सजन संग जाना है,
माँ और चम्पा भाभी की आवाज सुनाई दे रही थी,... फिर भाभी की खिलखिलाती हंसी, और चम्पा भाभी मेरी भाभी को खूब चिढ़ा रही थीं,... बीच बीच में माँ भी तड़का लगा रही थीं, ननद भाभी के खुले मजाक में वो एकदम से भाभी का भी पक्ष लेती थीं आखिर गांव के रिश्ते से गाँव की बहू ही थीं वो,
चम्पा भाभी पूछ रही थीं,...
" अच्छा बताओ कल रात सवारी कहाँ कहाँ गयी, कहाँ तम्बू गड़ा, कहाँ मुज़रा हुआ, कहाँ घुंघरू टूटा ननद रानी,... "
मैं चौंक गयी, बिना आँखे खोले, कान खोल के सुनने लगी, इसका मतलब वो सुहागन वाला रतजगा,
अब तक गाँव में रह के गाँव क खेल तमाशा अच्छी तरह समझ गयी थी, रतजगे से ये बहाना बना के निकल आयी होंगी की गुड्डी घर पे अकेले है, ... और फिर किसी यार के संग,...
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लेकिन आगे की बात मेरी भाभी ने खुद ही उगल दी, वो बोलीं,
" अरे, बड़ा मजा आया, और कौन अरे उहे जवेदवा, पठान टोले वाला, इत्ते दिन से पीछे पड़ा था की अबकी मायके आयी हो तो पहचान ही नहीं रही हो, वो तो आठ बजे से फटफटिया लेके खड़ा था, ... उसको हम बोल दिए थे की रतजगा के लिए आउंगी तो थोड़ी देर मौका निकाल के,.. तो निकलते निकलते,... "
"साढ़े आठ बजे निकल गयी थी , अभी तो गाना ही चल रहा था खेल तमाशा शुरू नहीं हुआ था "
माँ की आवाज सुनाई पड़ी। लेकिन भाभी ने अनसुनी करते हुए बात आगे बढ़ाई
" मैं तो सोच रही थी की पठान टोली के बाहर जउन बाग़ है , आम की जावेद की उसी में,... जावेद के साथ सलीम भी था , अब उसका पक्का यार, तो उस को बेचारा कहाँ छोड़ता ,... लेकिन बाइक पर मैं बीच में , सलीम पीछे,.. पर वो गाँव के बाहर एक ट्यूबेल वाली कोठरिया है , अच्छी खासी बड़ी,... तो वहीँ ,.. तो वो दोनों,... और भाभी आप तो जानती ही हैं वो दोनों पक्के पठान हैं रगड़ के रख देते हैं, अंग अंग तोड़ देते हैं , ... "
" तो वही दोनों थे और या कोई और,... " चम्पा भाभी हाल खुलासा सुनना चाहती थीं , मैं भी अपनी भाभी का रात का किस्सा,...
भाभी थोड़ी देर तक ख़ुशी से खिलखिलाती रहीं फिर बोलीं,
" अरे वही तो असली मजा दो एकदम नए लौंडे, रेख भी नहीं आयी थी ठीक से, दोनों बेचारे कुंवारे, पहली बार,... सलीमवा के कोई रिश्ते में भाई वाई लगते थे ,... एक को तो मुझे पटक के रेप करना पड़ा, वो नीचे पड़ा चिंचिया रहा था और मैं ऊपर चढ़ के स्साले को रगड़ रगड़ के,... जावेदवा और सलीमवा हंस रहे थे,... दूसरके ने थोड़ी हिम्मत कर के, लेकिन दोनों सीखते जल्दी थे , और लम्बी रेस के घोड़े,... फिर तो जब डबलिंग हुयी , एक नया एक पुराना,... "
भाभी अपने किस्से रात के बता ही रही थीं की मुझे एक बार फिर नींद आयी और अबकी मैं कस के लम्बी नींद सो गयी।
उठी तो लग रहा था की देर शाम हो गई है और मैं एकदम घबड़ा गई। अंधेरा सा लग रहा था, मैं तो भूल ही गई थी, सुनील से किया अपना वायदा, उसने तो तीन तिरबाचा भी धरवाया था, कसम भी खिलवाई थी।
शाम को उसने बुलाया था अमराई में, हमारे घर से मुश्किल से 10-15 मिनट का रास्ता था, मैं दो चार बार जा भी चुकी थी।
वहीं अमराई जहाँ एक बार चन्दा मुझे ले गई थी और पहली बार सुनील और रवि दोनों ने मेरी ली थी और चन्दा की भी। हम दोनों ने पहली बार एक साथ, एक दूसरे के सामने करवाया था और मेरी सारी झिझक उसके बाद निकल गई थी।
बात सिर्फ सुनील की नहीं थी। परसों सुनील के साथ एक लड़का और भी था जब मैं छत पे गई थी। सुनील उसी के सामने खुल के इशारा कर रहा था, नीचे आने के लिए। एकदम नया माल लग रहा था। कल जब मैं गन्ने के खेत में गई थी तो मुझे लगा की वही होगा सुनील के साथ। लेकिन सुनील ने बोला की वो पास के गाँव में रहता है, उसी गाँव में जहां भाभी गई थीं। और वहीं उसे मेरे बारे में पता चला। असल में वो पढ़ने के लिए हमारे ही शहर में रहता है और मेरे स्कूल के बगल वाले ब्वायज स्कूल में है। उम्र में मेरे बराबर ही होगा या शायद थोड़ा छोटा ही, और अबतक ‘कुंवारा’ है।
वो शाम को ही आ पाता है, बिचारा बहुत बेचैन है मिलने के लिए, और कल मुझे देखने के बाद तो उसकी हालत खराब है। आज शाम होने के पहले ही आ जायेगा। सुनील उसे ले के उसी अमराई में आयेगा जहां मैं कई बार सुनील से चन्दा के साथ मरवा चुकी थी।
सुनील से मैंने बोला था की मैं पक्का आऊँगी, हाँ सुनील ने ये भी बोला था की अँधेरा होने के पहले पहुँच जाऊँ। हालांकी बाद में चन्दा ने मुझे बोल दिया था की शाम को वो नहीं आ पाएगी लेकिन मुझे तो जाना ही था, मैंने सुनील से प्रामिस किया था पर उस कच्चे केले (कच्ची कली का पुरुष संस्करण) से भी मिलने का बड़ा मन था, मैंने अपने से प्रामिस किया था की आज तो उसकी नथ उतार के ही रहूंगी।
पर इतना अँधेरा, मुझे लगा मैं बहुत देर तक सो गई, लेकिन जब उठकर मैंने टेबल पर रखी घड़ी देखी तो जान में जान आई। अभी तो पांच भी नहीं बजे थे, ये सिर्फ काले बादलों का चक्कर था जो लग रहा था की…
क्या पहनू मैं सोच रही थी की फिर याद आया सुनील ने बोला था कि आज गाँव की गोरी बन के आने का। बस पन्दरह मिनट में मैं तैयार हो गई। कसी खूब लो-कट बैकलेस चोली, साड़ी भी मैंने कूल्हे के नीचे बाँधी थी, और कस के, मेरे उभारों की तरह मेरे चूतड़ भी एकदम खुल के दिख रहे थे, फिर सिंगार। कुहनी तक चूड़ियां हरी हरी, साड़ी से मैचिंग डार्क लिपस्टिक, काजल, झुमके और घुंघुरू वाली चांदी की पायल।
और तब तक माँ आगयीं खुद बोलीं- “अरे दोपहर से कमरे में पड़ी हो। चन्दा तो आएगी नहीं, अब तो तुम्हारा भी ये गाँव है, जरा जाके घूम टहल आओ, थोड़ा मन बहल जाएगा। मौसम भी बहुत अच्छा हो रहा है…”
लेकिन जिस तरह से वो मेरे गाल छू रही थीं, मैं समझ गयी की ये भी ललचा रही हैं, फिर मेरे सिंगार में कुछ और, सबसे पहले मेरी लिपस्टिक को एक बार और खूब डार्क किया, हलकी सी लिपस्टिक अपनी उँगलियों पे स्मज करके मेरे गालों पर भी, गुलाबी गाल और दहकने लगे, फिर उन्होंने मेरी चोली खोल दी, और मेरे कुछ बोलने के पहले, मेरे उभारों पर भी हल्का सा मेकअप , क्लीवेज पर,... दोनों घुंडियों को कस के मरोड़ दिया , अब तो दोनों एकदम टनटना गयी थीं , पूरी खड़ी, फिर उन्होंने मेरे उन दोनों निप्स पे भी लिपस्टिक का मोटा कोट और उभार थोड़ा और उठा के चोली इस तरह टाइट बंद की, कि क्लीवेज तो एकदम साफ़ दूर से दिख रहा था, मेरे निप्स भी चोली के अंदर से साफ़ साफ़ झलक रहे थे , बरछी की कटार की तरह
“ माँ, जल्द लौट आऊँगी…” मैंने बहाना बनाया
तो उलटे वो बोलीं- “अरे आराम से आना अभी तो तुम्हारी भाभी और चम्पा भाभी भी कामिनी भाभी के यहां गई हैं। वो लोग भी थोड़ा लेट ही लौटेंगी…”
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बादल हल्के से छंट गए थे, धूप फिर थोड़ी-थोड़ी खिल गई थी, एक इंद्रधनुष खिल उठा था और मैं घर से बाहर निकल पड़ी।