• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Moderator
38,491
74,329
304
बहुत ही शानदार रचना लिखी है
आगे तिलिस्म का जादू कहानी को और अथिक रोमांचक बनायेगे

Shandar update bro

Gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Aapsi ekta aur sujhbujh se aakhirkar suyash and party ne mayavan ko paar kar hi liya.........

Sadharan se manushayo ne devtao ke banaye mayajaal ko apne sahas ke bal par paar kar liya..

Sawal to bahut sare he.........lekin uttar bhi sab ke milenge jald hi.........

Keep rocking Bro

फिर एक अद्भुत अविस्मरणीय रोमांचकारी धमाकेदार और क्या क्या यानी बिलकुल निशब्द करने वाला अपडेट है भाई मजा आ गया
सुयश और टीम को अभी तक मायावन पार करने में कुछ दैवी शक्ती का साथ मिला अब सामने हैं सबसे खतरनाक तिलीस्मा जहा सुयश और टीम की इच्छा शक्ती बुद्धी और सुजबुझ के साथ एकता की शक्ति की कसोटी लगने वाली है उसे तोडने में
हर लेखक को पाठकों का प्रतिक्रिया रुप समर्थन मिले तो वो लेखन के लिये एक टाॅनिक का काम करती है
मै मेरी ओर से सभी पाठकों को निवेदन करता हुं आप अपने प्रतिक्रिया रुपी विचार प्रगट कर लेखक का सन्मान करके उनका उत्साह बढायें
बाकी सभी समझदार हैं
खैर देखते हैं आगे क्या रोमांच पिरो के रखा हैं

Raj_sharma Ab Jaldi se Update aana chahiye Review Sab dediye mein

Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Kalpana ki shakti se kya nahi kiya ja sakta..........

Maja aa gaya Bhai............ Maya civilization ke baare me bhi ek nai jankari mili.........

Keep rocking Bro

Bahut shandaar update Raj_sharma bhai
Update ko read krte samay aisa lga jaise hum wahi par ho, har choti choti detail aur usme science ko link Krna wah 👏👏

Wonderful update brother!
Kya likhun kuchh samajh nahi aa raha hai phir bhi nanhi Shefali(Magna) ne jo Kalpana kiya hai wo lajawab hai. Shefali ki jitni bhi taarif kiya jaye utna hi kam hai, wo iss story mein aise aise rang bhar rahi hai ki readers uske character mein kho jate hain.
Ofcourse yadi kisi ek character ko favourite select karna hoga toh mera vote Shefali ko jayega, khair Maha vriksh ka nirman Shefali ne kiya ye kisi ne socha nahi hoga.

Mind blowing update and nice story

Nice update....

बहुत ही शानदार कल्पना करी है राज भाई
शानदार प्रस्तुति के लिये बधाई

Bhut shandaar kalpana karke bnaya hai meghna ne mahavirksh ko.....


Ye hota hia dimag ka Sahi इस्तेमाल

nice update

Very nice update❤❤

lovely update..magna ne to kamal hi kar diya .jeev aur vriksh shakti ka istemal aasani se kar liya ..

Shaandar Update

Bhut hi badhiya update Bhai
Megna ki kalpna ne to Casper ke sath sath maya ko bhi hairan kar diya
Megna ne hi apni kalpna se mahavarksh ka nirmaan kiya tha ye bhi pata chal gaya

intezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....

intezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....
avsji bhai kaha gayab ho???🤔
SANJU ( V. R. ) aapko to kya hi kahe bhai?😐

Update Post kar diya hai dosto, aapke reply ka intezaar rahega :declare:
 

Tri2010

Well-Known Member
2,050
1,988
143
#147.

बाल हनुका:
(20,010 वर्ष पहले.......प्रातः काल, गंधमादन पर्वत, हिमालय)

हिमालय पर कैलाश पर्वत से कुछ ही दूरी पर स्थित है- ‘गंधमादन पर्वत’। देवताओं का वह स्थान जहां वह साधना करते थे।

प्रातः काल का समय था, चारो ओर स्वच्छ, स्निग्ध, श्वेत हिमखंड फैले हुए थे। बहुत ही पवित्र वातावरण था।

मंद-मंद वायु बह रही थी। ऐसे में एक विशाल पहाड़ के नीचे, नन्हा यति बर्फ में लोट-लोट कर खेल रहा था।

उस नन्हें यति की आयु xx वर्ष की भी नहीं लग रही थी। वह दूध पीने वाला अबोध बालक लग रहा था।

उसके माता-पिता कुछ ही दूरी पर बैठे, अपने नन्हें बालक को खेलते हुए निहार रहे थे।

नन्हा यति कभी-कभी बर्फ के गोले बनाकर अपने माता-पिता पर भी फेंक दे रहा था।

एका एक उस नन्हें यति को हवा में बह रही एक ध्वनि सुनाई दी-
“राऽऽमऽऽऽऽऽऽ राऽऽमऽऽऽऽऽऽऽ” अब वह खेलना छोड़, अपने कान खड़े करके, उस ध्वनि पर ध्यान
देने लगा।

उसे वह ध्वनि सामने उपस्थित, एक बर्फ के टीले से आती सुनाई दी।

नन्हें यति ने कुछ देर तक उस आवाज को सुना और फिर पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा।

उसके माता-पिता आपस में कुछ बातें कर रहे थे, यह देख नन्हा यति घुटनों के बल, उस बर्फ के टीले की ओर बढ़ने लगा।

जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, ‘रा..’ नाम की गूंज तेज होती जा रही थी। नन्हें यति ने उस टीले को अपने हाथ से छूकर देखा, पर उसे कुछ समझ नहीं आया।

तभी अचानक पहाड़ से, एक बर्फ की भारी चट्टान, उस नन्हें यति के माता-पिता पर जा गिरी।

चट्टान के गिरने की भीषण आवाज ने, नन्हें यति को बुरी तरह से डरा दिया।

नन्हें यति ने पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा। दोनों ही उस चट्टान के नीचे बुरी तरह से कुचल गये थे।

नन्हा यति टीले से आ रही आवाज को छोड़, घुटनों के बल चलता, अपने माता-पिता की ओर भागा।

टीले के नीचे से खून से लथपथ उसकी माँ का हाथ नजर आ रहा था। नन्हें यति ने रोते हुए अपने नन्हें हाथों से चट्टान को हटाने की कोशिश की, पर वह सफल नहीं हो पाया।

अब नन्हा यति जोर-जोर से बिलख रहा था। उसके बिलखने की आवाज बहुत ही करुणा दायक थी।

तभी रा.. नाम की ध्वनि बंद हो गई और उस टीले में हरकत होने लगी।

कुछ ही क्षणों में टीले की सारी बर्फ नीचे गिरी पड़ी थी और उसके स्थान पर पवन पुत्र हनु.. नजर आने लगे। उनकी निगाह, बिलख रहे उस नन्हें यति पर गई।

उनसे उसका बिलखना देखा नहीं गया। वह सधे कदमों से उस नन्हें यति के पास आ गये।

एक क्षण में ही उनकी तीक्ष्ण निगाहों ने, बर्फ के नीचे दबे उस नन्हें यति के माता-पिता को देख लिया था।

उन्होंने एक हाथ से ही उस चट्टान को उठा कर दूर फेंक दिया। चट्टान के हटते ही नन्हा यति, अपनी माँ के निर्जीव शरीर से जा चिपका।

उन्होंने उस नन्हें यति को अपनी गोद में उठा लिया।

किसी के शरीर का स्पर्श पाते ही नन्हा यति चुप हो गया, परंतु वह अब भी सिसकियां ले रहा था।

उन्होंने नन्हें यति के माता-पिता के निर्जीव शरीर की ओर देखा। उन्की आँखों से किरणें निकलीं और दोनों यति के पार्थिव शरीर, कणों में बदलकर बर्फ में समा गये।

अब वो उस नन्हें यति को लेकर बर्फ पर अकेले खड़े थे।

“हे प्रभु, यह कैसी माया है....इतने नन्हें बालक से उसका सहारा छीन लिया....अब मैं इस बालक का क्या करुं?... इसे यहां छोड़कर भी नहीं जा सकता और इसे लेकर भी कहां जाऊं?....मैं तो ब्रह्मचारी हूं और
सदैव साधना में रत रहता हूं....फिर इस बालक की देखभाल कैसे कर पाऊंगा? मुझे मार्ग दिखाइये प्रभु।”

ह…मान मन ही मन बड़बड़ा रहे थे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? आज तक पूरी
जिंदगी में उन्हों ने कभी इस प्रकार की परिस्थिति का सामना नहीं किया था।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। अब तो और विकट स्थिति खड़ी हो गई थी।

उन्हे उसे चुप कराना भी नहीं आ रहा था। वह कभी उसे गोद में लेकर हिलाते, तो कभी उसे हवा में उछालते....पर इस समस्या का समाधान उनके पास नहीं था।

नन्हा यति चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

“लगता है कि इसे भूख लगी है.... पर...पर मैं इसे खिलाऊं क्या?” वो बहुत ही असमंजस में थे।

उन्होंने अब नन्हें यति को जमीन पर बैठा दिया और अपनी शक्तियों से उसके सामने हजारों प्रकार के विचित्र फल और खाद्य पदार्थ रख दिया, पर उस नन्हें यति ने उन सभी पदार्थों की ओर देखा तक नहीं।

कुछ ना समझ में आता देख ..मान उस नन्हें यति के सामने नाचने लगे।
उनका विचित्र नृत्य देखकर, नन्हा यति चुप हो गया।

यह देख खुशी के मारे हनु..और जोर से नाचने लगे। नन्हा यति अपनी पलकें झपका कर उनके उस विचित्र नृत्य का आनंद उठा रहा था।

धीरे-धीरे काफी समय बीत गया, पर हनु.. जैसे ही रुकते थे, वह नन्हा यति फिर से रोने लगता था।

अब वह नन्हा यति उनके लिये, एक मुसीबत बन गया था, तभी एक आवाज वातावरण में गूंजी-

“अपनी इस कला का प्रदर्शन तो तुमने कभी किया ही नहीं हनु…? हम तो आश्चर्यचकित रह गये तुम्हारी इस विद्या को देखकर।”

उन्होंने आश्चर्य से पीछे पलटकर देखा।

पीछे नंदी संग म..देव खड़े थे।
नंदी को घूरता देख ह..मान एक पल को अचकचा से गये, फिर उन्होंने देव को प्रणाम किया।

“हे..देव...अब आप ही बचाइये मुझे इस बालक से।” उन्होंने महानदेव के पैर पकड़ लिये- “पिछले एक घंटे से यह बालक मुझे नचा रहा है।”

“तुमने कभी गृहस्थ आश्रम का आनंद नहीं उठाया है ना, इसलिये तुम इस क्षण की महत्वता नहीं समझ सकते।”😁 ..देव ने उन्हें उठाते हुए कहा।

“मैं समझना भी नहीं चाहता प्रभु... बहुत अच्छा हुआ कि मैं ब्रह्मचारी हूं...इस क्षण की महत्वता को मैंने 1 घंटे में जी लिया... :pray: अब आप मुझे इससे छुटकारा दिलाइये प्रभु।” वो तो ..देव को छोड़ ही नहीं रहे थे।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। यह देख वो और भी डर गये।

उन्होंने गुस्से से नंदी की ओर देखते हुए कहा- “देख क्या रहे हो? इसे चुप क्यों नहीं कराते।”

“मैं!....म....म...मुझे भी नहीं आता बालकों को चुप कराना।” यह कहकर नंदी भी भागकर ..देव के पीछे छिप गया।

“मैं और नंदी, नीलाभ और माया के विवाह में जा रहें हैं, हमारे साथ तुम भी चलो। क्या पता वहां पर तुम्हें इससे छुटकारा पाने का कोई हल मिल ही जाये?” उन्होंने मुस्कुराते हुए हनु.. से कहा।

“मैं चलूंगा....आप जहां कहेंगे, वहां चलूंगा।” इतना कह उन्होंने नन्हें यति को गोद में उठाया और ..देव के पीछे-पीछे चल पड़े।

तीनों नंदी के साथ आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत के पास स्थित विवाह स्थल पर पहुंच गये।

माया ने कैलाश के पास ही विवाह के मंडप स्थल का निर्माण किया था।

केले के पत्ते और सुगंधित फूलों से सजा विशाल मंडप बहुत ही आकर्षक लग रहा था।

विवाह स्थल के बाहर 2 हाथी, हर आने वाले पर, अपनी सूंढ़ से सुगंधित इत्र का छिड़काव कर रहे थे।

अंदर कुछ सफेद अश्व अपने पैरों में घुंघरु बांधकर, अपने पैरों को जोर-जोर आगे-पीछे कर, नृत्य कर रहे थे।

एक स्थान पर कुछ व्यक्ति रंगीन वस्त्र पहने शहनाई बजा रहे थे।

महानदेव और हनुरमान को विवाह स्थल पर प्रवेश करते देख, कुछ स्त्रियां उनके पैरों के आगे फूल बिछाकर रास्ता बनाने लगीं।

कुछ आगे जाने पर एक छोटा सा सरोवर दिखाई दिया, जिसमें नीले रंग का शुद्ध जल भरा हुआ था और उस जल में कुछ हंस कलरव कर रहे थे, हंस के आसपास सुर्ख लाल रंग की नन्हीं मछलियां, पानी में उछल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहीं थीं।

एक स्थान पर, हरी घास पर मोर अपने पंख फैलाकर नृत्य कर रहे थे, कुछ रंग-बिरंगी छोटी चिड़ियां अपने मीठे कंठ से सुरम्य आवाज कर, मोर को उत्साहित कर रहीं थीं।

कुल मिलाकर वहां का वातावरण इतना खूबसूरत था कि उसे शब्दों में व्यक्त करना ही मुश्किल हो रहा था।

कुछ आगे बढ़ने पर एक विशाल मंडप बना था, जिसके एक किनारे पर एक विशाल सिंहासन पर माया व नीलाभ आसीन थे।

इंद्रधनुष के रंगों में रंगा मंडप, एक अद्भुत छटा बिखेर रहा था।

सिंहासन के पीछे कुछ थालियों में, विभिन्न प्रकार के रंग रखे हुए थे, जिसे तितलियां अपने शरीर पर लगाकर उड़-उड़कर, सभी के चेहरे पर मल रहीं थीं।

एक ओर से आ रही मीठे पकवानों की सुगंध लोगों की भूख बढ़ा रही थी।

बहुत से देवी-देवता, गंधर्व, अप्सराएं इधर-उधर विचर रहे थे।

..देव को देख सभी अपने स्थान से खड़े हो गये, परंतु सबकी निगाहें उनसे भी ज्यादा,..मान की गोद में पकड़े बच्चे की ओर थी।

“क्या हनु… ने विवाह कर लिया? क्या ये उनका पुत्र है? ये तो ब्रह्मचारी थे।”

कुछ दबी-दबी सी आवाजें हनु…. के कानों में पड़ीं।

इन चुभती निगाहों और इन कटाक्ष भरे शब्दों से, उनको को अपनी शक्ति क्षीण होती महसूस हो रही थी। वो तो अब कैसे भी इस बालक से छुटकारा चाहते थे?

देव आगे बढ़कर नीलाभ व माया के पास जा पहुंचे। नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर देव के चरण स्पर्श किये।

उन्होंने दोनों को आशीर्वाद देते हुए नंदी की ओर इशारा किया।

नंदी ने इशारा समझ अपने हाथ में पकड़े, एक सुनहरे रंग से लिपटी भेंट को, माया की ओर बढ़ा दिया।

माया ने देव की भेंट को अपने मस्तक से छूकर, सिंहासन के पीछे खड़ी एक सेविका के सुपुर्द कर दिया।

देव अब थोड़ा पीछे हट गये और उन्होंने हनुरमान को आगे बढ़ने का इशारा किया।

हनुरमान आगे तो बढ़ गये, पर उन्हें कुछ समझ नहीं आया? नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर हनुरमान के भी चरण स्पर्श किये।

उन्होंने ना समझने वाले भाव से महानदेव की ओर देखा।

उन्हें अपनी ओर देखते देख देव बोल उठे- “सोच क्या रहे हो? आशीर्वाद दो माया को।”

देव की बात सुन, उन्होंने अपनी गोद में पकड़ा वह नन्हा यति माया को पकड़ा दिया।

माया ने उस नन्हें बालक को देखा, पर उन्हें कुछ समझ में नहीं आया?

“ये क्या प्रभु? मैं कुछ समझी नहीं?” माया ने पहले हनुरमान को देखा और फिर..देव की ओर।

“इसमें ना समझने वाली कौन सी बात है? अरे....ये हनुरमान का आशीर्वाद है।” देव ने मुस्कुराते हुए कहा।

माया समझ गयी कि यह देवों की कोई लीला है, इसलिये उसने नन्हें यति को अपने माथे से लगाया और उसे निहारने लगी।

नन्हा यति अपनी आँखें टिप-टिप कर माया को देख रहा था। उसने माया की उंगली जोर से पकड़ ली और बोला- “माँ”

बस इस एक शब्द में ही पता नहीं कौन सा जादू था कि माया ने उस नन्हें से यति को गले से लगा लिया।
माया की आँखों से स्वतः ही अविरल अश्रु की धारा बहने लगी, अचानक ही उसके अंदर ममता का सागर कुलाँचे मारने लगा।

हनुरमान इस ममता मई दृश्य को बिना पलक झपकाये निहार रहे थे।

कुछ देर बाद जब माया को याद आया कि वह कहां खड़ी है, तो उसने वापस हनुरमान की ओर देखा।

उन्होंने अपने हाथ आगे कर माया
को आशीर्वाद दिया।

“बड़ा ही अद्भुत बालक है। वैसे इसका नाम क्या है?” माया ने हनुरमान की ओर देखते हुए पूछा।

“अब आप इसकी माता हैं...आप स्वयं इसका नामकरण करिये।” उन्होंने भोलेपन से माया को जवाब दिया।

माया ने कुछ देर सोचा और फिर बोल उठी- “चूंकि ये ‘हनु’ का आशीर्वाद है, इसलिये आज से इसका नाम ‘हनुका’ होगा।”

हनुरमान की इस अद्भुत भेंट पर, सभी देवता हर्षातिरेक से हनु... का जयकारा लगाने लगे।

हनु... भी खुश हो गये क्यों कि इस नन्हें यति के लिये, इससे अच्छी माँ नहीं मिल सकती थी।

तभी माया को हनु.. के पीछे से झांकते हुए गणे..mश दिखाई दिये।

माया ने बालक गणे… को आगे आने का इशारा किया।

जब वो आगे आ गये तो माया ने धीरे से उनके कान में कहा-“आपने तो कहा था कि मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी, पर मुझे तो शादी के दिन ही पुत्र प्राप्त हो गया...अब क्या कहते हो?”

“ईश्वर की माया, ईश्वर ही जाने...।” गणे.. ने मुस्कुरा कर कहा, और अपना बड़ा सा कान छुड़ाकर उस ओर चल दिया, जिधर ढेर सारे मोदक रखे हुए दिखाई दे रहे थे।

माया को कुछ समझ नहीं आया, उसने एक बार फिर हनुका की ओर देखा और धीरे से उसके मस्तक को चूम लिया।



जारी रहेगा_________✍️
Shandaar update and nice story
 

dhparikh

Well-Known Member
12,494
14,489
228
#147.

बाल हनुका:
(20,010 वर्ष पहले.......प्रातः काल, गंधमादन पर्वत, हिमालय)

हिमालय पर कैलाश पर्वत से कुछ ही दूरी पर स्थित है- ‘गंधमादन पर्वत’। देवताओं का वह स्थान जहां वह साधना करते थे।

प्रातः काल का समय था, चारो ओर स्वच्छ, स्निग्ध, श्वेत हिमखंड फैले हुए थे। बहुत ही पवित्र वातावरण था।

मंद-मंद वायु बह रही थी। ऐसे में एक विशाल पहाड़ के नीचे, नन्हा यति बर्फ में लोट-लोट कर खेल रहा था।

उस नन्हें यति की आयु xx वर्ष की भी नहीं लग रही थी। वह दूध पीने वाला अबोध बालक लग रहा था।

उसके माता-पिता कुछ ही दूरी पर बैठे, अपने नन्हें बालक को खेलते हुए निहार रहे थे।

नन्हा यति कभी-कभी बर्फ के गोले बनाकर अपने माता-पिता पर भी फेंक दे रहा था।

एका एक उस नन्हें यति को हवा में बह रही एक ध्वनि सुनाई दी-
“राऽऽमऽऽऽऽऽऽ राऽऽमऽऽऽऽऽऽऽ” अब वह खेलना छोड़, अपने कान खड़े करके, उस ध्वनि पर ध्यान
देने लगा।

उसे वह ध्वनि सामने उपस्थित, एक बर्फ के टीले से आती सुनाई दी।

नन्हें यति ने कुछ देर तक उस आवाज को सुना और फिर पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा।

उसके माता-पिता आपस में कुछ बातें कर रहे थे, यह देख नन्हा यति घुटनों के बल, उस बर्फ के टीले की ओर बढ़ने लगा।

जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, ‘रा..’ नाम की गूंज तेज होती जा रही थी। नन्हें यति ने उस टीले को अपने हाथ से छूकर देखा, पर उसे कुछ समझ नहीं आया।

तभी अचानक पहाड़ से, एक बर्फ की भारी चट्टान, उस नन्हें यति के माता-पिता पर जा गिरी।

चट्टान के गिरने की भीषण आवाज ने, नन्हें यति को बुरी तरह से डरा दिया।

नन्हें यति ने पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा। दोनों ही उस चट्टान के नीचे बुरी तरह से कुचल गये थे।

नन्हा यति टीले से आ रही आवाज को छोड़, घुटनों के बल चलता, अपने माता-पिता की ओर भागा।

टीले के नीचे से खून से लथपथ उसकी माँ का हाथ नजर आ रहा था। नन्हें यति ने रोते हुए अपने नन्हें हाथों से चट्टान को हटाने की कोशिश की, पर वह सफल नहीं हो पाया।

अब नन्हा यति जोर-जोर से बिलख रहा था। उसके बिलखने की आवाज बहुत ही करुणा दायक थी।

तभी रा.. नाम की ध्वनि बंद हो गई और उस टीले में हरकत होने लगी।

कुछ ही क्षणों में टीले की सारी बर्फ नीचे गिरी पड़ी थी और उसके स्थान पर पवन पुत्र हनु.. नजर आने लगे। उनकी निगाह, बिलख रहे उस नन्हें यति पर गई।

उनसे उसका बिलखना देखा नहीं गया। वह सधे कदमों से उस नन्हें यति के पास आ गये।

एक क्षण में ही उनकी तीक्ष्ण निगाहों ने, बर्फ के नीचे दबे उस नन्हें यति के माता-पिता को देख लिया था।

उन्होंने एक हाथ से ही उस चट्टान को उठा कर दूर फेंक दिया। चट्टान के हटते ही नन्हा यति, अपनी माँ के निर्जीव शरीर से जा चिपका।

उन्होंने उस नन्हें यति को अपनी गोद में उठा लिया।

किसी के शरीर का स्पर्श पाते ही नन्हा यति चुप हो गया, परंतु वह अब भी सिसकियां ले रहा था।

उन्होंने नन्हें यति के माता-पिता के निर्जीव शरीर की ओर देखा। उन्की आँखों से किरणें निकलीं और दोनों यति के पार्थिव शरीर, कणों में बदलकर बर्फ में समा गये।

अब वो उस नन्हें यति को लेकर बर्फ पर अकेले खड़े थे।

“हे प्रभु, यह कैसी माया है....इतने नन्हें बालक से उसका सहारा छीन लिया....अब मैं इस बालक का क्या करुं?... इसे यहां छोड़कर भी नहीं जा सकता और इसे लेकर भी कहां जाऊं?....मैं तो ब्रह्मचारी हूं और
सदैव साधना में रत रहता हूं....फिर इस बालक की देखभाल कैसे कर पाऊंगा? मुझे मार्ग दिखाइये प्रभु।”

ह…मान मन ही मन बड़बड़ा रहे थे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? आज तक पूरी
जिंदगी में उन्हों ने कभी इस प्रकार की परिस्थिति का सामना नहीं किया था।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। अब तो और विकट स्थिति खड़ी हो गई थी।

उन्हे उसे चुप कराना भी नहीं आ रहा था। वह कभी उसे गोद में लेकर हिलाते, तो कभी उसे हवा में उछालते....पर इस समस्या का समाधान उनके पास नहीं था।

नन्हा यति चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

“लगता है कि इसे भूख लगी है.... पर...पर मैं इसे खिलाऊं क्या?” वो बहुत ही असमंजस में थे।

उन्होंने अब नन्हें यति को जमीन पर बैठा दिया और अपनी शक्तियों से उसके सामने हजारों प्रकार के विचित्र फल और खाद्य पदार्थ रख दिया, पर उस नन्हें यति ने उन सभी पदार्थों की ओर देखा तक नहीं।

कुछ ना समझ में आता देख ..मान उस नन्हें यति के सामने नाचने लगे।
उनका विचित्र नृत्य देखकर, नन्हा यति चुप हो गया।

यह देख खुशी के मारे हनु..और जोर से नाचने लगे। नन्हा यति अपनी पलकें झपका कर उनके उस विचित्र नृत्य का आनंद उठा रहा था।

धीरे-धीरे काफी समय बीत गया, पर हनु.. जैसे ही रुकते थे, वह नन्हा यति फिर से रोने लगता था।

अब वह नन्हा यति उनके लिये, एक मुसीबत बन गया था, तभी एक आवाज वातावरण में गूंजी-

“अपनी इस कला का प्रदर्शन तो तुमने कभी किया ही नहीं हनु…? हम तो आश्चर्यचकित रह गये तुम्हारी इस विद्या को देखकर।”

उन्होंने आश्चर्य से पीछे पलटकर देखा।

पीछे नंदी संग म..देव खड़े थे।
नंदी को घूरता देख ह..मान एक पल को अचकचा से गये, फिर उन्होंने देव को प्रणाम किया।

“हे..देव...अब आप ही बचाइये मुझे इस बालक से।” उन्होंने महानदेव के पैर पकड़ लिये- “पिछले एक घंटे से यह बालक मुझे नचा रहा है।”

“तुमने कभी गृहस्थ आश्रम का आनंद नहीं उठाया है ना, इसलिये तुम इस क्षण की महत्वता नहीं समझ सकते।”😁 ..देव ने उन्हें उठाते हुए कहा।

“मैं समझना भी नहीं चाहता प्रभु... बहुत अच्छा हुआ कि मैं ब्रह्मचारी हूं...इस क्षण की महत्वता को मैंने 1 घंटे में जी लिया... :pray: अब आप मुझे इससे छुटकारा दिलाइये प्रभु।” वो तो ..देव को छोड़ ही नहीं रहे थे।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। यह देख वो और भी डर गये।

उन्होंने गुस्से से नंदी की ओर देखते हुए कहा- “देख क्या रहे हो? इसे चुप क्यों नहीं कराते।”

“मैं!....म....म...मुझे भी नहीं आता बालकों को चुप कराना।” यह कहकर नंदी भी भागकर ..देव के पीछे छिप गया।

“मैं और नंदी, नीलाभ और माया के विवाह में जा रहें हैं, हमारे साथ तुम भी चलो। क्या पता वहां पर तुम्हें इससे छुटकारा पाने का कोई हल मिल ही जाये?” उन्होंने मुस्कुराते हुए हनु.. से कहा।

“मैं चलूंगा....आप जहां कहेंगे, वहां चलूंगा।” इतना कह उन्होंने नन्हें यति को गोद में उठाया और ..देव के पीछे-पीछे चल पड़े।

तीनों नंदी के साथ आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत के पास स्थित विवाह स्थल पर पहुंच गये।

माया ने कैलाश के पास ही विवाह के मंडप स्थल का निर्माण किया था।

केले के पत्ते और सुगंधित फूलों से सजा विशाल मंडप बहुत ही आकर्षक लग रहा था।

विवाह स्थल के बाहर 2 हाथी, हर आने वाले पर, अपनी सूंढ़ से सुगंधित इत्र का छिड़काव कर रहे थे।

अंदर कुछ सफेद अश्व अपने पैरों में घुंघरु बांधकर, अपने पैरों को जोर-जोर आगे-पीछे कर, नृत्य कर रहे थे।

एक स्थान पर कुछ व्यक्ति रंगीन वस्त्र पहने शहनाई बजा रहे थे।

महानदेव और हनुरमान को विवाह स्थल पर प्रवेश करते देख, कुछ स्त्रियां उनके पैरों के आगे फूल बिछाकर रास्ता बनाने लगीं।

कुछ आगे जाने पर एक छोटा सा सरोवर दिखाई दिया, जिसमें नीले रंग का शुद्ध जल भरा हुआ था और उस जल में कुछ हंस कलरव कर रहे थे, हंस के आसपास सुर्ख लाल रंग की नन्हीं मछलियां, पानी में उछल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहीं थीं।

एक स्थान पर, हरी घास पर मोर अपने पंख फैलाकर नृत्य कर रहे थे, कुछ रंग-बिरंगी छोटी चिड़ियां अपने मीठे कंठ से सुरम्य आवाज कर, मोर को उत्साहित कर रहीं थीं।

कुल मिलाकर वहां का वातावरण इतना खूबसूरत था कि उसे शब्दों में व्यक्त करना ही मुश्किल हो रहा था।

कुछ आगे बढ़ने पर एक विशाल मंडप बना था, जिसके एक किनारे पर एक विशाल सिंहासन पर माया व नीलाभ आसीन थे।

इंद्रधनुष के रंगों में रंगा मंडप, एक अद्भुत छटा बिखेर रहा था।

सिंहासन के पीछे कुछ थालियों में, विभिन्न प्रकार के रंग रखे हुए थे, जिसे तितलियां अपने शरीर पर लगाकर उड़-उड़कर, सभी के चेहरे पर मल रहीं थीं।

एक ओर से आ रही मीठे पकवानों की सुगंध लोगों की भूख बढ़ा रही थी।

बहुत से देवी-देवता, गंधर्व, अप्सराएं इधर-उधर विचर रहे थे।

..देव को देख सभी अपने स्थान से खड़े हो गये, परंतु सबकी निगाहें उनसे भी ज्यादा,..मान की गोद में पकड़े बच्चे की ओर थी।

“क्या हनु… ने विवाह कर लिया? क्या ये उनका पुत्र है? ये तो ब्रह्मचारी थे।”

कुछ दबी-दबी सी आवाजें हनु…. के कानों में पड़ीं।

इन चुभती निगाहों और इन कटाक्ष भरे शब्दों से, उनको को अपनी शक्ति क्षीण होती महसूस हो रही थी। वो तो अब कैसे भी इस बालक से छुटकारा चाहते थे?

देव आगे बढ़कर नीलाभ व माया के पास जा पहुंचे। नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर देव के चरण स्पर्श किये।

उन्होंने दोनों को आशीर्वाद देते हुए नंदी की ओर इशारा किया।

नंदी ने इशारा समझ अपने हाथ में पकड़े, एक सुनहरे रंग से लिपटी भेंट को, माया की ओर बढ़ा दिया।

माया ने देव की भेंट को अपने मस्तक से छूकर, सिंहासन के पीछे खड़ी एक सेविका के सुपुर्द कर दिया।

देव अब थोड़ा पीछे हट गये और उन्होंने हनुरमान को आगे बढ़ने का इशारा किया।

हनुरमान आगे तो बढ़ गये, पर उन्हें कुछ समझ नहीं आया? नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर हनुरमान के भी चरण स्पर्श किये।

उन्होंने ना समझने वाले भाव से महानदेव की ओर देखा।

उन्हें अपनी ओर देखते देख देव बोल उठे- “सोच क्या रहे हो? आशीर्वाद दो माया को।”

देव की बात सुन, उन्होंने अपनी गोद में पकड़ा वह नन्हा यति माया को पकड़ा दिया।

माया ने उस नन्हें बालक को देखा, पर उन्हें कुछ समझ में नहीं आया?

“ये क्या प्रभु? मैं कुछ समझी नहीं?” माया ने पहले हनुरमान को देखा और फिर..देव की ओर।

“इसमें ना समझने वाली कौन सी बात है? अरे....ये हनुरमान का आशीर्वाद है।” देव ने मुस्कुराते हुए कहा।

माया समझ गयी कि यह देवों की कोई लीला है, इसलिये उसने नन्हें यति को अपने माथे से लगाया और उसे निहारने लगी।

नन्हा यति अपनी आँखें टिप-टिप कर माया को देख रहा था। उसने माया की उंगली जोर से पकड़ ली और बोला- “माँ”

बस इस एक शब्द में ही पता नहीं कौन सा जादू था कि माया ने उस नन्हें से यति को गले से लगा लिया।
माया की आँखों से स्वतः ही अविरल अश्रु की धारा बहने लगी, अचानक ही उसके अंदर ममता का सागर कुलाँचे मारने लगा।

हनुरमान इस ममता मई दृश्य को बिना पलक झपकाये निहार रहे थे।

कुछ देर बाद जब माया को याद आया कि वह कहां खड़ी है, तो उसने वापस हनुरमान की ओर देखा।

उन्होंने अपने हाथ आगे कर माया
को आशीर्वाद दिया।

“बड़ा ही अद्भुत बालक है। वैसे इसका नाम क्या है?” माया ने हनुरमान की ओर देखते हुए पूछा।

“अब आप इसकी माता हैं...आप स्वयं इसका नामकरण करिये।” उन्होंने भोलेपन से माया को जवाब दिया।

माया ने कुछ देर सोचा और फिर बोल उठी- “चूंकि ये ‘हनु’ का आशीर्वाद है, इसलिये आज से इसका नाम ‘हनुका’ होगा।”

हनुरमान की इस अद्भुत भेंट पर, सभी देवता हर्षातिरेक से हनु... का जयकारा लगाने लगे।

हनु... भी खुश हो गये क्यों कि इस नन्हें यति के लिये, इससे अच्छी माँ नहीं मिल सकती थी।

तभी माया को हनु.. के पीछे से झांकते हुए गणे..mश दिखाई दिये।

माया ने बालक गणे… को आगे आने का इशारा किया।

जब वो आगे आ गये तो माया ने धीरे से उनके कान में कहा-“आपने तो कहा था कि मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी, पर मुझे तो शादी के दिन ही पुत्र प्राप्त हो गया...अब क्या कहते हो?”

“ईश्वर की माया, ईश्वर ही जाने...।” गणे.. ने मुस्कुरा कर कहा, और अपना बड़ा सा कान छुड़ाकर उस ओर चल दिया, जिधर ढेर सारे मोदक रखे हुए दिखाई दे रहे थे।

माया को कुछ समझ नहीं आया, उसने एक बार फिर हनुका की ओर देखा और धीरे से उसके मस्तक को चूम लिया।



जारी रहेगा_________✍️
Nice update....
 

parkas

Well-Known Member
31,849
68,577
303
#147.

बाल हनुका:
(20,010 वर्ष पहले.......प्रातः काल, गंधमादन पर्वत, हिमालय)

हिमालय पर कैलाश पर्वत से कुछ ही दूरी पर स्थित है- ‘गंधमादन पर्वत’। देवताओं का वह स्थान जहां वह साधना करते थे।

प्रातः काल का समय था, चारो ओर स्वच्छ, स्निग्ध, श्वेत हिमखंड फैले हुए थे। बहुत ही पवित्र वातावरण था।

मंद-मंद वायु बह रही थी। ऐसे में एक विशाल पहाड़ के नीचे, नन्हा यति बर्फ में लोट-लोट कर खेल रहा था।

उस नन्हें यति की आयु xx वर्ष की भी नहीं लग रही थी। वह दूध पीने वाला अबोध बालक लग रहा था।

उसके माता-पिता कुछ ही दूरी पर बैठे, अपने नन्हें बालक को खेलते हुए निहार रहे थे।

नन्हा यति कभी-कभी बर्फ के गोले बनाकर अपने माता-पिता पर भी फेंक दे रहा था।

एका एक उस नन्हें यति को हवा में बह रही एक ध्वनि सुनाई दी-
“राऽऽमऽऽऽऽऽऽ राऽऽमऽऽऽऽऽऽऽ” अब वह खेलना छोड़, अपने कान खड़े करके, उस ध्वनि पर ध्यान
देने लगा।

उसे वह ध्वनि सामने उपस्थित, एक बर्फ के टीले से आती सुनाई दी।

नन्हें यति ने कुछ देर तक उस आवाज को सुना और फिर पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा।

उसके माता-पिता आपस में कुछ बातें कर रहे थे, यह देख नन्हा यति घुटनों के बल, उस बर्फ के टीले की ओर बढ़ने लगा।

जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, ‘रा..’ नाम की गूंज तेज होती जा रही थी। नन्हें यति ने उस टीले को अपने हाथ से छूकर देखा, पर उसे कुछ समझ नहीं आया।

तभी अचानक पहाड़ से, एक बर्फ की भारी चट्टान, उस नन्हें यति के माता-पिता पर जा गिरी।

चट्टान के गिरने की भीषण आवाज ने, नन्हें यति को बुरी तरह से डरा दिया।

नन्हें यति ने पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा। दोनों ही उस चट्टान के नीचे बुरी तरह से कुचल गये थे।

नन्हा यति टीले से आ रही आवाज को छोड़, घुटनों के बल चलता, अपने माता-पिता की ओर भागा।

टीले के नीचे से खून से लथपथ उसकी माँ का हाथ नजर आ रहा था। नन्हें यति ने रोते हुए अपने नन्हें हाथों से चट्टान को हटाने की कोशिश की, पर वह सफल नहीं हो पाया।

अब नन्हा यति जोर-जोर से बिलख रहा था। उसके बिलखने की आवाज बहुत ही करुणा दायक थी।

तभी रा.. नाम की ध्वनि बंद हो गई और उस टीले में हरकत होने लगी।

कुछ ही क्षणों में टीले की सारी बर्फ नीचे गिरी पड़ी थी और उसके स्थान पर पवन पुत्र हनु.. नजर आने लगे। उनकी निगाह, बिलख रहे उस नन्हें यति पर गई।

उनसे उसका बिलखना देखा नहीं गया। वह सधे कदमों से उस नन्हें यति के पास आ गये।

एक क्षण में ही उनकी तीक्ष्ण निगाहों ने, बर्फ के नीचे दबे उस नन्हें यति के माता-पिता को देख लिया था।

उन्होंने एक हाथ से ही उस चट्टान को उठा कर दूर फेंक दिया। चट्टान के हटते ही नन्हा यति, अपनी माँ के निर्जीव शरीर से जा चिपका।

उन्होंने उस नन्हें यति को अपनी गोद में उठा लिया।

किसी के शरीर का स्पर्श पाते ही नन्हा यति चुप हो गया, परंतु वह अब भी सिसकियां ले रहा था।

उन्होंने नन्हें यति के माता-पिता के निर्जीव शरीर की ओर देखा। उन्की आँखों से किरणें निकलीं और दोनों यति के पार्थिव शरीर, कणों में बदलकर बर्फ में समा गये।

अब वो उस नन्हें यति को लेकर बर्फ पर अकेले खड़े थे।

“हे प्रभु, यह कैसी माया है....इतने नन्हें बालक से उसका सहारा छीन लिया....अब मैं इस बालक का क्या करुं?... इसे यहां छोड़कर भी नहीं जा सकता और इसे लेकर भी कहां जाऊं?....मैं तो ब्रह्मचारी हूं और
सदैव साधना में रत रहता हूं....फिर इस बालक की देखभाल कैसे कर पाऊंगा? मुझे मार्ग दिखाइये प्रभु।”

ह…मान मन ही मन बड़बड़ा रहे थे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? आज तक पूरी
जिंदगी में उन्हों ने कभी इस प्रकार की परिस्थिति का सामना नहीं किया था।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। अब तो और विकट स्थिति खड़ी हो गई थी।

उन्हे उसे चुप कराना भी नहीं आ रहा था। वह कभी उसे गोद में लेकर हिलाते, तो कभी उसे हवा में उछालते....पर इस समस्या का समाधान उनके पास नहीं था।

नन्हा यति चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

“लगता है कि इसे भूख लगी है.... पर...पर मैं इसे खिलाऊं क्या?” वो बहुत ही असमंजस में थे।

उन्होंने अब नन्हें यति को जमीन पर बैठा दिया और अपनी शक्तियों से उसके सामने हजारों प्रकार के विचित्र फल और खाद्य पदार्थ रख दिया, पर उस नन्हें यति ने उन सभी पदार्थों की ओर देखा तक नहीं।

कुछ ना समझ में आता देख ..मान उस नन्हें यति के सामने नाचने लगे।
उनका विचित्र नृत्य देखकर, नन्हा यति चुप हो गया।

यह देख खुशी के मारे हनु..और जोर से नाचने लगे। नन्हा यति अपनी पलकें झपका कर उनके उस विचित्र नृत्य का आनंद उठा रहा था।

धीरे-धीरे काफी समय बीत गया, पर हनु.. जैसे ही रुकते थे, वह नन्हा यति फिर से रोने लगता था।

अब वह नन्हा यति उनके लिये, एक मुसीबत बन गया था, तभी एक आवाज वातावरण में गूंजी-

“अपनी इस कला का प्रदर्शन तो तुमने कभी किया ही नहीं हनु…? हम तो आश्चर्यचकित रह गये तुम्हारी इस विद्या को देखकर।”

उन्होंने आश्चर्य से पीछे पलटकर देखा।

पीछे नंदी संग म..देव खड़े थे।
नंदी को घूरता देख ह..मान एक पल को अचकचा से गये, फिर उन्होंने देव को प्रणाम किया।

“हे..देव...अब आप ही बचाइये मुझे इस बालक से।” उन्होंने महानदेव के पैर पकड़ लिये- “पिछले एक घंटे से यह बालक मुझे नचा रहा है।”

“तुमने कभी गृहस्थ आश्रम का आनंद नहीं उठाया है ना, इसलिये तुम इस क्षण की महत्वता नहीं समझ सकते।”😁 ..देव ने उन्हें उठाते हुए कहा।

“मैं समझना भी नहीं चाहता प्रभु... बहुत अच्छा हुआ कि मैं ब्रह्मचारी हूं...इस क्षण की महत्वता को मैंने 1 घंटे में जी लिया... :pray: अब आप मुझे इससे छुटकारा दिलाइये प्रभु।” वो तो ..देव को छोड़ ही नहीं रहे थे।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। यह देख वो और भी डर गये।

उन्होंने गुस्से से नंदी की ओर देखते हुए कहा- “देख क्या रहे हो? इसे चुप क्यों नहीं कराते।”

“मैं!....म....म...मुझे भी नहीं आता बालकों को चुप कराना।” यह कहकर नंदी भी भागकर ..देव के पीछे छिप गया।

“मैं और नंदी, नीलाभ और माया के विवाह में जा रहें हैं, हमारे साथ तुम भी चलो। क्या पता वहां पर तुम्हें इससे छुटकारा पाने का कोई हल मिल ही जाये?” उन्होंने मुस्कुराते हुए हनु.. से कहा।

“मैं चलूंगा....आप जहां कहेंगे, वहां चलूंगा।” इतना कह उन्होंने नन्हें यति को गोद में उठाया और ..देव के पीछे-पीछे चल पड़े।

तीनों नंदी के साथ आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत के पास स्थित विवाह स्थल पर पहुंच गये।

माया ने कैलाश के पास ही विवाह के मंडप स्थल का निर्माण किया था।

केले के पत्ते और सुगंधित फूलों से सजा विशाल मंडप बहुत ही आकर्षक लग रहा था।

विवाह स्थल के बाहर 2 हाथी, हर आने वाले पर, अपनी सूंढ़ से सुगंधित इत्र का छिड़काव कर रहे थे।

अंदर कुछ सफेद अश्व अपने पैरों में घुंघरु बांधकर, अपने पैरों को जोर-जोर आगे-पीछे कर, नृत्य कर रहे थे।

एक स्थान पर कुछ व्यक्ति रंगीन वस्त्र पहने शहनाई बजा रहे थे।

महानदेव और हनुरमान को विवाह स्थल पर प्रवेश करते देख, कुछ स्त्रियां उनके पैरों के आगे फूल बिछाकर रास्ता बनाने लगीं।

कुछ आगे जाने पर एक छोटा सा सरोवर दिखाई दिया, जिसमें नीले रंग का शुद्ध जल भरा हुआ था और उस जल में कुछ हंस कलरव कर रहे थे, हंस के आसपास सुर्ख लाल रंग की नन्हीं मछलियां, पानी में उछल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहीं थीं।

एक स्थान पर, हरी घास पर मोर अपने पंख फैलाकर नृत्य कर रहे थे, कुछ रंग-बिरंगी छोटी चिड़ियां अपने मीठे कंठ से सुरम्य आवाज कर, मोर को उत्साहित कर रहीं थीं।

कुल मिलाकर वहां का वातावरण इतना खूबसूरत था कि उसे शब्दों में व्यक्त करना ही मुश्किल हो रहा था।

कुछ आगे बढ़ने पर एक विशाल मंडप बना था, जिसके एक किनारे पर एक विशाल सिंहासन पर माया व नीलाभ आसीन थे।

इंद्रधनुष के रंगों में रंगा मंडप, एक अद्भुत छटा बिखेर रहा था।

सिंहासन के पीछे कुछ थालियों में, विभिन्न प्रकार के रंग रखे हुए थे, जिसे तितलियां अपने शरीर पर लगाकर उड़-उड़कर, सभी के चेहरे पर मल रहीं थीं।

एक ओर से आ रही मीठे पकवानों की सुगंध लोगों की भूख बढ़ा रही थी।

बहुत से देवी-देवता, गंधर्व, अप्सराएं इधर-उधर विचर रहे थे।

..देव को देख सभी अपने स्थान से खड़े हो गये, परंतु सबकी निगाहें उनसे भी ज्यादा,..मान की गोद में पकड़े बच्चे की ओर थी।

“क्या हनु… ने विवाह कर लिया? क्या ये उनका पुत्र है? ये तो ब्रह्मचारी थे।”

कुछ दबी-दबी सी आवाजें हनु…. के कानों में पड़ीं।

इन चुभती निगाहों और इन कटाक्ष भरे शब्दों से, उनको को अपनी शक्ति क्षीण होती महसूस हो रही थी। वो तो अब कैसे भी इस बालक से छुटकारा चाहते थे?

देव आगे बढ़कर नीलाभ व माया के पास जा पहुंचे। नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर देव के चरण स्पर्श किये।

उन्होंने दोनों को आशीर्वाद देते हुए नंदी की ओर इशारा किया।

नंदी ने इशारा समझ अपने हाथ में पकड़े, एक सुनहरे रंग से लिपटी भेंट को, माया की ओर बढ़ा दिया।

माया ने देव की भेंट को अपने मस्तक से छूकर, सिंहासन के पीछे खड़ी एक सेविका के सुपुर्द कर दिया।

देव अब थोड़ा पीछे हट गये और उन्होंने हनुरमान को आगे बढ़ने का इशारा किया।

हनुरमान आगे तो बढ़ गये, पर उन्हें कुछ समझ नहीं आया? नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर हनुरमान के भी चरण स्पर्श किये।

उन्होंने ना समझने वाले भाव से महानदेव की ओर देखा।

उन्हें अपनी ओर देखते देख देव बोल उठे- “सोच क्या रहे हो? आशीर्वाद दो माया को।”

देव की बात सुन, उन्होंने अपनी गोद में पकड़ा वह नन्हा यति माया को पकड़ा दिया।

माया ने उस नन्हें बालक को देखा, पर उन्हें कुछ समझ में नहीं आया?

“ये क्या प्रभु? मैं कुछ समझी नहीं?” माया ने पहले हनुरमान को देखा और फिर..देव की ओर।

“इसमें ना समझने वाली कौन सी बात है? अरे....ये हनुरमान का आशीर्वाद है।” देव ने मुस्कुराते हुए कहा।

माया समझ गयी कि यह देवों की कोई लीला है, इसलिये उसने नन्हें यति को अपने माथे से लगाया और उसे निहारने लगी।

नन्हा यति अपनी आँखें टिप-टिप कर माया को देख रहा था। उसने माया की उंगली जोर से पकड़ ली और बोला- “माँ”

बस इस एक शब्द में ही पता नहीं कौन सा जादू था कि माया ने उस नन्हें से यति को गले से लगा लिया।
माया की आँखों से स्वतः ही अविरल अश्रु की धारा बहने लगी, अचानक ही उसके अंदर ममता का सागर कुलाँचे मारने लगा।

हनुरमान इस ममता मई दृश्य को बिना पलक झपकाये निहार रहे थे।

कुछ देर बाद जब माया को याद आया कि वह कहां खड़ी है, तो उसने वापस हनुरमान की ओर देखा।

उन्होंने अपने हाथ आगे कर माया
को आशीर्वाद दिया।

“बड़ा ही अद्भुत बालक है। वैसे इसका नाम क्या है?” माया ने हनुरमान की ओर देखते हुए पूछा।

“अब आप इसकी माता हैं...आप स्वयं इसका नामकरण करिये।” उन्होंने भोलेपन से माया को जवाब दिया।

माया ने कुछ देर सोचा और फिर बोल उठी- “चूंकि ये ‘हनु’ का आशीर्वाद है, इसलिये आज से इसका नाम ‘हनुका’ होगा।”

हनुरमान की इस अद्भुत भेंट पर, सभी देवता हर्षातिरेक से हनु... का जयकारा लगाने लगे।

हनु... भी खुश हो गये क्यों कि इस नन्हें यति के लिये, इससे अच्छी माँ नहीं मिल सकती थी।

तभी माया को हनु.. के पीछे से झांकते हुए गणे..mश दिखाई दिये।

माया ने बालक गणे… को आगे आने का इशारा किया।

जब वो आगे आ गये तो माया ने धीरे से उनके कान में कहा-“आपने तो कहा था कि मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी, पर मुझे तो शादी के दिन ही पुत्र प्राप्त हो गया...अब क्या कहते हो?”

“ईश्वर की माया, ईश्वर ही जाने...।” गणे.. ने मुस्कुरा कर कहा, और अपना बड़ा सा कान छुड़ाकर उस ओर चल दिया, जिधर ढेर सारे मोदक रखे हुए दिखाई दे रहे थे।

माया को कुछ समझ नहीं आया, उसने एक बार फिर हनुका की ओर देखा और धीरे से उसके मस्तक को चूम लिया।



जारी रहेगा_________✍️
Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
4,180
16,192
159
#146.

कैस्पर ने मुड़कर माया की ओर देखा। माया ने अपनी पलकें झपका कर कैस्पर को अनुमति दे दी।

यह देख कैस्पर तुरंत घोड़े पर सवार हो गया। कैस्पर के सवार होते ही जीको कैस्पर को लेकर आसमान में उड़ चला।

कुछ देर तक कैस्पर ने जीको को कसकर पकड़ रखा था, फिर धीरे-धीरे उसका डर खत्म होता गया।

अब कैस्पर अपने दोनों हाथों को छोड़कर, जीको के साथ आसमान में उड़ने का मजा ले रहा था।

जीको अब एक सफेद बादलों की टुकड़ी के बीच उड़ रहा था। हर ओर मखमल के समान बादल देख, कैस्पर को बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।

कई बार तो कई पक्षी भी, कैस्पर के बगल से निकले, जो कि आश्चर्य से इस उड़ने वाले घोड़े को देख रहे थे।

उन पक्षियों के लिये भी जीको किसी अजूबे से कम नहीं था।

कुछ देर तक आसमान में उड़ते रहने के बाद कैस्पर ने जीको को समुद्र के अंदर जाने को कहा।

जीको आसमान से उतरकर, समुद्र की गहराइयों में प्रवेश कर गया।

अब जीको ने समुद्री घोड़े का रुप ले लिया था, परंतु जीको का आकार, अब भी घोड़े के बराबर ही था।

नीले पानी में रंग बिरंगे जलीय जंतु दिखाई दे रहे थे।

ना तो जीको को पानी में साँस लेने में कोई परेशानी हो रही थी और ना ही कैस्पर को।

कैस्पर अभी छोटा ही तो था, इसलिये यह यात्रा उसके लिये सपनों सरीखी ही थी।

वह अपनी नन्हीं आँखों में, इस दुनिया के सारे झिलमिल रंगों को समा लेना चाहता था।

तभी उसके मस्तिष्क में माया की आवाज सुनाई दी- “अब लौट आओ कैस्पर, जीको अब तुम्हारे ही पास रहेगा...फिर कभी इसकी सवारी का आनन्द उठा लेना।”

माया की आवाज सुन, कैस्पर ने जीको को वापस चलने का आदेश दिया।

कुछ ही देर में उड़ता हुआ जीको वापस क्रीड़ा स्थल में प्रवेश कर गया।

जहां एक ओर कैस्पर के चेहरे पर, दुनिया भर की खुशी दिख रही थी, वहीं मैग्ना के चेहरे पर मायूसी साफ झलक रही थी।

“कैसा है मेरा जीको?” कैस्पर ने जीको से उतरते हुए मैग्ना से पूछा।

“बहुत गन्दा है...इसका सफेद रंग मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद...इसके पंख भी बहुत गंदे हैं।” मैग्ना ने गुस्साते हुए कहा।

“अरे...तुम्हें क्या हो गया?” कैस्पर ने आश्चर्य से भरते हुए कहा।

“घोड़ा पाते ही अकेले-अकेले लेकर उड़ गये...मुझसे पूछा भी नहीं कि मुझे भी उसकी सवारी करनी है क्या?....कैस्पर तुम बहुत गंदे हो... मैं भी जब अपना ड्रैगन बनाऊंगी तो तुम्हें उसकी सवारी नहीं करने दूंगी।” दोनों ने फिर झगड़ना शुरु कर दिया।

यह देख माया ने बीच-बचाव करते हुए कहा- “हां ठीक है...मत बैठने देना कैस्पर को अपने ड्रैगन पर...पर पहले अपना ड्रैगन बना तो लो।”

यह सुन मैग्ना ने जीभ निकालकर, नाक सिकोड़ते हुए कैस्पर को चिढ़ाया और माया के पास आ गई।

“मैग्ना...मैं तुम्हें ब्रह्म शक्ति नहीं दे सकती।” माया ने मैग्ना को देखते हुए कहा- “क्यों कि वह मेरे पास एक ही थी।”

यह सुनकर मैग्ना का चेहरा उतर गया।

“पर तुम उदास मत हो... उसके बदले मैं तुम्हें 1 नहीं बल्कि 2 शक्तियां दूंगी।” माया ने कहा।

“येऽऽऽऽऽ 2 शक्तियां !” यह कहकर उत्साहित मैग्ना ने फिर कैस्पर को चिढ़ाया।

माया ने एक बार फिर आँख बंदकर ‘यम’ और ‘गुरु बृह..स्पति’ को स्मरण किया। इस बार तेज हवाओं के साथ माया के दोनों हाथों में 2 मणि दिखाई दीं।

माया ने मंत्र पढ़कर दोनों मणियों को मैग्ना के दोनों हाथों में स्थापित कर दिया।

“मैग्ना ! तुम्हारे बाएं हाथ में, जो गाढ़े लाल रंग की मणि है, उसमें जीव शक्ति है और दाहिने हाथ में जो हल्के हरे रंग की मणि है, वो वृक्ष शक्ति है।” माया ने मैग्ना को देखते हुए कहा- “जीव शक्ति से तुम अपनी कल्पना से किसी भी जीव का निर्माण कर सकती हो और वृक्ष शक्ति से किसी भी प्रकार के वृक्ष का निर्माण कर सकती हो। जीव शक्ति में एक और विशेषता है, यह समय के साथ तुम्हें समझते हुए, स्वयं में बदलाव भी करती रहेगी।

"यानि की इसकी शक्तियां अपार हैं, बस तुम्हें इसे ठीक से समझने की जरुरत है। जीव शक्ति आगे जाकर इच्छाधारी शक्ति में भी परिवर्तित हो सकती है, जिससे तुम अपने शरीर के कणों में आवश्यक बदलाव करके किसी भी जीव में परिवर्तित हो सकती हो। क्या अब तुम अपनी शक्तियों के प्रयोग के लिये तैयार हो?”

“मैं तो मरी जा रही हूं कब से।” मैग्ना ने मासूमियत से जवाब दिया।

“तो फिर पहले अपने दोनों हाथों को जोर से हवा में गोल लहराओ और फिर संकेन्द्रित वायु को जमीन पर रखकर वृक्ष शक्ति का प्रयोग करो।” माया ने कहा।

माया के इतना कहते ही मैग्ना ने जोर से अपने दोनों हाथों को हवा में लहराया और फिर वातावरण मे घूम रहे कणों को जमीन पर रखकर, अपनी आँखें बंदकर कल्पना करने लगी।

मैग्ना के कल्पना करते ही उसके आसपास से, जमीन से बिजली निकलकर, उन हवा में घूम रहे कणों पर पड़ने लगी।

जमीन से निकल रही बिजली तेज ध्वनि और चमक दोनों ही उत्पन्न कर रही थी , पर मैग्ना की कल्पना लगातार जारी थी।

माया और कैस्पर की आश्चर्य भरी निगाहें, मैग्ना की कल्पना से बन रहे वृक्ष पर थी।

जमीन की सारी बिजली एक ही स्थान पर पड़ रही थी, परंतु काफी देर बाद भी, कोई वृक्ष उत्पन्न होता हुआ नहीं दिखाई दिया।

अचानक मैग्ना ने अपनी आँखें खोल दी। मैग्ना के आँख खोलते ही सारी बिजली वापस जमीन में समा गई।

जिस जगह से बिजली टकरा रही थी, वह स्थान अब भी खाली था।

यह देखकर कैस्पर जोर से हंसकर बोला- “वाह-वाह! चुहिया ने क्या कल्पना की है। एक घास भी नहीं बना पाई, वृक्ष तो दूर की बात है।”

पर पता नहीं क्यों इस बार मैग्ना ने कैस्पर की बात का बुरा नहीं माना। वह धीरे-धीरे चलती हुई आगे आयी और उस स्थान को ध्यान से देखने लगे, जहां पर संकेद्रित वायु के कण तैर रहे थे।

ध्यान से देखने के बाद मैग्ना ने हाथ बढ़ाकर, जमीन से कोई चीज उठाई और उसे लेकर माया के पास जा पहुंची।

माया ने आश्चर्य से मैग्ना के हथेली पर रखे, एक भूरे रंग के बीज को देखा। माया को कुछ समझ नहीं आया कि मैग्ना उसे क्या दिखाना चाहती है?

तभी मैग्ना ने आगे बढ़कर वहां पहले से ही रखे एक पानी से भरे मस्क को उठाया और उस बीज को जमीन पर रखकर, उस पर पानी डाल दिया।

पानी की बूंद पड़ते ही वह बीज अंकुरित हो गया और उससे एक नन्हीं सी हरे रंग की कोपल बाहर निकली।

वह कोपल तेजी से अपना आकार बढ़ा रही थी।

धीरे-धीरे वह एक नन्हा पेड़ बनने के बाद, एक विशाल वृक्ष में बदल गया, पर वृक्ष का बढ़ना अभी रुका नहीं था।

लगभग 5 मिनट में ही वृक्ष की शाखाएं आसमान छूने लगीं।

माया और कैस्पर हैरानी से उस वृक्ष को बढ़ते देख रहे थे।

अब उस वृक्ष के सामने पूरा द्वीप ही बौना लगने लगा था, मगर वृक्ष का बढ़ना अभी भी जारी था।

यह देख माया के चेहरे पर चिंता के भाव उभरे।

“मैग्ना....अब वृक्ष का बढ़ना रोक दो, नहीं तो यह वृक्ष पृथ्वी के वातावरण को ही नष्ट कर देगा।” माया ने भयभीत होते हुए कहा।

माया के यह कहते ही मैग्ना ने आगे बढ़कर वृक्ष को धीरे से सहलाया।

ऐसा लगा जैसे वृक्ष मैग्ना की बात समझ गया हो, अब उसका आकार छोटा होने लगा था।

कुछ ही देर में उस महावृक्ष का आकार, एक साधारण वृक्ष के समान हो गया।

“तुमने क्या कल्पना की थी मैग्ना?” माया ने मैग्ना से पूछा।

“मैंने कल्पना की, एक ऐसे महावृक्ष की...जिसके पास स्वयं का मस्तिष्क हो, वह किसी इंसान की भांति चल फिर सके, बोले व भावनाओं को समझे। वह अपने शरीर को छोटा बड़ा भी कर सके। वह अपने अंदर छिपे सपनो के संसार से, लोगों को ज्ञान दे, उन्हें सही मार्ग दिखलाए।

"वह स्वयं की शक्तियों का विकास करे। उसके अंदर एक पुस्तकों की भंडार हो, उसके तनों से अनेकों दुनिया के रास्ते खुलें। उसकी पत्तियों में जीवनदायिनी शक्ति हो, उसके फलों में किसी को भी ऊर्जा देने की शक्ति हो, उसके फूलों में अनंत ब्रह्मांड के रहस्य हों और जब तक धरती पर एक भी मनुष्य है, उसका जीवन तब तक रहे।” इतना कहकर मैग्नाचुप हो गयी।

माया आश्चर्य से अपलक मैग्ना को निहार रही थी। इतनी शक्तिशाली कल्पना तो देवताओं के लिये भी करना आसान नहीं था और वह भी तब, जब वह मात्र.. की थी।

“इतने नन्हें मस्तिष्क से इतनी बड़ी कल्पना तुमने कर कैसे ली? और वह भी कुछ क्षणों में ही।” माया ने मैग्ना को देखते हुए कहा।

“अब मैं इतनी छोटी थोड़ी ना हूं।” मैग्ना ने अपनी पलकें झपकाते हुए कहा।

माया समझ गई कि इन बच्चों को उसने शक्तियां देकर गलत नहीं किया है।

तभी इतनी देर से शांत वह वृक्ष बोल पड़ा- “मैंने सुन लिया कि मेरा निर्माण क्यों हुआ है? अब कृपया मुझे मेरा नाम बताने का कष्ट करें।”

मैग्ना ने कुछ देर सोचा और फिर कहा- “तुम्हारा नाम महावृक्ष होगा। कैसा लगा तुम्हें अपना यह नाम?”

“बिल्कुल आप ही की तरह सुंदर।” महावृक्ष ने कहा।

“तो फिर ठीक है...चलो अब छोटे हो कर मेरी हथेली के बराबर हो जाओ ....अभी मैं तुम्हें अपने साथ रखूंगी ...बाद में सोचूंगी कि तुम्हें कहां लगाऊं।” मैग्ना ने कहा।

मैग्ना की बात मानकर महावृक्ष छोटा होकर मैग्ना की हथेली के बराबर हो गया।

अब मैग्ना ने माया से दूसरी शक्ति का प्रयोग करने की आज्ञा मांगी।

माया की आज्ञा पाकर मैग्ना ने फिर से अपने दोनों हाथों को हवा में लहराया और कल्पना करना शुरु कर दिया।

इस कल्पना को समझना माया और कैस्पर दोनों के लिये ही बहुत आसान था।

इस बार मैग्ना ने जीव शक्ति का प्रयोग कर एक हाइड्रा ड्रैगन बनाया, जो हवा और पानी के हिसाब से अपना आकार बदल सके।

मैग्ना ने जब आँखें खोलीं तो उसके सामने सोने के रंग का एक नन्हा ड्रैगन का बच्चा था, जिस पर लाल रंग से धारियां बनीं हुईं थीं।

“ओऽऽऽऽऽऽ कितना प्यारा है यह नन्हा ड्रैगन।” मैग्ना तो जैसे नन्हें ड्रैगन में खो सी गई- “मैं तुम्हारा नाम ड्रैंगो रखूंगी....और हां उस गंदे कैस्पर के साथ बिल्कुल मत खेलना ...समझ गये।”

ड्रैगन ने अपने गले से ‘क्री’ की आवाज निकाली। ऐसा लगा जैसे कि वह सब कुछ समझ गया था।

कैस्पर ने भी ड्रैगन को देख मुंह बनाया और जीको को गले से लगा लिया।

दोनों की शैतानियां फिर शुरु हो गईं थीं, जिसे देख माया मुस्कुराई और फिर दोनों को लेकर वापस ब्लू होल की ओर चल दी।

मैग्ना ने महावृक्ष को अपने कंधे पर बैठा लिया था और नन्हें ड्रैगन को किसी खिलौने की भांति अपने हाथों में पकड़े थी।

कैस्पर जीको की पीठ पर इस प्रकार बैठा था, जैसे वह कभी उतरेगा ही नहीं।

कुछ भी हो पर दोनों आज बहुत खुश थे।



जारी रहेगा_______✍️

Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Maya ne in dono ko shaktiya dekar koi galti nahi ki he.........

Maja aa gaya bhai is update me

Keep posting
 

Luckyloda

Well-Known Member
2,838
9,191
159
#147.

बाल हनुका:
(20,010 वर्ष पहले.......प्रातः काल, गंधमादन पर्वत, हिमालय)

हिमालय पर कैलाश पर्वत से कुछ ही दूरी पर स्थित है- ‘गंधमादन पर्वत’। देवताओं का वह स्थान जहां वह साधना करते थे।

प्रातः काल का समय था, चारो ओर स्वच्छ, स्निग्ध, श्वेत हिमखंड फैले हुए थे। बहुत ही पवित्र वातावरण था।

मंद-मंद वायु बह रही थी। ऐसे में एक विशाल पहाड़ के नीचे, नन्हा यति बर्फ में लोट-लोट कर खेल रहा था।

उस नन्हें यति की आयु xx वर्ष की भी नहीं लग रही थी। वह दूध पीने वाला अबोध बालक लग रहा था।

उसके माता-पिता कुछ ही दूरी पर बैठे, अपने नन्हें बालक को खेलते हुए निहार रहे थे।

नन्हा यति कभी-कभी बर्फ के गोले बनाकर अपने माता-पिता पर भी फेंक दे रहा था।

एका एक उस नन्हें यति को हवा में बह रही एक ध्वनि सुनाई दी-
“राऽऽमऽऽऽऽऽऽ राऽऽमऽऽऽऽऽऽऽ” अब वह खेलना छोड़, अपने कान खड़े करके, उस ध्वनि पर ध्यान
देने लगा।

उसे वह ध्वनि सामने उपस्थित, एक बर्फ के टीले से आती सुनाई दी।

नन्हें यति ने कुछ देर तक उस आवाज को सुना और फिर पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा।

उसके माता-पिता आपस में कुछ बातें कर रहे थे, यह देख नन्हा यति घुटनों के बल, उस बर्फ के टीले की ओर बढ़ने लगा।

जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, ‘रा..’ नाम की गूंज तेज होती जा रही थी। नन्हें यति ने उस टीले को अपने हाथ से छूकर देखा, पर उसे कुछ समझ नहीं आया।

तभी अचानक पहाड़ से, एक बर्फ की भारी चट्टान, उस नन्हें यति के माता-पिता पर जा गिरी।

चट्टान के गिरने की भीषण आवाज ने, नन्हें यति को बुरी तरह से डरा दिया।

नन्हें यति ने पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा। दोनों ही उस चट्टान के नीचे बुरी तरह से कुचल गये थे।

नन्हा यति टीले से आ रही आवाज को छोड़, घुटनों के बल चलता, अपने माता-पिता की ओर भागा।

टीले के नीचे से खून से लथपथ उसकी माँ का हाथ नजर आ रहा था। नन्हें यति ने रोते हुए अपने नन्हें हाथों से चट्टान को हटाने की कोशिश की, पर वह सफल नहीं हो पाया।

अब नन्हा यति जोर-जोर से बिलख रहा था। उसके बिलखने की आवाज बहुत ही करुणा दायक थी।

तभी रा.. नाम की ध्वनि बंद हो गई और उस टीले में हरकत होने लगी।

कुछ ही क्षणों में टीले की सारी बर्फ नीचे गिरी पड़ी थी और उसके स्थान पर पवन पुत्र हनु.. नजर आने लगे। उनकी निगाह, बिलख रहे उस नन्हें यति पर गई।

उनसे उसका बिलखना देखा नहीं गया। वह सधे कदमों से उस नन्हें यति के पास आ गये।

एक क्षण में ही उनकी तीक्ष्ण निगाहों ने, बर्फ के नीचे दबे उस नन्हें यति के माता-पिता को देख लिया था।

उन्होंने एक हाथ से ही उस चट्टान को उठा कर दूर फेंक दिया। चट्टान के हटते ही नन्हा यति, अपनी माँ के निर्जीव शरीर से जा चिपका।

उन्होंने उस नन्हें यति को अपनी गोद में उठा लिया।

किसी के शरीर का स्पर्श पाते ही नन्हा यति चुप हो गया, परंतु वह अब भी सिसकियां ले रहा था।

उन्होंने नन्हें यति के माता-पिता के निर्जीव शरीर की ओर देखा। उन्की आँखों से किरणें निकलीं और दोनों यति के पार्थिव शरीर, कणों में बदलकर बर्फ में समा गये।

अब वो उस नन्हें यति को लेकर बर्फ पर अकेले खड़े थे।

“हे प्रभु, यह कैसी माया है....इतने नन्हें बालक से उसका सहारा छीन लिया....अब मैं इस बालक का क्या करुं?... इसे यहां छोड़कर भी नहीं जा सकता और इसे लेकर भी कहां जाऊं?....मैं तो ब्रह्मचारी हूं और
सदैव साधना में रत रहता हूं....फिर इस बालक की देखभाल कैसे कर पाऊंगा? मुझे मार्ग दिखाइये प्रभु।”

ह…मान मन ही मन बड़बड़ा रहे थे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? आज तक पूरी
जिंदगी में उन्हों ने कभी इस प्रकार की परिस्थिति का सामना नहीं किया था।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। अब तो और विकट स्थिति खड़ी हो गई थी।

उन्हे उसे चुप कराना भी नहीं आ रहा था। वह कभी उसे गोद में लेकर हिलाते, तो कभी उसे हवा में उछालते....पर इस समस्या का समाधान उनके पास नहीं था।

नन्हा यति चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

“लगता है कि इसे भूख लगी है.... पर...पर मैं इसे खिलाऊं क्या?” वो बहुत ही असमंजस में थे।

उन्होंने अब नन्हें यति को जमीन पर बैठा दिया और अपनी शक्तियों से उसके सामने हजारों प्रकार के विचित्र फल और खाद्य पदार्थ रख दिया, पर उस नन्हें यति ने उन सभी पदार्थों की ओर देखा तक नहीं।

कुछ ना समझ में आता देख ..मान उस नन्हें यति के सामने नाचने लगे।
उनका विचित्र नृत्य देखकर, नन्हा यति चुप हो गया।

यह देख खुशी के मारे हनु..और जोर से नाचने लगे। नन्हा यति अपनी पलकें झपका कर उनके उस विचित्र नृत्य का आनंद उठा रहा था।

धीरे-धीरे काफी समय बीत गया, पर हनु.. जैसे ही रुकते थे, वह नन्हा यति फिर से रोने लगता था।

अब वह नन्हा यति उनके लिये, एक मुसीबत बन गया था, तभी एक आवाज वातावरण में गूंजी-

“अपनी इस कला का प्रदर्शन तो तुमने कभी किया ही नहीं हनु…? हम तो आश्चर्यचकित रह गये तुम्हारी इस विद्या को देखकर।”

उन्होंने आश्चर्य से पीछे पलटकर देखा।

पीछे नंदी संग म..देव खड़े थे।
नंदी को घूरता देख ह..मान एक पल को अचकचा से गये, फिर उन्होंने देव को प्रणाम किया।

“हे..देव...अब आप ही बचाइये मुझे इस बालक से।” उन्होंने महानदेव के पैर पकड़ लिये- “पिछले एक घंटे से यह बालक मुझे नचा रहा है।”

“तुमने कभी गृहस्थ आश्रम का आनंद नहीं उठाया है ना, इसलिये तुम इस क्षण की महत्वता नहीं समझ सकते।”😁 ..देव ने उन्हें उठाते हुए कहा।

“मैं समझना भी नहीं चाहता प्रभु... बहुत अच्छा हुआ कि मैं ब्रह्मचारी हूं...इस क्षण की महत्वता को मैंने 1 घंटे में जी लिया... :pray: अब आप मुझे इससे छुटकारा दिलाइये प्रभु।” वो तो ..देव को छोड़ ही नहीं रहे थे।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। यह देख वो और भी डर गये।

उन्होंने गुस्से से नंदी की ओर देखते हुए कहा- “देख क्या रहे हो? इसे चुप क्यों नहीं कराते।”

“मैं!....म....म...मुझे भी नहीं आता बालकों को चुप कराना।” यह कहकर नंदी भी भागकर ..देव के पीछे छिप गया।

“मैं और नंदी, नीलाभ और माया के विवाह में जा रहें हैं, हमारे साथ तुम भी चलो। क्या पता वहां पर तुम्हें इससे छुटकारा पाने का कोई हल मिल ही जाये?” उन्होंने मुस्कुराते हुए हनु.. से कहा।

“मैं चलूंगा....आप जहां कहेंगे, वहां चलूंगा।” इतना कह उन्होंने नन्हें यति को गोद में उठाया और ..देव के पीछे-पीछे चल पड़े।

तीनों नंदी के साथ आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत के पास स्थित विवाह स्थल पर पहुंच गये।

माया ने कैलाश के पास ही विवाह के मंडप स्थल का निर्माण किया था।

केले के पत्ते और सुगंधित फूलों से सजा विशाल मंडप बहुत ही आकर्षक लग रहा था।

विवाह स्थल के बाहर 2 हाथी, हर आने वाले पर, अपनी सूंढ़ से सुगंधित इत्र का छिड़काव कर रहे थे।

अंदर कुछ सफेद अश्व अपने पैरों में घुंघरु बांधकर, अपने पैरों को जोर-जोर आगे-पीछे कर, नृत्य कर रहे थे।

एक स्थान पर कुछ व्यक्ति रंगीन वस्त्र पहने शहनाई बजा रहे थे।

महानदेव और हनुरमान को विवाह स्थल पर प्रवेश करते देख, कुछ स्त्रियां उनके पैरों के आगे फूल बिछाकर रास्ता बनाने लगीं।

कुछ आगे जाने पर एक छोटा सा सरोवर दिखाई दिया, जिसमें नीले रंग का शुद्ध जल भरा हुआ था और उस जल में कुछ हंस कलरव कर रहे थे, हंस के आसपास सुर्ख लाल रंग की नन्हीं मछलियां, पानी में उछल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहीं थीं।

एक स्थान पर, हरी घास पर मोर अपने पंख फैलाकर नृत्य कर रहे थे, कुछ रंग-बिरंगी छोटी चिड़ियां अपने मीठे कंठ से सुरम्य आवाज कर, मोर को उत्साहित कर रहीं थीं।

कुल मिलाकर वहां का वातावरण इतना खूबसूरत था कि उसे शब्दों में व्यक्त करना ही मुश्किल हो रहा था।

कुछ आगे बढ़ने पर एक विशाल मंडप बना था, जिसके एक किनारे पर एक विशाल सिंहासन पर माया व नीलाभ आसीन थे।

इंद्रधनुष के रंगों में रंगा मंडप, एक अद्भुत छटा बिखेर रहा था।

सिंहासन के पीछे कुछ थालियों में, विभिन्न प्रकार के रंग रखे हुए थे, जिसे तितलियां अपने शरीर पर लगाकर उड़-उड़कर, सभी के चेहरे पर मल रहीं थीं।

एक ओर से आ रही मीठे पकवानों की सुगंध लोगों की भूख बढ़ा रही थी।

बहुत से देवी-देवता, गंधर्व, अप्सराएं इधर-उधर विचर रहे थे।

..देव को देख सभी अपने स्थान से खड़े हो गये, परंतु सबकी निगाहें उनसे भी ज्यादा,..मान की गोद में पकड़े बच्चे की ओर थी।

“क्या हनु… ने विवाह कर लिया? क्या ये उनका पुत्र है? ये तो ब्रह्मचारी थे।”

कुछ दबी-दबी सी आवाजें हनु…. के कानों में पड़ीं।

इन चुभती निगाहों और इन कटाक्ष भरे शब्दों से, उनको को अपनी शक्ति क्षीण होती महसूस हो रही थी। वो तो अब कैसे भी इस बालक से छुटकारा चाहते थे?

देव आगे बढ़कर नीलाभ व माया के पास जा पहुंचे। नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर देव के चरण स्पर्श किये।

उन्होंने दोनों को आशीर्वाद देते हुए नंदी की ओर इशारा किया।

नंदी ने इशारा समझ अपने हाथ में पकड़े, एक सुनहरे रंग से लिपटी भेंट को, माया की ओर बढ़ा दिया।

माया ने देव की भेंट को अपने मस्तक से छूकर, सिंहासन के पीछे खड़ी एक सेविका के सुपुर्द कर दिया।

देव अब थोड़ा पीछे हट गये और उन्होंने हनुरमान को आगे बढ़ने का इशारा किया।

हनुरमान आगे तो बढ़ गये, पर उन्हें कुछ समझ नहीं आया? नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर हनुरमान के भी चरण स्पर्श किये।

उन्होंने ना समझने वाले भाव से महानदेव की ओर देखा।

उन्हें अपनी ओर देखते देख देव बोल उठे- “सोच क्या रहे हो? आशीर्वाद दो माया को।”

देव की बात सुन, उन्होंने अपनी गोद में पकड़ा वह नन्हा यति माया को पकड़ा दिया।

माया ने उस नन्हें बालक को देखा, पर उन्हें कुछ समझ में नहीं आया?

“ये क्या प्रभु? मैं कुछ समझी नहीं?” माया ने पहले हनुरमान को देखा और फिर..देव की ओर।

“इसमें ना समझने वाली कौन सी बात है? अरे....ये हनुरमान का आशीर्वाद है।” देव ने मुस्कुराते हुए कहा।

माया समझ गयी कि यह देवों की कोई लीला है, इसलिये उसने नन्हें यति को अपने माथे से लगाया और उसे निहारने लगी।

नन्हा यति अपनी आँखें टिप-टिप कर माया को देख रहा था। उसने माया की उंगली जोर से पकड़ ली और बोला- “माँ”

बस इस एक शब्द में ही पता नहीं कौन सा जादू था कि माया ने उस नन्हें से यति को गले से लगा लिया।
माया की आँखों से स्वतः ही अविरल अश्रु की धारा बहने लगी, अचानक ही उसके अंदर ममता का सागर कुलाँचे मारने लगा।

हनुरमान इस ममता मई दृश्य को बिना पलक झपकाये निहार रहे थे।

कुछ देर बाद जब माया को याद आया कि वह कहां खड़ी है, तो उसने वापस हनुरमान की ओर देखा।

उन्होंने अपने हाथ आगे कर माया
को आशीर्वाद दिया।

“बड़ा ही अद्भुत बालक है। वैसे इसका नाम क्या है?” माया ने हनुरमान की ओर देखते हुए पूछा।

“अब आप इसकी माता हैं...आप स्वयं इसका नामकरण करिये।” उन्होंने भोलेपन से माया को जवाब दिया।

माया ने कुछ देर सोचा और फिर बोल उठी- “चूंकि ये ‘हनु’ का आशीर्वाद है, इसलिये आज से इसका नाम ‘हनुका’ होगा।”

हनुरमान की इस अद्भुत भेंट पर, सभी देवता हर्षातिरेक से हनु... का जयकारा लगाने लगे।

हनु... भी खुश हो गये क्यों कि इस नन्हें यति के लिये, इससे अच्छी माँ नहीं मिल सकती थी।

तभी माया को हनु.. के पीछे से झांकते हुए गणे..mश दिखाई दिये।

माया ने बालक गणे… को आगे आने का इशारा किया।

जब वो आगे आ गये तो माया ने धीरे से उनके कान में कहा-“आपने तो कहा था कि मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी, पर मुझे तो शादी के दिन ही पुत्र प्राप्त हो गया...अब क्या कहते हो?”

“ईश्वर की माया, ईश्वर ही जाने...।” गणे.. ने मुस्कुरा कर कहा, और अपना बड़ा सा कान छुड़ाकर उस ओर चल दिया, जिधर ढेर सारे मोदक रखे हुए दिखाई दे रहे थे।

माया को कुछ समझ नहीं आया, उसने एक बार फिर हनुका की ओर देखा और धीरे से उसके मस्तक को चूम लिया।



जारी रहेगा_________✍️
Bhut shandaar update.... hanu ji ke अद्भुत रूप दिखा दिया आपने तो......
 

ak143

Member
226
384
78
#147.

बाल हनुका:
(20,010 वर्ष पहले.......प्रातः काल, गंधमादन पर्वत, हिमालय)

हिमालय पर कैलाश पर्वत से कुछ ही दूरी पर स्थित है- ‘गंधमादन पर्वत’। देवताओं का वह स्थान जहां वह साधना करते थे।

प्रातः काल का समय था, चारो ओर स्वच्छ, स्निग्ध, श्वेत हिमखंड फैले हुए थे। बहुत ही पवित्र वातावरण था।

मंद-मंद वायु बह रही थी। ऐसे में एक विशाल पहाड़ के नीचे, नन्हा यति बर्फ में लोट-लोट कर खेल रहा था।

उस नन्हें यति की आयु xx वर्ष की भी नहीं लग रही थी। वह दूध पीने वाला अबोध बालक लग रहा था।

उसके माता-पिता कुछ ही दूरी पर बैठे, अपने नन्हें बालक को खेलते हुए निहार रहे थे।

नन्हा यति कभी-कभी बर्फ के गोले बनाकर अपने माता-पिता पर भी फेंक दे रहा था।

एका एक उस नन्हें यति को हवा में बह रही एक ध्वनि सुनाई दी-
“राऽऽमऽऽऽऽऽऽ राऽऽमऽऽऽऽऽऽऽ” अब वह खेलना छोड़, अपने कान खड़े करके, उस ध्वनि पर ध्यान
देने लगा।

उसे वह ध्वनि सामने उपस्थित, एक बर्फ के टीले से आती सुनाई दी।

नन्हें यति ने कुछ देर तक उस आवाज को सुना और फिर पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा।

उसके माता-पिता आपस में कुछ बातें कर रहे थे, यह देख नन्हा यति घुटनों के बल, उस बर्फ के टीले की ओर बढ़ने लगा।

जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, ‘रा..’ नाम की गूंज तेज होती जा रही थी। नन्हें यति ने उस टीले को अपने हाथ से छूकर देखा, पर उसे कुछ समझ नहीं आया।

तभी अचानक पहाड़ से, एक बर्फ की भारी चट्टान, उस नन्हें यति के माता-पिता पर जा गिरी।

चट्टान के गिरने की भीषण आवाज ने, नन्हें यति को बुरी तरह से डरा दिया।

नन्हें यति ने पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा। दोनों ही उस चट्टान के नीचे बुरी तरह से कुचल गये थे।

नन्हा यति टीले से आ रही आवाज को छोड़, घुटनों के बल चलता, अपने माता-पिता की ओर भागा।

टीले के नीचे से खून से लथपथ उसकी माँ का हाथ नजर आ रहा था। नन्हें यति ने रोते हुए अपने नन्हें हाथों से चट्टान को हटाने की कोशिश की, पर वह सफल नहीं हो पाया।

अब नन्हा यति जोर-जोर से बिलख रहा था। उसके बिलखने की आवाज बहुत ही करुणा दायक थी।

तभी रा.. नाम की ध्वनि बंद हो गई और उस टीले में हरकत होने लगी।

कुछ ही क्षणों में टीले की सारी बर्फ नीचे गिरी पड़ी थी और उसके स्थान पर पवन पुत्र हनु.. नजर आने लगे। उनकी निगाह, बिलख रहे उस नन्हें यति पर गई।

उनसे उसका बिलखना देखा नहीं गया। वह सधे कदमों से उस नन्हें यति के पास आ गये।

एक क्षण में ही उनकी तीक्ष्ण निगाहों ने, बर्फ के नीचे दबे उस नन्हें यति के माता-पिता को देख लिया था।

उन्होंने एक हाथ से ही उस चट्टान को उठा कर दूर फेंक दिया। चट्टान के हटते ही नन्हा यति, अपनी माँ के निर्जीव शरीर से जा चिपका।

उन्होंने उस नन्हें यति को अपनी गोद में उठा लिया।

किसी के शरीर का स्पर्श पाते ही नन्हा यति चुप हो गया, परंतु वह अब भी सिसकियां ले रहा था।

उन्होंने नन्हें यति के माता-पिता के निर्जीव शरीर की ओर देखा। उन्की आँखों से किरणें निकलीं और दोनों यति के पार्थिव शरीर, कणों में बदलकर बर्फ में समा गये।

अब वो उस नन्हें यति को लेकर बर्फ पर अकेले खड़े थे।

“हे प्रभु, यह कैसी माया है....इतने नन्हें बालक से उसका सहारा छीन लिया....अब मैं इस बालक का क्या करुं?... इसे यहां छोड़कर भी नहीं जा सकता और इसे लेकर भी कहां जाऊं?....मैं तो ब्रह्मचारी हूं और
सदैव साधना में रत रहता हूं....फिर इस बालक की देखभाल कैसे कर पाऊंगा? मुझे मार्ग दिखाइये प्रभु।”

ह…मान मन ही मन बड़बड़ा रहे थे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? आज तक पूरी
जिंदगी में उन्हों ने कभी इस प्रकार की परिस्थिति का सामना नहीं किया था।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। अब तो और विकट स्थिति खड़ी हो गई थी।

उन्हे उसे चुप कराना भी नहीं आ रहा था। वह कभी उसे गोद में लेकर हिलाते, तो कभी उसे हवा में उछालते....पर इस समस्या का समाधान उनके पास नहीं था।

नन्हा यति चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

“लगता है कि इसे भूख लगी है.... पर...पर मैं इसे खिलाऊं क्या?” वो बहुत ही असमंजस में थे।

उन्होंने अब नन्हें यति को जमीन पर बैठा दिया और अपनी शक्तियों से उसके सामने हजारों प्रकार के विचित्र फल और खाद्य पदार्थ रख दिया, पर उस नन्हें यति ने उन सभी पदार्थों की ओर देखा तक नहीं।

कुछ ना समझ में आता देख ..मान उस नन्हें यति के सामने नाचने लगे।
उनका विचित्र नृत्य देखकर, नन्हा यति चुप हो गया।

यह देख खुशी के मारे हनु..और जोर से नाचने लगे। नन्हा यति अपनी पलकें झपका कर उनके उस विचित्र नृत्य का आनंद उठा रहा था।

धीरे-धीरे काफी समय बीत गया, पर हनु.. जैसे ही रुकते थे, वह नन्हा यति फिर से रोने लगता था।

अब वह नन्हा यति उनके लिये, एक मुसीबत बन गया था, तभी एक आवाज वातावरण में गूंजी-

“अपनी इस कला का प्रदर्शन तो तुमने कभी किया ही नहीं हनु…? हम तो आश्चर्यचकित रह गये तुम्हारी इस विद्या को देखकर।”

उन्होंने आश्चर्य से पीछे पलटकर देखा।

पीछे नंदी संग म..देव खड़े थे।
नंदी को घूरता देख ह..मान एक पल को अचकचा से गये, फिर उन्होंने देव को प्रणाम किया।

“हे..देव...अब आप ही बचाइये मुझे इस बालक से।” उन्होंने महानदेव के पैर पकड़ लिये- “पिछले एक घंटे से यह बालक मुझे नचा रहा है।”

“तुमने कभी गृहस्थ आश्रम का आनंद नहीं उठाया है ना, इसलिये तुम इस क्षण की महत्वता नहीं समझ सकते।”😁 ..देव ने उन्हें उठाते हुए कहा।

“मैं समझना भी नहीं चाहता प्रभु... बहुत अच्छा हुआ कि मैं ब्रह्मचारी हूं...इस क्षण की महत्वता को मैंने 1 घंटे में जी लिया... :pray: अब आप मुझे इससे छुटकारा दिलाइये प्रभु।” वो तो ..देव को छोड़ ही नहीं रहे थे।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। यह देख वो और भी डर गये।

उन्होंने गुस्से से नंदी की ओर देखते हुए कहा- “देख क्या रहे हो? इसे चुप क्यों नहीं कराते।”

“मैं!....म....म...मुझे भी नहीं आता बालकों को चुप कराना।” यह कहकर नंदी भी भागकर ..देव के पीछे छिप गया।

“मैं और नंदी, नीलाभ और माया के विवाह में जा रहें हैं, हमारे साथ तुम भी चलो। क्या पता वहां पर तुम्हें इससे छुटकारा पाने का कोई हल मिल ही जाये?” उन्होंने मुस्कुराते हुए हनु.. से कहा।

“मैं चलूंगा....आप जहां कहेंगे, वहां चलूंगा।” इतना कह उन्होंने नन्हें यति को गोद में उठाया और ..देव के पीछे-पीछे चल पड़े।

तीनों नंदी के साथ आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत के पास स्थित विवाह स्थल पर पहुंच गये।

माया ने कैलाश के पास ही विवाह के मंडप स्थल का निर्माण किया था।

केले के पत्ते और सुगंधित फूलों से सजा विशाल मंडप बहुत ही आकर्षक लग रहा था।

विवाह स्थल के बाहर 2 हाथी, हर आने वाले पर, अपनी सूंढ़ से सुगंधित इत्र का छिड़काव कर रहे थे।

अंदर कुछ सफेद अश्व अपने पैरों में घुंघरु बांधकर, अपने पैरों को जोर-जोर आगे-पीछे कर, नृत्य कर रहे थे।

एक स्थान पर कुछ व्यक्ति रंगीन वस्त्र पहने शहनाई बजा रहे थे।

महानदेव और हनुरमान को विवाह स्थल पर प्रवेश करते देख, कुछ स्त्रियां उनके पैरों के आगे फूल बिछाकर रास्ता बनाने लगीं।

कुछ आगे जाने पर एक छोटा सा सरोवर दिखाई दिया, जिसमें नीले रंग का शुद्ध जल भरा हुआ था और उस जल में कुछ हंस कलरव कर रहे थे, हंस के आसपास सुर्ख लाल रंग की नन्हीं मछलियां, पानी में उछल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहीं थीं।

एक स्थान पर, हरी घास पर मोर अपने पंख फैलाकर नृत्य कर रहे थे, कुछ रंग-बिरंगी छोटी चिड़ियां अपने मीठे कंठ से सुरम्य आवाज कर, मोर को उत्साहित कर रहीं थीं।

कुल मिलाकर वहां का वातावरण इतना खूबसूरत था कि उसे शब्दों में व्यक्त करना ही मुश्किल हो रहा था।

कुछ आगे बढ़ने पर एक विशाल मंडप बना था, जिसके एक किनारे पर एक विशाल सिंहासन पर माया व नीलाभ आसीन थे।

इंद्रधनुष के रंगों में रंगा मंडप, एक अद्भुत छटा बिखेर रहा था।

सिंहासन के पीछे कुछ थालियों में, विभिन्न प्रकार के रंग रखे हुए थे, जिसे तितलियां अपने शरीर पर लगाकर उड़-उड़कर, सभी के चेहरे पर मल रहीं थीं।

एक ओर से आ रही मीठे पकवानों की सुगंध लोगों की भूख बढ़ा रही थी।

बहुत से देवी-देवता, गंधर्व, अप्सराएं इधर-उधर विचर रहे थे।

..देव को देख सभी अपने स्थान से खड़े हो गये, परंतु सबकी निगाहें उनसे भी ज्यादा,..मान की गोद में पकड़े बच्चे की ओर थी।

“क्या हनु… ने विवाह कर लिया? क्या ये उनका पुत्र है? ये तो ब्रह्मचारी थे।”

कुछ दबी-दबी सी आवाजें हनु…. के कानों में पड़ीं।

इन चुभती निगाहों और इन कटाक्ष भरे शब्दों से, उनको को अपनी शक्ति क्षीण होती महसूस हो रही थी। वो तो अब कैसे भी इस बालक से छुटकारा चाहते थे?

देव आगे बढ़कर नीलाभ व माया के पास जा पहुंचे। नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर देव के चरण स्पर्श किये।

उन्होंने दोनों को आशीर्वाद देते हुए नंदी की ओर इशारा किया।

नंदी ने इशारा समझ अपने हाथ में पकड़े, एक सुनहरे रंग से लिपटी भेंट को, माया की ओर बढ़ा दिया।

माया ने देव की भेंट को अपने मस्तक से छूकर, सिंहासन के पीछे खड़ी एक सेविका के सुपुर्द कर दिया।

देव अब थोड़ा पीछे हट गये और उन्होंने हनुरमान को आगे बढ़ने का इशारा किया।

हनुरमान आगे तो बढ़ गये, पर उन्हें कुछ समझ नहीं आया? नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर हनुरमान के भी चरण स्पर्श किये।

उन्होंने ना समझने वाले भाव से महानदेव की ओर देखा।

उन्हें अपनी ओर देखते देख देव बोल उठे- “सोच क्या रहे हो? आशीर्वाद दो माया को।”

देव की बात सुन, उन्होंने अपनी गोद में पकड़ा वह नन्हा यति माया को पकड़ा दिया।

माया ने उस नन्हें बालक को देखा, पर उन्हें कुछ समझ में नहीं आया?

“ये क्या प्रभु? मैं कुछ समझी नहीं?” माया ने पहले हनुरमान को देखा और फिर..देव की ओर।

“इसमें ना समझने वाली कौन सी बात है? अरे....ये हनुरमान का आशीर्वाद है।” देव ने मुस्कुराते हुए कहा।

माया समझ गयी कि यह देवों की कोई लीला है, इसलिये उसने नन्हें यति को अपने माथे से लगाया और उसे निहारने लगी।

नन्हा यति अपनी आँखें टिप-टिप कर माया को देख रहा था। उसने माया की उंगली जोर से पकड़ ली और बोला- “माँ”

बस इस एक शब्द में ही पता नहीं कौन सा जादू था कि माया ने उस नन्हें से यति को गले से लगा लिया।
माया की आँखों से स्वतः ही अविरल अश्रु की धारा बहने लगी, अचानक ही उसके अंदर ममता का सागर कुलाँचे मारने लगा।

हनुरमान इस ममता मई दृश्य को बिना पलक झपकाये निहार रहे थे।

कुछ देर बाद जब माया को याद आया कि वह कहां खड़ी है, तो उसने वापस हनुरमान की ओर देखा।

उन्होंने अपने हाथ आगे कर माया
को आशीर्वाद दिया।

“बड़ा ही अद्भुत बालक है। वैसे इसका नाम क्या है?” माया ने हनुरमान की ओर देखते हुए पूछा।

“अब आप इसकी माता हैं...आप स्वयं इसका नामकरण करिये।” उन्होंने भोलेपन से माया को जवाब दिया।

माया ने कुछ देर सोचा और फिर बोल उठी- “चूंकि ये ‘हनु’ का आशीर्वाद है, इसलिये आज से इसका नाम ‘हनुका’ होगा।”

हनुरमान की इस अद्भुत भेंट पर, सभी देवता हर्षातिरेक से हनु... का जयकारा लगाने लगे।

हनु... भी खुश हो गये क्यों कि इस नन्हें यति के लिये, इससे अच्छी माँ नहीं मिल सकती थी।

तभी माया को हनु.. के पीछे से झांकते हुए गणे..mश दिखाई दिये।

माया ने बालक गणे… को आगे आने का इशारा किया।

जब वो आगे आ गये तो माया ने धीरे से उनके कान में कहा-“आपने तो कहा था कि मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी, पर मुझे तो शादी के दिन ही पुत्र प्राप्त हो गया...अब क्या कहते हो?”

“ईश्वर की माया, ईश्वर ही जाने...।” गणे.. ने मुस्कुरा कर कहा, और अपना बड़ा सा कान छुड़ाकर उस ओर चल दिया, जिधर ढेर सारे मोदक रखे हुए दिखाई दे रहे थे।

माया को कुछ समझ नहीं आया, उसने एक बार फिर हनुका की ओर देखा और धीरे से उसके मस्तक को चूम लिया।



जारी रहेगा_________✍️
Shandaar update❤❤
 

Dhakad boy

Active Member
1,372
2,358
143
#147.

बाल हनुका:
(20,010 वर्ष पहले.......प्रातः काल, गंधमादन पर्वत, हिमालय)

हिमालय पर कैलाश पर्वत से कुछ ही दूरी पर स्थित है- ‘गंधमादन पर्वत’। देवताओं का वह स्थान जहां वह साधना करते थे।

प्रातः काल का समय था, चारो ओर स्वच्छ, स्निग्ध, श्वेत हिमखंड फैले हुए थे। बहुत ही पवित्र वातावरण था।

मंद-मंद वायु बह रही थी। ऐसे में एक विशाल पहाड़ के नीचे, नन्हा यति बर्फ में लोट-लोट कर खेल रहा था।

उस नन्हें यति की आयु xx वर्ष की भी नहीं लग रही थी। वह दूध पीने वाला अबोध बालक लग रहा था।

उसके माता-पिता कुछ ही दूरी पर बैठे, अपने नन्हें बालक को खेलते हुए निहार रहे थे।

नन्हा यति कभी-कभी बर्फ के गोले बनाकर अपने माता-पिता पर भी फेंक दे रहा था।

एका एक उस नन्हें यति को हवा में बह रही एक ध्वनि सुनाई दी-
“राऽऽमऽऽऽऽऽऽ राऽऽमऽऽऽऽऽऽऽ” अब वह खेलना छोड़, अपने कान खड़े करके, उस ध्वनि पर ध्यान
देने लगा।

उसे वह ध्वनि सामने उपस्थित, एक बर्फ के टीले से आती सुनाई दी।

नन्हें यति ने कुछ देर तक उस आवाज को सुना और फिर पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा।

उसके माता-पिता आपस में कुछ बातें कर रहे थे, यह देख नन्हा यति घुटनों के बल, उस बर्फ के टीले की ओर बढ़ने लगा।

जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, ‘रा..’ नाम की गूंज तेज होती जा रही थी। नन्हें यति ने उस टीले को अपने हाथ से छूकर देखा, पर उसे कुछ समझ नहीं आया।

तभी अचानक पहाड़ से, एक बर्फ की भारी चट्टान, उस नन्हें यति के माता-पिता पर जा गिरी।

चट्टान के गिरने की भीषण आवाज ने, नन्हें यति को बुरी तरह से डरा दिया।

नन्हें यति ने पलटकर अपने माता-पिता की ओर देखा। दोनों ही उस चट्टान के नीचे बुरी तरह से कुचल गये थे।

नन्हा यति टीले से आ रही आवाज को छोड़, घुटनों के बल चलता, अपने माता-पिता की ओर भागा।

टीले के नीचे से खून से लथपथ उसकी माँ का हाथ नजर आ रहा था। नन्हें यति ने रोते हुए अपने नन्हें हाथों से चट्टान को हटाने की कोशिश की, पर वह सफल नहीं हो पाया।

अब नन्हा यति जोर-जोर से बिलख रहा था। उसके बिलखने की आवाज बहुत ही करुणा दायक थी।

तभी रा.. नाम की ध्वनि बंद हो गई और उस टीले में हरकत होने लगी।

कुछ ही क्षणों में टीले की सारी बर्फ नीचे गिरी पड़ी थी और उसके स्थान पर पवन पुत्र हनु.. नजर आने लगे। उनकी निगाह, बिलख रहे उस नन्हें यति पर गई।

उनसे उसका बिलखना देखा नहीं गया। वह सधे कदमों से उस नन्हें यति के पास आ गये।

एक क्षण में ही उनकी तीक्ष्ण निगाहों ने, बर्फ के नीचे दबे उस नन्हें यति के माता-पिता को देख लिया था।

उन्होंने एक हाथ से ही उस चट्टान को उठा कर दूर फेंक दिया। चट्टान के हटते ही नन्हा यति, अपनी माँ के निर्जीव शरीर से जा चिपका।

उन्होंने उस नन्हें यति को अपनी गोद में उठा लिया।

किसी के शरीर का स्पर्श पाते ही नन्हा यति चुप हो गया, परंतु वह अब भी सिसकियां ले रहा था।

उन्होंने नन्हें यति के माता-पिता के निर्जीव शरीर की ओर देखा। उन्की आँखों से किरणें निकलीं और दोनों यति के पार्थिव शरीर, कणों में बदलकर बर्फ में समा गये।

अब वो उस नन्हें यति को लेकर बर्फ पर अकेले खड़े थे।

“हे प्रभु, यह कैसी माया है....इतने नन्हें बालक से उसका सहारा छीन लिया....अब मैं इस बालक का क्या करुं?... इसे यहां छोड़कर भी नहीं जा सकता और इसे लेकर भी कहां जाऊं?....मैं तो ब्रह्मचारी हूं और
सदैव साधना में रत रहता हूं....फिर इस बालक की देखभाल कैसे कर पाऊंगा? मुझे मार्ग दिखाइये प्रभु।”

ह…मान मन ही मन बड़बड़ा रहे थे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? आज तक पूरी
जिंदगी में उन्हों ने कभी इस प्रकार की परिस्थिति का सामना नहीं किया था।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। अब तो और विकट स्थिति खड़ी हो गई थी।

उन्हे उसे चुप कराना भी नहीं आ रहा था। वह कभी उसे गोद में लेकर हिलाते, तो कभी उसे हवा में उछालते....पर इस समस्या का समाधान उनके पास नहीं था।

नन्हा यति चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

“लगता है कि इसे भूख लगी है.... पर...पर मैं इसे खिलाऊं क्या?” वो बहुत ही असमंजस में थे।

उन्होंने अब नन्हें यति को जमीन पर बैठा दिया और अपनी शक्तियों से उसके सामने हजारों प्रकार के विचित्र फल और खाद्य पदार्थ रख दिया, पर उस नन्हें यति ने उन सभी पदार्थों की ओर देखा तक नहीं।

कुछ ना समझ में आता देख ..मान उस नन्हें यति के सामने नाचने लगे।
उनका विचित्र नृत्य देखकर, नन्हा यति चुप हो गया।

यह देख खुशी के मारे हनु..और जोर से नाचने लगे। नन्हा यति अपनी पलकें झपका कर उनके उस विचित्र नृत्य का आनंद उठा रहा था।

धीरे-धीरे काफी समय बीत गया, पर हनु.. जैसे ही रुकते थे, वह नन्हा यति फिर से रोने लगता था।

अब वह नन्हा यति उनके लिये, एक मुसीबत बन गया था, तभी एक आवाज वातावरण में गूंजी-

“अपनी इस कला का प्रदर्शन तो तुमने कभी किया ही नहीं हनु…? हम तो आश्चर्यचकित रह गये तुम्हारी इस विद्या को देखकर।”

उन्होंने आश्चर्य से पीछे पलटकर देखा।

पीछे नंदी संग म..देव खड़े थे।
नंदी को घूरता देख ह..मान एक पल को अचकचा से गये, फिर उन्होंने देव को प्रणाम किया।

“हे..देव...अब आप ही बचाइये मुझे इस बालक से।” उन्होंने महानदेव के पैर पकड़ लिये- “पिछले एक घंटे से यह बालक मुझे नचा रहा है।”

“तुमने कभी गृहस्थ आश्रम का आनंद नहीं उठाया है ना, इसलिये तुम इस क्षण की महत्वता नहीं समझ सकते।”😁 ..देव ने उन्हें उठाते हुए कहा।

“मैं समझना भी नहीं चाहता प्रभु... बहुत अच्छा हुआ कि मैं ब्रह्मचारी हूं...इस क्षण की महत्वता को मैंने 1 घंटे में जी लिया... :pray: अब आप मुझे इससे छुटकारा दिलाइये प्रभु।” वो तो ..देव को छोड़ ही नहीं रहे थे।

तभी उस नन्हें यति ने फिर से रोना शुरु कर दिया। यह देख वो और भी डर गये।

उन्होंने गुस्से से नंदी की ओर देखते हुए कहा- “देख क्या रहे हो? इसे चुप क्यों नहीं कराते।”

“मैं!....म....म...मुझे भी नहीं आता बालकों को चुप कराना।” यह कहकर नंदी भी भागकर ..देव के पीछे छिप गया।

“मैं और नंदी, नीलाभ और माया के विवाह में जा रहें हैं, हमारे साथ तुम भी चलो। क्या पता वहां पर तुम्हें इससे छुटकारा पाने का कोई हल मिल ही जाये?” उन्होंने मुस्कुराते हुए हनु.. से कहा।

“मैं चलूंगा....आप जहां कहेंगे, वहां चलूंगा।” इतना कह उन्होंने नन्हें यति को गोद में उठाया और ..देव के पीछे-पीछे चल पड़े।

तीनों नंदी के साथ आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत के पास स्थित विवाह स्थल पर पहुंच गये।

माया ने कैलाश के पास ही विवाह के मंडप स्थल का निर्माण किया था।

केले के पत्ते और सुगंधित फूलों से सजा विशाल मंडप बहुत ही आकर्षक लग रहा था।

विवाह स्थल के बाहर 2 हाथी, हर आने वाले पर, अपनी सूंढ़ से सुगंधित इत्र का छिड़काव कर रहे थे।

अंदर कुछ सफेद अश्व अपने पैरों में घुंघरु बांधकर, अपने पैरों को जोर-जोर आगे-पीछे कर, नृत्य कर रहे थे।

एक स्थान पर कुछ व्यक्ति रंगीन वस्त्र पहने शहनाई बजा रहे थे।

महानदेव और हनुरमान को विवाह स्थल पर प्रवेश करते देख, कुछ स्त्रियां उनके पैरों के आगे फूल बिछाकर रास्ता बनाने लगीं।

कुछ आगे जाने पर एक छोटा सा सरोवर दिखाई दिया, जिसमें नीले रंग का शुद्ध जल भरा हुआ था और उस जल में कुछ हंस कलरव कर रहे थे, हंस के आसपास सुर्ख लाल रंग की नन्हीं मछलियां, पानी में उछल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहीं थीं।

एक स्थान पर, हरी घास पर मोर अपने पंख फैलाकर नृत्य कर रहे थे, कुछ रंग-बिरंगी छोटी चिड़ियां अपने मीठे कंठ से सुरम्य आवाज कर, मोर को उत्साहित कर रहीं थीं।

कुल मिलाकर वहां का वातावरण इतना खूबसूरत था कि उसे शब्दों में व्यक्त करना ही मुश्किल हो रहा था।

कुछ आगे बढ़ने पर एक विशाल मंडप बना था, जिसके एक किनारे पर एक विशाल सिंहासन पर माया व नीलाभ आसीन थे।

इंद्रधनुष के रंगों में रंगा मंडप, एक अद्भुत छटा बिखेर रहा था।

सिंहासन के पीछे कुछ थालियों में, विभिन्न प्रकार के रंग रखे हुए थे, जिसे तितलियां अपने शरीर पर लगाकर उड़-उड़कर, सभी के चेहरे पर मल रहीं थीं।

एक ओर से आ रही मीठे पकवानों की सुगंध लोगों की भूख बढ़ा रही थी।

बहुत से देवी-देवता, गंधर्व, अप्सराएं इधर-उधर विचर रहे थे।

..देव को देख सभी अपने स्थान से खड़े हो गये, परंतु सबकी निगाहें उनसे भी ज्यादा,..मान की गोद में पकड़े बच्चे की ओर थी।

“क्या हनु… ने विवाह कर लिया? क्या ये उनका पुत्र है? ये तो ब्रह्मचारी थे।”

कुछ दबी-दबी सी आवाजें हनु…. के कानों में पड़ीं।

इन चुभती निगाहों और इन कटाक्ष भरे शब्दों से, उनको को अपनी शक्ति क्षीण होती महसूस हो रही थी। वो तो अब कैसे भी इस बालक से छुटकारा चाहते थे?

देव आगे बढ़कर नीलाभ व माया के पास जा पहुंचे। नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर देव के चरण स्पर्श किये।

उन्होंने दोनों को आशीर्वाद देते हुए नंदी की ओर इशारा किया।

नंदी ने इशारा समझ अपने हाथ में पकड़े, एक सुनहरे रंग से लिपटी भेंट को, माया की ओर बढ़ा दिया।

माया ने देव की भेंट को अपने मस्तक से छूकर, सिंहासन के पीछे खड़ी एक सेविका के सुपुर्द कर दिया।

देव अब थोड़ा पीछे हट गये और उन्होंने हनुरमान को आगे बढ़ने का इशारा किया।

हनुरमान आगे तो बढ़ गये, पर उन्हें कुछ समझ नहीं आया? नीलाभ और माया ने आगे बढ़कर हनुरमान के भी चरण स्पर्श किये।

उन्होंने ना समझने वाले भाव से महानदेव की ओर देखा।

उन्हें अपनी ओर देखते देख देव बोल उठे- “सोच क्या रहे हो? आशीर्वाद दो माया को।”

देव की बात सुन, उन्होंने अपनी गोद में पकड़ा वह नन्हा यति माया को पकड़ा दिया।

माया ने उस नन्हें बालक को देखा, पर उन्हें कुछ समझ में नहीं आया?

“ये क्या प्रभु? मैं कुछ समझी नहीं?” माया ने पहले हनुरमान को देखा और फिर..देव की ओर।

“इसमें ना समझने वाली कौन सी बात है? अरे....ये हनुरमान का आशीर्वाद है।” देव ने मुस्कुराते हुए कहा।

माया समझ गयी कि यह देवों की कोई लीला है, इसलिये उसने नन्हें यति को अपने माथे से लगाया और उसे निहारने लगी।

नन्हा यति अपनी आँखें टिप-टिप कर माया को देख रहा था। उसने माया की उंगली जोर से पकड़ ली और बोला- “माँ”

बस इस एक शब्द में ही पता नहीं कौन सा जादू था कि माया ने उस नन्हें से यति को गले से लगा लिया।
माया की आँखों से स्वतः ही अविरल अश्रु की धारा बहने लगी, अचानक ही उसके अंदर ममता का सागर कुलाँचे मारने लगा।

हनुरमान इस ममता मई दृश्य को बिना पलक झपकाये निहार रहे थे।

कुछ देर बाद जब माया को याद आया कि वह कहां खड़ी है, तो उसने वापस हनुरमान की ओर देखा।

उन्होंने अपने हाथ आगे कर माया
को आशीर्वाद दिया।

“बड़ा ही अद्भुत बालक है। वैसे इसका नाम क्या है?” माया ने हनुरमान की ओर देखते हुए पूछा।

“अब आप इसकी माता हैं...आप स्वयं इसका नामकरण करिये।” उन्होंने भोलेपन से माया को जवाब दिया।

माया ने कुछ देर सोचा और फिर बोल उठी- “चूंकि ये ‘हनु’ का आशीर्वाद है, इसलिये आज से इसका नाम ‘हनुका’ होगा।”

हनुरमान की इस अद्भुत भेंट पर, सभी देवता हर्षातिरेक से हनु... का जयकारा लगाने लगे।

हनु... भी खुश हो गये क्यों कि इस नन्हें यति के लिये, इससे अच्छी माँ नहीं मिल सकती थी।

तभी माया को हनु.. के पीछे से झांकते हुए गणे..mश दिखाई दिये।

माया ने बालक गणे… को आगे आने का इशारा किया।

जब वो आगे आ गये तो माया ने धीरे से उनके कान में कहा-“आपने तो कहा था कि मुझे पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी, पर मुझे तो शादी के दिन ही पुत्र प्राप्त हो गया...अब क्या कहते हो?”

“ईश्वर की माया, ईश्वर ही जाने...।” गणे.. ने मुस्कुरा कर कहा, और अपना बड़ा सा कान छुड़ाकर उस ओर चल दिया, जिधर ढेर सारे मोदक रखे हुए दिखाई दे रहे थे।

माया को कुछ समझ नहीं आया, उसने एक बार फिर हनुका की ओर देखा और धीरे से उसके मस्तक को चूम लिया।



जारी रहेगा_________✍️
Bhut hi badhiya update Bhai
To hanuka ko swayam hanum.. ne maya ko diya tha
 
Top