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Erotica सोलवां सावन

Tiger 786

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मस्ती की बारिश


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“तो चुदवाओ ना… मेरी जान शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी रानी को…”



और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा।


थोड़ी ही देर में मैं मस्ती में सिसकियां ले रही थी।

मेरा एक जोबन उसके हाथों से कसकर रगड़ा जा रहा था और दूसरे को वह पकड़े हुए था

और मेरे उत्तेजित निपल को कस-कस के चूस रहा था।

कुछ ही देर में उसने जांघों पर से मेरे साड़ी सरका दी और उसके हाथ मेरी गोरी-गोरी जांघों को सहलाने लगे।

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मेरी पूरी देह में करेंट दौड़ गया।

देखते-देखते उसने मेरी पूरी साड़ी हटा दी थी और चन्दा की तरह मैं भी टांगें फैलाकर, घुटने से मोड़कर लेट गयी थी।

उसकी उंगलियां, मेरे प्यासे भगोष्ठों को छेड़ रहीं थी, सहला रही थी।

अपने आप मेरी जांघें, और फैल रही थीं।

अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी कुंवारी अनचुदी चूत में डाल दी और मैं मस्ती से पागल हो गयी।

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उसकी उंगली मेरी रसीली चूत से अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत रस से गीली हो रही थी।

बारिश तो लगभग बंद हो गई थी पर मैं अब मदन रस में भीग रही थी। उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को रगड़, छेड़ रहा था।


और मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी-



“बस… बस करो ना… अब और कितना… उह्ह्ह… उह्ह्ह… ओह्ह्ह… अजय… बहुत… और मत तड़पाओ… डाल दो ना…”


अजय ने मुझे झूले पे इस तरह लिटा दिया कि मेरे चूतड़ एकदम किनारे पे थे।

बादल छंट गये थे और चांदनी में अजय का… मोटा… गोरा… मस्क्युलर… लण्ड,

उसने उसे मेरी गुलाबी कुंवारी… कोरी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया, मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगें उसके चौड़े कंधों पर थीं।


जब उसके लण्ड ने मेरी क्लिट को सहलाया तो मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गयीं।

उसने अपने एक हाथ से मेरे दोनों भगोष्ठों को फैलाया और अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पे लगा के रगड़ने लगा।

दोनों चूचीयों को पकड़ के उसने पूरी ताकत से धक्का लगाया तो उसका सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था।



ओह… ओह… मेरी जान निकल रही थी, लगा रहा था मेरी चूत फट गयी है-


“उह… उह… अजय प्लीज… जरा सा रुक जाओ… ओह…”


मेरी बुरी हालत थी।


अजय अब एक बार फिर मेरे होंठों को चूचुक को, कस-कस के चूम चूस रहा था।

थोड़ी देर में दर्द कुछ कम हो गया और अब मैं अपनी चूत की अदंरूनी दीवाल पर सुपाड़े की रगड़न,

उसका स्पर्श महसूस कर रही थी और पहली बार एक नये तरह का मज़ा महसूस कर रही थी।

अजय की एक उंगली अब मेरी क्लिट को रगड़ रही थी और मैं भी दर्द को भूलकर धीरे-धीरे चूतड़ फिर से उचका रही थी।


एक बार फिर से बादल घने हो गये थे और पूरा अंधेरा छा गया था।


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अजय ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरी पतली कमर को कस के पकड़ा और लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाला, और पूरी ताकत से अंदर पेल दिया। बहुत जोर से बादल गरजा और बिजली कड़की… और मेरी सील टूट गयी।




मेरी चीख किसी ने नहीं सुनी, अजय ने भी नहीं, वह उसी जोश में धक्के मारता रहा।

मैं अपने चूतड़ कस के पटक रही थी पर अब लण्ड अच्छी तरह से मेरी चूत में घुस चुका था और उसके निकलने का कोई सवाल नहीं था। दस बाहर धक्के पूरी ताकत से मारने के बाद ही वह रुका।


जब उसे मेरे दर्द का एहसास हुआ और उसने धक्के मारने बंद किये।





प्यासी धरती की तरह मैं सोखती रही और जब अजय ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया तो भी मैं वैसे ही पड़ी रही।

अजय ने मुझे उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया। मैंने झुक कर अपनी जांघों के बीच देखा, मेरी चूत अजय के वीर्य से लथपथ थी

और अभी भी मेरी चूत से वीर्य की सफेद धार, मेरी गोरी जांघ पर निकल रही थी। पर तभी मैंने देखा-




ओह… ये खून खून कहां से… मेरा खून…


अजय ने मेरा गाल चूमते हुए, मेरा ब्लाउज उठाया और उसीसे मेरी जांघ के बीच लगा वीर्य और खून पोंछते हुए बोला-



“अरे रानी पहली बार चुदोगी तो बुर तो फटेगी ही… और बुर फटेगी तो दर्द भी होगा और खून भी निकलेगा, लेकिन अब आगे से सिर्फ मजा मिलेगा…”

अजय का लण्ड अभी भी थोड़ा खड़ा था। उसे पकड़कर अपनी मुट्ठी में लेते हुए, मैं बोली-





“सब इसी की करतूत है… मजे के लिये मेरी कुवांरी चूत फाड़ दी… और खून निकाला सो अलग…

और फिर इतना मोटा लंबा पहली बार में ही पूरा अंदर डालना जरूरी था क्या…”






अजय मेरा गाल काटता बोला-

“अरे रानी मजा भी तो इसी ने दिया है… और आगे के लिये मजे का रास्ता भी साफ किया है…
लेकिन आपकी ये बात गलत है की जब तुम्हें दर्द ज्यादा होने लगा तो मैंने सिर्फ आधे लण्ड से चोदा…” ''






बनावटी गुस्से में उसके लण्ड को कस के आगे पीछे करती, मैं बोली-



“आधे से क्यों… अजय ये तुम्हारी बेईमानी है… इसने मुझे इत्ता मजा दिया, जिंदगी में पहली बार और तुमने…

और दर्द… क्या… आगे से मैं चाहे जितना चिल्लाऊँ, चीखूं, चूतड़ पटकूं, चाहे दर्द से बेहोश हो जाऊँ,
पर बिना पूरा डाले तुम मुझे… छोड़ना मत, मुझे ये पूरा चाहिये…”





अजय भी अब मेरी चूत में कस-कस के ऊँगली कर रहा था-

“ठीक है रानी अभी लो मेरी जान अभी तुम्हें पूरे लण्ड का मजा देता हूं, चाहे तुम जित्ता चूतड़ पटको…”





मैंने मुँह बनाया-



“मेरा मतलब यह नहीं था और अभी तो… तुम कर चुके हो… अगली बार… अभी-अभी तो किया है…”





लेकिन अजय ने अबकी मेरे सारे कपड़े उतार दिये और मुझे झूले पे इस तरह लिटाया की सारे कपड़े मेरे चूतड़ों के नीचे रख दिये

और अब मेरे चूतड़ अच्छी तरह उठे हुए थे। वह भी अब झूले पर ही मेरी फैली हुई टांगों के बीच आ गया





और अपने मोटे मूसल जैसे लण्ड को दिखाते हुए बोला-





“अभी का क्या मतलब… अरे ये फिर से तैयार है अभी तुम्हारी इस चूत को कैसा मजा देता है, असली मजा तो अबकी ही आयेगा…” वह अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुँह पर रगड़ रहा था और उसके हाथ मेरी चूचियां मसल रहे थे। वह अपना मोटा, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा, कड़ा सुपाड़ा मेरी क्लिट पर रगड़ता रहा।




और जब मैं नशे से पागल होकर चिल्लाने लगी-


“अजय प्लीज… डाल दो ना… नहीं रहा जा रहा… ओह… ओह… करो ना… क्यों तड़पाते हो…” तो अजय ने एक ही धक्के में पूरा सुपाड़ा मेरी चूत में पेल दिया।


उह्ह्ह्ह, मेरे पूरे शरीर में दर्द की एक लहर दौड़ गयी, पर अबकी वो रुकने वाला नहीं था। मेरी पतली कमर पकड़ के उसने दूसरा धक्का दिया। मेरी चूत को फाड़ता, उसकी भीतरी दीवाल को रगड़ता, आधा लण्ड मेरी कसी किशोर चूत में घुस गया। दर्द तो बहुत हो रहा था पर मजा भी बहुत आ रहा था।

ह कभी मुझे चूमता, मेरी रसीली चूचियों को चूसता, कभी उन्हें कस के दबा देता, कभी मेरी क्लिट सहला देता, पर उसके धक्के लगातार जारी थे।





मैंने भी भाभी के सिखाने के मुताबिक अपनी टांगों को पूरी तरह फैला रखा था।




उसके धक्कों के साथ मेरी पायल में लगे घुंघरू बज रहे थे और साथ में सुर मिलाती सावन की झरती बूंदे, मेरे और उसके देह पर और इस सबके बीच मेरी सिसकियां, उसके मजबूत धक्कों की आवाज… बस मन कर रहा था कि वह चोदता ही रहे… चोदता ही रहे।

कुछ देर में ही उसका पूरा लण्ड मेरी रसीली चूत में समा गया था और अब उसके लण्ड का बेस मेरी चूत से क्लिट से रगड़ खा रहा था।



नीचे कपड़े रखकर जो उसने मेरे चूतड़ उभार रखे थे। एकदम नया मजा मिल रहा था।



थोड़ी देर में जैसे बरसात में, प्यासी धरती के ऊपर बादल छा जाते हैं वह मेरे ऊपर छा गया। अब उसका पूरा शरीर मेरी देह को दबाये हुए था और मैंने भी अपनी टांगें उसकी पीठ पर कर कस के जकड़ लिया था। कुछ उसके धक्कों का असर, कुछ सावन की धीरे-धीरे बहती मस्त हवा… झूला हल्के-हल्के चल रहा था।









मुझे दबाये हुए ही उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये और मैं भी नीचे से चूतड़ उठा-उठाकर उसका जवाब दे रही थी। मेरे जोबन उसके चौड़े सीने के नीचे दबे हुए थे। वह पोज बदल-बदल कर, कभी मेरे कंधों को पकड़कर, कभी चूचियों को, तो कभी चूतड़ों को पकड़कर लगातार धक्के लगा रहा था, चोद रहा था, न सावन की झड़ी रुक रही थी, न मेरे साजन की चुदाई… और यह चलता रहा।









मैं एक बार… दो बार… पता नहीं कितनी बार झड़ी… मैं एकदम लथपथ हो गयी थी।


तब बहुत देर बाद अजय झड़ा और बहुत देर तक मैं अपनी चूत की गहराईयों में उसके वीर्य को महसूस कर रही थी।




उसका वीर्य मेरी चूत से निकलकर मेरी जांघों पर भी गिरता रहा। कुछ देर बाद अजय ने मुझे सहारा देकर झूले पर से उठाया। मैंने किसी तरह से साड़ी पहनी, पहनी क्या बस देह पर लपेट ली।
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बस इसी तरह ..... बहुत बढ़िया अपडेट है... आगे रात बाकी है..
 
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बस इसी तरह ..... बहुत बढ़िया अपडेट है... आगे रात बाकी है..
Thanks- This week i gave 4 updates,

1. 23rd January- अड़तालीसवीं फुहार - गुलबिया- Post number 717 to 719 -Page 72

2. 24th January - माँ-----------------------------Post number 722-723 ---Page 73

3. 28th January चढ़ गया सांड़, बछिया के ऊपर, Post Number 762-763 -Page 77

4 . 30 January भौजी का पिछवाड़ा -----------------Post number 788,789 Page 78

बस आप सबके कमेंट आते रहेंगे , साथ बना रहेगा , अपडेट आते रहेंगे, ...
 

Meena1995

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नयहर में जब तू कुँवार रहलू,


उर्फ़ मेरी भाभी के बालापन के किस्से





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" अरे भौजी तोहरे हवाले ई ननद है लेकिन ओकरे पहले नयहर में जब तू कुँवार रहलू, हमरे भाभी क किस्सा कहानी " मैंने जिद की.

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" लेकिन ओकरे पहले चाय " वो हंस के बोलीं,


और थोड़ी देर में पिछवाड़े वाले कच्चे आंगन में नीम के पेड़ के नीचे मैं बसंती की गोद में सर रखे अधलेटी थी, वो कभी मेरे गाल सहलाती कभी फ्राक के ऊपर से छोटे छोटे उभार दबा देतीं, और झुक के मुझे चूमते बोलीं,...

"अरे तोहूँ से उमरिया में बारी रही होंगी जब पहिला धक्का खायीं, ... तोहसे दुई हाथ आगे थीं,... "

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उनके चुम्मे का हलके से जवाब चुम्मे से देते मैंने धीरे से पूछा, कौन था भौजी।

मेरे छोटे छोटे जोबन हलके हलके सहलाते बोलीं,

" तुमको नहीं मालूम अरे देखी तो होगी कइयों बार तुम, अबहियों तो नैन मटक्का चलता है, ... समुवा,... "



" अरे वही जो गइया भैसिया का काम करता है , जउन चार पांच दिन के लिए कही गया है और आज कल तोहें ,... "मुझे बिस्वास नहीं हुआ, मैंने पूछ लिया।

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बसंती ने बात बीच में काट दी और बोली , "हाँ एकदम वहीँ , अरे तोहरी भाभी के समौरिये है नहीं तो दो चार साल बड़ा होगा। ओकर भौजाई हमें कुल किस्सा बताई , गुलबिया क गोतिन हैं , आती है कई बार,..."



रॉकी हम दोनों को टुकुर टुकुर देख रहा था , आसमान कभी एकदम काला हो जाता था जब आवारा बादल चाँदनी को घेर लेते थे और चांदनी उन सब को मुंह चिढ़ाती , छुपती छिपाती , बच के निकल जाती थीं तो आंगन में रौशनी छिटक जाती थी।

लगता था हम लोगों के इसी आंगन वाले नीम के पेड़ पर, अटक गया है, छुप छुप के हम ननद भौजाई की बात सुन रहा है,

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और बसंती ने भाभी के पहले चक्कर का किस्सा आगे बढ़ाया लेकिन साथ में मना भी कर दिया की बीच में टोका टोकी न करूँ, चुपचाप सुनूं।

मैं ध्यान से बसंती का मुंह देख रही थी, एक एक बात सुन रही थी और जैसे सामूआ की बड़की भौजी ने आँखों देखा सुनाया था, सब का सब एकदम सच्च,... आँखों देखी, वैसे ही सुना रही थीं



" तुमसे भी उमरिया में बारी थी, और जब समुआ गाय भैंस दूहने सबरे शाम आता था, वो भी वहीँ जहाँ गाय भैस बंधती है , तोहरी कुठरिया के पीछे वहीँ, पहुँच जाती थी, और कभी उसे चिढ़ाए, कभी उसे तंग करे कभी,... अपने छोटे छोटे जोबना भी जाने अनजाने रगड़ देती। कभी झुक झुक के बस आ रहे छोटे छोटे चूजे उसे दिखातीं ललचातीं,

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समझता तो समुआ भी था थोड़ा बहुत, लेकिन लजाता भी था , हिम्मत भी नहीं पड़ती थी आगे बढ़ने की , पर उसकी बड़की भाभी जो उसके साथ गाय भैंस की सानी पानी करती थीं , उनसे अपने देवर की ये हालत नहीं देखी जाती थी, और कनखियों से वो ये भी देखती थीं की तोहरी भाभी क बदमाशी से उनके देवर का खूंटा टनटना के खड़ा हो जाता था,.. अच्छा ख़ासा बांस,... एक दिन नहीं रहा गया,... तोहार भाभी आपन उभार ओकरे पिठिया प रगड़त रहीं , तो वो बोल दीं,



" अरे बाकी कुल गाय भैंस तो रोज दुहते हो , एक दिन ई बछिया भी दुह दो, बहुत गरमाय रही है '

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समुआ क खूंटा तो खड़ा हो गया लेकिन बोलने क हिम्मत नहीं पड़ी , पर तोहार भाभी टपर टपर बोल पड़ीं,...

" अरे भौजी, आपके देवर की हिम्मत ही नहीं है, बेचारा,... "


गाँव के रिश्ते से समुआ के भौजी से तोहरी भाभी का तो ननद भौजी का ही रिश्ता था और मजाक का भी।



दो तीन दिन तक ऐसे ही , समुआ क भौजी उकसाती रही , जब एक दिन बोल दी की देवर इज्जत का सवाल है आज तो दुह ही लो,... तो हिम्मत कर के समुआ ने पीछे हाथ कर के कच्चे टिकोरे दबोच लिए , और तोहार भाभी लजाय के , छुड़ाय के घर में भाग गयीं।



अगले दिन भिन्सारे तो तोहार भाभी नहीं आयीं सांझी क टाइम फिर आ गयीं ,

समुआ का भौजी उनको चिढ़ायीं,

" फिर आय गयी दुहाने का "

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लेकिन तोहार भाभी पटर पटर खिलखिलात क जवाब उलटे दीं,

"अरे भौजी, आपके देवर को दुहना आता ही नहीं, कभी कपडे के ऊपर ऊपर दुहा जाता है का, जरा इसको सिखाइये पढ़ाइये न "

भौजी चुप रहने वाली नहीं थी , समुआ से बोली,

" अरे जोन गाय दुहाने में हाथ पैर फेंकती हैं , उनका हाथ गोड़ छान के दुह लेते हैं,... समझ लो "

ऐसे ही छेड़ छाड़ चलती थी एकदिन जब कुछ तोहार भाभी बोलीं, तो समुआ क भौजी बोलीं,

" अरे बहुत दूध देने का मन है, ... पहले सांड़ बछिया के ऊपर चढ़ता है और एक बार सांड़ चढ़ गया न तो सोचो बछिया केतना भी उछले कूदे, बिना घुसेड़े छोड़ता नहीं ,... और ओकरे बाद दूध,... "

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अब तोहरे भाभी लजा गयीं लेकिन धीरे से भौजी के पास आ के बोलीं, ;

"लेकिन भौजी बछिया थोड़े सांड़ के पास जाती है , सांड़ आ आके चढ़ता है।"

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और एक दिन सांड़ बछिया पर चढ़ गया, घर में कोई था नहीं, वहीँ भुसियौरा में जहाँ पुवाल के गट्ठर रहते हैं वहीँ पुवाल पे

" हे बसंती भौजी ऐसे ना चली, हमारे बारी तो उँगरी डार, कुरोद कुरोद के एक एक बात, लम्बाई मोटाई कुल चीज़ पूछ ली थी और अब हमारी भाभी की बारी ऐसे काट पीट के आधा तिहा हाल,... "


मैंने बंसती के उभारों पर कस के चिकोटी काट के छेड़ते हुए पूछा।
"लेकिन भौजी बछिया थोड़े सांड़ के पास जाती है , सांड़ आ आके चढ़ता है।"

Waaah
 

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"लेकिन भौजी बछिया थोड़े सांड़ के पास जाती है , सांड़ आ आके चढ़ता है।"

Waaah
Thanks so much
 
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komaalrani

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जोरू का गुलाम में आज लम्बे अरसे बाद अपडेट पोस्ट कर दिया, ....

 
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