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हिंदी में एक सेक्सी कविता

nain11ster

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9.जब साजन ने खोली अंगिया - स्नानग्रह




स्नानगृह में जैसे ही नहाने को मैं निर्वस्त्र हुई
मेरे कानों को लगा सखी दरवाज़े पे दस्तक कोई हुई
धक्-धक् करते दिल से मैंने दरवाज़ा सखी री खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
आते ही साजन ने मुझको अपनी बाँहों में कैद किया
होठों को होठों में लेकर उभारों को हाथों से मसल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

फिर साजन ने सुन री ओ सखी फब्बारा जल का खोल दिया
भीगे यौवन के अंग-अंग को होठों की तुला में तौल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

कंधे, स्तन, कम्मर, नितम्ब कई तरह से पकडे छोड़े गए
गीले स्तन सख्त हाथों से आंटे की भांति गूंथे गए
जल से भीगे नितम्बों को दांतों से काट-कचोट लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं बिस्मित सी सुन री ओ सखी साजन के बाँहों में सिमटी रही
साजन ने नख से शिख तक ही होठों से अति मुझे प्यार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

चुम्बनों से मै थी दहक गई जल-क्रीडा से बहकी मैं सखी
बरबस झुककर मुँह से मैंने साजन के अंग को दुलार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

चूमत-चूमत, चाटत-चाटत साजन पंजे पर बैठ गए
मैं खड़ी रही साजन ने होंठ नाभि के नीचे पहुँचाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे गीले से उस अंग से उसने जी भर के रसपान किया
मैंने कन्धों पे पाँवों को रख रस के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

मैं मस्ती में थी डूब गई क्या करती हूँ न होश रहा
साजन के होठों पर अंग को रख नितम्बों को चहुँ ओर हिलोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन बहके-दहके-चहके मोहे जंघा पर ही बिठाय लिया
मैंने भी उसकी कम्मर को अपनी जंघाओं में फँसाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

जल से भीगे और रस में तर अंगों ने मंजिल खुद खोजी
उसके अंग ने मेरे अंग के अंतिम पड़ाव तक प्रवेश किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

ऊपर से जल कण गिरते थे नीचे दो तन दहक-दहक जाते
चार नितम्ब एक दंड से जुड़े एक दूजे में धँस-धँस जाते
मेरे अंग ने उसके अंग के एक-एक हिस्से को फांस लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

जैसे ब्रक्षों से लता सखी मैं साजन से लिपटी थी यों,
साजन ने गहन दबाव देकर अपने अंग से मुझे चिपकाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

नितम्बों को वह हाथों से पकडे स्पंदन को गति देता था
मेरे दबाव से मगर सखी वह खुद ही नहीं हिल पाता था
मैंने तो हर स्पंदन पर दुगना था जोर लगे दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

अब तो बस ऐसा लगता था साजन मुझमे ही समा जाएँ
होठों में होठ, सीने में बक्ष आवागमन अंगों ने खूब किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

कहते हैं कि जल से री सखी सारी गर्मी मिट जाती है
जितना जल हम पर गिरता था उतनी ही गर्मी बढाए दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

वह कंधे पीछे ले गया सखी सारा तन बाँहों पर उठा लिया
मैंने उसकी देखा-देखी अपना तन पीछे खीच लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

इससे साजन को छूट मिली साजन ने नितम्ब उठाय लिया
अंग में उलझे मेरे अंग ने चुम्बक का जैसे काम किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.

हाथों से ऊपर उठे बदन नितम्बों से जा टकराते थे
जल में भीगे उत्तेजक क्षण मिरदंग की ध्वनि बजाते थे
साजन के जोशीले अंग ने मेरे अंग में मस्ती घोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..

खोदत-खोदत कामांगन को जल के सोते फूटे री सखी
उसके अंग के फब्बारे ने मोहे अन्तस्थल तक सींच दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..

फब्बारों से निकले तरलों से तन-मन दोनों थे तृप्त हुए
साजन के प्यार के उत्तेजक क्षण मेरे अंग-अंग में अभिव्यक्त हुए
मैंने तृप्ति की एक मोहर साजन के होठों पर लगाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..



The 🔚.
Waise ab holi aa gayi hogi... Sajan ne angiya khol kar jo kamal dikhaya hai ummid hai choli tak to ladki pahunch hi gayi hogi...

Khol bahut liya ab thoda fadwa bhi dijiye aur iss baar sajan ko kahiyega bhare par aadmi na bulaye aur pure kapde khud hi khole
 

mate4u

New Member
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हैलो दोस्तों.
ये कविता मेरी तो नहीं है पर इसका श्रेय इसके असली लेखक को जाता है.


1.जब साजन ने खोली अँगिया - मैके में मन की बात



मैं मैके अपने आई सखी, कई दिन साजन से दूर रही
मन मयूर मेरा नाच उठा, जब साजन मेरे घर आया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
एकांत जगह मेरे घर में, बाँहों में मुझको कैद किया

मेरे होठों को होठों से, सखी जोंक की भांति जकड लिया
मैं भी न चाहूँ होंठ हटें, साजन को करीब और खीच लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
कुछ हलचल हुई, मैं चौंक गई, साजन को परे हटाय दिया

रात में मिलूंगी साजन ने, सखी मुझसे वादा धराय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

जैसे-तैसे तो शाम हुई, रात्रि तो मुझे बड़ी दूर लगी
होते ही रात सखी साजन को, बहनों ने मेरी घेर लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
हँसी ठिठोली बहनों की, मुझको बिलकुल न भाई सखी

सिरदर्द के बहाने मैंने तो, बहनों से किनारा काट लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अपने कमरे में आकर मैं, सखी बिस्तर पर थी लेट गई
बंद करके आँखें पड़ी रही, साजन के सपनो में डूब गई

हर आहट पर सखी मैंने तो, साजन को ही आते पाया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

दरवाज़े खुले फिर बंद हुए, कुण्डी उन पर सरकाई गई
मैं जान – बूझकर सुन री सखी, निद्रा-मुद्रा में लेट गई

साजन की सुगंध को मैंने तो, हर साँस में था महसूस किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने बैठकर बिस्तर पर, मेरे कंधे सहलाए सखी
गालों पर गहन चुम्बन लेकर, अंगिया की डोर को खींच दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
नग्न पीठ पर साजन ने, ऊँगली से रेखा खींच दई

बिजली जैसे मुझमे उतरी, सारे शरीर में दौड़ गई
निस्वास लेकर फिर मैंने तो, अपनी करवट को बदल लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
करवट तो मात्र बहाना था, बैचेन बदन को चैन कहाँ

मुझे साजन की खुसबू ने सखी, अंग लगने को मजबूर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

एक हाथ से उसने सुन ओ सखी, स्तन दबाये और भीच लिया
मैंने गर्दन को ऊपर कर, उसके हाथों को चूम लिया.



दोनों बाँहों से भीच मुझे, साजन ने करीब और खींच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने जोर लगा करके, मोहे अपने ऊपर लिटा लिया
मेरे तपते होठों को उसने, अपने होठों में कैद किया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसने भींचा मेरा निचला होंठ, मैंने ऊपर का भींच लिया

दोनों के होंठ यूँ जुड़े सखी, जिह्वाओं ने मिलन का लुत्फ़ लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने उठाकर मुझे सखी, पलंग के नीचे फिर खड़ा किया
खुद बैठा पलंग किनारे पर, मेरा एक-एक वस्त्र उतार दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मुझे पास खींचकर फिर उसने, स्तनों के चुम्बन गहन लिया

दोनों हाथों से नितम्ब मेरे, सख्ती से दबाकर भींच लिया
कई तरह से उनको सहलाया, कई तरह से दबाकर छोड़ दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
स्तन मुट्ठी में जकड सखी, उसने उनको था उभार लिया

उभरे स्तन को साजन ने, अपने मुंह माहि उतार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

बोंडियों को जीभ से उकसाया, होठों से पकड़ उन्हें खींच लिया
रस चूसा सखी उनसे जी भर, मेरी काम- क्षुधा भड़काय दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन का दस अंगुल का अंग, सखी मेरी तरफ था देख रहा

उसकी बेताबी समझ सखी, मैंने उसको होठास्थ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

पलंग के कोर बैठा साजन, मैं नीचे थी सखी बैठ गई
साजन के अंग पर जिह्वा से, मैंने तो चलीं कई चाल नई

वह ओह-ओह कर चहुंक उठा, मैंने अंग को ऐसा दुलार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अब सब कुछ था बिपरीत सखी, साजन नीचे मैं पलंग कोर
जिस तरह से उसने चूसे स्तन, उसी तरह से अंग को चूस लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसने अपनी जिह्वा से सखी, अंग को चहूँ ओर से चाट लिया

बहके अंग के हर हिस्से को, जिह्वा- रस से लिपटाय दिया
रस में डूबे मेरे अंग में, अन्दर तक जिह्वा उतार दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैं पलंग किनारा पकड़ सखी, अंग को उभार कर खड़ी हुई.




साजन ने मेरे नितम्बों पर, दांतों से सिक्के छाप दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

उसके बिपरीत मुख करके सखी, घुटनों के बल मैं बैठ गई
कंधे तो पलंग पर रहे झुके, नितम्बों को पूर्ण उठाय दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने झुककर पीछे से, अंग ऊपर से नीचे चाट लिया

खुले-उभरे अंग में उसने, जिह्वा को अंग बनाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने अपने अंग से सखी, मेरे अंग को जी भरके रगडा
अंग से स्रावित रस में अंग को, सखी पूर्णतया लिपटाय लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
कठोर -सख्त अंग से री सखी, रस टपक-टपक कर गिरता था

दस अंगुल की चिकनी सख्ती, मेरे अंग के मध्य घुसाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

जांघों के सहारे उठे नितम्ब, अब स्पंदन का सुख भोग रहे
स्पंदन की झकझोर से फिर, स्तन दोलन से डोल रहे

सीत्कार, सिसकी, उई, आह, ओह, सब वातावरण में घोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

ऐसे स्पंदन सखी मैंने, कभी सोचे न महसूस किये
पूरा अंग बाहर किया सखी, फिर अन्तस्थल तक ठेल दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैंने अंग में महसूस करी, अंग की कठोर पर मधुर छुहन

अंग की रसमय मधुशाला में, अंग ने अंग को मदहोश किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

पहले तो थे धीरे-धीरे, अब स्पंदन क्रमशः तेज हुए
अंग ने अब अंग के अन्दर ही, सुख के थे कई-कई छोर छुए

तगड़े गहरे स्पंदन से, मेरा रोम-रोम आह्लाद किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने अब जिह्वा रस की, एक धारा नितम्ब मध्य टपकाई
उसकी सारी चिकनाई सखी, हमरे अंगों ने सोख लई

चप-चप, लप-लप की ध्वनियों से, सुख के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

जैसे-जैसे बड़े स्पंदन, वैसे-वैसे आनंद बड़ा
हर स्पंदन के साथ सखी, सुख घनघोर घटा सा उमड़ पड़ा

साजन की आह ओह के संग, मैंने आनंदमय सीत्कार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

वारिस होने के पहले ही, सखी मेरा बांध था टूट गया
मेरी जांघों ने जैसे की, नितम्बों का साथ था छोड़ दिया

अंग का महल ढह गया सखी, दीर्घ आह ने सुख अभिव्यक्त किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरे नितम्बों के आँगन पर, साजन ने मोती बिखेर दिया
साजन के अंग ने मेरे अंग को, सखी अद्भुत यह उपहार दिया

आह्लादित साजन ने नितम्बों का, मोती के रस से लेप किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मोती रस से मेरी काम अगन, मोती सी शीतल हुई सखी
मन की अतृप्त इस धरती पर, घटा उमड़-उमड़ कर के बरसी

मैंने साजन का सिर खीच सखी, अपने बक्षों में छुपाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
Too Good
 

Coquine_Guy

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वो दुल्हन ही क्या जिसके गाल लाल ना हों


वो दूल्हा ही क्या जिसके सीने पर बाल ना हों

सुहागरात तो कहानी है मसले हुए फूलों की

और मर्द के हाथों से कुचले हुए लाल सुर्ख कूल्हों की
 

DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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अर्ज किया है मुलायजा और गाड फैलायियेगा :D

रंगीन रातो का इशारा हो तुम
राह - ए - मुहब्बत का किनारा हो तुम
ले चलो हमे भी अपने शहर अब
इन उठी हुई मिनारो का सहारा हो तुम
 
  • Haha
Reactions: Yug Purush

Geralt of Rivia

The Witcher
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दिन रात खूब चुदाए
मुंह में लेने से भी न घबराए
लंड पिया का झड़ झड़ जाए
ऐसे उछाल उछाल के जो चुदवाए
दुल्हन वही पिया मन भाए
 

Coquine_Guy

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हैलो दोस्तों.
ये कविता मेरी तो नहीं है पर इसका श्रेय इसके असली लेखक को जाता है.



मेरी चोली को सीना संभाल के
मेरी चोली को सीना संभाल के
हो दर्ज़ी…
जाना है कल ससुराल
अरे मोहे जाना है कल ससुराल

आज मेरे सैंया का आया बुलावा
आज मेरे सैंया का आया है बुलावा
सुनो, आया बुलावा
हो गई मैं तो निहाल
अरे मोहे जाना है कल ससुराल
मेरी चोली को…
मेरी चोली को सीना संभाल के
हो दर्ज़ी…
जाना है कल ससुराल
अरे मोहे जाना है कल ससुराल

लाख टक्के की मैं हूँ गोरी दुल्हनिया
लगा मोहे सोलवाँ साल
पल पल मोरी झुकी जाए रे नज़रिया
डग-मग होय रही मोरी चाल
हो ओ…
ऐसे बना दे चोली
ऐसे बना दे चोली
ननदी भी चौंके मेरी
जेठानी भी चौंके मेरी
देवरानी भी चौंके मेरी
सैंया जी बोले कमाल
अरे मोहे जाना है कल ससुराल
मेरी चोली को…
मेरी चोली को सीना संभाल के
हो दर्ज़ी…
जाना है कल ससुराल
अरे मोहे जाना है कल ससुराल!
 
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रसिक चिकित्सक

⚡🅳🆁 🆅🅰🆃🆂🆈🅰🆈🅰🅽🅰🐾
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दुपट्टे के झरोखे से छुप-छुपकर दीदार करते हैं।
ऐ दिलरूबा! हम तुम्हारी चूचियों से बहुत प्यार करते हैं।।

अभी दो साल पहले ही ये टेनिस के बाल के बराबर थे,
अब तो वालीबाल को भी मात ये आकार करते हैं।

अपना आम मुझे खिलाओं ये खाने का मौसम भी है,
मेरे जीभ और दाँत बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।

तुम भी रगड़वाने के लिए अक्सर बेताब रहती हो,
तुम्हारी आँखों से ये बात मालूम ऐ यार करते हैं।

कभी न कभी तुम अपना दुद्धु जरूर
पिलाओगी मुझे,
इस बात का एक-सौ-एक फीसदी एतबार करते हैं।

तुम्हारे गेंदो की याद में हम अपना बल्ला सहलाते हैं,
और छत पर इकसठ-बासठ बार-बार करते हैं।

मेरा ‘वो’ अपनी घाटियों के बीच दबा लो जी,
हम कई महीनों से तुमसे यही गुहार करते है।

कोई और होता तो जबरदस्ती चोद देता अब-तक,
लेकिन हम कभी जबरदस्ती नहीं सरकार करते हैं।
 
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Reactions: jagdeepverma. iaf
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अठरा बरस की कुंवारी कली थी
घूँघट में मुखड़ा छुपाके चली थी
अठरा बरस की कुंवारी कली थी
घूँघट में मुखड़ा छुपाके चली थी
चुदी गोरी
चुदी गोरी चने के खेत में
हुयी चौड़ी चने के खेत में

पेहेले तो ज़ुल्मी ने पकड़ी कलाई
फिर उसने चुपके के चूची दबायी
पेहेले तो ज़ुल्मी ने पकड़ी कलाई
फिर उसने चुपके के चूची दबायी
चोदा चोदी
चोदा चोदी चने के खेत में
हुयी चौड़ी चने के खेत में
 

Coquine_Guy

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सुहागरात तो है एक ऐसी कशमकश दो जिस्मों की
जैसे जुगलबंदी हो मूसल और इमामदस्ते की
जो भी इनके बीच में आए, हो जाए उसकी कुटाई,
फिर चाहे वो हो मीठी मीठी मिसरी या हो खट्टी खटाई..​

 
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