Shetan
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“ठीक है दीदी, मान गये की आपका देवर देवर ही है लेकिन हम लोग अब मिल के उसे ननद बना देते हैं…”
रसिया को नारि बनाऊँगी
“एकदम…” उसकी सारी सहेलियां बोलीं।
फिर क्या था कोई चूनरी लाई कोई चोली। उसने गाना शुरू किया-
रसिया को नारि बनाऊँगी रसिया को
सर पे उढ़ाई सबुज रंग चुनरी,
पांव महावर सर पे बिंदी अरे।
अरे जुबना पे चोली पहनाऊँगी।
साथ-साथ में उसकी सहेलियां, भाभियां मुझे चिढ़ा-चिढ़ा के गा रही थीं। कोई कलाइयों में चूड़ी पहना रही थी तो कोई अपने पैरों से पायल और बिछुये निकाल के। एक भाभी ने तो करधनी पहना दी तो दूसरी ने कंगन। भाभी भी… वो बोलीं- “ब्रा तो ये मेरी पहनता ही है…” और अपनी ब्रा दे दी।
चंपा भाभी की चोली… उर्मी की छोटी बहन रूपा अंदर से मेकप का सामान ले आयी और होंठों पे खूब गाढ़ी लाल लिपिस्टक और गालों पे रूज लगाने लगी तो उसकी एक सहेली नेल पालिश और महावर लगाने लगी। थोड़ी ही देर में सबने मिल के सोलह सिंगार कर दिया।
चंपा भाभी बोलीं- “अब लग रहा है ये मस्त माल। लेकिन सिंदूर दान कौन करेगा?”
कोई कुछ बोलता उसके पहले ही उर्मी ने चुटकी भर के… सीधे मेरी मांग में। कुछ छलक के मेरी नाक पे गिर पड़ा। वो हँसकर बोली- “अच्छा शगुन है… तेरा दूल्हा तुझे बहुत प्यार करेगा…”
हम दोनों की आंखों से हँसी छलक गई।
अरे इस नयी दुलहन को जरा गांव का दर्शन तो करा दें। फिर तो सब मिल के गांव की गली डगर… जगह जगह और औरतें, लड़कियां, रंग कीचड़, गालियां, गानें।
किसी ने कहा- “अरे जरा नयी बहुरिया से तो गाना सुनवाओ…”
मैं क्या गाता, लेकिन उर्मी बोली- “अच्छा चलो हम गातें है तुम भी साथ-साथ…” सबने मिल के एक फाग छेड़ा-
रसरंग में टूटल झुलनिया
रस लेते छैला बरजोरी, मोतिन लर तोरी।
मोसो बोलो ना प्यारे… मोतिन लर तोरी।
सबके साथ मैं भी… तो एक औरत बोली- “अरे सुहागरात तो मना लो…” और फिर मुझे झुका के… पहले चंपा भाभी फिर एक दो और औरतें।
कोई बुजुर्ग औरत आईं तो सबने मिल के मुझे जबरन झुका के पैर भी छुलवाया तो वो आशीष में बोलीं- “अरे नवें महीने सोहर हो… दूधो नहाओ पूतो फलो। बच्चे का बाप कौन होगा?”
तो एक भाभी बोलीं- “अरे ये हमारी ननद की ससुराल वाली सब छिनाल हैं, जगह-जगह…”
तो वो बोली- “अरे लेकिन सिंदूर दान किसने किया है नाम तो उसी का होगा, चाहे ये जिससे मरवाये…”
सबने मिल के उर्मी को आगे कर दिया। इतने में ही बचत नहीं हुई। बच्चे की बात आई तो उसकी भी पूरी ऐक्टिंग… दूध पिलाने तक।
फागुन दिन रात बरसता। और उर्मी तो… बस मन करता था कि वो हरदम पास में रहे… हम मुँह भर बतियाते… कुछ नहिं तो बस कभी बगीचे में बैठ के कभी तालाब के किनारे… और होली तो अब जब वह मुझे छेड़ती तो मैं कैसे चुप रहता… जिस सुख से उसने मेरा परिचय करा दिया था। तन की होली मन की होली… मेरा मन तो सिर्फ उसी के साथ… लेकिन वह खुद मुझे उकसाती।
Dewarji bhi kam nahi. Budhu nare anadi. Par he bahot pyare