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Romance संयोग का सुहाग [Completed]

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Nevil singh

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पिछले कुछ वर्षों से मीनाक्षी में मन में लेखिका बनने की इच्छा बलवती हो गई थी। उसके चलते वो कई बार अख़बारों और मैगज़ीनों में छोटी छोटी कहानियाँ लिख कर भेजती रहती थी, जो छपा भी करतीं थीं। उसको लगता था कि वो यह काम अच्छा कर पाती है। अब, जब उसके जीवन में स्थिरता और मजबूती आ गई थी, तो वो लेखन के काम को गंभीरता से लेना चाहती थी। एक रात, मीनाक्षी और समीर बालकनी में साथ में बैठ कर वाइन पी रहे थे और रिमझिम बारिश का आनंद उठा रहे थे। मीनाक्षी के मन में हुआ कि समीर से वो अपने मन की बात बोल दे। उसने संकोच करते हुए, फुसफुसाते हुए कहा,

“मैं… लिखना चाहती हूँ!”

“क्या?”

“मेरा मतलब है, मैं राइटर बनना चाहती हूँ! मेरे मन में यह इच्छा बहुत दिनों से है। लेकिन अब लगता है कि मैं इस इच्छा को पूरा कर सकती हूँ!”

मीनाक्षी की इस बात पर समीर के चेहरे पर जो भाव उठे, उनको मीनाक्षी कभी भुला नहीं सकती। मीनाक्षी ने समीर को इतना खुश होते हुए पहले कभी नहीं देखा था, और उसको एक पल को लगा कि समीर की आँखों में आँसू झिलमिला रहे थे।

“यह तो बहुत बढ़िया बात है। सही में, नौकरी के फेर में पड़ने की कोई ज़रुरत नहीं। अगर आपको लगता है कि आप बढ़िया लिख सकती हैं, तो बिलकुल लिखिए! कभी साहित्य अकादमी अवार्ड मिलेगा तो मैं भी कहूंगा, कि देखो - मेरी बीवी है!”

मीनाक्षी को समीर की यही बात बहुत पसंद है। इतना आशावादी! उसी कारण से समीर ने उससे शादी करी। वो हर काम में इतनी सम्भावनाएँ देखता है कि उसके लिए कुछ भी असंभव सा नहीं लगता। देखो, उसने लिखने की बस इच्छा ही जाहिर करी थी, और वो कहाँ साहित्य अकादमी अवार्ड तक पहुँच गया। ऐसे पुरुष के साथ रहते रहते कोई कैसे न खुद भी आशावादी हो जाए! अगले घण्टे तक समीर उससे क्या लिखना है, कैसे लिखना है, कौन कौन से साधन चाहिए, कैसे उपकरण चाहिए, इन सब बातों को डिसकस करता रहा। उसका उत्साह देखने वाला था।

उस रात मीनाक्षी जिस तरह रोई, वैसे वो पहले कभी नहीं रोई। आज वो रो कर अपने सारे दुःख अपने आँसुओं के साथ बहा देना चाहती थी। ‘बस अब! अब मेरी लाइफ में दुःख की कोई जगह नहीं’। कहीं समीर सुन न ले, यह सोच कर उसने अपना चेहरा तकिये में छुपा लिया। और खूब रोई! उसका मन हुआ कि वो चीख़ भी ले! नैराश्य की भावनाएँ जो पिछले पाँच छः वर्षों से उसके दिमाग में घर कर के बैठ गईं थीं, अब सब बाहर थीं।

जब वो अच्छी तरह रो ली, तब उसने अपना चेहरा धोया। फिर मम्मी ने जो उससे ब्राइडल लॉन्जेरे के दो सेट ज़बरदस्ती खरीदवाए थे, उनमे से एक पहन कर कमरे से बाहर आ गई और समीर के कमरे की तरफ चली। जुलाई बीत चुकी थी, और बढ़िया बारिश होने लगी थी। अब इस कमरे में भी वैसी गर्मी नहीं होती थी।

वो कमरे में आई, और आ कर सीधा समीर के बगल उस बेड पर लेट गई। समीर करवट पर लेटा हुआ था। शायद उसकी ऐसी आदत थी। इस समय उसकी पीठ मीनाक्षी के सामने थी। तो मीनाक्षी भी करवट ले कर उससे चिपक कर लेट गई, और अपना एक हाथ उसने समीर पर डालते हुए उसके सीने पर रख दिया। अपने बिस्तर पर हलचल महसूस कर के वो थोड़ा कुनमुनाया लेकिन मीनाक्षी ने ‘श्श्श ...’ कह कर उसको शांत कर दिया।

आज वो पहली बार समीर के इतने करीब थी। इतने करीब कि समीर के शरीर की महक उसको आ रही थी। यह एक अलग तरह की अंतरंगता थी। अभी तक मर्दों की गंध के नाम पर उसने जो भी महसूस किया था वो ज्यादातर दुर्गन्ध की श्रेणी में आता था। लेकिन समीर के शरीर की गंध उसको खराब नहीं लगी - उल्टे उसको उसकी महक अच्छी ही लगी। मीनाक्षी ने पीछे से ही उसके गर्दन के नीचे चूमा - जहाँ गर्दन और कन्धा मिलते हैं। ऐसा करते ही समीर के उस साइड वाले हिस्से पर रोंगटे खड़े हो गए। उसकी नींद कुछ कुछ खुलने लगी,

“मिनी?” गहरी नींद में उसने कहा।

“श्श्श ... सो जाओ!”

“हम्म?”

“सो जाओ! आज मैं यहीं सोऊँगी!”

“हम्म”

समीर वापस सो गया। गहरी नींद में। मीनाक्षी कुछ इस तरह लेटी हुई थी, कि उसके शरीर का हर अंग इस समय समीर की किसी न किसी अंग से चिपका हुआ था। कोई घण्टा ऐसे ही लेटे रहने से उसका करवट के साइड में दर्द होने लगा। वो खुद भी चित्त लेट गई, और समीर को भी हल्का सा अपनी तरफ खींच कर चित्त लिटा दी। यह बेड दो लोगों के एक साथ सोने के लिए बहुत छोटा था - सिंगल बेड! इसकी चौड़ाई लगभग कोई तीन फ़ीट ही होती है। इसलिए इसमें बिना आपस में चिपके लेटना मुश्किल था।

जब उसका दर्द कम हो गया, तब उसने फिर से समीर की तरफ करवट ली। आँखें अँधेरे में देखने में अभ्यस्त हो गईं थीं अब तक। वो उसको संतुष्टि वाले भाव लिए सोते देख कर मुस्कुरा दी। वो थोड़ा झुकी, और बहुत हलके से उसके गाल को चूमा। वो उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिए रुकी, और कुछ न देख कर उसने फिर से चूमा।

“हम्म” समीर गहरी नींद में ही बोला।

समीर की ऐसी प्रतिक्रिया देख कर वो स्नेह से मुस्कुरा दी, ‘ऐसे तो हमेशा मैच्योर बातें करते हैं, लेकिन अभी देखो! बिलकुल नन्हे बच्चों के जैसे सो रहे हैं’

“सुनो?” उसने बहुत प्यार से, लेकिन बहुत धीमे से पुकारा।

“हम्म?”

“तुम हमेशा मेरे ही रहना” उतने ही धीरे मीनाक्षी ने कहा।

“हम्म”

इस मासूमियत भरे वार्तालाप पर मीनाक्षी को हँसी आ गई, लेकिन समीर जाग न जाए, इसलिए उसने अपनी हँसी दबा ली। लेकिन उसके मन में समीर के लिए जो प्यार उमड़ रहा था, उसकी अभिव्यक्ति भी ज़रूरी थी। मीनाक्षी ने नीचे झुक कर समीर के होंठों को चूम लिया। वैसे ही। हलके से। कोमलता से।

“हम्म!”

मीनाक्षी मुस्कुराई, और फिर कुछ सोचते हुए उसने अपनी नाइटी का एक कप कंधे से नीचे ढलका दिया। उसका एक स्तन अनावृत हो गया। अपनी खुद की ही इस हरक़त से उसके दिल की धड़कने तेज़ हो गयीं। उसने समीर का वो हाथ, जो उसके शरीर के संपर्क में नहीं था, उसको हौले से पकड़ कर अपने अनावृत स्तन पर रख दिया और उसको अपने हाथों से सहारा दे कर स्तन पर रखा रहने दिया। ऐसा साहस / दुस्साहस उसने अपने जीवन में पहली बार किया था। उसका चूचक उत्तेजना से तन गया था और बहुत कठोर हो गया था। अपने शरीर में ऐसा परिवर्तन होते देख कर वो खुद ही घबरा गई। उसने पूरी सतर्कता से समीर का हाथ वापस उसकी जगह पर रख दिया और फिर अपने कपड़े व्यवस्थित कर के बेड से उठी, और अपने कमरे में आ गई।

वो मुस्कुराते हुए लेटी और अगली सुबह मुस्कुराते हुए ही उठी। उसका बदला हुआ व्यवहार देख कर समीर बहुत खुश हुआ। उसको लगा कि शायद अपने लेखन के कार्य को लेकर मीनाक्षी उत्साहित है, इसलिए। लेकिन उसको यह नहीं मालूम था कि मीनाक्षी, जितना वो सोचता था, उससे ज्यादा उसके करीब आ चुकी थी। और उसकी ख़ुशी का भी यही कारण था।
atulye update bandhu
 
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Nevil singh

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इस घटना के कोई दस दिन बाद स्वतंत्रता दिवस था। और उस कारण तीन दिनों की छुट्टी मिलती। समीर ने सुझाया कि कहीं घूमने चला जाए। लेकिन मीनाक्षी ने कहा कि पूरे परिवार के साथ कुछ दिन बिताते हैं। ठीक बात थी, सभी से मिले कुछ समय भी हो गया था। समीर ने कॉल कर के अपने सास ससुर और आदेश को घर आने का न्योता दिया। इसको सभी ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया। सभी लोग पंद्रह अगस्त की शाम को आने वाले थे, इसलिए मीनाक्षी ने सोचा कि घर की थोड़ी सफाई कर ली जाए। कामवाली कुछ दिनों की छुट्टी पर थी, इसलिए घर की सफाई थोड़ा उपेक्षित हो गई थी।

लगभग दस बज रहा था।

नाश्ता और साफ़ सफ़ाई वगैरह निबटा कर मीनाक्षी नहाने के लिए बाथरूम गई। काम काज और गर्मी ने पूरे बदन को पसीने से तर बतर कर दिया था; और ऊपर से ऊमस। ऐसे में चैन नहीं मिलता। जैसे ही नहाते हुए उसने पहला मग पानी का डाला, उसका मन हुआ कि बस कुछ इसी तरह वो पानी में पड़ी रहे। काफी देर तक बाहर निकलने को उसका मन ही नहीं हो रहा था। लेकिन आखिरकार बाहर आना ही पड़ा। बाहर आते हुए उसने अपना बदन एक पतले सूती अंगौछे में लपेट लिया। ऐसी सड़ी हुई गर्मी में तौलिया लपेटने में तो गर्मी के मारे जान निकल जाती।

बाथरूम से निकलकर उसने जैसे ही पहला कदम रखा तो देखा समीर उसके सामने खड़ा है। इतने दिनों में वो आज पहली बार इतनी देर से सो कर उठा था। वो इस समय सिर्फ अपने अंडरवियर को पहने था। समीर का मर्दाना चौकोर चेहरा, छोटे बाल, उनींदी लेकिन चमकती आँखें, होठों पर सहज मुस्कुराहट, लंबी काठी और कसा हुआ शरीर .... अपने पति को ऐसे देख कर मीनाक्षी के दिल में एक धमक सी हुई।

‘ओह! कैसा मॉडल जैसा लगता है!’

वह ठगी सी उसको देखती रह गई। दोनों के इस संछिप्त विवाहित जीवन में अंतरंगता के यह प्रथम क्षण थे। मीनाक्षी समीर को देख तो रही थी, लेकिन समीर क्या देख रहा था? छाती से जाँघ तक के शरीर को सूती अंगौछे से ढकी एक युवती। उसका यौवन जैसे अभी-अभी ही अपने शिखर तक पहुँचा हो। कितनी सुन्दर… मीनाक्षी... मछली के आकार की आँखों वाली! मीनाक्षी को उस हाल में आज तक किसी भी पुरूष ने नहीं देखा था। गीले बालों से टपकते हुए पानी से उसका पतला, सफ़ेद अंगौछा पूरी तरह से भीग चुका था। अब वह वस्त्र मीनाक्षी के शरीर को जितना छुपा रहा था, उससे अधिक उसकी नुमाइश लगा रहा था। उसके स्तनों की गोलाइयाँ, चूचकों का गहरा रंग, शरीर का कटाव, कमर का लोच, नितंब का आकार - कुछ भी नहीं छुप रहा था।

समीर हतप्रभ सा अपनी पत्नी को देख रहा था। उसको लगा जैसे उसके दिल की धड़कनें रुक जायेंगीं।

‘हे प्रभु! ये लड़की जब सजती सँवरती है, तब भी रति का रूप लगती है, और जब नहीं भी सजती सँवरती है, तब भी! कैसी आश्चर्यजनक बात है!’

समीर अपनी प्रतिज्ञा अपनी प्रतिज्ञा के कारण रास्ता बदल देना चाहता है! लेकिन वो ऐसा करे भी तो कैसे? ईश्वर-प्रदत्त इस अवसर को भला कैसे ठुकरा दे? वह चरित्रवान तो है, लेकिन इतना भी नहीं कि कामदेव के इस अद्वितीय उपहार से दृष्टि बचा कर निकल जाए। वह शर्मीला भी है, लेकिन इतना नहीं कि अपने ऐसे सौभाग्य से शरमा जाए। ऐसी ही अवस्था में जब राजा पाण्डु ने अपनी रानी माद्री को देखा, तब वो कामाग्नि से भस्म हो गए। ऐसी ही अवस्था में जब ऋषि विश्रवा ने कैकसी को देखा तो उनके संयोग से रावण का जन्म हुआ।

‘कुछ दिन और सब्र कर लो। जल्दबाज़ी से कुछ भी सार्थक नहीं निकलता है।’

कामदेव का जादू कुछ क्षण यूँ ही चलता रहा, और जब वो जादुई पल समाप्त हुए, तो दोनों यूँ ही शर्मसार हो गए। समीर पलट कर लौट गया, और मीनाक्षी शरमा कर खुद में ही सिमट गई। आज उसको लगा कि उसका सर्वस्व समीर लेता गया। यदि लज्जा ने मीनाक्षी की दृष्टि को रोक न लिया होता, और उसने अपने पति के शरीर पर उस एकमात्र वस्त्र की ओर देख लिया होता, तो उसको पता चल जाता कि कामदेव के जादू का समीर पर क्या असर हुआ है।
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Nevil singh

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कामदेव का जादू कुछ क्षण यूँ ही चलता रहा, और जब वो जादुई पल समाप्त हुए, तो दोनों यूँ ही शर्मसार हो गए। समीर पलट कर लौट गया, और मीनाक्षी शरमा कर खुद में ही सिमट गई। आज उसको लगा कि उसका सर्वस्व समीर लेता गया। यदि लज्जा ने मीनाक्षी की दृष्टि को रोक न लिया होता, और उसने अपने पति के शरीर पर उस एकमात्र वस्त्र की ओर देख लिया होता, तो उसको पता चल जाता कि कामदेव के जादू का समीर पर क्या असर हुआ है।


(अब आगे)


शाम को दोनों परिवार मीनाक्षी और समीर के घर पर इकठ्ठा हुए।

मीनाक्षी ने पहले से ही समीर को सख़्त हिदायत दे रखी थी कि वो आज रसोई में न आएँ, और उसको ही सारा काम करने दें। इसलिए उसकी इच्छा का मान रखते हुए समीर ने उसको सारा काम तो नहीं, लेकिन ज्यादातर काम करने को दिया। मीनाक्षी ने पूरे उत्साह से विभिन्न पकवान बनाए और सभी के आने की राह देखने लगी।

सबसे पहले मीनाक्षी के माता पिता ही आए। समीर ने दोनों के पैर छू कर दोनों का अभिनन्दन किया। मिसेज़ वर्मा अपने बांके दामाद को चूमे बिना न रह सकीं। वर्मा जी उनके जितना एक्सप्रेसिव तो नहीं थे, लेकिन उन्होंने भी समीर के कंधों पर हाथ रख कर उसकी कुशल क्षेम पूछी। अपनी बेटी को देख कर दोनों ही बहुत खुश हुए - वो बहुत खुश और स्वस्थ दिख रही थी। उसके चेहरे पर वैसी मुस्कराहट थी, जैसी कई वर्षों पहले होती थी। मिसेज़ वर्मा तो मीनाक्षी के साथ रसोई चलीं गईं उसका हाथ बँटाने और साथ ही एकांत में उसका हाल चाल लेने। समीर और वर्मा जी अकेले ड्राइंग रूम में रह गए।

वो समीर से बात करने में थोड़ा हिचकिचा रहे थे। ज्यादातर इधर उधर की ही बातें कर रहे थे। असहज थे। ‘काम कैसा चल रहा है’, ‘ऑफिस में सब ठीक है’, ‘बढ़िया घर है’, ‘कॉलोनी की अच्छी लोकेशन है’ वगैरह वगैरह। कुछ देर के बाद उनकी बातें घूम फिर कर राजनीति की चर्चा पर आ गई। जब पुरुषों के बीच में उतनी जान पहचान नहीं होती, तब उनके लिए कारगिल, पार्लियामेंट पर आतंकवादियों का हमला, गोधरा - यह सब डिसकस करना ज्यादा आसान होता है। यह सब टॉपिक्स एक न्यूट्रल ग्राउंड पर होते हैं - इसलिए यहाँ व्यक्तिगत ठेस लगने की के कम चान्सेस होते हैं।

वर्मा जी भी क्या करें! उनके मन में एक दुविधा सी थी - समीर उनके बेटे का मित्र है और समीर उनकी बेटी का पति भी है। अब वो किस वाले समीर से बात करें, उनको समझ ही नहीं आती। एकलौती पुत्री के पिता होने के नाते वो शुरुवात में ही चाहते थे कि समीर से पूरी निर्लज्जता से पूछ लें, कि तुम जैसे विवाह वाले दिन थे वैसे ही हो अभी तक, या अभी अपना रंग बदल दिया? समाज का सताया हुआ पुरुष और करे भी तो क्या करे?

लेकिन जब वो अपनी बेटी के मुखारविंद पर प्रसन्नता और आत्मविश्वास की चमक देखते हैं, तो यह प्रश्न ही उनके लिए बेमानी हो जाता है। उनके मन में एक ग्लानि का भाव भी आ जाता है। यह लड़का जिसने उनकी पगड़ी उछलने से बचा लिया, जिसने उनका समाजिक और आत्म सम्मान दोनों ही न सिर्फ बचा लिया, बल्कि बढ़ा भी दिया, उस लड़के बारे में वो अभी भी ऐसा सोचते हैं यह सोच कर उनको ग्लानि हुई।

वो कमरे की दीवारों पर समीर और मीनाक्षी की अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों के साथ 2 - 3 मढ़ी हुई तस्वीरें लगी देखते हैं। मीनाक्षी ने उन तस्वीरों में पाश्चात्य परिधान पहना हुआ है। ‘कैसी प्यारी सी लगती है वो!’ उसकी मुस्कान देख कर वर्मा जी को अच्छा लगता है। उसकी यह मुस्कान देखे तो एक मुद्दत हो गई है। उनको याद था कि जब उसकी शादी तय हुई थी, तब भी वो ऐसी खुश नहीं थी। बिटिया सब देख रही थी - कैसे उसके पिता का संचित धन उसकी शादी के व्यर्थ के इंतजाम में जाया हो रहा था। वो कैसे खुश होती?

बेटी से जब वो एकांत में पूछते हैं तो बेटी उनके दामाद का ऐसा बखान करती है की मानों मायके में उसको पिंजरे में बंद कर के रखा गया था। फिर उनको लगा कि शायद यह बात सही ही हो - उन्होंने मीनाक्षी को पारम्परिक तरीके से पाल पास कर बड़ा किया है। बस जो बात उन्होंने बाकियों से भिन्न करी वो यह थी कि उन्होंने उसको पढ़ाने लिखाने में कोई कोताही नहीं करी। बाकी संस्कार तो पूरे दिए। खैर, उनकी बिटिया प्रसन्न है! और क्या चाहिए।

समीर की सास के लिए उससे बात करना, वर्मा जी की अपेक्षा ज्यादा आसान साबित हुआ। ‘बेटा तुम अच्छे से हो?’, ‘मेरी बेटी तुम्हारा ख़याल रखती है ठीक से?’, ‘हर काम में दक्ष है। इसलिए निःसंकोच जो चाहिए, उसको बोल दिया करो’, ‘थोड़ा ढंग से खाया पिया करो…. कमज़ोर से लग रहे हो’ वगैरह।

वो स्त्री हैं। उनको समझ आता है अपनी बेटी का हाव भाव। जब मीनाक्षी रह रह कर मुस्कुराते हुए समीर को देखती है, तो वो समझ जाती हैं कि अंततः उनकी बेटी को एक सुखी घर मिल गया है। जब वो समीर को मीनाक्षी का हाथ बँटाते देखती हैं, तो वो समझ जाती हैं कि समीर उनकी बेटी को प्रेम से रखता है। वो देख लेती हैं कि उनकी बेटी स्वस्थ है। उसके चेहरे पर एक नई लालिमा है।

कुछ देर में उनके समधी भी आ जाते हैं।

“माफ़ कीजिएगा भाई साहब! आने में ज़रा देर हो गई। दरअसल पंद्रह अगस्त, दिवाली, और छब्बीस जनवरी को मेरे ऑफिस में मैं दावत का इंतजाम रखता हूँ। बेटे के की शादी के कारण इस बार की दावत थोड़ा ज्यादा हो गई। हा हा हा हा!”

“हा हा हा हा हा!” वर्मा जी समझ गए कि कैसी पार्टी हुई थी।

मीनाक्षी की माँ सब देख रही हैं।

समीर की माँ उनसे मिलने से पहले मीनाक्षी से मिलती हैं। वो उसको गले लगाती हैं, और उसको चूमती हैं। उसके कान में सहेलियों की तरह खुसुर पुसुर करती हैं। मीनाक्षी भी दाँत निकाले अपनी सास की बातों पर अल्हड़ता से हंसती है। यह सब करने के बाद फिर आ कर वो उनसे और उनके पति से मिलती हैं। मीनाक्षी की माँ बिलकुल भी बुरा नहीं मानतीं अगर समीर की माँ उनसे न भी मिलतीं! क्योंकि उनको एक बात का पक्का विश्वास हो गया था -

‘सच में, उनकी बेटी इस घर में बहू नहीं, बेटी ही बन कर आई है!’

थोड़ी ही देर बाद आदेश भी आ जाता है। और घर में हंसी ठहाकों का दौर चलने लगता है।


रात्रिभोज के बाद वर्मा जी, समीर के पिता से बोले, “भाई साहब, हमारी इच्छा है कि बिटिया को घर लिवा लाएँ। शादी के बाद से आई नहीं।”

“भाई साहब, अब ये तो आप मीनाक्षी बिटिया से ही पूछ लीजिए। वो जैसा चाहेगीं वही होगा। हमारी तरफ से कोई रोक-टोक थोड़े ही है!”

“बोलो बिटिया!”

“पापा, वो मैं.... अभी नहीं।” मीनाक्षी ने तपाक से बोला, “मैं अभी नहीं आ सकती। अभी तो यहाँ का ही सब सेटअप करना है। और नई नई जॉब है।”

पिता के चेहरे पर निराशा देख कर वो आगे बोलती है, “दशहरा या दिवाली पर प्लान करते हैं।”

कह कर उसने समीर की तरफ देखा। उसकी आँखों में एक नटखटपन था। मिसेज़ वर्मा से वो नटखटपन छुप न पाया। वर्मा जी यह सब नहीं देख पाते। आदेश अपने दोस्त से बतियाने में व्यस्त था। वर्मा जी कुछ बोलने वाले हुए ही थे, कि मिसेज़ वर्मा ने उनको रोक दिया।

“ठीक है बेटा! हाँ, सही बात है अभी कैसे आओगी! जब भी फुर्सत मिले आ जाना। समीर बेटे के साथ।”

वर्मा जी को आश्चर्य हुआ। उनकी ही तरह उनकी पत्नी भी चाहती थीं की मीनाक्षी घर आ जाए, और कुछ समय साथ में बिताए। लेकिन यहाँ तो उसका सुर ही पलट गया।

बाद में जब उन दोनों को कुछ क्षणों का एकांत मिला, तो वो अपने पति से मुस्कुराते हुए बोलीं, “बिटिया को लिवा लाने की बात छोड़ दीजिए। वो बहुत खुश है यहाँ। मैं बताऊंगी आपको बाद में। लेकिन यकीन मानिए मेरा, मीनाक्षी बहुत खुश है।”
lovely update dost
 
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masfin007

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Completed this story too. Very good writing. Apki writing style and hindi ka itna acha prayog man ko bha jata hai. Hope u r enjoying your holiday. Be safe and healthy.
 
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Jiashishji

दिल का अच्छा
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कहानी समाप्त हो गई ! इस कहानी को पढ़ने के बाद एक ही बात कहना चाहता हूं . वाह वाह वाह और साथ में धन्यवाद भी ।
 
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Nevil singh

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खाने के बाद दोनों समधी लोग समीर के पिता जी के यहाँ चले गए। आदेश यहीं रह गया। दोस्त और दीदी के साथ समय बिताने के लिए। तीनों ने कुछ देर तक गप्पें लड़ाईं, लेकिन फिर मीनाक्षी उनींदी हो कर चली गई,

“मैं सोने जा रही हूँ। जब आप दोनों की बातें ख़तम हो जाएँ, तो आ जाइएगा। आदेश, तेरे सोने का इंतजाम बगल वाले कमरे में हैं। किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो बता देना। ठीक है?” जाते जाते वो कहती गई।

“जी दीदी”

आदेश और समीर देर रात तक दोनों बियर की चुस्कियाँ लेते हुए बतियाते रहे।

“भाई, और सुना..” जब आदेश को लगा कि दीदी दो गई होगी, तब उसने समीर से पूछा।

“सब बढ़िया है यार!”

“हाँ! बढ़िया तो लग रहा है। दीदी तो बहुत बढ़िया लग रही है।”

“अरे यार! तेरी बहन को क्या मैं कोई दुःख दूँगा?”

“बिलकुल भी नहीं! ऐसा मैंने कब कहा? यह तो मैं सोच भी नहीं सकता हूँ! अगर मुझे ऐसा कोई भी अंदेशा होता, तो क्या अपनी दीदी की शादी तुमसे कहने को कहता? मैं तो तुम्हारे बारे में पूछ रहा था… कि कहीं दीदी तुमको तंग तो नहीं करती।”

उत्तर में समीर मुस्कुराया।

“हम्म.. लगता है कि नहीं करती। मुझको तो बहुत परेशान करती थी, बाबा! अच्छा खैर... एक बात तो बता... तूने यार कुछ... सेक्स वेक्स किया या नहीं?” आदेश ने दबी आवाज़ में समीर से पूछा।

“अबे तू क्या पूछ रहा है? कुछ प्राइवेसी तो रहने दे!”

“अरे..! तू मेरा भाई है!”

“हाँ.. और मेरी बीवी तेरी बहन है.. वो भी बड़ी!”

“ये तो और भी अच्छी बात है! और इसीलिए तो पूछ रहा हूँ। तू मेरा भाई है.. दोस्त नहीं! इसलिए दीदी के साथ साथ मुझे तेरी ख़ुशी की भी फ़िक्र है!”

“हा हा”

“सच बता यार... तुम दोनों ने अभी तक कुछ किया या नहीं?”

“नहीं यार.. अभी तक... नहीं। इतना आसान नहीं है यह सब!”

“देख भाई.. तूने उससे शादी करी है। तो...”

आदेश की बात को बीच में ही काटते हुए समीर बोला, “हाँ.. हाँ हमने शादी करी है। लेकिन टाइम चाहिए इन सब बातों के लिए! देखो न, किन हालात में हमारी शादी हुई थी!”

“हम्म। समझता हूँ भाई। सब समझता हूँ। बस पूछ लिया!”

“यार, मैं उसको जानना समझना चाहता हूँ। मैं पहले उसका दोस्त बन जाऊँ, मेरे लिए ये ज़रूरी है। सेक्स तो होता रहेगा।”

“तुझे वो पसंद तो आती है न?”

“न पसंद आती तो शादी करता?”

“नहीं नहीं, मेरा मतलब वैसा पसंद आने से नहीं है। दीदी तुझे सेक्सी तो लगती है?”

“ओह गॉड! मैंने कैसे खुद को रोका हुआ है, मैं ही जानता हूँ!”

“बस भाई तसल्ली हो गई मुझे!” फिर कुछ देर रुक कर, “सोच यार, इंजीनियरिंग के टाइम में हम लोग कैसे सेक्स की बातें कर लेते थे। कितने हल्केपन से... जैसे, कुछ होता ही नहीं! जैसे वो सिर्फ मसाला हो। याद है तुमको? मैं तुझे कहता रहता था, कि मेरा छोटा है.... तो तेरी बीवी की मैं पहले ड्रिलिंग कर दूँगा, मेरे बाद तू बोरिंग कर लियो। लेकिन अब देखो - मेरी अपनी ही दीदी तुमसे ब्याही है। अब लगता है कि ऐसी छिछोरी बातें नहीं करनी चाहिए! नहीं करनी चाहिए थीं।”

समीर मुस्कुराया, “अरे यार, तू भी क्या सोचने में लग गया! इतना मत सोच। वो हमारे लड़कपन के दिन थे। उन दिनों की बातें सोच कर इतना इमोशनल नहीं बनना चाहिए।”

“थैंक यू यार! तू सच्चा दोस्त है! भाई है मेरा! भाई से बढ़कर! आई लव यू!”

“लव यू टू!” समीर मुस्कुराते हुए बोला।

“भाई देख... एक रिक्वेस्ट है। थोड़ा आराम से करना, जब भी करना। तेरा लण्ड बड़ा सा है, और दीदी..... वो भले ही उम्र में बड़ी हैं, लेकिन हैं तो कुँआरी ही न!”

“अबे यार!”

“अबे यार नहीं! समझा कर! और हाँ, अब जल्दी कर लेना। बहुत वेट मत करना। आखिर पति पत्नी हो!”

“साले, अब तू पिटेगा।”

“हा हा.... अरे साला ही तो हूँ मैं तेरा!”

“हा हा.... अरे मेरी बात बहुत हो गई। तू बता, तुझे कोई लड़की मिली अभी तक या अभी तक ऐसे ही है?”

........
khubsurat update mitr
 
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Nevil singh

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समीर मीनाक्षी से सम्भोग करने के लिए हमेशा से आतुर था। लेकिन सैद्धांतिक तौर पर वो तैयार नहीं था - पहले प्रेम होता है, फिर संसर्ग! उसका बस यही मानना था। और आज वो मौका आ गया था - इस अवसर के लिए तीन महीने से ऊपर तक उसने इंतज़ार किया था। मन ही मन समीर को कई प्रश्न सता रहे थे.... जैसे कि, क्या मीनाक्षी भी तैयार होगी? क्या वो भी उससे उतना ही प्रेम करती है? क्या वो मेरा लिंग ले सकेगी? उसका शरीर कैसा होगा? उसके स्तन कैसे होंगे? उसके निप्पल मुँह में लेने में कैसे लगेंगे? उसकी योनि कैसी होगी? उसके होंठों का स्वाद कैसा होगा? उसकी योनि का स्वाद कैसा होगा? इत्यादि।

समीर ने इस सुहागरात को ख़ास बनाने के लिए रैडिसन ब्लू में कमरा बुक किया था। होटल स्टाफ को उसने यह ख़ास निर्देश दिया कि डिनर के बाद, रात में साढ़े आठ या नौ बजे, उनको सुहागरात के अनुकूल एक सुसज्जित कमरे में शिफ्ट कर दिया जाए। उसने कह रखा था कि आज उसकी और उसकी पत्नी की पहली रात है। लिहाज़ा यह रात यादगार होनी चाहिए। इसलिए स्पेशल इंतजाम में कोई कोताही न हो।

समीर मीनाक्षी को वो वहां डिनर कराने के बहाने से लाया था। पहले से बता के रखने से संभव था कि वो ना-नुकुर करने लगती। इसलिए आज का प्लान अगर सरप्राइज ही रहे तो बढ़िया था। मीनाक्षी पहले ही थोड़ा ना-नुकुर कर रही थी, ‘फाइव स्टार में जा कर खाना क्यों खाना है? बिना वजह का खर्च! और आज कोई ओकेशन भी तो नहीं है!’ वगैरह वगैरह! बड़ी मुश्किल से समीर ने उसको भरोसा दिलाया कि उसका आज यहाँ डिनर करने का मन था।

होटल की ही अनुशंसा पर उसने डिनर मेनू पहले से ही तय कर के रखा था। उधर मीनाक्षी इस बात पर आश्चर्य कर रही थी कि वो दोनों इतनी देर से टेबल पर बैठे हैं, और अभी तक कोई आर्डर लेने भी नहीं आया! और इधर बिना कोई आर्डर दिए ही एक मल्टी-कोर्स स्प्रेड उसकी टेबल पर सर्व कर दिया जाता है, एक उम्दा वाइन के साथ!

मीनाक्षी समझ जाती है कि यह डिनर उसको सरप्राइज करने के लिए ही समीर ने प्लान किया हुआ था। वो खुश हो जाती है। समीर की यह अदा उसको पसंद है। खाना एकदम लाजवाब था।

डिनर ख़तम होने पर एक वेटर ने समीर से कहा, “सर, योर गिफ्ट इस रेडी! वी होप यू विल लाइक इट वैरी मच!”

मीनाक्षी समझी नहीं कि डिनर के लिए कोई होटल गिफ्ट क्यों देने लगा!

खैर, होटल का अशर समीर और मीनाक्षी को होटल के ऊपरी मंजिल पर बने एक कमरे में ले आया। और दरवाज़ा खोल कर कमरे की पास-की समीर को थमा दी, और ‘शुभ रात्रि’ बोल कर वहाँ से चला गया। होटल स्टाफ ने उनके शयनकक्ष को बहुत शानदार तरीके से सजाया था - पूरे कमरे में फूल ही फूल। बिस्तर पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ। पूरे कमरे में फूलों की ही महक! टी-स्टैंड पर स्पार्कलिंग वाइन की बोतल एक कूलिंग बकेट में रखी थी, और उसके साथ दो वाइन ग्लास रखे हुए थे। दूसरे टी-स्टैंड पर बेल्जियन चॉकलेट का डब्बा रखा हुआ था। कमरे में मूड लाइट्स थीं, और कमरे में पहले से ही एक धीमा, रोमांटिक संगीत बज रहा था। स्टाफ की शरारत थी या कि दूर की सोच, लेकिन वहाँ पर कामसूत्र का एक पैकेट भी रखा हुआ था।

मीनाक्षी जब कमरे में आई तो इस पूरे बंदोबस्त को देख कर दंग रह गई। पहले तो उसको यह सोच कर हैरानी हुई कि वो दोनों एक कमरे में क्यों जा रहे हैं, लेकिन उसने जैसे ही उसने अंदर का नज़ारा देखा, उसको तुरंत सब कुछ समझ आ गया। वो समझ गई कि मिलन के इंतज़ार की घड़ियाँ अब ख़त्म हो गई थीं। वो समझ रही थी कि उसके कौमार्य के दिन में अब बस मिनट ही शेष रह गए थे। लेकिन यह सब देख कर उसको बहुत सुकून हुआ और उसका शरीर रोमांच से भर गया - समीर ने उसके मिलन के इन पलों को यादगार बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। समीर खुद भी अपने प्लान में होटल स्टाफ के सहयोग को देख कर आश्चर्यचकित था। उसको उम्मीद नहीं थी कि वो लोग इतना उम्दा काम करेंगे।

मीनाक्षी ने एक हल्की मुस्कान के साथ समीर को देखा।

“मिनी, मुझे लगता है कि अब हम एक दूसरे को अच्छे से जानते हैं। शायद यह सही समय है कि हम एक दूसरे को पूरी तरह जान लेने की कोशिश करें!”

समीर की बात सुन कर मीनाक्षी की आँखें शर्म से झुक गईं। वो समझ रही थी कि समीर क्या कह रहा था।

“लेकिन मुझे ख़र्राटे अभी भी आते हैं!”

समीर की बात पर मीनाक्षी की मुस्कान और चौड़ी हो गई।

“नहीं आते हैं! मुझे मालूम है!” मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए, शरारत भरी आवाज़ में कहा।

फिर न जाने उसके मन में क्या आया कि वो अचानक ही समीर के पैरों में गिर पड़ी। एक पल को उसको लगा कि मीनाक्षी को शायद चक्कर आ गया। लेकिन जब उसके मीनाक्षी को अपने पैर छूते महसूस किया, तो उसने मीनाक्षी को कंधों से पकड़ कर उठा लिया और कहा,

“अरे! आप यह क्यों कर रही हैं?”

“इसलिए कि मैंने मन से आपको अपना पति माना है!”

“अरे पगली, तो फिर उसके लिए पैर पड़ने की क्या ज़रुरत है? आप तो मेरे दिल की रानी हैं! आपकी जगह मेरे दिल में है! पैर में नहीं! और... वैसे भी आप मुझसे उम्र में बड़ी हैं। उल्टा तो मुझे आपके पैर पड़ने चाहिए।”

इतना सुनते ही मीनाक्षी समीर से लिपट गई।

अलका मीनाक्षी की अनन्य सहेली है, और उसको पता है कि मीनाक्षी शादी होने के तीन महीने बाद भी वो कुँवारी है। यह जान कर अलका को आश्चर्य भी हुआ, और अच्छा भी लगा। आश्चर्य इस बात पर कि मीनाक्षी जैसी सुन्दर लड़की को उसके पति ने तुरंत ही नहीं भोगा। उसमें कितना आत्मनियंत्रण होगा! और अच्छा इस बात पर लगा कि अभी भी समीर जैसे लोग हैं दुनिया में, जो अपनी पत्नी को सिर्फ भोग्या ही नहीं समझते। उसके खुद के पति ने तो उसके साथ अकेलेपन के पहले क्षणों में ही मैथुन कर लिया था। अलका को सम्भोग के वो पल बलात्कार जैसे ही लगे थे। उसकी अपने पति से पहले से कोई जान पहचान तो थी नहीं, और न ही कोई बात चीत। ऐसे में उन दोनों का पहला संपर्क, पहली पारस्परिक क्रिया अगर सम्भोग हो, तो उसको और क्या नाम दिया जाए? वह उस घटना को बस इसलिए बर्दाश्त कर सकी क्योंकि वो दोनों पति-पत्नी थे। नहीं तो न जाने उसके मानस पटल पर कैसा प्रभाव पड़ता! इसलिए वो मीनाक्षी के लिए खुश थी। उसको ऐसा पति मिला था, जो पहले उसका दोस्त, हमराज़, और प्रेमी बनने की कोशिश कर रहा था.... और उसके बाद में उसका पति!

ऐसा नहीं है जब पहली रात को ले कर मीनाक्षी के मन में कौतूहल नहीं था। जैसे जैसे वो समीर को और समझती जाती, वैसे वैसे वो यह भी सोचती जाती कि जल्दी ही दोनों का मिलन होगा। वो भी चाहती थी कि वो समीर को वैसा आनंद दे सके, जैसा उसकी इच्छा हो! इसलिए वो जानना चाहती थी कि पति पत्नी क्या क्या करते हैं जब वो साथ होते हैं। जब मीनाक्षी ने अलका से पूछा कि आखिर होता क्या है सुहागरात में तो अलका ने कहा,


प्यारी बहना, सुहागरात के उन क्षणों में पति शेर होता है और बेचारी पत्नी बकरी। और तेरा पति तो वैसे भी माशा-अल्लाह एकदम तगड़ा है - शेर के माफ़िक। ऐसे में तुझे कुछ करने, या न करने की क्या परवाह? बस, अपनी टांगें चौड़ी करके लेट जाना - वो जैसा चाहेगा, करेगा!’

‘छीः! कितनी गन्दी है अलका!’

कई जगह उसने पढ़ा है, और कई लोगों से सुना भी है कि स्त्री पुरुष का सच्चा यौन संबंध दो शरीरों का मिलन ही नहीं बल्कि दो आत्माओं का भी मिलन होता है। शादी की रीतियों से वो दोनों परिणय सूत्र में तो बंध ही गए हैं, और अब जीवन सूत्र में बंधना बाकी रहा है। भगवान की कृपा से वो दिन भी आ ही गया। मीनाक्षी के मन में बहुत दिनों से यही विचार आ रहे थे। और अब जब यह सभी विचार मूर्त रूप ले रहे हैं, तब उसको लज्जा आ रही थी।
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Nevil singh

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एक संछिप्त से आलिंगन के बाद समीर उसका हाथ पकड़ कर बिस्तर पर ले गया। खुद बैठ कर उसने मीनाक्षी को अपने पैरों के बीच खड़ा कर लिया। इतने दिनों से खुद पर संयम रखने वाला समीर इस समय अधीर हो रहा था - लग रहा था कि उसको अब किसी भी चीज़ की परवाह नहीं है। मीनाक्षी के दोनों हाथ, अपने दोनों हाथ में लिए उसको कई पल निहारता रहा। मीनाक्षी समझ रही थी कि समीर के मन में क्या चल रहा है। उसको यह भी मालूम था कि आज उसके यौवन का उद्घाटन होने वाला है। फिर उसके मन में थोड़ी सी घबड़ाहठ उठी - कहीं समीर ने उसको पसंद न किया तो? कहीं उसको सम्भोग की मनोवाँछित संतुष्टि नहीं मिली तो?

समीर यह सब नहीं सोच रहा था। मीनाक्षी के सौंदर्य सागर में गोते लगाता हुआ वह वह उसे चूम लेना चाहता था। मीनाक्षी उसके होठों से बस हाथ भर की ही दूरी पर थी। इस समय समीर की मनःस्थिति ऐसी थी कि वो मीनाक्षी को चूमे बिना नहीं रह सकता। मीनाक्षी को चूमना, उसके रूप और मदमाते यौवन का जाम चखने जैसा है। समीर ने मीनाक्षी की ठोढ़ी पकड़ कर उसके होंठों को चूम लिया। मीनाक्षी ने चुम्बन के पूर्वानुमान में अपनी आँखें बंद कर ली थीं; जैसे ही उसके होंठ समीर के होंठों से छुए, दोनों के शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई।

चुम्बन भी एक अद्भुत वस्तु है - चुम्बन की प्रक्रिया में आपका कुछ अंश दूसरे की त्वचा में समां जाता है, सदा के लिए। सदा के लिए इसलिए कहा क्योंकि आप चुम्बन समाप्त हो जाने के बाद भी उसको हमेशा महसूस कर सकते हैं। यह एक चमत्कारिक क्रिया है, जिसमें प्रेम के संकेतों का इतने अंतरंग प्रकार से आदान प्रदान होता है। संभव है कि इसी कारण बहुत सारे लोग चुम्बन करते समय अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। बस एक चुम्बन।

मीनाक्षी की आँखें खुलीं। समीर उसके हाथों को अपने हाथ में ले कर न जाने क्या निरीक्षण कर रहा था।

समीर ने कुछ देर उसके हाथों को देखा और फिर कहा, “नाइस!”

“क्या हुआ?” मीनाक्षी ने कौतूहलवश पूछ लिया।

“आप इसको देख रही हैं? इसको शुक्र पर्वत कहते हैं। माउंट ऑफ़ वीनस। इसका साइज सेक्स संबंधों की क्वालिटी और कैपेसिटी के बारे में बताता है। आपका देखिए - कितना उभरा हुआ है? इसका मतलब समझीं?”

मीनाक्षी ने ‘न’ में सर हिलाया।

“इसका मतलब है कि हमारी सेक्स लाइफ एकदम मज़ेदार, एकदम धमाकेदार होने वाली है!”

“धत्त!” मीनाक्षी शरमा गई।

“अरे! इसमें धत्त वाली क्या बात है? ये… मेरा भी देखिए! आप जैसा ही है! उभरा हुआ। एकदम बढ़िया मेल है हमारा!”

समीर की ऐसी निर्लज्ज बात का मीनाक्षी क्या जवाब दे? वो बस चुपचाप नज़रें झुकाए बैठी रही - अंदर ही अंदर मुस्कुराती रही। समीर ने आज तक किसी भी लड़की के साथ ऐसी बातचीत नहीं करी थी - इंजीनियरिंग कॉलेज में ज्यादा मौका नहीं मिला; और नौकरी लगने के लगभग साथ ही साथ उसकी शादी हो गई। अपनी उम्र के बाकी लड़कों के समान समीर भी मस्तराम जैसे साहित्य और नीले-फीते वाले चलचित्रों से प्रभावित रहा था। उन्ही से मिली सीख के कारण उसको लगता था कि प्रथम मिलन के खेल को देर तक चलाना है - तभी पत्नी उसकी मुरीद बनेगी। और अगर मिलन का खेल खेलना है तो बीवी को भी तो शीशे में उतारना ही पड़ेगा। इतनी अंतरंग बात समीर ने, मीनाक्षी से आज पहली बार करी थी। वैसे भी पति पत्नी में छुपाने जैसा कुछ होना भी नहीं चाहिए।

“लेट अस सेलिब्रेट?” समीर ने शेम्पेन की बोतल निकालते हुए पूछा।

“वाइन नहीं, चाय पियूँगी।”

“अरे! आज की रात चाय! न न न न न न! बिलकुल नहीं.. चाय तो नहीं मिलेगी आज! ये स्पार्कलिंग वाइन है। शेम्पेन! चाय से बढ़िया! बहुत बढ़िया। पी कर बताइए - बढ़िया है या नहीं?”

“अभी कुछ देर पहले ही तो पिया है मैंने! और मत पिलाइए।”

“हम्म.. ओके!”

समीर ने उठ कर संगीत की आवाज़ थोड़ी बढ़ाई। वाइन ग्लास में शेम्पेन भर कर चुस्कियाँ लेते हुए संगीत की ताल पर उसने मीनाक्षी की तरफ कदम बढ़ाए। मीनाक्षी मुस्कुराते हुए अपने पति को देख रही थी।

‘आज न जाने क्या क्या बदमाशियाँ करने वाले हैं!’

एक हाथ में वाइन लिए समीर से दुसरे हाथ से मीनाक्षी को बिस्तर पर लिटाया और धीरे धीरे उसके कुर्ते के बटन खोलने लगा। एक हाथ से बटन खोलना आसान है, लेकिन एक हाथ से कुर्ते को उतारना बहुत मुश्किल काम है। मीनाक्षी को समीर का मंतव्य समझ में आ रहा था। लेकिन वो अपने खुद के ही चीर-हरण में बढ़ चढ़ कर हिस्सा नहीं लेना चाहती थी। एक तो उसको शरम आ रही थी, और दूसरा वो इस बात से झिझक रही थी कि न जाने समीर क्या सोचे!

समीर स्टाइल मारने के चक्कर में वाइन ग्लास छोड़ नहीं रहा था। वैसे उसको समझ में आ गया था कि मीनाक्षी का कुर्ता ऐसे एक हाथ से ही तो उतरने वाला नहीं था। फिर उसको ख़याल आया कि अपनी बीवी को उसने ढंग से चूमा तक नहीं है। यह ख़याल आते ही उसने मीनाक्षी के अधरों पर एक बार और चुम्बन जड़ दिया। मीनाक्षी भी उसको चूमना चाहती थी, लेकिन झिझक के कारण वो पहल नहीं कर पा रही थी। समीर कभी उसके होंठों को चूमता, तो कभी चूसने लगता। कभी वो उसके गालों को चूमता, तो कभी गले को। प्रत्युत्तर में मीनाक्षी कसमसाती हुई बस उम्… उम्… ही कर रही थी। उससे जैसा बन पड़ रहा था, समीर को चूम रही थी।

उत्तेजना में समीर का खाली हाथ मीनाक्षी के स्तनों पर भी फिरने लगा। समीर की इस हरकत ने मीनाक्षी की कामेक्षा जगाने के लिए एक स्विच का काम किया - उसको अपनी जाँघों के बीच कुछ कसमसाहट सी, कुछ गीलापन सा महसूस होने लगा। जब समीर उसके स्तनों को दबा कर उनका जायज़ा ले चुका, तब वो नीचे झुक कर वक्ष-विदरण में अपना मुँह डाल कर चूमने लगा। यह सब मीनाक्षी के लिए बिलकुल अनूठा अनुभव था - उसको उम्मीद ही नहीं थी कि यह सब करने में इतना आनंद आ सकता है। मीनाक्षी के कंठ से मीठी सिसकियाँ निकलने लग गई।

फिर उसका हाथ मीनाक्षी की पीठ पर आ गया, और कुर्ते के अन्दर हाथ डाल कर उसकी पीठ को सहलाने लगा।

“मिनी?”

“हम्म?”

“मेरे पास आपके लिए कुछ है।”

कह कर समीर मीनाक्षी के ऊपर से हट गया। सच कहें तो मीनाक्षी का मन समीर से अलग होने को बिलकुल भी नहीं हुआ। लेकिन उसने धीरज रखा और समीर क्या दिखाने वाला था, उसका इंतज़ार लगी। समीर ने कमरे की अलमारी में रखी सेफ खोली, और उसमे से एक सुनहरे रंग का मखमली बटुआ निकाला। प्लान के मुताबिक समीर ने यह पहले ही होटल के सुपुर्द कर दिया था। बिस्तर पर वापस आ कर उसने उस बटुए में से सोने की एक लम्बी जंजीर निकाली - साधारण सा डिजाइन था - लम्बी जंजीर और उसके बीच में पतली जंजीरों की तीन लड़ियाँ। उसकी बनावट देख कर लग रहा था कि वो एक करधन है।

समीर ने मीनाक्षी के कुर्ते को थोड़ा ऊपर करके उसकी कमर पर वो करधन बांध दी। फिर उसकी नाभि के नीचे वाले हिस्से पर एक चुम्बन लेते हुए बोला, “अगर आप यह (कुर्ते को पकड़ कर) निकाल दें, तो आपकी कमर से इस करधन की लटकन बहुत सुन्दर लगेगी।”
bahad umda update mitr
 
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