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हिंदी में एक सेक्सी कविता

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6.जब साजन ने खोली अँगिया - रसोईघर



मैं घर में खाना पका रही, साजन पीछे से आ पहुंचे,
मैं देख भी न पाई उनको,बाँहों में मुझे उठाय लिया,
उस रात की बात न पूँछ सखी,जब साजन ने खोली अँगिया.
मैं बोली ये क्या करते हो,ये प्यार की कोई जगह नहीं
मैं आगे कुछ भी कह न सकी,होठों से मुझे लाचार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी,जब साजन ने खोली अँगिया.

माथा चूमा, ऑंखें चूमी, गालों पे कई चुम्बन दागे
स्तनों को दांतों से भीचा, और प्यार की निशानी छाप दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

दोनों हाथों में दो स्तन,पीछे से आकर पकड़ रखे
उड़ने को आतुर पंछी को,शिकारी ने जैसे जकड रखे
कंधे चूमे, गर्दन चूमी,कानो को दांतों से खींच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी,जब साजन ने खोली अँगिया.

एक हाथ से कम्मर को भीचा, दूजे से स्तन दाब रहे
ऐसा लगता था मुझे सखी,ये क्षण हर पल आबाद रहे
बोंडियों पे उँगलियाँ बीणा सी, ऊपर - नीचे सरकाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

एक हाथ अंग से खेल रहा, दूजा था वस्त्र उतार रहा
मैंने आँखें सखी मूँद लईं, मेरा रोम-रोम सीत्कार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

बाँहों में उठाकर उसने मुझे, खाने की मेज पे लिटा दिया
मैंने भी अपने अंग से सखी, सारे पहरों को हटा दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं लेटी थी पर मेरा अंग, उसकी आँखों के सम्मुख था
उँगलियों से उसने सुन री सखी, चिकने अंग को सहलाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

रस से लबालब मेरे अंग में, एक ऊँगली फिर अन्दर सरकी
मैं सिसकारी ले चहुंक उठी, नितम्बों को स्वतः उठाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

ऊँगली और अंग के घर्षण ने, रग-रग में अग्नि फूंक दई
ऊँगली अन्दर ऊँगली बाहर, कभी गोलाकार घुमाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं तो चाहूँ सब कुछ देखूं, हर पल आँखों में कैद करूँ
कुहनी के बल सुन री ओ सखी, गर्दन को अपनी उठाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मैंने देखा सुन री ओ सखी, साजन कितना कामातुर था
ऊँगली के संग-संग जिह्वा से, मेरे अंग को वो सहलाता था
आनंद दुगुणित हुआ सखी, जिह्वा ने अपना काम किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

ऊँगली के आने - जाने से, अब काम पिपासा बड़ी सखी
उस पर नटखट उस जिह्वा ने, अन्तरंग में आग लगाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरे अंग से रस स्रावित होता, जिह्वा रस में जा मिलता था
दोनों मिलकर यूँ बहे सखी, मेरी जांघ-नितम्ब भिगाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मुझे पता नहीं कब साजन ने, अपनी ऊँगली बाहर कर ली
और ऊँगली के स्थान सखी, दस अंगुल की मस्ती भर दी
बेसब्र बिखरते यौवन में, अपने अंग को पूर्ण विस्तार दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मैंने भी अपनी टांगों से, विजयी (V) मुद्रा अब बना लई
मेरे अंग में उसके अंग ने, अब छेड़ दई एक तान नई
गहरी सांसें, सिसकी, हुन्कन, सब आह-ओह में मिला दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरे हिलते- डुलते स्तन, उसने मुट्ठी में थाम लिया
हर स्पंदन के साथ सखी, मेरी गहराई नाप लिया
मैंने भी अंग संकुचित कर, अंग को सख्ती से थाम लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अब साजन ने मेरी टाँगें, अपने कन्धों पर खीच लई
मैंने अंग में अंग को घिसते, दस अंगुल का आनंद लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अंग में अंग की चहलकदमी, और स्पंदन की थाप लगी
उत्तेजना अब ऐसी भड़की, सारी मेज पे भूकंप लाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी,जब साजन ने खोली अँगिया

दोनों जंघाएँ पकड़ सखी, अंग को अन्दर का लक्ष्य दिया
नितम्बों से ठोकर दे देकर, मुझे चरम-सुख की तरफ धकिय़ाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

थमने से पहले सुन री सखी, सब कुछ अत्यंत था तीब्र हुआ
स्पंदन क्रमशः तेज हुए, अंगों ने अंतिम छोर छुआ
गहरे लम्बे इन अंगों में, सब सुख था हमने लीन किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

सुनते हैं कि ओ प्यारी सखी, तूफ़ान कष्टकर होते हैं
पर इस तूफ़ान ने तो जैसे, लाखों सुख मुझ में उड़ेल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरे अंग से उसके अंग का, रस रिस- रिस कर बह जाता था
वह और नहीं कुछ था री सखी, मेरा सुख छलका जाता था
आह्लादित साजन को मैंने, पुनः मस्ती का एक ठौर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
 
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7.जब साजन ने खोली अँगिया - स्तन मर्दन



मैं लेटी थी वह लेटा था, अंग -अंग को उसने चूसा था,
होठों से उसने सुन री सखी, मेरे अंग -अंग को झकझोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
एक किरण ऊष्मा की जैसे, मेरे तन _ मन में दौड़ गई
मैंने भी उसके अंग को सखी, अपनी मुट्ठी में कैद किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने अपने अंग को सखी, मेरे स्तन पर फेर दिया
दोनों बोंडियों पर बारी-बारी, रगडा तो आग लगाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

कहाँ रुई से नाजुक मेरे स्तन, कहाँ वह निर्दय और कठोर सखी
पर उस कठोर और निर्दय ने, मुझको था भाव-बिभोर किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

वह निर्दय और कठोर सखी, दोनों स्तन मध्य बैठ गया
मैंने भी उसको हाथों से, दोनों स्तन से जकड लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मांसलता में वह कैद सखी, अनुपम सुख को था ढूंढ रहा
आगे जाता पीछे आता, मसंलता मेरी रौंद दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

सिर के नीचे मेरे तकिया था, आँखें थी अब दर्शक मेरी
वह उत्तेजित और बिभोर सखी, मेरे मन को भरमाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैंने गर्दन को उठा सखी, उसको मुह मांहि खीच लिया
मुझको तो दो सुख मिले सखी, उसको जिव्हा से सरस किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

वह दो स्तन मध्य से आता था, और मुंह में जाय समाता था
मैंने होठों की दी जकड़न, और जिह्वा का उसे दुलार दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

अनुभव सुख का कुछ ऐसा था, मुझको बेसुध कर बैठा था
लगता था युग यूँ ही बीतें, थम जाये समय जो बीत गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने कई-कई आह भरीं, और अपनी अखियाँ मूंद लईं
मै बेसुध थी मुझे पता नहीं, कब ज्वालामुखी था फूट गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मुंह, गाल, स्तन, गर्दन, सब आनंद रस से तर थे सखी
वह गर्माहट वह शीतलता, कैसे मै करूँ बखान सखी
मेरे मन के इस आँगन को, वह कामसुधा से लीप गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन थे आनंद के सहभागी, मैं पुन-पुन यह सुख चाहूँ री सखी
वह मधुर अगन वह मधुर जलन, मैंने तो चरम सुख पाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
 
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8.जब साजन ने खोली अंगिया - 69



साजन की गोद में सिर मेरा, आवारा साजन के हाथ सखी
ऊँगली के कोरों से उसने, स्तन को तोड़ मरोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
फिर साजन ने सिर पीछे से, होठों को मेरे चूम लिया
कुछ और आगे बड़ स्तन पर, चुम्बन की झड़ी लगाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन अब थोड़ा और बड़े, चुम्बन नाभि तक जा पहुंचे
नाभि के नीचे भी चुम्बन, मेरा अंग-अंग थर्राय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मैंने सोचा अब क्या होगा, उई माँ!, क्या मैंने सोच लिया
कुछ और सोचूं उससे पहले, साजन ने होंठ टिकाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरी जंघाएँ फ़ैल गईं, जैसे इस पल को मै आतुर थी
मै कुस्मुसाई, मै मचल उठी, मैंने खुद को व्याकुल पाया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

नितम्बों के नीचे पंजे रखकर, उनको ऐसा मसला री सखी
मेरे अंग को जल में भीगे, कमल-दल की तरह खिलाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

शायद इतना काफी न था, साजन ने आगे का सोच रखा
जिह्वा से मेरे अंग को उसने, उचकाय दिया, उकसाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

उसके नितम्ब मुख के समीप, अंग जैसे था फुफकार रहा
मैंने फुफकारते उस अंग को, अपने मुंह माहि खींच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

चहुँ ओर से मेरा अंग खुला, उसने “जिह्वा-जीव” को छोड़ दिया
वह इतने अन्दर तक जा पहुंची, रोम -रोम में मेरे रस सींच दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मै तो जैसे बेसुध थी सखी, कुछ सोच रही न सूझ रहा
उसके उस अंग को मैंने तो, अमवा की भांति चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

जिह्वा उसकी अंग के अन्दर, और अन्दर ही जा धंसती थी
मदहोशी के आलम में उसने, सिसकारी लेने को विवश किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे भी अंग मचलते थे, मेरे भी नितम्ब उछलते थे
साजन ने अपना मुंह चौड़ाकर, सर्वस्व अन्दर था खींच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अब सब कुछ साजन के मुख में था, जिह्वा अंग में थी नाच रही
“काम- शिखर” पे आनंद चढ़ा, रग-रग में हिलोरें छोड़ गया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

दोनों के मुख से “आह-प्रवाह”, साजन के अंग से रस बरसा
साजन ने अपने ‘अंग- रंग’ से, मुख को मेरे सराबोर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

हम निश्चल से आपस में लिपटे, उस पल के बारे में सोच रहे
जिस पल में अपना सब खोकर, एक दूजे का सब पाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अब मेरे मन में कोई प्रश्न न था, मैंने सब उत्तर पाए सखी
इस उनहत्तर (69)से उनके मुख से, कोटि सुख मुझमें समाये सखी
ऐसे साजन पर वारी मै, जिसने अद्भुत ये प्यार दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
 

Raj Yadav

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7.जब साजन ने खोली अँगिया - स्तन मर्दन



मैं लेटी थी वह लेटा था, अंग -अंग को उसने चूसा था,
होठों से उसने सुन री सखी, मेरे अंग -अंग को झकझोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
एक किरण ऊष्मा की जैसे, मेरे तन _ मन में दौड़ गई
मैंने भी उसके अंग को सखी, अपनी मुट्ठी में कैद किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने अपने अंग को सखी, मेरे स्तन पर फेर दिया
दोनों बोंडियों पर बारी-बारी, रगडा तो आग लगाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

कहाँ रुई से नाजुक मेरे स्तन, कहाँ वह निर्दय और कठोर सखी
पर उस कठोर और निर्दय ने, मुझको था भाव-बिभोर किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

वह निर्दय और कठोर सखी, दोनों स्तन मध्य बैठ गया
मैंने भी उसको हाथों से, दोनों स्तन से जकड लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मांसलता में वह कैद सखी, अनुपम सुख को था ढूंढ रहा
आगे जाता पीछे आता, मसंलता मेरी रौंद दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

सिर के नीचे मेरे तकिया था, आँखें थी अब दर्शक मेरी
वह उत्तेजित और बिभोर सखी, मेरे मन को भरमाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैंने गर्दन को उठा सखी, उसको मुह मांहि खीच लिया
मुझको तो दो सुख मिले सखी, उसको जिव्हा से सरस किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

वह दो स्तन मध्य से आता था, और मुंह में जाय समाता था
मैंने होठों की दी जकड़न, और जिह्वा का उसे दुलार दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

अनुभव सुख का कुछ ऐसा था, मुझको बेसुध कर बैठा था
लगता था युग यूँ ही बीतें, थम जाये समय जो बीत गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने कई-कई आह भरीं, और अपनी अखियाँ मूंद लईं
मै बेसुध थी मुझे पता नहीं, कब ज्वालामुखी था फूट गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मुंह, गाल, स्तन, गर्दन, सब आनंद रस से तर थे सखी
वह गर्माहट वह शीतलता, कैसे मै करूँ बखान सखी
मेरे मन के इस आँगन को, वह कामसुधा से लीप गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन थे आनंद के सहभागी, मैं पुन-पुन यह सुख चाहूँ री सखी
वह मधुर अगन वह मधुर जलन, मैंने तो चरम सुख पाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
mst
 

Raj Yadav

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8.जब साजन ने खोली अंगिया - 69



साजन की गोद में सिर मेरा, आवारा साजन के हाथ सखी
ऊँगली के कोरों से उसने, स्तन को तोड़ मरोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
फिर साजन ने सिर पीछे से, होठों को मेरे चूम लिया
कुछ और आगे बड़ स्तन पर, चुम्बन की झड़ी लगाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन अब थोड़ा और बड़े, चुम्बन नाभि तक जा पहुंचे
नाभि के नीचे भी चुम्बन, मेरा अंग-अंग थर्राय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मैंने सोचा अब क्या होगा, उई माँ!, क्या मैंने सोच लिया
कुछ और सोचूं उससे पहले, साजन ने होंठ टिकाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरी जंघाएँ फ़ैल गईं, जैसे इस पल को मै आतुर थी
मै कुस्मुसाई, मै मचल उठी, मैंने खुद को व्याकुल पाया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

नितम्बों के नीचे पंजे रखकर, उनको ऐसा मसला री सखी
मेरे अंग को जल में भीगे, कमल-दल की तरह खिलाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

शायद इतना काफी न था, साजन ने आगे का सोच रखा
जिह्वा से मेरे अंग को उसने, उचकाय दिया, उकसाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

उसके नितम्ब मुख के समीप, अंग जैसे था फुफकार रहा
मैंने फुफकारते उस अंग को, अपने मुंह माहि खींच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

चहुँ ओर से मेरा अंग खुला, उसने “जिह्वा-जीव” को छोड़ दिया
वह इतने अन्दर तक जा पहुंची, रोम -रोम में मेरे रस सींच दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मै तो जैसे बेसुध थी सखी, कुछ सोच रही न सूझ रहा
उसके उस अंग को मैंने तो, अमवा की भांति चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

जिह्वा उसकी अंग के अन्दर, और अन्दर ही जा धंसती थी
मदहोशी के आलम में उसने, सिसकारी लेने को विवश किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे भी अंग मचलते थे, मेरे भी नितम्ब उछलते थे
साजन ने अपना मुंह चौड़ाकर, सर्वस्व अन्दर था खींच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अब सब कुछ साजन के मुख में था, जिह्वा अंग में थी नाच रही
“काम- शिखर” पे आनंद चढ़ा, रग-रग में हिलोरें छोड़ गया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

दोनों के मुख से “आह-प्रवाह”, साजन के अंग से रस बरसा
साजन ने अपने ‘अंग- रंग’ से, मुख को मेरे सराबोर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

हम निश्चल से आपस में लिपटे, उस पल के बारे में सोच रहे
जिस पल में अपना सब खोकर, एक दूजे का सब पाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अब मेरे मन में कोई प्रश्न न था, मैंने सब उत्तर पाए सखी
इस उनहत्तर (69)से उनके मुख से, कोटि सुख मुझमें समाये सखी
ऐसे साजन पर वारी मै, जिसने अद्भुत ये प्यार दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
mst
 
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9.जब साजन ने खोली अंगिया - स्नानग्रह




स्नानगृह में जैसे ही नहाने को मैं निर्वस्त्र हुई
मेरे कानों को लगा सखी दरवाज़े पे दस्तक कोई हुई
धक्-धक् करते दिल से मैंने दरवाज़ा सखी री खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
आते ही साजन ने मुझको अपनी बाँहों में कैद किया
होठों को होठों में लेकर उभारों को हाथों से मसल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

फिर साजन ने सुन री ओ सखी फब्बारा जल का खोल दिया
भीगे यौवन के अंग-अंग को होठों की तुला में तौल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

कंधे, स्तन, कम्मर, नितम्ब कई तरह से पकडे छोड़े गए
गीले स्तन सख्त हाथों से आंटे की भांति गूंथे गए
जल से भीगे नितम्बों को दांतों से काट-कचोट लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं बिस्मित सी सुन री ओ सखी साजन के बाँहों में सिमटी रही
साजन ने नख से शिख तक ही होठों से अति मुझे प्यार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

चुम्बनों से मै थी दहक गई जल-क्रीडा से बहकी मैं सखी
बरबस झुककर मुँह से मैंने साजन के अंग को दुलार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

चूमत-चूमत, चाटत-चाटत साजन पंजे पर बैठ गए
मैं खड़ी रही साजन ने होंठ नाभि के नीचे पहुँचाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे गीले से उस अंग से उसने जी भर के रसपान किया
मैंने कन्धों पे पाँवों को रख रस के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं मस्ती में थी डूब गई क्या करती हूँ न होश रहा
साजन के होठों पर अंग को रख नितम्बों को चहुँ ओर हिलोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन बहके-दहके-चहके मोहे जंघा पर ही बिठाय लिया
मैंने भी उसकी कम्मर को अपनी जंघाओं में फँसाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

जल से भीगे और रस में तर अंगों ने मंजिल खुद खोजी
उसके अंग ने मेरे अंग के अंतिम पड़ाव तक प्रवेश किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

ऊपर से जल कण गिरते थे नीचे दो तन दहक-दहक जाते
चार नितम्ब एक दंड से जुड़े एक दूजे में धँस-धँस जाते
मेरे अंग ने उसके अंग के एक-एक हिस्से को फांस लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

जैसे ब्रक्षों से लता सखी मैं साजन से लिपटी थी यों,
साजन ने गहन दबाव देकर अपने अंग से मुझे चिपकाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

नितम्बों को वह हाथों से पकडे स्पंदन को गति देता था
मेरे दबाव से मगर सखी वह खुद ही नहीं हिल पाता था
मैंने तो हर स्पंदन पर दुगना था जोर लगे दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

अब तो बस ऐसा लगता था साजन मुझमे ही समा जाएँ
होठों में होठ, सीने में बक्ष आवागमन अंगों ने खूब किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

कहते हैं कि जल से री सखी सारी गर्मी मिट जाती है
जितना जल हम पर गिरता था उतनी ही गर्मी बढाए दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

वह कंधे पीछे ले गया सखी सारा तन बाँहों पर उठा लिया
मैंने उसकी देखा-देखी अपना तन पीछे खीच लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

इससे साजन को छूट मिली साजन ने नितम्ब उठाय लिया
अंग में उलझे मेरे अंग ने चुम्बक का जैसे काम किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

हाथों से ऊपर उठे बदन नितम्बों से जा टकराते थे
जल में भीगे उत्तेजक क्षण मिरदंग की ध्वनि बजाते थे
साजन के जोशीले अंग ने मेरे अंग में मस्ती घोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..

खोदत-खोदत कामांगन को जल के सोते फूटे री सखी
उसके अंग के फब्बारे ने मोहे अन्तस्थल तक सींच दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..

फब्बारों से निकले तरलों से तन-मन दोनों थे तृप्त हुए
साजन के प्यार के उत्तेजक क्षण मेरे अंग-अंग में अभिव्यक्त हुए
मैंने तृप्ति की एक मोहर साजन के होठों पर लगाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..



The 🔚.
 

Raj Yadav

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स्नानगृह में जैसे ही नहाने को मैं निर्वस्त्र हुई
मेरे कानों को लगा सखी दरवाज़े पे दस्तक कोई हुई
धक्-धक् करते दिल से मैंने दरवाज़ा सखी री खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
आते ही साजन ने मुझको अपनी बाँहों में कैद किया
होठों को होठों में लेकर उभारों को हाथों से मसल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

फिर साजन ने सुन री ओ सखी फब्बारा जल का खोल दिया
भीगे यौवन के अंग-अंग को होठों की तुला में तौल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

कंधे, स्तन, कम्मर, नितम्ब कई तरह से पकडे छोड़े गए
गीले स्तन सख्त हाथों से आंटे की भांति गूंथे गए
जल से भीगे नितम्बों को दांतों से काट-कचोट लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं बिस्मित सी सुन री ओ सखी साजन के बाँहों में सिमटी रही
साजन ने नख से शिख तक ही होठों से अति मुझे प्यार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

चुम्बनों से मै थी दहक गई जल-क्रीडा से बहकी मैं सखी
बरबस झुककर मुँह से मैंने साजन के अंग को दुलार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

चूमत-चूमत, चाटत-चाटत साजन पंजे पर बैठ गए
मैं खड़ी रही साजन ने होंठ नाभि के नीचे पहुँचाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे गीले से उस अंग से उसने जी भर के रसपान किया
मैंने कन्धों पे पाँवों को रख रस के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं मस्ती में थी डूब गई क्या करती हूँ न होश रहा
साजन के होठों पर अंग को रख नितम्बों को चहुँ ओर हिलोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन बहके-दहके-चहके मोहे जंघा पर ही बिठाय लिया
मैंने भी उसकी कम्मर को अपनी जंघाओं में फँसाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

जल से भीगे और रस में तर अंगों ने मंजिल खुद खोजी
उसके अंग ने मेरे अंग के अंतिम पड़ाव तक प्रवेश किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

ऊपर से जल कण गिरते थे नीचे दो तन दहक-दहक जाते
चार नितम्ब एक दंड से जुड़े एक दूजे में धँस-धँस जाते
मेरे अंग ने उसके अंग के एक-एक हिस्से को फांस लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

जैसे ब्रक्षों से लता सखी मैं साजन से लिपटी थी यों,
साजन ने गहन दबाव देकर अपने अंग से मुझे चिपकाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

नितम्बों को वह हाथों से पकडे स्पंदन को गति देता था
मेरे दबाव से मगर सखी वह खुद ही नहीं हिल पाता था
मैंने तो हर स्पंदन पर दुगना था जोर लगे दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

अब तो बस ऐसा लगता था साजन मुझमे ही समा जाएँ
होठों में होठ, सीने में बक्ष आवागमन अंगों ने खूब किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

कहते हैं कि जल से री सखी सारी गर्मी मिट जाती है
जितना जल हम पर गिरता था उतनी ही गर्मी बढाए दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

वह कंधे पीछे ले गया सखी सारा तन बाँहों पर उठा लिया
मैंने उसकी देखा-देखी अपना तन पीछे खीच लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

इससे साजन को छूट मिली साजन ने नितम्ब उठाय लिया
अंग में उलझे मेरे अंग ने चुम्बक का जैसे काम किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

हाथों से ऊपर उठे बदन नितम्बों से जा टकराते थे
जल में भीगे उत्तेजक क्षण मिरदंग की ध्वनि बजाते थे
साजन के जोशीले अंग ने मेरे अंग में मस्ती घोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..

खोदत-खोदत कामांगन को जल के सोते फूटे री सखी
उसके अंग के फब्बारे ने मोहे अन्तस्थल तक सींच दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..

फब्बारों से निकले तरलों से तन-मन दोनों थे तृप्त हुए
साजन के प्यार के उत्तेजक क्षण मेरे अंग-अंग में अभिव्यक्त हुए
मैंने तृप्ति की एक मोहर साजन के होठों पर लगाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..



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9.जब साजन ने खोली अंगिया - स्नानग्रह




स्नानगृह में जैसे ही नहाने को मैं निर्वस्त्र हुई
मेरे कानों को लगा सखी दरवाज़े पे दस्तक कोई हुई
धक्-धक् करते दिल से मैंने दरवाज़ा सखी री खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
आते ही साजन ने मुझको अपनी बाँहों में कैद किया
होठों को होठों में लेकर उभारों को हाथों से मसल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

फिर साजन ने सुन री ओ सखी फब्बारा जल का खोल दिया
भीगे यौवन के अंग-अंग को होठों की तुला में तौल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

कंधे, स्तन, कम्मर, नितम्ब कई तरह से पकडे छोड़े गए
गीले स्तन सख्त हाथों से आंटे की भांति गूंथे गए
जल से भीगे नितम्बों को दांतों से काट-कचोट लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं बिस्मित सी सुन री ओ सखी साजन के बाँहों में सिमटी रही
साजन ने नख से शिख तक ही होठों से अति मुझे प्यार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

चुम्बनों से मै थी दहक गई जल-क्रीडा से बहकी मैं सखी
बरबस झुककर मुँह से मैंने साजन के अंग को दुलार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

चूमत-चूमत, चाटत-चाटत साजन पंजे पर बैठ गए
मैं खड़ी रही साजन ने होंठ नाभि के नीचे पहुँचाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे गीले से उस अंग से उसने जी भर के रसपान किया
मैंने कन्धों पे पाँवों को रख रस के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं मस्ती में थी डूब गई क्या करती हूँ न होश रहा
साजन के होठों पर अंग को रख नितम्बों को चहुँ ओर हिलोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन बहके-दहके-चहके मोहे जंघा पर ही बिठाय लिया
मैंने भी उसकी कम्मर को अपनी जंघाओं में फँसाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

जल से भीगे और रस में तर अंगों ने मंजिल खुद खोजी
उसके अंग ने मेरे अंग के अंतिम पड़ाव तक प्रवेश किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

ऊपर से जल कण गिरते थे नीचे दो तन दहक-दहक जाते
चार नितम्ब एक दंड से जुड़े एक दूजे में धँस-धँस जाते
मेरे अंग ने उसके अंग के एक-एक हिस्से को फांस लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

जैसे ब्रक्षों से लता सखी मैं साजन से लिपटी थी यों,
साजन ने गहन दबाव देकर अपने अंग से मुझे चिपकाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

नितम्बों को वह हाथों से पकडे स्पंदन को गति देता था
मेरे दबाव से मगर सखी वह खुद ही नहीं हिल पाता था
मैंने तो हर स्पंदन पर दुगना था जोर लगे दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

अब तो बस ऐसा लगता था साजन मुझमे ही समा जाएँ
होठों में होठ, सीने में बक्ष आवागमन अंगों ने खूब किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

कहते हैं कि जल से री सखी सारी गर्मी मिट जाती है
जितना जल हम पर गिरता था उतनी ही गर्मी बढाए दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

वह कंधे पीछे ले गया सखी सारा तन बाँहों पर उठा लिया
मैंने उसकी देखा-देखी अपना तन पीछे खीच लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

इससे साजन को छूट मिली साजन ने नितम्ब उठाय लिया
अंग में उलझे मेरे अंग ने चुम्बक का जैसे काम किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

हाथों से ऊपर उठे बदन नितम्बों से जा टकराते थे
जल में भीगे उत्तेजक क्षण मिरदंग की ध्वनि बजाते थे
साजन के जोशीले अंग ने मेरे अंग में मस्ती घोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..

खोदत-खोदत कामांगन को जल के सोते फूटे री सखी
उसके अंग के फब्बारे ने मोहे अन्तस्थल तक सींच दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..

फब्बारों से निकले तरलों से तन-मन दोनों थे तृप्त हुए
साजन के प्यार के उत्तेजक क्षण मेरे अंग-अंग में अभिव्यक्त हुए
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9 angiya jo khul gaya... Kya ek hi angiya ko baar baar khola gaya tha ya badal badal kar angiya hi aisa daal rakhe the ki kholne par majboor hui gaye...

Please iss par prakash daliye...
 

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मेरे कानों को लगा सखी दरवाज़े पे दस्तक कोई हुई
धक्-धक् करते दिल से मैंने दरवाज़ा सखी री खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
आते ही साजन ने मुझको अपनी बाँहों में कैद किया
होठों को होठों में लेकर उभारों को हाथों से मसल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

फिर साजन ने सुन री ओ सखी फब्बारा जल का खोल दिया
भीगे यौवन के अंग-अंग को होठों की तुला में तौल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

कंधे, स्तन, कम्मर, नितम्ब कई तरह से पकडे छोड़े गए
गीले स्तन सख्त हाथों से आंटे की भांति गूंथे गए
जल से भीगे नितम्बों को दांतों से काट-कचोट लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं बिस्मित सी सुन री ओ सखी साजन के बाँहों में सिमटी रही
साजन ने नख से शिख तक ही होठों से अति मुझे प्यार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

चुम्बनों से मै थी दहक गई जल-क्रीडा से बहकी मैं सखी
बरबस झुककर मुँह से मैंने साजन के अंग को दुलार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

चूमत-चूमत, चाटत-चाटत साजन पंजे पर बैठ गए
मैं खड़ी रही साजन ने होंठ नाभि के नीचे पहुँचाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे गीले से उस अंग से उसने जी भर के रसपान किया
मैंने कन्धों पे पाँवों को रख रस के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं मस्ती में थी डूब गई क्या करती हूँ न होश रहा
साजन के होठों पर अंग को रख नितम्बों को चहुँ ओर हिलोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन बहके-दहके-चहके मोहे जंघा पर ही बिठाय लिया
मैंने भी उसकी कम्मर को अपनी जंघाओं में फँसाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

जल से भीगे और रस में तर अंगों ने मंजिल खुद खोजी
उसके अंग ने मेरे अंग के अंतिम पड़ाव तक प्रवेश किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

ऊपर से जल कण गिरते थे नीचे दो तन दहक-दहक जाते
चार नितम्ब एक दंड से जुड़े एक दूजे में धँस-धँस जाते
मेरे अंग ने उसके अंग के एक-एक हिस्से को फांस लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

जैसे ब्रक्षों से लता सखी मैं साजन से लिपटी थी यों,
साजन ने गहन दबाव देकर अपने अंग से मुझे चिपकाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

नितम्बों को वह हाथों से पकडे स्पंदन को गति देता था
मेरे दबाव से मगर सखी वह खुद ही नहीं हिल पाता था
मैंने तो हर स्पंदन पर दुगना था जोर लगे दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

अब तो बस ऐसा लगता था साजन मुझमे ही समा जाएँ
होठों में होठ, सीने में बक्ष आवागमन अंगों ने खूब किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

कहते हैं कि जल से री सखी सारी गर्मी मिट जाती है
जितना जल हम पर गिरता था उतनी ही गर्मी बढाए दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

वह कंधे पीछे ले गया सखी सारा तन बाँहों पर उठा लिया
मैंने उसकी देखा-देखी अपना तन पीछे खीच लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

इससे साजन को छूट मिली साजन ने नितम्ब उठाय लिया
अंग में उलझे मेरे अंग ने चुम्बक का जैसे काम किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

हाथों से ऊपर उठे बदन नितम्बों से जा टकराते थे
जल में भीगे उत्तेजक क्षण मिरदंग की ध्वनि बजाते थे
साजन के जोशीले अंग ने मेरे अंग में मस्ती घोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..

खोदत-खोदत कामांगन को जल के सोते फूटे री सखी
उसके अंग के फब्बारे ने मोहे अन्तस्थल तक सींच दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..

फब्बारों से निकले तरलों से तन-मन दोनों थे तृप्त हुए
साजन के प्यार के उत्तेजक क्षण मेरे अंग-अंग में अभिव्यक्त हुए
मैंने तृप्ति की एक मोहर साजन के होठों पर लगाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..



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Angiya to sajan ne khola par uss ladki ki janghiya kaun khol ke bhag jata hai hai, bechara sajan har baar angiya hi khol pata hai... Iss par bhi prakash dal dijiyega
 
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