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Romance संयोग का सुहाग [Completed]

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Nevil singh

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“क्या बेटा! अब हमको ऐसे ऐसे सरप्राइसेस दोगे?” समीर के पिता जी ने फ़ोन पर उसको कहा।

“डैडी… वो... मैं…” समीर थोड़ा अचकचा गया।

“हा हा! अरे तुम घबराओ नहीं! हमको आदेश अच्छा लगता है। उसकी दीदी भी ज़रूर अच्छी लगेगी!”

समीर मुस्कुराया।

“डैडी, इसका मतलब आप और मम्मी नाराज़ तो नहीं हैं?”

“नाराज़? ऑन द कोंट्ररी! वी आर वेरी हैप्पी! हमने तुमको हमेशा तुम्हारी खुद की पसंद की लड़की से शादी करने को एनकरेज किया है..... और आज, जब तुमने अपनी चॉइस सेलेक्ट कर ली है, तो हम तुमको सपोर्ट करेंगे! हमको बस तुम्हारी ख़ुशी चाहिए। और बेटे… एक और बात... वी आर वेरी प्राउड ऑफ़ यू!”

“थैंक यू डैडी! इट मीन्स ए लॉट कमिंग फ्रॉम यू!”

“लेकिन हाँ, बस इस बात की शिकायत रहेगी कि सब कुछ इतनी जल्दी जल्दी हो रहा है।”

“जी! वो तो है। लेकिन क्या करें! सारा इंतज़ाम तो है ही यहाँ।”

“हाँ! वो समझ रहे हैं हम दोनों! ख़ैर, मुहूर्त और कुण्डली के फेर में हम लोग नहीं पड़ते। इसलिए कोई बात नहीं! जहाँ तक रिश्तेदारों की बात है, बाद में रिसेप्शन करेंगे ही हम। इसलिए कोई प्रॉब्लम नहीं है। और हाँ, हम लोग सवेरे ही निकल पाएँगे। मन तो तुरंत ही आने का हो रहा है, लेकिन तुम्हारी मम्मी को सब इंतज़ाम करने में टाइम लगेगा।”

“जी डैडी! ठीक है। कल मिलते हैं तो आपसे और मम्मी से!”


*******************************************************************************************************


समीर के माँ बाप को थोड़ा अफ़सोस तो था - इस बात का नहीं कि वो अपनी पसंद की लड़की से शादी कर रहा है.... शादी तो खुद की पसंद की लड़की से ही करनी चाहिए - बल्कि इस बात का कि समय की कमी कुछ ऐसी थी कि अपने एकलौते लड़के की शादी के लिए जिस तरह की धूम-धाम उन्होंने सोची थी, वैसा वो कुछ भी नहीं कर पाएँगे। फिर उन्होंने सह सोच कर खुद को समझा लिया कि इस तरह के बाहरी, सामाजिक दिखावे के लिए वो अपना मन छोटा करें भी तो क्यों! शादी के लिए सबसे ज़रूरी कुछ है, तो वह है लड़का और लड़की का एक दूसरे के लिए प्रेम और आदर। बाकी किसी बात का कोई मोल थोड़े ही है! वो दोनों यह बात समझते थे, क्योंकि उन्होंने भी आर्य समाजी रीति से ही शादी करी थी। और इसको ले कर उनके माता-पिता और उनमें काफ़ी दिनों तक मन मुटाव रहा।

ऐसे में समीर के माता पिता एक दूसरे का सम्बल बने। उन्होंने कठिन श्रम से एक छोटा सा बिज़नेस जमाया, जो अब बड़ा हो चला था। उनके माता पिता और उनके बीच यह मन मुटाव, समीर के पैदा होने के बाद ही कम होना शुरू हो सका। धीरे धीरे जब घर में संपन्नता आई, तो उनके सभी रिश्तेदारों ने देखा और समझा कि एक सफ़ल वैवाहिक जीवन के लिए क्या चाहिए! ठीक वैसा ही तो अपने समीर के लिए चाहते थे। वो अपने पैरों पर खड़ा था। और आज जब उसने अपने जीवन का सबसे बड़ा निर्णय ले लिया था, तो वे उसको अपना पूरा समर्थन देना चाहते थे।
behtreen update sahiba
 
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Nevil singh

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वर्मा परिवार में शायद ही कोई उस रात सोया हो। समीर कुछ घण्टों के लिए सो तो गया, लेकिन उसकी आदत सवेरे छः बजे उठने की पड़ी हुई थी, इसलिए उठ गया।

“गुड मॉर्निंग, जीजा जी।” आदेश ने मुस्कुराते हुए कहा।

“गुड मॉर्निंग! अबे यार.... तू भी न!”

“अरे! तू मेरी दीदी से शादी करेगा, और मैं तुझे जीजा जी भी न कहूँ! वाह भई!”

“ठीक है स्साले! बाकी सब किधर हैं?”

“बाकी सारे मुस्टंडे पड़े पड़े सो रहे हैं। तू जल्दी सो गया था। तेरे सोने के दो घण्टे और बाद तक हमारी बकर चलती रही। मैं नहीं सोया, क्योंकि आज काफ़ी सारे काम निबटाने हैं। तू जल्दी से फ्रेश हो जा। तब तक अंकल ऑन्टी भी आ जाएँगे। साथ में ही ब्रेकफास्ट करेंगे आज। बढ़िया गरमा गरम कचौरियां, छोले भठूरे, और जलेबियाँ बनेंगीं। चल। टूथब्रश देता हूँ।”


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जैसे कोई स्विच ऑन ऑफ करने से बत्ती जलती बुझती है, वैसे ही वर्मा ख़ानदान का बर्ताव समीर के लिए अचानक से ही बदल गया - कल शाम तक कोई उसको जानता ही नहीं था। और आज सवेरे सभी उसके साथ आदर से बात और व्यवहार कर रहे थे। कल वो उनके लिए महज़ एक गेस्ट था, और आज वो एक ‘वी वी आई पी’ था। अचानक ही। स्विच ऑन! उठने से ले कर, और नहाने धोने तक लगभग पूरे खानदान से उसका परिचय करवाया गया। हाँ, बस मीनाक्षी ही उस सुबह नहीं दिखी।

आदेश की चचेरी बहनों ने इस बात पर अपनी ‘सालीगिरी’ दिखाते हुए उसकी खूब खिंचाई करी।

‘जीजू - आपकी नज़रें ऐसी बेकरार हो कर किसकी राह देख रही हैं?’

‘जीजू - अरे मुझको पसंद कर लेते! ऐसी क्या बुराई दिख गई मुझमें!’

‘जीजू - अभी भी टाइम है! थोड़ा ठन्डे दिमाग से सोच लीजिए। तीन सालियाँ हैं आपकी। ठोंक बजा कर देख लीजिए। ऑप्शन हैं। जल्दबाज़ी करने की ज़रुरत नहीं!”

‘ही ही ही ही’

यही सब फ़िकरे वो मुरादाबाद के प्रोफेसर को भी सुनने को मिलते, अगर उसमे थोड़ी शर्म और ग़ैरत बची रहती। लेकिन फिलहाल इन सालियों का स्नेह उसको मिल रहा था। अचानक ही। स्विच ऑन!

खैर, काफ़ी देर चलने वाले इस ‘खिंचाई समारोह’ से उसको बचाया वर्मा जी ने।

“अरे! इतनी देर से क्यों बेचारे को परेशान कर रही हो तुम सब मिल कर!”

“परेशान कहाँ, चाचा जी? हम तो बस हंसी मज़ाक कर रही हैं”

“बैठो बेटा, बैठो। तुम्हारे मम्मी डैडी बस आने ही वाले हैं। फिर साथ में बैठ कर नाश्ता कर लेंगे। उसके बाद आज के प्रोग्राम्स को डिसकस कर लेंगे।”



****************************************************************************************


कोई दस मिनट में समीर के माँ बाप वहाँ पहुंच जाते हैं। उनका स्वागत समधी लोग फूलों की माला पहना कर और गले मिल कर करते हैं।

समीर को देखते ही डैडी बोलते हैं, “मोस्ट इम्पोर्टेन्ट - वी नीड टू बॉय समथिंग नाइस फॉर यू!”

परिचय होने के तुरंत बाद उसकी माँ ने मीनाक्षी के माँ बाप से मनुहारते हुए कहा, “भाई साहब, बहन जी, जिसके लालच में हम भागे भागे चले आये, कम से कम मीनाक्षी बिटिया को भी बुला लीजिए!”

“जी बिलकुल! आप बैठिए। नाश्ता लगवा रहे हैं। मीनाक्षी भी आ रही है। साथ में नाश्ता करते हैं।”

“अच्छी बात है।”

“व्हेन डू यू वांट टू गेट मैरिड?” समीर के डैडी ने समीर से पूछा।

“नाउ, इफ पॉसिबल? सब तैयारी तो है ही।”

“हा हा ... हाँ, लेकिन तुम्हारे ससुराल वालों से पूछ लेते हैं। जल्दी हो जाता है, तो जल्दी चले चलेंगे।”

समीर की माँ : “और क्या! हमको रस्मों से कोई ख़ास फर्क़ नहीं पड़ता। लेकिन ये लोग अरमान पूरे करना चाहेंगे। एकलौती लड़की है। और हमको तो बस बहू से मतलब है। मैं तो कहती हूँ कि पंडित जी को बुला कर जितना जल्दी हो सके, शादी की रीतियाँ पूरी कर लेते हैं। घर जा कर हम रिसेप्शन दे देंगे..। अब बिना किसी खास वजह शादी डिले करने का मतलब नहीं है।”

“हाँ! ठीक है! मियाँ, बस अब कर ही देंगे शादी तुम्हारी। जल्दी से जल्दी! ठीक है? हा हा हा!”
kya gajab likhti hai aap
rochak update sahiba
 
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Nevil singh

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“आए हाय! कितनी प्यारी बच्ची है!” समीर की माँ, मीनाक्षी को देखते ही बोल पड़ीं!

“अरे तू इतनी किस्मत वाला है, मुझे तो नहीं पता था! इधर आ बिटिया, मेरे गले से लग जा - तुझे ज्यादा देखूंगी तो तुझे मेरी ही नज़र लग जाएगी!”

मीनाक्षी उनके पैर छूने को हुई तो रास्ते में ही समीर की माँ ने उसको थाम कर, अपने सीने में भींच लिया और उसके माथे पर कई बार चूम लिया। उनका ऐसा प्यार देख कर मीनाक्षी की आँखे भर आईं। वहीँ पर मीनाक्षी की माता जी भी खड़ीं थीं, उनके भी नैन भीगे बिना नहीं रह सके।

“बहन जी, आपको इस रिश्ते पर कोई ऐतराज़ नहीं?” उन्होंने आश्चर्यचकित होते हुए कहा। उनको अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था कि कल की घटनाओं के तुरंत बाद, उनके घर में फिर से ख़ुशियाँ आ सकती हैं!

“ऐतराज़? अरे कैसी बातें करती हैं आप बहन जी! इतनी सुन्दर सी, गुड़िया जैसी बिटिया.... कैसी बड़ी किस्मत होगी मेरी कि ये यूँ ही मेरी झोली में आ गिरी है; इतना सुनहरा मौका क्या अपने हाथ से क्या यूँ ही चले जाने दूँगी?”

“लेकिन हमारी मीनाक्षी आपके बेटे से दस साल बड़ी है...”

“अरे भाग्यवान” वर्मा जी ने अपनी पत्नी को रोकना चाहा।

“बहन जी, सच में बताइएगा, पत्नी का उम्र में पति से छोटा होना क्यों ज़रूरी है?” समीर की माँ गंभीर होते हुए बोलीं।

“जी? बिलकुल नहीं! कोई ज़रूरी नहीं हैं। लेकिन, वो तो समाज की ऐसी ही रीति है न?”

“और वो रीति, वो रिवाज़ बनाने वाले भी तो हम ही हुए! है न? और अगर नहीं जम रही है रीतियाँ, तो तोड़ने वाले भी हम ही हुए!” यह बात समीर के पिता जी ने कही।

मीनाक्षी के माता पिता आश्चर्य से मुँह बाए समीर के माता पिता को देख रहे थे, जैसे उन्होंने कोई अनहोनी बात कर दी हो। क्या आज कल के जमाने में ऐसी बात करने वाले लोग बचे हैं? क्या वो सपना तो नहीं देख रहे हैं?

“भाई साहब,” समीर के पिता जी इस बहस में पहली बार उलझे, “मुझे तो लगता है कि ताउम्र पत्नियां अपने पति का सम्मान, लिहाज,और जी हुज़ूरी करती रहें, इसी शातिराना सोच के के कारण पति और पत्नी के बीच के उम्र के मामलों के सामाजिक कायदे बनाए गए हैं। ऐसा लगता है कि अगर औरत किसी भी मामले में मर्द से आगे निकल जाए तो मर्द को बर्दाश्त नहीं होता। क्योंकि किसी भी लिहाज से अपने बड़ी पत्नी - चाहे शिक्षा हो, नौकरी हो, या उम्र या ही कद-काठी - न तो उनसे दबती है और न ही उनकी ज्यादतियां बर्दाश्त करती है।”

“पति का पत्नी से उम्र में बड़ा होना अनिवार्यता क्यों है, इस बात का कोई तार्किक जवाब किसी के पास नहीं है। लोग यही कहेंगे कि ऐसा सदियों से होता चला आ रहा है या फिर यह कि संतानोत्पत्ति की क्रिया में आसानी रहती है। पहला तर्क एक कुतर्क है, लेकिन दूसरे तर्क का उत्तर यह है कि एक बच्चा पैदा करो! भारत की जनसंख्या की प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएगी अपने आप!”

इस बात पर वहाँ उपस्थित सभी लोग मुस्कुराने लगे।

“सच में भाभी जी,” समीर के पिता जी पूरे रंग में थे, “सोचिए, अगर पत्नी उम्र में छोटी होगी तो बिना किसी चूं चपड़ के पति और उसके परिवार का सम्मान करती रहेगी। वहाँ का काम धंधा करती रहेगी। आप खुद ही देख लीजिए, किस तरह से लड़कियों को पति की इज़्ज़त करने पर मजबूर किया ही जाता रहा है। पति तुम्हारा देवता है! बताइए, कैसी कोरी बकवास है!”

“भाई साहब, बहन जी, आप लोग बहुत बड़े ख़यालात वाले लोग हैं! हम लोग धन्य है कि हमारी बेटी आपके यहाँ जाएगी!” आदेश की माँ बोलीं।

“भाभी जी, धन्य हम हैं जो ऐसी प्यारी बच्ची के पैर हमारे घर में पड़ेंगे!”

मीनाक्षी के पिता ने हाथ जोड़ कर पूछा, “और शादी?”

“आप कितनी जल्दी कर सकते हैं? मेरे बेचारे समीर से तो रहा नहीं जा रहा है, और आज ही करने पर ज़ोर दे रहा है! क्या करे बेचारा - उसकी पूरी लाइफ में आज पहली बार किसी लड़की ने उसको पसंद किया है! हा हा हा!!”

जिस तरह से समीर की माँ ने यह बात कही, वो सुन कर सभी लोग ठट्ठा मार कर हँसने लगे। मीनाक्षी बेचारी शर्म से गड़ गई।
mast update sahiba
 
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Nevil singh

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समीर और मीनाक्षी की शादी उसी रात को एक संछिप्त से समारोह के साथ संपन्न हो गई। समारोह में समीर की तरफ से उसके माँ बाप, और उसके दोस्त लोग ही शामिल हो सके थे। जिस तरह से लोगो ने समीर की बढ़ाई करी और उसको सम्मान दिया, उससे दोनों ही परिवारों का सर गर्व से ऊंचा हो गया।

शादी के लिए कोई उचित कपड़ा नहीं था समीर के पास - बस एक टीशर्ट थी और जीन्स। ख़रीददारी का कोई मौका ही नहीं मिला।

वही पहन कर जब समीर आँगन में बने विवाह बेदी में आया तो उसका गठीला शरीर, और आत्मविश्वास से चमकते हुए चेहरे को देख कर वहाँ उपस्थित लोग निहाल हो गए। खुद आदेश भी अपने मित्र को देख कर अवाक् रह गया। एक कोने से आदेश की दादी दौड़ी दौड़ी आई और समीर के कान की जड़ में काजल लगा दिया कि कहीं उनके दामाद को किसी की नजर न लग जाए। उनके स्नेह पर सभी मुस्कुराए बिना नहीं रह सके।

ऐसी जल्दबाज़ी के बावज़ूद, समीर की माँ अपनी होने वाली बहू के लिए ज़ेवर, और साड़ियाँ लाना भूली नहीं थीं। ज़ेवर तो वही थे, जो उन्होंने अपनी होने वाली बहू के लिए पिछले पांच वर्षों से इकट्ठे किये थे। खैर, जब समीर मीनाक्षी के गले में मंगलसूत्र डाल रहा था, और उसकी मांग में सिन्दूर भर रहा था, तब मीनाक्षी को लगा कि अब उसका जीवन अब उसका अपना नहीं रहा। उस दिन से उसका और समीर का जीवन एक है।

विदाई के समय दहेज़ का तमाम सारा सामान (जैसे कि बेड, सोफ़ा सेट, डाइनिंग टेबल, ड्रेसिंग टेबल, रसोई का सामान, इत्यादि) उनके साथ लाद दिया गया।

समीर और उसके माँ बाप ने इस पर बहुत आपत्ति उठाई - लेकिन आदेश ने उनको समझाया कि यह सब सामान तो उन्होंने खरीद ही लिया है, और सब दीदी के लिए है। अगर उसको साथ नहीं ले गए, तो सब पड़े पड़े खराब हो जायेगा। वैसे भी समीर के घर रेफ्रिजरेटर के अलावा और कुछ तो है ही नहीं। घर बसाने के लिए वो इनको गिफ्ट मान ले और अपने साथ ले जाए। इससे वो बिना वजह के खर्चों से बच जाएगा, और दीदी भी सुख से रहेगी। अगर समीर ने दहेज़ का सामान लेने से मना कर दिया तो बिना वजह सभी का नुकसान होगा। इसी तर्ज पर दहेज़ वाली कार भी समीर को ही दे दी गई।


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विदाई के बाद नॉएडा आते आते दोपहर का लगभग एक बज गया। यह तय हुआ कि रिसेप्शन नॉएडा में ही करेंगे, लेकिन अगले महीने - अभी ऐसे आकस्मिक खर्चे के लिए पैसे नहीं थे। समीर के माँ बाप ने खर्चा अदा करने की पेशकश करी, लेकिन समीर ने मना कर दिया। वो अपने खर्चे पर रिसेप्शन समारोह करना चाहता था। लेकिन फिर उसके मम्मी डैडी ने समझाया कि इन कामों में देर नहीं करनी चाहिए। काफ़ी बहस और मनुहार के बाद तीन दिनों बाद नॉएडा में रिसेप्शन करने की रज़ामंदी हुई। चूँकि समीर और उसके माँ-बाप दोनों ही नॉएडा में ही रहते थे, इसलिए किसी भी तरह के समारोह के आयोजन में कोई खास दिक्कत नहीं आने वाली थी।

खैर, समीर के फ़्लैट पहुँच कर मीनाक्षी की पारम्परिक तरीके से ही द्वार पूजा करी गई। और समय होता तो मंगल गीत के साथ साथ बाजे भी बजवाए जाते! समीर की माँ हाथ में आरती का थाल लिए मीनाक्षी की आरती उतार रहीं थीं, और पड़ोस के घरों से कुछ औरतें वहीं दरवाज़े के बग़ल खड़ी हो कर समीर के ब्याह और नई बहू के विषय में चर्चा कर रही थीं। मीनाक्षी ‘अपने’ घर के दरवाजे पर आंखे झुकाए, सकुचाई सी अपने पति समीर के साथ खड़ी हुई थी। लाल रंग का लहँगा पहने और सोलह श्रृंगार किये मीनाक्षी का सौंदर्य मानों सब पर मोहिनी डाल रहा था... समीर तो उसकी ओर ही देखे जा रहा था। यह देखकर उसकी माँ की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा। नवविवाहित दम्पति की आरती उतारने के बाद उन्होंने चावल से भरी चाँदी की लुटिया मीनाक्षी के आगे रख दिया। चावल की लुटिया को अपने दाहिने पैर से अंदर की ओर धकेलने के बाद मीनाक्षी समीर के साथ घर के अंदर एक कदम रखती है। उसी समय कामवाली महावर के घोल से भरी परात मीनाक्षी के आगे रख देती है। मीनाक्षी अपना पैर परात मे रखते हुए आगे बढ़ती है और फर्श पर अपने पैरों के लाल रंग के निशान बनाती हुई आगे बढ़ती है।

रस्में खत्म होने के बाद मीनाक्षी को उसके कमरे में ले जाया जाता है। कमरा साफ़ सुथरा, और एकदम चकाचक है। वहाँ शीशम का दीवान-नुमा बेड था। उस पर बोल्ड पैटर्न की चादर थी। कमरे में एयरकंडीशनर भी था। मीनाक्षी के मन में ख़याल आया कि प्रथम-दृष्टया रहन सहन में समीर उसके भाई जैसा नहीं है। इत्र की (रूम फ्रेशनर नहीं) सुगंध से कमरा महक रहा था। मीनाक्षी का निजी सामान उसी कमरे में ला कर रख दिया गया। समीर और उसकी माँ ने मीनाक्षी को आराम करने को कहा। कमरे का दरवाज़ा बंद कर उसने अपना घूंघट खोलकर चैन की सांस ली।

इस घर में आए हुए बस आधा घण्टा ही हुआ था, लेकिन मीनाक्षी को अभी से ही यहाँ अपना सा अहसास होने लगा था। यह उसका घर था... दो बड़े कमरे, दो बाथरूम, डाइनिंग हाल, ड्राइंग हाल, और दो बालकनी! और पूरा घर एक सादे कैनवास जैसा था। उसको जैसा मन करे, वैसा रंग वो भर सकती थी। यह एक ऐसी जगह थी, जहाँ प्रेम के इन्‍द्रधनुषी रंगों के शामियाने के नीचे उन दोनों की देहों के मिलन से सृष्‍टि सृजन को गति दी जा सकती थी।

यह सोच कर मीनाक्षी को झुरझुरी हो गई। समीर से सम्भोग.... यह तो उसने अभी तक सोचा भी नहीं था। लेकिन वो अभी कुछ सोचने की हालत में नहीं थी। विवाह और फिर यात्रा की थकान की वजह से कपड़े गहने उतारने की शक्ति अब उसमें नहीं बची थी। बिस्तर पर लेटते ही उसको नींद आ गई।
manoram update sahiba
 
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Nevil singh

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अभी ज़िंदगी की धूप नहीं देखी है आपने........... घर की छांव में रही हैं...........समय आपको सोचने और समझने के लिए बहुत से अनुभव देगा........
ये मेरी उम्र का अनुभव है.........या मेंने जो ठोकरें खाईं हैं उनका............. 40 वर्ष लंबा संघर्ष ............. और अभी भी जारी है............क्योंकि मंजिल अभी दूर है

ईश्वर आपको उन अनुभवों से दूर रखे जो मुझे चाहते और ना चाहते हुये भी करने पड़े............
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं
behtreen bhai
 

Nevil singh

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यह सोच कर मीनाक्षी को झुरझुरी हो गई। समीर से सम्भोग.... यह तो उसने अभी तक सोचा भी नहीं था। लेकिन वो अभी कुछ सोचने की हालत में नहीं थी। विवाह और फिर यात्रा की थकान की वजह से कपड़े गहने उतारने की शक्ति अब उसमें नहीं बची थी। बिस्तर पर लेटते ही उसको नींद आ गई।


(अब आगे)



“अच्छा, यह बताओ कि बहू को क्या पसंद है खाने में?” समीर की माँ ने उससे पूछा।

जवाब में वो सर खुजाने लगा।

“मतलब तुमको नहीं मालूम?”

“नहीं मम्मी।”

“उसके बारे में कुछ भी मालूम है? मतलब, नाम, शकलो-सूरत, और उसके घर के अलावा?”

जवाब में समीर की झेंपू मुस्कान निकल गई। उसकी माँ भी बिना हँसे न रह सकीं!

“बरखुरदार…. हमको तो लगा था कि तुमको वो पसंद है, तो कुछ तो जानकारी रखे होंगे! हा हा! तुम्हारी शादी! हा हहा! बढ़िया है। तुम्हारी मैरिड लाइफ मजेदार होने वाली है!”

“मुझे आदेश से जो मालूम हुआ, वो मालूम है।”

“अच्छा जी? क्या मालूम है?”

“मीनाक्षी को लिखना पसंद है। पोएट्री भी, और कहानियाँ भी। अखबार में अक्सर छपती है उसकी लिखी कहानियाँ!”

“हम्म्म! और क्या पसंद है?”

“हरा, पीला रंग! एक बार आदेश उसके लिए इसी रंग की ड्रेस खरीद रहा था।”

“गुड! मतलब पूरी तरह से भोंपू नहीं हो! और?”

“डांस करना।”

“अरे, खाने का कुछ मालूम है? या बहू को भूखे पेट ही नचवा दें?”

“खाने का नहीं मालूम! लेकिन आदेश को पुलाव, छोले, पराठे, पनीर की कोई भी डिश पसंद है।”

“मैगी पसंद है उसको?”

“किसको? आदेश को?” माँ ने हाँ में सर हिलाया।

“इसका मतलब तुमको मीनाक्षी को खाने में क्या पसंद है, नहीं पता। कोई बात नहीं, मैं अपनी ही पसंद का कुछ बना देती हूँ। और तू भी मेरी मदद कर दे। बहू जब सुनेगी कि तूने कुछ काम किया है, तो उसके मन में तेरे लिए कुछ प्रेम उमड़ आएगा।”

“क्या मम्मी!”

“क्या मम्मी वम्मी नहीं। तुम दोनों को ही मिल कर सम्हालनी है अपने जीवन की गाड़ी। कभी तुम उसकी, तो कभी वो तुम्हारी ऐसे ही सेवा कर दे, तो घिस नहीं जाओगे।”

“जो आज्ञा माते!” कह कर समीर ने जब माँ के सामने अपने दोनों हाथ जोड़े, तब दोनों ही खिलखिला कर हँसने लगे।

“तुम पायसम बनाओ। और मैं मलाई कोफ्ते, भिंडी दो प्याज़ा, पुलाव, रायता और पूरियाँ बना देती हूँ। बढ़िया रहेगा। हल्का भी, और फीस्ट भी! ठीक है?”

“मम्मी, मैं आपको इस बात के लिए क्या सलाह दूँ! सब बढ़िया है।”

“ठीक है फिर! रात का खाना बाहर खाएँगे। उसके लिए अभी से टेबल बुक कर लो।”

“जी!”

करीब तीन घंटे बाद जब खाना पक चुका, तब मीनाक्षी को उठाने के लिए समीर को भेजा गया।
behtreen update hai aapki
ish pyar ko kya naam du
 
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Nevil singh

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मीनाक्षी की नींद तब खुली जब दरवाज़े पर समीर ने हल्की सी दस्तक़ दी।

“मीनाक्षी, आप उठी हैं?”

समीर की आवाज़ सुन कर वो चौंकी और नींद से बाहर आई। पहले तो अपने आसपास के बदले हुए परिवेश को देख कर एक क्षण उसको घबराहट सी हुई, लेकिन अगले ही पल उसको याद आ गया कि वो कहाँ थी।

“जी” उसने लगभग चौंकते हुए जवाब दिया।

“खाने के लिए तैयार हो जाइए। लंच रेडी है!”

‘ओह्हो! कितनी देर सो गई मैं! बाप रे! साढ़े तीन घंटे!! ऐसे सोई जैसे सारे घोड़े बेच डाले हों! लंच भी इन लोगों से ही बनवा लिया! क्या सोचेंगे मेरे बारे में! बोलेंगे कि मैडम आई है ठाठ बैठाने!’ ऐसे कई ख़याल उसके मन में कौंध गए।

“जी ठीक है। मैं आती हूँ।” प्रत्यक्ष उसने कहा।

कितना भी जल्दी करने के बाद भी बाहर आते आते उसको कोई पंद्रह मिनट और लग गए। बहुत सोचा कि क्या पहने, लेकिन फिर उसने डिसाइड किया कि लहँगा पहनना ही ठीक रहेगा। लेकिन ज़ेवर अब कम थे। मेकअप भी इस समय हल्का सा ही था। नई नवेली दुल्हन सज-धज के ही अच्छी लगती है, उसको ऐसा माँ ने समझा दिया था।

बाहर आ कर उसने देखा कि बेड को छोड़ कर बाकी सारे फर्नीचर अपनी अपनी जगह व्यवस्थित कर दिए गए थे। समीर को अपनी नौकरी शुरू किये बस छः महीने ही हुए थे, इसलिए फर्नीचर तो बस नाम-मात्र ही था। उतना बड़ा घर, लेकिन खाली खाली! भूतिया सा माहौल रहता होगा रात में। अच्छा हुआ आदेश ने ज़ोर जबरदस्ती कर के सब सामान भिजवा दिया, नहीं तो समीर अपने आत्मसम्मान के चलते मीनाक्षी को ज़मीन पर ही बैठा देता! और अच्छी बात थी कि डाइनिंग टेबल भी दहेज़ में मिल गया था। इसलिए सभी को साथ बैठने में सहूलियत हो गई। नहीं तो ज़मीन पर बैठ कर खाना पड़ता।

“आओ बेटा, बैठो बैठो!” समीर के पिता जी ने कुर्सी से उठते हुए कहा, और साथ ही में डाइनिंग टेबल की एक कुर्सी को मीनाक्षी के लिए खींच भी दिया।

“माँ, आपने क्यों नहीं जगाया मुझे? सब खुद से ही कर लिया!” उसने ग्लानि भरी आवाज़ में शिकायत करी।

“अरे वाह! अगर जगाना ही होता, तो सुलाते क्यों तुम्हे? लड़कों का क्या है? ये तो जीन्स पहन कर ही ब्याह लाया तुम्हे! असली मेहनत तो दुल्हन की होती है! कभी हल्दी, कभी चन्दन, कभी मेहँदी, तो कभी तेल! और फिर भारी भारी कपड़े! कितने घण्टे सोई हो पिछले तीन दिनों में?” माँ ने प्यार से उसको समझाया।

“वैसे, सारा मैंने नहीं बनाया। कुछ तो तुम्हारे समीर ने भी बनाया है। बताऊंगी नहीं कि क्या! वो मैं तुम पर छोड़ देती हूँ गेस करने के लिए। और देख कर बताना, तुम्हारी पसंद का है सब या नहीं! इस बुध्धू को तुम्हारी पसंद ही नहीं मालूम!”
waah dost har shabd bah raha hai dhara sang
gazb update
 
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Nevil singh

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जैसा मैंने पहले भी कहा है कि औरतों, और आंसुओं का एक एक अटूट रिश्ता है। चाहे ख़ुशी हो चाहे दुःख, जब भी इनको निकासी का कोई रास्ता मिलता है, ये बाहर आने शुरू हो जाते हैं। और मीनाक्षी तो कल से भावनाओं के बारूद के भंडार पर बैठी हुई थी। प्रेम के दो शब्दों को सुनते ही उस भण्डार में विस्फ़ोट हो गया। और वो बिलख बिलख कर रोने लगी। समीर और उसके पिता जी को समझ नहीं आया कि अचानक उसको क्या हो गया। माँ पास ही खड़ी थीं, तो उन्होंने ही सम्हाला,

“अरे! बेटा क्या हो गया? हां? क्या हो गया बच्चे? मम्मी पापा की याद आ रही है?” माँ ने मीनाक्षी को अपने सीने से लगाते और उसके आँसूं पोंछते हुए कहा।

“समीर, बहू के घर फ़ोन तो लगा! हम भी कितने उल्लू हैं, इतनी देर हो गई यहाँ आये हुए, और समधियाने कॉल भी नहीं किया! वो भी घबरा रहे होंगे। मत रो बेटा! बस कराते हैं बात।”

मीनाक्षी का गला रूँध गया, और उसकी आवाज़ ऐसी भीगी कि गले से बाहर न निकल सकी। अब तो माँ को कैसे समझाए की उसको रोना अपने मायके के बिछोह के कारण नहीं, बल्कि ससुराल में मिलने वाले प्रेम के कारण आ रहा था।

‘ऐसे निष्कपट, स्नेही और सरल लोग! क्या वो सचमुच इतनी लकी है!’

“अरे फ़ोन लगा कि नहीं? ट्रंक कॉल लगा रहे क्या!” माँ ने समीर को उलाहना दी, “इधर बिटिया का रो रो कर बुरा हाल हो रहा है, और तुझसे एक छोटा सा काम नहीं हो पा रहा। जल्दी लगा।”

“मम्मी! आप भी न! अब मैं उड़ कर थोड़े ही कनेक्ट हो जाऊँगा! ऍम टी एन एल है, बिजी हो जाता है। लीजिए, घण्टी जा रही है।”

“हाँ, ला इधर,” कह कर माँ ने फ़ोन ले लिया और मीनाक्षी को पकड़ा दिया, “ले बेटा”

फ़ोन पर उस तरफ मीनाक्षी की माँ थीं, “कैसी हो बेटा?”

वो बोलती भी तो कैसे! आवाज़ तो निकल ही नहीं रही थी। उधर से रोने की आवाज़ सुन कर उसकी माँ भी घबरा गईं।

“तू ठीक तो है न बिट्टो?”

“हूँ” रोते रोते मीनाक्षी इतना ही बोल पाई।

“वहाँ लोग अच्छे हैं बेटा?”

“हूँ”

“तुम्हारा मन तो लग रहा है न?”

“हूँ” फिर थोड़ा संयत हो कर, “हाँ माँ!”

“सच में बेटा?”

“हाँ माँ। सच में! बस यूँ ही रोना आ गया। और मम्मी ने आपको कॉल कर दिया।” मीनाक्षी ने रोते रोते ही इतना कह दिया। वह यह तो नहीं कह पाई कि घर की बहुत याद आ रही है। और यह भी नहीं कह पाई कि उसको इतनी देर में ही इतना प्यार मिल गया है कि शायद घर की ‘उतनी’ याद न आए।

लेकिन उसकी माँ समझ रही थी। लोगों को परखने में गलतियाँ तो होती हैं, लेकिन कोई ऐसे ही, बिना जाने, बिना देखे, बिना मांगे, बिना जांचे अपने एकलौते लड़के की शादी किसी भी लड़की से नहीं कर देता। खास तौर पर तब, जब वो लड़का समीर के जैसा हो।

“पापा कैसे हैं माँ? अभी तक रो रहे हैं?” पीछे से अपने पिता के सिसकने की आवाज़ सुन कर मीनाक्षी ने सुबकते हुए पूछा।

“सब लोग ठीक हैं बेटा! तुम यहाँ की चिंता मत करो। हम सब खुश हैं।” फिर कुछ सोचते हुए माँ ने कहा, “बेटा… देखो। वो बहुत अच्छे लोग हैं। तुझे बहू नहीं, बेटी बनाकर रखेंगे। बस तुम कोई गलती मत करना!”

“हाँ माँ!”

“एक बार अपनी मम्मी से भी बात करवा दे।”

मीनाक्षी ने फोन अपनी सास को पकड़ा दिया, और समीर का इशारा देख कर कुर्सी पर बैठ गई। समीर ने उसकी आँखों में दो क्षण देखा और पूछा, “क्या हो गया आपको?”

“कुछ नहीं,” उसने सुबकते हुए और आँसूं पोंछते हुए कहा, “कुछ भी नहीं।”

उधर समधियों और समधनों में कोई पांच मिनट और वार्तालाप हुआ। तब जा कर लंच शुरू हो पाया।
matrbhasha ka behtreen istemaal kiya hai aapne har akshar me laajwaab update
 
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“अमाँ बरख़ुरदार, क्या खुद खाए ले रहे हो!” समीर जैसे ही पहला निवाला लेने को हुआ, उसके डैडी ने उसको टोंका, “इतने क्रान्तिकारी तरीके से बहू को ब्याह कर लाए हो, कम से कम अपने हाथ से पहला निवाला उसको खिलाओ! चलो चलो! शाबाश!”

“हाँ! लेकिन एक सेकंड! ज़रा खिलाते हुए तुम दोनों की एक फ़ोटो तो निकाल लूँ,” कह कर उसकी माँ लपक कर अपने पर्स से छोटा सा कैमरा निकाल लिया और उसको ‘ऑन’ कर के बोलीं, “हाँ, प्रोसीड!”

समीर ने पूरी का पहला निवाला मीनाक्षी के थोड़े से खुले मुँह में डाल दिया।

“बिटिया, इस घर में सब दबा के खाते हैं! खाने में संकोच मत करना!” ये उसके पिता जी की टिपण्णी थी। उनकी बात पर मीनाक्षी बिना मुस्कुराए नहीं रह सकी।

जब लेन-दारी होती है, तब देन-दारी भी होती है। मीनाक्षी ने भी पूरी का एक टुकड़ा कोफ़्ते में अच्छी तरह डुबा कर समीर की तरफ बढ़ा दिया। समीर ने बड़ा सा मुँह खोल कर निवाला तो ले ही लिया, साथ में उसके हाथ को भी काट लिया।

फोटो खींचते हुए उसकी माँ ने कहा, “देखा बेटा? सब दबा के खाते हैं! तुमने इतना बड़ा निवाला दिया, फिर भी तुम्हारे पति को तुम्हारा हाथ भी खाने को चाहिए!”

इस बात पर मीनाक्षी की मुस्कान और चौड़ी हो गई।

“तू रहने दे इसको खिलाने को! पता चला, इस लंच में ही तेरा हाथ खा गया! हा हा हा हा!”

जब मीनाक्षी ने सारे पकवान एक एक बार चख लिए, तो माँ ने पूछा, “गेस कर सकती हो कि तुम्हारे समीर ने क्या क्या बनाया है इसमें से?”

“जी, खीर?” मीनाक्षी से शर्माते, सकुचाते अंदाज़ा लगाया। उसने सोचा मीठा पकवान है। तो शायद यही हो।

“अरे! बिलकुल ठीक! ज़िद कर रहा था कि मम्मी, अपनी बीवी के लिए मीठा तो मैं ही बनाऊँगा!” माँ ने अपनी तरफ़ से बढ़िया मसाला लगा कर कहानी बना दी, “और ये पुलाव और रायता भी इसी ने तैयार किया है। तुम घबराना नहीं! मेरा बेटा जानता है खाना पकाना। तुमको सब अकेले करने की ज़रुरत नहीं है।”

मीनाक्षी हैरान थी। सचमुच हैरान!

‘हे प्रभु! ऐसे लड़के होते हैं क्या! ऐसे परिवार होते हैं क्या! बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा! हे प्रभु, बस ऐसी ही दया बनाए रखना!’

उसने मुस्कुराते हुए अपनी बड़ी बड़ी आँखें उठा कर समीर को प्रेम से देखा।

पहली बार उसके मन में लाचारी के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में दुःख के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में हीनता के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में अज्ञात को ले कर भय के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में समीर के लिए आभार का भाव था। पहली बार उसके मन में समीर के लिए प्रशंसा का भाव था। पहली बार उसके मन में समीर के लिए गर्व का भाव था। पहली बार उसके मन में समीर के लिए प्रेम का भाव था।
surili update dost
 
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जब भोजन हो गया, तब माँ ने उससे पूछा, “बेटा, तुमने इतना भारी भरकम कपड़े क्यों पहने हुए हैं? मुझको गलत मत समझ - प्यारी तो तू खूब है ही, और प्यारी तो खूब लग भी रही है। लेकिन अब ये तेरा घर है। यहाँ तुझे पूरी स्वतंत्रता है। तुझे जो पहनना है पहन, जैसे रहना है रह। हमारी परवाह न करना। हमको तो गुड़िया चाहिए थी, वो मिल गई।”

“जी मम्मी।”

“क्या पहनती है तू अक्सर?”

“जी शलवार सूट!”

“लाई है साथ में?”

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“अरे! तो फिर?”

“जी, बस साड़ियां ही हैं! ‘वहाँ’ कह रहे थे कि बहुएँ साड़ी में ही अच्छी लगती हैं।” वहाँ की बात सोच कर मीनाक्षी के मन में फिर से टीस उठ गई।

“बेटा, समझ सकती हूँ! लेकिन तुम ‘वहाँ’ नहीं, ‘यहाँ’ हो अब! हमारे यहाँ साड़ी पहन कर, सर ढक कर रहने की ज़रुरत नहीं। और सब काम खुद करने की जरूरत नहीं। तुमको शलवार सूट में सहूलियत होती है, तुम वही पहनो।”

‘एक और ख़ुशी की बात! हे प्रभु, यह सब कोई सपना तो नहीं है?’ मीनाक्षी को मन ही मन बहुत खुशी हुई।

“देख, अभी करीब तीन बज रहे हैं। चल, तुझे शॉपिंग करवा लाती हूँ। यहाँ घर में बैठे बैठे क्या करोगी?’

“पर माँ!”

“अरे, पर वर कुछ नहीं! ऐसे आप धापी में आना पड़ा। न तेरे लिए कुछ ला पाए, न कुछ दे पाए। अभी रिसेप्शन में तेरे मायके से सभी आएँगे, तो उनके लिए भी गिफ्ट्स ले लेंगे! और मैं भी जरा अपने लिए कुछ… समझा कर यार!” माँ ने फुसफुसाते हुए, जैसे वो मीनाक्षी से कोई सीक्रेट प्लान शेयर कर रही हों, वैसे कहा।

इस बार मीनाक्षी से रोका नहीं गया, और उसके गले से हल्की सी हँसी छूट गई।

“हाँ! ऐसे ही हँसती खेलती रह! तू बहू है हमारी… नहीं, बहू नहीं, बेटी है। तेरे मन का ख्याल रखना हमारा फ़र्ज़ है। आज हम तेरा ख्याल रखेंगे, तुझे समझेंगे, तो कल को शायद तू भी हमें समझ कर हमारा ख्याल रखेगी। रिश्ते ऐसे ही तो बनते हैं!”

“माँ” कह कर मीनाक्षी उनसे लिपट गई, “मैंने कुछ बहुत अच्छा किया है पिछले जनम में, तो आप मुझे मिल गईं!”

“मैंने भी!” कह कर उन्होंने उसको लिपटा लिया और उसके सर पर प्रेम से हाथ फेरने लगीं।

“चल, अब ये लहँगा चेंज कर ले, और कोई हल्की साड़ी पहन ले। यहाँ पैदल चल कर शॉपिंग करने में बहुत मज़ा आता है।”



जब दोनों बाहर जाने को तैयार हो गईं तो समीर के डैडी ने कहा, “अरे! किधर को चली सवारी?”

“अट्ठारह! ज़रूरी शॉपिंग करनी है। आप लोग बियर के मज़े लीजिए। और आज के डिनर, और परसों के रिसेप्शन के इंतजाम की जिम्मेदारी आपकी।”

“यस मैडम!” कह कर डैडी ने सल्यूट मारा।
oh babu humne toh pyar kiya hai
sansanati update dost
 
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