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चलिए एक नए एपिसोड की और चलते है ............. और कहानी में आगे जान ने की कोशिश करते है ...........
अब आगे
दृश्य में बदलाब
साक्षी काम करने वाली कमरे में पहुंच चुकी थी। उसे देखकर श्रृष्टि बोलीं...साक्षी संडास में बहुत वक्त लगा दिया। क्या करने गई थीं जो इतना वक्त लग गया?
साक्षी... वहीं जो सभी करने जाते हैं।
श्रृष्टि... अच्छा, मैं तो कुछ और ही सोचा था। खैर छोड़ो चलो काम पर लगते हैं।
"हां हां करले जीतना काम करना है। तू यहां जी जान से काम कर रहीं है और वहां सर सोच रहे हैं तू गप्पे करने में मस्त हैं।" मन ही मन बोलकर काम में लग गई।
शाम को चाय के वक्त राघव उस कमरे के पास आया पर भीतर नहीं गया बहार खड़े होकर हसीं मजाक करते हुए चाय पीती हुई श्रृष्टि को कुछ वक्त तक देखता रहा फ़िर वापस जाते वक्त खुद से बोला…मुझे क्या हों गया हैं? क्यो श्रृष्टि को देखते ही मेरा दिल मचल सा उठता हैं? क्यों अलग सा अहसास मेरे दिल में जाग उठता हैं? क्यों मैं उसकी और खींचा चला आता हूं?
क्यों, क्यों और क्यो? राघव इस क्यों का जवाब ढूंढ रहा था मगर उसे मिल नहीं रहा था। यहां दिन पर दिन बीतता जा रहा था और राघव श्रृष्टि पर कोई करवाई नहीं कर रहा था जबकि साक्षी ने इस बीच मौका देखकर श्रृष्टि के खिलाफ राघव के कान कई बार भर चुकी था। मगर राघव हैं कि दर्शक बने सपेरे का खेल देख रहा था। ऐसा क्यो कर रहा था? ये तो राघव ही जानता हैं। किंतु इसका नतीजा उलट ही दिख रहा था। राघव के बेपरवाह रवैया से साक्षी हद से ज्यादा चीड़ गईं। वो श्रृष्टि के सामने अच्छे होने का ढोंग करते रहना चाहती थी और पीठ पीछे श्रृष्टि के खिलाफ राघव के कान भी भरना चाहती थी। इसलिए खुलकर सामने से कुछ कर नहीं पा रही थीं।
साक्षी की चालबाजी से अंजान श्रृष्टि ईमानदारी और लगन से काम करने में लगीं हुईं थीं। श्रृष्टि के देखा देखी साक्षी सहित बाकी साथियों को भी लगन से काम करना पड़ रहा था या यू कहूं श्रृष्टि ख़ुद भी काम कर रहीं थी और बाकियों से भी काम करवा रहीं थीं। जिसका नतीजा ये हुआ। यहां प्रोजेक्ट जो काफी समय से लटका हुआ था लगभग समाप्ति के कगार पर आ चुका था।
राघव ने श्रृष्टि को मात्र एक हफ्ता साक्षी के साथ काम करने को कहा था। मगर दो हफ्ता श्रृष्टि को साक्षी के साथ काम करते हुए बीत चुका था। जिसकी चिंता साक्षी का वजन दिन पर दिन कम करता जा रहा था मगर श्रृष्टि पर इस बात का कोई असर ही नहीं पड़ रहा था उसे तो काम से मतलब था चाहे वो साक्षी के साथ करे या किसी और के साथ करें। ऐसे में एक दिन सुबह ऑफिस आते ही राघव ने श्रृष्टि और साक्षी सहित पूरे टीम को बुलावा भेजा।
दोनों यही सोच रही होगी अब क्या हुआ सर को?
साक्षी को क्या ठंडक पहोची की आखिर उसका मुकाम आ ही गया ?
या फिर राघव खुद ही कुछ करने वाला था ?? क्यों की उसने पूरी टीम को बुलाया है ??
बने रहिये मेरे साथ अगले भाग तक !!!!!!!
जारी रहेगा...
बिलकुल सही बात है आपकी हर जगह साक्षी जैसे मिलेंगे और अगर हम दूसरी तरीके से ले तो ऐसे लोगो की जरुरत भी है क्यों कीDono hi updates ek se badhkar ek he Funlover
Har office/ghar/organization me sakshi jaise log hote he...........jo apna kaam na karke dusre ke dwara kiye gaye kaam ka credit lete he aur galti ka thikra dusre ka sar par fodte he
Raghav bhi ab sakshi ki chaal samjhne laga he............tabhi vo usko ignore kar raha he......
Keep rocking Dear
आपका बहोत बहोत धन्यवादBahut hi behtarin story … pura corporate politics ko aapne ek dum jivant andaz main bayan kar diya hai dekhte hain… shristi is trap se kaise bahar nikalti hai….
Bahut hi behtarin likh rahe ho aap…
भाग - 8
बॉस का बुलावा आए और कलीग न जाए ऐसा भाला हों सकता हैं क्या।? सभी एक के बाद एक कमरे के भीतर प्रवेश कर गए। सबसे अंत में श्रृष्टि ने कमरे के भीतर प्रवेश किया। न चाहते हुए भी राघव की निगाह एक बार फ़िर श्रृष्टि के भोला, मासूम, खिला हुआ चेहरा और लबों पर तैरती मुस्कान पर अटक गया।
निगाहें अटकाए राघव श्रृष्टि को देखने में व्यस्त था और श्रृष्टि दो चार कदम भीतर की ओर बढ़ी ही थी कि सहसा उसे आभास हुआ। उसका बॉस उसे टकटकी लगाए देख रहा हैं।
आभास होते ही श्रृष्टि के गालों पर शर्म की लाली छा गईं और मंद मंद मुस्कान से मुस्कराते हुए अपने निगाहों को नीचे झुका लिया। और अपने कपड़ो को ठीक करने लगी कही कोई चुक तो नहीं है ना| और ये हर नारी का प्राकृतिक स्वभाव है उसने अपने कपड़ो की व्यवष्ठिता कु सिनिश्चित कर लिया और ठाडा आगे बढ़ी! उधर राघव के लवों पर भी स्वतः ही मुस्कान तैर गया।
दोनों के इस बरताव पर भले ही किसी ओर की नज़र पड़ा हों चाहें न पड़ा हों लेकिन साक्षी की निगाहों से बच न सका।
राघव को द्वार की ओर टकटकी लगाए देखते हुए मुस्कुराता देखकर साक्षी ने भी अपनी निगाह उस ओर कर लिया। वहा शरमाई सी मुस्कुराती हुई श्रृष्टि, साक्षी की निगाह में आ गईं। ये देखकर मन ही मन बोलीं... तो ये बात हैं। ये श्रृष्टि तो बडी तेज निकली अभी आए हुए कुछ ही दिन हुआ हैं और देखो कैसे सर से नैन लड़ा रहीं हैं। एक मैं हूं जो कब से कोशिश कर रहीं हूं और सर है की पिघलते ही नहीं! मुज से आगे है ये श्रुष्टि और लगता है इस मामले में काभी अनुभवि भी है
दोनों के नैनों से नैनों का टकराव शायद साक्षी को हजम नहीं हुआ इसलिए मेज पर रखा फ्लॉवर पॉट को टेबल से नीचे धकेलकर गिरा दिया।
फ्लॉवर पॉट के टूटने की आवाज़ कानों को छूते ही राघव की तंद्रा टूटा और हकलताते हुए बोला... क क क्या टूटा
"टूटा तो फ्लॉवर पॉट हैं पर लगाता है किसी का कुछ ओर भी टूट गया।" यहां आवाज साक्षी की थी। जिसमे तंज का घोल शब्दो में घुला हुआ था।
कोई बात नहीं, कभी न कभी इसे टूटना ही था तो आज ही टूट गया। (फिर सामने की और देखकर बोला) अरे श्रृष्टि जी आप वहा खडी क्यों हो आगे आओ।
राघव की आवाज कानों को छूते ही श्रृष्टि की झुकी हुई निगाहें ऊपर उठा तब एक बार फ़िर से दोनों की निगाह टकरा गई। मंद मंद मुस्कान लवों पर सजाएं कुछ कदम की दुरी तय कर मेज के पास आकर खड़ी हों गईं।
राघव की निगाह जो अब तक श्रृष्टि पर टिका हुआ था। श्रृष्टि के नजदीक आते ही राघव बोला... श्रृष्टि जी आप अपना काम जिम्मेदारी से कर रहीं हों न (फ़िर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) साक्षी जरा इनके काम काज का विवरण दो आखिर पता तो चले श्रृष्टि जी जिम्मेदारी से काम कर रहीं हैं कि नहीं या फ़िर बतियाने में ही समय काट रहीं हैं।
राघव की बाते श्रृष्टि को चुभ गई। उसका असर यूं हुआ लवों से मुस्कान नदारद हों गई और खिला हुआ चेहरा बुझ सा गया।
यहाँ साक्षी का भी चेहरा उतर ही गया! बोले तो क्या बोले ?? राघव सर ने एक ऐसी गेंद डाल दी जो उसके पसीने छुडाने के लिए काफी थी ! साक्षी से जवाब देते नहीं बन रहा था। आखिर कहती भी तो क्या कहती श्रृष्टि के खिलाफ कान उसी ने भरे थे। अब उसी मुंह से श्रृष्टि का गुण गान करना था जो उससे हों नहीं रहा था। इसलिए साक्षी चुप रहीं मगर दूसरे साथियों में से एक बोला पड़ा...सर सिर्फ जिम्मेदारी कहना गलत होगा बल्की श्रृष्टि मैम बहुत ज्यादा जिम्मेदारी से काम कर रहीं हैं। इनके भीतर काम को लेकर अलग ही जज्बा और जुनून हैं। श्रृष्टि मैम जब काम करती हैं तो सूद बूद खोए इनका ध्यान सिर्फ़ काम पर ही रहता हैं। सर हम तो इनके कायल हों गए हैं।
"सर वैसे तो कहना नहीं चाहिए क्योंकि यह बात हमारे साख पर भी सवाल खड़ा करता हैं। मगर सच कहने में कोई गुरेज नहीं हैं। श्रृष्टि मैम की योग्यता अतुलनीय है। जिस प्रॉजेक्ट को हम पूर्ण नहीं कर पा रहे थे। सिर्फ़ कुछ ही दिनों में श्रृष्टि मैम के वजह से वह प्रॉजेक्ट पूर्ण होने के कगार पर पहुंच गया।" ये शब्द दूसरे सहयोगी का था।
सहयोगियों से तारीफ, जिसकी शायद ही श्रृष्टि ने उम्मीद किया था क्योंकि पहले ही दिन उन लोगों ने जो सलूक उसके साथ किया था। उसके बाद उनसे तारीफ की उम्मीद करना व्यर्थ था मगर आज उन्होंने श्रृष्टि के इस भ्रम को तोड़ दिया। जिस कारण श्रृष्टि का बुझा हुआ मुखड़ा फिर से खिल उठा।
उम्मीद तो साक्षी को भी नही था कि लंबे समय से उसके साथ काम कर रहे उसके साथीगण बस कुछ दिन श्रृष्टि के साथ काम करके उसकी मुरीद बन जायेंगे और बॉस के सामने तारीफो के पुल बांध देंगे मगर उन्होंने वहीं कहा जो सच था। और उसमे वो कुछ कर भी नहीं सकती थी! उसका पलड़ा अब दोनों तरफ था अगर श्रुष्टि के विरोध में बोलती तो वो गलत साबित होता और भुतकाल में वो जो कर चुकी थी अब वो गलत साबित हो रहा था दूसरा पलड़ा भी उसके तरफ नहीं था ! उसकी हालत ये थी की काटो तो खून ना निकले मानो की फ्रिज हो गई थी!
जिसे सुनकर राघव बोला... श्रृष्टि जी अपने मेरी धरना को गलत ठहरा दिया। अपने सिद्ध कर दिया मैंने आपको नौकरी देकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारा हैं। ( फ़िर साक्षी से मुखातिब होकर बोल) श्रृष्टि जी का रिपोर्ट कार्ड साक्षी तुमसे मांगा था। तुमने कुछ कहा नहीं मगर तुम्हारे दूसरे साथियों ने कह दिया। मुझे लगाता हैं तुम्हारा भी यहीं कहना होगा। क्यों मैं सही कह रहा हूं न?
राघव सर ने बहोत बड़ा बम साक्षी के सन्मुख फोड़ दिया अब साक्षी के पास हां कहने के अलावा दुसरा कोई रास्ता बचा ही नहीं था। इसलिए उसके मुंह से सिर्फ़ हां ही निकला इसका मतलब साक्षी की हां उसके मन से नहीं निकला था। अपितु सहयोगियों से श्रृष्टि की तारीफे सुनकर श्रृष्टि के प्रति साक्षी के मन में द्वेष पैदा हों गया।
साक्षी से हां सुनने के बाद राघव बोला... चलो अच्छा हुआ जो यहां प्रॉजेक्ट पूर्ण होने के कगार पर आ गया। श्रृष्टि जी कितने दिन और लगेंगे कुछ अंदाजा हैं?। या बता सकते हो आप ?
श्रृष्टि… सर तीन से चार दिन ओर लग जायेंगे।
"जी सर इतने दिन ओर लग जायेंगे।" सहसा सहयोगियों में से एक बोला जिसके जवाब में राघव बोला... ठीक है। उस प्रॉजेक्ट को खत्म करो फ़िर तुम सभी को मेरे और से उपहार मिलेगा और श्रृष्टि जी के लिए मेरे पास एक खाश उपहार हैं।(फ़िर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) तुम क्या कहती हो श्रृष्टि जी को खाश उपहार मिलना चाहिए की नही?
हर एक बात के लिए साक्षी को बीच में खीच लेना साक्षी को सुहा नहीं रहा था। मन ही मन वो श्रुष्टि और राघव सर दोनों को मा बाहें की दे रही थी, भीतर ही भीतर साक्षी गुस्से में खौल रहीं थीं, उबाल रहीं थी मगर विडंबना ये थी कि प्रत्यक्ष रूप से दर्शा नहीं पा रही थीं। साक्षी का यूं गुस्सा करना जायज़ नहीं था क्योंकि साक्षी सच्चाई से अवगत थीं। श्रृष्टि ने काम ही तारीफो वाला किया था। खैर साक्षी से कुछ बोला नहीं गया मगर श्रृष्टि बोलने से खुद को रोक नहीं पाई... सर अपने खास उपहार मुझे देने की बात कहा जानकार अच्छा लगा मगर मुझे लगाता हैं खास उपहार साक्षी मैम को मिलना चाहिए क्योंकि वो प्रॉजेक्ट हेड हैं और प्रॉजेक्ट पूर्ण होने का सारा श्रेय साक्षी मैम को दिया जाना चाहिए। उनके विचार, अनुभव और सुजाव से ही ये सब मुमकिन हो पाया है (वो भी तो शातिर ही थी अपनी होशियारी को बखूबी उपयोग करना जानती थी )
श्रृष्टि की ये बातें राघव सहित सभी को भा गया। एक पल को साक्षी के कानों को सुखद अनुभूति करवाया लेकिन अगले ही पल साक्षी पूर्ववत हों गई क्योंकि उसे लगा श्रृष्टि उसकी पैरवी करके उस पर कोई अहसान कर रही हैं। जो एक जूनियर से उम्मीद नहीं थी
श्रृष्टि की बाते सुनकर राघव मुस्कुरा दिया फ़िर शांत लहजे में बोला... श्रृष्टि जी आपकी सोच की मैं दाद देता हूं क्योंकि आज कल लोग बिना कुछ किए भी श्रेय लेने के ताक में रहते हैं और अपने तो श्रेय पाने लायक काम किया हैं इसलिए आप सभी के बॉस होने के नाते फैसला लेने का मै अधिकार रखता हूं। किसको क्या मिलना चाहिए ये मुझ पर छोड़ दीजिए। अब आप सभी जाइए ओर अपना काम कीजिए।
राघव के कहने पर एक एक कर सभी चलते बने सभी के जाते ही राघव एक बार फ़िर से अपने रिवोल्विंग चेयर को पीछे खिसकाकर एक पैर पर दुसरा पैर चढ़ाकर दोनों हाथों को सिर के पीछे टिकाए हाथ सहित सिर को चेयर के पुस्त से टिका लिया फ़िर रहस्यमई मुस्कान बिखेरते हुए मुस्कुराने लग गया।
अब बात ये है की आगे साक्षी क्या करेगी ? इत्निअसानी से वो पीछे हट जाए वैसी तो शायद नहीं है
उसके मन में जो श्रुष्टि के प्रति ध्वेश है वो उसे और श्रुष्टि को कहा तक ले जायेगी ????
राघव सर का ये श्रुष्टि को टिकटिकाना क्या कहता है ????
राघव का ये रहस्यमय मुश्कान का मतलब क्या समजे ?????
चलिए ये सब सवालो के जवाब हम अगले भाग में जानने की कोशिश करेंगे
बने रहिये मेरे साथ
जारी रहेगा...