भाग - 9
राघव के कहने पर एक एक कर सभी चलते बने सभी के जाते ही राघव एक बार फ़िर से अपने रिवोल्विंग चेयर को पीछे खिसकाकर एक पैर पर दुसरा पैर चढ़ाकर दोनों हाथों को सिर के पीछे टिकाए हाथ सहित सिर को चेयर के पुस्त से टिका लिया फ़िर रहस्यमई मुस्कान बिखेरते हुए मुस्कुराने लग गया।
दिन भर की कामों से निजात पाकर शाम को श्रृष्टि घर पहुंची, थकान से परिपूर्ण बेटी का चेहरा देखकर माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा जाओ कपड़े बदलकर आओ फिर तेरी सिर की मालिश करके दिन भर की थकान दूर कर देती हूं।
"बस अभी आई" बोलकर श्रृष्टि कमरे में चली गई। श्रुष्टि को ये सुजाव बचपन से ही अच्छा लगता था! मा के हाथ से मालिश वाह क्या बात है! कुछ ही देर में कपड़े बदलकर बहार आई। तब तक माताश्री कटोरी में तेल लिए मालिश की तैयारी कर चुकी थीं।
माताश्री के सामने जाकर श्रृष्टि पलथी मारकर जमीन पर बैठ गई और मताश्री तेल डालकर बालों में अच्छे से फैला दिया फ़िर.. ठप.. ठप, ठप ठपाठप, ठप ठप…
"अहा मां दर्द होता हैं।" मा से नाटक करते हुए
"उमहु रूक न मालिश वाले गाने की सज ढूंढ़ रहीं हूं।"
"उसके लिए बाध्य यंत्र बजाओ मेरा सिर क्यों बजा रहीं हो।"
"अहा तू कुछ देर चुप बैठ न"
ठप.. ठप, ठप ठपाठप, ठप ठप…
हूं हूं हूं हूं…
बम अकड बम के
मैं चम्पी करूं जमके
तो बंद अकल सबकी खुल जाये...
बम अकड बम के
मैं चम्पी करूं जमके
तो बंद अकल सबकी खुल जाये...
तन की थकन मैं दूर करूं
मन में नयी उमंग भरूं
ताक धीना धीन, ताक धीना धीन
ताक धीना धीन, दीधीन दीधीन...
बम अकड बम के
मैं चम्पी करूं जमके
तो बंद अकल सबकी खुल जाये
बम अकड बम के….
दुनिया है क्या सर्कस नया
कुछ भी नहीं जोकर है हम…
"मां रूको इससे आगे मैं गाऊंगी"
दुनिया है क्या सर्कस नया
कुछ भी नहीं जोकर है हम
तुम जो बोलो वो करके दिखाऊं
उंगली पे सारे जग को नचाऊँ
कह रहे है ज़मीन आसमान
ऐसा परिवार होगा कहा
इस घर पे मेरा
सब कुछ निसार है…
आगे के बोल मां बेटी ने साथ में गया
बम अकड बम के
मैं चम्पी करूं जमके
तो बंद अकल सबकी खुल जाये…
बूम अकड बूम के
मैं चम्पी करून जमके
तो बंद अकल सबकी खुल जाये
मालिक हो तुम….
"मां रूको ऐसे नहीं आगे का मै गाकर सुनती हूं।"
मां हो तुम, बेटी हूं मैं
इस बात की मुझको है खुशी
मां हो तुम, बेटी हूं मैं
इस बात की मुझको है खुशी
कहना मानूं सदा आपकी
खिदमत में आपकी शीश झुकाऊं
माँ ने दी है मुझे जिंदगी
मेहनत ही शौहरत हैं मेरी
ये बात आपने सिखाया
बम अकड बम के
चम्पी करो जमके
तो बंद अकल मेरी खुल जाये…
(नोट:- यहां गाना अपने जमाने का एक मशहूर गाना है जिसे समीर साहब ने लिखा। मैं इस गाने में कुछ फेर बदल किया जो कि गलत हैं इसके लिए मैं आप सभी प्रिय पाठक बंधुओं से माफी मांगती हूं।)
अंत के जितने भी बोल श्रृष्टि ने ख़ुद से बनाया फिर गाकर सुनाया उसे सुनकर माताश्री के हाथ स्वत ही रूक गए और आंखो से कुछ बूंद आंसू के मोती श्रृष्टि के सिर पर गिर गया।
माताश्री के हाथ रूकते ही अच्छी खासी चल रही मालिश में विघ्न पड़ गया। जिसका आभास होते ही श्रृष्टि बोलीं... मां रूक क्यों गईं। मालिश करो न बड़ा सकून मिल रहा था।
श्रृष्टि की आवाज कानों को छूते ही। माताश्री ने बहते आसुओं को पोछकार फिर से मालिश करने में लग गईं। कुछ देर की मालिश के बाद श्रृष्टि मां की ओर पलटी फ़िर उनके गोद में सिर रखकर बोलीं... मां आपको पता है आज ऑफिस में क्या हुआ?
"मुझे कैसे पाता चलेगा। तू ने अभी तक बताया ही नहीं।" बेटी के सिर पर हाथ फिरते हुए माताश्री बोलीं।
श्रृष्टि.. मां आप तो जानती हों पहले ही दिन मेरे सहयोगियों ने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया था लेकिन आज जब सर मेरा रिपोर्ट कार्ड जानने सभी को बुलाया तब चमत्कार हों गया सभी ने सिर्फ मेरी तारीफ़ किया। उनकी बातें सुनकर मैं हैरान रह गई।
"मेरी बेटी इतनी हुनरमंद और मेहनती हैं कि उन्हें तारीफ तो करना ही था।" शाबाशी का भाव शब्दों में घोलकर माताश्री बोलीं।
"पर मां वो साक्षी मैम मूझसे बिलकुल भी खुश नही थी। जब सर ने मुझे खास उपहार देने की बात कहीं उसके बाद मेरे सभी सहयोगियों ने मुझे बधाई दिया मगर साक्षी मैम ने कुछ भी नहीं बोला सिर्फ़ इतना ही नहीं वो दिन भर मूझसे ठीक से बात भी नहीं किया , मूझसे रूठी रूठी सी रहीं।" शिकायती लहजे में माताश्री को सारा सार सुना दिया।
"श्रृष्टि बेटा ये जो श्रृष्टि है न ये बड़ा अजीब है इसे जितना समझना चाहो उतना ही उलझा देती हैं। जैसे हाथ की पांचों उंगलियां एक बराबर नहीं होती वैसे ही सभी लोग एक जैसे नहीं होते। किसी को तुम्हारा काम पसन्द आयेगा किसी को नहीं, जिन्हे तुम्हारा काम पसन्द नहीं आ रहा है उन पर तुम्हें खास ध्यान देने की जरूरत हैं क्योंकि ऐसे लोगों के मन में तुम्हारे लिए द्वेष उत्पन्न हों जायेगा फ़िर द्वेष के चलते तुम्हें सभी के नजरों में गिराने की ताक में लगे रहेंगे।" ज्ञान का घोल बेटी को पिलाते हुए माताश्री बोलीं।
माताश्री की बातों का जवाब सिर्फ़ हां में दिया फिर कुछ देर की चुप्पी के बाद श्रृष्टि बोलीं... मां साक्षात्कार वाले दिन जिन अंकल ने मेरी मदद किया था मैं उन्हें धन्यवाद कहना चहती हूं। मगर मेरे पास उनका पता ठिकाना नहीं हैं।
"तो क्या तुम खाली हाथ धन्यवाद देने जाओगी। उन्होंने तुम पर बहुत बड़ा अहसान किया हैं। सिर्फ़ उन्हीं के कारण तुम्हें नौकरी मिली है इसलिए मुझे लगाता हैं तुम्हें खाली हाथ नहीं बल्की कुछ लेकर जाना चाहिए"
श्रृष्टि…मां मैं उनका अहसान जिंदगी भर उतार नहीं पाऊंगी फ़िर भी मैं सोच रहीं थी जब मेरी पहली सेलरी मिलेगी तब सबसे पहले उनके लिए मिठाई और एक जोड़ी पैंट शर्ट का कपड़ा लेकर जाऊं क्योंकि उस दिन मैंने देखा था उनका शार्ट कई जगह से फटा हुआ था जिसे सिल रखे थे मगर कहां जाने पर वो मिलेंगे यहीं तो पता नहीं हैं।
"पहले तुम्हें सैलरी मिल जाएं फ़िर क्या करना हैं बता दूंगी। अगर इस बीच वो दिख जाएं तो उनसे उनका पता ठिकाना या फ़िर नम्बर मांग लेना।"
"ये आपने सही कहा। अच्छा मां मैं बाल धोकर आती हूं तब तक आप कड़क चाय बना लो।"
सब मुझे ही करके देना पड़ेगा ??? क्या तुम अपनी आप कुछ नहीं कर सकती ??? एक जूठा और घिसापिटा डायलोग माताश्री ने सुनाया जो श्रुति के लिए रोज का था.
क्या करेगी ये लड़की कही जाके ?? अपने पति, बच्चे और घर को कैसे संभालेगी ???
सब जगह तेरी मा आएगी क्या ??? वो ही सब कहती हुई रसोई की तरफ चल दी!
जाते जाते श्रुष्टि के बोल मा के कर्णपटल पर पड़े
"सब से पहले शादी का कोई इरादा नहीं दूसरा अगर जाना ही हुआ तो दहेज़ में आप को लेके जाउंगी " हा हा हा हा
बने रहिए