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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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सोलवां सावन

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बीसवीं फुहार


घर आँगन में

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झूले पे



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दिनेश






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गनीमत था कि जब मैं घर पहुँची तो भाभी और चम्पा भाभी नहीं थी, सिर्फ बसंती थी। उसने बताया कि सब लोग पड़ोस के गांव में गये हैं और शाम के आस-पास ही 3-4 घंटे बाद लौटेंगे, मेरा खाना रखा है और उसे भी कुछ काम से जाना है।


मैं अपने कमरे में चली गई और जल्दी से कपड़े बदले। कहीं जाना तो था नहीं इसलिये मैंने, एक टाप और स्कर्ट पहना और खाना खाने आ गयी।

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खाने के बाद मैं अपने कमरें में थोड़ी देर लेटी थी और बसंती सब काम समेट रही थी। तभी बसंती ने दरवाजे के पास आकर बताया कि दिनेश आया है।


मैं चौंक कर उठ बैठी और मुश्कुराने लगी। मुझे याद आया कि जब मैंने चन्दा से दिनेश के बारे में पूछा था तो उसने हँसकर कहा था कि खुद देख लेना। और बहुत खोदने पर वो बोली-

“मिलने के पहले कम से कम आधी शीशी वैसलीन की लगा लेना…




मैंने बसंती से कहा- “बैठाओ, मैं आ रही हूं…”


मैंने अपने ड्रेस की ओर देखा।

मेरी टाप खूब टाइट थी या शायद इधर दबवा-दबवा कर मेरे जोबन के साईज़ कुछ बढ़ गये थे, मेरे उभार… यहां तक की निपल भी दिख रहे थे।


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ब्रा तो मैंने गांव आने के बाद पहननी ही छोड़ दी थी। और स्कर्ट भी जांघ से थोड़ी ही नीचे थी।



खड़ी होकर मैं ड्रेसिंग टेबल के पास गयी और लिपिस्टक हल्की सी लगा ली।



सामने वैसलीन की बोतल थी, मैंने दोनों उंगलीयों में लेकर टांग फैलाकर अपनी चूत के एकदम अंदर तक लगा ली। फिर थोड़ी और लेकर चूत के मुहाने पर भी लगा ली।

मुझे एक शरारत सूझी और मैंने हल्की सी लिपिस्टक चूत के होंठ पर भी लगा ली।


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मैं बाहर निकली तो दिनेश इंतजार कर रहा था, उसने पूछा- “

क्यों भाभी नहीं हैं क्या…”


मैंने हँसकर कहा-

“नहीं, आज तो हमीं से काम चलाना पड़ेगा…”

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और मैंने उसको सुनाते हुए बसंती से पूछा-

“क्यों भाभी लोग तो शाम को आयेंगी, तीन चार घंटे बाद…”





बसंती काम खतम करती हुई बोली- “हां शाम के आसपास, और मैं भी जा रही हूं, दरवाजा बंद कर लेना…”


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दरवाजा बंद करके मैंने मुश्कुराते हुए कहा-

“चलो, अंदर कमरें में चलते हैं…”

उसको लेकर चूतड़ मटकाती आगे आगे चलती मैं कमरें में आयी। उसे पलंग पर बैठाकर उसके सामने पड़ी कुरसी पर बैठकर मैंने धीरे-धीरे अपनी जांघें फैलानी शुरू कीं।





उसका ध्यान एकदम मेरी स्कर्ट से साफ-साफ दिख रही भरी-भरी गोरी-गोरी जांघों की ओर ही था। बैठते समय मेरी स्कर्ट थोड़ी ऊपर चढ़ भी गयी थी।


मैंने उसे छेड़ा- “कहां ध्यान है… तुम दिखते नहीं, कहां रहते हो… मैंने भाभी से भी पूछा कई बार…”


“नहीं नहीं… कहीं नहीं… मेरा मतलब है…” हडबड़ा कर अब उसने अपनी निगाहें ऊपर कर लीं।


पर मैं कहां मानने वाली थी।





मेरे कबूतर तो वैसे ही मेरे कसे टाप को फाड़कर बहर निकलना चाहते थे, मैंने उनको थोड़ा और उभारा। अब उसकी निगाहें वहीं चिपक गयीं थीं। मैंने अपने दोनों हाथों को उनके बेस को क्रास करके उन्हें पूरा पुश करते हुए भोलेपन से पूछा-

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“अच्छा… एक बात बताओ, मैं तुमको कैसी लगती हूं…”


उसका तम्बू अब साफ-साफ तनने लगा था- “अच्छी लगती हो… बहुत अच्छी लगती हो…”

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मैंने अपने टाप के बाकी बटन भी खोलते हुये कहा- “उमस लग रही है ना, आराम से बैठो…” बटन खुलने से मेरा क्लीवेज तो अब पूरा दिख ही रहा था, मेरे रसीले जोबन भी झांक रहे थे।


उसकी हालत एकदम बेकाबू हो रही थी पर मैं कहां रुकने वाली थी।


मैंने अपने दोनों पैर मोड़ लिये और स्कर्ट को एड्जस्ट करके अच्छी तरह फैला लिया।


अब तो उसे मेरी चूत की झलक भी अच्छी तरह मिल रही थी। उसकी निगाहें मेरी जांघों के बीच अच्छी तरह धंसी हुई थीं और उसका लण्ड उसके पाजामे से बाहर आने को बेताब था।



थोड़ी देर वह देखता रहा फिर अचानक उठकर मैं उसके पास आकर, एकदम सटकर बैठ गयी। मैंने उसका हाथ खींचकर अपने कंधे को रख लिया और उसे अपने भरे-भरे जोबन के पास ले गयी और मेरा गोरा हाथ उसकी जांघ पे था, उसके तने हुए टेंटपोल के पास।


“अच्छा… अगर मैं तुम्हें अच्छी लगती हूँ तो तुम मेरे पास क्यों नहीं आते…” मैंने मुश्कुराकर पूछा।

“मुझे लगता है… था… कि कहीं तुम बुरा ना मानो…”


मैंने अब खींचकर उसका हाथ अपने जोबन पर रखकर हल्के से दबा दिया और बोली


“बुद्धू, अरे अगर किसी को कोई लड़की अच्छी लगेगी, तो वह बुरा क्यों मानेगी, उसे तो और अच्छा लगेगा…”


और उसके हाथ अब खूब कस के अपने जोबन पर दबाते हुए, मेरा हाथ जो उसकी जांघ पर था,

हल्के से उसके खड़े खूंटे को छूने लगा।



मैंने अपने दहकते होंठों से उसके कान को सहलाते हुये कहा-
“और मुझे तो तुम कुछ भी… कुछ भी करोगे तो बुरा नहीं लगेगा…”

“सच… कुछ भी… करूं…” उसकी आवाज थरथरा रही थी।


मैंने अपने गुलाबी गाल उसके गाल से रगड़ते हुए कहा- “हां… कुछ भी जो तुम चाहो… जैसे भी… जितनी बार… जब भी…
 

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साइज मैटर्स ,…


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लेकिन लगता है बहुत,....




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सच… कुछ भी… करूं…” उसकी आवाज थरथरा रही थी।


मैंने अपने गुलाबी गाल उसके गाल से रगड़ते हुए कहा-

“हां… कुछ भी जो तुम चाहो… जैसे भी… जितनी बार… जब भी…”


अब उससे नहीं रहा गया और उसने खींच के मुझे अपनी गोद में बिठा लिया और मेरे गरम गुलाबी रसीले होंठों को कस-कस के किस करने लगा। उसका एक हाथ मेरा सर पकड़ के अपनी ओर खींच रहा था और दूसरा कस-कस के टाप के ऊपर से ही मेरे जोबन का रस ले रहा था।


जुबान मेरे होंठों के बीच घुस गयी थी और जल्द हो उसने मेरा टाप उठाकर मेरे कबूतरों को आजाद कर दिया। मेरे गोरे-गोरे उठते उभारों को देख के जैसे उसकी सांस थम गयी पर बिना रुके, जैसे किसी नदीदे बच्चे को मिठाई मिल जाये और वह उसपे टूट पड़े, वह उसे दबाने मसलने लगा।

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उसके होंठ भी अब उसे चूम रहे थे, मेरे रसीले जोबन का रसपान कर रहे थे। और पाजामे के अंदर से उसका मोटा खड़ा लण्ड… लग रहा था कि अब मेरी स्कर्ट को भी फाड़कर मेरी चूत में घुस जायेगा।

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उसका हाथ मेरी गोरी जांघों को सहलाते सहमते-सहमते, मेरी चूत की ओर बढ़ रहा था, फिर अचानक उसने कस के मेरी चूत को पकड़ लिया।

वह भी अब खूब गीली हो रही थी।

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लेकीन अब मेरा मन भी उसके खड़े लण्ड को देखने को कर रहा था। उसने मुझे पहले तो लिटा दिया


फिर कुछ सोचकर मुझसे पेट के बल लेटने को कहा। मेरा टाप इस बीच मेरा साथ छोड़ चुका था। जब मैं पेट के बल लेट गयी, तो उसने मेरे पेट के नीचे कई तकिया लगाकर मेरे चूतड़ खूब उभार दिये।






मेरे सर के नीचे भी उसने एक छोटी सी तकिया लगा दी और पीछे जाकर, स्कर्ट कमर तक करके मेरी टांगें भी खूब अच्छी तरह फैला दीं। कपड़ों की सरसराहट की आवाज के साथ मैं समझ गयी, कि अब उसके भी कपड़े उतर गये हैं।





मुझे लगा रहा था कि अब वो अपना लण्ड मेरी चूत में डालेगा।



पर मेरे पीछे बैठकर थोड़ी देर वो मेरे सेक्सी चूतड़ों को सहलाता रहा


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और फिर उसने एक उंगली मेरी चूत में घुसेड़ दी। मेरी चूत वैसे ही गरम हो रही थी। थोड़ी देर तक एक उंगली अंदर-बाहर करने के बाद, उसने उसे निकाल लिया। मैं मस्ती के मारे पागल हो रही थी

पर अब भी उसने अपना लण्ड पेलने के बजाय अपनी दो उंगलियां एक साथ घुसेड़ दीं।


मैं खूब गीली हो रही थी, और वैसलीन भी मैंने अच्छी तरह चुपड़ी थी फिर भी दो उंगलियां मेरे लिये बहुत थीं और वो मेरी चूत में खूब रगड़-रगड़ के अंदर जा रही थी।


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मैं मस्ती के मारे सिसकियां भर रहीं थी- “हां दिनेश डाल दो ना प्लीज, अब और मत तड़पाओ… उह…

उह्ह्ह… हां हां… करो ना… कब तक… ओह…” मस्ती के मारे मेरे चूतड़ भी हिल रहे थे।


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पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था और अब वह एक हाथ से मेरी झुकी हुई चूचियों को कस-कस के दबा रहा था और उसकी दोनों उंगलियां भी खूब कस के मेरा चूत मंथन कर रही थी।


कभी वह तेजी से अंदर-बाहर होतीं, कभी वह उसको गोल-गोल तेजी से घुमाता। जब मेरी हालत बहुत खराब हो गयी तो उसने एक हाथ से मेरी चूत के होंठ फैलाकर अपना सुपाड़ा सटाया और कमर पकड़ के पूरी ताकत से पेल दिया।


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ओह्ह्हह्ह्हह… मेरी जान निकल गयी। मैंने अपना मुँह कस के तकिये में दबा लिया था।


तब तक उसने फिर पूरी ताकत से दुबारा धक्का लगाया।

मैं समझ गयी कि आज तो मेरी चूत फट जायेगी।


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पर गलती तो मेरी ही थी मैंने उसे इतना छेड़ा था। मेरी चूत पूरी तरह फैली हुई थी, पर वह रुकने वाला नहीं था, उसने फिर कस के धक्का लगाया।


“उईईई…” मैंने कसकर अपने होंठों को दांत से काटा, पर फिर भी चीख निकल गयी। लग रहा था कि कोई लोहे का मोटा राड मेरी चूत में धंस गया हो। मैं कस-कस के अपने चूतड़ हिला रही थी, पर लण्ड एकदम अंदर तक धंसा हुआ था और बाहर निकलने वाला नहीं था।


मैंने अच्छी तरह से अंदर-बाहर वैसलीन लगायी थी फिर भी मेरी चूत… चरचरा रही थी।

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अब और नहीं


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जब उसने अगला धक्का लगाया तो मेरी तो जान ही निकल गयी। अजय, सुनील, रवी, राजीव इतने लोगों से मैंने चुदवाया, पर…


मेरे मोटे चूतड़ को पकड़ के उसने थोड़ा रूक के और अंदर पुश किया।



अब और नहीं ओह्ह्ह… मुझे लगा कि अब मैं और नहीं सह सकती, उसने थोड़ा रुककर बाहर खींचकर अपना लण्ड फिर पूरी ताकत से एक बार में अंदर ढकेला, और मैं… दर्द की ऐसी लहर उठी की मैं बेहोश सी हो उठी।

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कुछ देर बाद, जब दर्द कुछ कम हुआ तो मैंने गरदन मोड़कर उसकी ओर देखा। उसकी मुश्कुराहट और चेहरे की खुशी देखकर मैं भी मुश्कुरा पड़ी। अब उसने धीरे-धीरे चोदना शुरू किया।


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वह हल्के से लण्ड थोड़ा सा बाहर निकालता और फिर धीरे से उसे अंदर ढकेलता। दर्द तो अभी भी हो रहा था, पर जब चूत की दीवारों से उसका मोटा लण्ड रगड़ता तो मजा भी आ रहा था।



कुछ ही देर में दर्द की टीस सी बाकी रही पर एक नये ढंग की मस्ती छा रही थी और मैं भी उसके साथ-साथ अपने चूतड़ हिलाती, चूत से उसके लण्ड को सिकोड़ती। उसको जल्द ही इस बात का अहसास हो आया और उसने फिर कस-कस के धक्के लगाकर चोदना शुरू कर दिया। मुझे दर्द के साथ एक नया नशा हो रहा था।



अब उसने मेरी चूचियां पकड़ ली थी और उसको दबाते मसलते, कस-कस के चोद रहा था। चूत की इस जबरदस्त रगड़ाई से मैं कुछ देर बाद झड़ गयी।

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थोड़ी देर में उसने पोजीशन चेंज की और मुझे पीठ के बल लिटा दिया और मेरी टांगें अच्छी तरह फैलाकर, कंधे पे रखकर चोदना शुरू किया।



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अब मैंने देखा कि उसका लण्ड कित्ता मोटा था और अभी भी कुछ हिस्सा बाहर था। मैं उसे चिढ़ाना चाहती थी की… बाकी क्या अपनी बहनों के लिये बचा रखा है, पर अभी जो मेरी चूत की हालत हुई थी वो सोचकर चुप रही।

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वह तरह-तरह के पोज में चोदता रहा, कभी टांगें अपने कंधे को रख के, कभी मुझे अच्छी तरह मोड़ के, उसने मुझे रूई की तरह धुन दिया।

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मैं कितनी बार झड़ी पर जब वह झड़ा तब तक मैं पस्त हो चुकी थी।


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कुछ देर बाद हल्की ठंडी बयार के साथ मेरी आँख खुली।


मेरी चूचियों पर उसके मसलने के, काटने के निशान, फैली हुई जांघों और चूत पर सफेद वीर्य, लग रहा था कि वहां से कोई तूफान गुजर गया हो।






उसने मुझे सहारा देकर उठाया।
 

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रगड़ाई , दिनेश संग




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उसने मुझे रूई की तरह धुन दिया।


मैं कितनी बार झड़ी पर जब वह झड़ा तब तक मैं पस्त हो चुकी थी। कुछ देर बाद हल्की ठंडी बयार के साथ मेरी आँख खुली। मेरी चूचियों पर उसके मसलने के, काटने के निशान, फैली हुई जांघों और चूत पर सफेद वीर्य, लग रहा था कि वहां से कोई तूफान गुजर गया हो।



उसने मुझे सहारा देकर उठाया।





हम लोग कुछ देर बातें करते रहे।

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बाहर बहुत अच्छी हवा चल रही थी। मैंने उससे कहा कि चलो बाहर चलते हैं। मैंने एक साड़ी ऐसे तैसे लपेट ली और आंगन में उसके साथ आ गयी।


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सफ़ेद बादल के टुकड़ों से आसमान भरा था और ठंडी पुरवाई चल रही थी। भाभी के घर के आंगन में एक बड़ा सा नीम का पेड़ था उसकी मोटी डाल पर रस्सी का एक झूला पड़ा था।



मैं उसपे बैठ गयी और मैंने, दिनेश से इसरार किया कि मुझे झुलाये। वह मेरे पीछे जमीन पर खड़ा होकर झुला रहा था।
कुछ हवा का झोंका और कुछ उसकी शरारत, मेरा आंचल हट गया और मेरे उभार एकदम खुल गये।

मैंने उन्हें ढकने की कोशिश की पर उसने मना कर दिया और मुझे टापलेश ढंग से ही आंगन में झुलाता रहा।

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थोड़ी देर में सांवन बूंदियां पड़ने लगी और मैं उठ गयी पर उसने कहा नहीं झुलो ना और मेरे बची खुची साड़ी भी पकड़कर खींच दी और वैसे ही झूले पे बैठा दिया।



रस्सी मेरे कोमल चूतड़ में गड़ रही थी लेकिन उसने कस-कस के पेंग देनी शुरू कर दी। मुझे याद आया कि पूरबी ने जो बताया था कि दिन में मायके आने से पहले उसने अपने साजन के साथ कैसे झूला झुला था।


झुलाते समय कभी दिनेश मेरी चूचियां दबा देता, कभी जांघों के बीच सहला देता। मैंने उसको अपने मन की बात कान में बताई तो वह तुरंत मुझे हटाकर झूले पे आ गया।


पानी की बूंदे अब तेज हो चुकी थीं। दिनेश जब झूले पे बैठा तो उसके टांगों के बीच, खूब लंबा मोटा, विशालकाय खूंटे जैसा, लण्ड… मेरा तो दिल धक्क से रह गया, इतना बड़ा… और कितना… मोटा पर हिम्मत करके मैंने उसे पकड़ लिया और उसे चिढ़ाया- “क्यों, ये आदमी का है, कि गधे का…”


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मुश्कुराकर वह बोला- “पसंद तो है ना…”




मेरे किशोर गोरे-गोरे हाथों की गरमी पाकर वह एकदम खड़ा हो गया था और अब इत्ता फूल गया था कि मेरी मुट्ठी में नहीं समा पा रहा था। मैंने उसे कस के खींचा तो ऊपर का चमड़ा हट गया और पूरा सुपाड़ा खुल गया।



जैसे एकदम गुस्से में हो… लाल लाल… खूब बड़े पहाडी आलू जैसा।

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मैंने बात बदलकर पूछा- “तुम मेरे पीछे से क्यों आये… मेरा मतलब है…”


“इसलिये मेरी जान…” मेरे गाल चूमते हुये वो बोला- “कि कहीं तुम उसे देखकर डर ना जाओ, और फिर… इसका क्या होता…”


बात उसकी सही थी… किसी लड़की का भी दिल दहल जाता… पर एक बार लेने के बाद कौन मना कर सकता था। मैं उसका लण्ड पकड़कर सहला, मसल रही थी पर सुपाड़ा उसी तरह खुला हुआ था।



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“आओ ना…” अब वह बेताब हो रहा था। उसने मेरी दोनों टांगें खूब अच्छी तरह फैलाकर मुझे झूले पे अपनी गोद में बिठा लिया। मेरे चूतड़ उसकी जांघों पे थे और उसका बेताब सुपाड़ा मेरी चूत को रगड़ रहा था।



मैंने दोनों हाथों से कसकर झूले की रस्सी पकड़ ली। उसने अपने दोनों मजबूत हाथों में पकड़कर मुझे अपनी ओर कसकर खींचा और मेरे रसीले गाल कसकर काट लिये। मेरे उभरे जोबन उसकी चौड़ी छाती से कस के दब गये थे। मेरी टांगें उसकी कमर के दोनों ओर फैलीं थी इसलिये चूत का मुँह वैसे ही थोड़ा फैला था।







उसने अपने एक हाथ से मेरे भगोष्ठों को खूब जबरन फैलाया और फिर अपना सुपाड़ा सेंटर करके कस के मेरे चूतड़ पकड़कर धक्का दिया। मैंने भी हिम्मत करके रस्सी पकड़कर अपनी कमर को जोर से उसकी ओर पुश किया… एक हाथ कमर पे और दूसरा मेरे चूतड़ को पकड़कर उसने पूरी ताकत से धक्का दिया और दो-तीन बार में मेरी कसी चूत पूरा सुपाड़ा गप्प कर गयी।


हवा तेज हो चली थी, इसलिये बौछार खूब कस-कसकर हम लोगों की देह पे पड़ रही थी।



नीम का पेड़ भी झूम रहा था, और आंगन की उंची दीवालों के पार, हरे-हरे पेड़ खूब कसकर झूम रहे थे, घने काले बादल उमड़ घुमड़ रहे थे
और मौसम की इस मस्ती में भीगते हुये, दिनेश खूब जोर से पेंग लगाता, जब झूला ऊपर जाता तो वो लण्ड थोड़ा बाहर खींच लेता और जैसे ही वह नीचे आता, वह पूरी ताकत से कस के धक्के के साथ लण्ड अंदर करता, और मैं भी अपनी ओर से धक्का लगाकर उसका पूरा साथ देती।



झूले पे इस तरह झूलते, बारिश में भीगते, चुदाई का मजा लेते, हम दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे, दबा रहे थे।


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कजरी और झूला


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झूले पे इस तरह झूलते, बारिश में भीगते, चुदाई का मजा लेते, हम दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे, दबा रहे थे।


झूला हो और कजरी ना हो, दिनेश ने मुझसे कहा और मैं मस्ती में गाने लगी-


हमरे आंगन में, नीम पे झूला डलवाय दो, हमका झुलाय दो ना,
अरे अपनी गोदिया में हमका बैठाय के, सजन झुलाय दो ना,


हमार दोनों जोबना पकड़, धक्का कस के लगावा, हमका झुलाय दो ना,
लण्ड कस के घुसावा, बुर हमरी चुदावा, चुदवाय दो ना, सजन सावन में हमका झुलाय दो ना,





बारिश अब और तेज हो गयी थी।


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आंगन में पानी के बुलबुले फूट रहे थे। भाभी के मायके का आधा आंगन कच्चा था, जिसके बगल में फूलों की क्यारियां बनी थी। वहां मिट्टी गीली हो रही थी।


दिनेश ने मुझसे पूछा- “तुमने कभी बिना झूले के झूला, झूला है…”

मैंने कहा- “नहीं, बिना झूले के कैसे…”

वह बात काटकर बोला- “झूलना है, तुम्हें…”

उसके होंठ चूमते हुये, मैं बोली- “हां… जरूर…”





अब वह मुझे लिये झूले पर से उतरा, आधे से अधिक लण्ड मेरी चूत में घुसा था।


वह मुझे वैसे ही लिये वहां आया जहां आंगन कच्चा था और मुझे लिटा दिया।

मेरी दोनों टांगों अभी भी उसी तरह उसके दोनों ओर फैली थीं। उसने अपनी दोनों टांगें मेरे चूतड़ के नीचे की और फिर अचानक मेरी कमर के नीचे हाथ डालकर मुझे उठा लिया।

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मैं जैसे ऊपर आती, वह पीछे मुड़ जाता और जब वह आगे आता तो… मुझे लगभग अपने हाथों के सहारे जमीन पे लिटा देता, जैसे बच्चे सी-सा खेलते हैं उसी तरह। और इसी के साथ-साथ उसका लण्ड भी खूब कस-कस के रगड़ता हुआ मेरी चूत के अंदर-बाहर हो रहा था


। आंगन का पानी भी बहकर मिट्टी वाले हिस्से की ओर से आ रहा था और वहां पूरा कीचड़ हो रहा था। मेरे चूतड़ में भी कीचड़ थोड़ा लगा गया।

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थोड़ी देर तक इस तरह झूला झूलाने के बाद उसने मुझे खींच के अपनी जांघ पे बिठा लिया और मेरे होंठों को कस के चूमते, पूछा- “क्यों कैसा लगा, झूला…”


उसके चुम्बन का जवाब मैंने भी खूब कस के उसे चूमते हुए दिया और बोली- “बहुत मजा गया…”


“तो लो इस तरह से भी झूलने का मजा लो…” अ


ब वह मुझे अपनी जांघ पर बिठाकर चोदते हुये ही झूलने का मजा दे रहा था। इसमें और भी मजा आ रहा था, कभी वह मेरी कमर पकड़ के झुलाता, कभी दोनों चूंचिया पकड़ के। थोड़ी देर इस तरह से झुलाने के बाद उसने मुझे मिट्टी पर लिटा दिया।

मेरी जांघें पूरी तरह फैली हुई थीं, और उसके बीच में वह।



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उसका आधे से भी ज्यादा, विशालकाय मोटा लण्ड मेरी चूत को फाड़ते हुये, उसके अंदर घुसा हुआ था।

पानी की धार चारों ओर उसके शरीर से होते हुये मेरी कंचन काया पर गिर रही थी। मेरी दोनों चूचियों को पकड़ वह मेरी आँखों में प्यार से झांक रहा था। जैसे उसकी आँखें पूछ रही हों- “क्यों… डाल दूं पूरा… दर्द तो तुम्हें होगा थोड़ा… पर मेरा मन भी…”




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कीचड़ में कमल

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पंकिल उरोज


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हम दोनों सब कुछ भूलकर वहशियों की तरह चुदाई कर रहे थे।
…………………..
थोड़ी देर में उसने मुझे पलट दिया। अब मेरे दोनों हाथ कोहनियों के बल मुड़े थे और उनके और घुटनों के बल मैं थी, मेरे चूतड़ उठे थे।

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वो कमर पकड़ के अपना लण्ड हर धक्के के साथ सुपाड़े तक निकालकर पूरा पेल रहा था और मैं भी उसके हर धक्के का जवाब कस के दे रही थी। थोड़ी ही देर में उसके जोरदार धक्कों से मेरी कुहनी जमीन पर लग गयी और अब मेरी रसीली चूचियां कस-कस के कीचड़ में लिथड़ रही थीं, उसके हर धक्के के साथ वह बुरी तरह कीचड़ में रगड़ खा रहीं थी, मैं कभी दर्द से, कभी मजे से चिल्ला रही थी पर उसके ऊपर कोई असर नहीं था।


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सटासट-सटासट वह धक्के मारे जा रहा था और मेरी चूत भी गपागप-गपागप उसका लण्ड घोंट रही थी।




बरसात भी अब तूफानी बरसात में बदल चुकी थी। मुसलाधार पानी के साथ तूफानी हवा भी चल रही थी, पेड़ जोर से हर हरा रहे थे। चर-चर धड़ाम की आवाज से बाहर अचानक कोई बड़ा पेड़ गिरा। और उसी समय उसके मोटे गधे की तरह लंबे लण्ड का बेस मैंने अपने चूत के मुँह पे महसूस किया।


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और मैं तेजी से झड़ने लगी।

मैं ऐसे इसके पहले कभी नहीं झड़ी थी।


मेरी पूरी देह जोर-जोर से कांप रही थी, मेरी चूचियां पत्थर जैसी कड़ी हो गयीं थीं और मेरे चूचुकों में भी झड़ने का सेंसेशन हो रहा था। मेरा झड़ना रुकता और फिर एक नयी लहर शुरू हो जाती। मेरी चूत में उसके लण्ड का एहसास बार-बार झड़ना ट्रिगर कर रहा था।


जैसे किसी बहुत पतली मुँह वाली बोतल में खूब ठूंस कर कोई मोटा, बड़ा कार्क घुसेड़ दिया जाय, और बड़ी मुशिक्ल से वह घुस तो जाय पर उसका निकालना उतना ही मुश्किल हो, वही हालत मेरी हो रही थी। '





जब उसने आखिरी बार कस के धक्का मारा तो मैं कीचड़ में पूरी तरह लेट गयी थी और चूंचिया तो अच्छी तरह लिथडीं थीं हीं,


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बाकी पेट, जांघों पर भी अच्छी तरह कीचड़ लिपट गया था। मेरी कमर को पकड़कर ऊपर उठाकर खूब कस-कस के खींचा तो लण्ड थोड़ा, बाहर निकला।

अब उसने मुझे पीठ के बल लिटा दिया।



जब उसने मुझे, मेरे जोबन को कीचड़ से लथपथ देखा तो कहने लगा- “अरे, तेरी चूचियां तो कीचड़ में…”
“और क्या, कीचड़ में ही तो कमल खिलते हैं, लेकिन तुम क्यों अलग रहो…”



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और मैंने अपने हाथ में बगल की क्यारी में से खूब अच्छी तरह कीचड़ ले लिया था, उसे मैंने उसके दोनों गालों पर होली में जैसे रंग मलते हैं, खूब कसकर मल दिया।




“अच्छा, अभी लगता है थोड़ी कसर बाकी है…” और उसने ढेर सारा कीचड़ निकालकर मेरे जोबन पर रख दिया और कसकर मेरी चूचियों की रगड़ाई मसलाई करने लगा।





मैं क्यों पीछे रहती मैंने भी अबकी ढेर सारा कीचड़ लेकर उसके मुंह, पीठ पर अच्छी तरह लपेट दिया।

मुझे फिर एक आइडिया आया। मैंने उसे कस के अपनी बाहों में भींच लिया और अपनी चूंचियां उसकी चौड़ी छाती पर रगड़ने लगी और अब वह भी उसी तरह लथपथ था, जैसे हम कीचड़-कुश्ती कर रहे हों।


“अच्छा…” कहकर उसने मेरे भरे-भरे गालों को कसकर काट लिया और जोर से काटता रहा।

उईइइइइइ… मैं चीख पड़ी पर बारिश और तूफान में क्या सुनाई पड़ता। पर उसे कोई फरक नहीं पड़ा और कुछ रुक कर उसने दुबारा वहीं पूरी ताकत से काटा। मैं समझ गयी, गाल के ये दाग, मेरे घर लौटने के भी बहुत दिन बाद तक रहेंगे।


तभी उसने, मैंने जो उसके गाल पे कीचड़ लगाया था, कसकर अपने गाल को मेरे गालों पर रगड़कर लगाना शुरू कर दिया।


“इस मलहम से तेरे गालों का दर्द चला जायेगा…” वह हँसकर बोला।



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मैंने बदले में ढेर सारा कीचड़ उठाकर उसकी पीठ पर डाल दिया। हमारे बदन एक दूसरे को रगड़ रहे थे, लग रहा था उसके ढेर सारे हाथ और होंठ हो गये हों।


कभी वह मेरी चूचियों को कस-कस के रगड़ता, मसलता, कभी क्लिट को छेड़ता, कभी उसके होंठ मेरे गाल और होंठ चूसते काटते, कभी मेरे निपल का सारा रस निकाल लेते, और उसका लण्ड तो किसी मोटे पिस्टन की तरह बिना रुके मेरी चूत के अंदर-बाहर हो रहा था, कभी वह मेरे चूतड़ पकड़ के चोदता, कभी कमर पकड़ के।




उसने अपना लण्ड सुपाड़े तक बाहर निकालकर मेरी दोनों किशोर चूंचियों को कस के पकड़ के पूछा-


“क्यों गुड्डी मजा आ रहा है, चुदवाने का…”

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हां साजन हां, ओह…”


और मेरे चूतड़ अपने आप ऊपर उठ गये।


मैंने अपनी दोनों टांगें उसके कमर के पीछे जकड़कर खींचा और उसने इत्ता कस के धक्का मारा कि पूरा लण्ड एक बार में अंदर हो गया। चोदते-चोदते कभी वह मुझे ऊपर कर लेता, उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में और वह मेरी मस्त चूचियों को मसलता रहता, उसकी पूरी पीठ कीचड़ से लथपथ हो जाती।


पर हम दोनों को कोई परवाह नहीं थी।


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वह चोदता रहा, मैं चुदवाती रही।




मुझे पता नहीं कि मैं कित्ती बार झड़ी पर जब वह झड़ा तब तक मैं पस्त हो चुकी थी। बारिश धीमी हो गयी थी। हम दोनों ने जब एक दूसरे को देखा तो हंसे बिना नहीं रह सके, कीचड़ में एकदम लथपथ।



आंगन के बगल की खपड़ैल जो थी उसपर से छत का पानी परनाले की तरह बह रहा था। मैं उसे, उसके नीचे खींच के ले गयी और छोटे बच्चों की तरह, जैसे मोटे नल की धार के नीचे खड़े होकर हम दोनों नहाते रहे और मल-मल कर एक दूसरे का कीचड़ छुड़ाते रहे।


फिर मैं एक तौलिया ले आयी और दिनेश को मैंने रगड़-रगड़ के सुखाया।और वह भी मुझे रगड़ने का मौका क्यों छोड़ता।

वह बार-बार पूछता-


“अगली बार कब…”



पानी लगभग बंद हो गया था। मैं उसे छोड़ने दरवाजे तक गयी। बाहर गली में दोनों ओर देखकर मैंने उसे कसकर बाहों में पकड़ लिया और उसके मुँह पर एक कसकर चुम्मा लेते हुए बोली-

“तुम, जब चाहो तब…”


अब मेरी देह बुरी तरह टूट रही थी। पलंग पर लेटते ही मुझे पता नहीं क्यों रवीन्द्र की याद आ रही थी। मुझे अचानक याद आया, चन्दा ने जो कहा था, रवीन्द्र के बारे में, उसका… उसने जितना देखा है उन सबसे ज्यादा… और उसने दिनेश का तो देखा ही है… तो क्या रवीन्द्र का दिनेश से भी ज्यादा


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उफ़… आज तो मेरी जान ही निकल गयी थी और रवीन्द्र… यह सोचते सोचते मैं सो गयी।


सपने में भी, रवीन्द्र मुझे तंग करता रहा।
 

Black horse

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Holi se pahle saavan ke maje, kya baat, kya baat
 
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Manju mallu

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मेला



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चन्दा की छोटी बहन, कजरी, उसकी सहेली, गीता, पूरबी और रमा भी आ गई थीं और हम सब लोग मेले के लिये चल दिये।




काले उमड़ते, घुमड़ते बादल, बारिश से भीगी मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक, चारों ओर फैली हरी-हरी चुनरी की तरह धान के खेत,

हल्की-हल्की बहती ठंडी हवा, मौसम बहुत ही मस्त हो रहा था।


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हरी, लाल, पीली, चुनरिया, पहने अठखेलियां करती, कजरी और मेले के गाने के तान छेड़ती, लड़कियों और औरतों के झुंड मस्त,

मेले की ओर जा रहे थे, लग रहा था कि ढेर सारे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आयें हो।


और उनको छेड़ते, गाते, मस्ती करते, लम्बे, खूब तगड़े गठीले बदन के मर्द भी… नजर ही नहीं हटती थी।



कजरी ने तान छेड़ी-

“अरे, पांच रुपय्या दे दो बलम, मैं मेला देखन जाऊँगी…”

और हम सब उसका गाने में साथ दे रहे थे।





तभी एक पुरुष की आवाज सुनायी पड़ी-

“अरे पांच के बदले पचास दै देब, जरा एक बार अपनी सहेली से मुलाकात तो करवा दो…”

वह सुनील था और उसके साथ अजय, रवी, दिनेश और उनके और साथी थे।





पूरबी ने मुझे छेड़ते हुये कहा-

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“अरे, करवा ले ना… एक बार… हम सबका फायदा हो जायेगा…”



मैंने शर्मा कर नीचे देखा तो मेरा आंचल हटा हुआ था और मेरे जोबन के उभार अच्छी तरह दिख रहे थे, जिसका रसास्वादन सभी लड़के कर रहे थे।





“बोला, बोला देबू, देबू कि जइबू थाना में बोला, बोला…”


सुनील ने मुझे छेड़ते हुए गाया।





“अरे देगी, वो तो आयी ही इसीलिये है… देखो ना आज हरी चुनरी में कैसे हरा सिगनल दे रही है…”


चन्दा कहां चुप रहने वाली थी।


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“अच्छा अब तो इस हरे सिगनल पर तो हमारा इंजन सीधे स्टेशन के अंदर ही घुसकर रुकेगा…”

उसके साथी ने खुलकर अपना इरादा जताया।

माल तो मस्त है , एकदम जबरदस्त है ई नयका माल

उसने जोड़ा और गाना शुरू कर दिया , और मेरी ओर इशारा कर कर के ,



कमरिया चले ले लपलप्प ,लालीपाप लागेलू

जिल्ला टॉप लागेलू
तू लगावेलु जब लिपस्टिक तब जिया मार लागेलू





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चंदा ने मुझे इशारे से बताया की यही रवी है , कल जिसकी तारीफ़ वो चूत चटोरा कह के कर रही थी ,वही।



खूब खुल के मेरी ओर इशारे कर के वो गा रहा था और सब लड़के दुहरा रहे थे.



मैं थोड़ा शरमा ,झिझक रही थी लेकिन बाकी लड़कियां ,मेरी सहेलियां खुल के मजे लेरही थीं।


और लड़कों को और उकसा रही थीं





तब तक एक लड़के ने मेरे नथुनी को लेके मजाक शुरू कर दिया ,

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" हे अरे यह शहरी माल क नथुनिया तो जान मार रही है "


और लगता है की वो कोई गीता का पुराना यार होगा , उसने सीधा उसी से पूछा



"नथ उतराई अभिन हुयी है है की नहीं। "


गीता एक पल के लिए रुकी और मेरा चेहरा उन सबों की ओर कर के दिखा के बोली ,



" अरे देख नहीं रहे हो इतनी बड़ी नथ , एकदम कच्ची कुँवारी कली मंगवाया है तुम सबके लिए "



और लड़कों के पहले सारी लड़कियां खिलखिला के हंसने लगी ,


रवी ने मेरे नथ की ओर इशारा करके एक नया गाना छेड़ दिया।


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मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।


जैसे नखड़ा जवानी में रखेल करेला , मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला।

मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।

भइले जब सैयां जी क दिल बेईमान , उनके रस्ते में ई बन गइले दरबान

मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।



और जवाब उसके गाने का मेरी ओर से पूरबी ने दिया ,



सही कह रहे हो , खाली ललचाते रहना इसका लाल लाल होंठ देखकर , जबरस्त दरबान है ई नथुनिया।



तब तक अजय ने मुझे इस निगाह से देखा की मैं पानी पानी हो गयी।

कल जब से मैं अजय को देखा था कुछ कुछ हो रहा था , और वैसे भी शादी में जब मैं आई थी उस समय से , फिर भाभी भी बार बार उसे से मेरा टांका भीड़वाने के चक्कर में पड़ी थीं।

और फिर अजय चालू हो गया , उसकी आवाज में था कुछ





अरे जौन जौन कहबा , मानब तोर बचनिया
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया

चढ़त जवानी रहलो न जाय , तोहरे बिना हमार मन घबड़ाये

रतिया के आयजा तानी जुबना दबावे
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया




और चंदा ने चिढ़ाया मुझे ,

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यार अब न तेरे होंठों का रस बचेगा न जुबना का आगया लूटने वाला भौंरा।


और मेरे मुंह से निकल गया तो क्या हुआ ,

फिर तो मेरी सारी सहेलियों ने ,....


लेकिन हम लोगों ने अब गाना शुरू किया ,



पूरबी ने शुरू किया , कुछ देर तक तो मैं शरमाई फिर मैंने भी ज्वाइन कर लिया



हो मोहे छेड़े हैं छैले बजरिया मां

अरे मार गवा बिच्छू बजरिया मां।

नागिन के जैसे लहरे कमरिया ,

छुरी जैसी है हमरी नजरिया ,

अरे , मार गवा बिच्छू बजरिया में।

अरे मच गवा सोर बजरिया मा

अरे मार गवा बिच्छू बजरिया माँ।
अरे कइसन बचाय आपन इमनवा

हो मोहे छेड़े हैं छैले बजरिया मां


" अरे ऐसा जानमारू माल होगा तो छैले छेड़ेंगे ही और सिर्फ छेड़ेंगे नहीं , बल्कि जरा ई चोली फाड़ उभार तो देखो "


ये सुनील था।



और मैंने ध्यान दिया तो गाने के चक्कर में मेरी चुनरी नीचे सरक गयी थी

और दोनों कड़े कड़े गदराये उभार साफ साफ दिख रहे थे और रवी फिर चालू हो गया ,





अरे अरे निबुआ कसम से गोल गोल

तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।

अरे जुबना दबाइबा तब बड़ा मजा आई

तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।

गलवा दबयिबा तब बड़ा मजा आई ,

तानी दबाई के देखा राजा तोहार मनवा जाइ डोल।



जुबना क रस लेबा ता बड़ा माजा आई



तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।






आज तो सब के सब लड़के तेरे ही पीछे पड़ गए हैं यार ,

रमा ने चिढ़ाया मुझे।



“साढ़े तीन बजे गुड्डी जरुर मिलना, अरे साढ़े तीने बजे…”

अजय की रसभरी आवाज मेरे कानों में पड़ी।

पान खा ला गुड्डी , खैर नहीं बा अरे बोल बतिया ला बैर नहीं बा

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे

अरे एक बार देबू ,धरम पइबू ,
जोड़ा लइका खिलैबु ,मजा पइबू साढ़े तीन बजे ,

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे।

बबुरे का डंडा फटाफट होए ,

तोहरी जांघंन के बीचे सटासट होय ,साढ़े तीन बजे

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे

इकन्नी दुआँन्नी डबल पैसा

तुहारी पोखरी में कूदल बा हमार भैन्सा , साढ़े तीन बजे।

पांच के बादल पचास लग जाय ,

बिन रगड़े न छोड़ब चाहे पुलिस लग जाय ,

अरे करिवाय ल , अरे करिवाय ल , अरे डरवाय ला ,साढ़े तीन बजे।

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे





आज तेरी बचने वाली नहीं है जानू ,

अजय की ओर इशारा करके चंदा ने मेरे कान में कहा और मेरे गुलाबी गाल मसल दिए।

चन्दा ने फ़ुसफुसाया-

“अरे बोल दे ना वरना ये पीछे पड़े ही रहेंगे…”



“ठीक है, देखूंगी…” मैंने अजय की ओर देखते हुए कहा।



“अरे लड़की शायद कहे, तो हां होता है…” अजय के एक साथी ने उससे कहा।





वह मर्दों के एक झुंड के साथ चल दिये और हम लोग भी हँसते खिलखिलाते मेले की ओर चल पड़े।


मेले का मैदान एकदम पास आ आया था, ऊँचे-ऊँचे झूले, नौटंकी के गाने की आवाज…

भीड़ एकदम बढ़ गयी थी, एक ओर थोड़ा ज्यादा ही भीड़ थी।





कजरी ने कहा- “हे उधर से चलें…”



“और क्या… चलो ना…”

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गीता उसी ओर बढ़ती बोली, पर कजरी मेरी ओर देख रही थी।





“अरे ये मेलें में आयी हैं तो मेले का मजा तो पूरा लें…”


खिलखिलाते हुये पूरबी बोली।



मैं कुछ जवाब देती तब तक भीड़ का एक रेला आया और हम सब लोग उस संकरे रास्ते में धंस गये।

मैंने चन्दा का हाथ कसकर पकड़ रखा था। ऐसी भीड़ थी की हिलना तक मुश्किल था, तभी मेरे बगल से मर्दों का एक रेला निकला और एक ने अपने हाथ से मेरी चूची कसकर दबा दी।

जब तक मैं सम्हलती, पीछे से एक धक्का आया, और किसी ने मेरे नितम्बों के बीच धक्का देना शुरू कर दिया।

मैंने बगल में चन्दा की ओर देखा तो उसको तो पीछे से किसी आदमी ने अच्छी तरह से पकड़ रखा था,

और उसकी दोनों चूचियां कस-कस के दबा रहा था और चन्दा भी जमके मजा ले रही थी।


कजरी और गीता, भीड़ में आगे चली गयी थीं और उनको तो दो-दो लड़कों ने पकड़ रखा था

और वो मजे से अपने जोबन मिजवा, रगड़वा रही हैं। तभी भीड़ का एक और धक्का आया

और हम उनसे छूटकर आगे बढ़ गये।

भीड़ अब और बढ़ गयी थी और गली बहुत संकरी हो गयी थी।



अबकी सामने से एक लड़के ने मेरी चोली पर हाथ डाला और जब तक मैं सम्हलती,

उसने मेरे दो बटन खोलकर अंदर हाथ डालकर मेरी चूची पकड़ ली थी।





पीछे से किसी के मोटे खड़े लण्ड का दबाव मैं साफ-साफ अपने गोरे-गोरे, किशोर चूतड़ों के बीच महसूस कर रही थी।

वह अपने हाथों से मेरी दोनों दरारों को अलग करने की कोशिश कर रहा था और मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी,

इसलिये उसके हाथ का स्पर्श सीधे-सीधे, मेरी कुंवारी गाण्ड पर महसूस हो रहा था।





तभी एक हाथ मैंने सीधे अपनी जांघों के बीच महसूस किया और उसने मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया था।


चूची दबाने के साथ उसने अब मेरे खड़े चूचुकों को भी खींचना शुरू कर दिया था।

मैं भी अब मस्ती से दिवानी हो रही थी।





चन्दा की हालत भी वही हो रही थी। उस छोटे से रास्ते को पार करने में हम लोगों को 20-25 मिनट लग गये होंगे

और मैंने कम से कम 10-12 लोगों को खुलकर अपना जोबन दान दिया होगा।





बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा-


“क्यों मजा आया हार्न दबवाने में…”




बेशरमी से मैंने कहा-



“बहुत…”


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Aapke saawan me to me poori tarah bheeg gaie hun
 
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मस्त अपडेट है चुदाई दार । मजा आ गया
 
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