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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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एक के साथ दो -दो


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भले मैं ब्लाउज नहीं पहनी थी, और पीठ मेरी एकदम खुली थी, लेकिन बसंती ने साडी इस तरह से सेट की थी मेरे उभारों की गोलाइ कड़ाई खूब उभर के दिख रही थी, जोबन खूब झलक रहा था , लेकिन दिख जरा भी नहीं रहा था,



और तब तक फटफटिया रुकी, बसंती ने दरवाजा खोला, और दो जबरदस्त जवान, लड़के और मरद के बीच का कह सकते हैं, खूब कसरती देह, वृषभ कंध, केहरि कटि, और भले बसंती ने इतना ज्ञान दिया हो, अनजान लड़के,...

मैं बसंती के पीछे छुप रही, खिलखिलाते बसंती ने मुझे उन दोनों के सामने खड़ा कर दिया,...


मेरी बड़ी बड़ी काजर से भरी आँखे नीचे आँगन की मिट्टी में धंसी, लेकिन कनखियों से बसंती के गाँव के उन दोनों को देख रही थी,


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बसंती, चम्पा भाभी और कामिनी भाभी ने अब तक मुझे समझा दिया था की एक नजर में पहचानने का तरीका, मरद चोदने में कैसा होगा, और वो तीनों इन दोनों को दस में दस देतीं।


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बसंती ने मुझ छिपती लजाती को उन के सामने खड़ा कर दिया, वो दोनों तो जैसे रूप जोबन देखकर एकदम बेहोश,... लेकिन बसंती थी न (बसंती सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट में थी, ब्रा तो गाँव में कोई पहनता नहीं था, और उस के बड़े बड़े जोबना ब्लाउज फाड़ रहे थे, साड़ी उस की मैंने पहन रखी थी, सिर्फ साड़ी )


उन दोनों से बोली,

" ये है मेरी ननद, कैसी लगी है न मस्त,... "



और मुझसे बोली,

" और ये हैं हमरे ननदोई, तो ननद और ननदोई के बीच हमार का काम, तो अब तुम लोग समझो "

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लेकिन इतने दिनों में गाँव में रहते मुझे गाँव के रिश्ते और मज़ाक अच्छी तरह समझ में आ गए थे और मेरी निगाह भी उन दोनों से नहीं हट रही थी, एक बार फिर मैं बसंती के पीछे छिप गयी और बसंती को उन दोनों की ओर धकेलती बोली,


" भौजी, ननद नन्दोई तो मान गयी मैं, लेकिन भौजी ओह हिसाब से तो आप भी इन लोगन क सलहज लगेंगी, ... और नन्दोई सलहज का भी तो , नन्दोई का तो पहले सलहज पर हक होता है , ... तो नन्दोई सलहज आपस में निपटें मैं ज़रा रसोई से कुछ खाने पीने का, "

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वो तीनों एक साथ बोले, दोनों लड़के बोले, " नहीं नहीं हम खूब खा पी के आये हैं, कुछ भी नहीं खाएंगे। "



बसंती ने मुझे किचेन में जाने से रोका और खींच के उन दोनों लड़कों के बीच में खड़ा कर दिया, और बोली,


" अरे मेरे गाँव के हैं, दोनों मेरे भाई लगेगें, ... "

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अबकी मैं न हटी न लजायी, फिर उन दोनों की ओर मुंह कर के बोली ,

" तब तो अच्छा है , भैया के साले हैं दोनों,... और बसंती को छेड़ा, ...

" अरे भौजी, अपने गाँव का रिश्ता अपने गाँव में निभाइयेगा, इस गाँव का इस गाँव में, नन्दोई सलहज वाला , लेकिन सलहज एक नन्दोई दो दो , कोई बात नहीं अगवाड़ा पिछवाड़ा , मिल बाँट के आपके नन्दोई काम चला लेंगे,... "

" मन की बात बोल दी न ननद रानी, दोनों मिल बाँट के काम चलाएंगे लेकिन तेरा, और हमरी ननदो के तो दस दस भतार होते हैं ,"

बसंती ने तो पहले ही तय कर लिया था अपने गाँव के उन दोनों मर्दों चढ़ायेगी मेरे ऊपर, और वैसे भी आज घर में उसी का राज था, माँ, भाभी, उन की भाभी -चंपा भाभी किसी रतजगा में गयीं थीं, कोई रसम थी जिसमें खाली सुहागिने रहती हैं , इसलिए आज मैं घर में, बसंती के हवाले,... और जब महरीन भाभी आयीं, उन्होंने इन दोनों बसंती के गाँव के लड़कों के बारे में बताया तो उसी समय मेरी लिख गयी थी, तो मैं लाख कोशिश करूँ , बहाने बनाऊं मेरी अगवाड़े पिछवाड़े दोनों की,..

पूरी रात खूब मजा आया, दोनों ने मिल के , लेकिन उस के पहले मैंने उन दोनों की,...



आधे घंटे की छेड़छाड़ के बाद , दोनों के खूंटे मेरे हाथ में थे , जैसा बसंती ने सिखाया था , एक को चूसती थी तो दूसरे को मुठियाती थी ,


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एक को चूँची के बीच लेकर तो दूसरे को चूसती चाटती थी, ... नहीं नहीं शुरू में दोनों नहीं चढ़े मेरे ऊपर,



,
 

komaalrani

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डबल मज़ा
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पूरी रात खूब मजा आया, दोनों ने मिल के , लेकिन उस के पहले मैंने उन दोनों की,...

आधे घंटे की छेड़छाड़ के बाद , दोनों के खूंटे मेरे हाथ में थे , जैसा बसंती ने सिखाया था , एक को चूसती थी तो दूसरे को मुठियाती थी , एक को चूँची के बीच लेकर तो दूसरे को चूसती चाटती थी, ... नहीं नहीं शुरू में दोनों नहीं चढ़े मेरे ऊपर,

खूब देर तक दोनों की एक साथ मस्ती मैंने की, जैसा बसंती भौजी ने सिखाया था, एकदम वैसे , ( बाद में उन्होंने मुझे दस में दस नंबर दिया )

पहले तो खूब देर तक दोनों का मुठ्याती रही, सालों का खूब बड़ा भी था और मोटा भी ,

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लेकिन मैं बसंती भौजी की असली ननद, मुठियाते समय कभी अंगूठे से सुपाड़ा दबा देती तो कभी एक का बॉल्स सहला देती , खड़ा तो दोनों का मुझे देख के ही होगया था, एकदम कड़ा कड़ा , मुट्ठी में पकड़ने में बहुत अच्छा लग रहा था ,

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फिर मैंने एक का चूसना शुरू किया , चूसना नहीं सिर्फ चाटना, बस जीभ की टिप से सुपाड़े के छेद को चाटती, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप घुसाती , सिर्फ जीभ से लपड़ लपड़ सुपाडे को चाटती,

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और दुसरे का न सिर्फ मुठियाती, बल्कि कभी अपने गाल से छुला देती तो कभी अपनी छोटी छोटी चूँचियों पर रगड़ देती और जब एक बार मैंने उसके खुले सुपाड़े को अपने निप्स से बस छुला दिया तो वो एकदम गिनगीना गया ,

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अब उसको अंदाज लगा होगा की कैसी है उसकी बहिन की ननदिया

और थोड़ी देर में जिसका मैं चूस रही थी वो मेरे मुट्ठी में और जिसको मैं मुठिया रही थी, उसको दोनों छोटी छोटी कड़ी कड़ी चूँचियों के बीच लेकर टिट फक, स्साले का इत्ता कडा था जब मेरे जोबन को रगड़ते घिसते जाता, मैं बता नहीं सकती कितना मजा आ रहा था, और टिट फक करते करते उसके सुपाड़े को लेकर चूसने भी लगती

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लेकिन बसंती तो असली खेल चाहती थी


आज मेरी गाँड़ की बर्बादी लिखी थी, बसंती बोली चढ़ आ शूली पर मैं सेट कर देती हूँ, कितनी बार तो चढ़ चुकी थी आज ही सुनील के खूंटे पर,

लेकिन सेट कराते समय बदमाश बसंती ने बदमासी कर दी, बजाय अगवाड़े के पिछवाड़े का छेद सेट कर दिया, फिर बहन भाई ने मिल कर,

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बसंती मुझे कंधे को पकड़ कर दबाती रही और उसका भाई , मेरी पतली कमर को पकड़ कर अपनी ओर खींचता रहा,, बड़ी मुश्किल से सुपाड़ा घुसा, उसके बाद सूत सूत करके आधा बांस,... फिर बसंती हट गयी,... और आँख नचाती , मुझे छेड़ती मेरी छिनार भौजी बोलीं,

" हमरे देवर का, रोज घोंटती हो, आज हमरे बीरन का नंबर है , देखती हूँ तोहार ताकत , बाकी का खुद ही घोंट,... "

और उस के कंधे को पकड़ मैंने जोर जोर से दबाना शुरू किया , कभी मजे से सिसकती तो कभी दर्द से चीखती, बसंती को गरियाती , पर थोड़ी देर में पूरा मेरी गाँड़ के अंदर, ...


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ये नहीं था की मैंने पहले गाँड़ नहीं मराई थी, वो मेरी कमीनी छिनार सहेली चंदा और उस का यार सुनील ( असल में अब वो उससे ज्यादा मेरा यार था ), आज दिन में ही सुनीलवा ने दो बार मेरी गाँड़ मारी थी, और दिनेश ने भी, तभी तो बंसती भौजी कह रही थी हमरे देवर का तो रोज घोंटती हो , अब ज़रा हमरे बीरन का घोंट लो,... लेकिन वो दोनों तो खुद मार रहे थे और यहाँ मुझे खुद चढ़ के घोंटना पड़ रहा था, वो तो गनीमत थी की बसंती ने मुझे निहुराकर दो ढक्क्न कडुवा तेल मेरे पिछवाड़े डाल दिया था और मैंने चूस चूस के भौजी के भैया का चिक्क्न मुक्क्न कर दिया था , लेकिन तब भी मोटा कितना था

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लेकिन सिर्फ गाँड़ में घोंटने से थोड़ी जान बचने वाली थी , और घोंटने में तो बसंती जो मेरा कंधा पकड़ के दबा रही थी, जोर जोर से पुश कर रही थी, तो किसी तरह मेरी कसी गाँड़ वो मोटा मूसल घोंट गयी,... लेकिन फिर खुद उठके और फिर उसके कंधे पकड़ के दबा के दुबारा घोटना,...

और साथ साथ वो भौजी का स्साला भाई, मुझे झुका के मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ, मेरे जोबना के तो न सिर्फ इस गाँव वाले दीवाने थे पूरे बल्कि जब मैं मेले में गयी थी तो उसी दिन से आस पास के बीस तीस गाँवों में मेरे जोबन का डंका बज रहा था,

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तो मैं उसके ऊपर,वो नीचे और जब वो पकड़ के कस कस के मसलता, मुंह में लेके चूसता पूरी ताकत से , निप्स पे दांत लगा देता तो बस जान निकल जाती थी मस्ती से.

कुछ देर में उसने मेरी कमर पकड़ के, कभी कमरिया पकड़ के तो कभी मेरी चूँचिया दबोच के जबरदस्त तूफानी धक्के मेरी गाँड़ में मार रहा था, गाँड़ के चीथड़े हो रहे थे, मैं जितना दर्द से चीखती, बसंती और उसे उकसाती,

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'अरे बहिन क ननद का गाँड़ मारे क मौका कम ही मिलता है , अइसन गाँड़ मारो छिनार क की हमरे गाँव तक आवाज जाए , चीखने दो, अरे और कस के,... हाँ फ़ाड़ दो,... "


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और वो अपनी बहिन की आवाज सुन के और जोर से

लेकिन ये तो शुरआत थी, वो मेरे गाँड़ में घुसाए घुसाए उठा और मुझे नीम के पेड़ के पास खड़ा कर के, मेरे पिछवाड़े क्या धक्के मारे,,



मैंने कस के नीम के पेड़ को दबोच रखा था,

बादलों को हटा हटा के बदमाश चाँद मेरी रगड़ाई देख रहा था ,



आंगन में बैठी मेरी भौजी, बसंती देख रही थी की कैसे हचक हचक के मेरी गाँड़ मारी जा रही थी, हर धक्के के साथ मेरे उभार मेरी देह पूरी तरह नीम के उस मोटे पेड़ से रगड़ती,



आसन बदल बदल कर, ... पटक पटक कर क्या बेरहमी से उसने मेरी ली, मैं पता नहीं कितनी बार झड़ी होउंगी,....


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लेकिन उसने निकाला भी नहीं था की उसके दोस्त ने अपना मूसल ठोंक दिया , और कहाँ , वहीँ पिछवाड़े, और वो तो और बेरहम , उसका खूंटा भी पूरा मोटा मूसल,...

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मैं कभी चीखती कभी बसंती का नाम उन दोनों से लगा लगा के गरियाती और वो दूने जोश से मेरे पिछवाड़े, कच्चे आंगन में,



और बसंती कभी आंगन में बैठी उस दूसरे लड़के से मायके का हाल चाल पूछतीं , सिर्फ लोगों का ही नहीं, गोरु बछरू का भी पेड़ पौधों का भी, ... फलाने सिंह के यहाँ जो आम का पेड़ लगा था, अब तो बड़ा हो गया होगा,

" अरे इस बार तो बौर भी आ गए थे उसपर " वो ख़ुशी से बसंती को बताता,


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प्रायमरी स्कूल में नए मास्टर जी आ गए हैं , फलाने की गाय बियाई है , सब कुछ,...

और कभी मेरे पीछे पड़ जाती,...





नहीं नहीं डबलिंग भी हुयी एक बार दो बार नहीं पूरे चार बार,


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नहीं नहीं सिर्फ सैंडविच ही नहीं, एक निहुरा के कस कस के गांड मारता और फिर आठ दस मिनट गाँड़ मारने के बाद , लंड निकाल के सीधे मेरी गाँड़ से मेरे मुंह में , और जब तक मैं उसका मेरी गाँड़ निकला लंड चाट चाट के चूस चूस के साफ़ करती, दूसरा मेरी गाँड़ में अपना मोटा लंड ऐसे हचक के एक बार में पूरा पेल देता की बस जान निकल जाती, और कुछ देर में उसका लंड मेरे मुंह में , ... कभी कभी सैंडविच , एक के खूंटे पे मैं बैठती तो दूसरा पीछे से गाँड़ मारता,...


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दोनों ही सांड़ थे सांड़

सुबह जब चुहचुहिया बोलने लगी, अँधेरा धुंधलाने लगा तब गए दोनों,
 

Jitan singh

Srdar ji
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Fantastic.....story 🌹
 
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Dhaval4

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उईइइइइइइइइइ , प्लीज लगता है ,ओह्ह आह बहोत जोर से नहीईईईई





और मैं जोर से चिल्लाई ,

" उईइइइइइइइइइ माँ , प्लीज लगता है ,माँ ओह्ह आह बहोत जोर से नहीईईईई अजय बहोत दर्द उईईईईईई माँ। "
………….

" अपनी माँ को क्यों याद कर रही हो ,उनको भी चुदवाना है क्या ,चल यार चोद देंगे उनको भी , वो भी याद करेंगी की ,...."

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दोनों हाथों से हलके हलके मेरी दोनों गदराई चूंची दबाते , और अपने पूरा घुसे लंड के बेस से जोर जोर से मेरे क्लिट को रगड़ते अजय ने चिढ़ाया।

लेकिन मैं क्यों छोड़ती उसे ,जब भी वो हमारे यहाँ आता मैं उसे साल्ले ,साल्ले कह के छेड़ती , आखिर मेरे भइया का साला तो था ही। मैंने भी जवाब जोरदार दिया।

" अरे साल्ले भूल गए ,अभी साल दो साल भी नहीं हुआ , जब मैं इसी गाँव से तोहार बहिन को सबके सामने ले गयी थी , अपने घर ,अपने भइया से चुदवाने। और तब से कोई दिन नागा नहीं गया है जब तोहार बहिन बिना चुदवाये रही हों। ओहि चुदाई का नतीजा ई मुन्ना है , और आप मुन्ना के मामा बने हो। "


मिर्ची उसे जोर की लगी।

बस उसने उसी तरह जवाब दिया ,जिस तरह से वो दे सकता था ,पूरा लंड सुपाड़े तक बाहर निकाल कर ,एक धक्के में हचक के उसने पेल दिया पूरी ताकत अबकी पहली बार से भी जोरदार धक्का उसके मोटे सुपाड़े का मेरी बच्चेदानी पे लगा।

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दर्द और मजे से गिनगीना गयी मैं।

और साथ ही कचकचा के मेरी चूची काटते , अजय ने अपना इरादा जाहिर किया ,

" जितना तेरी भाभी ने साल भर में , उससे ज्यादा तुम्हे दस दिन में चोद देंगे हम, समझती क्या हो।
मुझे मालूम है हमार दी की ननद कितनी चुदवासी हैं ,सारी चूत की खुजली मिटा के भेजेंगे यहाँ से तुम खुदे आपन बुरिया नही पहचान पाओगी। "

जवाब में जोर से अजय को अपनी बाहों में बाँध के अपने नए आये उभार ,अजय की चौड़ी छाती से रगड़ते हुए , उसे प्यार से चूम के मैंने बोला ,

" तुम्हारे मुंह में घी शक्कर , आखिर यार तेरा माल हूँ और अपनी भाभी की ननद हूँ ,कोई मजाक नहीं। देखती हूँ कितनी ताकत है हमारी भाभी के भैय्या में , चुदवाने में न मैं पीछे हटूंगी ,न घबड़ाउंगी। आखिर तुम्हारी दी भी तो पीछे नहीं हटती चुदवाने में , मेरे शहर में। साल्ले बहनचोद , अरे यार बुरा मत मानना , आखिर मेरे भैय्या के साले हो न और तोहार बहिन को तो हम खुदै ले गयी थीं ,चुदवाने तो बहिनचोद , … "

मेरी बात बीच में ही रुक गयी , इतनी जोर से अजय ने मुझे दुहरा कर के मेरे दोनों मोटे मोटे चूतड़ हाथ से पकड़े और एक ऐसा जोरदार धक्का मारा की मेरी जैसे साँस रुक गयी ,और फिर तो एक के बाद एक ,क्या ताकत थी अजय में ,मैंने अच्छे घर दावत दे दी थी।

मैं जान बूझ के उसे उकसा रही थी। वो बहुत सीधा था और थोड़ा शर्मीला भी ,लेकिन इस समय जिस जोश में वो था ,यही तो मैं चाहती टी।

जोर जोर से मैं भी अब उसका साथ देने की कोशिश कर रही थी। दर्द के मारे मेरी फटी जा रही थी लेकिन फिर भी हर धक्के के जवाब में चूतड़ उचका रही थी , जोर जोर से मेरे नाखून अजय के कंधे में धंस रहे थे ,मेरी चूंचियां उसकी उसके सीने में रगड़ रही थीं।

दरेरता, रगड़ता , घिसटता उसका मोटा लंड जब अजय का ,मेरी चूत में घुसता तो जान निकल जाती लेकिन मजा भी उतना ही आ रहा था।

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कचकचा के गाल काटते ,अजय ने छेड़ा मुझे ,

" जब तुम लौट के जाओगी न तो तोहार भैया सिर्फ हमार बल्कि पूरे गाँव के साले बन जाएंगे , कौनो लड़का बचेगा नहीं ई समझ लो। "







और उस के बाद तो जैसे कोई धुनिया रुई धुनें ,





सिर्फ जब मैं झड़ने लगी तो अजय ने थोड़ी रफ्तार कम की।

मैंने दोनों हाथ से चारपाई पकड़ ली ,पूरी देह काँप रही थी. बाहर तूफान में पीपल के पेड़ के पत्ते काँप रहे थे ,उससे भी ज्यादा तेजी से।



जैसे बाहर पागलों की तरह बँसवाड़ी के बांस एक दूसरे से रगड़ रहे थे, मैं अपनी देह अजय की देह में रगड़ रही थी।



अजय मेरे अंदर धंसा था लेकिन मेरा मन कर रहा था बस मैं अजय के अंदर खो जाऊं , उसके बांस की बांसुरी की हवा बन के उसके साथ रहूँ।



मुझे अपने ही रंग में रंग ले , मुझे अपने ही रंग में रंग ले ,

जो तू मांगे रंग की रंग रंगाई , जो तू मांगे रंग की रंगाई ,

मोरा जोबन गिरवी रख ले , अरे मोरा जोबन गिरवी रख ले ,





मेरा तन ,मेरा मन दोनों उस के कब्जे में थे।





दो बार तक वह मुझे सातवें आसमान तक ले गया ,और जब तीसरी बार झड़ी मैं तो वो मेरे साथ ,मेरे अंदर , … खूब देर तक गिरता रहा ,झड़ता रहा।

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बाहर धरती सावन की हर बूँद सोख रही थी और अंदर मैं उसी प्यास से ,एक एक बूँद रोप रही थी।



देर तक हम दोनों एक दूसरे में गूथे लिपटे रहे।



वह बूँद बूँद रिसता रहा।

अलसाया ,





बाहर भी तूफान हल्का हो गया था।



बारिश की बूंदो की आवाज , पेड़ों से , घर की खपड़ैल से पानी के टपकने की आवाज एक अजब संगीत पैदा कर रहा था।

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उसके आने के बाद हम दोनों को पहली बार , बाहर का अहसास हुआ।











अजय ने हलके से मुझे चूमा और पलंग से उठ के अँधेरे में सीधे ताखे के पास , और बुझी हुयी ढिबरी जला दी.


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Bahot khubsoorat
 
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malikarman

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पूरी रात खूब मजा आया, दोनों ने मिल के , लेकिन उस के पहले मैंने उन दोनों की,...

आधे घंटे की छेड़छाड़ के बाद , दोनों के खूंटे मेरे हाथ में थे , जैसा बसंती ने सिखाया था , एक को चूसती थी तो दूसरे को मुठियाती थी , एक को चूँची के बीच लेकर तो दूसरे को चूसती चाटती थी, ... नहीं नहीं शुरू में दोनों नहीं चढ़े मेरे ऊपर,

खूब देर तक दोनों की एक साथ मस्ती मैंने की, जैसा बसंती भौजी ने सिखाया था, एकदम वैसे , ( बाद में उन्होंने मुझे दस में दस नंबर दिया )

पहले तो खूब देर तक दोनों का मुठ्याती रही, सालों का खूब बड़ा भी था और मोटा भी ,

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लेकिन मैं बसंती भौजी की असली ननद, मुठियाते समय कभी अंगूठे से सुपाड़ा दबा देती तो कभी एक का बॉल्स सहला देती , खड़ा तो दोनों का मुझे देख के ही होगया था, एकदम कड़ा कड़ा , मुट्ठी में पकड़ने में बहुत अच्छा लग रहा था ,

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फिर मैंने एक का चूसना शुरू किया , चूसना नहीं सिर्फ चाटना, बस जीभ की टिप से सुपाड़े के छेद को चाटती, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप घुसाती , सिर्फ जीभ से लपड़ लपड़ सुपाडे को चाटती,

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और दुसरे का न सिर्फ मुठियाती, बल्कि कभी अपने गाल से छुला देती तो कभी अपनी छोटी छोटी चूँचियों पर रगड़ देती और जब एक बार मैंने उसके खुले सुपाड़े को अपने निप्स से बस छुला दिया तो वो एकदम गिनगीना गया ,


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अब उसको अंदाज लगा होगा की कैसी है उसकी बहिन की ननदिया

और थोड़ी देर में जिसका मैं चूस रही थी वो मेरे मुट्ठी में और जिसको मैं मुठिया रही थी, उसको दोनों छोटी छोटी कड़ी कड़ी चूँचियों के बीच लेकर टिट फक, स्साले का इत्ता कडा था जब मेरे जोबन को रगड़ते घिसते जाता, मैं बता नहीं सकती कितना मजा आ रहा था, और टिट फक करते करते उसके सुपाड़े को लेकर चूसने भी लगती

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लेकिन बसंती तो असली खेल चाहती थी


आज मेरी गाँड़ की बर्बादी लिखी थी, बसंती बोली चढ़ आ शूली पर मैं सेट कर देती हूँ, कितनी बार तो चढ़ चुकी थी आज ही सुनील के खूंटे पर,

लेकिन सेट कराते समय बदमाश बसंती ने बदमासी कर दी, बजाय अगवाड़े के पिछवाड़े का छेद सेट कर दिया, फिर बहन भाई ने मिल कर,

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बसंती मुझे कंधे को पकड़ कर दबाती रही और उसका भाई , मेरी पतली कमर को पकड़ कर अपनी ओर खींचता रहा,, बड़ी मुश्किल से सुपाड़ा घुसा, उसके बाद सूत सूत करके आधा बांस,... फिर बसंती हट गयी,... और आँख नचाती , मुझे छेड़ती मेरी छिनार भौजी बोलीं,

" हमरे देवर का, रोज घोंटती हो, आज हमरे बीरन का नंबर है , देखती हूँ तोहार ताकत , बाकी का खुद ही घोंट,... "

और उस के कंधे को पकड़ मैंने जोर जोर से दबाना शुरू किया , कभी मजे से सिसकती तो कभी दर्द से चीखती, बसंती को गरियाती , पर थोड़ी देर में पूरा मेरी गाँड़ के अंदर, ...


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ये नहीं था की मैंने पहले गाँड़ नहीं मराई थी, वो मेरी कमीनी छिनार सहेली चंदा और उस का यार सुनील ( असल में अब वो उससे ज्यादा मेरा यार था ), आज दिन में ही सुनीलवा ने दो बार मेरी गाँड़ मारी थी, और दिनेश ने भी, तभी तो बंसती भौजी कह रही थी हमरे देवर का तो रोज घोंटती हो , अब ज़रा हमरे बीरन का घोंट लो,... लेकिन वो दोनों तो खुद मार रहे थे और यहाँ मुझे खुद चढ़ के घोंटना पड़ रहा था, वो तो गनीमत थी की बसंती ने मुझे निहुराकर दो ढक्क्न कडुवा तेल मेरे पिछवाड़े डाल दिया था और मैंने चूस चूस के भौजी के भैया का चिक्क्न मुक्क्न कर दिया था , लेकिन तब भी मोटा कितना था

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लेकिन सिर्फ गाँड़ में घोंटने से थोड़ी जान बचने वाली थी , और घोंटने में तो बसंती जो मेरा कंधा पकड़ के दबा रही थी, जोर जोर से पुश कर रही थी, तो किसी तरह मेरी कसी गाँड़ वो मोटा मूसल घोंट गयी,... लेकिन फिर खुद उठके और फिर उसके कंधे पकड़ के दबा के दुबारा घोटना,...

और साथ साथ वो भौजी का स्साला भाई, मुझे झुका के मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ, मेरे जोबना के तो न सिर्फ इस गाँव वाले दीवाने थे पूरे बल्कि जब मैं मेले में गयी थी तो उसी दिन से आस पास के बीस तीस गाँवों में मेरे जोबन का डंका बज रहा था,

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तो मैं उसके ऊपर,वो नीचे और जब वो पकड़ के कस कस के मसलता, मुंह में लेके चूसता पूरी ताकत से , निप्स पे दांत लगा देता तो बस जान निकल जाती थी मस्ती से.

कुछ देर में उसने मेरी कमर पकड़ के, कभी कमरिया पकड़ के तो कभी मेरी चूँचिया दबोच के जबरदस्त तूफानी धक्के मेरी गाँड़ में मार रहा था, गाँड़ के चीथड़े हो रहे थे, मैं जितना दर्द से चीखती, बसंती और उसे उकसाती,

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'अरे बहिन क ननद का गाँड़ मारे क मौका कम ही मिलता है , अइसन गाँड़ मारो छिनार क की हमरे गाँव तक आवाज जाए , चीखने दो, अरे और कस के,... हाँ फ़ाड़ दो,... "


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और वो अपनी बहिन की आवाज सुन के और जोर से

लेकिन ये तो शुरआत थी, वो मेरे गाँड़ में घुसाए घुसाए उठा और मुझे नीम के पेड़ के पास खड़ा कर के, मेरे पिछवाड़े क्या धक्के मारे,,



मैंने कस के नीम के पेड़ को दबोच रखा था,

बादलों को हटा हटा के बदमाश चाँद मेरी रगड़ाई देख रहा था ,



आंगन में बैठी मेरी भौजी, बसंती देख रही थी की कैसे हचक हचक के मेरी गाँड़ मारी जा रही थी, हर धक्के के साथ मेरे उभार मेरी देह पूरी तरह नीम के उस मोटे पेड़ से रगड़ती,



आसन बदल बदल कर, ... पटक पटक कर क्या बेरहमी से उसने मेरी ली, मैं पता नहीं कितनी बार झड़ी होउंगी,....


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लेकिन उसने निकाला भी नहीं था की उसके दोस्त ने अपना मूसल ठोंक दिया , और कहाँ , वहीँ पिछवाड़े, और वो तो और बेरहम , उसका खूंटा भी पूरा मोटा मूसल,...

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मैं कभी चीखती कभी बसंती का नाम उन दोनों से लगा लगा के गरियाती और वो दूने जोश से मेरे पिछवाड़े, कच्चे आंगन में,



और बसंती कभी आंगन में बैठी उस दूसरे लड़के से मायके का हाल चाल पूछतीं , सिर्फ लोगों का ही नहीं, गोरु बछरू का भी पेड़ पौधों का भी, ... फलाने सिंह के यहाँ जो आम का पेड़ लगा था, अब तो बड़ा हो गया होगा,

" अरे इस बार तो बौर भी आ गए थे उसपर " वो ख़ुशी से बसंती को बताता,


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प्रायमरी स्कूल में नए मास्टर जी आ गए हैं , फलाने की गाय बियाई है , सब कुछ,...

और कभी मेरे पीछे पड़ जाती,...





नहीं नहीं डबलिंग भी हुयी एक बार दो बार नहीं पूरे चार बार,


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नहीं नहीं सिर्फ सैंडविच ही नहीं, एक निहुरा के कस कस के गांड मारता और फिर आठ दस मिनट गाँड़ मारने के बाद , लंड निकाल के सीधे मेरी गाँड़ से मेरे मुंह में , और जब तक मैं उसका मेरी गाँड़ निकला लंड चाट चाट के चूस चूस के साफ़ करती, दूसरा मेरी गाँड़ में अपना मोटा लंड ऐसे हचक के एक बार में पूरा पेल देता की बस जान निकल जाती, और कुछ देर में उसका लंड मेरे मुंह में , ... कभी कभी सैंडविच , एक के खूंटे पे मैं बैठती तो दूसरा पीछे से गाँड़ मारता,...

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दोनों ही सांड़ थे सांड़

सुबह जब चुहचुहिया बोलने लगी, अँधेरा धुंधलाने लगा तब गए दोनों,
Dhamakedar update
 
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Fantastic.....story 🌹
Thanks so much
 

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Bahut badhiyaa...
 
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Doon0007

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कोमल जी ,
बहुत ही लाजबाब अपडेट, गुड्डी की तो निकल पड़ी ,
उसे "भाभी जी" की हर पाठ की पढ़ाई का प्रयोग कर रही है।
आगे देखते है क्या क्या होता हैं, लेकिन जो भी होगा बहुत ही कामुक होगा क्यो जी ?
नई जवानी का यही तो मज़ा होता है।
कोमल जी आप लेखन कला के बारे कुछ कहना मतलब सूरज को दिया दिखाना ।अदभुत ,अतुलनीय।
कोमल जी एक गुज़ारिश है गुड्डी के कारनामों का जरा लंबा वर्णन होना चाहिए।बाकी जैसा आप को ठीक लगे।
 
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