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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


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dhparikh

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अपडेट 20


पापा के सामने ज़रूर ही बड़ी बड़ी बातें कर ली हों अजय ने, लेकिन चिंता में वो भी था।

आज पहली बार हुआ था कि कमल के घर जाते समय अजय का दिल तेजी से धड़क रहा था। आज तक वैसा नहीं हुआ। अजय जिस कमल को अपनी तीस साल की उम्र तक जानता था, वो कमल माया दीदी को हमेशा चाहता रहा था। वो उनसे कह नहीं पाया... कहने का मौका ही नहीं मिला। वो दोनों एक दूसरे के बारे में जान भी पाते, वो अवसर ही नहीं बने! लेकिन वो सब आज बदलने वाला था शायद!

कमल के घर जाने का आशय सभी को मालूम था, इसलिए वहाँ जाने के लिए ढंग से तैयारी की गई थी। अशोक जी कुछ दिनों पहले अयोध्या गए हुए थे, और वहाँ एक मंदिर से उन्होंने अपने पढ़ने के लिए रामायण ली थी। राणा साहब को देने के लिए इससे बेहतर उपहार उनको समझ में नहीं आया। उनकी पत्नी सरिता जी के लिए कंजीवरम रेशमी साड़ी पैक की गई। और अंततः, आज के मुख्य व्यक्ति, कमल के लिए स्विस वॉच!

बिज़नेस होने के बावज़ूद अशोक जी इतने सीधे थे कि वो उपहारों समेत कमल के घर में प्रवेश करने लगे। जैसे उनको इस लाग लपेट वाली दुनिया की समझ ही न हो! अजय शायद कुछ बोलता, लेकिन उसने इस तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया। उसके खुद के दिमाग में अनेकों बातें चल रही थीं। एक अबूझ सी घबराहट महसूस हो रही थी उसको। विधुर और विधवा होने के कारण अशोक जी और किरण जी साधारण कपड़े ही पहनते थे। आज भी वैसा ही था। लेकिन माया ने अच्छे कपड़े पहने थे - उसने क़सीदा किया हुआ रेशमी कुर्ता, चूड़ीदार शलवार, और मैचिंग दुपट्टा पहना हुआ था। सामान्य सी लड़की थी, लेकिन इस समय वो बहुत सुन्दर और सलोनी सी लग रही थी।

किशोर राणा जी - कमल के पिता - पारम्परिक रूप से किराना व्यापारी थे। बड़ा बिज़नेस था उनका, और एक संपन्न परिवार था। अशोक जी भी कोई कम धनाढ्य नहीं थे। लेकिन उनके मुक़ाबले कम थे। राणा साहब एक पारम्परिक खानदान से थे। लिहाज़ा पारम्परिक मूल्यों में उनको बहुत विश्वास था। उनके खानदान के किसी भी घर में स्त्रियाँ बाहर काम नहीं करती थीं। बहुत अधिक पढ़ी-लिखी भी नहीं होती थीं। लेकिन सभी स्त्रियाँ गृह-कार्य में अभूतपूर्व रूप से दक्ष होती थीं, और सभी अपने अपने बच्चों को पक्के संस्कार देती थीं। किशोर जी के तीन और भाई थे - लेकिन सभी का अपना अपना अलग अलग व्यापार था। सभी अलग घरों में रहते थे, और शायद इसीलिए चारों परिवारों के बीच सौहार्दपूर्ण और मधुर व्यवहार बना हुआ था।

किशोर और सरिता राणा जी ने बड़ी गर्मजोशी से सभी का स्वागत किया। सरिता जी, किरण जी और माया से गले लग कर मिलीं। कमल भी आया। वो अन्य सभी से तो सामान्य तरीके से ही मिला, लेकिन माया से मिलने में आज उसके अंदाज़ में थोड़ी हिचक दिखी। माया में भी...

“नमस्ते... दीदी,” उसने थोड़ा अटकते हुए कहा।

“नमस्ते कमल...” उसके द्वारा स्वयं को ‘दीदी’ कहे जाने पर माया खुद ही अचकचा भी गई और शर्मा भी गई।

जब तक किसी बात से अनजान रहो, तब तक सब ठीक रहता है। लेकिन जब आपके सामने वो बात खुल जाती है, तब सामान्य बने रहना कठिन होता है। इसीलिए गूढ़पुरुषों का काम बहुत कठिन होता है। सीधे लोगों, जैसे माया और कमल, के लिए यह और भी अधिक कठिन होता है।

कोई आधे घंटे तक इधर उधर की बातें होती रहीं। शायद अशोक जी कोई भूमिका बांधना चाहते थे।

उन्होंने बातों ही बातों में उनको अपने अयोध्या जाने की बात कही और फिर उपहार में लाई हुई रामायण भेंट में दी। राणा साहब ने बड़े ही हर्ष से वो भेंट स्वीकार करी और अशोक जी को कई बार धन्यवाद दिया। अशोक जी अभी भी थोड़ा हिचक रहे थे। शायद वो बातों का कोई ऐसा सूत्र खोलना चाहते थे कि कमल और माया के रिश्ते की बात चल सके। लेकिन फिलहाल कोई सूत्र नहीं खुल रहा था।

अजय बहुत देर से इस नाटक को होते देख रहा था। आख़िरकार तंग आ कर अजय ने ही बम फोड़ दिया,

“अंकल जी,” उसने किशोर जी से कहा।

“हाँ बेटे,”

“वो... वो पापा जी आपसे एक बात कहना चाह रहे थे!”

किशोर जी मुस्कुराए, “कहिए न भाई साहब! आपने कल फ़ोन पर कहा भी था कि कोई बहुत ही पर्सनल सी बात कहनी है। कहिए न... क्या है आपके मन में?”

अशोक जी अब बहाना नहीं बना सकते थे।

“भाई साहब... एक सेंसिटिव सी बात है।”

“हाँ कहिये?”

अशोक जी ने गहरी साँस भरी, “जी... आज हमारे यहाँ आने का कारण यह था कि हम आपके बेटे कमल के लिए अपनी बेटी माया का रिश्ता लाये हैं...”

शायद किशोर जी भी बहुत देर से इस बात के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे थे, इसलिए अब उनसे अपनी हँसी दबाए न दब सकी।

वो ठठाकर हँसने लगे,

“भाई साहब... हा हा हा...” उन्होंने हँसते हुए कहा, “इतनी अच्छी सी बात कहने में आप इतना संकोच क्यों कर रहे थे?”

“जी? मतलब?”

“अशोक भैया, किरण दीदी,” सरिता जी बोलीं, “माया बिटिया तो हमको पसंद ही है हमेशा से! हम भी तो यही चाहते थे...”

“बहन जी...?” अशोक जी को समझ नहीं आया।

“जी हम ये कहना चाहते हैं कि आप जो रिश्ता लाये हैं, वो हमारे सर आँखों पर!” किशोर जी ने कहा, “ये बात तो हम ही आपसे कहना चाहते थे, लेकिन संकोच के मारे कह न सके!”

“ओह भगवान!” अशोक जी ने ईश्वर की तरफ हाथ जोड़ दिए, “भाई साहब... सच में, विश्वास नहीं हो रहा है!”

“अरे, ऐसा न कहिये! माया बेटे?”

“जी अंकल?”

माया इतनी देर से सकुचाती हुई सी, इस अभूतपूर्व घटनाक्रम को होते हुए देख रही थी। उसको कभी मालूम भी नहीं होगा, कि इस घटना ने उसका जीवन कैसा भिन्न कर दिया था! उसका जीवन दुःख और अवसाद भरे रास्ते पर चलने के बजाय अब आनंद और पूर्ति से भरे रास्ते पर चल दिया था।

“इधर आओ... हमारे पास...”

माया सकुचाती हुई अपने सोफ़े से उठी और किशोर जी के बगल आ कर बैठ गई! किशोर जी ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा,

“बेटे, तुम हमको तो पसंद थी हमेशा से ही। हम और श्रीमती जी अक्सर बातें करते थे कि माया बिटिया जैसी बहू हमारे घर आये। संकोच के मारे हम कुछ कह नहीं पाते थे किसी से भी! और तुम हमारे लाडले को भी पसंद हो, वो आज ही इस नालायक ने बताया!” वो हँसने लगे, “पहले बता देता तो हम ही आ जाते भाई साहब से तुम्हारा हाथ माँगने!”

माया ने बेहद संकोच से, और शर्माते हुए कमल की दिशा में देखा।

वो भी शर्माता हुआ ही नीचे देख रहा था।

“भाग्यवान,” किशोर जी ने कमल की माँ से कहा, “तो अब हम आज का प्रोग्राम कर लें?”

“हाँ,” कह कर कमल की माता जी उठने लगीं।

“सरिता,” किरण जी बहुत देर बाद कुछ बोलीं - वो मन ही मन में आह्लादित थीं कि कैसे अचानक से ही उनकी प्रिय बेटी के लिए इतनी खुशियां उनकी झोली में आ गिरीं - “कहाँ जा रही हो?”

“तुम भी आओ न दीदी...” कमल की माँ बोलीं, “तुम नहीं बहू...” उन्होंने सोफ़े से उठती हुई माया को देख कर कहा, “ये हम समधिनों के बीच की बात है! तुम बैठो।”

अजय ठठाकर हँसने लगा।

उसका दिल अचानक से ठंडक पा गया। कैसे थोड़ी सी ही हिम्मत कर लेने से कितने अलग से परिणाम आते हैं। वो उठ कर कमल के पास आया और उसकी पीठ थपथपा कर बोला,

“दिल खुश हो गया मेरे भाई! बहुत बहुत बधाइयाँ!”

कमल बोला, “थैंक यू सो मच मेरे भाई! तुमने जो किया, वो इम्पॉसिबल था यार! ... मैं कैसे तुम्हारा शुक्रिया करूँ...”

“... मेरी दीदी को वो सारी खुशियाँ दे कर, जो तुम उसको दे सकते हो!” अजय ने कहा - फिर आगे जोड़ते हुए बोला, “... जीजा जी...”

उसकी बात पर किशोर जी और अशोक जी दोनों आनंद से हँसने लगे।

उधर कमल ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया और माया की तरफ़ देखा।

माया ने सर नीचे कर रखा था। लेकिन इतना तो स्पष्ट था कि ऐसी अभूतपूर्व घटना से वो भाव-विभोर हो गई थी।

“दीदी,” अजय ने उसको छेड़ते हुए कहा, “कुछ तो बोलो!”

वो बेचारी क्या ही बोलती? भावनातिरेक में एक शब्द भी नहीं फूट रहे थे। दो दिनों में ही उसको इतनी खुशियाँ मिल गई थीं कि उसको समझ नहीं आ रहा थी कि उनको कैसे सम्हाले वो!

और दो पलों में ही वो हो गया जैसा भावातिरेक में होता है - माया की आँखों से आँसू निकल पड़े।

“दीदी,” अजय लपक कर अपनी बहन के पास गया और बोला, “क्या हो गया? नॉट हैप्पी?”

माया ने ‘न’ में सर हिलाया।

“अरे! तुम खुश नहीं हो?” अजय आश्चर्य से बोला, “... तुमको कमल पसंद नहीं!”

माया समझ रही थी कि सब कुछ जानते हुए भी अजय उसको छेड़ रहा है। सुबकते हुए वो मुस्कुराने की कोशिश करने लगी। और जब कुछ समझ नहीं आया, तो उसके सीने में मुँह छुपा कर उसने झूठ-मूठ का एक मुक्का मारा उसको।

“आई लव यू, दीदी!” अजय ने उसको प्यार से अपने सीने में भरे हुए कहा।

“थैंक यू बाबू,” माया बुदबुदाते हुए बोली, “... थैंक यू!”

**
Nice update....
 
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parkas

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अपडेट 21


तब तक किरण जी और सरिता जी दोनों वापस बैठक में आ गईं। उन दोनों के हाथों में बहुत से गिफ़्ट पैकेट्स थे। वो सभी पैकेट्स सेंट्रल टेबल पर रख दिए गए। उनमें से गहने का एक डब्बा निकाल कर सरिता जी ने माया को अपने पास आने को कहा। जब माया उनके पास आई, तो उन्होंने डब्बा खोल कर, उसमें से सोने की एक ज़ंजीर निकाल कर माया के गले में सजा दी।

“अब तुम हमारी हो गई हो, माया बेटे...” उन्होंने लाड़ से कहा, और फिर सभी को समझाने की गरज से आगे बोलीं, “अशोक भैया, किरण दीदी... बाकी लोग लड़कों का रोका करते हैं, लेकिन हमने तो बिटिया का रोका कर लिया है!”

इस अभूतपूर्व घटनाक्रम से भावुक हो कर माया ने तुरंत सरिता जी और किशोर जी के पैर छू कर उनके आशीर्वाद लिए।

“सौभाग्यवती भव बेटी, सानंद रहो!” किशोर जी और सरिता जी ने उसको आशीर्वाद दिया।

“आप लोगों को कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं है न,” किशोर जी ने पूछा।

“जी नहीं भाई साहब!” अशोक जी बोले - वो भी भावुक हो गए थे, “आज का दिन ऐसा निकलेगा... ओह प्रभु! ... भाई साहब, हम भी थोड़ा इंतजाम कर के आते!”

कह कर उन्होंने भी कमल और सरिता जी को उनका उपहार दिया।

“अरे भाई... अब तो हम समधी हो गए हैं, और ये आपका भी बेटा हो गया है... जब मन करे, जैसा मन करे, आप कीजिए!” किशोर जी बोले।

फिर थोड़े विश्राम के बाद उन्होंने बताया, “... देखिये भाई साहब... जब कमल ने हमको माया बिटिया के बारे में वो क्या सोचता है, वो सब बताया, तो समझिए हमारे दिल का बोझ हल्का हो गया। ... ये हमारी धर्मपत्नी जी... कब से मुझे कह रही थीं कि माया बेटी के बारे में आपसे बात करने को... मैं ही थोड़ा संकोच कर रहा था।” उन्होंने आनंद से हँसते हुए कहा, “... और आज आपने जब रिश्ते की बात करी, तो हम कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे!”

“दिल जीत लिया भाई साहब आपने,” अशोक जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा।

“ऐसी बातें न कहिये भाई साहब!”

“बेटी,” किरण जी ने माया से कहा, “तुमको यह रिश्ता मंज़ूर तो है न?”

“हाँ बेटी... हम मारे उत्साह के इतना कुछ कर गुजरे... तुम्हारी मर्ज़ी तो हमने पूछी ही नहीं!” कमल की माँ ने कहा, “तुमको मेरा बेटा पसंद तो है? ये रिश्ता पसंद तो है?”

“आंटी जी,” माया बोली, “मुझमें इतनी समझ नहीं है, कि अपने आप से इतना बड़ा डिसीज़न ले सकूँ! ... आप सभी ने सोचा है तो सब ठीक है... आप मेरे लिए कुछ भी गलत नहीं करेंगे! ... मेरे वीरन को सही लगता है, तो मुझे भी मंज़ूर है... मुझे भी पसंद है!” आखिरी बात कहते हुए माया के गाल शर्म से लाल हो गए।

“अरे वाह! जीती रह बिटिया रानी! जीती रह!” सरिता जी हर्षातिरेक से बोलीं, “भैया, आपकी लक्ष्मी अब हमारी है! आपके पास हमारी धरोहर है! सम्हाल कर रखिएगा इसको!”

इस बात को कहने का एक गूढ़ कारण था। माया के आने के बाद अशोक जी की बिज़नेस में बड़ी बरक़त आई थी। हाँ - उनका व्यक्तिगत और बेहद अपूरणीय नुकसान अवश्य हुआ था अपने बड़े भाई, अपने नवजात भतीजे, अपने अजन्मे शिशु, और अपनी पत्नी के जाने से, लेकिन व्यापार में बहुत बढ़त हुई थी। अजय की खुद की मानसिक और भावनात्मक हालत माया के कारण ही ठीक हुई थी।

“जी बिल्कुल बहन जी,” वो हाथ जोड़ कर बोले, “बिटिया अब आपकी अमानता है! जब आपका जी चाहे, आप लिवा लीजिये!”

“हाँ... इस बात पर कुछ सोच विचार कर लेते हैं,” किशोर जी ने कहा, “... इन दोनों की सगाई का एक प्रोग्राम कर लेते हैं!”

“जी भाई साहब... आप जब कहें?”

“नहीं नहीं... वो प्रोग्राम हमारे यहाँ होगा!” किशोर जी ने बड़े निर्णयात्मक तरीके से कहा, “इतने दिन हो गए... घर में कोई ख़ुशी वाला प्रोग्राम नहीं हुआ। ... इसलिए सोच विचार कर, अच्छे मुहूर्त में इन दोनों बच्चों की सगाई कर देंगे! ... इसी बहाने हम सभी को एक दूसरे के परिवारों से भी मिलने का हो जाएगा!”

“क्या कहते हैं भैया?”

“जैसा आपको उचित लगे बहन जी!” अशोक जी बोले।

“और शादी?” अजय से रहा नहीं गया।

“हा हा,” किशोर जी हँसने लगे, “सगाई... शादी... सब एक ही बात है!”

“भाई साहब?” अशोक जी समझे नहीं।

“अशोक भाई,” किशोर जी ने कहा, “कमल बेटा अपनी पढ़ाई पूरी करेगा! आप चिंता न करिए।”

“नहीं भाई साहब, कोई चिंता नहीं है!”

“माया बेटी का भी आगे पढ़ने का मन करे, तो पढ़ ले! हम पूरा सपोर्ट करेंगे!” सरिता जी बोलीं, “लेकिन, हमारे यहाँ लड़कियाँ... बहुएँ बाहर जा कर काम नहीं करतीं। भगवान की दया से संपन्न परिवार है... घर के लोगों की, बच्चों की देख रेख एक बड़ा काम है। हमारे यहाँ बहुओं को घर की आत्मा माना जाता है। ... आशा है, आप समझ गए होंगे!”

“बोलो बेटी?” अशोक जी ने कहा।

“आंटी जी,” माया धीरे से बोली, “पढ़ लूंगी, लेकिन मुझे भी घर ही सम्हालने का मन है...”

“तो फिर ठीक रहा!” अशोक जी ने कहा।

अजय बोला, “ये दोनों मिल तो सकते हैं न?”

“अरे हाँ! बिलकुल मिलें! एक दूसरे को जानें... समझें! जब जीवन साथ में बिताना है, तो जो अवसर एक दूसरे को जानने के मिलें, वो अवश्य लें!”

“बढ़िया!”

“देख बिटिया, तेरे पापा ने रामायण भेंट में दी है मुझे... तो तुझे ही प्रतिदिन इसका पाठ कर के सुनाना पड़ेगा हमें!” किशोर जी अपने ससुर बनने को लेकर बहुत उत्साहित प्रतीत हो रहे थे।

माया ने यह सुन कर अशोक जी की तरफ़ देखा।

“मुझे मत देखो बेटे,” उन्होंने हँसते हुए कहा, “तुम अब इस परिवार की हो।”

माया ने किशोर जी से कहा, “जी अंकल जी,”

“अंकल जी नहीं, मुझे भी पापा कह कर बुलाओ अब से बेटे,”

“और मुझे आंटी जी नहीं, मम्मी कह कर...” सरिता जी ने कहा।

“हाँ भई...” किशोर जी भी ठिठोली में शामिल हो गए।

“और अपने कमल भाई...” अजय भी इस खेल में शामिल हो गया, “आई मीन, जीजा जी को क्या कह कर बुलाएँ दीदी?”

“वो तो इन दोनों के बीच की बात है...” किरण जी भी इस खिंचाई में शामिल हुए बिना न रह सकीं।

“हा हा हा हा...” हँसी के ठहाकों से पूरा घर गुलज़ार हो गया।

अजय ने देखा - कमल और माया दीदी दोनों के होंठों पर शर्म वाली मुस्कान आ गई थी।

‘कैसे मासूम से हैं दोनों!’ तीस साल की उम्र वाले अजय ने सोचा, ... भगवान ने चाहा, तो दोनों खूब खुश रहेंगे! और इनके प्यार की मासूमियत भी बरकरार रहेगी...’


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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

kamdev99008

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आपके बहुत से कमेंट पढ़े! :)
बहुत बहुत धन्यवाद!
कोई सस्पेंस नहीं है - मैं तो साधारण कहानियाँ लिखता हूँ, बस!
आपको अच्छी लगती हैं, वो आप लोगों का बड़प्पन है!
इस बात से मैं भी सहमत हूं कि आपने कभी छुपे हुए राज़ वाला सस्पेंस नहीं लिखा
लेकिन आपकी कहानियों में जो भविष्य के घटनाक्रम और परिणाम की उत्सुकता बनती है वो भी सस्पेंस से कम नहीं

बहुत बढ़िया... माया कमल का तो हो गया लेकिन अभी रास्ता बहुत लम्बा है....
कम से कम 13 साल तो हैं ही जब प्रजापति जी से दोबारा मुलाकात होगी... दिल्ली से दूर पुणे से मुंबई की सड़क पर उसी समय....
लेकिन क्या नियति यही दोहरायेगी या अजय उनके जीवन में भी बदलाव ला पायेगा
 

park

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अपडेट 19


अगली सुबह अजय सुबह तड़के, कोई साढ़े चार बजे ही उठ गया।

रात में सोते समय वो बेचैन सा था। भविष्य को ले कर जब चिंता दिमाग में घर बना लेती है, तो चैन आये भी तो कहाँ से? बेचैनी से बचने का ब्रह्मास्त्र था माँ के आँचल में सोना। जब एक घण्टा करवटें बदलने से भी नींद नहीं आई अजय को, तो वो उठ कर माँ के पास चला गया। माँ की ममता भरी गोद में बड़ी ही सुखभरी नींद आ गई उसको। सपने आ तो रहे थे, लेकिन कोई असामान्य से नहीं।

आँख खुलते ही सबसे पहला विचार जो उसके मन में आया वो यह था कि वो कहाँ जगा है? वर्तमान में, या फिर भूतकाल में!

चार बजे अँधेरा ही रहता है, लिहाज़ा कमरे की व्यवस्था देखने और समझने में कुछ समय लग गया। फिर भी यह समझ में आ गया कि वो अभी भी ‘भूतकाल’ ही में है। न तो उसका शरीर बदला था और न ही और कुछ। वैसा ही ऊर्जावान युवा शरीर!

मतलब दो बातें तो अब साफ़ हो गई थीं -

एक : उसका वयस्क संस्करण शायद अब शेष नहीं बचा था। इस कारण से अब उसको अपने बीत चुके वर्तमान के बारे में सोचने की या चिंता करने की आवश्यकता नहीं थी। अब उसको शायद किशोर बन कर ही जीना है, इसलिए वर्तमान पर ध्यान देना अनिवार्य है। भविष्य अपने आप स्वयं को संवार लेगा।

दो : अगर ये पहली बात सच है, तो उसने डर के मारे थोड़ी जल्दबाज़ी कर दी। लेकिन वो करता भी तो क्या? प्रजापति जी ने यह तो बताया नहीं न कि उसको कब तक की या कितनी मोहलत मिली है। वो करता भी तो क्या? वैसे भी, अगर दीदी और भैया के जीवन में उसकी जल्दबाज़ी के कारण कोई अच्छे बदलाव जल्दी आ जाते हैं, तो क्या परेशानी है?

वो मुस्कुराया।

‘नई ज़िन्दगी है भाई ये!’ उसने सोचा, ‘शायद ही कभी किसी को मौका मिला हो अपनी ज़िन्दगी बदलने का। उसको मिला है। जाहिर सी बात है कि ईश्वर भी जानते हैं कि भविष्य बदले जा सकते हैं। इसीलिए तो उन्होंने उसको ये मौका दिया है।’

माँ को देखा - वो अभी भी गहरी नींद में थीं। उनको उठने में, उनकी दिनचर्या के अनुसार अभी भी कोई आधा पौन घंटा शेष था। दीदी और माँ एक साथ ही उठती थीं - यह उसको पता था। साढ़े सात बजे तक नाश्ता और टिफ़िन लगभग तैयार हो जाता था, जिससे वो और पापा समय पर ऑफ़िस जा सकें।

‘बाप रे!’ उसने सोचा, ‘माँ और दीदी - दोनों कैसे मशीन की तरह काम करती हैं!’

पहले वाला अजय इन दोनों की मेहनत और लगन की सही तरीक़े से प्रशंसा नहीं कर पाता था। लेकिन बड़े होने पर उसको समझ में आया कि घर के रोज़मर्रा के काम में कितना श्रम लगता है! हर रोज़, बिना रुके, बिना अवकाश लिए, यह सब करना - बहुत कठिन काम है!

वो सतर्क हो कर बिस्तर से उठा कि माँ की नींद कहीं टूट न जाए।

उठ कर बाहर बंगले के प्रांगण में आया।

बाहर मनोहर भैया बैठे हुए ऊँघ रहे थे - या शायद बैठे बैठे सो रहे थे।

मनोहर भैया घर के चौकीदार थे। अशोक जी ने उनको अपने गाँव से यहाँ ले आया हुआ था, कि चौकीदारी के बहाने कुछ कमाई हो जाएगी उनकी। गाँव में उनकी कभी एक मामूली सी खेती थी, जो क़र्ज़ चुकाने के मद में व्यव हो गई थी। लेकिन वो एक ईमानदार और बहुत मेहनती आदमी थे, इसीलिए अशोक जी उनको दिल्ली लिवा लाये थे। सभी जानते थे कि वो रात में चौकीदारी करते हुए सो जाते हैं, लेकिन इस बात से उनसे कोई शिकायत नहीं करता था। कोई भी आदमी चौबीसों घंटे काम नहीं कर सकता। वो घर के कई सारे काम कर देते थे और रात में कुछ समय चौकीदारी करते। उनके रहने के लिए एक छोटा सा कमरा बंगले के प्रांगण में ही बना हुआ था। अकेले इंसान थे - उनकी कभी शादी ही नहीं हुई - इसलिए उनका गुजरा बढ़िया चलता था। शादी इसलिए नहीं हुई, क्योंकि जवानी में उन्होंने किसी गुरु के समीप ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। बाद में कभी आवश्यकता नहीं महसूस हुई उनको शादी ब्याह करने की।

इस घर के बिखरने का उनको असीम दुःख हुआ था, लेकिन मनोहर भैया जैसा व्यक्ति कर भी क्या सकता था? रागिनी के ताप से वो भी न बच सके! उसने उनके ख़िलाफ़ भी केस किया था, लेकिन वो इतना खोखला और इतना झूठा केस था कि वो बच गए। पुलिस ने लिखने के साथ ही ख़ारिज़ कर दिया। यही गनीमत थी। जेल में अजय और माँ से मिलने वो आया करते थे, लेकिन बिना कुछ कहे बस फ़फ़क फ़फ़क कर रोते ही थे। इसलिए एक दिन माँ ने उनको आने से मना कर दिया। अजय और माँ - दोनों को पता नहीं था, लेकिन घर से बेदखल कर दिए जाने के बाद, वो जेल के पास ही एक फैक्ट्री में कामगार मजदूर बन गए थे। एक दिन दोनों की रिहाई हो गई, और मनोहर भैया पीछे ही रह गए।

एक औरत ने सब कुछ तबाह कर दिया था! कितने ही जीवन उसने बर्बाद कर दिए थे उसने!

अजय ने देखा, गेट के सामने दो अखबार पड़े हुए थे। उसने दोनों अखबार उठा कर आज की तरीख पढ़ी - दस जुलाई उन्नीस सौ पंचान्नवे! हाँ - आज भी वो तेरह साल पहले ही था। शायद अब यही उसकी सच्चाई है… यही उसका जीवन है! हाँ थोड़ी कोशिश करनी पड़ेगी, लेकिन यह ईश्वर प्रदत्त एक दूसरा अवसर है अपना और अपने परिवार का जीवन बेहतर बनाने का!

अब उसके मन में दृढ़ता भी आ गई कि उसको क्या करना है!

चूँकि अभी कोई जगा नहीं था, इसलिए वापस घर में आ कर उसने अपने लिए एक इंस्टेंट कॉफ़ी बनाई और अखबार के फाइनेंसियल पेज ले कर अध्ययन करने लगा। वो बड़े चाव से देर तक उसकी ख़बरों को पढ़ता रहा। उसके समसामयिक मित्रों में से कईयों ने केवल नौकरी को ही अपना सहारा नहीं बनाया था। अनेकों ने शेयर मार्किट में पैसे निवेश किए थे। और उनमें से कई लोगों को अच्छा लाभ मिला था। लिहाज़ा, सीखने के लिए बहुत कुछ था। जब अशोक जी वहाँ आये तो उसको फाइनेंसियल पेज पढ़ते देख कर अचंभित रह गए। घर में केवल वो ही फाइनेंसियल न्यूज़ पढ़ते थे। और अजय ने तो उस विषय में कभी भी कोई रूचि ही नहीं दिखाई।

“क्या बात है बेटे! आज फाइनेंसियल न्यूज़ पढ़ रहे हो?”

“ओह, गुड मॉर्निंग पापा! जी, सोच रहा था कि आगे चल कर मैं भी आपकी आपके बिज़नेस में हेल्प करूँगा... इसलिए इन सब बातों की नॉलेज होना भी बहुत ज़रूरी है!”

“हा हा! हाँ हाँ, बिलकुल! क्या कुछ एडवाइस है मेरे लिए?” उन्होंने यूँ ही, बातचीत करने के गरज से पूछा।

“अभी तो नहीं! लेकिन यह सब पढ़ कर लगा कि आपकी हेल्प की ज़रुरत है!”

“हाँ, बोलो?”

“उम्... पापा, मैं सोच रहा था कि मैं स्टॉक्स में इन्वेस्ट करूँगा!”

“ओह?”

“जी पापा! कॉलेज की लाइब्रेरी में एक दो किताबें पढ़ीं हैं तो लगा कि स्टॉक्स में इन्वेस्ट करना चाहिए मुझे!”

“वो क्यों?”

“अभी मैं ट्वेल्फ्थ में हूँ... बाई इन्वेस्टिंग, आई वांट टू क्रिएट सम फ्यूचर वेल्थ फॉर मी!”

“हम्म्म लेकिन तुम अभी तक अपनी पॉकेट मनी बैंक में जमा करते थे न?”

“हाँ... आई विल इन्वेस्ट आल दैट इन टू स्टॉक्स नाउ!”

“ओके!”

“आप मेरी हेल्प करेंगे?”

“हाँ बोलो? कैसे?”

“आप मेरा एक डीमैट अकाउंट खुला दीजिए अपनी गार्जियनशिप में!”

“ओके! गुड आईडिया! कल कॉलेज से सीधे मेरे ऑफिस आ जाना। ... वहाँ मैं हमारे बैंक के रिलेशनशिप मैनेजर को बुला लूँगा।”

“थैंक यू पापा!”

“यू आर मोस्ट वेलकम बेटे,” अशोक जी गर्व से बोले, “मुझे अच्छा लगा कि तुम इन सब बातों को ले कर सीरियस हो गए हो!”

“पापा, मैं हमेशा ही बच्चा नहीं रह सकता न!” वो भी मुस्कुराते हुए बोला।

“हम्म्म,” वो हँसते हुए बोले, “भाभी को पसंद नहीं आएगा तुम्हारा ये मैच्योर रूप!”

“मम्मी लोगों के लिए बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं…”

“बच्चों से याद आया,” वो बोले, “आज राणा साहब से मिलने चलना है!”

“हम सब को?”

“हम सब को।”

“पापा,” वो थोड़ा झिझकते हुए बोला, “थोड़ा जल्दी नहीं हो रहा है सब कुछ?”

“अरे! कल तक तो जल्दी नहीं था! तो अब क्यों?” अशोक जी ने कहा, “देखो बेटे, हमको कमल और उसकी फॅमिली से बात करनी चाहिए। ये ठीक है। माया बिटिया के लिए भी ठीक है।”

“आई नो पापा!”

“दोनों को बिना दोनों परिवारों के परमिशन के, मैं तो नहीं मिलने दूंगा!”

“क्यों पापा?”

“तुम दोनों की गहरी दोस्ती है। राणा साहब और मेरी अच्छी दोस्ती है। बहन जी और भाभी भी अच्छी सहेलियाँ हैं। वो माया बेटी को भी खूब पसंद करती हैं। मैं नहीं चाहता कि किसी मूर्खता के कारण हम दोनों परिवारों में जो अच्छा है, वो बिगड़ जाए!” अशोक जी ने समझाया, “रिश्ते ट्रस्ट और रिस्पेक्ट पर बनाए जाते हैं, तो चलते हैं। … अगर वो माया बिटिया और कमल का साथ एक्सेप्ट कर लेते हैं, तो सब बढ़िया। नहीं तो मैं ये सूरत ज़रूर चाहूँगा कि कल उनके सामने सर उठा कर चल सकूँ!”

“यस पापा,” अजय बोला, “आपका सर झुकने नहीं देंगे हम! आप जो सोच रहे हैं, वो सही है!”

“थैंक यू बेटे!”

“कब चलना है वहां?”

“सवेरे सवेरे! से, नाइन ओ क्लॉक? कल रात में मैंने राणा साहब से बात करी थी। उनको बताया था कि एक बहुत ही पर्सनल बात करनी है उनसे और बहन जी से।”

“समझ गए होंगे!”

“न भी समझे हों, तो कुछ ही देर में उनको पता चल ही जाने वाला है।” उन्होंने गहरी साँस भरी।

अजय समझ गया कि पापा थोड़े चिंतित हैं, “पापा, प्लीज़ डोंट वरी! मुझे लगता है कि सब अच्छा होगा।”

“आई होप सो टू, बेटे! आई होप सो टू…”

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पापा के सामने ज़रूर ही बड़ी बड़ी बातें कर ली हों अजय ने, लेकिन चिंता में वो भी था।

आज पहली बार हुआ था कि कमल के घर जाते समय अजय का दिल तेजी से धड़क रहा था। आज तक वैसा नहीं हुआ। अजय जिस कमल को अपनी तीस साल की उम्र तक जानता था, वो कमल माया दीदी को हमेशा चाहता रहा था। वो उनसे कह नहीं पाया... कहने का मौका ही नहीं मिला। वो दोनों एक दूसरे के बारे में जान भी पाते, वो अवसर ही नहीं बने! लेकिन वो सब आज बदलने वाला था शायद!

कमल के घर जाने का आशय सभी को मालूम था, इसलिए वहाँ जाने के लिए ढंग से तैयारी की गई थी। अशोक जी कुछ दिनों पहले अयोध्या गए हुए थे, और वहाँ एक मंदिर से उन्होंने अपने पढ़ने के लिए रामायण ली थी। राणा साहब को देने के लिए इससे बेहतर उपहार उनको समझ में नहीं आया। उनकी पत्नी सरिता जी के लिए कंजीवरम रेशमी साड़ी पैक की गई। और अंततः, आज के मुख्य व्यक्ति, कमल के लिए स्विस वॉच!

बिज़नेस होने के बावज़ूद अशोक जी इतने सीधे थे कि वो उपहारों समेत कमल के घर में प्रवेश करने लगे। जैसे उनको इस लाग लपेट वाली दुनिया की समझ ही न हो! अजय शायद कुछ बोलता, लेकिन उसने इस तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया। उसके खुद के दिमाग में अनेकों बातें चल रही थीं। एक अबूझ सी घबराहट महसूस हो रही थी उसको। विधुर और विधवा होने के कारण अशोक जी और किरण जी साधारण कपड़े ही पहनते थे। आज भी वैसा ही था। लेकिन माया ने अच्छे कपड़े पहने थे - उसने क़सीदा किया हुआ रेशमी कुर्ता, चूड़ीदार शलवार, और मैचिंग दुपट्टा पहना हुआ था। सामान्य सी लड़की थी, लेकिन इस समय वो बहुत सुन्दर और सलोनी सी लग रही थी।

किशोर राणा जी - कमल के पिता - पारम्परिक रूप से किराना व्यापारी थे। बड़ा बिज़नेस था उनका, और एक संपन्न परिवार था। अशोक जी भी कोई कम धनाढ्य नहीं थे। लेकिन उनके मुक़ाबले कम थे। राणा साहब एक पारम्परिक खानदान से थे। लिहाज़ा पारम्परिक मूल्यों में उनको बहुत विश्वास था। उनके खानदान के किसी भी घर में स्त्रियाँ बाहर काम नहीं करती थीं। बहुत अधिक पढ़ी-लिखी भी नहीं होती थीं। लेकिन सभी स्त्रियाँ गृह-कार्य में अभूतपूर्व रूप से दक्ष होती थीं, और सभी अपने अपने बच्चों को पक्के संस्कार देती थीं। किशोर जी के तीन और भाई थे - लेकिन सभी का अपना अपना अलग अलग व्यापार था। सभी अलग घरों में रहते थे, और शायद इसीलिए चारों परिवारों के बीच सौहार्दपूर्ण और मधुर व्यवहार बना हुआ था।

किशोर और सरिता राणा जी ने बड़ी गर्मजोशी से सभी का स्वागत किया। सरिता जी, किरण जी और माया से गले लग कर मिलीं। कमल भी आया। वो अन्य सभी से तो सामान्य तरीके से ही मिला, लेकिन माया से मिलने में आज उसके अंदाज़ में थोड़ी हिचक दिखी। माया में भी...

“नमस्ते... दीदी,” उसने थोड़ा अटकते हुए कहा।

“नमस्ते कमल...” उसके द्वारा स्वयं को ‘दीदी’ कहे जाने पर माया खुद ही अचकचा भी गई और शर्मा भी गई।

जब तक किसी बात से अनजान रहो, तब तक सब ठीक रहता है। लेकिन जब आपके सामने वो बात खुल जाती है, तब सामान्य बने रहना कठिन होता है। इसीलिए गूढ़पुरुषों का काम बहुत कठिन होता है। सीधे लोगों, जैसे माया और कमल, के लिए यह और भी अधिक कठिन होता है।

कोई आधे घंटे तक इधर उधर की बातें होती रहीं। शायद अशोक जी कोई भूमिका बांधना चाहते थे।

उन्होंने बातों ही बातों में उनको अपने अयोध्या जाने की बात कही और फिर उपहार में लाई हुई रामायण भेंट में दी। राणा साहब ने बड़े ही हर्ष से वो भेंट स्वीकार करी और अशोक जी को कई बार धन्यवाद दिया। अशोक जी अभी भी थोड़ा हिचक रहे थे। शायद वो बातों का कोई ऐसा सूत्र खोलना चाहते थे कि कमल और माया के रिश्ते की बात चल सके। लेकिन फिलहाल कोई सूत्र नहीं खुल रहा था।

अजय बहुत देर से इस नाटक को होते देख रहा था। आख़िरकार तंग आ कर अजय ने ही बम फोड़ दिया,

“अंकल जी,” उसने किशोर जी से कहा।

“हाँ बेटे,”

“वो... वो पापा जी आपसे एक बात कहना चाह रहे थे!”

किशोर जी मुस्कुराए, “कहिए न भाई साहब! आपने कल फ़ोन पर कहा भी था कि कोई बहुत ही पर्सनल सी बात कहनी है। कहिए न... क्या है आपके मन में?”

अशोक जी अब बहाना नहीं बना सकते थे।

“भाई साहब... एक सेंसिटिव सी बात है।”

“हाँ कहिये?”

अशोक जी ने गहरी साँस भरी, “जी... आज हमारे यहाँ आने का कारण यह था कि हम आपके बेटे कमल के लिए अपनी बेटी माया का रिश्ता लाये हैं...”

शायद किशोर जी भी बहुत देर से इस बात के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे थे, इसलिए अब उनसे अपनी हँसी दबाए न दब सकी।

वो ठठाकर हँसने लगे,

“भाई साहब... हा हा हा...” उन्होंने हँसते हुए कहा, “इतनी अच्छी सी बात कहने में आप इतना संकोच क्यों कर रहे थे?”

“जी? मतलब?”

“अशोक भैया, किरण दीदी,” सरिता जी बोलीं, “माया बिटिया तो हमको पसंद ही है हमेशा से! हम भी तो यही चाहते थे...”

“बहन जी...?” अशोक जी को समझ नहीं आया।

“जी हम ये कहना चाहते हैं कि आप जो रिश्ता लाये हैं, वो हमारे सर आँखों पर!” किशोर जी ने कहा, “ये बात तो हम ही आपसे कहना चाहते थे, लेकिन संकोच के मारे कह न सके!”

“ओह भगवान!” अशोक जी ने ईश्वर की तरफ हाथ जोड़ दिए, “भाई साहब... सच में, विश्वास नहीं हो रहा है!”

“अरे, ऐसा न कहिये! माया बेटे?”

“जी अंकल?”

माया इतनी देर से सकुचाती हुई सी, इस अभूतपूर्व घटनाक्रम को होते हुए देख रही थी। उसको कभी मालूम भी नहीं होगा, कि इस घटना ने उसका जीवन कैसा भिन्न कर दिया था! उसका जीवन दुःख और अवसाद भरे रास्ते पर चलने के बजाय अब आनंद और पूर्ति से भरे रास्ते पर चल दिया था।

“इधर आओ... हमारे पास...”

माया सकुचाती हुई अपने सोफ़े से उठी और किशोर जी के बगल आ कर बैठ गई! किशोर जी ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा,

“बेटे, तुम हमको तो पसंद थी हमेशा से ही। हम और श्रीमती जी अक्सर बातें करते थे कि माया बिटिया जैसी बहू हमारे घर आये। संकोच के मारे हम कुछ कह नहीं पाते थे किसी से भी! और तुम हमारे लाडले को भी पसंद हो, वो आज ही इस नालायक ने बताया!” वो हँसने लगे, “पहले बता देता तो हम ही आ जाते भाई साहब से तुम्हारा हाथ माँगने!”

माया ने बेहद संकोच से, और शर्माते हुए कमल की दिशा में देखा।

वो भी शर्माता हुआ ही नीचे देख रहा था।

“भाग्यवान,” किशोर जी ने कमल की माँ से कहा, “तो अब हम आज का प्रोग्राम कर लें?”

“हाँ,” कह कर कमल की माता जी उठने लगीं।

“सरिता,” किरण जी बहुत देर बाद कुछ बोलीं - वो मन ही मन में आह्लादित थीं कि कैसे अचानक से ही उनकी प्रिय बेटी के लिए इतनी खुशियां उनकी झोली में आ गिरीं - “कहाँ जा रही हो?”

“तुम भी आओ न दीदी...” कमल की माँ बोलीं, “तुम नहीं बहू...” उन्होंने सोफ़े से उठती हुई माया को देख कर कहा, “ये हम समधिनों के बीच की बात है! तुम बैठो।”

अजय ठठाकर हँसने लगा।

उसका दिल अचानक से ठंडक पा गया। कैसे थोड़ी सी ही हिम्मत कर लेने से कितने अलग से परिणाम आते हैं। वो उठ कर कमल के पास आया और उसकी पीठ थपथपा कर बोला,

“दिल खुश हो गया मेरे भाई! बहुत बहुत बधाइयाँ!”

कमल बोला, “थैंक यू सो मच मेरे भाई! तुमने जो किया, वो इम्पॉसिबल था यार! ... मैं कैसे तुम्हारा शुक्रिया करूँ...”

“... मेरी दीदी को वो सारी खुशियाँ दे कर, जो तुम उसको दे सकते हो!” अजय ने कहा - फिर आगे जोड़ते हुए बोला, “... जीजा जी...”

उसकी बात पर किशोर जी और अशोक जी दोनों आनंद से हँसने लगे।

उधर कमल ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया और माया की तरफ़ देखा।

माया ने सर नीचे कर रखा था। लेकिन इतना तो स्पष्ट था कि ऐसी अभूतपूर्व घटना से वो भाव-विभोर हो गई थी।

“दीदी,” अजय ने उसको छेड़ते हुए कहा, “कुछ तो बोलो!”

वो बेचारी क्या ही बोलती? भावनातिरेक में एक शब्द भी नहीं फूट रहे थे। दो दिनों में ही उसको इतनी खुशियाँ मिल गई थीं कि उसको समझ नहीं आ रहा थी कि उनको कैसे सम्हाले वो!

और दो पलों में ही वो हो गया जैसा भावातिरेक में होता है - माया की आँखों से आँसू निकल पड़े।

“दीदी,” अजय लपक कर अपनी बहन के पास गया और बोला, “क्या हो गया? नॉट हैप्पी?”

माया ने ‘न’ में सर हिलाया।

“अरे! तुम खुश नहीं हो?” अजय आश्चर्य से बोला, “... तुमको कमल पसंद नहीं!”

माया समझ रही थी कि सब कुछ जानते हुए भी अजय उसको छेड़ रहा है। सुबकते हुए वो मुस्कुराने की कोशिश करने लगी। और जब कुछ समझ नहीं आया, तो उसके सीने में मुँह छुपा कर उसने झूठ-मूठ का एक मुक्का मारा उसको।

“आई लव यू, दीदी!” अजय ने उसको प्यार से अपने सीने में भरे हुए कहा।

“थैंक यू बाबू,” माया बुदबुदाते हुए बोली, “... थैंक यू!”

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kas1709

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तब तक किरण जी और सरिता जी दोनों वापस बैठक में आ गईं। उन दोनों के हाथों में बहुत से गिफ़्ट पैकेट्स थे। वो सभी पैकेट्स सेंट्रल टेबल पर रख दिए गए। उनमें से गहने का एक डब्बा निकाल कर सरिता जी ने माया को अपने पास आने को कहा। जब माया उनके पास आई, तो उन्होंने डब्बा खोल कर, उसमें से सोने की एक ज़ंजीर निकाल कर माया के गले में सजा दी।

“अब तुम हमारी हो गई हो, माया बेटे...” उन्होंने लाड़ से कहा, और फिर सभी को समझाने की गरज से आगे बोलीं, “अशोक भैया, किरण दीदी... बाकी लोग लड़कों का रोका करते हैं, लेकिन हमने तो बिटिया का रोका कर लिया है!”

इस अभूतपूर्व घटनाक्रम से भावुक हो कर माया ने तुरंत सरिता जी और किशोर जी के पैर छू कर उनके आशीर्वाद लिए।

“सौभाग्यवती भव बेटी, सानंद रहो!” किशोर जी और सरिता जी ने उसको आशीर्वाद दिया।

“आप लोगों को कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं है न,” किशोर जी ने पूछा।

“जी नहीं भाई साहब!” अशोक जी बोले - वो भी भावुक हो गए थे, “आज का दिन ऐसा निकलेगा... ओह प्रभु! ... भाई साहब, हम भी थोड़ा इंतजाम कर के आते!”

कह कर उन्होंने भी कमल और सरिता जी को उनका उपहार दिया।

“अरे भाई... अब तो हम समधी हो गए हैं, और ये आपका भी बेटा हो गया है... जब मन करे, जैसा मन करे, आप कीजिए!” किशोर जी बोले।

फिर थोड़े विश्राम के बाद उन्होंने बताया, “... देखिये भाई साहब... जब कमल ने हमको माया बिटिया के बारे में वो क्या सोचता है, वो सब बताया, तो समझिए हमारे दिल का बोझ हल्का हो गया। ... ये हमारी धर्मपत्नी जी... कब से मुझे कह रही थीं कि माया बेटी के बारे में आपसे बात करने को... मैं ही थोड़ा संकोच कर रहा था।” उन्होंने आनंद से हँसते हुए कहा, “... और आज आपने जब रिश्ते की बात करी, तो हम कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे!”

“दिल जीत लिया भाई साहब आपने,” अशोक जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा।

“ऐसी बातें न कहिये भाई साहब!”

“बेटी,” किरण जी ने माया से कहा, “तुमको यह रिश्ता मंज़ूर तो है न?”

“हाँ बेटी... हम मारे उत्साह के इतना कुछ कर गुजरे... तुम्हारी मर्ज़ी तो हमने पूछी ही नहीं!” कमल की माँ ने कहा, “तुमको मेरा बेटा पसंद तो है? ये रिश्ता पसंद तो है?”

“आंटी जी,” माया बोली, “मुझमें इतनी समझ नहीं है, कि अपने आप से इतना बड़ा डिसीज़न ले सकूँ! ... आप सभी ने सोचा है तो सब ठीक है... आप मेरे लिए कुछ भी गलत नहीं करेंगे! ... मेरे वीरन को सही लगता है, तो मुझे भी मंज़ूर है... मुझे भी पसंद है!” आखिरी बात कहते हुए माया के गाल शर्म से लाल हो गए।

“अरे वाह! जीती रह बिटिया रानी! जीती रह!” सरिता जी हर्षातिरेक से बोलीं, “भैया, आपकी लक्ष्मी अब हमारी है! आपके पास हमारी धरोहर है! सम्हाल कर रखिएगा इसको!”

इस बात को कहने का एक गूढ़ कारण था। माया के आने के बाद अशोक जी की बिज़नेस में बड़ी बरक़त आई थी। हाँ - उनका व्यक्तिगत और बेहद अपूरणीय नुकसान अवश्य हुआ था अपने बड़े भाई, अपने नवजात भतीजे, अपने अजन्मे शिशु, और अपनी पत्नी के जाने से, लेकिन व्यापार में बहुत बढ़त हुई थी। अजय की खुद की मानसिक और भावनात्मक हालत माया के कारण ही ठीक हुई थी।

“जी बिल्कुल बहन जी,” वो हाथ जोड़ कर बोले, “बिटिया अब आपकी अमानता है! जब आपका जी चाहे, आप लिवा लीजिये!”

“हाँ... इस बात पर कुछ सोच विचार कर लेते हैं,” किशोर जी ने कहा, “... इन दोनों की सगाई का एक प्रोग्राम कर लेते हैं!”

“जी भाई साहब... आप जब कहें?”

“नहीं नहीं... वो प्रोग्राम हमारे यहाँ होगा!” किशोर जी ने बड़े निर्णयात्मक तरीके से कहा, “इतने दिन हो गए... घर में कोई ख़ुशी वाला प्रोग्राम नहीं हुआ। ... इसलिए सोच विचार कर, अच्छे मुहूर्त में इन दोनों बच्चों की सगाई कर देंगे! ... इसी बहाने हम सभी को एक दूसरे के परिवारों से भी मिलने का हो जाएगा!”

“क्या कहते हैं भैया?”

“जैसा आपको उचित लगे बहन जी!” अशोक जी बोले।

“और शादी?” अजय से रहा नहीं गया।

“हा हा,” किशोर जी हँसने लगे, “सगाई... शादी... सब एक ही बात है!”

“भाई साहब?” अशोक जी समझे नहीं।

“अशोक भाई,” किशोर जी ने कहा, “कमल बेटा अपनी पढ़ाई पूरी करेगा! आप चिंता न करिए।”

“नहीं भाई साहब, कोई चिंता नहीं है!”

“माया बेटी का भी आगे पढ़ने का मन करे, तो पढ़ ले! हम पूरा सपोर्ट करेंगे!” सरिता जी बोलीं, “लेकिन, हमारे यहाँ लड़कियाँ... बहुएँ बाहर जा कर काम नहीं करतीं। भगवान की दया से संपन्न परिवार है... घर के लोगों की, बच्चों की देख रेख एक बड़ा काम है। हमारे यहाँ बहुओं को घर की आत्मा माना जाता है। ... आशा है, आप समझ गए होंगे!”

“बोलो बेटी?” अशोक जी ने कहा।

“आंटी जी,” माया धीरे से बोली, “पढ़ लूंगी, लेकिन मुझे भी घर ही सम्हालने का मन है...”

“तो फिर ठीक रहा!” अशोक जी ने कहा।

अजय बोला, “ये दोनों मिल तो सकते हैं न?”

“अरे हाँ! बिलकुल मिलें! एक दूसरे को जानें... समझें! जब जीवन साथ में बिताना है, तो जो अवसर एक दूसरे को जानने के मिलें, वो अवश्य लें!”

“बढ़िया!”

“देख बिटिया, तेरे पापा ने रामायण भेंट में दी है मुझे... तो तुझे ही प्रतिदिन इसका पाठ कर के सुनाना पड़ेगा हमें!” किशोर जी अपने ससुर बनने को लेकर बहुत उत्साहित प्रतीत हो रहे थे।

माया ने यह सुन कर अशोक जी की तरफ़ देखा।

“मुझे मत देखो बेटे,” उन्होंने हँसते हुए कहा, “तुम अब इस परिवार की हो।”

माया ने किशोर जी से कहा, “जी अंकल जी,”

“अंकल जी नहीं, मुझे भी पापा कह कर बुलाओ अब से बेटे,”

“और मुझे आंटी जी नहीं, मम्मी कह कर...” सरिता जी ने कहा।

“हाँ भई...” किशोर जी भी ठिठोली में शामिल हो गए।

“और अपने कमल भाई...” अजय भी इस खेल में शामिल हो गया, “आई मीन, जीजा जी को क्या कह कर बुलाएँ दीदी?”

“वो तो इन दोनों के बीच की बात है...” किरण जी भी इस खिंचाई में शामिल हुए बिना न रह सकीं।

“हा हा हा हा...” हँसी के ठहाकों से पूरा घर गुलज़ार हो गया।

अजय ने देखा - कमल और माया दीदी दोनों के होंठों पर शर्म वाली मुस्कान आ गई थी।

‘कैसे मासूम से हैं दोनों!’ तीस साल की उम्र वाले अजय ने सोचा, ... भगवान ने चाहा, तो दोनों खूब खुश रहेंगे! और इनके प्यार की मासूमियत भी बरकरार रहेगी...’


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सुबह की किरणें एक नई उत्साह , नई उर्जा और नई चेतना लेकर आई अजय के जीवन मे । सब कुछ नया इसलिए कहा क्यों की अजय को अधिकांशतः पुरानी चीजें बदल कर नए स्वरूप मे ढालना था ।
यह सुबह इसलिए भी अजय के लिए स्फूर्ति भरा रहा क्यों की माया और कमल का जीवन संवर गया । माया का सदैव के लिए फ्यूचर हसबैंड से नाता बनने से रह गया और कमल का आजीवन बैचलर रहने का संकल्प संभव न हो पाया ।
इस अपडेट से इस बात की सम्भावना भी प्रबल हो गई कि अजय को फ्यूचर मे टाइम ट्रेवल नही करना होगा , कम से कम तेरह वर्ष तो अवश्य ही ।
तेरह वर्ष बहुत अधिक होते हैं , अपनी जिंदगी संवारने के लिए और किसी और के जीवन मे तब्दील लाने के लिए ।

वैसे इस शुभ अवसर पर , इस वैवाहिक सम्बन्धित अवसर पर कमल का माया को बहन कहना समझ मे नही आया ।
आखिर कमल ने अपने मां-बाप को माया के बारे मे बहुत कुछ बता चुका था । अगर अशोक साहब इस रिश्ते पर पहल नही करते तो राणा साहब स्वयं इस रिश्ते की पहल करते । जब दोनो तरफ से हां जी तो अजय को किस बात की परेशानी !
खैर , रिश्ते की बुनियाद रखी जा चुकी है लेकिन शादी मे कुछेक चार - पांच साल बाकी है । यह काफी लंबा इंतजार है । शादी-ब्याह चट मंगनी पट ब्याह हो तब ही अच्छा लगता है , अगर जोड़े बालिग हो ।
खुबसूरत अपडेट अमर भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
 
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KinkyGeneral

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नटिन
इतर
मेहरे
इन तीन शब्दों की अच्छे से समझ नहीं आई भैया, कृपया अर्थ बता दीजिए।

और तो और, बदमाशी में कभी कभी वो उसको लात मार मार कर बिस्तर से नीचे गिरा देता - लेकिन बहाना ऐसा करता कि जैसे वो स्वयं सो रहा हो। उधर माया पूरी कोशिश करती कि “बाबू” की नींद में खलल न पड़े और वो आराम से सो सके। उसके खाने, पीने, पहनने, ओढ़ने का पूरा ध्यान रखती। स्कूल जाते समय की पूरी व्यवस्था रहती - उसके कपड़े प्रेस रहते, जूते पॉलिश रहते - सब कुछ व्यवस्थित!
यकीनन यह व्यवहार तो अत्यंत बुरा है, माया दीदी के मन को भी भीषण क्षति हुई होगी पर फिर भी उन्होंने किसी से कोई शिकायत नहीं की।
कहानी शुरू होते ही माया दीदी प्रिय किरदार बन गई हैं।

शरीर से वो अवश्य ही किशोर है, लेकिन अनुभव में तो वो काफ़ी आगे है! भविष्य से आया हुआ है वो!
काश ऐसा मौका सब को मिल पाता पर वो अलग बात है कि अधिकतर इसका दुरुपयोग ही होता।



बहुत ही सुंदर शुरुआत हुई है कहानी सफ़र की।🌸
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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इसे कालचक्र कहें या नियति अजय को मौका मिला फिरसे अपनी और अपनों की जीवन को संवारने के लिए
बेशक अजय ने बेहद दुख झेले हैं पर उसी दुख ने उसे यह एहसास भी दिलाया था रिश्तों की अहमियत l जिसका आपने किशोर काल में मान ना रख सका था l उस अपराध बोध के चलते अपने भाग्य से अपने ईश्वर से हमेशा प्रार्थना कर रहा था के काश अपनी गल्तियों को सुधारने का मौका मिल जाता l ईश्वर ने उसकी व्यथा सुनी और नियति पर भार छोड़ा और मौका फिरसे दिया l
अजय अब कमल और माया की जीवन को जोड़ कर अपनी पहली अपराध बोध पर विजय पा गया l आगे की चुनौतियाँ कैसी रहेंगी यह देखने के लिए मैं प्रतीक्षा रत हूँ
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति रही

कई लोगों के मन में यह कसक रह जाती है कि काश, वो अपनी गलतियों का सुधार कर पाते।
अजय अपनी "भूतपूर्व" पत्नी का सताया हुआ है, लेकिन वो उसके मन का मलाल नहीं है। उसको दुःख इस बात का है कि उसके कारण उसके पूर्वजों का कार्य मिट्टी हो गया।
इसलिए वो अपने पिता के लिए कुछ करना चाहता है। वो उनकी आँखों में अपने लिए गौरव देखना चाहता है।
(ताई) माँ को वैसा जीवन देना चाहता है, जिसकी वो हकदार थीं। इसलिए उनके बेटे का जीवन गर्क होने से बचाना चाहता है और माया दीदी के साथ की गई गलतियों को सुधारना चाहता है।
धन्यवाद मेरे भाई! आपकी नई प्रस्तुति भी रोचक लग रही है, लेकिन कुछ कहने से पहले दो तीन अपडेट पढ़ना चाहूँगा :)
 
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