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Romance संयोग का सुहाग [Completed]

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ashik awara

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अजीबोगरीब सा लग रहा हे स्टोरी की जगह बस रिपीट टेलीकास्ट ही दिखाई दे रहे हें या कमेन्ट असली कहानी कहाँ हे पता ही नही चलता अजीब wewsait हे
 

Shetan

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वर्मा परिवार पर तो जैसे गाज गिर गई हो - और क्यों न हो? बस कुछ ही घंटों में, हंसी ख़ुशी का माहौल जैसे मातम में बदल गया। विवाह के पंडाल में उपस्थित लोगों के चेहरों पर क्रोध, हास्य, अविश्वास और दुःख का मिला-जुला भाव स्पष्ट देखा जा सकता था।

हुआ कुछ यूँ कि मेरठ में रहने वाले वर्मा परिवार की बड़ी बेटी मीनाक्षी की शादी, मुरादाबाद के एक डिग्री कॉलेज में, प्रोफेसर के पद पर कार्यरत एक लड़के से कर दी गई थी। सगाई वाले दिन, वर्मा जी ने अपनी हैसियत से कहीं आगे बढ़-चढ़ कर होने वाले वर को एक मारुती स्विफ़्ट कार और सोने के पांच सिक्के दिए थे। दहेज़ को ले कर दोनों परिवारों में न जाने क्या कुछ तय हुआ था, लेकिन लड़के वाले सगाई के इस नज़राने से बहुत खुश होते हुए तो नजर नहीं आ रहे थे। मज़ेदार बात तो यह है कि सगाई के दौरान उन्होंने मीनाक्षी को एक जोड़ी सोने के कंगन, और एक मामूली सी अँगूठी ही दी थी।

सगाई समारोह से उठते हुए दूल्हे के परिवार वालों ने आख़िरकार बोल ही दिया कि अगर उन्हें कुछ नगदी मिल जाती तो काफी बेहतर होता। साथ ही साथ उन्होंने इस बात पर अपनी नाराज़गी भी दिखाई कि वर्मा जी ने सगाई समारोह में वर के साथ आए हुए मेहमानों को भेंट स्वरूप बस कपड़ों की जोड़ी ही दी। इस बात पर वर्मा जी ने कहा कि कुछ समय दें, जिससे वो नगदी का बंदोबस्त कर सकें। वर्मा जी के इस निवेदन पर वर पक्ष बिना किसी हील हुज्जत के चल तो दिए, लेकिन रहे वो सभी असंतुष्ट ही। धन का लालच एक बलवान वस्तु होता है। मानवता पर वह हमेशा ही भारी पड़ता है।

खैर, आज तो मीनाक्षी का विवाह होना था और वर्मा जी के घर ख़ुशियों का माहौल था। उन्होंने वाकई अपनी हैसियत से कहीं अधिक खर्च कर डाला था अपनी प्यारी बेटी की शादी में। प्रोफेसर साहब की बारात देर रात करीब ग्यारह बजे उनकी चौखट पर जब आई, तब किसी को अंदाजा भी नहीं था कि पल भर में क्या से क्या हो जाएगा। बारात के शोर शराबे में वर्मा जी के समधी ने दस लाख रुपए दहेज़ में मांग लिए, और यह धमकी भी दे डाली कि दूल्हे के स्वागत में यदि लक्ष्मी का चढ़ावा न चढ़ा तो यह शादी तो नहीं होगी।

वर्मा जी ने उनको समझाने का भरसक प्रयास किया - कहा कि हाल फिलहाल दो लाख रुपए की व्यवस्था हो पाई है। उसको स्वीकार करें, और विवाह संपन्न हो जाने दें। बाकी की रकम धीरे धीरे वो भर देंगे, यह वायदा भी किया। लेकिन दहेज़ लोभियों ने उनकी एक न सुनी। मीनाक्षी के पिता ने अपने सीमित संसाधनों का हवाला देते हुए वर के पिता को मनाने की हज़ार प्रयत्न किए… यहाँ तक कि उनके पैर पर अपनी पगड़ी तक रख दी, परन्तु दहेज़ लोभियों ने उसे ठोकर मार दी। बस बात ही बात में अनुनय विनय, कहा-सुनी में बदल गया।


इतनी देर रात हो जाने के कारण कन्या पक्ष के लोगों की संख्या कम थी; लेकिन अपने आतिथेय के ऐसे अपमान को देख कर कुछ जोशीले लड़की-वालों ने दूल्हे और बारातियों के साथ मार-पीट कर डाली। किसी समझदार ने पास के पुलिस चौकी में खबर कर दी थी, इसलिए बात बहुत आगे बढ़ने से पहले ही पुलिस आ गई और दोनों पक्षों के कुछ समझदार लोगों को बुला कर समझौता कराने की कोशिश भी की। लेकिन दूल्हा और उसके परिजन बिलकुल नहीं माने। पुलिस ने भी हार कर दूल्हे और उसके समस्त परिजनों पर आईपीसी और दहेज़ एक्ट की विभिन्न धाराओं तहद रिपोर्ट दर्ज कर ली।
Wow it's Revolution.
 
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उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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जी - नए नवेले विवाहित लोगों के लिए जो जो बातें ज़रूरी हैं, वो सब पात्र इसमें हैं.
बिना घर वालों के सपोर्ट के शादियाँ कितना ही चल सकतीं हैं!
सपोर्ट जरूरी है, लेकिन खुद का भी माइंड सेट सही होना चाहिए।
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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सपोर्ट जरूरी है, लेकिन खुद का भी माइंड सेट सही होना चाहिए।

यह तो सबसे ज़रूरी है। पति-पत्नी के अतिरिक्त तो सभी किरदार केवल सपोर्ट ही दे सकते हैं।
अपना ही माइंडसेट ठीक न हो, तो कुछ नहीं हो सकता।

लेकिन क्या भाई? इस कहानी में अचानक से कैसे इंटरेस्टेड हो गए?
तीन साल हो गए इसको लिखे हुए तो!
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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यह तो सबसे ज़रूरी है। पति-पत्नी के अतिरिक्त तो सभी किरदार केवल सपोर्ट ही दे सकते हैं।
अपना ही माइंडसेट ठीक न हो, तो कुछ नहीं हो सकता।

लेकिन क्या भाई? इस कहानी में अचानक से कैसे इंटरेस्टेड हो गए?
तीन साल हो गए इसको लिखे हुए तो!
२ महीने पहले पढ़ रहा था, फिर फोन चेंज किया तो छूट गई, आज Shetan जी ने थ्रेड रिवाईव किया तो याद आया कि इसको तो अधूरा छोड़ दिया था।
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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२ महीने पहले पढ़ रहा था, फिर फोन चेंज किया तो छूट गई, आज Shetan जी ने थ्रेड रिवाईव किया तो याद आया कि इसको तो अधूरा छोड़ दिया था।

गुनाह-ए-अज़ीम! 🤣🤣
 
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उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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तो लीजिए भाइयों और बहनों, "संयोग का सुहाग" समाप्त हुई।
पढ़ के बताइए कैसी लगी पूरी कहानी?
(दोबारा पढ़ने से कोई पाप नहीं लगेगा)
पुनश्च, सभी पाठकों को धन्यवाद! उम्मीद है कि कुछ लोग इस कहानी में बताई हुई बातों का अनुसरण करेंगे!

?????
दिल मांगे मोर
 
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कितने ही लोगों को कहते सूना है कि शादी के बाद स्त्री, और पुरुष दोनों को समझौता करना पड़ता है।
सामंजस्य को समझौते का नाम दे कर ही शादी के बाद की मुसीबतें मोल ली जाती हैं।
 
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