अपडेट 15
इस विषय में बात समाप्त होने के बाद अशोक जी अपने कुछ मित्रों से मिलने बाहर चले गए।
अजय अभी भी किरण जी की गोदी में ही लेटा हुआ था। पापा के जाते ही वो उनकी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगा।
“क्या रे?” माँ ने हँसते हुए कहा, “एक पल पहले कैसी सयानों जैसी बातें कह रहा था, अब एक पल बाद फिर से बच्चा बन गया?”
“माँ,” अजय बिना रुके अपना काम करते हुए बोला, “आपका दुद्धू पीना तो मैं कभी नहीं रोकूँगा!”
उसकी बात पर माया भी हँसने लगी, “हाँ माँ! आप बाबू को दुद्धू पिलाना कभी न रोकना!”
“तू भी तो मेरी बिटिया है,” माँ ने ब्लाउज़ पूरी तरह से उतारते हुए कहा, “तुझे भी पिलाना नहीं रोकूँगी!”
जब भी संभव होता था, माँ दोनों को साथ ही में स्तनपान कराती थीं। न तो माँ को ही और न ही पापा को इस बारे में कभी कोई आपत्ति हुई। माँ अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझती थीं कि इस उम्र में भी वो स्तनपान करा पाने में समर्थ थीं। उसका श्रेय भी वो माया को ही देती थीं। आख़िर उसके कारण ही उनको दोबारा माँ बनने का अवसर मिला था। उसके कारण ही उन्होंने अजय को स्तनपान कराना शुरू किया था। वो उसको उस सुख से वंचित नहीं कर सकती थीं।
किरण जी के स्तन थोड़े बड़े थे, लिहाज़ा उनको ब्रा में से नीचे की तरफ़ खींच कर बाहर निकाल पाना (जैसा कि अक्सर स्तनपान कराने वाली महिलाएँ करती हैं) संभव तो था, लेकिन उचित नहीं। उन्होंने ब्रा का हुक खोला और तब तक माया भी उनकी गोदी में आ गई।
“माँ,” माया ने माँ के दाहिने स्तन को सहलाते हुए कहा, “मैं बहुत लकी हूँ!”
“हम नहीं हैं लकी?” माँ ने बड़े प्यार से कहा, “तू तो हमारी ख़ुशियाँ है। तेरे विदा होने से हमको भी तो दुःख होगा। लेकिन क्या करें? लड़की जात का यही तो है... घर में बिठा कर रख तो नहीं सकते न!”
“हाँ माँ,” अजय बोला, “दीदी की शादी बहुत ही अच्छे लड़के से करूँगा मैं!”
किरण जी मुस्कुराईं “हाँ हाँ... बिल्कुल! तेरी दीदी है। अच्छा सा लड़का ढूंढ कर ला इसके लिए!”
“डन माँ!”
अजय बोला और फिर कुछ देर तक वो और माया शांति से स्तनपान का आनंद लेते रहे।
स्तनपान संपन्न होने के बाद अजय ने माया से कहा, “दीदी, तुम कुछ देर के लिए अपने कमरे में जाओ... मुझे माँ से कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं!”
“बाबू?”
“दीदी, जाओ न! मैं आता हूँ कुछ देर में,”
अजय के स्वर में कुछ ऐसा था कि माया ने बहुत बहस नहीं करी।
वो वहाँ से निकल गई अपने कमरे की तरफ़।
“क्या बात है बेटे?” माया के जाने के बाद माँ ने उत्सुकतावश पूछा।
उनको भी अजय का अंदाज़ आज सवेरे से ही बदला हुआ लग रहा था। दिन में उन तीनों ने इस बारे में चर्चा भी करी। उनके मन में थोड़ी सी चिंता भी थी। लेकिन उन्होंने वो चिंता किसी पर ज़ाहिर नहीं होने दी। क्या पता, कोई वहम हो!
“माँ,” अजय अचानक से गंभीर हो कर बोला, “आपसे दो तीन बातें कहनी हैं!”
“बोल न बेटे?” किरण जी समझ गईं कि वो अपने बदले हुए व्यवहार के बारे में कुछ कहना चाहता है, “क्या बात है?”
“माँ, चाहे कुछ हो जाए... आप मुझसे प्रॉमिस कीजिए इस बारे में... चाहे कुछ हो जाए, आप में से कोई भी ‘वानप्रस्थ अस्पताल’ नहीं जाएँगे!”
“क्या?” माँ को कुछ समझ ही नहीं आया, “क्या कह रहा है तू? हम क्यों वानप्रस्थ अस्पताल जाने लगे रे?”
“माँ, प्लीज़, कभी कभी मुझे भी सीरियसली लिया करिए न! जो कह रहा हूँ वो समझिए... बड़ी सीरियस बात है।” अजय का गाम्भीर्य अभी भी बरकरार था, “वानप्रस्थ अस्पताल ठीक नहीं है। बड़ी सारी ख़बरें सुनने में आती हैं वहाँ से।”
“ठीक है बाबा,” माँ ने जैसे पिण्ड छुड़ाने के अंदाज़ में कहा, “नहीं जाएँगे वहाँ!”
“और, ख़ास कर के अजिंक्य देशपाण्डे नाम के डॉक्टर से तो कभी भी नहीं!”
ये वही अस्पताल था, और वही डॉक्टर था जिसकी लापरवाही के कारण अशोक जी असमय मृत्यु को प्राप्त हो गए। ग़लती अस्पताल की थोड़े ही थी - डॉक्टर देशपाण्डे की थी। उसको अवॉयड करना ज़रूरी था। लेकिन अगर अस्पताल भी अवॉयड कर सके, तो बेहतर।
“कौन?”
“अजिंक्य देशपाण्डे!” अजय ने कहा और अपनी जेब से उसने एक लिफ़ाफ़ा निकाला, “मैंने कुछ बातें लिखी हैं इस लेटर में! शायद पढ़ने में बेतुकी लगें, लेकिन प्लीज़ इन बातों को सीरियसली लीजिएगा!”
किरण जी लिफ़ाफ़ा खोलने लगीं।
“माँ, अभी नहीं! कल। कल सवेरे पढ़िएगा!”
“बेटे, सब ठीक तो है न?” किरण जी अब चिंतातुर थीं।
“सब ठीक है माँ! अगर मेरी बातें मानेंगे आप लोग, तो सब ठीक रहेगा!”
अजय बोला, और फिर माँ के एक गाल को चूम कर बोला, “माया दीदी के पास जाता हूँ!”
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जब अजय माया दीदी के कमरे में पहुँचा तो वो बिस्तर पर औंधे लेट कर कोई पुस्तक पढ़ती हुई मिली। अजय भी उसके बगल उसी पोज़िशन में आ कर लेट गया। माया ने पुस्तक पढ़ना जारी रखा। जब उसने वो पूरा चैप्टर पढ़ लिया, तो उसने पुस्तक बंद कर के अलग रख दिया।
“क्या बात थी?” उसने पूछा।
“माँ के सुनने और करने के लिए थी वो बात,” अजय ने चंचलता से कहा, “तुम्हारे नहीं!”
“हम्म... ये बात है?”
“हाँ!” अजय ने कहा और उसने माया के गाल को चूम लिया।
“बाबू,” माया ने बड़ी कोमलता से कहा, “तुमने पापा और माँ से जो सब कहा, वो सब मन से कहा?”
“बेकार लड़का है वो मुकेश, दीदी!” अजय ने तैश में आ कर कहा, “तुम्हारे पैरों की धूल भी नहीं है वो!”
“वो बात नहीं है बाबू... मैं उस बारे में पूछ रही हूँ, जो तुमने मेरे लिए कहा...”
“तुमको डाउट है दीदी?”
“नहीं बाबू... लेकिन आज तक तुमने मेरी इस तरह से तरफ़दारी नहीं करी!”
“आज से पहले मैं अँधा बहरा भी तो था दीदी!” अजय ने मुस्कुराते हुए कहा और माया को अपने आलिंगन में भर लिया, “सच में दीदी, तुमको अपनी लाइफ में बिना वजह का कोम्प्रोमाईज़ नहीं करने दूँगा! ... भाई हूँ तुम्हारा! इतने सालों तक मैं तुमको ठीक से प्यार नहीं कर पाया, तुमको ठीक से इज़्ज़त नहीं दे पाया, उसका मुझे वाक़ई अफ़सोस है... लेकिन अब और नहीं होगा वैसे!”
“तुमने इतना कह दिया, बहुत है मेरे लिए बाबू!”
“नहीं दीदी! तुम अच्छी हो, इसलिए ऐसा कह रही हो! अभी तक मैंने तुम्हारे साथ जो किया, वो सब मेरी गलती है... लेकिन उन गलतियों के कारण मैं तुम्हारे साथ गलत होने दूँ, तो बहुत ही बड़ा पाप है... अपराध है! शादी एक बार होती है! परफ़ेक्ट होनी चाहिए! मेरी दीदी उसके पास जाएगी, जो उससे खूब प्यार करेगा!”
“तुम ढूंढोगे मेरे लिए वैसा लड़का?” माया ने मुस्कुराते हुए कहा - उसके गालों पर शर्म की लालिमा दिखाई दे रही थी।
माया ने मज़ाक में नहीं कहा था यह...
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “पक्का वायदा है दीदी!”
“फिर ठीक है!” माया उसके आलिंगन में सिमटती हुई बोली, “मेरा वीरन जिससे कहेगा, मैं उसी से शादी करूँगी!”
“सच में दीदी?”
“हाँ मेरे वीरन... आज तक मैं तुमको अपना छोटा भाई मानती आई हूँ, लेकिन आज तुमने जो किया है, उसके बाद तो तुम भी पापा और माँ की ही तरह मेरे गार्जियन बन गए हो!”
“हा हा...”
“हंसने वाली बात नहीं है बाबू! एक लड़की बहुत लकी होती है, जब उसका छोटा भाई भी, उसके किसी बड़े की ही तरह उसको प्यार करे!”
“लव यू दीदी!”
“लव यू खूब मेरे भाई! ... खूब!” कह कर माया अजय की बाँह में और सिमट गई।
“वैसे दीदी, एक बात बताऊँ तुमको?”
“हाँ... बताओ न!”
“तुम्हारे लिए मैंने लड़का देख लिया है,”
“सच में?” माया आश्चर्य से चौंकी, “कौन?”
“बता दूँ?”
माया मुस्कुराई, “न भी बताओ, तो भी ठीक है! मुझे तुम पर पूरा भरोसा है...”
“हा हा!” वो हँसा।
माया उम्मीद से अजय को कुछ देर देखती रही कि वो अब बताएगा या तब बताएगा। लेकिन जब थोड़ी देर तक उसने कुछ नहीं कहा, तो माया शर्म से, लेकिन प्यारी सी ज़िद से बोली,
“बताओ न...”
अजय मुस्कुराया, “अरे रे रे! जानने के बेसब्र हो रही हो दीदी!”
“जाओ, मत बताओ!”
माया के नकली रूठने के अंदाज़ पर अजय हँसे बिना न रह सका। हँसते हँसते ही उसने कहा, “कमल...”
“कमल?” माया की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं।
“कमल,”
“ले... लेकिन वो तो छोटा है मुझ से!”
“छोटा है तो क्या हुआ दीदी? यह तो कोई कमी नहीं है... सबसे पहली बात यह है कि वो बहुत प्यार करता है तुमसे, दीदी! बहुत अच्छा लड़का है... और अच्छे, संपन्न घर से है! पाँच साल से जानता हूँ उसको... उसने एक भी गलत काम नहीं किया है आज तक। और न ही कोई गलत आदतें हैं उसमें!”
“मानती हूँ सारी बातें! लेकिन बाबू, वो छोटा है न!” माया बोली, “तुम्हारा दोस्त है... तो मेरे छोटे भाई जैसा ही है न!”
“एक ही भाई रखो दीदी,” अजय ने हँसते हुए कहा, “कम से कम, उसमें तो मेरे साथ बँटवारा न करो!”
“हा हा! बहुत बदमाश हो तुम बाबू...” माया हँसने लगी, “लेकिन वो कितने साल का है? सत्रह? अट्ठारह?”
“अट्ठारह! ... अरे तीन साल वेट कर लो न दीदी!” अजय ने मज़ाक किया, “या शादी करने की बहुत जल्दी है?”
“हा हा!” माया अब और ज़ोर से हँसने लगी, “नहीं, कोई जल्दी नहीं है!”
“सच में दीदी, वो तुमको बहुत चाहता है।” अजय गंभीर होते हुए बोला, “तुमको बहुत प्यार से रखेगा! और तुम भी उसको बहुत प्यार से रखोगी... मैं आज ही पापा को भी ये बात बताने वाला हूँ! उन्होंने माना, तो हम बात करेंगे उसके पेरेंट्स से! ... देखना, सब अच्छा होगा!”
माया भी गंभीर होते हुए बोली, “तुम चाहते हो कि मैं कमल से शादी करूँ?”
“मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी पसंद के लड़के से शादी करो... कमल मुझको अच्छा लगता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तुमको भी अच्छा लगे!”
माया ने समझते हुए सर हिलाया।
“तुमने अभी तक उसको मेरे दोस्त की तरह देखा है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि कमल को तुम दूसरी नज़र से देख लो... एक साथी की तरह! उसको परख लो... उसको समझ लो... और अगर वो समझ में आ जाए, तो शादी भी कर लो!”
“ठीक है,” माया मुस्कुराई, “थैंक यू बाबू!”
“नहीं दीदी! थैंक यू!” वो बोला, “मैं बस चाहता हूँ कि मेरा हर अज़ीज़ हमेशा खूब खुश रहे!”
“थैंक यू अज्जू... मेरे बाबू... मैं शायद दुनिया की सबसे लकी बहन हूँ!”
“हा हा!”
“सच में!” माया ने धीरे से कहा, “सभी मेरे बारे में कितना सोचते हैं! पापा, तुम, माँ...”
“हाँ दीदी!” अजय बोला, “वैसे तुम कमल के बारे में कुछ जानना चाहो, तो पूछ लो!”
माया ने अजय से कमल के बारे में बहुत से प्रश्न पूछे। कुछ सामान्य और कुछ अंतरंग! अजय को यह जान कर बहुत अच्छा लगा कि माया भी कमल में रूचि दिखा रही थी।
‘शायद दीदी की ज़िन्दगी बेहतर हो!’
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