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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Dhakad boy

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#146.

कैस्पर ने मुड़कर माया की ओर देखा। माया ने अपनी पलकें झपका कर कैस्पर को अनुमति दे दी।

यह देख कैस्पर तुरंत घोड़े पर सवार हो गया। कैस्पर के सवार होते ही जीको कैस्पर को लेकर आसमान में उड़ चला।

कुछ देर तक कैस्पर ने जीको को कसकर पकड़ रखा था, फिर धीरे-धीरे उसका डर खत्म होता गया।

अब कैस्पर अपने दोनों हाथों को छोड़कर, जीको के साथ आसमान में उड़ने का मजा ले रहा था।

जीको अब एक सफेद बादलों की टुकड़ी के बीच उड़ रहा था। हर ओर मखमल के समान बादल देख, कैस्पर को बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।

कई बार तो कई पक्षी भी, कैस्पर के बगल से निकले, जो कि आश्चर्य से इस उड़ने वाले घोड़े को देख रहे थे।

उन पक्षियों के लिये भी जीको किसी अजूबे से कम नहीं था।

कुछ देर तक आसमान में उड़ते रहने के बाद कैस्पर ने जीको को समुद्र के अंदर जाने को कहा।

जीको आसमान से उतरकर, समुद्र की गहराइयों में प्रवेश कर गया।

अब जीको ने समुद्री घोड़े का रुप ले लिया था, परंतु जीको का आकार, अब भी घोड़े के बराबर ही था।

नीले पानी में रंग बिरंगे जलीय जंतु दिखाई दे रहे थे।

ना तो जीको को पानी में साँस लेने में कोई परेशानी हो रही थी और ना ही कैस्पर को।

कैस्पर अभी छोटा ही तो था, इसलिये यह यात्रा उसके लिये सपनों सरीखी ही थी।

वह अपनी नन्हीं आँखों में, इस दुनिया के सारे झिलमिल रंगों को समा लेना चाहता था।

तभी उसके मस्तिष्क में माया की आवाज सुनाई दी- “अब लौट आओ कैस्पर, जीको अब तुम्हारे ही पास रहेगा...फिर कभी इसकी सवारी का आनन्द उठा लेना।”

माया की आवाज सुन, कैस्पर ने जीको को वापस चलने का आदेश दिया।

कुछ ही देर में उड़ता हुआ जीको वापस क्रीड़ा स्थल में प्रवेश कर गया।

जहां एक ओर कैस्पर के चेहरे पर, दुनिया भर की खुशी दिख रही थी, वहीं मैग्ना के चेहरे पर मायूसी साफ झलक रही थी।

“कैसा है मेरा जीको?” कैस्पर ने जीको से उतरते हुए मैग्ना से पूछा।

“बहुत गन्दा है...इसका सफेद रंग मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद...इसके पंख भी बहुत गंदे हैं।” मैग्ना ने गुस्साते हुए कहा।

“अरे...तुम्हें क्या हो गया?” कैस्पर ने आश्चर्य से भरते हुए कहा।

“घोड़ा पाते ही अकेले-अकेले लेकर उड़ गये...मुझसे पूछा भी नहीं कि मुझे भी उसकी सवारी करनी है क्या?....कैस्पर तुम बहुत गंदे हो... मैं भी जब अपना ड्रैगन बनाऊंगी तो तुम्हें उसकी सवारी नहीं करने दूंगी।” दोनों ने फिर झगड़ना शुरु कर दिया।

यह देख माया ने बीच-बचाव करते हुए कहा- “हां ठीक है...मत बैठने देना कैस्पर को अपने ड्रैगन पर...पर पहले अपना ड्रैगन बना तो लो।”

यह सुन मैग्ना ने जीभ निकालकर, नाक सिकोड़ते हुए कैस्पर को चिढ़ाया और माया के पास आ गई।

“मैग्ना...मैं तुम्हें ब्रह्म शक्ति नहीं दे सकती।” माया ने मैग्ना को देखते हुए कहा- “क्यों कि वह मेरे पास एक ही थी।”

यह सुनकर मैग्ना का चेहरा उतर गया।

“पर तुम उदास मत हो... उसके बदले मैं तुम्हें 1 नहीं बल्कि 2 शक्तियां दूंगी।” माया ने कहा।

“येऽऽऽऽऽ 2 शक्तियां !” यह कहकर उत्साहित मैग्ना ने फिर कैस्पर को चिढ़ाया।

माया ने एक बार फिर आँख बंदकर ‘यम’ और ‘गुरु बृह..स्पति’ को स्मरण किया। इस बार तेज हवाओं के साथ माया के दोनों हाथों में 2 मणि दिखाई दीं।

माया ने मंत्र पढ़कर दोनों मणियों को मैग्ना के दोनों हाथों में स्थापित कर दिया।

“मैग्ना ! तुम्हारे बाएं हाथ में, जो गाढ़े लाल रंग की मणि है, उसमें जीव शक्ति है और दाहिने हाथ में जो हल्के हरे रंग की मणि है, वो वृक्ष शक्ति है।” माया ने मैग्ना को देखते हुए कहा- “जीव शक्ति से तुम अपनी कल्पना से किसी भी जीव का निर्माण कर सकती हो और वृक्ष शक्ति से किसी भी प्रकार के वृक्ष का निर्माण कर सकती हो। जीव शक्ति में एक और विशेषता है, यह समय के साथ तुम्हें समझते हुए, स्वयं में बदलाव भी करती रहेगी।

"यानि की इसकी शक्तियां अपार हैं, बस तुम्हें इसे ठीक से समझने की जरुरत है। जीव शक्ति आगे जाकर इच्छाधारी शक्ति में भी परिवर्तित हो सकती है, जिससे तुम अपने शरीर के कणों में आवश्यक बदलाव करके किसी भी जीव में परिवर्तित हो सकती हो। क्या अब तुम अपनी शक्तियों के प्रयोग के लिये तैयार हो?”

“मैं तो मरी जा रही हूं कब से।” मैग्ना ने मासूमियत से जवाब दिया।

“तो फिर पहले अपने दोनों हाथों को जोर से हवा में गोल लहराओ और फिर संकेन्द्रित वायु को जमीन पर रखकर वृक्ष शक्ति का प्रयोग करो।” माया ने कहा।

माया के इतना कहते ही मैग्ना ने जोर से अपने दोनों हाथों को हवा में लहराया और फिर वातावरण मे घूम रहे कणों को जमीन पर रखकर, अपनी आँखें बंदकर कल्पना करने लगी।

मैग्ना के कल्पना करते ही उसके आसपास से, जमीन से बिजली निकलकर, उन हवा में घूम रहे कणों पर पड़ने लगी।

जमीन से निकल रही बिजली तेज ध्वनि और चमक दोनों ही उत्पन्न कर रही थी , पर मैग्ना की कल्पना लगातार जारी थी।

माया और कैस्पर की आश्चर्य भरी निगाहें, मैग्ना की कल्पना से बन रहे वृक्ष पर थी।

जमीन की सारी बिजली एक ही स्थान पर पड़ रही थी, परंतु काफी देर बाद भी, कोई वृक्ष उत्पन्न होता हुआ नहीं दिखाई दिया।

अचानक मैग्ना ने अपनी आँखें खोल दी। मैग्ना के आँख खोलते ही सारी बिजली वापस जमीन में समा गई।

जिस जगह से बिजली टकरा रही थी, वह स्थान अब भी खाली था।

यह देखकर कैस्पर जोर से हंसकर बोला- “वाह-वाह! चुहिया ने क्या कल्पना की है। एक घास भी नहीं बना पाई, वृक्ष तो दूर की बात है।”

पर पता नहीं क्यों इस बार मैग्ना ने कैस्पर की बात का बुरा नहीं माना। वह धीरे-धीरे चलती हुई आगे आयी और उस स्थान को ध्यान से देखने लगे, जहां पर संकेद्रित वायु के कण तैर रहे थे।

ध्यान से देखने के बाद मैग्ना ने हाथ बढ़ाकर, जमीन से कोई चीज उठाई और उसे लेकर माया के पास जा पहुंची।

माया ने आश्चर्य से मैग्ना के हथेली पर रखे, एक भूरे रंग के बीज को देखा। माया को कुछ समझ नहीं आया कि मैग्ना उसे क्या दिखाना चाहती है?

तभी मैग्ना ने आगे बढ़कर वहां पहले से ही रखे एक पानी से भरे मस्क को उठाया और उस बीज को जमीन पर रखकर, उस पर पानी डाल दिया।

पानी की बूंद पड़ते ही वह बीज अंकुरित हो गया और उससे एक नन्हीं सी हरे रंग की कोपल बाहर निकली।

वह कोपल तेजी से अपना आकार बढ़ा रही थी।

धीरे-धीरे वह एक नन्हा पेड़ बनने के बाद, एक विशाल वृक्ष में बदल गया, पर वृक्ष का बढ़ना अभी रुका नहीं था।

लगभग 5 मिनट में ही वृक्ष की शाखाएं आसमान छूने लगीं।

माया और कैस्पर हैरानी से उस वृक्ष को बढ़ते देख रहे थे।

अब उस वृक्ष के सामने पूरा द्वीप ही बौना लगने लगा था, मगर वृक्ष का बढ़ना अभी भी जारी था।

यह देख माया के चेहरे पर चिंता के भाव उभरे।

“मैग्ना....अब वृक्ष का बढ़ना रोक दो, नहीं तो यह वृक्ष पृथ्वी के वातावरण को ही नष्ट कर देगा।” माया ने भयभीत होते हुए कहा।

माया के यह कहते ही मैग्ना ने आगे बढ़कर वृक्ष को धीरे से सहलाया।

ऐसा लगा जैसे वृक्ष मैग्ना की बात समझ गया हो, अब उसका आकार छोटा होने लगा था।

कुछ ही देर में उस महावृक्ष का आकार, एक साधारण वृक्ष के समान हो गया।

“तुमने क्या कल्पना की थी मैग्ना?” माया ने मैग्ना से पूछा।

“मैंने कल्पना की, एक ऐसे महावृक्ष की...जिसके पास स्वयं का मस्तिष्क हो, वह किसी इंसान की भांति चल फिर सके, बोले व भावनाओं को समझे। वह अपने शरीर को छोटा बड़ा भी कर सके। वह अपने अंदर छिपे सपनो के संसार से, लोगों को ज्ञान दे, उन्हें सही मार्ग दिखलाए।

"वह स्वयं की शक्तियों का विकास करे। उसके अंदर एक पुस्तकों की भंडार हो, उसके तनों से अनेकों दुनिया के रास्ते खुलें। उसकी पत्तियों में जीवनदायिनी शक्ति हो, उसके फलों में किसी को भी ऊर्जा देने की शक्ति हो, उसके फूलों में अनंत ब्रह्मांड के रहस्य हों और जब तक धरती पर एक भी मनुष्य है, उसका जीवन तब तक रहे।” इतना कहकर मैग्नाचुप हो गयी।

माया आश्चर्य से अपलक मैग्ना को निहार रही थी। इतनी शक्तिशाली कल्पना तो देवताओं के लिये भी करना आसान नहीं था और वह भी तब, जब वह मात्र.. की थी।

“इतने नन्हें मस्तिष्क से इतनी बड़ी कल्पना तुमने कर कैसे ली? और वह भी कुछ क्षणों में ही।” माया ने मैग्ना को देखते हुए कहा।

“अब मैं इतनी छोटी थोड़ी ना हूं।” मैग्ना ने अपनी पलकें झपकाते हुए कहा।

माया समझ गई कि इन बच्चों को उसने शक्तियां देकर गलत नहीं किया है।

तभी इतनी देर से शांत वह वृक्ष बोल पड़ा- “मैंने सुन लिया कि मेरा निर्माण क्यों हुआ है? अब कृपया मुझे मेरा नाम बताने का कष्ट करें।”

मैग्ना ने कुछ देर सोचा और फिर कहा- “तुम्हारा नाम महावृक्ष होगा। कैसा लगा तुम्हें अपना यह नाम?”

“बिल्कुल आप ही की तरह सुंदर।” महावृक्ष ने कहा।

“तो फिर ठीक है...चलो अब छोटे हो कर मेरी हथेली के बराबर हो जाओ ....अभी मैं तुम्हें अपने साथ रखूंगी ...बाद में सोचूंगी कि तुम्हें कहां लगाऊं।” मैग्ना ने कहा।

मैग्ना की बात मानकर महावृक्ष छोटा होकर मैग्ना की हथेली के बराबर हो गया।

अब मैग्ना ने माया से दूसरी शक्ति का प्रयोग करने की आज्ञा मांगी।

माया की आज्ञा पाकर मैग्ना ने फिर से अपने दोनों हाथों को हवा में लहराया और कल्पना करना शुरु कर दिया।

इस कल्पना को समझना माया और कैस्पर दोनों के लिये ही बहुत आसान था।

इस बार मैग्ना ने जीव शक्ति का प्रयोग कर एक हाइड्रा ड्रैगन बनाया, जो हवा और पानी के हिसाब से अपना आकार बदल सके।

मैग्ना ने जब आँखें खोलीं तो उसके सामने सोने के रंग का एक नन्हा ड्रैगन का बच्चा था, जिस पर लाल रंग से धारियां बनीं हुईं थीं।

“ओऽऽऽऽऽऽ कितना प्यारा है यह नन्हा ड्रैगन।” मैग्ना तो जैसे नन्हें ड्रैगन में खो सी गई- “मैं तुम्हारा नाम ड्रैंगो रखूंगी....और हां उस गंदे कैस्पर के साथ बिल्कुल मत खेलना ...समझ गये।”

ड्रैगन ने अपने गले से ‘क्री’ की आवाज निकाली। ऐसा लगा जैसे कि वह सब कुछ समझ गया था।

कैस्पर ने भी ड्रैगन को देख मुंह बनाया और जीको को गले से लगा लिया।

दोनों की शैतानियां फिर शुरु हो गईं थीं, जिसे देख माया मुस्कुराई और फिर दोनों को लेकर वापस ब्लू होल की ओर चल दी।

मैग्ना ने महावृक्ष को अपने कंधे पर बैठा लिया था और नन्हें ड्रैगन को किसी खिलौने की भांति अपने हाथों में पकड़े थी।

कैस्पर जीको की पीठ पर इस प्रकार बैठा था, जैसे वह कभी उतरेगा ही नहीं।

कुछ भी हो पर दोनों आज बहुत खुश थे।



जारी रहेगा_______✍️
Bhut hi badhiya update Bhai
Megna ki kalpna ne to Casper ke sath sath maya ko bhi hairan kar diya
Megna ne hi apni kalpna se mahavarksh ka nirmaan kiya tha ye bhi pata chal gaya
 

Raj_sharma

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Raj_sharma bhai next update kab tak aayega?
Bhai abhi update dene hi aaya tha idhar, per site itna slow hai, main risk nahi le sakta, to update kal subah aqyega pakka :declare:
 
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Raj_sharma

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Wonderful update brother!
Kya likhun kuchh samajh nahi aa raha hai phir bhi nanhi Shefali(Magna) ne jo Kalpana kiya hai wo lajawab hai. Shefali ki jitni bhi taarif kiya jaye utna hi kam hai, wo iss story mein aise aise rang bhar rahi hai ki readers uske character mein kho jate hain.
Ofcourse yadi kisi ek character ko favourite select karna hoga toh mera vote Shefali ko jayega, khair Maha vriksh ka nirman Shefali ne kiya ye kisi ne socha nahi hoga.
Dimaak aisa hi lagaao ki koi soch hi na paaya ki ye wahi shefaali hai, jo ek andhi ladki thi, aur kaha se kaha tak pahuch gai, or kya se kya kar diya? yahi ek lekhak ki kalpna hoti hai mitra :smarty:
Thank you very much for your wonderful review and support bhai :hug:
 

Raj_sharma

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