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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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वाह वाह लगता है अब रॉकी भाई भी ट्रेनिंग देंगे ...
क्या पता , अगली पोस्टों का इन्तजार करना होगा, वैसे रॉकी नियमों की चेन से कस के बंधा है,...:laugh::laugh:
 

komaalrani

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Is kahani Ka rooj update do,
Thanks apko acchi lag rahi hai, chhutaki men maine update de diya hai aur aapk ecomments ka intezaar hai
 

komaalrani

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update soon
 
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Jaqenhghar5

Harami_Rajesh
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गुलबिया

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लेकिन तबतक गुलबिया ने मुझसे कहा-

“सुन, अरे राकी के मोटे लण्ड से चुदवाना है न, तो पहले जरा उसको खिला पिला दे, ताकत हो जायेगी तो रात भर इसी आँगन में तुझे रगड़-रगड़ के चोदेगा, ले खिला दे उसको…”

और तसला मेरी ओर सरकाया।

लेकिन माँ अभी भी मेरी कच्ची अमिया का रस ले रही थी और मुझे छोड़ना नहीं चाहती थी।


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उन्होंने गुलबिया को बोल दिया-

“अरे आज तू ही खिला पिला के तैयार कर राकी को, तेरी भी तो ननद है, तेरी भी तो जिम्मेदारी है। अभी तू खिला दे, कल से ये राकी को देगी, रोज देगी, बिना नागा और कोई बीच में आयेगा तो मैं हूँ न…”

गुलबिया ने तसला राकी के सामने कर दिया और बोतल खोलते हुए माँ से पूछा-

“थोड़ा इस कच्ची अमिया को भी चखा दूँ?

माँ ने बोतल उसके हाथ से छीन ली और एकदम मना कर दिया-

“अभी उसकी ये सब पीने की उम्र है क्या? चल मुझे दे…”

फिर आँख मार के मुझसे बोलीं- “आज तो तुझे भूखा पियासा रखूंगी, तूने मुझे बहुत दिन पियासा रखा है…” फिर मुश्कुरा के बोलीं- “घबड़ा मत मिलेगा तुझे भी, लेकिन हम दोनों के देह से, खाने पीने का सब कुछ…”


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और जैसे अपनी बात को समझाते हुए उन्होंने बोतल से एक बड़ी सी घूँट भरी और मुझे एक बार फिर बाँहों में भींच लिया।

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उनके होंठ मेरे होंठ से चिपक गए, फिर तो जीतनी दारू उनके पेट में गई होगी उससे ज्यादा मेरे पेट में, उनकी जीभ मेरे मुँह में तब तक घुसी रही, जब तक मैंने सब घोंट न लीं।
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बोतल अब गुलबिया के हाथ में थी और वो गटक रही थी।

“अरे तनी इसके यार को भी पिला दो न, जोश में रहेगा तो और हचक-हचक के…” माँ ने गुलबिया को समझाया।


और गुलबिया ने घल-घल एक तिहाई बोतल राकी के तसले में खाली कर दी।

“सही बोल रही हैं, जितने लण्ड वाले हैं सब एकर यार हैं…” गुलबिया हँस के बोली


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और फिर बोतल उसके मुँह में थी, लेकिन एक बार फिर उसके मुँह से वो मेरे मुँह में।



थोड़ी देर में जितनी देसी गुलबिया और माँ ने गटकी थी, उसके बराबर मेरे पेट में चली गई थी। मस्ती से हालत खराब थी मेरी।


शायद दारू का नशा चढ़ गया था या फिर बस…

माँ एक बार फिर मेरे कच्ची अमियों का स्वाद लेने में जुट गई थीं। बोतल अब गुलबिया के हाथ में थी। एक घूँट लेकर वो मुझे उकसाते बोली- “अरे एतना मस्त खड़ा हो, तानी सोहरावा, पकड़ के मुठियावा, बहुत मजा आई…” और जब तक मैं कुछ बोलती, उसने मेरे कोमल कोमल हाथों को पकड़ के जबरदस्ती राकी के।

राकी तसले में खा रहा था, गुलबिया ने फिर थोड़ी और दारू उसके तसले में डाल दी। फिर सीधे बोतल अबकी मेरे मुँह में लगा दी।

गुलबिया का हाथ कब का मेरे हाथ से दूर हो गया था, लेकिन मैं प्यार से राकी का हल्के-हल्के सोहरा रही थी, फिर मुठियाने लगी।

तबतक माँ ने मुँह मेरी देह से हटाया और मुझे देखने लगीं। शर्मा के, जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो, मैंने अपना हाथ झट से हटा लिया। लेकिन देख तो उन्होंने लिया ही था। बस वो मुश्कुराने लगी, लेकिन उनकी निगाहें कुछ और ढूँढ़ रही थी, बोतल।

पर वो तो खाली हो चुकी थी। कुछ गुलबिया ने पी, कुछ उसने राकी के तसले में ढाल दी और बाकी मैं गटक गई थी।

“ला रही हूँ अभी…” उनकी बात समझती गुलबिया बोली, और राकी के खाली तसले, खाली बोतल को ले के अंदर चली गई।

माँ ने मेरी देह के बोतल पर ही ध्यान लगाया और बोलीं भी-

“तेरी देह में तो 100 बोतल से भी ज्यादा नशा है, पता नहीं कैसे आई जवानी शहर में बचा के अब तक रखी हो?”

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और अबकी हम दोनों एक दूसरे से गुंथ गए। उनके हाथ होंठ सब कुछ, वो चूस रही थीं, चाट रही थीं, कचकचा के काट रहीं थी, एकदम नो होल्ड्स बार्ड,

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गुलबिया एक हाथ में बोतल और दूसरे में कुछ खाने का सामान लेकर निकली, और मेरी हालत देखकर उसने पाला बदल लिया- “हे हमार ननद के अकेली जान के, अबहीं हम ननद भौजाई मिल के तोहार…”



माँ ने बस मुश्कुरा के गुलबिया की ओर देखा जैसे कह रही हों, आ जा छिनार तुझको भी गटक जाऊँगी आज।



बोतल और खाने का सामान जमीन पर रखकर, अपनी मजबूत कलाइयों से माँ के दोनों हाथ कस के जकड़ती मुझसे वो बोली-


“चल पहले नंगी कर इनको, फिर हम दोनों मिल के इनको झड़ाते हैं। आज समझ में आयेगा इन्हें ननद भौजाई की जोड़ी का मजा…”

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मेरी तो खुशी दूनी हो गई, साड़ी तो उनकी वैसे ही लथरपथर हो गई थी, आसानी से मैंने खींच के उतार दी, फिर पेटीकोट पर मैंने हाथ लगाया, और ब्लाउज गुलबिया के हिस्से में आया। लेकिन जो उनका हाथ छूटा तो गुलबिया भी नहीं बची। साड़ी तो उसकी मैंने पहले ही आते ही घर में उतार के खुद पहन ली थी, ब्लाउज पेटीकोट बचा था वो भी माँ और उसकी कुश्ती में खेत रहा।



अब हम तीनों एक जैसे थे।



“तू नीचे की मंजिल सम्हाल, ऊपर की मंजिल पर मैं चढ़ाई करती हूँ…”

गुलबिया ने मुझसे बोला और माँ के सम्हलने के पहले उनके दोनों उभार गुलबिया के हाथों। क्या जबरदस्त उसने रगड़ाई मसलाई शुरू की, और फायदा मेरा हो गया।

मैं झट से उनकी खुली जांघों के बीच आ गई। झांटें थी लेकिन थोड़ी-थोड़ी, मेरे होंठ तो सीधे टारगेट पर पहुँच जाते लेकिन गुलबिया ने मुझे बरज दिया। फुसफुसाते हुए वो बोली- “अरे इतनी जल्दी काहे को है, थोड़ा तड़पा तरसा…”

मैं नौसिखिया थी लेकिन इतनी भी नहीं। कन्या रस के ढेर सारे गुर कामिनी भाभी और बसन्ती ने सिखाये थे।
जबरदस्त अपडेट्स
 
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जबरदस्त अपडेट्स
Thanks so much, bas aap ka saath chhiaye ,...updates aate rahenge
 
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माँ संग मस्ती

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गुलबिया एक हाथ में बोतल और दूसरे में कुछ खाने का सामान लेकर निकली, और मेरी हालत देखकर उसने पाला बदल लिया-

“हे हमार ननद के अकेली जान के, अबहीं हम ननद भौजाई मिल के तोहार…”

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माँ ने बस मुश्कुरा के गुलबिया की ओर देखा जैसे कह रही हों, आ जा छिनार तुझको भी गटक जाऊँगी आज।


बोतल और खाने का सामान जमीन पर रखकर, अपनी मजबूत कलाइयों से माँ के दोनों हाथ कस के जकड़ती मुझसे वो बोली-

“चल पहले नंगी कर इनको, फिर हम दोनों मिल के इनको झड़ाते हैं। आज समझ में आयेगा इन्हें ननद भौजाई की जोड़ी का मजा…”

मेरी तो खुशी दूनी हो गई, साड़ी तो उनकी वैसे ही लथरपथर हो गई थी, आसानी से मैंने खींच के उतार दी,


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फिर पेटीकोट पर मैंने हाथ लगाया, और ब्लाउज गुलबिया के हिस्से में आया।


लेकिन जो उनका हाथ छूटा तो गुलबिया भी नहीं बची। साड़ी तो उसकी मैंने पहले ही आते ही घर में उतार के खुद पहन ली थी, ब्लाउज पेटीकोट बचा था वो भी माँ और उसकी कुश्ती में खेत रहा।



अब हम तीनों एक जैसे थे।

“तू नीचे की मंजिल सम्हाल, ऊपर की मंजिल पर मैं चढ़ाई करती हूँ…”

गुलबिया ने मुझसे बोला और माँ के सम्हलने के पहले उनके दोनों उभार गुलबिया के हाथों। क्या जबरदस्त उसने रगड़ाई मसलाई शुरू की, और फायदा मेरा हो गया।

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मैं झट से उनकी खुली जांघों के बीच आ गई। झांटें थी लेकिन थोड़ी-थोड़ी, मेरे होंठ तो सीधे टारगेट पर पहुँच जाते लेकिन गुलबिया ने मुझे बरज दिया। फुसफुसाते हुए वो बोली-


“अरे इतनी जल्दी काहे को है, थोड़ा तड़पा तरसा…”

मैं नौसिखिया थी लेकिन इतनी भी नहीं। कन्या रस के ढेर सारे गुर कामिनी भाभी और बसन्ती ने सिखाये थे।

बस, मेरी चुम्बन यात्रा अंदरूनी जांघों से शुरू हुई लेकिन बस ‘प्रेम द्वार’ के पास पहुँचकर रुक गई।


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मेरी जीभ की नोक से उनके मांसल पपोटों के चारों ओर टहल रही थी, कभी कस के तो कभी बस सहलाते हुए। कुछ ही देर में उनकी हालत खराब हो गई, चूतड़ पटकने लगीं और जब एक बार मैंने जब जीभ की टिप से उनके क्लिट को बस छू भर लिया।

तो फिर तो वो पागल हो उठीं-

“अरे चूस न काहे को तड़पा रही है मेरी गुड्डो, अरे बहुत रस है तेरी जीभ में, इस छिनार गुलबिया की बात मत सुन। चल चाट ले न, तुझे राकी से इसी आंगन में चुदवाऊँगी, आज ही रात। बस एक बार चूस ले मेरी बिन्नो…”

और अबकी मैंने उनकी बात मान ली। सीधे दोनों होंठों के बीच उनकी बुर की पुत्तियों को दबाकर जोर-जोर से चूसने लगी। थोड़ी देर में ही उनकी बुर पनिया गई, बस मैंने दोनों हाथों से उसे पूरी ताकत से फैलाया और अपनी जीभ पेल दी, जैसे कोई लण्ड ठेल रहा हो।

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और साथ में गुलबिया ने कचकचा के उनके बड़े-बड़े निपल काट लिए। फिर तो मैंने और गुलबिया ने मिल के उनकी ऐसी की तैसी कर दी, उनकी बड़ी-बड़ी चूचियां गुलबिया के हवाले थी। खूब जम के रगड़ने मसलने के साथ वो कस-कस के काट रही थी।

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और मैं चूत चूसने की जो भी ट्रेनिंग मैंने इस गाँव में पाई थी, सब ट्राई कर रही थी। मेरे होंठ जीभ के साथ मेरी शैतान उंगलियां भी मैदान में थीं। जोर-जोर से मैं चूसती, चाटती और जब मेरे होंठ उनकी चौड़ी सुरंग को छोड़ के क्लीट की चुसाई कर रहे होते तो मेरी दो उंगलियां चूत मंथन कर रही होतीं।

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और फिर जब जीभ वापस उनकी गहरी बुर में होती, जिसमें से मेरी प्यारी-प्यारी भौजाई निकली थीं, तो मेरी गदोरी उनकी क्लिट की रगड़ाई घिसाई कर रही होती और कभी मेरे दोनों हाथ जोर-जोर से बड़े-बड़े चूतड़ उठा लेते दबोच देते।

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असल में पहली बार मैं भोसड़े का रस ले रही थी। इस गाँव में मैंने अनचुदी कच्ची चूत को भी झाड़ा था, बसन्ती और कामिनी भाभी ऐसी शादीशुदा खूब खेली खाई बुरें भी चूसी थी और उनका रस पिया था, लेकिन भोसड़े का रस पहली बार ले रही थी। मतलब जहां से न सिर्फ दो चार बच्चे निकल चुके हों, बल्की उम्र में भी वो प्रौढ़ा हो और उसकी ओखल में खूब मूसल चले हों।

और सच में एकदम लग रस, अलग स्वाद, अलग मजा। कुछ देर में ही मेरी और गुलबिया की मेहनत का नतीजा सामने आया। भाभी की माँ के भोसड़े से एक तार की चासनी निकलने लगी, खूब गाढ़ी, खूब स्वादिष्ट। मैंने सब चाट ली और गुलबिया की ओर देखा, उसने मस्ती में आँखों ही आँखों में हाई फाइव किया, जैसे कह रही हो, ले लो मजा बहुत रस है इनके भोसड़े में।

मैं जोर-जोर से कभी जीभ से उनका भोसड़ा चोद रही थी, कभी उंगली से। रस तो खूब निकल रहा था, वो तड़प और सिसक भी रही थी लेकिन झड़ने के करीब नहीं आ रही थी।

और तभी पासा पलटा, माँ की बुर पर गुलबिया ने कब्जा कर लिया।


वो दोनों लोग 69 की पोजीशन में आ गई थीं, गुलबिया की बुर भाभी की माँ चाट चूस रही थी और गुलबिया ने माँ की बुर पर मुँह लगाया, और मेरी कान में मंतर फूंका-

“ई एतनी आसानी से नहीं झड़ेगीं। इनका असली मजा पिछवाड़े है जब तक इसकी गाण्ड की ऐसी की तैसी न होगी न… मैं भोसड़ा सम्हालती हूँ तू गाण्ड में सेंध लगा।
 

komaalrani

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***** *****चौवनवीं फुहार - रात अभी बाकी है


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और गाण्ड में सेंध लगाना मैं अच्छी तरह नहीं तो थोड़ा बहुत तो सीख ही गई थी, कामिनी भाभी ने न सिर्फ सिखाया समझाया था, बल्की अच्छी तरह ट्रेनिंग भी दी थी। और आज उस ट्रेनिंग को इश्तेमाल करने का दिन था। कुछ मस्ती, कुछ मौसम और कुछ दारू का असर, मैं एकदम मूड में थी आज ‘हर चीज ट्राई करने के’, और भाभी के मां चूतड़ थे भी बहुत मस्त, खूब बड़े-बड़े, मांसल गद्देदार लेकिन एकदम कड़े-कड़े।

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और साथ में गुलबिया के होंठ भले ही भाभी की माँ के भोसड़े से चिपके थे लेकिन उसके दोनों तगड़े हाथों ने भाभी की माँ के गुदाज चूतड़ों को उठा रखा था, जिससे मेरे लिए सेंध लगाना थोड़ा और आसान हो गया था।

मैंने शुरूआत चुम्बनों की बारिश से की और धीरे-धीरे मेरे गीले होंठ गाण्ड की दरार पर पहुँच गए, मैंने एक बड़ा सा थूक का गोला उनके गोल दरवाजे पर फेंका फिर उंगली घुसाने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रही, छेद उनका बहुत कसा था। बहुत मुश्किल से एक पोर घुस पाया।


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और फिर गुलबिया काम आई, बिना बोले गुलबिया ने उंगली गाण्ड के अंदर से वापस खींच के मेरे मुँह में ठेल दिया।

उसका इशारा मैं समझ गई, पहले थूक से खूब गीला कर लो। और अब अपनी अंगुली को जो चूस-चूस के थूक लगाकर एकदम गीला करके मैंने छेद पर लगाया तो गुलबिया के हाथ मेरी मदद को मौजूद थे। उसने पूरी ताकत से दोनों हाथों से उनकी गाण्ड को चियार रखा था, और सिर्फ इतना ही नहीं जैसे ही मैंने उंगली अंदर ढकेला, तो गुलबिया के दायें हाथ ने मेरी कलाई को पकड़ के पूरी ताकत से, हम दोनों के मिले जुले जोर से पूरी उंगली सूत-सूत करके अंदर सरक गई।

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और फिर जैसे पूरी ताकत से माँ की गाण्ड ने मेरी अंदर घुसी तर्जनी को दबोच लिया।

बिना बुर से मुँह हटाये, गुलबिया ने फुसफुसा के मुझे समझाया-

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“अरे खूब जोर-जोर गोल-गोल घुमा, खरोंच खरोंच के…”

मेरी तर्जनी की टिप पे कुछ गीली-गीली, कुछ लसलसी सी फीलिंग्स हो रही थी, लेकिन गुलबिया की सलाह मान के गोल-गोल घुमाती रही, खरोंचती रही। उसके बाद हचक-हचक के अंदर-बाहर, जैसे कामिनी भाभी ने मेरे साथ किया था। और मेरी कलाई वैसे भी गुलबिया की मजबूत पकड़ में थी, एकदम सँड़सी जैसी। फिर दो-चार मिनट के बाद उसने मेरी उंगली बाहर कर ली।

और जब तक मैं समझूँ समझूँ, मेरे मुँह में सीधे और गुलबिया ने अबकी मुँह उठा के बोला-

“एक बार फिर से खूब थूक लगाओ और अबकी मंझली वाली भी…”

कुछ देर बाद मेरी समझ में की ये उंगली, कहाँ से? लेकिन मुँह से उंगली निकालना मुश्किल था।


गुलबिया ने कस के मेरा हाथ पकड़ रखा था, और जैसे वो मेरी दिल की बात समझ गई और हड़काती बोली-


“ज्यादा छिनारपना मत कर, लौंडों से गाण्ड मरवा-मरवा के उनका लण्ड मजे से चूसती हो, कामिनी भौजी ने तेरी गाण्ड में उंगली करके मंजन करवाया था, तो अपनी गाण्ड की चटनी तो कितनी बार चाट चुकी हो, फिर, चाट मजे ले ले के…”



कोई रास्ता था क्या?



और उसके बाद मेरी दोनों उंगलियां माँ की गाण्ड में, फिर उसी तरह खूब खरोंचने के बाद, वहां से सीधे मेरे मुँह में, सब कुछ लिसड़ा चुपड़ा, लेकिन थोड़ी देर में मैं अपने आप…


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गुलबिया ने मेरी कलाई छोड़ दी थी लेकिन मैं खुद ही, और उसका फायदा भी हुआ, कुछ मेरे थूक का असर, कुछ उंगलियों की पेलम-पेल का, दो चार बार दोनों उंगलियों की गाण्ड मराई के बाद उनका पिछवाड़े का छेद काफी खुल गया और अब जब मैंने मुँह लगाकर वहां चूसना शुरू किया तो मेरी जीभ आसानी से अंदर चली गई।


ये ट्रिक मुझे कामिनी भाभी ने ही सिखाई थी, जीभ से गाण्ड मारने की और आज मैं पहली बार इसका इश्तेमाल कर रही थी। दोनों होंठ गाण्ड के छेद से चिपके और अब तक जो काम मेरी दोनों उंगलियां कर रही थीं बस वही जीभ, और वही गूई लसलसी सी फीलिंग।

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लेकिन असर तुरंत हुआ, गुलबिया की बात एकदम सही थी। भाभी की माँ तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी, मेरी जीभ अंदर-बाहर हो रही थी, गोल-गोल घूम रही थी। गुलबिया उनकी बुर खूब जोर-जोर से चूस रही थी, जीभ बुर के अंदर पेल रही थी, मेरे हाथ भी अब गुलबिया की सहायता को पहुँच गए थे। जोर-जोर से मैं माँ के क्लिट को रगड़ मसल रही थी।

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इस तिहरे हमले का असर हुआ और वो झड़ने लगीं। झड़ने के साथ उनकी गाण्ड भी सिकुड़ खुल रही थी, मेरी जीभ को दबोच रही थी, मेरा नाम ले-लेकर वो एक से एक गन्दी-गन्दी गालियां दे रही थी। एक बार झड़ने के बाद फिर दुबारा।
और अबकी उनके साथ गुलबिया भी,

फिर तिबारा, पांच छह मिनट तक वो और गुलबिया, बार-बार, कुछ देर तक ऐसे चिपकी पड़ीं रही मैं भी उनके साथ। और हटी भी तो एकदम लस्त पस्त, लथर पथर।

मैं भी उनके साथ पड़ी रही 20-25 मिनट तक दोनों लोगों की बोलने की हालात नहीं थी, फिर भाभी की माँ ने मुझे इशारे से बुलाया और अपने पास बैठा के दुलारती सहलाती रहीं, बोलीं-


“जमाने के बाद ऐसा मजा आया है…”

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गुलबिया अभी भी लस्त थी। भाभी की माँ की उंगली अभी भी उसके पिछवाड़े थी और, अचानक वहां से सीधे निकाल के मेरे मुँह में उन्होंने घुसेड़ दी।



मैंने बुरा सा मुँह बनाया।



तो बोलीं- “अरे अभी मेरा स्वाद तो इत्ते मजे ले-ले के ले रही थी, जरा इसका भी चख ले, वरना बुरा मान जायेगी ये छिनार, अच्छा चल ये भी घोंट ले, स्वाद बदल जाएगा…” और पास पड़ी बोतल उठा के मेरे मुँह में लगा दी।
 
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komaalrani

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जोरू का गुलाम - जेठानी की होली,...

और सोलहवां सावन

अपडेट पोस्टेड
 

Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
Supreme
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48,571
304
***** *****चौवनवीं फुहार - रात अभी बाकी है


Moonlight-photography-view-of-moon-between-tree-leaves.jpg


और गाण्ड में सेंध लगाना मैं अच्छी तरह नहीं तो थोड़ा बहुत तो सीख ही गई थी, कामिनी भाभी ने न सिर्फ सिखाया समझाया था, बल्की अच्छी तरह ट्रेनिंग भी दी थी। और आज उस ट्रेनिंग को इश्तेमाल करने का दिन था। कुछ मस्ती, कुछ मौसम और कुछ दारू का असर, मैं एकदम मूड में थी आज ‘हर चीज ट्राई करने के’, और भाभी के मां चूतड़ थे भी बहुत मस्त, खूब बड़े-बड़े, मांसल गद्देदार लेकिन एकदम कड़े-कड़े।

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और साथ में गुलबिया के होंठ भले ही भाभी की माँ के भोसड़े से चिपके थे लेकिन उसके दोनों तगड़े हाथों ने भाभी की माँ के गुदाज चूतड़ों को उठा रखा था, जिससे मेरे लिए सेंध लगाना थोड़ा और आसान हो गया था।

मैंने शुरूआत चुम्बनों की बारिश से की और धीरे-धीरे मेरे गीले होंठ गाण्ड की दरार पर पहुँच गए, मैंने एक बड़ा सा थूक का गोला उनके गोल दरवाजे पर फेंका फिर उंगली घुसाने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रही, छेद उनका बहुत कसा था। बहुत मुश्किल से एक पोर घुस पाया।


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और फिर गुलबिया काम आई, बिना बोले गुलबिया ने उंगली गाण्ड के अंदर से वापस खींच के मेरे मुँह में ठेल दिया।

उसका इशारा मैं समझ गई, पहले थूक से खूब गीला कर लो। और अब अपनी अंगुली को जो चूस-चूस के थूक लगाकर एकदम गीला करके मैंने छेद पर लगाया तो गुलबिया के हाथ मेरी मदद को मौजूद थे। उसने पूरी ताकत से दोनों हाथों से उनकी गाण्ड को चियार रखा था, और सिर्फ इतना ही नहीं जैसे ही मैंने उंगली अंदर ढकेला, तो गुलबिया के दायें हाथ ने मेरी कलाई को पकड़ के पूरी ताकत से, हम दोनों के मिले जुले जोर से पूरी उंगली सूत-सूत करके अंदर सरक गई।

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और फिर जैसे पूरी ताकत से माँ की गाण्ड ने मेरी अंदर घुसी तर्जनी को दबोच लिया।

बिना बुर से मुँह हटाये, गुलबिया ने फुसफुसा के मुझे समझाया-

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“अरे खूब जोर-जोर गोल-गोल घुमा, खरोंच खरोंच के…”

मेरी तर्जनी की टिप पे कुछ गीली-गीली, कुछ लसलसी सी फीलिंग्स हो रही थी, लेकिन गुलबिया की सलाह मान के गोल-गोल घुमाती रही, खरोंचती रही। उसके बाद हचक-हचक के अंदर-बाहर, जैसे कामिनी भाभी ने मेरे साथ किया था। और मेरी कलाई वैसे भी गुलबिया की मजबूत पकड़ में थी, एकदम सँड़सी जैसी। फिर दो-चार मिनट के बाद उसने मेरी उंगली बाहर कर ली।

और जब तक मैं समझूँ समझूँ, मेरे मुँह में सीधे और गुलबिया ने अबकी मुँह उठा के बोला-

“एक बार फिर से खूब थूक लगाओ और अबकी मंझली वाली भी…”

कुछ देर बाद मेरी समझ में की ये उंगली, कहाँ से? लेकिन मुँह से उंगली निकालना मुश्किल था।


गुलबिया ने कस के मेरा हाथ पकड़ रखा था, और जैसे वो मेरी दिल की बात समझ गई और हड़काती बोली-


“ज्यादा छिनारपना मत कर, लौंडों से गाण्ड मरवा-मरवा के उनका लण्ड मजे से चूसती हो, कामिनी भौजी ने तेरी गाण्ड में उंगली करके मंजन करवाया था, तो अपनी गाण्ड की चटनी तो कितनी बार चाट चुकी हो, फिर, चाट मजे ले ले के…”



कोई रास्ता था क्या?



और उसके बाद मेरी दोनों उंगलियां माँ की गाण्ड में, फिर उसी तरह खूब खरोंचने के बाद, वहां से सीधे मेरे मुँह में, सब कुछ लिसड़ा चुपड़ा, लेकिन थोड़ी देर में मैं अपने आप…


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गुलबिया ने मेरी कलाई छोड़ दी थी लेकिन मैं खुद ही, और उसका फायदा भी हुआ, कुछ मेरे थूक का असर, कुछ उंगलियों की पेलम-पेल का, दो चार बार दोनों उंगलियों की गाण्ड मराई के बाद उनका पिछवाड़े का छेद काफी खुल गया और अब जब मैंने मुँह लगाकर वहां चूसना शुरू किया तो मेरी जीभ आसानी से अंदर चली गई।


ये ट्रिक मुझे कामिनी भाभी ने ही सिखाई थी, जीभ से गाण्ड मारने की और आज मैं पहली बार इसका इश्तेमाल कर रही थी। दोनों होंठ गाण्ड के छेद से चिपके और अब तक जो काम मेरी दोनों उंगलियां कर रही थीं बस वही जीभ, और वही गूई लसलसी सी फीलिंग।

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लेकिन असर तुरंत हुआ, गुलबिया की बात एकदम सही थी। भाभी की माँ तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी, मेरी जीभ अंदर-बाहर हो रही थी, गोल-गोल घूम रही थी। गुलबिया उनकी बुर खूब जोर-जोर से चूस रही थी, जीभ बुर के अंदर पेल रही थी, मेरे हाथ भी अब गुलबिया की सहायता को पहुँच गए थे। जोर-जोर से मैं माँ के क्लिट को रगड़ मसल रही थी।

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इस तिहरे हमले का असर हुआ और वो झड़ने लगीं। झड़ने के साथ उनकी गाण्ड भी सिकुड़ खुल रही थी, मेरी जीभ को दबोच रही थी, मेरा नाम ले-लेकर वो एक से एक गन्दी-गन्दी गालियां दे रही थी। एक बार झड़ने के बाद फिर दुबारा।
और अबकी उनके साथ गुलबिया भी,

फिर तिबारा, पांच छह मिनट तक वो और गुलबिया, बार-बार, कुछ देर तक ऐसे चिपकी पड़ीं रही मैं भी उनके साथ। और हटी भी तो एकदम लस्त पस्त, लथर पथर।

मैं भी उनके साथ पड़ी रही 20-25 मिनट तक दोनों लोगों की बोलने की हालात नहीं थी, फिर भाभी की माँ ने मुझे इशारे से बुलाया और अपने पास बैठा के दुलारती सहलाती रहीं, बोलीं-


“जमाने के बाद ऐसा मजा आया है…”

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गुलबिया अभी भी लस्त थी। भाभी की माँ की उंगली अभी भी उसके पिछवाड़े थी और, अचानक वहां से सीधे निकाल के मेरे मुँह में उन्होंने घुसेड़ दी।



मैंने बुरा सा मुँह बनाया।



तो बोलीं- “अरे अभी मेरा स्वाद तो इत्ते मजे ले-ले के ले रही थी, जरा इसका भी चख ले, वरना बुरा मान जायेगी ये छिनार, अच्छा चल ये भी घोंट ले, स्वाद बदल जाएगा…” और पास पड़ी बोतल उठा के मेरे मुँह में लगा दी।
Super duper Sawan 👌👌👌
:applause: sooo nice,kisi ko bhi nahi chhoda kya bhabhi kya mummy , adbhut
 
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