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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


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park

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अपडेट 17


अशोक जी के आते आते लगभग नौ बज गए थे।

अजय को अपने पापा से बड़ी मोहब्बत थी। लेकिन थोड़ा डर भी लगता था उसको उनसे।

अगर आज वो उनको आखिरी बार देख रहा था तो वो उनके साथ कुछ अनमोल यादें बना लेना चाहता था।

“पापा,”

“आओ बेटे,” अशोक जी उसको देख कर मुस्कुराये, “आओ!”

अजय आ कर उनके समीप उनके पैरों के पास बैठ गया। जैसा वो पहले भी करता था।

“पापा, आपसे एक बात कहूँ?”

“हाँ बेटे, बोलो न?”

“एक्चुअली, एक रिक्वेस्ट है! मोर लाइक अ विश...”

“अरे बोलो न!”

“क्या मैं आपके साथ बैठ कर स्कॉच पी सकता हूँ...”

ऐसी अतरंगी रिक्वेस्ट? एक बार तो अशोक जी अचकचा गए कि ये अजय क्या कह रहा है। फिर उन्होंने कुछ पल सोचा।

अंततः, “तुम अभी अंडरऐज हो बेटे,”

“आई नो पापा,” वो बोला, “लेकिन एक बार... बस एक बार?”

अशोक जी सोचने लगे।

“प्लीज़ पापा,” वो लगभग गिड़गिड़ाया, “आज के बाद ऐसी हिमाकत नहीं करूँगा!”

अशोक जी कुछ क्षण चुप रहे, फिर बोले, “ग्लेनफ़िडिक... एटीन इयर्स ओल्ड...”

“थैंक यू पापा!”

“तुम्हारा पेग मैं बनाऊँगा!”

“यस सर,”

कह कर अजय एक ट्रे में सोडा, दो ग्लास, स्कॉच की बोतल, और बर्फ़ ले कर पापा के पास बैठ गया।

अशोक जी ने बहुत थोड़ा सा अजय डाला और उसमें ढेर सारा सोडा और तीन बर्फ़ के टुकड़े डाले। उनका खुद का ड्रिंक सामान्य ही था।

“चियर्स बेटे,”

“थैंक्स पापा, एंड चियर्स!”

अगर पापा के साथ ये उसकी आख़िरी याददाश्त है, तो बहुत खूबसूरत है।

अजय मुस्कुराया।

‘काश पापा बहुत सालों तक उसके साथ रहते!’

“यू आर मोस्ट वेलकम सन!” अशोक जी मुस्कुराये, “अब बोलो... क्या है मन में?”

“बहुत कुछ है पापा,”

“कहीं से शुरू करो!” वो बोले, “बाप से बात करने की हिम्मत तो जुटा चुके हो! ... ज़रूर ही कोई बहुत बड़ी बात होगी!”

“हाँ पापा, बातें बड़ी हैं। शायद अभी आप समझ न सकें!”

“अरे! अपने बाप की समझ पर शक है तुमको?”

“नहीं पापा! लेकिन... लेकिन मैं आपसे जो कुछ कहना चाहता हूँ न, बहुत ही काम्प्लेक्स है!”

“ट्राई मी!”

“पापा, आप बिज़नेस में न... कभी भी हीरक पटेल या उसकी किसी भी कंपनी के साथ डील न करिएगा।”

“हीरक पटेल?”

“जी! बहुत ही बदमाश और धूर्त किस्म के लोग हैं वो।”

हीरक पटेल ने ही अशोक जी को बिज़नेस में भारी नुक़सान पहुँचाया था। दोस्ती यारी में उनको ऐसा गच्चा दिया, कि आधा बिज़नेस उन्होंने कब्ज़िया लिया। आधा जो बचा, उसमें इतनी देनदारी थी कि सब कुछ जाता रहा था पापा का।

“तुमको कैसे पता?”

“बस ये मत पूछिए!”

“हम्म... ओके! डील!”

अजय मुस्कुराया, “थैंक यू, पापा!”

“और कुछ?”

“जी पापा! अगर कभी आप आलोक शर्मा जी से या उनके दामाद अमर सिंह से मिलें, तो उनके साथ ज़रूर कोई बिज़नेस करिएगा। आलोक शर्मा जी एक रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर रह चुके हैं। ऑनेस्ट बिज़नेस रहेगा उनका।


[अलोक शर्मा, अमर, और उसकी पत्नी देवयानी (डेवी) के बारे में पढ़ने के लिए नीचे मोहब्बत का सफ़र लिंक पर जाएँ] :)


“ओके! कहाँ है उनका ऑफिस? कौन सा बिज़नेस है उनका?”

अजय को अब झटका लगा।

ये तो गड़बड़ हो गई - उनका बिज़नेस तो कोई तीन चार साल बाद शुरू होने वाला है।

“अह... प्लीज़ डोंट वरि अबाउट इट जस्ट येट पापा!” अजय बोला, “लेकिन इस पटेल से दूर रहिएगा। प्लीज!”

“ओके!” अशोक जी समझ नहीं रहे थे, लेकिन वो बिना वजह उसको अपसेट नहीं करना चाहते थे।

फिर एक पल रुक कर बोले, “बेटे, एक बात बताओ - तुमने मुकेश के लिए मना क्यों किया?”

हाँ - यह अजय का फेवरिट टॉपिक था।

“आपको बताया तो पापा! बहुत सारे रीसंस हैं... लेकिन जो सबसे बड़ी बात है, वो यह है कि मुझे लगता है - आई ऍम कन्विंस्ड - कि वो आपकी दौलत के लिए दीदी से शादी करना चाहता है।” अजय ने पूरी सच्चाई से कहा, “... दीदी ऐसी पढ़ी लिखी नहीं हैं, और न ही बहुत सुन्दर हैं, कि कोई यूँ ही चला आए उनके लिए... और उनका कोई सोशल सर्किल भी ऐसा नहीं है कि कोई अपनी तरफ़ से उनके लिए प्रोपोसल भेजे!”

“हम्म,”

“हाँ, अगर कोई उनको चाहता है, तो अलग बात है!”

“आई अंडरस्टैंड कि तुम क्या कहना चाहते हो...” अशोक जी ने कहा, “तो... क्या माया चाहती है किसी को?”

“कहाँ पापा! दीदी तो पूरा दिन भर घर का काम करती रहती हैं... उनको मौका कहाँ मिलता है किसी से मिलने का?”

“बेटे, इसीलिए तो हम पेरेंट्स लोग इन्वॉल्व होते हैं न बच्चों की शादी में...”

“हाँ पापा, आपकी बात सही है। लेकिन लड़का भी तो ऐसा होना चाहिए न, जो दीदी को चाहे! उनसे प्यार करे...”

“हाँ, ऐसा तो चाहिए ही बेटे!” अशोक जी ने कहा, “तुमको पता है ऐसा कोई लड़का?”

पुराना अजय शायद ऐसी बातें कहने में हिचकता...

“एक है... आप भी जानते हैं उसको...”

“अच्छा? कौन?”

“कमल...”

“व्हाट? हा हा...” अशोक जी हँसने लगे, “आज कल के बच्चे भी न...”

“क्यों पापा? क्या गलत है इसमें? ... कमल दीदी से प्यार क्यों नहीं कर सकता?”

“कर सकता है, बेटे!” अशोक जी ने थोड़ा सोच कर कहा, “आई ऍम सॉरी बेटे! यस... वो माया से प्यार कर सकता है! लेकिन ऐसा कम ही होता है न! इसलिए थोड़ा अजीब... नहीं, अजीब नहीं... थोड़ा अलग लगा!”

“आप इनके ख़िलाफ़ तो नहीं होंगे न?”

“व्हाई? अगर ये दोनों शादी करना चाहते हैं, तो मैं इनके ख़िलाफ़ क्यों रहूँगा? मुझे तो अपने बच्चों की ख़ुशियाँ चाहिए।” अशोक जी ने बड़े ही मृदुल भाव से कहा, “कमल मुझको भी अच्छा लगता है। अच्छा लड़का है वो! इतने सालों से जानते हैं हम उसको...”

“थैंक यू पापा!”

“राणा साहब (कमल के पिता) से बात करूँ तो?”

अजय खुश हो गया, “क्यों नहीं पापा! ... लेकिन कमल ने आज ही मुझे दीदी के बारे में वो क्या सोचता है, वो बताया। मैंने भी दीदी को अभी कुछ देर पहले ही बताया है... आपको... आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके राणा अंकल से बात करने के पहले, वो दोनों एक बार एक दूसरे से थोड़ी अलग सिचुएशन में मिल लें?”

“बेटे, देखो, मैं तुम्हारी बात समझता हूँ... लेकिन माया बेटी है हमारी! और हम इज़्ज़त वाले लोग हैं। राणा साहब भी खानदानी हैं... इज़्ज़तदार हैं। इसलिए मुझे लगता है कि पहले हमारा ही उनसे मिलना ठीक होगा। ... वैसे भी वो लड़के वाले हैं... शादी का रिश्ता तो हमारी तरफ़ से ही जाएगा! ... जाना चाहिए...”

“जी,” अजय कुछ कहना चाहता था लेकिन अशोक जी ने उसको रोक कर कहा,

“बेटे देखो... मैं चाहता हूँ कि अगर इन दोनों का रिश्ता आगे बढ़ता है, तो उसमें उनका भी आशीर्वाद हो! ठीक है?”

अजय ने गहरी साँस भरी - उसकी हर बात तो नहीं मानी जा सकती न! लेकिन पापा माया दीदी और कमल को ले कर सीरियस हो सकते हैं, यह जान कर उसको बहुत अच्छा लगा।

“जी पापा!” वो बोला, फिर “तो हम लोग कब चल सकते हैं उनके पास, मिलने?” अजय ने आशापूर्वक पूछा।

“कल ही... शुभस्य शीघ्रम!” अशोक जी ने कहा, “भाई साहब और भाभी जी दोनों ही माया बेटे से मिले भी हैं, और उसको अच्छी तरह से जानते भी हैं! ... लेकिन शादी की बात और ही है...”

“पापा, मैं एक बार कमल से कह दूँ कि वो कल क्या एक्सपेक्ट करे?”

“हा हा... हाँ बता दो उसको! ऐसा न हो कि घबरा कर वो अपनी फ़ीलिंग्स से ही इंकार कर दे!”

अशोक जी ने हँसते हुए कहा।


**
Nice and superb update....
 

avsji

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अपडेट 18


अशोक जी से बातें कर के अजय ने सबसे पहले कमल को फ़ोन लगाया।

कमल भी अजय की पहल को जान कर भौंचक्क रह गया। लेकिन यह जान कर उसको राहत मिली कि माया के पापा को उनके सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं थी। उसके स्वयं के घर में अजय और माया को लेकर बड़े सकारात्मक विचार थे। कमल की माता जी माया को पसंद करती थीं। वो अपनी बहू ऐसी चाहती थीं जो गृह-कार्य में दक्ष हो, और उनके वंश को आगे बढ़ाने को इच्छुक हो। माया उनको इसलिए पसंद आती थी क्योंकि वो जानती थीं कि ये लड़की अवश्य ही पहले सड़क पर खेल तमाशे दिखाती थी, लेकिन वो काम वो अपने परिवार के पालन के लिए करती थी। अशोक जी के वहाँ आने के बाद से वो हर उस कला में निपुण हो गई थी, जो वो अपनी बहू में चाहती थीं।

माया का परिवार तो अच्छा था ही। किरण जी से बातों ही बातों में पता चल गया था कि अशोक जी अपनी जायदाद का आधा हिस्सा माया के नाम लिखने वाले हैं। मतलब, वो माया और परिवार में उसके स्थान को लेकर गंभीर भी थे। इससे भी उनके मन में माया को ले कर सकारात्मक विचार थे। यह सभी बातें कमल को मालूम थीं। वो जानता था कि अगर वो अपने माँ बाप से बात करेगा, तो शायद वो भी माया को ले कर खास विरोध न करें।

कमल से बात करके अजय को एक खालीपन सा महसूस होने लगा।

जब आप अपना मिशन पूरा कर लेते हैं तो एक संतुष्टि वाला भाव उत्पन्न होता है न? ठीक वैसा! अब कुछ करने को शेष नहीं था। उसने प्रयास कर के माया दीदी का जीवन खराब होने से बचा लिया था। संभव है कि उनकी शादी कमल से न हो, लेकिन उस कमीने मुकेश से तो नहीं ही होगी! प्रशांत भैया के मन में उसने कणिका के प्रति संशय भर दिया था। वैसे भी उसने माँ को चिट्ठी लिख कर कणिका के बारे में, और पापा की जीवन रक्षा के बारे में सब कुछ बता दिया था। अंततः, उसने पापा से कह कर एक बेहद नुक़सानदायक बिज़नेस डील न करने को मना लिया था।

और क्या बाकी था?

शायद कुछ भी नहीं...

यह विचार आते ही वो थोड़ा दार्शनिक सा महसूस करने लगा।

पुनः, वो अपने वयस्क जीवन (?) के बारे में सोचने लगा।

अगर वो - मतलब उसकी चेतना - अपने भूतकाल में आ गया है, तो उसके ख़ुद का कोई अस्तित्व है भी या नहीं? अगर वो ख़ुद ‘यहाँ’ है, तो ‘वहाँ’ कौन है? और अगर वो ‘वहाँ’ नहीं है, तो माँ के साथ कौन है? यह सोचते ही उसका शरीर पसीने से नहा गया।

बाप रे! भूत, भविष्य, और वर्तमान के खेल में वो ऐसा फँसा है कि अनजाने ही उसने माँ को भीषण तकलीफ़ में झोंक दिया है। बेचारी का क्या हाल हो रहा होगा अपनी एकलौती औलाद को ‘मृत’ पा कर! कैसे बीता होता उनका आज का दिन? रो रो कर उनका बुरा हाल हो गया होगा! कैसे करेंगी वो सब कुछ?

फिर उसके मन में विचार आया कि वो वैसे भी आज सोएगा तो कल अपने वयस्क अवतार में आँखें खोलेगा। आज उसने जो प्रयास किए हैं, उसके कारण उसका भविष्य बदल जाएगा - उसको ऐसी उम्मीद तो थी।

लोग सोचते हैं कि भाग्य बदलता नहीं! कैसे नहीं बदलता?

वो भविष्य के ज्ञान को अपने भूतकाल में लाया है। ऐसे फीडबैक के कारण उसका भविष्य कैसे नहीं बदलेगा? अवश्य बदलेगा! अगर कुछ बदलना ही नहीं संभव था, तो फिर ईश्वर ने उसको यह अवसर दिया ही क्यों? उनके पास व्यर्थ समय थोड़े ही है कि किसी से यूँ ठिठोली करें? मतलब, उसके प्रयासों का कुछ प्रभाव तो पड़ेगा!

‘तो बहुत संभव है कि कल पापा भी हों, और माँ भी! ... शायद रागिनी नाम की दीमक भी न लगी हो उसके जीवन में!’

तो कल जब वो उठेगा, तो कहाँ उठेगा? पुणे में या फिर दिल्ली में!?

रोमाँच के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।

रात का सन्नाटा गहराने लगा था।

अजय के खुद के मन की दशा अब रात के सन्नाटे जैसी ही हो गई थी। ख़ामोश, गहरी, और अँधेरी!

इतने में,

“बाबू?” माया ने उसके कमरे में प्रवेश किया और बहुत हल्के से पुकारा।

“हाँ दीदी?” वो चौंका।

“सोए नहीं?”

उसने एक गहरी साँस भरी, “नींद नहीं आ रही है दीदी,”

“ऐसे कुर्सी पर बैठे रहोगे, तो नींद कैसे आएगी?” माया ने उसका हाथ पकड़ा और उठने को उकसाते हुए बोली, “चलो... उठो!”

अजय मुस्कुराया - माया दीदी उसके ऊपर अपना अधिकार बड़े ही मीठे तरीके से दर्शाती थीं। वो कोई धौंस नहीं दिखाती थीं। लेकिन कुछ बात तो थी ही उसके व्यवहार में, कि वो उनको मना नहीं कर पाता था।

“आओ... बेड में आओ!”

अजय ने बिस्तर में लेटने से पहले अपने कपड़े उतार दिए। उसको नग्न देख कर माया मुस्कुराई। यह तथ्य उससे छुपा हुआ नहीं था कि अजय नग्न हो कर सोता था। कभी कभी वो स्वयं भी नग्न हो कर सोती थी। ऐसी कोई अनहोनी सी बात नहीं थी यह।

जब अजय बिस्तर में लेट गया, तो माया ने उसको चादर ओढ़ा दी और उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी।

“दीदी?”

“हम्म?”

“कुछ देर बैठो मेरे पास?”

माया ने बिना कुछ कहे ‘हाँ’ में सर हिलाया और उसके बगल लेट गई।

“बाबू?”

“हम्म?”

“तुम... अम्म... उनके बारे में सीरियस हो न?”

“किसके?” अजय को बखूबी पता था कि माया किसके बारे में पूछ रही है। लेकिन बहन से थोड़ी ठिठोली तो की ही जा सकती है।

“उनके,” माया ने इस शब्द पर ज़ोर दिया, “... तुम्हारे दोस्त के,”

“अरे वाह वाह पतिव्रता दीदी मेरी! होने वाले हस्बैंड का नाम भी नहीं ले सकती?” अजय ने हँसते हुए छेड़ा, “दीदी, मैंने पापा से भी कह दिया है सब कुछ !”

“क्या?” अब चौंकने की बारी माया की थी।

“हाँ... देखो, मुझे घुमा फिरा कर बातें करना समझ में नहीं आता। वो... मुकेश... मुझको सही नहीं लगा।”

“क्यों बाबू?” माया ने पूछा, “देखो, मुझे तुम्हारी बात पर कोई डाउट नहीं है, लेकिन मैं भी जानना चाहती हूँ कि किसी को कैसे परखूँ!”

“दीदी, न तो उसने तुमको देखा, और न ही कभी हम कभी उससे मिले!” अजय ने समझाया, “ऐसे में वो क्यों आया? बस इसलिए क्योंकि पापा के पास पैसे हैं। उसको तुम्हारी क्वालिटीज़ से कोई लेना देना नहीं है। बस, पैसे चाहिए।”

“हम्म्म...”

“शादी उससे करो, जो तुमको चाहे! तुमसे प्रेम करे!”

इस बात पर शायद माया को कमल की याद हो आई। उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई।

“एक्साक्ट्ली! देखो न... कमल का सोच कर तुम कैसे मुस्कुराने लगी!”

“धत्त…”

“नहीं सोच रही थी उसके बारे में?”

माया झूठ नहीं कह सकती थी, “हाँ,” उसने शर्माते हुए कहा, “सोच रही थी!”

फिर पापा की बात सोचते हुए बोली, “पापा ने क्या कहा?”

“पापा को भी कमल पसंद है। उन्होंने कहा कि कल वो राणा साहब से बात करेंगे!”

“बाप रे!”

“क्या बाप रे?” अजय बोला, “देखो दीदी, पापा ने मुझे समझाया - और मुझे लगता है कि वो सही भी हैं - कि सभ्य घरों के बच्चे अगर अपने माँ बाप के आशीर्वाद से मिलें, तो बेहतर है। कम से कम हमको मालूम भी रहेगा, और हमारे परिवार इन्वॉल्व्ड भी रहेंगे!”

माया कुछ बोली नहीं। लेकिन उसके गालों पर शर्म की हल्की सी लालिमा आ गई।

अजय कह रहा था, “अगर कमल के पेरेंट्स भी तुम्हारे और कमल के रिश्ते के लिए मान जाते हैं, तो तुम दोनों बिना हिचक एक दूसरे से मिल सकते हो।”

माया की नज़रें शर्म से झुक गईं।

“एक दूसरे को जान लो दोनों... वैसे मुझे लगता है कि तुम भी कमल को बहुत पसंद करोगी। अच्छा है वो!”

“अगर वो तुमको ठीक लगते हैं, तो ठीक ही होंगे,” माया ने धीमे से कहा।

“लेकिन?”

“लेकिन, वो मुझसे छोटे भी हैं न!”

“छोटा होने पर भी उसको इतना रेस्पेक्ट तो दे ही रही हो!” अजय मुस्कुराया, “फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है?”

“बाबू... समझा करो न!”

“हा हा हा... हाँ, छोटा है, लेकिन बहुत नहीं। चार साल, बहुत हुआ तो!”

“पढ़ भी तो रहे हैं।”

“मेरे साथ ही ट्वेल्फ्थ पूरा हो जाएगा कमल का।”

“फिर भी!”

“दीदी देखो, सगाई तो अभी भी हो सकती है। हाँ, शादी में समय लग सकता है।” अजय ने शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम दोनों की शादी अभी नहीं हो सकती।”

“हैं? मतलब?”

“मतलब यह कि तुम दोनों शादी कर सकते हो... हाँ, यह ज़रूर है कि ये शादी वॉइडेबल है। मतलब अगर तुम या कमल चाहो, तो अमान्य कराई जा सकती है ये शादी। लेकिन, वो तो कोई भी शादी कराई जा सकती है!”

“और अगर केवल सगाई हो... मतलब शादी उनके इक्कीस के होने पर हो, तो?”

“फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है!” अजय बोला, “दीदी, क्या बात है? शादी करने की इच्छा जाग उठी है क्या?”

“धत्त, बदमाश है तू!”

“लकी है दोस्त मेरा!” अजय अभी भी माया की खिंचाई कर रहा था, “दीदी, तुम खूब बच्चे करना! कमल को बच्चे बहुत पसंद हैं!”

“पिटेगा तू अब, मेरे हाथों!”

“हाँ हाँ... हस्बैंड मिल गया, अब भाई की क्या वैल्यू!”

इस बात पर माया ने अजय का कान पकड़ कर खींचा और उसके गालों पर चुम्बन दिया।

“दोबारा ये बोला न, तो तुझे ऐसे ही कान पकड़ कर, ऐसे ही नंगू पंगू ले जा कर पापा और माँ से भी पिट्टी लगवाऊँगी। देख लेना,”

“आई लव यू दीदी!”

“हाँ...” वो बोली, “पहले तो रुला देता है, फिर लीपा-पोती करता है।”

“सॉरी दीदी! मज़ाक था सब!”

“ऐसा गन्दा मज़ाक मत किया कर मेरे साथ,”

दोनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर रहे, फिर माया ने ही पूछा,

“बाबू, कल रात सोते समय तुम ठीक तो थे न?”

“हाँ... क्यों? ऐसा पूछा तुमने?”

“नहीं...” माया ने हिचकिचाते हुए कहा, “वो... बात ये है कि तुम बहुत देर तक साँस नहीं ले रहे थे।”

“तुमको कैसे पता?”

“कल पानी पीने उठी थी रात में... इतना तो पता चलता ही है न!”

“हैं? पानी पीने से ये कैसे पता चलता है?”

वो मुस्कुराई, “तुम ख़र्राटे लेते हो न!”

“मैं?” अजय ने अविश्वास से कहा, “मैं ख़र्राटे लेता हूँ? ... कुछ भी!”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा,

“हाँ! कल रात मैं जब उठी, तो कमरे से तुम्हारे ख़र्राटे सुनाई नहीं दे रहे थे। मैंने कान लगाया, और जब देर तक सुनाई दिए तो कमरे में आई।”

“मैंने घबरा कर तुमको थोड़ा हिलाया...” माया के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं, “तब भी तुम नहीं उठे! तुम्हारी साँस भी नहीं चल रही थी। मैं भाग कर माँ को बुलाने ही वाली थी कि अचानक से ही तुम फिर से साँस लेने लगे!”

“फिर क्या दिक्कत है दीदी?” अजय ने थोड़ा सतर्क हो कर कहा, “साँस चल तो रही है न!”

“ऐसे मत बोलो बाबू,” माया की आँखों में आँसू आ गए, “तुमको नहीं पता कि मुझे कितना डर लगता है ये सब सोच के भी! ... और फिर... और फिर... माँ की एक ही निशानी हो तुम...”

कहते कहते माया का गला भर आया।

“ओह्हो दीदी! तुम भी न!” अजय ने बड़े प्यार से माया के गालों को अपनी हथेलियों में भर लिया, “मैं एकदम हट्टाकट्टा हूँ! बिलकुल तंदरुस्त! शायद कल रात बहुत गहरा सो गया होऊँ! जैसे मेडिटेशन के समय होता है न... वैसे!”

“पक्का कोई गड़बड़ नहीं है न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“और कभी भी तुमको कोई दिक्कत होगी, तो मुझको बताओगे न?”

“हाँ दीदी! पक्का!”

“ठीक है!”

“दीदी, अब सो जाओ,” वो बोला, “कल कमल से मिलने चलेंगे...”

अजय ने कह तो दिया, लेकिन वो खुद भी नहीं जानता था कि कल क्या होगा।

अगर मिशन पूरा हुआ है तो कल एक नया जीवन मिलने वाला है उसको!


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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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avsji भाई जी, आपको, आपके परिवार एवं सभी इष्ट मित्रों, पाठकों को आंग्ल नववर्ष 2025 के प्रथम दिवस पर शुभकामनाएं... यह वर्ष आपके जीवन को उत्कर्ष के पथ पर अग्रसर करें ऐसी कामना।

कथानक अपने उन्नत पथ पर अग्रसर है... अभी तो बहुत कुछ जानना पढ़ना शेष जान पड़ता है। यह कथानक भी आपके पुर्व रचित कथानकों के समान प्रसिद्ध हो एवं आपके लेखन कौशल को उत्तरोत्तर वृद्धि का कारक हो ऐसी शुभकामनाएं।

बहुत बहुत धन्यवाद उमाकांत जी!
आपको और आपके परिवार को भी नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ!
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Happy new year bro and Fir se lovers🥳

Happy new year bhai.
A new update for you :)
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
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अपडेट 1


“अंकल जी,” अजय अंदर ही अंदर पूरी तरह से हिला हुआ था, लेकिन फिर भी ऊपर से स्वयं को संयत दिखाने का पूरा प्रयास कर रहा था कि उस बूढ़े आदमी को डर न महसूस हो, “आप चिंता मत करिए... मैंने इमरजेंसी पर कॉल कर दिया है... एम्बुलेंस बस आती ही होगी!”

बूढ़ा आदमी बहुत मुश्किल से साँसे ले पा रहा था। उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था और उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव थे। अजय ने उसको अपनी बोतल से पानी पिलाने की कोशिश करी भी थी, लेकिन वो बस दो तीन छोटी घूँट भर कर रह गया।

दोपहर की कड़ी, चिलचिलाती धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी, इसलिए वो अपनी आँखें भी ठीक से नहीं खोल पा रहा था। अजय ने यह देखा। घोर आश्चर्य की बात थी कि इन पंद्रह मिनटों में कई सारी गाड़ियाँ उनके सामने से चली गई थीं, लेकिन अभी तक एक ने भी अपना वाहन रोक कर माज़रा जानने की ज़हमत नहीं उठाई थी। दुनिया ऐसी ही तो है!

यह देख कर अजय समझ गया कि जो करना है, उसको खुद से ही करना है। उसका खुद का दाहिना कन्धा अपने जोड़ से थोड़ा हट गया था, लेकिन फिर भी उसने अपनी सारी ताक़त इकट्ठा करी और बूढ़े को अपनी बाँहों में उठा लिया। पीड़ा की एक तीव्र लहर उसके दाहिने कन्धे से उठ कर मानों पूरे शरीर में फ़ैल गई। लेकिन उसने कोशिश कर के अपनी ‘आह’ को दबा लिया।

‘बस पाँच छः स्टेप्स (कदम), और फिर कोई प्रॉब्लम नहीं!’ उसने सोचा और बूढ़े को अपनी बाँहों में लिए अपना पहला कदम बढ़ाया।

अजय एक ‘क्लासिक अंडरअचीवर’ था। उसको अपने जीवन में अपनी प्रतिभा और क्षमता के हिसाब से बहुत ही कम सफ़लता मिली थी - इतनी कि उसको समाज एक ‘असफ़ल’ व्यक्ति या फिर एक ‘फेलियर’ कहता था। कम से कम उसके दोस्त तो यही कहते थे!

एक समय था जब उसके कॉलेज में उसके दोस्त और उसके शिक्षक सभी सोचते थे कि अगर आईआईटी न सही, वो एक दिन किसी न किसी अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज - जैसे रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज - में तो जाएगा ही जाएगा! उसके आस पड़ोस की आंटियाँ सोचती थीं कि उनके बच्चे अजय के जैसे हों। लेकिन ऊपरवाले ने उसकी तक़दीर न जाने किस क़लम से लिखी हुई थी। एक के बाद एक विपत्तियों और असफ़लताओं ने उसको तोड़ कर रख दिया था। ठीक कॉलेज से इंजीनियरिंग करना तो छोड़िए, इंजीनियरिंग कर पाना भी दूर का सपना बन गया। लिहाज़ा, मन मार कर उसको बीएससी और फ़िर ऍमसीए की डिग्री से ही समझौता करना पड़ा। आज तक उसकी एक भी ढंग की नौकरी नहीं लगी - एक आईटी कंपनी में नौकरी लगी थी, लेकिन वो दुर्भाग्यवश छूट गई। फिर, कभी किसी स्कूल में टीचर, तो कभी इंश्योरेंस एजेंट, तो कभी एमवे जैसी स्कीमें! कुछ बड़ा करने की चाह, कुछ हासिल कर पाने ही चाह दिन-ब-दिन बौनी होती जा रही थी।

वो बूढ़े को अपनी बाँहों में उठाये पाँच छः कदम चल तो लिया, लेकिन अभी भी छाँव दूर थी। ऐसी चटक धूप में छाँव भी चट्टानों और पेड़ों के ठीक नीचे ही मिलती है। उसको लग रहा था कि अब उसका हाथ टूट कर गिर जाएगा। लेकिन वैसा होने पर उस बूढ़े को अभूतपूर्ण हानि होनी तय थी। जैसे तैसे तीन चार ‘और’ कदम की दूरी तय करनी ही थी। अजय ने गहरी साँस भरी, और आगे चल पड़ा।

संयोग भी देखिए - आज 'एमवे' की मीटिंग थी मुंबई में। उसी के सिलसिले में वो अपने पुणे वाले घर से निकला था मुंबई को। जब उसने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे पकड़ा, तब उसको लगा था कि आज तो आराम से पहुँच जाएगा वो! सामान्य दिनों के मुकाबले आज ट्रैफिक का नामोनिशान ही नहीं था जैसे। लेकिन फिर उसने अपने सामने वाली गाड़ी को देखा - बहुत अजीब तरीक़े से चला रहा था उसका ड्राइवर। कभी इस लेन में, तो कभी उस लेन में। लोगों में ड्राइविंग करने की तमीज़ नहीं है, लेकिन ऐसा गड़बड़ तो कम ही लोग चलाते हैं। कहीं ड्राइवर को कोई समस्या तो नहीं है - यह सोच कर न जाने क्यों अजय उस गाड़ी से कुछ दूरी बना कर उसके पीछे ही चलने लगा।

कुछ ही क्षणों में उसकी शंका सच साबित हुई।

अचानक से ही सामने वाली गाड़ी सड़क के बीचों-बीच चीख़ती हुई सी रुक गई - कुछ ऐसे कि लेन के समान्तर नहीं, बल्कि लेन के लंबवत। यह स्थिति ठीक नहीं थी। फिलहाल ट्रैफिक बहुत हल्का था - बस इक्का दुक्का गाड़ियाँ ही निकली थीं उसके सामने से, लेकिन यह स्थिति कभी भी बदल सकती थी। उसने जल्दी से अपनी गाड़ी सड़क के किनारे पार्क करी और भाग कर अपने सामने वाली गाड़ी की तरफ़ गया। यह बहुत ही डरावनी स्थिति थी - सौ किलोमीटर प्रति घण्टे वाली सड़क पर पैदल चलना - मतलब जानलेवा दुर्घटना को न्यौता देना। लेकिन क्या करता वो!

जब उसने उस गाड़ी में झाँक कर देखा तो पाया कि एक बूढ़ा आदमी पसीने पसीने हो कर, अपना सीना पकड़े, पीड़ा वाले भाव लिए अपनी सीट पर लुढ़का हुआ था। उसकी साँस उखड़ गई थी और दिल की धड़कन क्षीण हो गई थी। उसको देख कर लग रहा था कि उसको अभी अभी हृदयघात हुआ था। अजय ने जल्दी से बूढ़े को ड्राइवर की सीट से हटा कर पैसेंजर सीट पर बैठाया, और ख़ुद उसकी कर को ड्राइव कर के अपनी कार के ही पीछे पार्क कर दिया। एक मुसीबत कम हुई थी... अब बारी थी बूढ़े को बचाने की। हाँलाकि अजय को थोड़ा ही ज्ञान था, लेकिन उसने बूढ़े को कार्डिओपल्मोनरी रिसुसिटेशन चिकित्सा, जिसको अंग्रेज़ी में सीपीआर कहा जाता है, दिया।

जैसा फ़िल्मों में दिखाते हैं, वैसा नहीं होता सीपीआर! उसमें इतना बल लगता है कि कभी कभी चिकित्सा प्राप्त करने वाले की पसलियाँ चटक जाती हैं। वो बूढ़ा आदमी कमज़ोर था - इसलिए उसकी भी कई पसलियाँ चटक गईं। नुक़सान तो हुआ था, लेकिन फिलहाल उसकी जान बच गई लग रही थी। इस पूरी चिकित्सा में अजय के दाहिना कन्धा अपने स्थान से थोड़ा निकल गया!

छाँव तक जाते जाते अजय की खुद की साँसें उखड़ गईं थीं। उसको ऐसा लग रहा था कि कहीं उसको भी हृदयघात न हो जाए! उसने सावधानीपूर्वक बूढ़े को ज़मीन पर लिटाया। बूढ़ा दर्द के मारे दोहरा हो गया। अजय की हालत भी ठीक नहीं थी। लेकिन,

“अंकल जी,” उसने बूढ़े से पूछा, “अब आपको कैसा लग रहा है?”

“ब... बेटा...” बूढ़े ने बड़ी मुश्किल से टूटी फूटी आवाज़ में कहा, “तुम...ने ब...चा... लिया म...मुझे...”

“नहीं अंकल जी,” अजय ने सामान्य शिष्टाचार दिखाते हुए कहा, “ऐसा कुछ नहीं है! ... और आप भी... थोड़ा आराम कर लीजिए।”

बूढ़ा अल्पहास में हँसा और तुरंत ही अपनी इस हरक़त पर उसको पछतावा हो आया। हँसी के कारण उसको अपने पूरे शरीर में तीव्र पीड़ा महसूस हुई। लेकिन फिर भी वो बोला,

“अब इस बूढ़े की ज़िन्दगी में आराम ही आराम है बेटे,” उसने मुश्किल से कहा, “बयासी साल का हो गया हूँ... अपना कहने को कोई है नहीं यहाँ! ... जो अपने थे, वो विदेश में हैं।”

“आपके पास उनका नंबर तो होगा ही न!” अजय ने उत्साह से कहा, “मैं कॉल कर देता हूँ? आपका मोबाइल कार में ही होगा न?”

वो मुस्कुराया, “नहीं बेटे... तुम मेरे पास बैठो। उनको मेरी ज़रुरत नहीं है अब! ... तुमने बीस मिनट में मेरे लिए इतना कुछ कर दिया, जो उन्होंने मेरे लिए बीस साल में नहीं किया!”

अजय फ़ीकी हँसी में हँसा। यही तो नियम है संसार का। काम बन जाए, तो क्या बाप? क्या माँ?

लेकिन उसको अपने माँ बाप की कमी महसूस होती थी। उनको गए लगभग पंद्रह साल होने को आए थे अब! दोनों के इंश्योरेंस थे और अजय को उनकी मृत्यु पर इंश्योरेंस के रुपए भी मिले। लेकिन अधिकतर रक़म उसके पापा के देनदारों को अदा करने में चली गई। अपने जीते जी, वो अपने माँ बाप का नाम ख़राब नहीं कर सकता था।

“... और मेरी बदक़िस्मती देखिए न अंकल जी,” उसने निराशापूर्वक कहा, “मैं अपने माँ बाप के लिए कुछ कर नहीं सकता!”

“क्या हुआ उनको बेटे?”

“अब वो इस दुनिया में नहीं हैं अंकल जी,”

“दुःख हुआ जान कर!”

“कोई बात नहीं अंकल जी,” उसने गहरी साँस भरी, “... आपका नाम क्या है?”

“प्रजापति...” बूढ़े ने बताया, “मैं प्रजापति हूँ,” फिर उसने पूछा, “और तुम बेटे?”

“जी मेरा नाम अजय है...” अजय ने कहा, और पानी की बोतल बूढ़े के होंठों से लगाते हुए बोला, “लीजिए, थोड़ा पानी पी लीजिए...”

“अजय बेटे, तुम बहुत अच्छे हो!” बूढ़े ने इस बार अच्छी तरह से पानी पिया, “माफ़ करना, बहुत प्यास लगी थी... तुम्हारे लिए कुछ बचा ही नहीं!”

अजय ने मुस्कुरा कर कहा, “अंकल जी, आप सोचिए नहीं! वैसे भी आपकी ज़रुरत मुझसे अधिक थी।”


**
चलिए नई कहानी के लिए अभिनंदन
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अजय का डर तो स्वाभाविक है कि शायद एक ही दिन मिला हो उसे। पर चीजें बहुत जल्दी होती दुख रही हैं इस अपडेट में।

हां चिट्ठी वाला दांव अच्छा है, और उम्मीद है कि कल उसे वो चिट्ठी वापस ले लेनी पड़ेगी, क्योंकि प्रजापति जी ने एक दिन तो नहीं ही दिया होगा कई जिंदगियों के प्रारब्ध को बदलने के लिए।

जैसे ही अजय को बोध हुआ कि संभव है वो केवल एक दिन के लिए 'वापस' लौटा हो, उसके मन में अपने प्रत्येक क्षण के बेहतर इस्तेमाल का मिशन सा बन गया।
वो वापस आया तो है - लेकिन कितने समय के लिए? यह एक बड़ा प्रश्न है। उसको नहीं पता न।
हाँ, लेकिन चिट्ठियों में उसने अपने ज्ञान से बहुत कुछ लिख तो दिया है।
अगर एक दिन के लिए ही वो वापस गया था, तो भी कुछ न कुछ प्रभाव पड़ना चाहिए भविष्य पर।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Ap ke update bahot badhiya hai ap ne achha likha hai bhai
And please new update be post kardo please

Sure. Update 18 posted.
 
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अपडेट 2


अजय ने अपनी कलाई की घड़ी को देखा, “इमरजेंसी सर्विस न जाने कब आएगी!”

“आ जाएगी बच्चे!” प्रजापति ने मुस्कुरा कर अपनी टूटी फूटी दर्द-भरी आवाज़ में कहा, “... मैं बहुत बोल नहीं पाऊँगा... तकलीफ़ होती है। तुम ही सब कहो! अपने बारे में बताओ कुछ...”

“क्या है बताने को अंकल जी? कुछ भी नहीं!”

“अरे! ऐसे न कहो बेटे! अपने रक्षक के बारे में जानने का कुछ तो हक़ है न मुझे?”

“हा हा हा... रक्षक! क्या अंकल जी!” अजय ने हँसते हँसते कहा, “ठीक है, कहता हूँ!”

“हम दिल्ली में रहते थे... हम, मतलब मेरे मम्मी पापा... मैं... और मेरे काका ताई!” अजय ने बताना शुरू किया, “पापा का बिज़नेस था, जो उन्होंने मम्मी के साथ शुरू किया था। मम्मी तब चल बसीं जब मैं पंद्रह साल का था। ... एक्चुअली, एक रोड एक्सीडेंट में माँ और काका चल बसे।”

प्रजापति ने सहानुभूति में सर हिलाया।

“फिर पापा ने ख़ुद को काम में झोंक दिया। ... लेकिन उनकी किस्मत ऐसी ख़राब निकली कि कई सालों तक बिज़नेस में उनको नुक़सान उठाना पड़ा। बहुत टेंशन में थे वो... एक दिन उसी के चलते उनको हार्ट अटैक हुआ और वो चल बसे!”

“आई ऍम सो सॉरी बेटे... इतनी कम उम्र में माँ बाप को खोना...” प्रजापति ने सर हिलाते हुए कहा, “और तुम?”

“जी कुछ भी ख़ास नहीं! बस, ऍमसीए करने के बाद छोटी मोटी नौकरियाँ करता रहा हूँ... अभी भी स्ट्रगल चल रहा है! घर में बस ताई जी हैं... तो वो ही मेरा परिवार हैं!”

“उनके बच्चे हैं?”

“एक बेटा है उनका... अमेरिका में! लेकिन वो अपने में ही खुश हैं!”

“शादी?”

“हाँ... उनकी शादी हो गई है!”

बूढ़ा बहुत मुश्किल से मुस्कुराया, “नहीं... तुम्हारी...”

अजय ने फ़ीकी हँसी हँसते हुए कहा, “हाँ... हुई थी शादी... लेकिन उसकी याद न ही करूँ तो बेहतर!”

“क्या हुआ?”

“होना क्या है अंकल जी... वही जो आज कल हर रोज़ हज़ारों आदमियों के साथ हो रहा है! ... उसने ताई जी और मुझ पर दहेज़ और डोमेस्टिक वायलेंस का झूठा केस लगा दिया!”

कहते हुए उसके मन में कड़वी यादें ताज़ा हो गईं!

रागिनी... उसकी पत्नी -- नहीं, भूतपूर्व पत्नी... एक्स वाइफ... के साथ बिताया गया एक एक पल जैसे नश्तर पर चलने के समान था। विदा हो कर आते ही उसने गिरगिट की तरह रंग दिखाने शुरू कर दिए थे। परिवार को तोड़ने की हर कला में निपुण थी वो! ऊपर से देश का कानून - दफ़ा 498A की बलि-वेदी पर अनगिनत भारतीय पुरुषों की बलि चढ़ चुकी है... एक उसकी भी सही!

“ऐसे में कोई कुछ सुनता थोड़े ही है! ... उसके चलते हम दोनों को तीन साल जेल में रहना पड़ा। न कोई सुनवाई न कुछ! ... डिवोर्स के सेटलमेंट में पापा का घर उसने हड़प लिया। ... बाद में दहेज़ का केस झूठा साबित हुआ... वायलेंस का भी... लेकिन तब तक हमारा सब कुछ बर्बाद हो गया था। वो सब होने से पहले वो पापा का घर भी बेच कर, सब कुछ सफ़ाचट कर के चम्पत हो गई... पुलिस को उसको ढूंढने में कोई इंटरेस्ट नहीं था। ... बस... इस तरह पीछे रह गए बस माँ और मैं!”

यह सब याद कर के अजय का मन खट्टा हो गया, “... जेल जाने के कारण जो छोटे मोटे काम मिलते थे, वो भी बंद हो गए। अब बस जैसे तैसे दो जून की रोटी का जुगाड़ हो पाता है, बस!”

प्रजापति ने निराशा में अपना सर झुका लिया, “क्या हो गया है समाज को... संसार को! हर तरफ़ बस नीचता ही नीचता!”

“हा हा! समाज और संसार को हम बदल तो नहीं सकते न अंकल जी!”

“तो क्या बदलना चाहते हो?” प्रजापति ने पूरी सहानुभूति से पूछा, “अगर उस लड़की... मतलब तुम्हारी बीवी से फिर से मुलाक़ात हो जाए, तो बदला लोगे उससे?”

“आपको क्या लगता है? इतना कुछ हो जाने के बाद मैं उसकी शक्ल भी देखना चाहूँगा?”

“फ़िर?”

“नहीं अंकल जी... मैं वैसी ज़हरीली सी लड़की फ़िर कभी भी अपनी ज़िन्दगी में देखना नहीं चाहूँगा... न ही कभी देखना और न ही कभी मिलना! कम से कम ये तो होना ही चाहिए!”

प्रजापति ने मुस्कुराते हुए कहा, “वो भी ठीक बात है! फिर क्या चाहते हो?”

“अंकल जी,” अजय ने कुछ देर सोचते हुए कहा, “एक मौका चाहता हूँ बस... एक मौका कि जो कुछ जानता हूँ, काश उसका एक बेहतर तरीक़े से इस्तेमाल कर सकता... काश कि अपने पापा, अपनी मम्मी के लिए कुछ कर सकता! ताई माँ को एक बेहतर ज़िन्दगी दे सकता...”

“अपनी ताई माँ को एक बेहतर ज़िन्दगी तो अभी भी दे सकते हो!”

इस बात पर अजय चुप रहा, और ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“... तो सच में... क्या चाहते हो?”

“अपने पापा को थोड़ी ख़ुशी देना चाहता हूँ, अंकल जी... मैं यह अक्सर ही सोचता हूँ कि काश एक मौका मिल जाए कि उनको थोड़ी खुशियाँ दे सकूँ... उन्होंने बहुत कुछ किया मेरे लिए, लेकिन मैं ही कुछ न कर सका...”

बहुत कुछ कहना चाहता था अजय, लेकिन शब्द मौन हो गए। इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन उसने जब ठहर कर सोचा, तो बस इतना ही तो चाहता था वो!

“बीता हुआ समय वापस नहीं आता न बेटे,” प्रजापति ने जैसे समझाते हुए कहा।

“जी अंकल जी... बीता हुआ समय वापस नहीं आता!”

अजय ने एक गहरा निःश्वास छोड़ते हुए कहा।

उसी समय एम्बुलेंस की आवाज़ आती हुई सुनाई देने लगी। अजय ने अपनी घड़ी में देखा,

“अंकल जी, एम्बुलेंस आने ही वाली है! आप घबराइएगा नहीं। सब ठीक हो जाएगा!”

प्रजापति मुस्कुराए, “तुम बहुत अच्छे हो, अजय बेटे! ... अपनी अच्छाई बनाए रखना!” कह कर उन्होंने अपना झुर्रियों से भरा हाथ अजय के सर पर फिराया, “... और अपना ध्यान रखना बेटे... अपने पथ से डिगना मत! जो सोचा हुआ है, वो करना... और मतिभ्रम न होने देना...!” प्रजापति की आवाज़ धीमी पड़ रही थी - लेकिन उनकी आँखों की चमक बरक़रार!

“थैंक यू अंकल जी,” अजय मुस्कुराते हुए बोला, “लेकिन आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे कि आप मुझे बाय बाय कर रहे हैं! ऐसे नहीं छोड़ूँगा आपको... हॉस्पिटल चल रहा हूँ आपके साथ, और आपको देखने रोज़ आता रहूँगा...”

इतना कह कर अजय अपनी जगह से उठ कर सड़क के किनारे खड़ा हो गया, और हाथ हिलाने लगा, जिससे कि आती हुई एम्बुलेंस उसको देख सके।

कोई मिनट भर में ही एम्बुलेंस उसके सामने आ खड़ी हुई। एक नर्स और एक पैरामेडिक तेजी से एम्बुलेंस से उतरे, और उनकी तरफ़ बढ़े। अजय को राहत हुई... समय व्यय हुआ, लेकिन कम से कम प्रजापति जी को समुचित चिकित्सा तो मिल ही सकती है। अजय ने इशारा कर के नर्स और पैरामेडिक को मरीज़ की तरफ़ जाने को कहा।

पैरामेडिक ने स्टेथोस्कोप लगा कर प्रजापति जी की हृदयगति नापी और बड़ी विचित्र दृष्टि से अजय की तरफ़ देखा।

“क्या हुआ?” अजय ने आशंकित होते हुए पैरामेडिक से पूछा।

“ही इस नो मोर...”

“क्या?!” अजय इस खुलासे पर चौंक गया, “... लेकिन आप लोगों के आने के एक मिनट पहले तक ही तो मैं इनसे बात कर रहा था! ऐसे कैसे...?” वो भाग कर प्रजापति जी के पास पहुँचा।

उसने देखा कि प्रजापति जी वाक़ई बड़े सुकून से अपनी चिर-निद्रा को प्राप्त हो गए थे।

“मतलब इतना सब किया वो सब बेकार गया!” वो बड़बड़ाया।

“जी?” पैरामेडिक ने पूछा।

“जी, मैंने इनको सीपीआर दिया था...” अजय की आँखों में आँसू आ गए, “हमने कुछ देर तक बातें भी करीं! ... मुझे तो लगा था कि...”

“आई ऍम सॉरी,” पैरामेडिक ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, “लेकिन इतनी एडवांस्ड एज में कुछ भी हो सकता है... इन्होने आपको कुछ बताया? कोई रिलेटिव या कोई और... जिनको हम इत्तला दे सकते हैं?”

“बता रहे थे कि इनके बच्चे विदेश में रहते हैं... कहाँ, वो मुझको बताया नहीं।”

“इनके पर्सनल इफेक्ट्स में कोई इन्फॉर्मेशन मिल सकती है,” कह कर उसने प्रजापति जी की कार की तलाशी लेनी शुरू कर दी।

कुछ देर बाद उसने निराश हो कर कहा, “... फ़ोन भी नहीं है!”

फिर उनका बटुआ निकाल कर बोला, “विश्वकर्मा प्रजापति... पुणे में रहते हैं... थे...”

कुछ देर तक वो प्रशासनिक काम करता रहा, फिर अजय से बोला, “आप अपना कांटेक्ट दे दीजिए... वैसे तो आपको कांटेक्ट करने की कोई ज़रुरत नहीं पड़ेगी, लेकिन अगर पुलिस को कोई ज़रुरत हुई, तो आपको कांटेक्ट करेंगे!”

“ठीक है...” अजय ने कहा, और अपना नाम पता और फ़ोन नंबर लिखवाने लगा।

इस पूरे काम में बहुत समय लग गया था, और मीटिंग के लिए पहुँचने में बहुत देर लगने वाली थी। अब मुंबई जाने का कोई मतलब नहीं था। इसलिए अजय वापस पुणे की तरफ़ हो लिया।


**
वाव बढ़िया बहुत बढ़िया
अजय का अतीत और हाल ही में हुए बंगलौर की घटना में कितनी समानता है l
अजय के जीवन में प्रजापति जी का आना बेवजह तो नहीं हो सकता
देखते हैं आगे कहानी कौनसी मोड़ लेती है
 

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अपडेट 3


“अरे... अज्जू बेटे, इतनी जल्दी वापस आ गए?” अजय की ताई माँ - किरण जी - ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

समय के हिसाब से उसको देर रात तक वापस आना चाहिए था।

“... मीटिंग जल्दी ख़तम हो गई क्या बेटे?”

किरण जी - अजय के पिता अशोक जी के बड़े भाई अनामि जी की पत्नी थीं। पूरे परिवार में अब केवल वो ही शेष रही थीं, और वो अजय के साथ थीं, पास थीं... लिहाज़ा, वो हर प्रकार से अजय की माता जी थीं। इसलिए वो भी उनको ‘माँ’ ही कहता था।

“नहीं माँ,” अजय ने जूते उतारते हुए कहा, “हुआ यह कि रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया... उसके कारण मैं मुंबई पहुँच ही नहीं पाया!”

“क्या?” माँ तुरंत ही चिंतातुर होते हुए बोलीं, “तुझे चोट वोट तो नहीं लगी? ... दिखा... क्या हुआ?”

माँ लोगों की छठी इन्द्रिय ऐसी ही होती है - बच्चों के मुँह से रत्ती भर भी समस्या सुन लें, तो उनको लगता है कि अनर्थ ही हो गया होगा।

“नहीं माँ,” कह कर अजय ने माँ को पूरी कहानी सुनाई।

“सॉरी बेटे... कि वो बच नहीं सके!” माँ ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, “लेकिन, तूने पूरी कोशिश करी... वो ज़्यादा मैटर करता है। ... वैसे भी वो बूढ़े पुरुष थे...”

“हाँ माँ,” अजय बोला, “... लेकिन सच में माँ, मुझको एक समय में वाक़ई लग रहा था कि वो बच जाएँगे...”

“समय होता है बेटा जाने का... सभी का समय होता है।” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, फिर बात बदलते हुए बोलीं, “वैसे चलो, बहुत अच्छा हुआ कि तू जल्दी आ गया... मैं भी सोच रही थी कि तेरे वापस आने तक कैसे समय बीतेगा! ... अब तू आ गया है, तो तेरी पसंद की कच्छी दाबेली बनाती हूँ और अदरक वाली चाय!”

अजय ख़ुशी से मुस्कुराया, “हाँ माँ! मज़ा आ जाएगा!”

कुछ समय बाद माँ बेटा दोनों कच्छी दाबेली और अदरक वाली चाय का आनंद ले रहे थे। अब तो यही आलम थे - ऐसी छोटी छोटी बातों से ही खुशियाँ मिल रही थीं। जेल के अंदर तो... ख़ैर!

चाय नाश्ता ख़तम हुआ ही था कि अजय को पुलिस का फ़ोन आया।

कुछ सामान्य प्रश्नोत्तर के बाद पुलिस इंस्पेक्टर ने अजय को उसकी सूझ-बूझ और उस बूढ़े आदमी की सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया और यह भी बताया कि उसको इस बार डिपार्टमेंट की तरफ़ से “सर्टिफिकेट ऑफ़ अप्प्रेसिएशन” भी दिया जाएगा। एक समय था जब पुलिस ने एक झूठे आपराधिक केस में उलझा कर उसकी और उसके परिवार की इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। और एक आज का समय है कि वो उसकी अनुशंसा करना चाहते हैं! समय समय का फेर! उसने सोचा और इस हास्यास्पद स्थिति पर हँसे बिना न रह सका। माँ को भी बताया, तो वो भी उसकी हँसी में शामिल हो गईं - कैसा कठिन समय था वो! इतना कि वो भी उसको याद नहीं करना चाहती थीं।

बाकी का समय सामान्य ही रहा।

लेकिन अजय को रह रह कर आज की बातें याद आ रही थीं - ख़ास कर उस बूढ़े प्रजापति की! कैसा दुर्भाग्य था उनका कि बच्चों के होते हुए भी उनको यूँ अकेले रहना पड़ा, और यूँ अकेले ही - एक अजनबी के सामने - अपने प्राण त्यागने पड़े! क्या ही अच्छा होता अगर बच्चे नहीं, कम से कम उनका कोई हितैषी ही उनके साथ होता। फिर उसने सोचा कि वो उनका हितैषी ही तो था। उस कठिन समय में वो उनके साथ था... उनकी प्राण-रक्षा करने का प्रयास कर रहा था। ऐसे लोग ही तो हितैषी होते हैं!

उसको अपने बड़े (चचेरे) भाई प्रशांत भैया की याद हो आई। वो भी तो माँ से अलग हो गए! इतने साल हो गए - क्या जी रही हैं या मर रही हैं, कुछ जानकारी ही नहीं है उनको। ऐसा तब होता है जब कोई गोल्ड-डिगर लड़की आती है, और आपको आपके परिवार से अलग कर देती है। वही उनके साथ भी हुआ था। बिल्कुल रागिनी के ही जैसी हैं कणिका भाभी! सुन्दर - लेकिन ज़हर बुझी! उनको भैया के घर में सभी से समस्या थी। न जाने क्यों! माँ को उनका विवाह सम्बन्ध पसंद नहीं आया था, क्योंकि उनको कणिका भाभी के परिवार का चरित्र पता था। पुराने सम्बन्धी थे वो - उनके मौसेरे भाई की बेटी थी कणिका भाभी। प्रशांत भैया के अमेरिका जाने के एक साल बाद येन-केन-प्रकारेण वो उसी युनिवर्सिटी में पढ़ने गईं, जहाँ भैया थे।

शायद इसी मिशन के साथ कि वो उनको फँसा लें। भैया भी एक नम्बरी मेहरे आदमी थे। फँस गए!

विचारों की श्रंखला में फिर उसको अपने दिवंगत पिता की याद हो आई।

क्या राजा आदमी थे, और किस हालत में गए! उसकी आँखें भर आईं।

“माँ...” रात में सोने के समय उसने माँ से कहा, “आपके पास लेट जाऊँ?”

“क्या हो गया बेटे?” माँ ने लाड़ से उसके बालों को बिगाड़ते हुए कहा, “सब ठीक है?”

“नहीं माँ...” उसने झिझकते हुए कहा, “आज जो सब हुआ... वो सब... और अब पापा की याद आ रही है... और फिर भैया ने जो सब किया... मन ठीक नहीं है माँ,”

“बस बेटे... ऐसा सब नहीं सोचते!” माँ ने उसको समझाते हुए कहा, “ये सब किस्मत की बातें हैं! भगवान पर भरोसा रखो... सब ठीक हो जाएगा!”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माँ ने मुस्कुराते हुए आगे कहा, “और तुम्हारे पहले क्वेश्चन का आंसर है, हाँ... आ जा! तुमको मुझसे पूछने की ज़रुरत नहीं!”

माँ को पता था कि अजय आज बहुत ही डिस्टर्ब्ड था - ऐसा पहले कुछ बार हो चुका था।

अजय एक अच्छा लड़का था... अपने ख़ुद के बेटे द्वारा उपेक्षित किए जाने के बाद अजय ने उनको सम्हाला था, और बिल्कुल अच्छे बेटे की ही तरह बर्ताव किया था। उसके पास बेहद सीमित साधन शेष थे, लेकिन उसने माँ की हर आवश्यकता का पूरा ध्यान रखा था। अजय वो बेटा था, जो अपना न हो कर भी अपने से कहीं अधिक अपना था! ऐसे बेटे की माँ बनना किसी भी स्त्री का सौभाग्य हो सकता है।

धीरे से आ जा री अँखियन में निंदिया आ जा री आ जा...
चुपके से नयनन की बगियन में निंदिया आ जा री आ जा”

माँ की इस लोरी पर अजय पहले तो मुस्कुराने, फिर हँसने लगा, “... क्या माँ... मैं कोई छोटा बच्चा हूँ कि मुझे लोरी सुना रही हो?”

“नहीं हो?”

“उह हह,” अजय ने ‘न’ में सर हिलाते हुए, मुस्कुराते हुए कहा।

जब माँ से उसने उनके पास लेटने को कहा, तभी वो समझ गईं कि आज बहुत भारी भावनात्मक समस्या में है अजय! समस्या ऐसी, जो उसके मन को खाये ले रही है। वो समझ रही थीं कि क्या चल रहा है उसके मन में... ऐसे में माँ वही करने लगती हैं, जिसको करने से अजय को बहुत सुकून और शांति मिलती है।

“नहीं हो?” माँ ने ब्लाउज़ के बटन खोल कर अपना एक स्तन उसके होंठों से छुवाते हुए कहा, “... आज भी मेरा दुद्धू पीते हो, लेकिन छोटे बच्चे नहीं हो!”

अजय ने मुस्कुरा कर माँ के चूचक को चूम लिया और अपने मुँह में ले कर पीने लगा। पीने क्या लगा - अब कोई दूध थोड़े ही बनता था, जो वो पीने लगता। लेकिन यह एक अवसर होता था माँ के निकट होने का, उनकी ममता के निकट होने का। उसके कारण उसको बहुत शांति मिलती थी।

किरण जी जानती थीं कि अजय का मन जब क्लांत होता है, तब स्तनपान से उसको बहुत शांति मिलती है। जब वो बहुत छोटा था, तब वो और अजय की माँ, प्रियंका जी, दोनों मिल कर अपने बेटों अजय और प्रशांत को बारी बारी से स्तनपान करातीं। इस परिवार में दोनों बच्चों में कोई अंतर नहीं था... और न ही कभी कोई अंतर किया गया। प्रशांत के स्तनपान छोड़ने के बाद से आयुष को दोनों माँओं से स्तनपान करने का एक्सक्लूसिव अधिकार मिल गया था। ख़ैर, दस साल की उम्र तक स्तनपान करने के बाद वो बंद हो ही गया।

लेकिन उसकी माँ की असमय मृत्यु के बाद से किरण जी ने पुनः उसको स्तनपान कराना शुरू कर दिया था। उस समय पुनः माँ बनने के कारण उनको दूध आता था। यह कुछ वर्षों तक चला। उसके बाद जब अजय वयस्क हुआ, तो फिर यह काम बंद हो गया। लेकिन जेल से छूटने के बाद अजय मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहा था। लिहाज़ा, अब जब भी स्तनपान होता, तो वो अधिकतर मनोवैज्ञानिक कारणों के कारण ही होता। पिछले कुछ वर्षों में उन दोनों के ही जीवन में तबाही आ गई थी - अजय के पिता की मृत्यु हो गई, फिर उनका कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया, अजय की पढ़ाई लिखाई भी कहीं की न रही, प्रशांत भैया ने भी उन दोनों से सारे रिश्ते नाते तोड़ लिए, फिर अजय की शादी ख़राब हो गई, माँ - बेटे दोनों दहेज़ के झूठे केस में जेल में रहे... अंतहीन यातनाएँ!

पिछले एक साल से, जेल से छूट कर आने के बाद अब शांति आई है। भारी क़ीमत चुकाई उन दोनों ने, लेकिन शांति आई तो! किरण जी ने यह अवश्य देखा कि कैसी भी गन्दी परिस्थिति क्यों न हो, उनके स्तनों का एहसास पा कर अजय मानसिक और भावनात्मक रूप से शांत हो जाता था - अगली कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए! इसलिए वो कभी भी अजय की स्तनपान करने की प्रार्थना को मना नहीं करती थीं।

“माँ?” कुछ देर बाद अजय ने कहा,

“हाँ बेटे?”

“कभी कभी सोचता हूँ कि काश आपको दूध आता...” वो दबी हुई हँसी हँसते हुए बोला।

“हा हा... बहुत अच्छा होता तब तो! तुझे रोज़ पिलाती अपना दूध!”

“सच में माँ?”

“और क्या!” फिर जैसे कुछ याद करती हुई बोलीं, “बेटे, तुझे दिल्ली वाले अमर भैया याद हैं?”

“हाँ माँ, क्यों? क्या हुआ? ऐसे आपको उनकी याद कैसे आ गई?”

“तू अमर से बात कर न... नौकरी के लिए? ... उसका बिजनेस तो बढ़िया चल रहा है न?”

“हाँ माँ!” अजय को जैसे यह बात इतने सालों में सूझी ही न हो, “आख़िरी बार बात हुई थी तो सब बढ़िया ही था! हाल ही में तो उनकी और उनकी कंपनी की ख़बर भी छपी थी अखबार में... उनसे बात करता हूँ! ... थैंक यू, माँ! मुझे सच में कभी उनकी याद ही नहीं आई इस बारे में!”

माँ बस ममता से मुस्कुराईं।

... लेकिन आपको उनकी याद कैसे आई?”

“अरे, कोई सप्ताह भर पहले काजल से बात हुई थी...”

“अच्छा? आपके पास उनका नंबर है?”

“हाँ... तुझे मैंने कभी बताया नहीं, लेकिन एक बार आई थी वो मिलने जेल में!”

“हे भगवान!” अजय ने सर पीट लिया।
शायद ही कोई ऐसा जानने वाला बचा हो, जिसको इनके संताप के बारे में न पता चला हो! अजय को इस तरह से 'प्रसिद्ध' होना अच्छा नहीं लगता। लेकिन अच्छे लोगों की... हितैषियों की पहचान कठिनाई के समय में ही होती है।

“नहीं बेटे! बहुत अच्छे लोग हैं वो। ... बहुत कम लोग ही हैं जिनको दोस्ती यारी याद रही! देखो न, कौन याद करता है हमको?”

“हम्म्म... अच्छा, वो सब छोड़ो माँ! क्या बोल रही थीं काजल आंटी?”

“मुंबई में ही रहती है अब। ... वो भी और सुमन भी! तुझे मालूम है?”

“नहीं!”

“हाँ, मुंबई में रहती है वो। सुमन भी! ... काजल ने बताया कि बहू को बेटी हुई है!”

“वाओ! सुमन आंटी को? वाओ! अमेज़िंग! कब? ... ये... तीसरा बच्चा है न उनका?”

“अमर को क्यों भूल जाते हो? चौथा बच्चा है...” उन्होंने कहा, “कोई नौ दस महीने की हो गई है अब उसकी बेटी भी!”

“सुमन ऑन्टी बहुत लकी हैं!”

“सुमन और काजल दोनों ही बहुत लकी हैं... दोनों की फ़िर से शादी भी हुई और बच्चे भी!” माँ जैसे चिंतन करती हुई बोलीं, “बहुत प्यारी फैमिली है... इतने दुःख आए उन पर, लेकिन हर दुःख के बाद वो सभी और भी मज़बूत हो गए...”

“जैसा आपने कहा माँ, सब किस्मत की बातें हैं!”

“हाँ बेटे...”

“हमको काजल या सुमन आंटी जैसी बहुएँ क्यों नहीं मिलीं, माँ?”

“किस्मत की बातें हैं बेटे... सब किस्मत की बातें हैं!” इस बार बहुत कोशिश करने पर भी किरण जी की आँखों से आँसू टपक ही पड़े!

अजय नहीं चाहता था कि माँ बहुत दार्शनिक हो जाएँ, इसलिए उसने चुहल करते हुए कहा,

“माँ... अमर भैया भी तो आंटी जी का दूधू पीते थे न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी भी! ... अब तो और समय तक पिएगा!”



[प्रिय पाठकों : अमर, काजल, और सुमन के बारे में जानने के लिए मेरी कहानी “मोहब्बत का सफ़र” अवश्य पढ़ें!]


“माँ, आप भी शादी कर लीजिए... फिर मैं भी आपका दूध पियूँगा!”

“हा हा! शादी कर तो लूँ, लेकिन अब कहाँ होंगे मुझे बच्चे!”

“क्यों?”

“अरे! सत्तावन की हो रही हूँ! अगर चाहूँ भी, तो भी ये सब नहीं होने वाला!”

“हम्म्म, मतलब चाह तो है आपको,” अजय ने फिर से चुहल करी।

माँ ने प्यार से उसके कान को उमेठा, “क्या रे, अपनी माँ से चुहल करता है?”

“सॉरी माँ, आऊऊ...” अजय ने अपने कान को सहलाते हुए कहा, “लेकिन माँ, अगर आपको अपनी कोई अधूरी इच्छा पूरी करनी हो, तो वो क्या होगी?”

“तुझे अपनी कोख से जनम देना चाहूँगी मेरे लाल... तेरी असली वाली माँ बनना चाहूँगी... ताई माँ नहीं!” माँ ने बड़ी ममता से कहा, “मेरी एक और भी इच्छा है - और वो ये है कि तेरी किसी बहुत ही अच्छी लड़की से शादी हो!”

“हा हा! पेट भरा नहीं आपका माँ दो दो बहुओं से? ... मेरा तो एक ही बीवी से भर गया माँ... अच्छे से!”

“बेटे, मैं अच्छी सी लड़की की बात कर रही हूँ... ऐसी जो तुझे चाहे... जो तेरी ताक़त बन कर रहे!”

“हा हा! क्या माँ - सपने देखने की आदत नहीं गई तुम्हारी!” अजय ने फ़ीकी सी हँसी हँसते हुए कहा।

“लव यू टू बेटे,” माँ ने उसके मज़ाक को नज़रअंदाज़ कर के, उसके माथे को चूमते हुए कहा, “सो जाओ अब?”

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ओ हो
तो यह कहानी एक एक्स्टेंशन है
चलिए आगे बढ़ते हैं
 

Harman11

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अशोक जी से बातें कर के अजय ने सबसे पहले कमल को फ़ोन लगाया।

कमल भी अजय की पहल को जान कर भौंचक्क रह गया। लेकिन यह जान कर उसको राहत मिली कि माया के पापा को उनके सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं थी। उसके स्वयं के घर में अजय और माया को लेकर बड़े सकारात्मक विचार थे। कमल की माता जी माया को पसंद करती थीं। वो अपनी बहू ऐसी चाहती थीं जो गृह-कार्य में दक्ष हो, और उनके वंश को आगे बढ़ाने को इच्छुक हो। माया उनको इसलिए पसंद आती थी क्योंकि वो जानती थीं कि ये लड़की अवश्य ही पहले सड़क पर खेल तमाशे दिखाती थी, लेकिन वो काम वो अपने परिवार के पालन के लिए करती थी। अशोक जी के वहाँ आने के बाद से वो हर उस कला में निपुण हो गई थी, जो वो अपनी बहू में चाहती थीं।

माया का परिवार तो अच्छा था ही। किरण जी से बातों ही बातों में पता चल गया था कि अशोक जी अपनी जायदाद का आधा हिस्सा माया के नाम लिखने वाले हैं। मतलब, वो माया और परिवार में उसके स्थान को लेकर गंभीर भी थे। इससे भी उनके मन में माया को ले कर सकारात्मक विचार थे। यह सभी बातें कमल को मालूम थीं। वो जानता था कि अगर वो अपने माँ बाप से बात करेगा, तो शायद वो भी माया को ले कर खास विरोध न करें।

कमल से बात करके अजय को एक खालीपन सा महसूस होने लगा।

जब आप अपना मिशन पूरा कर लेते हैं तो एक संतुष्टि वाला भाव उत्पन्न होता है न? ठीक वैसा! अब कुछ करने को शेष नहीं था। उसने प्रयास कर के माया दीदी का जीवन खराब होने से बचा लिया था। संभव है कि उनकी शादी कमल से न हो, लेकिन उस कमीने मुकेश से तो नहीं ही होगी! प्रशांत भैया के मन में उसने कणिका के प्रति संशय भर दिया था। वैसे भी उसने माँ को चिट्ठी लिख कर कणिका के बारे में, और पापा की जीवन रक्षा के बारे में सब कुछ बता दिया था। अंततः, उसने पापा से कह कर एक बेहद नुक़सानदायक बिज़नेस डील न करने को मना लिया था।

और क्या बाकी था?

शायद कुछ भी नहीं...

यह विचार आते ही वो थोड़ा दार्शनिक सा महसूस करने लगा।

पुनः, वो अपने वयस्क जीवन (?) के बारे में सोचने लगा।

अगर वो - मतलब उसकी चेतना - अपने भूतकाल में आ गया है, तो उसके ख़ुद का कोई अस्तित्व है भी या नहीं? अगर वो ख़ुद ‘यहाँ’ है, तो ‘वहाँ’ कौन है? और अगर वो ‘वहाँ’ नहीं है, तो माँ के साथ कौन है? यह सोचते ही उसका शरीर पसीने से नहा गया।

बाप रे! भूत, भविष्य, और वर्तमान के खेल में वो ऐसा फँसा है कि अनजाने ही उसने माँ को भीषण तकलीफ़ में झोंक दिया है। बेचारी का क्या हाल हो रहा होगा अपनी एकलौती औलाद को ‘मृत’ पा कर! कैसे बीता होता उनका आज का दिन? रो रो कर उनका बुरा हाल हो गया होगा! कैसे करेंगी वो सब कुछ?

फिर उसके मन में विचार आया कि वो वैसे भी आज सोएगा तो कल अपने वयस्क अवतार में आँखें खोलेगा। आज उसने जो प्रयास किए हैं, उसके कारण उसका भविष्य बदल जाएगा - उसको ऐसी उम्मीद तो थी।

लोग सोचते हैं कि भाग्य बदलता नहीं! कैसे नहीं बदलता?

वो भविष्य के ज्ञान को अपने भूतकाल में लाया है। ऐसे फीडबैक के कारण उसका भविष्य कैसे नहीं बदलेगा? अवश्य बदलेगा! अगर कुछ बदलना ही नहीं संभव था, तो फिर ईश्वर ने उसको यह अवसर दिया ही क्यों? उनके पास व्यर्थ समय थोड़े ही है कि किसी से यूँ ठिठोली करें? मतलब, उसके प्रयासों का कुछ प्रभाव तो पड़ेगा!

‘तो बहुत संभव है कि कल पापा भी हों, और माँ भी! ... शायद रागिनी नाम की दीमक भी न लगी हो उसके जीवन में!’

तो कल जब वो उठेगा, तो कहाँ उठेगा? पुणे में या फिर दिल्ली में!?

रोमाँच के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।

रात का सन्नाटा गहराने लगा था।

अजय के खुद के मन की दशा अब रात के सन्नाटे जैसी ही हो गई थी। ख़ामोश, गहरी, और अँधेरी!

इतने में,

“बाबू?” माया ने उसके कमरे में प्रवेश किया और बहुत हल्के से पुकारा।

“हाँ दीदी?” वो चौंका।

“सोए नहीं?”

उसने एक गहरी साँस भरी, “नींद नहीं आ रही है दीदी,”

“ऐसे कुर्सी पर बैठे रहोगे, तो नींद कैसे आएगी?” माया ने उसका हाथ पकड़ा और उठने को उकसाते हुए बोली, “चलो... उठो!”

अजय मुस्कुराया - माया दीदी उसके ऊपर अपना अधिकार बड़े ही मीठे तरीके से दर्शाती थीं। वो कोई धौंस नहीं दिखाती थीं। लेकिन कुछ बात तो थी ही उसके व्यवहार में, कि वो उनको मना नहीं कर पाता था।

“आओ... बेड में आओ!”

अजय ने बिस्तर में लेटने से पहले अपने कपड़े उतार दिए। उसको नग्न देख कर माया मुस्कुराई। यह तथ्य उससे छुपा हुआ नहीं था कि अजय नग्न हो कर सोता था। कभी कभी वो स्वयं भी नग्न हो कर सोती थी। ऐसी कोई अनहोनी सी बात नहीं थी यह।

जब अजय बिस्तर में लेट गया, तो माया ने उसको चादर ओढ़ा दी और उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी।

“दीदी?”

“हम्म?”

“कुछ देर बैठो मेरे पास?”

माया ने बिना कुछ कहे ‘हाँ’ में सर हिलाया और उसके बगल लेट गई।

“बाबू?”

“हम्म?”

“तुम... अम्म... उनके बारे में सीरियस हो न?”

“किसके?” अजय को बखूबी पता था कि माया किसके बारे में पूछ रही है। लेकिन बहन से थोड़ी ठिठोली तो की ही जा सकती है।

“उनके,” माया ने इस शब्द पर ज़ोर दिया, “... तुम्हारे दोस्त के,”

“अरे वाह वाह पतिव्रता दीदी मेरी! होने वाले हस्बैंड का नाम भी नहीं ले सकती?” अजय ने हँसते हुए छेड़ा, “दीदी, मैंने पापा से भी कह दिया है सब कुछ !”

“क्या?” अब चौंकने की बारी माया की थी।

“हाँ... देखो, मुझे घुमा फिरा कर बातें करना समझ में नहीं आता। वो... मुकेश... मुझको सही नहीं लगा।”

“क्यों बाबू?” माया ने पूछा, “देखो, मुझे तुम्हारी बात पर कोई डाउट नहीं है, लेकिन मैं भी जानना चाहती हूँ कि किसी को कैसे परखूँ!”

“दीदी, न तो उसने तुमको देखा, और न ही कभी हम कभी उससे मिले!” अजय ने समझाया, “ऐसे में वो क्यों आया? बस इसलिए क्योंकि पापा के पास पैसे हैं। उसको तुम्हारी क्वालिटीज़ से कोई लेना देना नहीं है। बस, पैसे चाहिए।”

“हम्म्म...”

“शादी उससे करो, जो तुमको चाहे! तुमसे प्रेम करे!”

इस बात पर शायद माया को कमल की याद हो आई। उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई।

“एक्साक्ट्ली! देखो न... कमल का सोच कर तुम कैसे मुस्कुराने लगी!”

“धत्त…”

“नहीं सोच रही थी उसके बारे में?”

माया झूठ नहीं कह सकती थी, “हाँ,” उसने शर्माते हुए कहा, “सोच रही थी!”

फिर पापा की बात सोचते हुए बोली, “पापा ने क्या कहा?”

“पापा को भी कमल पसंद है। उन्होंने कहा कि कल वो राणा साहब से बात करेंगे!”

“बाप रे!”

“क्या बाप रे?” अजय बोला, “देखो दीदी, पापा ने मुझे समझाया - और मुझे लगता है कि वो सही भी हैं - कि सभ्य घरों के बच्चे अगर अपने माँ बाप के आशीर्वाद से मिलें, तो बेहतर है। कम से कम हमको मालूम भी रहेगा, और हमारे परिवार इन्वॉल्व्ड भी रहेंगे!”

माया कुछ बोली नहीं। लेकिन उसके गालों पर शर्म की हल्की सी लालिमा आ गई।

अजय कह रहा था, “अगर कमल के पेरेंट्स भी तुम्हारे और कमल के रिश्ते के लिए मान जाते हैं, तो तुम दोनों बिना हिचक एक दूसरे से मिल सकते हो।”

माया की नज़रें शर्म से झुक गईं।

“एक दूसरे को जान लो दोनों... वैसे मुझे लगता है कि तुम भी कमल को बहुत पसंद करोगी। अच्छा है वो!”

“अगर वो तुमको ठीक लगते हैं, तो ठीक ही होंगे,” माया ने धीमे से कहा।

“लेकिन?”

“लेकिन, वो मुझसे छोटे भी हैं न!”

“छोटा होने पर भी उसको इतना रेस्पेक्ट तो दे ही रही हो!” अजय मुस्कुराया, “फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है?”

“बाबू... समझा करो न!”

“हा हा हा... हाँ, छोटा है, लेकिन बहुत नहीं। चार साल, बहुत हुआ तो!”

“पढ़ भी तो रहे हैं।”

“मेरे साथ ही ट्वेल्फ्थ पूरा हो जाएगा कमल का।”

“फिर भी!”

“दीदी देखो, सगाई तो अभी भी हो सकती है। हाँ, शादी में समय लग सकता है।” अजय ने शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम दोनों की शादी अभी नहीं हो सकती।”

“हैं? मतलब?”

“मतलब यह कि तुम दोनों शादी कर सकते हो... हाँ, यह ज़रूर है कि ये शादी वॉइडेबल है। मतलब अगर तुम या कमल चाहो, तो अमान्य कराई जा सकती है ये शादी। लेकिन, वो तो कोई भी शादी कराई जा सकती है!”

“और अगर केवल सगाई हो... मतलब शादी उनके इक्कीस के होने पर हो, तो?”

“फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है!” अजय बोला, “दीदी, क्या बात है? शादी करने की इच्छा जाग उठी है क्या?”

“धत्त, बदमाश है तू!”

“लकी है दोस्त मेरा!” अजय अभी भी माया की खिंचाई कर रहा था, “दीदी, तुम खूब बच्चे करना! कमल को बच्चे बहुत पसंद हैं!”

“पिटेगा तू अब, मेरे हाथों!”

“हाँ हाँ... हस्बैंड मिल गया, अब भाई की क्या वैल्यू!”

इस बात पर माया ने अजय का कान पकड़ कर खींचा और उसके गालों पर चुम्बन दिया।

“दोबारा ये बोला न, तो तुझे ऐसे ही कान पकड़ कर, ऐसे ही नंगू पंगू ले जा कर पापा और माँ से भी पिट्टी लगवाऊँगी। देख लेना,”

“आई लव यू दीदी!”

“हाँ...” वो बोली, “पहले तो रुला देता है, फिर लीपा-पोती करता है।”

“सॉरी दीदी! मज़ाक था सब!”

“ऐसा गन्दा मज़ाक मत किया कर मेरे साथ,”

दोनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर रहे, फिर माया ने ही पूछा,

“बाबू, कल रात सोते समय तुम ठीक तो थे न?”

“हाँ... क्यों? ऐसा पूछा तुमने?”

“नहीं...” माया ने हिचकिचाते हुए कहा, “वो... बात ये है कि तुम बहुत देर तक साँस नहीं ले रहे थे।”

“तुमको कैसे पता?”

“कल पानी पीने उठी थी रात में... इतना तो पता चलता ही है न!”

“हैं? पानी पीने से ये कैसे पता चलता है?”

वो मुस्कुराई, “तुम ख़र्राटे लेते हो न!”

“मैं?” अजय ने अविश्वास से कहा, “मैं ख़र्राटे लेता हूँ? ... कुछ भी!”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा,

“हाँ! कल रात मैं जब उठी, तो कमरे से तुम्हारे ख़र्राटे सुनाई नहीं दे रहे थे। मैंने कान लगाया, और जब देर तक सुनाई दिए तो कमरे में आई।”

“मैंने घबरा कर तुमको थोड़ा हिलाया...” माया के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं, “तब भी तुम नहीं उठे! तुम्हारी साँस भी नहीं चल रही थी। मैं भाग कर माँ को बुलाने ही वाली थी कि अचानक से ही तुम फिर से साँस लेने लगे!”

“फिर क्या दिक्कत है दीदी?” अजय ने थोड़ा सतर्क हो कर कहा, “साँस चल तो रही है न!”

“ऐसे मत बोलो बाबू,” माया की आँखों में आँसू आ गए, “तुमको नहीं पता कि मुझे कितना डर लगता है ये सब सोच के भी! ... और फिर... और फिर... माँ की एक ही निशानी हो तुम...”

कहते कहते माया का गला भर आया।

“ओह्हो दीदी! तुम भी न!” अजय ने बड़े प्यार से माया के गालों को अपनी हथेलियों में भर लिया, “मैं एकदम हट्टाकट्टा हूँ! बिलकुल तंदरुस्त! शायद कल रात बहुत गहरा सो गया होऊँ! जैसे मेडिटेशन के समय होता है न... वैसे!”

“पक्का कोई गड़बड़ नहीं है न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“और कभी भी तुमको कोई दिक्कत होगी, तो मुझको बताओगे न?”

“हाँ दीदी! पक्का!”

“ठीक है!”

“दीदी, अब सो जाओ,” वो बोला, “कल कमल से मिलने चलेंगे...”

अजय ने कह तो दिया, लेकिन वो खुद भी नहीं जानता था कि कल क्या होगा।

अगर मिशन पूरा हुआ है तो कल एक नया जीवन मिलने वाला है उसको!


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Bhai please update thoda bada Diya kro
 
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