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Erotica सोलवां सावन

Rebel.desi

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Superb Erotic story
 
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komaalrani

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***** *****तिरालिसवीं फुहार - ढल आई रात

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“किससे नैन मटक्का हो रहा था, रानी…” भाभी ने चिढ़ाया।

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लेकिन मुश्कुरा के मैंने जवाब टाल दिया। मैं कपड़े तहिया कर रखने में लग गई। और चुपचाप सुनील के बारे में सोच-सोच के मैं मुश्कुरा रही थी।

तब तक चम्पा भाभी की आवाज किचेन से आई- “चाय चलेगी?”


“चलेगी नहीं भाभी दौड़ेगी…” मैं बोली और कुछ देर में किचेन में जाके बैठ गई।



चाय के साथ हम दोनों गप्पें मारते रहे। गाँव में रात बहुत जल्द हो जाती थी, सूरज झप्प से नदी के पिछवाड़े जाकर छुप गया और पूरा गाँव अँधेरे में। फिर मैं चम्पा भाभी का हाथ खाना बनाने में बंटाने लगी।


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गाँव में ‘और चीजों’ के साथ मैंने घर के ढेर सारे काम भी सीखने शुरू कर दिए थे। चम्पा भाभी का मैं हाथ बटा रही थी, लेकिन साथ में ‘सीखना’ भी चल रहा था। बहुत दिनों से मैं चम्पा भाभी के पीछे पड़ी थी- “अच्छी वाली शुद्ध देसी गारी सिखाने के लिए…”


कोई भी मौका होता था तो भाभी मुझे एक साथ चार-पांच सुना देती थीं, रवींद्र मेरे कजिन से लेकर मेरी गली के गदहों तक से मेरा नाम जोड़ के।

और मैं अगर मुँह बनाती थी तो सब लोग मुझे ही चिढ़ाते थे- “वो तेरी भाभी हैं, रिश्ता है, तुझे आता हो तो तू भी सुना दे न, वो बुरा थोड़े ही मानेगी…”



मुझे आती होती तब न… और एक दो जो आती थीं वो भी बड़ी फीकी सी, शाकाहारी सी, और लोग और चिढ़ाते। चम्पा भाभी तो देहाती गारियों का खजाना थीं। एक दो बार मैंने बोला भी की लिख के दे दें या मैं लिख लूंगी।


तो उन्होंने साफ मना कर दिया। वो बोलीं- “अरे इसमें धुन, कैसे गाया जाता है? ये सब भी तो सीखना पड़ेगा। मैं गाऊँगी और तू मेरे साथ-साथ गाना, और फिर तू गा के सुनाना, एक-दो बार, तब पक्का होगा…”


और वो तब हो पाता, जब खाली हम दोनों होते। आज वो मौका था और टाइम भी थी। फिर मेरी भाभी को गारी देने का रिश्ता उनका भी था और मेरा भी। मेरी भाभी थीं तो उनकी छोटी ननद।

आज हम दोनों खूब मस्ती के मूड में थे , मैं कुछ कल रात भर जो कामिनी भाभी के पति ने मेरे पिछवाड़े और आज बसंती ने जो चंपा भाभी के सामने मुझे वो खारा सुनहला शरबत, ... रही सही झिझक भी आज ख़तम हो गयी थी , फिर घर में हमी दोनों थे , बस तो चंपा भाभी की ननद और मेरी भाभी को टारगेट करके एकदम असली वाली गारियाँ, हम दोनों साथ साथ,...


अरिया अरिया रइया बोवायो, बिचवा बोवायो चउरिया,

अरे बिचवा बोवायो चउरिया, की वाह वाह,

अरे अरिया अरिया रइया बोवायो, बिचवा बोवायो चउरिया,

अरे बिचवा बोवायो चउरिया, की वाह वाह,


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सगवा खोटन गईं गुड्डी क भौजी अरे गुड्डी क भौजी,

सगवा खोटन गईं चम्पा भौजी क ननदो अरे चम्पा भौजी क ननदो
(मैंने जोड़ा)

अरे भोसड़ी में घुस गय लकड़िया की वाह, अरे भोसड़ी में घुस गय लकड़िया की वाह वाह


दौड़ा दौड़ा है उनकर भैया, हे बीरेंद्र भैया (चम्पा भाभी के पति)



ये लाइन भी मैंने जोड़ी, अब चम्पा भाभी अपने पति का नाम तो ले नहीं सकती थीं।


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अरे भोसड़ी से खींचा लकड़िया की वाह वाह,

अरे भोसड़ी से खींचा लकड़िया की वाह वाह

अरे दौड़ा दौड़ा बीरेंद्र भइया, दंतवा से खींचा लकड़िया की वाह वाह,

अरे मुँहवा से खींचा लकड़िया की वाह
,

सगवा खोटन गई गुड्डी क भौजी
, चम्पा भाभी क ननदी

अरे गंड़ियों में घुस गई लकड़िया की वाह वाह,




फिर एक से एक, गदहा घोड़ा कुत्ता कुछ नहीं बचा। खाना बनाते-बनाते दर्जन भर से ज्यादा ही गारी उन्होंने मेरी भाभी को सुनाईं, मैंने भी साथ-साथ में गाया और फिर अलग से अकेले गा के सुनाया। और इसी बीच घंटे डेढ़ घंटे में खाना भी बन गया।


हाँ, बसंती आई थी, बस थोड़ी देर के लिए।


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एक दो गारी उसने भी सिखाई, लेकिन बोला की उसे जल्दी है। बछिया हुई है और रात में शायद वहीं रुकना पड़े।




चम्पा भाभी थोड़ी देर के लिए आंगन में गई तो बसंती ने झुक के झट से मेरी एक चुम्मी ली,

खूब मीठी वाली और कचकचा के मेरे उभारों पे चिकोटी काटते बोली-


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“घबड़ा जिन, एकदम मुँह अँधेरे सबेरे, आऊँगी और भिनसारे भिनसारे, जबरदस्त सुनहला शरबत, नमकीन, हाँ हाँ का कहते हैं उसको शहर में, हाँ, बेड टी…”



और जबतक मैं कुछ बोलूं, बाहर निकल गई। चम्पा भाभी मेरे पीछे पड़ गईं की मैं खाना खा लूँ, मैं लाख जिद करती रही की सबके साथ खाऊँगी, लेकिन…
 
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Romeo 22

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Aapki lekhani ka koi jawab nahi komal jee...Shabd bayan nahi kar sakte :love:
 

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such a pleasant surprise to see you here :blush: :)
 
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chodumahan

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आपने ये कहानी पिछली बार के मुकाबले काफी परिष्कृत रूप में फिर से उपलब्ध करवाई और नए प्रसंग भी जोड़े है...
लेकिन विविधता के लिए सोलवें सावन में गुड्डी के अलावा चंदा, पूर्वी और अन्य बहुत से किरदार हैं..
और कुछ भाभियों के कांड भी सम्मिलित किए जाएं तो चार चाँद लग जाए...
अगली पोस्ट की प्रतीक्षा में..
 

komaalrani

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आपने ये कहानी पिछली बार के मुकाबले काफी परिष्कृत रूप में फिर से उपलब्ध करवाई और नए प्रसंग भी जोड़े है...
लेकिन विविधता के लिए सोलवें सावन में गुड्डी के अलावा चंदा, पूर्वी और अन्य बहुत से किरदार हैं..
और कुछ भाभियों के कांड भी सम्मिलित किए जाएं तो चार चाँद लग जाए...
अगली पोस्ट की प्रतीक्षा में..


एकदम बहुत अच्छा सुझाव है, वैसे तो यह कैशोर्य की कहानी है, एक कस्बाई शहर और गाँव के बीच की, पर कोशिश करुँगी, अन्य पात्रों को भी बीच बीच में , कभी फ्लैश बैक तो कभी यादें, जल्द ही।
 

komaalrani

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चालीसवीं फुहार - भोर भिनसारे
 
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