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Romance संयोग का सुहाग [Completed]

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Nevil singh

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रास्ते में उन्होंने मीनाक्षी को अपनी शादी, समीर के जनम और बचपन की कहानियाँ सुनाईं। उन्होंने मीनाक्षी को यह भी बताया कि रहते वो पास में ही हैं, लेकिन समीर अपने तरीके से रह पाए, इसलिए वो अलग रहते हैं। इसी चलते उसको ज़िम्मेदारी और स्वाभिमान का इतना भाव है। और सबसे अच्छी बात यह है कि अब मीनाक्षी भी उसके साथ रहेगी। उनका मानना था कि शादी होने के साथ, लड़का लड़की साथ में, अकेले रहने चाहिए। बिना किसी भी तरफ के परिवार के किसी भी तरह के प्रभाव के! तब एक दूसरे के लिए समझ, आदर और पारस्परिक अंतर्ज्ञान - यानि इंटिमेसी आती है, जो सफ़ल और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है। फिर उन्होंने उसको बताया कि समीर के डैडी एक सरकारी कंपनी के लिए सप्लायर हैं, और भगवान की कृपा से अच्छी आय हो रही है। वो स्वयं भी एक बैंक में मैनेजर हैं।

दुकानों पर जा कर उन्होंने मीनाक्षी के लिए रोज़मर्रा के, और खास अवसरों के लिए शलवार कुर्ते खरीदे। फिर मॉल में जा कर ज़िद कर के उसके लिए जीन्स, टी-शर्ट्स, और शॉर्ट्स और ख़ास नाइटियाँ भी ख़रीदीं। फिर अधोवस्त्रों की एक स्पेशिलिटी स्टोर में जा कर ब्राइडल लॉन्जेरे के दो सेट भी ज़बरदस्ती खरीदवाए। मीनाक्षी शर्म के मारे खुद कुछ नहीं पसंद कर रही थी, इसलिए उन्होंने खुद ही उसके लिए सेलेक्ट कर लिया। उन्होंने कहा की नई नई शादी में सेक्सी दिखना बहुत ज़रूरी है।

यह खरीददारी करने के बाद उन्होंने मीनाक्षी को आज रात की डिनर पार्टी के लिए खरीदे गए ख़ास शलवार कुर्ते को पहनने को कहा। मीनाक्षी के न-नुकुर करने पर उन्होंने समझाया कि वो दोनों वापस घर नहीं जा रहे हैं। यहीं ख़रीद फ़रोख़्त करने के बाद वो बगल रैडिसन ब्लू में डिनर करने वाले हैं परिवार के साथ, और फिर वहाँ से वो और डैडी अपने घर चले जाएँगे। उनके आज ही चले जाने की बात सुन कर मीनाक्षी थोड़ा उदास हो गई, लेकिन उसने माँ से वायदा लिया कि हर रोज़, कम से कम डिनर के लिए वो इधर आते रहेंगे। सबसे अंत में एक पारंपरिक दुकान में जा कर उन्होंने समधियों के लिए कपड़े लत्ते खरीदे। माँ ने खुद के लिए कुछ भी नहीं लिया। कहने लगीं कि अगर वो यह बहाना न करतीं, तो मीनाक्षी न आती। जो शायद सही भी था।

इतनी ख़रीददारी करने में अच्छा खासा समय लग गया। रात के कोई साढ़े आठ बजे वो दोनों रैडिसन ब्लू पहुँचे। वहाँ जा कर देखा तो बाप बेटे काजू के साथ एक राऊण्ड पहले ही मार चुके थे, और दूसरा शुरू कर रहे थे।

“बेटी,” माँ ने सफाई दी, “अगर शराब पीने को बुराई मानती हो, तो बस यही बुराई है समीर में। और कोई नहीं।”

“नहीं माँ! बस पी कर लुढ़क न जाते हों,” मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए समीर को छेड़ा।

“हा हा हा हा!” डैडी ठहाके मार कर हँसने लगे, “जवाब दो बरखुरदार! कितनी बार लुढ़के?”

“अब नहीं लुढ़कूंगा! पक्का वायदा!” समीर ने कान पकड़ते हुए कहा।

डिनर शानदार था। समीर और उसके पिता जी ने शर्ट, जीन्स और ब्लेज़र पहना हुआ था। दोनों ही बहुत स्मार्ट और हैंडसम दिख रहे थे। मीनाक्षी ने अपनी सास को कनखियों से देखा तो उनको अपने पति को प्रेम से देखता हुआ पाया। शादी के इतने वर्षों बाद भी ऐसी प्रगाढ़ता, ऐसा प्रेम देख कर वो मुस्कुरा उठी। उसके मन में वैसे ही रहने की तमन्ना हो आई। वेटर को बुला कर चारों की एक साथ कई सारी तस्वीरें खिचाई गईं। डिनर समाप्त होने पर समीर के माँ बाप दोनों वापस अपने घर को चल दिए, जिससे नव-विवाहितों को थोड़ी प्राइवेसी मिल सके। जाते समय मीनाक्षी ने उन दोनों के पैर छुए।

“सीख कुछ,” उसके पिता जी ने कहा, “बहू से कुछ सीख!”

“डैडी! आप भी न, मेरी फजीहत करते रहते हैं!” समीर ने उनके और माँ के पैर छूते हुए कहा, “वो तो बीवी के सामने इम्प्रैशन झाड़ने के लिए कर रहा हूँ, लेकिन रोज़ रोज़ नहीं करूँगा!”

“पता है! बेटी, तुमको भी इतनी फॉर्मेलिटी करने की ज़रुरत नहीं। हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। हमेशा। अच्छा, शुभ रात्रि!”

जब तक मीनाक्षी और समीर घर वापस आए, रात के साढ़े दस बज गए थे।
dost bahut achchh sama baandhte ho
aakarshak update hai
 
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Nevil singh

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घर आकर मीनाक्षी ने देखा कि पूरा घर अच्छी तरह से व्यवस्थित हो गया था। दहेज़ का बेड अब उनके बेडरूम में था, और वहां का बेड दूसरे, छोटे बेडरूम में। अलमारी भी वहीँ व्यवस्थित कर दी गई थी, और उसके सूटकेस को एक ओर जमा दिया गया था। समीर ने आज खरीदा हुआ सामान नई अलमारी में ला कर रख दिया, और फ्रेश होने बाथरूम चला गया। वो क्या करे, उसे कुछ समझ नहीं आया। इसलिए वो नए बिस्तर पर आ कर बैठ गई।

मीनाक्षी बिस्तर पर बैठी हुई अपने आसन्न भविष्य के बारे में सोच रही थी। वो थोड़ा भयभीत भी थी - समीर को लेकर उसके मन में उठने वाले विचार वैसे तो सकारात्मक थे, लेकिन उसके व्यवहार को लेकर वो पूरी तरह से अनिश्चित थी। न जाने क्या करेगा वो! एक पूर्ण अपरिचित आदमी से शादी! यह सोच कर उसको वापस सिहरन होने लगी।

‘क्या करूँ मैं!’ यह एक ऐसा प्रश्न था, जिसका उत्तर उसके पास नहीं था। शायद किसी के पास भी नहीं था। कुछ समय आप ऐसी परिस्थितियों में पड़ जाते हैं, जिनका कोई हल आपके पास नहीं होता। मीनाक्षी के लिए यह वैसी ही परिस्थिति थी। उसके दिमाग में एक बात बार बार कौंध रही थी,

‘इतना तो तय था कि समीर इस विवाह को पूर्ण करना चाहेगा। सुहागरात और किसलिए कहते हैं इस रात को? सुहाग की रात! हुंह! जैसे बीवी की कोई रात ही नहीं! खैर, सामाजिक बातों के बारे में क्या टिप्पणी करी जाए। अभी तो मेरी हालत ओखली में पड़े अनाज जैसी है, जिस पर मूसल पड़ने ही वाला है। क्या मैं उसको आज कुछ भी करने से मना कर दूँ? बोल दूँ कि सर में दर्द है? लेकिन, अगर वो नाराज़ हो गया तो? सुना है कि लड़के अपनी शादी की पहली रात में खुद को रोक नहीं पाते। ओह्ह भगवान मैं क्या करूँ? शादी की शुरुआत खट्टे मन से तो नहीं कर सकते न!’

मीनाक्षी इन्ही सब उधेड़बुन में हुई थी, कि कमरे का दरवाज़ा खुला। इसके साथ ही मीनाक्षी का कलेजा मुँह में आ गया। उसकी साँसें तेज हो गयीं। समीर के क़दमों की आहट से मीनाक्षी के रोंगटे खड़े हो गए। मीनाक्षी ने अपनी नज़रें नीचे झुका लीं और शांत और संयत होने का दिखावा करने लगी। मीनाक्षी कनखियों से देख रही थी - समीर दरवाज़े के समीप आ कर रुक गया था। फिर भी उसकी हिम्मत नहीं पड़ी कि समीर की तरफ देखे।

“मीनाक्षी? सुनिए?” समीर की आवाज़ बहुत ही संयत थी। मीनाक्षी ने अभी भी उसकी तरफ नहीं देखा। वो जैसे बिस्तर में ही गड़ी जा रही थी।

“मैं बगल वाले कमरे में सोने जा रहा हूँ।”

समीर कुछ देर तक मीनाक्षी की किसी भी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता रहा।

‘अगर तुम्हारा पति तुम्हारे साथ न सोना चाहे, तो तुम पत्नी के कर्तव्य निभाने में फेल हो गई समझो।’ माँ की कही यह बात मीनाक्षी के जेहन में गूँज उठी। फिर भी उसने ऊपर नहीं देखा; बस चुपचाप बिस्तर में गड़ी बैठी रही।

“आप पूछेंगी नहीं कि क्यों?” समीर ने कहा।

इस बार उसकी आवाज़ में थोड़ा सा चुलबुलापन था। थोड़ी सी अधीरता थी। शायद वो मीनाक्षी को प्रसन्न चित्त करना चाहता था। इसका मीनाक्षी पर सकारात्मक प्रभाव हुआ। उसने समीर को देखा - तीन चार सेकंड। बस। उसके बाद फिर से गर्दन नीचे!

“आप मेरी पत्नी हैं। माई बेटर हाफ!” उसने कहा, “कोई प्रॉस्टिट्यूट नहीं।”

मीनाक्षी को समझ नहीं आया कि समीर क्या कह रहा है। उसका दिमाग पहले ही इतनी सारी अप्रत्याशित घटनाओं के जल्दी जल्दी घट जाने से भ्रमित था। ऊपर से सुहागरात का डर! उसको समीर की बात समझ नहीं आई, और इसलिए उसने खामोश रहना ही मुनासिब समझा। मीनाक्षी की मुश्किल समीर ने ही सुलझा दी।

“मीनाक्षी, हम एक दूसरे को जानते तक नहीं हैं। अब ऐसे में अगर हम बाकी शादी-शुदा लोगों के जैसे बिहेव करेंगे तो हमारा क्या नाता रहेगा? उसके (क्लाइंट और प्रॉस्टिट्यूट के नाते के) अलावा? लेकिन यह सब हमेशा ऐसे नहीं रहेगा - एक दिन हम भी साथ में होंगे, और वो सब कुछ करेंगे जो शादी-शुदा जोड़े करते हैं। लेकिन उस दिन मैं अपनी पत्नी से प्यार करूँगा - सेक्स नहीं - प्यार! और उस दिन आप अपने पति से प्यार करेंगी!” अपनी बात का प्रभाव देखने के लिए समीर थोड़ा रुका, फिर आगे बोला, “एक अजनबी से सेक्स… न बाबा, मुझसे नहीं हो पाएगा!”

इतना कह कर समीर वापस जाने के लिए मुड़ गया। फिर एक क्षण के लिए ठिठका। अपने मज़ाकिया लहज़े में वो फिर बोला, “बाई दी वे, मैं कोई गे नहीं हूँ! सोचा कि क्लैरिफाई कर दूँ!”

और जाते जाते बोला, “और मुझे ख़र्राटे भी आते हैं!”

इतने तनाव और भय से त्रस्त होने के बाद भी मीनाक्षी को इस बात पर हंसी आ गई। समीर के चेहरे पर एक संतुष्ट मुस्कराहट थी; उसने एक दो क्षण मीनाक्षी की तरफ देखा, और फिर दूसरे कमरे में चला गया। मीनाक्षी बिस्तर पर लेट गई - उसने न तो अपने कपड़े बदले, न ज़ेवर उतारे और न ही अपना मेक-अप ही साफ़ किया। जब उसने अपना सर तकिए पर रखा तो उसकी आँखों से आँसू आ गए।

अक्सर लोगों को हैरानी होती है कि औरतें जब खुश होती हैं, तो भी कैसे रोने लगती हैं? लोगों से मेरा मतलब है आदमी लोग। सच में आदमियों को औरतों का ऐसा व्यवहार नहीं समझ आया; लेकिन औरतों को समझ में आता है। जब औरतें अपने अंदर कुछ ऐसा महसूस करती हैं, जिसको अपने अंदर बाँध कर नहीं रख सकती हैं, तो ऐसा हो सकता है। उसी तर्ज पर, अगर ख़ुशी बहुत अधिक हो जाए, तो बहुत सी महिलाओं के लिए आँसू बहाना ज्यादा बलवती अभिव्यक्ति हो जाती है।
sawpnil update
 
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Nevil singh

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अक्सर लोगों को हैरानी होती है कि औरतें जब खुश होती हैं, तो भी कैसे रोने लगती हैं? लोगों से मेरा मतलब है आदमी लोग। सच में आदमियों को औरतों का ऐसा व्यवहार नहीं आया; लेकिन औरतों को समझ में आता है। जब औरतें अपने अंदर कुछ ऐसा महसूस करती हैं, जिसको अपने अंदर बाँध कर नहीं रख सकती हैं, तो ऐसा हो सकता है। उसी तर्ज पर, अगर ख़ुशी बहुत अधिक हो जाए, तो बहुत सी महिलाओं के लिए आँसू बहाना ज्यादा बलवती अभिव्यक्ति हो जाती है।


(अब आगे)



नींद नहीं आई उसको। बहुत देर तक। कान की टकटकी बाँधे हुए वो बहुत देर तक बगल वाले कमरे से कोई आवाज़, कोई आहट सुनने की कोशिश करती रही। लेकिन कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी। जब घड़ी देखी, तो रात के पौने दो बज रहे थे। अभी भी नींद नदारद। आख़िरकार उससे रहा नहीं गया, और वो उठ कर, अपने कमरे का दरवाज़ा खोल कर, बगल वाले कमरे में चली आई।

इस कमरे में एसी नहीं लगा हुआ था। एक पंखा था, जो फुल स्पीड पर चल रहा था। खिड़की भी खुली थी, और दरवाज़ा भी। लेकिन फिर भी मई की गर्मी पर कोई असर नहीं था। वो दबे पाँव चलते हुए समीर के बेड तक आई। आँखों पर अधिक ज़ोर नहीं डालना पड़ा - कमरे भी बाहर से हल्की रौशनी आ रही थी। समीर एक करवट में लेटा हुआ था। उसने एक निक्कर पहना हुआ था। उसकी पीठ पर पसीने की बूँदें साफ़ दिख रहीं थीं। गहरी नींद में सांस भरने की जैसी आवाज़ें आती हैं, वैसी ही आवाज़ें आ रही थीं। ख़र्राटे तो बिलकुल भी नहीं भर रहा था वो।

‘झूठी कहानी’ मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए सोचा, लेकिन अगले ही क्षण उसको ग्लानि भी महसूस होने लगी, ‘मुझको एसी में सुला कर, यहाँ गर्मी में सो रहे हैं।’

वो उधेड़बुन में पड़ गई, कि वो क्या करे! समीर को जगा ले, और अपने साथ सोने को कह दे? साथ सोने का मतलब सम्भोग करना तो नहीं होता। कम से कम वो आराम से सो तो सकेंगे! मन में बहुत हुआ कि वो उसको उठा ले, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई। न जाने क्या सोच रही थी। कई बार आपको मालूम होता है कि क्या करना चाहिए, लेकिन फिर भी आप वो काम करते नहीं। कई कारण होते हैं - झिझक, डर, शर्म इत्यादि! बस, वैसी ही हालत मीनाक्षी की भी थी। बहुत सोचने के बाद वो वापस अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर लेट गई। रोने का मन तो हुआ, लेकिन रो न सकी। और इसी उधेड़बुन में आँख कब लग गई, पता ही नहीं चला।
naari teri yahi pahchaan hai har apne ko hridey ki aankho se mahsush karna
moh liya update ne bandhu
 
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Nevil singh

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सुबह हुई तो मीनाक्षी की आँख खुली - भूख लगी थी। उसने दैनिक नित्यकर्म किये और रसोई की तरफ चली की कुछ बना लिया जाए। लेकिन अंदर का नज़ारा देख कर वो आश्चर्यचकित हो गई - रसोई के अंदर समीर पहले से ही मौजूद था, और ब्रेकफास्ट के लिए सैंडविच और चाय उसने लगभग बना ही ली थी। मीनाक्षी के चेहरे पर न जाने कैसे एक्सप्रेशन्स थे कि समीर घबरा सा गया।

“आप ठीक हैं?” उसकी बात में मीनाक्षी के लिए चिंता साफ़ सुनाई दे रही थी।

‘अरे बिलकुल ठीक हूँ.. लेकिन खाना पकाने का काम तो मेरा है’ मीनाक्षी ने मन में सोचा।

“आप क्यों नाश्ता बना रहे हैं?” प्रत्यक्ष में उसने कहा।

“मतलब?” समीर को जैसे कुछ समझ नहीं आया।

“मतलब मुझे उठा लेते। आप क्यों करने लगे? यह तो मेरा काम है!”

“ओह! अच्छा अच्छा! अरे, आप सो रही थीं, इसलिए डिस्टर्ब नहीं किया। मैं वैसे भी काफ़ी जल्दी उठ जाता हूँ। और, मुझे कुकिंग करना बहुत पसंद है! इसलिए आप ऐसे मत सोचिये कि यह काम आपका है, और वो काम मेरा। डिवीज़न ऑफ़ लेबर जैसा कुछ नहीं है यहाँ! हा हा हा। जब भी आपका मन हो, आप बना लीजिए। जब भी मन हो, मैं बना लूँगा। अच्छा लगे, तो साथ में!” कह थोड़ा सा मुस्कुराया और फिर आगे बोला, “वैसे डिनर तो आज मैं ही बनाऊँगा - शाही पनीर और आलू पराठा! आदेश ने बताया है… आपका फेवरेट! साथ में मेरी माँ के हाथ का बना सिरके वाला आम का आचार। खूब मज़ा आएगा।”

मीनाक्षी फिर भी अनिश्चित सी खड़ी रही - वो कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कह नहीं पा रही थी।

समीर ने आधिकार भरी आवाज़ में कहा, “आप मेरी गुलाम नहीं, बल्कि मेरी पत्नी हैं!” उसने प्यार से एक दो क्षण मीनाक्षी की तरफ देखा और कहा, “चलिए, नाश्ता कर लेते हैं! केचप मुझे पसंद नहीं। आम, धनिया और पुदीने की खट्टी-मीठी चटनी बनाई है। अगर टेस्टी न लगे, तो आगे से केचप रखा करूँगा।”

हतप्रभ सी मीनाक्षी रसोई से बाहर निकल आई। बहुत मुश्किल से उसने आँसुओं को बाहर आने से रोका।

‘क्या क्या सोच रही थी मैं!’


*******************************************************************************


नाश्ते करते समय मीनाक्षी बहुत चुप सी थी।

उसको अपनी ही सोच पर ग्लानि हो रही थी - ‘कैसी छोटी छोटी बातों को लेकर मैं चिंतित थी! कैसा छोटा मन है मेरा! मम्मी डैडी तो इतना चाहते है मुझे कि मेरे खुद के माँ बाप भी शायद हार मान लें! इतना प्रेम! सच में, इस घर में मैं बहू नहीं, बेटी के जैसे हूँ। प्रभु ने कुछ सोच कर ही मुझे इस घर में भेजा होगा। वो कहते हैं न, ‘जोड़ियाँ तो भगवान् ही बनाते हैं’... और जब भगवान् ने मेरे लिए समीर को चुना है, तो फिर मुझे शंका क्यों होनी चाहिए? ऐसा भाग्य!

और इनको देखो - मेरी हर बात की फ़िक्र है इनको। मुझे आराम मिले, इसलिए मुझे एसी वाले कमरे में सुलाते हैं, और खुद गर्मी में सो जाते हैं! ज़रा सोच! कल वो चाहते, तो कुछ भी करते। मैं क्या कर पाती? उनको मना तो न कर पाती। अब तो मेरे पूरे अस्तित्व पर उनका ही अधिकार है। लेकिन देखो! कैसी मर्यादा! कैसा आत्म-नियंत्रण! और मुझे देखो! जूते मोज़े जैसी निरर्थक बातों को सोच कर परेशान हो रही थी। ऐसा पति तो प्रभु मेरे दुश्मनों को भी देना। उनकी संगत में आ कर दुश्मनों की दुष्टता भी ख़तम हो जाएगी।’

“क्या हो गया आपको? इतनी चुप-चाप? क्या गड़बड़ बना है? सैंडविच या चाय?”

“कुछ भी गड़बड़ नहीं है! दोनों बहुत स्वादिष्ट बने हैं!” मीनाक्षी विचारों के भँवर से निकल कर समीर की तरफ़ मुखातिब होती है।

“घर की याद आ रही है?”

मीनाक्षी ने ‘न’ में सर हिलाया। फिर से उसकी आँखों में आँसू भरने लगे।

समीर को एक पल समझ नहीं आया कि वो क्या करे, या क्या कहे।

“एक काम करते हैं, आपके लिए एक फ़ोन और नया नंबर ले लेते हैं। आज ही। कम से कम घर बात करने में सहूलियत रहेगी। ठीक है?”

जिस समय की यह बात है, उस समय मोबाइल फोन का चलन बहुत कम था। अभी अभी सर्विस प्रोवाइडर्स ने इनकमिंग कॉल्स पर से चार्ज लेना बंद किया था। मीनाक्षी ने कुछ कहा नहीं। वो उसको कैसे समझाए कि इन में से किसी भी बात को लेकर वो दुःखी नहीं है। वो अपनी सोच, और अपने व्यवहार से दुःखी है।

“शाम को मम्मी डैडी भी आ जाएँगे।”

उनका जिक्र आते ही मीनाक्षी मुस्कुरा उठी, “वो जाते ही क्यों हैं? यही क्यों नहीं रुक जाते!”

“अरे, उनका घर है अपना। दोनों बहुत इंडिपेंडेंट हैं। और मुझे भी कहते हैं कि इंडिपेंडेंट रहो। ऐसा नहीं है कि वो मुझे सपोर्ट नहीं करते, लेकिन फाइनल डिसीजन मेरा ही रहता है। और वो मेरी हर डिसीजन को सपोर्ट करते हैं।”

“आप लकी हैं बहुत! ऐसे माता पिता बहुत भाग्य वालों को मिलते हैं।”

“आपके माँ बाप भी तो अच्छे हैं!”

“हाँ! अच्छे हैं। लेकिन लड़की के माँ बाप होने का बोझ रहा है उन पर। हमेशा से। और हम लोग ट्रेडिशनल भी बहुत हैं। इस कारण से आदेश और मुझमे बहुत अंतर है।”

“हाँ! वो तो है! आप आदेश से बहुत अधिक अच्छी हैं!”

“मुझे पता नहीं आप मुझे कितना अच्छा समझते हैं। लेकिन मैं कोशिश करूँगी कि मैं जितना पॉसिबल है उतनी अच्छी बन सकूँ!”

समीर ने ‘न’ में कई बार सर हिलाया, “आप जैसी हैं, वैसी रहना! कुछ मत बदलना।” और कह कर मुस्कुरा दिया। थोड़ी देर सोचने के बाद वो बोला,

“सोच रहा हूँ, एक बार ऑफिस हो आता हूँ। वहाँ किसी को ख़बर नहीं है कि मैं दो दिन से क्यों नहीं आ रहा हूँ।”

“जी, ठीक है।”

“सोच रहा था कि आप भी चलिए! सबसे आपका परिचय भी करवा दूँगा और रिसेप्शन के लिए इनवाइट भी कर लूँगा।”

“जी” वो कम से कम समीर की इच्छाओं का पालन तो कर ही सकती थी।

“बहुत बढ़िया! मैं जल्दी से तैयार हो जाता हूँ! कार से चलेंगे! हा हा हा हा!” समीर ने ऐसे कहा जैसे वो अपने दोस्तों को दहेज़ की कार दिखाना चाहता हो। लेकिन मीनाक्षी जानती थी कि दरअसल वो उसके खुद के आराम के लिए उसको कार में ले जाना चाहता था।
beshkimti update dost
 
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“क्या भाई समीर, सब ठीक तो है?”

“यस सर! सब ठीक है।”

“दो दिनों से कोई खबर नहीं मिली तुम्हारी तो चिंता हुई। आज तक कोई छुट्टी ली नहीं न तुमने। इसलिए।”

“सर, एक बात कहनी थी आपसे।”

“हाँ, बोलो। क्या हो गया?”

“सर, मैंने शादी कर ली है।”

“क्या? बहन**! और बताया भी नहीं! ऐसे चुपके चुपके कोई शादी करता है क्या!” समीर के बॉस ने नाराज़गी दिखाते हुए कहा।

“अरे सर, गया तो था एक फ्रेंड की सिस्टर की शादी में, लेकिन मैं खुद ही उसको ब्याह कर ले आया!” समीर ने हँसते हुए बताया।

“क्या! क्या कह रहे हो! बेन**! साला, ये तो बहुत इंटरेस्टिंग स्टोरी बनती जा रही है। रुक, कांफ्रेंस रूम में बैठ कर आराम से बात करते हैं।”

“अरे रामसिंह,” बॉस ने ऑफिस के अर्दली को आवाज़ लगाई, “दो बढ़िया चाय मँगाओ। ज़रूरी मीटिंग है।”

अगले डेढ़ घण्टे तक समीर अपने बॉस को अपनी शादी का अनूठा किस्सा सुनाता चला गया। बॉस भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो, सब सुनता चला गया। उसको यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई ऐसा कुछ कर सकता है। बीच बीच में वो समीर से ढेर सारे सवाल भी पूछता जा रहा था। जब उसकी यह जिरह पूरी हुई तो उसने समीर से कहा,

“यार, तू गज़ब है! सच में! मेरी नज़र में तुम्हारे लिए आज रेस्पेक्ट बढ़ गई है! बहुत अच्छा काम किया! उम्मीद है कि तुम दोनों सुखी रहो!”

“थैंक यू सर! मीनाक्षी को लाया हूँ साथ में!”

“अरे! तू उसको अकेले छोड़ कर यहाँ मेरे साथ गप्पें लड़ा रहा है? वो बेचारी ऐसे ही नीचे बैठी हुई है! अजीब चू** हो! अरे, बुलाओ उसको।”

अगला एक और घण्टा ऑफिस में लोगों से मिलने, बधाइयाँ लेने, उनको रिसेप्शन के लिए आमंत्रित करने और चाय पीने में बीत गया। कितने ही लोगों ने मीनाक्षी को ‘कितनी प्यारी है’ कर के सराहा। जाते जाते बॉस ने उसको बोला कि वो अटेंडेंस की चिंता न करे। रिसेप्शन के दिन तक फुल अटेंडेंस लगा दी जाएगी। और समीर का जब मन करे वापस आए। ऑफिस से जैसा हो सकेगा, उसको सपोर्ट किया जाएगा। समीर ने उसको कहा कि फिलहाल तो उसको छुट्टी की ज़रुरत नहीं, लेकिन जब एकमुश्त छुट्टी की ज़रुरत होगी, तो वो पहले ही बता देगा।
vichitr update dost
 
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शादी का रिसेप्शन दिखावे में भले ही कम रहा हो, लेकिन मौज मस्ती में अव्वल नंबर था।

मीनाक्षी ने एक रानी कलर का नया, हल्का लहँगा पहना हुआ था, और समीर ने सूट। दोनों को देख कर वहां उपस्थित कई लोगों को ईर्ष्या हो उठी। लड़के और अन्य आदमी इस बात से जल भुने कि ऐसी ख़ूबसूरत लड़की मिल गई इस मुए को, और अविवाहित लड़कियाँ इस बात से जल फुंकी कि जो शायद उनके हिस्से में आता, वो ये लड़की ले उड़ी। मैंने यह देखा है कि गैर-शादीशुदा लड़के को भले ही लड़कियाँ घास न डालती हों, जैसे ही वो शादी-शुदा हो जाते हैं, अचानक ही उनकी सेक्स अपील बढ़ जाती है। मेरा यह ऑब्जरवेशन गलत भी हो सकता है, क्योंकि उतनी दुनिया नहीं देखी है मैंने। लेकिन जितना देखा है, उससे तो यही समझा है। खैर, इस बात का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है।

आज मीनाक्षी को बहुत अच्छा लग रहा था। पिछले दिनों के मानसिक और भावनात्मक तनाव कहीं दूर जा छुपे थे और वो खुल कर अपने नए परिवेश, अपने नए स्टेटस का आनंद ले रही थी। डीजे एक से एक नाचने वाले संगीत बजा रहा था। और मेहमानों के उकसाने पर समीर और मीनाक्षी डांस-फ्लोर पर आए और थिरकने लगे। डांस करना तो उसके लिए वैसे भी सबसे पसंदीदा काम था। जब डांस-फ्लोर पर आए तो फालतू भीड़ वहां से हट गई। कहने को उनका डांस सबके सामने हो रहा था, लेकिन उन दोनों के लिए यह एक निहायत ही अंतरंग क्षण थे। शादी के बाद पहली बार दोनों एक दूसरे को इस तरह से स्पर्श कर रहे थे। इस समय दोनों को किसी की परवाह नहीं थी।

एक दूसरे के चेहरे पर उठने वाले ख़ुशी के भाव पढ़ कर, उन दोनों की ख़ुशी और बढ़ रही थी। और इसका प्रभाव कुछ ऐसा हुआ कि दोनों की नज़र एक दूसरे के चेहरे से हट ही नहीं रही थी। सच में, इस समय दोनों को किसी की परवाह नहीं थी। डीजे वाला यह सब देख रहा था, और समझ रहा था। उसने अपनी चालाकी दिखाते हुए संगीत को जारी रखा। उधर दोनों का डांस अपने पूरे शबाब पर पहुँच गया था। शुरुआती झिझक जाती रही थी। दोनों सिद्धहस्त कलाकारों के जैसे नाच रहे थे, और उनको देख कर सभी दर्शक-गण दाँतों तले उँगलियाँ दबा रहे थे।

मीनाक्षी की कमर को समीर ने दोनों हाथों से थाम रखा था, और मीनाक्षी के हाथ समीर के गले में माला बने झूल रहे थे। संगीत की लय और धुन अब गहरी होती जा रही थी। झंकार लगभग समाप्त थी, और सिर्फ ड्रम जैसे वाद्य की ही आवाज़ आ रही थी। मदहोश करने वाला संगीत!

समीर ने मीनाक्षी को देखा। वो मुस्कुरा रही थी। कैसी उन्मुक्त मुस्कान! साफ़! जब आप वर्तमान का आनंद उठाते हैं - अपना मनपसंद काम करते हैं - न भूतकाल में जीते हैं, और न ही भविष्य में, तब ऐसी उन्मुक्तता आती है।

‘ओह! कितनी सुन्दर! अप्सराएँ भी पानी भरें मेरी मीनाक्षी के सामने! कैसे भरे भरे होंठ! कैसी स्निग्ध मुस्कान! कैसी सरल चितवन!’

यह लड़की नहीं थी। न कोई अप्सरा थी। ये साक्षात् कामदेव की पत्नी रति थी, जो धरती पर उतर आई थी! इधर रति उसके बाहों में थी, और उधर कहीं से छोड़ा गया कामदेव का पुष्पवाण सीधा समीर के ह्रदय में उतर गया। ऐसी इच्छा उसको पहले कभी न हुई। संगीत और गहरा और निशब्द होता जा रहा था। अब सिर्फ ड्रम जैसे वाद्य की ही आवाज़ आ रही थी। इसका प्रभाव सभा में उपस्थित अन्य लोगों पर भी पड़ रहा था। वो पूरे कौतूहल से अपने सामने होते घटनाक्रम का साक्षात्कार कर रहे थे।

डांस-फ्लोर पर चक्कर-घिन्नी कर के नाचने वाली विभिन्न बत्तियाँ अब धीमी हो चली थीं। अब उनमे से मीनाक्षी के लहँगे के रंग वाली लाइट निकल रही थी, और बस उन दोनों पर ही केंद्रित थी। बाकी के फ्लोर पर अब अँधेरा छा गया था। समीर के हाथ अनायास ही ऊपर उठते हुए मीनाक्षी के कोमल कपोलों पर आ गए। उसी की तर्ज़ पर मीनाक्षी के हाथ भी समीर के गालों पर आ गए।

‘आह! कितना कोमल स्पर्श!’ समीर के शरीर में एक रोमांचक तरंग दौड़ गई।

वो मीनाक्षी को चूमने के लिए उसकी ओर झुका और तत्क्षण ही उसके और मीनाक्षी के होंठ मिल गए। दरअसल, मीनाक्षी पर भी समीर की ही भाँति डांस, और संगीत का सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। जब समीर उसकी तरफ झुका, तब वो भी अपना चेहरा उठा कर उसको चूमने को हुई। कोई दो सेकण्ड चले चुम्बन को वहाँ उपस्थित फोटोग्राफर्स ने बख़ूबी उतारा। एक तरफ़ जहाँ ईर्ष्यालु लड़के, लड़कियों की छाती पर साँप लोट गए, वहीं दूसरी तरह उनके मुँह से आहें और सीटियाँ निकल गईं। दोनों की तन्द्रा तब टूटी, जब सभा में उपस्थित मेहमानों की तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूँज उठा। तब उनको समझा कि दोनों का प्रथम चुम्बन अभी अभी हुआ है! शर्म से दोनों के ही गाल सुर्ख हो गए। उन दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ कर दर्शकों और शुभचिंतकों का अभिवादन किया। डीजे वाला वापस अपने पहले जैसे संगीत पर लौट आया। और ये दोनों वापस स्टेज पर अपने सोफे पर लौट आए।

समीर की माँ भागी भागी स्टेज पर आईं, और अपनी आँख के कोने से काजल निकाल कर मीनाक्षी के माथे के कोने में एक छोटा सा डिठौना (काला टीका) लगा दीं।

“हाय! मेरी प्यारी बिटिया को कहीं किसी की नज़र न लग जाए।” कह कर उन्होंने मीनाक्षी का माथा चूम लिया।

उसने सामने की तरफ देखा - उसकी माँ और पिता जी दोनों अपनी नम हो गई आँखों को रूमाल से पोंछ रहे थे। उसके ससुर एक चौड़ी मुस्कान लिए अपने बेटे को ‘थम्ब्स अप’ दिखा रहे थे। और आदेश भी उन्ही की ही तरह मुस्कुराते हुए अपनी हाथ की मुट्ठी बाँध कर वैसे दिखा रहा था जैसे जब कोई बल्लेबाज़ शतक बनता है, या कोई गेंदबाज़ विकेट चटकाता है।

आज की रात खुशियों वाली रात थी। रिसेप्शन के अंत में पूरे परिवार ने साथ में बैठ कर खाना खाया। और बड़ी फ़ुरसत में एक दूसरे से बात करी। फिर समीर के मम्मी डैडी के निमंत्रण पर मीनाक्षी में माँ बाप और आदेश उनके घर को चल दिए, और सारे उपहारों के साथ समीर और मीनाक्षी अपने घर को!
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आज की रात खुशियों वाली रात थी। रिसेप्शन के अंत में पूरे परिवार ने साथ में बैठ कर खाना खाया। और बड़ी फ़ुरसत में एक दूसरे से बात करी। फिर समीर के मम्मी डैडी के निमंत्रण पर मीनाक्षी में माँ बाप और आदेश उनके घर को चल दिए, और सारे उपहारों के साथ समीर और मीनाक्षी अपने घर को!


(अब आगे)


घर आने पर समीर अपनी आदत अनुसार कमरे में आया, और पार्टी वाले कपड़े बदलने लगा। एक दो बार मीनाक्षी ने उसकी झलक देखी है बिना कपड़ों में! उसको देख कर वो न जाने क्यों लजा जाती। समीर के पीछे पीछे ही, धीरे धीरे चलते हुए वो भी कमरे में आती है। शर्त उतरने पर उसने पहली बार पीछे से उसका मर्दाना, कसरती जिस्म देखा। भुजाओं, कंधों और पीठ की माँस-पेशियाँ उसकी हर एक हरकत पर मछलियों के समान फिसल रही थी। अगले ही पल उसकी पतलून भी हट गई। ऊपरी शरीर के साथ साथ निचला शरीर भी गठा हुआ था।

“ओह! आई ऍम सॉरी! मैंने ध्यान नहीं दिया कि आप भी यहाँ हैं। सॉरी!” कहते हुए उसने जल्दी से अपना निक्कर पहन लिया और टी-शर्ट पहनने लगा।

मीनाक्षी मुस्कुरा दी। वही सौम्य, स्निग्ध मुस्कान, जिसने वहाँ डांस-फ्लोर पर समीर के प्रण को धराशाई कर दिया। चुनरी उतार कर वो एक पल तो ठिठकी। समीर अभी भी वहीं था। फिर उसने अपनी नज़रें झुका कर अपनी चोली का हुक खोलना शुरू कर दिया।

“ओह! लेट मी गिव यू योर प्राइवेसी!” कह कर समीर बाहर जाने लगा।

मीनाक्षी का मन हुआ कि वो उसे रोक ले। वो कुछ कहती, उसके पहले ही समीर ने कहा,

“आप कपड़े बदल लीजिए। फिर आता हूँ।” कह कर वो कमरे से बाहर निकल गया और जाते जाते दरवाज़ा भी भेड़ गया।

मीनाक्षी ने एक गहरी साँस छोड़ी, और मुस्कुरा दी। जब तक उसने कपड़े बदल कर सोने के लिए कपड़े पहने, और अन्य कपड़ों और ज़ेवरों को व्यवस्थित कर के समुचित स्थान पर रखा, तक तक समीर रसोई में जा कर दोनों के लिए चाय बना लाया। और उसने जब चाय का प्याला मीनाक्षी की तरफ बढ़ाया तो उसने शिकायत भरे लहज़े में कहा,

“अरे, आपने क्यों बना दी? मुझको कह देते!”

उसकी शिकायत को अनसुना करते हुए समीर बोला, “दो मिनट फुर्सत से आपके साथ बैठ कर बात करने का मौका ही नहीं मिला। इसलिए सोचा, चाय बना लाता हूँ। साथ में बैठ कर, चुस्कियाँ लेते हुए बातें करेंगे।”

“आपको चाय बनाना आता है,” मीनाक्षी ने पहली चुस्की ले कर कहा! स्वाद ऐसा था जैसे उसकी माँ ने बनाया हो। घर की याद दिलाने वाली चाय! “खाना पकाना आता है, डांस करना आता है…” बॉडीबिल्डिंग करना आता है, यह जान-बूझ कर नहीं कहा उसने, “क्या नहीं आता आपको?”

“पति की खूबियाँ धीरे धीरे पता चलनी चाहिए! उससे पत्नी के मन में पति के लिए प्रेम और आदर दोनों बना रहता है!” समीर ने ठिठोली करते हुए कहा।

‘प्रेम और आदर तो अभी भी है’ मीनाक्षी ने सोचा।

“वैसे डांस तो आपका लाजवाब है। देखा नहीं, कैसे सब मुँह बाए देख रहे थे!”

डांस की बात सुन कर, मीनाक्षी को उस चुम्बन की याद हो आई। और समीर को भी। दोनों की नज़रें कुछ पल के लिए मिलीं।

“थैंक यू फॉर द किस!” समीर ने बड़ी संजीदगी से कहा।

वो मुस्कुराई, “थैंक्स टू यू टू!”

“पार्टी कैसी लगी?” समीर ने मुस्कुराते हुए पूछा, “जल्दबाज़ी में कुछ भी ठीक से प्लान नहीं हो पाया।”

“बहुत बढ़िया थी! बहुत बढ़िया! थैंक यू!”

“अरे! थैंक यू काहे का?”

“ऐसे यादगार पल देने के लिए! आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूँगी!”

“थैंक्स! मम्मी पापा से आपको बात करने का मौका मिला?”

“जी!”

“वो लोग ठीक हैं? आज बात ही नहीं हो पाई।”

“बिलकुल ठीक हैं! बहुत खुश हैं। उनको मालूम है कि उनकी बेटी बहुत सुख से है।”

“गुड! मैं चाहता हूँ, कि आप अपने तरीके से, जैसा मन करे, वैसा रहिए। जो मन करे, वो करिए! ये आपका घर है। जैसा मन करे, रखिए। और, अगर जॉब करने का मन है, तो बताइए। बॉस की वाइफ डी पी एस में हैं। उनसे बात करवाई जा सकती है। वहाँ अच्छी सैलरी मिलती है। या जो भी कुछ करने का मन हो, बताइए!”

मीनाक्षी से रहा नहीं गया। उसने समीर के हाथ को अपने हाथ से दो तीन बार सहलाते हुए कहा, “थैंक यू!”

दोनों की चाय ख़तम हो गई थी। समीर उसकी और अपनी प्याली उठा कर ले जाने को हुआ तो मीनाक्षी ने उसको रोकते हुए कहा, “कम से कम ये तो कर लेने दीजिए मुझे!”

“अरे, मैं वैसे भी बगल वाले कमरे में जा रहा हूँ। उसके लिए उठना ही है।”

“आप .... यहीं सो जाइए न?” उसने हिचकिचाते हुए कहा, “वहाँ क्यों जाते हैं! इतनी गर्मी हो जाती है वहाँ!”

“आई नो! गर्मी तो होती है। और, सच कहूँ, मुझसे ज्यादा कौन चाहता होगा आपके साथ सोना?”
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“तो फिर?”

“मैं अपने आपको रोक नहीं पाऊँगा!”

समीर के ऐसे स्पष्टीकरण को सुन कर मीनाक्षी का चेहरा शर्म से लाल हो गया। फिर भी उसको अपनी बात तो कहनी ही थी,

“रोकने को किसने कहा।”

समीर कुछ देर के लिए चुप हो गया। उसके धड़कनें अचानक ही तेज़ हो गईं। फिर उसने खुद पर थोड़ा नियंत्रण लाते हुए कहा, “आई डू लव यू! डू यू नो दैट?”

उसने सर हिला कर हामी भरी।

“मैं आपको ‘मिनी’ बुला सकता हूँ?”

मीनाक्षी मुस्कुराई, “आप प्यार से मुझे जिस नाम से भी बुलाएँगे, वो ही मेरा नाम होगा।”

समीर मुस्कुराया, “मिनी, आई लव यू। और इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि हम एक दूसरे के बारे में बहुत अंजान हैं। पति-पत्‍नी के प्‍यार में .... शारीरिक संबंध ही पति-पत्‍नी का असली संबंध नहीं है। मैं आपको जानना चाहता हूँ। अपने बारे में बताना चाहता हूँ। कुछ मंत्र पढ़ लिए, रीति रिवाज पूरे कर लिए। वो कोई शादी थोड़े ही है! वो तो बस, सामजिक शादी है। वो शादी तो हो गई।

लेकिन हमारा क्या? हमारी भावनात्मक शादी का क्या? उसके लिए मैं आपकी पसंद, नापसंद जानना चाहता हूँ। मैं जानना चाहता हूँ कि आप किन बातों पर हँसती हैं। किन बातों पर नाराज़ होती हैं। मैं आपको जानना चाहता हूँ। इतना कि बिना आपके कुछ बोले मुझे समझ में आ जाए कि आप क्या सोच रही हैं। मैं आपका ऐसा ख्याल रखना चाहता हूँ कि आप आगे आने वाली जिंदगी दुःख क्या होता है, यह भूल जाएँ!

मैं यह नहीं चाहता कि आप किसी भी तरह का कोम्प्रोमाईज़ करें, या मैं किसी तरह का कोम्प्रोमाईज़ करूँ। हमें कोम्प्रोमाईज़ नहीं करना है, बल्कि तार-तम्य बैठाना है। तबला अलग है, बाँसुरी अलग। अगर कोम्प्रोमाईज़ करेंगे तो उनमे से कोई एक कम बजेगा, और दूसरा ज्यादा। लेकिन अगर दोनों ने तार-तम्य बैठेगा, तो दोनों बराबर बजेंगे। और एक बढ़िया सिम्फनी बनेगी।

सच कहूँ, मैं मरा जा रहा हूँ आपका सान्निध्य पाने के लिए। लेकिन मैं इंतज़ार कर लूँगा। मुझे मालूम है कि उस इंतज़ार का फल बहुत मीठा होगा।”

समीर की ऐसी गंभीर समझ को सुन कर मीनाक्षी कुछ पल समझ नहीं सकी कि वो क्या बोले। फिर कुछ सोचने के बाद बोली, “मम्मी डैडी ने लड़का नहीं, हीरा बनाया है आपको!”

“हा हा हा हा हा हा”

“एक बात पूछूँ आपसे?”

“हाँ?”

“मिनी क्यों?”

“हा हा…. आप उम्र में मुझसे बड़ी हैं, लेकिन न जाने क्यों छोटी सी लगती हैं मुझे!” कह कर समीर कमरे से बाहर चला गया।

जब वो वापस लौट रहा था, तब मीनाक्षी ने उसको पुकारा, “सुनिए?”

जब समीर कमरे में आ गया तो उसने कहा, “इधर आइए? मेरे पास!”

समीर उसके पास आ कर बिस्तर पर बैठ गया, तब मीनाक्षी ने प्रेम से उसके गले में गलबैयाँ डाल कर उसके होंठों को चूम लिया। और अपनी बड़ी बड़ी आखों से उसके मुस्कुराते चेहरे को देखने लगी।

“गुड नाइट!”

“गुड नाइट!” समीर ने कहा, और अनिच्छा से कमरे से बाहर निकल आया। उसका दिल बल्लियों उछल रहा था। सुनहरा भविष्य सन्निकट था।
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रिसेप्शन के बाद के दिनों में दोनों की दिनचर्या बँध गई। मीनाक्षी जल्दी उठ जाती, जिससे वो समीर को नाश्ता खिला कर ऑफिस भेज सके। दिन में वो लिखने पढ़ने का काम करती। डांस करती। जिम जाती। आस पड़ोस में और महिलाओं से बात करती। शाम को समीर के आने के बाद उसके लिए नाश्ता रखती। डिनर पर से समीर का एकाधिकार ख़तम हो रहा था। डिनर दोनों मिल कर पकाते। सप्ताहांत में मम्मी डैडी आते, और उनके साथ गप्पें लड़ाने, और मज़े करने में निकल जाता।

मीनाक्षी धीरे धीरे करके समीर के साथ खुलने लगी। दोनों कोई बहुत बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते थे, बस, वो दैनिक छोटी-छोटी बातें - जैसे कि समीर का दिन कैसा रहा, उसका खुद का दिन कैसा रहा, क्या देखा, क्या पढ़ा, क्या किया, क्या खाया, ऑफिस में किसने क्या कहा, क्या सुना - बस ऐसी ही छोटी-छोटी बातें! मीनाक्षी ने समीर के साथ अपने किसी बड़े रहस्य को साझा नहीं किया। लेकिन उसने समीर से सहजता के साथ बात करना शुरू कर दिया।

एक बार समीर ने मीनाक्षी से अपने ऑफिस के काम से सम्बंधित किसी बात के सिलसिले में उससे कुछ महत्वपूर्ण सुझाव मांगे। मीनाक्षी को यकीन ही नहीं हुआ कि वो उससे इस विषय में सलाह मांग सकता है - उसने इंजीनियरिंग की कोई पढ़ाई नहीं करी थी, अब ऐसे में वो समीर को क्या सलाह देती? और तो और, क्या यह एक स्त्री का कोई स्थान है कि वो अपने पति को किसी तरह की कोई सलाह दे? उसको याद आया एक बार की बात जब उसके पापा ने उसकी माँ से इसी तरह अपने काम के सिलसिले में एक प्रश्न पूछ लिया। माँ ने सोचा कि शायद पापा उनसे वाकई कोई उत्तर या सलाह चाहते हैं। लेकिन जब उन्होंने जवाब दिया तो पापा झल्ला गए।

इसलिए मीनाक्षी के मन में अज्ञात का भय था। वो नहीं चाहती थी कि उसकी किसी नादानी के कारण, ये जो हँसी ख़ुशी के दिन बीत रहे हैं, उनमे कोई विघ्न पड़े। लेकिन समीर ने पूछा था तो कुछ तो बताना ही चाहिए। विषय ज्ञान तो नहीं था। मीनाक्षी ने समीर की तरफ देखा; वो किसी उत्तर या सुझाव की उम्मीद में उसी की तरफ देख रहा था। थोड़ा अनिश्चय के साथ ही सही, लेकिन मीनाक्षी ने सुझाव देना शुरू किया, और समीर ने सुना। पूरा सुना। पूरी गंभीरता और पूरे आदर के साथ। सुझावों के कुछ बिंदुओं पर उसने मीनाक्षी के साथ कुछ देर तक प्रतिवाद भी किया।

जब वो पूरी तरह से संतुष्ट हो गया, तो मुस्कुराते हुए ‘थैंक यू … आई मैरिड एन इंटेलीजेंट गर्ल’ बोल कर कमरे से बाहर निकल गया। अपनी उपयोगिता और महत्ता पर आज मीनाक्षी को खूब गर्व महसूस हुआ। आज उसके अंदर एक अलग तरह का आत्मविश्वास पैदा होने लगा था।


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नॉएडा में मीनाक्षी की कुछ सहेलियाँ रहती थीं, जो उसकी शादी में उपस्थित थीं। उनमे से कुछ रिसेप्शन में भी आई थीं। एक बार मीनाक्षी का मन हुआ कि वो उनसे मिल आए। इस बाबत उसने समीर से अपने दोस्तों से मिलने के बारे में आज्ञा चाही।

मीनाक्षी ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “क्या मैं अपनी सहेलियों से मिलने जा सकती हूँ? वो एक शेयर्ड अपार्टमेंट में रहती हैं - शायद आज रात रुकना पड़ जाए। लेकिन मैं जल्दी आने की कोशिश करूँगी और कैसी भी बेवकूफी वाला काम नहीं करूँगी। आप चाहें तो मुझे फोन कर सकते हैं, या उनको फ़ोन कर सकते हैं। ये डायरी में उनका नंबर भी लिख दिया है। मैं जल्दी ही वापस आ जाऊंगी। जा सकती हूँ?”

जिस तरह की मीनाक्षी की परवरिश थी, उसमें उसको सिखाया गया था कि शादी के बाद स्त्री पर उसके पति का पूर्ण अधिकार होता है। बिना पति की आज्ञा के कोई कार्य नहीं करना।

लेकिन समीर की गुस्से से भरी शकल देख कर मीनाक्षी का दिल बैठ गया। आज तक समीर को गुस्से में उसने नहीं देखा था। कुछ देर समीर ने कुछ कहा नहीं - वाकई वह बहुत गुस्से में था। उसका यह रूप देख कर उसको डर लग गया। ज़रूर कोई गड़बड़ी हो गई है उससे! उसको लगा कि जैसे वो समीर के सामने नग्न खड़ी हुई है। शर्म के मारे उसकी आँखें जैसे ज़मीन में धंस गईं। आज समीर उसको एक और पाठ पढ़ाने वाला था।

समीर ने लगभग निराश होते हुए कहा, “मीनाक्षी,” (रोज़ के जैसे उसने उसको ‘मिनी’ कह के नहीं पुकारा) “मैंने आपको कितनी बार कहा है कि आप मेरी पत्नी हैं! कितनी बार? और अपनी सहेलियों से मिलने जाने के लिए आप मेरी परमिशन क्यों ले रही हैं? आप मेरी एम्प्लॉई हैं क्या? छुट्टी की एप्लीकेशन लगाओ अब से! ठीक है न?”

फिर कुछ ठहर कर, कम गुस्से में उसने आगे कहा, “आप मुझे बस बता दिया करें! जिससे मुझे मालूम रहे कि आप किसी परेशानी में तो नहीं हैं! बस! उतना काफी है। जाओ। लेकिन अब से ऐसे भीख मत माँगो! प्लीज़!” उसने कहा और वहाँ से चला गया। खुश तो बिलकुल ही नहीं था।

समीर की बातों और उसके बर्ताव से मीनाक्षी को धक्का लगा। सच में, पहले दिन से ही समीर ने उसको इतना आदर दिया था जितना की उसको अपने घर में नहीं मिला था। और यह बात तो उसने कम से कम दस हज़ार बार दोहराई होगी कि मीनाक्षी उसकी पत्नी है, और उसका समीर के जीवन में बराबर का अधिकार है। मीनाक्षी को लगा कि उसने वाकई समीर को निराश कर दिया। मीनाक्षी समीर के पीछे पीछे गई। वह बालकनी से नीचे सड़क को देख रहा था। मीनाक्षी भी उसके संग, उसके बराबर आ कर खड़ी हो गई और नीचे देखा।

“समीर (समीर का नाम अपने मुँह पर आते ही मीनाक्षी एक दो पल के लिए रुक गई - आज उसने पहली बार यह नाम बोला था), मैं सीख रही हूँ। प्लीज मेरे साथ थोड़ा धीरज रखिए।”

मीनाक्षी ने नीचे देखते हुए बोलना जारी रखा, “मेरी जैसी परवरिश रही है, अब मैं आपको कैसे समझाऊँ? अपने पति से बात करने के लिए मेरी माँ ने मुझे एक लम्बी चौड़ी लिस्ट दी हुई है, कि मैं क्या कर सकती हूँ और क्या नहीं! कैसे बिहेव करूँ और कैसे नहीं। लेकिन आपके साथ उस लिस्ट की एक भी बात फिट नहीं होती।”

“लेकिन मेरा यकीन मानिए कि मैं सीख रही हूँ। थोड़ा और बर्दाश्त कर लीजिए। प्लीज मुझसे निराश मत होईए।”

मीनाक्षी की बात पर समीर ठट्ठा मार कर हँसा - लेकिन उसकी हंसी में उपहास नहीं परिहास था।

“ओह आई ऍम सॉरी! आई ऍम सॉरी! मैं आप पर नहीं हँस रहा था। वो लिस्ट वाली बात पर हँस रहा था। आल्सो, आई ऍम सॉरी फॉर माय बिहेवियर। मैंने आपसे बदतमीज़ी से बात की, उसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ। मैं आपकी बात याद रखूँगा। लेकिन आप भी वायदा करिए कि अब आप ‘अपने घर’ में हैं, अपने माँ बाप के घर में नहीं। हम दोनों आगे का सोचेंगे! अतीत का नहीं! है न?”

कहते हुए समीर ने एक क्षण के लिए मीनाक्षी की पीठ को छुआ। दिलासा देने के लिए। यह इतना जादुई स्पर्श था कि मीनाक्षी की आत्मा ने भी उसको महसूस किया। मीनाक्षी के मन में यह विचार आया कि काश समीर उसको चूम ले! उसने महसूस किया कि अगर समीर उसको इस समय चूम लेगा, तो उसको खुद को बहुत अच्छा लगेगा।

समीर ने उसकी तरफ प्यार से देखते हुए अपनी एक हथेली उसके गाल पर रखी और दूसरी से उसके चेहरे पर उतर आई उसकी लटों को पीछे की तरफ फेर दिया। और फिर उसने मीनाक्षी का मुख चूम लिया।

“किसी चीज़ की ज़रुरत हो, तो मुझे बता दीजिएगा। और वॉलेट से पैसे निकाल कर रख लीजिए। और….” इसके पहले समीर उसको और कोई हिदायद देता, मीनाक्षी ने उसके होंठों पर अपनी तर्जनी रख कर उसको चुप हो जाने का इशारा किया।

‘मैं आपको जानना चाहता हूँ। इतना कि बिना आपके कुछ बोले मुझे समझ में आ जाए कि आप क्या सोच रही हैं।’

मीनाक्षी के मन में समीर की कही हुई ये बात कौंध गई। उसकी आँखों के कोनों में आँसू उतर गए। उसने आँखें बंद कर समीर को आलिंगनबद्ध कर वापस उसके होंठ चूम लिए।

“आई लव यू!” मीनाक्षी ने कहा।
vilakashan update dost
 
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उस दिन के बाद समीर और मीनाक्षी का अपने दोस्तों के घर आना जाना शुरू हो गया।

मीनाक्षी अपने दोस्तों को डिनर के लिए घर बुलाने लगी। जाहिर सी बात है कि उसकी सहेलियाँ भी उसके ही समान समीर से आठ से दस बड़ी थी। लेकिन मीनाक्षी से समीर के बारे में जान कर उनके मन में भी उसके लिए आदर भाव हो गए थे। वो सभी समीर को ‘जीजू’ या ‘जीजा जी’ कह कर बुलाती थीं। वो इस सम्बोधन पर बहुत हँसता, और उसकी सहेलियों को अक्सर कहता कि उसको उसके नाम से बुलाया करें। लेकिन वो मानती नहीं थीं। सालियों का काम ही है अपने जीजा को तंग करना। मीनाक्षी की सहेलियाँ उसकी अच्छी किस्मत पर जहाँ एक तरफ बहुत खुश थीं, वहीं दूसरी तरफ कहीं न कहीं उनको थोड़ी ईर्ष्या भी थी। वो उसको अक्सर कहतीं कि वो बहुत लकी है कि उसको समीर जैसा हस्बैंड मिला।

दूसरी तरफ समीर के दोस्त भी उसकी ख़ुशकिस्मती पर ईर्ष्यालु हुए बिना नहीं रह सके। अक्सर वो मीनाक्षी से कहते कि ‘भाभी, अपनी ही जैसी कोई हमारे लिए भी ढूंढ दो’। मीनाक्षी बढ़िया पढ़ी-लिखी, समझदार, कार्य-दक्ष, मृदुभाषी, स्नेही और सरल लड़की थी। और उसकी सुंदरता के तो क्या कहने! छोटी छोटी उसकी इच्छाएँ थीं। और जो सबसे बड़ी बात थी वो यह कि भगवान् की उस पर कृपा थी। वरना कैसे उसका जीवन यूँ ही चुटकी बजाते बदल जाता? ऐसी सौभाग्यवती लड़की कौन अपने घर में नहीं लाना चाहेगा?

समीर के साथ रहते हुए मीनाक्षी के ज्ञान, अधिकार और मनोबल की सीमा काफ़ी बढ़ी। अब वो ऐसे काम कर सकती थी, जो उसने पहले सोचे भी नहीं थे। उसके साथ समीर ने उसके परिवेश का दायरा भी बढ़ाने का काम किया। उसको वो क्लब ले जाता, म्यूजिकल कॉन्सर्ट में ले जाता, उसको मिनी-ड्रेस पहनने के लिए प्रोत्साहित करता, उसके साथ जिम जा कर व्यायाम करता, कभी कभी मीठी शराब (डिजर्ट वाइन) भी लाता जिसे दोनों साथ में बैठ कर पीते। घर का हो, या बाहर का कोई सामाजिक काम, वो किसी भी काम में वो मीनाक्षी के विचारों को अधिक अहमियत देता। उसके लिए हमेशा कुछ न कुछ नया कर के उसको सरप्राइज करता। उसको आर्थिक स्वावलम्बन प्राप्त करने के लिए भी प्रोत्साहित करता। उसके प्रोत्साहन के चलते और मीनाक्षी के प्रयत्न से, उसको एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी भी मिल गई।

इन सब बातों के चलते मीनाक्षी को अक्सर लगता कि बिना उसकी मर्ज़ी के ही सही, लेकिन समीर उसके माता-पिता और भाई का दिया हुआ सबसे बड़ा, और सबसे क़ीमती उपहार था। एक अजनबी से शादी करके जैसे उसको दूसरा जन्म मिल गया था।
bahut achchhi update dost
 
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