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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बहुत ही शानदार कल्पना करी है राज भाई
शानदार प्रस्तुति के लिये बधाई
Bohot Bohot dhanyawaad bhai :hug:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bhut shandaar kalpana karke bnaya hai meghna ne mahavirksh ko.....


Ye hota hia dimag ka Sahi इस्तेमाल
Ab ye maha vraksh kya bala hai, or kya kya kar sakta hai?, iska namuna aage pata chalega mitra:declare: Thank you very much for your valuable review and support :thanx:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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lovely update..magna ne to kamal hi kar diya .jeev aur vriksh shakti ka istemal aasani se kar liya ..
Abhi to suruwaat hai dost, aage bohot kuch baski hai . Thanks for your valuable review :thanx:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bhut hi badhiya update Bhai
Megna ki kalpna ne to Casper ke sath sath maya ko bhi hairan kar diya
Megna ne hi apni kalpna se mahavarksh ka nirmaan kiya tha ye bhi pata chal gaya
Dekh lo bhai 😊 aur mujhe lagta hai ki abhi aap sabko samajh me aa jana chahiye ki kaise shefali ne yugaka ke bhai ki vriksh shakti cheen li thi :yo: kyu ki wo shakti shefali yani megna ki hi thi:declare:
Thanks for your wonderful review bhai :hug:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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#147.

बाल हनुका:
(20,010 वर्ष पहले.......प्रातः काल, गंधमादन पर्वत, हिमालय)

हिमालय पर कैलाश पर्वत से कुछ ही दूरी पर स्थित है- ‘गंधमादन पर्वत’। देवताओं का वह स्थान जहां वह साधना करते थे।

प्रातः काल का समय था, चारो ओर स्वच्छ, स्निग्ध, श्वेत हिमखंड फैले हुए थे। बहुत ही पवित्र वातावरण था।

मंद-मंद वायु बह रही थी। ऐसे में एक विशाल पहाड़ के नीचे, नन्हा यति बर्फ में लोट-लोट कर खेल रहा था।

उस नन्हें यति की आयु xx वर्ष की भी नहीं लग रही थी। वह दूध पीने वाला अबोध बालक लग रहा था।

उसके माता-पिता कुछ ही दूरी पर बैठे, अपने नन्हें बालक को खेलते हुए निहार रहे थे।

नन्हा यति कभी-कभी बर्फ के गोले बनाकर अपने माता-पिता पर भी फेंक दे रहा था।

एका एक उस नन्हें यति को हवा में बह रही एक ध्वनि सुनाई दी-
“राऽऽमऽऽऽऽऽऽ राऽऽमऽऽऽऽऽऽऽ” अब वह खेलना छोड़, अपने कान खड़े करके, उस ध्वनि पर ध्यान
देने लगा।

उसे वह ध्वनि सामने उपस्थित, एक बर्फ के टीले से आती सुनाई दी।

नन्हें यति ने कुछ देर तक उस आवाज को सुना और फिर पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा।

उसके माता-पिता आपस में कुछ बातें कर रहे थे, यह देख नन्हा यति घुटनों के बल, उस बर्फ के टीले की ओर बढ़ने लगा।

जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, ‘रा..’ नाम की गूंज तेज होती जा रही थी। नन्हें यति ने उस टीले को अपने हाथ से छूकर देखा, पर उसे कुछ समझ नहीं आया।

तभी अचानक पहाड़ से, एक बर्फ की भारी चट्टान, उस नन्हें यति के माता-पिता पर जा गिरी।

चट्टान के गिरने की भीषण आवाज ने, नन्हें यति को बुरी तरह से डरा दिया।

नन्हें यति ने पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा। दोनों ही उस चट्टान के नीचे बुरी तरह से कुचल गये थे।

नन्हा यति टीले से आ रही आवाज को छोड़, घुटनों के बल चलता, अपने माता-पिता की ओर भागा।

टीले के नीचे से खून से लथपथ उसकी माँ का हाथ नजर आ रहा था। नन्हें यति ने रोते हुए अपने नन्हें हाथों से चट्टान को हटाने की कोशिश की, पर वह सफल नहीं हो पाया।

अब नन्हा यति जोर-जोर से बिलख रहा था। उसके बिलखने की आवाज बहुत ही करुणा दायक थी।

तभी रा.. नाम की ध्वनि बंद हो गई और उस टीले में हरकत होने लगी।

कुछ ही क्षणों में टीले की सारी बर्फ नीचे गिरी पड़ी थी और उसके स्थान पर पवन पुत्र हनु.. नजर आने लगे। उनकी निगाह, बिलख रहे उस नन्हें यति पर गई।

उनसे उसका बिलखना देखा नहीं गया। वह सधे कदमों से उस नन्हें यति के पास आ गये।

एक क्षण में ही उनकी तीक्ष्ण निगाहों ने, बर्फ के नीचे दबे उस नन्हें यति के माता-पिता को देख लिया था।

उन्होंने एक हाथ से ही उस चट्टान को उठा कर दूर फेंक दिया। चट्टान के हटते ही नन्हा यति, अपनी माँ के निर्जीव शरीर से जा चिपका।

उन्होंने उस नन्हें यति को अपनी गोद में उठा लिया।

किसी के शरीर का स्पर्श पाते ही नन्हा यति चुप हो गया, परंतु वह अब भी सिसकियां ले रहा था।

उन्होंने नन्हें यति के माता-पिता के निर्जीव शरीर की ओर देखा। उन्की आँखों से किरणें निकलीं और दोनों यति के पार्थिव शरीर, कणों में बदलकर बर्फ में समा गये।

अब वो उस नन्हें यति को लेकर बर्फ पर अकेले खड़े थे।

“हे प्रभु, यह कैसी माया है....इतने नन्हें बालक से उसका सहारा छीन लिया....अब मैं इस बालक का क्या करुं?... इसे यहां छोड़कर भी नहीं जा सकता और इसे लेकर भी कहां जाऊं?....मैं तो ब्रह्मचारी हूं और
सदैव साधना में रत रहता हूं....फिर इस बालक की देखभाल कैसे कर पाऊंगा? मुझे मार्ग दिखाइये प्रभु।”

ह…मान मन ही मन बड़बड़ा रहे थे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? आज तक पूरी
जिंदगी में उन्हों ने कभी इस प्रकार की परिस्थिति का सामना नहीं किया था।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। अब तो और विकट स्थिति खड़ी हो गई थी।

उन्हे उसे चुप कराना भी नहीं आ रहा था। वह कभी उसे गोद में लेकर हिलाते, तो कभी उसे हवा में उछालते....पर इस समस्या का समाधान उनके पास नहीं था।

नन्हा यति चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

“लगता है कि इसे भूख लगी है.... पर...पर मैं इसे खिलाऊं क्या?” वो बहुत ही असमंजस में थे।

उन्होंने अब नन्हें यति को जमीन पर बैठा दिया और अपनी शक्तियों से उसके सामने हजारों प्रकार के विचित्र फल और खाद्य पदार्थ रख दिया, पर उस नन्हें यति ने उन सभी पदार्थों की ओर देखा तक नहीं।

कुछ ना समझ में आता देख ..मान उस नन्हें यति के सामने नाचने लगे।
उनका विचित्र नृत्य देखकर, नन्हा यति चुप हो गया।

यह देख खुशी के मारे हनु..और जोर से नाचने लगे। नन्हा यति अपनी पलकें झपका कर उनके उस विचित्र नृत्य का आनंद उठा रहा था।

धीरे-धीरे काफी समय बीत गया, पर हनु.. जैसे ही रुकते थे, वह नन्हा यति फिर से रोने लगता था।

अब वह नन्हा यति उनके लिये, एक मुसीबत बन गया था, तभी एक आवाज वातावरण में गूंजी-

“अपनी इस कला का प्रदर्शन तो तुमने कभी किया ही नहीं हनु…? हम तो आश्चर्यचकित रह गये तुम्हारी इस विद्या को देखकर।”

उन्होंने आश्चर्य से पीछे पलटकर देखा।

पीछे नंदी संग म..देव खड़े थे।
नंदी को घूरता देख ह..मान एक पल को अचकचा से गये, फिर उन्होंने देव को प्रणाम किया।

“हे..देव...अब आप ही बचाइये मुझे इस बालक से।” उन्होंने महानदेव के पैर पकड़ लिये- “पिछले एक घंटे से यह बालक मुझे नचा रहा है।”

“तुमने कभी गृहस्थ आश्रम का आनंद नहीं उठाया है ना, इसलिये तुम इस क्षण की महत्वता नहीं समझ सकते।”😁 ..देव ने उन्हें उठाते हुए कहा।

“मैं समझना भी नहीं चाहता प्रभु... बहुत अच्छा हुआ कि मैं ब्रह्मचारी हूं...इस क्षण की महत्वता को मैंने 1 घंटे में जी लिया... :pray: अब आप मुझे इससे छुटकारा दिलाइये प्रभु।” वो तो ..देव को छोड़ ही नहीं रहे थे।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। यह देख वो और भी डर गये।

उन्होंने गुस्से से नंदी की ओर देखते हुए कहा- “देख क्या रहे हो? इसे चुप क्यों नहीं कराते।”

“मैं!....म....म...मुझे भी नहीं आता बालकों को चुप कराना।” यह कहकर नंदी भी भागकर ..देव के पीछे छिप गया।

“मैं और नंदी, नीलाभ और माया के विवाह में जा रहें हैं, हमारे साथ तुम भी चलो। क्या पता वहां पर तुम्हें इससे छुटकारा पाने का कोई हल मिल ही जाये?” उन्होंने मुस्कुराते हुए हनु.. से कहा।

“मैं चलूंगा....आप जहां कहेंगे, वहां चलूंगा।” इतना कह उन्होंने नन्हें यति को गोद में उठाया और ..देव के पीछे-पीछे चल पड़े।

तीनों नंदी के साथ आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत के पास स्थित विवाह स्थल पर पहुंच गये।

माया ने कैलाश के पास ही विवाह के मंडप स्थल का निर्माण किया था।

केले के पत्ते और सुगंधित फूलों से सजा विशाल मंडप बहुत ही आकर्षक लग रहा था।

विवाह स्थल के बाहर 2 हाथी, हर आने वाले पर, अपनी सूंढ़ से सुगंधित इत्र का छिड़काव कर रहे थे।

अंदर कुछ सफेद अश्व अपने पैरों में घुंघरु बांधकर, अपने पैरों को जोर-जोर आगे-पीछे कर, नृत्य कर रहे थे।

एक स्थान पर कुछ व्यक्ति रंगीन वस्त्र पहने शहनाई बजा रहे थे।

महानदेव और हनुरमान को विवाह स्थल पर प्रवेश करते देख, कुछ स्त्रियां उनके पैरों के आगे फूल बिछाकर रास्ता बनाने लगीं।

कुछ आगे जाने पर एक छोटा सा सरोवर दिखाई दिया, जिसमें नीले रंग का शुद्ध जल भरा हुआ था और उस जल में कुछ हंस कलरव कर रहे थे, हंस के आसपास सुर्ख लाल रंग की नन्हीं मछलियां, पानी में उछल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहीं थीं।

एक स्थान पर, हरी घास पर मोर अपने पंख फैलाकर नृत्य कर रहे थे, कुछ रंग-बिरंगी छोटी चिड़ियां अपने मीठे कंठ से सुरम्य आवाज कर, मोर को उत्साहित कर रहीं थीं।

कुल मिलाकर वहां का वातावरण इतना खूबसूरत था कि उसे शब्दों में व्यक्त करना ही मुश्किल हो रहा था।

कुछ आगे बढ़ने पर एक विशाल मंडप बना था, जिसके एक किनारे पर एक विशाल सिंहासन पर माया व नीलाभ आसीन थे।

इंद्रधनुष के रंगों में रंगा मंडप, एक अद्भुत छटा बिखेर रहा था।

सिंहासन के पीछे कुछ थालियों में, विभिन्न प्रकार के रंग रखे हुए थे, जिसे तितलियां अपने शरीर पर लगाकर उड़-उड़कर, सभी के चेहरे पर मल रहीं थीं।

एक ओर से आ रही मीठे पकवानों की सुगंध लोगों की भूख बढ़ा रही थी।

बहुत से देवी-देवता, गंधर्व, अप्सराएं इधर-उधर विचर रहे थे।

..देव को देख सभी अपने स्थान से खड़े हो गये, परंतु सबकी निगाहें उनसे भी ज्यादा,..मान की गोद में पकड़े बच्चे की ओर थी।

“क्या हनु… ने विवाह कर लिया? क्या ये उनका पुत्र है? ये तो ब्रह्मचारी थे।”

कुछ दबी-दबी सी आवाजें हनु…. के कानों में पड़ीं।

इन चुभती निगाहों और इन कटाक्ष भरे शब्दों से, उनको को अपनी शक्ति क्षीण होती महसूस हो रही थी। वो तो अब कैसे भी इस बालक से छुटकारा चाहते थे?

देव आगे बढ़कर नीलाभ व माया के पास जा पहुंचे। नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर देव के चरण स्पर्श किये।

उन्होंने दोनों को आशीर्वाद देते हुए नंदी की ओर इशारा किया।

नंदी ने इशारा समझ अपने हाथ में पकड़े, एक सुनहरे रंग से लिपटी भेंट को, माया की ओर बढ़ा दिया।

माया ने देव की भेंट को अपने मस्तक से छूकर, सिंहासन के पीछे खड़ी एक सेविका के सुपुर्द कर दिया।

देव अब थोड़ा पीछे हट गये और उन्होंने हनुरमान को आगे बढ़ने का इशारा किया।

हनुरमान आगे तो बढ़ गये, पर उन्हें कुछ समझ नहीं आया? नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर हनुरमान के भी चरण स्पर्श किये।

उन्होंने ना समझने वाले भाव से महानदेव की ओर देखा।

उन्हें अपनी ओर देखते देख देव बोल उठे- “सोच क्या रहे हो? आशीर्वाद दो माया को।”

देव की बात सुन, उन्होंने अपनी गोद में पकड़ा वह नन्हा यति माया को पकड़ा दिया।

माया ने उस नन्हें बालक को देखा, पर उन्हें कुछ समझ में नहीं आया?

“ये क्या प्रभु? मैं कुछ समझी नहीं?” माया ने पहले हनुरमान को देखा और फिर..देव की ओर।

“इसमें ना समझने वाली कौन सी बात है? अरे....ये हनुरमान का आशीर्वाद है।” देव ने मुस्कुराते हुए कहा।

माया समझ गयी कि यह देवों की कोई लीला है, इसलिये उसने नन्हें यति को अपने माथे से लगाया और उसे निहारने लगी।

नन्हा यति अपनी आँखें टिप-टिप कर माया को देख रहा था। उसने माया की उंगली जोर से पकड़ ली और बोला- “माँ”

बस इस एक शब्द में ही पता नहीं कौन सा जादू था कि माया ने उस नन्हें से यति को गले से लगा लिया।
माया की आँखों से स्वतः ही अविरल अश्रु की धारा बहने लगी, अचानक ही उसके अंदर ममता का सागर कुलाँचे मारने लगा।

हनुरमान इस ममता मई दृश्य को बिना पलक झपकाये निहार रहे थे।

कुछ देर बाद जब माया को याद आया कि वह कहां खड़ी है, तो उसने वापस हनुरमान की ओर देखा।

उन्होंने अपने हाथ आगे कर माया
को आशीर्वाद दिया।

“बड़ा ही अद्भुत बालक है। वैसे इसका नाम क्या है?” माया ने हनुरमान की ओर देखते हुए पूछा।

“अब आप इसकी माता हैं...आप स्वयं इसका नामकरण करिये।” उन्होंने भोलेपन से माया को जवाब दिया।

माया ने कुछ देर सोचा और फिर बोल उठी- “चूंकि ये ‘हनु’ का आशीर्वाद है, इसलिये आज से इसका नाम ‘हनुका’ होगा।”

हनुरमान की इस अद्भुत भेंट पर, सभी देवता हर्षातिरेक से हनु... का जयकारा लगाने लगे।

हनु... भी खुश हो गये क्यों कि इस नन्हें यति के लिये, इससे अच्छी माँ नहीं मिल सकती थी।

तभी माया को हनु.. के पीछे से झांकते हुए गणे..mश दिखाई दिये।

माया ने बालक गणे… को आगे आने का इशारा किया।

जब वो आगे आ गये तो माया ने धीरे से उनके कान में कहा-“आपने तो कहा था कि मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी, पर मुझे तो शादी के दिन ही पुत्र प्राप्त हो गया...अब क्या कहते हो?”

“ईश्वर की माया, ईश्वर ही जाने...।” गणे.. ने मुस्कुरा कर कहा, और अपना बड़ा सा कान छुड़ाकर उस ओर चल दिया, जिधर ढेर सारे मोदक रखे हुए दिखाई दे रहे थे।

माया को कुछ समझ नहीं आया, उसने एक बार फिर हनुका की ओर देखा और धीरे से उसके मस्तक को चूम लिया।



जारी रहेगा_________✍️
 
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