अपडेट 21
तब तक किरण जी और सरिता जी दोनों वापस बैठक में आ गईं। उन दोनों के हाथों में बहुत से गिफ़्ट पैकेट्स थे। वो सभी पैकेट्स सेंट्रल टेबल पर रख दिए गए। उनमें से गहने का एक डब्बा निकाल कर सरिता जी ने माया को अपने पास आने को कहा। जब माया उनके पास आई, तो उन्होंने डब्बा खोल कर, उसमें से सोने की एक ज़ंजीर निकाल कर माया के गले में सजा दी।
“अब तुम हमारी हो गई हो, माया बेटे...” उन्होंने लाड़ से कहा, और फिर सभी को समझाने की गरज से आगे बोलीं, “अशोक भैया, किरण दीदी... बाकी लोग लड़कों का रोका करते हैं, लेकिन हमने तो बिटिया का रोका कर लिया है!”
इस अभूतपूर्व घटनाक्रम से भावुक हो कर माया ने तुरंत सरिता जी और किशोर जी के पैर छू कर उनके आशीर्वाद लिए।
“सौभाग्यवती भव बेटी, सानंद रहो!” किशोर जी और सरिता जी ने उसको आशीर्वाद दिया।
“आप लोगों को कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं है न,” किशोर जी ने पूछा।
“जी नहीं भाई साहब!” अशोक जी बोले - वो भी भावुक हो गए थे, “आज का दिन ऐसा निकलेगा... ओह प्रभु! ... भाई साहब, हम भी थोड़ा इंतजाम कर के आते!”
कह कर उन्होंने भी कमल और सरिता जी को उनका उपहार दिया।
“अरे भाई... अब तो हम समधी हो गए हैं, और ये आपका भी बेटा हो गया है... जब मन करे, जैसा मन करे, आप कीजिए!” किशोर जी बोले।
फिर थोड़े विश्राम के बाद उन्होंने बताया, “... देखिये भाई साहब... जब कमल ने हमको माया बिटिया के बारे में वो क्या सोचता है, वो सब बताया, तो समझिए हमारे दिल का बोझ हल्का हो गया। ... ये हमारी धर्मपत्नी जी... कब से मुझे कह रही थीं कि माया बेटी के बारे में आपसे बात करने को... मैं ही थोड़ा संकोच कर रहा था।” उन्होंने आनंद से हँसते हुए कहा, “... और आज आपने जब रिश्ते की बात करी, तो हम कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे!”
“दिल जीत लिया भाई साहब आपने,” अशोक जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
“ऐसी बातें न कहिये भाई साहब!”
“बेटी,” किरण जी ने माया से कहा, “तुमको यह रिश्ता मंज़ूर तो है न?”
“हाँ बेटी... हम मारे उत्साह के इतना कुछ कर गुजरे... तुम्हारी मर्ज़ी तो हमने पूछी ही नहीं!” कमल की माँ ने कहा, “तुमको मेरा बेटा पसंद तो है? ये रिश्ता पसंद तो है?”
“आंटी जी,” माया बोली, “मुझमें इतनी समझ नहीं है, कि अपने आप से इतना बड़ा डिसीज़न ले सकूँ! ... आप सभी ने सोचा है तो सब ठीक है... आप मेरे लिए कुछ भी गलत नहीं करेंगे! ... मेरे वीरन को सही लगता है, तो मुझे भी मंज़ूर है... मुझे भी पसंद है!” आखिरी बात कहते हुए माया के गाल शर्म से लाल हो गए।
“अरे वाह! जीती रह बिटिया रानी! जीती रह!” सरिता जी हर्षातिरेक से बोलीं, “भैया, आपकी लक्ष्मी अब हमारी है! आपके पास हमारी धरोहर है! सम्हाल कर रखिएगा इसको!”
इस बात को कहने का एक गूढ़ कारण था। माया के आने के बाद अशोक जी की बिज़नेस में बड़ी बरक़त आई थी। हाँ - उनका व्यक्तिगत और बेहद अपूरणीय नुकसान अवश्य हुआ था अपने बड़े भाई, अपने नवजात भतीजे, अपने अजन्मे शिशु, और अपनी पत्नी के जाने से, लेकिन व्यापार में बहुत बढ़त हुई थी। अजय की खुद की मानसिक और भावनात्मक हालत माया के कारण ही ठीक हुई थी।
“जी बिल्कुल बहन जी,” वो हाथ जोड़ कर बोले, “बिटिया अब आपकी अमानता है! जब आपका जी चाहे, आप लिवा लीजिये!”
“हाँ... इस बात पर कुछ सोच विचार कर लेते हैं,” किशोर जी ने कहा, “... इन दोनों की सगाई का एक प्रोग्राम कर लेते हैं!”
“जी भाई साहब... आप जब कहें?”
“नहीं नहीं... वो प्रोग्राम हमारे यहाँ होगा!” किशोर जी ने बड़े निर्णयात्मक तरीके से कहा, “इतने दिन हो गए... घर में कोई ख़ुशी वाला प्रोग्राम नहीं हुआ। ... इसलिए सोच विचार कर, अच्छे मुहूर्त में इन दोनों बच्चों की सगाई कर देंगे! ... इसी बहाने हम सभी को एक दूसरे के परिवारों से भी मिलने का हो जाएगा!”
“क्या कहते हैं भैया?”
“जैसा आपको उचित लगे बहन जी!” अशोक जी बोले।
“और शादी?” अजय से रहा नहीं गया।
“हा हा,” किशोर जी हँसने लगे, “सगाई... शादी... सब एक ही बात है!”
“भाई साहब?” अशोक जी समझे नहीं।
“अशोक भाई,” किशोर जी ने कहा, “कमल बेटा अपनी पढ़ाई पूरी करेगा! आप चिंता न करिए।”
“नहीं भाई साहब, कोई चिंता नहीं है!”
“माया बेटी का भी आगे पढ़ने का मन करे, तो पढ़ ले! हम पूरा सपोर्ट करेंगे!” सरिता जी बोलीं, “लेकिन, हमारे यहाँ लड़कियाँ... बहुएँ बाहर जा कर काम नहीं करतीं। भगवान की दया से संपन्न परिवार है... घर के लोगों की, बच्चों की देख रेख एक बड़ा काम है। हमारे यहाँ बहुओं को घर की आत्मा माना जाता है। ... आशा है, आप समझ गए होंगे!”
“बोलो बेटी?” अशोक जी ने कहा।
“आंटी जी,” माया धीरे से बोली, “पढ़ लूंगी, लेकिन मुझे भी घर ही सम्हालने का मन है...”
“तो फिर ठीक रहा!” अशोक जी ने कहा।
अजय बोला, “ये दोनों मिल तो सकते हैं न?”
“अरे हाँ! बिलकुल मिलें! एक दूसरे को जानें... समझें! जब जीवन साथ में बिताना है, तो जो अवसर एक दूसरे को जानने के मिलें, वो अवश्य लें!”
“बढ़िया!”
“देख बिटिया, तेरे पापा ने रामायण भेंट में दी है मुझे... तो तुझे ही प्रतिदिन इसका पाठ कर के सुनाना पड़ेगा हमें!” किशोर जी अपने ससुर बनने को लेकर बहुत उत्साहित प्रतीत हो रहे थे।
माया ने यह सुन कर अशोक जी की तरफ़ देखा।
“मुझे मत देखो बेटे,” उन्होंने हँसते हुए कहा, “तुम अब इस परिवार की हो।”
माया ने किशोर जी से कहा, “जी अंकल जी,”
“अंकल जी नहीं, मुझे भी पापा कह कर बुलाओ अब से बेटे,”
“और मुझे आंटी जी नहीं, मम्मी कह कर...” सरिता जी ने कहा।
“हाँ भई...” किशोर जी भी ठिठोली में शामिल हो गए।
“और अपने कमल भाई...” अजय भी इस खेल में शामिल हो गया, “आई मीन, जीजा जी को क्या कह कर बुलाएँ दीदी?”
“वो तो इन दोनों के बीच की बात है...” किरण जी भी इस खिंचाई में शामिल हुए बिना न रह सकीं।
“हा हा हा हा...” हँसी के ठहाकों से पूरा घर गुलज़ार हो गया।
अजय ने देखा - कमल और माया दीदी दोनों के होंठों पर शर्म वाली मुस्कान आ गई थी।
‘कैसे मासूम से हैं दोनों!’ तीस साल की उम्र वाले अजय ने सोचा, ... भगवान ने चाहा, तो दोनों खूब खुश रहेंगे! और इनके प्यार की मासूमियत भी बरकरार रहेगी...’
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