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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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चालीसवीं फुहार - भोर भिनसारे

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चम्पा भाभी मेरे पीछे पड़ गईं की मैं खाना खा लूँ, मैं लाख जिद करती रही की सबके साथ खाऊँगी, लेकिन…भाभी और माँ को आने दीजिये पर चंपा भाभी एकदम पीछे पड़ी थीं,... अपने हाथ से इतने प्यार दुलार से उन्होंने खिलाया की,...


मुझे थकान और नींद दोनों लग रही थी। कल रात भर जिस तरह मेरी कुटाई हुई थी, फिर सुबह भी, जाँघे फटी पड़ रही थीं। खाने के बाद जैसे ही मैं अपने कमरे में गई तुरंत नीद आ गई। हाँ लेकिन सोने के पहले, जो कामिनी भाभी ने गोली खाने को बोला था, और उभारों पर और नीचे खास तेल लगाने को बोला था, वो मैं नहीं भूली।



पता नहीं सोने के पहले, या आधी नींद में या कच्ची नींद में, मुझे माँ ( भाभी की माँ को मैं भी पहले दिन से ही माँ कहती थी और वो भी उतने ही प्यार दुलार से चिपका लेती थीं, कभी चूम लेती थीं ) की आवाज सुनाई दी और अपनी भाभी की भी. लगता है वो दोनों लोग आ गयीं थी और आते ही चम्पा भाभी ने खिलखिलाते हुए, उन लोगों से पूरा हाल बता दिया की किस तरह बसंती ने मेरे ऊपर चढ़कर, मुझे वो,... वही,... पूरा घलघल घलघल सुनहरा शरबत पिला दिया।



मेरी भाभी की बड़ी ख़ुशी की आवाज आ रही थी, बोली, " भाभी, आप लोग उसे सचमुच खारा नमकीन, पिला पिला के पक्की नमकीन लौंडिया बना के ही यहाँ से भेजेंगी।

लेकिन माँ ने उन्हें हड़का लिया, " तुम लोग न इतना दिन, अरे हम तो कह रहे थे की उसके आने के दूसरे तीन दिन से ही, अरे जउने दिन रतजगा में सबके सामने पूरा उघार कर के खड़ी हुयी, पूरे गाँव क कुल औरतन क सामने आपन बिलिया खोल के, बस अगले दिन ही,... "

" माँ लेकिन बात आप ही की सच होती है देखिये उसने चारों मेरे भाइयों का,... "

और फिर वो तीनों लोग खिलखिलाने लगीं, और मुझे याद आया, जिस दिन मैं भाभी के साथ आयी थी, यहीं बरामदे में, सोहर हो रहा था और हर सोहर में मेरा नाम ले ले कर, पहले सोहर में ही , गाँव सारी भाभियाँ मुझे दिखा दिखा के, चिढ़ा चिढ़ा के सुर में गा रही थीं,



" दिल खोल के मांगो ननदी जो मांगों सो दूंगी, दिल खोल के मांगो,...

अरे सैयां मत मांगो ननदी, अरे सैंया मत मांगो ननदी सेज का सिंगार रे,

सैंया के बदले भैया दूंगी, चोदी चूत तोहार रे , अरे चोदी चूत तोहार रे,

बुर खोल के मांगो ननदी,...

मैं शरमा रही थी, लेकिन ,मेरी भाभी ये मौका क्यों छोड़ देती, मुझे चिढ़ाती मेरी ठुड्डी पकड़ के मेरा चेहरा उठा के मुझसे पूछने लगीं,

" बोल न, अजय, सुनील, रवी दिनेश, चारों में से किसके साथ तेरी गाँठ जुड़वाऊं "

लेकिन उनकी बात काट के भाभी की माँ दुलार से मेरे गोरे गोरे गाल सहलाते बोलीं,

" अरे समझती क्या हो मेरी इस बिन्नो को, एक से क्यों चारों से चुदवायेगी, क्यों हैं न, ... "


और मैं शर्म से लाल हो गयी, पर माँ की बात , सच में उन चारों ने उस दिन के , तीन चार दिन के अंदर ही मुझे अच्छी तरह कई बार चोद दिया।



और माँ मेरी दोनों भाभियों को, मेरी भाभी और भाभी की भाभी, चंपा भाभी को जोर से हड़का रही थीं,


" कल से पानी क एक बूँद भी उसके गले के नीचे से नहीं, बस वही खारा,... " लेकिन उनकी बात मेरी भाभी ने काट दी, आज वो कुछ ज्यादा ही मस्त हो रही थीं, माँ से बोलीं,

" सबसे बड़ी आप हैं, सबसे पहले आप नंबर लगाइए, घलघल घलघल, और आप उसे इतना प्यार दुलार करती हैं,... तो चढ़ के,... "

" एकदम, अरे मेरी बिन्नो है, छोटी। सीधे से नहीं मानेगी तो जबरदस्ती, जाँघों के बीच दबा के, एकाध हलकी चपत लगाना होगा तो वो भी उसके नमकीन गाल पे लगा दूंगी, ... अरे दू दू भौजाई घरे में,... "

अब चम्पा भाभी भी माँ की ओर से हो गयीं और मेरी भाभी की पोल पट्टी खोलने लगीं,


" भूल गयी, एहू से सुकुवार रहलू, जउने साल मैं बियाह के आयी थी, और एही आंगन में होली के दिन पटक पटक के , केतना छटक रही थी, लेकिन मैंने और नउनिया क बड़की बहू दोनों ने कितना पिलाया था, गाँव का कुल मेहरारुन लड़कीन के सामने, अच्छा ई बतावा हमार ननद रानी, अपनी ननद के पीछे तो बहुत पड़ी हो ई बतावा, ठकुराने गयी थी अपने कितने पुराने यारों से चुदवा के आयी हो, ... चार की पांच,... "

मेरी भाभी की बहुत देर तक खिलखलाने की आवाज आती रही, फिर लगता है उन्होंने कुछ ऊँगली से इशारा किया, ... और चंपा भाभी बोल पड़ीं,


" पूरे पांच,... बड़ी मेहनत पड़ी होगी, वो सब के सब नम्बरी चोदू हैं , एक बार के बाद छोड़े थोड़े होंगे, और ये क्या इशारे बाजी करत हाउ, तोहार ननदिया सोवत हौ , और जग भी रही हो तो अब तो हम लोगन क बिरादरी में आय गयी है, अब तो चाहो तो घरे पे बुलाय के ओकरे सामने, और फिर हाँ परसों श्यामू भी आ जाएगा, तो अब तो तू दूध देवे लगी हो , दुहवाना दूध उससे कस कस के , मलाई गटकना उसकी,... "


चंपा भाभी की आवाज सुनाई पड़ी, लेकिन तबतक नींद ने कस के आ घेरा,...

रात भर न एक सपना आया, न नींद टूटी। खूब गाढ़ी, बिना ब्रेक के घोड़े बेच के सोई मैं।



गाँव में रात जितनी जल्दी होती है, उससे जल्दी सुबह हो जाती है। मैं सो भी जल्दी गई थी और न जाने कितने दिनों की उधार नींद ने मुझे धर दबोचा था। एकदम गाढ़ी नींद, शायद करवट भी न बदली हो।


(वो तो बाद में मेरी समझ में आया की मेरी इस लम्बी नींद में, मेरी थकान, रात भर जो कामिनी भाभी के यहां रगड़ाई हुई थी, उससे बढ़कर, जो गोली कामिनी भाभी की दी मैंने कल सोने के पहले खाई थी उसका असर था। और गोली का असर ये भी था की जो स्पेशल क्रीम मेरी जाँघों के बीच आगे-पीछे, कामिनी भाभी ने चलने के पहले लगाई थी न और ये सख्त ताकीद दी थी की सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर मैं उपवास रखूं, उस क्रीम का पूरा असर मेरी सोन-चिरैया और गोलकुंडा दोनों में हो जाए। दो असर तो उन्होंने खुद बताए थे, कितना मूसल चलेगा, मोटा से मोटा भी, लेकिन मैं जब शहर अपने घर लौटूंगी तो मेरी गुलाबो उतनी ही कसी छुई मुई रहेगी, जैसी जब मैं आई थी, तब थी, बिना चुदी।

और दूसरा असर ये था की न मुझे कोई गोली खानी पड़ेगी और न लड़कों को कुछ कंडोम वंडोम, लेकिन न तो मेरा पेट फूलेगा, और न कोई रोग दोष। रात भर सोने से वो क्रीम अच्छी तरह रच बस गई थी अंदर। हाँ, एक असर जो उन्होंने नहीं बताया था लेकिन मुझे खुद अंदाजा लग गया, वो सबसे खतरनाक था। मेरी चूत दिन रात चुलबुलाती रहेगी, मोटे-मोटे चींटे काटेंगे उसमें, और लण्ड को मना करने को कौन कहे, मेरा मन खुद ही आगे बढ़ के घोंटने को होगा)



और मेरी नींद जब खुली तो शायद एक पहर रात बाकी थी, कुछ खटपट हो रही थी।

मेरी खुली खिड़की के पीछे ही गाय भैंसें बंधती थी। और आज श्यामू (वो जो गाय भैंसों की देख भाल करता था और जिसका नाम ले ले के चम्पा भाभी और बसंती मेरी भाभी को खूब छेड़ती थीं) भी नहीं था, दो दिन की छुट्टी गया था। इसलिए बसंती ही आज, कल चम्पा भाभी ने उसे बोला भी था। मैं अधखुली आँखों से कुछ देख रही थी कुछ सुन रही थी, गाय भैंसों का सारा काम और फिर दूध दूहने का।



चाँद मेरी खिड़की से थोड़ी दूर घनी बँसवाड़ी के पीछे छुपने की कोशिश कर रहा था, जैसे रात भर साजन से खुल के मजे लूटने के बाद कोई नई-नई दुल्हन अपनी सास ननदों से घूंघट के पीछे छिपती शर्माती हो।




उसी बँसवाड़ी के पास ही तो दो दिन पहले अजय ने कुतिया बना के एकदम खुले आसमान के नीचे कितना हचक-हचक के, और कैसी गन्दी-गन्दी गालियां दी थीं उसने, न सिर्फ मुझे और बल्की मेरी सारे मायके वालियों को। शर्मा के मैंने आँखें बंद कर लीं और बची खुची नींद ने एक बार फिर…



और जब थोड़ी देर बाद फिर आँख खुली तो चाँद नई दुल्हन की जैसे टिकुली साजन के साथ रात के बाद सरक कर कहीं और पहुँच चुकी होती है, उसी तरह आसमान के कोने में टिकुली की तरह, लेकिन साथ-साथ हल्की-हल्की लाली भी, जो थोड़ी देर पहले काला स्याह अँधेरा था अब धुंधला हल्का भूरा सा लग रहा था। चिड़ियों की आवाजों के साथ लोगों की आवाजें भी। मेरी देह की पूरी थकान चली गयी थी, कल जो जाँघे फटी पड़ रही थी, कदम रखते ही चिलख उठती थी, अब सब ख़तम. रात भर की गहरी नींद का असर था या कामिनी भाभी की गोली का पता नहीं, बस पूरी देह में हलकी हलकी मस्ती सी लग रही थी. मैं अलसायी सी बिस्तर पे पड़ी थी, एक बार फिर से चादर खींच ली अपने ऊपर.


बसंती की आवाज भी आ रही थी, किसी से चुहुल कर रही थी। जब से श्यामू गया था, मुंह अँधेरे ,भोर में ही आके गाय भैंस का कुल काम, सानी पानी, सब वही देखती थी। उसका बाहर का काम खतम हो गया लगता था।


और बसंती की कल शाम की बात याद आ गई मुझे यहीं आँगन में तो, और चम्पा भाभी के सामने खुले आम आँगन में, मेरे ऊपर किस तरह चढ़ के जबरदस्ती उसने, मैं लाख कसर मसर करती रही… लेकिन बसंती के आगे किसी की चलती है क्या जो मेरी चलती? जो किया सो किया ऊपर से बोल गई, कल सुबह से रोज भोर भिनसारे, मुँह अंधियारे, बिना नागा,... ऐसी नमकीन हो जाओगी न की, …



गौने की दुल्हन जैसे। जब उसकी खिलखिलाती छेड़ती ननदें ले जाके उसे कमरे में बैठा देती हैं, फिर बेचारी घूंघट में मुँह छिपाती है, आँखें बंद कर लेती है, लेकिन बचती है क्या?

बस वही मेरी हालत थी।

मेरी कुठरिया में एक छोटा सा खिड़कीनुमा दरवाजा था। उसकी सिटकिनी ठीक से नहीं बंद होती थी, और ऊपर से कल मैं इतनी नींद में थी, उसे खींच के आगे करो और फिर हल्के से धक्का दो तो बस, खुल जाती थी। अजय भी तो उसी रास्ते से आया था।

उस दरवाजे के चरमर करने की आवाज हुई और मैंने आँखें बंद कर ली। लेकिन आँखें बंद करने से क्या होता है, कान तो खुले थे, बसंती के चौड़े घुंघरू वाले पायल की छम छम, आराम से उसने मेरा टाप उठाया और प्यार से मेरे उभार सहलाए।

मैंने कस के आँखें मींचे थी।

और अब वो सीधे मेरे उभारों के आलमोस्ट ऊपर, उसके हाथ मेरे गोरे गुलाबी गाल सहला रहे थे थे, और दूसरे हाथ ने बिना जोर जबरदस्ती के तेजी से गुदगुदी लगाई,

और मैं खिलखिला पड़ी।



“मुझे मालुम है, बबुनी जाग रही हो, मन-मन भावे, मूड़ हिलावे, आँखें खोलो…”

मुँह तो मेरा खुद ही खुल गया था लेकिन आँखें जोर से मैं भींचे रही, बस एक आँख जरा सा खोल के। दिन बस निकला था, सुनहली धूप आम के पेड़ की फुनगी पर खिलवाड़ कर रही थी, वहां पर बैठी चुहचुहिया को छेड़ रही थी। और खुली खिड़की से एक सुनहली किरन, मेरे होंठों पे, झप्प से मैंने आँखें आधी खोल दी।



सुनहली धूप के साथ, एक सुनहली बूँद, बसंती की… मेरे लरजते होंठ अपने आप खुल गए जैसे कोई सीप खुल जाए बूँद को मोती बनाने के लिए। एक, दो, तीन, चार, एक के बाद एक सुनहरी बूँदें, कुछ रुक-रुक कर, आज न मैं मना कर रही थी न नखड़ा।



थोड़ी देर में ही छर्रर, छरर, और फिर मेरे खुले होंठों के बीच बसंती ने अपने निचले होंठ सटा दिए। मेरे होंठों के बीच उसके रसीले मांसल होंठ घुसे धंसे फंसे थे। सुनहली शराब बरस रही थी। सुनहली धुप की किरणें चेहरे को नहला रही थी। पांच मिनट, दस मिनट, टाईम का किसे अंदाज था। और जब वो उठी तो मेरे गाल अभी भी थोड़े फूले थे, कुछ उसका।



बनावटी गुस्से से उसने मेरे खुले निपल मरोड़ दिए पूरी ताकत से और बोली- “भाईचोद, छिनार, रंडी की जनी, तेरे सारे मायकेवालियों की गाण्ड मारूं, घोंट जल्दी…”



और मैं सब गटक गई।



बसंती दरवाजा खोल के आंगन में चली गई और मैं पांच दस मिनट और बिस्तर पर अलसाती रही। बाहर आंगन में हलचल बढ़ गई थी। दिन चढ़ना शुरू हो गया था। अलसाते हुए मैं उठी, अपना टाप ठीक किया और ताखे के बगल में एक छोटा सा शीशा लटका हुआ था। मैंने बाल थोड़ा सा ठीक किया, ऊपर वाले होंठ पर अभी भी दो चार, सुनहरी बूंदें, चमक रही थीं। मेरी जीभ ने उसे चाट लिया, थोड़ा नमकीन थोड़ा खारा, मेरे उभार आज कुछ ज्यादा ही कसमसा रहे थे।



दरवाजा तो बंसती ने ही खोल दिया था, मैं आँगन में निकल गई।
 

chodumahan

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गुड्डी तो जबरदस्त है.. चार-चार को एक साथ संभाल सकती है..
भाभी की माँ और कामिनी भाभी तो विशेषज्ञ हैं..
गुड्डी यहाँ से PHD करके हीं शहर जाएगी..
और शहर में रविंद्र भी तो है...जो अभी तक का सबसे लंबा और बलिष्ठ है(चंदा के अनुसार)..
लेकिन बीच-बीच में चंदा की झलकी (और उस जैसी गाँव की कमसिन किशोरियों की भी, जैसे सुनील की बहन इत्यादि) भी मिलती रहे
तो variety हों जाएगी (गाँव की लड़कियों की आपसी चुहलबाजी) और खलिहानों (जहाँ फसल काट केु शुरु में रखते है.) में भी बहुत मौके और जगह होती है..
 
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बहुत बढ़िया,
भाभी की पोल खोलना एक नया ही उत्तेजना लाती है कहानी में।
 
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komaalrani

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गुड्डी तो जबरदस्त है.. चार-चार को एक साथ संभाल सकती है..
भाभी की माँ और कामिनी भाभी तो विशेषज्ञ हैं..
गुड्डी यहाँ से PHD करके हीं शहर जाएगी..
और शहर में रविंद्र भी तो है...जो अभी तक का सबसे लंबा और बलिष्ठ है(चंदा के अनुसार)..
लेकिन बीच-बीच में चंदा की झलकी (और उस जैसी गाँव की कमसिन किशोरियों की भी, जैसे सुनील की बहन इत्यादि) भी मिलती रहे
तो variety हों जाएगी (गाँव की लड़कियों की आपसी चुहलबाजी) और खलिहानों (जहाँ फसल काट केु शुरु में रखते है.) में भी बहुत मौके और जगह होती है..


बहुत ही बढ़िया सुझाव, गाँव के माहौल के मुताबिक़, नयी नयी किशोरियों की मस्ती और छेड़छाड़
 
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Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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चालीसवीं फुहार - भोर भिनसारे

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चम्पा भाभी मेरे पीछे पड़ गईं की मैं खाना खा लूँ, मैं लाख जिद करती रही की सबके साथ खाऊँगी, लेकिन…भाभी और माँ को आने दीजिये पर चंपा भाभी एकदम पीछे पड़ी थीं,... अपने हाथ से इतने प्यार दुलार से उन्होंने खिलाया की,...


मुझे थकान और नींद दोनों लग रही थी। कल रात भर जिस तरह मेरी कुटाई हुई थी, फिर सुबह भी, जाँघे फटी पड़ रही थीं। खाने के बाद जैसे ही मैं अपने कमरे में गई तुरंत नीद आ गई। हाँ लेकिन सोने के पहले, जो कामिनी भाभी ने गोली खाने को बोला था, और उभारों पर और नीचे खास तेल लगाने को बोला था, वो मैं नहीं भूली।



पता नहीं सोने के पहले, या आधी नींद में या कच्ची नींद में, मुझे माँ ( भाभी की माँ को मैं भी पहले दिन से ही माँ कहती थी और वो भी उतने ही प्यार दुलार से चिपका लेती थीं, कभी चूम लेती थीं ) की आवाज सुनाई दी और अपनी भाभी की भी. लगता है वो दोनों लोग आ गयीं थी और आते ही चम्पा भाभी ने खिलखिलाते हुए, उन लोगों से पूरा हाल बता दिया की किस तरह बसंती ने मेरे ऊपर चढ़कर, मुझे वो,... वही,... पूरा घलघल घलघल सुनहरा शरबत पिला दिया।



मेरी भाभी की बड़ी ख़ुशी की आवाज आ रही थी, बोली, " भाभी, आप लोग उसे सचमुच खारा नमकीन, पिला पिला के पक्की नमकीन लौंडिया बना के ही यहाँ से भेजेंगी।

लेकिन माँ ने उन्हें हड़का लिया, " तुम लोग न इतना दिन, अरे हम तो कह रहे थे की उसके आने के दूसरे तीन दिन से ही, अरे जउने दिन रतजगा में सबके सामने पूरा उघार कर के खड़ी हुयी, पूरे गाँव क कुल औरतन क सामने आपन बिलिया खोल के, बस अगले दिन ही,... "

" माँ लेकिन बात आप ही की सच होती है देखिये उसने चारों मेरे भाइयों का,... "

और फिर वो तीनों लोग खिलखिलाने लगीं,
Are dhett teri ki :doh:
Kam se Kam chain se sone to do usko, kahe udham macha rahi hai ye teeno.. :doh: aur itni hansi mazak khilkhilana hi hai to kahi door jaake ye sab kare.. uski nind mein kahe khalal daal rahi hai..
और मुझे याद आया, जिस दिन मैं भाभी के साथ आयी थी, यहीं बरामदे में, सोहर हो रहा था और हर सोहर में मेरा नाम ले ले कर, पहले सोहर में ही , गाँव सारी भाभियाँ मुझे दिखा दिखा के, चिढ़ा चिढ़ा के सुर में गा रही थीं,



" दिल खोल के मांगो ननदी जो मांगों सो दूंगी, दिल खोल के मांगो,...

अरे सैयां मत मांगो ननदी, अरे सैंया मत मांगो ननदी सेज का सिंगार रे,

सैंया के बदले भैया दूंगी, चोदी चूत तोहार रे , अरे चोदी चूत तोहार रे,


बुर खोल के मांगो ननदी,...

मैं शरमा रही थी, लेकिन ,मेरी भाभी ये मौका क्यों छोड़ देती, मुझे चिढ़ाती मेरी ठुड्डी पकड़ के मेरा चेहरा उठा के मुझसे पूछने लगीं,

" बोल न, अजय, सुनील, रवी दिनेश, चारों में से किसके साथ तेरी गाँठ जुड़वाऊं "

लेकिन उनकी बात काट के भाभी की माँ दुलार से मेरे गोरे गोरे गाल सहलाते बोलीं,

" अरे समझती क्या हो मेरी इस बिन्नो को, एक से क्यों चारों से चुदवायेगी, क्यों हैं न, ... "


और मैं शर्म से लाल हो गयी, पर माँ की बात , सच में उन चारों ने उस दिन के , तीन चार दिन के अंदर ही मुझे अच्छी तरह कई बार चोद दिया।



और माँ मेरी दोनों भाभियों को, मेरी भाभी और भाभी की भाभी, चंपा भाभी को जोर से हड़का रही थीं,


" कल से पानी क एक बूँद भी उसके गले के नीचे से नहीं, बस वही खारा,... " लेकिन उनकी बात मेरी भाभी ने काट दी, आज वो कुछ ज्यादा ही मस्त हो रही थीं, माँ से बोलीं,

" सबसे बड़ी आप हैं, सबसे पहले आप नंबर लगाइए, घलघल घलघल, और आप उसे इतना प्यार दुलार करती हैं,... तो चढ़ के,... "

" एकदम, अरे मेरी बिन्नो है, छोटी। सीधे से नहीं मानेगी तो जबरदस्ती, जाँघों के बीच दबा के, एकाध हलकी चपत लगाना होगा तो वो भी उसके नमकीन गाल पे लगा दूंगी, ... अरे दू दू भौजाई घरे में,... "

अब चम्पा भाभी भी माँ की ओर से हो गयीं और मेरी भाभी की पोल पट्टी खोलने लगीं,


" भूल गयी, एहू से सुकुवार रहलू, जउने साल मैं बियाह के आयी थी, और एही आंगन में होली के दिन पटक पटक के , केतना छटक रही थी, लेकिन मैंने और नउनिया क बड़की बहू दोनों ने कितना पिलाया था, गाँव का कुल मेहरारुन लड़कीन के सामने, अच्छा ई बतावा हमार ननद रानी, अपनी ननद के पीछे तो बहुत पड़ी हो ई बतावा, ठकुराने गयी थी अपने कितने पुराने यारों से चुदवा के आयी हो, ... चार की पांच,... "

मेरी भाभी की बहुत देर तक खिलखलाने की आवाज आती रही, फिर लगता है उन्होंने कुछ ऊँगली से इशारा किया, ... और चंपा भाभी बोल पड़ीं,


" पूरे पांच,... बड़ी मेहनत पड़ी होगी, वो सब के सब नम्बरी चोदू हैं , एक बार के बाद छोड़े थोड़े होंगे, और ये क्या इशारे बाजी करत हाउ, तोहार ननदिया सोवत हौ , और जग भी रही हो तो अब तो हम लोगन क बिरादरी में आय गयी है, अब तो चाहो तो घरे पे बुलाय के ओकरे सामने, और फिर हाँ परसों श्यामू भी आ जाएगा, तो अब तो तू दूध देवे लगी हो , दुहवाना दूध उससे कस कस के , मलाई गटकना उसकी,... "


चंपा भाभी की आवाज सुनाई पड़ी, लेकिन तबतक नींद ने कस के आ घेरा,...

Kahe itna pareshan kar rahi hai kahani ki lead heroine ko :bat:
kya unlogo pata nahi agar Nayika apni pe aayi na to inlogo ke Khair nahi...
wo to Abhi thodi bahot sharma rahi hai, jis din usne sharam ka daaman chhodi to, phir dekhiyo kiska mazak masti zyada bhari pad jaaye kispe...
रात भर न एक सपना आया, न नींद टूटी। खूब गाढ़ी, बिना ब्रेक के घोड़े बेच के सोई मैं।



गाँव में रात जितनी जल्दी होती है, उससे जल्दी सुबह हो जाती है। मैं सो भी जल्दी गई थी और न जाने कितने दिनों की उधार नींद ने मुझे धर दबोचा था। एकदम गाढ़ी नींद, शायद करवट भी न बदली हो।


(वो तो बाद में मेरी समझ में आया की मेरी इस लम्बी नींद में, मेरी थकान, रात भर जो कामिनी भाभी के यहां रगड़ाई हुई थी, उससे बढ़कर, जो गोली कामिनी भाभी की दी मैंने कल सोने के पहले खाई थी उसका असर था। और गोली का असर ये भी था की जो स्पेशल क्रीम मेरी जाँघों के बीच आगे-पीछे, कामिनी भाभी ने चलने के पहले लगाई थी न और ये सख्त ताकीद दी थी की सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर मैं उपवास रखूं, उस क्रीम का पूरा असर मेरी सोन-चिरैया और गोलकुंडा दोनों में हो जाए। दो असर तो उन्होंने खुद बताए थे, कितना मूसल चलेगा, मोटा से मोटा भी, लेकिन मैं जब शहर अपने घर लौटूंगी तो मेरी गुलाबो उतनी ही कसी छुई मुई रहेगी, जैसी जब मैं आई थी, तब थी, बिना चुदी।

और दूसरा असर ये था की न मुझे कोई गोली खानी पड़ेगी और न लड़कों को कुछ कंडोम वंडोम, लेकिन न तो मेरा पेट फूलेगा, और न कोई रोग दोष। रात भर सोने से वो क्रीम अच्छी तरह रच बस गई थी अंदर। हाँ, एक असर जो उन्होंने नहीं बताया था लेकिन मुझे खुद अंदाजा लग गया, वो सबसे खतरनाक था। मेरी चूत दिन रात चुलबुलाती रहेगी, मोटे-मोटे चींटे काटेंगे उसमें, और लण्ड को मना करने को कौन कहे, मेरा मन खुद ही आगे बढ़ के घोंटने को होगा)



और मेरी नींद जब खुली तो शायद एक पहर रात बाकी थी, कुछ खटपट हो रही थी।

मेरी खुली खिड़की के पीछे ही गाय भैंसें बंधती थी। और आज श्यामू (वो जो गाय भैंसों की देख भाल करता था और जिसका नाम ले ले के चम्पा भाभी और बसंती मेरी भाभी को खूब छेड़ती थीं) भी नहीं था, दो दिन की छुट्टी गया था। इसलिए बसंती ही आज, कल चम्पा भाभी ने उसे बोला भी था। मैं अधखुली आँखों से कुछ देख रही थी कुछ सुन रही थी, गाय भैंसों का सारा काम और फिर दूध दूहने का।



चाँद मेरी खिड़की से थोड़ी दूर घनी बँसवाड़ी के पीछे छुपने की कोशिश कर रहा था, जैसे रात भर साजन से खुल के मजे लूटने के बाद कोई नई-नई दुल्हन अपनी सास ननदों से घूंघट के पीछे छिपती शर्माती हो।




उसी बँसवाड़ी के पास ही तो दो दिन पहले अजय ने कुतिया बना के एकदम खुले आसमान के नीचे कितना हचक-हचक के, और कैसी गन्दी-गन्दी गालियां दी थीं उसने, न सिर्फ मुझे और बल्की मेरी सारे मायके वालियों को। शर्मा के मैंने आँखें बंद कर लीं और बची खुची नींद ने एक बार फिर…



और जब थोड़ी देर बाद फिर आँख खुली तो चाँद नई दुल्हन की जैसे टिकुली साजन के साथ रात के बाद सरक कर कहीं और पहुँच चुकी होती है, उसी तरह आसमान के कोने में टिकुली की तरह, लेकिन साथ-साथ हल्की-हल्की लाली भी, जो थोड़ी देर पहले काला स्याह अँधेरा था अब धुंधला हल्का भूरा सा लग रहा था। चिड़ियों की आवाजों के साथ लोगों की आवाजें भी। मेरी देह की पूरी थकान चली गयी थी, कल जो जाँघे फटी पड़ रही थी, कदम रखते ही चिलख उठती थी, अब सब ख़तम. रात भर की गहरी नींद का असर था या कामिनी भाभी की गोली का पता नहीं, बस पूरी देह में हलकी हलकी मस्ती सी लग रही थी. मैं अलसायी सी बिस्तर पे पड़ी थी, एक बार फिर से चादर खींच ली अपने ऊपर.


बसंती की आवाज भी आ रही थी, किसी से चुहुल कर रही थी। जब से श्यामू गया था, मुंह अँधेरे ,भोर में ही आके गाय भैंस का कुल काम, सानी पानी, सब वही देखती थी। उसका बाहर का काम खतम हो गया लगता था।


और बसंती की कल शाम की बात याद आ गई मुझे यहीं आँगन में तो, और चम्पा भाभी के सामने खुले आम आँगन में, मेरे ऊपर किस तरह चढ़ के जबरदस्ती उसने, मैं लाख कसर मसर करती रही… लेकिन बसंती के आगे किसी की चलती है क्या जो मेरी चलती? जो किया सो किया ऊपर से बोल गई, कल सुबह से रोज भोर भिनसारे, मुँह अंधियारे, बिना नागा,... ऐसी नमकीन हो जाओगी न की, …



गौने की दुल्हन जैसे। जब उसकी खिलखिलाती छेड़ती ननदें ले जाके उसे कमरे में बैठा देती हैं, फिर बेचारी घूंघट में मुँह छिपाती है, आँखें बंद कर लेती है, लेकिन बचती है क्या?

बस वही मेरी हालत थी।

मेरी कुठरिया में एक छोटा सा खिड़कीनुमा दरवाजा था। उसकी सिटकिनी ठीक से नहीं बंद होती थी, और ऊपर से कल मैं इतनी नींद में थी, उसे खींच के आगे करो और फिर हल्के से धक्का दो तो बस, खुल जाती थी। अजय भी तो उसी रास्ते से आया था।

उस दरवाजे के चरमर करने की आवाज हुई और मैंने आँखें बंद कर ली। लेकिन आँखें बंद करने से क्या होता है, कान तो खुले थे, बसंती के चौड़े घुंघरू वाले पायल की छम छम, आराम से उसने मेरा टाप उठाया और प्यार से मेरे उभार सहलाए।

मैंने कस के आँखें मींचे थी।

और अब वो सीधे मेरे उभारों के आलमोस्ट ऊपर, उसके हाथ मेरे गोरे गुलाबी गाल सहला रहे थे थे, और दूसरे हाथ ने बिना जोर जबरदस्ती के तेजी से गुदगुदी लगाई,

और मैं खिलखिला पड़ी।



“मुझे मालुम है, बबुनी जाग रही हो, मन-मन भावे, मूड़ हिलावे, आँखें खोलो…”

मुँह तो मेरा खुद ही खुल गया था लेकिन आँखें जोर से मैं भींचे रही, बस एक आँख जरा सा खोल के। दिन बस निकला था, सुनहली धूप आम के पेड़ की फुनगी पर खिलवाड़ कर रही थी, वहां पर बैठी चुहचुहिया को छेड़ रही थी। और खुली खिड़की से एक सुनहली किरन, मेरे होंठों पे, झप्प से मैंने आँखें आधी खोल दी।



सुनहली धूप के साथ, एक सुनहली बूँद, बसंती की… मेरे लरजते होंठ अपने आप खुल गए जैसे कोई सीप खुल जाए बूँद को मोती बनाने के लिए। एक, दो, तीन, चार, एक के बाद एक सुनहरी बूँदें, कुछ रुक-रुक कर, आज न मैं मना कर रही थी न नखड़ा।



थोड़ी देर में ही छर्रर, छरर, और फिर मेरे खुले होंठों के बीच बसंती ने अपने निचले होंठ सटा दिए। मेरे होंठों के बीच उसके रसीले मांसल होंठ घुसे धंसे फंसे थे। सुनहली शराब बरस रही थी। सुनहली धुप की किरणें चेहरे को नहला रही थी। पांच मिनट, दस मिनट, टाईम का किसे अंदाज था। और जब वो उठी तो मेरे गाल अभी भी थोड़े फूले थे, कुछ उसका।



बनावटी गुस्से से उसने मेरे खुले निपल मरोड़ दिए पूरी ताकत से और बोली- “भाईचोद, छिनार, रंडी की जनी, तेरे सारे मायकेवालियों की गाण्ड मारूं, घोंट जल्दी…”



और मैं सब गटक गई।



बसंती दरवाजा खोल के आंगन में चली गई और मैं पांच दस मिनट और बिस्तर पर अलसाती रही। बाहर आंगन में हलचल बढ़ गई थी। दिन चढ़ना शुरू हो गया था। अलसाते हुए मैं उठी, अपना टाप ठीक किया और ताखे के बगल में एक छोटा सा शीशा लटका हुआ था। मैंने बाल थोड़ा सा ठीक किया, ऊपर वाले होंठ पर अभी भी दो चार, सुनहरी बूंदें, चमक रही थीं। मेरी जीभ ने उसे चाट लिया, थोड़ा नमकीन थोड़ा खारा, मेरे उभार आज कुछ ज्यादा ही कसमसा रहे थे।



दरवाजा तो बंसती ने ही खोल दिया था, मैं आँगन में निकल गई।
Are yaar abhi subhah subhah jaag ke thik se baith na bhi na paayi ki us basanti ne nischod hi li isko to.... aur upar se us goli ka asar... Lage ki ab to iske har ang uttejit hi rahe har waqt...

Well kahani mein ek uttejit, hansi thitholi se bharpur aur kamuk mahol banane mein aap mahir hai... jishe padhte waqt sceans cha jaye dilo dimag pe....
aur jo scenes create ki hai update ke har ek point pe wo sach mein adbhut aur kabile tarif hai... jagah, paristhiti, waqt aur kirdaar... kaise, kaha, kis tarah se, kis karm mein rahenge kahani mein bhumika nibhate huye iska sathik mulyankan karke update ko jis tarah pesh ki hai hum readers ke samaks wo apne apme bemisaal hai..

Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :yourock: :yourock:
 
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komaalrani

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बहुत बढ़िया,
भाभी की पोल खोलना एक नया ही उत्तेजना लाती है कहानी में।


Thanks so much jaisa aap logon ka sujhaav tha
 

komaalrani

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Are dhett teri ki :doh:
Kam se Kam chain se sone to do usko, kahe udham macha rahi hai ye teeno.. :doh: aur itni hansi mazak khilkhilana hi hai to kahi door jaake ye sab kare.. uski nind mein kahe khalal daal rahi hai..

Kahe itna pareshan kar rahi hai kahani ki lead heroine ko :bat:
kya unlogo pata nahi agar Nayika apni pe aayi na to inlogo ke Khair nahi...
wo to Abhi thodi bahot sharma rahi hai, jis din usne sharam ka daaman chhodi to, phir dekhiyo kiska mazak masti zyada bhari pad jaaye kispe...

Are yaar abhi subhah subhah jaag ke thik se baith na bhi na paayi ki us basanti ne nischod hi li isko to.... aur upar se us goli ka asar... Lage ki ab to iske har ang uttejit hi rahe har waqt...

Well kahani mein ek uttejit, hansi thitholi se bharpur aur kamuk mahol banane mein aap mahir hai... jishe padhte waqt sceans cha jaye dilo dimag pe....
aur jo scenes create ki hai update ke har ek point pe wo sach mein adbhut aur kabile tarif hai... jagah, paristhiti, waqt aur kirdaar... kaise, kaha, kis tarah se, kis karm mein rahenge kahani mein bhumika nibhate huye iska sathik mulyankan karke update ko jis tarah pesh ki hai hum readers ke samaks wo apne apme bemisaal hai..

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Ekdam sahi samjha aapne , aaj to bahoot kuch hone vaala hai is teenager ke saath
 

komaalrani

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सुबह सबेरे


11.jpg



थोड़ी देर में ही छर्रर, छरर, और फिर मेरे खुले होंठों के बीच बसंती ने अपने निचले होंठ सटा दिए। मेरे होंठों के बीच उसके रसीले मांसल होंठ घुसे धंसे फंसे थे। सुनहली शराब बरस रही थी। सुनहली धुप की किरणें चेहरे को नहला रही थी। पांच मिनट, दस मिनट, टाईम का किसे अंदाज था। और जब वो उठी तो मेरे गाल अभी भी थोड़े फूले थे, कुछ उसका।


बनावटी गुस्से से उसने मेरे खुले निपल मरोड़ दिए पूरी ताकत से और बोली- “भाईचोद, छिनार, रंडी की जनी, तेरे सारे मायकेवालियों की गाण्ड मारूं, घोंट जल्दी…”


और मैं सब गटक गई।



बसंती दरवाजा खोल के आंगन में चली गई और मैं पांच दस मिनट और बिस्तर पर अलसाती रही।

बाहर आंगन में हलचल बढ़ गई थी।

दिन चढ़ना शुरू हो गया था। अलसाते हुए मैं उठी, अपना टाप ठीक किया और ताखे के बगल में एक छोटा सा शीशा लटका हुआ था। मैंने बाल थोड़ा सा ठीक किया, ऊपर वाले होंठ पर अभी भी दो चार, सुनहरी बूंदें, चमक रही थीं। मेरी जीभ ने उसे चाट लिया, थोड़ा नमकीन थोड़ा खारा, मेरे उभार आज कुछ ज्यादा ही कसमसा रहे थे।


दरवाजा तो बंसती ने ही खोल दिया था, मैं आँगन में निकल गई।

किचेन में मेरी भाभी कुछ कड़ाही में पका रही थीं, और चम्पा भाभी भी उनके साथ। भाभी ने वहीं से हंकार लगाई- “चाय चलेगी…”


“एकदम भाभी चलेगी नहीं दौड़ेगी…” मुश्कुराते हुए मैं बोली, और आँगन में एक कोने में झुक के मंजन करने लगी।



बसंती कहीं बाहर से आई और मेरे पिछवाड़े सहलाती हँस के बोली-

“अरे ननद रानी मैं करवा दूँ मंजन, बहुत बढ़िया करवाऊँगी…”


मेरे मन में कल सुबह की तस्वीर घूम गई, जब कामिनी भाभी ने मंजन करवाया था। सीधे मेरी गाण्ड में दो उंगली डाल के खूब गोल-गोल अंदर घुमाया और निकाल के सीधे मेरे मुँह में, दांतों पर, अंदर… मैं सिहर गई। बसंती कौन कामिनी भाभी से कम है अभी दस मिनट पहले ही।


“नहीं नहीं मैंने कर लिया अपने से…” घबड़ा के मैं बोली।

“अरे कैसी भौजाई हो, ननद से पूछ रही हो? करवा देती बिचारी को जरा ठीक से…” खिलखिलाते हुए अंदर से मेरी भाभी बोलीं।


“अरे कर लिया तो दुबारा करवा लो न, तीन-तीन भौजाइयों के रहते ननद को अपनी उंगली इश्तेमाल करनी पड़े, बड़ी नाइंसाफी है, बसंती तू तो भौजाइयों की नाक कटा देगी…”

चम्पा भाभी ने बंसती को उकसाया।

लेकिन तबतक मंजन खत्म करके मैं रसोई में पहुँच गई।

आज मेरी भाभी तो चम्पा भाभी और बसंती की भी नाक काट रही थीं, छेड़ने में। और उनसे भी ज्यादा एकदम खुला बोलने में। मेरे रसोई में घुसते ही चालू हो गईं, मेरे यारों का हाल चाल पूछने में।

गलती मुझसे ही हो गई, मैंने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया, ये पूछ के- “क्यों भाभी, पड़ोस के गाँव में कुछ पुराने यार थे क्या जो रात?”

मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी की वो चालू हो गईं- “अरे मैंने सोचा था की क्या पता तेरा इस गाँव के लड़कों से मन भर गया हो तो बगल के गाँव में तेरा बयाना दे आऊँ। हाँ लेकिन अब एक बार में एक से काम नहीं चलने वाला है, एक साथ दो-तीन को निबटाना पड़ेगा, आगे-पीछे दोनों का मजा ले लो, फिर न कहना की भाभी के गाँव में गई वो भी सावन में, लेकिन पिछवाड़ा कोरा बच गया…”


उन्हें क्या बताती की मेरे पिछवाड़े कितना जबरदस्त हल चला है कामिनी के भाभी के घर में, वो तो जादू था कामिनी भाभी की क्रीम में वरना अभी तक चिलखता, खड़ी नहीं रह पाती। लेकिन फिर मुझे याद आया, धान के खेत में काम करनी वलियों की, जिन्होंने सब कुछ सुना भी, और थोड़ा बहुत देखा भी। और उनके आगे तो रेडियो टेलीग्राफ सब झूठ तो भाभी को तो रत्ती-रत्ती भर की खबर मिल गई होगी।


उधर बसंती जिस तरह से चम्पा भाभी से कानाफूसी कर रही थी

मैं समझ गई सुबह जो उसने ‘बेड टी’ पिलाई है उसकी पूरी हाल चाल चम्पा भाभी को उसने सुना दिया होगा और फिर जिस तरह से चम्पा भाभी ने मेरी भाभी को मुश्कुराकर देखा और आँखों के टेलीग्राफ से तार भेजा, और मेरी भाभी ने मुझे देखा, मैं सब समझ गई और जोर से शर्माई।



तब तक भाभी की माँ आ गईं, और बात उन्होंने भले न सुनी हो लेकिन जोर से शर्माते हुए मुझे उन्होंने देख लिया। फिर दो भौजाइयों के बीच में कुँवारी कच्ची उमर की ननद, जैसे शेरनियों के बीच कोई हिरनी, समझ वो सब गई की मेरी कैसी रगड़ाई हो रही होगी। उन्होंने मुझे बांहों में भींच लिया और एकदम से अपनी शरण में ले लिया। कस के उन्होंने अपनी बांहों में भींच लिया।
 

komaalrani

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तब तक भाभी की माँ आ गईं, और बात उन्होंने भले न सुनी हो लेकिन जोर से शर्माते हुए मुझे उन्होंने देख लिया।

फिर दो भौजाइयों के बीच में कुँवारी कच्ची उमर की ननद, जैसे शेरनियों के बीच कोई हिरनी, समझ वो सब गई की मेरी कैसी रगड़ाई हो रही होगी। उन्होंने मुझे बांहों में भींच लिया और एकदम से अपनी शरण में ले लिया। कस के उन्होंने अपनी बांहों में भींच लिया।


लेकिन अब तक मैं समझ गई थी की उनकी पकड़, जकड़ में वात्सल्य कम, कामरस ज्यादा है और आज तो रोज से भी ज्यादा, जिस तरह से उनकी उंगलियां मेरे कच्चे नए आये उभारों को दबा सहला रही थीं और उंगलियों की टिप, मेरे कंचे की तरह गोल कड़े निपल को जाने अनजाने छू रही थी ये एकदम साफ लग रहा था। और सिर्फ मैं ही नहीं चम्पा भाभी, मेरी भाभी भी सब समझ रही थीं और मुझे देख-देखकर मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।


मैं लेकिन और जोर से उनसे चिपक गई।
और उन्होंने मेरी भाभी और चम्पा भाभी दोनों को हड़काया-

“तुम दोनों न सुबह-सुबह से मेरी बेटी के पीछे पड़ जाती हो। कुछ खिलाया पिलाया है न कि बिचारी भूखे पेट और, बस उसके पीछे…”



तब तक बसंती भी आगई। भाभी की माँ को देखकर जोर से मुश्कुराई और हँसते हुए उनकी बात बीच में काट के बोली-

“अरे एकदम पिलाया है, भोर भिनसारे, मुँह अँधेरे, न बिस्वास हो तो अपनी लाड़ली बिटिया से पूछ लीजिये न?”

हल्के से उन्होंने पूछ लिया- “क्यों?”


बिना जवाब दिए मैं जोर से लजा गई। सौ गुलाब मेरे किशोर गालों पे खिल गए।

और उन्हें उनकी बात का जवाब मिल गया। खुश होके उन्होंने न सिर्फ कस के मुझे और जोर से भींच लिया बल्की, मेरे गुलाबों पे कचकचा के चूम लिया और फिर उनके होंठ सीधे मेरे होंठों पे और होंठों के बीच उनकी जीभ घुसी हुई जैसे बसंती की बात की ताकीद करती।


कुछ देर बाद जब उनके होंठ हटे तो उन्होंने खुश होके बसंती की ओर देखा लेकिन उसको हड़का भी लिया-

“एक बार थोड़ा बहुत कुछ पिला दिया तो हो गया क्या? नई-नई जवानी आई है उसकी, तुम सबके भाइयों देवरों की प्यास बुझाती रहती है बिचारी मेरी बेटी, एक बार में प्यास बुझेगी क्या उसकी? तुम तीनों उसके पीछे पड़ी रहती हो…”

आज मेरी भाभी भी कुछ ज्यादा मूड में थी और अब वो मोर्चे पे आ गई। बोलीं-


“आप हम लोगों को बोलती रहती हैं। अरे हम नहीं पूरा गाँव आपकी इस बेटी के पिछवाड़े के पीछे पड़ा है और गाँव के लौंडों की क्या गलती है? ये चलती ही है इस तरह अपना पिछवाड़ा कसर मसर करती, लौंडों को ललचाती। गलती इसके कसे-कसे पिछवाड़े की है…”
 
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Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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jahan ek tarah dono bhabhi ke bich fanshi ragrayi kha rahi thi ushe unlogo se bachane maidan mein kudi khud bhabhi ki maa... Waise bhabhi ki maa bhi ushe jis kadar baahon mein Kas kar jis kadar kamuk tarike se ched khani kar rahi thi ushe bhi maja hi aa raha hi..
udhar champa to Jaise aag mein ghee daal rahi thi...
Shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan.. Aap jis tarah likhti hai har mod aur pehlu ko dhyan mein rakhte huye, readers ko baithe bithaye kirdaaro ke bhaavnao ko gehrayi se mehsoos aur ehsaas karne ke liye majbur kar de .. ... Sach mein jis tarah se realistic roop mein role nibha rahe hai kirdaar, readers ko majboor kar de unke sath judne ke liye... yahin to aapki lekhni ka jaadu hai....

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