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हिंदी में एक सेक्सी कविता

Lundwalebaba

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8.जब साजन ने खोली अंगिया - 69



साजन की गोद में सिर मेरा, आवारा साजन के हाथ सखी
ऊँगली के कोरों से उसने, स्तन को तोड़ मरोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
फिर साजन ने सिर पीछे से, होठों को मेरे चूम लिया
कुछ और आगे बड़ स्तन पर, चुम्बन की झड़ी लगाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन अब थोड़ा और बड़े, चुम्बन नाभि तक जा पहुंचे
नाभि के नीचे भी चुम्बन, मेरा अंग-अंग थर्राय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मैंने सोचा अब क्या होगा, उई माँ!, क्या मैंने सोच लिया
कुछ और सोचूं उससे पहले, साजन ने होंठ टिकाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरी जंघाएँ फ़ैल गईं, जैसे इस पल को मै आतुर थी
मै कुस्मुसाई, मै मचल उठी, मैंने खुद को व्याकुल पाया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

नितम्बों के नीचे पंजे रखकर, उनको ऐसा मसला री सखी
मेरे अंग को जल में भीगे, कमल-दल की तरह खिलाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

शायद इतना काफी न था, साजन ने आगे का सोच रखा
जिह्वा से मेरे अंग को उसने, उचकाय दिया, उकसाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

उसके नितम्ब मुख के समीप, अंग जैसे था फुफकार रहा
मैंने फुफकारते उस अंग को, अपने मुंह माहि खींच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

चहुँ ओर से मेरा अंग खुला, उसने “जिह्वा-जीव” को छोड़ दिया
वह इतने अन्दर तक जा पहुंची, रोम -रोम में मेरे रस सींच दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मै तो जैसे बेसुध थी सखी, कुछ सोच रही न सूझ रहा
उसके उस अंग को मैंने तो, अमवा की भांति चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

जिह्वा उसकी अंग के अन्दर, और अन्दर ही जा धंसती थी
मदहोशी के आलम में उसने, सिसकारी लेने को विवश किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे भी अंग मचलते थे, मेरे भी नितम्ब उछलते थे
साजन ने अपना मुंह चौड़ाकर, सर्वस्व अन्दर था खींच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अब सब कुछ साजन के मुख में था, जिह्वा अंग में थी नाच रही
“काम- शिखर” पे आनंद चढ़ा, रग-रग में हिलोरें छोड़ गया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

दोनों के मुख से “आह-प्रवाह”, साजन के अंग से रस बरसा
साजन ने अपने ‘अंग- रंग’ से, मुख को मेरे सराबोर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

हम निश्चल से आपस में लिपटे, उस पल के बारे में सोच रहे
जिस पल में अपना सब खोकर, एक दूजे का सब पाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अब मेरे मन में कोई प्रश्न न था, मैंने सब उत्तर पाए सखी
इस उनहत्तर (69)से उनके मुख से, कोटि सुख मुझमें समाये सखी
ऐसे साजन पर वारी मै, जिसने अद्भुत ये प्यार दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
तुम्हारी कविता पढ़कर तुम्हारी गाँड़ देखने का मन हो गया
 
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मेरी पहली सुहागरात थी

सपनों से मुलाकात थी

उत्सुकता बढ़ी थी कि

कब उसका दीदार कर लूँ

जी भर कर उसे प्यार कर लूँ

मारे उमंग के मैं उस कमरे घुस गया

विशाल काया को देखकर एक पल मैं रूक गया

पर दूसरे पल जाने कहाँ मेरा सारा प्रेम गया

चिलमन उठाकर देखा तो वो हुंकार भर रही थी

मुक्का तान कर वो अपने प्यार का इजहार कर रही थी

भीमकाय काया देखकर मेरा बदन कांप गया

डर के मारे मैं निकलकर चिरकुट की तरह भाग गया

कमसिन कली थी पर ग्रेट खली थी

लगता था वो दारा सिंह के स्कूल में पढ़ी थी

भागा हुआ मैं अपने दोस्त के यहाँ पहुँच गया

देखकर वहाँ मुझे वह संकोच से भर गया

और बोला यार बता तू क्यों क्लास छोड़कर भाग आया

मैंने कहा यार मैं सुहागरात नहीं मनाऊँगा

जानबूझ कर मैं मौत के मुँह में ना जाऊँगा

मेरा मित्र बोला चिंता न कर यार, मैं मित्रता निभाऊँगा

तेरी जगह सुहागरात मनाने मैं चला जाऊँगा

मित्र की बात सुनकर मैं कृतज्ञ हो गया

ऐसा मित्र पाकर मैं धन्य हो गया

मैंने कहा कि यार तेरा कर्ज किस जनम चुकाऊँगा

उसने कहा चिन्ता न कर अगले जन्म तेरे लिए शादी मैं रचाऊँगा

क्या करूँ विलम्ब के लिए खेद है बहुत

पर रंडुआ हूं यार इस जनम मैं मौका नहीं दे पाऊँगा।
 

Coquine_Guy

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ओढ़ो दुपट्टा गोरिया अब, यौवना तुम पर चढ़ी।
कूल्हे भरावट ले रहें है, चूचि जाती है बढ़ी।
कामुक छँटा भरने लगी है, मस्त इन नीगाह में।
छेड़ेंगे बचके अब नहीं तुँ, जो चलेगी राह में।

कामुक अदा के जाल से ये, दिल हमारा फाँसना।
ये प्यार है या उम्र की तन, में दहकती वासना।
क्या माँगती है ज्ञात है रे, बात ये गोरी मुझे।
तू चाहती है लिंग जी भर, के चुदाना है तुझे।

माँगू विकल होकर मगर वो, चूत ही देती नहीं।
चोदे बिना संतान की तो, हो कभी खेती नहीं।
लिंगों से डरकर भागती हैं, जो सुहागिन नारियाँ।
आनन्द से वंचित रहें है, वो सदा बेचारियाँ।

कोठे पे जाकर बैठ जा जो, चाह पैसों की लगी।
सोती है कम तुँ रात को है, नींद आँखों से भगी।
घर भर मिले चाहे यहाँ पर, कौड़ि के इतना मिले।
संतुष्ट रहना सीख ले हाँ, धन तुझे जितना मिले।

मुझको मिली ये चूत प्यारे, सुन बड़ी तक़दीर से।
बँधकर नहीं रहते समाजों, की अगर जंज़ीर से।
हम चोद ही देते अभी इस, माल को हर हाल में।
बदलाव आ जाता कसम से, मस्त इसकी चाल में।

वैज्ञानिकों का कुछ नया अब, एक अनुसंधान हो।
चेहरा निरखकर लंड की औ, चूत की पहचान हो।
इससे रूकेंगे हो रही बे, मेल की अब शादियाँ।
 

Pussycat

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वो दुल्हन ही क्या जिसके गाल लाल ना हों


वो दूल्हा ही क्या जिसके सीने पर बाल ना हों

सुहागरात तो कहानी है मसले हुए फूलों की

और मर्द के हाथों से कुचले हुए लाल सुर्ख कूल्हों की
Kya baat ha ? Lucknowi sayar ho yaar
 

Coquine_Guy

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