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एक के साथ दो -दो
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भले मैं ब्लाउज नहीं पहनी थी, और पीठ मेरी एकदम खुली थी, लेकिन बसंती ने साडी इस तरह से सेट की थी मेरे उभारों की गोलाइ कड़ाई खूब उभर के दिख रही थी, जोबन खूब झलक रहा था , लेकिन दिख जरा भी नहीं रहा था,
और तब तक फटफटिया रुकी, बसंती ने दरवाजा खोला, और दो जबरदस्त जवान, लड़के और मरद के बीच का कह सकते हैं, खूब कसरती देह, वृषभ कंध, केहरि कटि, और भले बसंती ने इतना ज्ञान दिया हो, अनजान लड़के,...
मैं बसंती के पीछे छुप रही, खिलखिलाते बसंती ने मुझे उन दोनों के सामने खड़ा कर दिया,...
मेरी बड़ी बड़ी काजर से भरी आँखे नीचे आँगन की मिट्टी में धंसी, लेकिन कनखियों से बसंती के गाँव के उन दोनों को देख रही थी,
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बसंती, चम्पा भाभी और कामिनी भाभी ने अब तक मुझे समझा दिया था की एक नजर में पहचानने का तरीका, मरद चोदने में कैसा होगा, और वो तीनों इन दोनों को दस में दस देतीं।
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बसंती ने मुझ छिपती लजाती को उन के सामने खड़ा कर दिया, वो दोनों तो जैसे रूप जोबन देखकर एकदम बेहोश,... लेकिन बसंती थी न (बसंती सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट में थी, ब्रा तो गाँव में कोई पहनता नहीं था, और उस के बड़े बड़े जोबना ब्लाउज फाड़ रहे थे, साड़ी उस की मैंने पहन रखी थी, सिर्फ साड़ी )
उन दोनों से बोली,
" ये है मेरी ननद, कैसी लगी है न मस्त,... "
और मुझसे बोली,
" और ये हैं हमरे ननदोई, तो ननद और ननदोई के बीच हमार का काम, तो अब तुम लोग समझो "
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लेकिन इतने दिनों में गाँव में रहते मुझे गाँव के रिश्ते और मज़ाक अच्छी तरह समझ में आ गए थे और मेरी निगाह भी उन दोनों से नहीं हट रही थी, एक बार फिर मैं बसंती के पीछे छिप गयी और बसंती को उन दोनों की ओर धकेलती बोली,
" भौजी, ननद नन्दोई तो मान गयी मैं, लेकिन भौजी ओह हिसाब से तो आप भी इन लोगन क सलहज लगेंगी, ... और नन्दोई सलहज का भी तो , नन्दोई का तो पहले सलहज पर हक होता है , ... तो नन्दोई सलहज आपस में निपटें मैं ज़रा रसोई से कुछ खाने पीने का, "
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वो तीनों एक साथ बोले, दोनों लड़के बोले, " नहीं नहीं हम खूब खा पी के आये हैं, कुछ भी नहीं खाएंगे। "
बसंती ने मुझे किचेन में जाने से रोका और खींच के उन दोनों लड़कों के बीच में खड़ा कर दिया, और बोली,
" अरे मेरे गाँव के हैं, दोनों मेरे भाई लगेगें, ... "
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अबकी मैं न हटी न लजायी, फिर उन दोनों की ओर मुंह कर के बोली ,
" तब तो अच्छा है , भैया के साले हैं दोनों,... और बसंती को छेड़ा, ...
" अरे भौजी, अपने गाँव का रिश्ता अपने गाँव में निभाइयेगा, इस गाँव का इस गाँव में, नन्दोई सलहज वाला , लेकिन सलहज एक नन्दोई दो दो , कोई बात नहीं अगवाड़ा पिछवाड़ा , मिल बाँट के आपके नन्दोई काम चला लेंगे,... "
" मन की बात बोल दी न ननद रानी, दोनों मिल बाँट के काम चलाएंगे लेकिन तेरा, और हमरी ननदो के तो दस दस भतार होते हैं ,"
बसंती ने तो पहले ही तय कर लिया था अपने गाँव के उन दोनों मर्दों चढ़ायेगी मेरे ऊपर, और वैसे भी आज घर में उसी का राज था, माँ, भाभी, उन की भाभी -चंपा भाभी किसी रतजगा में गयीं थीं, कोई रसम थी जिसमें खाली सुहागिने रहती हैं , इसलिए आज मैं घर में, बसंती के हवाले,... और जब महरीन भाभी आयीं, उन्होंने इन दोनों बसंती के गाँव के लड़कों के बारे में बताया तो उसी समय मेरी लिख गयी थी, तो मैं लाख कोशिश करूँ , बहाने बनाऊं मेरी अगवाड़े पिछवाड़े दोनों की,..
पूरी रात खूब मजा आया, दोनों ने मिल के , लेकिन उस के पहले मैंने उन दोनों की,...
आधे घंटे की छेड़छाड़ के बाद , दोनों के खूंटे मेरे हाथ में थे , जैसा बसंती ने सिखाया था , एक को चूसती थी तो दूसरे को मुठियाती थी ,
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एक को चूँची के बीच लेकर तो दूसरे को चूसती चाटती थी, ... नहीं नहीं शुरू में दोनों नहीं चढ़े मेरे ऊपर,
,
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और तब तक फटफटिया रुकी, बसंती ने दरवाजा खोला, और दो जबरदस्त जवान, लड़के और मरद के बीच का कह सकते हैं, खूब कसरती देह, वृषभ कंध, केहरि कटि, और भले बसंती ने इतना ज्ञान दिया हो, अनजान लड़के,...
मैं बसंती के पीछे छुप रही, खिलखिलाते बसंती ने मुझे उन दोनों के सामने खड़ा कर दिया,...
मेरी बड़ी बड़ी काजर से भरी आँखे नीचे आँगन की मिट्टी में धंसी, लेकिन कनखियों से बसंती के गाँव के उन दोनों को देख रही थी,
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बसंती ने मुझ छिपती लजाती को उन के सामने खड़ा कर दिया, वो दोनों तो जैसे रूप जोबन देखकर एकदम बेहोश,... लेकिन बसंती थी न (बसंती सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट में थी, ब्रा तो गाँव में कोई पहनता नहीं था, और उस के बड़े बड़े जोबना ब्लाउज फाड़ रहे थे, साड़ी उस की मैंने पहन रखी थी, सिर्फ साड़ी )
उन दोनों से बोली,
" ये है मेरी ननद, कैसी लगी है न मस्त,... "
और मुझसे बोली,
" और ये हैं हमरे ननदोई, तो ननद और ननदोई के बीच हमार का काम, तो अब तुम लोग समझो "
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" भौजी, ननद नन्दोई तो मान गयी मैं, लेकिन भौजी ओह हिसाब से तो आप भी इन लोगन क सलहज लगेंगी, ... और नन्दोई सलहज का भी तो , नन्दोई का तो पहले सलहज पर हक होता है , ... तो नन्दोई सलहज आपस में निपटें मैं ज़रा रसोई से कुछ खाने पीने का, "
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वो तीनों एक साथ बोले, दोनों लड़के बोले, " नहीं नहीं हम खूब खा पी के आये हैं, कुछ भी नहीं खाएंगे। "
बसंती ने मुझे किचेन में जाने से रोका और खींच के उन दोनों लड़कों के बीच में खड़ा कर दिया, और बोली,
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" मन की बात बोल दी न ननद रानी, दोनों मिल बाँट के काम चलाएंगे लेकिन तेरा, और हमरी ननदो के तो दस दस भतार होते हैं ,"
बसंती ने तो पहले ही तय कर लिया था अपने गाँव के उन दोनों मर्दों चढ़ायेगी मेरे ऊपर, और वैसे भी आज घर में उसी का राज था, माँ, भाभी, उन की भाभी -चंपा भाभी किसी रतजगा में गयीं थीं, कोई रसम थी जिसमें खाली सुहागिने रहती हैं , इसलिए आज मैं घर में, बसंती के हवाले,... और जब महरीन भाभी आयीं, उन्होंने इन दोनों बसंती के गाँव के लड़कों के बारे में बताया तो उसी समय मेरी लिख गयी थी, तो मैं लाख कोशिश करूँ , बहाने बनाऊं मेरी अगवाड़े पिछवाड़े दोनों की,..
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एक को चूँची के बीच लेकर तो दूसरे को चूसती चाटती थी, ... नहीं नहीं शुरू में दोनों नहीं चढ़े मेरे ऊपर,
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