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Romance संयोग का सुहाग [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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सर जी, पहले मेरा नमस्कार स्वीकार कीजिएगा। मुझे पता ही नहीं था की इतना सुंदर एक कहानी भी मिल सकता था इसी forum मे। मैं आज तक इतनी सुंदर कहानी इस तरह का कोई फॉरम मे नहीं पड़े थे। आज इस फॉरम मे रोमैन्स बिभाग मे पीछे से आते समय अचानक ये कहानी मिला। एक झटके मे पूरा कहानी पड़े है। स्वामी स्त्री का भाव का इतना सुंदर बिचार आदान प्रदान के ऊपर आधारित कहानी पहली बार पड़े। आपका बहुत आभार इतना सुंदर कहानी हुमे देने के लिए। आपसे अनुरोध रहेगा इस तरह का कहानी इस फॉरम मे आप लिखते रहिए। आपका लेखनी अलग किस्म का है । आप लिखिए आपके पाठकों की कभी कमी नहीं होगी। बहुत कुछ लिखना चाहते थे लेकिन शब्द नहीं मिल रहे है। आपको पुनः धन्यबाद।

बहुत बहुत धन्यवाद मित्रवर 😊
अच्छा लगता है जब मेरी कहानियों में पाठक-गण रुचि दर्शाते हैं। बहुत सी कहानियाँ लिखी हैं मैंने। पढिए उनको भी। सबके लिंक मेरे सिग्नचर में हैं।
जहाँ तक पाठकों की कमी वाली बात है, तो भई, कमी तो भीषण है। इसलिए मैंने आज कल लिखना रोक दिया है। और सच में, ऐसा कर के मैं बहुत खुश हूँ 😊😊😊😂 बहुत समय बचता है।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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भाई इस भाग में जो मजा या कहे पति पत्नी का प्रेम देखने को मिला वह अतुल्यनीय है।
यह प्रथम ऐसी कहानी है जिसे पढ़ कर उत्तेजना नहीं अपितु प्रेम से दिल भर गया।
मैं आशा करता हूं की भविष्य में आप हमें इसी प्रकार प्रेम के सागर का भ्रमण करेंगे।

धन्यवाद
RJ02YOGENDRA

बहुत बहुत धन्यवाद योगेंद्र जी 😊
पति पत्नी के प्रेम में प्रगाढ़ता होनी चाहिए। आपको पढ़ कर आनंद आया, एक लेखक के रूप में यही मेरी उपलब्धि है।
अच्छा लगता है जब मेरी कहानियों में पाठक-गण रुचि दर्शाते हैं। बहुत सी कहानियाँ लिखी हैं मैंने। पढिए उनको भी। सबके लिंक मेरे सिग्नचर में हैं। मैंने आज कल लिखना रोक दिया है। और सच में, ऐसा कर के मैं बहुत खुश हूँ 😊😊😊😂 बहुत समय बचता है।
 
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Chutiyadr

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वहाँ से जाने के बाद वर्मा जी पहले पंद्रह मिनट तक, किसी से बिना कुछ कहे टहल कदमी करते रहे; लेकिन फिर उससे ज्यादा उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने समीर के प्रपोज़ल का ज़िक्र अपनी धर्मपत्नी से किया। उन बेचारी की हालत भी वर्मा जी के जैसी थी - जैसे कैसे भी लड़की की शादी हो जाए, उसका घर बस जाए - अब इससे अधिक उन दोनों को ही कुछ भी नहीं चाहिए था। अंत में उन्होंने अपने पति से कहा कि अगर होने वाले समधियों से बात हो जाती तो बढ़िया रहता। बात ठीक थी; तो इस बार दोनों ही लोग वापस ऊपर के कमरे में पहुँचे और समीर से बोले,

“बेटे, तुम्हारे घर में बात हो जाती तो?”

“जी बिलकुल! मैंने आपसे बात करने के बाद घर में बात किया है। माई पेरेंट्स आर एक्साईटेड! वो भी आपसे बात करना चाहते हैं। रुकिए, मैं आपकी बात करवा देता हूँ।”

समीर ने अपने घर पर कॉल लगा कर वर्मा जी को मोबाइल थमा दिया। यह बात अब कम से कम एक घंटा चलनी थी।


“समीर, आज तू यहीं रुक जा! पापा ने कहा है कि दीदी से तुम्हारी बात करवाने को।”

“अगर शी इस नॉट कम्फ़र्टेबल, तो रहने दो।”

“नहीं यार! वो बात नहीं है। ऐसा न हो की शादी हो जाए, और तुम दोनों एकदम अजनबी जैसे रहो! इसलिए। हा हा। और भाई लोगो, तुम लोग भी रुक जाओ एक दो दिन! अपने भाई की शादी हो जाएगी लगता है। और तुम लोगों के बिना मज़ा तो बिलकुल भी नहीं आएगा।”




***********************************************



आखिरकार मीनाक्षी और समीर ऊपर वाले कमरे में आमने सामने हुए। रात घटनाओं के कारण मीनाक्षी के चेहरे पर अभी भी दुःख की चादर चढ़ी हुई थी।

“थैंक यू फॉर मीटिंग विद मी। इट इस रियली बिग ऑफ़ यू!”

मीनाक्षी ने कुछ नहीं कहा - उसकी आँखें अभी भी रोने के कारण लाल थीं।

समीर ने आदेश के बचपन की तस्वीरें देखी हुई थीं, और उन सब में उसका मुख्य आकर्षण मीनाक्षी ही थी - एक तरह से उसने मीनाक्षी को बड़ा होते हुए देखा हुआ था। वो एक सुन्दर लड़की थी। चेहरे पर एक आकर्षक भोलापन था। उसका शरीर परिपक्व था। अच्छी, पढ़ी-लिखी और कोमल स्वभाव की लड़की थी। कुछ बात थी मीनाक्षी में, जो समीर को वो पहली नज़र में ही भा गई थी।

“आपको मुझसे जो भी पूछना हो, पूछ लीजिए।”

मीनाक्षी ने कुछ नहीं कहा। समीर ने दो मिनट उसके कुछ कहने का इंतज़ार किया फिर कहा,

“अगर कुछ नहीं पूछना है, तो मैं आपसे कुछ पूछूँ?”

मीनाक्षी ने सर हिला कर हामी भरी।

“आप मुझसे शादी करना चाहेंगी?”

मीनाक्षी थोड़ा सा झिझकी फिर बोली, “आप पापा को पसंद हैं। माँ को भी, और आदेश को भी!”

“और आपको?”

समीर को एक भ्रम सा हुआ कि उसके इस सवाल पर एक बहुत ही क्षीण सी मुस्कान, बस क्षण भर को मीनाक्षी के होंठों पर तैर गई। उसने कुछ कहा फिर भी नहीं।

“आपको जोक्स पसंद हैं।” समीर ने पूछा।

मीनाक्षी ने फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

“अच्छा, जोक्स तो सभी को पसंद होते हैं… मैं आपको एक सुनाता हूँ -

पत्नी ने कहा, “सुनिए जी, आपके जन्मदिन पर मैंने इतने अच्छे कपड़े लिए हैं कि क्या कहूँ!

पति (खुश हो कर बोला), “अरे वाह! दिखाओ जल्दी!”
पत्नी, “रुकिए, मैं अभी पहन कर दिखाती हूँ!

या तो मीनाक्षी को समीर का जोक समझ नहीं आया, या फ़िर वो जान बूझ कर नहीं मुस्कुराई।

“अरे कोई भी रिएक्शन नहीं? ठीक है, मैं आपको एक और जोक सुनाता हूँ -

एक सुंदर लड़की ने पप्पू को आवाज लगाई, “ओ भाईजान, ज़रा सुनिए तो”
पप्पू बोला, “ओ हीरोइन, पहले फैसला कर ले -- भाई या जान! ऐसे कंफ्यूज क्यों कर रही है?


इस घटिया से जोक पर आख़िरकार मीनाक्षी अपनी मुस्कान रोक नहीं पाई और एक हलकी सी मुस्कान दे बैठी।

“अब बताइए।”

“क्या?” मीनाक्षी अच्छे से जानती थी कि समीर ने क्या पूछा।

“आप मुझसे शादी करना चाहेंगी? वो तीनों मुझे पसंद करते हैं, इस बात से ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट है कि मैं आपको कितना पसंद हूँ!” समीर ने सवाल दोहरा दिया।

मीनाक्षी एक सीधी सी लड़की थी। उसको अपने जीवन से कोई बुलंद उम्मीदें नहीं थीं। उसके जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा किसी कॉलेज में लेक्चरर बनने की थी। उतना हो जाए तो वो खुश थी। उसको वो न भी मिलता तो चल जाता। अगर एक छोटे से सुखी परिवार की उसकी अभिलाषा पूरी हो जाती।

मीनाक्षी उत्तर में बस हलके से मुस्कुरा दी। इतना संकेत काफी था समीर के लिए। चलो, कम से कम इधर तो पापड़ नहीं बेलने पड़े।

“अब बस एक आखिरी रिक्वेस्ट?”

मीनाक्षी ने नज़र उठा कर समीर की तरफ देखा। एक हैंडसम, आकर्षक युवक - दिखने में कॉंफिडेंट, बोलने में कॉंफिडेंट, यह तथ्य कि वो अपनी शादी जैसा एक बहुत ही अहम फैसला खुद ही कर सकता है, यह सब उसके व्यक्तित्व का बखान करने के लिए बहुत है। अंदर ही अंदर मीनाक्षी को अच्छा लगा कि अगर ऐसा जीवन-साथी मिल जाए, तो जीने में कैसा आनंद रहेगा।

“मैं आपको छू लूँ?” समीर ने झिझकते हुए पूछा।

मीनाक्षी एकदम से सतर्क हो गई। मिडिल क्लास में की गई परवरिश उसका ढाल बन गई। उसने कुछ क्षण सोचा - अंत में उसके मन में बस यही बात आई कि समीर उसके साथ कुछ भी ऐसा वैसा नहीं करेगा। प्रपोजल ले कर वही आया है। मतलब उसको उससे समीर है; और अगर समीर है तो आदर भी होगा। यह सब सोच कर मीनाक्षी ने सर हिला कर हामी भर दी।

समीर ने मीनाक्षी के घुटनो के पास सिमटे उसके हाथों को अपनी उंगली से बस हलके से छू लिया। एकदम कोमल, क्षणिक स्पर्श!

“थैंक यू!”

दो निहायत छोटे से शब्द - लेकिन इतनी निष्कपटता और इतनी संजीदगी से बोले समीर ने कि वो दोनों शब्द मीनाक्षी के दिल को सीधे छू गए। उसकी नज़रें समीर की नज़रों से टकराईं। समीर ने आदतन अपने सीने पर हाथ रख थोड़ा सा झुक कर मीनाक्षी का अभिवादन किया। मीनाक्षी की आवाज़ भीग गई। उसके गले से एक पल आवाज़ निकलनी बंद सी हो गई। आँसुओं और औरतों का रिश्ता बड़ा अजीब है। जैसे पानी ढाल पर हमेशा नीचे की तरफ बहता है, आंसू भी औरत की छाती के खाली गड्ढे में इकट्ठे होते जाते हैं। और यह गड्ढा कभी भी सूखता नहीं। जब भी इनको निकासी का कोई रास्ता मिलता है, ये बाहर आने शुरू हो जाते हैं। समीर के दो शब्द, और मीनाक्षी की आँखों से आँसुओं की बड़ी बड़ी बूँदें टपक पड़ीं।

“ओ गॉड! आई ऍम सॉरी! प्लीज मुझको माफ़ कर दीजिए।”

“नहीं नहीं.. आप माफ़ी मत पूछिए।” मीनाक्षी ने रूंधे गले से कहा, “बस रात की बात याद आ गई।”

वो दोनों कुछ और कहते या सुनते, उसके पहले ही आदेश की आवाज़ आई, “दीदी…”

“मैं चलती हूँ।” मीनाक्षी ने आँसू पोंछते और उठते हुए कहा। और कमरे से बाहर निकल गई।
Bahut hi badiya plot lag raha hai ...
Aaj hi start kiya ise
Abhi tak :superb:
 
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Paraoh11

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Aapki kahani ka swad kuch aisa tha ki ek bar padhna shuru jo Kia...
Jab tak khatam nahi hui phone choota nahi haath se....
Kayakalp ke baad ye doosri story padhi maine. Vah bhi ek Anmol nagina hai..
Apki lekhni ko mera shat shat pranaam.
May the FORCE be with you always!
 
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Aapki kahani ka saad kuch aisa tha ki ek bar padhna shuru jo Kia...
Jab tak khatam nahi hui phone choota nahi haath se....
Kayakalp ke baad ye doosri story padhi maine. Vah bhi ek Anmol nagina hai..
Apki lekhni ko mera shat shat pranaam.
May the FORCE be with you always!
धन्यवाद भाई 🙏
 

avsji

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Bahut hi badiya plot lag raha hai ...
Aaj hi start kiya ise
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अरे डॉक्टर बाबू पधारे हैं 🙏🙏😅
 
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Chutiyadr

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“आए हाय! कितनी प्यारी बच्ची है!” समीर की माँ, मीनाक्षी को देखते ही बोल पड़ीं!

“अरे तू इतनी किस्मत वाला है, मुझे तो नहीं पता था! इधर आ बिटिया, मेरे गले से लग जा - तुझे ज्यादा देखूंगी तो तुझे मेरी ही नज़र लग जाएगी!”

मीनाक्षी उनके पैर छूने को हुई तो रास्ते में ही समीर की माँ ने उसको थाम कर, अपने सीने में भींच लिया और उसके माथे पर कई बार चूम लिया। उनका ऐसा प्यार देख कर मीनाक्षी की आँखे भर आईं। वहीँ पर मीनाक्षी की माता जी भी खड़ीं थीं, उनके भी नैन भीगे बिना नहीं रह सके।

“बहन जी, आपको इस रिश्ते पर कोई ऐतराज़ नहीं?” उन्होंने आश्चर्यचकित होते हुए कहा। उनको अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था कि कल की घटनाओं के तुरंत बाद, उनके घर में फिर से ख़ुशियाँ आ सकती हैं!

“ऐतराज़? अरे कैसी बातें करती हैं आप बहन जी! इतनी सुन्दर सी, गुड़िया जैसी बिटिया.... कैसी बड़ी किस्मत होगी मेरी कि ये यूँ ही मेरी झोली में आ गिरी है; इतना सुनहरा मौका क्या अपने हाथ से क्या यूँ ही चले जाने दूँगी?”

“लेकिन हमारी मीनाक्षी आपके बेटे से दस साल बड़ी है...”

“अरे भाग्यवान” वर्मा जी ने अपनी पत्नी को रोकना चाहा।


“बहन जी, सच में बताइएगा, पत्नी का उम्र में पति से छोटा होना क्यों ज़रूरी है?” समीर की माँ गंभीर होते हुए बोलीं।

“जी? बिलकुल नहीं! कोई ज़रूरी नहीं हैं। लेकिन, वो तो समाज की ऐसी ही रीति है न?”

“और वो रीति, वो रिवाज़ बनाने वाले भी तो हम ही हुए! है न? और अगर नहीं जम रही है रीतियाँ, तो तोड़ने वाले भी हम ही हुए!” यह बात समीर के पिता जी ने कही।

मीनाक्षी के माता पिता आश्चर्य से मुँह बाए समीर के माता पिता को देख रहे थे, जैसे उन्होंने कोई अनहोनी बात कर दी हो। क्या आज कल के जमाने में ऐसी बात करने वाले लोग बचे हैं? क्या वो सपना तो नहीं देख रहे हैं?

“भाई साहब,” समीर के पिता जी इस बहस में पहली बार उलझे, “मुझे तो लगता है कि ताउम्र पत्नियां अपने पति का सम्मान, लिहाज,और जी हुज़ूरी करती रहें, इसी शातिराना सोच के के कारण पति और पत्नी के बीच के उम्र के मामलों के सामाजिक कायदे बनाए गए हैं। ऐसा लगता है कि अगर औरत किसी भी मामले में मर्द से आगे निकल जाए तो मर्द को बर्दाश्त नहीं होता। क्योंकि किसी भी लिहाज से अपने बड़ी पत्नी - चाहे शिक्षा हो, नौकरी हो, या उम्र या ही कद-काठी - न तो उनसे दबती है और न ही उनकी ज्यादतियां बर्दाश्त करती है।”

“पति का पत्नी से उम्र में बड़ा होना अनिवार्यता क्यों है, इस बात का कोई तार्किक जवाब किसी के पास नहीं है। लोग यही कहेंगे कि ऐसा सदियों से होता चला आ रहा है या फिर यह कि संतानोत्पत्ति की क्रिया में आसानी रहती है। पहला तर्क एक कुतर्क है, लेकिन दूसरे तर्क का उत्तर यह है कि एक बच्चा पैदा करो! भारत की जनसंख्या की प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएगी अपने आप!”

इस बात पर वहाँ उपस्थित सभी लोग मुस्कुराने लगे।

“सच में भाभी जी,” समीर के पिता जी पूरे रंग में थे, “सोचिए, अगर पत्नी उम्र में छोटी होगी तो बिना किसी चूं चपड़ के पति और उसके परिवार का सम्मान करती रहेगी। वहाँ का काम धंधा करती रहेगी। आप खुद ही देख लीजिए, किस तरह से लड़कियों को पति की इज़्ज़त करने पर मजबूर किया ही जाता रहा है। पति तुम्हारा देवता है! बताइए, कैसी कोरी बकवास है!”

“भाई साहब, बहन जी, आप लोग बहुत बड़े ख़यालात वाले लोग हैं! हम लोग धन्य है कि हमारी बेटी आपके यहाँ जाएगी!” आदेश की माँ बोलीं।

“भाभी जी, धन्य हम हैं जो ऐसी प्यारी बच्ची के पैर हमारे घर में पड़ेंगे!”

मीनाक्षी के पिता ने हाथ जोड़ कर पूछा, “और शादी?”

“आप कितनी जल्दी कर सकते हैं? मेरे बेचारे समीर से तो रहा नहीं जा रहा है, और आज ही करने पर ज़ोर दे रहा है! क्या करे बेचारा - उसकी पूरी लाइफ में आज पहली बार किसी लड़की ने उसको पसंद किया है! हा हा हा!!”

जिस तरह से समीर की माँ ने यह बात कही, वो सुन कर सभी लोग ठट्ठा मार कर हँसने लगे। मीनाक्षी बेचारी शर्म से गड़ गई।
अति सुंदर
 
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Chutiyadr

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“अमाँ बरख़ुरदार, क्या खुद खाए ले रहे हो!” समीर जैसे ही पहला निवाला लेने को हुआ, उसके डैडी ने उसको टोंका, “इतने क्रान्तिकारी तरीके से बहू को ब्याह कर लाए हो, कम से कम अपने हाथ से पहला निवाला उसको खिलाओ! चलो चलो! शाबाश!”

“हाँ! लेकिन एक सेकंड! ज़रा खिलाते हुए तुम दोनों की एक फ़ोटो तो निकाल लूँ,” कह कर उसकी माँ लपक कर अपने पर्स से छोटा सा कैमरा निकाल लिया और उसको ‘ऑन’ कर के बोलीं, “हाँ, प्रोसीड!”

समीर ने पूरी का पहला निवाला मीनाक्षी के थोड़े से खुले मुँह में डाल दिया।

“बिटिया, इस घर में सब दबा के खाते हैं! खाने में संकोच मत करना!” ये उसके पिता जी की टिपण्णी थी। उनकी बात पर मीनाक्षी बिना मुस्कुराए नहीं रह सकी।

जब लेन-दारी होती है, तब देन-दारी भी होती है। मीनाक्षी ने भी पूरी का एक टुकड़ा कोफ़्ते में अच्छी तरह डुबा कर समीर की तरफ बढ़ा दिया। समीर ने बड़ा सा मुँह खोल कर निवाला तो ले ही लिया, साथ में उसके हाथ को भी काट लिया।

फोटो खींचते हुए उसकी माँ ने कहा, “देखा बेटा? सब दबा के खाते हैं! तुमने इतना बड़ा निवाला दिया, फिर भी तुम्हारे पति को तुम्हारा हाथ भी खाने को चाहिए!”

इस बात पर मीनाक्षी की मुस्कान और चौड़ी हो गई।

“तू रहने दे इसको खिलाने को! पता चला, इस लंच में ही तेरा हाथ खा गया! हा हा हा हा!”

जब मीनाक्षी ने सारे पकवान एक एक बार चख लिए, तो माँ ने पूछा, “गेस कर सकती हो कि तुम्हारे समीर ने क्या क्या बनाया है इसमें से?”

“जी, खीर?” मीनाक्षी से शर्माते, सकुचाते अंदाज़ा लगाया। उसने सोचा मीठा पकवान है। तो शायद यही हो।

“अरे! बिलकुल ठीक! ज़िद कर रहा था कि मम्मी, अपनी बीवी के लिए मीठा तो मैं ही बनाऊँगा!” माँ ने अपनी तरफ़ से बढ़िया मसाला लगा कर कहानी बना दी, “और ये पुलाव और रायता भी इसी ने तैयार किया है। तुम घबराना नहीं! मेरा बेटा जानता है खाना पकाना। तुमको सब अकेले करने की ज़रुरत नहीं है।”

मीनाक्षी हैरान थी। सचमुच हैरान!

‘हे प्रभु! ऐसे लड़के होते हैं क्या! ऐसे परिवार होते हैं क्या! बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा! हे प्रभु, बस ऐसी ही दया बनाए रखना!’

उसने मुस्कुराते हुए अपनी बड़ी बड़ी आँखें उठा कर समीर को प्रेम से देखा।

पहली बार उसके मन में लाचारी के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में दुःख के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में हीनता के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में अज्ञात को ले कर भय के भाव नहीं थे। पहली बार उसके मन में समीर के लिए आभार का भाव था। पहली बार उसके मन में समीर के लिए प्रशंसा का भाव था। पहली बार उसके मन में समीर के लिए गर्व का भाव था। पहली बार उसके मन में समीर के लिए प्रेम का भाव था।
इतना प्रेम दिखा दिया आपने ki ab kuchh anhoni ho gayi to bahut dukh hoga ...
 
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अरे पहले पढ़िए तो!
मेरी कहानियों में दुःख कम ही होता है।
 

Kala Nag

Mr. X
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अरे पहले पढ़िए तो!
मेरी कहानियों में दुःख कम ही होता है।
इस फोरम में मेरी सबसे पहली कहानी है
इसलिए यह दिल के बहुत करीब है
 
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