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हिंदी में एक सेक्सी कविता

Adirshi

Royal कारभार 👑
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Maine tumko chaha tumse pyaar kiya
Tumne khali bobe dikhaye chodne na diya

Ab to hal pal ye lawda mera khada rehta hai
Bas mil jaye ek baar teri ye kehta hai

Pardesi mere yaara jara gaand dikhana
Mujhe blowjob dena tum bhul na jana

Pardesi pardesi sona nahi....
bagair chude....bagair chude..
 

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:angrysad: koi naa aati ab bulane pe bhi
 
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2.जब साजन ने खोली अंगिया - तरण-ताल यानि स्वीमिंग पूल में मस्ती



सखी चारों तरफ चांदनी थी, हम तरण-ताल में उतरे थे,
जल तो कुछ शीतल था लेकिन, ये बदन हमारे जलते थे,
जल में ही सखी सुन साजन ने, मुझको बाँहों में भीच लिया,
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
हर्षित उल्लासित मन से हमने, कई भांति जल में क्रीडा की,
साजन ने दबा उभारों को, मन-मादक मुझको पीड़ा दी,
यत्र-तत्र उसके चुम्बनों का, मैंने जरा नहीं प्रतिकार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मुझको बाँहों में उठा सखी, कभी जल में उछाल के झेल लिया,
कभी मुझे पकड़ कर कम्मर से, जल में चक्कर सा घुमा दिया,
हाथों से जल मुझपे उछाल, कई भांति उसने चुहुल किया,
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं भी साजन को छेड़त थी, कभी अंग को पकड़त छोड़त थी,
साजन की कमर, नितम्बों पर, कभी च्योंटी काट के दौड़त थी,
साजन के उभरे सीने पर, मैंने दंताक्षर री सखी छाप दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी , जब साजन ने खोली अँगिया.

गर्दन, जांघें, स्तन, नितम्ब, पेडू पे होष्ठ-चिन्ह छापे गए,
ऊँगली-मुट्ठी के पैमाने से, वस्त्र सहित दृढ़ स्तन नापे गए,
होठों पे रख कर तप्त होठ, मुख में मुख का रस घोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अब जहाँ- जहाँ साजन जाता, मैं वहाँ- वहाँ पर जाती थी,
उससे होने की दूर सखी, नहीं चेष्टा मैं कर पाती थी,
जल में डूबे द्रवित अंग लिए, नैनों से साजन को न्योत दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

सखी साजन ने जल के अन्दर, मुझे पूर्णतया निर्वस्त्र किया,
हाथों से जलमग्न उभारों को, कई भांति दबाकर छोड़ दिया,
जल में तर मेरे नितम्बों को, कई तरह से उसने निचोड़ दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

ऊँगली-मुट्ठी से वस्त्र रहित नितम्ब, नोचे-खरोचे-मसले गए,
आटे की लोई से स्तन द्वय, दबाये-भीचे-पकडे-छोड़े गए,
नितम्बों की गहन उस घाटी में, उँगलियों ने गमन भी खूब किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

स्तन की बोंडी पे चुम्बन ले, जिह्वा से उनको उकसाया,
पहले बोंडी मुंह अन्दर की, फिर अमरुद तरह स्तन खाया,
होंठ-जिह्वा-दांतों से दबा-दबा, सारा रस उनका चूस लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन मेरे पीछे आया, मुझे अंग की गडन महसूस हुई
स्तन से लेकर द्रवित अंग तक, उँगलियाँ की सरसरी विस्तृत हुई
दोनों हाथों में भीची कम्मर, और अंग पे मुझे बिठाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

सखी साजन ने भर बाँहों में, मेरे होठों को अतिशय चूमा,
जल में जलमग्न स्तनों को, हाथों से उभार-उभार चूमा,
स्तनों के मध्य रख कर अंग को, उन्हें कई- कई बार हिलोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

होकर अब बड़ी बेसब्र सखी, मैं जल-तल पर मछली सी मचली,
साजन का अंग पकड़ने को, मेरी मुट्ठी घडी-घडी फिसली
साजन की सख्त उँगलियों ने, अंग में कमल के पुष्प कई खिला दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

तरण-ताल के जल में सखी, हमरे अंग के रंग विलीन हुए
जल में चिकने होकर हमने, उत्तेजना के नए-नए शिखर छुए,
मैंने मुट्ठी से अंग के संग, साजन को भाव -विभोर किया.
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

सखी साजन ने मुझको अपनी, निर्मम बाँहों में उठा लिया,
और ला के किनारे तट पे मुझे, हौले से सखी बिठाय दिया,
खुद वो तो रहा जल के अन्दर, मुझे जांघों से पकड़कर खीच लिया.
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं कुहनी के बल बैठी थी, अंग उसके मुख के सम्मुख था,
मैं सोच-सोच उद्वेलित थी, मैं जानत थी अब क्या होगा
साजन ने अपनी जिह्वा से, मेरी मर्जी का सखी काम किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मस्ती के मारे सुन री सखी, अब मुझको कुछ न सूझत था,
साजन होठों और जिह्वा से, मेरे अंतर्रस को चूसत था,
मैंने भी उठाकर नितम्ब सखी, मस्ती का उदाहरण पेश किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन के होंठ तो चंचल थे, जिह्वा भी अंग पर अति फिसली,
कुहनी के बल मैंने नितम्ब उठा, जिह्वा अंग के अन्दर कर ली
अंग में जिह्वा का मादक रस, सखी मैंने स्वयं उड़ेल लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन का दस अंगुल का अंग, मुझे जल में और विशाल दिखा,
उसकी मादकता पाने को, सखी मेरे मन भी लोभ उठा
मैंने जल में अब उतर सखी, साजन को किनारे बिठा दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

भीगे अंग को मुख के रस से, चहुँ और सखी लिपटाय दिया
होठों से पकड़ कर कंठ तरफ, मैंने उसको सरकाय लिया
नीचे के होंठ संग जिह्वा रख, मैंने लिप्सा अपनी पूर्ण किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

जिह्वा अंग को थी उकसाती, उसे होठों से मैं कसकर पकडे,
साजन के बदन में थिरकन के, सखी कई-कई अब बुलबुले उड़े,
अंग को जिह्वा-होठों से खीच, सखी मैंने कंठ लगाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

उसको करने से प्यार सखी, मेरा मन कभी न भरता था,
मुंह का रस अंग भिगोने को, सखी कभी भी न कम पड़ता था
चूस- चाट- चटकार-चबा, कई बार उसे कंठस्थ किया,
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन भी अब जल में उतरे, मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया
फिर कम्मर से मुझे पकड़ सखी, अपने अंग पे जैसे बिठा लिया
अंग से अंग मिल गया सखी, अंग स्वतः ही अंग में उतर गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

दस अंगुल के कठोर अंग ने, मेरे अंग में स्वछंद प्रवेश किया
हम कम्मर तक डूबे थे सखी, जल में अंग ने अंग धार लिया
साजन ने पकड़ नितम्बों से, थोडा ऊपर मुझे उठाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन के हाथों के आर-पार, मैंने जंघाएँ सखी फंसा लई
साजन की गर्दन में बाहें लपेट, नितम्बों को धीमी गति दई
दोनों हाथों से पकड़ नितम्ब, साजन ने उन्हें गतिमान किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरी गति से सखी जल के मध्य, छप-छप आवाजें होती थी,
मुख से निकली मेरी आह ओह, मेरे सुख की कहानी कहती थी
मादक अंगों की लिसलिसी छुअन, रग-रग को भाव बिभोर किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

जंघा से पार दो कठोर हाथ, नितम्बों को जकड़े- पकडे थे,
कभी उसने सहलाया उनको, कभी उँगलियों से गए मसले थे
मेरे अंग ने साजन के अंग की, चिकनाई सखी और बड़ा दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन के अंग पे चढ़-चलकर, मैं सुख के शिखर तक जा पहुंची,
अंगों के घर्षण-मर्दन से, तन में ज्वालायें कई-कई धधकीं,
मैं जैसे ही स्थिर हुई सखी, साजन ने नितम्ब-क्रम चला दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

बृक्षों से लिपटी लता सदृश, अंग उसके अंग से चिपटा था
अंग घर्षण से निकले स्वर से, वातावरण बहुत ही मादक था
उसका अंग तो मेरे अंग के, जैसे कंठ के भी सखी पार गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

जल में छप-छप अंग में लप-लप, मुंह में थे आह-ओह के शब्द
साँसें थी जैसे धोकनी हो, हमें देख प्रक्रति भी थी स्तब्ध
उसके जोशीले नितम्बों ने, जल में लहरें कई उठाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन का सिर पकड़ के हाथों में, मुख उसके जिह्वा घुसाय दिया
होठों को होठों से जकड़ा, जिह्वा से जिह्वा का मेल किया
जैसे अंग परस्पर मिलते थे, जिह्वा ने मुख में वही खेल किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साँसों की गति थी तूफानी, पर स्पंदन की उससे भी तेज
अंगों की तरलता के आगे, चांदनी भी थी जैसे निस्तेज
चुम्बन के स्वर, जल की छप-छप, साँसों के स्वर में घोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अति तीब्र गति से सांसों के, तूफ़ान निरंतर बह निकले,
अति दीर्घ आह-ओह के संग, बदन कँपकपाए हम बह निकले,
अंग के अन्दर बने तरण ताल, मन ने उनमे खूब किलोल किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अंगों से जो रस बह निकले, अन्तरंग ताल के जल में मिले
सांसों में उठे तूफानों के, अब जाके धीमे पड़े सिले
तरण ताल में उठी लहरों ने, अब जाकर के विश्राम किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

सब शांत हुआ लेकिन री सखी, मैं साजन से लिपटी ही रही
मेरे अंग में उसके अंग की सखी, गहन ऊष्मा घुलती रही
मुझे पता नहीं कब साजन ने, मुझे तट पर लाकर लिटा दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मैंने खोली जब आँखें तो, साजन को निज सम्मुख पाया
होठों पर म्रदु मुस्कान लिए, उसे मुख निहारते हुए पाया
बाँहों से साजन को घेर सखी, तृप्त होठों से होठ मिलाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
 
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3.जब साजन ने खोली अँगिया - स्पंदन गिन गिनकर



सखी मैं साजन से रूठी थी, और साजन मुझे मनाता था
मैं और दूर हट जाती थी, वह जितने कदम बढाता था
साजन के हाथों को मैंने, अपने बदन से परे हटाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
साजन ने कितना समझाया, मैंने एक भी न मानी उसकी
साजन के चुम्बन ले लेने पर, होठों को हथेली से साफ़ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने पीछे से री सखी, आकर मुझको बाँहों में घेरा
मैं कुस्मुसाई तो बहुत मगर, साजन ने मुझको न छोड़ा
गालों पर चुम्बन लेकर के, मुझे अपनी तरफ घुमाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मेरी आँखों में तो आंसू थे, साजन ने आँखें चूम लई
आँखों से गिरी हीरों की कनी, होठों की तुला में तोल दई
हर हीरे की कनी का साजन ने, चुम्बन का अद्भुत मोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने सखी मुझे खींच लिया, अपने सीने से लगा लिया
फिर कानों में बोला मुझसे, मैंने तुझसे बहुत है प्यार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैं साजन से परे हटी सखी, भीगी आँखों से देखा उसको
फिर धक्का देकर मैंने तो, उसे पलंग के ऊपर गिराय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैं स्वयं गिरी उसके ऊपर, होठों से होंठ मिलाय दिया
साजन के मुख पर मैंने तो, चुम्बन की झड़ी लगाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने शरारत करी सखी, पेटीकोट की डोरी खोल दिया
कम्मर के नीचे नितम्बों पर, उँगलियाँ कई भांति फिराय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

पांवों में फँसाकर पेटीकोट, सखी नीचे उसने सरकाय दिया
पांवों से ही उसने सुन री सखी, मेरा अंतर्वस्त्र उतार दिया
अँगिया दाँतों से खीच लई, बदन सारा यों निर्वस्त्र किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

सुरसुरी की धाराएँ तन से सखी मेरे मन तक दौड़ गईं
साजन ने मध्यमा ऊँगली को, नितम्बों के मध्य फिराय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैं साजन के होठों को सखी, अपने होठों से चूसत थी
साजन ने अपने हाथों से, स्तनों पे मदमाते खेल किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

पथदर्शक-मध्यमा ऊँगली के, मध्य बोंडी सखी फसाय लिया
बोंडियों से उठाये स्तन द्वय, कई बार उठाकर गिरा दिया
पाँचों उँगलियों के नाखूनों की स्तनों पे निशानी छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

हाथों से दबाकर अगल-बगल, दोनों स्तन सखी मिला लिया
एक गलियारा उभरा उसमे, होठों से घुसने का यत्न किया
उन्मुक्त स्तनों को हिलोरें दे, मुख पर साजन ने रगड़ लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मेरे सब्र का बांध था टूट गया, मैंने उसको भी निर्वस्त्र किया
साजन के होठों पर मैंने, अब अपना अंग बिठाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन चूसत था सर्वांग मेरा, मैं पीछे को मुड गई सखी
अपने हाथों से साजन के, अंग पर मैंने खिलवाड़ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

होंठ, जिह्वा सखी साजन के, स्थिर थे जैसे कोई धुरी
मैंने तो अपने अंग को उन पर, बेसब्री से सखी रगड़ दिया
साजन ने दोनों हाथों से, सखी मेरे अंग का मुख खोल लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन की जिह्वा ने मेरे अंग के, रस के बाँधों को तोड़ दिया
साजन ने निस्सारित रस को, मधुरस की भांति चाट लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैं अब पीछे को सरकी, उसके अंग को अंग में धार लिया
दो-चार स्पंदन कर धीरे से, अंग गहराई तक उतार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने मुझको सुन री सखी, बहुतई जोरों से भीच लिया
और करवट लेकर उसने तो, स्वयं को मेरे ऊपर बिछाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

फिर उसने कहा तू दस तक गिन, और दस स्पंदन कड़े किया
फिर करवट लेकर उसने तो, पुनः अपने ऊपर मुझे किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैंने कहा अब तू भी गिन, नितम्ब धीरे-धीरे गतिमान किया
पच्चीस की गिनती पर मैंने तो, सखी खुद को लेकिन रोक लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने कहा ले आगे गिन, नीचे रहकर किये प्रति स्पंदन
मैं गिनती रही वह करता रहा, गिनती अस्सी के पार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

अब मेरी बारी आई सखी, साजन को गिनती करनी थी
अंग को पकडे पकडे अंग से, साजन को ऊपर बुलाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

दोनों टाँगें मैंने फैला दईं, अंग से अंग पर रस फैलाया
साजन ने अपने कन्धों को, बाँहों के सहारे उठाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

हर स्पंदन पर साजन ने, सखी गहरी सी हुँकार भरी
मैंने स्पंदन को छोड़ सखी, अब साजन की हुँकार गिनी
साजन ने मारकर शतक सखी, मुझे अवसर पुनः प्रदान किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैंने तो सखी स्पंदन में, अब कई प्रयोग थे कर डाले
ऊपर नीचे दायें बाएं, कभी अंग को अंग से खाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

खेलत-खेलत मैं थकी सखी, साजन के बदन पर लोट गई
साजन ने कहा सौ नहीं हुए, और प्रतिस्पंदन कई बार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने समझी दशा मेरी, मुझको नीचे फिर किया सखी
मैंने अपनी दोई टांगों को, उसके कन्धों पर ढलकाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने बाँहों से उठा बदन, सारा जोर नितम्बों पर लगा दिया
मेरी सीत्कार उई आह के संग, स्पंदन की गति को बढ़ा दिया
मैं गिनती ही सखी भूल गई, मुझे मदहोशी की धार में छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अंगों का परस्पर मिलन हुआ, तो आवाजें भी मुखरित हुईं
सुड़क-सुड़क, चप-चप,लप-लप, अंगों ने रस में किलोल किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन ने कहा ले फिर से गिन, मैंने फिर से गिनती शुरू करी
हर गिनती के ही साथ सखी, मेरे मुंह से सिसकारी निकलीं
आकर पचपन पर प्यारी सखी, मैंने दीर्घ "ओह" उच्चार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरा स्वर तो सखी बैठ गया, मैं छप्पन न कह पाई सखी
एक तीब्र आह लेकर मैंने, साजन को जोरों से भीच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन की साँस धोकनी सी, पसीने से तर उसका था बदन
सत्तावन पर सखी साजन ने, हिचकोले खा लम्बी आह लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे अंग में धाराएँ फूटीं, दोनों का तटबंध था टूट गया
मेरा सुख निस्सारित होकर, उसके सुख में था विलीन हुआ
स्पंदन के सुखमय योगों ने, परमानन्द से संयोग किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे अंग पर सीना रखकर, वह प्रफुल्लित होकर लेट गया
मैंने अपनी एडियों को, उसके नितम्बों पर सखी फेर दिया
शांति की अनंत चांदनी में, हमने परस्पर लिपट बिश्राम किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
 

Yug Purush

सादा जीवन, तुच्छ विचार
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4.जब साजन ने खोली अँगिया - प्रथम रात्रि



पहले हम हँसे फिर नैन हँसे, फिर नैनन बीच हँसा कजरा
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
पहले तो निहारा उसने मुझे फिर मुस्कान होठों पर खेल गई
ऊँगली से ठुड्डी उठा मेरी, होठों को मेरे सखी चूम लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे स्तन बारी बारी उसने वस्त्र सहित ही चूम लिए
अंगिया का आवरण दूर किया और चुम्बन से उन पर दबाय दिया
हर कोने में स्तनों को री सखी, हाथों से उभार कर चूम लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

दबा-दबा के बक्षों को, उसने मुझको मदहोश किया
फिर चूम लिया और चाट लिया, फिर तरह-तरह से चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अंगन से रगड़त थे अंगन को, सब अंगन पे जीभ फिरात रहे
सर्वांग मेरे बेहाल हुए, मुझे मोम की भांति पिघलाय दिया,
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

आगे चूमा पीछे चूमा, मोहे चूम-चूम निढाल किया
उभरे अंगों को साजन ने , दांतों के बीच दबाय लिया
मैं कैसे कहूँ तुझसे ऐ सखी, अंग-अंग पे निशानी छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

माथे को उसने चूम लिया, फिर आँखों को उसने चूमा
होठों को लेकर होठों में, सब रस होठों का चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

चुम्बन की बारिश सुन री सखी, ऊपर से नीचे बढती गई
मैं सिसकारी लेती ही गई, वह अमृत रस पीता ही गया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अपना अंग लेकर वह री सखी, मेरे अंग के मध्य समाय गया
फिर स्पंदन का दौर चला, तन 'मंथन योग' में डूब गया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

स्पंदन क्रमशः तेज हुए, मैंने भी नितम्ब उठाय दिए
मैं लेती गई वह देता गया, अब सीत्कार उल्लास हुआ
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

खटिया की ‘चूँ-चूँ’ की धुन थी, और स्पंदन की थाप सखी
उसकी सांसों की हुन्कन ने, आनंद-अगन का काम किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अंग उसका सखी मेरे अंग में, अन्दर जाता बाहर आता
छूकर मेरे अन्तस्थल को, वह सखी और भी इतराता
मेरे अंग ने तो सरस होकर, सखी उसको और कठोर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

हर स्पंदन के साथ सखी, मेरी मदहोशी बढती गई
मैं सिसकारी के साथ साथ, उई आह ओह भी करती गई ,
अंगों के रसमय इस प्याले में, उत्तेजना ने अति उफान लिया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

उसके नितम्ब यूँ उठे-गिरे, जैसे लोहार कोई चोट करे,
तपता लोहा मेरा अंग बना उसका था सख्त हथोड़े सा
उसके मुख से हुन्कन के स्वर, मैंने आह ओह सीत्कार किया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

स्पंदन रत उसके नितम्बों पर, मैंने सखी उँगलियाँ फेर दईं
मैंने तो अपनी टांगों को सखी उसकी कमर में लपेट दईं
मैंने हाथों से देकर दबाव, नितम्बों को गतिमय और किया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

हर स्पंदन से रस बनता, अंग के प्याले में गिर जाता
साजन के अंग से चिपुड- चिपुड, मेरे अंग को और भी मदमाता
साजन ने रसमय अंग लेकर, स्पंदन कई विशेष किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

पूरा का पूरा अंग उसका, सखी मेरे अंग के अन्दर था,
कम्मर के पार से हाथ लिए, नितम्बों को उसने पकड़ा था
अंग लम्बाई तक उठ नितम्बों ने, अंग उतना ही अन्दर ठेल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अब इतनी क्रियाएं एक साथ, मेरे तन में सखी होती थी ,
मुंह में जिह्वा, होठों में होठ, अंगों का परस्पर परिचालन
साजन ने अपने हाथों से, स्तनों का मर्दन खूब किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं अब सब कुछ सखी भूल गई, मैंने कुछ भी न याद किया
अंग की गहराई में साजन ने, सुख तरल बना के घोल दिया
मेरे अंग में उसने परम सुख की कई- कई धाराएँ छोड़ दिया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं संतुष्ट हुई वह संतुष्ट हुआ, उसका तकिया मेरा बक्ष हुआ
गहरी सांसों के तूफानों ने, क्रमशः बयार का रूप लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
 
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5.जब साजन ने खोली अंगिया - निद्रा का बहाना



वह रात चांदनी रही सखी, साजन निद्रा में लीन रहा
आँखों में मेरी पर नींद नहीं, मैंने तो देखा स्वप्न नया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
सोते साजन के बालों को, हौले - हौले सहलाय दिया
माथे पर एक चुम्बन लेकर, होठों में होठ घुसाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन के होठों से होंठ मेरे, चिपके जैसे कि चुम्बक हों
साजन सोते या जागते हैं, अंग पे हाथ फेर अनुमान किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

दस अंगुल का विस्तार निरख, मैं तो हो गई निहाल सखी
साजन सोते हैं या जागते हैं, अब ये विचार मन से दूर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अपने स्तन निर्वस्त्र किये, साजन के होठों में सौंप दिए
गहरी-गरम उसकी सांसों ने, मेरे स्तन स्वतः फुलाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन के उभरे सीने पर, फिर मैंने जिव्हा सरकाई सखी
उसके सीने पर होठों से, चुम्बन के कई प्रकार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन बेसुध सा सोया था, मैंने अंतर- वस्त्र उतार दिया
दस अंगुल के चितचोर को फिर, मैंने मुख माहि उतार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मैंने साजन के अंग से फिर, मुँह से खेले कई खेल सखी
कभी होठों से खींचा उसको, कभी जीभ से रस फैलाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

कभी केले सा होंठस्थ किया, कभी आम सा था रस चूस लिया
कभी जिह्वा की अठखेली दी, कभी दाँतों से म्रदु दंड दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

होंठ-जिह्वा दोनों संग-संग, इस क्रिया में रत रहे सखी
जिह्वा-रस में तर अंग से मैंने, स्तनों पे रस का लेप किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मैंने सोचा साजन का अंग, मेरे अंग में कैसे जाता होगा
कैसे अंग में वह धँसता होगा, कैसे अंग में इतराता होगा
अपनी मुट्ठी को अंग समझ, मैंने क्या – क्या नहीं अनुमान किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मैं देखत थी मैं खेलत थी, अंग मुँह के अन्दर सेवत थी
मेरे मन में ऐसा लोभ हुआ, मैंने उसको पूर्ण कंठस्थ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन की उँगलियाँ अब मैंने, नितम्बों पे फिरती अनुभव की
मैं समझ गई अब साजन की, आँखों से उडी झूठी निंदिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने नितम्ब सहलाये सखी, पूरा अंग मुट्ठी ले दबा दिया
ख़ुशी से झूमे मेरे अंग ने, द्रव के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

नितम्बों के मध्य सखी साजन ने, रस - भरा सा चुम्बन टांक दिया
मेरे मुंह से बस सिसकी निकली, मैंने आनंद अतिरेक था प्राप्त किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने नितम्बों पर दाँतों से, कई मोहरें सखी उकेर दईं
मक्खन की ढेली समझ उन्हें, जिह्वा से चाट-चटकार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

एक बड़े अनोखे अनुभव ने, जीवन में मेरे किलकार किया
मैं चिहुंकी मेरे अंग फडके, मैंने उल्लास मय चीत्कार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

रात्रि के गहन सन्नाटे को, मेरी सिसकारी थी तोड़ रही
मैं बेसुध सी होकर अंग को, होठों से पकड़ और छोड़ रही
साजन ने जिह्वा के करतब से, रग-रग में मस्ती घोल दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैं बेसब्री से उठी सखी, साजन के अंग पर जा लेटी
साजन के बिपरीत था मुख मेरा, नितम्बों को पकड़ निचोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरा मुख साजन के पंजों पर, स्तन घुटनों पर पड़े सखी
मेरा अंग विराजा उसके अंग पर, अंग को सांचे में ढाल लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन की कमर के आर - पार, मेरे दो घुटने आधार बने
मेरे पंजों ने तो साजन की, तकिया का जैसे काम किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरे अंग के सब क्रिया कलाप, अब साजन की नज़रों में थे
अंग को अंग से सख्ती से जकड, चहुँ ओर से नितम्ब हिलोर दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

कभी इस चक्कर कभी उस चक्कर, मेरे नितम्ब थे डोल रहे
साजन ने उँगलियों से उकसाया, कभी उन पे कचोटी काट लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

बड़ी बेसब्री से अंग मेरा, स्तम्भ पे चढ़ता उतरता था
जितनी तेजी से चढ़ता था, उतना ही तीब्र उतरता था
मेरे अंग ने उसके अंग की, लम्बाई-चौड़ाई नाप लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने अपनी आँखों से, देखे मेरे सब स्पंदन
उसने देखा रस में डूबे, अंगों का गतिमय आलिंगन
उसने नितम्ब पर थाप दिया, मैंने स्पंदन पुरजोर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

श्रम के मारे मेरा शरीर, श्रम के कण से था भीग गया
मेरा उद्वेलित अंग उसके अंग पर, कितने ही मील चढ़-उतर गया
स्तम्भ पे कुशल कोई नट जैसा, मेरे अंग ने था अठखेल किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

आह, ओह, सीत्कार सिवा, हमरे मुख में कोई शब्द न थे
मैं जितनी थी बेसब्र सखी, साजन भी कम बेसब्र न थे
साजन के अंग ने मेरे अंग में, कई शब्दों का स्वर खोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरा अंग तो उसके अंग को, लील लेने को बेसब्र रहा
ऐसी आवाजें आती थी, जैसे भूखा भोजन चबा रहा
साजन ने अपने अंगूठे को, नितम्बों के मध्य लगाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अंग का घर्षण था अंग के संग, अंगूठे का मध्य नितम्बों पर
उसका सुख था अन्दर-अन्दर, इसका सुख था बाहर- बाहर
मैं सर्वत्र आनंद से घिरी सखी, सुख काम-शिखर तक पहुँच गया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अंगों की क्षुधा बढती ही गई, संग स्पंदन भी बढे सखी
पल भर में ऐसी बारिस हुई, शीतल हो गई तपती धरती
साजन के अंग ने मेरे अंग में, तृप्ति के बांध को तोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने उठाकर मुझे सखी, अपने सीने से लगा लिया
और हंसकर बोला वह मुझसे, अनुपम सुख हमने प्राप्त किया
मैंने सहमति की मुस्कान लिए, होठों से होठ मिले लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
 
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