"आइए बहनजी आइए.... क्या लेंगी केला, मूली, बैंगन.......या फिर लौकी" सलोनी के दुकान पर पहुँचते ही सब्ज़ी वाला उससे पूछता है | सलोनी सब्ज़ीवाले की आवाज़ में चिपकी कामुकता, उसकी नज़रों और उसके दोबारा इस्तेमाल की कुछ खास सब्ज़ियों के नाम से जान गयी थी कि यह कोई बहुत बिगड़ा हुआ बदतमीज़ था | कोई भी सब्ज़ीवाला ऐसे सीधे सीधे छेड़खानी करने की हिमाकत नही कर सकता था, लगता था वो कुछ ज़्यादा ही होशियार था या खुद को होशयार समझता था |
"भैया मुझे बैंगन लेने हैं ......... क्या भाव है" सलोनी उसे नज़र अंदाज़ करते हुए बोलती है | उसे दूर से राहुल अपनी और भागा भागा आता दिखाई देता है और उसके होंठो पर मुस्कान आ जाती है | सब्ज़ीवाला उसकी मुस्कान का ग़लत मतलब लगता है | उसे लगता है कि बड़े घर की वो इतनी सुंदर, सेक्सी औरत उसको लाइन दे रही है | वो बहुत खुश हो जाता है | उसकी लुंगी में उसके लिंग में तनाव आने लगता है |
"अरे बहन जी अब आपसे क्या पैसा लेना है ...... आपकी दुकान है ..... जो चाहिए ले जाइए ........ हर चीज़ का मोल भाव कोई पैसे से थोड़े ही किया जाता है"
"क्या मतलब?" सलोनी थोड़े तीखे अंदाज़ में पूछती है |
"अरे मेरा मतलब था कि अभी मैने आपको बहनजी बोला है और अपने मुझे भाई कहकर बुलाया था ना तो कोई भाई बहन से पैसा लेता अच्छा नही लगता है ना......." वो बहुत बड़ा चलाक था और जल्दी घबराने वाला भी नही था | सलोनी समझ गयी कि यह आदमी कुछ ज़्यादा ही कमीना है | तब तक राहुल भी वहाँ पहुँच चुका था | उसकी साँस फूली हुई थी | माथे पे पसीने की बूंदे चमक रही थी | सलोनी का ध्यान दुकान वाले की तरफ़ था | राहुल दुकान वाले को घूरता है जो उसकी और देखता भी नही | वो सीधा सीधा सलोनी के सीने की और देखकर अपने होंठो पर जीभ फेर रहा था और हंस रहा था | राहुल की नसें फड़कने लगती है |
"ठीक है, ठीक है.... ज़्यादा बातें मत बनायो.... एक किलो बैंगन तोल दो" सलोनी रूखेपन से दुकानवाले को बोलती है |
"अभी लीजिए बहनजी, जितना आपने कहा उतना ही ही डाल देता हूँ.... "
सलोनी दुकान वाले की तरफ़ कोई ध्यान नही देती और राहुल की और मुडती है |