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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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लाजवाब अपडेट है...
बहुत बहुत धन्यवाद, मोहे रंग दे पर भी कल ही अपडेट दे दिया था , अब देखिये मैंने नियमित रूप से इन दोनों कहानियों पर अपडेट दे रहीं , बस आप लोगों का सपोर्ट और साथ चाहिए।
 

komaalrani

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Just shared playboy calendar of 2022 on my thread,.... Alphabet



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komaalrani

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Bahut hi mast update pad kar 2 baar jhadi
इसीलिए तो ऐसा लिखती हूँ , सब सच्ची सच्ची गाँव की बातें
 
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Tiger 786

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मेले में खोयी गुजरिया

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तब तक मैंने एक किताबों की दुकान देखी और रुक गयी ,



जमीन पर बिछा के , ढेर सारी ,

किस्सा तोता मैना , सारंगा सदाब्रिज , आल्हा , बेताल पच्चीसी ,सिंहासन बत्तीसी , शादी के गाने ,



मैं झुक के पन्ने पलट रही थी, पता ही नहीं चला कैसे टाइम गुजर रहा था , तब तक जोर से नितम्बो पे किसी ने चिकोटी काटी , और बोला तुम दोनों मिल के ये कौन सी किताब पढ़ रहे हो।



और मेरी निगाह बगल की ओर मुड़ गयी।

अजय हलके हलके मुस्कराता हुआ ,



और फिर मेरी निगाह उस किताब की ओर पड़ गयी, जिसकी ओर चंदा इशारा कर रही थी।



असली कोकशास्त्र , बड़ी साइज ,८४ आसन ,सचित्र।

Kamsutra-images.jpg



मैं गुलाल हो गयी , और अजय बदमाशी से मुस्करा रहा था।



" सही तो कह रही हूँ , साथ साथ पढ़ लो तो साथ साथ प्रैक्टिस करने में भी आसानी होगी। "

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मैं उसे मारने दौड़ी तो वो एक दो तीन , और मेले की भीड़ में गायब।



लेकिन मेरी पकड़ से कहाँ बाहर आती



आखिर पकड़ लिया , लेकिन उसी समय कामिनी भाभी और दो चार भाभियाँ मिल गयीं , और वो बच गयी।



बात बातें करते हम लोग मेले के दूसरी ओर पहुँच गए थे।

वहां एक बहुत संकरी गली सी थी , दुकानों के बीच में से। और मेला करीब करीब खत्म सा हो गया था वहां , पीछे उसके खूब घनी बाग़,



तभी मैंने देखा दो लड़कियां निकलीं , उसी संकरी गली में से , खिलखिलाती , खूब खुश और उसके पीछे थोड़ी देर बाद दो लड़के।



मैंने शक की निगाह से चंदा की ओर देखा तो उसने मुस्कराते हुए सर हिलाके हामी भरी।



फिर इधर उधर देख के फुसफुसाते हुए मेरे कान में कहा ,

" यही तो मेले का मजा है। अरे गन्ने के खेत के अलावा भी बहुत जगहें होती हैं ,उस के पीछे कुछ पुराने खँडहर है , जिधर कोई आता जाता नहीं है , सरपत और ऊँची ऊँची मेंडे फिर पीछे बाग़ और सीवान है। "



पूरबी चूड़ी की एक दूकान से इशारे कर के मुझे बुला रही थी , और मैं उसके पास चली गयी।



वहां कजरी भी थी और दोनों उस दूकान दार से खूब लसी थीं ,

मैं भी उन की छेड़छाड़ में शामिल हो गयी। वहां से फिर मैं चंदा को ढूंढने निकली , तो उस ओर पहुँच गयी जहां दुकानो के बीच की वो संकरी सी गली , एक एक करके कोई उसमें जा सकता था ,



तभी अचानक भगदड़ मची , खूब जोर की , कोई कहता लड़ाई हो गयी , कोई कहता सांप निकला।



सब लोगों की तरह मैं भी भागी , और भीड़ के एक रेले के धक्के के साथ मैं भी ,



कुछ देर में जब मैं रुकी तो मैंने देखा की मैं उसी संकरी गली के अंदर हूँ.

,

मैं आगे बढती रही , वह आगे इतनी संकरी होगयी थी की तिरछे हो के ही निकला जा सकता था ,रगड़ते दरेरते।



मैं अंदर घुस गयी , और थोड़ी देर बाद एक दम खुली जगह , ज्यादा नहीं , १००- २०० फीट।



उसमें कुछ पुराने अध टूटे कमरे , और खूब ऊँची मेड जिस पे सरपत लगी थी और उस के पार वो घनी बाग़।



बाहर से एक बार फिर मेले का शोर सुनाई देने लगा था।



मैं एकदम अकेली थी वहां।



आसमान में काले बादल भी घिर आये थे , काफी अँधेरा हो गया था।





और जब मैं वापस निकलने लगी तो , रास्ता बंद।





दो मोटे तगड़े मुस्टंडे , उस संकरे रास्ते को रोक के खड़े थे।



मेरी तो घिघ्घी बंध गयी।



अगर मैं चिल्लाऊं तो भी वहां कोई सुनने वाला नहीं थी।



उन में से एक आगे बढ़ने लगा , और मैं पीछे हटने लगी।



दूसरा रास्ता घेरे खड़ा था।



मैं आलमोस्ट उस खँडहर के पास पहुँच गयी।



वह कुछ बोल नहीं रहे थे पर उनका इरादा साफ था और मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी।



" तेरी सोन चिरैया तो आज लूटी , कोई चाहने वाला लूटता पहली फुहार का मजा लेकिन यहाँ ये दो ,"



कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।



तबतक एकदम फिल्मी हीरो की तरह , अजय



और पहली बार मैंने नोटिस किया , उसकी चौड़ी छाती , खूब बनी हुयी मसल्स ,कसरती देह , ताकत छलक रही थी।



और अब उसके आगे तो दोनों जमूरे एकदम पिद्दी लग रहे थे।



उसने उन दोनों को नोटिस ही नहीं किया , और सीधे आके मेरा हाथ पकड़ के बोला ,



" अरे हम सब लोग तुमको ढूंढ रहे हैं , चलो न "


मैंने अपना सर उसके सीने पे रख दिया।
Nice update
 
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मजा झूले पे ,


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" अरे हम सब लोग तुमको ढूंढ रहे हैं , चलो न "



मैंने अपना सर उसके सीने पे रख दिया।





थोड़ी देर में हम लोग फिर मेले की गहमागहमी के बीच , वहीं मस्ती ,छेड़छाड़। और पूरा गुट ।



गीता ,पूरबी ,कजरी , चंदा , रवि ,दिनेश और सुनील।





एक बड़ी सी स्काई व्हील के पास।



" झूले पे चढ़ने के डर से भाग गयी थी क्या " पूरबी ने चिढ़ाया।

Geeta-Kajal-Raghwani-hot-picture.jpg


" अरे मेरी सहेली इत्ती डरने वाली नहीं है , झूला क्या हर चीज पे चढ़ेगी देखना ,क्यों हैं न "

चंदा क्यों पीछे रहती द्विअर्थी डायलॉग बोलने में।



और अब झूले वाले ने बैठाना शुरू किया ,मुझे लगा मैं और चंपा एक साथ बैठ जायंगे , लेकिन जैसे ही चंदा बैठी , धप्प से उसके बगल में सुनील बैठ गया।



और अब मेरा नंबर था लेकिन जब मैं बैठी तो देखा , की सब लड़कियां किसी न किसी लड़के के साथ ,

और कोई नहीं बची थी मेरे साथ बैठने के लिए।



बस अजय , और वो झिझक रहा था।



झूलेवाले ने झुंझला के उससे पूछा , तुम्हे चढ़ना है या किसी और को चढाउँ ,बहुत लोग खड़े हैं पीछे।



मैंने खुद हाथ बढ़ा के अजय को खीँच लिया पास में।



चंदा और सुनील अगली सीट पे साफ दिख रहे थे।

चंदा एकदम उससे सटी चिपकी बैठीं थी और सुनील ने भी हाथ उसके उभारों पर , और सीधे चोली के अंदर

और झूला चलने के पहले ही दोनों चालू हो गए।


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सुनील का एक हाथ सीधे चंदा की चोली अंदर , जोबन की रगड़ाई ,मसलाई चालू हो गयी और चंदा कौन कम थी , वो भी लिफाफे पे टिकट की तरह सुनील से चिपक गयी।



और झूला चलते हुए इधर उधर जो मैंने देखा तो सारी लड़कियों की यही हालत थी।



मैं पहली बार जायंट व्हील पे बैठी थी और जैसे ही वो नीचे आया, जोर की आवाज उठी , होओओओओओओओओओओ हूऊऊओ



और इन आवाजों में डर से ज्यादा मस्ती और सेक्सी सिसकियाँ थीं।





डर तो मैं भी रही थी ,पहली बार जायंट व्हील पे बैठी थी और जैसे ही झूला नीचे आया मेरी फट के , … मैं एकदम अजय से चिपक गयी।



लेकिन एक तो मैं कुछ शर्मा रही और अजय भी थोड़ा ज्यादा ही सीधा , झिझक रहा था की कहीं मैं बुरा न ,



लेकिन फिर भी जब अगली बार झूला नीचे आया , डर के मारे मैंने आँखें मिची , अजय ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख दिया।

अब मैं और उहापोह में उसके हाथ को हटाऊँ या नही। अगर न हटाऊं तो कहीं वो मुझे ,…

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हाथ तो मैंने नहीं हटाया ,हाँ थोड़ा दूर जरूर खिसक गयी , बस अजय ने हाथ हटा लिया।



अब मुझे अहसास हुआ , कितनी बड़ी गलती कर दी मैंने। एक तो वो वैसे ही थोड़ा ,बुद्ध और सीधा ऊपर से मैं भी न ,



फिर बाकी लड़कियां कित्ता खुल के मजे ले रही थीं , चंदा के तो चोली के आधे बटन भी खुल गए थे और सुनील का हाथ सीधा अंदर , खुल के चूंची मिजवा रही थी। और मैं इतने नखड़े दिखा रही थी। क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहां था ,खुद तो उससे खुल के बोल नहीं सकती थी।



लेकिन सब कुछ अपने आप हो गया ,एकदम नेचुरल।



झूले की रफ्तार एकदम से तेज होगयी और मैं डर के अजय के पास दुबक गयी ,मैंने अपना सर उसके सीने में छुपा लिया , और अब जब उसने अपना हाथ सपोर्ट देने के लिए जैसे , मेरे कंधे पे रखा।



ख़ुशी से मैंने उसे मुस्करा के देखा और अपनी उंगलिया उसके हाथ पे रख के दबा दी।



और जब झूला नीचे आया तो अबकी सबकी सिसकियों में मेरी भी शामिल थी।



मैं समझ गयी थी ,हर बार लड़का ही पहल नहीं करता ,लड़की को भी उसका जवाब देना पड़ता है।



और अगर अजय ऐसा लड़का हो तो फिर और ज्यादा , आखिर मजा तो दोनों को आता है। फिर कुछ दिन में मैं शहर वापस चली जाउंगी , फिर कहाँ , और आज यहाँ अभी जो मौक़ा मिला है वैसा कहाँ ,… फिर









उसका हाथ पकड़ के मैंने नीचे खींच लिया सीधे अपने उभार पे , और हलके से दबा भी दिया।



और जैसे अपनी गलती की भरपाई कर दी हो , अजय की ओर मुस्करा के देखा भी।



फिर तो बस , उसकी शैतान उंगलियां ,मेरे कड़े कड़े किशोर उभारों के बेस पे , थोड़ी देर तो उसने बस जैसे थामे रखा ,फिर अपनी हथेली से हलके दबाना शुरू किया। हाथ का बेस मेरे निपल से थोड़े ऊपर , मैं साँस रोक के इन्तजार कर रही थी अब क्या करेगा वो ,



कुछ देर उसने कुछ नहीं किया , बस अपनी हथेली से हलके हलके दबाता , मेरी गोलाइयों का रस लेता , वो अभी खिली कलियाँ जिसके कितने ही भौंरे दीवाने यहाँ इस मेले में टहल रहे थे। पतली सी टाइट चोली से उसके हाथ का स्पर्श अंदर तक मुझे गीला कर रहा था।



मन तो मेरा कर रहा था बोल दूँ उससे जोर से बोल दूँ ,यार रगड़ दो मसल मेरे जोबन ,जैसे खुल के बाकी लड़कियां मजे ले रही हैं ,



पर ये साल्ली शरम भी न ,



लेकिन अबकी जब झूला नीचे आया तो बस मैंने अपनी हथेली उसकी हथेली के ऊपर रख के खूब जोर से दबा दिया , और उस प्यासी निगाह से देखा , जैसे सावन में प्यासी धरती काले बादलों की ओर देखती है।



और धरती की तरह मेरी भी मुराद पूरी हुयी।



अजय ने खूब जोर से मेरे जोबन दबा दिए।



इत्ता भी सीधा नहीं था वो , अब हलके हलके रगड़ मसल रहा था , और थोड़ी ही देर में दूसरा उभार भी उसके हथेली की पकड़ में ,



मेरी सिसकियाँ और चीखें और लड़कियों से भी अब तेज निकल रही थीं।



पहली बार मुझे ये मजा जो मिल रहा था , प्यार से कोई मेरे उभारों को सहला दबा रहा था , मसल रहा था ,रगड़ रहां था ,मीज रहा था।



और मैं भी उतने ही प्यार से , दबवा रही थी , मसलवा रही थी , रगड़वा रही थी ,मिजवा रही थी।



मैं आलमोस्ट उसके गोद में बैठी हुयी थीं ,मेरा एक हाथ जोर से उसके कमर को पकडे हुआ था , जैसे अब वही मेरा सहारा हो , आलमोस्ट कम्प्लीट सरेंडर।

अब मेरी सारी सहेलियां जिस तरह से खुल के अपने यारों के साथ मजा ले रही थीं ,उसी तरह





लेकिन अजय तो अजय ,उसकी उँगलियाँ हथेलियाँ अभी भी चोली के ऊपर से ही चूंची का रस ले रही थीं।



दो बटन तो मेरे पहले ही खुले थे , मेरी गोलाइयाँ , गहराइयाँ सब कुछ उसे दावत दे रही थीं लेकिन ,....



पर मेरे लिए चोली के ऊपर से भी जिस तरह से वो जोर जोर से दबा रहा था वही पागल करने के लिए बहुत था। अब मुझे अंदाज हो रहा था जवानी के उस लज्जत का जिसे लूटने के लिए सब लड़कियां कुछ भी , कभी गन्ने के खेत में तो कभी अपने घर में ही ,





उसकी डाकू उँगलियों ने हिम्मत की अंदर घुसने की , मैंने बहुत जोर से सिसकी भरी , जब उसके ऊँगली के पोर मेरे निपल से छू गए।



जैसे खूब गरम तवे पे किसी ने पानी के छींटे दे दिए हों





अंगूठा और तर्जनी के बीच वो मटर के दाने ,



लेकिन तबतक झूला धीमा होना शुरू हो गया था और उसने हाथ हटा लिया।





झूले के रूकने पे अजय ने मेरा हाथ पकड़ के उतारा और एक बार फिर उसकी हथेली मेरे उभारों पे रगड़ गयी।


वो बेशर्मों की तरह मुझे देख के मुस्करा रहा था , लेकिन मैं ऐसी शरमाई की , हिरनी की तरह अपने सहेलियों के झुण्ड से दूर।


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Bohot hi mast update
 
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Bohot hi mast update
सावन हो, झूला हो , ननद भाभियाँ हों और कजरी, पूरबी बयार हो,

मज़ा ही अलग है,...

और जो मज़ा सावन का गाँव में है, वो शहर में कहाँ,
 
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छठवीं फुहार

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मेले में



कुछ देर कभी चूड़ियों की दूकान पे तो कभी कहीं कुछ देर इधर उधर घूमने के बाद मैं उधर पहुँच गयी जहाँ मेरी सहेलियां खड़ी थी।

शाम करीब करीब ढल चुकी थी , नौटंकी और बाकी दुकानों पे रौशनी जल गयी थी।

बादल भी काफी घिर रहे थे।

जब मैंने अपनी सहेलियों की ओर निगाहें डाली तो वहां उनके साथ कई लड़के खड़े थे, जब मैं नजदीक गई तो पाया कि चन्दा के साथ सुनील, गीता के साथ रवी और कजरी और पूरबी के साथ भी एक-एक लड़का था।


अजय अकेला खड़ा था।

गीता ने अजय को छेड़ा-

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“अरे… सब अपने-अपने माल के साथ खड़े हैं… और तुम अकेले…”

मैंने ठीक से सुना नहीं पर मैं अजय को अकेले देखकर उसके पास खड़ी हो गयी और बोली-


“मैं हूँ ना…”


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सब हँसने लगे, पर अजय ने अपने हाथ मेरे कंधे पर रखकर मुझे अपने पास खींच लिया और सटाकर कहने लगा-




मेरा माल तो है ही…”

थोड़ा बोल्ड बनकर अपना हाथ उसकी कमर में डालकर, मैं और उससे लिपट, चिपट गयी और बोली-


“और क्या, जलती क्यों हो, तुम लोग…”

चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए, अजय से बोली-


“अरे इतना मस्त, तुम्हारा मन पसंद माल मिल गया है, मुँह तो मीठा कराओ…”



“कौन सा मुंह… ऊपर वाला या नीचे वाला…”


छेड़ते हुए गीता चहकी।



“अरे हम लोगों का ऊपर वाला और अपने माल का दोनों…”

चन्दा मुश्कुरा के बोली।



एक दुकान पर ताजी गरम-गरम जलेबियां छन रहीं थीं। हम लोग वहीं बैठ गये।


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सब लोगों को तो दोने में जलेबियां दीं पर मुझे उसने अपने हाथ से मेरे गुलाबी होंठों के बीच डाल दी। थोड़ा रस टपक कर मेरी चोली पर गिर पड़ा और उसने बिना रुके अपने हाथ से वहां साफ करने के बहाने मेरे जोबन पे हाथ फेर दिया। हम लोग थोड़ा दूर पेड़ के नीचे बैठे थे। उसका हाथ लगाते ही मैं सिहर गयी।





एक जलेबी अपने हाथों में लेकर मैंने उसे ललचाया-

“लो ना…”


और जब वो मेरी ओर बढ़ा तो मैंने जलेबी अपने होंठों के बीच दबाकर जोबन उभारकर कहा-

“ले लो ना…”

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अब वो कहां रुकने वाला था, उसने मेरा सर पकड़ के मेरे होंठों के बीच अपना मुँह लगा के न सिर्फ जलेबी का रसास्वादन किया

बल्की अब तक कुंवारे मेरे होंठों का भी जमकर रस लिया और उसे इत्ते से ही संतोष नहीं हुआ

और उसने कसके मेरे रसीले जोबन पकड़ के अपनी जीभ भी मेरे मुँह में डाल दिया।



“हे क्या खाया पिया जा रहा है, अकेले-अकेले…”

चन्दा की आवाज सुनकर हम दोनों अलग हो गये।


रात शुरू हो गयी थी।


हम सब घर की ओर चल दिये।
Awesome update
 

Tiger 786

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वापसी


रास्ते में मैंने देखा कि पूरबी उन दोनों लड़कों से, जो मेरी “रसीली तारीफ” कर रहे थे, घुल मिलकर बात कर रही थी।


गीता ने बताया कि वे पूरबी के ससुराल के हैं और बल्की उसके ससुराल के यार हैं।


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रात शुरू हो चुकी थी , और साथ कजरारे मतवारे बादल के छैले ,बार बार चांदनी का रास्ता रोक लेते , बस झुटपुट रोशनी थी ,

और कभी वो भी नहीं /

दूर होते जा रहे मेले में गैस लाइट ,जेनरेटर सब की रौशनी थी , और वहां बज रहे गानों की आवाजें दूर तक साथ आ रही थीं।

सुबह मेरी सहेलियां सब एक साथ थीं और गाँव के लडके पीछे ,

लेकिन अभी ,...कभी लडकियां एक साथ तो... कभी कुछ अपने यार के साथ भी ,

ख़ास तौर से पगडंडी जहाँ संकरी हो जाती थी ,या दोनों ओर आम के बाग़ या गन्ने के खेत होते ,

बस गुट बनते बिगड़ते रह रहे थे।

चंदा मेंरा हाथ पकड़ कर चल रही थी , क्योंकि बाकी के लिए तो ये जानी पहचानी डगर थी लेकिन मैं तो पहली बार ,


कुछ ही दूर पे पीछे पीछे अजय और सुनील ,कुछ बतियाते चल रहे थे।

पूरबी , कजरी ,गीता सब आगे आगे।


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" धंस गयल, अटक गयल ,सटक गयल हो ,

रजउ , धंस गयल, अटक गयल ,सटक गयल हो ,"



मेले में से नौटंकी के गाने की आवाज आई , और चंदा ने मुझे चिढ़ाते ,मेरे कान में फुसफुसा के बोला ,

" कहो , धँसल की ना ?"

" जाके धँसाने वाले से पूछो न। "



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उसी टोन में मैंने आँखे नचा के पीछे आ रहे , अजय की ओर इशारा कर के बोला।

" सच में जाके पूछूं उससे ,मेरी सहेली शिकायत कर रही है ,क्यों नहीं धँसाया। "


चंदा बड़ी शोख अदा से सच में , पीछे मुड़ के वो अजय की ओर बढ़ी।




" तेरी तो मैं , … "


कह के मैंने उसकी लम्बी चोटी का परांदा पकड़ के खींच लिया और मेरा एक मुक्का उसकी गोरी खुली पीठ पे।

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चंदा भी , मुड़के मेरे कान में हंस के हलके से बोली ,

" जब धँसायेगा न तो जान निकल जायेगी ,बहुत दर्द होता है जानू,… "

" होने दे यार ,कभी न कभी तो दर्द होना ही है।"


एक बेपरवाह अदा से गाल पे आई एक लट को झटक के मैं बोली।

चांदनी भी उस समय बादलों के कैद से आजाद हो गयीं थी।



अमराई से हलकी हलकी बयार चल रही थी।

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और पूरबी ने जैसे मेरी चंदा की बात चीत सुन ली और एक गाना छेड़ दिया , साथ में गीता और कजरी भी।


तानी धीरे धीरे डाला ,बड़ा दुखाला रजऊ ,

तानी धीरे धीरे डाला ,बड़ा दुखाला रजऊ ,


सुबह से ये गाना मैंने मेले में कितनी बार सूना था , तो अगली लाइन मैंने भी मस्ती में जोड़ दी।


बचपन में कान छिदायल ,तनिक भरे का छेद

मत पहिरावा हमका बाला , बड़ा दुखाला रजउ।
,
मस्त जोबनवा चोली धयला ,गाल तो कयला लाल ,

गिरी लवंगिया , बाला टूटल , बहुत कईला बेहाल।



और फिर पूरबी , कजरी ,सब ने आगे की लाइने जोड़ी

अरे अपनी गोंदिया में बैठाला ,बड़ा दुखाला रजऊ।

तानी धीरे धीरे डाला ,बड़ा दुखाला रजऊ ,



लौटते समय लड़कियां ज्यादा जोश में हो गयी थी।

एक तो अँधेरे में कुछ दिख नहीं रहा था साफ साफ ,कौन गा रहा है ,

सिरफ परछाइयाँ दिख रही थीं। हवा तेज चल रही थी।

दूसरे मेले की मस्ती के बाद हम सब भी काफी खुल गए थे


सब कुछ तो ले लेहला गाल जिन काटा ,


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कजरी ने शुरू किया। वो सब काफी आगे निकल गयी थीं।

पीछे से मैंने भी साथ दिया , लेकिन मुझे लगा ,चंदा शायद , और मैंने बाएं और देखा तो , वास्तव में वो नहीं थीं।

तब तक मुझे गाल पे किसी की अँगुलियों का अहसास हुआ और कान में किसी ने बोला ,


" ऐसा मालपूआ गाल होगा तो , न काटना जुल्म है। "



अजय पता नहीं कब से मेरे बगल में चल रहा था लेकिन गाने की मस्ती में ,

मेरे बिना कुछ पूछे उसने पीछे इशारा किया ,

एक घनी अमराई में , दो परछाइयाँ ,लिपटी,

चंदा और सुनील।

सुनील के घर का रास्ता यहाँ से अलग होता था।

बाकी लड़कियों भी एक एक करके ,

कुछ देर में में सिर्फ मैं अजय और चंदा रह गए , मैं बीच में और वो दोनों ओर ,

फिर चंदा की छेड़ती हुई बातें।


चंदा एक पल के लिए रुक गयी , किसी काम से।


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Aap ke pas ghano ka bhandaar hai
Masti bhara update
 
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