nain11ster
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Waise ab holi aa gayi hogi... Sajan ne angiya khol kar jo kamal dikhaya hai ummid hai choli tak to ladki pahunch hi gayi hogi...9.जब साजन ने खोली अंगिया - स्नानग्रह
स्नानगृह में जैसे ही नहाने को मैं निर्वस्त्र हुई
मेरे कानों को लगा सखी दरवाज़े पे दस्तक कोई हुई
धक्-धक् करते दिल से मैंने दरवाज़ा सखी री खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
आते ही साजन ने मुझको अपनी बाँहों में कैद किया
होठों को होठों में लेकर उभारों को हाथों से मसल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
फिर साजन ने सुन री ओ सखी फब्बारा जल का खोल दिया
भीगे यौवन के अंग-अंग को होठों की तुला में तौल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
कंधे, स्तन, कम्मर, नितम्ब कई तरह से पकडे छोड़े गए
गीले स्तन सख्त हाथों से आंटे की भांति गूंथे गए
जल से भीगे नितम्बों को दांतों से काट-कचोट लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
मैं बिस्मित सी सुन री ओ सखी साजन के बाँहों में सिमटी रही
साजन ने नख से शिख तक ही होठों से अति मुझे प्यार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
चुम्बनों से मै थी दहक गई जल-क्रीडा से बहकी मैं सखी
बरबस झुककर मुँह से मैंने साजन के अंग को दुलार किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
चूमत-चूमत, चाटत-चाटत साजन पंजे पर बैठ गए
मैं खड़ी रही साजन ने होंठ नाभि के नीचे पहुँचाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
मेरे गीले से उस अंग से उसने जी भर के रसपान किया
मैंने कन्धों पे पाँवों को रख रस के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
मैं मस्ती में थी डूब गई क्या करती हूँ न होश रहा
साजन के होठों पर अंग को रख नितम्बों को चहुँ ओर हिलोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
साजन बहके-दहके-चहके मोहे जंघा पर ही बिठाय लिया
मैंने भी उसकी कम्मर को अपनी जंघाओं में फँसाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
जल से भीगे और रस में तर अंगों ने मंजिल खुद खोजी
उसके अंग ने मेरे अंग के अंतिम पड़ाव तक प्रवेश किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
ऊपर से जल कण गिरते थे नीचे दो तन दहक-दहक जाते
चार नितम्ब एक दंड से जुड़े एक दूजे में धँस-धँस जाते
मेरे अंग ने उसके अंग के एक-एक हिस्से को फांस लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
जैसे ब्रक्षों से लता सखी मैं साजन से लिपटी थी यों,
साजन ने गहन दबाव देकर अपने अंग से मुझे चिपकाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
नितम्बों को वह हाथों से पकडे स्पंदन को गति देता था
मेरे दबाव से मगर सखी वह खुद ही नहीं हिल पाता था
मैंने तो हर स्पंदन पर दुगना था जोर लगे दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
अब तो बस ऐसा लगता था साजन मुझमे ही समा जाएँ
होठों में होठ, सीने में बक्ष आवागमन अंगों ने खूब किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
कहते हैं कि जल से री सखी सारी गर्मी मिट जाती है
जितना जल हम पर गिरता था उतनी ही गर्मी बढाए दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
वह कंधे पीछे ले गया सखी सारा तन बाँहों पर उठा लिया
मैंने उसकी देखा-देखी अपना तन पीछे खीच लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
इससे साजन को छूट मिली साजन ने नितम्ब उठाय लिया
अंग में उलझे मेरे अंग ने चुम्बक का जैसे काम किया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया.
हाथों से ऊपर उठे बदन नितम्बों से जा टकराते थे
जल में भीगे उत्तेजक क्षण मिरदंग की ध्वनि बजाते थे
साजन के जोशीले अंग ने मेरे अंग में मस्ती घोल दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..
खोदत-खोदत कामांगन को जल के सोते फूटे री सखी
उसके अंग के फब्बारे ने मोहे अन्तस्थल तक सींच दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..
फब्बारों से निकले तरलों से तन-मन दोनों थे तृप्त हुए
साजन के प्यार के उत्तेजक क्षण मेरे अंग-अंग में अभिव्यक्त हुए
मैंने तृप्ति की एक मोहर साजन के होठों पर लगाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी जब साजन ने खोली अँगिया..
The .
Khol bahut liya ab thoda fadwa bhi dijiye aur iss baar sajan ko kahiyega bhare par aadmi na bulaye aur pure kapde khud hi khole