अनेकों जाहिल देशों से आये हुए प्रवासियों ने इन देशों में गंध फैला दी है।
बचपन में मैं सोचता था कि कभी इन देखों में जाऊँगा... कुछ आधुनिक देखने को मिलेगा।
कुछ समय पहले "फ्रांस" गया - स्साला कानपुर जैसी गंध मची हुई थी।
ख़ास समुदायों (नस्लों, धर्मों) के ghetto (बस्तियाँ) - जहाँ से वो ख़ास और परिचित दुर्गन्ध आती है - से भरपूर।
सोचा कि भे*चो* क्या इसी के लिए यहाँ आया!? कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी का भी ऐसा ही हाल सुनने देखने में आया है।
हाँ - मानता हूँ कि कभी इन लोगों (फिरंगियों) ने भी पिछल्ली समाजों पर राज किया था - लेकिन अगर भारत का उदाहरण लें, तो अनेकों व्यवस्थाएँ फिरंगियों की दी हुई हैं।
उनके किये हुए अनेकों निर्माण अभी भी काम कर रहे हैं। संविधान और प्रजातंत्र भी इन्ही देशों से आया - नहीं तो हम आज भी राजशाही और सामंतवादी सोच वाले समाज हैं।
इस बात पर बहुत नहीं लिखूँगा।
बिल्कुल साथ हैं। आपकी भाभी का इस वेबसाइट पर अलग से अकाउंट नहीं है।
मेरा ही अकाउंट वो भी इस्तेमाल करती हैं। अच्छे लेखकों का तो हम हमेशा से ही हौसलाअफ़ज़ाई करते हैं।
आप लिखिए - हम साथ हैं