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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; ...
 
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मिशन अकांप्लिश की शुरुआत हो चुकी है । वर्तमान को पुरी तरह से बदलने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है ।
माया के जीवन से मुकेश को दूर करना , माया की शादी अपने दोस्त कमल से कराना , भाई प्रशांत के लिए दूसरी दुल्हन तलाशना और पुज्य पिताजी को हृदयाघात एवं
उनके अकाल मृत्यु से बचाने की मुहिम शुरू हो गई है ।

अब तक सबकुछ अजय के मन मुताबिक ही हुआ है क्योंकि रिस्पांस सभी परिवार वालों की तरफ से पोजिटिव ही आया है । यह बहुत ही सुखद बात है कि एक कम उम्र वाले लड़के...किशोर लड़के की बात को , सलाह को न सिर्फ गम्भीरतापूर्वक सुना गया बल्कि उस पर अमल करने की कोशिश भी शुरू हो गई ।
अजय का कहना शत प्रतिशत सही था कि उसके परिवार वाले बहुत बहुत ही अच्छे इंसान थे ।

लेकिन जो डर अजय को सता रहा है , जो उसकी चिंता है वही डर वही चिंता मुझे भी सता रही है । अजय ने एक दिन के अंदर ही सारे समस्याओं को सुधारने की कोशिश की , इस डर से कि वह जब सुबह उठे तो फिर से अपने पुराने रूप मे , करीब पन्द्रह सोलह साल बाद न पहुंच जाए ! अगर उसने समय रहते वक्त पर काम पुरा नही किया तब इस टाइम ट्रेवल का कोई औचित्य ही नही रहता , या फिर प्रजापति साहब का वरदान व्यर्थ चला जाता ।

खैर , इस रात की अभी सुबह नही हुई है । सुबह होने के बाद ही पता चलेगा कि अजय की अतीत मे टाइम ट्रेवल एक दिन का है या कुछ दिन का !
लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि अजय कभी न कभी तो इस टाइम ट्रेवल से बाहर निकलेगा ! कभी न कभी तो वह अपने अचेतन - अवचेतन अवस्था से चेतन की अवस्था मे प्रवेश करेगा !
फिर क्या होगा ?
क्या सबकुछ , सभी की परेशानियाँ दूर हो जायेंगी ?
क्या अजय का वर्तमान समय बदल जायेगा ?
क्या अशोक साहब की मृत्यु तय समय पर नही होगी ?
क्या वैवाहिक जोड़े बदल जायेंगे ?
अगर यह सब वास्तव मे हुआ तो इसका मतलब यह हुआ कि विधाता ने प्रकृति के नियम को ही पुरी तरह चेंज कर के रख दिया । यमराज और चित्रगुप्त बस नाम मात्र के ही यमराज , चित्रगुप्त रह गए ।

खैर , देखते है कुदरत की लीला कैसी न्यारी न्यारी है , कैसी प्यारी प्यारी है और कैसी चमत्कारी चमत्कारी है !

खुबसूरत अपडेट अमर भाई ।
जगमग जगमग अपडेट ।
 
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kas1709

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अपडेट 15


इस विषय में बात समाप्त होने के बाद अशोक जी अपने कुछ मित्रों से मिलने बाहर चले गए।

अजय अभी भी किरण जी की गोदी में ही लेटा हुआ था। पापा के जाते ही वो उनकी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगा।

“क्या रे?” माँ ने हँसते हुए कहा, “एक पल पहले कैसी सयानों जैसी बातें कह रहा था, अब एक पल बाद फिर से बच्चा बन गया?”

“माँ,” अजय बिना रुके अपना काम करते हुए बोला, “आपका दुद्धू पीना तो मैं कभी नहीं रोकूँगा!”

उसकी बात पर माया भी हँसने लगी, “हाँ माँ! आप बाबू को दुद्धू पिलाना कभी न रोकना!”

“तू भी तो मेरी बिटिया है,” माँ ने ब्लाउज़ पूरी तरह से उतारते हुए कहा, “तुझे भी पिलाना नहीं रोकूँगी!”

जब भी संभव होता था, माँ दोनों को साथ ही में स्तनपान कराती थीं। न तो माँ को ही और न ही पापा को इस बारे में कभी कोई आपत्ति हुई। माँ अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझती थीं कि इस उम्र में भी वो स्तनपान करा पाने में समर्थ थीं। उसका श्रेय भी वो माया को ही देती थीं। आख़िर उसके कारण ही उनको दोबारा माँ बनने का अवसर मिला था। उसके कारण ही उन्होंने अजय को स्तनपान कराना शुरू किया था। वो उसको उस सुख से वंचित नहीं कर सकती थीं।

किरण जी के स्तन थोड़े बड़े थे, लिहाज़ा उनको ब्रा में से नीचे की तरफ़ खींच कर बाहर निकाल पाना (जैसा कि अक्सर स्तनपान कराने वाली महिलाएँ करती हैं) संभव तो था, लेकिन उचित नहीं। उन्होंने ब्रा का हुक खोला और तब तक माया भी उनकी गोदी में आ गई।

“माँ,” माया ने माँ के दाहिने स्तन को सहलाते हुए कहा, “मैं बहुत लकी हूँ!”

“हम नहीं हैं लकी?” माँ ने बड़े प्यार से कहा, “तू तो हमारी ख़ुशियाँ है। तेरे विदा होने से हमको भी तो दुःख होगा। लेकिन क्या करें? लड़की जात का यही तो है... घर में बिठा कर रख तो नहीं सकते न!”

“हाँ माँ,” अजय बोला, “दीदी की शादी बहुत ही अच्छे लड़के से करूँगा मैं!”

किरण जी मुस्कुराईं “हाँ हाँ... बिल्कुल! तेरी दीदी है। अच्छा सा लड़का ढूंढ कर ला इसके लिए!”

“डन माँ!”

अजय बोला और फिर कुछ देर तक वो और माया शांति से स्तनपान का आनंद लेते रहे।

स्तनपान संपन्न होने के बाद अजय ने माया से कहा, “दीदी, तुम कुछ देर के लिए अपने कमरे में जाओ... मुझे माँ से कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं!”

“बाबू?”

“दीदी, जाओ न! मैं आता हूँ कुछ देर में,”

अजय के स्वर में कुछ ऐसा था कि माया ने बहुत बहस नहीं करी।

वो वहाँ से निकल गई अपने कमरे की तरफ़।

“क्या बात है बेटे?” माया के जाने के बाद माँ ने उत्सुकतावश पूछा।

उनको भी अजय का अंदाज़ आज सवेरे से ही बदला हुआ लग रहा था। दिन में उन तीनों ने इस बारे में चर्चा भी करी। उनके मन में थोड़ी सी चिंता भी थी। लेकिन उन्होंने वो चिंता किसी पर ज़ाहिर नहीं होने दी। क्या पता, कोई वहम हो!

“माँ,” अजय अचानक से गंभीर हो कर बोला, “आपसे दो तीन बातें कहनी हैं!”

“बोल न बेटे?” किरण जी समझ गईं कि वो अपने बदले हुए व्यवहार के बारे में कुछ कहना चाहता है, “क्या बात है?”

“माँ, चाहे कुछ हो जाए... आप मुझसे प्रॉमिस कीजिए इस बारे में... चाहे कुछ हो जाए, आप में से कोई भी ‘वानप्रस्थ अस्पताल’ नहीं जाएँगे!”

“क्या?” माँ को कुछ समझ ही नहीं आया, “क्या कह रहा है तू? हम क्यों वानप्रस्थ अस्पताल जाने लगे रे?”

“माँ, प्लीज़, कभी कभी मुझे भी सीरियसली लिया करिए न! जो कह रहा हूँ वो समझिए... बड़ी सीरियस बात है।” अजय का गाम्भीर्य अभी भी बरकरार था, “वानप्रस्थ अस्पताल ठीक नहीं है। बड़ी सारी ख़बरें सुनने में आती हैं वहाँ से।”

“ठीक है बाबा,” माँ ने जैसे पिण्ड छुड़ाने के अंदाज़ में कहा, “नहीं जाएँगे वहाँ!”

“और, ख़ास कर के अजिंक्य देशपाण्डे नाम के डॉक्टर से तो कभी भी नहीं!”

ये वही अस्पताल था, और वही डॉक्टर था जिसकी लापरवाही के कारण अशोक जी असमय मृत्यु को प्राप्त हो गए। ग़लती अस्पताल की थोड़े ही थी - डॉक्टर देशपाण्डे की थी। उसको अवॉयड करना ज़रूरी था। लेकिन अगर अस्पताल भी अवॉयड कर सके, तो बेहतर।

“कौन?”

“अजिंक्य देशपाण्डे!” अजय ने कहा और अपनी जेब से उसने एक लिफ़ाफ़ा निकाला, “मैंने कुछ बातें लिखी हैं इस लेटर में! शायद पढ़ने में बेतुकी लगें, लेकिन प्लीज़ इन बातों को सीरियसली लीजिएगा!”

किरण जी लिफ़ाफ़ा खोलने लगीं।

“माँ, अभी नहीं! कल। कल सवेरे पढ़िएगा!”

“बेटे, सब ठीक तो है न?” किरण जी अब चिंतातुर थीं।

“सब ठीक है माँ! अगर मेरी बातें मानेंगे आप लोग, तो सब ठीक रहेगा!”

अजय बोला, और फिर माँ के एक गाल को चूम कर बोला, “माया दीदी के पास जाता हूँ!”


**


जब अजय माया दीदी के कमरे में पहुँचा तो वो बिस्तर पर औंधे लेट कर कोई पुस्तक पढ़ती हुई मिली। अजय भी उसके बगल उसी पोज़िशन में आ कर लेट गया। माया ने पुस्तक पढ़ना जारी रखा। जब उसने वो पूरा चैप्टर पढ़ लिया, तो उसने पुस्तक बंद कर के अलग रख दिया।
“क्या बात थी?” उसने पूछा।

“माँ के सुनने और करने के लिए थी वो बात,” अजय ने चंचलता से कहा, “तुम्हारे नहीं!”

“हम्म... ये बात है?”

“हाँ!” अजय ने कहा और उसने माया के गाल को चूम लिया।

“बाबू,” माया ने बड़ी कोमलता से कहा, “तुमने पापा और माँ से जो सब कहा, वो सब मन से कहा?”

“बेकार लड़का है वो मुकेश, दीदी!” अजय ने तैश में आ कर कहा, “तुम्हारे पैरों की धूल भी नहीं है वो!”

“वो बात नहीं है बाबू... मैं उस बारे में पूछ रही हूँ, जो तुमने मेरे लिए कहा...”

“तुमको डाउट है दीदी?”

“नहीं बाबू... लेकिन आज तक तुमने मेरी इस तरह से तरफ़दारी नहीं करी!”

“आज से पहले मैं अँधा बहरा भी तो था दीदी!” अजय ने मुस्कुराते हुए कहा और माया को अपने आलिंगन में भर लिया, “सच में दीदी, तुमको अपनी लाइफ में बिना वजह का कोम्प्रोमाईज़ नहीं करने दूँगा! ... भाई हूँ तुम्हारा! इतने सालों तक मैं तुमको ठीक से प्यार नहीं कर पाया, तुमको ठीक से इज़्ज़त नहीं दे पाया, उसका मुझे वाक़ई अफ़सोस है... लेकिन अब और नहीं होगा वैसे!”

“तुमने इतना कह दिया, बहुत है मेरे लिए बाबू!”

“नहीं दीदी! तुम अच्छी हो, इसलिए ऐसा कह रही हो! अभी तक मैंने तुम्हारे साथ जो किया, वो सब मेरी गलती है... लेकिन उन गलतियों के कारण मैं तुम्हारे साथ गलत होने दूँ, तो बहुत ही बड़ा पाप है... अपराध है! शादी एक बार होती है! परफ़ेक्ट होनी चाहिए! मेरी दीदी उसके पास जाएगी, जो उससे खूब प्यार करेगा!”

“तुम ढूंढोगे मेरे लिए वैसा लड़का?” माया ने मुस्कुराते हुए कहा - उसके गालों पर शर्म की लालिमा दिखाई दे रही थी।

माया ने मज़ाक में नहीं कहा था यह...

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “पक्का वायदा है दीदी!”

“फिर ठीक है!” माया उसके आलिंगन में सिमटती हुई बोली, “मेरा वीरन जिससे कहेगा, मैं उसी से शादी करूँगी!”

“सच में दीदी?”

“हाँ मेरे वीरन... आज तक मैं तुमको अपना छोटा भाई मानती आई हूँ, लेकिन आज तुमने जो किया है, उसके बाद तो तुम भी पापा और माँ की ही तरह मेरे गार्जियन बन गए हो!”

“हा हा...”

“हंसने वाली बात नहीं है बाबू! एक लड़की बहुत लकी होती है, जब उसका छोटा भाई भी, उसके किसी बड़े की ही तरह उसको प्यार करे!”

“लव यू दीदी!”

“लव यू खूब मेरे भाई! ... खूब!” कह कर माया अजय की बाँह में और सिमट गई।

“वैसे दीदी, एक बात बताऊँ तुमको?”

“हाँ... बताओ न!”

“तुम्हारे लिए मैंने लड़का देख लिया है,”

“सच में?” माया आश्चर्य से चौंकी, “कौन?”

“बता दूँ?”

माया मुस्कुराई, “न भी बताओ, तो भी ठीक है! मुझे तुम पर पूरा भरोसा है...”

“हा हा!” वो हँसा।

माया उम्मीद से अजय को कुछ देर देखती रही कि वो अब बताएगा या तब बताएगा। लेकिन जब थोड़ी देर तक उसने कुछ नहीं कहा, तो माया शर्म से, लेकिन प्यारी सी ज़िद से बोली,

“बताओ न...”

अजय मुस्कुराया, “अरे रे रे! जानने के बेसब्र हो रही हो दीदी!”

“जाओ, मत बताओ!”

माया के नकली रूठने के अंदाज़ पर अजय हँसे बिना न रह सका। हँसते हँसते ही उसने कहा, “कमल...”

“कमल?” माया की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं।

“कमल,”

“ले... लेकिन वो तो छोटा है मुझ से!”

“छोटा है तो क्या हुआ दीदी? यह तो कोई कमी नहीं है... सबसे पहली बात यह है कि वो बहुत प्यार करता है तुमसे, दीदी! बहुत अच्छा लड़का है... और अच्छे, संपन्न घर से है! पाँच साल से जानता हूँ उसको... उसने एक भी गलत काम नहीं किया है आज तक। और न ही कोई गलत आदतें हैं उसमें!”

“मानती हूँ सारी बातें! लेकिन बाबू, वो छोटा है न!” माया बोली, “तुम्हारा दोस्त है... तो मेरे छोटे भाई जैसा ही है न!”

“एक ही भाई रखो दीदी,” अजय ने हँसते हुए कहा, “कम से कम, उसमें तो मेरे साथ बँटवारा न करो!”

“हा हा! बहुत बदमाश हो तुम बाबू...” माया हँसने लगी, “लेकिन वो कितने साल का है? सत्रह? अट्ठारह?”

“अट्ठारह! ... अरे तीन साल वेट कर लो न दीदी!” अजय ने मज़ाक किया, “या शादी करने की बहुत जल्दी है?”

“हा हा!” माया अब और ज़ोर से हँसने लगी, “नहीं, कोई जल्दी नहीं है!”

“सच में दीदी, वो तुमको बहुत चाहता है।” अजय गंभीर होते हुए बोला, “तुमको बहुत प्यार से रखेगा! और तुम भी उसको बहुत प्यार से रखोगी... मैं आज ही पापा को भी ये बात बताने वाला हूँ! उन्होंने माना, तो हम बात करेंगे उसके पेरेंट्स से! ... देखना, सब अच्छा होगा!”

माया भी गंभीर होते हुए बोली, “तुम चाहते हो कि मैं कमल से शादी करूँ?”

“मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी पसंद के लड़के से शादी करो... कमल मुझको अच्छा लगता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तुमको भी अच्छा लगे!”

माया ने समझते हुए सर हिलाया।

“तुमने अभी तक उसको मेरे दोस्त की तरह देखा है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि कमल को तुम दूसरी नज़र से देख लो... एक साथी की तरह! उसको परख लो... उसको समझ लो... और अगर वो समझ में आ जाए, तो शादी भी कर लो!”

“ठीक है,” माया मुस्कुराई, “थैंक यू बाबू!”

“नहीं दीदी! थैंक यू!” वो बोला, “मैं बस चाहता हूँ कि मेरा हर अज़ीज़ हमेशा खूब खुश रहे!”

“थैंक यू अज्जू... मेरे बाबू... मैं शायद दुनिया की सबसे लकी बहन हूँ!”

“हा हा!”

“सच में!” माया ने धीरे से कहा, “सभी मेरे बारे में कितना सोचते हैं! पापा, तुम, माँ...”

“हाँ दीदी!” अजय बोला, “वैसे तुम कमल के बारे में कुछ जानना चाहो, तो पूछ लो!”

माया ने अजय से कमल के बारे में बहुत से प्रश्न पूछे। कुछ सामान्य और कुछ अंतरंग! अजय को यह जान कर बहुत अच्छा लगा कि माया भी कमल में रूचि दिखा रही थी।

‘शायद दीदी की ज़िन्दगी बेहतर हो!’


**
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kas1709

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अपडेट 17


अशोक जी के आते आते लगभग नौ बज गए थे।

अजय को अपने पापा से बड़ी मोहब्बत थी। लेकिन थोड़ा डर भी लगता था उसको उनसे।

अगर आज वो उनको आखिरी बार देख रहा था तो वो उनके साथ कुछ अनमोल यादें बना लेना चाहता था।

“पापा,”

“आओ बेटे,” अशोक जी उसको देख कर मुस्कुराये, “आओ!”

अजय आ कर उनके समीप उनके पैरों के पास बैठ गया। जैसा वो पहले भी करता था।

“पापा, आपसे एक बात कहूँ?”

“हाँ बेटे, बोलो न?”

“एक्चुअली, एक रिक्वेस्ट है! मोर लाइक अ विश...”

“अरे बोलो न!”

“क्या मैं आपके साथ बैठ कर स्कॉच पी सकता हूँ...”

ऐसी अतरंगी रिक्वेस्ट? एक बार तो अशोक जी अचकचा गए कि ये अजय क्या कह रहा है। फिर उन्होंने कुछ पल सोचा।

अंततः, “तुम अभी अंडरऐज हो बेटे,”

“आई नो पापा,” वो बोला, “लेकिन एक बार... बस एक बार?”

अशोक जी सोचने लगे।

“प्लीज़ पापा,” वो लगभग गिड़गिड़ाया, “आज के बाद ऐसी हिमाकत नहीं करूँगा!”

अशोक जी कुछ क्षण चुप रहे, फिर बोले, “ग्लेनफ़िडिक... एटीन इयर्स ओल्ड...”

“थैंक यू पापा!”

“तुम्हारा पेग मैं बनाऊँगा!”

“यस सर,”

कह कर अजय एक ट्रे में सोडा, दो ग्लास, स्कॉच की बोतल, और बर्फ़ ले कर पापा के पास बैठ गया।

अशोक जी ने बहुत थोड़ा सा अजय डाला और उसमें ढेर सारा सोडा और तीन बर्फ़ के टुकड़े डाले। उनका खुद का ड्रिंक सामान्य ही था।

“चियर्स बेटे,”

“थैंक्स पापा, एंड चियर्स!”

अगर पापा के साथ ये उसकी आख़िरी याददाश्त है, तो बहुत खूबसूरत है।

अजय मुस्कुराया।

‘काश पापा बहुत सालों तक उसके साथ रहते!’

“यू आर मोस्ट वेलकम सन!” अशोक जी मुस्कुराये, “अब बोलो... क्या है मन में?”

“बहुत कुछ है पापा,”

“कहीं से शुरू करो!” वो बोले, “बाप से बात करने की हिम्मत तो जुटा चुके हो! ... ज़रूर ही कोई बहुत बड़ी बात होगी!”

“हाँ पापा, बातें बड़ी हैं। शायद अभी आप समझ न सकें!”

“अरे! अपने बाप की समझ पर शक है तुमको?”

“नहीं पापा! लेकिन... लेकिन मैं आपसे जो कुछ कहना चाहता हूँ न, बहुत ही काम्प्लेक्स है!”

“ट्राई मी!”

“पापा, आप बिज़नेस में न... कभी भी हीरक पटेल या उसकी किसी भी कंपनी के साथ डील न करिएगा।”

“हीरक पटेल?”

“जी! बहुत ही बदमाश और धूर्त किस्म के लोग हैं वो।”

हीरक पटेल ने ही अशोक जी को बिज़नेस में भारी नुक़सान पहुँचाया था। दोस्ती यारी में उनको ऐसा गच्चा दिया, कि आधा बिज़नेस उन्होंने कब्ज़िया लिया। आधा जो बचा, उसमें इतनी देनदारी थी कि सब कुछ जाता रहा था पापा का।

“तुमको कैसे पता?”

“बस ये मत पूछिए!”

“हम्म... ओके! डील!”

अजय मुस्कुराया, “थैंक यू, पापा!”

“और कुछ?”

“जी पापा! अगर कभी आप आलोक शर्मा जी से या उनके दामाद अमर सिंह से मिलें, तो उनके साथ ज़रूर कोई बिज़नेस करिएगा। आलोक शर्मा जी एक रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर रह चुके हैं। ऑनेस्ट बिज़नेस रहेगा उनका।


[अलोक शर्मा, अमर, और उसकी पत्नी देवयानी (डेवी) के बारे में पढ़ने के लिए नीचे मोहब्बत का सफ़र लिंक पर जाएँ] :)


“ओके! कहाँ है उनका ऑफिस? कौन सा बिज़नेस है उनका?”

अजय को अब झटका लगा।

ये तो गड़बड़ हो गई - उनका बिज़नेस तो कोई तीन चार साल बाद शुरू होने वाला है।

“अह... प्लीज़ डोंट वरि अबाउट इट जस्ट येट पापा!” अजय बोला, “लेकिन इस पटेल से दूर रहिएगा। प्लीज!”

“ओके!” अशोक जी समझ नहीं रहे थे, लेकिन वो बिना वजह उसको अपसेट नहीं करना चाहते थे।

फिर एक पल रुक कर बोले, “बेटे, एक बात बताओ - तुमने मुकेश के लिए मना क्यों किया?”

हाँ - यह अजय का फेवरिट टॉपिक था।

“आपको बताया तो पापा! बहुत सारे रीसंस हैं... लेकिन जो सबसे बड़ी बात है, वो यह है कि मुझे लगता है - आई ऍम कन्विंस्ड - कि वो आपकी दौलत के लिए दीदी से शादी करना चाहता है।” अजय ने पूरी सच्चाई से कहा, “... दीदी ऐसी पढ़ी लिखी नहीं हैं, और न ही बहुत सुन्दर हैं, कि कोई यूँ ही चला आए उनके लिए... और उनका कोई सोशल सर्किल भी ऐसा नहीं है कि कोई अपनी तरफ़ से उनके लिए प्रोपोसल भेजे!”

“हम्म,”

“हाँ, अगर कोई उनको चाहता है, तो अलग बात है!”

“आई अंडरस्टैंड कि तुम क्या कहना चाहते हो...” अशोक जी ने कहा, “तो... क्या माया चाहती है किसी को?”

“कहाँ पापा! दीदी तो पूरा दिन भर घर का काम करती रहती हैं... उनको मौका कहाँ मिलता है किसी से मिलने का?”

“बेटे, इसीलिए तो हम पेरेंट्स लोग इन्वॉल्व होते हैं न बच्चों की शादी में...”

“हाँ पापा, आपकी बात सही है। लेकिन लड़का भी तो ऐसा होना चाहिए न, जो दीदी को चाहे! उनसे प्यार करे...”

“हाँ, ऐसा तो चाहिए ही बेटे!” अशोक जी ने कहा, “तुमको पता है ऐसा कोई लड़का?”

पुराना अजय शायद ऐसी बातें कहने में हिचकता...

“एक है... आप भी जानते हैं उसको...”

“अच्छा? कौन?”

“कमल...”

“व्हाट? हा हा...” अशोक जी हँसने लगे, “आज कल के बच्चे भी न...”

“क्यों पापा? क्या गलत है इसमें? ... कमल दीदी से प्यार क्यों नहीं कर सकता?”

“कर सकता है, बेटे!” अशोक जी ने थोड़ा सोच कर कहा, “आई ऍम सॉरी बेटे! यस... वो माया से प्यार कर सकता है! लेकिन ऐसा कम ही होता है न! इसलिए थोड़ा अजीब... नहीं, अजीब नहीं... थोड़ा अलग लगा!”

“आप इनके ख़िलाफ़ तो नहीं होंगे न?”

“व्हाई? अगर ये दोनों शादी करना चाहते हैं, तो मैं इनके ख़िलाफ़ क्यों रहूँगा? मुझे तो अपने बच्चों की ख़ुशियाँ चाहिए।” अशोक जी ने बड़े ही मृदुल भाव से कहा, “कमल मुझको भी अच्छा लगता है। अच्छा लड़का है वो! इतने सालों से जानते हैं हम उसको...”

“थैंक यू पापा!”

“राणा साहब (कमल के पिता) से बात करूँ तो?”

अजय खुश हो गया, “क्यों नहीं पापा! ... लेकिन कमल ने आज ही मुझे दीदी के बारे में वो क्या सोचता है, वो बताया। मैंने भी दीदी को अभी कुछ देर पहले ही बताया है... आपको... आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके राणा अंकल से बात करने के पहले, वो दोनों एक बार एक दूसरे से थोड़ी अलग सिचुएशन में मिल लें?”

“बेटे, देखो, मैं तुम्हारी बात समझता हूँ... लेकिन माया बेटी है हमारी! और हम इज़्ज़त वाले लोग हैं। राणा साहब भी खानदानी हैं... इज़्ज़तदार हैं। इसलिए मुझे लगता है कि पहले हमारा ही उनसे मिलना ठीक होगा। ... वैसे भी वो लड़के वाले हैं... शादी का रिश्ता तो हमारी तरफ़ से ही जाएगा! ... जाना चाहिए...”

“जी,” अजय कुछ कहना चाहता था लेकिन अशोक जी ने उसको रोक कर कहा,

“बेटे देखो... मैं चाहता हूँ कि अगर इन दोनों का रिश्ता आगे बढ़ता है, तो उसमें उनका भी आशीर्वाद हो! ठीक है?”

अजय ने गहरी साँस भरी - उसकी हर बात तो नहीं मानी जा सकती न! लेकिन पापा माया दीदी और कमल को ले कर सीरियस हो सकते हैं, यह जान कर उसको बहुत अच्छा लगा।

“जी पापा!” वो बोला, फिर “तो हम लोग कब चल सकते हैं उनके पास, मिलने?” अजय ने आशापूर्वक पूछा।

“कल ही... शुभस्य शीघ्रम!” अशोक जी ने कहा, “भाई साहब और भाभी जी दोनों ही माया बेटे से मिले भी हैं, और उसको अच्छी तरह से जानते भी हैं! ... लेकिन शादी की बात और ही है...”

“पापा, मैं एक बार कमल से कह दूँ कि वो कल क्या एक्सपेक्ट करे?”

“हा हा... हाँ बता दो उसको! ऐसा न हो कि घबरा कर वो अपनी फ़ीलिंग्स से ही इंकार कर दे!”

अशोक जी ने हँसते हुए कहा।


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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मिशन अकांप्लिश की शुरुआत हो चुकी है । वर्तमान को पुरी तरह से बदलने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है ।
माया के जीवन से मुकेश को दूर करना , माया की शादी अपने दोस्त कमल से कराना , भाई प्रशांत के लिए दूसरी दुल्हन तलाशना और पुज्य पिताजी को हृदयाघात एवं
उनके अकाल मृत्यु से बचाने की मुहिम शुरू हो गई है ।

अब तक सबकुछ अजय के मन मुताबिक ही हुआ है क्योंकि रिस्पांस सभी परिवार वालों की तरफ से पोजिटिव ही आया है । यह बहुत ही सुखद बात है कि एक कम उम्र वाले लड़के...किशोर लड़के की बात को , सलाह को न सिर्फ गम्भीरतापूर्वक सुना गया बल्कि उस पर अमल करने की कोशिश भी शुरू हो गई ।
अजय का कहना शत प्रतिशत सही था कि उसके परिवार वाले बहुत बहुत ही अच्छे इंसान थे ।

लेकिन जो डर अजय को सता रहा है , जो उसकी चिंता है वही डर वही चिंता मुझे भी सता रही है । अजय ने एक दिन के अंदर ही सारे समस्याओं को सुधारने की कोशिश की , इस डर से कि वह जब सुबह उठे तो फिर से अपने पुराने रूप मे , करीब पन्द्रह सोलह साल बाद न पहुंच जाए ! अगर उसने समय रहते वक्त पर काम पुरा नही किया तब इस टाइम ट्रेवल का कोई औचित्य ही नही रहता , या फिर प्रजापति साहब का वरदान व्यर्थ चला जाता ।

खैर , इस रात की अभी सुबह नही हुई है । सुबह होने के बाद ही पता चलेगा कि अजय की अतीत मे टाइम ट्रेवल एक दिन का है या कुछ दिन का !
लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि अजय कभी न कभी तो इस टाइम ट्रेवल से बाहर निकलेगा ! कभी न कभी तो वह अपने अचेतन - अवचेतन अवस्था से चेतन की अवस्था मे प्रवेश करेगा !
फिर क्या होगा ?
क्या सबकुछ , सभी की परेशानियाँ दूर हो जायेंगी ?
क्या अजय का वर्तमान समय बदल जायेगा ?
क्या अशोक साहब की मृत्यु तय समय पर नही होगी ?
क्या वैवाहिक जोड़े बदल जायेंगे ?
अगर यह सब वास्तव मे हुआ तो इसका मतलब यह हुआ कि विधाता ने प्रकृति के नियम को ही पुरी तरह चेंज कर के रख दिया । यमराज और चित्रगुप्त बस नाम मात्र के ही यमराज , चित्रगुप्त रह गए ।
वाजिब प्रश्न हैं ये भाई जी लेकिन कहानी कहानी ही होती है, बाकी अगर जो ऐसा मौका मिला तो कर्म फल उसी के हिसाब से बदलेगा न, उसमें चित्रगुप्त और यमराज क्या करेंगे?

बाकी किसी का दुर्भाग्य किसी और का सौभाग्य होता है, तो जो बदलेगा वो शायद अजय और उसके परिवार में बदलेगा, पर वही किसी और के साथ होगा तो कर्म फल का बैलेंस बना रहेगा।
खैर , देखते है कुदरत की लीला कैसी न्यारी न्यारी है , कैसी प्यारी प्यारी है और कैसी चमत्कारी चमत्कारी है !

खुबसूरत अपडेट अमर भाई ।
जगमग जगमग अपडेट ।
 

dhparikh

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228
अपडेट 18


अशोक जी से बातें कर के अजय ने सबसे पहले कमल को फ़ोन लगाया।

कमल भी अजय की पहल को जान कर भौंचक्क रह गया। लेकिन यह जान कर उसको राहत मिली कि माया के पापा को उनके सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं थी। उसके स्वयं के घर में अजय और माया को लेकर बड़े सकारात्मक विचार थे। कमल की माता जी माया को पसंद करती थीं। वो अपनी बहू ऐसी चाहती थीं जो गृह-कार्य में दक्ष हो, और उनके वंश को आगे बढ़ाने को इच्छुक हो। माया उनको इसलिए पसंद आती थी क्योंकि वो जानती थीं कि ये लड़की अवश्य ही पहले सड़क पर खेल तमाशे दिखाती थी, लेकिन वो काम वो अपने परिवार के पालन के लिए करती थी। अशोक जी के वहाँ आने के बाद से वो हर उस कला में निपुण हो गई थी, जो वो अपनी बहू में चाहती थीं।

माया का परिवार तो अच्छा था ही। किरण जी से बातों ही बातों में पता चल गया था कि अशोक जी अपनी जायदाद का आधा हिस्सा माया के नाम लिखने वाले हैं। मतलब, वो माया और परिवार में उसके स्थान को लेकर गंभीर भी थे। इससे भी उनके मन में माया को ले कर सकारात्मक विचार थे। यह सभी बातें कमल को मालूम थीं। वो जानता था कि अगर वो अपने माँ बाप से बात करेगा, तो शायद वो भी माया को ले कर खास विरोध न करें।

कमल से बात करके अजय को एक खालीपन सा महसूस होने लगा।

जब आप अपना मिशन पूरा कर लेते हैं तो एक संतुष्टि वाला भाव उत्पन्न होता है न? ठीक वैसा! अब कुछ करने को शेष नहीं था। उसने प्रयास कर के माया दीदी का जीवन खराब होने से बचा लिया था। संभव है कि उनकी शादी कमल से न हो, लेकिन उस कमीने मुकेश से तो नहीं ही होगी! प्रशांत भैया के मन में उसने कणिका के प्रति संशय भर दिया था। वैसे भी उसने माँ को चिट्ठी लिख कर कणिका के बारे में, और पापा की जीवन रक्षा के बारे में सब कुछ बता दिया था। अंततः, उसने पापा से कह कर एक बेहद नुक़सानदायक बिज़नेस डील न करने को मना लिया था।

और क्या बाकी था?

शायद कुछ भी नहीं...

यह विचार आते ही वो थोड़ा दार्शनिक सा महसूस करने लगा।

पुनः, वो अपने वयस्क जीवन (?) के बारे में सोचने लगा।

अगर वो - मतलब उसकी चेतना - अपने भूतकाल में आ गया है, तो उसके ख़ुद का कोई अस्तित्व है भी या नहीं? अगर वो ख़ुद ‘यहाँ’ है, तो ‘वहाँ’ कौन है? और अगर वो ‘वहाँ’ नहीं है, तो माँ के साथ कौन है? यह सोचते ही उसका शरीर पसीने से नहा गया।

बाप रे! भूत, भविष्य, और वर्तमान के खेल में वो ऐसा फँसा है कि अनजाने ही उसने माँ को भीषण तकलीफ़ में झोंक दिया है। बेचारी का क्या हाल हो रहा होगा अपनी एकलौती औलाद को ‘मृत’ पा कर! कैसे बीता होता उनका आज का दिन? रो रो कर उनका बुरा हाल हो गया होगा! कैसे करेंगी वो सब कुछ?

फिर उसके मन में विचार आया कि वो वैसे भी आज सोएगा तो कल अपने वयस्क अवतार में आँखें खोलेगा। आज उसने जो प्रयास किए हैं, उसके कारण उसका भविष्य बदल जाएगा - उसको ऐसी उम्मीद तो थी।

लोग सोचते हैं कि भाग्य बदलता नहीं! कैसे नहीं बदलता?

वो भविष्य के ज्ञान को अपने भूतकाल में लाया है। ऐसे फीडबैक के कारण उसका भविष्य कैसे नहीं बदलेगा? अवश्य बदलेगा! अगर कुछ बदलना ही नहीं संभव था, तो फिर ईश्वर ने उसको यह अवसर दिया ही क्यों? उनके पास व्यर्थ समय थोड़े ही है कि किसी से यूँ ठिठोली करें? मतलब, उसके प्रयासों का कुछ प्रभाव तो पड़ेगा!

‘तो बहुत संभव है कि कल पापा भी हों, और माँ भी! ... शायद रागिनी नाम की दीमक भी न लगी हो उसके जीवन में!’

तो कल जब वो उठेगा, तो कहाँ उठेगा? पुणे में या फिर दिल्ली में!?

रोमाँच के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।

रात का सन्नाटा गहराने लगा था।

अजय के खुद के मन की दशा अब रात के सन्नाटे जैसी ही हो गई थी। ख़ामोश, गहरी, और अँधेरी!

इतने में,

“बाबू?” माया ने उसके कमरे में प्रवेश किया और बहुत हल्के से पुकारा।

“हाँ दीदी?” वो चौंका।

“सोए नहीं?”

उसने एक गहरी साँस भरी, “नींद नहीं आ रही है दीदी,”

“ऐसे कुर्सी पर बैठे रहोगे, तो नींद कैसे आएगी?” माया ने उसका हाथ पकड़ा और उठने को उकसाते हुए बोली, “चलो... उठो!”

अजय मुस्कुराया - माया दीदी उसके ऊपर अपना अधिकार बड़े ही मीठे तरीके से दर्शाती थीं। वो कोई धौंस नहीं दिखाती थीं। लेकिन कुछ बात तो थी ही उसके व्यवहार में, कि वो उनको मना नहीं कर पाता था।

“आओ... बेड में आओ!”

अजय ने बिस्तर में लेटने से पहले अपने कपड़े उतार दिए। उसको नग्न देख कर माया मुस्कुराई। यह तथ्य उससे छुपा हुआ नहीं था कि अजय नग्न हो कर सोता था। कभी कभी वो स्वयं भी नग्न हो कर सोती थी। ऐसी कोई अनहोनी सी बात नहीं थी यह।

जब अजय बिस्तर में लेट गया, तो माया ने उसको चादर ओढ़ा दी और उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी।

“दीदी?”

“हम्म?”

“कुछ देर बैठो मेरे पास?”

माया ने बिना कुछ कहे ‘हाँ’ में सर हिलाया और उसके बगल लेट गई।

“बाबू?”

“हम्म?”

“तुम... अम्म... उनके बारे में सीरियस हो न?”

“किसके?” अजय को बखूबी पता था कि माया किसके बारे में पूछ रही है। लेकिन बहन से थोड़ी ठिठोली तो की ही जा सकती है।

“उनके,” माया ने इस शब्द पर ज़ोर दिया, “... तुम्हारे दोस्त के,”

“अरे वाह वाह पतिव्रता दीदी मेरी! होने वाले हस्बैंड का नाम भी नहीं ले सकती?” अजय ने हँसते हुए छेड़ा, “दीदी, मैंने पापा से भी कह दिया है सब कुछ !”

“क्या?” अब चौंकने की बारी माया की थी।

“हाँ... देखो, मुझे घुमा फिरा कर बातें करना समझ में नहीं आता। वो... मुकेश... मुझको सही नहीं लगा।”

“क्यों बाबू?” माया ने पूछा, “देखो, मुझे तुम्हारी बात पर कोई डाउट नहीं है, लेकिन मैं भी जानना चाहती हूँ कि किसी को कैसे परखूँ!”

“दीदी, न तो उसने तुमको देखा, और न ही कभी हम कभी उससे मिले!” अजय ने समझाया, “ऐसे में वो क्यों आया? बस इसलिए क्योंकि पापा के पास पैसे हैं। उसको तुम्हारी क्वालिटीज़ से कोई लेना देना नहीं है। बस, पैसे चाहिए।”

“हम्म्म...”

“शादी उससे करो, जो तुमको चाहे! तुमसे प्रेम करे!”

इस बात पर शायद माया को कमल की याद हो आई। उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई।

“एक्साक्ट्ली! देखो न... कमल का सोच कर तुम कैसे मुस्कुराने लगी!”

“धत्त…”

“नहीं सोच रही थी उसके बारे में?”

माया झूठ नहीं कह सकती थी, “हाँ,” उसने शर्माते हुए कहा, “सोच रही थी!”

फिर पापा की बात सोचते हुए बोली, “पापा ने क्या कहा?”

“पापा को भी कमल पसंद है। उन्होंने कहा कि कल वो राणा साहब से बात करेंगे!”

“बाप रे!”

“क्या बाप रे?” अजय बोला, “देखो दीदी, पापा ने मुझे समझाया - और मुझे लगता है कि वो सही भी हैं - कि सभ्य घरों के बच्चे अगर अपने माँ बाप के आशीर्वाद से मिलें, तो बेहतर है। कम से कम हमको मालूम भी रहेगा, और हमारे परिवार इन्वॉल्व्ड भी रहेंगे!”

माया कुछ बोली नहीं। लेकिन उसके गालों पर शर्म की हल्की सी लालिमा आ गई।

अजय कह रहा था, “अगर कमल के पेरेंट्स भी तुम्हारे और कमल के रिश्ते के लिए मान जाते हैं, तो तुम दोनों बिना हिचक एक दूसरे से मिल सकते हो।”

माया की नज़रें शर्म से झुक गईं।

“एक दूसरे को जान लो दोनों... वैसे मुझे लगता है कि तुम भी कमल को बहुत पसंद करोगी। अच्छा है वो!”

“अगर वो तुमको ठीक लगते हैं, तो ठीक ही होंगे,” माया ने धीमे से कहा।

“लेकिन?”

“लेकिन, वो मुझसे छोटे भी हैं न!”

“छोटा होने पर भी उसको इतना रेस्पेक्ट तो दे ही रही हो!” अजय मुस्कुराया, “फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है?”

“बाबू... समझा करो न!”

“हा हा हा... हाँ, छोटा है, लेकिन बहुत नहीं। चार साल, बहुत हुआ तो!”

“पढ़ भी तो रहे हैं।”

“मेरे साथ ही ट्वेल्फ्थ पूरा हो जाएगा कमल का।”

“फिर भी!”

“दीदी देखो, सगाई तो अभी भी हो सकती है। हाँ, शादी में समय लग सकता है।” अजय ने शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम दोनों की शादी अभी नहीं हो सकती।”

“हैं? मतलब?”

“मतलब यह कि तुम दोनों शादी कर सकते हो... हाँ, यह ज़रूर है कि ये शादी वॉइडेबल है। मतलब अगर तुम या कमल चाहो, तो अमान्य कराई जा सकती है ये शादी। लेकिन, वो तो कोई भी शादी कराई जा सकती है!”

“और अगर केवल सगाई हो... मतलब शादी उनके इक्कीस के होने पर हो, तो?”

“फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है!” अजय बोला, “दीदी, क्या बात है? शादी करने की इच्छा जाग उठी है क्या?”

“धत्त, बदमाश है तू!”

“लकी है दोस्त मेरा!” अजय अभी भी माया की खिंचाई कर रहा था, “दीदी, तुम खूब बच्चे करना! कमल को बच्चे बहुत पसंद हैं!”

“पिटेगा तू अब, मेरे हाथों!”

“हाँ हाँ... हस्बैंड मिल गया, अब भाई की क्या वैल्यू!”

इस बात पर माया ने अजय का कान पकड़ कर खींचा और उसके गालों पर चुम्बन दिया।

“दोबारा ये बोला न, तो तुझे ऐसे ही कान पकड़ कर, ऐसे ही नंगू पंगू ले जा कर पापा और माँ से भी पिट्टी लगवाऊँगी। देख लेना,”

“आई लव यू दीदी!”

“हाँ...” वो बोली, “पहले तो रुला देता है, फिर लीपा-पोती करता है।”

“सॉरी दीदी! मज़ाक था सब!”

“ऐसा गन्दा मज़ाक मत किया कर मेरे साथ,”

दोनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर रहे, फिर माया ने ही पूछा,

“बाबू, कल रात सोते समय तुम ठीक तो थे न?”

“हाँ... क्यों? ऐसा पूछा तुमने?”

“नहीं...” माया ने हिचकिचाते हुए कहा, “वो... बात ये है कि तुम बहुत देर तक साँस नहीं ले रहे थे।”

“तुमको कैसे पता?”

“कल पानी पीने उठी थी रात में... इतना तो पता चलता ही है न!”

“हैं? पानी पीने से ये कैसे पता चलता है?”

वो मुस्कुराई, “तुम ख़र्राटे लेते हो न!”

“मैं?” अजय ने अविश्वास से कहा, “मैं ख़र्राटे लेता हूँ? ... कुछ भी!”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा,

“हाँ! कल रात मैं जब उठी, तो कमरे से तुम्हारे ख़र्राटे सुनाई नहीं दे रहे थे। मैंने कान लगाया, और जब देर तक सुनाई दिए तो कमरे में आई।”

“मैंने घबरा कर तुमको थोड़ा हिलाया...” माया के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं, “तब भी तुम नहीं उठे! तुम्हारी साँस भी नहीं चल रही थी। मैं भाग कर माँ को बुलाने ही वाली थी कि अचानक से ही तुम फिर से साँस लेने लगे!”

“फिर क्या दिक्कत है दीदी?” अजय ने थोड़ा सतर्क हो कर कहा, “साँस चल तो रही है न!”

“ऐसे मत बोलो बाबू,” माया की आँखों में आँसू आ गए, “तुमको नहीं पता कि मुझे कितना डर लगता है ये सब सोच के भी! ... और फिर... और फिर... माँ की एक ही निशानी हो तुम...”

कहते कहते माया का गला भर आया।

“ओह्हो दीदी! तुम भी न!” अजय ने बड़े प्यार से माया के गालों को अपनी हथेलियों में भर लिया, “मैं एकदम हट्टाकट्टा हूँ! बिलकुल तंदरुस्त! शायद कल रात बहुत गहरा सो गया होऊँ! जैसे मेडिटेशन के समय होता है न... वैसे!”

“पक्का कोई गड़बड़ नहीं है न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“और कभी भी तुमको कोई दिक्कत होगी, तो मुझको बताओगे न?”

“हाँ दीदी! पक्का!”

“ठीक है!”

“दीदी, अब सो जाओ,” वो बोला, “कल कमल से मिलने चलेंगे...”

अजय ने कह तो दिया, लेकिन वो खुद भी नहीं जानता था कि कल क्या होगा।

अगर मिशन पूरा हुआ है तो कल एक नया जीवन मिलने वाला है उसको!


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Nice update....
 
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अशोक जी से बातें कर के अजय ने सबसे पहले कमल को फ़ोन लगाया।

कमल भी अजय की पहल को जान कर भौंचक्क रह गया। लेकिन यह जान कर उसको राहत मिली कि माया के पापा को उनके सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं थी। उसके स्वयं के घर में अजय और माया को लेकर बड़े सकारात्मक विचार थे। कमल की माता जी माया को पसंद करती थीं। वो अपनी बहू ऐसी चाहती थीं जो गृह-कार्य में दक्ष हो, और उनके वंश को आगे बढ़ाने को इच्छुक हो। माया उनको इसलिए पसंद आती थी क्योंकि वो जानती थीं कि ये लड़की अवश्य ही पहले सड़क पर खेल तमाशे दिखाती थी, लेकिन वो काम वो अपने परिवार के पालन के लिए करती थी। अशोक जी के वहाँ आने के बाद से वो हर उस कला में निपुण हो गई थी, जो वो अपनी बहू में चाहती थीं।

माया का परिवार तो अच्छा था ही। किरण जी से बातों ही बातों में पता चल गया था कि अशोक जी अपनी जायदाद का आधा हिस्सा माया के नाम लिखने वाले हैं। मतलब, वो माया और परिवार में उसके स्थान को लेकर गंभीर भी थे। इससे भी उनके मन में माया को ले कर सकारात्मक विचार थे। यह सभी बातें कमल को मालूम थीं। वो जानता था कि अगर वो अपने माँ बाप से बात करेगा, तो शायद वो भी माया को ले कर खास विरोध न करें।

कमल से बात करके अजय को एक खालीपन सा महसूस होने लगा।

जब आप अपना मिशन पूरा कर लेते हैं तो एक संतुष्टि वाला भाव उत्पन्न होता है न? ठीक वैसा! अब कुछ करने को शेष नहीं था। उसने प्रयास कर के माया दीदी का जीवन खराब होने से बचा लिया था। संभव है कि उनकी शादी कमल से न हो, लेकिन उस कमीने मुकेश से तो नहीं ही होगी! प्रशांत भैया के मन में उसने कणिका के प्रति संशय भर दिया था। वैसे भी उसने माँ को चिट्ठी लिख कर कणिका के बारे में, और पापा की जीवन रक्षा के बारे में सब कुछ बता दिया था। अंततः, उसने पापा से कह कर एक बेहद नुक़सानदायक बिज़नेस डील न करने को मना लिया था।

और क्या बाकी था?

शायद कुछ भी नहीं...

यह विचार आते ही वो थोड़ा दार्शनिक सा महसूस करने लगा।

पुनः, वो अपने वयस्क जीवन (?) के बारे में सोचने लगा।

अगर वो - मतलब उसकी चेतना - अपने भूतकाल में आ गया है, तो उसके ख़ुद का कोई अस्तित्व है भी या नहीं? अगर वो ख़ुद ‘यहाँ’ है, तो ‘वहाँ’ कौन है? और अगर वो ‘वहाँ’ नहीं है, तो माँ के साथ कौन है? यह सोचते ही उसका शरीर पसीने से नहा गया।

बाप रे! भूत, भविष्य, और वर्तमान के खेल में वो ऐसा फँसा है कि अनजाने ही उसने माँ को भीषण तकलीफ़ में झोंक दिया है। बेचारी का क्या हाल हो रहा होगा अपनी एकलौती औलाद को ‘मृत’ पा कर! कैसे बीता होता उनका आज का दिन? रो रो कर उनका बुरा हाल हो गया होगा! कैसे करेंगी वो सब कुछ?

फिर उसके मन में विचार आया कि वो वैसे भी आज सोएगा तो कल अपने वयस्क अवतार में आँखें खोलेगा। आज उसने जो प्रयास किए हैं, उसके कारण उसका भविष्य बदल जाएगा - उसको ऐसी उम्मीद तो थी।

लोग सोचते हैं कि भाग्य बदलता नहीं! कैसे नहीं बदलता?

वो भविष्य के ज्ञान को अपने भूतकाल में लाया है। ऐसे फीडबैक के कारण उसका भविष्य कैसे नहीं बदलेगा? अवश्य बदलेगा! अगर कुछ बदलना ही नहीं संभव था, तो फिर ईश्वर ने उसको यह अवसर दिया ही क्यों? उनके पास व्यर्थ समय थोड़े ही है कि किसी से यूँ ठिठोली करें? मतलब, उसके प्रयासों का कुछ प्रभाव तो पड़ेगा!

‘तो बहुत संभव है कि कल पापा भी हों, और माँ भी! ... शायद रागिनी नाम की दीमक भी न लगी हो उसके जीवन में!’

तो कल जब वो उठेगा, तो कहाँ उठेगा? पुणे में या फिर दिल्ली में!?

रोमाँच के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।

रात का सन्नाटा गहराने लगा था।

अजय के खुद के मन की दशा अब रात के सन्नाटे जैसी ही हो गई थी। ख़ामोश, गहरी, और अँधेरी!

इतने में,

“बाबू?” माया ने उसके कमरे में प्रवेश किया और बहुत हल्के से पुकारा।

“हाँ दीदी?” वो चौंका।

“सोए नहीं?”

उसने एक गहरी साँस भरी, “नींद नहीं आ रही है दीदी,”

“ऐसे कुर्सी पर बैठे रहोगे, तो नींद कैसे आएगी?” माया ने उसका हाथ पकड़ा और उठने को उकसाते हुए बोली, “चलो... उठो!”

अजय मुस्कुराया - माया दीदी उसके ऊपर अपना अधिकार बड़े ही मीठे तरीके से दर्शाती थीं। वो कोई धौंस नहीं दिखाती थीं। लेकिन कुछ बात तो थी ही उसके व्यवहार में, कि वो उनको मना नहीं कर पाता था।

“आओ... बेड में आओ!”

अजय ने बिस्तर में लेटने से पहले अपने कपड़े उतार दिए। उसको नग्न देख कर माया मुस्कुराई। यह तथ्य उससे छुपा हुआ नहीं था कि अजय नग्न हो कर सोता था। कभी कभी वो स्वयं भी नग्न हो कर सोती थी। ऐसी कोई अनहोनी सी बात नहीं थी यह।

जब अजय बिस्तर में लेट गया, तो माया ने उसको चादर ओढ़ा दी और उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी।

“दीदी?”

“हम्म?”

“कुछ देर बैठो मेरे पास?”

माया ने बिना कुछ कहे ‘हाँ’ में सर हिलाया और उसके बगल लेट गई।

“बाबू?”

“हम्म?”

“तुम... अम्म... उनके बारे में सीरियस हो न?”

“किसके?” अजय को बखूबी पता था कि माया किसके बारे में पूछ रही है। लेकिन बहन से थोड़ी ठिठोली तो की ही जा सकती है।

“उनके,” माया ने इस शब्द पर ज़ोर दिया, “... तुम्हारे दोस्त के,”

“अरे वाह वाह पतिव्रता दीदी मेरी! होने वाले हस्बैंड का नाम भी नहीं ले सकती?” अजय ने हँसते हुए छेड़ा, “दीदी, मैंने पापा से भी कह दिया है सब कुछ !”

“क्या?” अब चौंकने की बारी माया की थी।

“हाँ... देखो, मुझे घुमा फिरा कर बातें करना समझ में नहीं आता। वो... मुकेश... मुझको सही नहीं लगा।”

“क्यों बाबू?” माया ने पूछा, “देखो, मुझे तुम्हारी बात पर कोई डाउट नहीं है, लेकिन मैं भी जानना चाहती हूँ कि किसी को कैसे परखूँ!”

“दीदी, न तो उसने तुमको देखा, और न ही कभी हम कभी उससे मिले!” अजय ने समझाया, “ऐसे में वो क्यों आया? बस इसलिए क्योंकि पापा के पास पैसे हैं। उसको तुम्हारी क्वालिटीज़ से कोई लेना देना नहीं है। बस, पैसे चाहिए।”

“हम्म्म...”

“शादी उससे करो, जो तुमको चाहे! तुमसे प्रेम करे!”

इस बात पर शायद माया को कमल की याद हो आई। उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई।

“एक्साक्ट्ली! देखो न... कमल का सोच कर तुम कैसे मुस्कुराने लगी!”

“धत्त…”

“नहीं सोच रही थी उसके बारे में?”

माया झूठ नहीं कह सकती थी, “हाँ,” उसने शर्माते हुए कहा, “सोच रही थी!”

फिर पापा की बात सोचते हुए बोली, “पापा ने क्या कहा?”

“पापा को भी कमल पसंद है। उन्होंने कहा कि कल वो राणा साहब से बात करेंगे!”

“बाप रे!”

“क्या बाप रे?” अजय बोला, “देखो दीदी, पापा ने मुझे समझाया - और मुझे लगता है कि वो सही भी हैं - कि सभ्य घरों के बच्चे अगर अपने माँ बाप के आशीर्वाद से मिलें, तो बेहतर है। कम से कम हमको मालूम भी रहेगा, और हमारे परिवार इन्वॉल्व्ड भी रहेंगे!”

माया कुछ बोली नहीं। लेकिन उसके गालों पर शर्म की हल्की सी लालिमा आ गई।

अजय कह रहा था, “अगर कमल के पेरेंट्स भी तुम्हारे और कमल के रिश्ते के लिए मान जाते हैं, तो तुम दोनों बिना हिचक एक दूसरे से मिल सकते हो।”

माया की नज़रें शर्म से झुक गईं।

“एक दूसरे को जान लो दोनों... वैसे मुझे लगता है कि तुम भी कमल को बहुत पसंद करोगी। अच्छा है वो!”

“अगर वो तुमको ठीक लगते हैं, तो ठीक ही होंगे,” माया ने धीमे से कहा।

“लेकिन?”

“लेकिन, वो मुझसे छोटे भी हैं न!”

“छोटा होने पर भी उसको इतना रेस्पेक्ट तो दे ही रही हो!” अजय मुस्कुराया, “फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है?”

“बाबू... समझा करो न!”

“हा हा हा... हाँ, छोटा है, लेकिन बहुत नहीं। चार साल, बहुत हुआ तो!”

“पढ़ भी तो रहे हैं।”

“मेरे साथ ही ट्वेल्फ्थ पूरा हो जाएगा कमल का।”

“फिर भी!”

“दीदी देखो, सगाई तो अभी भी हो सकती है। हाँ, शादी में समय लग सकता है।” अजय ने शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम दोनों की शादी अभी नहीं हो सकती।”

“हैं? मतलब?”

“मतलब यह कि तुम दोनों शादी कर सकते हो... हाँ, यह ज़रूर है कि ये शादी वॉइडेबल है। मतलब अगर तुम या कमल चाहो, तो अमान्य कराई जा सकती है ये शादी। लेकिन, वो तो कोई भी शादी कराई जा सकती है!”

“और अगर केवल सगाई हो... मतलब शादी उनके इक्कीस के होने पर हो, तो?”

“फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है!” अजय बोला, “दीदी, क्या बात है? शादी करने की इच्छा जाग उठी है क्या?”

“धत्त, बदमाश है तू!”

“लकी है दोस्त मेरा!” अजय अभी भी माया की खिंचाई कर रहा था, “दीदी, तुम खूब बच्चे करना! कमल को बच्चे बहुत पसंद हैं!”

“पिटेगा तू अब, मेरे हाथों!”

“हाँ हाँ... हस्बैंड मिल गया, अब भाई की क्या वैल्यू!”

इस बात पर माया ने अजय का कान पकड़ कर खींचा और उसके गालों पर चुम्बन दिया।

“दोबारा ये बोला न, तो तुझे ऐसे ही कान पकड़ कर, ऐसे ही नंगू पंगू ले जा कर पापा और माँ से भी पिट्टी लगवाऊँगी। देख लेना,”

“आई लव यू दीदी!”

“हाँ...” वो बोली, “पहले तो रुला देता है, फिर लीपा-पोती करता है।”

“सॉरी दीदी! मज़ाक था सब!”

“ऐसा गन्दा मज़ाक मत किया कर मेरे साथ,”

दोनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर रहे, फिर माया ने ही पूछा,

“बाबू, कल रात सोते समय तुम ठीक तो थे न?”

“हाँ... क्यों? ऐसा पूछा तुमने?”

“नहीं...” माया ने हिचकिचाते हुए कहा, “वो... बात ये है कि तुम बहुत देर तक साँस नहीं ले रहे थे।”

“तुमको कैसे पता?”

“कल पानी पीने उठी थी रात में... इतना तो पता चलता ही है न!”

“हैं? पानी पीने से ये कैसे पता चलता है?”

वो मुस्कुराई, “तुम ख़र्राटे लेते हो न!”

“मैं?” अजय ने अविश्वास से कहा, “मैं ख़र्राटे लेता हूँ? ... कुछ भी!”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा,

“हाँ! कल रात मैं जब उठी, तो कमरे से तुम्हारे ख़र्राटे सुनाई नहीं दे रहे थे। मैंने कान लगाया, और जब देर तक सुनाई दिए तो कमरे में आई।”

“मैंने घबरा कर तुमको थोड़ा हिलाया...” माया के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं, “तब भी तुम नहीं उठे! तुम्हारी साँस भी नहीं चल रही थी। मैं भाग कर माँ को बुलाने ही वाली थी कि अचानक से ही तुम फिर से साँस लेने लगे!”

“फिर क्या दिक्कत है दीदी?” अजय ने थोड़ा सतर्क हो कर कहा, “साँस चल तो रही है न!”

“ऐसे मत बोलो बाबू,” माया की आँखों में आँसू आ गए, “तुमको नहीं पता कि मुझे कितना डर लगता है ये सब सोच के भी! ... और फिर... और फिर... माँ की एक ही निशानी हो तुम...”

कहते कहते माया का गला भर आया।

“ओह्हो दीदी! तुम भी न!” अजय ने बड़े प्यार से माया के गालों को अपनी हथेलियों में भर लिया, “मैं एकदम हट्टाकट्टा हूँ! बिलकुल तंदरुस्त! शायद कल रात बहुत गहरा सो गया होऊँ! जैसे मेडिटेशन के समय होता है न... वैसे!”

“पक्का कोई गड़बड़ नहीं है न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“और कभी भी तुमको कोई दिक्कत होगी, तो मुझको बताओगे न?”

“हाँ दीदी! पक्का!”

“ठीक है!”

“दीदी, अब सो जाओ,” वो बोला, “कल कमल से मिलने चलेंगे...”

अजय ने कह तो दिया, लेकिन वो खुद भी नहीं जानता था कि कल क्या होगा।

अगर मिशन पूरा हुआ है तो कल एक नया जीवन मिलने वाला है उसको!


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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

park

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अशोक जी से बातें कर के अजय ने सबसे पहले कमल को फ़ोन लगाया।

कमल भी अजय की पहल को जान कर भौंचक्क रह गया। लेकिन यह जान कर उसको राहत मिली कि माया के पापा को उनके सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं थी। उसके स्वयं के घर में अजय और माया को लेकर बड़े सकारात्मक विचार थे। कमल की माता जी माया को पसंद करती थीं। वो अपनी बहू ऐसी चाहती थीं जो गृह-कार्य में दक्ष हो, और उनके वंश को आगे बढ़ाने को इच्छुक हो। माया उनको इसलिए पसंद आती थी क्योंकि वो जानती थीं कि ये लड़की अवश्य ही पहले सड़क पर खेल तमाशे दिखाती थी, लेकिन वो काम वो अपने परिवार के पालन के लिए करती थी। अशोक जी के वहाँ आने के बाद से वो हर उस कला में निपुण हो गई थी, जो वो अपनी बहू में चाहती थीं।

माया का परिवार तो अच्छा था ही। किरण जी से बातों ही बातों में पता चल गया था कि अशोक जी अपनी जायदाद का आधा हिस्सा माया के नाम लिखने वाले हैं। मतलब, वो माया और परिवार में उसके स्थान को लेकर गंभीर भी थे। इससे भी उनके मन में माया को ले कर सकारात्मक विचार थे। यह सभी बातें कमल को मालूम थीं। वो जानता था कि अगर वो अपने माँ बाप से बात करेगा, तो शायद वो भी माया को ले कर खास विरोध न करें।

कमल से बात करके अजय को एक खालीपन सा महसूस होने लगा।

जब आप अपना मिशन पूरा कर लेते हैं तो एक संतुष्टि वाला भाव उत्पन्न होता है न? ठीक वैसा! अब कुछ करने को शेष नहीं था। उसने प्रयास कर के माया दीदी का जीवन खराब होने से बचा लिया था। संभव है कि उनकी शादी कमल से न हो, लेकिन उस कमीने मुकेश से तो नहीं ही होगी! प्रशांत भैया के मन में उसने कणिका के प्रति संशय भर दिया था। वैसे भी उसने माँ को चिट्ठी लिख कर कणिका के बारे में, और पापा की जीवन रक्षा के बारे में सब कुछ बता दिया था। अंततः, उसने पापा से कह कर एक बेहद नुक़सानदायक बिज़नेस डील न करने को मना लिया था।

और क्या बाकी था?

शायद कुछ भी नहीं...

यह विचार आते ही वो थोड़ा दार्शनिक सा महसूस करने लगा।

पुनः, वो अपने वयस्क जीवन (?) के बारे में सोचने लगा।

अगर वो - मतलब उसकी चेतना - अपने भूतकाल में आ गया है, तो उसके ख़ुद का कोई अस्तित्व है भी या नहीं? अगर वो ख़ुद ‘यहाँ’ है, तो ‘वहाँ’ कौन है? और अगर वो ‘वहाँ’ नहीं है, तो माँ के साथ कौन है? यह सोचते ही उसका शरीर पसीने से नहा गया।

बाप रे! भूत, भविष्य, और वर्तमान के खेल में वो ऐसा फँसा है कि अनजाने ही उसने माँ को भीषण तकलीफ़ में झोंक दिया है। बेचारी का क्या हाल हो रहा होगा अपनी एकलौती औलाद को ‘मृत’ पा कर! कैसे बीता होता उनका आज का दिन? रो रो कर उनका बुरा हाल हो गया होगा! कैसे करेंगी वो सब कुछ?

फिर उसके मन में विचार आया कि वो वैसे भी आज सोएगा तो कल अपने वयस्क अवतार में आँखें खोलेगा। आज उसने जो प्रयास किए हैं, उसके कारण उसका भविष्य बदल जाएगा - उसको ऐसी उम्मीद तो थी।

लोग सोचते हैं कि भाग्य बदलता नहीं! कैसे नहीं बदलता?

वो भविष्य के ज्ञान को अपने भूतकाल में लाया है। ऐसे फीडबैक के कारण उसका भविष्य कैसे नहीं बदलेगा? अवश्य बदलेगा! अगर कुछ बदलना ही नहीं संभव था, तो फिर ईश्वर ने उसको यह अवसर दिया ही क्यों? उनके पास व्यर्थ समय थोड़े ही है कि किसी से यूँ ठिठोली करें? मतलब, उसके प्रयासों का कुछ प्रभाव तो पड़ेगा!

‘तो बहुत संभव है कि कल पापा भी हों, और माँ भी! ... शायद रागिनी नाम की दीमक भी न लगी हो उसके जीवन में!’

तो कल जब वो उठेगा, तो कहाँ उठेगा? पुणे में या फिर दिल्ली में!?

रोमाँच के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।

रात का सन्नाटा गहराने लगा था।

अजय के खुद के मन की दशा अब रात के सन्नाटे जैसी ही हो गई थी। ख़ामोश, गहरी, और अँधेरी!

इतने में,

“बाबू?” माया ने उसके कमरे में प्रवेश किया और बहुत हल्के से पुकारा।

“हाँ दीदी?” वो चौंका।

“सोए नहीं?”

उसने एक गहरी साँस भरी, “नींद नहीं आ रही है दीदी,”

“ऐसे कुर्सी पर बैठे रहोगे, तो नींद कैसे आएगी?” माया ने उसका हाथ पकड़ा और उठने को उकसाते हुए बोली, “चलो... उठो!”

अजय मुस्कुराया - माया दीदी उसके ऊपर अपना अधिकार बड़े ही मीठे तरीके से दर्शाती थीं। वो कोई धौंस नहीं दिखाती थीं। लेकिन कुछ बात तो थी ही उसके व्यवहार में, कि वो उनको मना नहीं कर पाता था।

“आओ... बेड में आओ!”

अजय ने बिस्तर में लेटने से पहले अपने कपड़े उतार दिए। उसको नग्न देख कर माया मुस्कुराई। यह तथ्य उससे छुपा हुआ नहीं था कि अजय नग्न हो कर सोता था। कभी कभी वो स्वयं भी नग्न हो कर सोती थी। ऐसी कोई अनहोनी सी बात नहीं थी यह।

जब अजय बिस्तर में लेट गया, तो माया ने उसको चादर ओढ़ा दी और उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी।

“दीदी?”

“हम्म?”

“कुछ देर बैठो मेरे पास?”

माया ने बिना कुछ कहे ‘हाँ’ में सर हिलाया और उसके बगल लेट गई।

“बाबू?”

“हम्म?”

“तुम... अम्म... उनके बारे में सीरियस हो न?”

“किसके?” अजय को बखूबी पता था कि माया किसके बारे में पूछ रही है। लेकिन बहन से थोड़ी ठिठोली तो की ही जा सकती है।

“उनके,” माया ने इस शब्द पर ज़ोर दिया, “... तुम्हारे दोस्त के,”

“अरे वाह वाह पतिव्रता दीदी मेरी! होने वाले हस्बैंड का नाम भी नहीं ले सकती?” अजय ने हँसते हुए छेड़ा, “दीदी, मैंने पापा से भी कह दिया है सब कुछ !”

“क्या?” अब चौंकने की बारी माया की थी।

“हाँ... देखो, मुझे घुमा फिरा कर बातें करना समझ में नहीं आता। वो... मुकेश... मुझको सही नहीं लगा।”

“क्यों बाबू?” माया ने पूछा, “देखो, मुझे तुम्हारी बात पर कोई डाउट नहीं है, लेकिन मैं भी जानना चाहती हूँ कि किसी को कैसे परखूँ!”

“दीदी, न तो उसने तुमको देखा, और न ही कभी हम कभी उससे मिले!” अजय ने समझाया, “ऐसे में वो क्यों आया? बस इसलिए क्योंकि पापा के पास पैसे हैं। उसको तुम्हारी क्वालिटीज़ से कोई लेना देना नहीं है। बस, पैसे चाहिए।”

“हम्म्म...”

“शादी उससे करो, जो तुमको चाहे! तुमसे प्रेम करे!”

इस बात पर शायद माया को कमल की याद हो आई। उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई।

“एक्साक्ट्ली! देखो न... कमल का सोच कर तुम कैसे मुस्कुराने लगी!”

“धत्त…”

“नहीं सोच रही थी उसके बारे में?”

माया झूठ नहीं कह सकती थी, “हाँ,” उसने शर्माते हुए कहा, “सोच रही थी!”

फिर पापा की बात सोचते हुए बोली, “पापा ने क्या कहा?”

“पापा को भी कमल पसंद है। उन्होंने कहा कि कल वो राणा साहब से बात करेंगे!”

“बाप रे!”

“क्या बाप रे?” अजय बोला, “देखो दीदी, पापा ने मुझे समझाया - और मुझे लगता है कि वो सही भी हैं - कि सभ्य घरों के बच्चे अगर अपने माँ बाप के आशीर्वाद से मिलें, तो बेहतर है। कम से कम हमको मालूम भी रहेगा, और हमारे परिवार इन्वॉल्व्ड भी रहेंगे!”

माया कुछ बोली नहीं। लेकिन उसके गालों पर शर्म की हल्की सी लालिमा आ गई।

अजय कह रहा था, “अगर कमल के पेरेंट्स भी तुम्हारे और कमल के रिश्ते के लिए मान जाते हैं, तो तुम दोनों बिना हिचक एक दूसरे से मिल सकते हो।”

माया की नज़रें शर्म से झुक गईं।

“एक दूसरे को जान लो दोनों... वैसे मुझे लगता है कि तुम भी कमल को बहुत पसंद करोगी। अच्छा है वो!”

“अगर वो तुमको ठीक लगते हैं, तो ठीक ही होंगे,” माया ने धीमे से कहा।

“लेकिन?”

“लेकिन, वो मुझसे छोटे भी हैं न!”

“छोटा होने पर भी उसको इतना रेस्पेक्ट तो दे ही रही हो!” अजय मुस्कुराया, “फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है?”

“बाबू... समझा करो न!”

“हा हा हा... हाँ, छोटा है, लेकिन बहुत नहीं। चार साल, बहुत हुआ तो!”

“पढ़ भी तो रहे हैं।”

“मेरे साथ ही ट्वेल्फ्थ पूरा हो जाएगा कमल का।”

“फिर भी!”

“दीदी देखो, सगाई तो अभी भी हो सकती है। हाँ, शादी में समय लग सकता है।” अजय ने शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम दोनों की शादी अभी नहीं हो सकती।”

“हैं? मतलब?”

“मतलब यह कि तुम दोनों शादी कर सकते हो... हाँ, यह ज़रूर है कि ये शादी वॉइडेबल है। मतलब अगर तुम या कमल चाहो, तो अमान्य कराई जा सकती है ये शादी। लेकिन, वो तो कोई भी शादी कराई जा सकती है!”

“और अगर केवल सगाई हो... मतलब शादी उनके इक्कीस के होने पर हो, तो?”

“फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है!” अजय बोला, “दीदी, क्या बात है? शादी करने की इच्छा जाग उठी है क्या?”

“धत्त, बदमाश है तू!”

“लकी है दोस्त मेरा!” अजय अभी भी माया की खिंचाई कर रहा था, “दीदी, तुम खूब बच्चे करना! कमल को बच्चे बहुत पसंद हैं!”

“पिटेगा तू अब, मेरे हाथों!”

“हाँ हाँ... हस्बैंड मिल गया, अब भाई की क्या वैल्यू!”

इस बात पर माया ने अजय का कान पकड़ कर खींचा और उसके गालों पर चुम्बन दिया।

“दोबारा ये बोला न, तो तुझे ऐसे ही कान पकड़ कर, ऐसे ही नंगू पंगू ले जा कर पापा और माँ से भी पिट्टी लगवाऊँगी। देख लेना,”

“आई लव यू दीदी!”

“हाँ...” वो बोली, “पहले तो रुला देता है, फिर लीपा-पोती करता है।”

“सॉरी दीदी! मज़ाक था सब!”

“ऐसा गन्दा मज़ाक मत किया कर मेरे साथ,”

दोनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर रहे, फिर माया ने ही पूछा,

“बाबू, कल रात सोते समय तुम ठीक तो थे न?”

“हाँ... क्यों? ऐसा पूछा तुमने?”

“नहीं...” माया ने हिचकिचाते हुए कहा, “वो... बात ये है कि तुम बहुत देर तक साँस नहीं ले रहे थे।”

“तुमको कैसे पता?”

“कल पानी पीने उठी थी रात में... इतना तो पता चलता ही है न!”

“हैं? पानी पीने से ये कैसे पता चलता है?”

वो मुस्कुराई, “तुम ख़र्राटे लेते हो न!”

“मैं?” अजय ने अविश्वास से कहा, “मैं ख़र्राटे लेता हूँ? ... कुछ भी!”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा,

“हाँ! कल रात मैं जब उठी, तो कमरे से तुम्हारे ख़र्राटे सुनाई नहीं दे रहे थे। मैंने कान लगाया, और जब देर तक सुनाई दिए तो कमरे में आई।”

“मैंने घबरा कर तुमको थोड़ा हिलाया...” माया के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं, “तब भी तुम नहीं उठे! तुम्हारी साँस भी नहीं चल रही थी। मैं भाग कर माँ को बुलाने ही वाली थी कि अचानक से ही तुम फिर से साँस लेने लगे!”

“फिर क्या दिक्कत है दीदी?” अजय ने थोड़ा सतर्क हो कर कहा, “साँस चल तो रही है न!”

“ऐसे मत बोलो बाबू,” माया की आँखों में आँसू आ गए, “तुमको नहीं पता कि मुझे कितना डर लगता है ये सब सोच के भी! ... और फिर... और फिर... माँ की एक ही निशानी हो तुम...”

कहते कहते माया का गला भर आया।

“ओह्हो दीदी! तुम भी न!” अजय ने बड़े प्यार से माया के गालों को अपनी हथेलियों में भर लिया, “मैं एकदम हट्टाकट्टा हूँ! बिलकुल तंदरुस्त! शायद कल रात बहुत गहरा सो गया होऊँ! जैसे मेडिटेशन के समय होता है न... वैसे!”

“पक्का कोई गड़बड़ नहीं है न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“और कभी भी तुमको कोई दिक्कत होगी, तो मुझको बताओगे न?”

“हाँ दीदी! पक्का!”

“ठीक है!”

“दीदी, अब सो जाओ,” वो बोला, “कल कमल से मिलने चलेंगे...”

अजय ने कह तो दिया, लेकिन वो खुद भी नहीं जानता था कि कल क्या होगा।

अगर मिशन पूरा हुआ है तो कल एक नया जीवन मिलने वाला है उसको!


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Nice and superb update....
 
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kas1709

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अशोक जी से बातें कर के अजय ने सबसे पहले कमल को फ़ोन लगाया।

कमल भी अजय की पहल को जान कर भौंचक्क रह गया। लेकिन यह जान कर उसको राहत मिली कि माया के पापा को उनके सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं थी। उसके स्वयं के घर में अजय और माया को लेकर बड़े सकारात्मक विचार थे। कमल की माता जी माया को पसंद करती थीं। वो अपनी बहू ऐसी चाहती थीं जो गृह-कार्य में दक्ष हो, और उनके वंश को आगे बढ़ाने को इच्छुक हो। माया उनको इसलिए पसंद आती थी क्योंकि वो जानती थीं कि ये लड़की अवश्य ही पहले सड़क पर खेल तमाशे दिखाती थी, लेकिन वो काम वो अपने परिवार के पालन के लिए करती थी। अशोक जी के वहाँ आने के बाद से वो हर उस कला में निपुण हो गई थी, जो वो अपनी बहू में चाहती थीं।

माया का परिवार तो अच्छा था ही। किरण जी से बातों ही बातों में पता चल गया था कि अशोक जी अपनी जायदाद का आधा हिस्सा माया के नाम लिखने वाले हैं। मतलब, वो माया और परिवार में उसके स्थान को लेकर गंभीर भी थे। इससे भी उनके मन में माया को ले कर सकारात्मक विचार थे। यह सभी बातें कमल को मालूम थीं। वो जानता था कि अगर वो अपने माँ बाप से बात करेगा, तो शायद वो भी माया को ले कर खास विरोध न करें।

कमल से बात करके अजय को एक खालीपन सा महसूस होने लगा।

जब आप अपना मिशन पूरा कर लेते हैं तो एक संतुष्टि वाला भाव उत्पन्न होता है न? ठीक वैसा! अब कुछ करने को शेष नहीं था। उसने प्रयास कर के माया दीदी का जीवन खराब होने से बचा लिया था। संभव है कि उनकी शादी कमल से न हो, लेकिन उस कमीने मुकेश से तो नहीं ही होगी! प्रशांत भैया के मन में उसने कणिका के प्रति संशय भर दिया था। वैसे भी उसने माँ को चिट्ठी लिख कर कणिका के बारे में, और पापा की जीवन रक्षा के बारे में सब कुछ बता दिया था। अंततः, उसने पापा से कह कर एक बेहद नुक़सानदायक बिज़नेस डील न करने को मना लिया था।

और क्या बाकी था?

शायद कुछ भी नहीं...

यह विचार आते ही वो थोड़ा दार्शनिक सा महसूस करने लगा।

पुनः, वो अपने वयस्क जीवन (?) के बारे में सोचने लगा।

अगर वो - मतलब उसकी चेतना - अपने भूतकाल में आ गया है, तो उसके ख़ुद का कोई अस्तित्व है भी या नहीं? अगर वो ख़ुद ‘यहाँ’ है, तो ‘वहाँ’ कौन है? और अगर वो ‘वहाँ’ नहीं है, तो माँ के साथ कौन है? यह सोचते ही उसका शरीर पसीने से नहा गया।

बाप रे! भूत, भविष्य, और वर्तमान के खेल में वो ऐसा फँसा है कि अनजाने ही उसने माँ को भीषण तकलीफ़ में झोंक दिया है। बेचारी का क्या हाल हो रहा होगा अपनी एकलौती औलाद को ‘मृत’ पा कर! कैसे बीता होता उनका आज का दिन? रो रो कर उनका बुरा हाल हो गया होगा! कैसे करेंगी वो सब कुछ?

फिर उसके मन में विचार आया कि वो वैसे भी आज सोएगा तो कल अपने वयस्क अवतार में आँखें खोलेगा। आज उसने जो प्रयास किए हैं, उसके कारण उसका भविष्य बदल जाएगा - उसको ऐसी उम्मीद तो थी।

लोग सोचते हैं कि भाग्य बदलता नहीं! कैसे नहीं बदलता?

वो भविष्य के ज्ञान को अपने भूतकाल में लाया है। ऐसे फीडबैक के कारण उसका भविष्य कैसे नहीं बदलेगा? अवश्य बदलेगा! अगर कुछ बदलना ही नहीं संभव था, तो फिर ईश्वर ने उसको यह अवसर दिया ही क्यों? उनके पास व्यर्थ समय थोड़े ही है कि किसी से यूँ ठिठोली करें? मतलब, उसके प्रयासों का कुछ प्रभाव तो पड़ेगा!

‘तो बहुत संभव है कि कल पापा भी हों, और माँ भी! ... शायद रागिनी नाम की दीमक भी न लगी हो उसके जीवन में!’

तो कल जब वो उठेगा, तो कहाँ उठेगा? पुणे में या फिर दिल्ली में!?

रोमाँच के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।

रात का सन्नाटा गहराने लगा था।

अजय के खुद के मन की दशा अब रात के सन्नाटे जैसी ही हो गई थी। ख़ामोश, गहरी, और अँधेरी!

इतने में,

“बाबू?” माया ने उसके कमरे में प्रवेश किया और बहुत हल्के से पुकारा।

“हाँ दीदी?” वो चौंका।

“सोए नहीं?”

उसने एक गहरी साँस भरी, “नींद नहीं आ रही है दीदी,”

“ऐसे कुर्सी पर बैठे रहोगे, तो नींद कैसे आएगी?” माया ने उसका हाथ पकड़ा और उठने को उकसाते हुए बोली, “चलो... उठो!”

अजय मुस्कुराया - माया दीदी उसके ऊपर अपना अधिकार बड़े ही मीठे तरीके से दर्शाती थीं। वो कोई धौंस नहीं दिखाती थीं। लेकिन कुछ बात तो थी ही उसके व्यवहार में, कि वो उनको मना नहीं कर पाता था।

“आओ... बेड में आओ!”

अजय ने बिस्तर में लेटने से पहले अपने कपड़े उतार दिए। उसको नग्न देख कर माया मुस्कुराई। यह तथ्य उससे छुपा हुआ नहीं था कि अजय नग्न हो कर सोता था। कभी कभी वो स्वयं भी नग्न हो कर सोती थी। ऐसी कोई अनहोनी सी बात नहीं थी यह।

जब अजय बिस्तर में लेट गया, तो माया ने उसको चादर ओढ़ा दी और उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी।

“दीदी?”

“हम्म?”

“कुछ देर बैठो मेरे पास?”

माया ने बिना कुछ कहे ‘हाँ’ में सर हिलाया और उसके बगल लेट गई।

“बाबू?”

“हम्म?”

“तुम... अम्म... उनके बारे में सीरियस हो न?”

“किसके?” अजय को बखूबी पता था कि माया किसके बारे में पूछ रही है। लेकिन बहन से थोड़ी ठिठोली तो की ही जा सकती है।

“उनके,” माया ने इस शब्द पर ज़ोर दिया, “... तुम्हारे दोस्त के,”

“अरे वाह वाह पतिव्रता दीदी मेरी! होने वाले हस्बैंड का नाम भी नहीं ले सकती?” अजय ने हँसते हुए छेड़ा, “दीदी, मैंने पापा से भी कह दिया है सब कुछ !”

“क्या?” अब चौंकने की बारी माया की थी।

“हाँ... देखो, मुझे घुमा फिरा कर बातें करना समझ में नहीं आता। वो... मुकेश... मुझको सही नहीं लगा।”

“क्यों बाबू?” माया ने पूछा, “देखो, मुझे तुम्हारी बात पर कोई डाउट नहीं है, लेकिन मैं भी जानना चाहती हूँ कि किसी को कैसे परखूँ!”

“दीदी, न तो उसने तुमको देखा, और न ही कभी हम कभी उससे मिले!” अजय ने समझाया, “ऐसे में वो क्यों आया? बस इसलिए क्योंकि पापा के पास पैसे हैं। उसको तुम्हारी क्वालिटीज़ से कोई लेना देना नहीं है। बस, पैसे चाहिए।”

“हम्म्म...”

“शादी उससे करो, जो तुमको चाहे! तुमसे प्रेम करे!”

इस बात पर शायद माया को कमल की याद हो आई। उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई।

“एक्साक्ट्ली! देखो न... कमल का सोच कर तुम कैसे मुस्कुराने लगी!”

“धत्त…”

“नहीं सोच रही थी उसके बारे में?”

माया झूठ नहीं कह सकती थी, “हाँ,” उसने शर्माते हुए कहा, “सोच रही थी!”

फिर पापा की बात सोचते हुए बोली, “पापा ने क्या कहा?”

“पापा को भी कमल पसंद है। उन्होंने कहा कि कल वो राणा साहब से बात करेंगे!”

“बाप रे!”

“क्या बाप रे?” अजय बोला, “देखो दीदी, पापा ने मुझे समझाया - और मुझे लगता है कि वो सही भी हैं - कि सभ्य घरों के बच्चे अगर अपने माँ बाप के आशीर्वाद से मिलें, तो बेहतर है। कम से कम हमको मालूम भी रहेगा, और हमारे परिवार इन्वॉल्व्ड भी रहेंगे!”

माया कुछ बोली नहीं। लेकिन उसके गालों पर शर्म की हल्की सी लालिमा आ गई।

अजय कह रहा था, “अगर कमल के पेरेंट्स भी तुम्हारे और कमल के रिश्ते के लिए मान जाते हैं, तो तुम दोनों बिना हिचक एक दूसरे से मिल सकते हो।”

माया की नज़रें शर्म से झुक गईं।

“एक दूसरे को जान लो दोनों... वैसे मुझे लगता है कि तुम भी कमल को बहुत पसंद करोगी। अच्छा है वो!”

“अगर वो तुमको ठीक लगते हैं, तो ठीक ही होंगे,” माया ने धीमे से कहा।

“लेकिन?”

“लेकिन, वो मुझसे छोटे भी हैं न!”

“छोटा होने पर भी उसको इतना रेस्पेक्ट तो दे ही रही हो!” अजय मुस्कुराया, “फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है?”

“बाबू... समझा करो न!”

“हा हा हा... हाँ, छोटा है, लेकिन बहुत नहीं। चार साल, बहुत हुआ तो!”

“पढ़ भी तो रहे हैं।”

“मेरे साथ ही ट्वेल्फ्थ पूरा हो जाएगा कमल का।”

“फिर भी!”

“दीदी देखो, सगाई तो अभी भी हो सकती है। हाँ, शादी में समय लग सकता है।” अजय ने शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम दोनों की शादी अभी नहीं हो सकती।”

“हैं? मतलब?”

“मतलब यह कि तुम दोनों शादी कर सकते हो... हाँ, यह ज़रूर है कि ये शादी वॉइडेबल है। मतलब अगर तुम या कमल चाहो, तो अमान्य कराई जा सकती है ये शादी। लेकिन, वो तो कोई भी शादी कराई जा सकती है!”

“और अगर केवल सगाई हो... मतलब शादी उनके इक्कीस के होने पर हो, तो?”

“फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है!” अजय बोला, “दीदी, क्या बात है? शादी करने की इच्छा जाग उठी है क्या?”

“धत्त, बदमाश है तू!”

“लकी है दोस्त मेरा!” अजय अभी भी माया की खिंचाई कर रहा था, “दीदी, तुम खूब बच्चे करना! कमल को बच्चे बहुत पसंद हैं!”

“पिटेगा तू अब, मेरे हाथों!”

“हाँ हाँ... हस्बैंड मिल गया, अब भाई की क्या वैल्यू!”

इस बात पर माया ने अजय का कान पकड़ कर खींचा और उसके गालों पर चुम्बन दिया।

“दोबारा ये बोला न, तो तुझे ऐसे ही कान पकड़ कर, ऐसे ही नंगू पंगू ले जा कर पापा और माँ से भी पिट्टी लगवाऊँगी। देख लेना,”

“आई लव यू दीदी!”

“हाँ...” वो बोली, “पहले तो रुला देता है, फिर लीपा-पोती करता है।”

“सॉरी दीदी! मज़ाक था सब!”

“ऐसा गन्दा मज़ाक मत किया कर मेरे साथ,”

दोनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर रहे, फिर माया ने ही पूछा,

“बाबू, कल रात सोते समय तुम ठीक तो थे न?”

“हाँ... क्यों? ऐसा पूछा तुमने?”

“नहीं...” माया ने हिचकिचाते हुए कहा, “वो... बात ये है कि तुम बहुत देर तक साँस नहीं ले रहे थे।”

“तुमको कैसे पता?”

“कल पानी पीने उठी थी रात में... इतना तो पता चलता ही है न!”

“हैं? पानी पीने से ये कैसे पता चलता है?”

वो मुस्कुराई, “तुम ख़र्राटे लेते हो न!”

“मैं?” अजय ने अविश्वास से कहा, “मैं ख़र्राटे लेता हूँ? ... कुछ भी!”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा,

“हाँ! कल रात मैं जब उठी, तो कमरे से तुम्हारे ख़र्राटे सुनाई नहीं दे रहे थे। मैंने कान लगाया, और जब देर तक सुनाई दिए तो कमरे में आई।”

“मैंने घबरा कर तुमको थोड़ा हिलाया...” माया के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं, “तब भी तुम नहीं उठे! तुम्हारी साँस भी नहीं चल रही थी। मैं भाग कर माँ को बुलाने ही वाली थी कि अचानक से ही तुम फिर से साँस लेने लगे!”

“फिर क्या दिक्कत है दीदी?” अजय ने थोड़ा सतर्क हो कर कहा, “साँस चल तो रही है न!”

“ऐसे मत बोलो बाबू,” माया की आँखों में आँसू आ गए, “तुमको नहीं पता कि मुझे कितना डर लगता है ये सब सोच के भी! ... और फिर... और फिर... माँ की एक ही निशानी हो तुम...”

कहते कहते माया का गला भर आया।

“ओह्हो दीदी! तुम भी न!” अजय ने बड़े प्यार से माया के गालों को अपनी हथेलियों में भर लिया, “मैं एकदम हट्टाकट्टा हूँ! बिलकुल तंदरुस्त! शायद कल रात बहुत गहरा सो गया होऊँ! जैसे मेडिटेशन के समय होता है न... वैसे!”

“पक्का कोई गड़बड़ नहीं है न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“और कभी भी तुमको कोई दिक्कत होगी, तो मुझको बताओगे न?”

“हाँ दीदी! पक्का!”

“ठीक है!”

“दीदी, अब सो जाओ,” वो बोला, “कल कमल से मिलने चलेंगे...”

अजय ने कह तो दिया, लेकिन वो खुद भी नहीं जानता था कि कल क्या होगा।

अगर मिशन पूरा हुआ है तो कल एक नया जीवन मिलने वाला है उसको!


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कब नींद आ गई उसे, उसको नहीं पता।

लेकिन सोते समय बड़े अजीब से सपने आए उसको...

उसको ऐसा लगा कि जैसे उसके जीवन के सभी अनुभव... जीवन का हर एक पल एक रबड़ जैसी एक अथाह चादर पर बिखेर दिए गए हों, और वो चादर हर दिशा में खिंच रही हो। चादर अपने आप में बेहद काले रंग की थी... शायद आदर्श कृष्णिका रही हो! “आदर्श कृष्णिका” भौतिकी में ऐसी काली सतह या पदार्थ होता है, जो किसी भी प्रकार की रोशनी को पूरी तरह से सोख़ ले, और उसमें से कुछ भी प्रतिबिंबित या उत्सर्जित न होने दे!

चादर अवश्य ही आदर्श कृष्णिका रही हो, लेकिन हर तरफ़ अजीब सी रोशनियाँ दीप्तिमान थीं। ऐसी रोशनियाँ जो आज तक उसने महसूस तक नहीं करी थीं! उस चादर पर उसने ख़ुद को खड़ा हुआ महसूस किया। लेकिन उसको अपना शरीर भी नहीं महसूस हो रहा था। उसको ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका खुद का शरीर भी उसी रबड़ जैसी चादर का ही हिस्सा हो।

चादर निरंतर खिंचती चली जा रही थी, और उसके खिंचते खिंचते अजय के जीवन ही हर घटना जगमग ज्योतिर्मय होने लगी और वो उस जगमग सी वीथी पर अबूझ से पग भरते हुए आगे बढ़ रहा था।

उसने यह भी महसूस किया कि अचानक से उसके जीवन की कई घटनाओं में आग लग गई हो और वो बड़ी तेजी से धूं धूं कर के जलने लगीं। वो भाग कर उनको जलने से बचाना चाह रहा था, लेकिन वो चादर थी कि उसका फैलना और खिंचना रुक ही नहीं रहा था!

अजय बस निःस्सहाय सा अपने ही अवचेतन में स्वयं को समाप्त होते महसूस कर रहा था। लेकिन वो कुछ नहीं कर पा रहा था। जैसे उसको लकवा मार गया हो। और उसको जब ऐसा लगने लगा कि उसकी सारी स्मृतियाँ जल कर भस्म हो जाएँगी, और यह उसके जीवन की चादर फट कर चीथड़े में परिवर्तित हो जाएगी, अचानक से सब रुक गया।

एक तेज श्वेत रौशनी का झमका हुआ, और अचानक से ही सब कुछ उल्टा होने लगा। जो चादर एक क्षण पहले तक फ़ैल और खिंच रही थी, अब वो बड़ी तेजी से हर दिशा से सिकुड़ने लगी। संकुचन का दबाव अत्यंत पीड़ादायक था। अजय वहाँ से निकल लेना चाहता था, लेकिन उसके पैर जैसे उस चादर पर जम गए हों! कुछ ही पलों में अजय का सारा जीवन, किसी बॉल-बिअरिंग के छोटे से छर्रे जितना सिकुड़ गया। आश्चर्यजनक था कि वो खुद अपने जीवन के ‘छर्रे’ को देख भी पा रहा था और उसका हिस्सा भी था!

और फिर अचानक से सब कुछ शून्य हो गया!



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**

(सपने को दर्शाना आवश्यक था शायद! यह पहली और आखिरी बार है कि कहानी के बीच में किसी चित्र का प्रयोग होगा। यह चित्र AI की मदद से बनाया गया है...)
भाई सपने कभी कभी बहुत गहरा प्रभाव छोड़ते हैं l यह वर्णन बहुत बेहतरीन था
 
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