• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Erotica सोलवां सावन

komaalrani

Well-Known Member
22,290
58,028
259
Are dhett teri ki :doh:
Kam se Kam chain se sone to do usko, kahe udham macha rahi hai ye teeno.. :doh: aur itni hansi mazak khilkhilana hi hai to kahi door jaake ye sab kare.. uski nind mein kahe khalal daal rahi hai..

Kahe itna pareshan kar rahi hai kahani ki lead heroine ko :bat:
kya unlogo pata nahi agar Nayika apni pe aayi na to inlogo ke Khair nahi...
wo to Abhi thodi bahot sharma rahi hai, jis din usne sharam ka daaman chhodi to, phir dekhiyo kiska mazak masti zyada bhari pad jaaye kispe...

Are yaar abhi subhah subhah jaag ke thik se baith na bhi na paayi ki us basanti ne nischod hi li isko to.... aur upar se us goli ka asar... Lage ki ab to iske har ang uttejit hi rahe har waqt...

Well kahani mein ek uttejit, hansi thitholi se bharpur aur kamuk mahol banane mein aap mahir hai... jishe padhte waqt sceans cha jaye dilo dimag pe....
aur jo scenes create ki hai update ke har ek point pe wo sach mein adbhut aur kabile tarif hai... jagah, paristhiti, waqt aur kirdaar... kaise, kaha, kis tarah se, kis karm mein rahenge kahani mein bhumika nibhate huye iska sathik mulyankan karke update ko jis tarah pesh ki hai hum readers ke samaks wo apne apme bemisaal hai..

Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :yourock: :yourock:


ekdam sahi kaha aane Basnati ne badhiya good morning kara di special ;' bed tea' ke saath, .... to din to jabardst hoga hai aur vo bhi aapne sakhi kaha kamini bhbahi ki goliyon ka asar, ... aur gahar men jahan sirf aurten ladkiyan ho, Bahbhi Nanad ho to aadhaa maja to baat ka, chhedkhanai ka hi hai ,


thanks once again for supporting this story, me and spurring me not to get disheartened and keep on posting,

by the way posted a LONG post in Joru ka Gullam too,...
 
  • Like
Reactions: krishna.ahd

komaalrani

Well-Known Member
22,290
58,028
259
jahan ek tarah dono bhabhi ke bich fanshi ragrayi kha rahi thi ushe unlogo se bachane maidan mein kudi khud bhabhi ki maa... Waise bhabhi ki maa bhi ushe jis kadar baahon mein Kas kar jis kadar kamuk tarike se ched khani kar rahi thi ushe bhi maja hi aa raha hi..
udhar champa to Jaise aag mein ghee daal rahi thi...
Shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan.. Aap jis tarah likhti hai har mod aur pehlu ko dhyan mein rakhte huye, readers ko baithe bithaye kirdaaro ke bhaavnao ko gehrayi se mehsoos aur ehsaas karne ke liye majbur kar de .. ... Sach mein jis tarah se realistic roop mein role nibha rahe hai kirdaar, readers ko majboor kar de unke sath judne ke liye... yahin to aapki lekhni ka jaadu hai....

Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:


ekdam Bhabhi ki maan bhi ab ras lene ko betaab lagati hain,... aapki tarif ke liye kya kahun,...
 

chodumahan

Member
222
321
78
भाभी की माँ का प्यार तो इस गुड्डी पर बरसना ही चाहिए..
आखिर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी...
गुड्डी तो लगता है अपना शतक भी गाँव में ही पूरा करेगी...
क्योंकि गुड्डी भी अब पूरे गाँव के माहौल में ढल गई है..
 
Last edited:
287
617
109
चालीसवीं फुहार - भोर भिनसारे

82e86c955f9cd01e4905af78f170ad98.jpg


चम्पा भाभी मेरे पीछे पड़ गईं की मैं खाना खा लूँ, मैं लाख जिद करती रही की सबके साथ खाऊँगी, लेकिन…भाभी और माँ को आने दीजिये पर चंपा भाभी एकदम पीछे पड़ी थीं,... अपने हाथ से इतने प्यार दुलार से उन्होंने खिलाया की,...


मुझे थकान और नींद दोनों लग रही थी। कल रात भर जिस तरह मेरी कुटाई हुई थी, फिर सुबह भी, जाँघे फटी पड़ रही थीं। खाने के बाद जैसे ही मैं अपने कमरे में गई तुरंत नीद आ गई। हाँ लेकिन सोने के पहले, जो कामिनी भाभी ने गोली खाने को बोला था, और उभारों पर और नीचे खास तेल लगाने को बोला था, वो मैं नहीं भूली।



पता नहीं सोने के पहले, या आधी नींद में या कच्ची नींद में, मुझे माँ ( भाभी की माँ को मैं भी पहले दिन से ही माँ कहती थी और वो भी उतने ही प्यार दुलार से चिपका लेती थीं, कभी चूम लेती थीं ) की आवाज सुनाई दी और अपनी भाभी की भी. लगता है वो दोनों लोग आ गयीं थी और आते ही चम्पा भाभी ने खिलखिलाते हुए, उन लोगों से पूरा हाल बता दिया की किस तरह बसंती ने मेरे ऊपर चढ़कर, मुझे वो,... वही,... पूरा घलघल घलघल सुनहरा शरबत पिला दिया।



मेरी भाभी की बड़ी ख़ुशी की आवाज आ रही थी, बोली, " भाभी, आप लोग उसे सचमुच खारा नमकीन, पिला पिला के पक्की नमकीन लौंडिया बना के ही यहाँ से भेजेंगी।

लेकिन माँ ने उन्हें हड़का लिया, " तुम लोग न इतना दिन, अरे हम तो कह रहे थे की उसके आने के दूसरे तीन दिन से ही, अरे जउने दिन रतजगा में सबके सामने पूरा उघार कर के खड़ी हुयी, पूरे गाँव क कुल औरतन क सामने आपन बिलिया खोल के, बस अगले दिन ही,... "

" माँ लेकिन बात आप ही की सच होती है देखिये उसने चारों मेरे भाइयों का,... "

और फिर वो तीनों लोग खिलखिलाने लगीं, और मुझे याद आया, जिस दिन मैं भाभी के साथ आयी थी, यहीं बरामदे में, सोहर हो रहा था और हर सोहर में मेरा नाम ले ले कर, पहले सोहर में ही , गाँव सारी भाभियाँ मुझे दिखा दिखा के, चिढ़ा चिढ़ा के सुर में गा रही थीं,




" दिल खोल के मांगो ननदी जो मांगों सो दूंगी, दिल खोल के मांगो,...

अरे सैयां मत मांगो ननदी, अरे सैंया मत मांगो ननदी सेज का सिंगार रे,

सैंया के बदले भैया दूंगी, चोदी चूत तोहार रे , अरे चोदी चूत तोहार रे,


बुर खोल के मांगो ननदी,...

मैं शरमा रही थी, लेकिन ,मेरी भाभी ये मौका क्यों छोड़ देती, मुझे चिढ़ाती मेरी ठुड्डी पकड़ के मेरा चेहरा उठा के मुझसे पूछने लगीं,

" बोल न, अजय, सुनील, रवी दिनेश, चारों में से किसके साथ तेरी गाँठ जुड़वाऊं "

लेकिन उनकी बात काट के भाभी की माँ दुलार से मेरे गोरे गोरे गाल सहलाते बोलीं,

" अरे समझती क्या हो मेरी इस बिन्नो को, एक से क्यों चारों से चुदवायेगी, क्यों हैं न, ... "


और मैं शर्म से लाल हो गयी, पर माँ की बात , सच में उन चारों ने उस दिन के , तीन चार दिन के अंदर ही मुझे अच्छी तरह कई बार चोद दिया।



और माँ मेरी दोनों भाभियों को, मेरी भाभी और भाभी की भाभी, चंपा भाभी को जोर से हड़का रही थीं,


" कल से पानी क एक बूँद भी उसके गले के नीचे से नहीं, बस वही खारा,... " लेकिन उनकी बात मेरी भाभी ने काट दी, आज वो कुछ ज्यादा ही मस्त हो रही थीं, माँ से बोलीं,

" सबसे बड़ी आप हैं, सबसे पहले आप नंबर लगाइए, घलघल घलघल, और आप उसे इतना प्यार दुलार करती हैं,... तो चढ़ के,... "

" एकदम, अरे मेरी बिन्नो है, छोटी। सीधे से नहीं मानेगी तो जबरदस्ती, जाँघों के बीच दबा के, एकाध हलकी चपत लगाना होगा तो वो भी उसके नमकीन गाल पे लगा दूंगी, ... अरे दू दू भौजाई घरे में,... "

अब चम्पा भाभी भी माँ की ओर से हो गयीं और मेरी भाभी की पोल पट्टी खोलने लगीं,


" भूल गयी, एहू से सुकुवार रहलू, जउने साल मैं बियाह के आयी थी, और एही आंगन में होली के दिन पटक पटक के , केतना छटक रही थी, लेकिन मैंने और नउनिया क बड़की बहू दोनों ने कितना पिलाया था, गाँव का कुल मेहरारुन लड़कीन के सामने, अच्छा ई बतावा हमार ननद रानी, अपनी ननद के पीछे तो बहुत पड़ी हो ई बतावा, ठकुराने गयी थी अपने कितने पुराने यारों से चुदवा के आयी हो, ... चार की पांच,... "

मेरी भाभी की बहुत देर तक खिलखलाने की आवाज आती रही, फिर लगता है उन्होंने कुछ ऊँगली से इशारा किया, ... और चंपा भाभी बोल पड़ीं,


" पूरे पांच,... बड़ी मेहनत पड़ी होगी, वो सब के सब नम्बरी चोदू हैं , एक बार के बाद छोड़े थोड़े होंगे, और ये क्या इशारे बाजी करत हाउ, तोहार ननदिया सोवत हौ , और जग भी रही हो तो अब तो हम लोगन क बिरादरी में आय गयी है, अब तो चाहो तो घरे पे बुलाय के ओकरे सामने, और फिर हाँ परसों श्यामू भी आ जाएगा, तो अब तो तू दूध देवे लगी हो , दुहवाना दूध उससे कस कस के , मलाई गटकना उसकी,... "


चंपा भाभी की आवाज सुनाई पड़ी, लेकिन तबतक नींद ने कस के आ घेरा,...

रात भर न एक सपना आया, न नींद टूटी। खूब गाढ़ी, बिना ब्रेक के घोड़े बेच के सोई मैं।



गाँव में रात जितनी जल्दी होती है, उससे जल्दी सुबह हो जाती है। मैं सो भी जल्दी गई थी और न जाने कितने दिनों की उधार नींद ने मुझे धर दबोचा था। एकदम गाढ़ी नींद, शायद करवट भी न बदली हो।


(वो तो बाद में मेरी समझ में आया की मेरी इस लम्बी नींद में, मेरी थकान, रात भर जो कामिनी भाभी के यहां रगड़ाई हुई थी, उससे बढ़कर, जो गोली कामिनी भाभी की दी मैंने कल सोने के पहले खाई थी उसका असर था। और गोली का असर ये भी था की जो स्पेशल क्रीम मेरी जाँघों के बीच आगे-पीछे, कामिनी भाभी ने चलने के पहले लगाई थी न और ये सख्त ताकीद दी थी की सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर मैं उपवास रखूं, उस क्रीम का पूरा असर मेरी सोन-चिरैया और गोलकुंडा दोनों में हो जाए। दो असर तो उन्होंने खुद बताए थे, कितना मूसल चलेगा, मोटा से मोटा भी, लेकिन मैं जब शहर अपने घर लौटूंगी तो मेरी गुलाबो उतनी ही कसी छुई मुई रहेगी, जैसी जब मैं आई थी, तब थी, बिना चुदी।

और दूसरा असर ये था की न मुझे कोई गोली खानी पड़ेगी और न लड़कों को कुछ कंडोम वंडोम, लेकिन न तो मेरा पेट फूलेगा, और न कोई रोग दोष। रात भर सोने से वो क्रीम अच्छी तरह रच बस गई थी अंदर। हाँ, एक असर जो उन्होंने नहीं बताया था लेकिन मुझे खुद अंदाजा लग गया, वो सबसे खतरनाक था। मेरी चूत दिन रात चुलबुलाती रहेगी, मोटे-मोटे चींटे काटेंगे उसमें, और लण्ड को मना करने को कौन कहे, मेरा मन खुद ही आगे बढ़ के घोंटने को होगा)



और मेरी नींद जब खुली तो शायद एक पहर रात बाकी थी, कुछ खटपट हो रही थी।

मेरी खुली खिड़की के पीछे ही गाय भैंसें बंधती थी। और आज श्यामू (वो जो गाय भैंसों की देख भाल करता था और जिसका नाम ले ले के चम्पा भाभी और बसंती मेरी भाभी को खूब छेड़ती थीं) भी नहीं था, दो दिन की छुट्टी गया था। इसलिए बसंती ही आज, कल चम्पा भाभी ने उसे बोला भी था। मैं अधखुली आँखों से कुछ देख रही थी कुछ सुन रही थी, गाय भैंसों का सारा काम और फिर दूध दूहने का।



चाँद मेरी खिड़की से थोड़ी दूर घनी बँसवाड़ी के पीछे छुपने की कोशिश कर रहा था, जैसे रात भर साजन से खुल के मजे लूटने के बाद कोई नई-नई दुल्हन अपनी सास ननदों से घूंघट के पीछे छिपती शर्माती हो।




उसी बँसवाड़ी के पास ही तो दो दिन पहले अजय ने कुतिया बना के एकदम खुले आसमान के नीचे कितना हचक-हचक के, और कैसी गन्दी-गन्दी गालियां दी थीं उसने, न सिर्फ मुझे और बल्की मेरी सारे मायके वालियों को। शर्मा के मैंने आँखें बंद कर लीं और बची खुची नींद ने एक बार फिर…



और जब थोड़ी देर बाद फिर आँख खुली तो चाँद नई दुल्हन की जैसे टिकुली साजन के साथ रात के बाद सरक कर कहीं और पहुँच चुकी होती है, उसी तरह आसमान के कोने में टिकुली की तरह, लेकिन साथ-साथ हल्की-हल्की लाली भी, जो थोड़ी देर पहले काला स्याह अँधेरा था अब धुंधला हल्का भूरा सा लग रहा था। चिड़ियों की आवाजों के साथ लोगों की आवाजें भी। मेरी देह की पूरी थकान चली गयी थी, कल जो जाँघे फटी पड़ रही थी, कदम रखते ही चिलख उठती थी, अब सब ख़तम. रात भर की गहरी नींद का असर था या कामिनी भाभी की गोली का पता नहीं, बस पूरी देह में हलकी हलकी मस्ती सी लग रही थी. मैं अलसायी सी बिस्तर पे पड़ी थी, एक बार फिर से चादर खींच ली अपने ऊपर.


बसंती की आवाज भी आ रही थी, किसी से चुहुल कर रही थी। जब से श्यामू गया था, मुंह अँधेरे ,भोर में ही आके गाय भैंस का कुल काम, सानी पानी, सब वही देखती थी। उसका बाहर का काम खतम हो गया लगता था।


और बसंती की कल शाम की बात याद आ गई मुझे यहीं आँगन में तो, और चम्पा भाभी के सामने खुले आम आँगन में, मेरे ऊपर किस तरह चढ़ के जबरदस्ती उसने, मैं लाख कसर मसर करती रही… लेकिन बसंती के आगे किसी की चलती है क्या जो मेरी चलती? जो किया सो किया ऊपर से बोल गई, कल सुबह से रोज भोर भिनसारे, मुँह अंधियारे, बिना नागा,... ऐसी नमकीन हो जाओगी न की, …



गौने की दुल्हन जैसे। जब उसकी खिलखिलाती छेड़ती ननदें ले जाके उसे कमरे में बैठा देती हैं, फिर बेचारी घूंघट में मुँह छिपाती है, आँखें बंद कर लेती है, लेकिन बचती है क्या?

बस वही मेरी हालत थी।

मेरी कुठरिया में एक छोटा सा खिड़कीनुमा दरवाजा था। उसकी सिटकिनी ठीक से नहीं बंद होती थी, और ऊपर से कल मैं इतनी नींद में थी, उसे खींच के आगे करो और फिर हल्के से धक्का दो तो बस, खुल जाती थी। अजय भी तो उसी रास्ते से आया था।

उस दरवाजे के चरमर करने की आवाज हुई और मैंने आँखें बंद कर ली। लेकिन आँखें बंद करने से क्या होता है, कान तो खुले थे, बसंती के चौड़े घुंघरू वाले पायल की छम छम, आराम से उसने मेरा टाप उठाया और प्यार से मेरे उभार सहलाए।

मैंने कस के आँखें मींचे थी।

और अब वो सीधे मेरे उभारों के आलमोस्ट ऊपर, उसके हाथ मेरे गोरे गुलाबी गाल सहला रहे थे थे, और दूसरे हाथ ने बिना जोर जबरदस्ती के तेजी से गुदगुदी लगाई,

और मैं खिलखिला पड़ी।



“मुझे मालुम है, बबुनी जाग रही हो, मन-मन भावे, मूड़ हिलावे, आँखें खोलो…”

मुँह तो मेरा खुद ही खुल गया था लेकिन आँखें जोर से मैं भींचे रही, बस एक आँख जरा सा खोल के। दिन बस निकला था, सुनहली धूप आम के पेड़ की फुनगी पर खिलवाड़ कर रही थी, वहां पर बैठी चुहचुहिया को छेड़ रही थी। और खुली खिड़की से एक सुनहली किरन, मेरे होंठों पे, झप्प से मैंने आँखें आधी खोल दी।



सुनहली धूप के साथ, एक सुनहली बूँद, बसंती की… मेरे लरजते होंठ अपने आप खुल गए जैसे कोई सीप खुल जाए बूँद को मोती बनाने के लिए। एक, दो, तीन, चार, एक के बाद एक सुनहरी बूँदें, कुछ रुक-रुक कर, आज न मैं मना कर रही थी न नखड़ा।



थोड़ी देर में ही छर्रर, छरर, और फिर मेरे खुले होंठों के बीच बसंती ने अपने निचले होंठ सटा दिए। मेरे होंठों के बीच उसके रसीले मांसल होंठ घुसे धंसे फंसे थे। सुनहली शराब बरस रही थी। सुनहली धुप की किरणें चेहरे को नहला रही थी। पांच मिनट, दस मिनट, टाईम का किसे अंदाज था। और जब वो उठी तो मेरे गाल अभी भी थोड़े फूले थे, कुछ उसका।



बनावटी गुस्से से उसने मेरे खुले निपल मरोड़ दिए पूरी ताकत से और बोली- “भाईचोद, छिनार, रंडी की जनी, तेरे सारे मायकेवालियों की गाण्ड मारूं, घोंट जल्दी…”



और मैं सब गटक गई।



बसंती दरवाजा खोल के आंगन में चली गई और मैं पांच दस मिनट और बिस्तर पर अलसाती रही। बाहर आंगन में हलचल बढ़ गई थी। दिन चढ़ना शुरू हो गया था। अलसाते हुए मैं उठी, अपना टाप ठीक किया और ताखे के बगल में एक छोटा सा शीशा लटका हुआ था। मैंने बाल थोड़ा सा ठीक किया, ऊपर वाले होंठ पर अभी भी दो चार, सुनहरी बूंदें, चमक रही थीं। मेरी जीभ ने उसे चाट लिया, थोड़ा नमकीन थोड़ा खारा, मेरे उभार आज कुछ ज्यादा ही कसमसा रहे थे।



दरवाजा तो बंसती ने ही खोल दिया था, मैं आँगन में निकल गई।
चाँद मेरी खिड़की से थोड़ी दूर घनी बँसवाड़ी के पीछे छुपने की कोशिश कर रहा था, जैसे रात भर साजन से खुल के मजे लूटने के बाद कोई नई-नई दुल्हन अपनी सास ननदों से घूंघट के पीछे छिपती शर्माती हो।👌👌👌👌
 

komaalrani

Well-Known Member
22,290
58,028
259
भाभी की माँ का प्यार तो इस गुड्डी पर बरसना ही चाहिए..
आखिर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी...
गुड्डी तो लगता है अपना शतक भी गाँव में ही पूरा करेगी...
क्योंकि गुड्डी भी अब पूरे गाँव के माहौल में ढल गई है..
एकदम सही कहा आपने, एक प्रौढ़ा और एक जवानी के आँगन में बस झांकती, किशोरी

मज़ा तो आएगा ही,
 
  • Like
Reactions: krishna.ahd

komaalrani

Well-Known Member
22,290
58,028
259
चाँद मेरी खिड़की से थोड़ी दूर घनी बँसवाड़ी के पीछे छुपने की कोशिश कर रहा था, जैसे रात भर साजन से खुल के मजे लूटने के बाद कोई नई-नई दुल्हन अपनी सास ननदों से घूंघट के पीछे छिपती शर्माती हो।👌👌👌👌
Thanks so much
 
  • Like
Reactions: krishna.ahd

komaalrani

Well-Known Member
22,290
58,028
259
***** *****चवालिसवीं फुहार- रसोई में भाभी की माँ

MIL-Bwh5-Is4-Op-IY.jpg



लेकिन माँ हार मानने वाली नहीं थी और जब तक वो थीं, मुझे कुछ बोलने की जरूरत भी नहीं थी।

उन्होंने जवाबी बाण छोड़े मेरी भाभी के ऊपर-

“तुम सब भी न मेरी बिचारी बेटी पर ही सब इल्जाम धरोगी। अभी तो जवानी उसकी बस आ रही है। अरे अपनी सास को बोलो, अपनी ससुराल वालों को बोलों, तेरे देवर सब बचपन के गान्डू, गाण्ड मराने में नंबरी, और उनको छोड़ो, मेरी समधन, तेरी सास सबकी सब खानदानी गाण्ड मराने की शौकीन, किसी को नहीं मना करतीं, तो वो असर तो इस बिचारी के खून में आ ही गया होगा न? बचपन में जो चीज घर में खुलेआम देख रही होगी तो सीखेगी ही, फिर इसमें मेरी बेटी का क्या कसूर? अपनी सास के बारे में बोलो न?”



और उसके बाद उन्होंने बाणों का रुख चम्पा भाभी की ओर कर दिया-

“और इसका पिछवाड़ा कसा-कसा है तो दोस किसका है, तेरे देवरों का न? काहे नहीं ढीली कर देते? मेरी बेटी ने तो किसी को मना नहीं किया, क्यों बेटी है न? तूने कभी नहीं मना किया न? ये बिचारी तो गन्ने का खेत हों, आम का बाग हो, कहीं भी निहुरने के लिए तैयार रहती है, अपने देवरों को बोलो…”



मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मुश्कुराऊँ या गुस्सा होऊँ।

और हुंकारी भरने के लिए माँ ने मेरी ओर देखा, मैं एकदम लजा गयी और उनके पास दुबक गयी. उन्होंने खींच के दुलार से मुझे एकदम अपनी गोद में बिठा लिया जैसे कोई छोटे बच्चे को बिठा ले, और एक उनका हाथ, मेरी कांख के नीचे से मेरे उभारों पर और दूसरे हाथ से मेरे सर को कस के पकड़ के,

एक चुम्मी खूब मीठी वाली, जैसे कोई संतरे की फांक चूसे बस उसी तरह माँ के होंठ में होंठ चूस रहे थे, और कुछ देर में उनकी जीभ मेरे मुंह के अंदर, लेकिन अगला शॉक तब लगा जब मेरे टाइट झीने झीने टॉप को को फाड़ते मेरे निप्स पर उन्होंने अपनी ऊँगली से बस ब्रश कर दिया,


उफ़, लड़के मेरे निप्स को छूते तो मैं गिनगीना पड़ती, भौजाइयां जब उसे पकड़ कर खींचती थीं , झूले पर, मसलती थी तो मैं मस्ता जाती थी,



लेकिन ये टच तो उन सबसे भी ज्यादा, बहुत ज्यादा,... मैं अंदर तक काँप गयी, मेरी गुलाबो की पंखुड़ियां फड़फड़ाने लगी, मैं एकदम से गीली हो रही थी। मेरे पूरे चेहरे से मस्ती टपक रही थी , और मेरी दोनों भौजाइयां ( मेरी भाभी और उनकी भाभी, चंपा भाभी ) समझ कर, हलके हलके मुस्करा रही थीं.


और अब समझ मैं भी रही थी, और हिंट तो गुलबिया ने भी दे दिया था, " कोई है जो तेरी भौजाइयों से भी ज्यादा इन कच्ची कैरियों के लिए ललचा रही हैं । "


मेरी दोनों भाभियों को और देख के वो मुस्करायीं और एक जबरदस्त चुम्मी मेरे गाल पर ले ली, फिर उन्होंने मुझसे गणित नुमा एक छोटा सा सवाल मुझसे पूछ लिया,

" सुन अगर मैं तुझे दस रुपये दूँ या बीस रुपये तो क्या लेगी ?"


" बीस रूपये, ये भी क्यों कहने की बात है " मैं चट से बोली।

" और अगर तेरे एक हाथ में मीठा वाला लड्डू हो या दोनो हाथ में मीठा वाला लड्डू , सोच के बोल मेरी बिन्नो " माँ ने फिर पूछा।



मैं खिलखिलाने लगी, और उनसे चिपक के इतराते दुलराते बोली,



" मुझे तो दोनों हाथों में लड्डू चाहिए , आखिर आप की बेटी हूँ "



प्यार दुलार से मेरे बाल सहलाते हुए पहले उन्होंने मेरी भाभी की देखा, फिर मुझे एक बार और कस के चूम के बोलीं,

" अच्छा सच बोल, ये गाँव के खेत में, बाग में , लड़कों के साथ, ... अच्छा लगता है न खूब मजा आता है न , गाँव में "

मैं कुछ बोली नहीं , पर मेरे चेहरे की ख़ुशी ही बता रही थी , साथ में सर हिला के हामी भी मैंने भर दी,... हाँ।

" झूठ मत बोलना, वरना बहुत मारूंगी, सच बोल और गाँड़ मरवाने में, ... "

मैं उनसे और कस के चिपक गयी, और बोली,...

"दर्द बहुत होता है,... "

आज भाभी मेरी बहुत ही मूड में थी, उन्होंने मेरी पतंग काट दी , और जोर से बोलीं,

" चुप कर छिनार, सारी घसियारी, पनिहारन, धान क सोहनी रोपनी वाली, सब को मालूम हो गया की कैसे, ... कल एकदम भोर भिन्सारे खुले आम अपने भैया से (बात भाभी की एकदम सही थी, कामिनी भाभी के पति मेरे भैया ही तो लगेंगे ) मस्ती से हचक के गाँड़ मरवा रही थी, ,,,, "


उनकी बात काटते माँ बोली ( और साथ में टॉप से झांकते मेरे मूंगफली के दानों से निप्स को जोर से मरोड़ दिया, जैसे कोई शैतान बच्चो का कान मरोड़े ),

" सही तो कर रही थी मेरी बेटी, ... अरे सुबह सुबह गाँड़ मरवाने का तो मज़ा है और है, बस खाली सुपाड़ा घोंटने का दर्द है , और एक बार अंदर घुस गया तो मक्खन ही मक्खन, सटासट अंदर जाएगा। "

बात माँ की एकदम सही थी, कल सुबह ही तो, यही टाइम रहा होगा,... और वो मक्खन वाली बात, ...कामिनी भाभी ने कैसे जबरदस्त मेरी गाँड़ में दोनों ऊँगली अपनी पेल कर मस्त मथानी चलाई थी , पांच दस मिनट और उसके बाद वो दोनों उँगलियाँ, सीधे मेरे मुंह में , जबरदस्त मंजन कराया मेरी भौजी ने,

" तो मजा आता है न बिन्नो को गाँड़ मरवाने में जैसे बुर चुदवाने में " और अबकी माँ ने पूछा तो मेरे मुंह से हाँ निकला गया।
 

komaalrani

Well-Known Member
22,290
58,028
259
मेरी भाभी,


मेरी भाभी










Teej-boobs-157134695-267148481482648-8544759210062100129-n.jpg


" देख लिया अपनी प्यारी दुलारी बिटिया को, कितने मोटे मोटे चींटे इसके पिछवाड़े काट रहे हैं, अरे कल सबेरे से न खाली हमारे गाँव में बल्कि आस पास के गाँव जवार में एकरे पिछवाड़े में जो आग लगी है न उसकी चर्चा है, एक से के मोटे ट्यूबवेल तैयार हैं , तोहरी बेटी के लिए"



मुझे चिढ़ाते, खिलखिलाते मेरी भाभी, माँ से हँसते बोली।



जवाब में झुक के माँ ने कस के मेरे होंठों को चूम लिया और दुलार से मेरे टिकोरों को सहला दिया।

मैं गिनगीना गयी. मेरी जाँघों के बीच में मेरी सहेली जोर से फड़फड़ा रही थी , और माँ ने पलट के भाभी को जवाब दिया,



" जउन जउन ट्यूबवेल तोहरे गाँव के हैं न कुल हमार ई बिटिया झुरवाय देई, समझती हो क्या इसको, निचोड़ के रख देगी अपने पिछवाड़े " लेकिन माँ का सवाल जवाब मुझसे ख़तम नहीं हुआ था, बड़े दुलार से मेरे चेहरे के ऊपर झुक के बोलीं,



" अभी तो तुम बोली थी न की दोनों हाथों में लड्डू एक हाथ में लड्डू से अच्छा है और ये भी अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर मोट मोट घोंटना निक लगता है , तो दुनो ओर एक साथ काहें नहीं घोंटती, एक साथ डबल मजा, है न ? ?



मारे सरम के मैंने अपने दोनों हाथ, अपने चेहरे पर रख लिया, पर माँ ने खींच के हटा दिया और मेरी दोनों भाभियों पर पिल पड़ीं,...



" देख लो, हमार बिटिया तैयार है, एक साथ दो दो घोंटने के लिए, तोहरे लोगन क देवर और और भाई,... ये पीछे हटने वाली नहीं है , आज तक इसने किसी को नहीं मना किया न करेगी, अब तू लोग जानो। "



लेकिन चंपा भाभी ने अचानक पाला बदल दिया, कल की हम लोगों की दोस्ती या अपनी ननद को छेड़ने का मौका,... मेरी भाभी के गाल को कस के मरोड़ती हंस के बोलीं, ...



" हमरे ननद से बचे तब न, कल गयीं थी ठकुराने में पांच पांच, जबरदस्त दावत उड़ाय के आय गयीं, ... जितने पुराने यार,... "



लेकिन ,मेरी भाभी कौन कम थीं. मुझे छोड़ के अपनी भाभी, चंपा भाभी पे चढ़ गयीं,



" अरे भौजी, साल भर तो गाँव भर क देवर क आप, चमरौटी, भरौटी कुछ नहीं छोड़ती, तो दस बीस दिन के लिए अगर मैं साल बरिस के बाद मायके आती हूँ तो जरा मुंह का स्वाद बदलने के लिए, ... तो आप को,... "



लेकिन उन की बात काटी माँ ने और साथ दिया अपनी बहू का चंपा भाभी का, मेरी भाभी के खिलाफ और एक बड़ी पुरानी बात छेड़ दी. चंपा भाभी की ओर देखती बोलीं,



" ई तो एह गाँव क बहुत पुरान चलन है, इसकी बुआ, ( मेरी भाभी की ओर इशारा करके वो बोलीं), जब मैं गौने में आयी डोली से उतरी नहीं थी की उनके कुल लक्षन पता चल गए, झांट भी ठीक से नहीं आयी थी लेकिन कउनो गन्ना, अरहर क खेत न बचा होगा, जहाँ गाँव के लौंडों से वो कबड्डी न खेली हों, तो जइसन हमार ननद थीं वैसे ही तोहार ननद,... लेकिन जउन एंकर ननद आयी हैं, अब देखा अगवाड़े पिछवाड़े एक साथ ,.. "



मेरी भाभी समझ गयीं तो माँ और चंपा भाभी एक साथ हो गयीं तो उनका बचना मुश्किल सब पोल पट्टी मेरे सामने खुल जायेगी, उससे बचने के लिए, उन्होंने एक नया मोर्चा खोल दिया, मेरे खिलाफ और सीधे मुझसे बोलीं,



" तो ठीक है माँ की दुलारी, बिटिया आज जब लौटोगी न खेत खलिहान से तो देखूंगी, ... दोनों छेद से हमरे भाइयों का सरका टपकता रहना चाहिए, टप टप टप। "



लेकिन चम्पा भाभी अभी भी अपनी ननद को छोड़ने के मूड में नहीं थीं , हंस के मेरी भाभी से बोलीं,



एकदम में भी रहूंगी , घर में घुसते ही, बल्कि, चख भी लेना तो, तुमको सब के सड़कों का स्वाद भी याद है अभी तक, पता कर लेना मेरे कौन कौन से देवर चढ़े हैं तोहार ननद पर, और कौन अगवाड़े, कौन पिछवाड़े। "



और अबकी सबकी खिलखिलाहट में मेरी खिखिलाहट भी शामिल हो गयी

……………….



लेकिन तबतक बसंती भी रसोई में आकर बैठ गयी और मजाक छेड़छाड़ का लेवल एकदम असली लेवल पर आ गया.



सुबह सुबह मुझे जो बेड टी बंसती ने पिलाई थी वो बात तो मेरी भाभी, चंपा भाभी और माँ सब को मालूम ही पड़ गयी थी बल्कि मेरे कान में तो माँ की कल वाली बात गूँज रही थी, जब उन को लग रहा था की मैं सो गयी हूँ , और मेरी भाभी और चंपा भाभी को दोनों को उन्होंने साफ़ साफ़ बोला की ' कल से बस खारा पानी, वही सुनहला शरबत, उस के अलावा कुछ भी नहीं , उस की जवानी एकदम छलक जायेगी,... "



वो फिर एक बार मेरी दोनों भाभियों को मेरे सामने ' उसी ' के लिए उकसा रही थीं,





जहाँ तक मेरा सवाल था, चम्पा भाभी बिना जवाब दिए कैसे रहतीं। बोल पड़ीं- “अच्छा अच्छा, चलिए हम भौजाई आपकी प्यारी बिटिया की प्यास नहीं बुझाते, तो आपको इतना प्यार उमड़ रहा है तो एक बार आप भी क्यों नहीं इसकी प्यास बुझा देतीं?”



चम्पा भाभी की बात ने आग में घी डालने का काम किया।
 

UDaykr

New Member
67
106
33
You have taken this story to new height of excitement. I am loving it. This conversation among them is pure erotic.
 

NEHAVERMA

Member
140
465
63
कन्या रस


lez-frndssss.jpg



कामिनी भाभी के साथ चीजें इतने सहज ढंग से होती थीं की पता ही नहीं चला कब हम दोनों के कपड़े हमसे दूर हुए, कब बातें चुम्बनों में और चुम्बन सिसकियों में बदल गए। पहल उन्होंने ही की लेकिन कुछ देर में ही उन्होंने खुद मुझे ऊपर कर लिया, जैसे कोई नई नवेली दुल्हन उत्सुकतावश विपरीत रति करने की कोशिश में, खुद अपने पति के ऊपर चढ़ जाती है।

Lez-kiss-19432113.gif



मैंने कन्या रस सुख पहले भी लिया था, लेकिन आज की बात अलग ही थी। आज तो जैसे 100 मीटर की दौड़ दौड़ने वाला, मैराथन में उतर जाय। कुछ देर तक मेरे होंठ उनके होंठों का अधर रस लेते रहे, उंगलियां उनके दीर्घ स्तनों की गोलाइयां नापने का जतन करती रहीं,


lez-nip-suck-1121861945.gif



लेकिन कुछ ही देर में हम दोनों को लग गया की कौन ऊपर होना चाहिए और कौन नीचे।


कामिनी भाभी, हर तरह के खेल की खिलाड़िन, काम शास्त्र प्रवीणा मेरे ऊपर थीं लेकिन आज उन्हें भी कुछ जल्दी नहीं थी। उनके होंठ मेरे होंठ को सहला रहे थे, दुलरा रहे थे। कभी वो हल्के से चूम लेतीं तो कभी उनकी जीभ चुपके से मुँह से निकल के उसे छेड़ जाती और मेरे होंठ लरज के रह जाते।


मेरे होंठों ने सरेंडर कर दिया था। बस, अब जो कुछ करना है, वो करें।


और उनके होंठों ने खेल तमाशा छोड़कर, मेरे होंठों को गपुच लिया अधिकार के साथ, कभी वो चुभलातीं, चूसतीं अधिकार के साथ तो कभी हल्के से अपने दांतों के निशान छोड़ देती। और इसी के साथ अब कामिनी भाभी के खेले खाए हाथ भी मैदान में आ गए। मेरे उभार अब उन हाथों में थे, कभी रगड़तीं कभी दबाती तो कभी जोर-जोर से मिजतीं। मैं गिनगिना रही थी, सिसक रही थी अपने छोटे-छोटे चूतड़ पटक रही थी।



लेकिन कामिनी भाभी भी न, तड़पाने में जैसे उन्हें अलग मजा मिल रहा था। मेरी जांघें अपने आप फैल गई थीं, चुनमुनिया गीली हो रही थी। लेकिन वो भी न… लेकिन जब उन्होंने रगड़ाई शुरू की तो फिर, मेरी दोनों खुली जाँघों के बीच उनकी जांघें, मेरी प्यासी गीली चुनमुनिया के ऊपर उनकी भूखी चिरैया, फिर क्या रगड़ाई उन्होंने की? क्या कोई मर्द चोदेगा जैसे कामिनी भाभी चोद रही थीं।


lez-pussy-rubbing-18264568.gif


और कुछ ही देर में वो अपने पूरे रूप में आ गईं, दोनों हाथ मेरे गदराये जोबन का रस ले रहे थे, दबा रहे थे, कुचल रहे थे, कभी निपल्स को फ्लिक करते तो कभी जोर से पिंच कर देते, और होंठ किसी मदमाती पगलाई तितली की तरह कभी मेरे गुलाल से गालों पे, तो कभी जुबना पे, और साथ में गालियों की बौछार, जिसके बिना ननद भाभी का रिश्ता अधूरा रहता है।

किसी लता की तरह मैं उनसे चिपकी थी, धीरे-धीरे अपने नवल बांके उभार भाभी के बड़े-बड़े मस्त जोबन से हल्के-हल्के रगड़ने की कोशिश कर रही थी।

nip-suck-lez-9565807.png



मेरी चुनमुनिया जोर-जोर से फुदक रही थी, पंखे फैलाके उड़ने को बेताब थी। मैं पनिया रही थी। 8-10 मिनट, हालांकि टाइम का अहसास न मुझे था न मेरी भौजी को। मैं किनारे पर पहुँच गई, पहली बार नहीं, दूसरी तीसरी बार, लेकिन अबकी भाभी ने बजाय मुझे पार लगाने के, एकदम मझधार में छोड़ दिया।


शाम से ही यही हो रहा था, बंसती, गुलबिया और कामिनी भौजी, लेकिन अगले पल पता चला की हमला बंद नहीं हुआ, सिर्फ और घातक हो गया था। हम दोनों 69 की पोज में हो गए थे, भौजाई ऊपर और मैं नीचे।



lez-69.jpg



और वहां भी वो शोले भड़का रही थीं। बजाय सीधे ‘वहां’ पहुँचने के उनके रसीले होंठों ने मेरी फैली खुली रेशमी जाँघों को टारगेट बनाया और कभी हल्के से लम्बे-लम्बे चाटना और कभी हल्के से किस, और बहुत बहुत धीमे-धीमे उनके होंठ मेरे आनद द्वार की ओर पहुँच गए, लेकिन कामिनी भाभी की गीली जीभ मेरे निचले होंठों के बाहरी दरवाजे के बाहर, बस हल्के-हल्के एक लाइन सी खींचती रही।


मैंने मस्ती से आँखें बंद कर ली थी, हल्के-हल्के सिसक रही थी। जोर से मेरी मुट्ठियों ने चादर दबोच रखी थी।

और जैसे कोई बाज झपट्टा मार के किसी नन्ही गौरैया को दबोच ले, बस वही हालत मेरी चुनमुनिया की हुई।


lez-lick-pussy-20434658.gif


भाभी ने तो अपनी जीभ की नोक मेरी कसी-कसी रसीली गुलाबी चूत की फांकों के बीच डालकर दोनों होंठों को अलग कर दिया। उनकी जीभ प्रेम गली के अंदर थी, कभी सहलाती, कभी हल्के से प्रेस करती। मैं पनिया रही थी, गीली हो रही थी। फिर भाभी के दोनों होंठ… उन्होंने एक झपट्टे में दोनों फांको को दबोच लिया।


मैं सोच रही थी की वो अब चूस-चूसकर, लेकिन नहीं… उनके होंठ बस मेरे निचले होंठों को हल्के-हल्के दबाते रहे। रगड़ते रहे। लेकिन मेरी चूत में घुसी उनकी जीभ ने शैतानी शुरू कर दी। चूत के अंदर, कभी आगे-पीछे, कभी अंदर-बाहर, तो कभी गोल।




जवाब मेरे होंठों ने उनकी बुर पे देना शुरू किया लेकिन वहां भी वही हावी थीं। जोर-जोर से रगड़ना, मेरे होंठों को बंद कर देना… हाँ, कभी-कभी जब वो चाहती थीं की उनकी छुटकी ननदिया उनके छेड़ने का जवाब दे, तो पल भर के लिए मेरे होंठ आजाद हो जाते थे।

कामिनी भाभी की जाँघों की पकड़ का अहसास मुझे अच्छी तरह हो गया था, किसी मजबूत लोहे की सँड़सी की पकड़ से भी तेज, मेरा सर उनकी जाँघों के बीच दबा था, और मैं सूत भर भी हिल नहीं सकती थी। और नीचे उसी मजबूती से उनके दोनों हाथों ने मेरी दोनों जांघों को कस के फैला रखा था।

उन्होंने इतनी जोर से चूसा की मैं काँप गई और साथ में हल्के से क्लिट पे जो उन्होंने बाइट ली की, बस लग रहा था अब झड़ी तब झड़ी।



lez-pussy-lick-19791050.gif




बस मन कर रहा था की जैसे कोई मोटा लम्बा आके, मेरी चूत की चूल चूल ढीली कर दे, लेकिन भौजी मेरी झड़ने दे तब न… जैसे ही मैं किनारे पे पहुँची, उन्होंने मेरी चूत पर से अपने होंठ हटा लिए और जबरदस्त गाली दी-


“काहें ननदी छिनार, भाईचोदी, तेरे सारे खानदान की गाण्ड मरवाऊँ तोहरे भैया से, तोहरी चूत को चोद-चोद के भोसड़ा न बनाय दिया तो तुहारे भैया ने…”

मैं भी कौन कम थी, अपनी भाभी की चुलबुली ननद, मैंने भी मुँह बना के जवाब दिया-


“भौजी आपके मुँह में घी शक्कर लेकिन भैया हैं कहाँ?”
Ohh bhabhi maja aa gaya
 
Top