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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


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Kala Nag

Mr. X
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अपडेट 18


अशोक जी से बातें कर के अजय ने सबसे पहले कमल को फ़ोन लगाया।

कमल भी अजय की पहल को जान कर भौंचक्क रह गया। लेकिन यह जान कर उसको राहत मिली कि माया के पापा को उनके सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं थी। उसके स्वयं के घर में अजय और माया को लेकर बड़े सकारात्मक विचार थे। कमल की माता जी माया को पसंद करती थीं। वो अपनी बहू ऐसी चाहती थीं जो गृह-कार्य में दक्ष हो, और उनके वंश को आगे बढ़ाने को इच्छुक हो। माया उनको इसलिए पसंद आती थी क्योंकि वो जानती थीं कि ये लड़की अवश्य ही पहले सड़क पर खेल तमाशे दिखाती थी, लेकिन वो काम वो अपने परिवार के पालन के लिए करती थी। अशोक जी के वहाँ आने के बाद से वो हर उस कला में निपुण हो गई थी, जो वो अपनी बहू में चाहती थीं।

माया का परिवार तो अच्छा था ही। किरण जी से बातों ही बातों में पता चल गया था कि अशोक जी अपनी जायदाद का आधा हिस्सा माया के नाम लिखने वाले हैं। मतलब, वो माया और परिवार में उसके स्थान को लेकर गंभीर भी थे। इससे भी उनके मन में माया को ले कर सकारात्मक विचार थे। यह सभी बातें कमल को मालूम थीं। वो जानता था कि अगर वो अपने माँ बाप से बात करेगा, तो शायद वो भी माया को ले कर खास विरोध न करें।

कमल से बात करके अजय को एक खालीपन सा महसूस होने लगा।

जब आप अपना मिशन पूरा कर लेते हैं तो एक संतुष्टि वाला भाव उत्पन्न होता है न? ठीक वैसा! अब कुछ करने को शेष नहीं था। उसने प्रयास कर के माया दीदी का जीवन खराब होने से बचा लिया था। संभव है कि उनकी शादी कमल से न हो, लेकिन उस कमीने मुकेश से तो नहीं ही होगी! प्रशांत भैया के मन में उसने कणिका के प्रति संशय भर दिया था। वैसे भी उसने माँ को चिट्ठी लिख कर कणिका के बारे में, और पापा की जीवन रक्षा के बारे में सब कुछ बता दिया था। अंततः, उसने पापा से कह कर एक बेहद नुक़सानदायक बिज़नेस डील न करने को मना लिया था।

और क्या बाकी था?

शायद कुछ भी नहीं...

यह विचार आते ही वो थोड़ा दार्शनिक सा महसूस करने लगा।

पुनः, वो अपने वयस्क जीवन (?) के बारे में सोचने लगा।

अगर वो - मतलब उसकी चेतना - अपने भूतकाल में आ गया है, तो उसके ख़ुद का कोई अस्तित्व है भी या नहीं? अगर वो ख़ुद ‘यहाँ’ है, तो ‘वहाँ’ कौन है? और अगर वो ‘वहाँ’ नहीं है, तो माँ के साथ कौन है? यह सोचते ही उसका शरीर पसीने से नहा गया।

बाप रे! भूत, भविष्य, और वर्तमान के खेल में वो ऐसा फँसा है कि अनजाने ही उसने माँ को भीषण तकलीफ़ में झोंक दिया है। बेचारी का क्या हाल हो रहा होगा अपनी एकलौती औलाद को ‘मृत’ पा कर! कैसे बीता होता उनका आज का दिन? रो रो कर उनका बुरा हाल हो गया होगा! कैसे करेंगी वो सब कुछ?

फिर उसके मन में विचार आया कि वो वैसे भी आज सोएगा तो कल अपने वयस्क अवतार में आँखें खोलेगा। आज उसने जो प्रयास किए हैं, उसके कारण उसका भविष्य बदल जाएगा - उसको ऐसी उम्मीद तो थी।

लोग सोचते हैं कि भाग्य बदलता नहीं! कैसे नहीं बदलता?

वो भविष्य के ज्ञान को अपने भूतकाल में लाया है। ऐसे फीडबैक के कारण उसका भविष्य कैसे नहीं बदलेगा? अवश्य बदलेगा! अगर कुछ बदलना ही नहीं संभव था, तो फिर ईश्वर ने उसको यह अवसर दिया ही क्यों? उनके पास व्यर्थ समय थोड़े ही है कि किसी से यूँ ठिठोली करें? मतलब, उसके प्रयासों का कुछ प्रभाव तो पड़ेगा!

‘तो बहुत संभव है कि कल पापा भी हों, और माँ भी! ... शायद रागिनी नाम की दीमक भी न लगी हो उसके जीवन में!’

तो कल जब वो उठेगा, तो कहाँ उठेगा? पुणे में या फिर दिल्ली में!?

रोमाँच के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।

रात का सन्नाटा गहराने लगा था।

अजय के खुद के मन की दशा अब रात के सन्नाटे जैसी ही हो गई थी। ख़ामोश, गहरी, और अँधेरी!

इतने में,

“बाबू?” माया ने उसके कमरे में प्रवेश किया और बहुत हल्के से पुकारा।

“हाँ दीदी?” वो चौंका।

“सोए नहीं?”

उसने एक गहरी साँस भरी, “नींद नहीं आ रही है दीदी,”

“ऐसे कुर्सी पर बैठे रहोगे, तो नींद कैसे आएगी?” माया ने उसका हाथ पकड़ा और उठने को उकसाते हुए बोली, “चलो... उठो!”

अजय मुस्कुराया - माया दीदी उसके ऊपर अपना अधिकार बड़े ही मीठे तरीके से दर्शाती थीं। वो कोई धौंस नहीं दिखाती थीं। लेकिन कुछ बात तो थी ही उसके व्यवहार में, कि वो उनको मना नहीं कर पाता था।

“आओ... बेड में आओ!”

अजय ने बिस्तर में लेटने से पहले अपने कपड़े उतार दिए। उसको नग्न देख कर माया मुस्कुराई। यह तथ्य उससे छुपा हुआ नहीं था कि अजय नग्न हो कर सोता था। कभी कभी वो स्वयं भी नग्न हो कर सोती थी। ऐसी कोई अनहोनी सी बात नहीं थी यह।

जब अजय बिस्तर में लेट गया, तो माया ने उसको चादर ओढ़ा दी और उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी।

“दीदी?”

“हम्म?”

“कुछ देर बैठो मेरे पास?”

माया ने बिना कुछ कहे ‘हाँ’ में सर हिलाया और उसके बगल लेट गई।

“बाबू?”

“हम्म?”

“तुम... अम्म... उनके बारे में सीरियस हो न?”

“किसके?” अजय को बखूबी पता था कि माया किसके बारे में पूछ रही है। लेकिन बहन से थोड़ी ठिठोली तो की ही जा सकती है।

“उनके,” माया ने इस शब्द पर ज़ोर दिया, “... तुम्हारे दोस्त के,”

“अरे वाह वाह पतिव्रता दीदी मेरी! होने वाले हस्बैंड का नाम भी नहीं ले सकती?” अजय ने हँसते हुए छेड़ा, “दीदी, मैंने पापा से भी कह दिया है सब कुछ !”

“क्या?” अब चौंकने की बारी माया की थी।

“हाँ... देखो, मुझे घुमा फिरा कर बातें करना समझ में नहीं आता। वो... मुकेश... मुझको सही नहीं लगा।”

“क्यों बाबू?” माया ने पूछा, “देखो, मुझे तुम्हारी बात पर कोई डाउट नहीं है, लेकिन मैं भी जानना चाहती हूँ कि किसी को कैसे परखूँ!”

“दीदी, न तो उसने तुमको देखा, और न ही कभी हम कभी उससे मिले!” अजय ने समझाया, “ऐसे में वो क्यों आया? बस इसलिए क्योंकि पापा के पास पैसे हैं। उसको तुम्हारी क्वालिटीज़ से कोई लेना देना नहीं है। बस, पैसे चाहिए।”

“हम्म्म...”

“शादी उससे करो, जो तुमको चाहे! तुमसे प्रेम करे!”

इस बात पर शायद माया को कमल की याद हो आई। उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई।

“एक्साक्ट्ली! देखो न... कमल का सोच कर तुम कैसे मुस्कुराने लगी!”

“धत्त…”

“नहीं सोच रही थी उसके बारे में?”

माया झूठ नहीं कह सकती थी, “हाँ,” उसने शर्माते हुए कहा, “सोच रही थी!”

फिर पापा की बात सोचते हुए बोली, “पापा ने क्या कहा?”

“पापा को भी कमल पसंद है। उन्होंने कहा कि कल वो राणा साहब से बात करेंगे!”

“बाप रे!”

“क्या बाप रे?” अजय बोला, “देखो दीदी, पापा ने मुझे समझाया - और मुझे लगता है कि वो सही भी हैं - कि सभ्य घरों के बच्चे अगर अपने माँ बाप के आशीर्वाद से मिलें, तो बेहतर है। कम से कम हमको मालूम भी रहेगा, और हमारे परिवार इन्वॉल्व्ड भी रहेंगे!”

माया कुछ बोली नहीं। लेकिन उसके गालों पर शर्म की हल्की सी लालिमा आ गई।

अजय कह रहा था, “अगर कमल के पेरेंट्स भी तुम्हारे और कमल के रिश्ते के लिए मान जाते हैं, तो तुम दोनों बिना हिचक एक दूसरे से मिल सकते हो।”

माया की नज़रें शर्म से झुक गईं।

“एक दूसरे को जान लो दोनों... वैसे मुझे लगता है कि तुम भी कमल को बहुत पसंद करोगी। अच्छा है वो!”

“अगर वो तुमको ठीक लगते हैं, तो ठीक ही होंगे,” माया ने धीमे से कहा।

“लेकिन?”

“लेकिन, वो मुझसे छोटे भी हैं न!”

“छोटा होने पर भी उसको इतना रेस्पेक्ट तो दे ही रही हो!” अजय मुस्कुराया, “फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है?”

“बाबू... समझा करो न!”

“हा हा हा... हाँ, छोटा है, लेकिन बहुत नहीं। चार साल, बहुत हुआ तो!”

“पढ़ भी तो रहे हैं।”

“मेरे साथ ही ट्वेल्फ्थ पूरा हो जाएगा कमल का।”

“फिर भी!”

“दीदी देखो, सगाई तो अभी भी हो सकती है। हाँ, शादी में समय लग सकता है।” अजय ने शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम दोनों की शादी अभी नहीं हो सकती।”

“हैं? मतलब?”

“मतलब यह कि तुम दोनों शादी कर सकते हो... हाँ, यह ज़रूर है कि ये शादी वॉइडेबल है। मतलब अगर तुम या कमल चाहो, तो अमान्य कराई जा सकती है ये शादी। लेकिन, वो तो कोई भी शादी कराई जा सकती है!”

“और अगर केवल सगाई हो... मतलब शादी उनके इक्कीस के होने पर हो, तो?”

“फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है!” अजय बोला, “दीदी, क्या बात है? शादी करने की इच्छा जाग उठी है क्या?”

“धत्त, बदमाश है तू!”

“लकी है दोस्त मेरा!” अजय अभी भी माया की खिंचाई कर रहा था, “दीदी, तुम खूब बच्चे करना! कमल को बच्चे बहुत पसंद हैं!”

“पिटेगा तू अब, मेरे हाथों!”

“हाँ हाँ... हस्बैंड मिल गया, अब भाई की क्या वैल्यू!”

इस बात पर माया ने अजय का कान पकड़ कर खींचा और उसके गालों पर चुम्बन दिया।

“दोबारा ये बोला न, तो तुझे ऐसे ही कान पकड़ कर, ऐसे ही नंगू पंगू ले जा कर पापा और माँ से भी पिट्टी लगवाऊँगी। देख लेना,”

“आई लव यू दीदी!”

“हाँ...” वो बोली, “पहले तो रुला देता है, फिर लीपा-पोती करता है।”

“सॉरी दीदी! मज़ाक था सब!”

“ऐसा गन्दा मज़ाक मत किया कर मेरे साथ,”

दोनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर रहे, फिर माया ने ही पूछा,

“बाबू, कल रात सोते समय तुम ठीक तो थे न?”

“हाँ... क्यों? ऐसा पूछा तुमने?”

“नहीं...” माया ने हिचकिचाते हुए कहा, “वो... बात ये है कि तुम बहुत देर तक साँस नहीं ले रहे थे।”

“तुमको कैसे पता?”

“कल पानी पीने उठी थी रात में... इतना तो पता चलता ही है न!”

“हैं? पानी पीने से ये कैसे पता चलता है?”

वो मुस्कुराई, “तुम ख़र्राटे लेते हो न!”

“मैं?” अजय ने अविश्वास से कहा, “मैं ख़र्राटे लेता हूँ? ... कुछ भी!”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा,

“हाँ! कल रात मैं जब उठी, तो कमरे से तुम्हारे ख़र्राटे सुनाई नहीं दे रहे थे। मैंने कान लगाया, और जब देर तक सुनाई दिए तो कमरे में आई।”

“मैंने घबरा कर तुमको थोड़ा हिलाया...” माया के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं, “तब भी तुम नहीं उठे! तुम्हारी साँस भी नहीं चल रही थी। मैं भाग कर माँ को बुलाने ही वाली थी कि अचानक से ही तुम फिर से साँस लेने लगे!”

“फिर क्या दिक्कत है दीदी?” अजय ने थोड़ा सतर्क हो कर कहा, “साँस चल तो रही है न!”

“ऐसे मत बोलो बाबू,” माया की आँखों में आँसू आ गए, “तुमको नहीं पता कि मुझे कितना डर लगता है ये सब सोच के भी! ... और फिर... और फिर... माँ की एक ही निशानी हो तुम...”

कहते कहते माया का गला भर आया।

“ओह्हो दीदी! तुम भी न!” अजय ने बड़े प्यार से माया के गालों को अपनी हथेलियों में भर लिया, “मैं एकदम हट्टाकट्टा हूँ! बिलकुल तंदरुस्त! शायद कल रात बहुत गहरा सो गया होऊँ! जैसे मेडिटेशन के समय होता है न... वैसे!”

“पक्का कोई गड़बड़ नहीं है न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“और कभी भी तुमको कोई दिक्कत होगी, तो मुझको बताओगे न?”

“हाँ दीदी! पक्का!”

“ठीक है!”

“दीदी, अब सो जाओ,” वो बोला, “कल कमल से मिलने चलेंगे...”

अजय ने कह तो दिया, लेकिन वो खुद भी नहीं जानता था कि कल क्या होगा।

अगर मिशन पूरा हुआ है तो कल एक नया जीवन मिलने वाला है उसको!


**
भाई सस्पेंस बहुत भारी पड़ रहा है
ऐसा लग रहा है जैसे
यही रात अंतिम यही रात भारी
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अपडेट 19


अगली सुबह अजय सुबह तड़के, कोई साढ़े चार बजे ही उठ गया।

रात में सोते समय वो बेचैन सा था। भविष्य को ले कर जब चिंता दिमाग में घर बना लेती है, तो चैन आये भी तो कहाँ से? बेचैनी से बचने का ब्रह्मास्त्र था माँ के आँचल में सोना। जब एक घण्टा करवटें बदलने से भी नींद नहीं आई अजय को, तो वो उठ कर माँ के पास चला गया। माँ की ममता भरी गोद में बड़ी ही सुखभरी नींद आ गई उसको। सपने आ तो रहे थे, लेकिन कोई असामान्य से नहीं।

आँख खुलते ही सबसे पहला विचार जो उसके मन में आया वो यह था कि वो कहाँ जगा है? वर्तमान में, या फिर भूतकाल में!

चार बजे अँधेरा ही रहता है, लिहाज़ा कमरे की व्यवस्था देखने और समझने में कुछ समय लग गया। फिर भी यह समझ में आ गया कि वो अभी भी ‘भूतकाल’ ही में है। न तो उसका शरीर बदला था और न ही और कुछ। वैसा ही ऊर्जावान युवा शरीर!

मतलब दो बातें तो अब साफ़ हो गई थीं -

एक : उसका वयस्क संस्करण शायद अब शेष नहीं बचा था। इस कारण से अब उसको अपने बीत चुके वर्तमान के बारे में सोचने की या चिंता करने की आवश्यकता नहीं थी। अब उसको शायद किशोर बन कर ही जीना है, इसलिए वर्तमान पर ध्यान देना अनिवार्य है। भविष्य अपने आप स्वयं को संवार लेगा।

दो : अगर ये पहली बात सच है, तो उसने डर के मारे थोड़ी जल्दबाज़ी कर दी। लेकिन वो करता भी तो क्या? प्रजापति जी ने यह तो बताया नहीं न कि उसको कब तक की या कितनी मोहलत मिली है। वो करता भी तो क्या? वैसे भी, अगर दीदी और भैया के जीवन में उसकी जल्दबाज़ी के कारण कोई अच्छे बदलाव जल्दी आ जाते हैं, तो क्या परेशानी है?

वो मुस्कुराया।

‘नई ज़िन्दगी है भाई ये!’ उसने सोचा, ‘शायद ही कभी किसी को मौका मिला हो अपनी ज़िन्दगी बदलने का। उसको मिला है। जाहिर सी बात है कि ईश्वर भी जानते हैं कि भविष्य बदले जा सकते हैं। इसीलिए तो उन्होंने उसको ये मौका दिया है।’

माँ को देखा - वो अभी भी गहरी नींद में थीं। उनको उठने में, उनकी दिनचर्या के अनुसार अभी भी कोई आधा पौन घंटा शेष था। दीदी और माँ एक साथ ही उठती थीं - यह उसको पता था। साढ़े सात बजे तक नाश्ता और टिफ़िन लगभग तैयार हो जाता था, जिससे वो और पापा समय पर ऑफ़िस जा सकें।

‘बाप रे!’ उसने सोचा, ‘माँ और दीदी - दोनों कैसे मशीन की तरह काम करती हैं!’

पहले वाला अजय इन दोनों की मेहनत और लगन की सही तरीक़े से प्रशंसा नहीं कर पाता था। लेकिन बड़े होने पर उसको समझ में आया कि घर के रोज़मर्रा के काम में कितना श्रम लगता है! हर रोज़, बिना रुके, बिना अवकाश लिए, यह सब करना - बहुत कठिन काम है!

वो सतर्क हो कर बिस्तर से उठा कि माँ की नींद कहीं टूट न जाए।

उठ कर बाहर बंगले के प्रांगण में आया।

बाहर मनोहर भैया बैठे हुए ऊँघ रहे थे - या शायद बैठे बैठे सो रहे थे।

मनोहर भैया घर के चौकीदार थे। अशोक जी ने उनको अपने गाँव से यहाँ ले आया हुआ था, कि चौकीदारी के बहाने कुछ कमाई हो जाएगी उनकी। गाँव में उनकी कभी एक मामूली सी खेती थी, जो क़र्ज़ चुकाने के मद में व्यव हो गई थी। लेकिन वो एक ईमानदार और बहुत मेहनती आदमी थे, इसीलिए अशोक जी उनको दिल्ली लिवा लाये थे। सभी जानते थे कि वो रात में चौकीदारी करते हुए सो जाते हैं, लेकिन इस बात से उनसे कोई शिकायत नहीं करता था। कोई भी आदमी चौबीसों घंटे काम नहीं कर सकता। वो घर के कई सारे काम कर देते थे और रात में कुछ समय चौकीदारी करते। उनके रहने के लिए एक छोटा सा कमरा बंगले के प्रांगण में ही बना हुआ था। अकेले इंसान थे - उनकी कभी शादी ही नहीं हुई - इसलिए उनका गुजरा बढ़िया चलता था। शादी इसलिए नहीं हुई, क्योंकि जवानी में उन्होंने किसी गुरु के समीप ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। बाद में कभी आवश्यकता नहीं महसूस हुई उनको शादी ब्याह करने की।

इस घर के बिखरने का उनको असीम दुःख हुआ था, लेकिन मनोहर भैया जैसा व्यक्ति कर भी क्या सकता था? रागिनी के ताप से वो भी न बच सके! उसने उनके ख़िलाफ़ भी केस किया था, लेकिन वो इतना खोखला और इतना झूठा केस था कि वो बच गए। पुलिस ने लिखने के साथ ही ख़ारिज़ कर दिया। यही गनीमत थी। जेल में अजय और माँ से मिलने वो आया करते थे, लेकिन बिना कुछ कहे बस फ़फ़क फ़फ़क कर रोते ही थे। इसलिए एक दिन माँ ने उनको आने से मना कर दिया। अजय और माँ - दोनों को पता नहीं था, लेकिन घर से बेदखल कर दिए जाने के बाद, वो जेल के पास ही एक फैक्ट्री में कामगार मजदूर बन गए थे। एक दिन दोनों की रिहाई हो गई, और मनोहर भैया पीछे ही रह गए।

एक औरत ने सब कुछ तबाह कर दिया था! कितने ही जीवन उसने बर्बाद कर दिए थे उसने!

अजय ने देखा, गेट के सामने दो अखबार पड़े हुए थे। उसने दोनों अखबार उठा कर आज की तरीख पढ़ी - दस जुलाई उन्नीस सौ पंचान्नवे! हाँ - आज भी वो तेरह साल पहले ही था। शायद अब यही उसकी सच्चाई है… यही उसका जीवन है! हाँ थोड़ी कोशिश करनी पड़ेगी, लेकिन यह ईश्वर प्रदत्त एक दूसरा अवसर है अपना और अपने परिवार का जीवन बेहतर बनाने का!

अब उसके मन में दृढ़ता भी आ गई कि उसको क्या करना है!

चूँकि अभी कोई जगा नहीं था, इसलिए वापस घर में आ कर उसने अपने लिए एक इंस्टेंट कॉफ़ी बनाई और अखबार के फाइनेंसियल पेज ले कर अध्ययन करने लगा। वो बड़े चाव से देर तक उसकी ख़बरों को पढ़ता रहा। उसके समसामयिक मित्रों में से कईयों ने केवल नौकरी को ही अपना सहारा नहीं बनाया था। अनेकों ने शेयर मार्किट में पैसे निवेश किए थे। और उनमें से कई लोगों को अच्छा लाभ मिला था। लिहाज़ा, सीखने के लिए बहुत कुछ था। जब अशोक जी वहाँ आये तो उसको फाइनेंसियल पेज पढ़ते देख कर अचंभित रह गए। घर में केवल वो ही फाइनेंसियल न्यूज़ पढ़ते थे। और अजय ने तो उस विषय में कभी भी कोई रूचि ही नहीं दिखाई।

“क्या बात है बेटे! आज फाइनेंसियल न्यूज़ पढ़ रहे हो?”

“ओह, गुड मॉर्निंग पापा! जी, सोच रहा था कि आगे चल कर मैं भी आपकी आपके बिज़नेस में हेल्प करूँगा... इसलिए इन सब बातों की नॉलेज होना भी बहुत ज़रूरी है!”

“हा हा! हाँ हाँ, बिलकुल! क्या कुछ एडवाइस है मेरे लिए?” उन्होंने यूँ ही, बातचीत करने के गरज से पूछा।

“अभी तो नहीं! लेकिन यह सब पढ़ कर लगा कि आपकी हेल्प की ज़रुरत है!”

“हाँ, बोलो?”

“उम्... पापा, मैं सोच रहा था कि मैं स्टॉक्स में इन्वेस्ट करूँगा!”

“ओह?”

“जी पापा! कॉलेज की लाइब्रेरी में एक दो किताबें पढ़ीं हैं तो लगा कि स्टॉक्स में इन्वेस्ट करना चाहिए मुझे!”

“वो क्यों?”

“अभी मैं ट्वेल्फ्थ में हूँ... बाई इन्वेस्टिंग, आई वांट टू क्रिएट सम फ्यूचर वेल्थ फॉर मी!”

“हम्म्म लेकिन तुम अभी तक अपनी पॉकेट मनी बैंक में जमा करते थे न?”

“हाँ... आई विल इन्वेस्ट आल दैट इन टू स्टॉक्स नाउ!”

“ओके!”

“आप मेरी हेल्प करेंगे?”

“हाँ बोलो? कैसे?”

“आप मेरा एक डीमैट अकाउंट खुला दीजिए अपनी गार्जियनशिप में!”

“ओके! गुड आईडिया! कल कॉलेज से सीधे मेरे ऑफिस आ जाना। ... वहाँ मैं हमारे बैंक के रिलेशनशिप मैनेजर को बुला लूँगा।”

“थैंक यू पापा!”

“यू आर मोस्ट वेलकम बेटे,” अशोक जी गर्व से बोले, “मुझे अच्छा लगा कि तुम इन सब बातों को ले कर सीरियस हो गए हो!”

“पापा, मैं हमेशा ही बच्चा नहीं रह सकता न!” वो भी मुस्कुराते हुए बोला।

“हम्म्म,” वो हँसते हुए बोले, “भाभी को पसंद नहीं आएगा तुम्हारा ये मैच्योर रूप!”

“मम्मी लोगों के लिए बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं…”

“बच्चों से याद आया,” वो बोले, “आज राणा साहब से मिलने चलना है!”

“हम सब को?”

“हम सब को।”

“पापा,” वो थोड़ा झिझकते हुए बोला, “थोड़ा जल्दी नहीं हो रहा है सब कुछ?”

“अरे! कल तक तो जल्दी नहीं था! तो अब क्यों?” अशोक जी ने कहा, “देखो बेटे, हमको कमल और उसकी फॅमिली से बात करनी चाहिए। ये ठीक है। माया बिटिया के लिए भी ठीक है।”

“आई नो पापा!”

“दोनों को बिना दोनों परिवारों के परमिशन के, मैं तो नहीं मिलने दूंगा!”

“क्यों पापा?”

“तुम दोनों की गहरी दोस्ती है। राणा साहब और मेरी अच्छी दोस्ती है। बहन जी और भाभी भी अच्छी सहेलियाँ हैं। वो माया बेटी को भी खूब पसंद करती हैं। मैं नहीं चाहता कि किसी मूर्खता के कारण हम दोनों परिवारों में जो अच्छा है, वो बिगड़ जाए!” अशोक जी ने समझाया, “रिश्ते ट्रस्ट और रिस्पेक्ट पर बनाए जाते हैं, तो चलते हैं। … अगर वो माया बिटिया और कमल का साथ एक्सेप्ट कर लेते हैं, तो सब बढ़िया। नहीं तो मैं ये सूरत ज़रूर चाहूँगा कि कल उनके सामने सर उठा कर चल सकूँ!”

“यस पापा,” अजय बोला, “आपका सर झुकने नहीं देंगे हम! आप जो सोच रहे हैं, वो सही है!”

“थैंक यू बेटे!”

“कब चलना है वहां?”

“सवेरे सवेरे! से, नाइन ओ क्लॉक? कल रात में मैंने राणा साहब से बात करी थी। उनको बताया था कि एक बहुत ही पर्सनल बात करनी है उनसे और बहन जी से।”

“समझ गए होंगे!”

“न भी समझे हों, तो कुछ ही देर में उनको पता चल ही जाने वाला है।” उन्होंने गहरी साँस भरी।

अजय समझ गया कि पापा थोड़े चिंतित हैं, “पापा, प्लीज़ डोंट वरी! मुझे लगता है कि सब अच्छा होगा।”

“आई होप सो टू, बेटे! आई होप सो टू…”

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अपडेट 20


पापा के सामने ज़रूर ही बड़ी बड़ी बातें कर ली हों अजय ने, लेकिन चिंता में वो भी था।

आज पहली बार हुआ था कि कमल के घर जाते समय अजय का दिल तेजी से धड़क रहा था। आज तक वैसा नहीं हुआ। अजय जिस कमल को अपनी तीस साल की उम्र तक जानता था, वो कमल माया दीदी को हमेशा चाहता रहा था। वो उनसे कह नहीं पाया... कहने का मौका ही नहीं मिला। वो दोनों एक दूसरे के बारे में जान भी पाते, वो अवसर ही नहीं बने! लेकिन वो सब आज बदलने वाला था शायद!

कमल के घर जाने का आशय सभी को मालूम था, इसलिए वहाँ जाने के लिए ढंग से तैयारी की गई थी। अशोक जी कुछ दिनों पहले अयोध्या गए हुए थे, और वहाँ एक मंदिर से उन्होंने अपने पढ़ने के लिए रामायण ली थी। राणा साहब को देने के लिए इससे बेहतर उपहार उनको समझ में नहीं आया। उनकी पत्नी सरिता जी के लिए कंजीवरम रेशमी साड़ी पैक की गई। और अंततः, आज के मुख्य व्यक्ति, कमल के लिए स्विस वॉच!

बिज़नेस होने के बावज़ूद अशोक जी इतने सीधे थे कि वो उपहारों समेत कमल के घर में प्रवेश करने लगे। जैसे उनको इस लाग लपेट वाली दुनिया की समझ ही न हो! अजय शायद कुछ बोलता, लेकिन उसने इस तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया। उसके खुद के दिमाग में अनेकों बातें चल रही थीं। एक अबूझ सी घबराहट महसूस हो रही थी उसको। विधुर और विधवा होने के कारण अशोक जी और किरण जी साधारण कपड़े ही पहनते थे। आज भी वैसा ही था। लेकिन माया ने अच्छे कपड़े पहने थे - उसने क़सीदा किया हुआ रेशमी कुर्ता, चूड़ीदार शलवार, और मैचिंग दुपट्टा पहना हुआ था। सामान्य सी लड़की थी, लेकिन इस समय वो बहुत सुन्दर और सलोनी सी लग रही थी।

किशोर राणा जी - कमल के पिता - पारम्परिक रूप से किराना व्यापारी थे। बड़ा बिज़नेस था उनका, और एक संपन्न परिवार था। अशोक जी भी कोई कम धनाढ्य नहीं थे। लेकिन उनके मुक़ाबले कम थे। राणा साहब एक पारम्परिक खानदान से थे। लिहाज़ा पारम्परिक मूल्यों में उनको बहुत विश्वास था। उनके खानदान के किसी भी घर में स्त्रियाँ बाहर काम नहीं करती थीं। बहुत अधिक पढ़ी-लिखी भी नहीं होती थीं। लेकिन सभी स्त्रियाँ गृह-कार्य में अभूतपूर्व रूप से दक्ष होती थीं, और सभी अपने अपने बच्चों को पक्के संस्कार देती थीं। किशोर जी के तीन और भाई थे - लेकिन सभी का अपना अपना अलग अलग व्यापार था। सभी अलग घरों में रहते थे, और शायद इसीलिए चारों परिवारों के बीच सौहार्दपूर्ण और मधुर व्यवहार बना हुआ था।

किशोर और सरिता राणा जी ने बड़ी गर्मजोशी से सभी का स्वागत किया। सरिता जी, किरण जी और माया से गले लग कर मिलीं। कमल भी आया। वो अन्य सभी से तो सामान्य तरीके से ही मिला, लेकिन माया से मिलने में आज उसके अंदाज़ में थोड़ी हिचक दिखी। माया में भी...

“नमस्ते... दीदी,” उसने थोड़ा अटकते हुए कहा।

“नमस्ते कमल...” उसके द्वारा स्वयं को ‘दीदी’ कहे जाने पर माया खुद ही अचकचा भी गई और शर्मा भी गई।

जब तक किसी बात से अनजान रहो, तब तक सब ठीक रहता है। लेकिन जब आपके सामने वो बात खुल जाती है, तब सामान्य बने रहना कठिन होता है। इसीलिए गूढ़पुरुषों का काम बहुत कठिन होता है। सीधे लोगों, जैसे माया और कमल, के लिए यह और भी अधिक कठिन होता है।

कोई आधे घंटे तक इधर उधर की बातें होती रहीं। शायद अशोक जी कोई भूमिका बांधना चाहते थे।

उन्होंने बातों ही बातों में उनको अपने अयोध्या जाने की बात कही और फिर उपहार में लाई हुई रामायण भेंट में दी। राणा साहब ने बड़े ही हर्ष से वो भेंट स्वीकार करी और अशोक जी को कई बार धन्यवाद दिया। अशोक जी अभी भी थोड़ा हिचक रहे थे। शायद वो बातों का कोई ऐसा सूत्र खोलना चाहते थे कि कमल और माया के रिश्ते की बात चल सके। लेकिन फिलहाल कोई सूत्र नहीं खुल रहा था।

अजय बहुत देर से इस नाटक को होते देख रहा था। आख़िरकार तंग आ कर अजय ने ही बम फोड़ दिया,

“अंकल जी,” उसने किशोर जी से कहा।

“हाँ बेटे,”

“वो... वो पापा जी आपसे एक बात कहना चाह रहे थे!”

किशोर जी मुस्कुराए, “कहिए न भाई साहब! आपने कल फ़ोन पर कहा भी था कि कोई बहुत ही पर्सनल सी बात कहनी है। कहिए न... क्या है आपके मन में?”

अशोक जी अब बहाना नहीं बना सकते थे।

“भाई साहब... एक सेंसिटिव सी बात है।”

“हाँ कहिये?”

अशोक जी ने गहरी साँस भरी, “जी... आज हमारे यहाँ आने का कारण यह था कि हम आपके बेटे कमल के लिए अपनी बेटी माया का रिश्ता लाये हैं...”

शायद किशोर जी भी बहुत देर से इस बात के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे थे, इसलिए अब उनसे अपनी हँसी दबाए न दब सकी।

वो ठठाकर हँसने लगे,

“भाई साहब... हा हा हा...” उन्होंने हँसते हुए कहा, “इतनी अच्छी सी बात कहने में आप इतना संकोच क्यों कर रहे थे?”

“जी? मतलब?”

“अशोक भैया, किरण दीदी,” सरिता जी बोलीं, “माया बिटिया तो हमको पसंद ही है हमेशा से! हम भी तो यही चाहते थे...”

“बहन जी...?” अशोक जी को समझ नहीं आया।

“जी हम ये कहना चाहते हैं कि आप जो रिश्ता लाये हैं, वो हमारे सर आँखों पर!” किशोर जी ने कहा, “ये बात तो हम ही आपसे कहना चाहते थे, लेकिन संकोच के मारे कह न सके!”

“ओह भगवान!” अशोक जी ने ईश्वर की तरफ हाथ जोड़ दिए, “भाई साहब... सच में, विश्वास नहीं हो रहा है!”

“अरे, ऐसा न कहिये! माया बेटे?”

“जी अंकल?”

माया इतनी देर से सकुचाती हुई सी, इस अभूतपूर्व घटनाक्रम को होते हुए देख रही थी। उसको कभी मालूम भी नहीं होगा, कि इस घटना ने उसका जीवन कैसा भिन्न कर दिया था! उसका जीवन दुःख और अवसाद भरे रास्ते पर चलने के बजाय अब आनंद और पूर्ति से भरे रास्ते पर चल दिया था।

“इधर आओ... हमारे पास...”

माया सकुचाती हुई अपने सोफ़े से उठी और किशोर जी के बगल आ कर बैठ गई! किशोर जी ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा,

“बेटे, तुम हमको तो पसंद थी हमेशा से ही। हम और श्रीमती जी अक्सर बातें करते थे कि माया बिटिया जैसी बहू हमारे घर आये। संकोच के मारे हम कुछ कह नहीं पाते थे किसी से भी! और तुम हमारे लाडले को भी पसंद हो, वो आज ही इस नालायक ने बताया!” वो हँसने लगे, “पहले बता देता तो हम ही आ जाते भाई साहब से तुम्हारा हाथ माँगने!”

माया ने बेहद संकोच से, और शर्माते हुए कमल की दिशा में देखा।

वो भी शर्माता हुआ ही नीचे देख रहा था।

“भाग्यवान,” किशोर जी ने कमल की माँ से कहा, “तो अब हम आज का प्रोग्राम कर लें?”

“हाँ,” कह कर कमल की माता जी उठने लगीं।

“सरिता,” किरण जी बहुत देर बाद कुछ बोलीं - वो मन ही मन में आह्लादित थीं कि कैसे अचानक से ही उनकी प्रिय बेटी के लिए इतनी खुशियां उनकी झोली में आ गिरीं - “कहाँ जा रही हो?”

“तुम भी आओ न दीदी...” कमल की माँ बोलीं, “तुम नहीं बहू...” उन्होंने सोफ़े से उठती हुई माया को देख कर कहा, “ये हम समधिनों के बीच की बात है! तुम बैठो।”

अजय ठठाकर हँसने लगा।

उसका दिल अचानक से ठंडक पा गया। कैसे थोड़ी सी ही हिम्मत कर लेने से कितने अलग से परिणाम आते हैं। वो उठ कर कमल के पास आया और उसकी पीठ थपथपा कर बोला,

“दिल खुश हो गया मेरे भाई! बहुत बहुत बधाइयाँ!”

कमल बोला, “थैंक यू सो मच मेरे भाई! तुमने जो किया, वो इम्पॉसिबल था यार! ... मैं कैसे तुम्हारा शुक्रिया करूँ...”

“... मेरी दीदी को वो सारी खुशियाँ दे कर, जो तुम उसको दे सकते हो!” अजय ने कहा - फिर आगे जोड़ते हुए बोला, “... जीजा जी...”

उसकी बात पर किशोर जी और अशोक जी दोनों आनंद से हँसने लगे।

उधर कमल ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया और माया की तरफ़ देखा।

माया ने सर नीचे कर रखा था। लेकिन इतना तो स्पष्ट था कि ऐसी अभूतपूर्व घटना से वो भाव-विभोर हो गई थी।

“दीदी,” अजय ने उसको छेड़ते हुए कहा, “कुछ तो बोलो!”

वो बेचारी क्या ही बोलती? भावनातिरेक में एक शब्द भी नहीं फूट रहे थे। दो दिनों में ही उसको इतनी खुशियाँ मिल गई थीं कि उसको समझ नहीं आ रहा थी कि उनको कैसे सम्हाले वो!

और दो पलों में ही वो हो गया जैसा भावातिरेक में होता है - माया की आँखों से आँसू निकल पड़े।

“दीदी,” अजय लपक कर अपनी बहन के पास गया और बोला, “क्या हो गया? नॉट हैप्पी?”

माया ने ‘न’ में सर हिलाया।

“अरे! तुम खुश नहीं हो?” अजय आश्चर्य से बोला, “... तुमको कमल पसंद नहीं!”

माया समझ रही थी कि सब कुछ जानते हुए भी अजय उसको छेड़ रहा है। सुबकते हुए वो मुस्कुराने की कोशिश करने लगी। और जब कुछ समझ नहीं आया, तो उसके सीने में मुँह छुपा कर उसने झूठ-मूठ का एक मुक्का मारा उसको।

“आई लव यू, दीदी!” अजय ने उसको प्यार से अपने सीने में भरे हुए कहा।

“थैंक यू बाबू,” माया बुदबुदाते हुए बोली, “... थैंक यू!”

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तब तक किरण जी और सरिता जी दोनों वापस बैठक में आ गईं। उन दोनों के हाथों में बहुत से गिफ़्ट पैकेट्स थे। वो सभी पैकेट्स सेंट्रल टेबल पर रख दिए गए। उनमें से गहने का एक डब्बा निकाल कर सरिता जी ने माया को अपने पास आने को कहा। जब माया उनके पास आई, तो उन्होंने डब्बा खोल कर, उसमें से सोने की एक ज़ंजीर निकाल कर माया के गले में सजा दी।

“अब तुम हमारी हो गई हो, माया बेटे...” उन्होंने लाड़ से कहा, और फिर सभी को समझाने की गरज से आगे बोलीं, “अशोक भैया, किरण दीदी... बाकी लोग लड़कों का रोका करते हैं, लेकिन हमने तो बिटिया का रोका कर लिया है!”

इस अभूतपूर्व घटनाक्रम से भावुक हो कर माया ने तुरंत सरिता जी और किशोर जी के पैर छू कर उनके आशीर्वाद लिए।

“सौभाग्यवती भव बेटी, सानंद रहो!” किशोर जी और सरिता जी ने उसको आशीर्वाद दिया।

“आप लोगों को कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं है न,” किशोर जी ने पूछा।

“जी नहीं भाई साहब!” अशोक जी बोले - वो भी भावुक हो गए थे, “आज का दिन ऐसा निकलेगा... ओह प्रभु! ... भाई साहब, हम भी थोड़ा इंतजाम कर के आते!”

कह कर उन्होंने भी कमल और सरिता जी को उनका उपहार दिया।

“अरे भाई... अब तो हम समधी हो गए हैं, और ये आपका भी बेटा हो गया है... जब मन करे, जैसा मन करे, आप कीजिए!” किशोर जी बोले।

फिर थोड़े विश्राम के बाद उन्होंने बताया, “... देखिये भाई साहब... जब कमल ने हमको माया बिटिया के बारे में वो क्या सोचता है, वो सब बताया, तो समझिए हमारे दिल का बोझ हल्का हो गया। ... ये हमारी धर्मपत्नी जी... कब से मुझे कह रही थीं कि माया बेटी के बारे में आपसे बात करने को... मैं ही थोड़ा संकोच कर रहा था।” उन्होंने आनंद से हँसते हुए कहा, “... और आज आपने जब रिश्ते की बात करी, तो हम कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे!”

“दिल जीत लिया भाई साहब आपने,” अशोक जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा।

“ऐसी बातें न कहिये भाई साहब!”

“बेटी,” किरण जी ने माया से कहा, “तुमको यह रिश्ता मंज़ूर तो है न?”

“हाँ बेटी... हम मारे उत्साह के इतना कुछ कर गुजरे... तुम्हारी मर्ज़ी तो हमने पूछी ही नहीं!” कमल की माँ ने कहा, “तुमको मेरा बेटा पसंद तो है? ये रिश्ता पसंद तो है?”

“आंटी जी,” माया बोली, “मुझमें इतनी समझ नहीं है, कि अपने आप से इतना बड़ा डिसीज़न ले सकूँ! ... आप सभी ने सोचा है तो सब ठीक है... आप मेरे लिए कुछ भी गलत नहीं करेंगे! ... मेरे वीरन को सही लगता है, तो मुझे भी मंज़ूर है... मुझे भी पसंद है!” आखिरी बात कहते हुए माया के गाल शर्म से लाल हो गए।

“अरे वाह! जीती रह बिटिया रानी! जीती रह!” सरिता जी हर्षातिरेक से बोलीं, “भैया, आपकी लक्ष्मी अब हमारी है! आपके पास हमारी धरोहर है! सम्हाल कर रखिएगा इसको!”

इस बात को कहने का एक गूढ़ कारण था। माया के आने के बाद अशोक जी की बिज़नेस में बड़ी बरक़त आई थी। हाँ - उनका व्यक्तिगत और बेहद अपूरणीय नुकसान अवश्य हुआ था अपने बड़े भाई, अपने नवजात भतीजे, अपने अजन्मे शिशु, और अपनी पत्नी के जाने से, लेकिन व्यापार में बहुत बढ़त हुई थी। अजय की खुद की मानसिक और भावनात्मक हालत माया के कारण ही ठीक हुई थी।

“जी बिल्कुल बहन जी,” वो हाथ जोड़ कर बोले, “बिटिया अब आपकी अमानता है! जब आपका जी चाहे, आप लिवा लीजिये!”

“हाँ... इस बात पर कुछ सोच विचार कर लेते हैं,” किशोर जी ने कहा, “... इन दोनों की सगाई का एक प्रोग्राम कर लेते हैं!”

“जी भाई साहब... आप जब कहें?”

“नहीं नहीं... वो प्रोग्राम हमारे यहाँ होगा!” किशोर जी ने बड़े निर्णयात्मक तरीके से कहा, “इतने दिन हो गए... घर में कोई ख़ुशी वाला प्रोग्राम नहीं हुआ। ... इसलिए सोच विचार कर, अच्छे मुहूर्त में इन दोनों बच्चों की सगाई कर देंगे! ... इसी बहाने हम सभी को एक दूसरे के परिवारों से भी मिलने का हो जाएगा!”

“क्या कहते हैं भैया?”

“जैसा आपको उचित लगे बहन जी!” अशोक जी बोले।

“और शादी?” अजय से रहा नहीं गया।

“हा हा,” किशोर जी हँसने लगे, “सगाई... शादी... सब एक ही बात है!”

“भाई साहब?” अशोक जी समझे नहीं।

“अशोक भाई,” किशोर जी ने कहा, “कमल बेटा अपनी पढ़ाई पूरी करेगा! आप चिंता न करिए।”

“नहीं भाई साहब, कोई चिंता नहीं है!”

“माया बेटी का भी आगे पढ़ने का मन करे, तो पढ़ ले! हम पूरा सपोर्ट करेंगे!” सरिता जी बोलीं, “लेकिन, हमारे यहाँ लड़कियाँ... बहुएँ बाहर जा कर काम नहीं करतीं। भगवान की दया से संपन्न परिवार है... घर के लोगों की, बच्चों की देख रेख एक बड़ा काम है। हमारे यहाँ बहुओं को घर की आत्मा माना जाता है। ... आशा है, आप समझ गए होंगे!”

“बोलो बेटी?” अशोक जी ने कहा।

“आंटी जी,” माया धीरे से बोली, “पढ़ लूंगी, लेकिन मुझे भी घर ही सम्हालने का मन है...”

“तो फिर ठीक रहा!” अशोक जी ने कहा।

अजय बोला, “ये दोनों मिल तो सकते हैं न?”

“अरे हाँ! बिलकुल मिलें! एक दूसरे को जानें... समझें! जब जीवन साथ में बिताना है, तो जो अवसर एक दूसरे को जानने के मिलें, वो अवश्य लें!”

“बढ़िया!”

“देख बिटिया, तेरे पापा ने रामायण भेंट में दी है मुझे... तो तुझे ही प्रतिदिन इसका पाठ कर के सुनाना पड़ेगा हमें!” किशोर जी अपने ससुर बनने को लेकर बहुत उत्साहित प्रतीत हो रहे थे।

माया ने यह सुन कर अशोक जी की तरफ़ देखा।

“मुझे मत देखो बेटे,” उन्होंने हँसते हुए कहा, “तुम अब इस परिवार की हो।”

माया ने किशोर जी से कहा, “जी अंकल जी,”

“अंकल जी नहीं, मुझे भी पापा कह कर बुलाओ अब से बेटे,”

“और मुझे आंटी जी नहीं, मम्मी कह कर...” सरिता जी ने कहा।

“हाँ भई...” किशोर जी भी ठिठोली में शामिल हो गए।

“और अपने कमल भाई...” अजय भी इस खेल में शामिल हो गया, “आई मीन, जीजा जी को क्या कह कर बुलाएँ दीदी?”

“वो तो इन दोनों के बीच की बात है...” किरण जी भी इस खिंचाई में शामिल हुए बिना न रह सकीं।

“हा हा हा हा...” हँसी के ठहाकों से पूरा घर गुलज़ार हो गया।

अजय ने देखा - कमल और माया दीदी दोनों के होंठों पर शर्म वाली मुस्कान आ गई थी।

‘कैसे मासूम से हैं दोनों!’ तीस साल की उम्र वाले अजय ने सोचा, ... भगवान ने चाहा, तो दोनों खूब खुश रहेंगे! और इनके प्यार की मासूमियत भी बरकरार रहेगी...’


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B

भाई सस्पेंस बहुत भारी पड़ रहा है
ऐसा लग रहा है जैसे
यही रात अंतिम यही रात भारी

आपके बहुत से कमेंट पढ़े! :)
बहुत बहुत धन्यवाद!
कोई सस्पेंस नहीं है - मैं तो साधारण कहानियाँ लिखता हूँ, बस!
आपको अच्छी लगती हैं, वो आप लोगों का बड़प्पन है!
 

avsji

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Amazing updates avsji. Maja aa gaya padhke. Ekdum interesting hoti jaa rahi hai kahani

धन्यवाद भाई :)
आशा है आगे भी ऐसी ही रोचक लगती रहेगी!
साथ में बने रहें।
 

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Waiting for update bro
Aur bhai apne index me update 20 tak lika hai kya 20 update me story complete ho jayegi kya?

अरे भाई, ऐसा कहाँ होता है! :)
दो बातें हैं --
(१) रोज़ अपडेट दे पाना संभव नहीं है भाई। मैंने दर्जन भर से अधिक कहानियाँ लिखीं हैं, और एक (पहली कहानी) को छोड़ कर मैंने हर कहानी पूरी करी है। बहुत से काम हैं, परिवार है, सब से फुर्सत मिलती है, तब ही लिख पाता हूँ।
(२) लम्बी कहानी है ये। इतनी जल्दी नहीं ख़तम होगी।
 
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avsji

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मिशन अकांप्लिश की शुरुआत हो चुकी है । वर्तमान को पुरी तरह से बदलने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है ।
माया के जीवन से मुकेश को दूर करना , माया की शादी अपने दोस्त कमल से कराना , भाई प्रशांत के लिए दूसरी दुल्हन तलाशना और पुज्य पिताजी को हृदयाघात एवं
उनके अकाल मृत्यु से बचाने की मुहिम शुरू हो गई है ।

अब तक सबकुछ अजय के मन मुताबिक ही हुआ है क्योंकि रिस्पांस सभी परिवार वालों की तरफ से पोजिटिव ही आया है । यह बहुत ही सुखद बात है कि एक कम उम्र वाले लड़के...किशोर लड़के की बात को , सलाह को न सिर्फ गम्भीरतापूर्वक सुना गया बल्कि उस पर अमल करने की कोशिश भी शुरू हो गई ।
अजय का कहना शत प्रतिशत सही था कि उसके परिवार वाले बहुत बहुत ही अच्छे इंसान थे ।

लेकिन जो डर अजय को सता रहा है , जो उसकी चिंता है वही डर वही चिंता मुझे भी सता रही है । अजय ने एक दिन के अंदर ही सारे समस्याओं को सुधारने की कोशिश की , इस डर से कि वह जब सुबह उठे तो फिर से अपने पुराने रूप मे , करीब पन्द्रह सोलह साल बाद न पहुंच जाए ! अगर उसने समय रहते वक्त पर काम पुरा नही किया तब इस टाइम ट्रेवल का कोई औचित्य ही नही रहता , या फिर प्रजापति साहब का वरदान व्यर्थ चला जाता ।

खैर , इस रात की अभी सुबह नही हुई है । सुबह होने के बाद ही पता चलेगा कि अजय की अतीत मे टाइम ट्रेवल एक दिन का है या कुछ दिन का !
लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि अजय कभी न कभी तो इस टाइम ट्रेवल से बाहर निकलेगा ! कभी न कभी तो वह अपने अचेतन - अवचेतन अवस्था से चेतन की अवस्था मे प्रवेश करेगा !
फिर क्या होगा ?
क्या सबकुछ , सभी की परेशानियाँ दूर हो जायेंगी ?
क्या अजय का वर्तमान समय बदल जायेगा ?
क्या अशोक साहब की मृत्यु तय समय पर नही होगी ?
क्या वैवाहिक जोड़े बदल जायेंगे ?
अगर यह सब वास्तव मे हुआ तो इसका मतलब यह हुआ कि विधाता ने प्रकृति के नियम को ही पुरी तरह चेंज कर के रख दिया । यमराज और चित्रगुप्त बस नाम मात्र के ही यमराज , चित्रगुप्त रह गए ।

खैर , देखते है कुदरत की लीला कैसी न्यारी न्यारी है , कैसी प्यारी प्यारी है और कैसी चमत्कारी चमत्कारी है !

खुबसूरत अपडेट अमर भाई ।
जगमग जगमग अपडेट ।

जानबूझ कर मैंने आपके कमेंट का उत्तर नहीं दिया था संजू भाई।
क्योंकि अगले ही अपडेट में कई बातें खुल जाने वाली थीं।

हम सभी की कुछ धारणाएँ होती हैं - कुछ लोग मानते हैं कि भाग्य बदल नहीं सकता।
अगर वैसा है तो चाहे भूत में चले जाओ या भविष्य में, उस बात का मतलब ही नहीं रह जाता।
मैं मानता हूँ कि भाग्य बदल सकता है - और जैसा कि रिकी भाई ने कहा, अजय के कर्मों के हिसाब से ही कर्मफल मिलेगा।

यहाँ अजय के पास अपने कर्मों को बदलने का ईश्वर - प्रदत्त एक ऐसा अनूठा अवसर है, जो शायद ही किसी को मिला होगा।
ऐसे में एक लेखक के रूप में मुझे भी अपनी कल्पनाओं की पींगे बढ़ानी होंगी।

कोशिश यही है कि जो लिखूँ वो तर्कपूर्ण हो। बे-सर-पैर का न हो!
 
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