अपडेट 18
अशोक जी से बातें कर के अजय ने सबसे पहले कमल को फ़ोन लगाया।
कमल भी अजय की पहल को जान कर भौंचक्क रह गया। लेकिन यह जान कर उसको राहत मिली कि माया के पापा को उनके सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं थी। उसके स्वयं के घर में अजय और माया को लेकर बड़े सकारात्मक विचार थे। कमल की माता जी माया को पसंद करती थीं। वो अपनी बहू ऐसी चाहती थीं जो गृह-कार्य में दक्ष हो, और उनके वंश को आगे बढ़ाने को इच्छुक हो। माया उनको इसलिए पसंद आती थी क्योंकि वो जानती थीं कि ये लड़की अवश्य ही पहले सड़क पर खेल तमाशे दिखाती थी, लेकिन वो काम वो अपने परिवार के पालन के लिए करती थी। अशोक जी के वहाँ आने के बाद से वो हर उस कला में निपुण हो गई थी, जो वो अपनी बहू में चाहती थीं।
माया का परिवार तो अच्छा था ही। किरण जी से बातों ही बातों में पता चल गया था कि अशोक जी अपनी जायदाद का आधा हिस्सा माया के नाम लिखने वाले हैं। मतलब, वो माया और परिवार में उसके स्थान को लेकर गंभीर भी थे। इससे भी उनके मन में माया को ले कर सकारात्मक विचार थे। यह सभी बातें कमल को मालूम थीं। वो जानता था कि अगर वो अपने माँ बाप से बात करेगा, तो शायद वो भी माया को ले कर खास विरोध न करें।
कमल से बात करके अजय को एक खालीपन सा महसूस होने लगा।
जब आप अपना मिशन पूरा कर लेते हैं तो एक संतुष्टि वाला भाव उत्पन्न होता है न? ठीक वैसा! अब कुछ करने को शेष नहीं था। उसने प्रयास कर के माया दीदी का जीवन खराब होने से बचा लिया था। संभव है कि उनकी शादी कमल से न हो, लेकिन उस कमीने मुकेश से तो नहीं ही होगी! प्रशांत भैया के मन में उसने कणिका के प्रति संशय भर दिया था। वैसे भी उसने माँ को चिट्ठी लिख कर कणिका के बारे में, और पापा की जीवन रक्षा के बारे में सब कुछ बता दिया था। अंततः, उसने पापा से कह कर एक बेहद नुक़सानदायक बिज़नेस डील न करने को मना लिया था।
और क्या बाकी था?
शायद कुछ भी नहीं...
यह विचार आते ही वो थोड़ा दार्शनिक सा महसूस करने लगा।
पुनः, वो अपने वयस्क जीवन (?) के बारे में सोचने लगा।
अगर वो - मतलब उसकी चेतना - अपने भूतकाल में आ गया है, तो उसके ख़ुद का कोई अस्तित्व है भी या नहीं? अगर वो ख़ुद ‘यहाँ’ है, तो ‘वहाँ’ कौन है? और अगर वो ‘वहाँ’ नहीं है, तो माँ के साथ कौन है? यह सोचते ही उसका शरीर पसीने से नहा गया।
बाप रे! भूत, भविष्य, और वर्तमान के खेल में वो ऐसा फँसा है कि अनजाने ही उसने माँ को भीषण तकलीफ़ में झोंक दिया है। बेचारी का क्या हाल हो रहा होगा अपनी एकलौती औलाद को ‘मृत’ पा कर! कैसे बीता होता उनका आज का दिन? रो रो कर उनका बुरा हाल हो गया होगा! कैसे करेंगी वो सब कुछ?
फिर उसके मन में विचार आया कि वो वैसे भी आज सोएगा तो कल अपने वयस्क अवतार में आँखें खोलेगा। आज उसने जो प्रयास किए हैं, उसके कारण उसका भविष्य बदल जाएगा - उसको ऐसी उम्मीद तो थी।
लोग सोचते हैं कि भाग्य बदलता नहीं! कैसे नहीं बदलता?
वो भविष्य के ज्ञान को अपने भूतकाल में लाया है। ऐसे फीडबैक के कारण उसका भविष्य कैसे नहीं बदलेगा? अवश्य बदलेगा! अगर कुछ बदलना ही नहीं संभव था, तो फिर ईश्वर ने उसको यह अवसर दिया ही क्यों? उनके पास व्यर्थ समय थोड़े ही है कि किसी से यूँ ठिठोली करें? मतलब, उसके प्रयासों का कुछ प्रभाव तो पड़ेगा!
‘तो बहुत संभव है कि कल पापा भी हों, और माँ भी! ... शायद रागिनी नाम की दीमक भी न लगी हो उसके जीवन में!’
तो कल जब वो उठेगा, तो कहाँ उठेगा? पुणे में या फिर दिल्ली में!?
रोमाँच के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।
रात का सन्नाटा गहराने लगा था।
अजय के खुद के मन की दशा अब रात के सन्नाटे जैसी ही हो गई थी। ख़ामोश, गहरी, और अँधेरी!
इतने में,
“बाबू?” माया ने उसके कमरे में प्रवेश किया और बहुत हल्के से पुकारा।
“हाँ दीदी?” वो चौंका।
“सोए नहीं?”
उसने एक गहरी साँस भरी, “नींद नहीं आ रही है दीदी,”
“ऐसे कुर्सी पर बैठे रहोगे, तो नींद कैसे आएगी?” माया ने उसका हाथ पकड़ा और उठने को उकसाते हुए बोली, “चलो... उठो!”
अजय मुस्कुराया - माया दीदी उसके ऊपर अपना अधिकार बड़े ही मीठे तरीके से दर्शाती थीं। वो कोई धौंस नहीं दिखाती थीं। लेकिन कुछ बात तो थी ही उसके व्यवहार में, कि वो उनको मना नहीं कर पाता था।
“आओ... बेड में आओ!”
अजय ने बिस्तर में लेटने से पहले अपने कपड़े उतार दिए। उसको नग्न देख कर माया मुस्कुराई। यह तथ्य उससे छुपा हुआ नहीं था कि अजय नग्न हो कर सोता था। कभी कभी वो स्वयं भी नग्न हो कर सोती थी। ऐसी कोई अनहोनी सी बात नहीं थी यह।
जब अजय बिस्तर में लेट गया, तो माया ने उसको चादर ओढ़ा दी और उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी।
“दीदी?”
“हम्म?”
“कुछ देर बैठो मेरे पास?”
माया ने बिना कुछ कहे ‘हाँ’ में सर हिलाया और उसके बगल लेट गई।
“बाबू?”
“हम्म?”
“तुम... अम्म... उनके बारे में सीरियस हो न?”
“किसके?” अजय को बखूबी पता था कि माया किसके बारे में पूछ रही है। लेकिन बहन से थोड़ी ठिठोली तो की ही जा सकती है।
“उनके,” माया ने इस शब्द पर ज़ोर दिया, “... तुम्हारे दोस्त के,”
“अरे वाह वाह पतिव्रता दीदी मेरी! होने वाले हस्बैंड का नाम भी नहीं ले सकती?” अजय ने हँसते हुए छेड़ा, “दीदी, मैंने पापा से भी कह दिया है सब कुछ !”
“क्या?” अब चौंकने की बारी माया की थी।
“हाँ... देखो, मुझे घुमा फिरा कर बातें करना समझ में नहीं आता। वो... मुकेश... मुझको सही नहीं लगा।”
“क्यों बाबू?” माया ने पूछा, “देखो, मुझे तुम्हारी बात पर कोई डाउट नहीं है, लेकिन मैं भी जानना चाहती हूँ कि किसी को कैसे परखूँ!”
“दीदी, न तो उसने तुमको देखा, और न ही कभी हम कभी उससे मिले!” अजय ने समझाया, “ऐसे में वो क्यों आया? बस इसलिए क्योंकि पापा के पास पैसे हैं। उसको तुम्हारी क्वालिटीज़ से कोई लेना देना नहीं है। बस, पैसे चाहिए।”
“हम्म्म...”
“शादी उससे करो, जो तुमको चाहे! तुमसे प्रेम करे!”
इस बात पर शायद माया को कमल की याद हो आई। उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई।
“एक्साक्ट्ली! देखो न... कमल का सोच कर तुम कैसे मुस्कुराने लगी!”
“धत्त…”
“नहीं सोच रही थी उसके बारे में?”
माया झूठ नहीं कह सकती थी, “हाँ,” उसने शर्माते हुए कहा, “सोच रही थी!”
फिर पापा की बात सोचते हुए बोली, “पापा ने क्या कहा?”
“पापा को भी कमल पसंद है। उन्होंने कहा कि कल वो राणा साहब से बात करेंगे!”
“बाप रे!”
“क्या बाप रे?” अजय बोला, “देखो दीदी, पापा ने मुझे समझाया - और मुझे लगता है कि वो सही भी हैं - कि सभ्य घरों के बच्चे अगर अपने माँ बाप के आशीर्वाद से मिलें, तो बेहतर है। कम से कम हमको मालूम भी रहेगा, और हमारे परिवार इन्वॉल्व्ड भी रहेंगे!”
माया कुछ बोली नहीं। लेकिन उसके गालों पर शर्म की हल्की सी लालिमा आ गई।
अजय कह रहा था, “अगर कमल के पेरेंट्स भी तुम्हारे और कमल के रिश्ते के लिए मान जाते हैं, तो तुम दोनों बिना हिचक एक दूसरे से मिल सकते हो।”
माया की नज़रें शर्म से झुक गईं।
“एक दूसरे को जान लो दोनों... वैसे मुझे लगता है कि तुम भी कमल को बहुत पसंद करोगी। अच्छा है वो!”
“अगर वो तुमको ठीक लगते हैं, तो ठीक ही होंगे,” माया ने धीमे से कहा।
“लेकिन?”
“लेकिन, वो मुझसे छोटे भी हैं न!”
“छोटा होने पर भी उसको इतना रेस्पेक्ट तो दे ही रही हो!” अजय मुस्कुराया, “फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है?”
“बाबू... समझा करो न!”
“हा हा हा... हाँ, छोटा है, लेकिन बहुत नहीं। चार साल, बहुत हुआ तो!”
“पढ़ भी तो रहे हैं।”
“मेरे साथ ही ट्वेल्फ्थ पूरा हो जाएगा कमल का।”
“फिर भी!”
“दीदी देखो, सगाई तो अभी भी हो सकती है। हाँ, शादी में समय लग सकता है।” अजय ने शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम दोनों की शादी अभी नहीं हो सकती।”
“हैं? मतलब?”
“मतलब यह कि तुम दोनों शादी कर सकते हो... हाँ, यह ज़रूर है कि ये शादी वॉइडेबल है। मतलब अगर तुम या कमल चाहो, तो अमान्य कराई जा सकती है ये शादी। लेकिन, वो तो कोई भी शादी कराई जा सकती है!”
“और अगर केवल सगाई हो... मतलब शादी उनके इक्कीस के होने पर हो, तो?”
“फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है!” अजय बोला, “दीदी, क्या बात है? शादी करने की इच्छा जाग उठी है क्या?”
“धत्त, बदमाश है तू!”
“लकी है दोस्त मेरा!” अजय अभी भी माया की खिंचाई कर रहा था, “दीदी, तुम खूब बच्चे करना! कमल को बच्चे बहुत पसंद हैं!”
“पिटेगा तू अब, मेरे हाथों!”
“हाँ हाँ... हस्बैंड मिल गया, अब भाई की क्या वैल्यू!”
इस बात पर माया ने अजय का कान पकड़ कर खींचा और उसके गालों पर चुम्बन दिया।
“दोबारा ये बोला न, तो तुझे ऐसे ही कान पकड़ कर, ऐसे ही नंगू पंगू ले जा कर पापा और माँ से भी पिट्टी लगवाऊँगी। देख लेना,”
“आई लव यू दीदी!”
“हाँ...” वो बोली, “पहले तो रुला देता है, फिर लीपा-पोती करता है।”
“सॉरी दीदी! मज़ाक था सब!”
“ऐसा गन्दा मज़ाक मत किया कर मेरे साथ,”
दोनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर रहे, फिर माया ने ही पूछा,
“बाबू, कल रात सोते समय तुम ठीक तो थे न?”
“हाँ... क्यों? ऐसा पूछा तुमने?”
“नहीं...” माया ने हिचकिचाते हुए कहा, “वो... बात ये है कि तुम बहुत देर तक साँस नहीं ले रहे थे।”
“तुमको कैसे पता?”
“कल पानी पीने उठी थी रात में... इतना तो पता चलता ही है न!”
“हैं? पानी पीने से ये कैसे पता चलता है?”
वो मुस्कुराई, “तुम ख़र्राटे लेते हो न!”
“मैं?” अजय ने अविश्वास से कहा, “मैं ख़र्राटे लेता हूँ? ... कुछ भी!”
माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा,
“हाँ! कल रात मैं जब उठी, तो कमरे से तुम्हारे ख़र्राटे सुनाई नहीं दे रहे थे। मैंने कान लगाया, और जब देर तक सुनाई दिए तो कमरे में आई।”
“मैंने घबरा कर तुमको थोड़ा हिलाया...” माया के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं, “तब भी तुम नहीं उठे! तुम्हारी साँस भी नहीं चल रही थी। मैं भाग कर माँ को बुलाने ही वाली थी कि अचानक से ही तुम फिर से साँस लेने लगे!”
“फिर क्या दिक्कत है दीदी?” अजय ने थोड़ा सतर्क हो कर कहा, “साँस चल तो रही है न!”
“ऐसे मत बोलो बाबू,” माया की आँखों में आँसू आ गए, “तुमको नहीं पता कि मुझे कितना डर लगता है ये सब सोच के भी! ... और फिर... और फिर... माँ की एक ही निशानी हो तुम...”
कहते कहते माया का गला भर आया।
“ओह्हो दीदी! तुम भी न!” अजय ने बड़े प्यार से माया के गालों को अपनी हथेलियों में भर लिया, “मैं एकदम हट्टाकट्टा हूँ! बिलकुल तंदरुस्त! शायद कल रात बहुत गहरा सो गया होऊँ! जैसे मेडिटेशन के समय होता है न... वैसे!”
“पक्का कोई गड़बड़ नहीं है न?”
अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।
“और कभी भी तुमको कोई दिक्कत होगी, तो मुझको बताओगे न?”
“हाँ दीदी! पक्का!”
“ठीक है!”
“दीदी, अब सो जाओ,” वो बोला, “कल कमल से मिलने चलेंगे...”
अजय ने कह तो दिया, लेकिन वो खुद भी नहीं जानता था कि कल क्या होगा।
अगर मिशन पूरा हुआ है तो कल एक नया जीवन मिलने वाला है उसको!
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