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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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माँ और कच्ची अमिया



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मैंने गर्दन जरा सा नीचे की तो मेरी दोनों अनावृत्त गोलाइयां, चांदनी सावन में मेरे जोबन से होली खेल रही थी।


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उनका उभार कड़ापन और साथ ही साथ सुनील की शैतानियां भी, हर बार वो ऐसी जगह अपने निशान छोड़ता था, दांतो के, नाखूनों के की, मैं चाहे जितना ढकना छिपाना चाहूँ,वो नजर आ ही जाते थे। फिर तो मेरी सहेलियों को भाभियों को छेड़ने का वो मौका मिल जाता था की, और आज तो उसके साथ-साथ उसने निपल के चारों और दांतों की माला पहना दी थी, ऊपर से कस-कस के खरोंचे गए नाखून के निशान।



मेरी निगाहों का पीछा करते माँ की निगाहें भी उन निशानों पर पहुँच गई, और वो बोल उठीं-

“ये लड़के भी न बस… कच्ची अमिया मिल जाए देख कैसे कुतर-कुतर के…”

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और जैसे कोई घावों पर मरहम लगाए, पहले तो उनकी उंगलियों की टिप, फिर होंठ अब सीधे जहां-जहां लड़कों के दांत के नाखून के निशान मेरे कच्चे उभारों पर थे, बस हल्के-हल्के सहलाना, चूमना, चाटना।

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और साथ में वो बहुत हल्के-हल्के बुदबुदा रही थीं, जैसे खुद से बोल रही हों-

“अरे लड़कों को क्यों दोष दूँ, जिस दिन तू आई थी पहले पहल उसी दिन मेरा मन भी इस कच्ची अमिया को देखकर ललचा गया था, आज मौका मिला है रस लेने का…”

और फिर तो जैसे कोई सालों का भूखा मिठाई की थाली पर टूट पड़े, मेरे निपल उनके मुँह के अंदर, दोनों हाथ मेरे कच्चे टिकोरों पर, जिस तरह से वो रगड़ मसल रही थीं, चूस रही थीं, चूम रहीं थी, मैंने सरेंडर कर दिया।

मैं सिर्फ और सिर्फ मजे ले रही थी।

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लेकिन असर मेरी सहेली पर, मेरी दोनों मस्ती में फैली खुली जाँघों के बीच मेरी चिकनी गुलाबो पर पड़ा और वो भी पनियाने लगी।
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और मेरी निगाह राकी से टकरा गई, एकदम पास ही तो नीम के पेड़ से बंधा खड़ा था वो। उसकी निगाहें मेरी गुलाबो से, पनियाती गीली मेरी कुँवारी सहेली से चिपकी थीं। लेकिन उसके बाद जो मैंने देखा तो मैं घबरा गई, उसका शिष्न खड़ा हो रहा था, एकदम कड़ा हो गया था, लाल रंग का लिपस्टिक सा उसका अगला भाग बाहर निकल रहा था, तो क्या मतलब वो भी मेरी गीली पनियाई खुली चूत को देखकर गरमा रहा है, उसका मन कर रहा है मुझे,



लेकिन मेरी चूत ये देखकर और फड़फड़ाने लगी जैसे उसका भी वही मन कर रहा हो जो राकी के खूँटे का कर रहा हो। गनीमत थी, माँ हम दोनों का नैन मटक्का नहीं देख रही थी, वो तो बस मेरी कच्ची अमिया का स्वाद लेने में जुटी थीं।

लेकिन तभी रसोई से गुलबिया निकली, उसके एक हाथ में तसला था राकी के लिए, दूध रोटी, और दूसरे हाथ में बोतल और कुछ खाने पीने का सामान था। बोतल तो मैंने झट से पहचान ली देसी थी, एक बार सुनील और चन्दा ने मिल के मुझे जबरदस्ती पिलाई थी, दो चार घूँट में मेरी ऐसी की तैसी हो गई थी।

और गुलबिया ने मुझे राकी का ‘वो’ देखते देख लिया।



पास आके सब समान आँगन में रख के मेरे और माँ के पास धम्म से वो बैठ गई और मेरा गाल मींजते बोली-

“बहुत मन कर रहा है न तेरा उसका घोंटने का, अरे दोपहर को तेरी भाभी बीच में आ गई वरना उसी समय मैं तो तुम दोनों की गाँठ जुड़वा देती…”

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गुलबिया की बात सुन के पल भर के लिए मेरे कच्चे टिकोरों पर से मां ने मुँह हटा लिया और गुलबिया को थोड़ा झिड़कते बोलीं-

“बहुत बोलती है तू, अरे जो बात बीत गई, बीत गई। अब तो और कोई नहीं है न और पूरी रात है…आज कर लो जो भी करना है इस कच्ची कली के साथ, मैं कुछ भी नहीं बरजुंगी, छोटी ननद है तेरी भावज हो तुम,... ऐसी काली अंधेरी रात मन पूरा करने के लिए ही तो है,... ”

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बिना उनकी बात के खत्म होने का इन्तजार किये गुलबिया ने सब कुछ साफ कर दिया-

“चल अब मैं हूँ तो फिर तोहार और राकी के मन क कुल पियास बुझा दूंगी, घबड़ा मत। दर्द बहुत होगा लेकिन सीधे से नहीं तो जबरदस्ती…”



मेरी निगाह आंगन के बंद दरवाजे पे और उस पे लटके मोटे ताले पर चिपकी थी।
 

komaalrani

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गुलबिया

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लेकिन तबतक गुलबिया ने मुझसे कहा-

“सुन, अरे राकी के मोटे लण्ड से चुदवाना है न, तो पहले जरा उसको खिला पिला दे, ताकत हो जायेगी तो रात भर इसी आँगन में तुझे रगड़-रगड़ के चोदेगा, ले खिला दे उसको…”

और तसला मेरी ओर सरकाया।

लेकिन माँ अभी भी मेरी कच्ची अमिया का रस ले रही थी और मुझे छोड़ना नहीं चाहती थी।


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उन्होंने गुलबिया को बोल दिया-

“अरे आज तू ही खिला पिला के तैयार कर राकी को, तेरी भी तो ननद है, तेरी भी तो जिम्मेदारी है। अभी तू खिला दे, कल से ये राकी को देगी, रोज देगी, बिना नागा और कोई बीच में आयेगा तो मैं हूँ न…”

गुलबिया ने तसला राकी के सामने कर दिया और बोतल खोलते हुए माँ से पूछा-

“थोड़ा इस कच्ची अमिया को भी चखा दूँ?

माँ ने बोतल उसके हाथ से छीन ली और एकदम मना कर दिया-

“अभी उसकी ये सब पीने की उम्र है क्या? चल मुझे दे…”

फिर आँख मार के मुझसे बोलीं- “आज तो तुझे भूखा पियासा रखूंगी, तूने मुझे बहुत दिन पियासा रखा है…” फिर मुश्कुरा के बोलीं- “घबड़ा मत मिलेगा तुझे भी, लेकिन हम दोनों के देह से, खाने पीने का सब कुछ…”


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और जैसे अपनी बात को समझाते हुए उन्होंने बोतल से एक बड़ी सी घूँट भरी और मुझे एक बार फिर बाँहों में भींच लिया।

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उनके होंठ मेरे होंठ से चिपक गए, फिर तो जीतनी दारू उनके पेट में गई होगी उससे ज्यादा मेरे पेट में, उनकी जीभ मेरे मुँह में तब तक घुसी रही, जब तक मैंने सब घोंट न लीं।
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बोतल अब गुलबिया के हाथ में थी और वो गटक रही थी।

“अरे तनी इसके यार को भी पिला दो न, जोश में रहेगा तो और हचक-हचक के…” माँ ने गुलबिया को समझाया।


और गुलबिया ने घल-घल एक तिहाई बोतल राकी के तसले में खाली कर दी।

“सही बोल रही हैं, जितने लण्ड वाले हैं सब एकर यार हैं…” गुलबिया हँस के बोली


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और फिर बोतल उसके मुँह में थी, लेकिन एक बार फिर उसके मुँह से वो मेरे मुँह में।



थोड़ी देर में जितनी देसी गुलबिया और माँ ने गटकी थी, उसके बराबर मेरे पेट में चली गई थी। मस्ती से हालत खराब थी मेरी।


शायद दारू का नशा चढ़ गया था या फिर बस…

माँ एक बार फिर मेरे कच्ची अमियों का स्वाद लेने में जुट गई थीं। बोतल अब गुलबिया के हाथ में थी। एक घूँट लेकर वो मुझे उकसाते बोली- “अरे एतना मस्त खड़ा हो, तानी सोहरावा, पकड़ के मुठियावा, बहुत मजा आई…” और जब तक मैं कुछ बोलती, उसने मेरे कोमल कोमल हाथों को पकड़ के जबरदस्ती राकी के।

राकी तसले में खा रहा था, गुलबिया ने फिर थोड़ी और दारू उसके तसले में डाल दी। फिर सीधे बोतल अबकी मेरे मुँह में लगा दी।

गुलबिया का हाथ कब का मेरे हाथ से दूर हो गया था, लेकिन मैं प्यार से राकी का हल्के-हल्के सोहरा रही थी, फिर मुठियाने लगी।

तबतक माँ ने मुँह मेरी देह से हटाया और मुझे देखने लगीं। शर्मा के, जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो, मैंने अपना हाथ झट से हटा लिया। लेकिन देख तो उन्होंने लिया ही था। बस वो मुश्कुराने लगी, लेकिन उनकी निगाहें कुछ और ढूँढ़ रही थी, बोतल।

पर वो तो खाली हो चुकी थी। कुछ गुलबिया ने पी, कुछ उसने राकी के तसले में ढाल दी और बाकी मैं गटक गई थी।

“ला रही हूँ अभी…” उनकी बात समझती गुलबिया बोली, और राकी के खाली तसले, खाली बोतल को ले के अंदर चली गई।

माँ ने मेरी देह के बोतल पर ही ध्यान लगाया और बोलीं भी-

“तेरी देह में तो 100 बोतल से भी ज्यादा नशा है, पता नहीं कैसे आई जवानी शहर में बचा के अब तक रखी हो?”

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और अबकी हम दोनों एक दूसरे से गुंथ गए। उनके हाथ होंठ सब कुछ, वो चूस रही थीं, चाट रही थीं, कचकचा के काट रहीं थी, एकदम नो होल्ड्स बार्ड,

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गुलबिया एक हाथ में बोतल और दूसरे में कुछ खाने का सामान लेकर निकली, और मेरी हालत देखकर उसने पाला बदल लिया- “हे हमार ननद के अकेली जान के, अबहीं हम ननद भौजाई मिल के तोहार…”



माँ ने बस मुश्कुरा के गुलबिया की ओर देखा जैसे कह रही हों, आ जा छिनार तुझको भी गटक जाऊँगी आज।



बोतल और खाने का सामान जमीन पर रखकर, अपनी मजबूत कलाइयों से माँ के दोनों हाथ कस के जकड़ती मुझसे वो बोली-


“चल पहले नंगी कर इनको, फिर हम दोनों मिल के इनको झड़ाते हैं। आज समझ में आयेगा इन्हें ननद भौजाई की जोड़ी का मजा…”

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मेरी तो खुशी दूनी हो गई, साड़ी तो उनकी वैसे ही लथरपथर हो गई थी, आसानी से मैंने खींच के उतार दी, फिर पेटीकोट पर मैंने हाथ लगाया, और ब्लाउज गुलबिया के हिस्से में आया। लेकिन जो उनका हाथ छूटा तो गुलबिया भी नहीं बची। साड़ी तो उसकी मैंने पहले ही आते ही घर में उतार के खुद पहन ली थी, ब्लाउज पेटीकोट बचा था वो भी माँ और उसकी कुश्ती में खेत रहा।



अब हम तीनों एक जैसे थे।



“तू नीचे की मंजिल सम्हाल, ऊपर की मंजिल पर मैं चढ़ाई करती हूँ…”

गुलबिया ने मुझसे बोला और माँ के सम्हलने के पहले उनके दोनों उभार गुलबिया के हाथों। क्या जबरदस्त उसने रगड़ाई मसलाई शुरू की, और फायदा मेरा हो गया।

मैं झट से उनकी खुली जांघों के बीच आ गई। झांटें थी लेकिन थोड़ी-थोड़ी, मेरे होंठ तो सीधे टारगेट पर पहुँच जाते लेकिन गुलबिया ने मुझे बरज दिया। फुसफुसाते हुए वो बोली- “अरे इतनी जल्दी काहे को है, थोड़ा तड़पा तरसा…”

मैं नौसिखिया थी लेकिन इतनी भी नहीं। कन्या रस के ढेर सारे गुर कामिनी भाभी और बसन्ती ने सिखाये थे।
 

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गुलबिया

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लेकिन तबतक गुलबिया ने मुझसे कहा-

“सुन, अरे राकी के मोटे लण्ड से चुदवाना है न, तो पहले जरा उसको खिला पिला दे, ताकत हो जायेगी तो रात भर इसी आँगन में तुझे रगड़-रगड़ के चोदेगा, ले खिला दे उसको…”

और तसला मेरी ओर सरकाया।

लेकिन माँ अभी भी मेरी कच्ची अमिया का रस ले रही थी और मुझे छोड़ना नहीं चाहती थी।


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उन्होंने गुलबिया को बोल दिया-

“अरे आज तू ही खिला पिला के तैयार कर राकी को, तेरी भी तो ननद है, तेरी भी तो जिम्मेदारी है। अभी तू खिला दे, कल से ये राकी को देगी, रोज देगी, बिना नागा और कोई बीच में आयेगा तो मैं हूँ न…”

गुलबिया ने तसला राकी के सामने कर दिया और बोतल खोलते हुए माँ से पूछा-

“थोड़ा इस कच्ची अमिया को भी चखा दूँ?

माँ ने बोतल उसके हाथ से छीन ली और एकदम मना कर दिया-

“अभी उसकी ये सब पीने की उम्र है क्या? चल मुझे दे…”

फिर आँख मार के मुझसे बोलीं- “आज तो तुझे भूखा पियासा रखूंगी, तूने मुझे बहुत दिन पियासा रखा है…” फिर मुश्कुरा के बोलीं- “घबड़ा मत मिलेगा तुझे भी, लेकिन हम दोनों के देह से, खाने पीने का सब कुछ…”


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और जैसे अपनी बात को समझाते हुए उन्होंने बोतल से एक बड़ी सी घूँट भरी और मुझे एक बार फिर बाँहों में भींच लिया।

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उनके होंठ मेरे होंठ से चिपक गए, फिर तो जीतनी दारू उनके पेट में गई होगी उससे ज्यादा मेरे पेट में, उनकी जीभ मेरे मुँह में तब तक घुसी रही, जब तक मैंने सब घोंट न लीं।
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बोतल अब गुलबिया के हाथ में थी और वो गटक रही थी।

“अरे तनी इसके यार को भी पिला दो न, जोश में रहेगा तो और हचक-हचक के…” माँ ने गुलबिया को समझाया।


और गुलबिया ने घल-घल एक तिहाई बोतल राकी के तसले में खाली कर दी।

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और फिर बोतल उसके मुँह में थी, लेकिन एक बार फिर उसके मुँह से वो मेरे मुँह में।



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शायद दारू का नशा चढ़ गया था या फिर बस…

माँ एक बार फिर मेरे कच्ची अमियों का स्वाद लेने में जुट गई थीं। बोतल अब गुलबिया के हाथ में थी। एक घूँट लेकर वो मुझे उकसाते बोली- “अरे एतना मस्त खड़ा हो, तानी सोहरावा, पकड़ के मुठियावा, बहुत मजा आई…” और जब तक मैं कुछ बोलती, उसने मेरे कोमल कोमल हाथों को पकड़ के जबरदस्ती राकी के।

राकी तसले में खा रहा था, गुलबिया ने फिर थोड़ी और दारू उसके तसले में डाल दी। फिर सीधे बोतल अबकी मेरे मुँह में लगा दी।

गुलबिया का हाथ कब का मेरे हाथ से दूर हो गया था, लेकिन मैं प्यार से राकी का हल्के-हल्के सोहरा रही थी, फिर मुठियाने लगी।

तबतक माँ ने मुँह मेरी देह से हटाया और मुझे देखने लगीं। शर्मा के, जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो, मैंने अपना हाथ झट से हटा लिया। लेकिन देख तो उन्होंने लिया ही था। बस वो मुश्कुराने लगी, लेकिन उनकी निगाहें कुछ और ढूँढ़ रही थी, बोतल।

पर वो तो खाली हो चुकी थी। कुछ गुलबिया ने पी, कुछ उसने राकी के तसले में ढाल दी और बाकी मैं गटक गई थी।

“ला रही हूँ अभी…” उनकी बात समझती गुलबिया बोली, और राकी के खाली तसले, खाली बोतल को ले के अंदर चली गई।

माँ ने मेरी देह के बोतल पर ही ध्यान लगाया और बोलीं भी-

“तेरी देह में तो 100 बोतल से भी ज्यादा नशा है, पता नहीं कैसे आई जवानी शहर में बचा के अब तक रखी हो?”

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गुलबिया एक हाथ में बोतल और दूसरे में कुछ खाने का सामान लेकर निकली, और मेरी हालत देखकर उसने पाला बदल लिया- “हे हमार ननद के अकेली जान के, अबहीं हम ननद भौजाई मिल के तोहार…”



माँ ने बस मुश्कुरा के गुलबिया की ओर देखा जैसे कह रही हों, आ जा छिनार तुझको भी गटक जाऊँगी आज।



बोतल और खाने का सामान जमीन पर रखकर, अपनी मजबूत कलाइयों से माँ के दोनों हाथ कस के जकड़ती मुझसे वो बोली-


“चल पहले नंगी कर इनको, फिर हम दोनों मिल के इनको झड़ाते हैं। आज समझ में आयेगा इन्हें ननद भौजाई की जोड़ी का मजा…”

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मेरी तो खुशी दूनी हो गई, साड़ी तो उनकी वैसे ही लथरपथर हो गई थी, आसानी से मैंने खींच के उतार दी, फिर पेटीकोट पर मैंने हाथ लगाया, और ब्लाउज गुलबिया के हिस्से में आया। लेकिन जो उनका हाथ छूटा तो गुलबिया भी नहीं बची। साड़ी तो उसकी मैंने पहले ही आते ही घर में उतार के खुद पहन ली थी, ब्लाउज पेटीकोट बचा था वो भी माँ और उसकी कुश्ती में खेत रहा।



अब हम तीनों एक जैसे थे।



“तू नीचे की मंजिल सम्हाल, ऊपर की मंजिल पर मैं चढ़ाई करती हूँ…”

गुलबिया ने मुझसे बोला और माँ के सम्हलने के पहले उनके दोनों उभार गुलबिया के हाथों। क्या जबरदस्त उसने रगड़ाई मसलाई शुरू की, और फायदा मेरा हो गया।

मैं झट से उनकी खुली जांघों के बीच आ गई। झांटें थी लेकिन थोड़ी-थोड़ी, मेरे होंठ तो सीधे टारगेट पर पहुँच जाते लेकिन गुलबिया ने मुझे बरज दिया। फुसफुसाते हुए वो बोली- “अरे इतनी जल्दी काहे को है, थोड़ा तड़पा तरसा…”

मैं नौसिखिया थी लेकिन इतनी भी नहीं। कन्या रस के ढेर सारे गुर कामिनी भाभी और बसन्ती ने सिखाये थे।
Is baar rocky wala kaam bhi karwa dena aap, varna apki hamari ladai ho jayegi komal Ji
 
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Aryanlaunda

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Is kahani Ka rooj update do,
 
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Fantastic update,

Ab rocky ki baari
aage aage dekhiye
 
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I

Is baar rocky wala kaam bhi karwa dena aap, varna apki hamari ladai ho jayegi komal Ji
ummid pe duniya kayama hai bas ye dhyan rakhiyega forum vaale kaan pakd ke mujhe bahar na kar den
 
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komaalrani

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जोरू का गुलाम -अपडेट पोस्टेड ,

मज़े बनारस के ( आनेवाली कहानी ) झलकियां -अपडेट पोस्टेड, छुटकी होली दीदी की ससुराल में - पेज ३३ पोस्ट ३२७ और ३२८,

आपके कमेंट्स की बाट जोहता, ...
 

komaalrani

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छुटकी -होली, दीदी की ससुराल में


अपडेट पोस्टेड
 
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