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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; ...
 
Last edited:

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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सबसे पहले इस बेहतरीन कहानी को शुरू करने के लिए धन्यवाद।

अभी कहानी शुरुआत में है तो कहने के लिए बहुत कुछ नहीं है but definitely I am very eager to know how will Ajay use this chance and shape his life perfectly again।

मुझे मौका मिलता तो मैं bit coin खरीदता और भी बहुत कुछ, लेकिन बस एक चीज करने को मिलता यही करता।

खैर नियति का लिखा कोई नहीं बदल सकता, देखते है अजय बाबू इस को गलत सिद्ध कर पाते है या नहीं


प्रतीक्षा अगले अपडेट की

बहुत बहुत धन्यवाद भाई! :)
सभी लोग धनाढ्य होना चाहते हैं, तो यह ऐसी अनहोनी इच्छा नहीं है! (वैसे, मैं रियल एस्टेट में ही इन्वेस्ट करता तब भी)
साथ बने रहिए! कहानी में बिना फिलॉसोफी झाड़े, यह कहानी लिख नहीं सकता। ;) हा हा!
इसलिए भविष्य से भूत में जाने के परिणामों पर चर्चा अवश्य करूँगा।
 

avsji

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Bhai aapki kahani korean drama again my life ki yaad dila rahi hai. Mujhe is tarah ki stories bohat pasand hai. Keep it up.

आपका कमेंट पढ़ कर मैंने गूगल किया।
हाँ - बेस पर मिलता तो है प्लाट! मैंने पहले भी कहीं लिखा है कि इस विषय वस्तु पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है।
लेकिन कोशिश यही रहेगी कि मैंने थोड़ा सा अलग बातें लिख सकूँ।
और, मेरी ट्रेडमार्क स्टाइल आपको बहुत मिलेगी देखने को इसमें भी।
लेकिन, कहानी अभी शुरू शुरू में ही है, अभी तो बहुत दूर जाना है :)
साथ बने रहें!
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अपडेट 13


चूँकि टिक्कियों और छोले से सभी का पेट भर गया था, इसलिए निर्णय लिया गया कि आज रात खाना नहीं पकेगा। अगर भूख लगेगी, तो दोपहर के भोजन और छोलों से काम चला लिया जाएगा। बढ़िया बात थी!

अपने कमरे में आ कर अजय ने कपड़े बदलने लगा। कॉलेज से आने के बाद से ही वो कॉलेज की यूनिफार्म में ही था। माँ ने जब आँखें तरेरीं, तब वो भाग कर यूनिफॉर्म बदलने अपने कमरे में आ गया। उसने महसूस किया कि शायद माया दीदी भी अपने कमरे में हैं इस समय।

हाँ, शुरू शुरू में माया दीदी अजय के कमरे में ही रहती थीं, लेकिन अब बात बदल गई थी। एक सायानी लड़की का अपना कमरा होना चाहिए, इसलिए उनके लिए कुछ सालों पहले एक नया कमरा बनवा दिया गया था। वो कमरा अजय के कमरे के बगल ही था। वो अक्सर रात में आ कर अजय को चेक कर के जाती थी। कभी कभी जब रात में कम्बल उसके ऊपर से हट जाता था, तो माया दीदी उसको ओढ़ा देती थीं।

कपड़े बदलते बदलते, अचानक ही अजय के मन में एक विचार आया --

कहीं ऐसा तो नहीं कि वो केवल एक दिन के लिए ही अपने भूतकाल में वापस आया है?

यह विचार आते ही उसका दिल बैठ गया।

कहाँ वो अपने मन में अनेकों मिशन ले कर बैठ गया था कि वो ये कर देगा, वो कर देगा... लेकिन अगर उसकी चेतना केवल एक रात या एक दिन के लिए ही पीछे आई है, तब तो उसने आज का पूरा समय ही व्यर्थ गँवा दिया!

‘हे प्रभु’, यह विचार आते ही अजय का दिल वाक़ई बैठ गया, ‘मतलब वापस आने का कोई मतलब ही नहीं रहा!’

‘कितने सारे काम करने थे, और कुछ भी नहीं किया!’ उसने सोचा।

आठवीं क्लास में एक टीचर ने कई बार समझाया था अजय को कि काल करे सो आज कर, आज करे सो अब... पल में परलय होवैगी, बहुरि करोगे कब? उस समय तक ये बातें समझ में नहीं आती थीं। लेकिन अब, जब यह ख़याल अजय के मन में आया, तो उसको समझ में आया कि कैसे समय का हर क्षण अनमोल होता है। उसका आवश्यकतानुसार उपयोग होना आवश्यक है।

‘आज ही सब ठीक कर दूँगा,’ अजय ने ठान लिया।

उसने अपनी नोटबुक में कुछ लिखना शुरू किया और पाँच मिनट बाद जब सब कुछ लिख लिया, तो उसने अलग अलग पन्नों को अलग अलग लिफ़ाफ़ों में डाल दिया। इसी तरह के एक लिफ़ाफ़े को उसने अपनी नेकर की पॉकेट में रख लिया।

‘कहाँ से शुरू करे वो?’ उसने सोचा।

उत्तर तुरंत मिल गया, ‘माया दीदी!’

सबसे पहले उसके मन में यह विचार आया, ‘क्यों उसने माया दीदी को इतने दुःख दिए?’

उस विचार के साथ ही साथ अजय की आँखों में आँसू आ गए। और जल्दी से कपड़े चेंज कर के माया दीदी के कमरे में चला गया।

उसने दुःख के घूँट भरते हुए दरवाज़े को हल्के से धकेला।

माया इस समय अपने कपड़े बदल रही थी। वो इस समय पतली सी स्पोर्ट्स ब्रेज़री और निक्कर पहने हुए थी, और अपनी अलमारी में अपने पहनने के लिए टी-शर्ट ढूंढ रही थी। लेकिन यह कोई अनहोनी बात नहीं थी। माया ने अजय को कई बार निर्वस्त्र देखा हुआ था और अजय ने भी। माया ने अनगिनत बार अजय को नहलाया था। अभी भी नहला देती थी - ख़ास कर सप्ताहांत में। नहलाते समय वो हमेशा ही उसको पूर्ण निर्वस्त्र कर देती थी। स्वयं भी हो जाती थी। किशोरवय अजय, माया को चाहे कितना भी नापसंद करता रहा हो, सच तो यह था कि चूँकि माया उससे बड़ी थी, लिहाज़ा उसके पास परिवार की तरफ़ से अनेकों अधिकार प्राप्त थे।

आहट पा कर वो पलटी, “बाबू?”

लेकिन वयस्क अजय ने आख़िरी बार माया दीदी को कब निर्वस्त्र देखा था, अब उसको याद नहीं था। लिहाज़ा अजय ने नोटिस किया कि माया दीदी काफ़ी छरहरी हैं। हाँ, उनका साँवला रंग त्वचा में गहरे तक था। वो इसलिए क्योंकि सत्रह अट्ठारह साल की उम्र तक उन्होंने सड़क पर खेल तमाशे दिखाए। सूरज की कड़ी धूप उनकी त्वचा के बेहद अंदर तक घुस गई थी। लेकिन जो जो स्थान उससे अछूते थे, वो सामान्य से साफ़ थे। शरीर अब अच्छा हो गया था। बचपन के कुपोषण का उनके शरीर पर थोड़ा दुष्प्रभाव तो अवश्य पड़ा था, लेकिन इन हालिया समय में वो कम हो गया था। नट वाले तमाशे खेलने दिखाने में उनको बहुत सी चोटें आई थीं - बाहरी भी और अंदरूनी भी। उनको आवश्यक टीके इत्यादि भी कभी नहीं लगाए गए थे। लिहाज़ा कुछ समय तक उनको चिकित्सा वाली देखरेख में रखा गया। अब वो पूरी तरह से स्वस्थ हो गई थीं।

“क्या हो गया बाबू?” माया ने अजय को अपनी ओर इस तरह से देखते हुए देख कर और उसकी आँखों में आँसुओं को देख कर चिंतातुर होते हुए पूछा।

“कुछ नहीं दीदी,” अजय ने थोड़ा मुश्किल से कहा, और फिर अचानक से ही फ़फ़क फफक कर रोते हुए वो उनके पैरों पर गिर गया... और उनके पैरों को पकड़े हुए ही कहने लगा, “... आई ऍम सो सॉरी, दीदी! मैंने तुमको बहुत दुःख हुए हैं! आई ऍम सो सॉरी!”

यह माफ़ी उसने अपने हृदय की सच्चाई से मांगी थी।

अपनी शादी से पहले तक उसका रवैया माया को ले कर पूरी तरह से उदासीन ही रहा था। उसके बाद भी कुछ ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ। लेकिन माया दीदी ने कभी उसका साथ नहीं छोड़ा था। अपने काईयाँ पति के होते हुए भी! काश कि उसने कुछ कहा होता; कुछ किया होता! क्यों नहीं किया उसने कुछ उनको उस अंधे कुएँ में गिरने से बचाने के लिए!?

“अरे... ऐसे क्यों बोलता है रे तू?” माया के स्वर में दुलार, ममता, और लाड़ वाले भाव आने में एक क्षण भी नहीं लगा, “मेरा भाई है तू! मेरा छोटा भाई... मेरा छोटू... मेरा बाबू...” ऐसे दुलार भरी बातें कहते हुए वो उसको उठा कर चूमने लगी, “ऐसी बातें कभी न कहना अब!”

“नहीं दीदी... जो सच है, बस वही कहा!”

“कोई सच वच नहीं है कुछ भी!” माया दीदी ने ममता वाले भाव से समझाते हुए कहा, “अगर मेरा छोटा भाई ही मुझसे न रूठे, तो कैसा छोटा भाई! हम्म?”

“नहीं दीदी! तुमसे रूठ नहीं सकता...”

“बाबू... दीदी केवल दीदी थोड़े ही होती है, माँ जैसी भी तो होती है!”

कह कर माया ने अजय को कस कर अपने आलिंगन में भर लिया। उसके आलिंगन में बँधा हुआ अजय कुछ देर तक रोता रहा - उसका शरीर रोने के आंदोलन से हिल रहा था। लेकिन माया ने उसको अपने आलिंगन से अलग नहीं होने दिया।

अजय के मन में कई सारे विचार तेजी से आ जा रहे थे। जो विपत्ति में साथ दे, वही सच्चा साथी है। कहाँ तो अपना भाई ही अलग हो रखा है, और कहाँ माया दीदी हैं, जो कभी भी इनसे दूर न हुईं! क्या मतलब है ऐसे रक्त-संबंधों का?

“तुम बहुत अच्छी हो दीदी,” अंततः अजय बोला।

“अरे, का हो गया मेरे छोटू बाबू को? हम्म?” माया ने उसको फिर से दुलारते हुए कहा, “बोलो न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

माया भी अजय का यूँ अचानक ही बदला हुआ रूप देख कर चकित थी। लेकिन आशंकित नहीं। वो जानती थी कि अजय के अंदर एक बहुत ही भोला सा बच्चा है। उसको लगता था कि उसी के प्रयासों में कोई कमी हुई है, इसीलिए वो उससे ऐसे रूठा रहता है। वो कोशिश करती कि अजय के मन में उसके लिए प्रेम उत्पन्न हो। लेकिन फिर भी, छोटा भाई अगर मनुहार न कराए, तो कैसा छोटा भाई? लेकिन आज बातें पलट गई थीं - वो समझ गई थी कि अजय भी उससे बहुत प्रेम करता था। कितना सुन्दर दिन था आज उसके लिए! उसके दो भाई हैं - अब तो छोटा भाई भी बड़े के ही जैसे उससे इतना प्रेम करता है! पापा हैं। माँ हैं। सभी ने उसको इतना सुन्दर, संपन्न, और सुरक्षित जीवन दिया है। और क्या चाहिए भला उसको अपने जीवन से?

वो बोली, “बाबू... मेरे बेटू, अपने मन में कोई ऐसा वैसा ख़याल मत लाओ... समझे? ... हम दोनों ने एक ही माँ का दूध पिया है। हम दोनों एक ही माँ के बच्चे हैं! तुम मेरे छोटे भाई हो, और मैं तुम्हारी बड़ी बहन! इसलिए अगर मैं अच्छी हूँ, तो मेरा बाबू बहुत ही अच्छा है!”

“ये कौन सा लॉजिक है दीदी?” अजय के होंठों पर मुस्कान आ ही गई।

“माया दीदी का लॉजिक है!” वो मुस्कुराई, “इसलिए परफेक्ट लॉजिक है!”

“हा हा!” माया की बात पर अजय हँसा, “आई लव यू, दीदी! सच में! आई लव यू!”

“आई नो,” वो बोली, “अब अपने मन में कोई ऐसी वैसी बात मत लाना!”

“नहीं लाऊँगा दीदी!” अजय मुस्कुरा कर बोला, “लेकिन दीदी, जब तुमने मुझको ‘बेटू’ कह कर बुलाया, तो बहुत अच्छा लगा।”

“अले मेला बच्चा,” माया ने फिर से लाड़ से, बनावटी तुतलाहट ला कर कहा, “तू है न मेरा ही बेटा! इसीलिए तो प्यार से बाबू कहती हूँ तुमको!”

“सच में दीदी?”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माया दीदी के चेहरे पर खुशियाँ देख कर उसको वापस कमल और दीदी के ‘संभावित’ रिश्ते की बात याद हो आई। लगता तो है कि दोनों साथ में बहुत सुखी रहेंगे! कुछ नहीं तो उस नीच आदमी के चक्कर में तो नहीं पड़ेंगी वो! उसने सोचा, और माया का कमल के साथ भरा पूरा परिवार की कल्पना करी! दो बच्चे तो हुए ही थे दीदी को!

‘माया दीदी, कमल, और उनके दो बच्चे!’

सुन्दर दृश्य था! उसके होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान आ गई।

“क्या सोच रहे हो?” माया ने उसको शक की निगाह से देखा।

उसने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “कुछ भी नहीं दीदी! बस केवल यह कि मेरी दीदी सच में बहुत अच्छी है!” अजय का दिल फिर से बुझने लगा, “काश मैं तुमसे बहुत पहले से सही तरीक़े से, इज़्ज़त से पेश आता!”

“फिर वही बात!” माया ने नकली नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “तुमको ऐसा सोचने की कोई ज़रुरत नहीं है बाबू! ऐसा सोचना भी मत! मुझे तो बस इसी बात से ख़ुशी है कि तुम मुझसे इतना प्यार करते हो!”

“दीदी,” कह कर अजय माया के आलिंगन में सिमट गया, “मैं तुम्हारी बहुत रेस्पेक्ट करता हूँ, लेकिन तुमको ‘आप’ जैसा फॉर्मल फॉर्मल नहीं बोलूँगा।”

“ज़रुरत भी नहीं है!”

“आई लव यू!”

“खूब!” माया अजय के बाल बिगाड़ते हुए बोली, “अब बोल, क्या सोच रहा था मेरा बच्चा?”

“बताऊँगा दीदी, लेकिन कुछ देर में! मैं खुद ही बताना चाहता हूँ, लेकिन प्लीज़ दूसरी बार मत पूछना!”

“बताओगे न? प्रॉमिस?”

“हाँ दीदी!”

“माया बेटे, अज्जू... थोड़ी देर नीचे आओ दोनों!” उसी समय माँ की पुकार सुनाई दी।

“हाँ माँ?” माया दीदी ने भी पुकार कर कहा।

“नीचे आ जाओ... एक ज़रूरी बात करनी है दोनों से!”

“आये माँ,” दोनों ने साथ ही कहा।

फिर माया ने जल्दी से एक टी-शर्ट पहन ली, और बोली, “चलें?”


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avsji

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अपडेट 14


नीचे आ कर माया बोली, “हाँ माँ, क्या बात थी?”

वहाँ माँ और पापा दोनों ही मौजूद थे। दोनों चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे।

रात में चाय का आनंद लेना दोनों को ही पसंद था। पापा को पहले स्कॉच पसंद आती थी। लेकिन प्रियंका जी की मृत्यु के बाद उन्होंने उसका लगभग त्याग कर दिया। अब वो शायद ही कभी पीते थे। बस कभी कभी ही, कुछ खुशियों के अवसर पर - जैसे कोई बिज़नेस डील होना इत्यादि - एक पेग हो जाता था।

आओ मेरी बिटिया रानी,” अशोक जी ने मुस्कुराते हुए, बहुत स्नेह से कहा, “मेरे पास बैठो!”

दीदी अशोक जी के बगल बैठ गईं और उन्होंने बड़े स्नेह से उसको अपनी एक बाँह में समेट लिया। उधर अजय माँ के पास आ कर उनकी गोदी में लेट गया।

“ये मेरी बिटिया नहीं है, खुशियाँ है मेरी!” अशोक जी ने बड़े लाड़ से कहा।

“पापा,” कह कर माया अशोक जी से लिपट गई।

“बेटे,” वो बोले, “दरअसल, हमको तुम्हारे बारे में ही बात करनी थी।”

“मेरे बारे में पापा?” दीदी ने आश्चर्य से पापा के बगल बैठते हुए कहा।

“हाँ बिट्टो! इस इम्पोर्टेन्ट बात है!”

“तुम भी न अशोक, घुमा फिरा कर बातें करते हो!” माँ ने हँसते हुए कहा, “माया बेटे, बात दरअसल यह है कि तेरे लिए एक रिश्ता आया है... लड़का अच्छा है! परिवार भी अच्छा है! इसलिए हमने सोचा कि तेरी राय भी जान लें!”

किरण जी ने प्यार से माया के सर को सहलाते हुए कहा, “तुझको शादी करने पर कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं है न, बेटे?”

माया ने अपना सर नीचे कर लिया। ऐसे अचानक यह बात उसके सामने आ जाएगी, उसने सोचा नहीं था।

“आप दोनों को जैसा ठीक लगे माँ...” माया ने सकुचाते हुए कहा, “आप दोनों जो करेंगे, वो ठीक सोच कर ही करेंगे!”

माया जैसी लड़की और क्या कहती?

और उधर अगर पुराना वाला अजय होता, तो उसको भी कोई ख़ास फ़र्क़ न पड़ता। उसको माया से कोई ख़ास लगाव तो था नहीं। लेकिन ये वाला अजय माया की इज़्ज़त करता था, उससे बहुत प्रेम करता था, और चाहता था कि वो खुश रहे। एक ही बहन थी उसकी ले दे कर... उसको तकलीफ़ में नहीं देख सकता था वो। ख़ास कर तब, जब वो माया के पति और कमल के मन में माया के प्रति विचारों को जानता था।

“नाम क्या है पापा लड़के का?” उसने पूछा।

“मुकेश,” अशोक जी ने बताया, “... लखनऊ के रहने वाले हैं वो लोग बेटे, लेकिन लड़का फिलहाल नॉएडा में काम करता है!”

अशोक जी को अच्छा लगा कि इस बात में अजय को भी दिलचस्पी है। वो हमेशा ही चाहते थे कि अजय माया से प्रेम से रहे, उसका आदर करे। आज सब ठीक होता दिख रहा था।

उधर जैसे ही अजय ने मुकेश का नाम सुना तो समझ गया। उसका संदेह सही निकला। ये वही मुकेश था जिससे माया दीदी की शादी हुई थी, और जिससे शादी कर के उनकी ज़िन्दगी नर्क बन गई थी। इतिहास खुद को दोहराने वाला था, और सब कुछ लगभग पहले जैसा ही होने वाला था, अगर अजय इन नए उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों में अपनी दखल न देता।

“क्या काम करता है?”

“नॉएडा फ़िल्मसिटी में है वो... असिस्टेंट प्रोडक्शन मैनेजर...”

टाइटल तो बड़ा भौकाली था, लेकिन अजय को पता था कि सब झूठ है। हाँ, मुकेश असिस्टेंट प्रोडक्शन मैनेजर अवश्य था, लेकिन उसकी कमाई कुछ होती नहीं थी। और इस कारण से वो कुछ ही दिनों में किसी जोंक की तरह उसके परिवार से चिपक जाएगा, और तब तक वो उनको चूसता रहेगा, जब तक कुछ भी शेष न रहे। ऊपर से माया दीदी को किसी फुट-मैट की तरह रखेगा। दरअसल ये मुकेश माया से केवल इसलिए शादी करने को इच्छुक था कि वो एक धनी परिवार से सम्बद्ध थी।

“पापा,” अजय ने ख़ामोशी से कहा, “असिस्टेंट प्रोडक्शन मैनेजर मुश्किल से पाँच हज़ार कमाते हैं! ... आप ये इन्फ्लेटेड टाइटल पर मत जाईए... काम क्या करता है, कमाई कैसी है, और परिवार कैसा है, इन सब बातों पर ध्यान दीजिए न...”

“अरे बेटे, माना, कि फिलहाल उसकी कमाई बहुत अधिक नहीं है, ... लेकिन आगे बढ़ेगी न कमाई?”

“और कितना आगे जाना पड़ेगा पापा? तीस साल का तो है मुकेश न!” तैश में आ कर अजय ने ऐसी बात कह दी, जिसके बारे में अभी तक अशोक जी ने उसको बताया भी नहीं था - और उसने यह बात नोटिस करी।

अपने आपको संयत करते हुए उसने कहा, “और कैसे कमाई बढ़ेगी पापा? पूरी फिल्म इंडस्ट्री बम्बई में है, तो यहाँ रह कर क्या कमाई होगी? कुछ नहीं...” अजय ने कहा, “दूरदर्शन के भरोसे फ़िल्में थोड़े न बनती हैं!”

माँ आश्चर्य से अजय को देख रही थीं... माया भी!

माया जानती थी कि अजय उसको बहुत पसंद नहीं करता था। नफरत नहीं करता था, लेकिन पसंद भी बहुत नहीं करता था। बाहर से आई हुई लड़की थी वो, जिसको उसके परिवार ने सम्हाला था। वो खुद भी समझती थी अपनी ‘हैसियत’!

लेकिन अजय को इस तरह से अपने लिए पैरवी करते देख कर उसका मन भावनाओं से भर गया। अजय उसको एक दीदी की ही तरह मान देता है! थोड़ी देर पहले जो हुआ, वो कोई विपथन (सामान्य से हट कर होने वाली घटना) नहीं था। वो सच में उसको चाहता था, और उसके भले बुरे की उसको फ़िक्र थी। उसका मन हुआ कि वो रोने लगे। लेकिन अपने ‘वीरन’ (भाई) को अपने लिए लड़ते देखने का और मन था उसका।

“लेकिन बेटा,” इस बार माँ ने कहा, “एक बार देख तो ले उसको... अच्छा दिखता है वो।”

“अच्छा दिखता है तो क्या हुआ माँ? शादी में अच्छा दिखना चाहिए दीदी को... और न तो ये केवल अच्छी दिखती हैं बल्कि अच्छी हैं भी! इसलिए दीदी का हस्बैंड भी अच्छा आदमी होना चाहिए! क्वालीफाईड... कमाऊ... और अगर ये सब न हो, तो कम से कम वो दीदी से खूब प्यार करने वाला होना चाहिए...” अजय ने अर्थपूर्वक दृष्टि डाली माया पर, “... मुझे तो लगता है कि ये मुकेश आपके पैसों के पीछे है पापा!”

“लेकिन हमारे पैसे भी तो तुम्हारे ही हैं न बेटे,” अशोक जी ने कहा, “मेरी आधी जायदाद तो माया बेटी की ही है!”

“पापा, आप आधी नहीं, पूरी जायदाद दीदी को दे दीजिए, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है,” अजय बोला, “सच कहता हूँ... मैं कोशिश कर के अपना कमा लूँगा! लेकिन दीदी की शादी ऐसी होनी चाहिए जिससे वो खुश रहें। ... ये सही आदमी नहीं लगता मुझे!”

“लेकिन बेटे... बिना मिले...”

“मिल लेते हैं तो!” उसने कहा, “दीदी भी चलेंगी... हम सब चलेंगे...”

“कहाँ?”

“उनके घर, लखनऊ...” अजय ने कहा, “हम भी तो देखें, कि वो मेरी दीदी को किस हालत में रखेंगे...”

“हम्म्म...” अशोक जी गंभीर हो गए।

“पापा,” अजय कह रहा था, “लखनऊ में हमारी पहचान है! चतुर्वेदी अंकल से कह कर पूछ लीजिए न एक बार कि वो देख आएँ इसको और इसके परिवार को!”

चतुर्वेदी अंकल ही थे, जिन्होंने माया की शादी के समय अशोक जी को चेताया था। उनको मुकेश और उसके परिवार को ले कर अनेकों संशय थे। लेकिन जब तक उनसे कुछ पता चलता, तब तक बहुत देर हो गई थी।

“ठीक है बेटे...” अशोक जी ने कहा, “अच्छा किया तुमने मुझको जल्दबाज़ी करने से रोक लिया! मैं चतुर्वेदी साहब से पूछता हूँ इनके बारे में!”

माया ने बड़े गौरव से अजय की तरफ़ देखा।

किरण जी भी बड़े घमंड से मुस्कुराईं, “वाह बेटा! आज किया न तूने एक अच्छे भाई वाला काम!”


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अपडेट 15


इस विषय में बात समाप्त होने के बाद अशोक जी अपने कुछ मित्रों से मिलने बाहर चले गए।

अजय अभी भी किरण जी की गोदी में ही लेटा हुआ था। पापा के जाते ही वो उनकी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगा।

“क्या रे?” माँ ने हँसते हुए कहा, “एक पल पहले कैसी सयानों जैसी बातें कह रहा था, अब एक पल बाद फिर से बच्चा बन गया?”

“माँ,” अजय बिना रुके अपना काम करते हुए बोला, “आपका दुद्धू पीना तो मैं कभी नहीं रोकूँगा!”

उसकी बात पर माया भी हँसने लगी, “हाँ माँ! आप बाबू को दुद्धू पिलाना कभी न रोकना!”

“तू भी तो मेरी बिटिया है,” माँ ने ब्लाउज़ पूरी तरह से उतारते हुए कहा, “तुझे भी पिलाना नहीं रोकूँगी!”

जब भी संभव होता था, माँ दोनों को साथ ही में स्तनपान कराती थीं। न तो माँ को ही और न ही पापा को इस बारे में कभी कोई आपत्ति हुई। माँ अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझती थीं कि इस उम्र में भी वो स्तनपान करा पाने में समर्थ थीं। उसका श्रेय भी वो माया को ही देती थीं। आख़िर उसके कारण ही उनको दोबारा माँ बनने का अवसर मिला था। उसके कारण ही उन्होंने अजय को स्तनपान कराना शुरू किया था। वो उसको उस सुख से वंचित नहीं कर सकती थीं।

किरण जी के स्तन थोड़े बड़े थे, लिहाज़ा उनको ब्रा में से नीचे की तरफ़ खींच कर बाहर निकाल पाना (जैसा कि अक्सर स्तनपान कराने वाली महिलाएँ करती हैं) संभव तो था, लेकिन उचित नहीं। उन्होंने ब्रा का हुक खोला और तब तक माया भी उनकी गोदी में आ गई।

“माँ,” माया ने माँ के दाहिने स्तन को सहलाते हुए कहा, “मैं बहुत लकी हूँ!”

“हम नहीं हैं लकी?” माँ ने बड़े प्यार से कहा, “तू तो हमारी ख़ुशियाँ है। तेरे विदा होने से हमको भी तो दुःख होगा। लेकिन क्या करें? लड़की जात का यही तो है... घर में बिठा कर रख तो नहीं सकते न!”

“हाँ माँ,” अजय बोला, “दीदी की शादी बहुत ही अच्छे लड़के से करूँगा मैं!”

किरण जी मुस्कुराईं “हाँ हाँ... बिल्कुल! तेरी दीदी है। अच्छा सा लड़का ढूंढ कर ला इसके लिए!”

“डन माँ!”

अजय बोला और फिर कुछ देर तक वो और माया शांति से स्तनपान का आनंद लेते रहे।

स्तनपान संपन्न होने के बाद अजय ने माया से कहा, “दीदी, तुम कुछ देर के लिए अपने कमरे में जाओ... मुझे माँ से कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं!”

“बाबू?”

“दीदी, जाओ न! मैं आता हूँ कुछ देर में,”

अजय के स्वर में कुछ ऐसा था कि माया ने बहुत बहस नहीं करी।

वो वहाँ से निकल गई अपने कमरे की तरफ़।

“क्या बात है बेटे?” माया के जाने के बाद माँ ने उत्सुकतावश पूछा।

उनको भी अजय का अंदाज़ आज सवेरे से ही बदला हुआ लग रहा था। दिन में उन तीनों ने इस बारे में चर्चा भी करी। उनके मन में थोड़ी सी चिंता भी थी। लेकिन उन्होंने वो चिंता किसी पर ज़ाहिर नहीं होने दी। क्या पता, कोई वहम हो!

“माँ,” अजय अचानक से गंभीर हो कर बोला, “आपसे दो तीन बातें कहनी हैं!”

“बोल न बेटे?” किरण जी समझ गईं कि वो अपने बदले हुए व्यवहार के बारे में कुछ कहना चाहता है, “क्या बात है?”

“माँ, चाहे कुछ हो जाए... आप मुझसे प्रॉमिस कीजिए इस बारे में... चाहे कुछ हो जाए, आप में से कोई भी ‘वानप्रस्थ अस्पताल’ नहीं जाएँगे!”

“क्या?” माँ को कुछ समझ ही नहीं आया, “क्या कह रहा है तू? हम क्यों वानप्रस्थ अस्पताल जाने लगे रे?”

“माँ, प्लीज़, कभी कभी मुझे भी सीरियसली लिया करिए न! जो कह रहा हूँ वो समझिए... बड़ी सीरियस बात है।” अजय का गाम्भीर्य अभी भी बरकरार था, “वानप्रस्थ अस्पताल ठीक नहीं है। बड़ी सारी ख़बरें सुनने में आती हैं वहाँ से।”

“ठीक है बाबा,” माँ ने जैसे पिण्ड छुड़ाने के अंदाज़ में कहा, “नहीं जाएँगे वहाँ!”

“और, ख़ास कर के अजिंक्य देशपाण्डे नाम के डॉक्टर से तो कभी भी नहीं!”

ये वही अस्पताल था, और वही डॉक्टर था जिसकी लापरवाही के कारण अशोक जी असमय मृत्यु को प्राप्त हो गए। ग़लती अस्पताल की थोड़े ही थी - डॉक्टर देशपाण्डे की थी। उसको अवॉयड करना ज़रूरी था। लेकिन अगर अस्पताल भी अवॉयड कर सके, तो बेहतर।

“कौन?”

“अजिंक्य देशपाण्डे!” अजय ने कहा और अपनी जेब से उसने एक लिफ़ाफ़ा निकाला, “मैंने कुछ बातें लिखी हैं इस लेटर में! शायद पढ़ने में बेतुकी लगें, लेकिन प्लीज़ इन बातों को सीरियसली लीजिएगा!”

किरण जी लिफ़ाफ़ा खोलने लगीं।

“माँ, अभी नहीं! कल। कल सवेरे पढ़िएगा!”

“बेटे, सब ठीक तो है न?” किरण जी अब चिंतातुर थीं।

“सब ठीक है माँ! अगर मेरी बातें मानेंगे आप लोग, तो सब ठीक रहेगा!”

अजय बोला, और फिर माँ के एक गाल को चूम कर बोला, “माया दीदी के पास जाता हूँ!”


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जब अजय माया दीदी के कमरे में पहुँचा तो वो बिस्तर पर औंधे लेट कर कोई पुस्तक पढ़ती हुई मिली। अजय भी उसके बगल उसी पोज़िशन में आ कर लेट गया। माया ने पुस्तक पढ़ना जारी रखा। जब उसने वो पूरा चैप्टर पढ़ लिया, तो उसने पुस्तक बंद कर के अलग रख दिया।
“क्या बात थी?” उसने पूछा।

“माँ के सुनने और करने के लिए थी वो बात,” अजय ने चंचलता से कहा, “तुम्हारे नहीं!”

“हम्म... ये बात है?”

“हाँ!” अजय ने कहा और उसने माया के गाल को चूम लिया।

“बाबू,” माया ने बड़ी कोमलता से कहा, “तुमने पापा और माँ से जो सब कहा, वो सब मन से कहा?”

“बेकार लड़का है वो मुकेश, दीदी!” अजय ने तैश में आ कर कहा, “तुम्हारे पैरों की धूल भी नहीं है वो!”

“वो बात नहीं है बाबू... मैं उस बारे में पूछ रही हूँ, जो तुमने मेरे लिए कहा...”

“तुमको डाउट है दीदी?”

“नहीं बाबू... लेकिन आज तक तुमने मेरी इस तरह से तरफ़दारी नहीं करी!”

“आज से पहले मैं अँधा बहरा भी तो था दीदी!” अजय ने मुस्कुराते हुए कहा और माया को अपने आलिंगन में भर लिया, “सच में दीदी, तुमको अपनी लाइफ में बिना वजह का कोम्प्रोमाईज़ नहीं करने दूँगा! ... भाई हूँ तुम्हारा! इतने सालों तक मैं तुमको ठीक से प्यार नहीं कर पाया, तुमको ठीक से इज़्ज़त नहीं दे पाया, उसका मुझे वाक़ई अफ़सोस है... लेकिन अब और नहीं होगा वैसे!”

“तुमने इतना कह दिया, बहुत है मेरे लिए बाबू!”

“नहीं दीदी! तुम अच्छी हो, इसलिए ऐसा कह रही हो! अभी तक मैंने तुम्हारे साथ जो किया, वो सब मेरी गलती है... लेकिन उन गलतियों के कारण मैं तुम्हारे साथ गलत होने दूँ, तो बहुत ही बड़ा पाप है... अपराध है! शादी एक बार होती है! परफ़ेक्ट होनी चाहिए! मेरी दीदी उसके पास जाएगी, जो उससे खूब प्यार करेगा!”

“तुम ढूंढोगे मेरे लिए वैसा लड़का?” माया ने मुस्कुराते हुए कहा - उसके गालों पर शर्म की लालिमा दिखाई दे रही थी।

माया ने मज़ाक में नहीं कहा था यह...

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “पक्का वायदा है दीदी!”

“फिर ठीक है!” माया उसके आलिंगन में सिमटती हुई बोली, “मेरा वीरन जिससे कहेगा, मैं उसी से शादी करूँगी!”

“सच में दीदी?”

“हाँ मेरे वीरन... आज तक मैं तुमको अपना छोटा भाई मानती आई हूँ, लेकिन आज तुमने जो किया है, उसके बाद तो तुम भी पापा और माँ की ही तरह मेरे गार्जियन बन गए हो!”

“हा हा...”

“हंसने वाली बात नहीं है बाबू! एक लड़की बहुत लकी होती है, जब उसका छोटा भाई भी, उसके किसी बड़े की ही तरह उसको प्यार करे!”

“लव यू दीदी!”

“लव यू खूब मेरे भाई! ... खूब!” कह कर माया अजय की बाँह में और सिमट गई।

“वैसे दीदी, एक बात बताऊँ तुमको?”

“हाँ... बताओ न!”

“तुम्हारे लिए मैंने लड़का देख लिया है,”

“सच में?” माया आश्चर्य से चौंकी, “कौन?”

“बता दूँ?”

माया मुस्कुराई, “न भी बताओ, तो भी ठीक है! मुझे तुम पर पूरा भरोसा है...”

“हा हा!” वो हँसा।

माया उम्मीद से अजय को कुछ देर देखती रही कि वो अब बताएगा या तब बताएगा। लेकिन जब थोड़ी देर तक उसने कुछ नहीं कहा, तो माया शर्म से, लेकिन प्यारी सी ज़िद से बोली,

“बताओ न...”

अजय मुस्कुराया, “अरे रे रे! जानने के बेसब्र हो रही हो दीदी!”

“जाओ, मत बताओ!”

माया के नकली रूठने के अंदाज़ पर अजय हँसे बिना न रह सका। हँसते हँसते ही उसने कहा, “कमल...”

“कमल?” माया की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं।

“कमल,”

“ले... लेकिन वो तो छोटा है मुझ से!”

“छोटा है तो क्या हुआ दीदी? यह तो कोई कमी नहीं है... सबसे पहली बात यह है कि वो बहुत प्यार करता है तुमसे, दीदी! बहुत अच्छा लड़का है... और अच्छे, संपन्न घर से है! पाँच साल से जानता हूँ उसको... उसने एक भी गलत काम नहीं किया है आज तक। और न ही कोई गलत आदतें हैं उसमें!”

“मानती हूँ सारी बातें! लेकिन बाबू, वो छोटा है न!” माया बोली, “तुम्हारा दोस्त है... तो मेरे छोटे भाई जैसा ही है न!”

“एक ही भाई रखो दीदी,” अजय ने हँसते हुए कहा, “कम से कम, उसमें तो मेरे साथ बँटवारा न करो!”

“हा हा! बहुत बदमाश हो तुम बाबू...” माया हँसने लगी, “लेकिन वो कितने साल का है? सत्रह? अट्ठारह?”

“अट्ठारह! ... अरे तीन साल वेट कर लो न दीदी!” अजय ने मज़ाक किया, “या शादी करने की बहुत जल्दी है?”

“हा हा!” माया अब और ज़ोर से हँसने लगी, “नहीं, कोई जल्दी नहीं है!”

“सच में दीदी, वो तुमको बहुत चाहता है।” अजय गंभीर होते हुए बोला, “तुमको बहुत प्यार से रखेगा! और तुम भी उसको बहुत प्यार से रखोगी... मैं आज ही पापा को भी ये बात बताने वाला हूँ! उन्होंने माना, तो हम बात करेंगे उसके पेरेंट्स से! ... देखना, सब अच्छा होगा!”

माया भी गंभीर होते हुए बोली, “तुम चाहते हो कि मैं कमल से शादी करूँ?”

“मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी पसंद के लड़के से शादी करो... कमल मुझको अच्छा लगता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तुमको भी अच्छा लगे!”

माया ने समझते हुए सर हिलाया।

“तुमने अभी तक उसको मेरे दोस्त की तरह देखा है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि कमल को तुम दूसरी नज़र से देख लो... एक साथी की तरह! उसको परख लो... उसको समझ लो... और अगर वो समझ में आ जाए, तो शादी भी कर लो!”

“ठीक है,” माया मुस्कुराई, “थैंक यू बाबू!”

“नहीं दीदी! थैंक यू!” वो बोला, “मैं बस चाहता हूँ कि मेरा हर अज़ीज़ हमेशा खूब खुश रहे!”

“थैंक यू अज्जू... मेरे बाबू... मैं शायद दुनिया की सबसे लकी बहन हूँ!”

“हा हा!”

“सच में!” माया ने धीरे से कहा, “सभी मेरे बारे में कितना सोचते हैं! पापा, तुम, माँ...”

“हाँ दीदी!” अजय बोला, “वैसे तुम कमल के बारे में कुछ जानना चाहो, तो पूछ लो!”

माया ने अजय से कमल के बारे में बहुत से प्रश्न पूछे। कुछ सामान्य और कुछ अंतरंग! अजय को यह जान कर बहुत अच्छा लगा कि माया भी कमल में रूचि दिखा रही थी।

‘शायद दीदी की ज़िन्दगी बेहतर हो!’


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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अपडेट 16


माया दीदी के कमरे से निकलते हुए शाम के कोई साढ़े सात बज गए थे। मतलब शिकागो में - मतलब प्रशांत भैया के वहाँ सुबह के आठ बज रहे होंगे। शनिवार है, तो बात हो सकती है।

उसने फ़ोन उठा कर भैया को कॉल लगाया।

पहली बार पूरी घंटी गई, लेकिन फ़ोन नहीं उठा। उसने पाँच मिनट बाद फिर से काल किया।

इस बार प्रशांत ने उठाया।

“अज्जू,” प्रशांत अजय की आवाज़ सुन कर खुश होते हुए बोला, “कैसा है तू मेरा बेटा?”

“बहुत अच्छा भैया, बहुत ही अच्छा!”

“अरे वाह! क्या बात है? कोई गर्लफ्रेंड मिल गई क्या? हाहाहाहाहा!”

“नहीं भैया! एक मुसीबत गले मढ़ते मढ़ते रह गई!”

“व्हाट? क्या हुआ?”

“कुछ नहीं भैया! कुछ भी इम्पोर्टेन्ट नहीं।” अजय सोचा कि कैसे भैया से बात करी जाए, “भैया, आप बताईए! कोई शिकागॉन मिली?”

“शिकागॉन हाहाहाहा!” प्रशांत ने ठहाके मारते हुए कहा, “अरे यार, यहाँ हूँ तो क्या हुआ! दिल तो अपना हिंदुस्तानी ही है न,”

मतलब कणिका ने अपने जाल में लपेट ही लिया है उनको!

अजय ने सम्हाल कर शब्दों का चयन किया, “क्या भैया! आप भी न! शिकागो जा कर देसी घी खाना चाहते हैं!”

“देसी घी!”

“और नहीं तो क्या! आपको घिरार्डली चॉकलेट खाना चाहिए, और आपसे देसी घी नहीं छूट रही है!”

“अबे वो बे एरिया में है, शिकागो में नहीं!”

“कहीं भी हो! भावनाओं को समझो!”

“समझ रहा हूँ!”

“भैया, एक बात कहूँ? आप नाराज़ तो नहीं होंगे न?”

“बोल न! तुझसे कब नाराज़ होता हूँ रे? कभी कभी तो बात होती है तुझसे,”

“हाँ हाँ! अभी सुन लो। सुन कर गालियाँ देने का मन करेगा आपका!”

“न बेटे, ऐसा कुछ नहीं होगा।”

“तो ठीक है। भैया, आप कणिका के चक्कर में न पड़ियेगा प्लीज़!”

“अरे, तुझे कैसे पता कणिका के बारे में?” प्रशांत की आवाज़ थोड़ी सजग हो गई।

“आप मेरे भाई हो! थोड़ा तो आपकी पसंद नापसंद के बारे में मुझे भी पता है न!”

अजय कह न सका कि वो जानता है कि आप कितने मेहरे हैं। फिर तो अवश्य ही झगड़ा हो जाता।

“हम्म,”

“आपने डिनॉय नहीं किया, मतलब कणिका के साथ चक्कर जम गया है आपका।”

“यार! देख, उसको ज़रुरत थी, तो मैंने सपोर्ट किया उसको यहाँ। अब वो चाहने लगी है मुझे तो क्या करूँ? वैसे अच्छी है वो!”

“भैया, माँ को वो और उसकी फॅमिली बिल्कुल पसंद नहीं है। वो आपसे कह नहीं पातीं, लेकिन उसको कणिका के अमेरिका जाने से पहले ही शक था कि वो ये काम ज़रूर करेगी...”

“सच में?”

“हाँ!”

“फिर?”

“फिर क्या? आपने उसके साथ कुछ किया तो नहीं?”

“यार... ये सब बातें मैं तुझसे कैसे करूँ?”

“आपने सेक्स किया क्या उससे?”

“दो तीन बार!”

मतलब कणिका ने मछली हुक में फँसा ली है। अच्छा हुआ उसने माँ को लेटर में सब कुछ लिख कर दे दिया है।

माँ कुछ न कुछ कर के रोक ही लेंगी इस शादी को।

“खैर, उससे क्या होता है! अमेरिका है, ये सब तो होता ही है न!” फिर ठहर कर, “साथ में रहती है क्या?”

“नहीं। साथ में नहीं रहती। लेकिन आज आने वाली है कुछ देर में!”

“भैया, आप प्लीज़ उससे दूर रहो न!”

“अबे यार!”

“आपकी एक और फ्रेंड है न? ... क्या नाम है उसका... हाँ, पैट्रिशिया! यही नाम है न?”

“हाँ,” प्रशांत ने सजग होते हुए कहा, “लेकिन यार उसके दो बॉयफ्रेंड रह चुके हैं!”

“आप भी तो हैं?”

“था...”

“भैया, सील पैक्ड मिलेगी, तो क्या ज़हर उड़ेल लोगे मुँह में?”

“अबे! क्या बोलता है तू, बहनचो...” प्रशांत ने हँसते हुए कहा।

“और नहीं तो क्या!” अजय ने लगभग विनती करते हुए कहा, “आप अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिए कि दोनों में बेटर कौन है? पैट्रिशिया या कणिका?”

“यार,” थोड़ी देर में प्रशांत बोला, “है तो पैट्रिशिया ही बेटर! बहुत सी क्वालिटीज़ हैं उसमें... युनिवर्सिटी टॉपर थी, अपना काम तो खुद ही कर लेती है, साथ ही साथ उसने मेरी भी कितनी हेल्प करी थी... बहुत अच्छी है वो!”

“तो फिर सब जानते हुए आप ये मुसीबत क्यों मोल ले रहे हैं?”

“यार मना कैसे करूँ? मामा की लड़की...”

“अरे माँ चुदाए मामा की लड़की!” अजय ने दिल्ली-वाले अंदाज़ में गाली दी, “वो गले मढ़ गई है आपके! दो बार चूत दे कर आपका लम्बा काट देगी वो!”

“अबे! हाहाहाहा!” प्रशांत अभी तक बुरा नहीं माना था।

मन ही मन वो भी समझता था कि कणिका ने उसके चरित्र का गलत फ़ायदा उठाया है। लड़की को वो मना कर नहीं पाता। ऊपर से मामा की लड़की। और हाँ - सेक्स के लिए शुरुवात भी उसी ने करी थी। उसके घर में डेरा भी उसी ने जमाया था। कभी भी प्रशांत ने उसको निमंत्रण नहीं दिया था - बस पहली बार को छोड़ कर, जब वो अमेरिका पहली पहली बार आई थी।

लेकिन पैट्रिशिया बहुत ही अच्छी थी। जब उसने उसके साथ सेक्स किया था तब उसने महसूस किया था कि कैसे वो उसको संतुष्टि देने की कोशिश कर रही थी। कणिका बस ये चाहती थी कैसे वो जल्दी से उसके अंदर घुस जाए, और उतनी ही जल्दी से निबट कर बाहर निकल जाए। अजय की बात सही थी - कणिका ने उसको फँसा रखा था।

“छोड़ दो आप उसको!” अजय कह रहा था, “उसके परिवार से हम यहाँ झगड़ा कर लेंगे।”

“हाहाहा...” प्रशांत हँस तो रहा था, लेकिन उसकी हंसी में एक तरह की राहत की आवाज़ भी थी।

“सच में भैया। आप पैट्रिशिया दीदी को भाभी बनाईए न!” अजय बोला, “कम से कम मैं भी कह सकूँ कि मेरी भाभी अमरीकन है!”

“हाहाहाहा!”

“सच में!”

“हम्म्म सोचते हैं!” वो बोला, “लेकिन क्या तू सच में माँ से कह कर कणिका की फॅमिली से बात कर सकता है? तू... आई मीन, पापा माँ और तू?”

“कोई शक? भैया, मैं बदल गया हूँ। वो पहले वाला लुर अजय नहीं हूँ! सभी माँ चोद दूँगा जो भी मेरी फॅमिली पर बुरी नज़र डालेगा।”

“बदल तो गया है तू। गालियाँ भी टॉप क्लास देने लगा है।”

“आपके साथ तो कर सकता हूँ न!”

“हाँ हाँ! भैया नहीं हूँ, दोस्त जो ठहरा तेरा!”

“नहीं भैया - आप इतना प्यार करते हैं मुझसे! मैं इतना तो ज़रूर करूँगा कि आप खुश रह सकें!”

“ठीक है मेरे भाई,” प्रशांत ने सोचते हुए कहा, “ज़रा कणिका को एक बार ‘न’ कह कर देखता हूँ!”

“हाँ भैया। अगर टैंट्रम करे, तो कान उमेठ कर भगा दीजियेगा घर से!” अजय बोला, “आप इतने बढ़िया हैं! पैट्रिशिया न सही, लेकिन अगर एक भी ढूंढेंगे न, तो हज़ारों मिलेंगी आपके लिए।”

“हाहा!”

“हाँ न! ये देसी कचरा अमरिक्का में क्यों ढोना!”

“किससे बात हो रही है रे?” किरण जी ने पूछा।

“भैया से माँ,” अजय बोला, “भैया, माँ आ गई हैं! उनसे बात कीजिए। लेकिन मेरी बातें याद रखियेगा। देसी कचरा, नो नो! ओके?”

“हा हा हा... ठीक है, माँ को दे फ़ोन!”


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अपडेट 17


अशोक जी के आते आते लगभग नौ बज गए थे।

अजय को अपने पापा से बड़ी मोहब्बत थी। लेकिन थोड़ा डर भी लगता था उसको उनसे।

अगर आज वो उनको आखिरी बार देख रहा था तो वो उनके साथ कुछ अनमोल यादें बना लेना चाहता था।

“पापा,”

“आओ बेटे,” अशोक जी उसको देख कर मुस्कुराये, “आओ!”

अजय आ कर उनके समीप उनके पैरों के पास बैठ गया। जैसा वो पहले भी करता था।

“पापा, आपसे एक बात कहूँ?”

“हाँ बेटे, बोलो न?”

“एक्चुअली, एक रिक्वेस्ट है! मोर लाइक अ विश...”

“अरे बोलो न!”

“क्या मैं आपके साथ बैठ कर स्कॉच पी सकता हूँ...”

ऐसी अतरंगी रिक्वेस्ट? एक बार तो अशोक जी अचकचा गए कि ये अजय क्या कह रहा है। फिर उन्होंने कुछ पल सोचा।

अंततः, “तुम अभी अंडरऐज हो बेटे,”

“आई नो पापा,” वो बोला, “लेकिन एक बार... बस एक बार?”

अशोक जी सोचने लगे।

“प्लीज़ पापा,” वो लगभग गिड़गिड़ाया, “आज के बाद ऐसी हिमाकत नहीं करूँगा!”

अशोक जी कुछ क्षण चुप रहे, फिर बोले, “ग्लेनफ़िडिक... एटीन इयर्स ओल्ड...”

“थैंक यू पापा!”

“तुम्हारा पेग मैं बनाऊँगा!”

“यस सर,”

कह कर अजय एक ट्रे में सोडा, दो ग्लास, स्कॉच की बोतल, और बर्फ़ ले कर पापा के पास बैठ गया।

अशोक जी ने बहुत थोड़ा सा अजय डाला और उसमें ढेर सारा सोडा और तीन बर्फ़ के टुकड़े डाले। उनका खुद का ड्रिंक सामान्य ही था।

“चियर्स बेटे,”

“थैंक्स पापा, एंड चियर्स!”

अगर पापा के साथ ये उसकी आख़िरी याददाश्त है, तो बहुत खूबसूरत है।

अजय मुस्कुराया।

‘काश पापा बहुत सालों तक उसके साथ रहते!’

“यू आर मोस्ट वेलकम सन!” अशोक जी मुस्कुराये, “अब बोलो... क्या है मन में?”

“बहुत कुछ है पापा,”

“कहीं से शुरू करो!” वो बोले, “बाप से बात करने की हिम्मत तो जुटा चुके हो! ... ज़रूर ही कोई बहुत बड़ी बात होगी!”

“हाँ पापा, बातें बड़ी हैं। शायद अभी आप समझ न सकें!”

“अरे! अपने बाप की समझ पर शक है तुमको?”

“नहीं पापा! लेकिन... लेकिन मैं आपसे जो कुछ कहना चाहता हूँ न, बहुत ही काम्प्लेक्स है!”

“ट्राई मी!”

“पापा, आप बिज़नेस में न... कभी भी हीरक पटेल या उसकी किसी भी कंपनी के साथ डील न करिएगा।”

“हीरक पटेल?”

“जी! बहुत ही बदमाश और धूर्त किस्म के लोग हैं वो।”

हीरक पटेल ने ही अशोक जी को बिज़नेस में भारी नुक़सान पहुँचाया था। दोस्ती यारी में उनको ऐसा गच्चा दिया, कि आधा बिज़नेस उन्होंने कब्ज़िया लिया। आधा जो बचा, उसमें इतनी देनदारी थी कि सब कुछ जाता रहा था पापा का।

“तुमको कैसे पता?”

“बस ये मत पूछिए!”

“हम्म... ओके! डील!”

अजय मुस्कुराया, “थैंक यू, पापा!”

“और कुछ?”

“जी पापा! अगर कभी आप आलोक शर्मा जी से या उनके दामाद अमर सिंह से मिलें, तो उनके साथ ज़रूर कोई बिज़नेस करिएगा। आलोक शर्मा जी एक रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर रह चुके हैं। ऑनेस्ट बिज़नेस रहेगा उनका।


[अलोक शर्मा, अमर, और उसकी पत्नी देवयानी (डेवी) के बारे में पढ़ने के लिए नीचे मोहब्बत का सफ़र लिंक पर जाएँ] :)


“ओके! कहाँ है उनका ऑफिस? कौन सा बिज़नेस है उनका?”

अजय को अब झटका लगा।

ये तो गड़बड़ हो गई - उनका बिज़नेस तो कोई तीन चार साल बाद शुरू होने वाला है।

“अह... प्लीज़ डोंट वरि अबाउट इट जस्ट येट पापा!” अजय बोला, “लेकिन इस पटेल से दूर रहिएगा। प्लीज!”

“ओके!” अशोक जी समझ नहीं रहे थे, लेकिन वो बिना वजह उसको अपसेट नहीं करना चाहते थे।

फिर एक पल रुक कर बोले, “बेटे, एक बात बताओ - तुमने मुकेश के लिए मना क्यों किया?”

हाँ - यह अजय का फेवरिट टॉपिक था।

“आपको बताया तो पापा! बहुत सारे रीसंस हैं... लेकिन जो सबसे बड़ी बात है, वो यह है कि मुझे लगता है - आई ऍम कन्विंस्ड - कि वो आपकी दौलत के लिए दीदी से शादी करना चाहता है।” अजय ने पूरी सच्चाई से कहा, “... दीदी ऐसी पढ़ी लिखी नहीं हैं, और न ही बहुत सुन्दर हैं, कि कोई यूँ ही चला आए उनके लिए... और उनका कोई सोशल सर्किल भी ऐसा नहीं है कि कोई अपनी तरफ़ से उनके लिए प्रोपोसल भेजे!”

“हम्म,”

“हाँ, अगर कोई उनको चाहता है, तो अलग बात है!”

“आई अंडरस्टैंड कि तुम क्या कहना चाहते हो...” अशोक जी ने कहा, “तो... क्या माया चाहती है किसी को?”

“कहाँ पापा! दीदी तो पूरा दिन भर घर का काम करती रहती हैं... उनको मौका कहाँ मिलता है किसी से मिलने का?”

“बेटे, इसीलिए तो हम पेरेंट्स लोग इन्वॉल्व होते हैं न बच्चों की शादी में...”

“हाँ पापा, आपकी बात सही है। लेकिन लड़का भी तो ऐसा होना चाहिए न, जो दीदी को चाहे! उनसे प्यार करे...”

“हाँ, ऐसा तो चाहिए ही बेटे!” अशोक जी ने कहा, “तुमको पता है ऐसा कोई लड़का?”

पुराना अजय शायद ऐसी बातें कहने में हिचकता...

“एक है... आप भी जानते हैं उसको...”

“अच्छा? कौन?”

“कमल...”

“व्हाट? हा हा...” अशोक जी हँसने लगे, “आज कल के बच्चे भी न...”

“क्यों पापा? क्या गलत है इसमें? ... कमल दीदी से प्यार क्यों नहीं कर सकता?”

“कर सकता है, बेटे!” अशोक जी ने थोड़ा सोच कर कहा, “आई ऍम सॉरी बेटे! यस... वो माया से प्यार कर सकता है! लेकिन ऐसा कम ही होता है न! इसलिए थोड़ा अजीब... नहीं, अजीब नहीं... थोड़ा अलग लगा!”

“आप इनके ख़िलाफ़ तो नहीं होंगे न?”

“व्हाई? अगर ये दोनों शादी करना चाहते हैं, तो मैं इनके ख़िलाफ़ क्यों रहूँगा? मुझे तो अपने बच्चों की ख़ुशियाँ चाहिए।” अशोक जी ने बड़े ही मृदुल भाव से कहा, “कमल मुझको भी अच्छा लगता है। अच्छा लड़का है वो! इतने सालों से जानते हैं हम उसको...”

“थैंक यू पापा!”

“राणा साहब (कमल के पिता) से बात करूँ तो?”

अजय खुश हो गया, “क्यों नहीं पापा! ... लेकिन कमल ने आज ही मुझे दीदी के बारे में वो क्या सोचता है, वो बताया। मैंने भी दीदी को अभी कुछ देर पहले ही बताया है... आपको... आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके राणा अंकल से बात करने के पहले, वो दोनों एक बार एक दूसरे से थोड़ी अलग सिचुएशन में मिल लें?”

“बेटे, देखो, मैं तुम्हारी बात समझता हूँ... लेकिन माया बेटी है हमारी! और हम इज़्ज़त वाले लोग हैं। राणा साहब भी खानदानी हैं... इज़्ज़तदार हैं। इसलिए मुझे लगता है कि पहले हमारा ही उनसे मिलना ठीक होगा। ... वैसे भी वो लड़के वाले हैं... शादी का रिश्ता तो हमारी तरफ़ से ही जाएगा! ... जाना चाहिए...”

“जी,” अजय कुछ कहना चाहता था लेकिन अशोक जी ने उसको रोक कर कहा,

“बेटे देखो... मैं चाहता हूँ कि अगर इन दोनों का रिश्ता आगे बढ़ता है, तो उसमें उनका भी आशीर्वाद हो! ठीक है?”

अजय ने गहरी साँस भरी - उसकी हर बात तो नहीं मानी जा सकती न! लेकिन पापा माया दीदी और कमल को ले कर सीरियस हो सकते हैं, यह जान कर उसको बहुत अच्छा लगा।

“जी पापा!” वो बोला, फिर “तो हम लोग कब चल सकते हैं उनके पास, मिलने?” अजय ने आशापूर्वक पूछा।

“कल ही... शुभस्य शीघ्रम!” अशोक जी ने कहा, “भाई साहब और भाभी जी दोनों ही माया बेटे से मिले भी हैं, और उसको अच्छी तरह से जानते भी हैं! ... लेकिन शादी की बात और ही है...”

“पापा, मैं एक बार कमल से कह दूँ कि वो कल क्या एक्सपेक्ट करे?”

“हा हा... हाँ बता दो उसको! ऐसा न हो कि घबरा कर वो अपनी फ़ीलिंग्स से ही इंकार कर दे!”

अशोक जी ने हँसते हुए कहा।


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kas1709

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चूँकि टिक्कियों और छोले से सभी का पेट भर गया था, इसलिए निर्णय लिया गया कि आज रात खाना नहीं पकेगा। अगर भूख लगेगी, तो दोपहर के भोजन और छोलों से काम चला लिया जाएगा। बढ़िया बात थी!

अपने कमरे में आ कर अजय ने कपड़े बदलने लगा। कॉलेज से आने के बाद से ही वो कॉलेज की यूनिफार्म में ही था। माँ ने जब आँखें तरेरीं, तब वो भाग कर यूनिफॉर्म बदलने अपने कमरे में आ गया। उसने महसूस किया कि शायद माया दीदी भी अपने कमरे में हैं इस समय।

हाँ, शुरू शुरू में माया दीदी अजय के कमरे में ही रहती थीं, लेकिन अब बात बदल गई थी। एक सायानी लड़की का अपना कमरा होना चाहिए, इसलिए उनके लिए कुछ सालों पहले एक नया कमरा बनवा दिया गया था। वो कमरा अजय के कमरे के बगल ही था। वो अक्सर रात में आ कर अजय को चेक कर के जाती थी। कभी कभी जब रात में कम्बल उसके ऊपर से हट जाता था, तो माया दीदी उसको ओढ़ा देती थीं।

कपड़े बदलते बदलते, अचानक ही अजय के मन में एक विचार आया --

कहीं ऐसा तो नहीं कि वो केवल एक दिन के लिए ही अपने भूतकाल में वापस आया है?

यह विचार आते ही उसका दिल बैठ गया।

कहाँ वो अपने मन में अनेकों मिशन ले कर बैठ गया था कि वो ये कर देगा, वो कर देगा... लेकिन अगर उसकी चेतना केवल एक रात या एक दिन के लिए ही पीछे आई है, तब तो उसने आज का पूरा समय ही व्यर्थ गँवा दिया!

‘हे प्रभु’, यह विचार आते ही अजय का दिल वाक़ई बैठ गया, ‘मतलब वापस आने का कोई मतलब ही नहीं रहा!’

‘कितने सारे काम करने थे, और कुछ भी नहीं किया!’ उसने सोचा।

आठवीं क्लास में एक टीचर ने कई बार समझाया था अजय को कि काल करे सो आज कर, आज करे सो अब... पल में परलय होवैगी, बहुरि करोगे कब? उस समय तक ये बातें समझ में नहीं आती थीं। लेकिन अब, जब यह ख़याल अजय के मन में आया, तो उसको समझ में आया कि कैसे समय का हर क्षण अनमोल होता है। उसका आवश्यकतानुसार उपयोग होना आवश्यक है।

‘आज ही सब ठीक कर दूँगा,’ अजय ने ठान लिया।

उसने अपनी नोटबुक में कुछ लिखना शुरू किया और पाँच मिनट बाद जब सब कुछ लिख लिया, तो उसने अलग अलग पन्नों को अलग अलग लिफ़ाफ़ों में डाल दिया। इसी तरह के एक लिफ़ाफ़े को उसने अपनी नेकर की पॉकेट में रख लिया।

‘कहाँ से शुरू करे वो?’ उसने सोचा।

उत्तर तुरंत मिल गया, ‘माया दीदी!’

सबसे पहले उसके मन में यह विचार आया, ‘क्यों उसने माया दीदी को इतने दुःख दिए?’

उस विचार के साथ ही साथ अजय की आँखों में आँसू आ गए। और जल्दी से कपड़े चेंज कर के माया दीदी के कमरे में चला गया।

उसने दुःख के घूँट भरते हुए दरवाज़े को हल्के से धकेला।

माया इस समय अपने कपड़े बदल रही थी। वो इस समय पतली सी स्पोर्ट्स ब्रेज़री और निक्कर पहने हुए थी, और अपनी अलमारी में अपने पहनने के लिए टी-शर्ट ढूंढ रही थी। लेकिन यह कोई अनहोनी बात नहीं थी। माया ने अजय को कई बार निर्वस्त्र देखा हुआ था और अजय ने भी। माया ने अनगिनत बार अजय को नहलाया था। अभी भी नहला देती थी - ख़ास कर सप्ताहांत में। नहलाते समय वो हमेशा ही उसको पूर्ण निर्वस्त्र कर देती थी। स्वयं भी हो जाती थी। किशोरवय अजय, माया को चाहे कितना भी नापसंद करता रहा हो, सच तो यह था कि चूँकि माया उससे बड़ी थी, लिहाज़ा उसके पास परिवार की तरफ़ से अनेकों अधिकार प्राप्त थे।

आहट पा कर वो पलटी, “बाबू?”

लेकिन वयस्क अजय ने आख़िरी बार माया दीदी को कब निर्वस्त्र देखा था, अब उसको याद नहीं था। लिहाज़ा अजय ने नोटिस किया कि माया दीदी काफ़ी छरहरी हैं। हाँ, उनका साँवला रंग त्वचा में गहरे तक था। वो इसलिए क्योंकि सत्रह अट्ठारह साल की उम्र तक उन्होंने सड़क पर खेल तमाशे दिखाए। सूरज की कड़ी धूप उनकी त्वचा के बेहद अंदर तक घुस गई थी। लेकिन जो जो स्थान उससे अछूते थे, वो सामान्य से साफ़ थे। शरीर अब अच्छा हो गया था। बचपन के कुपोषण का उनके शरीर पर थोड़ा दुष्प्रभाव तो अवश्य पड़ा था, लेकिन इन हालिया समय में वो कम हो गया था। नट वाले तमाशे खेलने दिखाने में उनको बहुत सी चोटें आई थीं - बाहरी भी और अंदरूनी भी। उनको आवश्यक टीके इत्यादि भी कभी नहीं लगाए गए थे। लिहाज़ा कुछ समय तक उनको चिकित्सा वाली देखरेख में रखा गया। अब वो पूरी तरह से स्वस्थ हो गई थीं।

“क्या हो गया बाबू?” माया ने अजय को अपनी ओर इस तरह से देखते हुए देख कर और उसकी आँखों में आँसुओं को देख कर चिंतातुर होते हुए पूछा।

“कुछ नहीं दीदी,” अजय ने थोड़ा मुश्किल से कहा, और फिर अचानक से ही फ़फ़क फफक कर रोते हुए वो उनके पैरों पर गिर गया... और उनके पैरों को पकड़े हुए ही कहने लगा, “... आई ऍम सो सॉरी, दीदी! मैंने तुमको बहुत दुःख हुए हैं! आई ऍम सो सॉरी!”

यह माफ़ी उसने अपने हृदय की सच्चाई से मांगी थी।

अपनी शादी से पहले तक उसका रवैया माया को ले कर पूरी तरह से उदासीन ही रहा था। उसके बाद भी कुछ ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ। लेकिन माया दीदी ने कभी उसका साथ नहीं छोड़ा था। अपने काईयाँ पति के होते हुए भी! काश कि उसने कुछ कहा होता; कुछ किया होता! क्यों नहीं किया उसने कुछ उनको उस अंधे कुएँ में गिरने से बचाने के लिए!?

“अरे... ऐसे क्यों बोलता है रे तू?” माया के स्वर में दुलार, ममता, और लाड़ वाले भाव आने में एक क्षण भी नहीं लगा, “मेरा भाई है तू! मेरा छोटा भाई... मेरा छोटू... मेरा बाबू...” ऐसे दुलार भरी बातें कहते हुए वो उसको उठा कर चूमने लगी, “ऐसी बातें कभी न कहना अब!”

“नहीं दीदी... जो सच है, बस वही कहा!”

“कोई सच वच नहीं है कुछ भी!” माया दीदी ने ममता वाले भाव से समझाते हुए कहा, “अगर मेरा छोटा भाई ही मुझसे न रूठे, तो कैसा छोटा भाई! हम्म?”

“नहीं दीदी! तुमसे रूठ नहीं सकता...”

“बाबू... दीदी केवल दीदी थोड़े ही होती है, माँ जैसी भी तो होती है!”

कह कर माया ने अजय को कस कर अपने आलिंगन में भर लिया। उसके आलिंगन में बँधा हुआ अजय कुछ देर तक रोता रहा - उसका शरीर रोने के आंदोलन से हिल रहा था। लेकिन माया ने उसको अपने आलिंगन से अलग नहीं होने दिया।

अजय के मन में कई सारे विचार तेजी से आ जा रहे थे। जो विपत्ति में साथ दे, वही सच्चा साथी है। कहाँ तो अपना भाई ही अलग हो रखा है, और कहाँ माया दीदी हैं, जो कभी भी इनसे दूर न हुईं! क्या मतलब है ऐसे रक्त-संबंधों का?

“तुम बहुत अच्छी हो दीदी,” अंततः अजय बोला।

“अरे, का हो गया मेरे छोटू बाबू को? हम्म?” माया ने उसको फिर से दुलारते हुए कहा, “बोलो न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

माया भी अजय का यूँ अचानक ही बदला हुआ रूप देख कर चकित थी। लेकिन आशंकित नहीं। वो जानती थी कि अजय के अंदर एक बहुत ही भोला सा बच्चा है। उसको लगता था कि उसी के प्रयासों में कोई कमी हुई है, इसीलिए वो उससे ऐसे रूठा रहता है। वो कोशिश करती कि अजय के मन में उसके लिए प्रेम उत्पन्न हो। लेकिन फिर भी, छोटा भाई अगर मनुहार न कराए, तो कैसा छोटा भाई? लेकिन आज बातें पलट गई थीं - वो समझ गई थी कि अजय भी उससे बहुत प्रेम करता था। कितना सुन्दर दिन था आज उसके लिए! उसके दो भाई हैं - अब तो छोटा भाई भी बड़े के ही जैसे उससे इतना प्रेम करता है! पापा हैं। माँ हैं। सभी ने उसको इतना सुन्दर, संपन्न, और सुरक्षित जीवन दिया है। और क्या चाहिए भला उसको अपने जीवन से?

वो बोली, “बाबू... मेरे बेटू, अपने मन में कोई ऐसा वैसा ख़याल मत लाओ... समझे? ... हम दोनों ने एक ही माँ का दूध पिया है। हम दोनों एक ही माँ के बच्चे हैं! तुम मेरे छोटे भाई हो, और मैं तुम्हारी बड़ी बहन! इसलिए अगर मैं अच्छी हूँ, तो मेरा बाबू बहुत ही अच्छा है!”

“ये कौन सा लॉजिक है दीदी?” अजय के होंठों पर मुस्कान आ ही गई।

“माया दीदी का लॉजिक है!” वो मुस्कुराई, “इसलिए परफेक्ट लॉजिक है!”

“हा हा!” माया की बात पर अजय हँसा, “आई लव यू, दीदी! सच में! आई लव यू!”

“आई नो,” वो बोली, “अब अपने मन में कोई ऐसी वैसी बात मत लाना!”

“नहीं लाऊँगा दीदी!” अजय मुस्कुरा कर बोला, “लेकिन दीदी, जब तुमने मुझको ‘बेटू’ कह कर बुलाया, तो बहुत अच्छा लगा।”

“अले मेला बच्चा,” माया ने फिर से लाड़ से, बनावटी तुतलाहट ला कर कहा, “तू है न मेरा ही बेटा! इसीलिए तो प्यार से बाबू कहती हूँ तुमको!”

“सच में दीदी?”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माया दीदी के चेहरे पर खुशियाँ देख कर उसको वापस कमल और दीदी के ‘संभावित’ रिश्ते की बात याद हो आई। लगता तो है कि दोनों साथ में बहुत सुखी रहेंगे! कुछ नहीं तो उस नीच आदमी के चक्कर में तो नहीं पड़ेंगी वो! उसने सोचा, और माया का कमल के साथ भरा पूरा परिवार की कल्पना करी! दो बच्चे तो हुए ही थे दीदी को!

‘माया दीदी, कमल, और उनके दो बच्चे!’

सुन्दर दृश्य था! उसके होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान आ गई।

“क्या सोच रहे हो?” माया ने उसको शक की निगाह से देखा।

उसने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “कुछ भी नहीं दीदी! बस केवल यह कि मेरी दीदी सच में बहुत अच्छी है!” अजय का दिल फिर से बुझने लगा, “काश मैं तुमसे बहुत पहले से सही तरीक़े से, इज़्ज़त से पेश आता!”

“फिर वही बात!” माया ने नकली नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “तुमको ऐसा सोचने की कोई ज़रुरत नहीं है बाबू! ऐसा सोचना भी मत! मुझे तो बस इसी बात से ख़ुशी है कि तुम मुझसे इतना प्यार करते हो!”

“दीदी,” कह कर अजय माया के आलिंगन में सिमट गया, “मैं तुम्हारी बहुत रेस्पेक्ट करता हूँ, लेकिन तुमको ‘आप’ जैसा फॉर्मल फॉर्मल नहीं बोलूँगा।”

“ज़रुरत भी नहीं है!”

“आई लव यू!”

“खूब!” माया अजय के बाल बिगाड़ते हुए बोली, “अब बोल, क्या सोच रहा था मेरा बच्चा?”

“बताऊँगा दीदी, लेकिन कुछ देर में! मैं खुद ही बताना चाहता हूँ, लेकिन प्लीज़ दूसरी बार मत पूछना!”

“बताओगे न? प्रॉमिस?”

“हाँ दीदी!”

“माया बेटे, अज्जू... थोड़ी देर नीचे आओ दोनों!” उसी समय माँ की पुकार सुनाई दी।

“हाँ माँ?” माया दीदी ने भी पुकार कर कहा।

“नीचे आ जाओ... एक ज़रूरी बात करनी है दोनों से!”

“आये माँ,” दोनों ने साथ ही कहा।

फिर माया ने जल्दी से एक टी-शर्ट पहन ली, और बोली, “चलें?”


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Nice update....
 
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