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Romance संयोग का सुहाग [Completed]

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Raja971

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This is pure erotica हिन्दी में जिसे `श्रृंगार' कहते हैं। अति सुन्दर।
 
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कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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This is pure erotica हिन्दी में जिसे `श्रृंगार' कहते हैं। अति सुन्दर।

This certainly is not porn. This is erotic literature. Excellent.
बहुत बहुत धन्यवाद भाई!
और भी कहानियाँ हैं मेरी।
पढ़ कर बताइए 😊
 

Raja971

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प्रिय लेखकजी
मैं ने आपकी कहानी "संयोग का सुहाग" पर सात comments किये हैं. आपने भी उन्हें देखा है और प्रतिक्रिया दी है. धन्यवाद. सामान्यत: मैं इंटरनेट पर अपनी टिप्पणी/प्रतिक्रिया नहीं देता. हाँ जब कभी कोई सामग्री बहुत पसंद आ जाती है तो एकाध वाक्य की टिप्पणी जरूर कर देता हूँ. मुझे भी यह जानकार आश्चर्य हुआ कि मैंने आपकी कहानी पर सात टिप्पणियां की हैं. स्पष्ट है कि मुझे आपका लेखन बहुत पसंद आया.

मेरी यह प्रतिक्रिया थोड़ी विस्तृत है, आशा है आप स्वीकार करेंगे. दूसरी बात - मेरी यह टिप्पणी bilingual होगी। कुछ बातें हिंदी में अच्छे से कही जा सकती हैं तो कुछ अंग्रेजी में.

मैंने आपकी प्रशंसा यह कह कर की है कि This is not porn. This is erotic literature. In fact there is a very thin line between porn and erotica. There is a famous court judgment of pre-independence days in the case of Urdu novelist Ismat Chugtai which declared that her novels were not pornographic. I find that you too have very successfully remained on the erotica side of this line. I also remember that I had commented or rather advised you to not be explicit i.e. not use specific words for genitals and sexual activities to remain within bounds of erotica. But then I have read so many English novels where explicit words are used and they are still called literature. Then why not your story? My congratulations to you. What happens between Minakshi and her husband happens between each and every couple, married or otherwise, sooner or later. I must confess that it happened with me and my wife after two years of marriage 40 years back. That is when she uttered the common words for penis and vagina for the first time. I have had such arousal very rarely in my life again. I am sure Maharshi Vastyayan has prescribed this in his treatise. Let us see how many of your readers confess to this.

आपकी कहानी का दूसरा आकर्षण यह है कि यह एक पीड़ित, दमित, शोषित स्त्री की कथा है. मिनाक्षी एक सामाजिक underdog है और आपकी कहानी उसके एक underdog से अपने पति के हृदय की साम्राज्ञी बनने की कहानी है. समीर का चरित्र भी गजब का है. इतना धैर्यवान, समझदार, प्रेममय. ऐसा पुरुष मात्र कहानियों में ही मिल सकता है. मेरे यौवन के दिनों में एक फिल्म आई थी - कोरा कागज़ जिसमें जया भादुड़ी और विजय आनंद थे. इस फिल्म में बहुत सुन्दर, बहुत ही सुन्दर हिंदी संवाद थे. मुझे याद है कि श्री कमलेश्वर ने इसके समीक्षा में लिखा था,ये संवाद ऐसे हैं जो कोई बोलता नहीं लेकिन जीवन के भावुक क्षणों में अपने मन में रचता जरूर है." इसी तरह मैं कह सकता हूँ कि समीर जैसा पात्र वास्तविक जीवन में होता नहीं है लेकिन हम सब, बिना अपवाद के, यह मनाते हैं कि कहीं कोई समीर सच में हो और हमारी दुआ उसे लग जाये.

समीर के चरित्र की एक और विशेषता उभर कर आती है.

मीनाक्षी, जैसा मैंने कहा, एक पीड़ित स्त्री है. समीर का उससे विवाह करना एक बहुत बड़ा उपकार है. इस उपकार के बाद वह समीर से उपेक्षित, प्रताड़ित हो कर भी जीवन भर प्रेम करती रह सकती है किन्तु समीर ऐसा नहीं करता. वह शनैः शनैः, धैर्य के साथ मीनाक्षी को यह विश्वास दिलाता है कि उसने कोई उपकार नहीं किया है अपितु वह भाग्यशाली है की उसे मीनाक्षी जैसी पत्नी मिली. ऐसा होने पर किसी भी स्त्री का समर्पण निश्चित है. एक समर्पित स्त्री एक पुरुष की श्रेष्ठ उपलब्धि है जो उसके जीवन को प्रेममय बना सकती है. किन्तु आश्चर्य!! समीर यहीं नहीं रुकता. वह मीनाक्षी को यह विश्वास दिलाने में सफल होता है कि यदि उनके विवाह में कहीं भी कोई भी उपकार का तत्व है तो उपकार मीनाक्षी ने समीर को स्वीकार करके किया है। यह पुरुष प्रेम की मौन पराकाष्ठा है. प्रेम के इस स्तर पर पुरुष प्रेम के प्रतिसाद (response) के लिए स्त्री के पास एक ही उपाय है - आत्मसमर्पण । इस संसार में वह पुरुष परम भाग्यशाली है जिसे स्त्री का आत्मसमर्पण प्राप्त हुआ हो. ऐसे ही युगलों के प्रेम से अवतारों का जन्म होता है. आपने जाने अनजाने समीर और मीनाक्षी को ऐसा युगल (COUPLE) बना दिया है. यही इस कहानी का सौंदर्य है. एक बार पुनः बधाई.

I could not have written all this six months back. But I am one of the few lucky men who have experienced समर्पण of a woman. (Surrender word of English language is not a synonym of समर्पण. In fact surrender is a very derogatory word hence I am avoiding its use.) Widow of one of my senior colleague traced me on social media and contacted me. (We were out of touch for 35 years due to our transfers). It started with small messages and within two months it culminated into confession of both that we were attracted to each other. (Mind you we both are 70 yrs old). It so happened that she needed some advice and help in some financial and property matters which she was not able to handle. I travelled to her place and helped her to sort it out. Obviously she was grateful but I could sense that she was apprehensive that if I made a move then she will have to respond. I convinced her that what I had done was not at all an उपकार, it was my duty towards family of my friend and colleague and I did not expect anything from her in return. Somewhere a wall broke and she kissed me. We are now happily in love with each other.

And did we do that? Let all your readers guess.

Let me put a cherry on the cake. You have taken utmost care about grammar, punctuation and spelling while writing your story. This again is a rare phenomenon.

CONGRATULATION.
 
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Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Behtareen kahani....
 
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avsji

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प्रिय लेखकजी
मैं ने आपकी कहानी "संयोग का सुहाग" पर सात comments किये हैं. आपने भी उन्हें देखा है और प्रतिक्रिया दी है. धन्यवाद. सामान्यत: मैं इंटरनेट पर अपनी टिप्पणी/प्रतिक्रिया नहीं देता. हाँ जब कभी कोई सामग्री बहुत पसंद आ जाती है तो एकाध वाक्य की टिप्पणी जरूर कर देता हूँ. मुझे भी यह जानकार आश्चर्य हुआ कि मैंने आपकी कहानी पर सात टिप्पणियां की हैं. स्पष्ट है कि मुझे आपका लेखन बहुत पसंद आया.

मेरी यह प्रतिक्रिया थोड़ी विस्तृत है, आशा है आप स्वीकार करेंगे. दूसरी बात - मेरी यह टिप्पणी bilingual होगी। कुछ बातें हिंदी में अच्छे से कही जा सकती हैं तो कुछ अंग्रेजी में.

मैंने आपकी प्रशंसा यह कह कर की है कि This is not porn. This is erotic literature. In fact there is a very thin line between porn and erotica. There is a famous court judgment of pre-independence days in the case of Urdu novelist Ismat Chugtai which declared that her novels were not pornographic. I find that you too have very successfully remained on the erotica side of this line. I also remember that I had commented or rather advised you to not be explicit i.e. not use specific words for genitals and sexual activities to remain within bounds of erotica. But then I have read so many English novels where explicit words are used and they are still called literature. Then why not your story? My congratulations to you. What happens between Minakshi and her husband happens between each and every couple, married or otherwise, sooner or later. I must confess that it happened with me and my wife after two years of marriage 40 years back. That is when she uttered the common words for penis and vagina for the first time. I have had such arousal very rarely in my life again. I am sure Maharshi Vastyayan has prescribed this in his treatise. Let us see how many of your readers confess to this.

आपकी कहानी का दूसरा आकर्षण यह है कि यह एक पीड़ित, दमित, शोषित स्त्री की कथा है. मिनाक्षी एक सामाजिक underdog है और आपकी कहानी उसके एक underdog से अपने पति के हृदय की साम्राज्ञी बनने की कहानी है. समीर का चरित्र भी गजब का है. इतना धैर्यवान, समझदार, प्रेममय. ऐसा पुरुष मात्र कहानियों में ही मिल सकता है. मेरे यौवन के दिनों में एक फिल्म आई थी - कोरा कागज़ जिसमें जया भादुड़ी और विजय आनंद थे. इस फिल्म में बहुत सुन्दर, बहुत ही सुन्दर हिंदी संवाद थे. मुझे याद है कि श्री कमलेश्वर ने इसके समीक्षा में लिखा था,ये संवाद ऐसे हैं जो कोई बोलता नहीं लेकिन जीवन के भावुक क्षणों में अपने मन में रचता जरूर है." इसी तरह मैं कह सकता हूँ कि समीर जैसा पात्र वास्तविक जीवन में होता नहीं है लेकिन हम सब, बिना अपवाद के, यह मनाते हैं कि कहीं कोई समीर सच में हो और हमारी दुआ उसे लग जाये.

समीर के चरित्र की एक और विशेषता उभर कर आती है.

मीनाक्षी, जैसा मैंने कहा, एक पीड़ित स्त्री है. समीर का उससे विवाह करना एक बहुत बड़ा उपकार है. इस उपकार के बाद वह समीर से उपेक्षित, प्रताड़ित हो कर भी जीवन भर प्रेम करती रह सकती है किन्तु समीर ऐसा नहीं करता. वह शनैः शनैः, धैर्य के साथ मीनाक्षी को यह विश्वास दिलाता है कि उसने कोई उपकार नहीं किया है अपितु वह भाग्यशाली है की उसे मीनाक्षी जैसी पत्नी मिली. ऐसा होने पर किसी भी स्त्री का समर्पण निश्चित है. एक समर्पित स्त्री एक पुरुष की श्रेष्ठ उपलब्धि है जो उसके जीवन को प्रेममय बना सकती है. किन्तु आश्चर्य!! समीर यहीं नहीं रुकता. वह मीनाक्षी को यह विश्वास दिलाने में सफल होता है कि यदि उनके विवाह में कहीं भी कोई भी उपकार का तत्व है तो उपकार मीनाक्षी ने समीर को स्वीकार करके किया है। यह पुरुष प्रेम की मौन पराकाष्ठा है. प्रेम के इस स्तर पर पुरुष प्रेम के प्रतिसाद (response) के लिए स्त्री के पास एक ही उपाय है - आत्मसमर्पण । इस संसार में वह पुरुष परम भाग्यशाली है जिसे स्त्री का आत्मसमर्पण प्राप्त हुआ हो. ऐसे ही युगलों के प्रेम से अवतारों का जन्म होता है. आपने जाने अनजाने समीर और मीनाक्षी को ऐसा युगल (COUPLE) बना दिया है. यही इस कहानी का सौंदर्य है. एक बार पुनः बधाई.

I could not have written all this six months back. But I am one of the few lucky men who have experienced समर्पण of a woman. (Surrender word of English language is not a synonym of समर्पण. In fact surrender is a very derogatory word hence I am avoiding its use.) Widow of one of my senior colleague traced me on social media and contacted me. (We were out of touch for 35 years due to our transfers). It started with small messages and within two months it culminated into confession of both that we were attracted to each other. (Mind you we both are 70 yrs old). It so happened that she needed some advice and help in some financial and property matters which she was not able to handle. I travelled to her place and helped her to sort it out. Obviously she was grateful but I could sense that she was apprehensive that if I made a move then she will have to respond. I convinced her that what I had done was not at all an उपकार, it was my duty towards family of my friend and colleague and I did not expect anything from her in return. Somewhere a wall broke and she kissed me. We are now happily in love with each other.

And did we do that? Let all your readers guess.

Let me put a cherry on the cake. You have taken utmost care about grammar, punctuation and spelling while writing your story. This again is a rare phenomenon.

CONGRATULATION.

श्रीमान Raja971 जी,

सबसे पहले मेरा ससम्मान और हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें! आप मेरे अग्रज हैं, और आपने मुझसे अधिक संसार देखा है - इसलिए आपकी प्रतिपुष्टि बहुमूल्य है :) और तो और, आपने यह बताया है कि आप ज्यादातर कमेंट्स इत्यादि नहीं लिखते हैं! अतएव आपके विचार और प्रतिपुष्टि पढ़ कर मैं अपार हर्ष और गौरव का अनुभव कर रहा हूँ!

कोई भी कथा मनोरंजन के लिए ही तो होती है, लेकिन मेरा यह प्रयास रहता है कि पढ़ने वालों को एक दो ज्ञान की बातें अथवा कोई सीख मिल जाए। दोनों हो सके, तो और भी बढ़िया! केवल सम्भोग के बारे में लिखने वाले तो थोक के भाव हैं। इस कारण से मैंने पिछले दस वर्षों में दस कहानियाँ भी नहीं लिख सका। एक और बात है - मेरी और मेरी पत्नी की कहानियाँ सदैव हमारे आस पास के वास्तविक लोगों और घटनाओं पर आधारित होती हैं। इस कारण से मैं कौटुम्बिक व्यभिचार नहीं लिखता (मेरी एक दो कहानियों में आप incest का टैग देख सकते हैं, लेकिन वो केवल इसलिए कि पाठकों की संख्या थोड़ी बढ़ाई जा सके - समझिए कि मछलियों को चारा डालता हूँ)!

मेरी कहानियों में स्त्री और पुरुष - दोनों को एक समान महत्ता दी जाती है। प्रकृति ने दोनों को बनाया है - इसका अर्थ यह है कि सृष्टि के लिए दोनों आवश्यक हैं। और मैं यहाँ केवल प्रजनन की बात नहीं कर रहा हूँ। जन्म, पालन-पोषण, जीवन की सुरक्षा, शिक्षण इत्यादि, सब कुछ सृष्टि के सतत सञ्चालन के लिए आवश्यक है। इसलिए स्त्री और पुरुष दोनों ही आवश्यक हैं! न कोई किसी से कम और न अधिक! मीनाक्षी के लिए आपने जो लिखा, वो अक्षरशः सही है। किसी परिणिता स्त्री के साथ इस प्रकार की कोई घटना हो, तो वो क्या सोचेगी? क्या करेगी? उसकी मनःस्थिति कैसी होगी? मैंने यहाँ यही सब दर्शाया है। इसलिए समीर, जिसको पति होने के कारण सामाजिक रूप से पत्नी से ऊँचा दर्ज़ा मिला हुआ है, का मिनाक्षी के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। वैसे भी पत्नी के जीवन में उसके पति का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता ही है। लेकिन, वो मिनाक्षी से छोटा है - उसके संस्कार पुख्ता हैं, इसलिए वो मिनाक्षी से केवल प्रेम ही नहीं, बल्कि उसका आदर भी करता है। प्रेम और आदर की संयुक्ति ही इस कहानी का आधार है। कहानी छोटी थी, इसलिए बहुत विस्तार से लिखने से खुद को बचाया।

जहाँ तक असल जीवन में मीनाक्षियों और समीरों के होने की बात है, तो मैं कहूँगा कि वो होते हैं। कहानियों में ऐसे किरदारों का परिष्कृत रूप दिखाया जाता है, लेकिन सच में, ऐसे लोग होते हैं। समीर के माता पिता, मेरे खुद के माता पिता पर आधारित हैं। मेरी अन्य कहानियाँ, जैसे, आज रहब यही आँगन, जबरिया ब्याह पर आधारित है; और उसके किरदार हमारे आस पास के कोई भी लोग हो सकते हैं! चरित्रहीन भी एक सामाजिक कुरीति पर आधारित है - जो खुले रूप से नहीं होती, लेकिन होती है। मोहब्बत का सफ़र या My Experience with Love सत्य घटनाओं का नाटकीय ब्यौरा है।

"आत्म-समर्पण" वाली बात आपने सही कही है, और मैं आपकी बात समझ भी रहा हूँ। समर्पण का तात्पर्य यहाँ हथियार डालने से नहीं, बल्कि पति पत्नी का प्रेमियों के रूप में एक दूसरे में समाहित करने से है। प्रेम में दोनों प्रेमी बराबर बहते हैं - पहाड़ी नदी की धारा के समान! या, जैसे बादलों से गिरती हुई वर्षा की बूँदों के समान! मुझे यहाँ किसी अलंकार या आलंकारिक भाषा की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप स्वयं भी यह बात जानते हैं। प्रेम में प्रेमियों के मध्य शारीरिक अंतर हो सकते हैं, लेकिन अन्य कोई नहीं। लेकिन वो अंतर भी किसी को एक दूसरे से श्रेष्ठ नहीं बनाता है। दोनों बराबर हैं!

अब आते हैं आपके अपने जीवन की बातें शेयर करने पर - उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद! यह बहुत बिरले ही लोग करते हैं - और मुझे गौरव होता है जब मैं मेरे पाठकों के जीवन के बारे में और सुनता हूँ! सबसे पहले मुझे यह जान कर अपार सुखद आश्चर्य हुआ कि आपके जीवन में रोमांस न केवल जीवित है, बल्कि स्वस्थ भी है! ईश्वर आपको दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करे। और आपके प्रेम-जीवन के लिए मेरी शुभकामनाएँ! आप स्वयं अधिक जानते हैं, अतः यदि आप मुझसे कुछ शेयर करना चाहें, तो मुझे PM कर सकते हैं! लेकिन आपसे एक विनती है - चुपचाप (बिना किसी कमेंट के) कहानी पढ़ना लेखकों के लिए बहुत बुरा लगने वाला अनुभव होता है। कुछ भी लिख दें अंत में - हम लेखक उतने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। :)

कहानी की भाषा और व्याकरण पर आपकी टिप्पणी बड़ी उदार थी! कहानी की लगभग प्रत्येक पंक्ति ने कोई न कोई नुक्स था! :) हा हा! लेकिन, हाँ, काम चल जाता है! मेरा प्रयास यही रहता है कि हिंदी की कहानी देवनागरी में, और अंग्रेजी की कहानी रोमन लिपि में लिखूँ। भगवान् की दया से दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ है, इसलिए लिखने का आनंद उठाता रहता हूँ :) कभी कभी ग्राम्य भाषा या अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करता हूँ (जैसे कि मंगलसूत्र में मलयालम शब्दों की भरमार है)!


आशा है कि आप मेरी लिखी हुई अन्य कहानियाँ भी पढ़ेंगे, और उनका आनंद उठाएँगे! आपके और विचार जानने के लिए मैं उत्सुक रहूँगा! भगवान् आपका कल्याण करें, आप सुखी और स्वस्थ रहें - बस आपके अनुज की यही शुभकामनाएँ हैं! मेरे हाथ इतने लम्बे नहीं हुए हैं कि आपको आशीर्वाद दे सकें 🙏

बहुत बहुत धन्यवाद - अमर!
 
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Raja971

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श्रीमान Raja971 जी,

सबसे पहले मेरा ससम्मान और हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें! आप मेरे अग्रज हैं, और आपने मुझसे अधिक संसार देखा है - इसलिए आपकी प्रतिपुष्टि बहुमूल्य है :) और तो और, आपने यह बताया है कि आप ज्यादातर कमेंट्स इत्यादि नहीं लिखते हैं! अतएव आपके विचार और प्रतिपुष्टि पढ़ कर मैं अपार हर्ष और गौरव का अनुभव कर रहा हूँ!

कोई भी कथा मनोरंजन के लिए ही तो होती है, लेकिन मेरा यह प्रयास रहता है कि पढ़ने वालों को एक दो ज्ञान की बातें अथवा कोई सीख मिल जाए। दोनों हो सके, तो और भी बढ़िया! केवल सम्भोग के बारे में लिखने वाले तो थोक के भाव हैं। इस कारण से मैंने पिछले दस वर्षों में दस कहानियाँ भी नहीं लिख सका। एक और बात है - मेरी और मेरी पत्नी की कहानियाँ सदैव हमारे आस पास के वास्तविक लोगों और घटनाओं पर आधारित होती हैं। इस कारण से मैं कौटुम्बिक व्यभिचार नहीं लिखता (मेरी एक दो कहानियों में आप incest का टैग देख सकते हैं, लेकिन वो केवल इसलिए कि पाठकों की संख्या थोड़ी बढ़ाई जा सके - समझिए कि मछलियों को चारा डालता हूँ)!

मेरी कहानियों में स्त्री और पुरुष - दोनों को एक समान महत्ता दी जाती है। प्रकृति ने दोनों को बनाया है - इसका अर्थ यह है कि सृष्टि के लिए दोनों आवश्यक हैं। और मैं यहाँ केवल प्रजनन की बात नहीं कर रहा हूँ। जन्म, पालन-पोषण, जीवन की सुरक्षा, शिक्षण इत्यादि, सब कुछ सृष्टि के सतत सञ्चालन के लिए आवश्यक है। इसलिए स्त्री और पुरुष दोनों ही आवश्यक हैं! न कोई किसी से कम और न अधिक! मीनाक्षी के लिए आपने जो लिखा, वो अक्षरशः सही है। किसी परिणिता स्त्री के साथ इस प्रकार की कोई घटना हो, तो वो क्या सोचेगी? क्या करेगी? उसकी मनःस्थिति कैसी होगी? मैंने यहाँ यही सब दर्शाया है। इसलिए समीर, जिसको पति होने के कारण सामाजिक रूप से पत्नी से ऊँचा दर्ज़ा मिला हुआ है, का मिनाक्षी के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। वैसे भी पत्नी के जीवन में उसके पति का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता ही है। लेकिन, वो मिनाक्षी से छोटा है - उसके संस्कार पुख्ता हैं, इसलिए वो मिनाक्षी से केवल प्रेम ही नहीं, बल्कि उसका आदर भी करता है। प्रेम और आदर की संयुक्ति ही इस कहानी का आधार है। कहानी छोटी थी, इसलिए बहुत विस्तार से लिखने से खुद को बचाया।

जहाँ तक असल जीवन में मीनाक्षियों और समीरों के होने की बात है, तो मैं कहूँगा कि वो होते हैं। कहानियों में ऐसे किरदारों का परिष्कृत रूप दिखाया जाता है, लेकिन सच में, ऐसे लोग होते हैं। समीर के माता पिता, मेरे खुद के माता पिता पर आधारित हैं। मेरी अन्य कहानियाँ, जैसे, आज रहब यही आँगन, जबरिया ब्याह पर आधारित है; और उसके किरदार हमारे आस पास के कोई भी लोग हो सकते हैं! चरित्रहीन भी एक सामाजिक कुरीति पर आधारित है - जो खुले रूप से नहीं होती, लेकिन होती है। मोहब्बत का सफ़र या My Experience with Love सत्य घटनाओं का नाटकीय ब्यौरा है।

"आत्म-समर्पण" वाली बात आपने सही कही है, और मैं आपकी बात समझ भी रहा हूँ। समर्पण का तात्पर्य यहाँ हथियार डालने से नहीं, बल्कि पति पत्नी का प्रेमियों के रूप में एक दूसरे में समाहित करने से है। प्रेम में दोनों प्रेमी बराबर बहते हैं - पहाड़ी नदी की धारा के समान! या, जैसे बादलों से गिरती हुई वर्षा की बूँदों के समान! मुझे यहाँ किसी अलंकार या आलंकारिक भाषा की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप स्वयं भी यह बात जानते हैं। प्रेम में प्रेमियों के मध्य शारीरिक अंतर हो सकते हैं, लेकिन अन्य कोई नहीं। लेकिन वो अंतर भी किसी को एक दूसरे से श्रेष्ठ नहीं बनाता है। दोनों बराबर हैं!

अब आते हैं आपके अपने जीवन की बातें शेयर करने पर - उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद! यह बहुत बिरले ही लोग करते हैं - और मुझे गौरव होता है जब मैं मेरे पाठकों के जीवन के बारे में और सुनता हूँ! सबसे पहले मुझे यह जान कर अपार सुखद आश्चर्य हुआ कि आपके जीवन में रोमांस न केवल जीवित है, बल्कि स्वस्थ भी है! ईश्वर आपको दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करे। और आपके प्रेम-जीवन के लिए मेरी शुभकामनाएँ! आप स्वयं अधिक जानते हैं, अतः यदि आप मुझसे कुछ शेयर करना चाहें, तो मुझे PM कर सकते हैं! लेकिन आपसे एक विनती है - चुपचाप (बिना किसी कमेंट के) कहानी पढ़ना लेखकों के लिए बहुत बुरा लगने वाला अनुभव होता है। कुछ भी लिख दें अंत में - हम लेखक उतने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। :)

कहानी की भाषा और व्याकरण पर आपकी टिप्पणी बड़ी उदार थी! कहानी की लगभग प्रत्येक पंक्ति ने कोई न कोई नुक्स था! :) हा हा! लेकिन, हाँ, काम चल जाता है! मेरा प्रयास यही रहता है कि हिंदी की कहानी देवनागरी में, और अंग्रेजी की कहानी रोमन लिपि में लिखूँ। भगवान् की दया से दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ है, इसलिए लिखने का आनंद उठाता रहता हूँ :) कभी कभी ग्राम्य भाषा या अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करता हूँ (जैसे कि मंगलसूत्र में मलयालम शब्दों की भरमार है)!


आशा है कि आप मेरी लिखी हुई अन्य कहानियाँ भी पढ़ेंगे, और उनका आनंद उठाएँगे! आपके और विचार जानने के लिए मैं उत्सुक रहूँगा! भगवान् आपका कल्याण करें, आप सुखी और स्वस्थ रहें - बस आपके अनुज की यही शुभकामनाएँ हैं! मेरे हाथ इतने लम्बे नहीं हुए हैं कि आपको आशीर्वाद दे सकें 🙏

बहुत बहुत धन्यवाद - अमर!
आपको PM कैसे प्रेषित करुं?
 

Raja971

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श्रीमान Raja971 जी,

सबसे पहले मेरा ससम्मान और हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें! आप मेरे अग्रज हैं, और आपने मुझसे अधिक संसार देखा है - इसलिए आपकी प्रतिपुष्टि बहुमूल्य है :) और तो और, आपने यह बताया है कि आप ज्यादातर कमेंट्स इत्यादि नहीं लिखते हैं! अतएव आपके विचार और प्रतिपुष्टि पढ़ कर मैं अपार हर्ष और गौरव का अनुभव कर रहा हूँ!

कोई भी कथा मनोरंजन के लिए ही तो होती है, लेकिन मेरा यह प्रयास रहता है कि पढ़ने वालों को एक दो ज्ञान की बातें अथवा कोई सीख मिल जाए। दोनों हो सके, तो और भी बढ़िया! केवल सम्भोग के बारे में लिखने वाले तो थोक के भाव हैं। इस कारण से मैंने पिछले दस वर्षों में दस कहानियाँ भी नहीं लिख सका। एक और बात है - मेरी और मेरी पत्नी की कहानियाँ सदैव हमारे आस पास के वास्तविक लोगों और घटनाओं पर आधारित होती हैं। इस कारण से मैं कौटुम्बिक व्यभिचार नहीं लिखता (मेरी एक दो कहानियों में आप incest का टैग देख सकते हैं, लेकिन वो केवल इसलिए कि पाठकों की संख्या थोड़ी बढ़ाई जा सके - समझिए कि मछलियों को चारा डालता हूँ)!

मेरी कहानियों में स्त्री और पुरुष - दोनों को एक समान महत्ता दी जाती है। प्रकृति ने दोनों को बनाया है - इसका अर्थ यह है कि सृष्टि के लिए दोनों आवश्यक हैं। और मैं यहाँ केवल प्रजनन की बात नहीं कर रहा हूँ। जन्म, पालन-पोषण, जीवन की सुरक्षा, शिक्षण इत्यादि, सब कुछ सृष्टि के सतत सञ्चालन के लिए आवश्यक है। इसलिए स्त्री और पुरुष दोनों ही आवश्यक हैं! न कोई किसी से कम और न अधिक! मीनाक्षी के लिए आपने जो लिखा, वो अक्षरशः सही है। किसी परिणिता स्त्री के साथ इस प्रकार की कोई घटना हो, तो वो क्या सोचेगी? क्या करेगी? उसकी मनःस्थिति कैसी होगी? मैंने यहाँ यही सब दर्शाया है। इसलिए समीर, जिसको पति होने के कारण सामाजिक रूप से पत्नी से ऊँचा दर्ज़ा मिला हुआ है, का मिनाक्षी के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। वैसे भी पत्नी के जीवन में उसके पति का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता ही है। लेकिन, वो मिनाक्षी से छोटा है - उसके संस्कार पुख्ता हैं, इसलिए वो मिनाक्षी से केवल प्रेम ही नहीं, बल्कि उसका आदर भी करता है। प्रेम और आदर की संयुक्ति ही इस कहानी का आधार है। कहानी छोटी थी, इसलिए बहुत विस्तार से लिखने से खुद को बचाया।

जहाँ तक असल जीवन में मीनाक्षियों और समीरों के होने की बात है, तो मैं कहूँगा कि वो होते हैं। कहानियों में ऐसे किरदारों का परिष्कृत रूप दिखाया जाता है, लेकिन सच में, ऐसे लोग होते हैं। समीर के माता पिता, मेरे खुद के माता पिता पर आधारित हैं। मेरी अन्य कहानियाँ, जैसे, आज रहब यही आँगन, जबरिया ब्याह पर आधारित है; और उसके किरदार हमारे आस पास के कोई भी लोग हो सकते हैं! चरित्रहीन भी एक सामाजिक कुरीति पर आधारित है - जो खुले रूप से नहीं होती, लेकिन होती है। मोहब्बत का सफ़र या My Experience with Love सत्य घटनाओं का नाटकीय ब्यौरा है।

"आत्म-समर्पण" वाली बात आपने सही कही है, और मैं आपकी बात समझ भी रहा हूँ। समर्पण का तात्पर्य यहाँ हथियार डालने से नहीं, बल्कि पति पत्नी का प्रेमियों के रूप में एक दूसरे में समाहित करने से है। प्रेम में दोनों प्रेमी बराबर बहते हैं - पहाड़ी नदी की धारा के समान! या, जैसे बादलों से गिरती हुई वर्षा की बूँदों के समान! मुझे यहाँ किसी अलंकार या आलंकारिक भाषा की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप स्वयं भी यह बात जानते हैं। प्रेम में प्रेमियों के मध्य शारीरिक अंतर हो सकते हैं, लेकिन अन्य कोई नहीं। लेकिन वो अंतर भी किसी को एक दूसरे से श्रेष्ठ नहीं बनाता है। दोनों बराबर हैं!

अब आते हैं आपके अपने जीवन की बातें शेयर करने पर - उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद! यह बहुत बिरले ही लोग करते हैं - और मुझे गौरव होता है जब मैं मेरे पाठकों के जीवन के बारे में और सुनता हूँ! सबसे पहले मुझे यह जान कर अपार सुखद आश्चर्य हुआ कि आपके जीवन में रोमांस न केवल जीवित है, बल्कि स्वस्थ भी है! ईश्वर आपको दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करे। और आपके प्रेम-जीवन के लिए मेरी शुभकामनाएँ! आप स्वयं अधिक जानते हैं, अतः यदि आप मुझसे कुछ शेयर करना चाहें, तो मुझे PM कर सकते हैं! लेकिन आपसे एक विनती है - चुपचाप (बिना किसी कमेंट के) कहानी पढ़ना लेखकों के लिए बहुत बुरा लगने वाला अनुभव होता है। कुछ भी लिख दें अंत में - हम लेखक उतने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। :)

कहानी की भाषा और व्याकरण पर आपकी टिप्पणी बड़ी उदार थी! कहानी की लगभग प्रत्येक पंक्ति ने कोई न कोई नुक्स था! :) हा हा! लेकिन, हाँ, काम चल जाता है! मेरा प्रयास यही रहता है कि हिंदी की कहानी देवनागरी में, और अंग्रेजी की कहानी रोमन लिपि में लिखूँ। भगवान् की दया से दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ है, इसलिए लिखने का आनंद उठाता रहता हूँ :) कभी कभी ग्राम्य भाषा या अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करता हूँ (जैसे कि मंगलसूत्र में मलयालम शब्दों की भरमार है)!


आशा है कि आप मेरी लिखी हुई अन्य कहानियाँ भी पढ़ेंगे, और उनका आनंद उठाएँगे! आपके और विचार जानने के लिए मैं उत्सुक रहूँगा! भगवान् आपका कल्याण करें, आप सुखी और स्वस्थ रहें - बस आपके अनुज की यही शुभकामनाएँ हैं! मेरे हाथ इतने लम्बे नहीं हुए हैं कि आपको आशीर्वाद दे सकें 🙏

बहुत बहुत धन्यवाद - अमर!
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