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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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chodumahan

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मजा आ गया, गुड्डी के भाभी के पुराने किस्से सुनकर...
इसी प्रकार पूर्वी, चंदा और अन्य की पहली चुदाई का प्रसंग भी फ्लैशबैक में मिल जाए तो सोने पे सुहागा...

आखिर "variety is the spice of life".
अगले एपिसोड की बेसब्री से प्रतीक्षा में.
 
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komaalrani

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मजा आ गया, गुड्डी के भाभी के पुराने किस्से सुनकर...
इसी प्रकार पूर्वी, चंदा और अन्य की पहली चुदाई का प्रसंग भी फ्लैशबैक में मिल जाए तो सोने पे सुहागा...

आखिर "variety is the spice of life".
अगले एपिसोड की बेसब्री से प्रतीक्षा में.
बहुत अच्छा सुझाव दिया आपने , फ्लैश बैक का प्रयोग और भाभी की बहनों की कहानियां , एकदम कोशिश करुँगी और वैसे तो कहानी सावन की है , लेकिन भाभी की बहनों के बहाने अगर होली के दो चार छींटे पड़ जाएँ तो अच्छा रहेगा,


और आज होली के रंग में ५ पोस्टें , जोरू के गुलाम में ३ पोस्टें तो बस एकाध दिन में अगली पोस्ट यहाँ भी

और हाँ लाउंज में एक नया थ्रेड होली पर , होली आयी रे शुरू किया है तो आज वहां भी दो पोस्ट किया है
 

komaalrani

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कोमल जी ,
बहुत ही लाजबाब अपडेट, गुड्डी की तो निकल पड़ी ,
उसे "भाभी जी" की हर पाठ की पढ़ाई का प्रयोग कर रही है।
आगे देखते है क्या क्या होता हैं, लेकिन जो भी होगा बहुत ही कामुक होगा क्यो जी ?
नई जवानी का यही तो मज़ा होता है।
कोमल जी आप लेखन कला के बारे कुछ कहना मतलब सूरज को दिया दिखाना ।अदभुत ,अतुलनीय।
कोमल जी एक गुज़ारिश है गुड्डी के कारनामों का जरा लंबा वर्णन होना चाहिए।बाकी जैसा आप को ठीक लगे।


बहुत बहुत धन्यवाद ,

अगली पोस्ट्स एक दो दिन में और हाँ गुड्डी की अगली पोस्ट्स लम्बी ही होंगी पूरे डिटेल्स के साथ,...
 
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Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
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डबल मज़ा
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पूरी रात खूब मजा आया, दोनों ने मिल के , लेकिन उस के पहले मैंने उन दोनों की,...

आधे घंटे की छेड़छाड़ के बाद , दोनों के खूंटे मेरे हाथ में थे , जैसा बसंती ने सिखाया था , एक को चूसती थी तो दूसरे को मुठियाती थी , एक को चूँची के बीच लेकर तो दूसरे को चूसती चाटती थी, ... नहीं नहीं शुरू में दोनों नहीं चढ़े मेरे ऊपर,

खूब देर तक दोनों की एक साथ मस्ती मैंने की, जैसा बसंती भौजी ने सिखाया था, एकदम वैसे , ( बाद में उन्होंने मुझे दस में दस नंबर दिया )

पहले तो खूब देर तक दोनों का मुठ्याती रही, सालों का खूब बड़ा भी था और मोटा भी ,

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लेकिन मैं बसंती भौजी की असली ननद, मुठियाते समय कभी अंगूठे से सुपाड़ा दबा देती तो कभी एक का बॉल्स सहला देती , खड़ा तो दोनों का मुझे देख के ही होगया था, एकदम कड़ा कड़ा , मुट्ठी में पकड़ने में बहुत अच्छा लग रहा था ,

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फिर मैंने एक का चूसना शुरू किया , चूसना नहीं सिर्फ चाटना, बस जीभ की टिप से सुपाड़े के छेद को चाटती, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप घुसाती , सिर्फ जीभ से लपड़ लपड़ सुपाडे को चाटती,

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और दुसरे का न सिर्फ मुठियाती, बल्कि कभी अपने गाल से छुला देती तो कभी अपनी छोटी छोटी चूँचियों पर रगड़ देती और जब एक बार मैंने उसके खुले सुपाड़े को अपने निप्स से बस छुला दिया तो वो एकदम गिनगीना गया ,


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अब उसको अंदाज लगा होगा की कैसी है उसकी बहिन की ननदिया

और थोड़ी देर में जिसका मैं चूस रही थी वो मेरे मुट्ठी में और जिसको मैं मुठिया रही थी, उसको दोनों छोटी छोटी कड़ी कड़ी चूँचियों के बीच लेकर टिट फक, स्साले का इत्ता कडा था जब मेरे जोबन को रगड़ते घिसते जाता, मैं बता नहीं सकती कितना मजा आ रहा था, और टिट फक करते करते उसके सुपाड़े को लेकर चूसने भी लगती

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लेकिन बसंती तो असली खेल चाहती थी


आज मेरी गाँड़ की बर्बादी लिखी थी, बसंती बोली चढ़ आ शूली पर मैं सेट कर देती हूँ, कितनी बार तो चढ़ चुकी थी आज ही सुनील के खूंटे पर,

लेकिन सेट कराते समय बदमाश बसंती ने बदमासी कर दी, बजाय अगवाड़े के पिछवाड़े का छेद सेट कर दिया, फिर बहन भाई ने मिल कर,

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बसंती मुझे कंधे को पकड़ कर दबाती रही और उसका भाई , मेरी पतली कमर को पकड़ कर अपनी ओर खींचता रहा,, बड़ी मुश्किल से सुपाड़ा घुसा, उसके बाद सूत सूत करके आधा बांस,... फिर बसंती हट गयी,... और आँख नचाती , मुझे छेड़ती मेरी छिनार भौजी बोलीं,

" हमरे देवर का, रोज घोंटती हो, आज हमरे बीरन का नंबर है , देखती हूँ तोहार ताकत , बाकी का खुद ही घोंट,... "

और उस के कंधे को पकड़ मैंने जोर जोर से दबाना शुरू किया , कभी मजे से सिसकती तो कभी दर्द से चीखती, बसंती को गरियाती , पर थोड़ी देर में पूरा मेरी गाँड़ के अंदर, ...


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ये नहीं था की मैंने पहले गाँड़ नहीं मराई थी, वो मेरी कमीनी छिनार सहेली चंदा और उस का यार सुनील ( असल में अब वो उससे ज्यादा मेरा यार था ), आज दिन में ही सुनीलवा ने दो बार मेरी गाँड़ मारी थी, और दिनेश ने भी, तभी तो बंसती भौजी कह रही थी हमरे देवर का तो रोज घोंटती हो , अब ज़रा हमरे बीरन का घोंट लो,... लेकिन वो दोनों तो खुद मार रहे थे और यहाँ मुझे खुद चढ़ के घोंटना पड़ रहा था, वो तो गनीमत थी की बसंती ने मुझे निहुराकर दो ढक्क्न कडुवा तेल मेरे पिछवाड़े डाल दिया था और मैंने चूस चूस के भौजी के भैया का चिक्क्न मुक्क्न कर दिया था , लेकिन तब भी मोटा कितना था

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लेकिन सिर्फ गाँड़ में घोंटने से थोड़ी जान बचने वाली थी , और घोंटने में तो बसंती जो मेरा कंधा पकड़ के दबा रही थी, जोर जोर से पुश कर रही थी, तो किसी तरह मेरी कसी गाँड़ वो मोटा मूसल घोंट गयी,... लेकिन फिर खुद उठके और फिर उसके कंधे पकड़ के दबा के दुबारा घोटना,...

और साथ साथ वो भौजी का स्साला भाई, मुझे झुका के मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ, मेरे जोबना के तो न सिर्फ इस गाँव वाले दीवाने थे पूरे बल्कि जब मैं मेले में गयी थी तो उसी दिन से आस पास के बीस तीस गाँवों में मेरे जोबन का डंका बज रहा था,

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तो मैं उसके ऊपर,वो नीचे और जब वो पकड़ के कस कस के मसलता, मुंह में लेके चूसता पूरी ताकत से , निप्स पे दांत लगा देता तो बस जान निकल जाती थी मस्ती से.

कुछ देर में उसने मेरी कमर पकड़ के, कभी कमरिया पकड़ के तो कभी मेरी चूँचिया दबोच के जबरदस्त तूफानी धक्के मेरी गाँड़ में मार रहा था, गाँड़ के चीथड़े हो रहे थे, मैं जितना दर्द से चीखती, बसंती और उसे उकसाती,

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'अरे बहिन क ननद का गाँड़ मारे क मौका कम ही मिलता है , अइसन गाँड़ मारो छिनार क की हमरे गाँव तक आवाज जाए , चीखने दो, अरे और कस के,... हाँ फ़ाड़ दो,... "


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और वो अपनी बहिन की आवाज सुन के और जोर से

लेकिन ये तो शुरआत थी, वो मेरे गाँड़ में घुसाए घुसाए उठा और मुझे नीम के पेड़ के पास खड़ा कर के, मेरे पिछवाड़े क्या धक्के मारे,,



मैंने कस के नीम के पेड़ को दबोच रखा था,

बादलों को हटा हटा के बदमाश चाँद मेरी रगड़ाई देख रहा था ,



आंगन में बैठी मेरी भौजी, बसंती देख रही थी की कैसे हचक हचक के मेरी गाँड़ मारी जा रही थी, हर धक्के के साथ मेरे उभार मेरी देह पूरी तरह नीम के उस मोटे पेड़ से रगड़ती,



आसन बदल बदल कर, ... पटक पटक कर क्या बेरहमी से उसने मेरी ली, मैं पता नहीं कितनी बार झड़ी होउंगी,....


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लेकिन उसने निकाला भी नहीं था की उसके दोस्त ने अपना मूसल ठोंक दिया , और कहाँ , वहीँ पिछवाड़े, और वो तो और बेरहम , उसका खूंटा भी पूरा मोटा मूसल,...

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मैं कभी चीखती कभी बसंती का नाम उन दोनों से लगा लगा के गरियाती और वो दूने जोश से मेरे पिछवाड़े, कच्चे आंगन में,



और बसंती कभी आंगन में बैठी उस दूसरे लड़के से मायके का हाल चाल पूछतीं , सिर्फ लोगों का ही नहीं, गोरु बछरू का भी पेड़ पौधों का भी, ... फलाने सिंह के यहाँ जो आम का पेड़ लगा था, अब तो बड़ा हो गया होगा,

" अरे इस बार तो बौर भी आ गए थे उसपर " वो ख़ुशी से बसंती को बताता,


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प्रायमरी स्कूल में नए मास्टर जी आ गए हैं , फलाने की गाय बियाई है , सब कुछ,...

और कभी मेरे पीछे पड़ जाती,...





नहीं नहीं डबलिंग भी हुयी एक बार दो बार नहीं पूरे चार बार,


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नहीं नहीं सिर्फ सैंडविच ही नहीं, एक निहुरा के कस कस के गांड मारता और फिर आठ दस मिनट गाँड़ मारने के बाद , लंड निकाल के सीधे मेरी गाँड़ से मेरे मुंह में , और जब तक मैं उसका मेरी गाँड़ निकला लंड चाट चाट के चूस चूस के साफ़ करती, दूसरा मेरी गाँड़ में अपना मोटा लंड ऐसे हचक के एक बार में पूरा पेल देता की बस जान निकल जाती, और कुछ देर में उसका लंड मेरे मुंह में , ... कभी कभी सैंडविच , एक के खूंटे पे मैं बैठती तो दूसरा पीछे से गाँड़ मारता,...

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दोनों ही सांड़ थे सांड़

सुबह जब चुहचुहिया बोलने लगी, अँधेरा धुंधलाने लगा तब गए दोनों,
Adbhut,sooo kamuk nd madak.double nahi ye to many times maza hai.Awesome update dear lovely Komal sis 💞👌👌👌
:applause: ab ye story bhi tumari mere syllabus me a gyi hai Komal sis ❤️u
 

komaalrani

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Adbhut,sooo kamuk nd madak.double nahi ye to many times maza hai.Awesome update dear lovely Komal sis 💞👌👌👌
:applause: ab ye story bhi tumari mere syllabus me a gyi hai Komal sis ❤️u

theek se padhiyega, baad men iske paper bhi bhejungi, 100 men 100 aane chhiaye:laugh::laugh:
 
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komaalrani

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सुबह सबेरे


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और मैं थकी वहीँ आँगन में बसंती की गोद में बंधी सो गयी, नींद तब खुली तब देर धूप चढ़ गयी थी, बसंती ने घर का सब काम धाम समेट लिया था तब मुझे जगाया।

यह कहने की बात नहीं, की बसंती ने सुबह सुबह 'बेड टी' भी पिलाई, वहीँ आँगन में थोड़ी जबरदस्ती , थोड़ी मन मर्जी, वही सुनहरी वाली, छल छल छल छल ...



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और ये खबर भी सुनाई की मेरी भाभी लोग और माँ दोपहर के बाद ही आएँगी, इसलिए आज फिर घर हम दोनों के ही जिम्मे है, सब काम भी मस्ती भी,



गाँव में सुबह सुबह बहुत काम होता है, आधे से ज्यादा तो मुझे उठाने के पहले बसंती ने कर लिया था, गाय भैंस की सानी पानी, सफाई, दूध दुहना, रहटा की झाड़ू से घर के बाहर की आँगन की सफाई , तब मुझे जगाया था , आंगन में से , वही अपनी स्टाइल से ' बेड टी' पिला के, उसके बाद भौजी के साथ मिल के बाकी का काम,

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हाँ एक बात और,

वो जमाना ' टॉयलेट एक प्रेम कथा के पहले का था,... नहीं नहीं भाभी के घर में सब था लेकिन पक्के वाले हिस्से में और वो हिस्सा बंद था, मैंने भी सोचा नहीं थी की माँ से उसकी चाभी मांग लूँ,... तो सुबह सुबह,... वही सुबह वाला काम धाम , पर बसंती भौजी थीं न हर सवाल का जवाब था उनके पास,... उनको भी,... उस दिन दिशा मैदान के लिए मैं भी उनके साथ, ...

और तब मुझे लगा की भौजी के भाइयों ने जो मेरे पिछवाड़े हल चलाया था रात भर , स्सालों ने चार बार गाँड़ कूटी थी, अंदर तक छिल गया था, ( भौजी के भैया तो स्साले ही हुए न ),


दर्द उस समय भी हुआ था , लेकिन कुछ तो मेरा मन भी कर रहा था और ऊपर से भौजी ने निहुरा के जो दो छटांक सुद्ध घर का कडुआ तेल पिछवाड़े डाला था, और सबसे बढ़कर वो दोनों ऐसे जबरदस्त जाबिर थे, जितना परपराता, छरछराता,... उतना ही और जोर से, जितना मैं चीखती उतना ही बसंती भौजी और उन दोनों को ललकारती, अरे जब तक ससुरी क चीख हमरे गाँव तक न सुनाई दे, ... बहुत लोगन से घूम के मरवाती है लेकिन इहो के याद रहे की कभी भौजी के भैया ने भी गांड मारी थी,

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तो जब मैं बसंती के साथ, 'जाने के लिए' खड़ी हुयी तो पिछवाड़े बहुत जोर की चिलख उठी,

वो तो भौजी ने हाथ बढाकर खींच के उठा लिया और हाथ पकड़ के, ... मैं दोनों टाँगे फैला के, जैसे पिछवाड़े रगड़ होती, जहाँ छिला था बड़ी जोर से दर्द होता था,... दूर से भी कोई देख लेता तो समझ जाता की रात में पिछवाड़े वहां कस के ट्रैक्टर चला है, ...

और सबसे पहले मिलीं, कौन वही महरीन भौजी, जो रात में आयी थीं, बसंती से मिल के, उन्होंने ही तो उन दोनों को भेजा था वो बसंती के गाँव वाला, उनका नन्दोई और दोस्त,...


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मेरी हालत देख के ही वो समझ गयी उन दोनों लौंडों ने क्या हाल की मेरी पर बिना मुझसे कुछ पूछे, बसंती से उन्होंने हाल चाल पूछा,... और बसंती को मौक़ा मिल गया, अपने गाँव के मर्दों की तारीफ़ करने का,



" अरे हमार भइआ थे, हमरे गाँव क, और जब हमार भाई हमरे ननद पर चढ़ते हैं तो जो हाल होना चाहिए वही हुआ,... "


और अब महरीन भौजी ने मेरी ओर रुख कर लिया और मुस्कराते हुए बोलीं, ... "

अरे असली दरद तो अभी होगा जब,... जैसे बिटिया बियाते समय दर्द होता है एकदम वैसे ही, ... "
मैं समझ गयी उनका इशारा किस तरफ है , लेकिन बस शरमा के रह गयी


बसंती ने मेरा हाथ कस के दबा दिया और उनसे मुस्कराते बोलीं, ' अरे तभी तो आज इसको बाहर लायी हूँ , खुले मैदाने में,सबके साथे, सब के सामने जिससे सब लोग हाल चाल देख लें और इहो कुछ गाँव क गुन ढंग देख सिख ले."


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और गाँव की औरतें ऐसे गंदे गंदे मज़ाक एकदम खुले , एक दूसरे से रात की हाल चाल, और सबसे ज्यादा मेरे बारे में, कोई उमर रिश्ते का बंधन नहीं,... उनकी बातें गुलबियाँ बसंती के मजाक तो कुछ भी नहीं थे,... मुश्किल से मैं घर आ पायी बसंती का हाथ पकड़ के, लेकिन उन में से कई औरतों ने अपने पूर्बे में आने की दावत दे दी, और बसंती मान भी गयी,...
 

komaalrani

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पिछवाड़े का दर्द

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घर में घुसते ही लेकिन मुझे याद आया, कामिनी भाभी ने ढेर सारी जड़ी बूटियों वाली गोलियां ऐसे ही मौके के लिए तो दी थीं, वहां लगाने के लिए, एक खूब बड़ी सी गोली थी, मोटी, अरे डेढ़ दो इंच से कम नहीं, उसे पिछवाड़े डाल के, ... घुस ही नहीं रही थी, लेकिन बसंती ने कल रात जैसे सिखाया था , वैसे ही मैंने साइड में लेट के घुटने मोड़ के, ... ..

. सच में बसंती भौजी ऐसा कोई हो नहीं सकता, न खाली बोल बताय के सिखाया बल्कि खुद कर के भी दिखाया, करवा के सिखाया, कैसे ढीला करते हैं, कैसे मोटा से मोटा मूसल पिछवाड़े घोंट सकते हैं हैं, और इतनी मोटी गोली, गोली नहीं गोला थी, बहुत जोर से लग रहा था लेकिन मैं दो ऊँगली से पकडे थी और अंगूठे की पूरी ताकत से, घुसेड़ रही थी, लग रहा था जान चली गयी, और मुझे मैदान वाली बात याद आ रही थी,


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मेरे दर्द की चीख सुन के एक कोई औरत बोली,

' कुल नयकी की इहे हालत होती है, जब बिटिया बियाती हैं दरद के मारे जान निकलती है सबकर किरिया खाती हैं अब दुबारा सैंया क सेजरिया नहीं जाउंगी, लेकिन हफ्ता भर के अंदर बुर लंड मांगने लगती है, "



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" तब तक पीछे से कोई नयकी बहुरिया बोली,

" चाची आप देवर के होने के कितने दिन बाद,... "


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तो पीछे से किसी और दूसरी बड़ी उम्र वाली औरत की आवाज आयी,... " हमसे पूछा, जउने दिन बरही थीं ( बच्चे के पैदा होने के बारह दिन के बाद ), ओहि दिन सौरिये में ( प्रसव के समय जिस कमरे में स्त्री को रखा जाता है),



तब तक कोई शायद महरीन भौजी ही,... अरे ओह टाइम तो और गरमी चढ़ी रहती है, फिर जबतक लड़का दूध पीता है, तबतक तो कउनो खतरा नहीं, पेट का,... "

" एक चूँची से मरद चुसुक चुसुक, और दूसरे से बेटवा " वही नयकी औरत की आवाज आयी, फिर कोई बोली,

" अरे गौने क दुल्हिन क तो इहे पहचान है, दिन रात सड़का टपकता रहता है, हरदम मलाई भरी रहती है, .... "

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मैं पूरी ताकत से वो कामिनी भाभी वाली गोली अपने पिछवाड़े ठेल रही थी और मलाई वाली बात से बसंती भौजी क बदमाशी समझ आयी, कल उनके दोनों भाइयों ने चार बार पिछवाड़े रगड़ रगड़ कर,...

लेकिन स्सालों ने एक बार भी मलाई मेरी गाँड़ के अंदर नहीं गिरायी और ये सब हमरे भौजी की सांठ गांठ, एक एक बार तो दुनो गाँड़ से निकाल के हलक में , मुंहे में नहीं पूरा क पूरा पेट में गयी, और बाकी टाइम कोई जगह बची नहीं,...

दोनों चूँची, चेहरा, बाल , पेट,...


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और नतीजा ये था की जब गाँड़ दुबारा मारी जाती थी तो जस की तस सूखी, वरना इतना तो हम ही भी अबतक समझ गए थे थी की लौंडों की मलाई से बढ़कर कउनो चिकनाई नहीं होती,...

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दर्द बहुत हो रहा था लेकिन मैंने एक बार फिर से पूरी ताकत से अंगूठे के जोर से ठेला और अबकी पूरी की पूरी गोली अंदर , और फिर भौजी की सिखाई ट्रिक कस के गाँड़ सिकोड़ ली,

उफ्फफ्फ्फ़ ओह्ह्ह्हह जैसे गाँड़ में आग लग गयी, जैसे स्सालों के धक्के से जहाँ जहां छिला था वहां किसी ने लाल मिर्ची की बुकनी छिड़क दी हो और वो आग आगे से शुरू होके एकदम अंदर तक.,... लेकिन दर्द से मैं चीख रही थी, कराह रही थी लेकिन गाँड़ कस के भींचे हुए थी, मैं समझ रही थी की कामिनी भाभी का फार्मूला कभी गलत नहीं हो सकता, और अब उस गोली का असर एकदम अंदर तक फ़ैल रहा है,...

पर धीरे धीरे वो जलन एकदम कम होती गयी और एक हलकी हल्की सी ठंडक, और आराम मिलने लगा,... तभी बसंती अंदर आयी, और मेरे बगल में बैठ के बोली,

" थोड़ी देर सो जाओ, बहुत काम फैला है हम उसको निबटाते हैं, और सो जाओगी तो तुमको भी आराम मिल जाएगा।"


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" भौजी, बहुत थकान लग रही है, सच में नींद आ जाती तो, लेकिन,... नींद आ नहीं रही है " मैंने उनको देखते हुए अपनी परेशानी बताई, पर कोई परेशानी हो और उसका इलाज बसंती भौजी के पास न हो ये हो नहीं सकता, बिना बोले झुक के उन्होंने मेरी पलकों को चूमा और उनके कपाट बंद कर के अपने होंठों से ताला लगा दिया, फिर उनकी उंगलिया, बालों के बीच सीधे स्कैल्प मसाज़, फिर माथे पर हलके हाथोंसे , जहाँ उनके हाथ मसाज कर के हटते , वो चुम्बन का मरहम लगा के होंठों से सब थकान दर्द खींच लेती,



कुछ देर में उनकी उँगलियाँ, मेरे तलुवों, टखनों से होते हुए थकी थकी जाँघों और नितम्बों तक,... अब मेरी पलकें भारी हो रही थीं, देह एकदम ढीली हो गयी थी ,... और फिर उनकी उँगलियों और होंठों ने टेक ओवर कर लिया,



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मेरी गुलाबों की पंखुड़ियों को कभी उनकी उँगलियाँ सहलातीं तो कभी होंठ दुलराते, लेकिन न उनकी जीभ मेरी प्रेम गली के अंदर गयी, न ऊँगली,... हाँ थोड़ी देर बाद मेरी दोनों फांकों को ले कर , जैसे कोई संतरें की फांके चूसे, कभी धीमे धीमे कभी कस के, ...



मैं कब झड़ी, कितनी बार झड़ी , झड़ झड़ के जब तक थेथर नहीं हो गयी,... गहरी नींद में नहीं सो गयी, भौजी वैसे ही ,



मैं मुश्किल से घंटे भर सोई होउंगी, लेकिन इतनी गहरी गाढ़ी नींद , जितना तो रात भर सोने के बाद देह हल्की नहीं लगती, एकदम उड़ती सी,... और दर्द भी बस एक हलकी सी कसक सी कल रात की याद की तरह पिछवाड़े, मीठा मीठा गुलाबी सा दरद,...



मैं लेटे लेटे अलसा रही थी, बस आँख खोलने का मन नहीं कर रहा था, ... और बसंती बगल में आके बैठी तो और कस के मैंने आँखे भींच ली,



उसने एक जोर की चुम्मी मेरे गाल पर ली,



" हमसे चोरी, चलो दुबारा सो के उठी हो तो एक बार फिर से ,... "


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और एक बार फिर से उसने बेड टी, वो सुनहली धार,... मैं अब खुद ही मुंह खोल के अब उस पिघले सोने की बूँद का इन्तजार करती थी,...

कुछ देर में बंसती के पीछे पीछे मैं आंगन में,
 
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komaalrani

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बसंती संग मस्ती


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मैं आंगन में मुंह हाथ धो रही थी , मंजन कर रही थी और बसंती ने रसोई में चाय चढ़ा दिया था. मैं भी उसी के पास उकडू मुकडु बैठ के, चाय सुड़कते हुए हम दोनों ने आगे का काम धाम, खाने का काम बसंती ने लेकिन सब्जी काटने , चावल दाल बिनने धोने का काम मेरे जिम्मे, और साथ में गप्प गोष्ठी, भाभी के किस्से,


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हम दोनों मिल के खाना बना रहे थे, बसंती ने मुझे बेलन पकड़ने से लेकर रोटी बेलना, सेंकना सब सिखाया और



साथ में गाँव वाली बोली में खुल के मजाक अब मैं भी बसंती और गुलबिया वाली ही बोली बोलती, डबल मीनिंग नहीं सीधे वही सब, ... और खाना बनांते बसंती ने मेरी भाभी की तो सब पोल पट्टी खोली ही, मेरी सहेलियों की भी, चंदा की भी, कैसे फटी हो रजा कैसे फटी पहली बार,... लेकिन आपन किरिया खिया दी मैं होली में जरूर आऊं,

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मैंने अपना डर बताया की सावन में तो ये रगड़ाई हो रही है दिन रात तो होली में ,...

बसंती ने होली के नाम पर थोड़ा सा आटा मेरे गोरे चिकने गाल पर लगा दिया और बोली, अरे तू तो हम लोगन क गोल में रहबू , भौजाई वाली गोल में , तोहार भौजी हम लोगों की ननद तो बस उनको, उनकी कुल बहिनिया, भाई सब कर रगड़ाई हम लोग मिल के करेंगे ,

और फिर उसने गाँव की की होली का कुल किस्सा, पिछली होली में चंदा रानी की कैसे भौजाइयों ने मिल झिल्ली फड़वाई , सबके सामने,

बताउंगी बताउंगी सब की पोल , भाभी के साथ उन की सब बहनों की, ( गाँव के रिश्ते से , सगी तो कोई थी नहीं )



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और एक बार खाना बन गया तो बाकी काम धाम,

लेकिन बसंती ने कल जो पिछवाड़े की 'कसरते' सिखाई थीं, वो भी और भी बहुत सारी मेरी एक एक मसल्स थक कर चूर हो जाती , और जब मैं थक जाती पसीने से लथपथ , तो बसंती अपनी फ़ीस वसूल लेती मेरी जाँघों के बीच से लेकिन ऐन मौके पर रुक जाती ,...


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आगे का काम मेरे देवर करेंगे, लेकिन मैं फिर उसके ऊपर,...

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ज्यादा घर तो बंद था तो हम दोनों आंगन में साथ साथ नहाये भी, वो बाहर कुंइया से पानी भर के ले आयी, सच में गाँव में कुंए के पानी से नहाने का मजा ही और है, खूब ठंडा ठंडा ताजा,

और हम दोनों नहा के आंगन में बस साड़ी लपेटे घमा रहे थे की कोयरीन आयी , सब्जी लेकर, मोटे बैगन , खीरा,... जल्दी जल्दी हम दोनों ने बाकी कपडे ,...



और उसके बाद तो एक से एक असली वाले मजाक, बैगन और खीरे को लेकर,... फिर बसंती से बोली , इन्हे एक दिन कोयराने भेज दा तो खूब मोट मोट असली खीरा खेवाय देब, तय हो गया की दो चार दिन में कभी मैं उसके पूरबे में
खाने खाते खाते मेरी देह एकदम थक के चूर हो गयी थी , पहली बार घर का इतना काम , फिर कल रात में पांच बार , एक मिनट दुष्टों ने सोने नहीं दिया बस भिन्सारे थोड़ी बहुत नीद आ गयी , कल दिन में भी दिनेश और सुनील ने मिल, के

और खा के जब अपने कमरे में लेटी तो वो जबरदस्त नीद आयी , बस एक बार हलकी सी नींद टूटी तो माँ और चम्पा भाभी की आवाज सुनाई दे रही थी,... फिर भाभी की खिलखिलाती हंसी, और चम्पा भाभी मेरी भाभी को खूब चिढ़ा रही थीं,...

बीच बीच में माँ भी तड़का लगा रही थीं, ननद भाभी के खुले मजाक में वो एकदम से भाभी का भी पक्ष लेती थीं आखिर गांव के रिश्ते से गाँव की बहू ही थीं वो,



चम्पा भाभी पूछ रही थीं,...



" अच्छा बताओ कल रात सवारी कहाँ कहाँ गयी, कहाँ तम्बू गड़ा, कहाँ मुज़रा हुआ, कहाँ घुंघरू टूटा ननद रानी,... "
 
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komaalrani

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सजन संग जाना है,



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माँ और चम्पा भाभी की आवाज सुनाई दे रही थी,... फिर भाभी की खिलखिलाती हंसी, और चम्पा भाभी मेरी भाभी को खूब चिढ़ा रही थीं,... बीच बीच में माँ भी तड़का लगा रही थीं, ननद भाभी के खुले मजाक में वो एकदम से भाभी का भी पक्ष लेती थीं आखिर गांव के रिश्ते से गाँव की बहू ही थीं वो,

चम्पा भाभी पूछ रही थीं,...

" अच्छा बताओ कल रात सवारी कहाँ कहाँ गयी, कहाँ तम्बू गड़ा, कहाँ मुज़रा हुआ, कहाँ घुंघरू टूटा ननद रानी,... "

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मैं चौंक गयी, बिना आँखे खोले, कान खोल के सुनने लगी, इसका मतलब वो सुहागन वाला रतजगा,

अब तक गाँव में रह के गाँव क खेल तमाशा अच्छी तरह समझ गयी थी, रतजगे से ये बहाना बना के निकल आयी होंगी की गुड्डी घर पे अकेले है, ... और फिर किसी यार के संग,...


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लेकिन आगे की बात मेरी भाभी ने खुद ही उगल दी, वो बोलीं,

" अरे, बड़ा मजा आया, और कौन अरे उहे जवेदवा, पठान टोले वाला, इत्ते दिन से पीछे पड़ा था की अबकी मायके आयी हो तो पहचान ही नहीं रही हो, वो तो आठ बजे से फटफटिया लेके खड़ा था, ... उसको हम बोल दिए थे की रतजगा के लिए आउंगी तो थोड़ी देर मौका निकाल के,.. तो निकलते निकलते,... "

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"साढ़े आठ बजे निकल गयी थी , अभी तो गाना ही चल रहा था खेल तमाशा शुरू नहीं हुआ था "

माँ की आवाज सुनाई पड़ी। लेकिन भाभी ने अनसुनी करते हुए बात आगे बढ़ाई

" मैं तो सोच रही थी की पठान टोली के बाहर जउन बाग़ है , आम की जावेद की उसी में,... जावेद के साथ सलीम भी था , अब उसका पक्का यार, तो उस को बेचारा कहाँ छोड़ता ,... लेकिन बाइक पर मैं बीच में , सलीम पीछे,.. पर वो गाँव के बाहर एक ट्यूबेल वाली कोठरिया है , अच्छी खासी बड़ी,... तो वहीँ ,.. तो वो दोनों,... और भाभी आप तो जानती ही हैं वो दोनों पक्के पठान हैं रगड़ के रख देते हैं, अंग अंग तोड़ देते हैं , ... "

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" तो वही दोनों थे और या कोई और,... " चम्पा भाभी हाल खुलासा सुनना चाहती थीं , मैं भी अपनी भाभी का रात का किस्सा,...
भाभी थोड़ी देर तक ख़ुशी से खिलखिलाती रहीं फिर बोलीं,

" अरे वही तो असली मजा दो एकदम नए लौंडे, रेख भी नहीं आयी थी ठीक से, दोनों बेचारे कुंवारे, पहली बार,... सलीमवा के कोई रिश्ते में भाई वाई लगते थे ,... एक को तो मुझे पटक के रेप करना पड़ा, वो नीचे पड़ा चिंचिया रहा था और मैं ऊपर चढ़ के स्साले को रगड़ रगड़ के,... जावेदवा और सलीमवा हंस रहे थे,... दूसरके ने थोड़ी हिम्मत कर के, लेकिन दोनों सीखते जल्दी थे , और लम्बी रेस के घोड़े,... फिर तो जब डबलिंग हुयी , एक नया एक पुराना,... "

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भाभी अपने किस्से रात के बता ही रही थीं की मुझे एक बार फिर नींद आयी और अबकी मैं कस के लम्बी नींद सो गयी।


उठी तो लग रहा था की देर शाम हो गई है और मैं एकदम घबड़ा गई। अंधेरा सा लग रहा था, मैं तो भूल ही गई थी, सुनील से किया अपना वायदा, उसने तो तीन तिरबाचा भी धरवाया था, कसम भी खिलवाई थी।

शाम को उसने बुलाया था अमराई में, हमारे घर से मुश्किल से 10-15 मिनट का रास्ता था, मैं दो चार बार जा भी चुकी थी।

वहीं अमराई जहाँ एक बार चन्दा मुझे ले गई थी और पहली बार सुनील और रवि दोनों ने मेरी ली थी और चन्दा की भी। हम दोनों ने पहली बार एक साथ, एक दूसरे के सामने करवाया था और मेरी सारी झिझक उसके बाद निकल गई थी।

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बात सिर्फ सुनील की नहीं थी। परसों सुनील के साथ एक लड़का और भी था जब मैं छत पे गई थी। सुनील उसी के सामने खुल के इशारा कर रहा था, नीचे आने के लिए। एकदम नया माल लग रहा था। कल जब मैं गन्ने के खेत में गई थी तो मुझे लगा की वही होगा सुनील के साथ। लेकिन सुनील ने बोला की वो पास के गाँव में रहता है, उसी गाँव में जहां भाभी गई थीं। और वहीं उसे मेरे बारे में पता चला। असल में वो पढ़ने के लिए हमारे ही शहर में रहता है और मेरे स्कूल के बगल वाले ब्वायज स्कूल में है। उम्र में मेरे बराबर ही होगा या शायद थोड़ा छोटा ही, और अबतक ‘कुंवारा’ है।



वो शाम को ही आ पाता है, बिचारा बहुत बेचैन है मिलने के लिए, और कल मुझे देखने के बाद तो उसकी हालत खराब है। आज शाम होने के पहले ही आ जायेगा। सुनील उसे ले के उसी अमराई में आयेगा जहां मैं कई बार सुनील से चन्दा के साथ मरवा चुकी थी।



सुनील से मैंने बोला था की मैं पक्का आऊँगी, हाँ सुनील ने ये भी बोला था की अँधेरा होने के पहले पहुँच जाऊँ। हालांकी बाद में चन्दा ने मुझे बोल दिया था की शाम को वो नहीं आ पाएगी लेकिन मुझे तो जाना ही था, मैंने सुनील से प्रामिस किया था पर उस कच्चे केले (कच्ची कली का पुरुष संस्करण) से भी मिलने का बड़ा मन था, मैंने अपने से प्रामिस किया था की आज तो उसकी नथ उतार के ही रहूंगी।

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पर इतना अँधेरा, मुझे लगा मैं बहुत देर तक सो गई, लेकिन जब उठकर मैंने टेबल पर रखी घड़ी देखी तो जान में जान आई। अभी तो पांच भी नहीं बजे थे, ये सिर्फ काले बादलों का चक्कर था जो लग रहा था की…

क्या पहनू मैं सोच रही थी की फिर याद आया सुनील ने बोला था कि आज गाँव की गोरी बन के आने का। बस पन्दरह मिनट में मैं तैयार हो गई। कसी खूब लो-कट बैकलेस चोली, साड़ी भी मैंने कूल्हे के नीचे बाँधी थी, और कस के, मेरे उभारों की तरह मेरे चूतड़ भी एकदम खुल के दिख रहे थे, फिर सिंगार। कुहनी तक चूड़ियां हरी हरी, साड़ी से मैचिंग डार्क लिपस्टिक, काजल, झुमके और घुंघुरू वाली चांदी की पायल।

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और तब तक माँ आगयीं खुद बोलीं- “अरे दोपहर से कमरे में पड़ी हो। चन्दा तो आएगी नहीं, अब तो तुम्हारा भी ये गाँव है, जरा जाके घूम टहल आओ, थोड़ा मन बहल जाएगा। मौसम भी बहुत अच्छा हो रहा है…”



लेकिन जिस तरह से वो मेरे गाल छू रही थीं, मैं समझ गयी की ये भी ललचा रही हैं, फिर मेरे सिंगार में कुछ और, सबसे पहले मेरी लिपस्टिक को एक बार और खूब डार्क किया, हलकी सी लिपस्टिक अपनी उँगलियों पे स्मज करके मेरे गालों पर भी, गुलाबी गाल और दहकने लगे, फिर उन्होंने मेरी चोली खोल दी, और मेरे कुछ बोलने के पहले, मेरे उभारों पर भी हल्का सा मेकअप , क्लीवेज पर,... दोनों घुंडियों को कस के मरोड़ दिया , अब तो दोनों एकदम टनटना गयी थीं , पूरी खड़ी, फिर उन्होंने मेरे उन दोनों निप्स पे भी लिपस्टिक का मोटा कोट और उभार थोड़ा और उठा के चोली इस तरह टाइट बंद की, कि क्लीवेज तो एकदम साफ़ दूर से दिख रहा था, मेरे निप्स भी चोली के अंदर से साफ़ साफ़ झलक रहे थे , बरछी की कटार की तरह

“ माँ, जल्द लौट आऊँगी…” मैंने बहाना बनाया

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तो उलटे वो बोलीं- “अरे आराम से आना अभी तो तुम्हारी भाभी और चम्पा भाभी भी कामिनी भाभी के यहां गई हैं। वो लोग भी थोड़ा लेट ही लौटेंगी…”


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बादल हल्के से छंट गए थे, धूप फिर थोड़ी-थोड़ी खिल गई थी, एक इंद्रधनुष खिल उठा था और मैं घर से बाहर निकल पड़ी।
 
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