• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,187
23,395
159
अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; ...
 
Last edited:

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,328
16,858
144
अपडेट 5


किसी दिन बनूँगी मैं राजा की रानी... ज़रा फिर से कहना
बड़ी दिलरुबा है ये सारी कहानी... ज़रा फिर से कहना


सुबह अजय की आँख इस गाने की आवाज़ पर खुली। एक समय था, जब ये गीत बहुत प्रसिद्ध था, और अजय को भी बहुत पसंद था! लेकिन इस फिल्म को आए और गए कई साल हो गए। बहुत समय पहले! ऐसे में अपना पसंदीदा गीत सुन कर उठना उसको बहुत अच्छा लगा। आज बहुत गहरी नींद आई थी - ऐसी जैसी उसने कभी नहीं महसूस की।

और ये तब था जब उसने वो सपना देखा था!

कैसा भयानक सपना था वो!

फिर भी इस समय उसको कितना शांत लग रहा था सब कुछ! न किसी तरह की उद्विग्नता, और न ही किसी तरह की बेचैनी! आश्चर्य की बात यह थी कि पहले जब उसको डरावने सपने आते थे, तो उसका पूरा शरीर पसीने से नहा उठता था। लेकिन आज नहीं! उसने अपनी तकिया को फिर से छुआ - हाँ, कोई पसीना नहीं। कमाल है! ऐसा भयानक सपना... ऐसे सपने देख कर कोई भी आदमी पसीने पसीने हो जाए डर के मारे! लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि उसको कुछ हुआ ही नहीं?

दरअसल दो बातें हुईं - पहली यह कि उसको ऐसा भयानक और डरावना सपना आया और उसके शरीर ने परिचित तरीके से प्रतिक्रिया नहीं दी। और दूसरा यह कि यह शायद पहली बार हुआ था कि वो माँ की ममता भरी गोद में सोया हो, और उसको ऐसा डरावना सपना आया हो। फिर उसने महसूस किया... इन दोनों बातों से इतर भी एक और बात हुई।

अजय का सपना अवश्य ही बहुत भयानक था, लेकिन इतनी गहरी और संतोषजनक नींद आई थी उसको, कि इस समय गज़ब की ऊर्जा महसूस हो रही थी उसको अपने शरीर में। गज़ब की ऊर्जा! जैसे वो किसी अत्याधुनिक स्पा में जा कर कोई यूथ ट्रीटमेंट करवाया हो!

उसने अंगड़ाई भरी - आज हमेशा की तरह उसकी हड्डियाँ भी नहीं कड़कड़ाईं!

कमाल है! उसने सोचा, और एक गहरी साँस भरी... अद्भुत रूप से उसने अपेक्षाकृत बहुत गहरी साँस भरी!

सब बहुत अद्भुत सा था आज - जैसे उसका आमूल-चूल परिवर्तन हो गया हो! एक तरह का कायाकल्प!

‘क्या हो रहा है आज!’ उसके मन में यह विचार आए बिना न रह सका।

एक बार और अँगड़ाई ली उसने! पूरा शरीर तान दिया, फिर भी कोई कड़कड़ाहट नहीं!

‘आह!’ वो खुश हो गया।

फिर उसने महसूस किया कि उसके शिश्न में भारीपन भी था। अभूतपूर्व तो नहीं कह सकते, लेकिन आज उसको ‘मॉर्निंग वुडी’ भी हो रखी है... आख़िरी बार उसको ऐसा कब हुआ था, अब तो याद भी नहीं था उसे। रागिनी ने उसकी ऐसी झण्ड करी थी कि अब तो उसको लड़की देख कर स्तम्भन भी नहीं होता था। मॉर्निंग वुडी भी नहीं। रही सही कसर जेल की सैर ने पूरी कर दी।

उसने चादर हटा कर बड़े ही आश्चर्य से अपने शिश्न को देखा - एक मज़बूत स्तम्भन! आश्चर्य है न - कैसा भयंकर स्वप्न और फिर भी शरीर में इस तरह की ऊर्जा! अजय का उद्धर्षण बेहद कठोर था। वैसा, जैसा उसको अपने युवावस्था के शिखर पर महसूस होता था! लेकिन, उसके लिंग का आकार? अजय चौंका।

‘ये क्या हुआ?’

उसका शिश्न आकार में अपेक्षाकृत छोटा लग रहा था! वृषण भी छोटे ही लग रहे थे!

क्या शिश्न, क्या वृषण, ये तो पूरा शरीर ही बहुत हल्का लग रहा था उसको।

‘ये क्या हुआ?’ उसने सोचा, ‘इरेक्शन तो परफेक्ट है, लेकिन साइज़ छोटा... और मेरी जांघें, मेरा पेट! ऐसे कैसे?’

एक रात भर में ही कोई कैसे तीस - पैंतीस किलो वज़न घटा सकता है?

उसका दिमाग चकरा गया। वो उठा और लपक कर उसने कमरे में लगे हुए दर्पण में स्वयं को देखा। और जो उसने देखा, वो अकल्पनीय था।

जो वो उसको दिख रहा था, वो अजय ही था, लेकिन अपनी उम्र से कहीं कम! लगभग एक दशक कम!

वो दृश्य देख कर अजय के शरीर में भीषण झुरझुरी होने लगी। अब जा कर उसको भय महसूस हुआ। अब जा कर उसका शरीर डर के मारे पसीने से नहा उठा।

‘ये क्या देख रहा हूँ मैं,’ उसने सोचा - आँखें मलीं और स्वयं को दो थप्पड़ भी लगाए कि नींद से बाहर निकले वो। लेकिन दर्पण में दिखने वाला प्रतिबिम्ब नहीं बदला। वो वैसा ही रहा। दर्पण के एक तरफ जीवन के तीन दशक पार कर चुका अजय था, और दूसरी तरफ़ वो अजय था, जिसने अभी भी अपने जीवन के दूसरे दशक के दरवाज़े पर दस्तख़त भी नहीं दी थी।

“अज्जू बेटे,” इतने में किरण जी की आवाज़ आई।

अजय को साफ़ महसूस हुआ कि माँ की आवाज़ नीचे से आई है।

‘नीचे से?’ वो चौंका, ‘नीचे से माँ की आवाज़ कैसे आ सकती है?’

वो दोनों तो एक कमरे के फ्लैट में रहते हैं - माँ अंदर के कमरे में और वो बाहर हॉल में सोता है। यही बंदोबस्त है - इतनी ही व्यवस्था कर सका था वो जेल से निकलने के बाद!

“उठ जा बेटे... देर हो जाएगी कॉलेज जाने के लिए...” माँ की आवाज़ निकट आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कि वो सीढ़ियों से चढ़ते हुए ऊपर आ रही थीं।

‘सीढ़ियाँ?’

अब जा कर वो थोड़ा चैतन्य हुआ! उसने चौंक कर इधर उधर देखा।

‘ये तो... ये तो...’

वो कमरा अभूतपूर्व रूप से परिचित था!

यह कमरा तो उसके पुराने घर में था। पुराना घर... मतलब, दिल्ली का! पुराना घर, जो उसके माता पिता और ताऊ जी ताई जी ने मिल कर बनवाया था! वो घर, जो उनकी निशानी थी - जिसको वो गँवा बैठा था।

वो दिल्ली पहुँच गया?

कब? कैसे? क्या हो रहा है ये सब?

वो बड़ी ही अजीब सी उधेड़बुन में पड़ गया था - क्या हो रहा है ये, उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

“अज्जू बेटे... उठा नहीं अभी तक?” माँ की आवाज़ पास आती जा रही थी, “ये लड़का भी न!”

अजय अभी भी अचकचाया हुआ था, दर्पण के सामने खड़ा हुआ अभी भी सोच रहा था कि वो शायद कोई सपना देख रहा हो! इतने में दरवाज़ा खुला और माँ अंदर आ गईं।

“हे भगवान,” वो उसको देख कर बोलीं, “इतना समझाती हूँ और ये लड़का है कि समझता ही नहीं!”

“माँ... क्या...”

“अरे मेरे नंगू बाबा! क्या कर रहा है शीशे के सामने? टाइम का कोई अंदाज़ा है तुझे?” माँ दनादन बोले जा रही थीं, “देख कितनी देर हो गई है, बेटे!”

“माँ?”

“क्या माँ माँ कर रहा है? ब्रश किया?”

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“तो क्या कर रहा है ऐसे नंगा नंगा शीशे के सामने खड़ा हो कर?”

“अभी अभी उठा हूँ माँ!”

“तो चल! आ जा जल्दी से नीचे। देर नहीं हो रही है कॉलेज के लिए?”

‘कॉलेज?’

“माँ कॉलेज? क्यों?” वो चकराया हुआ बोला।

“नहीं जाना है कॉलेज?”

“मैं क्यों जाऊँगा कॉलेज माँ?” अजय अभी भी सोच रहा था कि वो कोई सपना देख रहा है।

ये सब हो भी कैसे सकता है?

“क्यों?” माँ ने समझाते हुए कहा, “सेशन अभी अभी शुरू हुआ है बेटे! ऐसे नागा करना ठीक नहीं है। चल, जल्दी से आ जा!”

‘क्या कह रही हैं माँ!’

“सेशन? काहे का सेशन माँ?” वो अभी भी चकराया हुआ था, “क्या कह रही हैं आप... समझ ही नहीं आ रहा है?”

“कॉलेज नहीं जाना है?” माँ ने थोड़ा सख़्त लहज़े में कहा।

उनको पढ़ाई लिखाई में कटौती करना बहुत नापसंद था।

“कॉलेज? क्यों मज़ाक करती हो माँ,” अजय ने कहा।

माँ ने उसका कान पकड़ कर कमरे से बाहर निकालते हुए कहा, “बस! अब और मज़ाक नहीं! चल तैयार हो जल्दी से! कमल आता ही होगा... और एक ये लाट साहब हैं कि मस्ती सूझ रही है इनको!”

‘कमल!’

माँ कह रही थीं, “सुन, माया ने नाश्ता तैयार कर दिया है। आधे घण्टे से पहले पहले नीचे आजा... हम वेट कर रहे हैं।”

‘माया?’

कमल उसका बचपन का दोस्त था। बचपन - मतलब आठवीं क्लास से।

माया - माया ‘दीदी’ - उसके माता पिता की दत्तक पुत्री थीं।

**
ओ तेरी अजय लगता है कोई टाइम लूप में फंस गया है l
 
  • Like
Reactions: avsji

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,328
16,858
144
अपडेट 6


माया ‘दीदी’ अजय से कोई पाँच साल बड़ी थीं।

वो उसकी सगी दीदी नहीं थीं।

माया दीदी की माँ एक नटिन थीं, और उनके पिता का कोई ठिकाना या कोई ज्ञान नहीं था किसी को। अजय के माता पिता अक्सर सड़क पर माया और उनकी माँ को नटों वाला खेल तमाशे दिखाते हुए देखते थे। अनेकों खेल तमाशे - जैसे कलाबाज़ियाँ दिखाना, आग के वृत्त में से कूद फाँद करना, मुँह से ही किसी बेढब चीज़ को सम्हालना, एक छोटे से पहिए पर बैलेंस बनाना इत्यादि! एक बार अचानक ही वो दोनों सड़क पर दिखने बंद हो गए, तो उनको लगा कि शायद नटों का डेरा उठ गया वहाँ से। लेकिन कुछ दिनों बाद उनको फिर से माया दिखी। पूछने पर माया से ही उनको पता चला कि कोई सप्ताह भर पहले रस्सी पर चलने वाला तमाशा दिखाते हुए माया की माँ कोई चौदह फुट की ऊंचाई नीचे गिर गईं। और कोई चोट होती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन बदकिस्मती ऐसी कि वो सर के बल गिरीं, और उस दुर्घटना में उनकी गर्दन टूट गई।

एक अकेली, निःसहाय, लेकिन जवान लड़की की इस समाज में क्या दुर्दशा हो सकती है, यह सभी जानते हैं! कोई बड़ी बात नहीं थी कि कल वो वेश्यावृत्ति के काले संसार में फंस जाती! और न जाने क्या आकर्षण हुआ अजय के माता पिता को माया से कि वो उसको अकेली न छोड़ सके। इसलिए अजय के माता पिता, माया को अपने घर लिवा लाए। वो एक समय था और आज का समय है - माया इस परिवार का अभिन्न अंग बन गई थी। अवश्य ही वो कानूनी तौर पर उनकी पुत्री न बन सकीं, लेकिन शीघ्र ही वो हर मायनों में उनकी पुत्री अवश्य बन गईं।

अजय के माता पिता चाहते थे कि अजय की ही भाँति वो भी पढ़ लिख सके, लेकिन एक उम्र हो जाने पर कुछ लोगों को पढ़ने लिखने का मन नहीं करता। बहुत सी बाधाएँ आ जाती हैं। माया के साथ भी यही हुआ। उसको स्कूली ड्रेस पहन कर स्कूल जाना अखरता। वैसे भी एक सयानी लड़की अगर नौवीं दसवीं की क्लास में बैठे, तो उसको तो उसको, उसके सहपाठियों को भी अजीब लगता। सब उसको ‘दीदी’ कहते - आदर से नहीं, चिढ़ाने के लिए! तो इस तरह कुछ दिन स्कूल में पढ़ने की असफल कोशिश करने के बाद, एक दिन उन्होंने ‘अपने’ माता पिता से कह दिया कि वो स्कूल नहीं जाना चाहतीं। हाँ, पढ़ना अवश्य चाहती हैं। इसलिए घर पर ही रह कर जो पढ़ाई लिखाई हो सके, वो करने को तत्पर हैं... और बस उतना ही करना चाहती हैं।

लेकिन उनकी इच्छा गृहकार्य में निपुण होने की थी, जिससे वो अपने आश्रयदाताओं की देखभाल कर सकें। यह भी ठीक था। अधिक समय नहीं लगा कि माया दीदी को घर के लगभग हर काम करने में निपुणता हासिल हो गई। भिन्न भिन्न प्रकार के भोजन पकाना, घर को ठीक तरीके से सहेज कर रखना, घर की साज-सज्जा, और बाहर पौधों की देखभाल करना इत्यादि उनको बखूबी आ गया था। और इन पाँच सालों में पहले तो अजय की माँ प्रियंका, और फिर बाद में केवल उसकी ताई माँ किरण ने होम-स्कूलिंग कर के माया को प्राईवेट से हाई स्कूल और इण्टर दोनों पास करवा दिया।

माया के लिए पूर्व में यह मुक़ाम हासिल कर पाना भी लगभग असंभव था। पढ़ना लिखना एक काम होता है, लेकिन एक स्वस्थ सुरक्षित जीवन जी पाना अलग! उसको पहले यकीन ही नहीं हुआ कि कोई संभ्रांत परिवार उसको यूँ अपना सकता है। उसको पहले पहले लगता था कि अगर और कुछ नहीं तो वो इस घर की नौकरानी बनेगी। वो भी उसके लिए कोई खराब स्थिति नहीं थी। जिस तरह से उसका रहन सहन था, और जिस जिस तरह के लोगों से उसका पाला पड़ता था, उसके हिसाब से किसी बड़े घर की नौकरानी बनना एक अच्छी बात थी। कभी कभी उसको शक़ भी होता कि कहीं घर के दोनों मर्द (अजय के ताऊ जी, अनामि, और उसके पिता जी, अशोक) उसके साथ कुछ करना तो नहीं चाहते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उल्टा, दोनों ही उसको बड़े प्रेम से, बड़े आदर से, और अपनी बेटी समान ही रखते।

शीघ्र ही परिवार के शुद्ध प्रेम ने माया की शंकाओं पर विजय प्राप्त कर ली।

लेकिन सभी से इतर, अजय को माया से अलग ही प्रकार की चिढ़ थी।

बहुत से कारण थे इस बात के। एक तो यह कि अचानक से घर का एकलौता पुत्र होने का आनंद माया के आने के कारण कम हो गया था। लोग उस पर कम और माया पर अधिक ध्यान देते - हाँलाकि यह बात पूरी तरह से गलत थी, लेकिन एक बारह साल का लड़का और क्या सोचे? दूसरा कारण यह था कि उसको अब अपना कमरा माया के साथ शेयर करना पड़ता। घर में पाँच कमरे थे - बाहर के नौकर या चौकीदार का कमरा छोड़ कर। एक एक कमरा तो मम्मी-पापा और ताऊ जी और ताई जी का था। एक कमरा प्रशांत भैया का और एक कमरा अजय का। एक कमरा गेस्ट्स के लिए था। ऊपर नीचे दो हॉल थे, और एक डाइनिंग हाल था। प्रशांत भैया - अजय के चचेरे बड़े भाई और अनामि और किरण जी के एकलौते बेटे - ने अभी अभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करी थी, और उनका जीवन थोड़ा अलग हो गया था। लेकिन फिर भी वो अपना कमरा छोड़ने वाले नहीं थे। उनको बहुत गुस्सा आता अगर कोई उनके कमरे में प्रविष्ट भी होता तो! गेस्ट रूम में माया को रखा नहीं जा सकता था। लिहाज़ा, ले दे कर एक अजय का ही कमरा शेष था। इसलिए अपना कमरा शेयर करने की मजबूरी से उसको माया से और भी चिढ़न महसूस होती।

माया की ऐसी कोई इच्छा नहीं थी कि वो अजय के ‘क्षेत्र’ में अतिक्रमण करे। वो अपने सर पर एक छत्र-छाया पा कर ही धन्य हो गई थी। वो अजय के कमरे में, उससे दूर ज़मीन पर सोती - हाँलाकि प्रियंका जी और किरण जी ने उसको अजय के साथ ही सोने को कहा था। फिर भी अजय की चिढ़न कम नहीं हुई। कुछ दिन तो ऐसे ही चला, लेकिन एक दिन माया से एक गुनाह-ए-अज़ीम हो गया। शायद उसने अजय की किसी पसंदीदा वस्तु को छू लिया। मारे गुस्से के अजय ने माया के एक स्तन पर इतनी ज़ोर से दबाया (चिकोटी काटी) कि दर्द के मारे उस बेचारी की आँखों से आँसू निकल गए। शरीर पर लगी चोट बर्दाश्त हो भी जाती है, लेकिन जो चोट मन पर लगती है, उसका निदान आसान नहीं। बेचारी कोमल हृदय वाली माया अगले कई दिनों तक अपने आपको कोसती रही और सोचती रही कि वो ऐसा क्या करे कि ‘बाबू’ (अजय के लिए माया का प्यार वाला नाम) उससे इस तरह से नाराज़ न हो।

अवश्य ही वो अजय के दिल में स्थान न बना पाई हो, लेकिन बाकी परिवार के साथ वो जल्दी ही घुल-मिल गई। और तो और, अजय आशाओं के विपरीत प्रशांत भैया भी माया को बुरा नहीं कहते थे। उल्टा, वो उसको पसंद भी करते थे। माया में भी अब अंतर आ गया था। एक प्रेम-भरे परिवार की छत्र-छाया में आ कर वो निखर गई, और संभ्रांत और सौम्य भी दिखने लगी। उसका शरीर भी सुन्दर तरीक़े से भर गया। कोई उसका पुराना जानने वाला उसको देख कर पहचान नहीं सकता था।

**
भाई या तो अजय अपनी सपने में फंस गया है या फिर टाइम लूप में l खैर अब माया और अजय के संबंध में क्या मोड़ आता है देखते हैं
 
  • Like
Reactions: avsji and parkas

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,328
16,858
144
अपडेट 7


अच्छे कामों का अच्छा नतीजा निकलता है!

माया ने जिस तरह से घर के कामों को अपने सर ले लिया, उससे अजय की दोनों माँओं को अपने अपने पतियों के साथ अंतरंग होने के अधिक अवसर मिलने लगे। बाहर के लोगों को आश्चर्य हुआ होगा, लेकिन घर में किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ जब अजय की माँ और ताई माँ दोनों ही कुछ महीनों के अंतराल पर एक बार फिर से प्रेग्नेंट हुईं। अजय की माँ प्रियंका जी का तो ठीक था, लेकिन उसकी ताई माँ, किरण जी का पुनः प्रेग्नेंट होना उनके पुत्र प्रशांत को अच्छा नहीं लगा। शायद इसलिए क्योंकि अब वो स्वयं उस उम्र में था कि शादी कर के अपने बच्चे पैदा कर सके। उसके लिए यह ऐसी ख़ुशी की खबर थी, जिस पर वो स्वयं ख़ुशी नहीं मना सका। वैसे भी वो उस समय इंजीनियरिंग के अंतिम साल में था और आगे की पढ़ाई के लिए अमरीका जाने की तैयारी में था। अपने समय पर ख़ुशियाँ आनी भी शुरू हुईं - किरण जी ने अपने नियत समय पर एक सुन्दर और स्वस्थ बालक को जन्म दिया। प्रियंका जी को पुनः माँ बनने में अभी भी कोई चार महीने शेष थे।

लेकिन फिर वो हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं करी थी!

एक सड़क दुर्घटना में अनामि जी, उनके नवजात शिशु, और गर्भवती प्रियंका जी की असमय मृत्यु हो गई। कार के ड्राइवर अनामि जी ही थे। प्रियंका जी उनके बगल ही पैसेंजर सीट पर बैठी थीं। दोनों गाड़ी की टकराहट के भीषण धक्के से तत्क्षण मृत हो गए। किरण जी संयोग से पीछे की सीट पर अपने नवजात के साथ बैठी थीं। वो तो बच गईं, लेकिन धक्के में उस शिशु को भी गहरी चोटें आईं। जिससे वो भी ईश्वर को प्रिय हो गया।

एक खुशहाल परिवार एक झटके में कैसे वीरान हो जाता है, कोई इनसे पूछे!

किरण जी सर्वाइवल गिल्ट के कारण अवसाद में चली गईं। उनके मन में होता कि वो भी अपनी चहेती और छोटी बहन जैसी देवरानी, पति, और नवजात शिशु के संग स्वर्गवासी क्यों नहीं गईं! ऐसे में माया दीदी ने ही उनको दिशा दिखाई।

अपनी माँ की मृत्यु के बाद न केवल किरण जी ही, बल्कि अजय भी गुमसुम सा रहने लगा था। भयानक समय था वो! अजय के पिता, अशोक जी अपनी पत्नी और अपने बड़े भाई की मृत्यु से शोकाकुल थे; और किरण जी का हाल तो बयान करने लायक ही नहीं था। ऐसे में अजय ही उन दोनों के उपेक्षा से आहत हो गया था। माया दीदी यथासंभव उसकी देखभाल करतीं, लेकिन अजय के मन में वो अभी भी एक बाहरी सदस्य थीं। इसलिए न तो उसको उनसे उतना स्नेह था और न ही उनके लिए उतना सम्मान। लेकिन माया को समझ आ रहा था सब कुछ! वो स्वयं सयानी थी। एक दिन हिम्मत कर के वो किरण जी के कमरे में गई,

“माँ जी?”

“हम्म?” पुकारे जाने पर किरण जी चौंकी।

“माँ जी... एक बात कहनी थी आपसे...”

“बोल न बेटे... इतना हिचकिचा क्यों रही है तू?”

“छोटा मुँह बड़ी बात वाली बात कहनी है माँ जी,” माया ने कहा, “इसलिए डरती हूँ कि कहीं आप नाराज़ न हो जाएँ!”

“बोल बच्चे! तू अपनी है न! बोल।” माँ ने उसको दिलासा दिया।

“माँ जी, बाबू की भी हालत ठीक नहीं है,” माया ने कहा - वो अजय को प्यार से बाबू कह कर बुलाती थी, “आप लोगों की ही तरह वो भी दुःखी है।”

किरण जी चौंक गईं! बात तो सही थी। अपने अपने ग़म में सभी ऐसे डूबे हुए थे कि उनको अजय का ग़म दिख ही नहीं रहा था।

“वो कुछ दिनों से ठीक से खाना नहीं खा रहा है। मैंने बहुत कोशिश करी, लेकिन एक दो निवालों से अधिक कुछ खाया ही नहीं उसने।”

“सच में?” किरण जी अवाक् रह गईं।

“सच की दीदी होती उसकी तो जबरदस्ती कर के खिला देती,” कहते हुए माया की आँखों में पानी भर गया।

“हे बच्चे, ऐसा अब आगे से कभी मत कहना! छुटकी (प्रियंका जी) ने तुझे बेटी कहा है। उस नाते तू भी मेरी बेटी है!”

“आपने मुझको इतना मान दिया, वो आपका बड़प्पन है माँ जी। लेकिन बाबू आपका बेटा है!” वो हिचकिचाती हुई बोली, “एक बात कहूँ माँ जी?”

“बोल न बच्चे?”

“आप... आप उसको माँ वाला प्यार दे दीजिए न...” माया झिझकते हुए कह रही थी, “आप उसको अपने आँचल में छुपा कर अपनी ममता से उसकी भूख मिटा दीजिए...”

क्या कह दिया था माया ने!

बात तो ठीक थी। अपने नवजात शिशु की असमय मृत्यु के बाद किरण जी की ममता जिस बात की मोहताज थी, उसका उपाय ही तो बता रही थी माया! और अजय अभी भी ‘उतना’ बड़ा नहीं हुआ है कि अपनी माँ के स्तनों से दूध न पी सके...
अचानक से ही किरण जी के मन से अवसाद के बदल छँट गए।

“थैंक यू बेटे,” कह कर किरण जी उठीं, और बोलीं, “तू भी आ मेरे साथ।”

जब दोनों अजय के कमरे में पहुँचीं, तो उसको खिड़की के सामने गुमसुम सा, शून्य को ताकते हुए पाया। किरण जी का दिल टूट गया उस दृश्य को देख कर! सच में - जिस समय अजय को उनकी सबसे अधिक आवश्यकता थी, उसी समय उन्होंने उसका साथ छोड़ दिया था। भला हो इस बच्ची माया का, जिसने उनको सही राह दिखा दी!

“बाबू?” माया ने अजय को पुकारा।

अजय अपनी तन्द्रा से बाहर निकल आया, “दीदी?”

“अज्जू बेटे,” किरण जी उसके बगल बैठती हुई बोलीं, “मुझे माफ़ कर दे बेटे... बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे...”

“माँ...?”

“मेरा बच्चा... तू अब से कभी मत सोचना कि तेरी माँ नहीं हैं... मैं हूँ न... तेरी माँ!”

कह कर किरण जी ने अपने स्तनों को अपनी ब्लाउज़ से स्वतंत्र कर लिया, और कहा, “आ मेरे बच्चे... मेरे पास आ...!”

किरण जी की ममता को जो निकास चाहिए था, वो उनको अजय में मिल गया और अजय जिस ममता का भूखा था, वो उसको अपनी ताई जी, किरण जी में मिल गई।

स्तनपान करते हुए जब उसको एक मिनट हो गया तब किरण जी ने अजय से कहा,

“मेरे बेटू... मैं तुझसे एक बात कहूँ?”

अजय ने माँ के स्तन को मुँह में लिए ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जब माया दीदी तुझे खाना खिलने की कोशिश कर रही थीं, तो तूने खाया क्यों नहीं?”

उनकी इस बात पर अजय निरुत्तर हो गया।

“कहीं ऐसा तो नहीं कि तू उसको अपनी दीदी नहीं मानता?”

उसके मन की बात अपनी ताई जी के मुँह से सुन कर अजय शर्मसार हो गया - बात तो सही थी। ढाई साल हो गए थे माया दीदी को घर आये, लेकिन इतने समय में भी वो उनको अपना नहीं सका। माया उसी के साथ सोती, लेकिन वो उससे अलग अलग, खिंचा खिंचा रहता। और तो और, बदमाशी में कभी कभी वो उसको लात मार मार कर बिस्तर से नीचे गिरा देता - लेकिन बहाना ऐसा करता कि जैसे वो स्वयं सो रहा हो। उधर माया पूरी कोशिश करती कि “बाबू” की नींद में खलल न पड़े और वो आराम से सो सके। उसके खाने, पीने, पहनने, ओढ़ने का पूरा ध्यान रखती। स्कूल जाते समय की पूरी व्यवस्था रहती - उसके कपड़े प्रेस रहते, जूते पॉलिश रहते - सब कुछ व्यवस्थित!

वो कुछ कह न सका। लेकिन अपराधबोध उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था।

किरण जी ने समझ लिया कि बेटे को अपनी गलती का एहसास हो गया है।

वो बोलीं, “अज्जू... मेरे बच्चे, जैसे तू मेरा बेटा है न, वैसे ही माया मेरी बेटी है... जैसे तू मेरा दूध पी रहा है न, वैसे ही माया भी...” कह कर वो माया की तरफ़ मुखातिब हो कर बोलीं, “... आ जा बिटिया मेरी... आ जा...”

अब आश्चर्यचकित होने की बारी माया की थी। उसने यह उम्मीद तो अपने सबसे सुन्दर सपनों में भी कभी नहीं करी थी! किरण जी के ममतामई आग्रह को वो मना नहीं कर सकती थी। वो भी माँ के स्तन से जा लगी।

आगे आने वाले सालों में यह नए रिश्ते इस परिवार की दिशा बदलने वाले थे - यह किसी को नहीं पता था।

**
भाई क्या कहूँ अब
फ्लैश बैक चल रहा है जिसमें माया नामक पहेली आई है l बाकी अपनी स्थन पान से ममता उड़ेल देना यह भी आपकी सिग्नेचर स्टाइल है
 
  • Like
Reactions: avsji and parkas

Harman11

Active Member
1,000
1,267
159
Update please Bhai 🙏 🙏
 
  • Like
Reactions: parkas

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,328
16,858
144
अपडेट 8


“माया दीदी हैं?” अजय ने आश्चर्य से पूछा।

माया दीदी की तो शादी हो गई थी! फिर वो यहाँ कैसे?

उससे भी बड़ा प्रश्न - वो खुद यहाँ कैसे? ये घर तो बिक चुका! लुट चुका!

“नहीं होगी तो कहाँ चली जाएगी?” माँ ने कहा - अब उनका धैर्य जवाब दे रहा था, “क्या हो गया है तुझे आज? चल, कमल आता ही होगा बेटे! वैसे भी बहुत देर हो गई है!”

“माँ, आज डेट क्या है?”

“नौ तारीख़ है,”

“नहीं... मेरा मतलब पूरी डेट?”

“नौ जुलाई, नाइनटीन नाइंटी फाइव।”

“क्या?”

‘ऐसे कैसे हो सकता है?’

‘आज तो नौ जुलाई, टू थाउजेंड एट होना चाहिए!’

‘वो तेरह साल पीछे कैसे जाग सकता है?’

‘वो कोई सपना तो नहीं देख रहा है?’

ऐसे अनेकों ख़याल अजय के दिमाग में कौंध गए।

“क्या हुआ? ऐसा क्या हो गया? ऐसे क्यों चौंक रहा है लड़का?” माँ अपने अंदाज़ में बोलीं - उनके चेहरे पर हँसी वाले भाव थे।

“माँ मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा हूँ?”

“उठ जा, नहीं तो यहीं तेरे को पानी से नहला दूँगी! नींद और सपना सब उड़ जायेगा!” वो हँसती हुई बोलीं, “और तेरी सारी मसखरी भी!”

माँ ने कहा और कमरे से बाहर निकल गईं।

लेकिन अजय के दिमाग का बुरा हाल था। उसने आँखें मलते हुए ध्यान से अपने हर तरफ़ देखा - बात तो सही है! उसके आस पास की पूरी दुनिया बदल सी गई लगती है! घर... बिस्तर... बाहर चलते हुए गाने... माँ ने जो कुछ कहा... सब कुछ!

कल तक तो वो लगभग तीस साल का आदमी था, और आज! पूरे तेरह साल पीछे चला गया! क्या वाक़ई वो तेरह साल पीछे चला गया, या कि कोई सपना देख रहा था वो? ऐसी कहानियां तो बस विज्ञान गल्प में ही पढ़ने सुनने को मिलीं थीं! और अब शायद वो खुद वैसी ही कहानी में था! कल उस बूढ़े आदमी - प्रजापति - से वो यही बात कर रहा था न!

‘बूढ़े प्रजापति?’

‘प्रजापति... विश्वकर्मा...’

उसके मस्तिष्क में ये दो शब्द कौंधे।

उसने दिमाग पर ज़ोर डाला।

‘कौन थे प्रजापति?’

‘प्रजापति! कहीं वो प्रजापति जी ईश्वर का ही रूप तो नहीं थे?’

महाभारत में भगवान ब्रह्मा को प्रजापति नाम से सम्बोधित किया गया है। अन्य ग्रंथों में भगवान शिव और भगवान विष्णु को भी प्रजापति माना जाता है। ये तीनों ही सृष्टि के आधार हैं।

‘तो क्या... तो क्या...’

अजय का दिमाग चकरा गया!

‘क्या कल उसकी मुलाकात स्वयं सृष्टि रचयिता ईश्वर से हो गई थी?’

ऐसा संभव भी है क्या? और अगर है भी, तो उन्होंने उसको केवल तेरह साल ही पीछे क्यों भेजा? और पीछे क्यों नहीं? माँ से मिलना भी तो कितना अच्छा होता! वो केवल तेरह साल पीछे ही क्यों आया वो? और पीछे क्यों नहीं?

उसके मन में कई ख़याल आ रहे थे। शायद उसको तेरह साल पीछे इसलिए भेजा गया है, क्योंकि उसने प्रजापति जी से माँ के बारे में एक बार भी बात नहीं करी थी। उसने उनको बताया था कि वो अपने पिता के लिए कुछ करना चाहता है। माँ का नाम तो उसने एक बार भी नहीं लिया! उसका दिल निराशा से टूट गया! काश, वो एक बार माँ से मिल पाता। लेकिन यह बात भी कोई कम है क्या? अगर स्वयं ईश्वर ने उसको यह ‘दूसरा अवसर’ दिया है, तो उसका कर्त्तव्य होता है कि वो इस अवसर का पूरा पूरा लाभ उठाए। और अपने प्रियजनों को भी उसका लाभ दिलाए।

उसके दिमाग में प्रजापति जी की बातें घूम रही थीं - उसको जो समझ में आया वो यह था कि उसको इस अवसर का अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए... बस इतना कि जिस तरह से उसके प्रियजनों को अनावश्यक और अनुचित दुःख झेलने मिले हैं, वो न हो। वो प्रसन्न हों!

वो भागता हुआ बाहर हॉल में आया। वहाँ आ कर उसने देखा कि ये तो वही घर है, जिसको रागिनी ने बेच कर सारे पैसे हड़प लिए थे। यह घर - बंगला - उसके माता पिता और ताऊ जी और ताई जी ने मिल कर बनाया था। यह विरासत थी उनकी! प्रशांत भैया ने अपने हिस्से को अजय के नाम कर दिया था, इसलिए सब कुछ उसी का था! लेकिन... कितना अभागा था वो कि वो इस विरासत को सम्हाल कर नहीं रख सका। वो इन सबके लायक ही नहीं था, शायद!

हाल में आते ही उसने जिसको देखा, उसको देख कर वो ख़ुशी से फूला न समाया।

“पापा!” वो लगभग चीखते हुए बोला और भागते हुए आ कर अपने पिता, अशोक जी से लिपट गया।

“अरे, क्या हुआ बेटे?” अशोक जी अखबार पढ़ रहे थे और अपने बेटे को यूँ व्यवहार करते देख कर वो थोड़ा चौंक गए। लेकिन उनको अच्छा लगा कि उनका बेटा उनसे इतने प्यार से व्यवहार करता है।

अशोक ठाकुर, अजय के पिताजी एक बिजनेसमैन थे।

थे इसलिए क्योंकि जब वो ग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू कर रहा था, तब एक मेडिकल मेलप्रैक्टिस या कहिए, डाक्टरों की लापरवाही के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी।

कितना रोया था वो उनकी मृत्यु पर! लोग अक्सर कहते हैं कि लड़के अपनी माँ के अधिक करीब होते हैं, लेकिन अजय को अपने पिता से अपनी माँ की अपेक्षा अधिक लगाव और स्नेह था। उसके पिता उसके चैम्पियन थे। वो उसको अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते रहते थे, लेकिन उनकी असमय मृत्यु के कारण वो पूरा टूट गया था। इतने सालों बाद उनको पुनः जीवित देख कर उसको कितनी ख़ुशी मिली थी, वो बयान नहीं कर सकता था!

अगर ये सब सपना है, तो बहुत अच्छा है!

“कुछ नहीं पापा,” वो बोला, “कुछ नहीं! सब अच्छा है!”

“पक्का?”

“जी पापा पापा,” अजय ने उनको देखते हुए कहा, “आई ऍम जस्ट सो हैप्पी टू सी यू!”

वो मुस्कुराए, “जल्दी तैयार हो जाओ बेटे... सच में देर हो रही है आज!”

“जी पापा...”

अजय जल्दी जल्दी तैयार हुआ, और नाश्ते के लिए लगभग भागता हुआ नीचे डाइनिंग हॉल में आया।

तब तक माया ने टेबल पर नाश्ता लगा दिया था, “बाबू, चलो अब जल्दी से खा लो! आलू पराठे बनाए हैं तेरे लिए,”

“दीदी,” कह कर अजय माया से भी लिपट लगा।

आश्चर्यचकित होने की बारी माया की थी अब!

पिछले पाँच सालों में अजय और उसके रिश्तों में बहुत सुधार हुआ तो था, लेकिन जैसी आत्मीयता अजय इस समय दिखा रहा था, वो अभी तक अनुपस्थित थी। सबका प्यार मिल गया था उसको घर में - बस अपने छोटे भाई का नहीं! प्रशांत भैया भी उसको लाड़ करते थे... उनके लिए एक छोटी बहन की कमी माया ने अभूतपूर्व तरीक़े से पूरी कर दी थी। जब भी वो दीपावली पर घर आते, बिना भाई दूज मनाए वापस नहीं जाते थे।

अजय का बदला हुआ व्यवहार अन्य कारणों से भी था। हाँ, वो मैच्योर तो हो ही गया था, लेकिन समय के साथ माया दीदी उसके सबसे प्रबल समर्थकों में से थीं। वो उसके सबसे कठिन समय में उसके साथ खड़ी रही थीं। उनके साथ भी गड़बड़ हो गया था। जैसे प्रशांत भैया और स्वयं अजय की पत्नियाँ लालची और ख़राब किस्म की आई थीं, उसी तरह उनका पति भी खराब ही निकला! ख़राब होना एक अलग बात है, लेकिन वो उनको मानसिक यातनाएँ और संताप देता रहता। लेकिन माया का व्यवहार ऐसा था कि इतना होने पर भी वो उसके ख़िलाफ़ एक शब्द भी न बोलतीं।

वयस्क अजय अक्सर सोचता रहता कि काश वो माया दीदी को उनके नर्क भरे जीवन से निकाल पाता। लेकिन कैसे? संभव ही नहीं था। उसकी खुद की हालत ऐसी खराब थी कि क्या बताए! माँ के साथ गुजारा बहुत मुश्किल से चल रहा था।

उसने एक नज़र दीदी की माँग में डाली - कोई सिन्दूर नहीं! वो दृश्य देख कर उसको राहत हुई। मतलब कुछ तो हुआ है कि ईश्वर ने उसको एक और अवसर दिया है सब कुछ ठीक कर देने के लिए!

‘हाँ! इस समय तक भी माया दीदी की शादी नहीं हुई थी!’

उसने दिमाग पर ज़ोर डाला और पुरानी बातें याद करने की कोशिश करी।

‘लेकिन माया दीदी की शादी जुलाई में ही तय हुई थी... और नवम्बर में शादी हो गई थी उनकी!’

इस बात पर उसको याद आया कि नवम्बर के महीने में ही प्रशांत भैया की शादी भी तो कणिका भाभी से हुई थी! वो शादी भी सही नहीं हुई - प्रशांत भैया थोड़ा मेहरे स्वभाव के आदमी हैं। औरत देख कर बिछ जाने वाली हालत है उनकी। मतलब माया दीदी और प्रशांत भैया - दोनों की ही नैया उसी को सही राह पर लानी है! और अपनी? वो खुद शादी नहीं करेगा - एक बार जंजाल मोल लिया, और पेट भर गया उसका!

शरीर से वो अवश्य ही किशोर है, लेकिन अनुभव में तो वो काफ़ी आगे है! भविष्य से आया हुआ है वो! उस बात का कोई मोल तो होना चाहिए।

उसने माया के दोनों गालों को चूम लिया - ऐसा करना उसने अभी कुछ वर्षों पहले ही शुरू किया था। इसलिए ‘इस’ माया दीदी के लिए यह पहली घटना थी। उनको भी सुखद आश्चर्य हुआ।

“क्या हुआ है बाबू? कोई अच्छी खबर मिली है लगता है?” माया ने हँसते हुए कहा।

वो सच में बहुत प्रसन्न थी।

“ऐसा ही समझ लो दीदी... ऐसा ही समझ लो!”

“अच्छी बात है... स्कूल से वापस आओ, फिर आराम से सुनेंगे!”

“स्कूल नहीं दीदी, कॉलेज!”

“आलू पराठा!” दीदी ने मुस्कुराते हुए चेताया, “... अरे, कमल?” और कमल को भीतर आते देख कर कहा, “आ गया?” और फिर जैसे कमल से अजय की शिकायत करती हुई बोलीं, “ये देखो... तुम्हारा दोस्त अभी नाश्ता भी नहीं कर सका!”

“कोई बात नहीं दीदी... थोड़ा टाइम तो है!” कमल ने कहा।

“टाइम है?” उसने खुश होते हुए कहा, “तो बैठो फिर, तुमको भी पराठे खिलाती हूँ!”

और कमल के लिए भी प्लेट लगाने लगी।

कमल और अजय आज समझ गए थे कि कॉलेज के लिए लेट होगा।

**
ओ भाई तुसी ग्रेट हो
टोफू क़ुबूल करो
🙏🙏🙏🙏
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,328
16,858
144
अपडेट 9


अजय को एक बात समझ में आ तो रही थी, और वो यह कि उसकी तीस वर्षीय ‘चेतना’, उसके किशोरवय शरीर में आ गई थी। तो उसकी किशोरवय चेतना का क्या हुआ? वो कहाँ गई? उस सपने का मतलब क्या था? वो सपना था भी या कुछ और था? कुछ और - मतलब हक़ीक़त!

उसकी चेतना का इस युवा शरीर में प्रविष्ट होना टाइम ट्रेवल तो कत्तई नहीं था। अन्यथा वो सशरीर इस घटनाक्रम में भी होता, और उसके दो दो संस्करण एक साथ भी होते - एक युवा और एक वयस्क। किन्तु हाल फिलहाल एक ही संस्करण है उसका - युवा... किशोर! लेकिन चेतना भविष्य से आई हुई। कंप्यूटर की भाषा में कहें, तो जैसे एक कोरी डिस्क पर एक नया प्रोग्राम लोड कर दिया गया हो। पुरानी वाली चेतना का अवशेष उसकी वयस्क चेतना के कारण उपलब्ध है, लेकिन पुरानी (किशोर) चेतना के साथ अब उसका कोई संपर्क नहीं।

उसने दिमाग पर ज़ोर दिया - सपने में उसको ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी कुछ स्मृतियाँ जल रही हों। क्या सच में वही हो रहा था?

‘उसको क्या क्या याद है?’ अजय ने सोचा, लेकिन फिर अगले ही पल उसने सोचा कि यह सोचना भी व्यर्थ है। क्योंकि अगर उसके वयस्क संस्करण की कोई घटना, कोई स्मृति उसकी चेतना से गायब हो गई है, तो उसको कैसे पता चलेगा कि वो गायब हो गई है? अगर कुछ खोया है उससे, तो उसको ज्ञात भी नहीं है कि उससे कुछ खोया भी है। ऐसे अज्ञात को ढूँढा नहीं जा सकता। वैसे भी समय आगे की तरफ़ ही बढ़ता है। लिहाज़ा, अब यही उसका जीवन है।

हाँ - एक बात अवश्य है। कम से कम उसको अपने सभी सम्बन्धियों के नाम मालूम हैं, उनके चरित्र मालूम हैं। इस बात का कोई लाभ होना चाहिए। है कि नहीं?

लेकिन जो मालूम है, कहीं उसमें ही कोई अंतर तो नहीं आ गया?

उसने सोचा।

एक बड़ा अंतर तो उसमें स्वयं में ही आ गया है - वो उम्र के हिसाब से कहीं अधिक परिपक्व हो गया है। इस बात का प्रभाव आने वाले भविष्य पर तो पड़ेगा ही पड़ेगा। मतलब भविष्य में परिवर्तन अवश्यम्भावी है। और क्या क्या परिवर्तन आए हैं - वो जानना चाहता था। लेकिन सुबह से उसको इस बात के बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिला था। अभी भी चकराया हुआ था वो।

अचानक वयस्क से पुनः किशोरवय छात्र बन जाना कोई आसान बात नहीं है। वो एक स्वतंत्र पुरुष था - कमाता था, जो भी थोड़ा बहुत कमाता था, जीवन के थपेड़ों से वो परिचित था। सबसे कठिन बात यह थी कि वो भूतपूर्व ‘भविष्य’ की बातों से परिचित भी था। संभव है प्रजापति जी ने उसको उस भविष्य को बदलने के लिए ही यह अवसर दिया हो?

उसने सुना - कमल कुछ कह रहा था उससे। लेकिन उसको सुनाई दे कर भी सुनाई नहीं दे रहा था।

कमल और अजय दोनों ही दिल्ली के प्रसिद्ध हॉगवर्ट्स कॉलेज ऑफ़ हायर एजुकेशन में पढ़ते थे। हॉगवर्ट्स दिल्ली और एनसीआर में एक प्रसिद्ध कॉलेज था। लेकिन यहाँ अति-संपन्न घरों के बच्चे नहीं पढ़ते थे। उनके लिए अलग अति-संपन्न कॉलेज थे। हॉगवर्ट्स में सामान्य से ऊपर संपन्न लोगों के बच्चे पढ़ते थे। शिक्षक भी यहाँ लगभग परमानेंट ही थे, क्योंकि उनको वेतन अच्छा मिलता था।

अजय का मित्र कमल - कमल राणा - अजय से एक साल बड़ा था।

वो केवल उसका मित्र ही नहीं, अनन्य मित्र भी था। कमल के पिता, किशोर राणा एक सफल बिज़नेसमैन थे। वो घरेलू उपयोग की वस्तुओं जैसे कि दाल चावल मसाले इत्यादि जैसी किराने का विक्रय करते थे। लेकिन उनका कोई छोटा मोटा नहीं, बल्कि बहुत बड़ा बिज़नेस था। दिल्ली में कुल मिला कर छः बड़ी दुकानें थीं उनकी। यह कोई छोटी बात नहीं है। लिहाज़ा, बहुत संपन्न परिवार था उनका। उनके मुकाबले देखा जाए तो अजय का परिवार कम संपन्न था। ख़ैर! कमल और अजय की गाढ़ी मित्रता के कारण दोनों परिवारों में भी गाढ़ी मित्रता हो गई थी। दोनों लड़के अक्सर ही एक दूसरे के घरों में खाना, पीना, सोना, और रहना भी कर लेते थे। उनके परिवारों के बीच भी मधुर मैत्री सम्बन्ध थे।

अजय के विवाह के समय तक कमल पूरी तरह से अपने पारिवारिक पेशे में मशगूल हो गया था। और अजय…! खैर, अजय का हश्र तो हम पहले ही जान चुके हैं। उन दोनों की यह गाढ़ी दोस्ती आगे आने वाले सालों में भी बनी रही। तब भी जब अजय का सब कुछ तहस नहस हो गया। उन्होंने उसकी कानूनी लड़ाई का खर्चा भी वहन किया था। जेल से निकलने के बाद भी किशोर जी ने उससे कहा भी कि वो और किरण जी उनके साथ आ कर रहें। लेकिन किरण जी और अजय दोनों ने ही इस पेशकश को ससम्मान मना कर दिया कि कहीं उनके कारण किशोर जी के परिवार पर भी कोई आँच न आ जाए।

कमल को कुछ वर्षों पहले एक कक्षा में ड्राप लेना पड़ा था - इसलिए नहीं कि वो पढ़ने लिखने में फिसड्डी था, बल्कि इसलिए क्योंकि एक लम्बी बीमारी के कारण उस क्लास का कोर्स अधूरा रह गया, और वो अपना फाइनल एग्जाम नहीं लिख सका था। हाँलाकि वो पढ़ाई लिखाई में ठीक था, लेकिन फिर भी प्रिंसिपल ने उसके पिता से कहा था कि वो यह क्लास फिर से कर ले, नहीं तो उसको आगे दिक्कत होगी। लिहाज़ा वो आठवीं से अजय की क्लास में था। कमल अच्छा लड़का था - थोड़ी मस्ती करता था, लेकिन वो पढ़ने में अजय से बहुत पीछे नहीं था। अजय के साथ वो एक बड़े भाई जैसा भी बर्ताव करता था। आज कल वो उसको कार चलाना भी सिखा रहा था। मोटरसाईकल चलाना उसने बहुत पहले ही सिखा दिया था उसको।

रास्ते में कमल मोटरसाइकिल चलाते हुए अजय से कह रहा था, “अज्जू, आज लेट होगा!”

“हम्म!” अजय क्या कहता - उसको तो कॉलेज का टाइम भी याद नहीं था।

उसके दिमाग में तो एक अलग ही उधेड़बुन चल रही थी।

“चल आज बंक करते हैं कॉलेज और कोई फिल्म देखने चलते हैं?”

“कौन सी?”

“बॉम्बे?” उसने सुझाया, “बाज़ी भी अच्छी है सुना है!”

“नहीं यार... कॉलेज चलते हैं न! दोस्तों से मिलने का मन है...”

“कल ही तो मिला था सभी से! एक रात में क्या बदल गया ऐसा?”

“बहुत कुछ...” अजय ने बुदबुदाते हुए कहा।

“क्या?”

“कुछ नहीं,” उसने प्रत्यक्षतः कहा, “... थोड़ी तबियत नासाज़ है भाई! इसीलिए देर से उठा।” फिर उसने सुझाया, “कल चल सकते हैं? कल तो संडे है ही!”

“हम्म्म... अब तो साला चक्कू दिमाग खाएगा!” कमल बड़बड़ाते हुए बोला, “देर तो होनी ही है! तू भी न यार! पहले बापू ने सर खाया, अब ये स्साला चक्कू खाएगा!”

“कोई नहीं,” अजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “सह लेंगे!”

जिस तरह से अजय ने कहा, उस पर दोनों ही ठठाकर हँसने लगे।

चक्कू - चक्रवर्ती सर - अजय और कमल की क्लास के क्लास-टीचर थे। कोई पचास साल के थे वो! समय और अनुशासन के बहुत पाबन्द थे, इसलिए छात्रों को बहुत पसंद नहीं थे। यहाँ तक भी ठीक था। दिक्कत यह थी कि बहुत ‘ठस’ प्रकार के व्यक्ति थे वो। मुस्कान उनके होंठों से छू जाए, मज़ाल है? उनके जैसे शिक्षकों के लिए ही ‘खड़ूस’ और ‘कंटाला’ जैसे शब्दों का आविष्कार किया गया है। अजय की सबसे पहली क्लास उन्ही की होती थी, लिहाज़ा, अटेंडेंस भी उन्ही को ही लेना होता है। आज कमल और अजय दोनों कम से कम दस से बारह मिनट देर से पहुँचने वाले थे। प्रेयर वैसे भी मिस हो ही चुकी थी।

कमल को इसी बात पर झुंझलाहट हुई थी - एक तो शनिवार है, और ऊपर से बेवज़ह डाँट सहो!


**
ओ तो यह टाइम ट्रैवल नहीं है
 
  • Like
Reactions: avsji

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,328
16,858
144
अपडेट 10


“अरेरेरेरेरेरे! आ गए आप लोग,” दोनों के देखते ही चक्कू सर ने बेहद हिकारत से कहा - छात्र चाहे कैसा हो, अगर वो अनुशासन तोड़ता, तो चक्कू सर के ताप से उसको शायद ही कोई बचा सके, “आईये आईये...”

चक्कू सर बंगाली थे, इंटरमीडिएट क्लास को इंग्लिश पढ़ाते थे... अजय की क्लास के क्लास टीचर भी थे, और अजय का कॉलेज इंग्लिश मीडियम भी था। ... इसलिए अगर चक्कू सर हिंदी में बात करने लगे, तो समझ जाना चाहिए कि अब ये आदमी जान खा लेगा। क्लास के बाकी के स्टूडेंट्स को भी एहसास हो गया कि अब तमाशा होने ही वाला है। सभी कमल और अजय के खर्चे पर मज़ा लेने को तत्पर हो गए।

लेकिन बाकी दिनों के मुकाबले आज एक बात अलग थी - और वो यह कि ‘ये’ वाला अजय ‘वो’ वाला अजय नहीं था।

“सर... आई ऍम सॉरी!” अजय ने कहना शुरू किया, “आई वास नॉट फ़ीलिंग वेल व्हेन आई वोक अप टुडे... दैट्स व्हाय आई वास लेट ऐस वेल! आई हैड हाई फ़ीवर टू... बट कमल एनकरेजड मी टू नॉट मिस कॉलेज फॉर स्माल इशू ऑफ़ फ़ीवर! बिकॉज़ ऑफ़ मी, इवन ही गॉट लेट! सो प्लीज़... इफ यू मस्ट पनिश समवन, देन पनिश मी... बट नॉट कमल! ... ही इस नॉट एट फॉल्ट!”

अजय ने सारी बात ही बदल दी।

चक्कू सर के चेहरे का हाव भाव भी हिकारत से प्रशंसा में बदल गया। अचानक ही!

कमल भी एक बार को चकरा गया।

कहाँ चक्कू सर से डाँट लगने वाली थी और कहाँ,

“वैरी गुड कमल! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू...” उन्होंने दोनों की बढ़ाई करते हुए कहा, “एंड अजय, थैंक यू फॉर बींग ऑनेस्ट विद मी!”

चक्कू सर ने दोनों को अंदर आने का इशारा किया और अटेंडेंस रजिस्टर में दोनों को उपस्थित दिखा कर अजय से कहा, “देयर इस नो नीड टू स्ट्रेस टू मच अजय! इफ यू फ़ील दैट योर हेल्थ इस वीक, देन यू कैन गो होम! ओके?”

“यस सर!” अजय बोला, “थैंक यू सर!”

“एंड क्लास,” चक्कू सर ने क्लास को सम्बोधित करते हुए कहा, “लर्न समथिंग फ्रॉम कमल... बी अ फ्रेंड लाइक हिम! बी अ पॉजिटिव फ़ोर्स फॉर योर फ्रेंड्स!”

सारी क्लास निराश हो गई - कहाँ तमाशे का मज़ा आने वाला था, और कहाँ ये!

सब गुड़-गोबर! कोई मज़ा ही नहीं!

चक्कू सर की बाकी की क्लास बिना किसी अन्य तमाशे के पूरी हो गई।


अगली क्लास मैथ्स की थी।

मैथ्स पढ़ने एक नई टीचर नियुक्त हुई थीं - शशि सिंह। शशि मैम लगभग अट्ठाइस साल की थीं! उन्होंने इस नए सत्र के शुरुवात में ही कॉलेज ज्वाइन किया था। उनके बारे में इतना तो सभी समझते थे कि वो बहुत अच्छी थीं... और मेहनती भी। मेहनती इसलिए, कि उनको अपने स्टूडेंट्स की सफ़लता से बेहद अधिक सरोकार था। वो कोशिश करती थीं कि सभी को सारे कॉन्सेप्ट्स समझ में आ जाएँ। सुन्दर भी थीं - इसलिए भी सभी छात्र - कम से कम सभी लड़के - उनको बहुत पसंद करते थे! पुरुष शिक्षक भी उनको पसंद करते थे, लेकिन वो एक अलग बात है।

पुराना अजय सभी क्लासेस में अक्सर चुप ही बैठता था। पूछे जाने पर ही किसी प्रश्न का उत्तर देता था। वैसे भी भारतीय कक्षाओं में शिक्षक और छात्र के बीच में ‘डिस्कशन’ नहीं होता, ‘प्रश्नोत्तर’ होता है।

लेकिन ये पुराना अजय नहीं था।

इस नए अजय को गणित का अच्छा ज्ञान था - ग्रेजुएशन में उसका विषय गणित तो था ही, साथ ही साथ कंप्यूटर ऍप्लिकेशन में मास्टर्स करने के कारण उसको गणित का बहुत बढ़िया और उच्च-स्तरीय ज्ञान हो गया था। ऊपर से अदालत में अनेकों बार जिरह करने के कारण उसके अंदर कमाल का कॉन्फिडेंस आ गया था। साथ ही ‘ऑथोरिटी’ के लिए उसके मन में पहले जैसी इज़्ज़त थी, अब लगभग समाप्त हो गई थी। अब वो किसी भी सरकारी ऑथोरिटी के व्यक्ति को अपनी जूती के नोक के बराबर भी नहीं समझता था। अवश्य ही वो आर्थिक रूप से टूट गया था, लेकिन आत्मसम्मान उसका बरकरार था। रस्सी जल गई थी, लेकिन उसमें ऐंठन आ गई थी।

वो कब अनजाने में ही शशि मैम के साथ आज के विषय पर ‘शास्त्रार्थ’ करने लगा - यह उसको खुद भी नहीं पता चला। लेकिन क्लास में अन्य स्टूडेंट्स, उसके मित्रों, और शशि मैम को भी उसमें आया हुआ यह अभूतपूर्व परिवर्तन साफ़ दिखाई दिया। जिस आत्मविश्वास के साथ अजय कैलकुलस जैसे कठिन विषय पर आराम से बातें कर रहा था, ऐसा लग रहा था कि जैसे टीचर शशि मैम नहीं, स्वयं अजय हो!

शशि मैम ने भी यह बात जाहिर कर ही दी, “अजय! आई ऍम सो हैप्पी दैट यू हैव सच अ स्ट्रांग कमांड ओवर दिस टॉपिक! कीप इट अप!”

क्लास ख़तम होने से पहले शशि मैम ने अजय से उनसे अलग से आ कर मिलने को कहा।

अगली क्लास फिजिक्स की थी - उसमें भी अजय अपने पूरे फॉर्म में दिखा। फिजिक्स की टीचर सिंघल मैम ने भी उसको बहुत सराहा। सिंघल मैम कोई बावन तिरपन साल की महिला थीं। खूब मोटी सी थीं, लेकिन बहुत मज़ाकिया भी थीं। उनका फिजिक्स जैसे कठिन विषय को पढ़ाने का तरीका इतना मज़ेदार और इतना सुगम्य था कि आज तक उनका रिकॉर्ड था कि उनका एक भी स्टूडेंट फर्स्ट डिवीज़न से कम में पास नहीं हुआ। लेकिन यह भी बात थी कि वो मुक्त-हस्त तरीके से किसी की बढ़ाई भी नहीं करती थीं। लेकिन अजय ने आज उनको बाध्य कर दिया था।

अजय पढ़ने लिखने में अच्छा था, लेकिन ये रातों-रात वो ऐसा ‘मेधावी’ कैसे बन गया - यह परिवर्तन देख कर सभी आश्चर्यचकित थे। टीचर शायद ये समझ रहे हों कि शायद वो अभी तक शर्माता रहता हो, इसलिए न बोलता हो। लेकिन उसके सहपाठियों को उसके ज्ञान से जलन अवश्य होने लगी। ख़ास कर के क्लास की मेधावी छात्राओं को। कुछ क्लास में तो शिक्षक केवल लड़कियों को ही पढ़ाते दिखाई देते थे। लेकिन आज वो बात अजय ने तोड़ कर रख दी थी।

ख़ैर, लंच का समय आया, तो वो शशि मैम से मिलने स्टाफ़ रूम में आया।

“अजय,” उसको देखते ही शशि मैम बड़े उत्साह से बोलीं, “कम इन... कम इन!”

“बैठो,” उन्होंने उसको बैठने का इशारा कर के आगे कहा, “देखो... मैंने तुमको इसलिए बुलाया है कि तुमसे तुम्हारी हायर स्टडीज़ के बारे में डिसकस कर सकूँ।”

अजय ने समझते हुए सर हिलाया।

शशि ने आगे कहा, “तुम एक अच्छे स्टूडेंट हो! यह मुझे पहले भी समझ में आता था, लेकिन आज क्लास में तुम्हारी परफॉरमेंस से मुझे लगता है कि तुमको मैथ्स में एडवांस्ड समझ है! एक बार को यह सोच सकती थी कि शायद तुमने कोई ट्यूशन ज्वाइन किया है, लेकिन मैंने तुमसे कुछ ऐसे सवाल पूछे थे, जो इंटरमीडिएट से आगे के हैं। तुमको वो भी आते हैं। सो आई नो दैट यू नो!”

वो मुस्कुराईं, “आई डोंट नो अबाउट अदर्स, बट सिंघल मैम भी यही कह रही थीं अभी।”

“थैंक यू मैम,” अजय ने विनम्रता से कहा, “मुझे भी लगता है कि मुझे थोड़ा अधिक सीरियस हो जाना चाहिए स्टडीज़ को ले कर! दिस इस माय ट्वेल्फ़्थ! यहीं से कैरियर शुरू होता है।”

“बहुत अच्छा लगा सुन कर! लेकिन एक बात बताओ, तुम क्लास में इतना पार्टिसिपेट क्यों नहीं करते हो?”

“मैम... वो क्या है कि मैं नेचर से थोड़ा शाय हूँ! ... बट, आई हैव डिसाइडेड टू चेंज दैट आल्सो!” अजय ने कहा, “इसलिए आपको थोड़ा डिफरेंट लगा होगा आज...”

“हाँ... एंड दैट वास अ गुड चेंज!” शशि मैम ने कहा, “एक और बात है - तुम्हारा मैथ्स और फिजिक्स में कमांड देख कर मैं चाहती हूँ कि तुम कुछ अमेरिकन और यूरोपियन यूनिवर्सिटीज़ में हायर स्टडीज़ के लिए अप्लाई करो! इंजीनियरिंग ही नहीं, किसी भी सब्जेक्ट में तुम हायर एजुकेशन ले सकते हो।”

“इस दैट सो मैम?”

“हाँ! और एक अच्छी बात यह है कि इस साल से हमारे कॉलेज ने डिसाइड किया है कि हम कॉलेज के तीन टॉप स्टूडेंट्स को बाहर हायर एजुकेशन के लिए रिकमेंड करेंगे! ... मैं और सिंघल मैम तुमको करेंगे... आई मीन, तुम्हारा नाम प्रोपोज़ करेंगे!”

“थैंक यू सो मच मैम...” अजय यह सब सुन कर ख़ुशी से फूला नहीं समाया।

“डोंट वरी अबाउट इट! लेकिन तुमको टॉप में रहना होगा। जो मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल होगा।” वो बोलीं, “थोड़ा सोच लो, और फिर पक्का बताना हमको! ओके? अगर तुमको इंटरेस्ट हो, तभी ऐसा करेंगे हम।”

“यस मैम... थैंक यू मैम...”

“वैरी गुड! और हाँ... इनसे मिलो...” शशि ने अपने बगल बैठी टीचर की तरफ़ इशारा कर के बताया, “ये हैं तुम्हारी कंप्यूटर साइंस की नई टीचर, श्रद्धा वर्मा!”

“वेलकम टू हॉगवर्ट्स मैम,” अजय ने बड़े ही आत्मविश्वास से मुस्कुराते हुए कहा, “आई ऍम श्योर दैट व्ही विल लर्न अ लॉट फ्रॉम यू!”

“थैंक यू...” श्रद्धा मैम ने मुस्कुराते जवाब दिया, “... अजय!”


**
भाई क्या कहें
अभी तो सारी बॉलिंग पर सिक्स हिट हो रहे हैं
 
  • Like
Reactions: avsji

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,328
16,858
144
अपडेट 11


लंच के बाद अगली क्लास केमिस्ट्री की थी। रूहेला सर केमिस्ट्री पढ़ाते थे। वो कोई पैंतीस साल के ऊँचे क़द के आदमी थे। बहुत भारी आवाज़ थी उनकी, और वो बहुत ही आराम से बोलते थे। इतनी भारी आवाज़ में, और इतने आराम में, और लंच के बाद अगर केमिस्ट्री पढ़ाई जाए, तो स्टूडेंट्स की क्या हालत होगी, बताने की कोई ज़रुरत नहीं है। अक्सर ही उनकी क्लास में एक चौथाई स्टूडेंट्स नींद में लुढ़के हुए ही दिखाई देते थे। उनको भी कोई परवाह नहीं थी - पढ़ना हो पढ़ो, नहीं तो मरो! मेरी बला से -- शायद वो इसी नारे पर काम करते थे।

क्लास को लगा कि शायद अजय इस क्लास में भी अपने जलवे दिखाएगा, लेकिन उनको केवल निराशा हाथ लगी। अजय भी कई अन्य स्टूडेंट्स की ही तरह बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोल पा रहा था।

फ़िर आई आज की आख़िरी क्लास।

कंप्यूटर साइंस की नई टीचर, श्रद्धा वर्मा मैम कंप्यूटर साइंस पढ़ाने आईं। रूहेला सर की क्लास के बाद वैसे भी अजय को नींद आने लगी थी, लेकिन शशि मैम के चक्कर में वो नहीं चाहता था कि श्रद्धा मैम पर से उसका इम्प्रैशन ख़राब हो। लिहाज़ा वो बड़ी कोशिश कर के तन्मयता से बैठा कि कम से कम सोता हुआ न दिखाई दे उनको। कहीं उन्होंने शशि मैम से शिकायत कर दी, तो बना बनाया मामला ख़राब हो जायेगा!

उसने पाया कि श्रद्धा मैम समझाने और पढ़ाने की अच्छी कोशिश कर रही थीं। लेकिन उनके पास पढ़ाने के अनुभव की भारी कमी लग रही थी। शायद वो पहली बार इंटरमीडिएट की किसी क्लास को पढ़ा रही थीं।

अजय ने अंदाज़ा लगाया - चौबीस या पच्चीस से अधिक की नहीं लग रही थीं श्रद्धा मैम!

साधारण कद-काठी! नहीं - साधारण नहीं, दरअसल सामान्य से छोटी ही थीं। नाटी (ठिगनी) नहीं, छोटी! अंग्रेज़ी में ऐसी लड़कियों को "पेटीट" कहते हैं। नाटे और छोटे में अंतर होता है। उनके शरीर का आकार क़द के हिसाब से अच्छा था। हाँलाकि ढीले ढाले कपड़ों में ठीक से पता नहीं चल रहा था, लेकिन वो छरहरी थीं। उनका औसत सा चेहरा था... खूबसूरत नहीं, लेकिन प्लीसिंग अवश्य था। थोड़ी साँवली भी थीं श्रद्धा मैम... लगभग माया दीदी जैसी ही! कुल मिला कर श्रद्धा मैम ऐसी लड़की थीं, कि उनको अभी देखो तो अगले कुछ पलों में भूल जाओ।

अजय भूल भी जाता... लेकिन वो कंप्यूटर साइंस में दक्ष था। बहुत संभव है कि मैम से भी अधिक! संभव क्या - यह बात सिद्ध ही है अपने आप में। अपनी शादी होने से पहले और कुछ समय बाद तक वो एक बहुत अच्छी सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता था। वेतन बहुत कम था उसका, क्योंकि वो किसी अग्रणी इंजीनियरिंग कॉलेज से नहीं था। तो ज्ञान तो उसको बहुत था। इसलिए बहुत देर तक खुद को रोक न सका। अपने पसंद के विषय पर जब चर्चा होती है, तो अच्छा लगता ही है!

कुछ ही देर में क्लास के बाकी के स्टूडेंट्स को ऐसा लगने लगा कि मानों श्रद्धा मैम और अजय ‘सर’ दोनों मिल कर उनकी क्लास ले रहे हैं!

अधिकतर शिक्षक ऐसे होते हैं जो क्लास को और अपने विषय को अपनी ‘बपौती’ समझते हैं। उनको चैलेंज कर दो, तो ऐसे काटने को दौड़ते हैं कि मानों कि वो कोई कटखने कुत्ते हों, और आपने उनकी पूँछ पर पैर रख दिया हो। वो अपने छात्रों को नीचा दिखाने का प्रयास करने लगते हैं।

लेकिन श्रद्धा मैम वैसी नहीं लग रही थीं।

वो कोशिश कर रही थीं कि उनकी क्लास को उनका पढ़ाया हुआ ठीक से समझ में आए, और साथ ही साथ अजय से सीखने की कोशिश भी कर रही थीं। यह एक अद्भुत बात थी। अजय ने भी महसूस किया कि अवश्य ही श्रद्धा को पढ़ाने का अनुभव न हो, लेकिन उनको अपना विषय अच्छे से आता था और उनको पढ़ाने का एक पैशन भी था।

मृदु-भाषी तो थीं हीं, और भी एक बात महसूस करी उसने - श्रद्धा मैम में अनावश्यक ईगो नहीं था।


**


“क्या भाई,” कॉलेज ख़तम होने के बाद कमल ने अजय से कहा, “क्या हो गया है तुमको?”

“आएँ! मुझको क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं!”

“अबे स्साले... कल तक जो था कालिदास, आज वो कैसे बन गया आदिदास?” कमल ने अपने आशु-कवि होने का एक निहायत घटिया सा उदहारण पेश कर दिया।

“हा हा हा! अरे कुछ नहीं यार!” कमल की बात पर अजय ज़ोर से हँसने लगा, “... कुछ दिनों से कोशिश कर के पढ़ रहा था... वैसे बोलता नहीं, लेकिन बस आज बोल दिया क्लास में!”

“हम्म... अच्छा है! एक्साम्स में तेरे पीछे या बगल वाली सीट पर बैठने को मिल जाय, तो फ़िर मज़ा आ जाए!” कमल हँसते हुए बोला, “टॉप करेंगे हम दोनों भाई!”

“हा हा...”

“अच्छा सुन, तूने रूचि को नोटिस किया क्या?” उसने चटख़ारे लेते हुए कहा।

रूचि गुप्ता क्लास के टॉप स्टूडेंट्स में से एक थी।

वो सुन्दर भी थी और मेधावी भी। लेकिन वो अजय को एक पैसे की भी घास नहीं डालती थी, क्योंकि वो अक्सर क्लास में फर्स्ट आती थी। और अगर बहुत बुरा परफॉरमेंस हुआ तो सेकंड रैंक! अजय चौथी पांचवीं से अधिक रैंक नहीं ला पाया था आज तक। ऐसे में उसके मन में अजय और उसका कोई मुक़ाबला ही नहीं था।

“नहीं! क्यों?”

सच में उसने आज अपनी क्लास की किसी भी लड़की या लड़के को नोटिस नहीं किया।

करता भी क्यों? वो तीस साल का आदमी था, और ये सब सत्रह अट्ठारह के छोकरे छोकरियाँ!

कोई मेल ही नहीं था उनमें और अजय में!

“फट गई है उसकी! ... आज तूने मुँह क्या खोला, उसकी गाँड़ ही फट गई है ऐसा लगता है!” कमल मन ही मन आनंदित होता हुआ बोला, “स्साली सोच रही होगी कि इस बार पहली रैंक तू मार ले जाएगा! अब देखियो - कैसा रट्टा लगाएगी आज रात से ही!”

मनोविज्ञान गज़ब की चीज़ है।

जब अपना अभिन्न मित्र कुछ अच्छा करता है, तो हमको ऐसा लगता है कि हमने ही कुछ अच्छा कर दिया हो। अपना कोई खिलाड़ी जब यदा-कदा ओलिंपिक में कोई पदक जीत लेता है, तो सभी लोग ऐसे सीना चौड़ा कर के घूमते हैं, कि जैसे उन्होंने ही ओलिंपिक का क़िला फतह कर लिया हो!

“हा हा... तू भी न यार!”

लेकिन कमल की बात पर अजय को शर्म सी आ गई। रूचि एक अच्छी और पढ़ाकू लड़की थी। वो फर्स्ट आ रही थी इस कारण से क्योंकि वो न केवल मेहनती थी बल्कि मेधावी भी थी! वो अनावश्यक तरीके से अपना समय गँवाती नहीं थी। ऐसे में रूचि को उसके स्थान से अपदस्थ करने का विचार अच्छा नहीं था - नैतिक नहीं था। रूचि के मुक़ाबले उसके पास भविष्य, उम्र, और अनुभव का बेहद अनुचित लाभ था।

रूचि क्या ही थी? एक बच्ची ही तो थी उसके सामने! ऐसे में वो - एक तीस साल का पुरुष एक बच्ची से कैसे कम्पटीशन करे? कितना गलत था यह! लेकिन फिर यह एक अवसर भी था उसके लिए - एक सेकंड चांस - कि वो अपने जीवन को एक सही राह दे सके। उसके परिवार पर जो आपदाएँ आने वाली हैं, वो उनको उन आपदाओं से बचा सके। अपने परिवार के सदस्यों - माया दीदी और प्रशांत भैया की शादियाँ गलत होने से रोक सके।

उसने मन ही मन सोचा कि वो अपनी क्लास के किसी भी मेधावी छात्र का रास्ता नहीं काटेगा।

अपने निजी लाभ के लिए तो बिल्कुल ही नहीं।


**
अति उत्तम विचार
 
  • Like
Reactions: avsji

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,328
16,858
144
अपडेट 12


“अरे सही कह रहा हूँ,” कमल ने ज़ोर दिया।

“हाँ हाँ! सही कह रहा है!” उसने कहा, “चल...”

“कहाँ?”

“घर... और कहाँ? देख भाई -- दीदी ने कहा था कि कमल को साथ लेकर सीधे घर आना। ... आज दीदी कुछ स्पेशल बना रही हैं! बोलीं, कि तुझे नाश्ता करा कर ही वापस जाने देंगी वो!” अजय ने बड़े अभूतपूर्व तरीके से कहा, "दीदी का आदेश है, हाँ! बस!"

“यार तू सच में बदल गया है!” कमल ने अचानक से गंभीर होते हुए कहा।

“अब क्या हो गया?”

“आज तक मेरे सामने तूने माया दीदी को ‘दीदी’ नहीं कहा...”

कमल की बात पर अजय को झटका सा लगा।

हाँ... सच ही तो कह रहा था कमल। घर में पापा और माँ के चलते वो माया को ‘माया दीदी’ ज़रूर कहता था, लेकिन बाहर - अपने मित्रों के सामने वो उसको कभी माया-देवी, तो कभी माया-बेन, तो कभी केवल माया ही कह कर बुलाता था। कोई इज़्ज़त नहीं दिखाता था। शायद मित्रों के सामने ‘कूल’ दिखने की चाहत हो? उसको यह समझ नहीं थी कि इस कूल दिखने की चाहत में वो मित्रों के सामने ‘फ़ूल’ दिखता था। कम से कम कमल के सामने।

कमल की बात पर अजय के दिल में एक टीस उठी।

माया दीदी उससे ऐसा तिरस्कार डिज़र्व नहीं करती थीं। वो एक बेहद अच्छी लड़की थीं, जिन्होंने अपने श्रम और प्रेम के बल पर उसके परिवार को बाँध कर रखा हुआ था। वो सही मायनों में ‘दीदी’ थीं!

हाँ, अब पुरानी बातें बदलने का समय आ गया था। भविष्य से आया हुआ अजय, अपने लिए एक नया भविष्य लिखने वाला था! ऐसा अवसर शायद ही किसी को आज तक मिला हो! भगवान ने उसको एक मौका दिया था - वो उसको यूँ जाने नहीं दे सकता था।

“गलती थी वो मेरी यार...” अजय बुदबुदाया, “नासमझी में ऐसी बहुत सी गलतियाँ हुई हैं मुझसे... अब सब कुछ रियलाइज़ हो रहा है मुझे!”

“हाँ... गलती तो थी!” कमल ने कहा, “वो अच्छी हैं बहुत! ... अच्छा लगा मुझे कि तू फाइनली उनको रेस्पेक्ट दे रहा है!”

कमल के कहने का अंदाज़ थोड़ा अलग था।

लड़कपन वाला अजय अवश्य ही न समझ पाता, लेकिन ये वयस्क अजय ऐसी बातें भाँप लेता है।

“क्या बात है कमल?” अजय ने दो-टूक पूछ लिया, “कुछ है जो तुम मुझे बताना चाहते हो?”

“कुछ नहीं!” कमल ऐसे अचानक पूछे जाने से थोड़ा अचकचा गया, जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ ली गई हो।

“मुझसे छुपायेगा? अपने जिगरी दोस्त से?”

कमल कुछ बोला नहीं। उसकी हिचक साफ़ दिखाई दे रही थी।

लिहाज़ा, अजय ने ही कुरेदा,

“तुझे माया दीदी पसंद हैं?”

कमल ने चौंक कर अजय को देखा। लेकिन कुछ बोला नहीं।

“यार तू अगर बताएगा ही नहीं, तो फिर मैं तेरे लिए कुछ कैसे कर पाऊँगा?”

“आर यू सीरियस?” कमल को विश्वास नहीं हुआ कि अजय ऐसा कुछ कह देगा।

“और नहीं तो क्या?”

“तू नाराज़ नहीं है?”

“अरे मैं क्यों नाराज़ होऊँगा?” अजय ने कहा, “तुम दोनों ही मेरे अपने हो!”

नाराज़ होने की कोई वजह ही नहीं थी - जब आखिरी बार, कोई दो साल पहले, कमल से अजय की मुलाक़ात हुई थी, तो अजय जेल में ही था। मिलने आया था वो। उसी दिन माया दीदी भी आई थीं। अजय ने देखा था तब... कमल की आँखों में माया को देख कर निराशा के भाव थे।

माया अपने वैवाहिक जीवन में खुश कत्तई नहीं थीं, यह बात शायद पाठकों को बता चुका हूँ!

बेहद नालायक पति था उनका। शादी के तीन साल ही में दो बच्चे हो गए थे उनको, और उनको पालने का पूरा भार उन्ही पर था। उनके नाकारा पति ने अशोक जी द्वारा दिया गया धन (दहेज़ और संपत्ति में से हिस्सा) भी यूँ ही गँवा दिया था! फिर भी एक कर्तव्यनिष्ठ स्त्री होने के नाते वो मुस्कुराते हुए सब सहती रहीं। वो आदमी केवल नालायक ही होता, तो भी चलता। वो काईयाँ भी बहुत था। जब तक अजय के परिवार के पास धन दौलत थी, तब तक वो बड़ी मीठी मीठी बातें करता। लेकिन एक बार धन सम्पदा जाते ही उसने गिरगिट के जैसे रंग बदल दिया।
अशोक जी की अंत्येष्टि में वो केवल खाना - पूरी करने आया हुआ था। और तो और, वो माया को अजय और माँ से जेल में मिलने से भी मना करता। ये बेचारी ही जस-तस बहाने कर कर के इनसे मिलने आ जातीं।

बहुत अत्याचार हुआ था माया दीदी जैसी कोमल लड़की पर!

उधर कमल ने भी आज तक शादी नहीं करी थी।

अजय उससे कहता कि वो बच गया! आज कल शादियाँ सही नहीं होतीं। लेकिन कमल उसको कहता कि सही लड़का लड़की से शादी होने पर शादियाँ सही होती हैं।

तब नहीं पता था अजय को कि कमल माया दीदी को अपने लिए सही लड़की मानता है।

लेकिन आज...

“बोल न?” अजय ने कमल को कुरेदा।

“यार...” कमल ने झिझकते हुए बताया, “पसंद तो हैं मुझे तेरी दीदी!”

“तुमको अजीब नहीं लगता,” अनजाने ही अजय ‘तुझको’ से ‘तुमको’ पर आ गया।

“क्यों अजीब लगना चाहिए? कितनी अच्छी सी तो है माया दीदी... कितनी सुन्दर... सुशील... गुणी!” कमल बोला, “माँ को भी पसंद हैं दीदी! ... भगवान ने चाहा, तो या तो माया दीदी से या फिर उन्ही जैसी किसी लड़की से शादी करूँगा! नहीं तो कुँवारा बैठूँगा!”

अजय ने कुछ पल चुप रह कर सोचा। कमल की बात सही थी। माया दीदी वाक़ई बहुत ही अच्छी लड़की थीं… हैं।

“सच में?”

“हाँ!”

बात तो सही थी - कमल ने शादी नहीं करी थी। इस बात का गवाह वो ‘पुराना’ वाला अजय था।

‘प्यार ऐसा होता है? कमाल है!’ अजय ने सोचा, ‘शायद ऐसा ही होता हो... किसी के लिए अगर इतनी पक्की धारणा बन जाए, तो फिर क्या कहना! ... काश उसको भी इसी तरह का प्यार होता किसी से!’

“यार, ऐसी क्लैरिटी होनी चाहिए लाइफ में!” प्रत्यक्ष में उसने कहा।

“बिलकुल होनी चाहिए!” कमल ने बड़े अभिमान से कहा, “कम से कम मुझे तो है!”

अजय ने सर हिला कर उसका समर्थन किया। फिर मूड को थोड़ा हल्का करने के लिए उसने चुहल करी,

“अबे, एक बात बता... तू अगर माया दीदी से शादी करना चाहता है, तो उनको ‘दीदी’ क्यों कह रहा है? केवल ‘माया’ कह न... केवल उनके नाम से बुलाया कर न!”

“भाई देखो... अभी तक उनसे इस बारे में कोई बात ही नहीं हुई है, तो और क्या कहूँ?” कमल बड़ी परिपक्वता से बोला, “वो मेरे सबसे पक्के दोस्त - मेरे भाई - की बड़ी बहन हैं, इसलिए इज़्ज़त तो करनी ही होगी न!” वो मुस्कुराया।

“क्या बात है यार!” अजय उसकी बात पर बहुत खुश हुआ।

‘कमल और माया दीदी,’ अजय के मन में ये विचार आए बिना न रह सके!

कमल अच्छा लड़का तो था ही! इसीलिए तो वो उसका दोस्त था... और बेहद अच्छा दोस्त था। लेकिन केवल इसी कारण से ही नहीं!

जब अजय के बाकी सबसे नाते रिश्ते छूट गए थे, तब कुछ ही लोग तो संग रहे! कमल उनमें से था... माया दीदी उनमें से एक थीं!

‘माया दीदी... कमल...’ सोच कर वो मुस्कुराया।

दो बेहद अच्छे लोग!

दोनों अपने अपने हिस्से की खुशियों से वंचित!

वो ख़ुशियाँ, जिनके वो हक़दार थे!

‘कमल और माया दीदी... नाइस!’

**
वाव क्या बात है
👌👌👌👌
 
  • Like
Reactions: avsji

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,328
16,858
144
अपडेट 13


चूँकि टिक्कियों और छोले से सभी का पेट भर गया था, इसलिए निर्णय लिया गया कि आज रात खाना नहीं पकेगा। अगर भूख लगेगी, तो दोपहर के भोजन और छोलों से काम चला लिया जाएगा। बढ़िया बात थी!

अपने कमरे में आ कर अजय ने कपड़े बदलने लगा। कॉलेज से आने के बाद से ही वो कॉलेज की यूनिफार्म में ही था। माँ ने जब आँखें तरेरीं, तब वो भाग कर यूनिफॉर्म बदलने अपने कमरे में आ गया। उसने महसूस किया कि शायद माया दीदी भी अपने कमरे में हैं इस समय।

हाँ, शुरू शुरू में माया दीदी अजय के कमरे में ही रहती थीं, लेकिन अब बात बदल गई थी। एक सायानी लड़की का अपना कमरा होना चाहिए, इसलिए उनके लिए कुछ सालों पहले एक नया कमरा बनवा दिया गया था। वो कमरा अजय के कमरे के बगल ही था। वो अक्सर रात में आ कर अजय को चेक कर के जाती थी। कभी कभी जब रात में कम्बल उसके ऊपर से हट जाता था, तो माया दीदी उसको ओढ़ा देती थीं।

कपड़े बदलते बदलते, अचानक ही अजय के मन में एक विचार आया --

कहीं ऐसा तो नहीं कि वो केवल एक दिन के लिए ही अपने भूतकाल में वापस आया है?

यह विचार आते ही उसका दिल बैठ गया।

कहाँ वो अपने मन में अनेकों मिशन ले कर बैठ गया था कि वो ये कर देगा, वो कर देगा... लेकिन अगर उसकी चेतना केवल एक रात या एक दिन के लिए ही पीछे आई है, तब तो उसने आज का पूरा समय ही व्यर्थ गँवा दिया!

‘हे प्रभु’, यह विचार आते ही अजय का दिल वाक़ई बैठ गया, ‘मतलब वापस आने का कोई मतलब ही नहीं रहा!’

‘कितने सारे काम करने थे, और कुछ भी नहीं किया!’ उसने सोचा।

आठवीं क्लास में एक टीचर ने कई बार समझाया था अजय को कि काल करे सो आज कर, आज करे सो अब... पल में परलय होवैगी, बहुरि करोगे कब? उस समय तक ये बातें समझ में नहीं आती थीं। लेकिन अब, जब यह ख़याल अजय के मन में आया, तो उसको समझ में आया कि कैसे समय का हर क्षण अनमोल होता है। उसका आवश्यकतानुसार उपयोग होना आवश्यक है।

‘आज ही सब ठीक कर दूँगा,’ अजय ने ठान लिया।

उसने अपनी नोटबुक में कुछ लिखना शुरू किया और पाँच मिनट बाद जब सब कुछ लिख लिया, तो उसने अलग अलग पन्नों को अलग अलग लिफ़ाफ़ों में डाल दिया। इसी तरह के एक लिफ़ाफ़े को उसने अपनी नेकर की पॉकेट में रख लिया।

‘कहाँ से शुरू करे वो?’ उसने सोचा।

उत्तर तुरंत मिल गया, ‘माया दीदी!’

सबसे पहले उसके मन में यह विचार आया, ‘क्यों उसने माया दीदी को इतने दुःख दिए?’

उस विचार के साथ ही साथ अजय की आँखों में आँसू आ गए। और जल्दी से कपड़े चेंज कर के माया दीदी के कमरे में चला गया।

उसने दुःख के घूँट भरते हुए दरवाज़े को हल्के से धकेला।

माया इस समय अपने कपड़े बदल रही थी। वो इस समय पतली सी स्पोर्ट्स ब्रेज़री और निक्कर पहने हुए थी, और अपनी अलमारी में अपने पहनने के लिए टी-शर्ट ढूंढ रही थी। लेकिन यह कोई अनहोनी बात नहीं थी। माया ने अजय को कई बार निर्वस्त्र देखा हुआ था और अजय ने भी। माया ने अनगिनत बार अजय को नहलाया था। अभी भी नहला देती थी - ख़ास कर सप्ताहांत में। नहलाते समय वो हमेशा ही उसको पूर्ण निर्वस्त्र कर देती थी। स्वयं भी हो जाती थी। किशोरवय अजय, माया को चाहे कितना भी नापसंद करता रहा हो, सच तो यह था कि चूँकि माया उससे बड़ी थी, लिहाज़ा उसके पास परिवार की तरफ़ से अनेकों अधिकार प्राप्त थे।

आहट पा कर वो पलटी, “बाबू?”

लेकिन वयस्क अजय ने आख़िरी बार माया दीदी को कब निर्वस्त्र देखा था, अब उसको याद नहीं था। लिहाज़ा अजय ने नोटिस किया कि माया दीदी काफ़ी छरहरी हैं। हाँ, उनका साँवला रंग त्वचा में गहरे तक था। वो इसलिए क्योंकि सत्रह अट्ठारह साल की उम्र तक उन्होंने सड़क पर खेल तमाशे दिखाए। सूरज की कड़ी धूप उनकी त्वचा के बेहद अंदर तक घुस गई थी। लेकिन जो जो स्थान उससे अछूते थे, वो सामान्य से साफ़ थे। शरीर अब अच्छा हो गया था। बचपन के कुपोषण का उनके शरीर पर थोड़ा दुष्प्रभाव तो अवश्य पड़ा था, लेकिन इन हालिया समय में वो कम हो गया था। नट वाले तमाशे खेलने दिखाने में उनको बहुत सी चोटें आई थीं - बाहरी भी और अंदरूनी भी। उनको आवश्यक टीके इत्यादि भी कभी नहीं लगाए गए थे। लिहाज़ा कुछ समय तक उनको चिकित्सा वाली देखरेख में रखा गया। अब वो पूरी तरह से स्वस्थ हो गई थीं।

“क्या हो गया बाबू?” माया ने अजय को अपनी ओर इस तरह से देखते हुए देख कर और उसकी आँखों में आँसुओं को देख कर चिंतातुर होते हुए पूछा।

“कुछ नहीं दीदी,” अजय ने थोड़ा मुश्किल से कहा, और फिर अचानक से ही फ़फ़क फफक कर रोते हुए वो उनके पैरों पर गिर गया... और उनके पैरों को पकड़े हुए ही कहने लगा, “... आई ऍम सो सॉरी, दीदी! मैंने तुमको बहुत दुःख हुए हैं! आई ऍम सो सॉरी!”

यह माफ़ी उसने अपने हृदय की सच्चाई से मांगी थी।

अपनी शादी से पहले तक उसका रवैया माया को ले कर पूरी तरह से उदासीन ही रहा था। उसके बाद भी कुछ ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ। लेकिन माया दीदी ने कभी उसका साथ नहीं छोड़ा था। अपने काईयाँ पति के होते हुए भी! काश कि उसने कुछ कहा होता; कुछ किया होता! क्यों नहीं किया उसने कुछ उनको उस अंधे कुएँ में गिरने से बचाने के लिए!?

“अरे... ऐसे क्यों बोलता है रे तू?” माया के स्वर में दुलार, ममता, और लाड़ वाले भाव आने में एक क्षण भी नहीं लगा, “मेरा भाई है तू! मेरा छोटा भाई... मेरा छोटू... मेरा बाबू...” ऐसे दुलार भरी बातें कहते हुए वो उसको उठा कर चूमने लगी, “ऐसी बातें कभी न कहना अब!”

“नहीं दीदी... जो सच है, बस वही कहा!”

“कोई सच वच नहीं है कुछ भी!” माया दीदी ने ममता वाले भाव से समझाते हुए कहा, “अगर मेरा छोटा भाई ही मुझसे न रूठे, तो कैसा छोटा भाई! हम्म?”

“नहीं दीदी! तुमसे रूठ नहीं सकता...”

“बाबू... दीदी केवल दीदी थोड़े ही होती है, माँ जैसी भी तो होती है!”

कह कर माया ने अजय को कस कर अपने आलिंगन में भर लिया। उसके आलिंगन में बँधा हुआ अजय कुछ देर तक रोता रहा - उसका शरीर रोने के आंदोलन से हिल रहा था। लेकिन माया ने उसको अपने आलिंगन से अलग नहीं होने दिया।

अजय के मन में कई सारे विचार तेजी से आ जा रहे थे। जो विपत्ति में साथ दे, वही सच्चा साथी है। कहाँ तो अपना भाई ही अलग हो रखा है, और कहाँ माया दीदी हैं, जो कभी भी इनसे दूर न हुईं! क्या मतलब है ऐसे रक्त-संबंधों का?

“तुम बहुत अच्छी हो दीदी,” अंततः अजय बोला।

“अरे, का हो गया मेरे छोटू बाबू को? हम्म?” माया ने उसको फिर से दुलारते हुए कहा, “बोलो न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

माया भी अजय का यूँ अचानक ही बदला हुआ रूप देख कर चकित थी। लेकिन आशंकित नहीं। वो जानती थी कि अजय के अंदर एक बहुत ही भोला सा बच्चा है। उसको लगता था कि उसी के प्रयासों में कोई कमी हुई है, इसीलिए वो उससे ऐसे रूठा रहता है। वो कोशिश करती कि अजय के मन में उसके लिए प्रेम उत्पन्न हो। लेकिन फिर भी, छोटा भाई अगर मनुहार न कराए, तो कैसा छोटा भाई? लेकिन आज बातें पलट गई थीं - वो समझ गई थी कि अजय भी उससे बहुत प्रेम करता था। कितना सुन्दर दिन था आज उसके लिए! उसके दो भाई हैं - अब तो छोटा भाई भी बड़े के ही जैसे उससे इतना प्रेम करता है! पापा हैं। माँ हैं। सभी ने उसको इतना सुन्दर, संपन्न, और सुरक्षित जीवन दिया है। और क्या चाहिए भला उसको अपने जीवन से?

वो बोली, “बाबू... मेरे बेटू, अपने मन में कोई ऐसा वैसा ख़याल मत लाओ... समझे? ... हम दोनों ने एक ही माँ का दूध पिया है। हम दोनों एक ही माँ के बच्चे हैं! तुम मेरे छोटे भाई हो, और मैं तुम्हारी बड़ी बहन! इसलिए अगर मैं अच्छी हूँ, तो मेरा बाबू बहुत ही अच्छा है!”

“ये कौन सा लॉजिक है दीदी?” अजय के होंठों पर मुस्कान आ ही गई।

“माया दीदी का लॉजिक है!” वो मुस्कुराई, “इसलिए परफेक्ट लॉजिक है!”

“हा हा!” माया की बात पर अजय हँसा, “आई लव यू, दीदी! सच में! आई लव यू!”

“आई नो,” वो बोली, “अब अपने मन में कोई ऐसी वैसी बात मत लाना!”

“नहीं लाऊँगा दीदी!” अजय मुस्कुरा कर बोला, “लेकिन दीदी, जब तुमने मुझको ‘बेटू’ कह कर बुलाया, तो बहुत अच्छा लगा।”

“अले मेला बच्चा,” माया ने फिर से लाड़ से, बनावटी तुतलाहट ला कर कहा, “तू है न मेरा ही बेटा! इसीलिए तो प्यार से बाबू कहती हूँ तुमको!”

“सच में दीदी?”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माया दीदी के चेहरे पर खुशियाँ देख कर उसको वापस कमल और दीदी के ‘संभावित’ रिश्ते की बात याद हो आई। लगता तो है कि दोनों साथ में बहुत सुखी रहेंगे! कुछ नहीं तो उस नीच आदमी के चक्कर में तो नहीं पड़ेंगी वो! उसने सोचा, और माया का कमल के साथ भरा पूरा परिवार की कल्पना करी! दो बच्चे तो हुए ही थे दीदी को!

‘माया दीदी, कमल, और उनके दो बच्चे!’

सुन्दर दृश्य था! उसके होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान आ गई।

“क्या सोच रहे हो?” माया ने उसको शक की निगाह से देखा।

उसने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “कुछ भी नहीं दीदी! बस केवल यह कि मेरी दीदी सच में बहुत अच्छी है!” अजय का दिल फिर से बुझने लगा, “काश मैं तुमसे बहुत पहले से सही तरीक़े से, इज़्ज़त से पेश आता!”

“फिर वही बात!” माया ने नकली नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “तुमको ऐसा सोचने की कोई ज़रुरत नहीं है बाबू! ऐसा सोचना भी मत! मुझे तो बस इसी बात से ख़ुशी है कि तुम मुझसे इतना प्यार करते हो!”

“दीदी,” कह कर अजय माया के आलिंगन में सिमट गया, “मैं तुम्हारी बहुत रेस्पेक्ट करता हूँ, लेकिन तुमको ‘आप’ जैसा फॉर्मल फॉर्मल नहीं बोलूँगा।”

“ज़रुरत भी नहीं है!”

“आई लव यू!”

“खूब!” माया अजय के बाल बिगाड़ते हुए बोली, “अब बोल, क्या सोच रहा था मेरा बच्चा?”

“बताऊँगा दीदी, लेकिन कुछ देर में! मैं खुद ही बताना चाहता हूँ, लेकिन प्लीज़ दूसरी बार मत पूछना!”

“बताओगे न? प्रॉमिस?”

“हाँ दीदी!”

“माया बेटे, अज्जू... थोड़ी देर नीचे आओ दोनों!” उसी समय माँ की पुकार सुनाई दी।

“हाँ माँ?” माया दीदी ने भी पुकार कर कहा।

“नीचे आ जाओ... एक ज़रूरी बात करनी है दोनों से!”

“आये माँ,” दोनों ने साथ ही कहा।

फिर माया ने जल्दी से एक टी-शर्ट पहन ली, और बोली, “चलें?”


**

अपडेट 14


नीचे आ कर माया बोली, “हाँ माँ, क्या बात थी?”

वहाँ माँ और पापा दोनों ही मौजूद थे। दोनों चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे।

रात में चाय का आनंद लेना दोनों को ही पसंद था। पापा को पहले स्कॉच पसंद आती थी। लेकिन प्रियंका जी की मृत्यु के बाद उन्होंने उसका लगभग त्याग कर दिया। अब वो शायद ही कभी पीते थे। बस कभी कभी ही, कुछ खुशियों के अवसर पर - जैसे कोई बिज़नेस डील होना इत्यादि - एक पेग हो जाता था।

आओ मेरी बिटिया रानी,” अशोक जी ने मुस्कुराते हुए, बहुत स्नेह से कहा, “मेरे पास बैठो!”

दीदी अशोक जी के बगल बैठ गईं और उन्होंने बड़े स्नेह से उसको अपनी एक बाँह में समेट लिया। उधर अजय माँ के पास आ कर उनकी गोदी में लेट गया।

“ये मेरी बिटिया नहीं है, खुशियाँ है मेरी!” अशोक जी ने बड़े लाड़ से कहा।

“पापा,” कह कर माया अशोक जी से लिपट गई।

“बेटे,” वो बोले, “दरअसल, हमको तुम्हारे बारे में ही बात करनी थी।”

“मेरे बारे में पापा?” दीदी ने आश्चर्य से पापा के बगल बैठते हुए कहा।

“हाँ बिट्टो! इस इम्पोर्टेन्ट बात है!”

“तुम भी न अशोक, घुमा फिरा कर बातें करते हो!” माँ ने हँसते हुए कहा, “माया बेटे, बात दरअसल यह है कि तेरे लिए एक रिश्ता आया है... लड़का अच्छा है! परिवार भी अच्छा है! इसलिए हमने सोचा कि तेरी राय भी जान लें!”

किरण जी ने प्यार से माया के सर को सहलाते हुए कहा, “तुझको शादी करने पर कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं है न, बेटे?”

माया ने अपना सर नीचे कर लिया। ऐसे अचानक यह बात उसके सामने आ जाएगी, उसने सोचा नहीं था।

“आप दोनों को जैसा ठीक लगे माँ...” माया ने सकुचाते हुए कहा, “आप दोनों जो करेंगे, वो ठीक सोच कर ही करेंगे!”

माया जैसी लड़की और क्या कहती?

और उधर अगर पुराना वाला अजय होता, तो उसको भी कोई ख़ास फ़र्क़ न पड़ता। उसको माया से कोई ख़ास लगाव तो था नहीं। लेकिन ये वाला अजय माया की इज़्ज़त करता था, उससे बहुत प्रेम करता था, और चाहता था कि वो खुश रहे। एक ही बहन थी उसकी ले दे कर... उसको तकलीफ़ में नहीं देख सकता था वो। ख़ास कर तब, जब वो माया के पति और कमल के मन में माया के प्रति विचारों को जानता था।

“नाम क्या है पापा लड़के का?” उसने पूछा।

“मुकेश,” अशोक जी ने बताया, “... लखनऊ के रहने वाले हैं वो लोग बेटे, लेकिन लड़का फिलहाल नॉएडा में काम करता है!”

अशोक जी को अच्छा लगा कि इस बात में अजय को भी दिलचस्पी है। वो हमेशा ही चाहते थे कि अजय माया से प्रेम से रहे, उसका आदर करे। आज सब ठीक होता दिख रहा था।

उधर जैसे ही अजय ने मुकेश का नाम सुना तो समझ गया। उसका संदेह सही निकला। ये वही मुकेश था जिससे माया दीदी की शादी हुई थी, और जिससे शादी कर के उनकी ज़िन्दगी नर्क बन गई थी। इतिहास खुद को दोहराने वाला था, और सब कुछ लगभग पहले जैसा ही होने वाला था, अगर अजय इन नए उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों में अपनी दखल न देता।

“क्या काम करता है?”

“नॉएडा फ़िल्मसिटी में है वो... असिस्टेंट प्रोडक्शन मैनेजर...”

टाइटल तो बड़ा भौकाली था, लेकिन अजय को पता था कि सब झूठ है। हाँ, मुकेश असिस्टेंट प्रोडक्शन मैनेजर अवश्य था, लेकिन उसकी कमाई कुछ होती नहीं थी। और इस कारण से वो कुछ ही दिनों में किसी जोंक की तरह उसके परिवार से चिपक जाएगा, और तब तक वो उनको चूसता रहेगा, जब तक कुछ भी शेष न रहे। ऊपर से माया दीदी को किसी फुट-मैट की तरह रखेगा। दरअसल ये मुकेश माया से केवल इसलिए शादी करने को इच्छुक था कि वो एक धनी परिवार से सम्बद्ध थी।

“पापा,” अजय ने ख़ामोशी से कहा, “असिस्टेंट प्रोडक्शन मैनेजर मुश्किल से पाँच हज़ार कमाते हैं! ... आप ये इन्फ्लेटेड टाइटल पर मत जाईए... काम क्या करता है, कमाई कैसी है, और परिवार कैसा है, इन सब बातों पर ध्यान दीजिए न...”

“अरे बेटे, माना, कि फिलहाल उसकी कमाई बहुत अधिक नहीं है, ... लेकिन आगे बढ़ेगी न कमाई?”

“और कितना आगे जाना पड़ेगा पापा? तीस साल का तो है मुकेश न!” तैश में आ कर अजय ने ऐसी बात कह दी, जिसके बारे में अभी तक अशोक जी ने उसको बताया भी नहीं था - और उसने यह बात नोटिस करी।

अपने आपको संयत करते हुए उसने कहा, “और कैसे कमाई बढ़ेगी पापा? पूरी फिल्म इंडस्ट्री बम्बई में है, तो यहाँ रह कर क्या कमाई होगी? कुछ नहीं...” अजय ने कहा, “दूरदर्शन के भरोसे फ़िल्में थोड़े न बनती हैं!”

माँ आश्चर्य से अजय को देख रही थीं... माया भी!

माया जानती थी कि अजय उसको बहुत पसंद नहीं करता था। नफरत नहीं करता था, लेकिन पसंद भी बहुत नहीं करता था। बाहर से आई हुई लड़की थी वो, जिसको उसके परिवार ने सम्हाला था। वो खुद भी समझती थी अपनी ‘हैसियत’!

लेकिन अजय को इस तरह से अपने लिए पैरवी करते देख कर उसका मन भावनाओं से भर गया। अजय उसको एक दीदी की ही तरह मान देता है! थोड़ी देर पहले जो हुआ, वो कोई विपथन (सामान्य से हट कर होने वाली घटना) नहीं था। वो सच में उसको चाहता था, और उसके भले बुरे की उसको फ़िक्र थी। उसका मन हुआ कि वो रोने लगे। लेकिन अपने ‘वीरन’ (भाई) को अपने लिए लड़ते देखने का और मन था उसका।

“लेकिन बेटा,” इस बार माँ ने कहा, “एक बार देख तो ले उसको... अच्छा दिखता है वो।”

“अच्छा दिखता है तो क्या हुआ माँ? शादी में अच्छा दिखना चाहिए दीदी को... और न तो ये केवल अच्छी दिखती हैं बल्कि अच्छी हैं भी! इसलिए दीदी का हस्बैंड भी अच्छा आदमी होना चाहिए! क्वालीफाईड... कमाऊ... और अगर ये सब न हो, तो कम से कम वो दीदी से खूब प्यार करने वाला होना चाहिए...” अजय ने अर्थपूर्वक दृष्टि डाली माया पर, “... मुझे तो लगता है कि ये मुकेश आपके पैसों के पीछे है पापा!”

“लेकिन हमारे पैसे भी तो तुम्हारे ही हैं न बेटे,” अशोक जी ने कहा, “मेरी आधी जायदाद तो माया बेटी की ही है!”

“पापा, आप आधी नहीं, पूरी जायदाद दीदी को दे दीजिए, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है,” अजय बोला, “सच कहता हूँ... मैं कोशिश कर के अपना कमा लूँगा! लेकिन दीदी की शादी ऐसी होनी चाहिए जिससे वो खुश रहें। ... ये सही आदमी नहीं लगता मुझे!”

“लेकिन बेटे... बिना मिले...”

“मिल लेते हैं तो!” उसने कहा, “दीदी भी चलेंगी... हम सब चलेंगे...”

“कहाँ?”

“उनके घर, लखनऊ...” अजय ने कहा, “हम भी तो देखें, कि वो मेरी दीदी को किस हालत में रखेंगे...”

“हम्म्म...” अशोक जी गंभीर हो गए।

“पापा,” अजय कह रहा था, “लखनऊ में हमारी पहचान है! चतुर्वेदी अंकल से कह कर पूछ लीजिए न एक बार कि वो देख आएँ इसको और इसके परिवार को!”

चतुर्वेदी अंकल ही थे, जिन्होंने माया की शादी के समय अशोक जी को चेताया था। उनको मुकेश और उसके परिवार को ले कर अनेकों संशय थे। लेकिन जब तक उनसे कुछ पता चलता, तब तक बहुत देर हो गई थी।

“ठीक है बेटे...” अशोक जी ने कहा, “अच्छा किया तुमने मुझको जल्दबाज़ी करने से रोक लिया! मैं चतुर्वेदी साहब से पूछता हूँ इनके बारे में!”

माया ने बड़े गौरव से अजय की तरफ़ देखा।

किरण जी भी बड़े घमंड से मुस्कुराईं, “वाह बेटा! आज किया न तूने एक अच्छे भाई वाला काम!”


**

अपडेट 15


इस विषय में बात समाप्त होने के बाद अशोक जी अपने कुछ मित्रों से मिलने बाहर चले गए।

अजय अभी भी किरण जी की गोदी में ही लेटा हुआ था। पापा के जाते ही वो उनकी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगा।

“क्या रे?” माँ ने हँसते हुए कहा, “एक पल पहले कैसी सयानों जैसी बातें कह रहा था, अब एक पल बाद फिर से बच्चा बन गया?”

“माँ,” अजय बिना रुके अपना काम करते हुए बोला, “आपका दुद्धू पीना तो मैं कभी नहीं रोकूँगा!”

उसकी बात पर माया भी हँसने लगी, “हाँ माँ! आप बाबू को दुद्धू पिलाना कभी न रोकना!”

“तू भी तो मेरी बिटिया है,” माँ ने ब्लाउज़ पूरी तरह से उतारते हुए कहा, “तुझे भी पिलाना नहीं रोकूँगी!”

जब भी संभव होता था, माँ दोनों को साथ ही में स्तनपान कराती थीं। न तो माँ को ही और न ही पापा को इस बारे में कभी कोई आपत्ति हुई। माँ अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझती थीं कि इस उम्र में भी वो स्तनपान करा पाने में समर्थ थीं। उसका श्रेय भी वो माया को ही देती थीं। आख़िर उसके कारण ही उनको दोबारा माँ बनने का अवसर मिला था। उसके कारण ही उन्होंने अजय को स्तनपान कराना शुरू किया था। वो उसको उस सुख से वंचित नहीं कर सकती थीं।

किरण जी के स्तन थोड़े बड़े थे, लिहाज़ा उनको ब्रा में से नीचे की तरफ़ खींच कर बाहर निकाल पाना (जैसा कि अक्सर स्तनपान कराने वाली महिलाएँ करती हैं) संभव तो था, लेकिन उचित नहीं। उन्होंने ब्रा का हुक खोला और तब तक माया भी उनकी गोदी में आ गई।

“माँ,” माया ने माँ के दाहिने स्तन को सहलाते हुए कहा, “मैं बहुत लकी हूँ!”

“हम नहीं हैं लकी?” माँ ने बड़े प्यार से कहा, “तू तो हमारी ख़ुशियाँ है। तेरे विदा होने से हमको भी तो दुःख होगा। लेकिन क्या करें? लड़की जात का यही तो है... घर में बिठा कर रख तो नहीं सकते न!”

“हाँ माँ,” अजय बोला, “दीदी की शादी बहुत ही अच्छे लड़के से करूँगा मैं!”

किरण जी मुस्कुराईं “हाँ हाँ... बिल्कुल! तेरी दीदी है। अच्छा सा लड़का ढूंढ कर ला इसके लिए!”

“डन माँ!”

अजय बोला और फिर कुछ देर तक वो और माया शांति से स्तनपान का आनंद लेते रहे।

स्तनपान संपन्न होने के बाद अजय ने माया से कहा, “दीदी, तुम कुछ देर के लिए अपने कमरे में जाओ... मुझे माँ से कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं!”

“बाबू?”

“दीदी, जाओ न! मैं आता हूँ कुछ देर में,”

अजय के स्वर में कुछ ऐसा था कि माया ने बहुत बहस नहीं करी।

वो वहाँ से निकल गई अपने कमरे की तरफ़।

“क्या बात है बेटे?” माया के जाने के बाद माँ ने उत्सुकतावश पूछा।

उनको भी अजय का अंदाज़ आज सवेरे से ही बदला हुआ लग रहा था। दिन में उन तीनों ने इस बारे में चर्चा भी करी। उनके मन में थोड़ी सी चिंता भी थी। लेकिन उन्होंने वो चिंता किसी पर ज़ाहिर नहीं होने दी। क्या पता, कोई वहम हो!

“माँ,” अजय अचानक से गंभीर हो कर बोला, “आपसे दो तीन बातें कहनी हैं!”

“बोल न बेटे?” किरण जी समझ गईं कि वो अपने बदले हुए व्यवहार के बारे में कुछ कहना चाहता है, “क्या बात है?”

“माँ, चाहे कुछ हो जाए... आप मुझसे प्रॉमिस कीजिए इस बारे में... चाहे कुछ हो जाए, आप में से कोई भी ‘वानप्रस्थ अस्पताल’ नहीं जाएँगे!”

“क्या?” माँ को कुछ समझ ही नहीं आया, “क्या कह रहा है तू? हम क्यों वानप्रस्थ अस्पताल जाने लगे रे?”

“माँ, प्लीज़, कभी कभी मुझे भी सीरियसली लिया करिए न! जो कह रहा हूँ वो समझिए... बड़ी सीरियस बात है।” अजय का गाम्भीर्य अभी भी बरकरार था, “वानप्रस्थ अस्पताल ठीक नहीं है। बड़ी सारी ख़बरें सुनने में आती हैं वहाँ से।”

“ठीक है बाबा,” माँ ने जैसे पिण्ड छुड़ाने के अंदाज़ में कहा, “नहीं जाएँगे वहाँ!”

“और, ख़ास कर के अजिंक्य देशपाण्डे नाम के डॉक्टर से तो कभी भी नहीं!”

ये वही अस्पताल था, और वही डॉक्टर था जिसकी लापरवाही के कारण अशोक जी असमय मृत्यु को प्राप्त हो गए। ग़लती अस्पताल की थोड़े ही थी - डॉक्टर देशपाण्डे की थी। उसको अवॉयड करना ज़रूरी था। लेकिन अगर अस्पताल भी अवॉयड कर सके, तो बेहतर।

“कौन?”

“अजिंक्य देशपाण्डे!” अजय ने कहा और अपनी जेब से उसने एक लिफ़ाफ़ा निकाला, “मैंने कुछ बातें लिखी हैं इस लेटर में! शायद पढ़ने में बेतुकी लगें, लेकिन प्लीज़ इन बातों को सीरियसली लीजिएगा!”

किरण जी लिफ़ाफ़ा खोलने लगीं।

“माँ, अभी नहीं! कल। कल सवेरे पढ़िएगा!”

“बेटे, सब ठीक तो है न?” किरण जी अब चिंतातुर थीं।

“सब ठीक है माँ! अगर मेरी बातें मानेंगे आप लोग, तो सब ठीक रहेगा!”

अजय बोला, और फिर माँ के एक गाल को चूम कर बोला, “माया दीदी के पास जाता हूँ!”


**


जब अजय माया दीदी के कमरे में पहुँचा तो वो बिस्तर पर औंधे लेट कर कोई पुस्तक पढ़ती हुई मिली। अजय भी उसके बगल उसी पोज़िशन में आ कर लेट गया। माया ने पुस्तक पढ़ना जारी रखा। जब उसने वो पूरा चैप्टर पढ़ लिया, तो उसने पुस्तक बंद कर के अलग रख दिया।
“क्या बात थी?” उसने पूछा।

“माँ के सुनने और करने के लिए थी वो बात,” अजय ने चंचलता से कहा, “तुम्हारे नहीं!”

“हम्म... ये बात है?”

“हाँ!” अजय ने कहा और उसने माया के गाल को चूम लिया।

“बाबू,” माया ने बड़ी कोमलता से कहा, “तुमने पापा और माँ से जो सब कहा, वो सब मन से कहा?”

“बेकार लड़का है वो मुकेश, दीदी!” अजय ने तैश में आ कर कहा, “तुम्हारे पैरों की धूल भी नहीं है वो!”

“वो बात नहीं है बाबू... मैं उस बारे में पूछ रही हूँ, जो तुमने मेरे लिए कहा...”

“तुमको डाउट है दीदी?”

“नहीं बाबू... लेकिन आज तक तुमने मेरी इस तरह से तरफ़दारी नहीं करी!”

“आज से पहले मैं अँधा बहरा भी तो था दीदी!” अजय ने मुस्कुराते हुए कहा और माया को अपने आलिंगन में भर लिया, “सच में दीदी, तुमको अपनी लाइफ में बिना वजह का कोम्प्रोमाईज़ नहीं करने दूँगा! ... भाई हूँ तुम्हारा! इतने सालों तक मैं तुमको ठीक से प्यार नहीं कर पाया, तुमको ठीक से इज़्ज़त नहीं दे पाया, उसका मुझे वाक़ई अफ़सोस है... लेकिन अब और नहीं होगा वैसे!”

“तुमने इतना कह दिया, बहुत है मेरे लिए बाबू!”

“नहीं दीदी! तुम अच्छी हो, इसलिए ऐसा कह रही हो! अभी तक मैंने तुम्हारे साथ जो किया, वो सब मेरी गलती है... लेकिन उन गलतियों के कारण मैं तुम्हारे साथ गलत होने दूँ, तो बहुत ही बड़ा पाप है... अपराध है! शादी एक बार होती है! परफ़ेक्ट होनी चाहिए! मेरी दीदी उसके पास जाएगी, जो उससे खूब प्यार करेगा!”

“तुम ढूंढोगे मेरे लिए वैसा लड़का?” माया ने मुस्कुराते हुए कहा - उसके गालों पर शर्म की लालिमा दिखाई दे रही थी।

माया ने मज़ाक में नहीं कहा था यह...

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “पक्का वायदा है दीदी!”

“फिर ठीक है!” माया उसके आलिंगन में सिमटती हुई बोली, “मेरा वीरन जिससे कहेगा, मैं उसी से शादी करूँगी!”

“सच में दीदी?”

“हाँ मेरे वीरन... आज तक मैं तुमको अपना छोटा भाई मानती आई हूँ, लेकिन आज तुमने जो किया है, उसके बाद तो तुम भी पापा और माँ की ही तरह मेरे गार्जियन बन गए हो!”

“हा हा...”

“हंसने वाली बात नहीं है बाबू! एक लड़की बहुत लकी होती है, जब उसका छोटा भाई भी, उसके किसी बड़े की ही तरह उसको प्यार करे!”

“लव यू दीदी!”

“लव यू खूब मेरे भाई! ... खूब!” कह कर माया अजय की बाँह में और सिमट गई।

“वैसे दीदी, एक बात बताऊँ तुमको?”

“हाँ... बताओ न!”

“तुम्हारे लिए मैंने लड़का देख लिया है,”

“सच में?” माया आश्चर्य से चौंकी, “कौन?”

“बता दूँ?”

माया मुस्कुराई, “न भी बताओ, तो भी ठीक है! मुझे तुम पर पूरा भरोसा है...”

“हा हा!” वो हँसा।

माया उम्मीद से अजय को कुछ देर देखती रही कि वो अब बताएगा या तब बताएगा। लेकिन जब थोड़ी देर तक उसने कुछ नहीं कहा, तो माया शर्म से, लेकिन प्यारी सी ज़िद से बोली,

“बताओ न...”

अजय मुस्कुराया, “अरे रे रे! जानने के बेसब्र हो रही हो दीदी!”

“जाओ, मत बताओ!”

माया के नकली रूठने के अंदाज़ पर अजय हँसे बिना न रह सका। हँसते हँसते ही उसने कहा, “कमल...”

“कमल?” माया की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं।

“कमल,”

“ले... लेकिन वो तो छोटा है मुझ से!”

“छोटा है तो क्या हुआ दीदी? यह तो कोई कमी नहीं है... सबसे पहली बात यह है कि वो बहुत प्यार करता है तुमसे, दीदी! बहुत अच्छा लड़का है... और अच्छे, संपन्न घर से है! पाँच साल से जानता हूँ उसको... उसने एक भी गलत काम नहीं किया है आज तक। और न ही कोई गलत आदतें हैं उसमें!”

“मानती हूँ सारी बातें! लेकिन बाबू, वो छोटा है न!” माया बोली, “तुम्हारा दोस्त है... तो मेरे छोटे भाई जैसा ही है न!”

“एक ही भाई रखो दीदी,” अजय ने हँसते हुए कहा, “कम से कम, उसमें तो मेरे साथ बँटवारा न करो!”

“हा हा! बहुत बदमाश हो तुम बाबू...” माया हँसने लगी, “लेकिन वो कितने साल का है? सत्रह? अट्ठारह?”

“अट्ठारह! ... अरे तीन साल वेट कर लो न दीदी!” अजय ने मज़ाक किया, “या शादी करने की बहुत जल्दी है?”

“हा हा!” माया अब और ज़ोर से हँसने लगी, “नहीं, कोई जल्दी नहीं है!”

“सच में दीदी, वो तुमको बहुत चाहता है।” अजय गंभीर होते हुए बोला, “तुमको बहुत प्यार से रखेगा! और तुम भी उसको बहुत प्यार से रखोगी... मैं आज ही पापा को भी ये बात बताने वाला हूँ! उन्होंने माना, तो हम बात करेंगे उसके पेरेंट्स से! ... देखना, सब अच्छा होगा!”

माया भी गंभीर होते हुए बोली, “तुम चाहते हो कि मैं कमल से शादी करूँ?”

“मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी पसंद के लड़के से शादी करो... कमल मुझको अच्छा लगता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तुमको भी अच्छा लगे!”

माया ने समझते हुए सर हिलाया।

“तुमने अभी तक उसको मेरे दोस्त की तरह देखा है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि कमल को तुम दूसरी नज़र से देख लो... एक साथी की तरह! उसको परख लो... उसको समझ लो... और अगर वो समझ में आ जाए, तो शादी भी कर लो!”

“ठीक है,” माया मुस्कुराई, “थैंक यू बाबू!”

“नहीं दीदी! थैंक यू!” वो बोला, “मैं बस चाहता हूँ कि मेरा हर अज़ीज़ हमेशा खूब खुश रहे!”

“थैंक यू अज्जू... मेरे बाबू... मैं शायद दुनिया की सबसे लकी बहन हूँ!”

“हा हा!”

“सच में!” माया ने धीरे से कहा, “सभी मेरे बारे में कितना सोचते हैं! पापा, तुम, माँ...”

“हाँ दीदी!” अजय बोला, “वैसे तुम कमल के बारे में कुछ जानना चाहो, तो पूछ लो!”

माया ने अजय से कमल के बारे में बहुत से प्रश्न पूछे। कुछ सामान्य और कुछ अंतरंग! अजय को यह जान कर बहुत अच्छा लगा कि माया भी कमल में रूचि दिखा रही थी।

‘शायद दीदी की ज़िन्दगी बेहतर हो!’


**

अपडेट 16


माया दीदी के कमरे से निकलते हुए शाम के कोई साढ़े सात बज गए थे। मतलब शिकागो में - मतलब प्रशांत भैया के वहाँ सुबह के आठ बज रहे होंगे। शनिवार है, तो बात हो सकती है।

उसने फ़ोन उठा कर भैया को कॉल लगाया।

पहली बार पूरी घंटी गई, लेकिन फ़ोन नहीं उठा। उसने पाँच मिनट बाद फिर से काल किया।

इस बार प्रशांत ने उठाया।

“अज्जू,” प्रशांत अजय की आवाज़ सुन कर खुश होते हुए बोला, “कैसा है तू मेरा बेटा?”

“बहुत अच्छा भैया, बहुत ही अच्छा!”

“अरे वाह! क्या बात है? कोई गर्लफ्रेंड मिल गई क्या? हाहाहाहाहा!”

“नहीं भैया! एक मुसीबत गले मढ़ते मढ़ते रह गई!”

“व्हाट? क्या हुआ?”

“कुछ नहीं भैया! कुछ भी इम्पोर्टेन्ट नहीं।” अजय सोचा कि कैसे भैया से बात करी जाए, “भैया, आप बताईए! कोई शिकागॉन मिली?”

“शिकागॉन हाहाहाहा!” प्रशांत ने ठहाके मारते हुए कहा, “अरे यार, यहाँ हूँ तो क्या हुआ! दिल तो अपना हिंदुस्तानी ही है न,”

मतलब कणिका ने अपने जाल में लपेट ही लिया है उनको!

अजय ने सम्हाल कर शब्दों का चयन किया, “क्या भैया! आप भी न! शिकागो जा कर देसी घी खाना चाहते हैं!”

“देसी घी!”

“और नहीं तो क्या! आपको घिरार्डली चॉकलेट खाना चाहिए, और आपसे देसी घी नहीं छूट रही है!”

“अबे वो बे एरिया में है, शिकागो में नहीं!”

“कहीं भी हो! भावनाओं को समझो!”

“समझ रहा हूँ!”

“भैया, एक बात कहूँ? आप नाराज़ तो नहीं होंगे न?”

“बोल न! तुझसे कब नाराज़ होता हूँ रे? कभी कभी तो बात होती है तुझसे,”

“हाँ हाँ! अभी सुन लो। सुन कर गालियाँ देने का मन करेगा आपका!”

“न बेटे, ऐसा कुछ नहीं होगा।”

“तो ठीक है। भैया, आप कणिका के चक्कर में न पड़ियेगा प्लीज़!”

“अरे, तुझे कैसे पता कणिका के बारे में?” प्रशांत की आवाज़ थोड़ी सजग हो गई।

“आप मेरे भाई हो! थोड़ा तो आपकी पसंद नापसंद के बारे में मुझे भी पता है न!”

अजय कह न सका कि वो जानता है कि आप कितने मेहरे हैं। फिर तो अवश्य ही झगड़ा हो जाता।

“हम्म,”

“आपने डिनॉय नहीं किया, मतलब कणिका के साथ चक्कर जम गया है आपका।”

“यार! देख, उसको ज़रुरत थी, तो मैंने सपोर्ट किया उसको यहाँ। अब वो चाहने लगी है मुझे तो क्या करूँ? वैसे अच्छी है वो!”

“भैया, माँ को वो और उसकी फॅमिली बिल्कुल पसंद नहीं है। वो आपसे कह नहीं पातीं, लेकिन उसको कणिका के अमेरिका जाने से पहले ही शक था कि वो ये काम ज़रूर करेगी...”

“सच में?”

“हाँ!”

“फिर?”

“फिर क्या? आपने उसके साथ कुछ किया तो नहीं?”

“यार... ये सब बातें मैं तुझसे कैसे करूँ?”

“आपने सेक्स किया क्या उससे?”

“दो तीन बार!”

मतलब कणिका ने मछली हुक में फँसा ली है। अच्छा हुआ उसने माँ को लेटर में सब कुछ लिख कर दे दिया है।

माँ कुछ न कुछ कर के रोक ही लेंगी इस शादी को।

“खैर, उससे क्या होता है! अमेरिका है, ये सब तो होता ही है न!” फिर ठहर कर, “साथ में रहती है क्या?”

“नहीं। साथ में नहीं रहती। लेकिन आज आने वाली है कुछ देर में!”

“भैया, आप प्लीज़ उससे दूर रहो न!”

“अबे यार!”

“आपकी एक और फ्रेंड है न? ... क्या नाम है उसका... हाँ, पैट्रिशिया! यही नाम है न?”

“हाँ,” प्रशांत ने सजग होते हुए कहा, “लेकिन यार उसके दो बॉयफ्रेंड रह चुके हैं!”

“आप भी तो हैं?”

“था...”

“भैया, सील पैक्ड मिलेगी, तो क्या ज़हर उड़ेल लोगे मुँह में?”

“अबे! क्या बोलता है तू, बहनचो...” प्रशांत ने हँसते हुए कहा।

“और नहीं तो क्या!” अजय ने लगभग विनती करते हुए कहा, “आप अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिए कि दोनों में बेटर कौन है? पैट्रिशिया या कणिका?”

“यार,” थोड़ी देर में प्रशांत बोला, “है तो पैट्रिशिया ही बेटर! बहुत सी क्वालिटीज़ हैं उसमें... युनिवर्सिटी टॉपर थी, अपना काम तो खुद ही कर लेती है, साथ ही साथ उसने मेरी भी कितनी हेल्प करी थी... बहुत अच्छी है वो!”

“तो फिर सब जानते हुए आप ये मुसीबत क्यों मोल ले रहे हैं?”

“यार मना कैसे करूँ? मामा की लड़की...”

“अरे माँ चुदाए मामा की लड़की!” अजय ने दिल्ली-वाले अंदाज़ में गाली दी, “वो गले मढ़ गई है आपके! दो बार चूत दे कर आपका लम्बा काट देगी वो!”

“अबे! हाहाहाहा!” प्रशांत अभी तक बुरा नहीं माना था।

मन ही मन वो भी समझता था कि कणिका ने उसके चरित्र का गलत फ़ायदा उठाया है। लड़की को वो मना कर नहीं पाता। ऊपर से मामा की लड़की। और हाँ - सेक्स के लिए शुरुवात भी उसी ने करी थी। उसके घर में डेरा भी उसी ने जमाया था। कभी भी प्रशांत ने उसको निमंत्रण नहीं दिया था - बस पहली बार को छोड़ कर, जब वो अमेरिका पहली पहली बार आई थी।

लेकिन पैट्रिशिया बहुत ही अच्छी थी। जब उसने उसके साथ सेक्स किया था तब उसने महसूस किया था कि कैसे वो उसको संतुष्टि देने की कोशिश कर रही थी। कणिका बस ये चाहती थी कैसे वो जल्दी से उसके अंदर घुस जाए, और उतनी ही जल्दी से निबट कर बाहर निकल जाए। अजय की बात सही थी - कणिका ने उसको फँसा रखा था।

“छोड़ दो आप उसको!” अजय कह रहा था, “उसके परिवार से हम यहाँ झगड़ा कर लेंगे।”

“हाहाहा...” प्रशांत हँस तो रहा था, लेकिन उसकी हंसी में एक तरह की राहत की आवाज़ भी थी।

“सच में भैया। आप पैट्रिशिया दीदी को भाभी बनाईए न!” अजय बोला, “कम से कम मैं भी कह सकूँ कि मेरी भाभी अमरीकन है!”

“हाहाहाहा!”

“सच में!”

“हम्म्म सोचते हैं!” वो बोला, “लेकिन क्या तू सच में माँ से कह कर कणिका की फॅमिली से बात कर सकता है? तू... आई मीन, पापा माँ और तू?”

“कोई शक? भैया, मैं बदल गया हूँ। वो पहले वाला लुर अजय नहीं हूँ! सभी माँ चोद दूँगा जो भी मेरी फॅमिली पर बुरी नज़र डालेगा।”

“बदल तो गया है तू। गालियाँ भी टॉप क्लास देने लगा है।”

“आपके साथ तो कर सकता हूँ न!”

“हाँ हाँ! भैया नहीं हूँ, दोस्त जो ठहरा तेरा!”

“नहीं भैया - आप इतना प्यार करते हैं मुझसे! मैं इतना तो ज़रूर करूँगा कि आप खुश रह सकें!”

“ठीक है मेरे भाई,” प्रशांत ने सोचते हुए कहा, “ज़रा कणिका को एक बार ‘न’ कह कर देखता हूँ!”

“हाँ भैया। अगर टैंट्रम करे, तो कान उमेठ कर भगा दीजियेगा घर से!” अजय बोला, “आप इतने बढ़िया हैं! पैट्रिशिया न सही, लेकिन अगर एक भी ढूंढेंगे न, तो हज़ारों मिलेंगी आपके लिए।”

“हाहा!”

“हाँ न! ये देसी कचरा अमरिक्का में क्यों ढोना!”

“किससे बात हो रही है रे?” किरण जी ने पूछा।

“भैया से माँ,” अजय बोला, “भैया, माँ आ गई हैं! उनसे बात कीजिए। लेकिन मेरी बातें याद रखियेगा। देसी कचरा, नो नो! ओके?”

“हा हा हा... ठीक है, माँ को दे फ़ोन!”


**

अपडेट 17


अशोक जी के आते आते लगभग नौ बज गए थे।

अजय को अपने पापा से बड़ी मोहब्बत थी। लेकिन थोड़ा डर भी लगता था उसको उनसे।

अगर आज वो उनको आखिरी बार देख रहा था तो वो उनके साथ कुछ अनमोल यादें बना लेना चाहता था।

“पापा,”

“आओ बेटे,” अशोक जी उसको देख कर मुस्कुराये, “आओ!”

अजय आ कर उनके समीप उनके पैरों के पास बैठ गया। जैसा वो पहले भी करता था।

“पापा, आपसे एक बात कहूँ?”

“हाँ बेटे, बोलो न?”

“एक्चुअली, एक रिक्वेस्ट है! मोर लाइक अ विश...”

“अरे बोलो न!”

“क्या मैं आपके साथ बैठ कर स्कॉच पी सकता हूँ...”

ऐसी अतरंगी रिक्वेस्ट? एक बार तो अशोक जी अचकचा गए कि ये अजय क्या कह रहा है। फिर उन्होंने कुछ पल सोचा।

अंततः, “तुम अभी अंडरऐज हो बेटे,”

“आई नो पापा,” वो बोला, “लेकिन एक बार... बस एक बार?”

अशोक जी सोचने लगे।

“प्लीज़ पापा,” वो लगभग गिड़गिड़ाया, “आज के बाद ऐसी हिमाकत नहीं करूँगा!”

अशोक जी कुछ क्षण चुप रहे, फिर बोले, “ग्लेनफ़िडिक... एटीन इयर्स ओल्ड...”

“थैंक यू पापा!”

“तुम्हारा पेग मैं बनाऊँगा!”

“यस सर,”

कह कर अजय एक ट्रे में सोडा, दो ग्लास, स्कॉच की बोतल, और बर्फ़ ले कर पापा के पास बैठ गया।

अशोक जी ने बहुत थोड़ा सा अजय डाला और उसमें ढेर सारा सोडा और तीन बर्फ़ के टुकड़े डाले। उनका खुद का ड्रिंक सामान्य ही था।

“चियर्स बेटे,”

“थैंक्स पापा, एंड चियर्स!”

अगर पापा के साथ ये उसकी आख़िरी याददाश्त है, तो बहुत खूबसूरत है।

अजय मुस्कुराया।

‘काश पापा बहुत सालों तक उसके साथ रहते!’

“यू आर मोस्ट वेलकम सन!” अशोक जी मुस्कुराये, “अब बोलो... क्या है मन में?”

“बहुत कुछ है पापा,”

“कहीं से शुरू करो!” वो बोले, “बाप से बात करने की हिम्मत तो जुटा चुके हो! ... ज़रूर ही कोई बहुत बड़ी बात होगी!”

“हाँ पापा, बातें बड़ी हैं। शायद अभी आप समझ न सकें!”

“अरे! अपने बाप की समझ पर शक है तुमको?”

“नहीं पापा! लेकिन... लेकिन मैं आपसे जो कुछ कहना चाहता हूँ न, बहुत ही काम्प्लेक्स है!”

“ट्राई मी!”

“पापा, आप बिज़नेस में न... कभी भी हीरक पटेल या उसकी किसी भी कंपनी के साथ डील न करिएगा।”

“हीरक पटेल?”

“जी! बहुत ही बदमाश और धूर्त किस्म के लोग हैं वो।”

हीरक पटेल ने ही अशोक जी को बिज़नेस में भारी नुक़सान पहुँचाया था। दोस्ती यारी में उनको ऐसा गच्चा दिया, कि आधा बिज़नेस उन्होंने कब्ज़िया लिया। आधा जो बचा, उसमें इतनी देनदारी थी कि सब कुछ जाता रहा था पापा का।

“तुमको कैसे पता?”

“बस ये मत पूछिए!”

“हम्म... ओके! डील!”

अजय मुस्कुराया, “थैंक यू, पापा!”

“और कुछ?”

“जी पापा! अगर कभी आप आलोक शर्मा जी से या उनके दामाद अमर सिंह से मिलें, तो उनके साथ ज़रूर कोई बिज़नेस करिएगा। आलोक शर्मा जी एक रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर रह चुके हैं। ऑनेस्ट बिज़नेस रहेगा उनका।


[अलोक शर्मा, अमर, और उसकी पत्नी देवयानी (डेवी) के बारे में पढ़ने के लिए नीचे मोहब्बत का सफ़र लिंक पर जाएँ] :)


“ओके! कहाँ है उनका ऑफिस? कौन सा बिज़नेस है उनका?”

अजय को अब झटका लगा।

ये तो गड़बड़ हो गई - उनका बिज़नेस तो कोई तीन चार साल बाद शुरू होने वाला है।

“अह... प्लीज़ डोंट वरि अबाउट इट जस्ट येट पापा!” अजय बोला, “लेकिन इस पटेल से दूर रहिएगा। प्लीज!”

“ओके!” अशोक जी समझ नहीं रहे थे, लेकिन वो बिना वजह उसको अपसेट नहीं करना चाहते थे।

फिर एक पल रुक कर बोले, “बेटे, एक बात बताओ - तुमने मुकेश के लिए मना क्यों किया?”

हाँ - यह अजय का फेवरिट टॉपिक था।

“आपको बताया तो पापा! बहुत सारे रीसंस हैं... लेकिन जो सबसे बड़ी बात है, वो यह है कि मुझे लगता है - आई ऍम कन्विंस्ड - कि वो आपकी दौलत के लिए दीदी से शादी करना चाहता है।” अजय ने पूरी सच्चाई से कहा, “... दीदी ऐसी पढ़ी लिखी नहीं हैं, और न ही बहुत सुन्दर हैं, कि कोई यूँ ही चला आए उनके लिए... और उनका कोई सोशल सर्किल भी ऐसा नहीं है कि कोई अपनी तरफ़ से उनके लिए प्रोपोसल भेजे!”

“हम्म,”

“हाँ, अगर कोई उनको चाहता है, तो अलग बात है!”

“आई अंडरस्टैंड कि तुम क्या कहना चाहते हो...” अशोक जी ने कहा, “तो... क्या माया चाहती है किसी को?”

“कहाँ पापा! दीदी तो पूरा दिन भर घर का काम करती रहती हैं... उनको मौका कहाँ मिलता है किसी से मिलने का?”

“बेटे, इसीलिए तो हम पेरेंट्स लोग इन्वॉल्व होते हैं न बच्चों की शादी में...”

“हाँ पापा, आपकी बात सही है। लेकिन लड़का भी तो ऐसा होना चाहिए न, जो दीदी को चाहे! उनसे प्यार करे...”

“हाँ, ऐसा तो चाहिए ही बेटे!” अशोक जी ने कहा, “तुमको पता है ऐसा कोई लड़का?”

पुराना अजय शायद ऐसी बातें कहने में हिचकता...

“एक है... आप भी जानते हैं उसको...”

“अच्छा? कौन?”

“कमल...”

“व्हाट? हा हा...” अशोक जी हँसने लगे, “आज कल के बच्चे भी न...”

“क्यों पापा? क्या गलत है इसमें? ... कमल दीदी से प्यार क्यों नहीं कर सकता?”

“कर सकता है, बेटे!” अशोक जी ने थोड़ा सोच कर कहा, “आई ऍम सॉरी बेटे! यस... वो माया से प्यार कर सकता है! लेकिन ऐसा कम ही होता है न! इसलिए थोड़ा अजीब... नहीं, अजीब नहीं... थोड़ा अलग लगा!”

“आप इनके ख़िलाफ़ तो नहीं होंगे न?”

“व्हाई? अगर ये दोनों शादी करना चाहते हैं, तो मैं इनके ख़िलाफ़ क्यों रहूँगा? मुझे तो अपने बच्चों की ख़ुशियाँ चाहिए।” अशोक जी ने बड़े ही मृदुल भाव से कहा, “कमल मुझको भी अच्छा लगता है। अच्छा लड़का है वो! इतने सालों से जानते हैं हम उसको...”

“थैंक यू पापा!”

“राणा साहब (कमल के पिता) से बात करूँ तो?”

अजय खुश हो गया, “क्यों नहीं पापा! ... लेकिन कमल ने आज ही मुझे दीदी के बारे में वो क्या सोचता है, वो बताया। मैंने भी दीदी को अभी कुछ देर पहले ही बताया है... आपको... आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके राणा अंकल से बात करने के पहले, वो दोनों एक बार एक दूसरे से थोड़ी अलग सिचुएशन में मिल लें?”

“बेटे, देखो, मैं तुम्हारी बात समझता हूँ... लेकिन माया बेटी है हमारी! और हम इज़्ज़त वाले लोग हैं। राणा साहब भी खानदानी हैं... इज़्ज़तदार हैं। इसलिए मुझे लगता है कि पहले हमारा ही उनसे मिलना ठीक होगा। ... वैसे भी वो लड़के वाले हैं... शादी का रिश्ता तो हमारी तरफ़ से ही जाएगा! ... जाना चाहिए...”

“जी,” अजय कुछ कहना चाहता था लेकिन अशोक जी ने उसको रोक कर कहा,

“बेटे देखो... मैं चाहता हूँ कि अगर इन दोनों का रिश्ता आगे बढ़ता है, तो उसमें उनका भी आशीर्वाद हो! ठीक है?”

अजय ने गहरी साँस भरी - उसकी हर बात तो नहीं मानी जा सकती न! लेकिन पापा माया दीदी और कमल को ले कर सीरियस हो सकते हैं, यह जान कर उसको बहुत अच्छा लगा।

“जी पापा!” वो बोला, फिर “तो हम लोग कब चल सकते हैं उनके पास, मिलने?” अजय ने आशापूर्वक पूछा।

“कल ही... शुभस्य शीघ्रम!” अशोक जी ने कहा, “भाई साहब और भाभी जी दोनों ही माया बेटे से मिले भी हैं, और उसको अच्छी तरह से जानते भी हैं! ... लेकिन शादी की बात और ही है...”

“पापा, मैं एक बार कमल से कह दूँ कि वो कल क्या एक्सपेक्ट करे?”

“हा हा... हाँ बता दो उसको! ऐसा न हो कि घबरा कर वो अपनी फ़ीलिंग्स से ही इंकार कर दे!”

अशोक जी ने हँसते हुए कहा।


**
वाव
यार अभी कहानी जिस रिदम में जा रहा है मैं कोई कमेन्ट करना ही नहीं चाहता
पर ऐसी कहानी से पहली बार रुबरु हो रहा हूँ और यकीन मानों दिल को छू रही है
बढ़िया बहुत बढ़िया
 
Top