसिक.. !!"

रसिक: "ऐसे नहीं भाभी.. !!"

कविता: "फिर कैसे??"

रसिक: "गॉगल्स पहन लो भाभी... और आज आपने लाली क्यों नहीं लगाई होंठों पर? मुझे लाली लगे होंठ बहुत पसंद है"

कविता: "ध्यान से देख.. मैंने लगाई है.. पर एकदम लाइट शेड है इसलिए तुझे पता नहीं चल रहा.. " रसिक की आँखों के एकदम करीब अपने होंठ ले गई कविता

अपनी उंगली को कविता के होंठों पर फेर लिया रसिक ने.. "अरे वाह.. सच कहा आपने.. लाली तो लगाई है.. पर वो लाल रंग वाली लगाई होती तो आप और भी सुंदर लगती"

कविता ने तंग आकर कहा "अब जल्दी दबा ले.. फिर रूखी के होंठों पर लाल लिपस्टिक लगाकर पूरी रात देखते रहना.. " अपने होंठों से रसिक का हाथ हटाकर स्तनों पर रख दिया कविता ने..

रसिक उसके स्तनों को दबाता उससे पहले कविता ने रसिक के लंड की ओर इशारा करते हुए कहा "तुम तो दबा लोगे.. फिर मैं खड़े खड़े क्या करूँ? मुझे भी कुछ दबाने के लिए चाहिए"

रसिक पागल सा हो गया.. "अरे भाभी, आपका ही है.. पकड़ लीजिए.. और जो करना हो कीजिए.. !!" कहते हुए रसिक ने पाजामे से अपना गधे जैसा लंड बाहर निकालकर कविता के हाथों मे थमा दिया

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दिन के उजाले मे आज पहली बार रसिक का लंड देख रही थी कविता.. उसे देखते ही कविता जैसे खो सी गई..

बिना कविता की अनुमति लिए.. रसिक कविता के टॉप के अंदर हाथ डालने लगा.. कविता ने कोई विरोध नहीं कीया.. उसका सारा ध्यान रसिक के मजबूत लंड पर केंद्रित था.. मुठ्ठी मे पकड़कर खेलने लगी वो.. जैसे छोटा बच्चा खिलौने से खेल रहा हो.. !!

कविता ने आज बड़े ही ध्यान से रसिक के लंड का अध्ययन किया.. रसिक उसके दोनों उरोजों को ब्रा के ऊपर से पकड़र दबा रहा था.. कविता का शरीर हवस से तपने लगा.. और वो बोल उठी "ओह रसिक.. मैं गरम हो गई.. मुझे अब चाटकर ठंडी कर.. फिर मुझे जाना है.. घर पहुंचना होगा अंधेरा होने से पहले.. !!"

रसिक कविता को उठाकर, वहाँ बने छोटे से कमरे के अंदर ले गया.. फिर बाहर से.. एक हाथ से खटिया को खींचकर अंदर ले आया.. उसपर कविता को लेटाकर जीन्स की चैन पर हाथ रगड़ने लगा.. चूत के ऊपर कपड़े के दो आवरण थे.. जीन्स का और पेन्टी का.. फिर भी कविता की चूत ने रसिक के मर्दाना खुरदरे स्पर्श को अंदर से ही महसूस कर लिया.. और उसने जीन्स का बटन खोलकर चैन को सरका दिया.. और पेंट को घुटनों तक उतार भी दिया.. पेन्टी उतरते ही कविता की लाल गुलाबी चूत पर कामरस की दो बूंदें चमक रही थी.. देखकर चाटने लगा रसिक.. !! और उसकी उंगलियों से फास्ट-फिंगरिंग करते हुए कविता की बुर खोदने लगा.. कविता ने देखा.. पीयूष के लंड की साइज़ की रसिक की उँगलियाँ थी.. !!

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एक लंबी सिसकी भरते हुए अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाकर, चूत के दोनों होंठों को चौड़ा करने के बाद बोली "रसिक.. पूरी जीभ अंदर डालकर चाटो यार.. ओह्ह.. मस्त मज़ा आ रहा है.. आह्ह.. !!"

कविता को अपनी चटाई की तारीफ करता सुनकर रसिक और आक्रामक हो गया.. ऐसे पागलों की तरह उसने चाटना और उँगलियाँ डालना शुरू कर दिया.. की सिर्फ तीन-चार मिनटों मे ही कविता की चूत ने अपना शहद गिरा दिया.. और रसिक को बालों से पकड़कर अपनी चूत पर दबा दिया.. और उसके मुंह के अंदर अपना सम्पूर्ण स्खलन खाली कर दिया..

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कविता के चेहरे पर तृप्ति की चमक थी.. उसने हांफते हुए रसिक की उँगलियाँ अपने गुनगुने छेद से बाहर निकाली.. रसिक खड़ा हुआ और खटिया पर बैठ गया.. बड़ी जल्दी अपनी मुनिया की आग बुझाकर कविता खड़ी हुई और कपड़े पहनने लगी..

"रसिक, मैं अब निकलती हूँ.. बहोत देर हो गई" शर्ट के बटन बंद करते हुए कविता ने कहा

अपना लंड सहलाते हुए रसिक ने कहा "भाभी, फिर कभी मौका मिले तो रसिक को अपना रस पिलाना भूलना मत.. और हाँ, गाड़ी आराम से चलाइएगा.. चलिए, मैं आपको गाड़ी तक छोड़ दूँ"

अपने लंड को पाजामे के अंदर डालने लगा रसिक.. पर सख्त हो चुका लंड अंदर फिट ही नहीं हो रहा था..

"अरे भाभी, ये तो अब अंदर जाने से रहा.. मैं इस तरह आप के साथ नहीं चल पाऊँगा.. आप अकेले ही चले जाइए" रसिक ने लाचार होकर कहा

कविता को रसिक के प्रति प्रेम उमड़ आया.. वो चाहता तो जबरदस्ती कर खुद भी झड़ सकता था.. पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया..

वो रसिक के करीब आई और उसका लंड पकड़ते हुए बोली "जब तक इसका माल बाहर नहीं निकलेगा तब तक कैसे नरम होगा.. !! लाईये, मैं इसे ठंडा करने मे मदद करती हूँ.. "

कविता घुटनों के बल बैठ गई.. और अपनी स्टाइल मे रसिक का लंड चूसते हुए मुठियाने लगी.. कविता की हथेली का कोमल स्पर्श.. उसकी जीभ की गर्मी.. वैसे भी रसिक को कविता पर कुछ ज्यादा ही प्यार था..

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रसिक के मूसल लंड को चूसते हुए, कविता आफ़रीन हो गई और बार बार उस कडक लंड को अपने गालों पर रगड़ रही थी..

थोड़ी ही देर मे रसिक के लंड ने वीर्य-विसर्जन कर दिया.. इससे पहले की कविता उससे दूर हटती, उसके बालों से लेकर चेहरे तक सब कुछ वीर्य की पिचकारी से भर चुका था..

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"ओह्ह भाभी.. क्या गजब का माल है रे तू.. !! मज़ा आ गया.. !!"

वैसे कोई उसे माल कहकर संबोधित करें तो बड़ा ही गुस्सा आता था कविता को.. पर रसिक के मुंह से यह सुनकर उसे गर्व महसूस हुआ

रसिक अपनी साँसों को नियंत्रित कर रहा था उस वक्त कविता ने पर्स से नैप्किन निकाला और सारा वीर्य पोंछ लिया.. आखिर रसिक को गले लगाकर उसे एक जबरदस्त लिप किस देकर वो जाने के लिए तैयार हो गई.. मन ही मन वो सोच रही थी.. आह्ह, ये रसिक भी कमाल का मर्द है.. मुझे भी शीला भाभी और मम्मीजी की तरह इसने अपने रंग मे रंग ही दिया..!! एक बार तो मैं इसका लेकर ही रहूँगी.. कुछ भी हो जाए.. !!

"अब तो तुम्हारा नरम हुआ की नहीं हुआ??" कविता ने हँसते हुए कहा

"जब तक आप यहाँ खड़े हो वो नरम नहीं होगा.. देखिए ना.. अब भी सलामी दे रहा है आपको.. अब जाइए वरना मुझे फिर से आपकी बुर चाटने का मन हो जाएगा.. और फिर आज की रात आपको यहीं रुक जाना पड़ेगा" रसिक ने मुस्कुराकर अपना मूसल हिलाते हुए कहा

चूत चाटने की बात सुनकर, कविता की पुच्ची मे फिर से एक झटका सा लगा.. फिर से उसे एक और ऑर्गजम की चूल उठी.. पर अपने मन को काबू मे रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था..

"नहीं रसिक, अब तो मुझे जाना ही पड़ेगा.. चलो अब मैं निकलती हूँ" अपने मस्त मध्यम साइज़ के कूल्हें, बड़ी ही मादकता से मटकाते हुए वो खेत से चलने लगी.. ऊंची हील वाली सेंडल के कारण उसके चूतड़ कुछ ज्यादा ही थिरक रहे थे.. कविता की गोरी पतली कमर की लचक को देखते हुए अपने लंड को सहलाता रसिक.. उसे फिर से कडक कर बैठा.. अब तो उसे हिलाकर शांत करने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था

कार के पास पहुंचकर कविता ने हाथ हिलाते हुए रसिक को "बाय" कहा.. फिर गाड़ी मे बैठी और सड़क की ओर दौड़ा दी..


कविता की गाड़ी को नज़रों से ओजल होते हुए रसिक देखता रहा और मन ही मन बड़बड़ाया.. "भाभी, आज तो आपने मुझे धन्य कर दिया.. " पिछले चार-पाँच दिनों में रसिक का जीवन बेहद खुशहाल और जीवंत सा बन गया था..

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